Friday, June 30, 2017

रोटरी इंटरनेशनल के बड़े नेताओं को डॉक्टरेट की 'टोपी' पहना पहना कर रोटरी में ऊँचा उठने का अशोक गुप्ता का फार्मूला, इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव में भी उनके काम आएगा क्या ?

जयपुर । राजेंद्र उर्फ राजा साबू को अपने ही डिस्ट्रिक्ट के मामले में रोटरी इंटरनेशनल पदाधिकारियों से जो झटका लगा है, उससे अशोक गुप्ता को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की अपनी राजनीति आसान होती हुई दिख रही है । उल्लेखनीय है कि जोन 4 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए होने वाले चुनाव में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू का समर्थन भरत पांड्या को मिलने की चर्चा है, और यही चर्चा अशोक गुप्ता के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है । अशोक गुप्ता को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के समर्थन की बात सुनी/कही तो जाती है, लेकिन सुशील गुप्ता के बहुत ही खासमखास के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी अशोक गुप्ता को सुशील गुप्ता का समर्थन मिल सकने की बात को संदेहास्पद बनाती है । किसी भी बड़े नेता के साफ समर्थन के अभाव में अशोक गुप्ता को इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव में सिर्फ इस कारण से उम्मीद है कि पिछले वर्षों में उन्होंने रोटरी के जिन बड़े नेताओं को 'टोपी' पहनाई है, वह उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने में उनकी मदद करेंगे । ध्यातव्य है कि अशोक गुप्ता ने रोटरी में ऊँचा उठने के लिए एक बहुत आसान रास्ता अपनाया हुआ है - जिसमें वह रोटरी के बड़े नेताओं को अपनी यूनिवर्सिटी में डॉक्टरेट की 'टोपी' पहना देते हैं । उनका यह फार्मूला हिट भी है - रोटरी का जो बड़ा नेता उनकी टोपी पहन लेता है, वह तो उनका अहसान उतारने की कोशिश में उनके काम आता ही है; दूसरे बड़े नेता भी उनको इस उम्मीद में तवज्जो देने लगते हैं कि उनकी तवज्जो से खुश होकर अशोक गुप्ता किसी वर्ष उनके सिर को भी डॉक्टरेट की टोपी पहना देंगे ! टोपीबाजी से अशोक गुप्ता रोटरी में कुछेक असाइनमेंट पाने में चूँकि सफल रहे हैं, इसलिए उन्हें उम्मीद रही है कि टोपीबाजी के इसी खेल से वह इंटरनेशनल डायरेक्टर भी बन जायेंगे ।
किंतु राजा साबू उनकी इस उम्मीद को ध्वस्त करते दिखे हैं । बेचारे अशोक गुप्ता ने तो उन्हें भी डॉक्टरेट की टोपी पहनाई हुई है, लेकिन अशोक गुप्ता ने पाया/देखा है कि राजा साबू ने उनकी पहनाई टोपी की लाज नहीं रखी है - और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में वह उनकी बजाए भरत पांड्या के समर्थन में दिख रहे हैं । राजा साबू की तरफ से दिखी इस अहसानफरामोशी ने अशोक गुप्ता को बुरी तरह आहत और क्रोधित किया हुआ था । दरअसल इसीलिए राजा साबू को अपने ही डिस्ट्रिक्ट के मामले में रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों से झटका मिलने की खबर ने अशोक गुप्ता को उत्साहित किया है । उल्लेखनीय है कि राजा साबू को पहले तो यह जानकार झटका लगा कि रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय उनके डिस्ट्रिक्ट में वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद पर टीके रूबी को नियुक्त कर रहा है; राजा साबू ने इस फैसले को बदलवाने के लिए अपना सारा जोर लगा दिया - लेकिन यह देख कर उनकी सारी 'हवा' निकल गयी कि उनके डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तय करने के मामले में उनकी राय/सलाह को किसी ने भी तवज्जो नहीं दी । अशोक गुप्ता को लगता है कि राजा साबू को अपने ही डिस्ट्रिक्ट के मामले में यह जो जोर का झटका लगा है, उसका असर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उनकी भूमिका पर भी पड़ेगा - और राजा साबू अब भरत पांड्या के लिए कुछ कर नहीं पायेंगे । अशोक गुप्ता के नजदीकियों का मानना और कहना है कि राजा साबू जब अपना 'जरूरी' काम नहीं करवा सके, तो वह भरत पांड्या के लिए क्या कर/करवा सकेंगे ?
अशोक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, अशोक गुप्ता इस संयोग पर भी खुश हैं और इसे अपने लिए एक शुभ-संकेत के रूप में देख रहे हैं कि राजा साबू की फजीहत करने/करवाने में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म को भी पिछले दिनों उन्होंने डॉक्टरेट की टोपी पहना/पहनवा दी थी । हालांकि रोटरी के जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में जॉन जर्म की कोई सीधी भागीदारी और या भूमिका नहीं है, लेकिन उनके हाथों राजा साबू की जो फजीहत हुई है - उसके चलते वह राजा साबू के विरोधियों के भावनात्मक 'सहयोगी' तो बन ही गए हैं । अशोक गुप्ता को उम्मीद बनी है कि जॉन जर्म को डॉक्टरेट की टोपी पहनाने के चलते - जॉन जर्म के भावनात्मक सहयोगी बने राजा साबू विरोधी लोग इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उनके मददगार बनेंगे । कई लोगों को लेकिन यह भी लगता है कि अपने डिस्ट्रिक्ट के मामले में राजा साबू को भले ही तगड़ा वाला झटका लगा हो, लेकिन रोटरी की चुनावी राजनीति से उन्हें पूरी तरह बाहर हुआ नहीं मान लेना चाहिए; जोन 4 के डिस्ट्रिक्ट्स में राजा साबू के भक्तों की अभी भी कमी नहीं है - और इसलिए जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उनकी भूमिका को कम नहीं आँकना चाहिए ।
जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में राजा साबू की भूमिका कितनी क्या रहती है, यह तो आने वाले दिनों में पता चल ही जायेगा - लेकिन इससे भी ज्यादा यह देखना दिलचस्प होगा कि अशोक गुप्ता ने रोटरी के बड़े नेताओं को डॉक्टरेट की टोपी पहना पहना कर रोटरी में ऊँचा उठने का जो फार्मूला अपनाया है, वह इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में उनके काम आता है या नहीं ?
अशोक गुप्ता की डॉक्टरेट की 'टोपी' पहने हुए राजा साबू, कल्याण बनर्जी तथा एक अन्य पूर्व प्रेसीडेंट :

Thursday, June 29, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा के पदाधिकारियों को कल्याण बनर्जी के नाम पर पहले इस्तेमाल करने और फिर डराने व ब्लैकमेल करने की सतीश सिंघल की चाल ने पहले ही कार्यक्रम को विवादास्पद बनाया

दिल्ली शाहदरा । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट कल्याण बनर्जी का नाम लेकर दो दिन बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने जा रहे सतीश सिंघल ने रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा के पदाधिकारियों को ब्लैकमेल करने की जो कोशिश की, वह उन्हें उल्टी पड़ गयी है - और इस नाते सतीश सिंघल को अपने गवर्नर-वर्ष के पहले ही आयोजन में फजीहत का सामना करना पड़ा है । रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा ने अपने 'रोटरी चेरिटेबल डायलिसिस सेंटर' के उद्घाटन के लिए एक जुलाई को प्रातः ग्यारह बजे का समय निर्धारित किया है - इस तरह यह सतीश सिंघल के गवर्नर-वर्ष का पहला कार्यक्रम है । डायलिसिस सेंटर का उद्घाटन करने के लिए पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट कल्याण बनर्जी ने अपनी सहमति दी है, इसलिए यह कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण भी हो गया है । लेकिन इस कार्यक्रम के दो निमंत्रण पत्र सामने आने से यह कार्यक्रम विवादपूर्ण भी बन गया है - इस कार्यक्रम का लोगों को पहले जो निमंत्रण पत्र मिला उसमें मुकेश अरनेजा, रूपक जैन, शरत जैन, सुभाष जैन, दीपक गुप्ता, आलोक गुप्ता और जवाहर गुप्ता के नाम थे; लेकिन इसके बाद कार्यक्रम का एक दूसरा निमंत्रण पत्र सामने आया, जिसमें इन सभी सातों नामों का कोई उल्लेख नहीं है । लोगों को यह मामला कुछ समझ नहीं आया कि डिस्ट्रिक्ट के पहले ही कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र में डिस्ट्रिक्ट के तुर्रमखाँओं के नाम पहले दिए गए और फिर जल्दी ही उड़ा दिए गए ! रोटरी के आयोजनों में नामों की बड़ी न्यारी महिमा है - यहाँ नाम ले लेने पर और या न लेने पर बड़े बड़े 'फसाद' हो जाते देखे/सुने गए हैं - इसलिए लोगों को घोर आश्चर्य हुआ कि रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा ने अपने कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र में डिस्ट्रिक्ट के बड़े तोपचियों के नाम पहले तो प्रकाशित किए और फिर उड़ा दिए ।
मामले की पड़ताल की गयी तो पता चला कि यह सब सतीश सिंघल की कारस्तानी के चलते हुआ है । क्लब के पदाधिकारियों के अनुसार, उन्होंने तो सतीश सिंघल से कल्याण बनर्जी के प्रोग्राम को लेकर बात की थी; जिसमें सतीश सिंघल ने सहयोगात्मक रवैया दिखाया और कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र के डिजाइन से लेकर मैटर तक पर सलाह दी । क्लब के पदाधिकारी सतीश सिंघल की असली मंशा को भाँप नहीं सके और उनकी बातों में आ गए । सतीश सिंघल के निर्देशानुसार तैयार हुआ कार्यक्रम का निमंत्रण पत्र सामने आया, तो उस पर बबाल हो गया । आलोक गुप्ता के नाम के कारण बबाल ने राजनीतिक रूप ले लिया । रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा के पदाधिकारियों को तब समझ में आया कि सतीश सिंघल ने उनके साथ कैसी शातिराना चाल चली । अपने आप को मुसीबत में फँसा देख रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा के पदाधिकारियों ने संशोधित निमंत्रण पत्र तैयार करने का फैसला किया । सतीश सिंघल को इसकी भनक लगी, तो वह क्लब के पदाधिकारियों को ब्लैकमेल करने पर उतर आए । क्लब के पदाधिकारियों को उन्होंने धमकी दी कि उन्होंने यदि दूसरा निमंत्रण पत्र जारी किया, तो वह कल्याण बनर्जी का कार्यक्रम रद्द करवा देंगे । क्लब के पदाधिकारी पहले तो सतीश सिंघल की इस धमकी से डरे, लेकिन फिर डिस्ट्रिक्ट के कुछेक प्रमुख लोगों ने उन्हें आश्वस्त किया कि सतीश सिंघल बातें भले ही ऊँची ऊँची करते हों, लेकिन रोटरी में उनकी राजनीतिक हैसियत ऐसी नहीं है कि वह कल्याण बनर्जी का कार्यक्रम रद्द करवा सकें । इस आश्वासन से क्लब पदाधिकारियों को बल मिला और उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के तोपचियों का नाम उड़ाते हुए दूसरा निमंत्रण पत्र जारी कर दिया ।
इस पूरे झमेले में सुभाष जैन और दीपक गुप्ता के साथ नाहक ही बेइंसाफी हुई । प्रोटोकॉल के लिहाज से इन दोनों का नाम निमंत्रण पत्र में होना ही चाहिए था । लेकिन सतीश सिंघल की कारस्तानी ने रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा के पदाधिकारियों को इतना छका दिया था कि फिर प्रोटोकॉल का पालन कर पाना भी उनके लिए मुश्किल हो गया था । इस झमेले से परिचित लोगों का कहना है कि यह सारा तमाशा दरअसल आलोक गुप्ता के नाम के कारण हुआ । आलोक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के उम्मीदवार होने की तैयारी में हैं - सतीश सिंघल को पता नहीं किसने समझा दिया है कि वह आलोक गुप्ता का नाम यदि जगह जगह छपवा देंगे, तो आलोक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए ललित खन्ना से होने वाले चुनाव को आसानी से जीत जायेंगे । इसी समझ के चलते सतीश सिंघल ने आलोक गुप्ता का नाम जबर्दस्ती डिस्ट्रिक्ट के अगले रोटरी वर्ष के पहले कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र में छपवा दिया । सतीश सिंघल की इस हरकत से जो बबाल हुआ, उससे आलोक गुप्ता के लिए तो अगले रोटरी वर्ष की शुरुआत खराब हुई ही - और अन्य लोगों की भी फजीहत हुई । कल्याण बनर्जी के नाम पर सतीश सिंघल ने रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा के पदाधिकारियों को पहले इस्तेमाल करने और फिर डराने व ब्लैकमेल करने का जो प्रयास किया, उससे उनके काम करने के तरीके की भी पोल खुली है । इस घटना से लोगों को लग रहा है कि सतीश सिंघल अपने रवैये और अपनी हरकतों से दिलचस्प नजारे पेश करते/करवाते रहेंगे और अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की पहचान के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे ।    
रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा के एक जुलाई के कार्यक्रम के पहले और दूसरे निमंत्रण पत्र की फोटो प्रतियाँ :



Wednesday, June 28, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने क्या सचमुच लाभ पाने की उम्मीद में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भीड़ का और किराए का आदमी बना दिया है तथा मनमानी लूट-खसोट का अवसर बना दिया है ?

