Saturday, November 30, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अरुण मित्तल और मलकीत सिंह जस्सर ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट का पैसा 'कब्जाने' की सुधीर जनमेजा की कोशिशों को फ़िलहाल तो विफल कर दिया है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर जनमेजा ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट की मोटी रकम पर कब्ज़ा जमाने के लिए सुशील अग्रवाल की मदद से जो दाँव चला था, उसमें अरुण मित्तल और मलकीत सिंह जस्सर ने जिस तरह से फंदा फँसाया है - उसके नतीजे को देख/समझ कर लगता नहीं है कि सुधीर जनमेजा के हाथ ट्रस्ट का पैसा लगेगा । मामला हालाँकि अभी भी पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल की 'कोर्ट' में है लेकिन उनके लिए भी अब सुधीर जनमेजा के इरादे को कामयाब बनाना आसान नहीं रह गया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में तरह-तरह से पैसा जुगाड़ने के अपने प्रयासों को अंजाम देने के क्रम में सुधीर जनमेजा ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के लाखों रूपए 'पार करने' के लिए पहला कदम गाजियाबाद में आयोजित अधिष्ठापन समारोह के दौरान गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में उठाया था । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट की उपस्थिति में हुई उक्त मीटिंग में सुधीर जनमेजा ने अपनी तरफ से होशियारी दिखाते हुए प्रस्ताव रखा कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट में लाखों रूपया यूँ ही पड़ा हुआ है, इसलिए किसी प्रोजेक्ट में उसका इस्तेमाल करते हुए उसका सदुपयोग कर लेना चाहिए ।
'सदुपयोग' का नाम देकर सुधीर जनमेजा ने किस मनमाने तरीके से पैसे इकट्ठे किये हैं - इससे वाकिफ पूर्व गवर्नर्स ने जब सुधीर जनमेजा के मुँह से ट्रस्ट के पैसों के 'सदुपयोग' की बात सुनी, तो वह हक्के-बक्के रह गये । जल्दी से किसी को कुछ सूझा ही नहीं कि बेहद चालाकी से तैयार किये गए सुधीर जनमेजा के इस प्रस्ताव पर वह किस तरह से रिएक्ट करें और क्या कहें । सुधीर जनमेजा ने भी जल्दीबाजी दिखाते हुए 'आगे बढ़ने की' कोशिश की ताकि उनके प्रस्ताव को स्वीकृत मान लिया जाये । लेकिन उनकी इस कोशिश को विफल करते हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोरसी अरुण मित्तल ने तर्क दिया कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को इस्तेमाल करने के बारे में एक नियम बना हुआ है, जिसका पालन किया जाना चाहिए; और यदि उस नियम को बदलने की जरूरत महसूस की जा रही है तो नए नियम क्या हों उसका प्रारूप सामने आना चाहिए और उस पर चर्चा होनी चाहिए । अरुण मित्तल ने यह सुझाव देकर तो सुधीर जनमेजा के मंसूबों पर पूरी तरह पानी फेर दिया कि इस संबंध में बात करने का यह उचित मौका नहीं है, इसलिए इस विषय को अगली किसी मीटिंग के लिए स्थगित कर देना चाहिए । सभी पूर्व गवर्नर अरुण मित्तल के इस सुझाव से सहमत हुए और तब सुधीर जनमेजा को मनमसोस कर रह जाना पड़ा ।
सुधीर जनमेजा ने लेकिन हिम्मत नहीं हारी और कुछ दिनों बाद देहरादून में डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों के इस्तेमाल करने को लेकर एक मीटिंग बुला ली । अरुण मित्तल के लिए उक्त मीटिंग में शामिल हो पाना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने मीटिंग का निमंत्रण मिलते ही जबावी ईमेल भेज कर उक्त मीटिंग के ही गैरकानूनी होने का सवाल उठा दिया । अरुण मित्तल का कहना था कि ट्रस्ट की मीटिंग बुलाने का अधिकार ट्रस्ट के चेयरमैन को है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को मीटिंग बुलाने का अधिकार ही नहीं है । अरुण मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को लिखे/भेजे अपने जबावी ईमेल संदेश को सभी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को भी भेज दिए । इस ईमेल संदेश में अरुण मित्तल ने जो कुछ कहा उससे लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों को पद-स्थापित करने का जो काम करना चाहिए, उसे करने में तो वह कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं; और उनकी सारी दिलचस्पी डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों का कब्ज़ा ले लेने में है । अरुण मित्तल के इस संदेश ने सुधीर जनमेजा के प्रयासों को एक बार फिर विफल कर दिया ।
डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को कब्जाने के अपने प्रयासों के संबंध में सुधीर जनमेजा ने हिम्मत लेकिन अभी भी नहीं हारी थी । हरिद्धार में आयोजित दूसरी कैबिनेट मीटिंग के समय डिस्ट्रिक्ट ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में सुधीर जनमेजा ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों को लेकर तो कोई बात नहीं की, लेकिन ट्रस्ट के पैसों के 'सदुपयोग' का राग फिर छेड़ दिया । बात आगे बढ़ती, इससे पहले ही अरुण मित्तल ने सवाल दाग दिया कि जो लोग ट्रस्ट के सदस्य तक नहीं हैं उन्हें ट्रस्ट के बारे में फैसला करने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है ? सुधीर जनमेजा को यह समझने में देर नहीं लगी कि अरुण मित्तल ने इस सवाल के जरिये उन्हें ही निशाने पर लिया है । लिहाजा, सुधीर जनमेजा ने झट से ढाई हजार रुपये अपनी जेब से निकाल कर सामने रख दिए और ट्रस्ट के सदस्य होने का  दावा करने लगे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट की सदस्यता को लेकर नियम यह है कि वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनते ही ट्रस्ट की सदस्यता की पात्रता बन जाती है लेकिन ट्रस्ट का सदस्य बनने के लिए पात्रता रखने वाले को ढाई हजार रुपए ट्रस्ट में जमा कराने होते हैं । वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में भी सुधीर जनमेजा ने उक्त ढाई हजार रुपए जमा कराने की लेकिन कोई जरूरत नहीं समझी । डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के लाखों रुपए कब्जाने के लिए तरह-तरह की तिकड़म लगा रहे सुधीर जनमेजा को जब अरुण मित्तल ने यह अहसास कराया कि वह तो डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के सदस्य ही नहीं हैं और इस नाते से उन्हें ट्रस्ट के बारे में बात करने का ही अधिकार नहीं हैं, तब सुधीर जनमेजा ने अपनी जेब से ढाई हजार रुपए निकाले और ट्रस्ट के सदस्य 'बने' ।
सुधीर जनमेजा डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को कब्जाने की अपनी कोशिशों के चलते लगातार फजीहत का शिकार हो रहे थे - लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी कोशिशों को नहीं छोड़ा । हरिद्धार में डिस्ट्रिक्ट ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में सुधीर जनमेजा ने ट्रस्ट का सदस्य 'बनने' के बाद बेहद चालाकी के साथ बड़ा दाँव चला और प्रस्ताव रखा कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट को लेकर चूंकि कई तरह की अस्पष्टाएँ हैं इसलिए उन सब को क्लियर करने का जिम्मा सुशील अग्रवाल को सौंप देना चाहिए । सुधीर जनमेजा को विश्वास था कि सुशील अग्रवाल को उक्त जिम्मेदारी देने का कोई भी विरोध नहीं करेगा और फिर सुशील अग्रवाल से तो वह जो चाहेंगे, करवा लेंगे । सुधीर जनमेजा का यह विश्वास सच भी साबित हुआ; सुशील अग्रवाल को उक्त जिम्मेदारी देने का किसी ने विरोध नहीं ही किया और एक बार को तो लगा कि सुधीर जनमेजा की तरकीब काम कर जायेगी - लेकिन तभी मलकीत सिंह जस्सर ने हस्तक्षेप किया और बाजी पलट दी । मलकीत सिंह जस्सर ने सुझाव दिया कि सुशील अग्रवाल को जो जिम्मेदारी दी जा रही है उसे अकेले निभाना उनके लिए मुश्किल होगा इसलिए उक्त जिम्मेदारी निभाने के काम में सुशील अग्रवाल के साथ अरुण मित्तल को भी शामिल कर लिया जाना चाहिए । जिस तरह सुशील अग्रवाल के नाम का कोई विरोध नहीं कर पाया, ठीक उसी तरह अरुण मित्तल के नाम का भी कोई विरोध नहीं कर सका । सुधीर जनमेजा ने समझ लिया कि मलकीत सिंह जस्सर उनके भी 'गुरु' साबित हुए हैं और मलकीत सिंह जस्सर ने उनकी कामयाब होती दिख रही योजना में फच्चर फँसा दिया है । मलकीत सिंह जस्सर ने जो चाल चली उसके बाद सुधीर जनमेजा के सामने अपने प्रस्ताव को वापस लेने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा ।
मलकीत सिंह जस्सर के हस्तक्षेप के बाद जो सीन बना, उससे उत्साहित हुए अरुण मित्तल ने प्रस्ताव रखा कि पहली जरूरत डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों का नियमानुसार चयन करने की है । उनका कहना था कि ट्रस्ट के नियमानुसार चुने हुए पदाधिकारियों को ही ट्रस्ट के पैसों को इस्तेमाल करने संबंधी फैसले करने चाहिए । सभी ने उनकी बातों का समर्थन किया और अरुण मित्तल के प्रस्ताव पर ही डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों का नियमानुसार चयन करने की जिम्मेदारी सुशील अग्रवाल को सौंप दी गई । इससे डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को कब्जाने की सुधीर जनमेजा की कोशिशों को धक्का तो लगा है; लेकिन लोगों को शक है कि सुधीर जनमेजा अपनी कोशिशों को विराम देंगे । लोगों को डर है कि सुधीर जनमेजा अब कोई और तरकीब सोच और आजमा सकते हैं । हालाँकि अरुण मित्तल और मलकीत सिंह जस्सर ने अभी तक जो जो किया है उससे सुधीर जनमेजा की कोशिशों को लेकर संदेह और जागरूकता का माहौल तो बना ही है । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसे को कब्जाने और बचाने की लड़ाई खासी दिलचस्प हो गई है ।

