Friday, January 23, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी के बीच तुलना करते हुए लोगों ने पाया कि रोटरी का भविष्य प्रसून चौधरी के साथ है; और इसीलिए लोगों के बीच पड़े/बने प्रभाव में प्रसून चौधरी को सतीश सिंघल के मुकाबले बढ़त मिलती दिख रही है

नई दिल्ली । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने के उद्देश्य से चुनाव से दो दिन पहले हुई मीटिंग में कम रही उपस्थिति ने सतीश सिंघल के समर्थकों को तगड़ा झटका दिया है । सतीश सिंघल की तरफ से चूँकि यह एक ही मीटिंग होनी थी, इसलिए इसमें अच्छी-खासी भीड़ होने की उम्मीद की जा रही थी; लेकिन लोगों की कम उपस्थिति ने सतीश सिंघल के हमदर्दों को बुरी तरह निराश किया । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के पक्ष में बनियाबाद चलाने के बावजूद उनकी उम्मीदवारी के लिए हुई मीटिंग में लोगों के न जुटने से सतीश सिंघल के समर्थकों को चिंता में डाल दिया है । हालाँकि सतीश सिंघल के नजदीकियों का कहना है कि इस मीटिंग में ज्यादा लोगों को बुलाया ही नहीं गया था, और जिन व जितने लोगों को बुलाया था उतने लोग मीटिंग में पहुँचे - और इसलिए मीटिंग में कम रही उपस्थिति कोई चिंता की बात नहीं है । सतीश सिंघल के नजदीकियों का दावा है कि मीटिंग में सिर्फ 'काम' के लोगों को बुलाया गया था, और वह आए भी ।
नजदीकियों और समर्थकों की इस परस्पर विपरीत प्रतिक्रिया से यही संकेत और सुबूत मिलता है कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के अभियान में तालमेल की भारी कमी है । सतीश सिंघल के लिए मुसीबत की बात यह रही है कि उनके समर्थक समझे जाने वाले लोग ही उनका मजाक बनाते देखे/सुने गए हैं । रोटरी क्लब दिल्ली विकास के शिव शंकर अग्रवाल लोगों को बताते सुने/देखे गए हैं कि सतीश सिंघल जो चार-पाँच पेज का विजन डॉक्युमेंट लोगों को दिखाते रहते हैं उसे सतीश सिंघल के लिए उन्होंने तैयार किया है; और सतीश सिंघल ने तो उसे शायद पढ़ा भी नहीं है, क्योंकि उसमें लिखी बातें वह कभी कहते/बताते ही नहीं हैं । सतीश सिंघल के समर्थकों को सतीश सिंघल से शिकायत रही है कि अपने पूरे अभियान में उन्होंने लोगों के बीच सिर्फ तीन बातें ही कहीं हैं : वह एक पुराने रोटेरियन हैं; उन्होंने ब्लड बैंक बनाया है; और उनका क्लब मेजर डोनर क्लब है; - और इन तीन बातों के आधार पर ही वह माँग कर रहे हैं कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बना दो । सतीश सिंघल ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत बड़े जोरशोर से की थी और अपने चुनाव अभियान में कई प्रमुख रोटेरियंस का समर्थन भी उन्होंने प्राप्त किया था; किंतु अपने व्यवहार और अपने रवैये के चलते वह न तो उस जोरशोर को बनाये रख सके और न ही अपने समर्थकों को अपने साथ जोड़े रख सके । शुरू में सतीश सिंघल के साथ दिख रहे कई लोग अब प्रसून चौधरी के साथ नजर आ रहे हैं ।
प्रसून चौधरी के साथ लोगों का चूँकि ज्यादा परिचय नहीं था, इसलिए सतीश सिंघल के मुकाबले उनके सामने गंभीर चुनौती थी । लेकिन लोगों को जैसे जैसे प्रसून चौधरी के बारे में परिचय मिलना शुरू हुआ, वैसे वैसे लोगों के बीच उनकी पैठ बनती गई । लोगों को यह जानकर वास्तव में हैरानी हुई और अच्छा लगा कि क्लब और डिस्ट्रिक्ट में प्रसून चौधरी की जो उपलब्धियाँ रहीं, उनके अलावा प्रसून चौधरी की बर्मिंघम, मॉन्ट्रियल और सिडनी में आयोजित हुईं तीन रोटरी इंटरनेशनल कन्वेंशन में भी सक्रिय भागीदारी रही और देश के बाहर विभिन्न देशों के 70 से अधिक क्लब्स के आयोजनों में शामिल होने का उन्हें मौका मिला है । प्रसून चौधरी ने दरअसल अपनी कामकाजी सक्रियता के साथ रोटरी का तानाबाना कुछ इस तरह बुना जिससे कि उन्होंने रोटरी की वास्तविक भावना को चरितार्थ किया ।