नई दिल्ली । नीलेश विकमसे पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रूप में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की छवि और पहचान को गहरी चोट पहुँचाने तथा नीचे गिराने का ऐतिहासिक काम करने का आरोप लगा है । आरोपपूर्ण चर्चाओं में कहा/सुना जा रहा है कि इंस्टीट्यूट के अभी तक के इतिहास में एक जुलाई को होने वाले 'सीए डे' के फंक्शन में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अपनी अपनी खुशी और अपनी अपनी ठसक के साथ पहुँचा करते थे; लेकिन इस बार नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में उन्हें भेड़-बकरियों की तरह बसों में भरकर फंक्शन-स्थल पर पहुँचाया जाएगा - नीलेश विकमसे ने एक कृपा जरूर की है कि उन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए एसी बसों की व्यवस्था की/करवाई है । नीलेश विकमसे ने कई एक जगह यह भी ऐलान करवाया है कि 'सीए डे' फंक्शन में बसों से आने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को खाने के पैकेट्स भी मिलेंगे । नीलेश विकमसे की इस व्यवस्था पर कुछेक लोगों ने चुटकी भी ली है कि वह अब यह घोषणा और करवाने वाले हैं कि 'सीए डे' फंक्शन में आने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को शराब की बोतल तथा सौ सौ रुपए भी मिलेंगे । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच इस तरह के मजाक सुने जा रहे हैं कि 'सीए डे' फंक्शन में पहुँचने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक-दूसरे से किस तरह की बातें करेंगे - तुझे खाने का पैकेट नहीं मिला क्या, तेरे खाने के पैकेट में क्या क्या था, वापसी पर बस कहाँ से मिलेगी, बस हमें छोड़ कर तो नहीं चली जाएगी; आदि-इत्यादि । उनकी बातों में इस दृश्य की कल्पना भी की जा रही है कि 'सीए डे' फंक्शन में पहुँचे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स खाने के पैकेट्स तथा 'दूसरी' चीजें लेने के लिए कैसे भिड़े हुए हैं । इस तरह की बातों के बीच, वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स महसूस कर रहे हैं कि अभी तक 'सीए डे' फंक्शन में शामिल होने पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को गर्व की अनुभूति होती थी, लेकिन अब की बार इस फंक्शन में शामिल होते हुए वह शर्म महसूस करेंगे - और उन्हें अपने ही साथियों के बीच इस बात को छिपाने के लिए मशक्कत करना पड़ेगी कि वह बस में यहाँ नहीं आया है, और खाने के पैकेट या 'दूसरी' चीजों के लालच में वह नहीं फँसा है ।
नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भीड़ जुटाने के एक 'कंपोनेंट्स' में बदल दिया गया है; 'सीए डे' फंक्शन में भीड़ जुटाने के लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का जिस जिस तरह और 'तरीके' से इस्तेमाल किया जा रहा है - उसमें उसकी पहचान एक प्रोफेशनल की नहीं, बल्कि भीड़ बढ़ाने में काम आने वाले 'किराए के एक व्यक्ति' की बन कर रह गयी है । विडंबनापूर्ण संयोग यह है कि जो 'सीए डे' चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को एक गरिमापूर्ण और प्रतिष्ठाभरी पहचान देने/दिलाने का प्रतीक है, नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में उसी 'सीए डे' पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की पहचान को धूल में मिला देने वाला काम हो रहा है ।
यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि इंडियन कॉंस्टीट्यूएंट एसेम्बली में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक्ट, 1949 को लेकर जो चर्चा हुई थी - उसमें इस बात को लेकर बहुत ही गंभीर और गर्मागर्मी भरा विचार-विमर्श हुआ था कि प्रोफेशन के लोगों को क्या नाम दिया जाए । उससे पहले प्रोफेशन के लोगों को रजिस्टर्ड एकाउंटेंट्स कहा जाता था । कुछेक कॉमनवेल्थ देशों में सर्टीफाईड पब्लिक एकाउंटेंट्स का नाम भी चलता था । उस समय सिर्फ ग्रेट ब्रिटेन में प्रोफेशन के लोगों को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स कहा जाता था । उस समय चूँकि यह आम धारणा थी कि ग्रेट ब्रिटेन के लोग ही ज्यादा प्रतिभाशाली व प्रतिष्ठा के लायक होते हैं, इसलिए चार्टर्ड एकाउंटेंट शब्द उन्हीं के लिए बना है - और दूसरे पिछड़े व अविकसित देश के लोग इस पहचान को अपनाने के योग्य नहीं हैं, इसलिए ही इंडियन कॉंस्टीट्यूएंट एसेम्बली में प्रोफेशन के लोगों को देने वाले नाम पर गंभीर विवाद था । उस विवाद में जवाहरलाल नेहरू ने तर्क दिया था कि देश की पहचान और प्रतिष्ठा को यदि आधुनिक होती दुनिया में अक्षुण्ण बनाए रखना है, तो हमें अपने यहाँ प्रोफेशन के लोगों को चार्टर्ड एकाउंटेंट नाम देना चाहिए । जवाहरलाल नेहरू के तर्क के आगे दूसरे सभी तर्क गिर गए और एक जुलाई 1949 को जब चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक्ट, 1949 लागू हुआ तब प्रोफेशन के लोगों को 'रजिस्टर्ड एकाउंटेंट' की जगह 'चार्टर्ड एकाउंटेंट' नाम मिला । यह तथ्य एक जुलाई के दिन को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए गौरव और गरिमा का दिन बनाता है - लेकिन नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में इस वर्ष एक जुलाई का दिन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए भीड़ जुटाने वाले 'किराए के आदमी' की पहचान बना रहा है ।
नीलेश विकमसे पर आरोप है कि मौजूदा केंद्र सरकार के पदाधिकारियों को खुश करके उनसे फायदा उठाने की तिकड़म में नीलेश विकमसे ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भीड़ का और किराए का आदमी बना दिया है । कहा जा रहा है कि नीलेश विकमसे आठ महीने बाद जब प्रेसीडेंट नहीं रहेंगे, तब सरकार से आकर्षक लाभ पाने की उम्मीद में उन्होंने इस वर्ष के 'सीए डे' को तमाशा बना दिया है, जिसमें 68 वर्ष पहले प्राप्त की गयी चार्टर्ड एकउंटेंटस की पहचान और प्रतिष्ठा को धूल में मिला देने वाला काम हो रहा है । गंभीर बात यह है कि यह सब तमाशा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर हो रहा है । पूछा जा सकता है कि क्या नरेंद्र मोदी ने नीलेश विकमसे से भीड़ जुटाने के लिए कहा है । यह ठीक है कि अरुण शौरी जैसे बड़े लेखक ने नरेंद्र मोदी सरकार को इवेंट मैनेजमेंट कंपनी कहा/बताया है, लेकिन इसका मतलब यह कहाँ निकलता है कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रूप में नीलेश विकमसे सरकार को खुश करने के लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को नाच नचवा दें । नीलेश विकमसे वैसे खुशकिस्मत हैं कि उन्हें सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा के रूप में ऐसे सहयोगी भी मिल गए हैं, जिन्हें प्रोफेशन और प्रोफेशन से जुड़े लोगों की पहचान व प्रतिष्ठा को बचाने/बनाए रखने की बजाए नेताओं के साथ अपनी तस्वीरों को दिखाने का काम ज्यादा जरूरी लगता है । 'सीए डे' के तमाशे में राजेश शर्मा ने जिस तरह से अपने आपको आगे 'दिखाने' का काम किया हुआ है, उसके चलते इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के दूसरे सदस्य बुरी तरह खफा नजर आ रहे हैं । नीलेश विकमसे और राजेश शर्मा अभी तो उनकी खफाई की तथा अन्य आरोपों की कोई परवाह करते हुए नहीं दिख रहे हैं, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की खफाई तथा दूसरे आरोप बबाल पैदा करेंगे ।
दरअसल 'सीए डे' के तमाशे में पैसों की हेराफेरी और लूट-खसोट होने के आरोप अभी से सुने जाने लगे हैं । इस फंक्शन में भीड़ जुटाने के लिए जो साधन इस्तेमाल हो रहे हैं, उन्हें लेकर यह सवाल उठ रहे हैं कि उनके लिए पैसे किस मद से लिए जा रहे हैं - और इस सीधे से सवाल का कोई जबाव नहीं मिल रहा है । चर्चा यही है कि इस तमाशे में जो पैसे खर्च हो रहे हैं, उन्हें चोर दरवाजों से एडजस्ट किया जाएगा - और जिसमें हेराफेरी तथा लूट-खसोट करने के आसान मौके बनेंगे । राजेश शर्मा के प्रोफेशनल पार्टनर भी इस आयोजन में जिस तैयारी से जुट गए हैं, उसे देख कर लोगों को यह कहने का मौका मिला है कि इस आयोजन की आड़ में राजेश शर्मा ने राजनीतिक फायदा उठाने के साथ-साथ पैसे बनाने के लिए भी कमर कस ली है । अभी से जब इस तरह की बातें सुनी जाने लगी हैं, तो अनुमान लगाया जा रहा है कि एक जुलाई का तमाशा हो जाने के बाद चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच और बड़ा तमाशा शुरू होगा - देखना दिलचस्प होगा कि उस और बड़े तमाशे की चपेट में कौन कौन निशाना बनता है ।

Tuesday, June 27, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए वाट्स-ऐप पर घमासान मचाए अश्वनी काम्बोज को अनिल वाचस्पति ने पत्र लिख कर दो-टूक सवाल पूछे और कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए

[डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और पंद्रह पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के समर्थन के बावजूद मौजूदा लायन वर्ष में हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में बहुत ही बुरी हार का सामना करने वाले अश्वनी काम्बोज ने पिछले दिनों वाट्स-ऐप पर कुछेक अच्छी-अच्छी और बड़ी-बड़ी बातें कीं, जिन्हें लेकर लोगों के बीच बड़ी दिलचस्प किस्म की प्रतिक्रियाएँ हुईं । अनिल वाचस्पति ने तो उनकी बातों पर उन्हें एक पत्र भी लिख दिया । अश्वनी काम्बोज को संबोधित अनिल वाचस्पति के पत्र की प्रतिलिपि 'रचनात्मक संकल्प' को भी प्राप्त हुई है । अपने पत्र में अनिल वाचस्पति ने लायन राजनीति तथा लायन व्यवस्था की आड़ में होने वाले अनैतिक कार्य-व्यवहार को रेखांकित किया है, जो लायनवाद की पहचान के संदर्भ में खासे महत्त्व के हैं । इस महत्त्व को देखते हुए ही उनके पत्र को यहाँ लगभग ज्यों का त्यों प्रकाशित किया जा रहा है । संपादन के नाम पर हमने सिर्फ कुछ हिज्जे ठीक किए हैं, और कुछेक वाक्य पठनीय बनाने के लिए पूरे किए हैं - बस; बाकी सब अनिल वाचस्पति का लिखा हुआ है ।] 

लायन श्री अश्वनी काम्बोज जी,
अपने एक वाट्स-ऐप संदेश में आपने लायनवाद के गिरते स्तर को लेकर जो चिंता व्यक्त की है, उसे पढ़ कर मेरा मन सचमुच बाग-बाग हो गया । यह देख कर मुझे वास्तव में बहुत अच्छा लगा कि आज के समय में आपके जैसा कोई तो लायन सदस्य है जो लायनवाद के गिरते स्तर की चिंता कर रहा है । आपने लायन साथियों को सही शब्दों का चयन करने का तथा घटिया शब्दों का प्रयोग न करने का जो सुझाव दिया है, जिससे किसी के मान-सम्मान को ठेस न पहुँचे - वह भी मुझे बहुत मौजूँ लगा है । आपने उचित ही कहा है कि यह भाषा लायनवाद के लिए उपयुक्त नहीं है । एक उम्मीदवार के रूप में इतनी अच्छी सोच रखने और उसे जाहिर करने के लिए मेरी तरफ से साधुवाद कृपया स्वीकार कीजियेगा ।
लायन श्री अश्वनी काम्बोज जी, लेकिन आपकी इन बातों को पढ़ कर मेरे मन में एक सवाल भी पैदा हुआ है और वह यह कि अभी कुछ ही दिन पहले तक हमारे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर लायन शिव कुमार चौधरी लायन लीडर्स में किसी को गैंडा, किसी को कुत्ता, किसी को गधा कह रहे थे; यहाँ तक कि उन्होंने तो लायन सदस्यों तक को गधा कह/बता दिया था - तब आपने लायनवाद के गिरते स्तर की और घटिया शब्दों को लेकर चिंता क्यों नहीं प्रकट नहीं की थी ? लायन शिव कुमार चौधरी हमारे डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ और कर्मठ सदस्य लायन रामशरण चावला तथा लायन गोपाल नारंग के बारे में तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट लायन अजय सिंघल के बच्चों तक के बारे में घटिया बातें लिख रहे थे, तब आपने लायन सदस्यों के मान-सम्मान की चिंता क्यों नहीं की थी ? लायन श्री अश्वनी काम्बोज जी, मुझे बहुत दुःख के साथ पूछना पड़ रहा है कि यह आपके व्यवहार का दोगलापन नहीं है क्या ? या आप यह मानते/समझते हैं कि लायन शिव कुमार चौधरी दूसरों के बारे में जो शब्द इस्तेमाल कर रहे थे, जो बातें कर रहे थे - वह तो बड़े ही उचित और सभ्य और पवित्र शब्द हैं और उनसे तो लायन सदस्यों का मान-सम्मान बढ़ रहा था तथा लायनवाद का स्तर ऊँचा हो रहा था ? या उस समय आप इसलिए चुप रहे, क्योंकि लायन शिव कुमार चौधरी ने आपको सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव किसी भी तरह जितवा देने का भरोसा दिया था ? मैं अपना सवाल फिर दोहरा रहा हूँ कि एक उम्मीदवार होते हुए आपका यह व्यवहार आपके दोगलेपन को जाहिर और साबित नहीं करता है क्या ?
लायन श्री अश्वनी काम्बोज जी, मैं इस बारे में आपसे कुछ नहीं पूछूँगा या कहूँगा कि कहाँ तो आप एक रीजन चेयरमैन होने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों व प्रमुख कार्यक्रमों तक में शामिल होने की जरूरत नहीं समझ रहे थे, और कहाँ एक उम्मीदवार होते ही आप क्लब्स के पदाधिकारियों के घर-घर की दौड़ लगाने लगे और जिन्हें आप या जो आपको जानते/पहचानते तक नहीं, उन्हें महँगे गिफ्ट देने/पहुँचाने लगे । इस तरीके को लायन-राजनीति की एक आवश्यक बुराई के रूप में चूँकि हम सभी ने स्वीकार कर लिया है, इसलिए उम्मीदवार बनते ही आपने भी वही हरकतें शुरू कर दीं - जो दूसरे उम्मीदवार करते रहे हैं, इसलिए आपके उक्त व्यवहार में कुछ भी आपत्ति करने योग्य नहीं है । लायन श्री अश्वनी जी, किंतु क्या आपको नहीं लगता कि आपका व्यवहार ज्यादा बेशर्मी भरा रहा है; ऐसा तो आपसे पहले किसी उम्मीदवार ने नहीं किया, जैसा आपने किया । सालों-साल से हमने देखा है कि उम्मीदवार पहले लोगों से मेलजोल बढ़ाता है, उनसे परिचित होता है और फिर उन पर पैसे खर्च करना शुरू करता है । आपने तो परिचित हुए बिना ही लोगों पर गिफ्ट और दूसरी सुविधाएँ लुटाना शुरू कर दीं - जिससे ऐसा लगा कि आप महँगे गिफ्ट और सुविधाएँ देकर क्लब्स के वोट खरीदने की कोशिश कर रहे हैं । और सिर्फ इतना ही नहीं, ऐसा करते हुए आप लायनवाद के संबंध में ऊँचें आदर्शों की और ऊँची नैतिकता की बातें भी लिखने/पढ़ाने लगे । लायन श्री अश्वनी जी, मैं मानता हूँ कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में एक उम्मीदवार के रूप में आपको लोगों की आँखों में धूल झोंकना ही है, लेकिन इसके लिए अपने व्यवहार में साफ चमकता दोगलापन दिखाने से तो आपको बचना ही चाहिए । आप चूँकि शिक्षा के क्षेत्र से संबद्ध हैं, इसलिए मैं आपसे कुछ अलग व्यवहार की उम्मीद करता हूँ । मैं जानता हूँ कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार बनने में आपके प्रेरणास्रोत डिस्ट्रिक्ट गवर्नर लायन शिव कुमार चौधरी रहे हैं - जो खुद तो लोगों के, आपदा-पीड़ितों के, लायंस इंटरनेशनल के और यहाँ तक कि ड्यूज तक के पैसे हड़प गए हैं; लेकिन दूसरों को बेईमान बताते फिरते हैं; लेकिन लायन श्री अश्वनी जी, जरूरी नहीं है न कि आप भी दोगलेपन और बेशर्मी के मामले में उन्हीं के नक्शेकदम पर चलें और उनके जैसा ही बनने की कोशिश करें ? 
लायन श्री अश्वनी काम्बोज जी, मुझे आपका वह वाट्स-ऐप संदेश पढ़ कर भी आश्चर्य हुआ, जिसमें आपने अपने उम्मीदवार होने की घोषणा की है । लायंस इंटरनेशनल जैसे महान संगठन में आप डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होना चाहते हैं, और लायंस इंटरनेशनल का यह सामान्य सा नियम भी आप नहीं जानते हैं कि उम्मीदवार होने की घोषणा करने का हक आपको नहीं है । आपको जानना चाहिए कि यह हक आपके क्लब का है; वह घोषित करेगा और लोगों को बतायेगा कि आप उसके उम्मीदवार हैं; नियमानुसार, लोगों को आपको यह बताना है कि आपके क्लब ने आपको उम्मीदवार बनाया है । लायन श्री अश्वनी काम्बोज जी, आप अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखते हैं, जिससे पता चलता है कि आप एक पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं; आप कुछेक शिक्षण संस्थाओं के संचालन से जुड़े हैं, इससे लगता है कि आप नियमों का पालन करने की जरूरत को पहचानते/समझते होंगे । इसके बाद भी, आप कोई बेवकूफी करें और नियम-विरुद्ध काम करें - तो मेरे ख्याल से यह आपको शोभा नहीं देता है, और आपको इसका ध्यान रखना चाहिए ।
लायन श्री अश्वनी काम्बोज जी, लायनवाद को लेकर आपने जो कुछ अच्छी अच्छी बातें की हैं, उन्हें देख और पढ़ कर आपके प्रति मेरे मन में कुछ उम्मीद भी जगी और आपके प्रति मेरे मन में कुछ विश्वास भी बना । वास्तव में इसीलिए आपके व्यवहार का जो विरोधी पक्ष है, जो दोगलापन है - उससे मुझे खटका भी लगा और यही कारण है कि मैं आपको यह पत्र लिखने के लिए उत्सुक हुआ । मैं मानता हूँ कि कोई भी मनुष्य पूरी तरह दोषमुक्त नहीं हो सकता है; हम सभी में कुछ न कुछ दोष रहेगा ही - लेकिन मैं यह भी मानता हूँ कि जिन्हें बड़े काम करने हैं, जिनके सामने बड़े लक्ष्य हैं, उन्हें अपने दोषों को कम करने का प्रयास करना चाहिए और अपने आलोचकों की बातों पर ध्यान देना चाहिए । आपने हमारी सभ्यता और संस्कृति में प्रसिद्द उस दोहे को अवश्य ही सुना होगा, जिसमें 'निंदकों' को पास रखने का सुझाव दिया गया है । मैं अपने पूरे ज्ञान और अनुभव के विश्वास के साथ मानता हूँ कि आप यदि अपने व्यवहार के दोगलेपन से कुछ बच सके, तो निश्चित ही एक बड़े नेता साबित होंगे ।
मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगा कि वह आपको तमाम कामयाबियाँ दे; आप अपने जीवन में जो कुछ भी चाहें, वह सब आपको मिले - और आपको सदबुद्धि भी दे !
लायनवाद में आपका
लायन अनिल वाचस्पति