Wednesday, November 27, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में विनोद बंसल और उनकी पत्नी को निशाना बनाने की अरनेजा गिरोह की कार्रवाई को शेखर मेहता की शह भी हो सकती है क्या ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल को लांछित और अपमानित करने के उद्देश्य से उन पर जो सबसे बड़ा हमला हुआ है, उस हमले को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता की शह और समर्थन की चर्चाओं ने खासा गंभीर बना दिया है । यूँ तो शेखर मेहता के विनोद बंसल के साथ भी बहुत नजदीक और भरोसे के संबंध हैं, जिसके कारण किसी के लिए भी यह विश्वास कर पाना सहज नहीं होगा कि विनोद बंसल को पूरी तरह धराशाही करने के उद्देश्य से किये गए हमले में उनका कोई हाथ होगा; लेकिन परिस्थितिजन्य तथ्य चूँकि इस ओर इशारा कर रहे हैं इसलिए लोगों का शक शेखर मेहता पर जा रहा है । विनोद बंसल के खिलाफ करीब दो पेज का जो मेल अभी अवतरित हुआ है, उस पर हालाँकि नाम तो किसी का नहीं है - लेकिन यह किन लोगों का कारनामा है, इसका संकेत खुद इसी मेल में मौजूद है । इस मेल के तीसरे पैरा में कहा गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संबंध में मुकेश अरनेजा, विनय कुमार अग्रवाल और रमेश अग्रवाल ने कई कई मेल विनोद बंसल को लिखी हैं । इन्होंने विनोद बंसल को कई कई मेल लिखी हैं - यह बात इनके अलावा और कौन जानता होगा ? इसी से लोगों को शक है कि विनोद बंसल को निशाना बनाने वाली बेनामी मेल के पीछे यही लोग हैं । यह शक इसलिए भी और पुख्ता होता है क्योंकि इस खेल के ये लोग बड़े बदनाम और मशहूर खिलाड़ी हैं । इनके इस बार के 'खेल' को शेखर मेहता की शह और समर्थन के साथ इसलिए जोड़ कर देखा जा रहा है क्योंकि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को भी शेखर मेहता के यहाँ बहुत तवज्जो है ।
शेखर मेहता के यहाँ - जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि - तवज्जो विनोद बंसल को भी है । ऐसे में लोगों को आश्चर्य इस बात का है कि शेखर मेहता की कोर टीम में डिस्ट्रिक्ट 3010 के जो तीन लोग हैं उनके बीच आपस में इतनी मारकाट क्यों मची है - और यदि मची है तो शेखर मेहता इनके बीच की इस मारकाट को ख़त्म करवाने का प्रयास क्यों नहीं करते ? इस आश्चर्य की परतें खोलने का काम विनोद बंसल के खिलाफ लिखी गई बेनामी मेल भी करती है । बेनामी मेल का पहला पैरा विस्तार से विनोद बंसल की 'अति महत्वाकांक्षा' को रेखांकित करते हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर के साथ उनकी नजदीकी को निशाना बनाता है । पीटी प्रभाकर से विनोद बंसल की नजदीकी डिस्ट्रिक्ट के लोगों की बजाये डिस्ट्रिक्ट से ऊपर के लोगों के लिए ही चिढ़ का कारण हो सकती है ! विनोद बंसल को शेखर मेहता के 'काम' आकर उतना फायदा नहीं मिला, जितना फायदा उन्हें पीटी प्रभाकर के काम आकर मिला है - यह तथ्य शेखर मेहता को ही 'चोट' पहुँचा सकता है । एक तो इस चोट के चलते, और दूसरे पीटी प्रभाकर से नजदीकी बना कर विनोद बंसल कहीं ज्यादा आगे न बढ़ जाएँ - इसलिए उन्हें पीछे खींचना शेखर मेहता की भी जरूरत हो जाती है । यह जरूरत इसलिए भी हो जाती है ताकि पीटी प्रभाकर के कार्यक्रमों को विनोद बंसल से मिलने वाले 'सहयोग' को रोका जा सके । विनोद बंसल के लिए अनुभवी लोगों की एक सलाहियत रही ही है कि रोटरी के हर 'बड़े जहाज' पर लंगर डालने की उनकी 'रणनीति' अंततः उन्हें नुकसान ही पहुँचायेंगी । पीटी प्रभाकर के साथ उनकी नजदीकी शेखर मेहता को उनके घोर विरोधियों की तरफ धकेलने का काम कर रही हो - तो इसमें कोई बहुत हैरानी की बात नहीं है ।
विनोद बंसल के खिलाफ इस बेनामी मेल को अब तक के सबसे बड़े हमले के रूप में इसलिए देखा जा रहा है क्योंकि इसमें सिर्फ विनोद बंसल को ही नहीं, बल्कि उनकी पत्नी संगीता बंसल को भी निशाना बनाया गया है । मेल के तीसरे पैरा में कहा गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनोद बंसल के कई फैसले उनकी पत्नी संगीता बंसल लेती हैं, जो खुद भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की इच्छुक हैं । रोटरी ने और डिस्ट्रिक्ट 3010 ने बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ देखी हैं, लेकिन किसी भी लड़ाई में मर्यादा का ऐसा उल्लंघन प्रायः नहीं देखा/सुना गया कि महिलाओं को निशाना बनाया गया हो । रोटरी को और डिस्ट्रिक्ट को यह निर्लज्ज किस्म की सौगात मुकेश अरनेजा की एंट्री के बाद मिली है । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने आशीष घोष के खिलाफ इस 'हथियार' का खूब इस्तेमाल किया था । उस समय लेकिन यह सब आपसी बातचीतों और गपशपों में हुआ था । विनोद बंसल के मामले में संगीता बंसल का नाम तो ये लोग अब 'रिकॉर्ड' पर भी ले आये हैं । अपने इस 'काम' को और अच्छे से पूरा करने के लिए इन्होंने विनय कुमार अग्रवाल को अपने साथ और जोड़ लिया है, जिनका कोई भी वाक्य माँ/बहनों से जुड़ी गालियों के बिना पूरा ही नहीं होता है । शेखर मेहता के विनोद बंसल के साथ जैसे संबंध 'दिखते' हैं, वैसे सचमुच में यदि 'हैं' भी तो उनकी 'कोर टीम' के दो सदस्य मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल आपस में मिल कर तीसरे सदस्य विनोद बंसल के खिलाफ बिलो-द-बेल्ट हमला करने का साहस भला कैसे कर सकते हैं ?
विनोद बंसल के खिलाफ उक्त बेनामी मेल में एक मुख्य आरोप यह लगाया गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक उम्मीदवार सुधीर मंगला के खिलाफ व्यक्तिगत रंजिश के कारण नकारात्मक अभियान चलाये हुए हैं । सचमुच में यदि ऐसा है तो मुकेश अरनेजा, रमेश अग्रवाल और विनय अग्रवाल को इस बारे में खुली और औपचारिक शिकायत करने से भला कौन रोक रहा है ? बेनामी मेल में इस तरह का आरोप लगाने का मतलब ही यह है कि आरोप झूठा है । सच बात यह है कि इन्हीं लोगों ने रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से अनुमति लेने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संबंध में विनोद बंसल द्धारा अपनाई जा रही उस व्यवस्था को लागू नहीं होने दिया, जिसके तहत नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्य रोटरी के प्रति उम्मीदवारों की संलग्नता और प्रतिबद्धता की पहचान कर पाते । नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों के सामने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार रोटरी को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी सोच, अपना उद्देश्य और अपना लक्ष्य प्रस्तुत करते - जिससे नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों को उनका मूल्यांकन करने में सुविधा होती और डिस्ट्रिक्ट को वास्तव में एक जेनुइन गवर्नर मिलता - इससे अच्छी बात भला क्या हो सकती थी ? लेकिन तरह-तरह की बहानेबाजी करके उस व्यवस्था को लागू नहीं होने दिया गया ।
लोगों को लगता है कि मुकेश अरनेजा, रमेश अग्रवाल, विनय कुमार अग्रवाल ने उस व्यवस्था को इसीलिए लागू नहीं होने दिया क्योंकि उन्हें डर हुआ कि उसके चलते सुधीर मंगला नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों के सामने बाकी उम्मीदवारों से कमजोर साबित हो जायेंगे । दरअसल उस व्यवस्था को लागू करने को सुधीर मंगला को नुकसान पहुँचाने वाली कार्रवाई के रूप में देखा/पहचाना गया । माना गया कि वह व्यवस्था रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का भले ही भला करती, लेकिन सुधीर मंगला की उम्मीदवारी का तो कबाड़ा ही कर देती । अरनेजा गिरोह ने उस व्यवस्था को लागू होने से रोक कर सुधीर मंगला को फ़िलहाल तो राहत दिलवा दी है, लेकिन उन्हें यह डर बराबर बना हुआ है कि विनोद बंसल ने यदि निष्पक्ष होकर काम किया और रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के हितों को तवज्जो दी तो कहीं सुधीर मंगला की उम्मीदवारी का मामला गड़बड़ा न जाये । इसीलिये उन्होंने विनोद बंसल को दबाव में लेने के लिए बेनामी मेल के जरिये उन पर तगड़ा हमला बोला है ।
शेखर मेहता की शह - या चुपचाप तमाशा देखने की उनकी 'तरकीब' ने अरनेजा गिरोह को यह हौंसला भी दे दिया कि वह विनोद बंसल को ही नहीं, उनकी पत्नी को भी निशाना बना लें ।  

Monday, November 25, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेता उनसे पीछा छुड़ाने की तरकीबें लगाने लगे हैं

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा के लिए यह समझना लगातार मुश्किल हो रहा है कि जिन नेताओं के कहने से उन्होंने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया और जिनकी सलाह के अनुसार ही वह अपने 'कदम' बढ़ा रहे हैं, वही नेता पर्दे के पीछे उन्हें धोखा देने वाले काम क्यों कर रहे हैं ? उल्लेखनीय है कि विक्रम शर्मा को विरोधी खेमे के उम्मीदवार के रूप में ही डिस्ट्रिक्ट में पहचान मिली है और उनकी उम्मीदवारी की वकालत करते हुए हर्ष बंसल, अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन को सुना गया है । इन्होंने विक्रम शर्मा से अपने फर्जी किस्म के क्लब्स - आनंद निकेतन, भगवान नगर, सुविधा कुञ्ज, किरण गैलेक्सी, आदि - के भारी-भरकम ड्यूज भी जमा करा लिए हैं । विक्रम शर्मा ने इनके उस आदेश का पालन भी पूरी निष्ठां के साथ किया जिसमें इन्होँने विक्रम शर्मा को विरोधी खेमे के नेताओं के यहाँ दीवाली देने जाने से मना किया था । विक्रम शर्मा हालाँकि विरोधी खेमे के नेताओं को फोन पर बात करके उन्हें अपने आने/पहुँचने की सूचना दे चुके थे । अपने नेताओं से लेकिन 'न जाने का फ़तवा' मिलने के बाद विक्रम शर्मा को बहानेबाजी करके विरोधी खेमे के नेताओं से न आने/पहुँचने के लिए माफी माँगनी पड़ी थी । इस तरह, विक्रम शर्मा अपने नेताओं की हर बात मान रहे हैं - लेकिन फिर भी उन्हें दूसरों से लगातार इस तरह की सूचनाएँ मिल रही हैं कि जिन्हें वह अपना नेता मान रहे हैं और जिनकी हर डिमांड पूरी कर रहे हैं, उनके वही 'अपने नेता' दूसरे दूसरे लोगों को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उकसाने/प्रेरित करने में लगे हुए हैं ।
'अपने नेता'(ओं) की इस हरकत से परेशान हो रहे विक्रम शर्मा की परेशानियों से परिचित उनके नजदीकियों का कहना है कि विक्रम शर्मा के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि अपने फर्जी किस्म के क्लब्स के ड्यूज के पैसे जब ये नेता उनसे ले रहे हैं, तो फिर दूसरे दूसरे लोगों को ये उम्मीदवार बनने के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं ? विक्रम शर्मा को ये बात भले ही न समझ में आ रही हो, लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खेल से परिचित लोग इस बात को बखूबी समझ रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से और नेताओं के समीकरणों/स्वार्थों से परिचित लोगों का मानना/कहना है कि विक्रम शर्मा ने जिन नेताओं के भरोसे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया है, उन नेताओं की वह दरअसल 'मजबूरी' की पसंद हैं । अजय बुद्धराज के साथ विक्रम शर्मा का पुराना लफड़ा है जिसके चलते अजय बुद्धराज हरगिज हरगिज उनका समर्थन करने को राजी नहीं हो सकते हैं; राकेश त्रेहन का बस चले तो वह ओंकार सिंह को आगे बढ़ाये; हर्ष बंसल ने तमाम गुणा-भाग करके यह नतीजा निकाला है कि कोई बनिया उम्मीदवार ही उनकी चुनावी राजनीति को पार लगा सकता है - इनकी समस्या लेकिन यह है कि इन्हें अपनी पसंद का कोई उम्मीदवार मिला नहीं । हर्ष बंसल ने दो-तीन बनियों को उम्मीदवार बनने के लिए उकसाया भी, लेकिन वह हर्ष बंसल की बातों में आये नहीं । ओंकार सिंह को लाने के लिए राकेश त्रेहन द्धारा किये गए प्रयासों को भी सफलता नहीं मिली है । ओंकार सिंह को चूँकि स्थितियाँ अनुकूल नहीं दिख रही हैं इसलिए वह उम्मीदवार बनने को राजी नहीं हो रहे हैं । अजय बुद्धराज ने भी जिन लोगों को आगे आने के लिए प्रेरित किया, उन्होंने अजय बुद्धराज को कोई सकारात्मक जबाव नहीं दिया । विक्रम शर्मा ने चूँकि उत्सुकता दिखाई, इसलिए ये लोग उनके साथ जुड़ने के लिए मजबूर हो गए ।
अब नेतागिरी करने के लिए कोई उम्मीदवार तो चाहिए ही ।
मजबूरी में ही सही, विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को उन्होंने हरी झंडी तो दे दी और उनकी सलाहानुसार विक्रम शर्मा ने काम करना भी शुरू कर दिया; लेकिन विक्रम शर्मा से उन्हें यह शिकायत भी बनी रही कि विक्रम शर्मा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के साथ संबंध बना लिए हैं । विजय शिरोहा के साथ विक्रम शर्मा की नजदीकी विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को बिलकुल भी पसंद नहीं आई । यह तब है जब विजय शिरोहा के साथ नजदीकी बनाने का प्रयास विक्रम शर्मा ने अपने नेताओं की सलाह पर ही किया । उनके नेताओं ने ही उन्हें समझाया था कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई जीतने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन जरूरी होगा ।
विजय शिरोहा के साथ नजदीकी बनाने का सुझाव विक्रम शर्मा को उनके नेताओं ने दरअसल यह सोच कर दिया था कि विजय शिरोहा ने यदि विक्रम शर्मा को सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी, तो उन्हें विजय शिरोहा को बदनाम करने का मौका मिलेगा; और यदि विक्रम शर्मा को विजय शिरोहा की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली तो विजय शिरोहा को अपने ग्रुप के दिल्ली के नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ेगा । विक्रम शर्मा को इस्तेमाल करके विजय शिरोहा और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स के बीच दूरियाँ पैदा करने के उद्देश्य से ही विक्रम शर्मा को उनके नेताओं ने विजय शिरोहा के साथी गवर्नर्स के यहाँ दीवाली देने नहीं जाने दिया । विक्रम शर्मा के नेताओं ने लेकिन जब देखा/पाया कि विक्रम शर्मा के जरिये बिछाये गए जाल में सत्ता खेमे के नेता फँस ही नहीं रहे हैं तो उन्होंने विक्रम शर्मा की विजय शिरोहा के साथ बनी नजदीकी को ही संदेह से देखना शुरू कर दिया है ।
विक्रम शर्मा के लिए मुसीबत की बात यह हो गई है कि चूँकि अभी तक वह विरोधी खेमे के नेताओं के कहे अनुसार ही चल रहे हैं, इसलिए विजय शिरोहा के साथ नजदीकी बना लेने के बावजूद सत्ता खेमे के नेताओं के बीच उन्हें लेकर संदेह बना हुआ है और वहाँ तो उनकी स्वीकार्यता नहीं ही बन पा रही है; उनके अपने खेमे के नेता भी उनसे पीछा छुड़ाने की तरकीबें और लगाने लगे हैं । विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं ने अपने अपने क्लब्स के ड्यूज तो विक्रम शर्मा से जमा करवा लिए हैं, लेकिन उम्मीदवारी के लिए अब वह दूसरे दूसरे 'शिकार' खोजने लगे हैं ।

