Thursday, January 29, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में विनय भाटिया की अगले रोटरी वर्ष की उम्मीदवारी को ध्यान में रखते हुए फरीदाबाद के लोगों ने रवि चौधरी के चैलेंज को समर्थन देने से किनारा करना शुरू किया तो रवि चौधरी के लिए अधिकृत उम्मीदवार सरोज जोशी के खिलाफ कॉन्करेंस जुटाना चुनौतीपूर्ण हुआ

नई दिल्ली । सरोज जोशी की अधिकृत उम्मीदवारी को चैलेंज करने के लिए रवि चौधरी को फरीदाबाद और गुड़गाँव से समर्थन मिलने की जो उम्मीद थी, उसे विनय भाटिया की अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत होने वाली उम्मीदवारी के चलते झटका लग रहा है । अगले रोटरी वर्ष में प्रस्तुत होने वाली विनय भाटिया की उम्मीदवारी के रूप में फरीदाबाद के लोग चूँकि अपने आप को संगठित रखना और 'दिखाना' चाहते हैं, इसलिए उन्हें यह बात समझ में आ रही है कि इसके लिए उन्हें इस वर्ष की चुनावी लड़ाई में किसी एक पक्ष के साथ 'खुल कर' नहीं दिखना चाहिए और नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार को चैलेंज करने की कार्रवाई का हिस्सा नहीं बनना चाहिए । फरीदाबाद के लोगों की यह समझ रवि चौधरी के लिए मुसीबत बन गई है । सरोज जोशी की अधिकृत उम्मीदवारी को चैलेंज करने के लिए आवश्यक कॉन्करेंस जुटाने के लिए रवि चौधरी फरीदाबाद से मिलने वाले सहयोग/समर्थन पर ही निर्भर कर रहे थे । फरीदाबाद के लोग लेकिन अब उन्हें ठेंगा दिखाते दिख रहे हैं । कई लोगों ने रेखांकित किया है कि नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला आने वाले दिन रवि चौधरी द्धारा चैलेंज करने की बात में जितना दम और शोर नजर आ रहा था, वह बाद के दिनों में घटता गया है । हो सकता है कि यह फरीदाबाद से अपेक्षित सहयोग/समर्थन न मिल सकने का असर हो !
फरीदाबाद के रोटेरियंस की समस्या स्वाभाविक ही है । उनके लिए अगले रोटरी वर्ष में प्रस्तुत होने वाली विनय भाटिया की उम्मीदवारी का खास महत्व है, जिसे वह रवि चौधरी के लिए खतरे में नहीं डाल सकते हैं । दरअसल यह साफ देखा गया है कि रवि चौधरी की उम्मीदवारी का विरोध डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर प्रमुख नेताओं ने किया है । ऐसे में, फरीदाबाद के रोटेरियंस को लगता है कि रवि चौधरी को कॉन्करेंस देकर वह नाहक ही डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर नेताओं को अभी से विनय भाटिया की उम्मीदवारी के खिलाफ कर लेंगे । मजे की बात यह है कि फरीदाबाद में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए अच्छे समर्थन का दावा किया जाता रहा है; और विनय भाटिया के कई नजदीकी व समर्थक रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन की बातें करते रहे हैं । उनमें से कई लोग लेकिन अब रवि चौधरी को कॉन्करेंस देने का विरोध कर रहे हैं । उनका कहना है कि उन्होंने रवि चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन किया था और यदि चुनाव हुआ तो हो सकता है कि वह फिर से रवि चौधरी का समर्थन करें - किंतु रवि चौधरी को कॉन्करेंस देना विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए आत्मघाती होगा । उनका कहना है कि विनय भाटिया की उम्मीदवारी को लेकर फरीदाबाद में ही नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट में भी जो उत्साह है उसे रवि चौधरी के लिए खतरे में डालने की कोई जरूरत नहीं है । 
विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक रवि चौधरी की उम्मीदवारी का दरअसल इसलिए भी समर्थन कर रहे थे क्योंकि उन्हें डर था कि रवि चौधरी यदि हार गए तो अगले वर्ष फिर उम्मीदवार बनेंगे और तब विनय भाटिया के लिए समस्या बनेंगे । इसलिए वह चाहते थे कि रवि चौधरी इस बार जीत जाएँ और अगले वर्ष के लिए विनय भाटिया का रास्ता साफ करें । रवि चौधरी ने लेकिन अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार न बनने की घोषणा करके विनय भाटिया के शुभचिंतकों के इस डर को दूर कर दिया है और इसीलिए अब विनय भाटिया के शुभचिंतकों को रवि चौधरी को चुनाव जितवाने की 'जरूरत' महसूस नहीं हो रही है । फरीदाबाद में जो लोग विनय भाटिया के बहुत समर्थक या शुभचिंतक नहीं भी हैं उन्हें भी लगता है कि रवि चौधरी को कॉन्करेंस देकर वह खुद को फरीदाबाद के हितों के खिलाफ 'दिखायेंगे' और इसलिए वह भी रवि चौधरी को कॉन्करेंस देने से बचने की कोशिश कर रहे हैं । 
रवि चौधरी के चैलेंज को सबसे बड़ा झटका गुड़गाँव से लगा है । दिलचस्प बात यह है कि गुड़गाँव से ही उन्हें सबसे ज्यादा समर्थन मिला है । दीपक तलवार और डॉक्टर सुशील खुराना उनकी उम्मीदवारी के घोषित और सक्रिय समर्थक रहे हैं । इन दोनों के रवि चौधरी की उम्मीदवारी के पक्ष में बैटिंग करने के बावजूद नोमीनेटिंग कमेटी में गुड़गाँव का वोट रवि चौधरी को न मिलने की शिकायत तो खुद रवि चौधरी और उनके समर्थकों ने की है । इससे सबक लेकर रवि चौधरी ने इनके भरोसे रहने की बजाये खुद ही गुड़गाँव में अपने लिए समर्थन जुटाने का प्रयास किया है, लेकिन उन्हें कोई समर्थन मिलता अभी तक तो दिखा नहीं है । डॉक्टर सुशील खुराना ने हालाँकि रवि चौधरी के जले पर मलहम लगाते हुए उन्हें आश्वस्त किया है कि नोमीनेटिंग कमेटी में वह रवि चौधरी को गुड़गाँव से समर्थन नहीं दिलवा सके हों, किंतु कॉन्करेंस जरूर दिलवायेंगे । 
रवि चौधरी और उनके समर्थक असमंजस में हैं कि वह डॉक्टर सुशील खुराना के इस मलहम पर कितना विश्वास करें ? उनके सामने समस्या यह भी है कि विश्वास न भी करें तो क्या करें ? इसी तरह के असमंजसपूर्ण विश्वास के भरोसे रवि चौधरी और उनके समर्थक पर्याप्त कॉन्करेंस मिल सकने का दावा कर रहे हैं । उनका दावा है कि भले ही उन्हें अपने ही लोगों से धोखा मिला हो और उनके अपने ही लोग अब अपने स्वार्थ के चलते उनसे नजरें चुरा रहे हों, किंतु वह पर्याप्त कॉन्करेंस जुटा लेंगे । फरीदाबाद और गुड़गाँव में रवि चौधरी को समर्थन देने के मामले में जिस तरह की प्रतिकूल खबरें मिल रही हैं, उन्हें देखते/सुनते हुए अपने चैलेंज के लिए पर्याप्त कॉन्करेंस मिल सकना उनके लिए बड़ी चुनौती तो लेकिन है ही ।      

Wednesday, January 28, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में विक्रम शर्मा और आरके शाह की 'होशियारी' के चलते असहाय बने बैठे नेताओं को सुरेश जिंदल की कवायद से उम्मीद तो बनी है, लेकिन सुरेश जिंदल के केएल खट्टर और चंद्रशेखर मेहता की 'पकड़' में होने के कारण यह उम्मीद उनके लिए अभी अधर में भी लटकी हुई है

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा और आरके शाह ने नेताओं को जैसा जो नाच नचाया हुआ है, उससे सुरेश जिंदल को अपना काम बनता हुआ दिख रहा है, और इसी उम्मीद में उन्होंने दिल्ली में कुछेक नेताओं से तार जोड़े हैं । तार जोड़ने की इस प्रक्रिया में उन्होंने नेताओं को अभी हालाँकि सिर्फ यही संकेत दिया है कि वह 'उपलब्ध' हैं । सुरेश जिंदल की इस प्रक्रिया को 'गर्म लोहे पर चोट मारने' वाली कहावत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के नेता - मजे की बात यह है कि दोनों पक्षों के नेता इस समय तक अपने आपको नितांत असहाय पा रहे हैं । यह उनकी असहायता का ही आलम है कि जनवरी का महीना खत्म हो रहा है और उनके पास कोई उम्मीदवार नहीं है तथा उनकी कोई राजनीतिक सक्रियता नहीं है । कहा जा सकता है कि चुनावी राजनीति के परिदृश्य में पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है और किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है कि वह करें तो क्या करें ? हमेशा आपस में लड़ते रहने और एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिशों में लगे रहने वाले नेता अब एक दूसरे पर इस उम्मीद में निगाह जमाये हुए हैं कि कुछ करो भई ! यह हाल तब है जब कि इस वर्ष नेताओं को दो वर्षों के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तय करने हैं । 
नेताओं की बदकिस्मती यह है कि उन्होंने तो तय कर लिया है लेकिन आश्चर्यजनक स्थिति यह है कि उन्होंने जिनके नाम तय किए हैं, वह नेताओं की शर्ते मानने को तैयार नहीं हो रहे हैं । लायन राजनीति में ऐसा कभी भी नहीं देखा गया है । यहाँ हमेशा उम्मीदवार नेताओं के पीछे भागते देखे जाते है, पर अभी यह हो रहा है कि नेता लोग उम्मीदवारों को ताकते बैठे हुए हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के दिल्ली के नेताओं के बीच इस फार्मूले के लिए सहमति बन गई है कि वह विक्रम शर्मा और आरके शाह को बारी बारी से गवर्नर बनवा लेते हैं । डिस्ट्रिक्ट के हरियाणा के नेता हालाँकि दिल्ली के नेताओं के बीच बनी इस सहमति पर ऐतराज जता रहे हैं, लेकिन दिल्ली के नेता उनकी परवाह करते हुए नहीं दिख रहे हैं । दिल्ली के नेता अपने इस फार्मूले को लेकर भारी उत्साह में हैं, लेकिन उनके इस उत्साह पर पानी डालने का काम किया है विक्रम शर्मा और आरके शाह ने । मामला दरअसल पैसों को लेकर अटक गया है । नेताओं का कहना है कि यह फार्मूला सफल तो हो जायेगा तथा यह दोनों ही गवर्नर बन जायेंगे, लेकिन इसके लिए इन्हें पैसे तो खर्च करने की पड़ेंगे । पैसों के मामले में विक्रम शर्मा और आरके शाह ने लेकिन चुप्पी साध ली है । उनकी चुप्पी ने नेताओं को असहाय बना दिया है । नेताओं ने अपने फार्मूले को चूँकि सार्वजनिक कर दिया है इसलिए दूसरे संभावित उम्मीदवार भी उनके पास नहीं आ रहे हैं ।
विक्रम शर्मा और आरके शाह वैसे तो कुछ नहीं कह रहे हैं, किंतु उनके नजदीकियों की तरफ से जो बातें सुनने को मिल रही हैं उनमें उनकी नाराजगी इस बात को लेकर दिख रही है कि नेताओं के फर्जी क्लब्स/वोटों के पैसे उनसे दो दो बार क्यों माँगे जा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि उम्मीदवार को जो पैसे खर्च करने होते हैं, उसमें एक बड़ा हिस्सा फर्जी क्लब्स/वोटों के ड्यूज चुकाने में होता है । विक्रम शर्मा और आरके शाह पिछले लायन वर्ष में इस मद में पैसे लगा चुके हैं; उनसे अब इस वर्ष दोबारा से पैसे माँगे जा रहे हैं । नजदीकियों के अनुसार, विक्रम शर्मा और आरके शाह को इस पर आपत्ति है और इसीलिए वह चुप लगा कर बैठ गए हैं । नजदीकियों के अनुसार, वह भी समझ तो रहे हैं कि यह पैसे तो उन्हें देने ही पड़ेंगे; फिर भी यदि वह चुप बैठ गए हैं तो इसलिए ताकि वह दूसरे खर्चों से बच सकें । दोनों ही जानते हैं कि नेताओं द्धारा तय किए गए फार्मूले पर वह यदि अभी से उत्साह दिखायेंगे तो नेता लोग उनसे फर्जी क्लब्स/वोटों के ड्यूज तो ले ही लेंगे, दूसरे और खर्चे भी करवाने लगेंगे । विक्रम शर्मा और आरके शाह समझ रहे हैं कि नेता लोगों के पास अपने उक्त फार्मूले को क्रियान्वित करवाने - यानि उन्हें ही गवर्नर बनवाने - के अलावा और कोई विकल्प नहीं है; इसलिए अभी चुप बैठ कर वह जितने जो पैसे बचा सकते हैं, बचा लें । विक्रम शर्मा और आरके शाह की इस चाल ने नेताओं को सचमुच में असहाय बना दिया है और नेता लोग घर बैठने को मजबूर हो गए हैं ।
नेताओं की इस मजबूरी में सुरेश जिंदल को अपना काम बनता हुआ दिख रहा है । उनके नजदीकियों का कहना है कि वह दिल्ली के नेताओं को यह ऑफर देना चाहते हैं कि इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हरियाणा का जो नंबर है, वह नंबर यदि उन्हें दे दिया जाये तो वह सारा खर्चा उठाने के लिए तैयार हैं । उनके कुछेक नजदीकियों का यह भी सुझाव है कि वीके हंस के बाद वाले वर्ष में गवर्नर बनने के लिए जो भी इच्छुक हो, दिल्ली के नेता उसे तैयार कर लें और उससे भी पैसे खर्च करवाएँ - और मौज लें ! विक्रम शर्मा और आरके शाह यदि 'होशियारी' दिखा रहे हैं तो उन्हें किनारे करें । सुरेश जिंदल का संभावित ऑफर और उनके नजदीकियों का सुझाव तो अच्छा है, और दिल्ली के नेताओं के लिए उसे स्वीकार करना कोई मुश्किल भी नहीं होगा । समस्या लेकिन यह है कि सुरेश जिंदल दिल्ली के नेताओं के पास सचमुच में आते 'कैसे' हैं और 'किस जरिये से' आते हैं । सुरेश जिंदल अभी केएल खट्टर और चंद्रशेखर मेहता के नजदीक 'देखे' जा रहे हैं । केएल खट्टर उनकी उम्मीदवारी को जिस तरह से आगे बढ़ा रहे हैं, उससे उनका काम बनने की बजाये बिगड़ता ज्यादा दिख रहा है । पिछली बार भी सुरेश जिंदल का मामला सिर्फ इसलिए ही बिगड़ गया था, क्योंकि उनकी उम्मीदवारी के लिए नेताओं के बीच ही ठीक तरह से समर्थन नहीं जुटाया जा सका था । पिछली बार के अपने उसी अनुभव से सबक लेकर सुरेश जिंदल इस बार सिर्फ केएल खट्टर और चंद्रशेखर मेहता के भरोसे ही नहीं रहना चाहते हैं, और इसीलिए उन्होंने अपनी तरफ से भी दिल्ली के नेताओं से तार जोड़ने की कवायद शुरू की है ।
सुरेश जिंदल की इस कवायद से दिल्ली के नेताओं को विक्रम शर्मा व आरके शाह की 'होशियारी' से निपटने में मदद तो मिलेगी - लेकिन सुरेश जिंदल भी चूँकि कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं, इसलिए दिल्ली के नेताओं को अभी असहाय ही बने रहना पड़ेगा । इसके अलावा, विक्रम शर्मा और आरके शाह से जब तक पूरी तरह जबाव न मिल जाए तब तक दिल्ली के नेताओं के लिए सुरेश जिंदल को हरी झंडी देना भी मुश्किल ही होगा । जाहिर है कि सारा मामला इस तरह पेचीदा हो गया है कि नेताओं को भी समझ में नहीं आ रहा है कि वह करें तो क्या करें ? डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में नेताओं को इतना असहाय शायद ही कभी देखा गया होगा ।

Tuesday, January 27, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में नोमीनेटिंग कमेटी के नतीजे से निराश और नाराज तथा अपने आप को ठगा हुआ पा रहे लोगों की तरफ से दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी पर नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को चैलेंज करने के लिए लगातार पड़ रहे दबाव ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प मोड़ दिया