Wednesday, June 21, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में अगले रोटरी वर्ष की कमान टीके रूबी को सौंप कर रोटरी इंटरनेशनल ने राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स को सीधा झटका दिया है क्या ?

चंडीगढ़ । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म ने डिस्ट्रिक्ट 3080 में अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी सँभालने के लिए टीके रूबी को चुन कर पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू सहित डिस्ट्रिक्ट के अन्य पूर्व गवर्नर्स के लिए खासी फजीहत की स्थिति पैदा कर दी है । डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट के बाहर के कई रोटरी नेताओं का भी कहना है कि जॉन जर्म के इस फैसले में उन्हें 'भिगो कर जूता मारने' वाली कहावत चरितार्थ होते दिखी है । कुछेक लोग इस फैसले को 'पोएटिक जस्टिस' के नायाब उदाहरण के रूप में भी देख रहे हैं । गौरतलब है कि फरवरी 2015 में हुए फैसले में राजा साबू के दिशा-निर्देश पर अड़ंगा डालने की कोशिश नहीं हुई होती, तो अगले रोटरी वर्ष में टीके रूबी ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनते । टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकने के लिए राजा साबू के नेतृत्व में पूर्व गवर्नर्स ने पिछले दो वर्षों में लगातार जिस तरह का 'नंगा नाच' किया, उसके बावजूद अगले रोटरी वर्ष में टीके रूबी के ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की घोषणा ने उनके लिए बहुत ही शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी है ।
मजे की बात यह है कि टीके रूबी को अगले रोटरी वर्ष का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'चुनने' के जॉन जर्म के फैसले ने जितना हैरान डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स तथा उनके नजदीकियों को किया है, उतना ही चकित टीके रूबी के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी किया हुआ है । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि यह आखिर हुआ क्या और कैसे ? यह बात सचमुच किसी चमत्कार से कम नहीं है कि अगले रोटरी वर्ष की गवर्नरी तो प्रवीन चंद्र गोयल को एक वर्ष पहले 'खींच' कर सौंप दी गयी थी, और उनकी स्कूलिंग भी करवा दी गयी थी; उससे अगले वर्ष के गवर्नर के लिए चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी, जिसमें टीके रूबी के उम्मीदवार बनने पर भी रोक लगा दी गयी थी - किंतु अब फैसला यह हुआ है कि टीके रूबी अगले रोटरी वर्ष में गवर्नर होंगे । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के लिए यह चमत्कार भले ही एक पहेली बना हुआ हो, किंतु रोटरी के बड़े नेताओं के अनुसार - रोटरी इंटरनेशनल के मौजूदा पदाधिकारी राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की लगातार चलने वाली चालबाजियों से इतने परेशान हो उठे थे कि उन्होंने उन्हें उनकी औकात दिखाने की योजना बना ली, जिसके तहत उन्होंने टीके रूबी रूपी छड़ी से ही राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को 'पीटने' का निश्चय कर लिया ।
देश के वरिष्ठ रोटरी नेताओं के हवाले से सुनने को मिला है कि फरवरी 2015 में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में टीके रूबी की जीत के हुए फैसले को उलटवाने के लिए करीब दो वर्षों तक चले घटनाचक्र में ही नहीं, उसके बाद भी राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों ने जिस तरह की कारस्तानियाँ कीं और रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्थाओं तथा उसके फैसलों का मजाक बनाने की जिस तरह की कोशिश की - उससे इंटरनेशनल पदाधिकारी बुरी तरह आजिज़ आ चुके थे । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल ने डिस्ट्रिक्ट 3080 के झगड़े को खत्म करने के लिए टीके रूबी और डीसी बंसल, दोनों को ही 'सजा' दे दी; और अगले रोटरी वर्ष के गवर्नर पद के लिए फैसला करने का अधिकार डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप - यानि राजा साबू पर छोड़ दिया । यह डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप का ही फैसला था, जिसके तहत प्रवीन चंद्र गोयल एक वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बन' रहे थे; और वह जिस वर्ष के गवर्नर चुने गए थे, उस वर्ष के गवर्नर के लिए चुनाव घोषित हो गए थे । तीसरे वर्ष के गवर्नर पद के लिए जितेंद्र ढींगरा की चुनावी जीत को राजा साबू ने 'स्वीकार' कर लिया था । इससे लगा था कि डिस्ट्रिक्ट पटरी पर लौट रहा है; लेकिन फिर अचानक से डीसी बंसल न्याय पाने के लिए अदालत चले गए, जिससे डिस्ट्रिक्ट में पुनः उथल-पुथल मच गयी ।
डीसी बंसल के अदालत जाने के चलते जो उथल-पुथल मची, उसके चलते प्रवीन चंद्र गोयल ने पुनः 'अपने' ही वर्ष में गवर्नरी करने की अर्जी लगा दी । प्रवीन चंद्र गोयल की इस उछल-कूद को इंटरनेशनल पदाधिकारियों ने गंभीरता से लिया और माना कि प्रवीन चंद्र गोयल और उनके आकाओं ने रोटरी को मजाक समझ लिया है और मनमानी करने के लिए वह कभी कुछ तो कभी कुछ कहते/करते हैं । रोटरी नेताओं ने उनकी इस हरकत से माना/समझा कि डीसी बंसल की अदालती कार्रवाई के पीछे राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों का ही हाथ है; राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को अच्छी तरह पता था कि अदालती कार्रवाई से डीसी बंसल को तो कुछ नहीं मिलेगा, लेकिन उससे जो उथल-पुथल मचेगी - उसमें उन्हें अगले दो वर्ष डिस्ट्रिक्ट पर राज करने के लिए मिल जायेंगे । राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को विश्वास था कि प्रवीन चंद्र गोयल को उनके 'असली' वर्ष में शिफ्ट करवा कर, अगले रोटरी वर्ष में वह अपने किसी मनपसंद व्यक्ति को गवर्नर 'बनवा' लेंगे - और इस तरह अगले दो वर्ष वही डिस्ट्रिक्ट को चलायेंगे, और इन दो वर्षों में वह जितेंद्र ढींगरा को भी अपने रंग में रंग लेंगे । राजा साबू के नजदीकियों के अनुसार, राजा साबू को जितेंद्र ढींगरा अपने नजदीक आते हुए 'दिखे' भी । समझा जाता है कि डीसी बंसल की अदालती कार्रवाई और प्रवीन चंद्र गोयल की कभी 'इस' वर्ष तो कभी 'उस' वर्ष गवर्नरी करने के बदलते फैसलों ने इंटरनेशनल पदाधिकारियों को ऐसा फैसला लेने के लिए मजबूर कर दिया, जो राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स की नाक में नकेल डालने वाला 'लगे' - और ऐसे ही फैसले में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट 3080 की कमान टीके रूबी को सौंपना उचित लगा ।
अगले रोटरी वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट की कमान टीके रूबी को सौंपने के जॉन जर्म के फैसले से यह बात बहुत ही साफ तौर पर साबित हुई है कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी राजा साबू की हरकतों से बुरी तरह से परेशान हैं । अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को लेकर पिछले 28 महीनों से चले आ रहे झंझट में रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी राजा साबू को हालाँकि झटका भी दे रहे थे, लेकिन उन्हें और उनके सम्मान को बचाने का प्रयास भी कर रहे थे; राजा साबू लेकिन इस संकेत को समझने/पहचानने में चूक गए और उन्होंने अपनी हरकतों को लगातार जारी रखा । राजा साबू का रवैया और व्यवहार इंटरनेशनल पदाधिकारियों के लिए जब असहनीय हो गया, तो उन्होंने राजा साबू को सीधा झटका देने का निश्चय किया - और उनके इसी निश्चय की परिणति टीके रूबी को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट की कमान सौंपने की घोषणा में हुई है ।

Thursday, June 15, 2017

लायंस मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में गालियाँ खाने और धक्का-मुक्की व मारपिटाई का शिकार होने के बाद इंटरनेशनल पदाधिकारियों ने दंगाईयों के सामने समर्पण किया; लायनवाद को सौंवी वर्षगाँठ पर नरेश अग्रवाल का कलंक'उपहार'

नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे नरेश अग्रवाल ने लायनवाद को सौंवी वर्षगाँठ के शुभ और महान अवसर पर एक अनोखा उपहार देने का फैसला किया है, जिसके तहत वह दूसरे इंटरनेशनल पदाधकारियों के साथ मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की कॉन्फ्रेंस में हंगामा और दंगा करने वाले लोगों के सामने समर्पण करेंगे और उनकी माँगों को स्वीकार करेंगे । पिछले कुछ समय से एक-दूसरे को नीचा दिखाने और साबित करने की होड़ में लगे नरेश अग्रवाल के दो बड़े वाले चेलों - विनोद खन्ना और तेजपाल खिल्लन ने कुछेक अन्य नेताओं की मौजूदगी में 'युद्ध-विराम' करने का फैसला किया है, और 'लूट के माल' का बँटवारा कर लिया है । इस बँटवारे के फैसले के अनुसार, यदि कोई अनहोनी नहीं घटी तो 17 जून को दोबारा होने वाली कन्वेंशन में जेपी सिंह इंटरनेशनल डायरेक्टर तथा विनय गर्ग मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन हो जायेंगे । लायंस इंटरनेशनल के नियमों की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना हालाँकि यह है कि दोबारा होने वाली कन्वेंशन में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव ही हो सकता है, मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव का समय निकल चुका है और वह नहीं हो सकता है - लेकिन लायनिज्म जब धंधा बन गया हो, और लायन लीडर्स दंगाई तथा ब्लैकमेलर बन गए हों, तो नियमों की परवाह कौन करेगा ? इस सौदे-समझौते में बेवकूफ बने वीएस कुकरेजा और चमनलाल गुप्ता । चमनलाल गुप्ता के साथ तो बहुत ही बुरी बीती; उनकी पुलिस रिपोर्ट के सहारे ही तो तेजपाल खिल्लन को लीडरशिप को ब्लैकमेल करने का मौका मिला, लेकिन सौदा-समझौता करने वाली मीटिंग में तेजपाल खिल्लन ने उन्हें ही नहीं बुलाया । चमनलाल गुप्ता की नाराजगी की बात सुनकर तेजपाल खिल्लन ने बाद में हालाँकि उन्हें आश्वस्त किया कि उनके बेटे की पिटाई व्यर्थ नहीं जाएगी और उसके ऐवज में वह उन्हें नरेश अग्रवाल से कुछ न कुछ ईनाम जरूर दिलवायेंगे ।
मजे की बात यह भी है कि जो सौदा-समझौता हुआ है, उसे दोनों ही पक्ष अपनी अपनी जीत बता रहे हैं : सत्ता खेमे के लोगों का कहना है कि साठ दिन पहले तक इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करवाने से इंकार करने के फैसले पर पलटी मारते हुए उन्होंने मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करवाने तथा जेपी सिंह को चुनवाने का निश्चय किया था; और देखिए उनका निश्चय पूरा हो रहा है । विरोधी खेमे के लोगों का कहना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव को लेकर तो उन्होंने हंगामा सिर्फ इस रणनीति के तहत खड़ा किया हुआ था, ताकी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन अपना बनवा सकें; और देखिए उनकी रणनीति सफल रही, मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन उनका ही बन रहा है । बाकी लोग सिर धुन रहे हैं और जैसे अपने आप से ही पूछ रहे हैं कि इन्हें जब 'इतना' 'इतना' ही पाना था, तो तमाम हंगामा और दंगा और मार-पिटाई और पुलिस रिपोर्ट व कोर्ट-कचहरी करने/करवाने की क्या जरूरत थी ? जाहिर है कि दोनों तरफ के लोगों को 'ज्यादा' 'ज्यादा' चाहिए था, और इसीलिए मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में दोनों ही तरफ से मनमानी कलंकपूर्ण हरकतें हुईं - और दोनों ही तरफ के लोगों ने वह सब कुछ किया, जो कुछ कर सकना उनके बस में था । लेकिन जब हालात ने उन्हें ऐसे मोड़ पर ला पटक दिया जहाँकि उन्हें कुछ भी न मिलता, तो कुशल धंधेबाज और ब्लैकमेलर की तरह उन्होंने सौदेबाजी कर लेने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी - और सौदेबाजी में मिले अपने अपने हिस्से को दोनों ही पक्ष के नेता लोग अपनी अपनी जीत बताने में लग गए हैं ।
दोनों पक्षों को सौदेबाजी के लिए राजी करने में चमनलाल गुप्ता द्वारा दर्ज करवाई गई पुलिस रिपोर्ट की निर्णायक भूमिका रही, जिसमें उनके बेटे संजीव गुप्ता के साथ होने वाली मार-पिटाई के आरोपियों में अन्य कुछ लोगों के साथ इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे नरेश अग्रवाल और इंटरनेशनल डायरेक्टर विजय राजु के नाम भी हैं । इस रिपोर्ट के रूप में विरोधी खेमे के नेता तेजपाल खिल्लन को लीडरशिप को दबाव में लेने का एक हथियार मिल गया । नरेश अग्रवाल के दूत के रूप में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जेसी वर्मा ने चमनलाल गुप्ता को अपनी रिपोर्ट वापिस लेने के लिए राजी करने के काफी प्रयास किए, लेकिन जो सफल नहीं हो सके । चमनलाल गुप्ता की चाबी तेजपाल खिल्लन के पास 'होने' का अहसास होने पर लीडरशिप के नेताओं ने हंगामाईयों और दंगाईयों के नेता तेजपाल खिल्लन के सामने समर्पण करने में ही अपनी भलाई देखी । तेजपाल खिल्लन ने भी एक कुशल धंधेबाज की तरह समझ लिया कि अब इस मामले को और लंबा खींचा तो फजीहत के अलावा कुछ नहीं मिलेगा, लिहाजा वह भी 'जो मिल सके उसे ले लो' वाले अंदाज में झट से समझौता कर लेने के लिए तैयार हो गए । कल दिल्ली के एक होटल में हुई एक मीटिंग में कुछेक नेताओं की मौजूदगी में केएम गोयल, विनोद खन्ना और तेजपाल खिल्लन के बीच समझौता हो गया है । तेजपाल खिल्लन को विश्वास है कि वीएस कुकरेजा और चमनलाल गुप्ता का 'बलिदान' बेकार नहीं जाएगा, और वह इन्हें भी पुरस्कृत करवायेंगे । इससे लगता है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 अपनी कलंककथा में अभी कुछ और अध्याय जोड़ेगा ।