Saturday, November 23, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की मनोज देसाई की राह में रोड़ा अटका कर सुशील गुप्ता ने अपने लिए रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी के पद का रास्ता साफ किया

नई दिल्ली । सुशील गुप्ता रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी का पद प्राप्त करने में अंततः कामयाब हो गए हैं और जैसे ही उन्हें यह पद मिलना कंफर्म हुआ वैसे ही रवि प्रकाश लांगेर ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए मनोज देसाई की अधिकृत उम्मीदवारी को चेलैंज करने की तैयारी से अपने आप को अलग कर लिया । इस तरह 'अंत भला, तो सब भला' वाले फलसफे की तर्ज पर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता भी खुश हुए और भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की भी चुनाव लड़ने से जान बची ।
यूँ तो ये दो मामले हैं - एक मामला रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी पद का है और दूसरा मामला रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का है - और इनमें सिर्फ एक ही चीज कॉमन है और वह है रोटरी; इसके अलावा इन दोनों मामलों का आपस में कोई संबंध नहीं है; किंतु रोटरी की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को लगता है कि इस बार इन दोनों मामलों में एक चीज और कॉमन हो गई और वह है पद पाने की तिकड़म का खेल ।
उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए मनोज देसाई के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के बाद जब डिस्ट्रिक्ट 3040 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि प्रकाश लांगेर द्धारा उन्हें चेलैंज करने की तैयारी करने की ख़बरें सुनी गईं तो सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ । यह आश्चर्य एक तो इस कारण हुआ कि रवि प्रकाश लांगेर को रोटरी की चुनावी राजनीति में कभी भी इतना सक्रिय नहीं देखा/पाया गया कि उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाये । दूसरा कारण लेकिन ज्यादा 'गंभीर' था और वह यह कि रवि प्रकाश लांगेर को रोटरी की दुनिया में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के आदमी के रूप में देखा'पहचाना जाता है । रोटरी में यह सहज विश्वास किया जाता है कि रवि प्रकाश लांगेर रोटरी में जो कुछ भी करते हैं वह सुशील गुप्ता से पूछ कर करते हैं । इसी बिना पर माना गया कि रवि प्रकाश लांगेर यदि मनोज देसाई की उम्मीदवारी को चेलैंज करने की तैयारी कर रहे हैं तो यह निश्चित ही सुशील गुप्ता का कोई खेल है । इस 'खेल' को लेकर रोटरी नेताओं के बीच में आश्चर्य इसी वजह से था कि सुशील गुप्ता जब एक तरफ मनोज देसाई की उम्मीदवारी के समर्थन में भी रहे दिखे हैं तो दूसरी तरफ रवि प्रकाश लांगेर के जरिये उनके चुने जाने में बाधा पहुँचाने का प्रयास क्यों कर रहे हैं ?
सुशील गुप्ता के इस 'खेल' को देख कर हैरान हुए लोगों ने पड़ताल की तो उन्होंने पाया कि रवि प्रकाश लांगेर के जरिये उन्होंने दरअसल रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी पद की अपनी कुर्सी पक्की करने का दाँव चला है । उल्लेखनीय है कि रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी पद की कुर्सी पर सुशील गुप्ता की नज़र बहुत समय से है । उन्हें उम्मीद थी कि कल्याण बनर्जी जब इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद की लाइन में होंगे तब वह किसी वर्ष उन्हें उक्त कुर्सी पर बैठा देंगे, लेकिन कल्याण बनर्जी ने उनकी उम्मीद पूरी नहीं की । कल्याण बनर्जी ने उन्हें जिस तरह इग्नोर किया, उससे उन्हें तगड़ा झटका लगा । सुशील गुप्ता को यह देख/जान कर तो और भी करेंट लगा कि कल्याण बनर्जी उनकी बजाये शेखर मेहता को तवज्जो दे रहे हैं और आगे बढ़ा रहे हैं । रोटरी और रोटरी की राजनीति में अभी हाल तक शेखर मेहता हर काम के लिए सुशील गुप्ता पर निर्भर रहा करते थे, लेकिन अब शेखर मेहता उन्हें पीछे छोड़ कर उनसे आगे बढ़ते हुए दिख रहे हैं । कई लोगों का मानना और कहना है कि शेखर मेहता चूँकि सुशील गुप्ता से ज्यादा 'विज़नरी' और सक्रिय हैं इसलिए वह सुशील गुप्ता से आगे निकल रहे हैं; लेकिन सुशील गुप्ता को लगता है कि शेखर मेहता के उनसे आगे होने का कारण कल्याण बनर्जी का उनकी बजाये शेखर मेहता पर ज्यादा ध्यान देना है । सुशील गुप्ता ने पाया/समझा कि कल्याण बनर्जी सिर्फ शेखर मेहता को आगे बढ़ाने का ही काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि शेखर मेहता को आगे बढ़ने में कोई दिक्कत न हो इसके लिए सुशील गुप्ता के रास्ते में रोड़े डालने का भी काम कर रहे हैं ।
इसी कारण से सुशील गुप्ता को डर हुआ कि इस बार ट्रस्टी पद की कुर्सी पाने के लिए उन्होंने जो जुगाड़ किया है कहीं कल्याण बनर्जी और शेखर मेहता की जोड़ी उसमें अपनी टाँग न अड़ा दे । सुशील गुप्ता ने ट्रस्टी पद के लिए अपना नाम प्रस्तावित करने के लिए इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट गैरी सीके हुआँग को तैयार कर लिया था । दरअसल गैरी सीके हुआँग को चुनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में सुशील गुप्ता थे और लगता है कि उन्होंने पहले ही उनका समर्थन करने के बदले में ट्रस्टी पद का सौदा कर लिया था । इसी कारण से यह चर्चा पहले से ही थी कि गैरी सीके हुआँग रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग में ट्रस्टी पद के लिए सुशील गुप्ता का नाम प्रस्तावित करेंगे । सुशील गुप्ता को डर बस कल्याण बनर्जी और शेखर मेहता की जोड़ी से था कि कहीं ये लोग गैरी सीके हुआँग को कुछ उल्टी-सीधी पट्टी न पढ़ा दें । मिलते दिख रहे ट्रस्टी पद में ये दोनों किसी तरह से अपनी टाँग न अड़ा दें - इसके लिए सुशील गुप्ता ने रवि प्रकाश लांगेर के जरिये मनोज देसाई की टाँग पकड़ ली ।
मनोज देसाई और उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर बनवाने के अभियान में लगे कल्याण बनर्जी और शेखर मेहता को अशोक महाजन की तरफ से तो खतरा था, लेकिन यह खतरा सुशील गुप्ता की तरफ से खड़ा हो जायेगा - इसकी उन्होंने तो क्या, अन्य किसी ने भी कल्पना तक नहीं की थी । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए मनोज देसाई को सुशील गुप्ता का सहयोग और समर्थन भी था ही और उस समर्थन को देखा भी जा रहा था । लेकिन फिर भी सुशील गुप्ता ने रवि प्रकाश लांगेर के जरिये मनोज देसाई के लिए बखेड़ा खड़ा कर दिया । पर्दे के पीछे जो खेल चल रहा था, उसकी भनक/खबर रखने वाले लोगों का कहना रहा कि सुशील गुप्ता को रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी का पद यदि इस बार नहीं मिला तो मनोज देसाई को रवि प्रकाश लांगेर से चुनाव लड़ना ही पड़ेगा । रवि प्रकाश लांगेर के जरिये सुशील गुप्ता ने दरअसल मनोज देसाई के सामने नहीं, कल्याण बनर्जी और शेखर मेहता के सामने चुनौती पेश की थी । मनोज देसाई को तो सिर्फ बलि का बकरा बनना था । सुशील गुप्ता की ट्रिक काम कर गई । हालात की नजाकत समझ कर कल्याण बनर्जी और शेखर मेहता ने या तो प्रयास ही नहीं किया और या उनकी चली नहीं - गैरी सीके हुआँग का पलड़ा भारी रहा और ट्रस्टी पद की कुर्सी पर बैठने के लिए हरी झंडी पाने का सुशील गुप्ता का इंतज़ार ख़त्म हुआ तथा इसकी आधिकारिक घोषणा होते ही रवि प्रकाश लांगेर ने भी मनोज देसाई को चेलैंज करने की अपनी तैयारी को समेट लिया ।
स्वाभाविक रूप से सुशील गुप्ता भी खुश हैं और मनोज देसाई भी खुश हैं । खुशी मनवांछित पद पाने की तो है ही, इस बात की भी है कि 'घर का झगड़ा' घर में ही सुलट गया है ।  

Sunday, November 17, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सुधीर मंगला की मदद के बहाने से विनय कुमार अग्रवाल और रमेश अग्रवाल ने विनोद बंसल को अपमानित करने तथा नीचा दिखाने का काम किया