गाजियाबाद । शरत जैन और सतीश सिंघल की अधिकृत हो चुकी उम्मीदवारी को चैलेंज करने को लेकर डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह की सुगबुगाहट है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का पारा खासा गर्म हो उठा है । नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला आने के बाद यूँ तो आमतौर पर चुनावी सक्रियता ढीली पड़ जाती रही हैं, लेकिन इस बार उल्टा ही हो रहा है । नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस तरह की निराशा और असंतोष है, उसके कारण प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवारों पर चैलेंज करने के लिए लोगों का दबाव पड़ रहा है । रोटरी की चुनावी राजनीति में ऐसे मौके कम ही देखने को मिलते हैं जब नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को चैलेंज करने के लिए प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार से भी ज्यादा उत्सुक दूसरे लोग हों । डिस्ट्रिक्ट 3012 के पैतृक डिस्ट्रिक्ट 3010 में तो पहले कभी शायद ही ऐसा मौका बना हो । अभी तक देखने में यही आया है कि नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले से असंतुष्ट प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार खुद ही चैलेंज करने के बारे में सोचता है, और अधिकृत उम्मीदवार व उसके समर्थक ज्यादा सक्रिय नजर आते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3012 के पहले ही चुना(वों) में लेकिन इसका ठीक उल्टा देखने में आ रहा है । यहाँ प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवारों की तुलना में डिस्ट्रिक्ट के लोग चैलेंज करने के बारे में ज्यादा 'तैयारी' दिखा रहे हैं ।
ऐसा दरअसल इसलिए भी है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट के लोगों को पहले से ही यह आशंका थी कि डिस्ट्रिक्ट पर अपना कब्जा बनाये रखने के लिए अरनेजा गिरोह के नेता किसी भी तरह की हेराफेरी कर सकते हैं । लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट 3010 में तो इनकी हरकतों पर लगाम रखने के लिए दूसरे नेता भी थे, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3012 में तो यह बिलकुल ही बेलगाम हो जायेंगे - इसलिए लोगों को खुद ही सक्रिय होना पड़ेगा । खास बात यह है कि लोग समझ रहे हैं और स्वीकार कर रहे हैं कि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल चूँकि बहुत ही घाघ किस्म के हैं, इसलिए जीतने के अवसर बनाने के मामले में आगे दिखेंगे - और इसी कारण से इनके खिलाफ लगातार सक्रिय रहने की जरूरत है । लोगों को अनुमान था कि नोमीनेटिंग कमेटी में यह लोग कोई न कोई खेल कर लेंगे और इसीलिए लोगों को नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला मंजूर नहीं हुआ है और वह प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवारों पर चैलेंज करने के लिए दबाव बना रहे हैं ।
लोगों के इस मूड को देखते/भाँपते हुए अधिकृत उम्मीदवार और उनके समर्थकों के सामने समस्या यह आ खड़ी हुई है कि वह कैसे चैलेंज करने की कोशिशों को रोकें ? शरत जैन और उनके समर्थकों के लिए तो यह इसलिए भी बड़ी समस्या हो गई है क्योंकि एक तरफ तो वह 'बड़ी जीत' का दावा करते हुए फूल कर कुप्पा हो रहे हैं, और दूसरी तरफ चैलेंज से डर रहे हैं । चैलेंज को रोकने की अपनी कोशिशों पर उन्हें लोगों से यही सुनने को मिल रहा है कि नोमीनेटिंग कमेटी में मिली 'बड़ी जीत' यदि सचमुच की जीत है तो फिर चैलेंज से डर क्यों रहे हो - चैलेंज हो जाने दो और सीधे चुनाव का सामना भी कर लो । शरत जैन की उम्मीदवारी को चैलेंज करना लोगों को इसलिए भी जरूरी लग रहा है क्योंकि वह मान रहे हैं कि शरत जैन एक कठपुतली गवर्नर ही बनेंगे, जबकि डिस्ट्रिक्ट को एक ऐसे गवर्नर की जरूरत है जो सबको साथ लेकर चल सके । जाहिर तौर पर यह सिर्फ विरोधियों का ही आरोप नहीं  है, बल्कि सत्ता खेमे के लोगों का भी स्वीकार है कि नोमीनेटिंग कमेटी में शरत जैन को जो जीत मिली है उसे मुकेश अरनेजा ने तिकड़मों से प्राप्त किया है जिसका भांडा सीधे हो सकने वाले चुनावों में फूट सकता है; और जो लोग शरत जैन के पक्ष में भी हैं वह भी मान रहे हैं कि शरत जैन की गवर्नरी में चलेगी तो रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा की मनमानी ही । इसलिए वह हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को चैलेंज न मिले और उनका भांडा फूटने से बचा रह जाए । उनके लिए मुसीबत की बात लेकिन यह हो रही है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के मूड और तर्कों के सामने उनकी कोशिशों के लिए रास्ता बनता नहीं दिख रहा है ।
सतीश सिंघल के लिए 'बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने' की तर्ज पर मिली जीत को बचाए रखने की और भी ज्यादा बड़ी चुनौती है । दरअसल सतीश सिंघल की जीत से लोग इसलिए भी दुखी और निराश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि सतीश सिंघल की इस जीत ने उनके साथ ज्यादा बड़ा छल किया है । सतीश सिंघल को खुद भी इस जीत का अनुमान नहीं था । वह तो बहुत पहले ही अपने आपको चुनावी दौड़ से बाहर हो चुका मान बैठे थे और एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय नहीं रह गए थे । एक उम्मीदवार के रूप में सतीश सिंघल ने लोगों को बुरी तरह से निराश ही किया है और इसीलिए उनके अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने में लोगों ने अपने आप को ठगा हुआ महसूस किया है । यही कारण है कि उनकी उम्मीदवारी के चैलेंज समर्थन करने के लिए तत्पर हैं । सतीश सिंघल के लिए मुसीबत की बात यह है कि उनकी वकालत करने तथा उनके सामने आने वाले चैलेंज को टलवाने के लिए कोई आगे ही नहीं आ रहा है और उन्हें प्रसून चौधरी के नजदीकियों से खुद ही सिफारिशें करना पड़ रही हैं ।
नोमीनेटिंग कमेटी के जरिये चुनाव कराने का जो 'तमाशा' हुआ है और उसका जो नतीजा आया है, उसने डिस्ट्रिक्ट में लोगों को जिस तरह से निराश और नाराज किया है - उसके कारण दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी पर नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को चैलेंज करने के लिए लगातार दबाव पड़ रहा है । यह दबाव डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में नई गर्माहट पैदा कर रहा है ।

Sunday, January 25, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजित डिस्ट्रिक्ट्स में डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ साथ सरोज जोशी की जीत में चूँकि मंजीत साहनी-आशीष घोष-अमित जैन की जीत का संदेश मुखर होकर सामने आया है, इसलिए शरत जैन की जीत से मिलने वाला अरनेजा गिरोह का मजा किरकिरा हुआ

नई दिल्ली । रवि चौधरी की पराजय ने अरनेजा गिरोह के लिए शरत जैन की जीत के रंग को फीका कर दिया है । प्रसून चौधरी को जितवाने की अरनेजा गिरोह की कोशिशों को जो झटका लगा है, वह सुरेश भसीन के ऐन मौके पर अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने के फैसले से भी बड़ा झटका साबित हुआ । उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के चुनाव में अरनेजा गिरोह इस ऐलान के साथ चुनावी मैदान में उतरा था कि वह दोनों डिस्ट्रिक्ट में अपनी सत्ता स्थापित करेगा । इस ऐलान को साधने के लिए उसने पहले शरत जैन, डॉक्टर सुब्रमणियन, सतीश सिंघल और रवि चौधरी को अपने उम्मीदवार के रूप में घोषित किया । अरनेजा गिरोह को पहला झटका तब लगा जब डॉक्टर सुब्रमणियन उनकी छाया से बाहर निकल गए । अरनेजा गिरोह को तब सुरेश भसीन की उम्मीदवारी का झंडा उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा । डॉक्टर सुब्रमणियन ने अरनेजा गिरोह को छोड़ा, तो अरनेजा गिरोह ने सतीश सिंघल से पीछा छुड़ाया । सतीश सिंघल दरअसल कभी भी एक उम्मीदवार के रूप में व्यवहार करते हुए दिखे ही नहीं और 'हर तरह से' वह दूसरों के भरोसे ही थे । अरनेजा गिरोह ने भाँप लिया कि सतीश सिंघल के मुकाबले प्रसून चौधरी का पलड़ा भारी है, सो उसने प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की कमान सँभाल ली ।
'अपने' उम्मीदवारों की इस अदला-बदली के बाद भी अरनेजा गिरोह के नेताओं का ज्यादा ध्यान शरत जैन और रवि चौधरी की उम्मीदवारी पर था । सुरेश भसीन की उम्मीदवारी से उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिए सुरेश भसीन को उन्होंने बेसहारा ही छोड़ दिया । प्रसून चौधरी और सतीश सिंघल वाले चुनाव में उन्होंने मान लिया कि प्रसून चौधरी को उनकी मदद की ज्यादा जरूरत नहीं हैं और वह खुद ही सतीश सिंघल से निपट लेंगे । इसलिए अपनी दूसरी पंक्ति के नेताओं को प्रसून चौधरी के साथ लगा कर वह निश्चिंत हो गए । अरनेजा गिरोह ने अपना सारा दाँव शरत जैन और रवि चौधरी पर लगाया । इसमें भी शरत जैन उनकी प्राथमिकता में रहे । दरअसल शरत जैन को किसी भी तरह से चुनाव जितवाना उनकी व्यावहारिक राजनीतिक मजबूरी भी थी । रवि चौधरी की जीत से तो उनका सिर्फ राजनीतिक ऑरा (आभामंडल) ही बढ़ता, लेकिन शरत जैन की जीत से तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट पर राज करने का मौका मिलेगा । शरत जैन से ही उन्हें व्यावहारिक रूप में सत्ता का सुख मिलेगा, क्योंकि जेके गौड़ की तरह वह शरत जैन को ही कठपुतली बना कर रख सकेंगे ।
शरत जैन को चुनाव जितवाने की अरनेजा गिरोह की शुरू से ही जोरदार तैयारी थी, जो ऐन वोटिंग के मौके तक जारी रही । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना के ढीले-ढाले रवैये के चलते उनके लिए 'चुनावी बेईमानी' करना आसान हुआ और जोन बनाने के मामले में तथा नोमीनेटिंग कमेटी के लिए चयन करने की टाइमिंग व प्रक्रिया में मनमानी करते हुए उन्होंने शरत जैन की जीत के लिए माहौल तैयार किया और शरत जैन को जितवा लिया । सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी के चुनाव में उनका आकलन और उनकी तैयारी हालाँकि फेल हो गई । अरनेजा गिरोह के साथ साथ दूसरे कई अन्य लोगों को भी सतीश सिंघल की जीतने की उम्मीद नहीं थी । चुनाव - प्रत्येक चुनाव दरअसल मैनेजमेंट के साथ साथ एक जुआँ भी होता है और किस्मत की बात भी होती है । मैनेजमेंट प्रसून चौधरी का अच्छा था, सतीश सिंघल तो चुनाव को जुएँ की तरह ले रहे थे । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी और उसके नतीजे की तुलना फूलन देवी के चुनाव से ही की जा सकती है । फूलन देवी जब लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनी थीं, तो लोगों के बीच बनी उनकी नकारात्मक छवि के चलते किसी को भी उनके जीतने की उम्मीद नहीं थी । किंतु चूँकि किस्मत उनके साथ थी, इसलिए वह चुनाव जीत गईं । सतीश सिंघल के साथ भी ऐसा ही हुआ - लोगों के बीच, उनके अपने नजदीकियों तक के बीच उनकी नकारात्मक छवि होने के कारण किसी को उनके जीतने की उम्मीद नहीं थी; लेकिन जैसे किस्मत के भरोसे फूलन देवी उम्मीद न होने के बावजूद चुनाव में विजयी रही थीं, उसी तरह सतीश सिंघल भी उम्मीद न होने के बावजूद किस्मत के भरोसे चुनाव जीत गए ।
अरनेजा गिरोह को लेकिन रवि चौधरी की हार से ज्यादा बड़ा झटका लगा है । रवि चौधरी को चुनाव जितवा कर अरनेजा गिरोह डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजन के बाद बने दोनों डिस्ट्रिक्ट में अपनी चौधराहट को साबित करने के जिस इंतजाम में लगा था, रवि चौधरी के मुकाबले सरोज जोशी को मिली जीत से दरअसल उसे झटका लगा है । रवि चौधरी को चुनाव जितवाने के लिए मुकेश अरनेजा के साथ साथ दीपक तलवार और डॉक्टर सुशील खुराना जोरशोर से लगे हुए थे; पर्दे के पीछे से विनोद बंसल भी मदद कर रहे थे - लेकिन फिर भी रवि चौधरी को नहीं जितवाया जा सका । अरनेजा गिरोह के लिए ज्यादा झटके की बात वास्तव में यह रही कि मंजीत साहनी के सहयोग से आशीष घोष और अमित जैन की जोड़ी से उन्हें हारना पड़ा । इस हार ने सीओएल के चुनाव में आशीष घोष के हाथों रमेश अग्रवाल को मिली हार के घाव को फिर से हरा कर दिया - वास्तव में इसलिए रवि चौधरी की हार ने अरनेजा गिरोह को ज्यादा दर्द दिया है । अरनेजा गिरोह के नेता लोग चूँकि चुनावी राजनीति के संदर्भ में मंजीत साहनी, आशीष घोष, अमित जैन की भूमिका को तवज्जो नहीं देते हैं, इसलिए बार बार उनसे हारने से उन्हें अपनी तौहीन होती हुई महसूस हो रही है । रवि चौधरी की हार और सरोज जोशी की जीत में चूँकि मंजीत साहनी-आशीष घोष-अमित जैन की जीत का संदेश मुखर होकर सामने आया है, इसलिए शरत जैन की जीत से मिलने वाला अरनेजा गिरोह का मजा किरकिरा हो गया है ।

Saturday, January 24, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल काउंसिल के लिए कभी चुनाव न लड़ने का ऐलान करने के बावजूद चुनावी तैयारी करते दिख रहे अमरेश वशिष्ठ सेंट्रल इंडिया रीजन में अपनी उम्मीदवारी को सचमुच प्रस्तुत करेंगे या समर्थकों की सलाह को मानते हुए चुनाव से दूर रहेंगे

मेरठ । अमरेश वशिष्ठ द्धारा इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी संभावित उम्मीदवारी को लेकर सस्पेंस बनाये रखने के कारण उनके नजदीकियों व शुभचिंतकों के लिए खासी दुविधा की स्थिति पैदा हो गई है । अपनी उम्मीदवारी को लेकर असमंजसता में चल रहे अमरेश वशिष्ठ के नजदीकियों व शुभचिंतकों के लिए समस्या की बात यह हुई है कि सेंट्रल इंडिया रीजन क्षेत्र से सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले दूसरे उम्मीदवार उनसे अपने साथ जुड़ने के लिए संपर्क कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए उन्हें जबाव देना मुश्किल हो रहा है । नजदीकियों व शुभचिंतकों का कहना है कि अमरेश वशिष्ठ को यदि उम्मीदवार नहीं होना है, तो साफ साफ कहें ताकि वह दूसरे उम्मीदवारों के साथ जुड़ सकें । अमरेश वशिष्ठ के असमंजस के चक्कर में उनके नजदीकी और शुभचिंतक खुद को फँसा हुआ पा रहे हैं । नजदीकियों व शुभचिंतकों का कहना है कि अमरेश वशिष्ठ अपनी उम्मीदवारी को लेकर किसी से 'हाँ' तो किसी से 'अभी देखते हैं' जैसे जबाव देते हैं ।
अमरेश वशिष्ठ के कुछेक नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि अमरेश वशिष्ठ ने लगता है कि अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का मन बना लिया है; और इसीलिए अपनी हर छोटी-बड़ी गतिविधियों की तस्वीरें फेसबुक पर लगाते रहते हैं और प्रत्येक शुभ अवसर पर लोगों को शुभकामनाएँ बाँटते रहते हैं । उनका कहना है कि अमरेश वशिष्ठ जब लोहिड़ी, वसंत पंचमी जैसे मौकों पर लोगों को शुभकामनाएँ दे रहे हों, तो लोगों को उम्मीद करना चाहिए कि वह जल्दी ही सेंट्रल काउंसिल के लिए वोट माँगने आ रहे हैं । इस तर्क में दम तो है, लेकिन फिर सवाल यह है कि अमरेश वशिष्ठ तब अपनी उम्मीदवारी के लिए साफ घोषणा करने से बच क्यों रहे हैं ? उनके नजदीकियों के पास इसका भी बड़ा कन्विन्सिंग जबाव है । उनका कहना है कि अमरेश वशिष्ठ ने खुद तो उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का मन बना लिया है, लेकिन इसके लिए अपने समर्थकों को वह राजी नहीं कर पाए हैं । नजदीकियों का दावा है कि उनके कई समर्थक उन्हें चुनावी पचड़े से दूर रहने की ही सलाह दे रहे हैं । अमरेश वशिष्ठ अपने ऐसे समर्थकों को राजी कर लेने के बाद ही अपनी उम्मीदवारी की विधिवत घोषणा करना चाहते हैं ।
अमरेश वशिष्ठ के जो समर्थक उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ हैं, उनका कहना है कि पिछली बार के चुनाव में मिली हार के बाद अमरेश वशिष्ठ ने आगे चुनाव न लड़ने की सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी - ऐसे में अब वह किस मुँह से अपनी उम्मीदवारी लेकर लोगों के पास जायेंगे । इसके अलावा भी, उनके समर्थकों का कहना है कि पिछले दो चुनावों में अमरेश वशिष्ठ ने उम्मीदवार बन कर नतीजा देख लिया है - दोनों ही चुनावों में उनकी खासी बुरी गत बनी । समर्थकों का कहना है कि अगले चुनाव में भी उन्हें किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं करना चाहिए और इसलिए चुनाव के झमेले से दूर ही रहना चाहिए । उल्लेखनीय है कि अमरेश वशिष्ठ ने वर्ष 2009 और वर्ष 2012 में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा था और दोनों ही बार वह जीत से बहुत दूर ही रहे थे । वर्ष 2009 में सेंट्रल काउंसिल के लिए सेंट्रल इंडिया रीजन में चार सीटों के लिए चुनाव हुआ था, जिसमें 13 उम्मीदवार थे । अमरेश वशिष्ठ उस चुनाव में 10वें नंबर पर रहे थे । वर्ष 2012 में सेंट्रल काउंसिल के लिए सेंट्रल इंडिया रीजन में पाँच सीटों के लिए चुनाव हुआ था, जिसमें 14 उम्मीदवार थे । इस बार अमरेश वशिष्ठ को पिछली बार की तुलना में वोट तो कुछ ज्यादा मिले थे, लेकिन पोजीशन उनकी इस बार भी 10वीं ही थी । इस नतीजे से अमरेश वशिष्ठ को ऐसा झटका लगा था कि उन्होंने भविष्य में कभी चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया था ।
लेकिन जैसे जैसे चुनाव पास आ रहे हैं, अमरेश वशिष्ठ के 'चुनावी कीटाणु' जोर मारते हुए दिख रहे हैं । उनके नजदीकियों का यह कहना उचित ही जान पड़ता है कि यह 'चुनावी कीटाणुओं' का ही असर है कि अमरेश वशिष्ठ लोहड़ी, वसंत पंचमी आदि की भी शुभकामनाएँ लोगों को दे रहे हैं और लोगों की नजरों में बने रहने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं । जो समर्थक उन्हें चुनाव से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं, उन्हें अमरेश वशिष्ठ यह कह कर समझाने/राजी करने का प्रयास कर रहे हैं कि इस बार सेंट्रल इंडिया रीजन में दो सीटें खाली हो रही हैं और इस कारण से उनके लिए सफल होने का अच्छा मौका है । समर्थकों का कहना लेकिन यही है कि मौका तो पिछली बार भी अच्छा था, जब यहाँ एक सीट बढ़ी थी - किंतु अमरेश वशिष्ठ उसका फायदा नहीं उठा पाए थे । पिछले नतीजों को देखते हुए अब की बार भी उनके सफल होने की कोई संभावना नहीं दिखती है । समर्थकों को संभावना भले ही न दिख रही हो, अमरेश वशिष्ठ को जरूर दिख रही है और इसीलिए वह अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने की तैयारी करते नजर आ रहे हैं । वह अपनी उम्मीदवारी को सचमुच प्रस्तुत करेंगे या समर्थकों की सलाह को मानते हुए चुनाव से दूर रहेंगे - यह लेकिन अगले कुछ दिनों में साफ होगा ।