Wednesday, June 14, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन की पीएसटी स्कूलिंग में शराब स्पॉन्सर करने के मामले से पीछे हटने की मीरा सेठ और प्रमोद सेठ की कोशिश ने बबाल को ठंडा करने की बजाए, उसे भड़का और दिया है

लखनऊ । मीरा सेठ और उनके पति पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रमोद सेठ ने लखनऊ में आयोजित हुई पीएसटी स्कूलिंग में शराब स्पॉन्सर करने की बात से इंकार करके विवाद को न सिर्फ और उलझा दिया है, बल्कि और ज्यादा गंभीर भी बना दिया है । उल्लेखनीय है कि मीरा सेठ और प्रमोद सेठ ने कई लोगों से कहा है कि स्कूलिंग में उनके नाम से जो शराब पिलायी गयी है, उसे उन्होंने स्पॉन्सर नहीं किया है । ऐसे में, जबकि अभी तक तो यही गुत्थी नहीं सुलझ पाई थी कि केएस लूथरा द्वारा शराब उपलब्ध न करवाए जाने की घोषणा के बाद स्कूलिंग में शराब उपलब्ध कैसे और क्यों करवा दी गयी थी - अब यह सवाल और खड़ा हो गया है कि जब मीरा सेठ और प्रमोद सेठ ने शराब स्पॉन्सर नहीं की, तब फिर उनका नाम लेकर स्कूलिंग में शामिल लोगों को शराब किसने और क्यों पिलवा दी ? कई लोगों को हालाँकि लग रहा है कि मीरा सेठ और प्रमोद सेठ झूठ बोल रहे हैं; स्कूलिंग में शराब उन्होंने ही स्पॉन्सर की है, लेकिन उसे लेकर अब जब विवाद बढ़ गया है - तो उस विवाद में अपने नाम को नाम घसीटे जाने से बचाने के लिए वह यह झूठ बोलने लगे हैं कि स्कूलिंग में जब वह गए ही नहीं थे, तो वहाँ के लिए वह शराब क्यों स्पॉन्सर करते ? सवाल के आवरण में लिपटा यह जबाव है तो तर्कपूर्ण; लेकिन इस जबाव ने मीरा सेठ और प्रमोद सेठ का नाम पीएसटी स्कूलिंग में शराब वितरण के विवाद से बाहर करने की बजाए विवाद के बीचोंबीच घसीट और लिया है ।
मीरा सेठ और प्रमोद सेठ का शराब स्पॉन्सर न करने का दावा जिन लोगों को सच लग रहा है, उनके बीच सवाल यह पैदा हुआ है कि तब फिर स्कूलिंग में उनके नाम से शराब क्यों पिलवायी गयी; और जिन्हें उनका जबाव झूठ लगता है उन्हें इस बात पर माथापच्ची करना पड़ रही है कि मीरा सेठ और प्रमोद सेठ को यह झूठ बोलने की जरूरत क्यों पड़ी है ? समझा जा रहा है कि मीरा सेठ के अनुपस्थित होने के बाद भी उनके द्वारा स्पॉन्सर्ड शराब वितरित होने की बात से लोगों के बीच जो नकारात्मक संदेश गया है, उसका असर कम करने के लिए ही मीरा सेठ और प्रमोद सेठ ने यह कहना/बताना शुरू किया कि स्कूलिंग में पिलायी गयी शराब उन्होंने स्पॉन्सर नहीं की थी - और उन्हें नहीं मालूम कि इस मामले में उनका नाम क्यों घसीटा जा रहा है । अब इस सवाल का जबाव तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संदीप सहगल ही दे सकते हैं - क्योंकि उन्होंने ही स्कूलिंग में मौजूद लोगों को बताया था कि यहाँ जो शराब है उसे मीरा सेठ ने स्पॉन्सर किया है, लेकिन उन्होंने तो इस मामले को लेकर उठ रहे सवालों पर पूरी तरह से चुप्पी ही साध ली है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में विवाद को पैदा करने वाले संदीप सहगल की चुप्पी लेकिन मामले को शांत करने की बजाए भड़काने का काम कर रही है ।
मीरा सेठ और प्रमोद सेठ के विवाद से पीछा छुड़ाने के प्रयास को भविष्य की उनकी राजनीति के नजरिए से भी देखने/पहचानने की कोशिश हो रही है । समझा जा रहा है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मीरा सेठ की उम्मीदवारी के संदर्भ में प्रमोद सेठ को भी आभास हो रहा है कि उन्हें शायद केएस लूथरा का समर्थन न मिले, और उन्हें गुरनाम सिंह के पास ही जाना पड़ेगा - तथा इसके लिए उन्हें केएस लूथरा के साथ 'कुछ पास, कुछ दूर' वाले संबंध ही रखने तथा 'दिखाने' हैं । इसीलिए केएस लूथरा का समर्थन पाने के लिए मीरा सेठ और प्रमोद सेठ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में संदीप सहगल के आयोजनों में पैसे/वैसे तो खर्च करते रहने को तैयार हैं, लेकिन वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहेंगे जिससे वह केएस लूथरा के ज्यादा नजदीक जाते हुए नजर आएँ । लोगों को शक है कि पीएसटी स्कूलिंग में वह इसीलिए नहीं आए । एक उम्मीदवार के रूप में मीरा सेठ के लिए पीएसटी स्कूलिंग में शामिल होना उपयोगी होता, लेकिन फिर भी वह उसमें नहीं पहुँची - तो इसका कारण यही समझा जा रहा है कि गुरनाम सिंह ने अपने खास लोगों को उक्त स्कूलिंग से दूर रहने के लिए कहा होगा । पीएसटी स्कूलिंग में शामिल न होने के बाद भी, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संदीप सहगल ने मीरा सेठ और प्रमोद सेठ से जो खर्चा करने को कहा - उसे करने के लिए वह सहज ही तैयार हो गए; उन बेचारों को यह कहाँ पता था कि उनका यह 'काम' पीएसटी स्कूलिंग में भारी बबाल का कारण बन जाएगा । इस बबाल में अपने नाम को घसीटे जाने से बचाने के लिए मीरा सेठ और प्रमोद सेठ ने शराब स्पॉन्सर करने से इंकार करने का जो दाँव चला, वह भी उल्टा पड़ गया है - क्योंकि उनके इंकार ने पीएसटी स्कूलिंग में शराब वितरण के बबाल को ठंडा करने की बजाए, उसे भड़का और दिया है ।

Tuesday, June 13, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में बीएम सिंह के उम्मीदवार के रूप में खुद को प्रमोट करते हुए आरकेएस चौहान के मुकाबले उतरने की अनिल जायसवाल की कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को दिलचस्प बनाया

इलाहाबाद । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अनिल जायसवाल की उम्मीदवारी की चर्चा ने आरकेएस चौहान के लिए न सिर्फ गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य को भी दिलचस्प बना दिया है । अभी तक अगले लायन वर्ष में होने वाले सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के लिए आरकेएस चौहान और अजय मेहरोत्रा के नाम चर्चा में थे, और माना जा रहा था कि अजय मेहरोत्रा अंततः अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट जायेंगे और आरकेएस चौहान आराम से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लिए जायेंगे । अजय मेहरोत्रा के बारे में लोग मानने और कहने लगे हैं कि यह कई बार उम्मीदवार के रूप में अपना नाम उछाल चुके हैं, लेकिन उम्मीदवारी की डगर पर आगे बढ़ते नहीं हैं - जिस कारण उनकी उम्मीदवारी को अब कोई गंभीरता से लेता नहीं है । इसीलिए उनकी उम्मीदवारी की चर्चा आरकेएस चौहान के लिए रक्षा-कवच का काम कर रही थी - लोग मान/समझ रहे थे कि अजय मेहरोत्रा कुछ दिन अपना नाम उछालते हुए चर्चा में बने रहेंगे, और फिर एक दिन वापस हो लेंगे; उसके बाद आरकेएस चौहान बिना चुनाव के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जायेंगे । लेकिन अचानक से सामने आई अनिल जायसवाल की उम्मीदवारी की चर्चा ने बन रहे उक्त माहौल को गड़बड़ा दिया है, जिसमें न सिर्फ आरकेएस चौहान के लिए मामला चुनौतीपूर्ण बन गया है - बल्कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का परिदृश्य भी बदल गया है ।
अनिल जायसवाल यूँ तो सभी गवर्नर्स के साथ अच्छे संबंध बना कर रहे हैं; पुष्पा स्वरूप के गवर्नर-काल में तो वह कैबिनेट सेक्रेटरी रहे थे, जिस कारण डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ उनके निकट के संबंध बने थे - लेकिन उनके नजदीकियों को ही लगता है कि उम्मीदवार बनने का उचित समय उन्होंने खो दिया है । चार वर्ष पहले जब वह कैबिनेट सेक्रेटरी थे, उसके बाद यदि वह उम्मीदवार बनते - तो लोगों के बीच अपनी सक्रियता और अपने परिचय का फायदा उठा सकते थे; अब लेकिन बहुत देर हो चुकी है । जिन आरकेएस चौहान के साथ उनका चुनावी मुकाबला होने की उम्मीद की जा रही है, वह पिछले लायन वर्ष में प्रकाश अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट टीम में जोन चेयरमैन थे, और मौजूदा लायन वर्ष में अनिल तुलस्यान की डिस्ट्रिक्ट टीम में रीजन चेयरमैन हैं - इस नाते से लोगों के बीच उनका परिचय और उनकी सक्रियता नयी है । इसके अलावा, पिछले दो-तीन वर्षों में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरण भी काफी बदल गए हैं - जिसके चलते अनिल जायसवाल ने अभी तक डिस्ट्रिक्ट में और लायनिज्म में जो 'कमाया' है, वह तो उनके काम नहीं आने वाला है; और इसीलिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव उनके लिए भी आसान नहीं होगा ।
अनिल जायसवाल के लिए एक समस्या और देखी/पहचानी जा रही है - उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट बीएम सिंह के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; लोगों का कहना है कि यह पहचान उन्होंने खुद ही बनाई है, उन्हें लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के उम्मीदवार के रूप में चुनावी मुकाबले में उन्हें फायदा मिलेगा । बीएम सिंह ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रायः सभी नेताओं से अलग अलग कारणों से संबंध बिगाड़े हुए हैं; उनके चुनाव में उनकी उम्मीदवारी की खिलाफत करने वाले नेताओं से तो उनके संबंध बिगड़े हुए थे ही, जिन लोगों ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया था और उन्हें जितवाया था - उनसे भी वह इस कारण नाराज रहे हैं कि उन्होंने चुनाव में उनका बहुत पैसा खर्च करवा दिया । लोगों को लगता है कि बीएम सिंह दरअसल लायन राजनीति के ताने-बाने में अपने आप को फिट नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए वह अलग-थलग से दिखाई पड़ते हैं । ऐसे में, अनिल जायसवाल के लिए उनके भरोसे अपनी उम्मीदवारी को कामयाब बनाना/बनवाना आसान नहीं होगा । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में किसका पलड़ा भारी रहेगा, इस बारे में अभी से तो कुछ नहीं कहा जा सकता है - क्योंकि सारा खेल इस बात पर निर्भर होगा कि कौन उम्मीदवार अपने अभियान को कितनी दमदारी से संयोजित करता है; लेकिन बीएम सिंह के उम्मीदवार के रूप में खुद को प्रमोट करने की अनिल जायसवाल की कोशिशों के चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का खेल दिलचस्प जरूर हो उठा है ।

Monday, June 12, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में पीएसटी स्कूलिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संदीप सहगल ने गुपचुप तरीके से मीरा सेठ से शराब स्पॉन्सर करवा कर केएस लूथरा की सत्ता को चुनौती देने की कोशिश की है क्या ?