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव से जुड़ी जिस एक महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत करने की तैयारी की थी - सुधीर मंगला और उनके समर्थक समझे जाने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने लेकिन उस योजना का शुरू होने से पहले ही गला घोंट दिया है । सुधीर मंगला के समर्थक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने उक्त योजना को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की एक चाल के रूप में देखा/पहचाना जिसके पीछे सुधीर मंगला को नुकसान पहुँचाने का उद्देश्य उन्होने छिपा पाया; और इसीलिए उन्होंने जाल बिछा कर विनोद बंसल को ऐसा फँसाया कि विनोद बंसल को खुद ही अपनी योजना का वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा ।
विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में योजना यह बनाई कि नॉमिनेटिंग कमेटी के लिए क्वालीफाई क्लब्स से प्रस्तावित किये गए सदस्यों के सामने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार रोटरी को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी सोच, अपना उद्देश्य और अपना लक्ष्य प्रस्तुत करेंगे - जिससे कि नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्य उनका मूल्यांकन कर सकेंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के सामने अपनी इस योजना के बारे में बात करते हुए विनोद बंसल ने उन्हें बताया कि इस तरीके से प्रत्येक उम्मीदवार को नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों को रोटरी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और अपने विज़न से परिचित कराने का मौका मिलेगा और नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों को रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के हितों को पूरा कर सकने वाले उम्मीदवार को पहचानने का अवसर मिल सकेगा । विनोद बंसल ने उम्मीदवारों को बताया कि उन्होंने अपनी इस योजना के बारे में रोटरी के जिन भी बड़े नेताओं और पदाधिकारियों को बताया, उन सभी ने इसकी तारीफ की है और उनकी इस योजना को रोटरी के हित में डिस्ट्रिक्ट में एक सही नेता चुनने के संदर्भ में उपयोगी माना । विनोद बंसल ने उम्मीदवारों को बताया कि इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों से अनुमति भी ले ली है ।
मजे की बात यह रही कि विनोद बंसल ने अपनी इस योजना के बारे में बात करने के लिए उम्मीदवारों के साथ जो मीटिंग की, उस मीटिंग में सभी उम्मीदवारों ने उनकी इस योजना के प्रति समर्थन व्यक्त किया और इस योजना को अमल में लाने के लिए विनोद बंसल को अपनी अपनी तरफ से हरी झंडी भी दे दी ।
लेकिन, अगले ही दिन विनोद बंसल को सुधीर मंगला के क्लब के अध्यक्ष की तरफ से उक्त योजना पर आपत्ति करता और विरोध जताता हुआ ईमेल मिला । चुनाव के संदर्भ में रोटरी इंटरनेशनल के बनाये हुए नियमों का हवाला देते हुए उक्त योजना का विरोध किया गया था । विनोद बंसल को इससे भी बड़ा झटका लेकिन तब लगा जब इलेक्शन कमेटी की मीटिंग में सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के घोषित समर्थक विनय कुमार अग्रवाल ने विनोद बंसल की उक्त योजना का खुला विरोध किया और उनके विरोध का समर्थन इलेक्शन कमेटी के एक दूसरे सदस्य रमेश अग्रवाल ने भी किया ।
विनय कुमार अग्रवाल और रमेश अग्रवाल का कहना था कि विनोद बंसल जिस योजना को अमल में लाना चाहते हैं उससे उम्मीदवारों के सामने नोमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों की पहचान खुलेगी और तब उम्मीदवारों को नोमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों को प्रभावित करने का मौका मिलेगा और यह चुनाव के संदर्भ में बनाये गए रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का उल्लंघन होगा । विनोद बंसल का कहना था कि नोमिनेटिंग कमेटी के लिए क्लब्स से जो जो नाम दिए गए हैं उनके बारे में सभी उम्मीदवारों को जानकारी है ही और सभी उम्मीदवार अपने अपने तरीके से उनसे संपर्क करने और उन्हें प्रभावित करने का काम कर ही रहे हैं । विनोद बंसल का तर्क रहा कि इसलिए वह जिस योजना को अमल में लाना चाहते हैं उससे किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं होगा; और इस बात को जानते/समझते हुए ही रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने उक्त योजना को अमल में लाने के लिए उन्हें अनुमति दे दी है । विनय कुमार अग्रवाल और रमेश अग्रवाल ने लेकिन उनकी एक न सुनी और अपनी जिद पर अड़े रहे ।
विनोद बंसल ने यह कह कर उन दोनों को और भड़का दिया कि उनकी योजना पर एक अकेले सुधीर मंगला को ही ऎतराज क्यों है - जबकि बाकी उम्मीदवार तो नॉमिनेटिंग कमेटी के सदस्यों के सामने प्रेजेंटेशन देने को तैयार हैं । विनोद बंसल ने कहा कि सुधीर मंगला लोगों के बीच रोटरी को लेकर बात करने से बचना क्यों चाहते हैं ? विनोद बंसल ने जब यह जोड़ा कि पहले तो सुधीर मंगला भी तैयार थे और मीटिंग में उन्होंने उक्त योजना को लेकर समर्थन भी व्यक्त किया था, लेकिन फिर बाद में पता नहीं किसके भड़काने पर वह विरोध करने लगे हैं - तो विनय कुमार अग्रवाल और रमेश अग्रवाल बुरी तरह उखड़ गए और फिर उनके जो तेवर रहे तो विनोद बंसल को अपनी योजना को वापस लेने के लिए मजबूर ही होना पड़ा ।
विनय कुमार अग्रवाल लोगों को फोन कर कर के खुद ही बातें बता रहे हैं कि उन्होंने और रमेश अग्रवाल ने कैसे विनोद बंसल को घेरा और कैसे उनकी योजना को विफल किया । विनय कुमार अग्रवाल ने लोगों को बताया है कि विनोद बंसल ने बड़ी होशियारी से ऐसी योजना बनाई जिससे नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों के सामने सुधीर मंगला के मुकाबले रवि भाटिया का पलड़ा भारी हो । विनय कुमार अग्रवाल के अनुसार, सुधीर मंगला पहले विनोद बंसल की इस चाल को समझ नहीं सके और उनकी योजना के प्रति समर्थन कर बैठे - लेकिन उनके सामने जैसे ही यह बात आई, उन्होंने सुधीर मंगला को विनोद बंसल की चाल में न फँसने की सलाह दी और उसके बाद ही सुधीर मंगला के क्लब के अध्यक्ष से विनोद बंसल को विरोध का ईमेल लिखवाया गया तथा बाकी काम उन्होंने और रमेश अग्रवाल ने इलेक्शन कमेटी की मीटिंग में कर दिया ।
विनोद बंसल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव से जुड़ी एक नई और महत्वाकांक्षी योजना का गला घोंट देने में विनय कुमार अग्रवाल और रमेश अग्रवाल को भले ही सफलता मिल गई हो, लेकिन उनकी इस कार्रवाई को विनोद बंसल को अपमानित करने तथा रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के बीच उन्हें नीचा दिखाने की उनकी कोशिश के रूप में भी देखा/समझा जा रहा है । रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के बीच विनोद बंसल की बढ़ी सक्रियता और पैठ को मुकेश अरनेजा गिरोह के लोग पचा नहीं पा रहे हैं, और इसीलिये किसी न किसी बहाने से वह विनोद बंसल को घेरते, परेशान करते और अपमानित करने के मौके बनाते रहते हैं । सुधीर मंगला की उम्मीदवारी को भी उन्होंने ऐसे ही मौके के रूप में देखा/पहचाना हुआ है । विनोद बंसल के खिलाफ छेड़ी हुई मुकेश अरनेजा गिरोह की इस लड़ाई ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले को खासा दिलचस्प बना दिया है ।

Friday, November 15, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में गुरनाम सिंह ने भी इस सच्चाई को पहचानना/स्वीकारना शुरू कर दिया है कि डिस्ट्रिक्ट में विशाल सिन्हा के मुकाबले एके सिंह को लोगों के बीच समर्थन और स्वीकार्यता ज्यादा मिल रही है

लखनऊ । एके सिंह को डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स में जिस तरह से तवज्जो और मान-सम्मान मिल रहा है, उसे देखते हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की संभावित चुनावी लड़ाई में विशाल सिन्हा पर दबाव खासा बढ़ गया है । विशाल सिन्हा को सबसे तगड़ा झटका गुरनाम सिंह के रवैये से भी लगा है । गुरनाम सिंह ने भी अब एके सिंह की उम्मीदवारी को एक हकीकत के रूप में स्वीकार कर लिया है और इस तरह की बातें की/कहीं हैं जिनसे संकेत मिलता है कि वह विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को वापस भी करा सकते हैं । एके सिंह ने दरअसल गुरनाम सिंह के पिछले वर्ष के उस वायदे को ही अपनी उम्मीदवारी का आधार बनाया है जिसमें गुरनाम सिंह ने उन्हें अगले वर्ष - यानि इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की बात कही थी । एके सिंह ने लगातार इस बात को  दोहराया है कि गुरनाम सिंह को उनके साथ किये गए इस वायदे को निभाना चाहिए ताकि कोई यह न कह सके कि गुरनाम सिंह वायदा तो कर देते हैं, लेकिन जब उन्हें निभाने का मौका आता है तो पीछे हट जाते हैं । गुरनाम सिंह ने पहले तो एके सिंह की इस रणनीति पर कोई ध्यान नहीं दिया; क्योंकि उन्होंने यह उम्मीद ही नहीं की थी कि एके सिंह की उम्मीदवारी में कोई दम पैदा हो पायेगा; लेकिन अब जब वह एके सिंह की उम्मीदवारी में दम बना देख रहे हैं तो यह कहने के लिए मजबूर हो रहे हैं कि एके सिंह की बात सच तो है ।
ऐसा नहीं है कि गुरनाम सिंह ने विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के समर्थन से पीछे हटने के कोई संकेत दिए हैं, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने एके सिंह की उम्मीदवारी के दावे को सच मानना शुरू कर दिया है; तथा विशाल सिन्हा और एके सिंह में से कौन - के जबाव में उन्होंने 'देखते हैं' कहना शुरू किया है उससे लगने लगा है कि विशाल सिन्हा को उनका समर्थन अब पहले जैसा नहीं रहा है । गुरनाम सिंह के नजदीकियों का कहना है कि गुरनाम सिंह को लगातार दूसरी बार विशाल सिन्हा की पराजय का सहभागी बनना मँजूर नहीं होगा - इसलिए उन्होंने 'बचने' का विकल्प देखना शुरू कर दिया है । गुरनाम सिंह के नजदीकियों का कहना है कि उम्मीदवार के रूप में विशाल सिन्हा की कमजोरियों और एके सिंह की ताकत को पहचानना/भाँपना उन्होंने शुरू कर दिया है और जैसे ही उन्हें इस बात का पक्का विश्वास हो जायेगा कि विशाल सिन्हा के 'बचने' की कोई उम्मीद नहीं है - वैसे ही फिर वह एके सिंह के साथ किये गए वायदे को निभाने की बात करने लगेंगे । यही करतब गुरनाम सिंह ने मंजु सक्सैना और विनय भारद्धाज के मामले में दिखाया था । नंबर विनय भारद्धाज का था, लेकिन गुरनाम सिंह ने मंजु सक्सैना को उम्मीदवार बनवा दिया; किंतु जैसे ही उन्हें यह समझ में आया कि विनय भारद्धाज के सामने मंजु सक्सैना टिक नहीं पायेंगी - वह तुरंत ही मंजु सक्सैना को छोड़ कर विनय भारद्धाज के पक्ष में आ खड़े हुए । लोगों का मानना/कहना है कि गुरनाम सिंह ने जो खेल मंजु सक्सैना के साथ किया था, उसे वह विशाल सिन्हा के साथ भला क्यों नहीं कर सकते हैं ?
विशाल सिन्हा के खेल का कबाड़ा किया लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनुपम बंसल ने है । विशाल सिन्हा के नजदीकियों का कहना है कि अनुपम बंसल ने जिस तरह से एके सिंह को तवज्जो दी और आगे बढ़ाया, उसके चलते एके सिंह को डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच पहचान, समर्थन और स्वीकार्यता मिलती गई और आज वह विशाल सिन्हा के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं । विशाल सिन्हा के नजदीकियों का कहना है कि विशाल सिन्हा ने कई बार अनुपम बंसल से कहा भी कि एके सिंह को ज्यादा हवा न दो, लेकिन अनुपम बंसल ने उनकी एक नहीं सुनी । दरअसल अनुपम बंसल को शिकायत यह रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को एक उम्मीदवार से जिस तरह की मदद की जरूरत होती है, उम्मीदवार के रूप में विशाल सिन्हा वैसी मदद मुहैया नहीं करा रहे हैं । एके सिंह से चूँकि उन्हें मदद मिली, इसलिए उन्होंने एके सिंह को आगे बढ़ने का मौका दिया । अनुपम बंसल ने संभवतः यह भी समझ लिया कि विशाल सिन्हा के साथ दोस्ती निभाने के चक्कर में उन्हें कोई फायदा तो हुआ नहीं, उलटे सिर्फ बदनामी ही साथ लगी है । इसके आलावा, अनुपम बंसल को यह भी समझ में आया - या उन्हें यह समझाया गया - कि वह विशाल सिन्हा के लिए चाहें कुछ भी कर देंगे, विशाल सिन्हा लेकिन अहसान सिर्फ गुरनाम सिंह का ही मानेंगे और उनके हिस्से में तो बस 'बाबा जी का ठुल्लु' ही आयेगा । संभवतः इसीलिए, विशाल सिन्हा की तमाम नाखुशी के बावजूद अनुपम बंसल ने एके सिंह को आगे बढ़ाने का काम किया है और इस तरह मिले मौके का एके सिंह ने भरपूर फायदा उठाया है ।
विशाल सिन्हा अपने आप को जिस स्थिति में फँसा पा रहे हैं, उसमें से निकलने/उबरने के लिए उन्होंने हमदर्दी-कॉर्ड चला है । विशाल सिन्हा लोगों को बता/जाता रहे हैं कि उन्होंने पिछले वर्ष इतना इतना 'काम' किया था, इसलिए इस वर्ष उनसे ज्यादा 'काम' की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए और उन्हें इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लेना चाहिए । विशाल सिन्हा के इस तर्क पर कुछेक लोगों ने पराग गर्ग की वकालत शुरू कर दी । पराग गर्ग की वकालत करने वाले लोगों का कहना है कि विशाल सिन्हा यदि एक वर्ष के 'काम' के आधार पर दूसरे वर्ष चुने जाने का अधिकार माँग रहे हैं, तो यह अधिकार अपने से पहले उन्हें पराग गर्ग को लेने देना चाहिए - क्योंकि पराग गर्ग ने तो उम्मीदवार के रूप में दो वर्ष काम किया है । जाहिर तौर पर विशाल सिन्हा का हमदर्दी-कॉर्ड भी पिटता हुआ दिख रहा है ।
विशाल सिन्हा से सहानुभूति रखने वाले लोगों का कहना है कि विशाल सिन्हा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की दौड़ में यदि सचमुच रहना है, और इस दौड़ को जीतना है तो उन्हें वस्तु स्थिति का आकलन करके अपनी रणनीति और सक्रियता को संयोजित करना होगा । गलतफहमियों में रहने का नतीजा वह पिछली बार भुगत ही चुके हैं । इस सच्चाई को उन्हें स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि पिछली बार के मुकाबले इस बार की उनकी लड़ाई ज्यादा मुश्किल है - क्योंकि पिछली बार गुरनाम सिंह की मुट्ठी बंद थी और उसे लाख की समझा जा रहा था; इस बार वह मुट्ठी खुली हुई है और सभी जान चुके हैं कि वह तो खाक की है ।
गुरनाम सिंह इस सच्चाई को समझ रहे हैं तथा इसीलिये 'विशाल सिन्हा और एके सिंह में से कौन' जैसे सवाल पर उनका जबाव हो रहा है कि 'देखते हैं' - जाहिर है कि गुरनाम सिंह ने इस सच्चाई को पहचानना/स्वीकारना शुरू कर दिया है कि डिस्ट्रिक्ट में विशाल सिन्हा के मुकाबले एके सिंह को लोगों के बीच समर्थन और स्वीकार्यता ज्यादा मिल रही है । ,