Friday, January 23, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी के बीच तुलना करते हुए लोगों ने पाया कि रोटरी का भविष्य प्रसून चौधरी के साथ है; और इसीलिए लोगों के बीच पड़े/बने प्रभाव में प्रसून चौधरी को सतीश सिंघल के मुकाबले बढ़त मिलती दिख रही है

नई दिल्ली । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने के उद्देश्य से चुनाव से दो दिन पहले हुई मीटिंग में कम रही उपस्थिति ने सतीश सिंघल के समर्थकों को तगड़ा झटका दिया है । सतीश सिंघल की तरफ से चूँकि यह एक ही मीटिंग होनी थी, इसलिए इसमें अच्छी-खासी भीड़ होने की उम्मीद की जा रही थी; लेकिन लोगों की कम उपस्थिति ने सतीश सिंघल के हमदर्दों को बुरी तरह निराश किया । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के पक्ष में बनियाबाद चलाने के बावजूद उनकी उम्मीदवारी के लिए हुई मीटिंग में लोगों के न जुटने से सतीश सिंघल के समर्थकों को चिंता में डाल दिया है । हालाँकि सतीश सिंघल के नजदीकियों का कहना है कि इस मीटिंग में ज्यादा लोगों को बुलाया ही नहीं गया था, और जिन व जितने लोगों को बुलाया था उतने लोग मीटिंग में पहुँचे - और इसलिए मीटिंग में कम रही उपस्थिति कोई चिंता की बात नहीं है । सतीश सिंघल के नजदीकियों का दावा है कि मीटिंग में सिर्फ 'काम' के लोगों को बुलाया गया था, और वह आए भी ।
नजदीकियों और समर्थकों की इस परस्पर विपरीत प्रतिक्रिया से यही संकेत और सुबूत मिलता है कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के अभियान में तालमेल की भारी कमी है । सतीश सिंघल के लिए मुसीबत की बात यह रही है कि उनके समर्थक समझे जाने वाले लोग ही उनका मजाक बनाते देखे/सुने गए हैं । रोटरी क्लब दिल्ली विकास के शिव शंकर अग्रवाल लोगों को बताते सुने/देखे गए हैं कि सतीश सिंघल जो चार-पाँच पेज का विजन डॉक्युमेंट लोगों को दिखाते रहते हैं उसे सतीश सिंघल के लिए उन्होंने तैयार किया है; और सतीश सिंघल ने तो उसे शायद पढ़ा भी नहीं है, क्योंकि उसमें लिखी बातें वह कभी कहते/बताते ही नहीं हैं । सतीश सिंघल के समर्थकों को सतीश सिंघल से शिकायत रही है कि अपने पूरे अभियान में उन्होंने लोगों के बीच सिर्फ तीन बातें ही कहीं हैं : वह एक पुराने रोटेरियन हैं; उन्होंने ब्लड बैंक बनाया है; और उनका क्लब मेजर डोनर क्लब है; - और इन तीन बातों के आधार पर ही वह माँग कर रहे हैं कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बना दो । सतीश सिंघल ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत बड़े जोरशोर से की थी और अपने चुनाव अभियान में कई प्रमुख रोटेरियंस का समर्थन भी उन्होंने प्राप्त किया था; किंतु अपने व्यवहार और अपने रवैये के चलते वह न तो उस जोरशोर को बनाये रख सके और न ही अपने समर्थकों को अपने साथ जोड़े रख सके । शुरू में सतीश सिंघल के साथ दिख रहे कई लोग अब प्रसून चौधरी के साथ नजर आ रहे हैं ।
प्रसून चौधरी के साथ लोगों का चूँकि ज्यादा परिचय नहीं था, इसलिए सतीश सिंघल के मुकाबले उनके सामने गंभीर चुनौती थी । लेकिन लोगों को जैसे जैसे प्रसून चौधरी के बारे में परिचय मिलना शुरू हुआ, वैसे वैसे लोगों के बीच उनकी पैठ बनती गई । लोगों को यह जानकर वास्तव में हैरानी हुई और अच्छा लगा कि क्लब और डिस्ट्रिक्ट में प्रसून चौधरी की जो उपलब्धियाँ रहीं, उनके अलावा प्रसून चौधरी की बर्मिंघम, मॉन्ट्रियल और सिडनी में आयोजित हुईं तीन रोटरी इंटरनेशनल कन्वेंशन में भी सक्रिय भागीदारी रही और देश के बाहर विभिन्न देशों के 70 से अधिक क्लब्स के आयोजनों में शामिल होने का उन्हें मौका मिला है । प्रसून चौधरी ने दरअसल अपनी कामकाजी सक्रियता के साथ रोटरी का तानाबाना कुछ इस तरह बुना जिससे कि उन्होंने रोटरी की वास्तविक भावना को चरितार्थ किया ।
प्रसून चौधरी मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं और उनकी कंपनी के दिल्ली, मुंबई व अमेरिका में ऑफिस हैं । वह भारत सहित एशिया, अमेरिका और यूरोप की तमाम बड़ी कंपनियों के सलाहकार हैं । दिल्ली आईआईटी और आईआईएम कोलकाता सहित देश के प्रमुख शिक्षा संस्थानों में वह विजिटिंग फैकल्टी हैं । देशी-विदेशी समाचार पत्रों तथा जर्नल्स में उनके लेख आदि प्रकाशित होते रहे हैं । कामकाजी सक्रियता के चलते प्रसून चौधरी को अक्सर ही अलग-अलग देशों की यात्रा पर जाना होता है । प्रसून चौधरी दुनिया के जिस भी शहर में होते हैं, वहाँ की रोटरी गतिविधियों से परिचित होने तथा उससे जुड़ने की हर संभव कोशिश करते हैं । दरअसल उनकी इसी कोशिश का नतीजा रहा कि देश के बाहर विभिन्न देशों के 70 से अधिक क्लब्स के आयोजनों से परिचित होने तथा उनमें शामिल होने का मौका उन्हें मिला - जिससे रोटरी का उन्हें व्यापक अनुभव हो सका ।
प्रसून चौधरी ने कार्पोरेट क्षेत्र के साथ अपने संपर्कों के चलते ही अपने क्लब के कई प्रोजेक्ट विभिन्न कंपनियों के साथ मिल कर किए । अपने विजन डॉक्युमेंट में प्रसून चौधरी इस बात पर लगातार जोर देते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह कार्पोरेट क्षेत्र के साथ मिल कर प्रोजेक्ट्स करने पर जोर देंगे, जिससे कि रोटेरियंस पर आर्थिक बोझ पड़े बिना बड़े प्रोजेक्ट्स किए जा सकेंगे और रोटरी का विस्तार भी हो सकेगा । प्रसून चौधरी का यह प्रोफाइल और उनकी कार्ययोजना स्वाभाविक रूप से किसी को भी आकर्षित करेगी ही - और उसने लोगों को आकर्षित किया भी । प्रसून चौधरी को लोगों के बीच पैठ बनाने में आसानी इसलिए भी हुई, क्योंकि उनके प्रतिद्धंद्धी सतीश सिंघल अपनी कोई कार्य योजना प्रस्तुत ही नहीं कर सके । सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी में एक बड़ा अंतर यह रहा कि सतीश सिंघल इसलिए गवर्नर बनने की उम्मीद रखते हैं क्योंकि उन्होंने पूर्व में कुछ काम किए हैं, और प्रसून चौधरी इसलिए गवर्नर बनने की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि उन्हें भविष्य में कुछ काम करने हैं । यानि सतीश सिंघल को ईनाम के रूप में गवर्नरी चाहिए और प्रसून चौधरी को जिम्मेदारी के रूप में गवर्नरी चाहिए ।
सतीश सिंघल ने जिस तरह से अपना अभियान चलाया - उससे उन्होंने आभास दिया कि अब वह थक गए हैं, उन्हें जो करना था वह कर चुके हैं, उन्होंने जो किया है उसका 'भुगतान' करो और उन्हें गवर्नरी सौंपो । प्रसून चौधरी ने जिस तरह से अपना अभियान चलाया - उससे उन्होंने आभास दिया कि रोटरी में बहुत कुछ करने के लिए उनके पास एक सोच है, उस सोच को क्रियान्वित करने के लिए उनके पास सोर्स है, और सोर्स का उपयोग करने के लिए उनके पास जोश है । सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी के बीच तुलना करते हुए लोगों ने पाया कि रोटरी का भविष्य प्रसून चौधरी के साथ है । इसीलिए तैयारियों और लोगों के बीच पड़े/बने प्रभाव में प्रसून चौधरी को सतीश सिंघल के मुकाबले बढ़त मिलती दिख रही है ।
सतीश सिंघल की तरफ से अपने आप को मुकाबले में बनाये रखने के लिए आखिरी हथियार के रूप में बनियाबाद का दाँव चला है । सतीश सिंघल के नजदीकियों का कहना है कि अब बनियाबाद ही सतीश सिंघल को बचा सकता है । रोटरी की चुनावी राजनीति से परिचित लोगों का मानना और कहना हालाँकि यह है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में उम्मीदवार लोग अक्सर जातपात का सहारा लेते तो हैं, किंतु उन्हें सचमुच में सहारा मिल नहीं पाता है । रोटरी में कुछेक लोग तो जरूर जातपात मानते/निभाते हैं, लेकिन अधिकतर लोग इसे रोटरी के लिए गैरजरूरी ही मानते हैं और व्यवहार व कामकाज के आधार पर ही फैसले करते हैं । ऐसे में सतीश सिंघल के लिए सचमुच में परेशानी आ पड़ी है और उनके समर्थकों को भी लगने लगा है कि बनियाबाद का हथियार नहीं चला तो फिर तो प्रसून चौधरी से आगे निकल पाना उनके लिए मुश्किल ही होगा ।

Thursday, January 22, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 जैसे एक नए बने डिस्ट्रिक्ट में अच्छा माहौल बने और किसी को भी रमेश अग्रवाल व मुकेश अरनेजा के हाथों बेइज्जत न होना पड़े, इसके लिए नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों द्धारा ही निष्पक्ष चुनाव कराने की और नोमीनेटिंग कमेटी में गुप्त मतदान की माँग की जा रही है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना अधिकृत उम्मीदवा(रों) का चयन गुप्त मतदान से कराने की माँग को लेकर खासे असमंजस में हैं । उनका असमंजस चुनाव कमेटी के सदस्य मुकेश अरनेजा के कारण है । संजय खन्ना के नजदीकियों का कहना है कि चुनाव कमेटी के सदस्य के रूप में मुकेश अरनेजा का जो रवैया रहा है, उसे देखते हुए संजय खन्ना को डर है कि गुप्त मतदान की बात पर मुकेश अरनेजा बखेड़ा खड़ा कर सकते हैं और फिर नाहक ही फजीता होगा । मजे की बात यह है कि अधिकृत उम्मीदवारों का चयन करने के लिए गुप्त मतदान की जो माँग उठी है, उसके लिए भी मुकेश अरनेजा एण्ड कंपनी को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । स्वाभाविक है कि जो समस्या मुकेश अरनेजा ने ही पैदा की है, उस समस्या को हल करने का प्रयास मुकेश अरनेजा भला क्यों सफल होने देंगे ? संजय खन्ना के लिए चुनौती की बात यह है कि वह अधिकृत उम्मीदवा(रों) का चयन निष्पक्ष तरीके से कैसे करवाएँ ? अधिकृत उम्मीदवा(रों) का चयन निष्पक्ष तरीके से करवाने के लिए ही गुप्त मतदान की माँग की जा रही है । यह माँग चूँकि नोमीनेटिंग कमेटी के लिए आने वाले वरिष्ठ रोटेरियंस की तरफ से आई है, इसलिए इस माँग का महत्व खासा बढ़ जाता है ।
नोमीनेटिंग कमेटी के लिए जिन रोटेरियंस के नाम गए हैं, वह शरत जैन और दीपक गुप्ता के बीच होने वाले चुनाव के संदर्भ में अरनेजा गिरोह के रवैये के चलते अपने आप को खासा फँसा हुआ पा रहे हैं । अरनेजा गिरोह के नेताओं - खासकर मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की तरफ से नोमीनेटिंग कमेटी के लिए चुने गए सदस्यों पर दबाव बनाया गया है कि उन्होंने यदि शरत जैन को नहीं चुना तो फिर उनसे 'बदला' लिया जायेगा । डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए शरत जैन को चुनवाना/जितवाना इन दोनों को अपनी चौधराहट को बनाये रखने के लिए जरूरी लगता है; और इसके लिए यह कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं ।
इस संबंध में दिलचस्प उदाहरण रोटरी क्लब दिल्ली रिवरसाइड का है । रोटरी क्लब दिल्ली रिवरसाइड ने पिछले दिनों पेम थर्ड का आयोजन किया था, जिसमें रमेश अग्रवाल ने कई तरह की बेहूदगियाँ कीं और क्लब के लोगों को तरह तरह से परेशान और बेइज्जत किया । इस कारण से क्लब के लोगों में रमेश अग्रवाल के प्रति बेहद नाराजगी है और वह जान/समझ रहे हैं कि शरत जैन की उम्मीदवारी का समर्थन करने का मतलब रमेश अग्रवाल के हाथों और परेशान व बेइज्जत होने का अवसर बनाना होगा - लेकिन रमेश अग्रवाल की धमकी के चलते खुलेआम शरत जैन की उम्मीदवारी की खिलाफत करने का वह साहस नहीं कर पा रहे हैं । क्लब के वरिष्ठ सदस्य सतीश गुप्ता के सुपुत्र मोहित गुप्ता, रमेश अग्रवाल के क्लब में सेक्रेटरी हैं और अध्यक्ष बनने की लाइन में हैं । रमेश अग्रवाल ने धमकी दी हुई है कि रिवरसाइड ने यदि कोई गड़बड़ की, तो वह मोहित गुप्ता को अध्यक्ष नहीं बनने देंगे । मोहित गुप्ता के अध्यक्ष बनने की प्रक्रिया में रमेश अग्रवाल पहले भी एक बार टाँग अड़ा चुके हैं, जिसके कारण अध्यक्ष बनने की लाइन में लगने के लिए मोहित गुप्ता को इस वर्ष दोबारा सेक्रेटरी बनना पड़ा है । इसके आलावा, दिल्ली रिवरसाइड के मनोज लांबा अगले से अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार बनने की तैयारी में हैं, इसलिए भी क्लब के लोग अरनेजा गिरोह के साथ खुलेआम पंगा लेने से बचना चाहते हैं और रमेश अग्रवाल के हाथों बुरी तरह बेइज्जत होने के बाद भी शरत जैन से दूर नहीं 'दिखना' चाहते हैं ।
शरत जैन को समर्थन दिलवाने के लिए अरनेजा गिरोह के नेताओं ने इसी तरह के हथकंडे अपनाए हुए हैं - जिसके चलते नोमीनेटिंग कमेटी के लिए चुने गए सदस्य अपने आप को फँसा हुआ पा रहे हैं और माँग कर रहे हैं कि अधिकृत उम्मीदवा(रों) को चुनने के लिए गुप्त मतदान कराया जाये, जिससे कि यह पता न चल सके कि किसने किस का समर्थन किया है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए शरत जैन और दीपक गुप्ता के बीच होने वाले चुनाव का एक दिलचस्प पहलू यह बना है कि शरत जैन जहाँ पूरी तरह मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की तिकड़मों के भरोसे हैं, वहाँ दीपक गुप्ता ने अपनी मेहनत और अपने व्यवहार से लोगों के बीच अपनी पैठ बनाई है । शरत जैन की जीत में लोगों को मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की चौधराहट के बने रहने तथा उस चौधराहट का शिकार बने रहने का भय है, जबकि दीपक गुप्ता की जीत लोगों को अपनी जीत की तरह दिख रही है । यहाँ संजय खन्ना और रवि चौधरी के बीच हुए चुनाव को याद करना प्रासंगिक होगा, जिसमें संजय खन्ना की जीत को लोगों ने अपनी जीत के रूप में देखा था; और संजय खन्ना की जीत को संभव बनाने में लगे लोगों ने यह महसूस नहीं किया था कि उन्होंने रवि चौधरी को हराया है - उन्होंने बल्कि महसूस यह किया था कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट को अरनेजा गिरोह के हाथों बदहाल होने से बचाया है । ठीक वैसा ही माहौल इस बार भी दिख रहा है - जो लोग दीपक गुप्ता के पक्ष में नजर आ रहे हैं, उनका साफ कहना है कि शरत जैन की खिलाफत वह सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वह जान/समझ रहे हैं कि शरत जैन के जीतने का मतलब मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की हरकतों को बढ़ावा देना ही होगा; क्योंकि शरत जैन तो रमेश अग्रवाल के पीछे ही खड़े दिखेंगे और एक कठपुतली गवर्नर ही होंगे और डिस्ट्रिक्ट पर असली शासन रमेश अग्रवाल व मुकेश अरनेजा का ही होगा । एक नए बने डिस्ट्रिक्ट में अच्छा माहौल बने और किसी को भी रमेश अग्रवाल व मुकेश अरनेजा के हाथों बेइज्जत न होना पड़े - इसके लिए लोगों को दीपक गुप्ता को जिताना जरूरी लग रहा है । किंतु इस जरूरत को पूरा करने के लिए आवश्यक है कि चुनाव निष्पक्ष तरीके से हों - और इसीलिए नोमीनेटिंग कमेटी में गुप्त मतदान की माँग की जा रही है ।