लखनऊ । पीएसटी स्कूलिंग में मीरा सेठ से शराब स्पॉन्सर कराने के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संदीप सहगल और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा के बीच लुकाछिपी का जो खेल चला, उसके कारण वरिष्ठ लायन राकेश अग्रवाल बुरी तरह नाराज हुए - और संदीप सहगल का पहला ही कार्यक्रम एक खराब उदाहरण पेश करते हुए संपन्न हुआ । दरअसल स्कूलिंग के आयोजन में केएस लूथरा ने घोषणा की थी कि फैलोशिप में शराब उपलब्ध नहीं करवाई जाएगी । केएस लूथरा की इस घोषणा पर कुछ लोगों को निराशा जरूर हुई और निराशा में उन्होंने बगलें भी झाँकी, लेकिन कुल मिलाकर लोगों ने 'स्थिति' को स्वीकार कर लिया । कार्यक्रम समाप्त होने पर लोगों को लेकिन सुखद आश्चर्य तब हुआ, जब उन्होंने शराब उपलब्ध देखी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संदीप सहगल ने यह कहते/बताते हुए लोगों को और चौंका दिया कि इस शराब की व्यवस्था मीरा सेठ की तरफ से की गई है । मीरा सेठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रमोद सेठ की पत्नी हैं, जो अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवार होने की तैयारी में हैं । मीरा सेठ कार्यक्रम में उपस्थित नहीं थीं । उनकी अनुपस्थिति में उनके द्वारा स्पॉन्सर्ड शराब पीना कई लोगों को नागवार गुजरा । वरिष्ठ लायन राकेश अग्रवाल ने केएस लूथरा से पूछा कि माजरा क्या है - आपने तो कहा था कि शराब उपलब्ध नहीं करवाई जाएगी, लेकिन यहाँ शराब उपलब्ध है; और मीरा सेठ जब इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुईं, तो उनसे इस कार्यक्रम के लिए शराब स्पॉन्सर क्यों करवाई गई ? केएस लूथरा ने यह कहते हुए उनसे पीछा छुड़ाना चाहा कि उन्हें तो इस बात का पता ही नहीं है, और यह व्यवस्था संदीप सहगल ने की होगी । केएस लूथरा की इस सफाई से लेकिन राकेश अग्रवाल का गुस्सा शांत नहीं हुआ, और उन्होंने इस बात पर जोरशोर से अपनी नाराजगी व्यक्त की कि संदीप सहगल ने मीरा सेठ से शराब स्पॉन्सर करवाने के मामले में इस तरह से अपनी मनमानी कैसे और क्यों की ?
लोगों को हालाँकि यह बात हजम नहीं हुई कि संदीप सहगल ने केएस लूथरा को विश्वास में लिए बिना मीरा सेठ से शराब स्पॉन्सर करवा ली होगी । लेकिन फिर लोगों को यह भी लगा कि केएस लूथरा को यदि पता होता, तो फिर वह कार्यक्रम में शराब उपलब्ध न करवाने की घोषणा नहीं करते; इस बिना पर माना गया कि संदीप सहगल ने केएस लूथरा को अँधेरे में रख कर मीरा सेठ से पहले से ही सौदा किया हुआ था । मीरा सेठ चूँकि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए तैयारी कर रही हैं, इसलिए केएस लूथरा को अँधेरे में रख कर संदीप सहगल का उनके साथ कोई सौदा कर लेना एक राजनीतिक मुद्दा बन जाता है । उल्लेखनीय है कि मीरा सेठ के अलावा अशोक अग्रवाल और कमल शेखर गुप्ता भी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी में हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सत्ता खेमे के नेता के रूप में केएस लूथरा ने अभी 'अपना' उम्मीदवार तय न करने की रणनीति बनाई है - और इसीलिए अभी तीनों उम्मीदवारों को समान दूरी पर रखने की उनकी कोशिश है । पीएसटी स्कूलिंग में संदीप सहगल ने लेकिन जिस तरह से केएस लूथरा को बिना बताए मीरा सेठ से शराब स्पॉन्सर करवाई है, उससे उन्होंने केएस लूथरा की कोशिश को धता बताने का ही काम किया है । संदीप सहगल की इस कार्रवाई को उनकी केएस लूथरा से अलग खिचड़ी पकाने की कोशिश के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है ।
माना/समझा जा रहा है कि अगले लायन वर्ष में शाहजहाँपुर के ही उम्मीदवार को तवज्जो मिलेगी; जहाँ से उम्मीदवार बनने वाले दोनों लोगों - मीरा सेठ और अशोक अग्रवाल को यूँ तो गुरनाम सिंह खेमे के 'सदस्य' के रूप में देखा/पहचाना जाता है, किंतु केएस लूथरा के सामने मजबूरी होगी कि वह इन्हीं दोनों में से किसी एक को अपने उम्मीदवार के रूप में चुनें । केएस लूथरा की इस मजबूरी में कमल शेखर गुप्ता को हालाँकि अपना काम बनता दिख रहा है । मीरा सेठ के लिए समस्या उनके अपने पति की राजनीति ही है, जो गुरनाम सिंह के बड़े खास रहे हैं । समझा जाता है कि केएस लूथरा यदि मीरा सेठ को अपने उम्मीदवार के रूप में अपनाते हैं, और उन्हें सफल बनवाते हैं तो डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में वह अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे । अशोक अग्रवाल के मामले में लेकिन उन्हें यह खतरा नहीं होगा - यह ठीक है कि अशोक अग्रवाल ने अपना पिछला चुनाव गुरनाम सिंह खेमे के उम्मीदवार के रूप में ही लड़ा था, लेकिन उनकी प्रतिबद्धता प्रमोद सेठ जैसी नहीं है । इसके अलावा, शाहजहाँपुर में मीरा सेठ की बजाए अशोक अग्रवाल यदि गवर्नर बनते हैं, तो यह स्थिति शाहजहाँपुर में राजनीतिक ध्रुवीकरण को साधने तथा उसे बैलेंस करने में मददगार होगी । मजे की बात यह है कि केएस लूथरा के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे का समर्थन जुटाने के लिए प्रमोद सेठ और मीरा सेठ की तरफ से इस बात को प्रचारित किया जा रहा है कि पिछली बार गुरनाम सिंह खेमे के होने के बावजूद उन्होंने केएस लूथरा के उम्मीदवार संदीप सहगल का समर्थन किया था । यह प्रचार लेकिन उन्हें फायदा पहुँचाने के बजाए नुकसान पहुँचाने का काम कर रहा है; क्योंकि इससे लेकिन उनके प्रति यह संदेह बना है कि गुरनाम सिंह के नजदीक होने के बावजूद उन्होंने जब उन्हें धोखा देने में संकोच नहीं किया, तो इसकी क्या गारंटी है कि वह केएस लूथरा को धोखा नहीं देंगे ? इसी तरह की बातों के चलते केएस लूथरा उम्मीदवार के बारे में फैसला करने में जल्दबाजी नहीं करना चाहते हैं ।
पीएसटी स्कूलिंग में केएस लूथरा को अँधेरे में रख कर संदीप सहगल ने लेकिन जिस तरह से मीरा सेठ से शराब स्पॉन्सर करवाई है, उससे - और उनकी इस कार्रवाई पर राकेश अग्रवाल ने जिस तरह से नाराजगी प्रकट की, उससे - डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी तो पैदा हो ही गई है ।

Saturday, June 10, 2017

लायंस मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में जेपी सिंह और विनय गर्ग के बीच समझौता होने की चर्चाओं के बीच विनय गर्ग को अपने ही साथियों से चेतावनी भी मिली है, जिसके चलते दोबारा होने वाली कन्वेंशन पर भी आफत मंडराती दिख रही है

नई दिल्ली । 17 जून को दोबारा होने वाली मल्टीपल कन्वेंशन को लेकर भी मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में राजनीतिक तापमान जिस तरह बढ़ता दिख रहा है, उससे लगता नहीं है कि दोबारा होने वाली कन्वेंशन में भी कोई 'काम' शांति से हो पायेगा । दोबारा कन्वेंशन होने की घोषणा को लेकर ही जिस तरह का संदेह बना है, उससे मामला सुलटने की बजाए उलझता हुआ ज्यादा नजर आ रहा है । दोबारा होने वाली कन्वेंशन की घोषणा पर सुशील अग्रवाल, केएम गोयल, जगदीश गुलाटी आदि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर तक ने जिस तरह से हैरानी प्रकट की है, उससे लोगों को लगा है कि उक्त घोषणा करने से पहले मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जेसी वर्मा ने इन्हें भी भरोसे में नहीं लिया है । दरअसल इससे ही जेसी वर्मा द्वारा की गई घोषणा संदेहास्पद हो उठी है, और उसके पीछे छिपे उद्देश्यों को लेकर जितने मुँह उतनी बातें वाला माहौल बन गया है । मल्टीपल काउंसिल पदाधिकारियों की तरफ से भी कुछ स्पष्ट नहीं किया जा रहा है, इसलिए दोबारा होने वाली मल्टीपल कन्वेंशन को लेकर तरह तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं - जो मामले और माहौल को गर्म बना रहे हैं ।
मल्टीपल के लोगों के बीच जोरदार चर्चा तो यह है कि मल्टीपल कॉन्फ्रेंस और कन्वेंशन में हिंसा करने वाले और हिंसा का शिकार होने वाले नेताओं के बीच समझौता हो गया है; जिसके तहत दोबारा होने वाली कन्वेंशन में जेपी सिंह इंटरनेशनल डायरेक्टर तथा विनय गर्ग मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन चुन लिए जायेंगे - और पीछे जो हुआ, उसे भूल जाया जायेगा । कई लोगों को लेकिन यह भी लगता है कि दोनों खेमों में ही चूँकि उप-खेमे भी बन गए हैं, इसलिए उक्त फार्मूले के हिसाब से समझौता होना आसान नहीं होगा । सत्ता खेमे में कुछ लोग जरूर चाहते हैं कि जेपी सिंह को इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवा लो, और बाकी बातें भूल जाओ; लेकिन सत्ता खेमे में ही ऐसे लोग भी कम नहीं हैं जो चाहते हैं कि अदालती कार्रवाई और हिंसक उत्पात करने वाले लोगों के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए तथा उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए । इसी तरह विरोधी खेमे में भी कुछ लोग चाहते हैं कि विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवा लो, तथा बाकी बातों पर मिट्टी डालो; लेकिन विरोधी खेमे में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो जेपी सिंह को किसी भी हालत में इंटरनेशनल डायरेक्टर चुना जाता नहीं देखना चाहते हैं । दोनों खेमों में ही चूँकि किसी एक मुद्दे और/या उद्देश्य पर एकता नहीं है, इसलिए दोनों खेमों में ही इस बात पर असमंजस बना हुआ है कि उन्हें आखिर करना क्या है और कैसे करना है ?
दोबारा होने वाली कन्वेंशन में चूँकि किसी बड़े नेता और पदाधिकारी की उपस्थिति के आसार नहीं हैं - नरेश अग्रवाल, सुशील अग्रवाल, केएम गोयल, जगदीश गुलाटी के तो उपस्थित होने/रहने की उम्मीद किसी को नहीं है; विनोद खन्ना के बारे में लोगों को जरूर शक है कि जेसी वर्मा के षड्यंत्र में वह शामिल हो सकते हैं - इसलिए उसमें किसी एक पक्ष द्वारा अपनी मनमानी कर सकना मुश्किल भी होगा, और दोनों पक्ष अपनी अपनी मनमानी करने का प्रयास भी कर सकते हैं । इसलिए आशंका है कि दोबारा होने वाली कन्वेंशन भी कहीं हिंसक उत्पात का शिकार न हो जाए । दोबारा होने वाली कन्वेंशन को लेकर सबसे ज्यादा उबाल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में है । यूँ तो यहाँ दो खेमे हैं - एक जेपी सिंह का खेमा है, और दूसरा जेपी सिंह विरोधियों का खेमा है; इस हिसाब से जेपी सिंह के समर्थकों को लगता है कि एक पद जेपी सिंह को और दूसरा पद विनय गर्ग को दिलवा कर वह दोबारा होने वाली कन्वेंशन को आराम से पूरा करवा लेंगे । समस्या लेकिन यह हुई है कि डिस्ट्रिक्ट में जेपी सिंह विरोधी खेमे में भी दो खेमे बन गए हैं - विनय गर्ग और उनके नजदीकी तो समझौता कर लेना चाहते हैं, लेकिन दूसरे कई लोग जेपी सिंह के साथ समझौता करने को तैयार नहीं हैं । ऐसे ही लोगों ने चमनलाल गुप्ता को आगे करके मोर्चा सँभाला हुआ है; इनका कहना है कि चमनलाल गुप्ता के बेटे संजीव गुप्ता ने भरी मीटिंग में जेपी सिंह समर्थकों से क्या इसीलिए मार खाई थी कि जेपी सिंह इंटरनेशनल डायरेक्टर बन जाएँ ? इन्होंने विनय गर्ग और उनके समर्थकों को भी चेतावनी दी है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लालच में उन्होंने यदि जेपी सिंह से हाथ मिला लिया, तो अच्छा नहीं होगा ।
मल्टीपल में कई लोगों को यह भी लगता है कि दोबारा होने वाली कन्वेंशन में जेपी सिंह के समर्थक किसी भी तरह से जेपी सिंह को इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने का प्रयास करेंगे । उनकी तरफ से समझौते का रास्ता भी 'पकड़ा' गया है, और यदि किसी कारण से समझौता नहीं हो पाता है - तो किसी भी तिकड़म से वह इंटरनेशनल डायरेक्टर का 'चुनाव' करवा ही लेंगे । उन्हें लगता है कि पिछली बार हुए हिंसक उत्पात के चलते विरोधी खेमे के लोगों की जो बदनामी हुई है, उससे उनके हौंसले वैसे ही पस्त पड़े हैं; समझौते की बात से उनके बीच आपस में ही अविश्वास भी पैदा हो गया है - जिससे उनकी ताकत कमजोर पड़ गयी है; बचे-खुचे जो लोग शोर मचा रहे हैं, उन्हें 'काबू' करना मुश्किल नहीं होगा - और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का 'चुनाव' करवा लिया जा सकेगा । जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि दोबारा होने वाली मल्टीपल कन्वेंशन को लेकर चूँकि असमंजस बना हुआ है, और हर कोई अपने अपने तरीके से इसके पीछे छिपे उद्देश्य को लेकर अनुमान लगा रहा है - इसलिए लग रहा है कि इसमें भी मामला आसानी से निपटेगा नहीं ।

Friday, June 9, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में खर्चे से बचने की कोशिश में अपनी उम्मीदवारी की जरूरी सक्रियता से पीछे हट कर अश्वनी काम्बोज ने वास्तव में अपनी कमजोरी के साथ-साथ रणनीतिक सोच के अभाव को भी जाहिर किया है क्या ?

