गाजियाबाद । जेके गौड़ ने
आम तौर पर उत्तर प्रदेश और खास तौर पर गाजियाबाद के विभिन्न क्लब्स से
नोमीनेटिंग कमेटी के लिए सदस्यों को चुनवाने में जो दिलचस्पी ली है, उसे
क्लब्स के प्रमुख सदस्यों ने उन्हें अपने ऊपर हावी होने की और अपनी चौधराहट
ज़माने की कोशिश के रूप में देखा/पहचाना है । विभिन्न क्लब्स के प्रमुख
सदस्यों ने इस बात को लेकर नाराजगी व्यक्त की है कि उनके क्लब से
नोमीनेटिंग कमेटी के लिए किसका नाम जाये, इसे लेकर जेके गौड़ ने कुछ ज्यादा
ही दिलचस्पी दिखाई है; और कहीं-कहीं इस बात को बहुत जोर-शोर के साथ
प्रचारित भी किया कि फलाँ तो नोमीनेटिंग कमेटी में 'उसको' भेजना चाहता था,
लेकिन मैंने 'उसको' करवा दिया । जेके गौड़ द्धारा किये गए दावों से ऐसा
ध्वनित भी हुआ - जैसे गाजियाबाद में योगेश गर्ग, उमेश चोपड़ा, राजीव वशिष्ट,
दीपक गुप्ता आदि के क्लब्स में जेके गौड़ ने उन सदस्यों को नोमीनेटिंग
कमेटी के लिए नहीं चुना जाने दिया जो इनकी पसंद थे; बल्कि इनके क्लब्स से
उन सदस्यों को चुनवाया जो जेके गौड़ की पसंद थे और जेके गौड़ के कहने पर कहीं
भी अँगूठा लगा सकते हैं ।
जेके गौड़ के इस रवैये पर लोगों को हैरानी इसलिए है क्योंकि जेके गौड़
हमेशा यह दावा करते रहे हैं कि वह गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश के लोगों को साथ
लेकर ही चलेंगे और कोई भी फैसला सभी के साथ सहमति बना कर ही लेंगे । जेके
गौड़ ने हमेशा यही दावा किया है कि वह डिस्ट्रिक्ट में और दिल्ली में
गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश के लोगों के हितों की वकालत करेंगे और
गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश का संगठित रूप प्रस्तुत करेंगे । लेकिन उनके
रवैये से लोगों को लग यह रहा है कि जेके गौड़ जैसे दिल्ली के गिरोह के उत्तर
प्रदेश के ब्राँच मैनेजर की भूमिका निभा रहे हैं । जेके गौड़ ने यह दावा भी
किया हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव में उनकी तटस्थ भूमिका
है और वह किसी भी उम्मीदवार की वकालत नहीं कर रहे हैं । इसलिए भी, लोगों
के बीच उत्सुकता का विषय यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के चुनाव
में उन्हें यदि सचमुच कोई भूमिका नहीं निभानी है, तब फिर उन्होंने क्लब्स
से नोमीनेटिंग कमेटी के लिए जाने वाले नामों को लेकर इतनी सक्रियता क्यों
निभाई - जिसके चलते कई क्लब्स के प्रमुख सदस्यों ने अपने आप को उपेक्षित और अपमानित महसूस किया ।
दीपक गुप्ता को लेकर तो जेके गौड़ का रवैया और भी चकित कर देने
वाला रहा है । दीपक गुप्ता को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में सक्रिय देखा/सुना जा रहा है । दीपक
गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन और सहानुभूति का भाव रखने वाले लोगों
ने जेके गौड़ के 'उत्तर प्रदेश के साथ रहने' के दावे को याद करते हुए
उम्मीद की थी कि जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं के सामने दीपक
गुप्ता की उम्मीदवारी की वकालत करेंगे; लेकिन उन्होंने जेके गौड़ को जब उक्त
चुनावबाज नेताओं की भाषा बोलते और उनकी हाँ में हाँ मिलाते देखा/सुना -
तो वह भौंचक रह गए । दिल्ली के चुनावबाज नेता एक तरफ दीपक गुप्ता को भी
हवा दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ अजय नारायण और सरोज जोशी को भी प्रोत्साहित
कर रहे हैं । वे ऐसा कर रहे हैं, यह तो समझ में आता है; लेकिन जेके गौड़ भी
उनकी ही जैसी भाषा बोल रहे हैं - यह देख/जान कर उत्तर प्रदेश में दीपक
गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक और शुभचिंतक निराश हुए हैं । यह ठीक है कि
जेके गौड़ अब जिस हैसियत में हैं उसमें उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों को साथ
लेकर चलना है और ऐसे में उनसे उत्तर प्रदेश के 'हितों' की खुल्लम-खुल्ला
वकालत की उम्मीद करना उनके साथ नाइंसाफी ही होगी, लेकिन उत्तर प्रदेश के लोगों को उनसे कुछ अलग तरह की जो अपेक्षाएँ हैं - उन्हें उन अपेक्षाओं का भी ध्यान तो रखना ही होगा ।
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों की शिकायत यह है कि
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर जेके गौड़ ने अभी तक जो रवैया दिखाया है
उसमें वह डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज गिरोह के पिछलग्गू की भूमिका में दिखाई
दे रहे हैं ।
जेके गौड़ ने जिस तरह से बिना किसी समर्थन के और अपने व्यक्तित्व के बिना किसी आकर्षण के - सिर्फ
अपनी लगनशील मेहनत; अपनी कमजोरियों को पृष्ठभूमि में धकेल कर अपनी खूबियों
को एक्सप्लोर कर और प्रतिकूल स्थितियों को अनुकूल बनाने के अपने हुनर का
इस्तेमाल करके चुनावी बाजी जीती थी - उससे उनके नजदीकियों को उम्मीद बँधी
थी कि यह जीत उन्हें एक ऐसा आत्मविश्वास देगी कि वह डिस्ट्रिक्ट में एक नई
इबारत लिखने की कोशिश करेंगे और अपनी एक स्वतंत्र व खास पहचान बनाने की
कोशिश करेंगे । जेके गौड़ को लेकिन एक गिरोह में चौथे-पाँचवे नंबर पर
रहने की कोशिश करते देख उनके उन नजदीकियों को तगड़ा झटका लगा है ।
गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश के क्लब्स से नोमीनेटिंग कमेटी के लिए सदस्यों को
चुनवाने में दिखाई गई दिलचस्पी के कारण जेके गौड़ जिस तरह से
गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश के प्रमुख रोटेरियंस के निशाने पर आ गए हैं उसने
जेके गौड़ की स्थिति को गंभीर बना दिया है । उनके लिए गंभीरता के साथ यह तय करने का समय शायद आ चुका है कि वह अपनी एक स्वतंत्र पहचान व साख बनाये और या डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं के गिरोह के एजेंट बन कर रहे !