Wednesday, January 21, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में ज्ञानचंद गुप्ता द्धारा सतीश सिंघल की मीटिंग का जिम्मा लेने के कारण रोटरी क्लब दिल्ली विकास में मचे घमासान ने क्लब के अध्यक्ष जवाहर गुप्ता के लिए तो फजीहत खड़ी की ही है, साथ ही मीटिंग के मूल उद्देश्य को भी पृष्ठभूमि में धकेल दिया है

नई दिल्ली । ज्ञानचंद गुप्ता ने सतीश सिंघल की मीटिंग का 'जिम्मा' लेकर रोटरी क्लब दिल्ली विकास में खासा बबाल पैदा कर दिया है, और क्लब के अध्यक्ष जवाहर गुप्ता के लिए फजीहत खड़ी कर दी है । दरअसल जो बबाल पैदा हुआ, उसके लिए जवाहर गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया गया; और फिर सतीश सिंघल के समर्थकों ने जवाहर गुप्ता पर दीवाली मेले का हिसाब न देने का आरोप लगाते हुए हमला बोल दिया है । इस तरह, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के चलते डिस्ट्रिक्ट का एक प्रमुख क्लब न सिर्फ खासे विवाद में फँस गया है, बल्कि क्लब के लोग एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के काम में भी लग गए हैं ।
रोटरी क्लब दिल्ली विकास में इस कीचड़-कीचड़ खेल की शुरुआत कराने का 'श्रेय' ज्ञानचंद गुप्ता को दिया जा रहा है । ज्ञानचंद गुप्ता क्लब के एक वरिष्ठ सदस्य हैं और क्लब में उनके लिए अच्छा सम्मान है । यह सम्मान उन्होंने अपनी सक्रियता और निष्पक्षता के चलते कमाया है । उन्हें जानने वाले लोगों का कहना है कि क्लब में अपनी अच्छी सक्रियता और धाक रखने के बावजूद उन्होंने कभी भी अपनी चलाने और अपने फैसले थोपने का प्रयास नहीं किया, तथा हमेशा ही क्लब में सर्वानुमति बनाने/बनवाने का काम किया । 'ऐसी' पहचान रखने वाले ज्ञानचंद गुप्ता को जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक उम्मीदवार सतीश सिंघल की पार्टी करने/करवाने का जिम्मा लेते हुए देखा गया तो क्लब के लोगों के कान खड़े हुए । क्लब के कई वरिष्ठ सदस्यों को तो इस बात की हैरानी हुई कि ज्ञानचंद गुप्ता तो 'इस तरह' के काम में पड़ते नहीं हैं, अब ऐसा क्या हुआ कि उन्हें 'इस तरह' का काम करने के लिए आगे आना पड़ा; क्लब के कई दूसरे सदस्यों का कहना रहा कि ज्ञानचंद गुप्ता के इस कदम से क्लब का नाम खराब हुआ है । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब दिल्ली विकास में हमेशा ही इस बात का ध्यान रखा गया है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में क्लब 'खुलेआम' किसी एक पक्ष के साथ नहीं 'दिखेगा' । ज्ञानचंद गुप्ता ने लेकिन क्लब की इस नीति के खिलाफ काम किया और अपने इस काम से क्लब को बदनाम किया/करवाया है ।
क्लब में यह समझने की कोशिश हुई कि ज्ञानचंद गुप्ता ने क्लब को बदनाम करने/करवाने वाला यह काम आखिर क्यों किया ? क्लब में सभी ने समझा/माना कि इस मामले में ज्ञानचंद गुप्ता दरअसल इस्तेमाल हो गए हैं, और दूसरे लोगों ने उन्हें आगे करके अपना उल्लू सीधा कर लिया है । जाना/समझा यह गया कि उक्त मीटिंग के पीछे हैं तो दूसरे लोग, लेकिन वह खुद तो सामने आये नहीं, और उन्होंने ज्ञानचंद गुप्ता को मोहरा बना लिया । इस तरह क्लब में ज्ञानचंद गुप्ता को क्लब की बदनामी करने/करवाने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाने लगा, तो ज्ञानचंद गुप्ता के नजदीकियों ने क्लब के अध्यक्ष जवाहर गुप्ता को निशाने पर ले लिया । ज्ञानचंद गुप्ता के नजदीकियों को लगता है कि सतीश सिंघल की मीटिंग कराने का जो काम ज्ञानचंद गुप्ता ने किया है, वह जवाहर गुप्ता को पसंद नहीं आया है; और इसीलिए वह ज्ञानचंद गुप्ता को बदनाम तथा उक्त मीटिंग को खराब करने/करवाने में लगे हुए हैं । जवाहर गुप्ता को निशाने पर लेने वाले लोगों का कहना है कि लगता है कि जवाहर गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने का मन बनाया है और इसीलिए उन्हें यह बात पसंद नहीं आई है कि ज्ञानचंद गुप्ता ने सतीश सिंघल की मीटिंग कराई है । ज्ञानचंद गुप्ता के नजदीकियों का आरोप है कि दीवाली मेले के आयोजन में तो जवाहर गुप्ता ने सतीश सिंघल के क्लब के लोगों से स्पॉन्सरशिप ले ली और अब सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने में लगे हुए हैं ।
ज्ञानचंद गुप्ता के नजदीकियों ने जवाहर गुप्ता पर गंभीर हमला बोलते हुए आरोप यह लगाया है कि जवाहर गुप्ता ने दीवाली मेले के हिसाब-किताब में गड़बड़ी की है, और इसीलिए उन्होंने दीवाली मेले का हिसाब-किताब अभी तक भी नहीं दिया है । आरोप लगाने वाले लोगों का कहना है कि जवाहर गुप्ता यह तो कहते/बताते रहते हैं कि दीवाली मेले में उन्हें नुकसान हुआ है और उनके अपने बहुत से पैसे लग गए हैं, किंतु जब भी उनसे हिसाब देने/बताने को कहो तो वह कन्नी काटने लगते हैं । दीवाली मेले में कुछेक काम जिन लोगों ने यह सोच कर किए थे कि 'इस' काम में होने वाला खर्चा उन्हें दीवाली मेले के एकाउंट से मिलेगा, वह भी खर्चा मिलने का अभी तक इंतजार ही कर रहे हैं - क्योंकि जवाहर गुप्ता ने 'उस' काम का खर्चा चुकाने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । इसी से लोगों को कहने का मौका मिला है कि जवाहर गुप्ता ने पैसे इकट्ठे करने में तो दिलचस्पी दिखाई, लेकिन भुगतान करने में बचने की कोशिश की - और इसी से यह आरोप आया कि उन्होंने हिसाब-किताब में गड़बड़ी की है । जो लोग दीवाली मेले के हिसाब-किताब में जवाहर गुप्ता द्धारा गड़बड़ी किए जाने की बात को नहीं भी मानते हैं, उनका भी कहना लेकिन यह है कि जवाहर गुप्ता को हिसाब-किताब तो देना/बताना ही चाहिए । क्लब के लोगों के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों का यह जो सिलसिला चला है, उसमें यह बात भी आई कि सतीश सिंघल ने दीवाली मेले के लिए जितनी स्पॉन्सरशिप दिलाने का वादा जवाहर गुप्ता से किया था, उतनी स्पॉन्सरशिप चूँकि सतीश सिंघल ने नहीं दिलाई - इसीलिए जवाहर गुप्ता उनसे खफा हैं; और इसीलिए वह ज्ञानचंद गुप्ता द्धारा सतीश सिंघल की मीटिंग कराने की कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं और ज्ञानचंद गुप्ता की कार्रवाई को क्लब को बदनाम करने/करवाने वाले काम के रूप में प्रचारित करने की कानाफूसियाँ कर रहे हैं ।
ज्ञानचंद गुप्ता द्धारा सतीश सिंघल की मीटिंग का जिम्मा लेने के कारण रोटरी क्लब दिल्ली विकास में मचे घमासान ने क्लब के अध्यक्ष जवाहर गुप्ता के लिए तो फजीहत खड़ी की ही है, साथ ही मीटिंग के मूल उद्देश्य को भी पृष्ठभूमि में धकेल दिया है ।

Monday, January 19, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस वाराणसी में होने की बात सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में गुरनाम सिंह और संजय चोपड़ा का मास्टर स्ट्रोक तो नहीं है ?

लखनऊ । संजय चोपड़ा द्धारा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की गुपचुप रूप से की जा रही तैयारी की खबरों ने संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच हलचल मचाने का काम किया है । वाराणसी में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करवाने की संजय चोपड़ा की कोशिशों ने तो समर्थक नेताओं के बीच के मतभेदों को भी मुखर बनाने का काम किया है; और इसीलिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों को चिंता में ही डाल दिया है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक एक बड़े नेता ने आरोप लगाया की कि वाराणसी में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करवाने के तैयारी संजय चोपड़ा तथा अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थक नेता यह सोच कर ही कर रहे हैं कि संदीप सहगल के लिए तराई के अपने समर्थकों को वाराणसी तक ले जा पाना ही मुश्किल होगा । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक एक दूसरे बड़े नेता का कहना है कि समस्या यह नहीं है कि संदीप सहगल के समर्थक वाराणसी कैसे पहुँचेंगे; समस्या यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में संजय चोपड़ा कॉन्फ्रेंस की जगह को लेकर भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, और साफ साफ यह नहीं बता रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस वह कहाँ करवा रहे हैं । इनका कहना है कि संजय चोपड़ा से इस बारे में जब भी पूछो वह यह कह कर सीधा जबाव देने से बच लेते हैं कि वह दो-तीन जगह देख रहे हैं और जल्दी ही कोई अंतिम फैसला करेंगे ।
संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के कान दरअसल अभी तब खड़े हुए, जब उन्हें पता चला कि संजय चोपड़ा, गुरनाम सिंह, विशाल सिन्हा, अनुपम बंसल और अशोक अग्रवाल वाराणसी गए हैं और वहाँ डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के लिए होटल आदि देख रहे हैं । यह पता लगते ही संदीप सहगल के कुछेक समर्थकों ने सुझाव दिया कि संदीप सहगल को भी तुरंत वाराणसी पहुँचना चाहिए और वहाँ होटल आदि में बुकिंग करा लेना चाहिए । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के दूसरे कुछेक समर्थकों का कहना रहा कि वाराणसी में बुकिंग कराने को लेकर संदीप सहगल को जल्दबाजी नहीं करना चाहिए और पहले यह कन्फर्म कर लेना चाहिए कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस वाराणसी में ही हो रही है न; या कहीं संजय चोपड़ा एंड कंपनी उन्हें फँसाने के उद्देश्य से तो वाराणसी में कॉन्फ्रेंस कराने की तैयारी का दिखावा नहीं कर रही है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में संजय चोपड़ा अभी इस बात को कन्फर्म नहीं कर रहे हैं । वाराणसी में बुकिंग करा लेने की वकालत करने वाले संदीप सहगल के समर्थकों का कहना है कि अशोक अग्रवाल जैसी/जितनी तैयारी कर रहे हैं, संदीप सहगल को भी उतनी तैयारी तो करनी ही चाहिए, अन्यथा वह अशोक अग्रवाल से पिछड़ते हुए दिखेंगे । ऐसे में, संदीप सहगल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि वह क्या करें और किसकी सुनें, इसे लेकर उनके समर्थक नेताओं के बीच ही मतभेद पैदा हो गए हैं ।
वाराणसी में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस होने की स्थिति में संदीप सहगल के समर्थक नेताओं के सामने एक और समस्या को हल करने की जरूरत आ पड़ी है । समस्या यह कि उनके तराई क्षेत्र में जो समर्थक हैं, उन्हें वाराणसी तक कैसे ले जाया जायेगा ? संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का मानना और कहना है कि लखनऊ में अशोक अग्रवाल के लिए अच्छा समर्थन है और तराई में संदीप सहगल के लिए ज्यादा समर्थन है; उन्हें डर हुआ है कि वाराणसी में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस हुई तो वहाँ अशोक अग्रवाल के समर्थक तो आसानी से पहुँच जायेंगे, जबकि संदीप सहगल के समर्थकों के लिए वहाँ पहुँचना मुसीबत होगा । इस मुसीबत को कैसे हल किया जाये, इसे लेकर उन्हें माथापच्ची करने की जरूरत महसूस हो रही है । यह समस्या इसलिए और भी ज्यादा गंभीर हो रही है क्योंकि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कई एक समर्थक नेता अभी इस समस्या को समस्या ही नहीं मान रहे हैं; उनका अभी यही कहना है कि पहले यह घोषित तो हो जाए कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस वाराणसी में ही हो रही है, उसके बाद ही सोचा जाये कि कैसे क्या करना है । इनका कहना है कि गुरनाम सिंह चूँकि भ्रम फैला कर विरोधियों को परेशान करने का हथकंडा अपनाते रहे हैं इसलिए कहीं ऐसा न हो कि वाराणसी में कॉन्फ्रेंस होने की बात भी उनका उसी तरह का कोई हथकंडा हो ?
वाराणसी में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की बात सच है या गुरनाम सिंह की भ्रम फैलाने की चाल है - दोनों ही स्थितियों में संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों के लिए मुसीबत के रूप में सामने आई है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों का हालाँकि दावा है कि गुरनाम सिंह की चाल को विशाल सिन्हा और शिव कुमार गुप्ता के बीच हुए चुनाव में जिस तरह फेल किया गया था, उसी तरह अब की बार भी उनकी किसी भी चाल को कामयाब नहीं होने दिया जायेगा । इस भरोसे के बावजूद संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच अभी इस बात को लेकर एक राय नहीं बन पा रही है कि अशोक अग्रवाल की तरफ से वाराणसी में बुकिंग आदि यदि करा ली गई है, तो संदीप सहगल को भी वहाँ बुकिंग वगैरह करा लेना चाहिए और या अभी वाराणसी में कॉन्फ्रेंस होने की औपचारिक घोषणा का इंतजार करना चाहिए ?