देहरादून । मुकेश गोयल की बदली चुनावी रणनीति तथा अश्वनी काम्बोज की उम्मीदवार के रूप में छिपने/दुबकने की कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के विरोधी खेमे के नेताओं की मुसीबतों को बढ़ा दिया है । इस वर्ष के चुनाव में अश्वनी काम्बोज की हुई बुरी हार के बावजूद विरोधी खेमे के नेता यह सोच कर उत्साहित थे कि अगले वर्ष की चुनावी राजनीति में वह मुकेश गोयल को अवश्य ही घेर लेंगे । विरोधी खेमे के नेता यूँ तो प्रायः हर वर्ष यह ख़्बाव देखते हैं, और प्रायः हर बार बेचारे बुरी तरह 'पिटते' हैं - उनके हौंसले की लेकिन तारीफ करनी होगी कि फिर भी वह मुकेश गोयल से निपटने का ख़्बाव देखना छोड़ते नहीं हैं । लेकिन अगले वर्ष की राजनीति में मुकेश गोयल को घेर लेने के उनके ख़्बाव को लेकर गंभीरता नजर आ रही थी तो इसके दो कारण थे : पहला कारण तो यह कि विरोधी खेमे के नेताओं के पास अश्वनी काम्बोज के रूप में एक 'दमदार' उम्मीदवार बिलकुल शुरू से मौजूद था, दूसरा यह कि मुकेश गोयल के पास कोई भारी उम्मीदवार 'दिख' नहीं रहा था । अश्वनी काम्बोज ने इस बार का चुनाव जिस दमदारी से लड़ा; और हारने के तुरंत बाद अगले वर्ष में उम्मीदवार होने की घोषणा उन्होंने जिस अंदाज में की - उससे संकेत मिला कि वह अगली बार चुनाव के लिए पहले से ही इतना दबाव बना देंगे कि उनके सामने कोई और उम्मीदवार बनने की हिम्मत ही नहीं करेगा । विरोधी खेमे के नेताओं को यह भी उम्मीद थी कि अश्वनी काम्बोज की सक्रियता के जरिए वह अजय सिंघल को भी साध कर अपनी तरफ मिला लेंगे । दरअसल अजय सिंघल को मुकेश गोयल खेमे में एक कमजोर कड़ी के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और माना जाता है कि यदि थोड़ा गंभीरता से काम किया जाए तो अजय सिंघल को मुकेश गोयल खेमे से अलग किया जा सकता है । इन्हीं कारणों से विरोधी खेमे के नेताओं ने मुकेश गोयल से निपटने की अपनी पुरानी हसरत को पूरा कर सकने के लिए उम्मीद का गुब्बारा फुलाया हुआ था ।
उनकी उम्मीद के गुब्बारे में लेकिन अश्वनी काम्बोज ने ही सुई चुभो दी है । अश्वनी काम्बोज ने अगले लायन वर्ष में उम्मीदवार होने की घोषणा तो कर दी है, लेकिन एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय होने और 'दिखने' से वह बचने की ही कोशिश कर रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि उन्होंने सक्रिय होने के लिए सोचा तो था, लेकिन अपने आप को उनका शुभचिंतक और समर्थक बताने वाले लोगों ने उन्हें जिस तरह के खर्चे का प्लान बताया, उसे सुन/जान कर अश्वनी काम्बोज के होश ही उड़ गए । उन्होंने समझ लिया कि उन्होंने अभी से 'इस' तरह से खर्चा करना शुरू किया, तो चुनाव आते आते तक तो वह कंगाल ही हो जायेंगे । नजदीकियों के अनुसार, अश्वनी काम्बोज को यह भी शक हुआ कि जो लोग अपने आप को उनका शुभचिंतक और समर्थक बता/जता रहे हैं, वह कहीं उनके पैसे पर अपनी अपनी राजनीति करने की फिराक में तो नहीं हैं - और इसीलिए उन्होंने सक्रिय होने की तैयारी को फिलहाल स्थगित ही कर दिया, तथा वाट्स-ऐप के जरिए ही अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करते रहने में अपनी भलाई देखी है । उनके नजदीकियों का कहना है कि वह अभी यह देखना चाहते हैं कि मुकेश गोयल खेमे की तरफ से कौन उम्मीदवार के रूप में आता है - और यह देखने के बाद ही वह अपनी सक्रियता बनायेंगे/दिखायेंगे । अश्वनी काम्बोज ने अपने नजदीकियों को बता दिया है कि जब तक मुकेश गोयल खेमे की तरफ से उम्मीदवार घोषित नहीं हो जाता, वह वाट्स-ऐप के अलावा कहीं कोई सक्रियता नहीं दिखायेंगे और इकन्नी भी खर्च नहीं करेंगे ।
मुकेश गोयल लेकिन इस बार अपनी रणनीति बदलते हुए दिख रहे हैं । हर बार वह उम्मीदवार की घोषणा जल्दी से जल्दी कर देने की कोशिश करते हैं, किंतु इस बार अपनी बदली हुई रणनीति में वह उम्मीदवार की घोषणा करने में जल्दबाजी नहीं करना चाहते हैं । अपनी रणनीति में बदलाव करके मुकेश गोयल ने दरअसल अश्वनी काम्बोज की 'खूबी' को ही उनके गले का फंदा बना दिया है । अश्वनी काम्बोज के समर्थक नेताओं की तरफ से संकेत मिल रहे थे कि मुकेश गोयल खेमे की तरफ से उम्मीदवार घोषित होने पर, अश्वनी काम्बोज ताबड़तोड़ खर्चा करके उस पर शुरू से ही बढ़त बना लेंगे और हावी हो जायेंगे । विरोधी खेमे के नेताओं की इस रणनीति को फेल करने के लिए ही मुकेश गोयल ने  चाल चली कि वह अभी अपना उम्मीदवार घोषित ही नहीं कर रहे हैं । मुकेश गोयल की इस चाल से अश्वनी काम्बोज और उनके समर्थक नेताओं के बीच विवाद पैदा हो गया है - समर्थक नेता चाहते हैं कि अश्वनी काम्बोज को अकेले उम्मीदवार होने का फायदा उठाना चाहिए, और अपनी सक्रियता से लोगों के बीच अपनी पैठ मजबूत कर लेना चाहिए; अश्वनी काम्बोज जान रहे हैं कि सक्रियता का मतलब पैसा खर्च होना शुरू, उनके अनुसार जो बेकार ही जायेगा, इसलिए अभी से क्यों सक्रिय होना ? अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों का भी मानना और कहना है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी की सक्रियता से पीछे हट कर अश्वनी काम्बोज ने वास्तव में अपनी कमजोरी को तो जाहिर किया ही है, साथ ही साथ यह भी साबित किया है कि उनके पास कोई रणनीतिक सोच भी नहीं है ।
अश्वनी काम्बोज के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि अश्वनी काम्बोज को पिछले चुनाव में हुई अपनी बुरी पराजय के कारणों का तथा इस समय की स्थितियों का तथ्यपरक तरीके से विश्लेषण करना चाहिए; और अपनी खूबियों व कमियों को पहचान कर अपनी रणनीति तैयार करना - और उस पर अमल करना चाहिए । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों का ही मानना/कहना है कि अश्वनी काम्बोज को समझना चाहिए कि बचकानी हरकतों से वह मुकेश गोयल जैसे अनुभवी नेता के सामने सफल नहीं हो पायेंगे, जो प्रतिकूल स्थितियों को भी अनुकूल बना लेने की कला में माहिर हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के अनुसार, मुकेश गोयल ने इस बार उम्मीदवार घोषित करने में जल्दबाजी न करने की जो रणनीति अपनाई है, वह दरअसल मजबूरी में लिया गया फैसला भी है । यह फैसला लेने के लिए उन्हें इसलिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि अभी उनकी राजनीति में फिट बैठने वाला कोई दमदार उम्मीदवार उन्हें मिला ही नहीं है; लेकिन इस प्रतिकूल स्थिति को उन्होंने पैंतरा बदल कर अनुकूल बना लिया - और अपनी बदली रणनीति से उम्मीदवार के मामले में 'अमीर' दिख रहे विरोधी खेमे के नेताओं को मुसीबत में डाल दिया है । विरोधी खेमे के नेताओं का रोना यह है कि जब उनका अपना 'घोड़ा' ही लंगड़ाने लगा हो, तो ऐसे में आखिर वही क्या करें ?

Wednesday, June 7, 2017

लायंस मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने के लिए दोबारा हो रही मल्टीपल कन्वेंशन के बीच तेजपाल खिल्लन क्या चमनलाल गुप्ता के मार्फ़त नरेश अग्रवाल को 'ब्लैकमेल' करने का काम भी कर रहे हैं ?

नई दिल्ली । लायंस इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करवाने के लिए 17 जून को मल्टीपल कन्वेंशन होने के फैसले तथा लायंस इंटरनेशनल की अनुशासनात्मक कार्रवाई से बचने के लिए तेजपाल खिल्लन की नरेश अग्रवाल के 'घर' फिर से घुसने की कोशिशों की खबरों ने वीएस कुकरेजा को निराश करते हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की उनकी हसरत और तैयारी को हवा में उड़ा दिया है । वीएस कुकरेजा ने अपने नजदीकियों से आशंका व्यक्त की है कि तेजपाल खिल्लन अपने आप को बचाने के लिए तो नरेश अग्रवाल से माफी भी माँग लेंगे तथा उनके साथ सौदेबाजी भी कर लेंगे, लेकिन उन्हें बीच मँझदार में छोड़ देंगे । अपनी इस आशंका को विश्वसनीय साबित करने के लिए वीएस कुकरेजा ने बताया है कि नरेश अग्रवाल के नजदीकियों से उन्हें जानकारी मिली है कि अभी तो तेजपाल खिल्लन ने नरेश अग्रवाल को फोन पर यह समझाने/जताने की कोशिश की है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट की कॉन्फ्रेंस और कन्वेंशन में जो उत्पात हुआ - उसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी । तेजपाल खिल्लन ने नरेश अग्रवाल से बात करते हुए स्वीकार किया कि मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारियों के कुछेक फैसलों को लेकर उनका विरोध जरूर था, और मल्टीपल की चुनावी राजनीति में वह एक पक्ष जरूर थे - लेकिन अपने विरोध और अपने पक्ष को स्वीकार करवाने के लिए हिंसा का सहारा लेने की किसी योजना में उनकी कोई भूमिका नहीं थी । वीएस कुकरेजा को तगड़ा झटका यह जानकर लगा है कि तेजपाल खिल्लन ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को रोकने के लिए अदालती कार्रवाई में अपनी मिलीभगत या सहमति की बात से भी पल्ला झाड़ लिया है । वीएस कुकरेजा को नरेश अग्रवाल के नजदीकियों से पता चला है कि तेजपाल खिल्लन ने नरेश अग्रवाल को कहा/बताया है कि कन्वेंशन से पंद्रह दिन पहले उनके साथियों ने इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव को रोकने के लिए अदालती कार्रवाई करने का सुझाव दिया था, जिसे लेकिन उन्होंने तुरंत खारिज कर दिया था; उन्हें नहीं पता कि तब फिर किसके कहने पर किसने अदालती कार्रवाई की ? तेजपाल खिल्लन की इन बातों से वीएस कुकरेजा ने समझ लिया है कि तेजपाल खिल्लन अपने आपको बचाने के लिए उनके साथ धोखा करने जा रहे हैं ।
वीएस कुकरेजा की बदकिस्मती यह है कि वह जिन लोगों से तेजपाल खिल्लन से धोखा मिलने का रोना रो रहे हैं, उनसे भी उन्हें सहानुभूति नहीं मिल रही है । वीएस कुकरेजा को लोगों से यही सुनने को मिल रहा है कि वह क्या तेजपाल खिल्लन को जानते नहीं हैं क्या ? उन्हें नहीं पता क्या कि तेजपाल खिल्लन तो लोगों को इस्तेमाल ही करते हैं, और जब कोई उनके काम का नहीं रह जाता - तो वह उसे बीच मँझदार में छोड़ ही देते हैं । वीएस कुकरेजा को क्या इतनी सी बात समझ में नहीं आ रही है कि वह अब तेजपाल खिल्लन के लिए काम के तो नहीं ही रह गए हैं, उनके लिए परेशानी का कारण भी बन गए हैं । अदालती कार्रवाई में वीएस कुकरेजा की मिलीभगत के जो तथ्य जानकारी में आए हैं, उसमें यदि तेजपाल खिल्लन की मिलीभगत भी साबित हुई तो लायंस इंटरनेशनल की अनुशासनात्मक कार्रवाई से बच पाना तेजपाल खिल्लन के लिए भी मुश्किल होगा । तेजपाल खिल्लन के लिए अपने आप को लायंस इंटरनेशनल की कार्रवाई से बचाना बहुत ही जरूरी है, अन्यथा उनका तो धंधा ही चौपट हो जाएगा । अब इसके लिए उन्हें यदि वीएस कुकरेजा की बलि चढ़ाने की जरूरत पड़ती है, तो वह ज्यादा सोचें-विचारें क्यों ? धंधे के लिए ही तो उन्होंने वीएस कुकरेजा की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ था - अब वह झंडा ही उनके धंधे में बाधा बनेगा, तो वह उसे क्यों उठाए चलेंगे ? धंधे के लिए ही तेजपाल खिल्लन ने नरेश अग्रवाल के प्रति अपने रवैये में भी यू-टर्न ले लिया है । मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में हिंसक उत्पात होने से पहले तक तेजपाल खिल्लन लोगों के बीच नरेश अग्रवाल और उनकी पत्नी के खिलाफ भद्दी और अपमानजनक टिप्पणियाँ किया करते थे; लोगों को अपना फोन दिखा दिखा कर बताते थे कि नरेश अग्रवाल और उनकी पत्नी उन्हें फोन कर कर के उन्हें अपनी तरफ मिलाने और पटाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वह उनके फोन उठा नहीं रहे हैं; किंतु अब वह नरेश अग्रवाल को फोन कर कर के अपने आप को निर्दोष दिखाने/जताने का प्रयास कर रहे हैं । 
तेजपाल खिल्लन हालाँकि सिर्फ इसी भरोसे नहीं हैं कि वह नरेश अग्रवाल को अपनी निर्दोषता का भरोसा दिला कर ही लायंस इंटरनेशनल की कार्रवाई से अपने को बचा लेंगे; एक कुशल धंधेबाज की तरह एक तरफ वह वीएस कुकरेजा से पीछा छुड़ा कर नरेश अग्रवाल से संबंध सुधारने की कोशिश कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ चमनलाल गुप्ता के मार्फ़त उन्हें 'ब्लैकमेल' करने का काम भी कर रहे हैं । उनकी इसी रणनीति के कारण मल्टीपल काउंसिल में हुए झगड़े/टंटे के चलते दर्ज हुईं एफआईआर को वापस कराने के लिए मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जेसी वर्मा ने पिछले दिनों जो प्रयास किए, वह ऐन मौके पर चमनलाल गुप्ता के पलट जाने से खटाई में पड़ गए हैं । दरअसल एक एफआईआर डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चमनलाल गुप्ता की तरफ से दर्ज करवाई गई है, जिसमें नरेश अग्रवाल का भी नाम है । मल्टीपल काउंसिल की कॉन्फ्रेंस में जो झगड़ा/टंटा हुआ, उसमें सबसे ज्यादा खामियाजा डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के पदाधिकारियों व नेताओं को भुगतना पड़ रहा है । अपनी हरकतों के चलते उन्हें लोगों से मुँह तक छिपाना पड़ रहा है, जिसके चलते भुवनेश्वर में एक से पाँच जून के बीच आयोजित हुई ऑल इंडिया स्कूलिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट इंद्रजीत सिंह तथा फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि मेहरा को अनुपस्थित होना पड़ा । लायनिज्म में इसे बहुत ही महत्त्वपूर्ण और जरूरी कार्यक्रम के रूप में देखा/पहचाना जाता है, जिसे डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों के लिए उपयोगी माना जाता है । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट की कॉन्फ्रेंस में हुई घटनाओं के कारण मिली बदनामी के कारण इंद्रजीत सिंह और रवि मेहरा की लेकिन इसमें शामिल होने की हिम्मत ही नहीं हुई । डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों को इस फजीहत से बचाने के लिए चमनलाल गुप्ता ने जेसी वर्मा को आश्वस्त किया था कि वह अपनी पुलिस रिपोर्ट वापस ले लेंगे । लेकिन जेसी वर्मा जब रिपोर्ट वापसी की कार्रवाई को पूरा करवाने पहुँचे, तब चमनलाल गुप्ता अपनी ही बात से यह कहते हुए पीछे हट गए कि इस मामले में वह कोई भी अंतिम फैसला अपने साथियों से सलाह करने के बाद ही करेंगे ।
समझा जाता है कि चमनलाल गुप्ता ने अपनी ही बात से पलटी मारने का काम तेजपाल खिल्लन के कहने में आकर किया है । चर्चा है कि तेजपाल खिल्लन उक्त पुलिस रिपोर्ट के जरिए नरेश अग्रवाल पर दबाव बनाए रख कर उनके साथ सौदेबाजी करना चाहते हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के मामले में तो तेजपाल खिल्लन ने हार स्वीकार कर ली है, लेकिन वह पूरी तरह समर्पण करते हुए न दिखें - इसके लिए वह विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवाने के मामले को जिंदा रखना चाहते हैं । डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के पदाधिकारियों को उन्होंने समझाया है कि उक्त पुलिस रिपोर्ट को बनाए रख कर नरेश अग्रवाल से सौदेबाजी करना और उन्हें विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनाने के लिए राजी करना आसान होगा । इसी कारण से चमनलाल गुप्ता अपनी पुलिस रिपोर्ट को वापस लेने के लिए राजी हो जाने बाद फिर अपनी बात से पलट गए । कई लोगों को लग रहा है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस और कन्वेंशन में जो हिंसक हंगामा हुआ, उसके लिए किसी के खिलाफ कहीं कोई कार्रवाई नहीं होगी - और नेता लोग अपने अपने पाप छिपाने तथा अपनी अपनी 'दुकान' बचाने के लिए आपस में सौदेबाजी कर लेंगे ।
17 जून को इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने के लिए हो रही मल्टीपल कन्वेंशन ने नेताओं के बीच हो सकने वाली सौदेबाजी के लिए रास्ता खोल भी दिया है ।

Tuesday, June 6, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में संजीव राय मेहरा को अगले रोटरी वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए अपने ही क्लब में विरोध का सामना करना पड़ रहा है