प्रसून चौधरी मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं और उनकी कंपनी के दिल्ली, मुंबई व अमेरिका में ऑफिस हैं । वह भारत सहित एशिया, अमेरिका और यूरोप की तमाम बड़ी कंपनियों के सलाहकार हैं । दिल्ली आईआईटी और आईआईएम कोलकाता सहित देश के प्रमुख शिक्षा संस्थानों में वह विजिटिंग फैकल्टी हैं । देशी-विदेशी समाचार पत्रों तथा जर्नल्स में उनके लेख आदि प्रकाशित होते रहे हैं । कामकाजी सक्रियता के चलते प्रसून चौधरी को अक्सर ही अलग-अलग देशों की यात्रा पर जाना होता है । प्रसून चौधरी दुनिया के जिस भी शहर में होते हैं, वहाँ की रोटरी गतिविधियों से परिचित होने तथा उससे जुड़ने की हर संभव कोशिश करते हैं । दरअसल उनकी इसी कोशिश का नतीजा रहा कि देश के बाहर विभिन्न देशों के 70 से अधिक क्लब्स के आयोजनों से परिचित होने तथा उनमें शामिल होने का मौका उन्हें मिला - जिससे रोटरी का उन्हें व्यापक अनुभव हो सका ।
प्रसून चौधरी ने कार्पोरेट क्षेत्र के साथ अपने संपर्कों के चलते ही अपने क्लब के कई प्रोजेक्ट विभिन्न कंपनियों के साथ मिल कर किए । अपने विजन डॉक्युमेंट में प्रसून चौधरी इस बात पर लगातार जोर देते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह कार्पोरेट क्षेत्र के साथ मिल कर प्रोजेक्ट्स करने पर जोर देंगे, जिससे कि रोटेरियंस पर आर्थिक बोझ पड़े बिना बड़े प्रोजेक्ट्स किए जा सकेंगे और रोटरी का विस्तार भी हो सकेगा । प्रसून चौधरी का यह प्रोफाइल और उनकी कार्ययोजना स्वाभाविक रूप से किसी को भी आकर्षित करेगी ही - और उसने लोगों को आकर्षित किया भी । प्रसून चौधरी को लोगों के बीच पैठ बनाने में आसानी इसलिए भी हुई, क्योंकि उनके प्रतिद्धंद्धी सतीश सिंघल अपनी कोई कार्य योजना प्रस्तुत ही नहीं कर सके । सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी में एक बड़ा अंतर यह रहा कि सतीश सिंघल इसलिए गवर्नर बनने की उम्मीद रखते हैं क्योंकि उन्होंने पूर्व में कुछ काम किए हैं, और प्रसून चौधरी इसलिए गवर्नर बनने की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि उन्हें भविष्य में कुछ काम करने हैं । यानि सतीश सिंघल को ईनाम के रूप में गवर्नरी चाहिए और प्रसून चौधरी को जिम्मेदारी के रूप में गवर्नरी चाहिए ।
सतीश सिंघल ने जिस तरह से अपना अभियान चलाया - उससे उन्होंने आभास दिया कि अब वह थक गए हैं, उन्हें जो करना था वह कर चुके हैं, उन्होंने जो किया है उसका 'भुगतान' करो और उन्हें गवर्नरी सौंपो । प्रसून चौधरी ने जिस तरह से अपना अभियान चलाया - उससे उन्होंने आभास दिया कि रोटरी में बहुत कुछ करने के लिए उनके पास एक सोच है, उस सोच को क्रियान्वित करने के लिए उनके पास सोर्स है, और सोर्स का उपयोग करने के लिए उनके पास जोश है । सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी के बीच तुलना करते हुए लोगों ने पाया कि रोटरी का भविष्य प्रसून चौधरी के साथ है । इसीलिए तैयारियों और लोगों के बीच पड़े/बने प्रभाव में प्रसून चौधरी को सतीश सिंघल के मुकाबले बढ़त मिलती दिख रही है ।
सतीश सिंघल की तरफ से अपने आप को मुकाबले में बनाये रखने के लिए आखिरी हथियार के रूप में बनियाबाद का दाँव चला है । सतीश सिंघल के नजदीकियों का कहना है कि अब बनियाबाद ही सतीश सिंघल को बचा सकता है । रोटरी की चुनावी राजनीति से परिचित लोगों का मानना और कहना हालाँकि यह है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में उम्मीदवार लोग अक्सर जातपात का सहारा लेते तो हैं, किंतु उन्हें सचमुच में सहारा मिल नहीं पाता है । रोटरी में कुछेक लोग तो जरूर जातपात मानते/निभाते हैं, लेकिन अधिकतर लोग इसे रोटरी के लिए गैरजरूरी ही मानते हैं और व्यवहार व कामकाज के आधार पर ही फैसले करते हैं । ऐसे में सतीश सिंघल के लिए सचमुच में परेशानी आ पड़ी है और उनके समर्थकों को भी लगने लगा है कि बनियाबाद का हथियार नहीं चला तो फिर तो प्रसून चौधरी से आगे निकल पाना उनके लिए मुश्किल ही होगा ।