Saturday, January 17, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में शॉपिंग वेबसाइट बाबुमोशाय के लॉन्चिंग समारोह की सफलता और उस समारोह के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के चुनाव के संदर्भ में दीपक गुप्ता के प्रति समर्थन व्यक्त करने के अभियान का रूप ले लेने से शरत जैन के समर्थक नेताओं के बीच बौखलाहट पैदा हुई

गाजियाबाद । बाबुमोशाय के लॉन्चिंग कार्यक्रम के दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन अभियान में तब्दील हो जाने की चर्चा ने डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के दूसरे उम्मीदवार शरत जैन के समर्थकों के बीच खासा हड़कंप मचा दिया है । इसी हड़कंप का नतीजा है कि शरत जैन के समर्थक नेताओं ने बाबुमोशाय के लॉन्चिंग समारोह में मौजूद रहे 'अपने' लोगों को फोन कर कर के पूछना शुरू किया है कि वह चुनाव में उन्हें धोखा देने के बारे में तो नहीं सोच रहे हैं । शरत जैन के समर्थक नेता दरअसल इस बात से ज्यादा डरे हुए हैं कि उक्त समारोह में बहुत से ऐसे लोग मौजूद दिखे, जिन्हें वह अपने पक्के समर्थक के रूप में देखते/पहचानते हैं और जिन्हें उक्त समारोह से दूर रहने के संकेत दिए गए थे । शरत जैन के समर्थक नेताओं के लिए चिंता की बात यह रही है कि उन्होंने उक्त समारोह को फेल करने के लिए जो जाल बिछाया था, वह अपने ही जाल में उलझ गया - उन्होंने हालाँकि खुल कर तो इस समारोह के खिलाफ कोई अभियान नहीं चलाया था, लेकिन अपने समर्थकों को हर संभव तरीके से इस समारोह से दूर रहने के संकेत स्पष्ट रूप से दिए थे । इस समारोह के मुख्य कर्ताधर्ता चूँकि रमणीक तलवार और संजीव रस्तोगी थे, इसलिए इन दोनों के संबंध में नकारात्मक किस्म की बातें करके शरत जैन के समर्थक नेताओं ने लोगों को - खासकर 'अपने' लोगों को इस समारोह में न पहुँचने के लिए राजी करने का काम किया था । लेकिन उनके तमाम प्रयासों के बावजूद इस समारोह में जिस तरह से रोटेरियंस जुटे और यहाँ जुटे रोटेरियंस को जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए दीपक गुप्ता के पक्ष में बातें करते हुए सुना गया, उसकी खबरें सुनने के बाद से शरत जैन के समर्थक नेताओं के तोते उड़े हुए हैं ।
शरत जैन के समर्थक नेताओं के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि रमणीक तलवार और संजीव रस्तोगी के लिए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में तमाम तरह की बाधाएँ खड़ी कीं, लेकिन फिर भी डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ इनका इतना जुड़ाव कैसे बना हुआ है ? उल्लेखनीय है कि बाबुमोशाय एक ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट है, जिसके प्रमुख प्रवर्तकों में रमणीक तलवार और संजीव रस्तोगी हैं । यह दोनों चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के उम्मीदवार दीपक गुप्ता के अत्यंत सक्रिय समर्थकों के रूप में भी पहचाने जाते हैं, इसलिए इनकी नई कंपनी के लॉन्चिंग कार्यक्रम में दीपक गुप्ता के संभावित समर्थकों की उपस्थिति का तो शरत जैन के समर्थक नेताओं को आभास था; लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह कार्यक्रम इतना सफल होगा और इसमें डिस्ट्रिक्ट के तमाम लोग जुटेंगे । उनका अनुमान था कि उन्होंने चूँकि रमणीक तलवार और संजीव रस्तोगी की डिस्ट्रिक्ट में खासी बुरी गत बना दी है, इसलिए उनके निमंत्रण को लोग खुद ही गंभीरता से नहीं लेंगे और कार्यक्रम से दूर रहेंगे । इस अनुमान के भरोसे रहते हुए उन्होंने बस इतना करने की जरूरत समझी कि अपने लोगों को उक्त लॉन्चिंग समारोह से दूर रहने के संकेत दिए ।
शरत जैन के समर्थक नेताओं के लिए यह समझना भी मुश्किल बना हुआ है कि उनके लोगों ने उनके संकेतों को समझा नहीं और/या उनके संकेतों की अवहेलना करते हुए वह उक्त समारोह में गए । 'अपने' लोगों की इस हरकत पर रमेश अग्रवाल तो बुरी तरह भड़के हुए हैं । दरअसल पीछे हुए सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल इस बात का अनुभव कर चुके हैं कि कैसे उनके 'अपने' समझे जा रहे लोग उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार आशीष घोष के साथ जा मिले थे और उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा था । हार से बुरी तरह बौखलाए रमेश अग्रवाल ने उस समय अपने लोगों को फोन कर कर के कोसा था और अपने कई लोगों को उन्होंने धोखेबाज कहा था । उसी अनुभव को याद करते हुए रमेश अग्रवाल ने बाबुमोशाय के लॉन्चिंग समारोह में उपस्थित हुए अपने लोगों से पूछा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के चुनाव में धोखा तो नहीं दोगे ?
बाबुमोशाय के लॉन्चिंग समारोह के सफल होने और इसमें रोटेरियंस के जुटने को चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त किए जाने/होने के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए शरत जैन के समर्थक नेताओं को इस समारोह की सफलता खतरे की घंटी के रूप में सुनाई दी है । एक ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट 'बाबुमोशाय' के लॉन्चिंग समारोह को यूँ तो एक कारोबारी आयोजन के रूप में देखा जाना चाहिए था; किंतु इस समारोह में डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस की उपस्थिति को ज्यादा से ज्यादा संभव बनाने के लिए रमणीक तलवार और संजीव रस्तोगी तथा खुद दीपक गुप्ता ने जो मेहनत की - और इससे भी बड़ी बात यह कि उन्हें अपनी मेहनत का जो फल मिला, उसके कारण ही एक सामान्य कारोबारी आयोजन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में एक बड़ी राजनीतिक परिघटना में बदल गया । यह आयोजन एक बड़ी राजनीतिक परिघटना में इसलिए भी बदल गया क्योंकि इस आयोजन में उपस्थित रोटेरियंस के बीच चुनाव की चर्चा ही गर्म रही । छोटे छोटे समूहों में होने वाली इन चर्चाओं में कहीं वक्ता तो कहीं श्रोता के रूप में मौजूद रहे एक वरिष्ठ रोटेरियन ने बताया कि यहाँ हुई चर्चाओं में अधिकतर लोगों ने इस बात को रेखांकित किया कि एक उम्मीदवार के रूप में दीपक गुप्ता ने अपना जो भी प्रभाव बनाया है, वह अपने दम पर बनाया है जबकि उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार शरत जैन कुछेक नेताओं की बैशाखी के सहारे उम्मीदवार बने हुए हैं ।
दीपक गुप्ता और शरत जैन की सक्रियताओं का आकलन करते हुए लोगों ने इस तथ्य को भी पहचाना कि शरत जैन यदि गवर्नर बने तो वह रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा की कठपुतली बन कर ही रहेंगे, और जो लोग रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा की राजनीतिक गुलामी करने के लिए तैयार नहीं होंगे उन्हें शरत जैन का सहयोग व समर्थन करने के बावजूद शरत जैन के गवर्नर-काल में उपेक्षित व अपमानित ही होना पड़ेगा - जैसे जेके गौड़ के 'हाथों' होना पड़ रहा है । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ की उम्मीदवारी में सहयोग/समर्थन करने वाले कई लोगों को जेके गौड़ अब सिर्फ इस कारण से पहचानने से भी बच रहे हैं, क्योंकि वह लोग इस वर्ष हो रहे चुनाव में रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा का कहना मानने को तैयार नहीं दिख रहे हैं । जेके गौड़ की गर्दन चूँकि पूरी तरह रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के हाथ में है, इसलिए जेके गौड़ किसी 'अपने' को उससे मिले सहयोग/समर्थन के बदले में उपकृत करना चाहते भी हैं तो नहीं कर सकते हैं । शरत जैन की हालत भी जेके गौड़ जैसी ही होनी है, इसलिए सहयोग/समर्थन करने वाले उन लोगों को शरत जैन पहचानेंगे भी नहीं जिनसे रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा खुश नहीं होंगे । लोगों ने रेखांकित किया है और समझा है कि दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होंगे तो वह किसी की कठपुतली नहीं होंगे और इसलिए दीपक गुप्ता तक पहुँचने के लिए उन्हें किसी और की नाखुशी या नाराजगी का रोड़ा नहीं पार करना होगा ।
बाबुमोशाय के लॉन्चिंग समारोह में एक तो अनुमान/उम्मीद के विपरीत रोटेरियंस की भीड़ जुटी; और दूसरे वहाँ जुटे लोगों ने उम्मीदवार के रूप में दीपक गुप्ता व शरत जैन की सक्रियता के स्तर का आकलन किया और उस आकलन में शरत जैन को सिर्फ कमजोर ही नहीं पाया, बल्कि उन्हें बैशाखी पर टिकी एक कठपुतली के रूप में देखा/पहचाना - उसकी खबर मिलने के बाद से शरत जैन के समर्थकों के तोते उड़े हुए हैं और उन्होंने टोह लेना ही शुरू नहीं किया है, बल्कि लोगों से बाकायदा पूछना भी शुरू किया है कि चुनाव में वह उन्हें धोखा तो नहीं देंगे । रमेश अग्रवाल ने खासतौर पर उन लोगों की खबर ली है, जिनका समर्थन पाने के लिए उन्होंने जेके गौड़ के गवर्नर-काल में पद 'बेचे' हैं । रमेश अग्रवाल को डर है कि उनसे पद लेने वाले रोटेरियंस कहीं दीपक गुप्ता से तो नहीं जा मिले हैं ? बाबुमोशाय के लॉन्चिंग समारोह की सफलता और उस समारोह के दीपक गुप्ता के प्रति समर्थन व्यक्त करने के अभियान का रूप ले लेने से शरत जैन के समर्थक नेताओं के बीच जो बौखलाहट पैदा हुई है, उससे उन्होंने अपनी कमजोरी को ही जाहिर किया है ।

Thursday, January 15, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल में सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट पद की उम्मीदवारी के लिए अपनाई गई नरेश अग्रवाल की तरकीब की तर्ज पर ही वीके हंस और सुनील निगम ने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में काउंसिल चेयरमैन पद के लिए वोट 'बेच' कर लायनिज्म की सेवा करने का फार्मूला निकाला

नई दिल्ली । वीके हंस और सुनील निगम ने साठ लाख रुपये में मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के काउंसिल चेयरमैन पद का ऑफर देकर मल्टीपल की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा कर दी है । वीके हंस डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में और सुनील निगम डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं; इनका दावा है कि इन्हें चार और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का समर्थन प्राप्त है; और इस तरह यह दस में से छह वोट का ग्रुप बनाते हैं । इनका कहना है कि छह वोट किसी को भी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बना सकते हैं । इस आधार पर, प्रत्येक फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए दस दस लाख रुपये के हिसाब से इन्होंने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की कीमत तय कर दी है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में महँगे गिफ्ट्स के साथ साथ नगद पैसों के लेन-देन की बातें पहले भी सुनी गईं हैं, और यह बात आम चर्चा में रही है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में वोट खरीदे बेचे जाते हैं; लेकिन संगठित रूप से 'वोट बेचने की दुकान' पहली बार खुली है । इस दुकान के प्रोप्राइटर वीके हंस और सुनील निगम बताये गए हैं । इन दोनों में एक मजेदार किस्म की समानता यह है कि यह दोनों तीसरी बार की कोशिश में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की लाइन में आ पाए हैं और अपने अपने डिस्ट्रिक्ट में एक खेमे के नेताओं से दूसरे खेमे के नेताओं के बीच आवाजाही करते रहे हैं ।
वीके हंस और सुनील निगम के नजदीकियों ने इनके हवाले से दावा किया है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के राजीव मित्तल ने तथा डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू के अंबरीश सरीन ने इनके इस ऑफर में दिलचस्पी दिखाई है । इन दोनों को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के महत्वाकांक्षी उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है । अपनी अपनी तरह से इन्होंने 'वोटरों' के बीच पैठ बनाने की कोशिश तो की है, लेकिन अपनी कोशिशें अभी तक इन्हें चूँकि खुद ही आश्वस्त करती हुई नहीं दिखी हैं इसलिए छह वोट एक साथ मिलने वाला ऑफर इन्हें सुविधाजनक लगा होगा । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के उत्सुक उम्मीदवारों में डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के सुनील जैन और डिस्ट्रिक्ट 321 डी के परमजीत सिंह चावला को भी देखा/पहचाना जाता रहा है । सुनील जैन अपने डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़ जाने के कारण अपनी उम्मीदवारी को लेकर सुस्त पड़ते दिख रहे हैं, और परमजीत सिंह चावला मल्टीपल की लीडरशिप के भरोसे होने के कारण कुछ करने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं । कुछ भी हो, लेकिन 'दुकान खुलते ही ग्राहक आने लगे' वाली स्थिति से प्रोप्राइटर लोग खासे उत्साहित हैं ।
वीके हंस और सुनील निगम ने होशियारी यह की है कि उनकी यह 'दुकान' नेक उद्देश्य से प्रेरित दिखे, इसके लिए उन्होंने तर्क दिया है कि दस लाख रुपये पाने वाला फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अगले लायन वर्ष के अपने गवर्नर-काल में यह रकम प्रोजेक्ट्स में खर्च करेगा । मजेदार बात यह हुई है कि इन्होंने लोगों को कहा/बताया है कि यह 'ऑफर' आयोजित करने की प्रेरणा इन्हें सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार नरेश अग्रवाल से मिली है । उल्लेखनीय है कि नरेश अग्रवाल ने अपने कैम्पेन के लिए पैसा इकठ्ठा करने के लिए तरह तरह की स्कीमें चलाई हुई हैं । तरह तरह की स्कीमों से पैसा इकठ्ठा करने की उनकी तिकड़मों को लायनिज्म की सेवा के रूप में प्रचारित किया जा रहा है; और उनके 'शिकार' ऐसे लोग हैं जो महत्वाकांक्षी हैं तथा कोई न कोई पद चाहते हैं । नरेश अग्रवाल की तर्ज पर ही वीके हंस और सुनील निगम ने चार अन्य फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का साथ लेकर लायनिज्म की सेवा का बीड़ा उठाया और शिकार के रूप में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की इच्छा रखने वालों को पहचाना है ।
नरेश अग्रवाल ने सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव की आड़ में लोगों से पैसे ऐंठने की तरकीब निकाली, तो उनसे प्रेरणा लेकर फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का साथ लेकर वीके हंस और सुनील निगम ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए वोट 'बेच' कर लायनिज्म की सेवा करने का फार्मूला निकाल लिया है । उनके इस फार्मूले ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनावी परिदृश्य को खासा रोचक बना दिया है ।  

Wednesday, January 14, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल काउंसिल के लिए वेस्टर्न रीजन से उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वास्ते यदि दुर्गेश बुच को राजी नहीं किया जा सका; और या पराग रावल की हार को सुनिश्चित करने की और कोई व्यवस्था नहीं की जा सकी तो फिर सुनील तलति अपने बेटे अनिकेत तलति को सेंट्रल काउंसिल के लिए ही उम्मीदवार बनायेंगे