नई दिल्ली । संजीव राय मेहरा की अगले रोटरी वर्ष में भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी को उनके अपने क्लब में ही झटका मिलता नजर आ रहा है । उनके अपने क्लब - रोटरी क्लब न्यू दिल्ली में कई लोग संजीव राय मेहरा की बजाए आभा झा चौधरी को उम्मीदवार बनाए जाने की वकालत करते सुने जा रहे हैं । इन लोगों का कहना है कि संजीव राय मेहरा अपनी उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए जितना जो कुछ कर सकते थे, उन्होंने इस वर्ष कर लिया है - और उसके बावजूद सफल नहीं हो पाए, तो अब अगले वर्ष उनके लिए कोई उम्मीद नहीं है । बात सिर्फ यह नहीं है कि वह सफल नहीं हो पाए; बड़ी बात यह है कि वह तीसरे नंबर पर रहे - और तीसरा नंबर भी वह तब पा सके, जब डिस्ट्रिक्ट के कई चुनावबाज नेताओं का समर्थन उनके साथ था । इस तरह की बातें करने वाले नेताओं का मानना और कहना है कि तमाम अनुकूल स्थितियों के बावजूद संजीव राय मेहरा जब इस वर्ष कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर सके, तो अगले रोटरी वर्ष में स्थितियों के इस वर्ष जितना अनुकूल न होने की स्थिति में भला किस दशा को प्राप्त होंगे ? इसी समझ और तर्क के सहारे इन लोगों का कहना है कि संजीव राय मेहरा को अब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ से हट जाना चाहिए और अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार नहीं बनना चाहिए, ताकि बार-बार की हार से क्लब का नाम खराब न हो ।
संजीव राय मेहरा और उनके समर्थकों ने क्लब में अपनी उम्मीदवारी के विरोध में बनते/बढ़ते माहौल के लिए डिस्ट्रिक्ट के कुछेक चुनावबाज नेताओं को जिम्मेदार बताया/ठहराया है । उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक चुनावबाज नेता अपने अपने मतलब से प्रेरित होकर उनके क्लब में उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ सदस्यों को भड़का रहे हैं । संजीव राय मेहरा और उनके समर्थकों का कहना है कि उनके क्लब में उनकी उम्मीदवारी को लेकर कोई विरोध नहीं है, और अन्य कोई सदस्य अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने को लेकर उत्सुक नहीं है; उन्होंने आभा झा चौधरी से भी बात कर ली है, और वह भी अगले रोटरी वर्ष में अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने की तैयारी में नहीं हैं - कुछेक लोग अपनी राजनीति करने के लिए उनके नाम का नाहक ही सहारा ले रहे हैं । मजे की बात यह है कि क्लब में आभा झा चौधरी की उम्मीदवारी की बात करने वाले सदस्यों का भी मानना और कहना है कि उन्हें नहीं पता कि आभा झा चौधरी अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार बनने को तैयार हैं या नहीं; उनकी उम्मीदवारी के बारे में उनसे कोई बात नहीं हुई है; उनका तो सिर्फ यह कहना है कि क्लब की तरफ से यदि उम्मीदवारी प्रस्तुत ही होनी है, तो आभा झा चौधरी एक सही उम्मीदवार होंगी । डिस्ट्रिक्ट में उनकी प्रभावी सक्रियता है, और उनके काम से लोग उन्हें जानते/पहचानते हैं । इसलिए उनकी उम्मीदवारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दूसरे उम्मीदवारों पर भारी पड़ेगी और सफल हो सकेगी ।
संजीव राय मेहरा और उनके समर्थकों को यह बात तो समझ में आ रही है कि उनकी उम्मीदवारी का विरोध करने वाले लोग आभा झा चौधरी की उम्मीदवारी की बात को उनके खिलाफ ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं; लेकिन अपनी उम्मीदवारी के विरोधियों की इस चाल से निपटने की वह कोई तरकीब नहीं सोच पा रहे हैं । ले दे कर वह यही कह पा रहे हैं कि ऐसे लोग उनके विरोध के जरिये वास्तव में क्लब को बदनाम करने का काम कर रहे हैं । संजीव राय मेहरा और उनके समर्थकों की तरफ से यह जरूर कहा जा रहा है कि क्लब के किसी और सदस्य की यदि उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी है, तो वह अपनी उम्मीदवारी छोड़ देंगे । संजीव राय मेहरा यह कहते हुए क्लब में अपनी उम्मीदवारी के प्रति हमदर्दी पैदा करने की कोशिश भी कर रहे हैं कि क्लब के कुछेक सदस्य बाहरी नेताओं के उकसावे में आकर उनकी उम्मीदवारी की संभावनाओं को बिगाड़ने का काम कर रहे हैं, और इस तरह क्लब का माहौल खराब करते हुए क्लब को बदनाम करने का काम भी कर रहे हैं । उनकी इस तरह की बातों से उनकी उम्मीदवारी को हमदर्दी मिलेगी या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन यह जरूर पता चल रहा है कि संजीव राय मेहरा के लिए अगले रोटरी वर्ष की अपनी उम्मीदवारी के लिए उनके अपने क्लब में ही विरोध के स्वर खड़े हो गए हैं; अभी इन्होंने आभा झा चौधरी की उम्मीदवारी के बहाने से संजीव राय मेहरा को घेरने/गिराने की कोशिश की है, आगे यह कोई और बहाना खोज लेंगे ।

Monday, June 5, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में अपने ही क्लब के प्रेसीडेंट को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के अकाउंट देने से बचने की कोशिश में रमन अनेजा ने रमेश बजाज और जितेंद्र ढींगरा का नाम लेकर मामले को राजनीतिक रंग दिया

पानीपत । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के हिसाब-किताब को लेकर रोटरी क्लब पानीपत मिडटाउन में एक दिलचस्प किस्म का घमासान छिड़ गया है - जिसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा सहित दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रंजीत भाटिया और प्रमोद विज अपने ही क्लब के अध्यक्ष विनोद धमीजा पर टूट पड़े हैं । विनोद धमीजा का कुसूर सिर्फ यह है कि उन्होंने इन तीनों से 18/19 फरवरी को होटल नूर महल में आयोजित हुई डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का वित्तीय हिसाब-किताब पूछ लिया । रंजीत भाटिया डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन थे, और प्रमोद विज एडवाइजर थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते रमन अनेजा तो सर्वेसर्वा ही थे । यह तीनों रोटरी क्लब पानीपत मिडटाउन के सदस्य हैं । रोटरी क्लब पानीपत मिडटाउन के अध्यक्ष विनोद धमीजा को अपने कार्यकाल के क्लब के अकाउंट्स बनाने हैं, इसलिए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का वित्तीय ब्यौरा जानने की कोशिश की - जिस पर तीनों गवर्नर भड़क गए हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का हिसाब-किताब देने की बजाए यह तीनों विनोद धमीजा को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास करते हुए उनसे ही क्लब के खर्चों का हिसाब-किताब पूछने लगे हैं, जिस पर विनोद धमीजा का कहना है कि क्लब का हिसाब-किताब तैयार करने के लिए ही तो वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चों का ब्यौरा माँग रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का हिसाब-किताब माँगने पर डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन से जुड़े प्रमुख पदाधिकारी जिस तरह से भड़क उठे हैं, उससे डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चों में घपलेबाजी के आरोपों को और बल मिला है । अभी तक तो लोग दबे स्वर में ही घपलेबाजी की बात करते थे, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा के क्लब में ही डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चों को लेकर बबाल मचने के बाद लोग अब मुखर रूप में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चों में घपलेबाजी की बात करने लगे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चों में घपलेबाजी का आरोप दरअसल पिछले दिनों तब और जोरशोर से उठा, जब रोटरी फाउंडेशन के सेमीनार में दस हजार रुपए के टिकिट में से चार हजार रुपए सेमीनार के खर्च के नाम पर बसूले गए । सेमीनार के खर्च के नाम पर चार हजार रुपए लोगों को बहुत ज्यादा लगे, और तब लोगों के बीच चर्चा छिड़ी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमन अनेजा ने अपने प्रत्येक कार्यक्रम को पैसा बनाने का अवसर बनाया है । इसी चर्चा ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की घपलेबाजी की बातों को हवा दी, जो रोटरी क्लब पानीपत मिडटाउन में मचे घमासान से और भड़क उठी है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को आयोजित करने की जिम्मेदारी रोटरी क्लब पानीपत मिडटाउन की ही थी, इसलिए उसके वित्तीय ब्यौरे को क्लब की बैलेंस-शीट में शामिल करने की जरूरत समझते हुए विनोद धमीजा ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का हिसाब माँग लिया । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3080 में जब/तब यह देखने को मिल जाता है कि जिस किसी पदाधिकारी से हिसाब पूछ लो, तो वह बुरी तरह नाराज हो जाता है । रमन अनेजा से पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे डेविड हिल्टन और दिलीप पटनायक पर हिसाब-किताब में गड़बड़ियों को लेकर गंभीर आरोप रहे । दिलीप पटनायक तो बेचारे ऐसे 'पकड़े' गए कि उन्हें दूसरी बैलेंसशीट तैयार करवाना पड़ी । रमन अनेजा भी लगता है कि उन्हीं के 'रास्ते' पर हैं । रमन अनेजा की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर रंजीत भाटिया और प्रमोद विज भी घिर गए हैं । रणजीत भाटिया और प्रमोद विज इस बबाल का ठीकरा रमेश बजाज और जितेंद्र ढींगरा के सिर फोड़ने की कोशिश कर रहे हैं । इनकी तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि रमेश बजाज और जितेंद्र ढींगरा राजनीतिक बदला लेने के लिए उनके क्लब के अध्यक्ष विनोद धमीजा को भड़का रहे हैं, और उन्हें बदनाम करने/करवाने का प्रयास कर रहे हैं ।
दिलीप पटनायक और डेविड हिल्टन को वित्तीय गड़बड़ियों के मामले में जिस फजीहत का सामना करना पड़ा था - उम्मीद बनी थी कि उससे सबक लेकर रमन अनेजा सावधान रहेंगे और ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिसके कारण उन्हें भी दिलीप पटनायक और डेविड हिल्टन की तरह आरोपों से जूझना पड़े । लेकिन लगता है कि रमन अनेजा तो उनसे भी चार कदम आगे हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व प्रेसीडेंट एमपी गुप्ता डिस्ट्रिक्ट अकाउंट को लेकर सवाल पूछना चाहते थे, लेकिन किन्हीं नियमों का हवाला देते हुए उन्हें सवाल पूछने से ही रोक दिया गया । एमपी गुप्ता उसके बाद से रमन अनेजा को पत्र लिख लिख कर पूछ रहे हैं कि उन्हें आखिर किस नियम के तहत डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में सवाल पूछने से रोका गया, लेकिन रमन अनेजा की तरफ से उन्हें इसका कोई जबाव ही नहीं मिल रहा है । अपने एक पत्र में एमपी गुप्ता ने दुबई में आयोजित हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ट्रेनिंग सेमीनार के वीडियो का हवाला देते हुए बताया है कि निवर्तमान इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन ने उक्त सेमीनार में साफ कहा है कि डिस्ट्रिक्ट अकाउंट से संबंधित सवालों का जबाव देना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की जिम्मेदारी है । रमन अनेजा इसके बावजूद एमपी गुप्ता के सवाल का जबाव नहीं दे रहे हैं ।
रमन अनेजा के इसी रवैये के चलते डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के अकाउंट को लेकर अब उनके अपने क्लब में बबाल मच गया है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के होस्ट क्लब - अपने ही क्लब के प्रेसीडेंट को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के अकाउंट देने से बचने की कोशिश में रमन अनेजा और रंजीत भाटिया व प्रमोद विज जिस तरह से इस मामले में रमेश बजाज और जितेंद्र ढींगरा को घसीट रहे हैं, उससे यह मामला राजनीतिक रंग और लेता जा रहा है । इससे लगता है कि इस मामले में अभी और तमाशे देखने को मिलेंगे ।

Friday, June 2, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में हिंसक हंगामों के जरिए नरेश अग्रवाल और विजय राजु को निशाना बनाने वाले आरोपियों को बचाने में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट अशोक मेहता सचमुच मदद करेंगे क्या ?