Thursday, November 14, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में कल तक शराब कम पड़ने की शिकायत करते हुए उम्मीदवारों की फजीहत करने वाले शिव कुमार चौधरी को आज ऐसी ही शिकायतों का सामना करना पड़ रहा है

गाजियाबाद । शिव कुमार चौधरी यह देख कर खासे हैरान और परेशान हैं कि कभी जो 'खेल' वह दूसरे उम्मीदवारों के साथ खेला करते थे, वही खेल अब दूसरे लोग उनके साथ खेल रहे हैं । उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में हरिद्धार में संपन्न हुई दूसरी कैबिनेट मीटिंग में पहुँचे लोगों के लिए फैलोशिप की व्यवस्था करने वाले शिव कुमार चौधरी को शराब कम पड़ जाने की शिकायत एक बार फिर सुनने को मिली । इससे पहले, रुद्रपुर में आयोजित हुई स्कूलिंग में भी शिव कुमार चौधरी को शराब के कूपन कम देने के आरोप सुनने पड़े थे । उस समय शिव कुमार चौधरी ने इस तरह की शिकायत करने वालों को बुरी तरह हड़काया भी था । मजे की बात यह थी कि मनमानी संख्या में कूपन लेने वाले भी कूपन कम मिलने की शिकायत कर रहे थे । शिव कुमार चौधरी ने जब यह सुना तो उन लोगों को 'पकड़' कर उनसे पूछा कि तुमने जितने कूपन माँगे, उतने तुम्हें दिए - फिर कूपन कम मिलने की शिकायत क्यों कर रहे हो । लेकिन शिकायत करने वालों के मुँह बंद नहीं किये जा सके ।
हरिद्धार में फिर यही तमाशा हुआ । मिड वे रिसोर्ट में शिव कुमार चौधरी द्धारा की गई 'व्यवस्था' का लुत्फ़ उठाते उठाते भी लोगों की शिकायत यह रही कि - मजा नहीं आया । लोगों ने बीयर की मांग की और उन्हें जब बीयर नहीं मिली तो उन्होंने जुमले कसे कि शिव कुमार चौधरी कैसे चुनाव लड़ेंगे ? दरअसल एक उम्मीदवार के रूप में शिव कुमार चौधरी की 'क्षमताओं' को लेकर लोगों के बीच लगातार संदेह बना हुआ है; उनके समर्थन में दिख रहे लोगों तक को यह विश्वास नहीं है कि वह सचमुच में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव अफोर्ड कर पायेंगे । हालाँकि उनके चुनाव की बागडोर सँभालने वाले नेता लगातार लोगों को आश्वस्त करते रहते हैं कि उन्होंने सारा गणित जोड़/समझ लिया है - और शिव कुमार चौधरी के लिए चुनाव 'लड़ना' कतई मुश्किल नहीं होगा । किंतु लोगों के बीच फिर भी संदेह बना ही हुआ है ।
हरिद्धार में बीयर न पा सके लोगों ने इस बात को और हवा दी । लोगों का कहना था कि वह दिन में शराब की बजाये बीयर पीना चाहते हैं, इसलिए बीयर की व्यवस्था होनी चाहिए थी । शिव कुमार चौधरी के नजदीकियों का ही लोगों के बीच कहना रहा कि बीयर की व्यवस्था इसलिए नहीं की गई क्योंकि उससे खर्चा बढ़ जाता । यही सोच कर बीयर की व्यवस्था नहीं की गई क्योंकि लोगों को जब बीयर दिख जाती है तो वह बीयर ज्यादा पी जाते हैं और फिर शराब भी पीते ही हैं । लोगों के बीच यही निष्कर्ष निकला कि खर्चा बचाने के उद्देश्य से ही शिव कुमार चौधरी ने बीयर की व्यवस्था नहीं की ।
इस निष्कर्ष ने शिव कुमार चौधरी को बुरी तरह हताश किया । उनके लिए यह समझना मुश्किल रहा कि लोग बेतहाशा पीते हैं तो फिर शिकायत क्यों करते हैं ?
शिव कुमार चौधरी के लिए इससे भी बुरी बात यह रही कि कई लोगों ने याद किया कि खुद शिव कुमार चौधरी भी ऐसा ही करते थे । खास तौर से सुनील निगम के साथ किये गए उनके व्यवहार को लोगों ने याद किया । उल्लेखनीय है कि सुनील निगम जब उम्मीदवार थे, तब कई बार उनके द्धारा की गई 'व्यवस्था' में शराब के कम पड़ जाने को लेकर हुड़दंग हुआ था । लोगों ने याद किया कि अधिकतर बार हुड़दंगियों का नेतृत्व करते हुए शिव कुमार चौधरी को ही देखा गया था । यानि शिव कुमार चौधरी के लिए 'सीन' वही है - फर्क सिर्फ इतना है कि पहले सीन में वह शिकार करते थे, और अभी के सीन में वह शिकार हो रहे हैं ।
तो क्या शिव कुमार चौधरी से नियति बदला ले रही है ? 
हमारे यहाँ कहा/माना भी जाता है कि जो जैसा बोता है, उसे काटने को भी वैसा ही मिलता है ।
कल तक शिव कुमार चौधरी शराब कम पड़ने की शिकायत करते हुए उम्मीदवारों की फजीहत किया करते थे, आज उन्हें लोगों से सुनने को मजबूर होना पड़ रहा है कि शराब पिलाने में वह यदि कंजूसी करेंगे तो फिर चुनाव में लोगों का समर्थन कैसे पायेंगे ?

Tuesday, November 12, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में दिवाकर अग्रवाल के नामांकन को निरस्त कराने के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर को 'सेट' कर लेने का दावा किया

मुरादाबाद । दिवाकर अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी होड़ से बाहर करने की तिकड़म को इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर का समर्थन मिल जाने का दावा करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने दीपक बाबू और उनके समर्थकों को खासा खुश कर दिया है । दीपक बाबू और उनके समर्थकों को विश्वास हो चला है कि राकेश सिंघल ने अब जब पीटी प्रभाकर को सेट कर लिया है तो दिवाकर अग्रवाल का नामांकन रद्द होना पक्का ही है और फिर दीपक बाबू डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन ही जायेंगे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रतिद्धन्द्धी उम्मीदवार दिवाकर अग्रवाल की सक्रियता तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी स्वीकार्यता को देख/भाँप पर दीपक बाबू और उनके समर्थकों को जब अपनी पराजय सुनिश्चित जान पड़ी तो वह तीन-तिकड़मपूर्ण षड़यंत्र की जुगाड़ में लग गए । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की इच्छा रखने वाले दीपक बाबू के साथ समस्या दरअसल यह हुई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तो उन्हें बनना है, लेकिन उसके लिए लोगों का समर्थन जुटाने वास्ते आवश्यक सक्रियता दिखाना उनके लिए संभव नहीं हो पाया । दीपक बाबू ने पिछले रोटरी वर्ष में भी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी किंतु चुनाव का दिन नजदीक आते-आते उन्हें आभास हो गया कि चुनाव जीतना उनके लिए संभव नहीं होगा, लिहाजा चुनाव से ठीक पहले वह मैदान छोड़ भागे ।