अहमदाबाद । सुनील तलति वडोदरा में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए मनीष बक्षी की उम्मीदवारी को हरी झंडी मिलने की संभावना में रुकावट डालने का जो प्रयास कर रहे हैं, उसे लेकर वडोदरा के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच खासी नाराजगी है । उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2015 में होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के लिए वडोदरा में मनीष बक्षी को उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा है । इंस्टीट्यूट के चुनाव के संदर्भ में वडोदरा में यह दिलचस्प प्रथा है कि यहाँ उम्मीदवार का फैसला ब्रांच में आपसी विचार-विमर्श से होता है । इसी प्रथा के चलते सेंट्रल काउंसिल के लिए मनीष बक्षी के नाम की चर्चा है । मनीष बक्षी वडोदरा में सुनील तलति की फर्म तलति एण्ड तलति के पार्टनर हैं । इस नाते सुनील तलति को खुश होना चाहिए था कि उनके पार्टनर को इस लायक समझा जा रहा है और उनकी उम्मीदवारी को एक तरफा समर्थन मिल रहा है । सुनील तलति लेकिन खुश नहीं हैं । ऊपर से तो वह हालाँकि कुछ नहीं कह रहे हैं, लेकिन अंदरखाने उन्हें यह प्रयास करते हुए 'पाया' गया है कि मनीष बक्षी की उम्मीदवारी को वडोदरा में स्वीकृति न मिले । वडोदरा में जो कुछ लोग मनीष बक्षी की उम्मीदवारी के खिलाफ हैं, समझा जाता है कि सुनील तलति उन्हें हवा दे रहे हैं ताकि सेंट्रल काउंसिल के लिए मनीष बक्षी की उम्मीदवारी को हरी झंडी मिलने में फच्चर फँसे ।
सुनील तलति दरअसल अपने बेटे अनिकेत तलति को अगले चुनाव में सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनाना चाहते हैं । समस्या यह है कि उनकी फर्म के पार्टनर मनीष बक्षी यदि उम्मीदवार बनते हैं, तब फिर उनके बेटे के लिए उम्मीदवार बन सकने का रास्ता बंद हो जायेगा । एक ही फर्म से दो उम्मीदवार तो नहीं आयेंगे न ! अपने बेटे के लिए उम्मीदवार बन सकने का रास्ता खुला रखने के लिए ही सुनील तलति को मनीष बक्षी के उम्मीदवार बनने के रास्ते को बंद करने की जरूरत आ पड़ी है । वडोदरा में वास्तव में इसलिए ही सुनील तलति द्धारा पर्दे के पीछे से किए जा रहे हस्तक्षेप को लेकर नाराजगी है । लोगों को इस बात पर खासा ऐतराज है कि पुत्र-मोह में सुनील तलति इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हैं कि एक शहर/एक ब्रांच की अच्छी-भली प्रथा को डिस्टर्ब करने का काम करने लगें । लोगों का कहना है कि सुनील तलति अपने बेटे के राजनीतिक भविष्य के बारे में चिंता करें और अपने बेटे का भविष्य बनाने का प्रयास करें, इसमें कुछ भी गलत या अस्वाभाविक नहीं है; लेकिन ऐसा करते हुए उन्हें अपने पार्टनर की भावनाओं के तथा एक शहर/एक ब्रांच की प्रथा के खिलाफ कोई षड्यंत्र नहीं करना चाहिए । लोगों का कहना है कि सुनील तलति इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट रह चुके हैं, इस नाते से उनसे बड़ी सोच रखने की और बड़प्पन दिखाने की उम्मीद की जाती है ।
सुनील तलति की अपने बेटे अनिकेत तलति को सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनाने की कोशिशों को लेकर अहमदाबाद में भी असंतोष सा है । अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में सुनील तलति का जो खेमा माना/पहचाना जाता है, उस खेमे से सेंट्रल काउंसिल के लिए पराग रावल की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की तैयारी है । दूसरे खेमे के उम्मीदवार के रूप में दीनल शाह तीसरी बार उम्मीदवार बनेंगे ही । पराग रावल पिछले दो टर्म से रीजनल काउंसिल में हैं, और उनकी सक्रियता व लोगों के बीच उनकी स्वीकार्यता को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि अबकी बार सेंट्रल काउंसिल में अहमदाबाद के दो लोग जा सकते हैं । लेकिन अनिकेत तलति के उम्मीदवार होने की स्थिति में खेमे में फूट पड़ेगी और उससे पराग रावल की जीतने की संभावना पर प्रतिकूल असर पड़ेगा । अनिकेत तलति अभी अहमदाबाद ब्रांच के चेयरमैन पद पर हैं । उनके ही कई एक नजदीकियों का मानना और कहना है कि उन्हें पहले रीजनल काउंसिल में आना चाहिए और अपने अनुभवों का विस्तार करना चाहिए और फिर सेंट्रल काउंसिल में आने के बारे में सोचना चाहिए । उनके कुछेक नजदीकियों का कहना है कि लेकिन सुनील तलति अपने बेटे को जल्दी से जल्दी सेंट्रल काउंसिल में देखना चाहते हैं । नजदीकियों के अनुसार, सुनील तलति चाहते हैं कि उनका बेटा जल्दी से सेंट्रल काउंसिल में आए, ताकि जल्दी से प्रेसीडेंट बने और फिर इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति से फारिग होकर अपने काम-धंधे में लगे ।
सुनील तलति भी समझ रहे हैं कि पराग रावल के साथ साथ उनके बेटे अनिकेत तलति की भी उम्मीदवारी यदि आती है, तो बहुत संभव है कि दोनों में से कोई भी न जीते । इसके बावजूद वह अनिकेत तलति की उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने के लिए तैयार हैं । दरअसल उन्हें डर है कि पराग रावल यदि जीत गए, तब फिर अनिकेत तलति को नौ वर्ष इंतजार करना पड़ेगा । अब नौ वर्ष बाद क्या स्थिति होगी, यह आज/अभी कौन जानता है ? अहमदाबाद में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच चर्चा यही है कि इस बार हार जाने की सुनिश्चितता के बावजूद सुनील तलति अपने बेटे को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं तो इसके पीछे उनकी सोच यही है कि इस बार हार जाने के बाद पराग रावल अगली बार तो उम्मीदवार बनेंगे नहीं; दूसरे खेमे से भी कोई नया उम्मीदवार आयेगा और तब उनके बेटे अनिकेत तलति के लिए सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश पाने के लिए अच्छा मौका होगा । इस 'सोच' को फलीभूत करवाने के लिए सुनील तलति के नजदीकियों ने हालाँकि उन्हें एक और फार्मूला सुझाया है और वह यह कि अनिकेत तलति को अबकी बार रीजनल का चुनाव लड़वाओ और पराग रावल को सेंट्रल काउंसिल का चुनाव हरवाओ; उसके बाद अगली बार अनिकेत तलति के लिए सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश का मौका बनाओ । पराग रावल की हार को सुनिश्चित करने के लिए दुर्गेश बुच को उम्मीदवार बनाओ/बनवाओ ।
दुर्गेश बुच पीछे दो बार सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बन चुके हैं, और दोनों ही बार असफल रहे । दुर्गेश बुच ऐलान कर चुके हैं कि अब आगे वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं करेंगे । सुनील तलति को फार्मूला सुझाने वाले लोगों का कहना लेकिन यह है कि दुर्गेश बुच ने ऐलान भले ही कर दिया हो, किंतु उन्हें यदि थोड़ा उकसाया जायेगा तो फिर वह अपनी उम्मीदवारी के लिए तैयार हो जायेंगे । इनका तर्क है कि 2012 के लिए भी पहले वह अपनी उम्मीदवारी की संभावना से इंकार करते थे, किंतु फिर बाद में उम्मीदवार बने न ! लोगों का कहना है कि सुनील तलति इस फार्मूले पर सहमत तो हैं, लेकिन वह आश्वस्त हो लेना चाहते हैं कि दुर्गेश बुच की उम्मीदवारी सचमुच आयेगी भी । इसीलिए तलति पिता-पुत्र की तरफ से यह अभी तक तय नहीं हो रहा है कि अनिकेत तलति की उम्मीदवारी रीजनल काउंसिल के लिए आएगी और या सेंट्रल काउंसिल के लिए । यह हालाँकि तय माना जा रहा है कि दुर्गेश बुच को यदि उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए राजी नहीं किया जा सका; और या पराग रावल की हार को सुनिश्चित करने की और कोई व्यवस्था नहीं की जा सकी तो फिर अनिकेत तलति खुद मोर्चा संभालेंगे और सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे ।
इसके लिए लेकिन मनीष बक्षी की उम्मीदवारी को संभव होने से रोकना जरूरी है । मनीष बक्षी की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की स्थिति में सुनील तलति की अपने बेटे को लेकर बनाई जा रही सारी योजना पर पानी ही फिर जायेगा । मनीष बक्षी की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की स्थिति में अनिकेत तलति की उम्मीदवारी की तो फिर बात ही खत्म हो जाएगी । एक समस्या और है - सुनील तलति को जो डर पराग रावल की जीत से है, वही डर मनीष बक्षी की जीत से भी है । मनीष बक्षी यदि जीत गए तब भी तो अनिकेत तलति के लिए नौ वर्ष के लिए मौका गया । सुनील तलति इसीलिए वडोदरा में चक्कर चला रहे हैं कि मनीष बक्षी की उम्मीदवारी को वहाँ हरी झंडी मिले ही न । सुनील तलति के इस चक्कर ने लेकिन वडोदरा के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को नाराज कर दिया है । सुनील तलति की मजबूरी है कि अपने बेटे के राजनीतिक भविष्य के लिए उन्हें यह सब करना ही होगा, उससे कोई नाराज होता हो तो होता रहे !

Tuesday, January 13, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सतीश सिंघल को जिन लोगों से सहयोग और समर्थन मिलने की उम्मीद थी, और जो लोग शुरू में उनकी उम्मीदवारी के साथ देखे भी जा रहे थे - वही लोग अब जब प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रिय नजर आ रहे हैं तो बाजी प्रसून चौधरी के हाथ में आती दिखना स्वाभाविक ही है

गाजियाबाद । प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से सोनीपत में आयोजित हुई मीटिंग के पीछे मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के नजदीकियों की सक्रियता को देख/पहचान कर सतीश सिंघल की चुनावी उम्मीदों को खासा तगड़ा झटका लगा है । उल्लेखनीय है कि अभी तक सतीश सिंघल की तरफ से भी और मुकेश अरनेजा की तरफ से भी ऐसा आभास दिया जा रहा था जैसे कि मुकेश अरनेजा एण्ड पार्टी डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करेगी । मुकेश अरनेजा ने कुछेक जगह सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थन में बात की भी थी । लेकिन रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ ने चूँकि सतीश सिंघल के साथ साथ प्रसून चौधरी के साथ भी तार जोड़े हुए थे, इसलिए मुकेश अरनेजा द्धारा की जा रही सतीश सिंघल के समर्थन की बातों पर बहुत भरोसा नहीं किया जा रहा था । मुकेश अरनेजा कई लोगों के साथ राजनीतिक धोखेबाजी करने के कारण पहले से ही खासे बदनाम हैं, इसलिए भी माना/समझा जा रहा था कि मौका पड़ा तो वह सतीश सिंघल के साथ भी धोखेबाजी करने से नहीं हिचकिचायेंगे । सतीश सिंघल की तरफ से हालाँकि लगातार दावा किया जाता रहा है कि इन लोगों का समर्थन उनके साथ ही रहेगा । सतीश सिंघल के कुछेक नजदीकी तो प्राइवेट में मुकेश अरनेजा ने, रमेश अग्रवाल ने, जेके गौड़ ने जो कुछ कहा होता है, उसका हवाला देते हुए दावा करते रहे हैं कि यह लोग अंदरखाने सतीश सिंघल के साथ ही हैं ।
सतीश सिंघल के नजदीकियों के इस तरह के दावे सुनकर लोगों को याद भी आया कि दो वर्ष पहले हुए चुनाव में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल इसी तरह से 'अंदरखाने' आलोक गुप्ता के साथ थे; और आलोक गुप्ता बताते थे कि उनकी इन दोनों से ही लगभग रोजाना बातें होती हैं और दोनों ही जेके गौड़ की बड़ी बुराई किया करते हैं । आलोक गुप्ता को बहुत बाद में समझ में आया कि 'अंदरखाने' की आड़ में यह दोनों दरअसल उनको उल्लू बना रहे थे और जेके गौड़ के साथ मिले हुए थे । सोनीपत में प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से आयोजित हुई मीटिंग में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के नजदीकियों को सक्रिय देख कर यह स्पष्ट हुआ कि 'अंदरखाने' की आड़ में यह दोनों अब की बार सतीश सिंघल को गोली दे रहे थे, और यह काम वास्तव में प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी को आगे बढ़ाने का कर रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले तथा मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की हरकतों को देखते/पहचानते रहे लोगों का मानना और कहना लेकिन यह भी है कि यह दोनों हारते दिख रहे के साथ धोखा करते हैं; यह दरअसल जीतने वाले के साथ रहते हैं, ताकि यह दावा कर सकें कि उसे इन्होंने जितवाया है । दो वर्ष पहले हुए चुनाव में यह दोनों सचमुच में आलोक गुप्ता के साथ ही थे, किंतु जैसे ही इन्हें समझ में आया कि आलोक गुप्ता के मुकाबले जेके गौड़ के जीतने के चांस ज्यादा हैं वैसे ही इन्होंने आलोक गुप्ता का झंडा छोड़ कर जेके गौड़ का झंडा उठा लिया । इस बार भी, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में पहले इन्हें लगता था कि प्रसून चौधरी के लिए सतीश सिंघल का मुकाबला कर पाना मुश्किल होगा, इसलिए यह सतीश सिंघल के साथ होने का दिखावा करने लगे थे; लेकिन जैसे ही इन्हें लगा कि सतीश सिंघल के लिए चुनावी होड़ में बने/टिके रहना मुश्किल हो रहा है और प्रसून चौधरी अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में अच्छा खासा समर्थन जुटाते नजर आ रहे हैं, वैसे ही इन्होंने भी सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का झंडा छोड़ कर प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है ।
सतीश सिंघल एक उम्मीदवार के रूप में चूँकि अपनी सक्रियता नहीं दिखा पाए हैं, इसीलिए धीरे धीरे करके ऐसे कई लोग, जो शुरू में उनके साथ दिखते थे, अब उनसे दूर दिख रहे हैं और या प्रसून चौधरी के साथ/समर्थन में नजर आ रहे हैं । सतीश सिंघल के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि सतीश सिंघल ने अपने ही रवैये से अपना मामला खराब कर लिया है । सतीश सिंघल ने लोगों के बीच बाकायदा तर्क दिया कि चूँकि वह पुराने रोटेरियन हैं और उन्होंने रोटरी में बहुत काम किया है, इसलिए उम्मीदवार के रूप में उन्हें लोगों से समर्थन माँगने क्यों जाना चाहिए; लोगों को खुद ही आगे बढ़ कर उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करना चाहिए । पहले उन्होंने अपने क्लब के लोगों से यह उम्मीद की कि क्लब के लोगों को उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में सक्रिय हो जाना चाहिए । क्लब के लोगों ने पाया/देखा कि सतीश सिंघल उनके ही भरोसे अपनी उम्मीदवारी की नैया को पार लगाना चाहते हैं, तो फिर वह भी पीछे हट गए । इसी तरह धीरे धीरे सतीश सिंघल ने अपने तमाम समर्थकों को खो दिया है । अभी करीब दो महीने पहले इन पँक्तियों के लेखक से सतीश सिंघल की बड़ी जोरदार वकालत करने वाले एक वरिष्ठ रोटेरियन ने उनके रवैये से पैदा हुई निराशा को अब इन शब्दों के साथ अभिव्यक्त किया कि 'अरे, सतीश की बात छोड़िये; उसका कुछ समझ में नहीं आता है कि वह क्या कहता है और क्या करता है ।'
सतीश सिंघल का नुकसान प्रसून चौधरी का फायदा बना है । यह फायदा अपने आप नहीं बना है; इसके लिए प्रसून चौधरी ने अथक मेहनत की है । कम अनुभव होने तथा रोटरी की चुनावी राजनीति के लटकों-झटकों से अपरिचित होने के बावजूद प्रसून चौधरी ने सिर्फ अपनी सक्रियता और अपनी संलग्नता के भरोसे ही अपने आप को मुकाबले में आगे किया है । प्रसून चौधरी ने अपने व्यवहार और अपनी कार्यप्रणाली से क्लब्स के प्रभावी लोगों के बीच ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के बीच भी अपने लिए स्वीकार्यता का भाव बनाया है और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाया है । सतीश सिंघल को हालाँकि अभी भी यकीन है कि रोटरी में उन्होंने जो किया है, उसे देखते/समझते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए लोग उन्हें ही चुनेंगे; किंतु सतीश सिंघल के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि सतीश सिंघल ने अपने रवैये और व्यवहार से जिस तरह अपने समर्थकों को खो दिया है, उससे उनकी उम्मीदवारी के सफल होने की संभावना खत्म हो गई है । सतीश सिंघल को जिन लोगों से सहयोग और समर्थन मिलने की उम्मीद थी, और जो लोग शुरू में उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन व्यक्त करते हुए देखे भी जा रहे थे - वही लोग अब जब प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रिय नजर आ रहे हैं तो ऐसा लगना स्वाभाविक ही है कि सतीश सिंघल के लिए चुनौती अब बहुत मुश्किल हो गई है ।

Monday, January 12, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में एपीएस कपूर के नजदीकियों व समर्थकों को लग रहा है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय सिंघल की उम्मीदवारी को मिलते दिख रहे समर्थन के चलते जब नेता लोग ही एपीएस कपूर की उम्मीदवारी का जिम्मा लेने से बच रहे हैं, तब फिर एपीएस कपूर किसके भरोसे अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे ?