नई दिल्ली । तेजपाल खिल्लन ने लायंस इंटरनेशनल की अनुशासनात्मक कार्रवाई से बचने और अपनी सदस्यता बचाने के लिए पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट अशोक मेहता का हाथ पकड़ा है; खबर लेकिन यह है कि अशोक मेहता ने उन्हें दिलासा तो दी है, पर कोई पक्का आश्वासन नहीं दिया है । उल्लेखनीय है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की कॉन्फ्रेंस और फिर कन्वेंशन में जो हंगामा, गाली-गलौच और मार-पिटाई का कार्यक्रम हुआ - उसे लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने खासी गंभीरता से लिया है, और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निश्चय किया है । इस बात को खासतौर से रेखांकित किया गया है कि इस मामले में यदि कड़ी कार्रवाई नहीं की गई तो लायंस पदाधिकारियों के भेष में जो लफंगे और गुंडे किस्म के लोग हैं, उनके हौंसले और मजबूत होंगे तथा आगे फिर वह इससे भी बड़े कांड करेंगे - और कहीं गुंडागर्दी से तो कहीं अदालती कार्रवाई से लायनिज्म को बंधक बनाने का काम करेंगे । ऐसे में, वर्ष 2022 में दिल्ली में होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन में भी बाधा खड़ी होगी, और लायनिज्म का नाम भी खराब होगा । इसलिए लायंस इंटरनेशनल की व्यवस्था तथा उसके नियम-कानून का और उसके वरिष्ठ पदाधिकारियों का सम्मान न करने वाले उत्पाती लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना जरूरी समझा जा रहा है; और चर्चा है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की कॉन्फ्रेंस व कन्वेंशन में उत्पात मचाने वाले लोगों के खिलाफ लायंस इंटरनेशनल कार्यालय द्वारा कड़ी कार्रवाई करने की तैयारी की जा रही है - जिसमें कुछेक लोगों की लायंस इंटरनेशनल की प्राथमिक सदस्यता ही समाप्त कर देने की भी तैयारी है ।
इस तैयारी की जानकारी रखने वाले लोगों का अनुमान है कि तेजपाल खिल्लन और वीएस कुकरेजा सहित डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के कुछेक पूर्व गवर्नर्स की लायंस इंटरनेशनल की सदस्यता खत्म की जा सकती है । दरअसल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की कॉन्फ्रेंस व कन्वेंशन में जो ऐतिहासिक हिंसक उत्पात हुआ, उसके पीछे इन्हीं लोगों का दिमाग और सोची-समझी तैयारी देखी/पहचानी जा रही है । लायंस इंटरनेशनल की तरफ से आने वाले इस खतरे को उत्पात मचाने वाले लोगों ने भी पहचाना है, और इसीलिए उन्होंने अपने को बचाने के लिए जुगाड़ लगाने शुरू कर दिए हैं । तेजपाल खिल्लन ने दूसरे उत्पातियों को आश्वस्त किया है, कि वह उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने देंगे - और उनकी सदस्यता तो खत्म नहीं ही होने देंगे । तेजपाल खिल्लन ने यह आश्वासन पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट अशोक मेहता से अपनी नजदीकियत के भरोसे दिया है; अपने नजदीकियों से उन्होंने कहा भी है कि वह बराबर से अशोक मेहता के संपर्क में हैं और अशोक मेहता ने उन्हें निश्चिन्त रहने के लिए कहा है - हालाँकि अशोक मेहता ने उन्हें यह भी कहा है कि मामला खासा गंभीर है । तेजपाल खिल्लन के सामने समस्या यह भी है कि उन्हें अपने साथ-साथ दूसरे लोगों को भी बचाना है; वह खुद यदि बच गए, और दूसरे लोग नप गए - तो यह उनकी राजनीति के लिए और भी बुरा होगा । अशोक मेहता की तरफ से उन्हें संकेत दिया गया है कि लायंस इंटरनेशनल ने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की घटनाओं को गंभीरता से लिया है, और कड़ी कार्रवाई तो होगी ही - अब इस कड़ी कार्रवाई में कौन बचेगा और कौन नपेगा, यह अभी से कहना मुश्किल है । अशोक मेहता की इस तरह की बातों से तेजपाल खिल्लन को यह भी शक हुआ है कि अशोक मेहता इस मामले में कहीं उनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं ? इस मामले में तेजपाल खिल्लन को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल से भी मदद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन सुशील अग्रवाल ने उनसे पहले ही किनारा कर लिया है ।
दरअसल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की कॉन्फ्रेंस तथा कन्वेंशन में जो कुछ भी हुआ, उसके गवाह नरेश अग्रवाल और विजय राजु के रूप में इंटरनेशनल बोर्ड के दो प्रमुख सदस्य हैं ही - इसलिए लायंस इंटरनेशनल को कार्रवाई करने के लिए कोई लंबी-चौड़ी प्रक्रिया अपनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । अशोक मेहता ने तेजपाल खिल्लन को बताया है कि इसीलिए इस मामले में उनके और या किसी अन्य के ज्यादा कुछ कर पाने के लिए कोई मौका ही नहीं है । जो कुछ हुआ और जिन जिन ने जो कुछ किया, वीडियो रिकॉर्डिंग के रूप में उसका आँखों देखा विवरण उपलब्ध है; मल्टीपल काउंसिल पदाधिकारियों की विस्तृत रिपोर्ट है; नरेश अग्रवाल और विजय राजु की रिपोर्ट्स हैं - जो कुछ हुआ, वह न सिर्फ उनके सामने हुआ, बल्कि उनके साथ हुआ । लायंस इंटरनेशनल को कार्रवाई करने के लिए इससे ज्यादा और क्या चाहिए ? समझा जा रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर विजय राजु और फर्स्ट इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल के गवाह के साथ-साथ भुक्तभोगी होने तथा घटनाओं की वीडियो रिकॉर्डिंग होने के कारण लायंस इंटरनेशनल को जाँच-पड़ताल की औपचारिकता में ज्यादा समय लगाने की भी जरूरत नहीं होगी । चर्चा है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव रोकने के लिए अदालती कार्रवाई करने वाले क्लब और उसके पदाधिकारी के साथ वीएस कुकरेजा के संबंध की पड़ताल कर ली गई है और अदालती कार्रवाई में वीएस कुकरेजा की संलग्नता के पुख्ता सुबूत जुटा लिए गए हैं ।
वीएस कुकरेजा की हरकत को लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने दरअसल बहुत ही गंभीरता से लिया है : इस बात पर आश्चर्य जताया गया है कि जो लायन सदस्य इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना चाहता है, उसे इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव से संबंधित लायंस इंटरनेशनल की नियमावली का पहला नियम ही ज्ञात नहीं है, जिसमें कहा गया है कि अपने डिस्ट्रिक्ट में 'नोटिस ऑफ इंटेंशन' देने के साथ-साथ ही उसे मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में भी इंटेशन दे देना चाहिए । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद में गंभीरता से दिलचस्पी रखने वाले सारी दुनिया के लायन सदस्य इस नियम का ध्यान रखते हैं, और जो उस समय मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट को इंटेंशन नहीं भी भेज पाते हैं, वह अपने डिस्ट्रिक्ट की कॉन्फ्रेंस हो जाने के तुरंत बाद तो भेज ही देते हैं - इस बात की परवाह किए बिना कि मल्टीपल में चुनाव होगा भी या नहीं । यह एक अलग मुद्दा है कि पहले कहा/बताया जा रहा था कि मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव नहीं होगा, और फिर चुनाव करवाया जाने लगा; इस मुद्दे पर तथ्यात्मक तरीके से 'लड़ाई' लड़ने का हर किसी को हक है - लेकिन इस आधार पर कोई अपनी बेवकूफी को तो जस्टीफाई नहीं कर सकता है । एक कॉमनसेंस की बात भी है कि वीएस कुकरेजा ने मल्टीपल में इसलिए इंटेंशन नहीं दिया हुआ था, क्योंकि उन्हें पता था कि मल्टीपल में चुनाव होना ही नहीं है; तब फिर सवाल यह पैदा होता है कि यह पता होने के बाद भी डिस्ट्रिक्ट में एंडोर्समेंट उन्होंने क्या उसकी बत्ती बनाने के लिए लिया हुआ था ? इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की इच्छा रखने वाला एक वरिष्ठ लायन बचकाने, बेवकूफीभरे और नियमविरुद्ध कार्य-व्यवहार के कारण जब उम्मीदवार बनने की पात्रता खो देता है - तब वह धोखाधड़ी का सहारा लेकर चुनाव की प्रक्रिया को ही रोक देता है । लायंस इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों का मानना है कि वीएस कुकरेजा के खिलाफ यदि कड़ी कार्रवाई नहीं की गई तो उनके जैसी सोच रखने वाले लोगों का हौंसला बढ़ेगा, और फिर वह अदालती कार्रवाइयों के जरिए लायंस इंटरनेशनल का कोई काम होने ही नहीं देंगे ।
मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की कॉन्फ्रेंस और कन्वेंशन में जो हुआ, उसे अंजाम देने वाले लोगों के लिए समस्या की बात यह भी हो गई है कि उनकी करतूतों की हर कोई भर्त्सना ही कर रहा है, और उनके समर्थक भी पीछे हटते तथा चुप होते जा रहे हैं । इससे उनके खिलाफ कार्रवाई करना/करवाना चाह रहे लोगों को बल मिला है । उनके खिलाफ कार्रवाई करने/करवाने की प्रक्रिया को पुख्ता व तेज करने/करवाने के लिए उन पूर्व गवर्नर्स से इंटरनेशनल कार्यालय को कार्रवाई की अनुशंसा करते पत्र लिखवाए/भिजवाए जा रहे हैं, जो मौके पर मौजूद थे । मल्टीपल कॉन्फ्रेंस व कन्वेंशन में हुए हिंसक हंगामों में आगे आगे रहने वाले लोग अपने आप को कार्रवाई से बचाने की कोशिशों में तो जुटे हैं, लेकिन सभी की उम्मीदें तेजपाल खिल्लन पर ही टिकी हैं - और तेजपाल खिल्लन की उम्मीद पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट अशोक मेहता पर टिकी है । उन्हें विश्वास है कि उनकी और उनके साथियों की जो भी और जैसी भी हरकतें रही हैं, उसके बावजूद अशोक मेहता उन्हें और उनके साथियों को अवश्य ही बचा लेंगे ।

Thursday, June 1, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा ने अपनी पत्नी और उनके देवरों की सहायता से अपने कैरेक्टर को बचाने की जो कोशिश की है, वह सचमुच कामयाब हो सकेगी क्या ?

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा ने अपने 'कैरेक्टर' को बेदाग साबित करने तथा 'दिखाने' के लिए जिस तरह से अपनी पत्नी और उनके देवरों का सहारा लिया, उससे उन्होंने अपनी स्थिति को और भी ज्यादा हास्यास्पद बना लिया है । मुकेश अरनेजा द्वारा एक वरिष्ठ रोटेरियन की पत्नी से अभद्रता करने का आरोप रोटरी इंटरनेशनल तक गूँज उठा है, जिसकी जाँच के लिए रोटरी इंटरनेशनल द्वारा गठित कमेटी के सदस्यों ने हाल ही में कई लोगों के बयान दर्ज किए हैं । इस कमेटी के सदस्यों के सामने मुकेश अरनेजा ने कुछेक रोटेरियंस से अपने कैरेक्टर के पक्ष में बयान दर्ज करवाए । मजे की बात यह रही कि उक्त कमेटी के सदस्यों के सामने जिन रोटेरियंस के बयान दर्ज हुए, उनमें से अधिकतर पिछली रात मुकेश अरनेजा की वैवाहिक वर्षगाँठ की एक छोटी सी पार्टी में सम्मिलित हुए थे । वैवाहिक वर्षगाँठ की वह छोटी सी पार्टी भी लोगों के बीच खासी चर्चा में रही । उस पार्टी में शामिल हुए लोगों के साथ-साथ मुकेश अरनेजा के अन्य कुछ नजदीकियों को भी याद नहीं है कि मुकेश अरनेजा ने अपनी वैवाहिक वर्षगाँठ की पार्टी इससे पहले कब दी थी । रोटरी के किसी आयोजन के दिन संयोग से पड़ने वाले अपने और अपनी पत्नी के जन्मदिन तथा वैवाहिक वर्षगाँठ को सेलीब्रेट करने के मौके तो मुकेश अरनेजा 'इस्तेमाल' करते रहे हैं, लेकिन इन मौकों पर उन्होंने कभी अपनी तरफ से पार्टी दी हो - ऐसा किसी को याद नहीं है ।
इसीलिए, मुकेश अरनेजा ने अब की बार जब वैवाहिक वर्षगाँठ की पार्टी दी, तो लोगों को हैरानी हुई । हालाँकि बाद में, पार्टी की बात सुनकर मुकेश अरनेजा के कई नजदीकियों को झटका भी लगा और उन्होंने शिकायत भी की कि मुकेश अरनेजा ने उन्हें नहीं आमंत्रित किया - और फोन पर उनसे हुई बात में उन्हें तो उन्होंने परिवार सहित शिमला में होने की बात बताई थी । वैवाहिक वर्षगाँठ वाले दिन शिमला में होने की बात प्रचारित करके मुकेश अरनेजा को उन लोगों को पार्टी की बात पर यकीन दिलवाना मुश्किल भी हुआ, जिन्हें वह पार्टी में उपस्थित देखना चाहते थे । यकीन दिलवाने के लिए मुकेश अरनेजा ने उन्हें उलाहना भी दिया कि - अपनी भाभी को बधाई देने नहीं आओगे क्या ? मुकेश अरनेजा ने जब भाभी वाला कॉर्ड चला तो 'देवरों' को भावुक हो ही जाना था, और तब आमंत्रित लोग पार्टी में पहुँचे । वैवाहिक वर्षगाँठ के समारोह के कायदे और शिष्टाचार के अनुसार, समारोह में मेजबान का पूरा परिवार होता है, और मेहमान लोग भी परिवार के साथ आते हैं : मुकेश अरनेजा की वैवाहिक वर्षगाँठ की पार्टी में लेकिन न तो मुकेश अरनेजा का पूरा परिवार था, और मेहमान भी अकेले अकेले ही पहुँचे हुए थे । दरअसल यह वैवाहिक वर्षगाँठ की पार्टी थी ही नहीं - वर्षगाँठ जैसे शुभअवसर की पार्टी के नाम पर मुकेश अरनेजा ने अगले दिन उनकी कारस्तानियों की जाँच करने आने वाली कमेटी के सामने अपने कैरेक्टर का सर्टीफिकेट तैयार करवाने की कसरत की थी । और इसकी तैयारी के लिए मुकेश अरनेजा ने अपनी पत्नी का इस्तेमाल किया ।
मुकेश अरनेजा ने अपने कैरेक्टर को बचाने की लड़ाई में जिस तरह से अपनी पत्नी को इस्तेमाल किया है, उससे वास्तव में महिलाओं के प्रति उनका अशालीन रवैया ही एक बार फिर सामने आया है । रोटरी में सक्रिय महिलाओं के प्रति मुकेश अरनेजा अभद्र व अशालीन किस्म की बातें तो करते रहे हैं; अपने द्वारा ही समर्थित एक उम्मीदवार की पत्नी के बारे में मुकेश अरनेजा कहते/बताते रहे हैं कि अपने पति के लिए वोट जुटाने के लिए उसने तो दूसरे के घरों में पराठे तक सेंके हैं व्यवहार के मामले में एक सामान्य सिद्धांत देखा गया है कि जो लोग दूसरों का सम्मान नहीं करते हैं, वह जरूरत पड़ने पर अपनों को भी बेइज्जत करने से बाज नहीं आते हैं । जाँच कमेटी के सामने पेश होने के दिन से पहले वाले दिन वैवाहिक वर्षगाँठ पड़ने के संयोग को मुकेश अरनेजा ने जिस तरह से भुनाया और मजाक बना दिया, उससे उन्होंने उक्त सिद्धांत को ही सही साबित किया है । मुकेश अरनेजा की वैवाहिक वर्षगाँठ के मौके को मजाक बनाने में उनके चेले सतीश सिंघल ने भी उनका पूरा पूरा साथ दिया है । सतीश सिंघल ने गुरुदक्षिणा चुकाने वाले अंदाज में सोशल मीडिया में मुकेश अरनेजा और उनकी पत्नी को वैवाहिक वर्षगाँठ के मौके पर विश किया, ताकि दूसरे लोग भी इसे देखें/जानें । ऐसा करते हुए लेकिन उन्होंने जो तस्वीर लगाई है, उसमें साफ दिख रहा है कि वह भाई-भाभी को बुके 'दे' नहीं रहे हैं, बल्कि उनसे 'ले' रहे हैं । ऐसे विश कौन करता है, यह पूछना बेकार है; क्योंकि यह सतीश सिंघल - मुकेश अरनेजा के चेले सतीश सिंघल का कारनामा है; यह लोग अपनी छोटी, घटिया व बेवकूफीभरी सोच व कार्रवाई से दूसरों की ही नहीं, अपनों की भी फजीहत कर डालते हैं - और उनसे जुड़े शुभअवसरों को भी सम्मान व गरिमा के साथ अंजाम देने में प्रायः असफल रहते हैं ।
अपनी पत्नी और उनके देवरों की सहायता से मुकेश अरनेजा ने अपने कैरेक्टर को बचाने की जो कोशिश की है, वह कामयाब होती भी है या नहीं - इसका पता तो बाद में चलेगा; लेकिन मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल व दीपक गुप्ता जैसे उनके चेलों की कारस्तानियों की शिकायत पर रोटरी इंटरनेशनल के गंभीर हो उठने से इस बात का पता तो अभी ही चल गया है कि इनकी हरकतों और बदनामियों के किस्से दूर दूर तक मशहूर हैं । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केके गुप्ता की शिकायत पर जिस तरह से दो घंटे के अंदर अंदर रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने कार्रवाई की, और तुरंत से जाँच कमेटी का गठन कर दिया - उससे जाहिर है कि मुकेश अरनेजा, सतीश सिंघल, दीपक गुप्ता की हरकतों से रोटरी में लोग ऊपर तक परिचित हैं; और इसीलिए उन्होंने केके गुप्ता की शिकायत का तुरंत से संज्ञान लिया । केके गुप्ता ने इन लोगों पर सीओएल के चुनाव को प्रभावित करने का आरोप भी लगाया है । सतीश सिंघल और दीपक गुप्ता के खिलाफ उनका आरोप है कि इन्होंने सीओएल के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी को वापस लेने के लिए उन पर दबाव बनाया । दीपक गुप्ता को लेकर लोगों को बड़ी हैरानी हुई और उनका कहना रहा कि दीपक गुप्ता इतनी जल्दी यह सच्चाई भूल गए कि वह खुद तो तीसरी बार में जैसे-तैसे करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जीते हैं; और अब वह खुद को इतना बड़ा नेता समझने लगे हैं कि वह उन केके गुप्ता को निर्देश देने लगे हैं जो तब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे, जब दीपक गुप्ता रोटरी से भी परिचित नहीं थे । रोटरी के बड़े और वरिष्ठ नेताओं को बेइज्जत करने में दीपक गुप्ता का नाम पहले भी आ चुका है, जब किसी मौके पर उन्होंने पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के लिए कहा था - (हूँ इज सुशील गुप्ता) सुशील गुप्ता कौन है ?
मुकेश अरनेजा, सतीश सिंघल और दीपक गुप्ता की हरकतों के कारण डिस्ट्रिक्ट 3012 को ऐसा दिन देखना पड़ा है, कि उसके खिलाफ रोटरी इंटरनेशनल पदाधिकारियों को जाँच-कमेटी गठित करना पड़ी - तो यह डिस्ट्रिक्ट के भविष्य के लिए कोई अच्छे संकेत नहीं हैं । इनके जैसी हरकतों पर रोटरी इंटरनेशनल जिस तरह की कठोर कार्रवाइयाँ करता रहा है, उन्हें देखते हुए लगता है कि इनकी कारस्तानियों का खामियाजा इनके साथ-साथ कहीं दूसरे लोगों को भी न भुगतना पड़े ।