दीपक बाबू ने इस वर्ष जब एक बार फिर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लगा कि पिछले वर्ष की अपनी कमियों/कमजोरियों से सबक सीख कर वह इस बार उन्हें नहीं दोहरायेंगे । लेकिन इस बार तो उनका 'प्रदर्शन' और भी ख़राब रहा । एक उम्मीदवार के रूप में डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच सक्रिय होने को लेकर दीपक बाबू ने कभी भी कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई । डिस्ट्रिक्ट के विभिन्न क्लब्स के आयोजनों को तो छोड़िये, डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख कार्यक्रमों तक में उपस्थित होने/रहने की उन्होंने कोई जरूरत नहीं समझी । बीच में कई ऐसे मौके आये जबकि लगातार कई-कई दिनों तक रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में दीपक बाबू की शक्ल तक लोगों को नजर नहीं आई । इसी के चलते कई बार इस तरह की घोषणाएँ सामने आईं कि दीपक बाबू ने उम्मीदवार बनने का इरादा छोड़ दिया है । दीपक बाबू के नजदीकियों ने ही लोगों को बताया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की प्रक्रिया को अपना पाना दीपक बाबू के बस की बात नहीं है और इसीलिए दीपक बाबू ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का इरादा छोड़ दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार के रूप में दिवाकर अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस तरह की सक्रियता दिखाई और अपनी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता और समर्थन को जुटाया, उसके चलते दीपक बाबू के लिए मामला और भी गंभीर व नाउम्मीदभरा हो गया ।
दीपक बाबू ने भले ही उम्मीद छोड़ दी हो - लेकिन दीपक बाबू के कुछेक समर्थक लोगों ने उम्मीद नहीं छोड़ी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट टीम में प्रमुख हैसियत रखने वाले दीपक बाबू के समर्थकों ने उन्हें समझाया कि राकेश सिंघल थोड़े लालची किस्म के व्यक्ति हैं, इसलिए यदि उन्हें डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस के लिए खर्चे करने का आश्वासन दे दिया जाये, तो फिर उनसे कुछ भी करवाया जा सकता है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के निकटवर्तियों ने दीपक बाबू को पूरा हिसाब समझाया कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों से समर्थन जुटाने के लिए समय, एनर्जी और पैसा खर्च करना पड़ेगा; जबकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन 'जुटाने' के लिए सिर्फ पैसा खर्च करना होगा । दीपक बाबू चूँकि चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं इसलिए उन्हें 'फर्जी एंट्रीज' के जरिये मुनाफा कमाने की तरकीबें पता ही हैं और इसीलिये उन्हें अपने समर्थकों द्धारा सुझाया गया फार्मूला समझ में भी आ गया और पसंद भी आया । इसके बाद ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई से भागते दिख रहे दीपक बाबू चुनावी मैदान में पुनः आ पहुँचे । पर्दे के पीछे यह जो खेल हुआ, उसमें दीपक बाबू को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने के लिए दिवाकर अग्रवाल को रास्ते से हटाने का विकल्प अपनाने का फैसला हुआ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल और उनकी टीम में मौज़ूद दीपक बाबू के समर्थकों ने जान/समझ लिया कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के रहते हुए दीपक बाबू को चुनाव जितवाना असंभव ही होगा और इसलिए एकमात्र रास्ता दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करना/करवाना ही होगा ।
दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने/करवाने के लिए डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में उनके नाम/पते सहित प्रकाशित उनकी तस्वीर को बहाना बनाया गया; जबकि तथ्य यह है कि उसी डायरेक्टरी में नाम/पते सहित दीपक बाबू की भी तस्वीर छपी है । फर्क यह है कि दिवाकर अग्रवाल का नाम/पता/फोटो डिस्ट्रिक्ट टीम के एक पदाधिकारी के रूप में छपा है और दीपक बाबू का नाम/पता/फोटो एक विज्ञापन के रूप में है । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में दिवाकर अग्रवाल को जिस पद पर बताया गया है, उस पद से दिवाकर अग्रवाल ने मौजूदा रोटरी वर्ष शुरू होने से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया था । तथ्यों के और नियमों के संदर्भ में यदि देखें तो नामांकन दिवाकर अग्रवाल की बजाये दीपक बाबू का रद्द होना चाहिए - क्योंकि रोटरी इंटरनेशनल का कोई भी नियम किसी भी उम्मीदवार को अपना प्रचार करने के लिए विज्ञापन देने का अधिकार नहीं देता है ।
इस सारे झमेले की पड़ताल करें तो देखेंगे कि दिवाकर अग्रवाल से तो सिर्फ राजनीतिक लापरवाही हुई है : उन्हें जब इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करनी थी और उन्हें पता था - और यदि नहीं पता था तो पता होना चाहिए था - कि डिस्ट्रिक्ट टीम में कोई पद लेकर वह उम्मीदवार नहीं हो सकेंगे, तो उन्हें पद का ऑफर स्वीकार नहीं करना चाहिए था । दिवाकर अग्रवाल को लेकिन जैसे ही अपनी इस लापरवाही का ज्ञान हुआ, उन्होंने तुरंत पद छोड़ दिया । पद छोड़ने का काम भी उन्होंने नियमों में तय की गई समय-सीमा में कर दिया । इस तरह तकनीकी रूप से दिवाकर अग्रवाल ने नियमों का कोई उल्लंघन नहीं किया है । जबकि दूसरी तरफ, दीपक बाबू ने अपना विज्ञापन देकर नियमों का घोर उल्लंघन किया है । संदेह का लाभ देकर यदि यह मान भी लिया जाये कि उन्हें - और विज्ञापन लेने और छापने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को - नियम का नहीं पता होगा, तो भी अब जब बातें उठ रही हैं तब तो दीपक बाबू और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को अपनी इस हरकत पर सार्वजानिक रूप से खेद प्रगट करना चाहिए । इन दोनों ने अभी तक भी ऐसा नहीं किया है । 'चोरी और सीनाजोरी' वाले अंदाज़ में ये दोनों उलटे दिवाकर अग्रवाल का नामांकन निरस्त करवाने में लग गए हैं - जबकि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का पालन करने का संदर्भ यदि लिया जाये तो नामांकन तो दीपक बाबू का रद्द होना चाहिए ।
मजे की बात यह है कि दिवाकर अग्रवाल और या उनके समर्थकों की तरफ से दीपक बाबू का नामांकन रद्द कराने की कोई मांग नहीं सुनी गई है । इस संदर्भ में उनकी तरफ से प्रायः यही सुनने को मिला है कि रोटरी में इस तरह की टुच्ची कोशिशों से आगे बढ़ने का रास्ता बनाने का उदाहरण प्रस्तुत नहीं करना चाहिए और चुनाव को साफ-सुथरे और ईमानदार तरीके से ही लड़ा जाना चाहिए । दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों का यही कहना है कि अब जब दो उम्मीदवारों के नामांकन आ गए हैं तो उनके बीच चुनाव होने देना चाहिए और डिस्ट्रिक्ट के लोगों को अपनी पसंद का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनने का मौका देना चाहिए ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने लेकिन 'डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस के लिए खर्चे करने का आश्वासन' मिलने के बाद दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने का जो खेल शुरू किया है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट में सरगर्मी तो खासी बढ़ ही गई है - साथ ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा और डिस्ट्रिक्ट 3100 की साख भी दाँव पर लग गई है । लोगों का कहना है कि राकेश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस के लिए खर्चे का जुगाड़ करने के लालच में इस तरह का षड्यंत्र नहीं करना चाहिए । राकेश सिंघल ने लेकिन न सिर्फ यह षड्यंत्र किया, बल्कि रोटरी साउथ एशिया लिटरेसी समिट 2013 की तैयारी के सिलसिले में 7 और 8 नबंवर को गुड़गॉव में संपन्न हुई साउथ एशियन रोटरी डिस्ट्रिक्ट्स के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की मीटिंग्स से लौटने के बाद से तो वह पूरी तरह आश्वस्त हैं कि उनका यह षड्यंत्र सफल भी होगा । राकेश सिंघल ने उक्त मीटिंग से लौटने के बाद डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बताया है कि वहाँ उन्होंने इस विषय में इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर से बात की है और पीटी प्रभाकर ने उन्हें आश्वस्त किया है कि जैसा फैसला चाहोगे, वैसा फैसला हो जायेगा । राकेश सिंघल के हवाले से उनके नजदीकियों ने लोगों को बताया है कि डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह गवर्नर को कॉन्फरेंस को अच्छे से करने की चिंता होती है, इसी तरह से इंटरनेशनल डायरेक्टर को रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे जुटाने की चिंता होती है । ऐसे में जिस फार्मूले से दीपक बाबू के समर्थकों ने राकेश सिंघल को 'सेट' किया है, उसी फार्मूले से राकेश सिंघल ने पीटी प्रभाकर को 'सेट' कर लेने का दावा किया है ।
राकेश सिंघल ने लोगों को बताया है कि उनके कार्यकाल में अभी तक करीब साठ हज़ार डॉलर की जो रकम रोटरी फाउंडेशन के लिए जुटाई गई है, उससे पीटी प्रभाकर काफी खुश हैं । राकेश सिंघल ने उन्हें पूरे वर्ष में करीब एक लाख डॉलर की रकम जुटाने का आश्वासन देकर और खुश कर दिया है । पीटी प्रभाकर पीछे कई मौकों पर अपने फैसलों को लेकर 'खरीदने/बेचने' की बातें कर चुके हैं - इसलिए भी राकेश सिंघल आश्वस्त हैं कि उन्होंने दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करवाने का जो षड्यंत्र रचा है, उसे पीटी प्रभाकर की तरफ से हरी झंडी अवश्य ही मिल जायेगी । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर रह चुके कुछेक रोटरी के जिन बड़े नेताओं से इन पंक्तियों के लेखक की बात हो सकी है, उनका हालाँकि साफ कहना है कि जो तथ्य हैं उनके आधार पर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी का नामांकन निरस्त नहीं किया जा सकता है । राकेश सिंघल लेकिन पीटी प्रभाकर से मिले आश्वासन के बाद अपने षड्यंत्र के सफल होने को लेकर जिस तरह से आश्वस्त हैं, उसके कारण दीपक बाबू के समर्थकों ने तो जीत का जश्न मनाना भी शुरू कर दिया है ।

Monday, November 11, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अमित जैन की सिफारिश के बाद जितेंद्र गुप्ता को दीवाली 'देने' की सुधीर मंगला की कार्रवाई से रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ भड़के

नई दिल्ली । सुधीर मंगला जिन लोगों को अपनी उम्मीदवारी का समर्थक मान कर चल रहे हैं, और इस नाते उनकी मदद की उम्मीद लगाये बैठे हैं - उनके आपस के झगड़े सुधीर मंगला के लिए जी का जंजाल बन रहे हैं । रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को खुश करने के चक्कर में सुधीर मंगला ने पहले तो दीवाली 'मिलने' के अपने कार्यक्रम से जितेंद्र गुप्ता को बाहर रखा, लेकिन इसके लिए उन्हें जब अमित जैन से डाँट पड़ी और वह जाकर जितेंद्र गुप्ता को दीवाली दे आये तो रमेश अग्रवाल उनसे नाराज हो गए हैं । रमेश अग्रवाल ने सुधीर मंगला को बता दिया कि जब तुम्हें अमित जैन के कहने से ही सारे काम करने हैं तो अब तुम्हें अमित जैन ही चुनाव लड़वायेंगे । रमेश अग्रवाल को दरअसल यह डर सताने लगा है कि सुधीर मंगला का जब अभी यह हाल है कि वह रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ की तुलना में अमित जैन को ज्यादा महत्व दे रहे हैं, तो कहीं यदि वह जीत गए तो रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को तो वह पहचानेगे भी नहीं !
रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को अमित जैन और जितेंद्र गुप्ता से इसलिए खुन्नस है, क्योंकि पिछले रोटरी वर्ष में सुधीर मंगला से रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करवाने में इन्हीं दोनों की मुख्य भूमिका थी । इन्हीं दोनों की तरफ से तरह-तरह से लगातार इस बात को प्रचारित किया गया कि जेके गौड़ को तो बेईमानी करके जितवाया गया है । रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ ने इन बातों के लिए अमित जैन को कम, जितेंद्र गुप्ता को ज्यादा जिम्मेदार माना/ठहराया । अमित जैन ज्यादा पचड़े में नहीं पड़ते हैं, इसलिए - इसके बावजूद कि उन्होंने सुधीर मंगला द्धारा रोटरी इंटरनेशनल में की शिकायत में पर्दे के पीछे महत्वपूर्ण रोल अदा किया - उन्होंने तो कोई खास सक्रियता नहीं दिखाई; किंतु जितेंद्र गुप्ता ने जेके गौड़ का बना/बनाया खेल ख़राब करने के उद्देश्य से रमेश अग्रवाल के खिलाफ जम कर काम किया । इस कारण से रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को जितेंद्र गुप्ता से ज्यादा खुन्नस है । संभवतः इसी बात को ध्यान में रखते हुए सुधीर मंगला जब दीवाली बाँटने के अभियान पर निकले तो जितेंद्र गुप्ता के यहाँ नहीं गए ।
जितेंद्र गुप्ता का इस पर भड़कना स्वाभाविक ही था और वह भड़के भी । जितेंद्र गुप्ता की शिकायत रही कि सुधीर मंगला तमाम ऐसे ऐरे गैरे लोगों तक को तो दीवाली दे रहे हैं, जिनकी न तो कहीं कोई राजनीतिक हैसियत है और न जो कभी सुधीर मंगला के काम आये - लेकिन उनके यहाँ आने की सुधीर मंगला ने कोई जरूरत नहीं समझी; जबकि उन्होंने सुधीर मंगला की मदद करते हुए डिस्ट्रिक्ट के तमाम बड़े नेताओं से दुश्मनी मोल ली । जितेंद्र गुप्ता ने अमित जैन के आगे अपना दुखड़ा रोया और उलाहना दिया कि सुधीर मंगला अपनी मदद करने वालों के साथ यदि इस तरह का व्यवहार करेंगे, तो फिर उन पर कौन विश्वास करेगा और कौन उनकी मदद करेगा ? जितेंद्र गुप्ता की बात को अमित जैन ने सही माना और उन्होंने सुधीर मंगला को सलाह दी कि उन्हें जितेंद्र गुप्ता के साथ ऐसा सुलूक नहीं करना चाहिए । अमित जैन बीच में पड़े तो सुधीर मंगला ने जितेंद्र गुप्ता के यहाँ जाकर उन्हें दीवाली दे दी ।
सुधीर मंगला के लिए संकट लेकिन इसके बाद और बढ़ गया । हुआ यह कि अमित जैन के कहने पर सुधीर मंगला के जितेंद्र गुप्ता के यहाँ दीवाली देने जाने की खबर रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को मिली तो वह बिफर गए । वह इसलिए भी बिफर गए क्योंकि उन्होंने सुना कि जितेंद्र गुप्ता ने सुधीर मंगला के उनके यहाँ न आने के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया है । दीवाली देने के लिए पहले न आने को लेकर सुधीर मंगला ने जितेंद्र गुप्ता से क्या कहा, यह तो वे दोनों जानें - लेकिन लोगों के बीच चर्चा यह फैली कि सुधीर मंगला ने जितेंद्र गुप्ता के सामने सफाई यह दी कि उन्हें रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ ने उनके यहाँ न जाने/आने के लिए कहा था । रमेश अग्रवाल चूँकि इस तरह की हरकतें करते रहे हैं, इसलिए हर किसी ने उक्त चर्चा पर सहज रूप से विश्वास भी कर लिया ।
उधर जितेंद्र गुप्ता दीवाली मिलने के बाद से सुधीर मंगला के सबसे बड़े समर्थक बन गए हैं और कहीं-कहीं उन्होंने लोगों को यह भी बताया कि रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ ने किस तरह की घटिया हरकत की और अमित जैन ने किस तरह उन दोनों की घटिया राजनीति को फेल करके सुधीर मंगला को 'सही राह' पर पहुँचाया । इस तरह की बातें सुन कर रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ का भड़कना लाजिमी ही था । जेके गौड़ तो इस बात की ज्यादा हवा नहीं लगने देते कि उनके मन में क्या चल रहा है, लेकिन रमेश अग्रवाल की तो दिल की हर धड़कन सुनी जा सकती है । जितेंद्र गुप्ता ने रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ पर जो हमला 'किया', रमेश अग्रवाल ने उसका पूरी तल्खी से जबाव दिया । रमेश अग्रवाल ने कहा है कि जो जितेंद्र गुप्ता दीवाली न मिलने पर भड़क सकते हैं, और दीवाली प्राप्त करने का जुगाड़ बैठाने लगते हैं वह सचमुच में सुधीर मंगला की कैसी/ क्या मदद कर पायेंगे ? रमेश अग्रवाल ने साथ ही यह भी जोड़ा कि पिछले वर्ष तमाम कोशिशों के बाद भी अमित जैन और जितेंद्र गुप्ता की मदद सुधीर मंगला के कितने काम आई थी - यह अब सभी को पता है ।
सुधीर मंगला जिन लोगों की मदद से चुनाव जीतने का दावा कर रहे हैं, उनके बीच छिड़ी इस लड़ाई ने सुधीर मंगला के दावों की हवा तो निकाल ही दी है, साथ ही चुनावी चर्चाओं को भी दिलचस्प बना दिया है ।