देहरादून । सुनील जैन - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन ने एपीएस कपूर की उम्मीदवारी में अपनी कोई भूमिका होने से इंकार करके कुंजबिहारी अग्रवाल की राजनीतिक उम्मीदों को तगड़ा झटका दिया है । डिस्ट्रिक्ट में हर कोई मानता और कहता है कि एपीएस कपूर को उम्मीदवार के रूप में सुनील जैन ने हवा दी, ताकि चुनाव की स्थितियाँ बनें और उन्हें क्लब्स से ड्यूज मिल सकें तथा उनके गवर्नर-काल की कॉन्फ्रेंस अच्छे से हो सके । सुनील जैन की एक निगाह मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन के पद पर भी है । अपने ही डिस्ट्रिक्ट में वह जिस तरह से अलग-थलग पड़ गए हैं, उसके चलते उन्हें बस सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव का ही सहारा रह गया है । सुनील जैन को लगता है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनाव होने की स्थिति में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का नया समीकरण बनेगा; और उस नए समीकरण में एक पक्ष के - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते - वह एक मजबूत स्तम्भ बनेंगे; और इस तरह अलग-थलग वाली मौजूदा स्थिति से वह बाहर आ जायेंगे, और तब वह मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए दावा करने की स्थिति में भी आ जायेंगे । कई फायदों को ध्यान में रखते हुए ही सुनील जैन ने एपीएस कपूर को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उकसाया । इस उकसाहट में कुंजबिहारी अग्रवाल एण्ड कंपनी को भी अपना फायदा होता हुआ नजर आया । उन्हें उम्मीद बँधी कि एपीएस कपूर की उम्मीदवारी के लिए समर्थन माँगने हेतु सुनील जैन अब उनका दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होंगे और इस तरह उन्हें डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपना 'चौधरीपना' दिखाने का मौका मिलेगा ।
सुनील जैन लेकिन अपना 'चौधरीपना' दिखाने के चक्कर में हैं और इस चक्कर में उन्होंने ऐलान कर दिया कि एपीएस कपूर की उम्मीदवारी से उनका कोई लेना-देना नहीं है । समझा जाता है कि सुनील जैन इस कोशिश में हैं कि एपीएस कपूर की उम्मीदवारी को कुंजबिहारी अग्रवाल एण्ड कंपनी गोद ले लें, और फिर उनसे समर्थन की बात करें । सुनील जैन यह तो कहते ही हैं कि वह चुनाव तो चाहते हैं । दरअसल यह कहते हुए सुनील जैन ने इशारा यह किया है कि कुंजबिहारी अग्रवाल एण्ड कंपनी एपीएस कपूर की उम्मीदवारी के लिए समर्थन माँगने उनके पास आएगी, तो समर्थन देने में उन्हें कोई परहेज नहीं होगा । कुंजबिहारी अग्रवाल एण्ड कंपनी के लोग अब कोई इतने लुलूलाल थोड़े ही हैं कि वह यह इशारा और इस इशारे की आड़ में छिपी सुनील जैन की राजनीति नहीं समझ रहे हैं । वह समझ रहे हैं कि सुनील जैन उनकी उम्मीदों को झटका दे रहे हैं; लेकिन उन्होंने भी कोई कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं - सुनील जैन जैसों को चलाने का हुनर तो उन्हें आता ही है । सो, मुहावरे की भाषा में कहें तो उन्होंने 'सुनील जैन का जूता सुनील जैन के सिर पर ही दे मारा है' और एपीएस कपूर को अपना उम्मीदवार बनाने/मानने से इंकार कर दिया है ।
सुनील जैन और कुंजबिहारी अग्रवाल के बीच 'चौधरीपना' दिखाने का मौका बनाने का यह जो खेल चल रहा है उसमें एपीएस कपूर के लिए बड़ी समस्या हो गई है । उनकी उम्मीदवारी का झंडा उठाने के लिए न सुनील जैन तैयार हो रहे हैं और न कुंजबिहारी अग्रवाल एण्ड कंपनी । एपीएस कपूर ने सुशील अग्रवाल का दरवाजा खटखटा कर अपनी उम्मीदवारी का झंडा उन्हें थमाने का प्रयास भी किया था, लेकिन सुशील अग्रवाल ने भी उन्हें उलटे पाँव लौटा दिया है । एपीएस कपूर के नजदीकियों व समर्थकों को लग रहा है कि इन जिन लोगों के भरोसे वह अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करना चाहते हैं, उनके बस में उन्हें चुनाव लड़वाना है ही नहीं - और यह उनकी उम्मीदवारी की आड़ में सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना और अपनी चौधराहट दिखाना चाहते हैं । इसीलिए हर कोई यह चाहता है कि एपीएस कपूर की उम्मीदवारी का झंडा कोई दूसरा उठाए और फिर समर्थन माँगने उनके पास आए, ताकि समर्थन देने के बदले में वह अच्छा मोलभाव कर सकें । सुनील जैन ने तो अजय सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए मुकेश गोयल से मोलभाव करने का प्रयास किया ही था, किंतु वहाँ उनका सौदा पटा नहीं; और उसी के बाद सुनील जैन ने एपीएस कपूर को उम्मीदवार बनने का रास्ता दिखाया । एपीएस कपूर के नजदीकियों व समर्थकों को यह भी महसूस हो रहा है कि इन जिन लोगों के भरोसे वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाह रहे हैं, उन्हें यदि अजय सिंघल/मुकेश गोयल के साथ जुड़ने में ज्यादा फायदा दिखेगा तो फिर वह एपीएस कपूर का बीच में भी साथ छोड़ने में नहीं हिचकिचाएंगे । सुनील जैन ने पिछले लायन वर्ष में अवतार कृष्ण को जिस तरह उम्मीदवार बनाया/हरवाया और फिर इस वर्ष बीच मँझधार में छोड़ दिया, वह सब सामने है ही !
दरअसल अजय सिंघल ने एक उम्मीदवार के रूप में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर जैसी पकड़ बनाई है, उसके चलते उनके खिलाफ उम्मीदवार लाने का 'जिम्मा लेने' को डिस्ट्रिक्ट का कोई नेता तैयार नहीं है । जो नेता लोग अपने अपने कारणों से मुकेश गोयल की राजनीतिक छतरी के नीचे नहीं आना चाहते हैं, वह यह तो चाहते हैं कि कोई दूसरा भी उम्मीदवार आये और चुनाव की स्थितियाँ बनाये, जिससे कि उनकी भी कुछ राजनीतिक पूछ हो - लेकिन कोई भी उम्मीदवार लाने का जिम्मा नहीं लेना चाहता । क्योंकि हरेक को पता है कि अजय सिंघल से सामने जो भी उम्मीदवार आयेगा, वह हारेगा ही और फिर उसकी बदनामी यह कह कर होगी कि 'उसका' उम्मीदवार हार गया । एक उम्मीदवार के रूप में अजय सिंघल की ताकत सिर्फ यही नहीं है कि उन्हें मुकेश गोयल का समर्थन प्राप्त है । मुकेश गोयल की मदद से अजय सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच तो अपने लिए समर्थन जुटाया ही है, मल्टीपल के दूसरे और बड़े नेताओं के बीच भी जिस तरह से अपनी पैठ बनाई है - उससे भी उनकी 'राजनीतिक पहुँच' का दायरा बढ़ा है; और दायरे की इस बढ़त ने उनकी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता को व्यापक बनाने का काम भी किया और उसे मजबूत भी बनाया है । अजय सिंघल की उम्मीदवारी की इसी मजबूती का नतीजा है कि अरुण मित्तल ने पीछे जो दाँव चला, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में समीकरण भले ही उलट पलट गया हो - किंतु सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय सिंघल की उम्मीदवारी को मिलने वाला समर्थन और और बढ़ा ही : इतना बढ़ा कि जो लोग चुनाव चाहते भी हैं और उम्मीदवार भी खोज लाए हैं, वह भी उस उम्मीदवार का जिम्मा लेने से बचते हुए नजर आ रहे हैं ।
एपीएस कपूर के नजदीकियों व समर्थकों को लग रहा है कि चुनाव चाहने वाले नेता लोग ही जब एपीएस कपूर की उम्मीदवारी का जिम्मा लेने से बच रहे हैं, तब फिर एपीएस कपूर किसके भरोसे अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का एक मजेदार दृश्य यह है कि जिस किसी को सचमुच में गवर्नर बनना होता है, वह मुकेश गोयल को पहले भले ही जितनी गालियाँ दे रहा होता है, फिर मुकेश गोयल की तारीफ करने लगता है और मुकेश गोयल का साथ पकड़ लेता है । एपीएस कपूर को भी कुछ लोग समझा रहे हैं कि उन्हें यदि अपने पैसे खराब करने हैं तो फिर चाहें जो करें; लेकिन यदि सचमुच में गवर्नर बनना है, तो जैसा दूसरों ने किया है वैसे ही करें और मुकेश गोयल का साथ पकड़ लें । यह देखना दिलचस्प होगा कि एपीएस कपूर अंततः क्या करते हैं ?  

Saturday, January 10, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं के मूर्खता और धूर्तता से रचे गए स्वांग को लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के लीगल डिवीजन ने बेपर्दा कर दिया है; बेपर्दा हुए लोग जो हुआ है उसके लिए हर्ष बंसल की टुच्ची व ओछी कारस्तानियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं

नई दिल्ली । नरेश गुप्ता - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता को लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के लीगल डिवीजन से जो फटकार मिली है, उसके बाद उनके लिए तो बस चुल्लू भर पानी जुटाने की औपचारिकता निभाना बाकी रह गया है । मजे की बात यह हुई है कि लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के लीगल डिवीजन से मिली इस फटकार से सकते में आये नरेश गुप्ता तथा विक्रम शर्मा के दूसरे समर्थकों ने हर्ष बंसल को कोसना शुरू कर दिया है । लीगल डिवीजन की इस फटकार ने विक्रम शर्मा के समर्थकों के मंसूबों को तगड़ी चोट तो पहुँचाई ही है, लायंस बिरादरी में उन्हें मजाक का विषय भी बना दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता के लिए तो यह बहुत ही अपमानजनक है, क्योंकि लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के इतिहास में इससे पहले किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को ऐसी खुली फटकार शायद ही मिली होगी । नरेश गुप्ता के साथ हुए इस हादसे ने एक फिर यह साबित किया कि अपनी टुच्ची हरकतों के लिए बुरी तरह बदनाम हर्ष बंसल के चक्कर में जो कोई भी पड़ा है, उसे बदनामी और जलालत का प्रसाद ही मिला है । नरेश गुप्ता यह प्रसाद पाने वाले नए उदाहरण हैं । नरेश गुप्ता लोगों को खुद ही बता रहे हैं कि लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के लीगल डिवीजन से उन्हें यह फटकार उनकी तरफ से लिखी जिस चिट्ठी के जबाव में मिली है, वह उनके नाम से हर्ष बंसल ने लिखी थी ।
नरेश गुप्ता की तरफ से लीगल डिवीजन को लिखी गई चिट्ठी में चतुराई दिखाते हुए लीगल डिवीजन को मूर्ख बनाने की जो कोशिश की गई थी, वह उल्टी पड़ गई है । दरअसल पिछले दिनों अदालती टिप्पणी में बताया गया कि अदालत ने तीन अगस्त 2014 की मीटिंग के फैसले पर कोई रोक नहीं लगाई है । उल्लेखनीय है कि उक्त मीटिंग में विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुना गया था । अदालती टिप्पणी से विक्रम शर्मा और उनके समर्थकों को लगा कि इस टिप्पणी से वह लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को बरगला लेंगे और तीन अगस्त के उस फैसले को लागू करवा लेंगे । नरेश गुप्ता की तरफ से लिखी गई चिट्ठी में यही तर्क दिया गया कि तीन अगस्त की मीटिंग के फैसले पर अदालत ने जब रोक लगाई ही नहीं है, तब फिर उस फैसले के अनुसार विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित किया जाए । लीगल डिवीजन की तरफ से लेकिन जबाव मिला है कि जब तक अदालत में मामला है तब तक सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद खाली ही रहेगा । जबाव में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि तीन अगस्त की मीटिंग के फैसले को इंटरनेशनल ऑफिस ने न तो मान्यता दी है और न ही स्वीकार किया है ।
विक्रम शर्मा और उनके समर्थकों की उम्मीदों को पूरी तरह ध्वस्त करते हुए लीगल डिवीजन ने साफ कह दिया है कि अदालती मामला निपट जाने के बाद इंटरनेशनल ऑफिस के संबद्ध अधिकारी तय करेंगे तथा दिशा निर्देश देंगे कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खाली पद को भरने के लिए क्या करना है और कैसे करना है । लीगल डिवीजन ने नरेश गुप्ता को जो जबाव भेजा है, उसमें दो-टूक तरीके से कहा है कि विक्रम शर्मा के नाम के साथ 'सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एन्डोर्सी' और/या 'सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी' जैसा परिचय नहीं लिखा जा सकता है । लीगल डिवीजन ने अपने जबाव में 'Please note' (कृपया ध्यान दें), 'Please understand' (कृपया समझें), 'As you have been previously advised' (जैसा कि आपको पहले भी बताया गया था) जैसे संबोधनों को इस्तेमाल किया है जिससे साबित होता है कि इंटरनेशनल ऑफिस पहले ही स्पष्ट कर चुका था कि तीन अगस्त की मीटिंग में विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने के फैसले को उसने मंजूरी नहीं थी; लेकिन फिर भी विक्रम शर्मा और उनके समर्थक डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भ्रम बनाए हुए थे और ऐसा जता रहे थे कि अदालती मामला निपटते ही विक्रम शर्मा स्वतः ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जायेंगे । इंटरनेशनल ऑफिस के लीगल डिवीजन ने लेकिन मूर्खता और धूर्तता से रचे उनके स्वांग को बेपर्दा कर दिया है ।
इंटरनेशनल ऑफिस के लीगल डिवीजन के जबाव ने विक्रम शर्मा के समर्थकों के खेल को जिस तरह कतई चौपट कर दिया है, उससे समर्थक नेताओं के बीच खलबली मच गई है । नरेश गुप्ता सहित कुछेक समर्थक नेता जो हुआ है उसके लिए हर्ष बंसल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । नरेश गुप्ता के साथ साथ दूसरे कुछेक नेता भी महसूस कर रहे हैं कि हर्ष बंसल की बातों में आकर वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों की निगाह में तो गिर ही गए हैं, लायंस बिरादरी में भी उन्होंने अपनी इज्जत गवाँ दी है । अपनी कारस्तानियों के कारण हर्ष बंसल तो लायंस बिरादरी में बदनाम हैं ही, जो कोई उनके साथ जुड़ता है वह अपनी करतूतों से उसकी भी फजीहत करा देते हैं । हर्ष बंसल लेकिन किस्मत के धनी हैं - एक घटिया व्यक्ति की पहचान रखने के बावजूद लोग उन्हें मिल भी जाते हैं; और फिर अपने आप को कोसते हैं कि हर्ष बंसल से वह क्यों मिले ?

Friday, January 9, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में जेके गौड़, रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा की तिकड़ी को विश्वास है कि पीटी प्रभाकर एक जैसे 'अपराध' के बावजूद शरत जैन के साथ वैसा कुछ नहीं करेंगे, जैसा कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3100 के दीपक बाबू के साथ किया है; क्योंकि उनके पास सुशील गुप्ता और मनोज देसाई का समर्थन है

नई दिल्ली । पीटी प्रभाकर - इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर ने दिल्ली में डिस्ट्रिक्ट 3100 की काउंसिल (ऑफ गवर्नर्स) के साथ हुई बातचीत में दीपक बाबू की अपील पर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड द्धारा 26 से 29 जनवरी के बीच होने वाली वर्ष 2014-15 की तीसरी बोर्ड मीटिंग में 'लिए जाने वाले' फैसले को आज ही सुना दिया । इस तरह पीटी प्रभाकर ने एकबार फिर साबित कर दिया कि फैसलों के लिए बोर्ड मीटिंग का इंतजार करना बेवकूफी है, फैसले तो पहले ही कर लिए जाते हैं । मीटिंग में तो फैसलों पर सिर्फ मोहर लगती है । पीटी प्रभाकर आज दोपहर दिल्ली में डिस्ट्रिक्ट 3100 की काउंसिल (ऑफ गवर्नर्स) की उस मीटिंग में अचानक शामिल होने के लिए आ पहुँचे, जिसे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने बुलाया था । इस मीटिंग में मुख्य तौर पर पिछले रोटरी वर्ष में हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव से जुड़े झगड़े/झंझट पर ही चर्चा हुई । पीटी प्रभाकर इस मीटिंग में शायद इसीलिए शामिल हुए, ताकि वह उक्त झगड़े/झंझट को लेकर डिस्ट्रिक्ट 3100 के लोगों को 'अपनी' राय से अवगत करा दें । इसीलिए कल सायं जब अचानक से पीटी प्रभाकर का इस मीटिंग में शामिल होना निश्चित हुआ, उसके बाद ही डिस्ट्रिक्ट 3100 में पिछले वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के दोनों उम्मीदवारों - दीपक बाबू और दिवाकर अग्रवाल को भी मीटिंग में पहुँचने का नोटिस मिला । रोटरी इंटरनेशनल साऊथ एशिया ऑफिस में क्लब एवं डिस्ट्रिक्ट सपोर्ट मैनेजर जतिंदर सिंह को भी उक्त झगड़े/झंझट से जुड़े तथ्यों/सुबूतों के साथ मीटिंग स्थल पर मौजूद रहने का आदेश मिला ।
पीटी प्रभाकर ने डिस्ट्रिक्ट 3100 में पिछले रोटरी वर्ष में हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दीपक बाबू को पक्षपातपूर्ण व धॉँधलीपूर्ण तरीके से चुनाव जितवाने को लेकर अपनी गहरी नाराजगी दिखाई । जिस किसी पूर्व गवर्नर ने कुछ सफाई देने की कोशिश की, उसे पीटी प्रभाकर से लताड़ ही सुनने को मिली । पीटी प्रभाकर की नाराजगी का सबसे ज्यादा शिकार तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल बने । राकेश सिंघल को कई प्रसंगों में पीटी प्रभाकर की लताड़ सुनने को मिली । पीटी प्रभाकर ने अपनी तरफ से यह स्पष्ट कर दिया कि दीपक बाबू ने भले ही अपनी जीत को अमान्य करार दिए जाने के फैसले के खिलाफ रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में अपील की हुई है, लेकिन बोर्ड पहले लिए जा चुके फैसले को बदलने का काम नहीं करेगा । इस तरह पीटी प्रभाकर ने दीपक बाबू और उनके समर्थकों को तगड़ा झटका दिया, क्योंकि दीपक बाबू एण्ड पार्टी रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड की 26 से 29 जनवरी के बीच होने वाली मीटिंग से अपनी चुनावी जीत के बहाल होने की उम्मीद लगाये हुए थे । पीटी प्रभाकर ने इससे भी बड़ा झटका यह कह कर दिया कि वर्ष 2016-17 के गवर्नर पद के लिए अब जो दोबारा चुनाव होगा, उसमें दीपक बाबू और दिवाकर अग्रवाल उम्मीदवार नहीं बनेंगे ।
दीपक बाबू और उनके समर्थकों की तैयारी थी कि बोर्ड मीटिंग में उनकी चुनावी जीत यदि नहीं भी बहाल हुई, तो वर्ष 2016-17 के गवर्नर पद के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में अकेले वही उम्मीदवार होंगे - क्योंकि दिवाकर अग्रवाल को तो रोटरी इंटरनेशनल पहले ही उनके रास्ते से हटा चुका है । किंतु पीटी प्रभाकर ने आज उनकी इस तैयारी पर भी पानी फेर दिया है । दीपक बाबू ने हालाँकि प्रतिरोध करने का विकल्प अभी बचा कर रखा हुआ है । उन्होंने पीटी प्रभाकर को यह भरोसा देने से आज तो इंकार कर दिया है कि वर्ष 2016-17 के गवर्नर पद के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में वह उम्मीदवार नहीं बनेंगे । उन्होंने इंकार भले ही कर दिया है, लेकिन पीटी प्रभाकर के तेवर देख कर यह भी लगता है कि दीपक बाबू इस इंकार के बाद भी हासिल कुछ नहीं कर पायेंगे । दीपक बाबू का साथ देने के लिए पिछले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को जैसी झाड़ पड़ी है, उसे देखते हुए दीपक बाबू को किसी का समर्थन मिल सकेगा - इसमें संदेह है । पिछले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को उस एक तस्वीर के लिए पीटी प्रभाकर का बुरी तरह कोपभाजन बनना पड़ा, जिसमें वह मंच पर दीपक बाबू को अपने साथ बैठाए हुए हैं । इस तस्वीर के साथ-साथ, रोटरी इंटरनेशनल साऊथ एशिया ऑफिस में क्लब एवं डिस्ट्रिक्ट सपोर्ट मैनेजर जतिंदर सिंह द्धारा दिखाए जा रहे दूसरे तथ्यों/सुबूतों को देखते हुए पीटी प्रभाकर ने यह स्पष्ट कर दिया कि जिस पक्षपातपूर्ण और धाँधलीपूर्ण तरीके से दीपक बाबू को चुनाव जितवाया गया, उसे जानने/पहचानने के बाद दीपक बाबू को वर्ष 2016-17 में तो गवर्नर नहीं बनने दिया जायेगा ।
पीटी प्रभाकर के दिल्ली में दिखाए गए इन तेवरों से दिल्ली में होने जा रहे डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के चुनाव पर नजरें आ पड़ी हैं, जहाँ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जेके गौड़, उनके डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रमेश अग्रवाल और उनके डीआरएफसी मुकेश अरनेजा खुलेआम शरत जैन को जितवाने का बीड़ा उठाए हुए हैं । पीटी प्रभाकर को दीपक बाबू के साथ राकेश सिंघल की एक तस्वीर मिली; शरत जैन के साथ जेके गौड़-रमेश अग्रवाल-मुकेश अरनेजा की तस्वीरों का तो पूरा अल्बम है । पक्षपातपूर्ण और धाँधलीपूर्ण तरीके से दीपक बाबू को चुनाव जितवाने की जिस बात पर पीटी प्रभाकर उखड़े हुए हैं; शरत जैन के मामले में तो उससे कहीं ज्यादा पक्षपातपूर्ण व धाँधलीपूर्ण तरीकों को अपनाया जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट 3012 में शरत जैन को चुनाव जितवाने के लिए जेके गौड़, रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा की तिकड़ी तो रोटरी और डिस्ट्रिक्ट ही 'बेचे' दे रही है । ऐसे में सवाल यही उठ रहा है कि पीटी प्रभाकर ने यदि डिस्ट्रिक्ट 3100 के दीपक बाबू के साथ कोई निजी खुंदक नहीं निकाली है, और सचमुच में रोटरी के हितों का ध्यान रखते हुए फैसला किया है - तो फिर वह डिस्ट्रिक्ट 3012 में शरत जैन के साथ वैसा ही फैसला क्यों नहीं करेंगे ?
पीटी प्रभाकर एक जैसे 'अपराध' के बावजूद शरत जैन के साथ वैसा कुछ नहीं करेंगे, जैसा कि उन्होंने दीपक बाबू के साथ किया है; क्यों नहीं करेंगे - शरत जैन, जेके गौड़, रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा के पास इसका एक बड़ा ठोस जबाव है; उनका जबाव है कि - क्योंकि उनके पास सुशील गुप्ता और मनोज देसाई हैं । उनका विश्वास है कि उनके पास जब तक सुशील गुप्ता और मनोज देसाई का समर्थन है, तब तक वह कुछ भी करते रह सकते हैं और कोई पीटी/बीटी/सीटी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।  

Wednesday, January 7, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के झमेले की अनदेखी करते हुए पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट 3100 के झगड़े में दिलचस्पी ले रहे हैं, उससे लग रहा है कि वह समस्या को वास्तव में हल करने की नहीं बल्कि सिर्फ अपनी राजनीति दिखाने/चमकाने की कोशिश कर रहे हैं

नई दिल्ली । सुशील गुप्ता - पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता भी गजब तमाशा करते हैं : अपना 'घर' सँभालने की वह कोई कोशिश करते नहीं दिख रहे, लेकिन दूसरों का 'घर' सँभालने की वह बड़ी फिक्र कर रहे हैं ।
सुशील गुप्ता 9 जनवरी को डिस्ट्रिक्ट 3100 की काउंसिल (ऑफ गवर्नर्स) के साथ मीटिंग करने जा रहे हैं, जिसमें वह डिस्ट्रिक्ट 3100 के झगड़ों-टंटों से बचने के उपाय बतायेंगे ।
रोटरी में यह एक आम समझ है कि क्लब्स में और डिस्ट्रिक्ट्स में लोग बहुत झगड़े-टंटे करते हैं, जिससे रोटरी की बहुत बदनामी होती है । डिस्ट्रिक्ट 3100 का मामला लेकिन यह बताता है कि रोटरी में झगड़े रोटरी के बड़े नेताओं द्धारा समय पर फैसला न लेने, उनकी पक्षपाती भूमिका और कई बार तो विरोधाभासी व मूर्खतापूर्ण तरीके से फैसले करने के कारण होते और बढ़ते हैं ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 में पिछले वर्ष 'हुए' डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के कारण डिस्ट्रिक्ट में बड़ा फजीता हुआ; प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवारों ने दूसरे की शिकायतें कीं और इसके कारण डिस्ट्रिक्ट की बड़ी किरकिरी हुई । यह फजीता हुआ क्यों - इसे जानने/समझने के लिए घटनाक्रम को सिलसिलेबार देखना उपयोगी होगा : डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दो उम्मीदवार सामने आये - दीपक बाबू और दिवाकर अग्रवाल । इनके नामांकन आधिकारिक रूप से स्वीकार होते, उससे पहले दीपक बाबू ने दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर शिकायत दर्ज की । उनकी शिकायत थी कि दिवाकर अग्रवाल ने चूँकि डिस्ट्रिक्ट टीम में पद लिया है और डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में उनका नाम-पता-फोटो छपा है, इसलिए उनकी उम्मीदवारी स्वीकार नहीं करना चाहिए । दिल्ली स्थित रोटरी इंटरनेशनल के साउथ एशिया ऑफिस ने इस शिकायत पर लेकिन कई हफ्तों तक फैसला ही नहीं लिया । इसका नतीजा यह हुआ कि डिस्ट्रिक्ट में आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हुआ और तत्कालीन गवर्नर राकेश सिंघल की भारी फजीहत हुई । फैसला लेने में अनावश्यक देर न लगती तो यह सब न हुआ होता । देर से हुए फैसले में दीपक बाबू की शिकायत को खारिज कर दिया गया - लेकिन तब तक दोनों तरफ के लोगों में इस हद तक तलवारें तन चुकी थीं कि दीपक बाबू ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दी ।
दीपक बाबू की इस अपील पर फैसला आने में सात महीने लग गए । अब जो फैसला आया, उसमें दीपक बाबू की माँग को मान लिया गया और दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को अमान्य घोषित कर दिया गया । लेकिन यह फैसला अप्रासंगिक साबित रहा और एक मजाक के रूप में सामने आया, क्योंकि जब तक यह फैसला आया तब तक चुनाव हो चुका था और चुनाव में पराजित हुए दिवाकर अग्रवाल ने दीपक बाबू की चुनावी जीत को इस आरोप के साथ कठघरे में खड़ा कर दिया था कि दीपक बाबू ने बेईमानी और खरीद-फरोख्त से जीत प्राप्त की है । दीपक बाबू की अपील पर जब फैसला आया, लगभग तभी दिवाकर अग्रवाल की शिकायत पर फैसला आया, जिसमें दिवाकर अग्रवाल के आरोप को सही मानते हुए दीपक बाबू की चुनावी जीत को न सिर्फ निरस्त कर दिया गया, बल्कि दीपक बाबू की हरकतों को देखते हुए दोबारा होने वाले चुनाव में उनके उम्मीदवार होने पर भी रोक लगा दी गई । रोटरी इंटरनेशनल में जिस भी स्तर पर फैसले होते हैं और जो भी पदाधिकारी फैसले करने की प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं, उनकी मूर्खता का आलम देखिये कि एक तरफ तो दिवाकर अग्रवाल को उम्मीदवार मानने से इंकार किया गया, और दूसरी तरफ उम्मीदवार के रूप में उन्हीं दिवाकर अग्रवाल की शिकायत के आधार पर दीपक बाबू के चुने जाने को अमान्य घोषित कर दिया गया ।
बात इतनी भर रहती तो भी गनीमत थी । बात लेकिन इससे और आगे बढ़ी । इन दोनों फैसलों के आने के बाद डिस्ट्रिक्ट 3100 में यह समझ बनी कि पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव के अमान्य होने के कारण दोबारा होने वाले चुनाव में दीपक बाबू और दिवाकर अग्रवाल उम्मीदवार नहीं हो सकेंगे । किंतु इस समझ पर तब पानी फिर गया जब पता चला कि रोटरी इंटरनेशनल ने दीपक बाबू को उनकी चुनावी जीत को निरस्त करने के फैसले से अवगत कराते हुए इस फैसले के खिलाफ अपील करने के विकल्प से उन्हें अवगत कराया और इसके लिए तीन हजार डॉलर की रकम जमा कराने के लिए उन्हें बाकायदा बाऊचर भेजा । दीपक बाबू ने अपील कर दी । यानि जो झगड़ा निपटता दिख रहा था, वह फिर भड़क उठा । अब इसे मजाक कहेंगे या मूर्खता कि रोटरी इंटरनेशनल एक तरफ तो अपील करने का ऑफर दे रहा है, और दूसरी तरफ उसी इंटरनेशनल के पदाधिकारी के रूप में पीटी प्रभाकर व मनोज देसाई डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों को धमका रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट से बहुत अपील हो रही हैं; क्यों न डिस्ट्रिक्ट बंद कर दें ।
रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को अपने द्धारा की जा रही मूर्खताओं का लगता है कि कोई अहसास भी नहीं है । पिछले रोटरी वर्ष में झगड़ा जिस कारण से दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने की माँग के साथ शुरू हुआ, और जो अभी तक भी नहीं निपटा है; उसी कारण से इस वर्ष प्रस्तुत हुई रोटरी क्लब मेरठ साकेत के राजीव सिंघल की उम्मीदवारी पर सवाल उठे । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में दिवाकर अग्रवाल का नाम-पता-फोटो तो डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में एक जगह छपा था, राजीव सिंघल का नाम तो इस वर्ष दो जगह छपा है । रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस ने जिस तरह पिछले वर्ष दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को हरी झंडी दे दी थी, ठीक उसी तरह उसने इस वर्ष राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को हरी झंडी दे दी - यानि पिछली बार की तरह उसने इस बार भी अपनी तरफ से झगड़ा बढ़ाने का पूरा इंतजाम कर दिया ।
इन तथ्यों से साफ है कि रोटरी में झगड़े बड़े पदाधिकारियों के रवैये से प्रेरित होते हैं और बढ़ते हैं । रोटरी इंटरनेशनल में फैसले यदि उचित समय से हों; जो फैसले हों उनमें परस्पर विरोध न दिखाई पड़ता हो तो तमाम झगड़ों को बढ़ने का मौका ही नहीं मिलेगा और रोटरी की बदनामी भी नहीं होगी ।
इसीलिए, सुशील गुप्ता यदि सचमुच में यह चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट्स में झगड़े न हों तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ नहीं, बल्कि रोटरी इंटरनेशनल के साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों और इंटरनेशनल डायरेक्टर टाइप के लोगों के साथ मीटिंग करनी चाहिए । सुशील गुप्ता भी लेकिन लग रहा है कि बस मजे ले रहे हैं और डिस्ट्रिक्ट्स के झगड़ों में अपनी राजनीति चमकाने/दिखाने का मौका देख रहे हैं और उसे इस्तेमाल कर रहे हैं ।
इसीलिए डिस्ट्रिक्ट 3100 की फिक्र करने वाले सुशील गुप्ता अपने डिस्ट्रिक्ट - अपने 'घर' में चल रही उथल-पुथल के प्रति आँखें बंद किए बैठे हैं । रोटरी इंटरनेशनल के साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर टाइप के लोगों द्धारा फैसले न करने, देर से करने और परस्पर विरोधी दिखने वाले फैसले करने के रवैये के चलते डिस्ट्रिक्ट 3010 में हालात आग लगाने जैसे बने हुए हैं, लेकिन सुशील गुप्ता का इस पर कोई ध्यान नहीं है । शायद वह इंतजार कर रहे हैं कि आग पहले पूरी तरह लगे तो, फिर वह उसे बुझाने के लिए आगे आयेंगे । उनकी नेतागिरी तभी तो चमकेगी ।
डिस्ट्रिक्ट 3010 में इस वर्ष दो डिस्ट्रिक्ट के लिए दो दो चुनाव होने हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर टाइप के लोगों का कहना है कि यह चुनाव पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार होना चाहिए । इस फैसले का विरोधाभास यह है कि चुनाव जिस प्रक्रिया से हो रहा है उसमें पायलट प्रोजेक्ट के नियमों का पालन हो ही नहीं रहा है । सबसे बड़ी बात यह कि पायलट प्रोजेक्ट डिस्ट्रिक्ट 3010 पर लागू है; चुनाव डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के होने हैं - जो पायलट प्रोजेक्ट के तहत नहीं आते हैं । सबसे बुरी बात जो हो रही है, वह यह कि इस विरोधाभास पर उठने वाले सवालों का जबाव कोई नहीं दे रहा है । साऊथ एशिया ऑफिस को बाकायदा पत्र लिख कर सवाल पूछे गए, लेकिन उसने यह कह कर जबाव देने से इंकार कर दिया कि यह सवाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से पूछे जाएँ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना को पत्र लिखा गया तो उन्होंने चुप्पी साध ली है । यानि हालात वही हैं कि समय से फैसले मत करो, फैसले देर से करो, विरोधाभासी फैसले करो - और इस सब के चलते लोगों के बीच असंतोष बढ़े और वह शिकायत करें तो कहो कि लोग झगड़ा करते हैं ।
फिर सुशील गुप्ता जैसे लोग आगे आयेंगे, लोगों को यह समझाने के लिए कि भई झगड़े मत करो । कोई सुशील गुप्ता से कह सकता है क्या कि झगड़े क्यों होते/बढ़ते हैं, यह जानने/समझने के लिए अपने गिरेबान में भी तो झाँक लो; और यह भी कि डिस्ट्रिक्ट 3100 में हालात ठीक करने की कोशिश के साथ-साथ कुछ अपने 'घर' की - डिस्ट्रिक्ट 3010 की भी ख़ैर खबर ले लो ।
प्लीज !