Thursday, November 7, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के दिल्ली दीपाली जैसे फर्जी किस्म के क्लब के कार्यक्रम में शामिल होने से राकेश त्रेहन, चंद्रशेखर मेहता, सुरेश बिंदल, नरेश गुप्ता का मान/सम्मान बढ़ेगा कि घटेगा ?

नई दिल्ली । हर्ष बंसल ने लायंस क्लब दिल्ली दीपाली के चार्टर प्रेजेंटेशन व इंस्टॉलेशन कार्यक्रम के बहाने तैयारी तो की थी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस को नीचा दिखाने की - लेकिन उनकी हरकत से फजीहत हो रही है राकेश त्रेहन, चंद्रशेखर मेहता, सुरेश बिंदल और नरेश गुप्ता की । राकेश त्रेहन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हैं और उन्हें ही चार्टर प्रेजेंट करना है । चंद्रशेखर मेहता कीनोट स्पीकर हैं और सुरेश बिंदल इंस्टॉलेशन ऑफीसर हैं । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता इंडक्शन ऑफीसर हैं । किसी भी क्लब के कार्यक्रम में 'इन' रूपों में आमंत्रित किये जाने पर किसी का भी मान/सम्मान बढ़ता है - लेकिन मुख्य अतिथि, कीनोट स्पीकर, इंस्टॉलेशन ऑफीसर, इंडक्शन ऑफीसर के रूप में आमंत्रित किये जाने के बावजूद  डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच राकेश त्रेहन, चंद्रशेखर मेहता, सुरेश बिंदल, नरेश गुप्ता की किरकिरी हो रही है तो इसलिए क्योंकि लायंस क्लब दिल्ली दीपाली एक फर्जी किस्म का क्लब है जिसे कहीं से ईंट और कहीं से रोड़ा लेकर बनाया गया है । डिस्ट्रिक्ट में लोग चटखारे लेकर बातें कर रहे हैं कि इन बड़े बड़े नेताओं की स्थिति/हैसियत अब यही रह गई है क्या कि ये फर्जी किस्म के क्लब में अपना स्वागत करवाएँ ?
लायंस क्लब दिल्ली दीपाली हर्ष बंसल का जेबी क्लब है; जिसे उन्होंने पिछले वर्ष तब बनाया था जब उन्हें लायंस क्लब दिल्ली एरिस्टोक्रेट से निकाल दिया गया था । उल्लेखनीय है कि हर्ष बंसल उन 'विलक्षण' नेताओं में हैं, जिन्होंने कई क्लब बनाये - जो या तो बंद हो गए और या जिनमें से उन्हें जलील करके निकल दिया गया । जैसा कि हर्ष बंसल के नजदीकियों का कहना है कि हर्ष बंसल की नसों में खून नहीं, बल्कि लॉयनिज्म बहता है; इसीलिये भले ही क्लब उनसे न चले और बंद हो जाये या उन्हें क्लब से निकाल दिया जाये लेकिन लायनिज्म उनसे नहीं छूटती - वह एक नया क्लब बना कर लायनिज्म करते रहने का जुगाड़ बना ही लेते हैं । हर्ष बंसल अपने आप को बड़ा भारी नेता बनते हैं, लेकिन उनकी औकात ऐसी है कि पिछले वर्ष उन्हें जब लायंस क्लब दिल्ली एरिस्टोक्रेट से निकाला गया तो उनके साथ क्लब से एक भी सदस्य उनके साथ बाहर नहीं आया । डिस्ट्रिक्ट में उनकी ऐसी बदनामी है कि कोई दूसरा क्लब उन्हें अपने यहाँ लेता नहीं । लिहाजा एक नया क्लब बनाना उनकी मजबूरी थी - आखिर उन्हें लायनिज्म भी तो करनी है । ऐसे में उन्होंने तरकीब यह लगाई कि दिल्ली मधुबन नाम से उनके पास पहले से जो एक फर्जी किस्म का क्लब है उसके कुछेक सदस्य लेकर और कुछ यहाँ-वहाँ से जुटा कर उन्होंने दिल्ली दीपाली का गठन कर लिया । जो सदस्य बेचारे दिल्ली मधुबन में कुछ नहीं कर रहे थे, वह दिल्ली दीपाली में क्या करेंगे ? हर्ष बंसल उन्हें उठा कर कभी दिल्ली मधुबन में रख देते हैं और कभी वहाँ से उठा कर दिल्ली दीपाली नाम से एक और फर्जी किस्म का क्लब बना लेते हैं ।
लायंस क्लब दिल्ली दीपाली में दिल्ली मधुबन के सदस्यों के आ जाने से दिल्ली मधुबन की सदस्य संख्या नाम मात्र की रह गई है - हर्ष बंसल को लेकिन इससे कोई मतलब नहीं है; उन्हें सिर्फ इस बात से मतलब है कि उनका एक नया क्लब बन गया । इसी फर्जी किस्म के नए क्लब के तथाकथित पदाधिकारियों के इंस्टॉलेशन कार्यक्रम में राकेश त्रेहन को मुख्य अतिथि, चंद्रशेखर मेहता को कीनोट स्पीकर, सुरेश बिंदल को इंस्टॉलेशन ऑफीसर और नरेश गुप्ता को इंडक्शन ऑफीसर का रोल अदा करना है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच जो चर्चा है उसमें कहा/सुना यही जा रहा है कि इन लोगों को क्या पता नहीं होगा कि लायंस क्लब दिल्ली दीपाली कैसा क्लब है ? ऐसे फर्जी किस्म के क्लब के कार्यक्रम में बड़े बड़े नाम वाली तथाकथित जिम्मेदारियों को निर्वाह करने का तमाशा बनाने/करने को फिर ये लोग क्यों राजी हो गए ? डिस्ट्रिक्ट में लोग खुद ही ऐसे सवाल करते हैं और फिर स्वयं ही उसका जबाव भी देते हैं कि इन बेचारों की समस्या यह है कि अपनी नेतागिरी और अहमियत दिखाने का काम फिर ये कहाँ करें ? अपनी नेतागिरी और अहमियत दिखाने के लिए इन्हें यदि फर्जी किस्म के क्लब में ही मौका मिल रहा है तो ये उसे चूकना नहीं चाहते हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का कहना है कि हर्ष बंसल चूँकि इनकी यह कमजोरी जानते/पहचानते हैं, इसलिए उन्हें पक्का भरोसा है कि वह इन्हें अपने फर्जी किस्म के क्लब के कार्यक्रम में बुलायेंगे तो यह दौड़े चले आयेंगे । इस तरह हर्ष बंसल की यह हरकत राकेश त्रेहन, चंद्रशेखर मेहता, सुरेश बिंदल, नरेश गुप्ता की किरकिरी कराने का काम ही कर रही है ।
मजे की बात यह है कि दिल्ली दीपाली के इस कार्यक्रम के जरिये हर्ष बंसल ने चाल तो दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस को नीचा दिखाने की चली थी । उन्होंने सोचा यह था कि इस कार्यक्रम में जब इन दोनों को न बुलाये जाने की बात लोगों के सामने आयेगी तो इनकी किरकिरी होगी - क्योंकि लोग कहेंगे कि डिस्ट्रिक्ट के एक क्लब के कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र पर इनका नाम तक नहीं है । हुआ लेकिन उल्टा । लोगों के बीच चर्चा यह चल निकली कि यह अच्छा ही हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस का नाम एक फर्जी किस्म के क्लब के कार्यक्रम के साथ नहीं जुड़ा । हर्ष बंसल ने जो किया, उस पर किसी को भी आश्चर्य नहीं है; क्योंकि सभी जानते हैं कि हर्ष बंसल घटिया सोच का व्यक्ति है जो घटिया काम ही करता है, कर सकता है - लेकिन लोगों को राकेश त्रेहन, चंद्रशेखर मेहता, सुरेश बिंदल, नरेश गुप्ता के रवैये पर जरूर हैरानी है । किसी के लिए भी यह समझना लेकिन मुश्किल हो रहा है कि इनके सामने ऐसी क्या मजबूरी है जो इन्हें एक फर्जी किस्म के क्लब के कार्यक्रम में शामिल होने की स्वीकृति देने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं हुई और ऐसे क्लब में सम्मान कराने के लिए झटपट तैयार हो गए । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का मानना और कहना है कि दिल्ली दीपाली जैसे फर्जी किस्म के क्लब के कार्यक्रम में शामिल होना इनके लिए मान/सम्मान की नहीं, बल्कि अपमान और जलालत की बात ही होगी ।

Tuesday, November 5, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को चुनवाने में जेके गौड़ द्धारा दिखाई गई दिलचस्पी से कई क्लब्स के प्रमुख सदस्यों ने अपने आप को उपेक्षित और अपमानित महसूस किया है

गाजियाबाद । जेके गौड़ ने आम तौर पर उत्तर प्रदेश और खास तौर पर गाजियाबाद के विभिन्न क्लब्स से नोमीनेटिंग कमेटी के लिए सदस्यों को चुनवाने में जो दिलचस्पी ली है, उसे क्लब्स के प्रमुख सदस्यों ने उन्हें अपने ऊपर हावी होने की और अपनी चौधराहट ज़माने की कोशिश के रूप में देखा/पहचाना है । विभिन्न क्लब्स के प्रमुख सदस्यों ने इस बात को लेकर नाराजगी व्यक्त की है कि उनके क्लब से नोमीनेटिंग कमेटी के लिए किसका नाम जाये, इसे लेकर जेके गौड़ ने कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी दिखाई है; और कहीं-कहीं इस बात को बहुत जोर-शोर के साथ प्रचारित भी किया कि फलाँ तो नोमीनेटिंग कमेटी में 'उसको' भेजना चाहता था, लेकिन मैंने 'उसको' करवा दिया । जेके गौड़ द्धारा किये गए दावों से ऐसा ध्वनित भी हुआ - जैसे गाजियाबाद में योगेश गर्ग, उमेश चोपड़ा, राजीव वशिष्ट, दीपक गुप्ता आदि के क्लब्स में जेके गौड़ ने उन सदस्यों को नोमीनेटिंग कमेटी के लिए नहीं चुना जाने दिया जो इनकी पसंद थे; बल्कि इनके क्लब्स से उन सदस्यों को चुनवाया जो जेके गौड़ की पसंद थे और जेके गौड़ के कहने पर कहीं भी अँगूठा लगा सकते हैं ।
जेके गौड़ के इस रवैये पर लोगों को हैरानी इसलिए है क्योंकि जेके गौड़ हमेशा यह दावा करते रहे हैं कि वह गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश के लोगों को साथ लेकर ही चलेंगे और कोई भी फैसला सभी के साथ सहमति बना कर ही लेंगे । जेके गौड़ ने हमेशा यही दावा किया है कि वह डिस्ट्रिक्ट में और दिल्ली में गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश के लोगों के हितों की वकालत करेंगे और गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश का संगठित रूप प्रस्तुत करेंगे । लेकिन उनके रवैये से लोगों को लग यह रहा है कि जेके गौड़ जैसे दिल्ली के गिरोह के उत्तर प्रदेश के ब्राँच मैनेजर की भूमिका निभा रहे हैं । जेके गौड़ ने यह दावा भी किया हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव में उनकी तटस्थ भूमिका है और वह किसी भी उम्मीदवार की वकालत नहीं कर रहे हैं । इसलिए भी, लोगों के बीच उत्सुकता का विषय यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव में उन्हें यदि सचमुच कोई भूमिका नहीं निभानी है, तब फिर उन्होंने क्लब्स से नोमीनेटिंग कमेटी के लिए जाने वाले नामों को लेकर इतनी सक्रियता क्यों निभाई - जिसके चलते कई क्लब्स के प्रमुख सदस्यों ने अपने आप को उपेक्षित और अपमानित महसूस किया ।
दीपक गुप्ता को लेकर तो जेके गौड़ का रवैया और भी चकित कर देने वाला रहा है । दीपक गुप्ता को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में सक्रिय देखा/सुना जा रहा है । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन और सहानुभूति का भाव रखने वाले लोगों ने जेके गौड़ के 'उत्तर प्रदेश के साथ रहने' के दावे को याद करते हुए उम्मीद की थी कि जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं के सामने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की वकालत करेंगे; लेकिन उन्होंने जेके गौड़ को जब उक्त चुनावबाज नेताओं की भाषा बोलते और उनकी हाँ में हाँ मिलाते देखा/सुना - तो वह भौंचक रह गए । दिल्ली के चुनावबाज नेता एक तरफ दीपक गुप्ता को भी हवा दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ अजय नारायण और सरोज जोशी को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं । वे ऐसा कर रहे हैं, यह तो समझ में आता है; लेकिन जेके गौड़ भी उनकी ही जैसी भाषा बोल रहे हैं - यह देख/जान कर उत्तर प्रदेश में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक और शुभचिंतक निराश हुए हैं । यह ठीक है कि जेके गौड़ अब जिस हैसियत में हैं उसमें उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों को साथ लेकर चलना है और ऐसे में उनसे उत्तर प्रदेश के 'हितों' की खुल्लम-खुल्ला वकालत की उम्मीद करना उनके साथ नाइंसाफी ही होगी, लेकिन उत्तर प्रदेश के लोगों को उनसे कुछ अलग तरह की जो अपेक्षाएँ हैं - उन्हें उन अपेक्षाओं का भी ध्यान तो रखना ही होगा । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों की शिकायत यह है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर जेके गौड़ ने अभी तक जो रवैया दिखाया है उसमें वह डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज गिरोह के पिछलग्गू की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं ।
जेके गौड़ ने जिस तरह से बिना किसी समर्थन के और अपने व्यक्तित्व के बिना किसी आकर्षण के - सिर्फ अपनी लगनशील मेहनत; अपनी कमजोरियों को पृष्ठभूमि में धकेल कर अपनी खूबियों को एक्सप्लोर कर और प्रतिकूल स्थितियों को अनुकूल बनाने के अपने हुनर का इस्तेमाल करके चुनावी बाजी जीती थी - उससे उनके नजदीकियों को उम्मीद बँधी थी कि यह जीत उन्हें एक ऐसा आत्मविश्वास देगी कि वह डिस्ट्रिक्ट में एक नई इबारत लिखने की कोशिश करेंगे और अपनी एक स्वतंत्र व खास पहचान बनाने की कोशिश करेंगे । जेके गौड़ को लेकिन एक गिरोह में चौथे-पाँचवे नंबर पर रहने की कोशिश करते देख उनके उन नजदीकियों को तगड़ा झटका लगा है । गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश के क्लब्स से नोमीनेटिंग कमेटी के लिए सदस्यों को चुनवाने में दिखाई गई दिलचस्पी के कारण जेके गौड़ जिस तरह से गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश के प्रमुख रोटेरियंस के निशाने पर आ गए हैं उसने जेके गौड़ की स्थिति को गंभीर बना दिया है । उनके लिए गंभीरता के साथ यह तय करने का समय शायद आ चुका है कि वह अपनी एक स्वतंत्र पहचान व साख बनाये और या डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं के गिरोह के एजेंट बन कर रहे !  

Saturday, November 2, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में शिव कुमार चौधरी द्धारा हुई सुधीर जनमेजा की फजीहत के कारण सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के समीकरण बदलेंगे क्या

गाजियाबाद । लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर जनमेजा डिस्ट्रिक्ट के एक प्रमुख क्लब - लायंस क्लब गाजियाबाद से मिले झटके से अभी उबर भी नहीं पाये थे कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार शिव कुमार चौधरी ने उनकी फजीहत कर दी । सुधीर जनमेजा ने अपनी सेकेंड कैबिनेट मीटिंग में फैलोशिप के आयोजन हेतु शिव कुमार चौधरी को पहले तो अपने एक दूत के जरिये ऑफर भेजा, शिव कुमार चौधरी ने उक्त ऑफर को लेकर जब कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई तो सुधीर जनमेजा खुद मैदान में उतरे । जो संदेश सुधीर जनमेजा ने पहले अपने दूत के जरिये शिव कुमार चौधरी तक पहुँचाया थे, दौबारा में वही संदेश उन्होंने स्वयं शिव कुमार चौधरी के सामने रखा । संदेश यह था कि सेकेंड कैबिनेट मीटिंग में फैलोशिप के आयोजन के लिए दो लोगों ने प्रस्ताव रखा है, आप बताओ कि क्या करना है ? शिव कुमार चौधरी ने सुधीर जनमेजा के दूत से जब यह संदेश सुना तो दोटूक शब्दों में जबाव दिया कि - मुझे क्या करना है, उन दोनों से कहो कि फैलोशिप का आयोजन करें । दूत से सुधीर जनमेजा को शिव कुमार चौधरी का जब यह जबाव मिला तो उन्होंने खुद मोर्चा संभाला । सुधीर जनमेजा ने भी शिव कुमार चौधरी को वही संदेश दिया, जिसका दोटूक जबाव शिव कुमार चौधरी दे चुके थे ।
सुधीर जनमेजा को शायद यह उम्मीद रही होगी कि शिव कुमार चौधरी ने जिस टोटूक तरीके से उनके दूत को जबाव दिया, वैसे उन्हें नहीं देंगे । शिव कुमार चौधरी ने लेकिन वही जबाव उन्हें भी दिया और ठीक वैसे ही दिया जैसे सुधीर जनमेजा के दूत को दिया था । दरअसल शिव कुमार चौधरी समझ गए थे कि सुधीर जनमेजा को फैलोशिप के लिए कोई मिला नहीं है और वह उन्हें फाँसने के लिए झूठे दावे कर रहे हैं कि उन्हें दो लोगों का प्रस्ताव मिला है । शिव कुमार चौधरी ने भाँप लिया था कि सुधीर जनमेजा को यदि फैलोशिप के लिए सचमुच में दो लोग मिल गए होते तो फिर वह उनसे बात ही नहीं करते । स्कूलिंग के समय का अनुभव शिव कुमार चौधरी भूले नहीं थे, जब सुधीर जनमेजा ने तीन-तिकड़म से उन्हें फैलोशिप के लिए फँसा लिया था और उनसे मोटी रकम खर्च करवा ली थी । शिव कुमार चौधरी अब की बार सावधान थे और सुधीर जनमेजा के जाल में फँसने से बचने की तैयारी किये हुए थे । उनकी खुशकिस्मती रही कि दो लोगों के प्रस्ताव की बात कह कर बचने का मौका खुद सुधीर जनमेजा ने ही उन्हें दे दिया ।
सुधीर जनमेजा को जब लगा कि शिव कुमार चौधरी तो हाथ से निकले जा रहे हैं तो फिर उन्होंने उनके उम्मीदवार होने का वास्ता दिया । सुधीर जनमेजा ने उनसे कहा कि उम्मीदवार होने के नाते फैलोशिप का आयोजन उन्हें करना चाहिये । शिव कुमार चौधरी ने लेकिन उन्हें यह कह कर टका-सा जबाव दे दिया कि उम्मीदवार के रूप में उन्हें क्या करना है, यह वह जानते हैं और कर लेंगे; फैलोशिप का आयोजन दूसरे लोगों को ही कर लेने दो । इसके बाद सुधीर जनमेजा के पास कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं रह गया । शिव कुमार चौधरी के दोटूक फैसले ने फैलोशिप जुटाने की उनकी सारी तिकड़म पर पानी फेर दिया था । हाल-फ़िलहाल के दिनों में सुधीर जनमेजा को यह दूसरा बड़ा झटका लगा है । इससे पहले लायंस क्लब गाजियाबाद के पदाधिकारी अपने क्लब के गोल्डन जुबली कार्यक्रम से बाहर रख कर सुधीर जनमेजा की खासी फजीहत कर चुके थे । उल्लेखनीय है कि जिस कार्यक्रम में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की राह पर बढ़ रहे नरेश अग्रवाल और इंटरनेशनल बोर्ड की सदस्या अरुणा ओसवाल आमंत्रित किये गए हों, उस कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर को ही न तवज्जो दी जाये तो यह उक्त गवर्नर के लिए फजीहत की बात तो है ही । कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र पर अपना नाम न पाकर सुधीर जनमेजा बहुत बुरी तरह से बिफरे थे और उन्होंने हर संभव प्रयास किया कि उक्त कार्यक्रम या तो हो ही न सके और या नरेश अग्रवाल व अरुणा ओसवाल उसमें शामिल न हों । सुधीर जनमेजा की लेकिन एक न चली और उन्हें ऐतिहासिक रूप से फजीहत का शिकार होना पड़ा । ऐतिहासिक इसलिए क्योंकि इतनी और किसी गवर्नर की हुई हो, ऐसा किसी को याद नहीं पड़ता ।
सुधीर जनमेजा के लिए शिव कुमार चौधरी से मिला झटका लेकिन ज्यादा गंभीर है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की इतनी अवहेलना करे और फैलोशिप करने के उसके आमंत्रण को सिरे से ख़ारिज कर दे, यह अपने आप में बड़ी बात है । यह बात तब और बड़ी हो जाती है जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उसी खेमे का हो जिस खेमे के समर्थन के भरोसे उम्मीदवार सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की दौड़ में हो । तो क्या यह माना जाये कि शिव कुमार चौधरी ने सुधीर जनमेजा के प्रति उपेक्षा का जो रवैया दिखाया है, उसकी प्रेरणा और प्रोत्साहन उन्हें खेमे के बड़े नेताओं से मिला है ? क्योंकि यह भी देखा/सुना गया है कि खेमे के बड़े नेता सुधीर जनमेजा से खुश नहीं चल रहे हैं । सुधीर जनमेजा के नजदीकियों का कहना है कि शिव कुमार चौधरी अभी चाहें किसी भी कारण से सुधीर जनमेजा की अहमियत नहीं समझ रहे हों, लेकिन जल्दी ही उन्हें इसकी जो कीमत चुकानी पड़ेगी उससे उन्हें अहसास होगा कि उन्होंने गलती की है । सुधीर जनमेजा के इन्हीं नजदीकियों का यह भी कहना है कि हो यह भी सकता है कि अभी तेवर दिखा रहे शिव कुमार चौधरी अंततः कैबिनेट मीटिंग में फैलोशिप के लिए राजी हो ही जाएँ ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर जनमेजा के प्रति शिव कुमार चौधरी के रवैये को देख/पहचान कर डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को यह आभास जरूर होने लगा है कि शिव कुमार चौधरी को सबक सिखाने के उद्देश्य से सुधीर जनमेजा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के समीकरण बदलने का प्रयास कर सकते हैं । सुधीर जनमेजा अपनी फजीहत को चुपचाप बर्दास्त करते रहेंगे या कुछ करेंगे और करेंगे तो क्या करेंगे - यह देखना दिलचस्प होगा ।