Tuesday, January 13, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सतीश सिंघल को जिन लोगों से सहयोग और समर्थन मिलने की उम्मीद थी, और जो लोग शुरू में उनकी उम्मीदवारी के साथ देखे भी जा रहे थे - वही लोग अब जब प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रिय नजर आ रहे हैं तो बाजी प्रसून चौधरी के हाथ में आती दिखना स्वाभाविक ही है

गाजियाबाद । प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से सोनीपत में आयोजित हुई मीटिंग के पीछे मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के नजदीकियों की सक्रियता को देख/पहचान कर सतीश सिंघल की चुनावी उम्मीदों को खासा तगड़ा झटका लगा है । उल्लेखनीय है कि अभी तक सतीश सिंघल की तरफ से भी और मुकेश अरनेजा की तरफ से भी ऐसा आभास दिया जा रहा था जैसे कि मुकेश अरनेजा एण्ड पार्टी डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करेगी । मुकेश अरनेजा ने कुछेक जगह सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थन में बात की भी थी । लेकिन रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ ने चूँकि सतीश सिंघल के साथ साथ प्रसून चौधरी के साथ भी तार जोड़े हुए थे, इसलिए मुकेश अरनेजा द्धारा की जा रही सतीश सिंघल के समर्थन की बातों पर बहुत भरोसा नहीं किया जा रहा था । मुकेश अरनेजा कई लोगों के साथ राजनीतिक धोखेबाजी करने के कारण पहले से ही खासे बदनाम हैं, इसलिए भी माना/समझा जा रहा था कि मौका पड़ा तो वह सतीश सिंघल के साथ भी धोखेबाजी करने से नहीं हिचकिचायेंगे । सतीश सिंघल की तरफ से हालाँकि लगातार दावा किया जाता रहा है कि इन लोगों का समर्थन उनके साथ ही रहेगा । सतीश सिंघल के कुछेक नजदीकी तो प्राइवेट में मुकेश अरनेजा ने, रमेश अग्रवाल ने, जेके गौड़ ने जो कुछ कहा होता है, उसका हवाला देते हुए दावा करते रहे हैं कि यह लोग अंदरखाने सतीश सिंघल के साथ ही हैं ।
सतीश सिंघल के नजदीकियों के इस तरह के दावे सुनकर लोगों को याद भी आया कि दो वर्ष पहले हुए चुनाव में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल इसी तरह से 'अंदरखाने' आलोक गुप्ता के साथ थे; और आलोक गुप्ता बताते थे कि उनकी इन दोनों से ही लगभग रोजाना बातें होती हैं और दोनों ही जेके गौड़ की बड़ी बुराई किया करते हैं । आलोक गुप्ता को बहुत बाद में समझ में आया कि 'अंदरखाने' की आड़ में यह दोनों दरअसल उनको उल्लू बना रहे थे और जेके गौड़ के साथ मिले हुए थे । सोनीपत में प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से आयोजित हुई मीटिंग में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के नजदीकियों को सक्रिय देख कर यह स्पष्ट हुआ कि 'अंदरखाने' की आड़ में यह दोनों अब की बार सतीश सिंघल को गोली दे रहे थे, और यह काम वास्तव में प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी को आगे बढ़ाने का कर रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले तथा मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की हरकतों को देखते/पहचानते रहे लोगों का मानना और कहना लेकिन यह भी है कि यह दोनों हारते दिख रहे के साथ धोखा करते हैं; यह दरअसल जीतने वाले के साथ रहते हैं, ताकि यह दावा कर सकें कि उसे इन्होंने जितवाया है । दो वर्ष पहले हुए चुनाव में यह दोनों सचमुच में आलोक गुप्ता के साथ ही थे, किंतु जैसे ही इन्हें समझ में आया कि आलोक गुप्ता के मुकाबले जेके गौड़ के जीतने के चांस ज्यादा हैं वैसे ही इन्होंने आलोक गुप्ता का झंडा छोड़ कर जेके गौड़ का झंडा उठा लिया । इस बार भी, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में पहले इन्हें लगता था कि प्रसून चौधरी के लिए सतीश सिंघल का मुकाबला कर पाना मुश्किल होगा, इसलिए यह सतीश सिंघल के साथ होने का दिखावा करने लगे थे; लेकिन जैसे ही इन्हें लगा कि सतीश सिंघल के लिए चुनावी होड़ में बने/टिके रहना मुश्किल हो रहा है और प्रसून चौधरी अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में अच्छा खासा समर्थन जुटाते नजर आ रहे हैं, वैसे ही इन्होंने भी सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का झंडा छोड़ कर प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है ।
सतीश सिंघल एक उम्मीदवार के रूप में चूँकि अपनी सक्रियता नहीं दिखा पाए हैं, इसीलिए धीरे धीरे करके ऐसे कई लोग, जो शुरू में उनके साथ दिखते थे, अब उनसे दूर दिख रहे हैं और या प्रसून चौधरी के साथ/समर्थन में नजर आ रहे हैं । सतीश सिंघल के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि सतीश सिंघल ने अपने ही रवैये से अपना मामला खराब कर लिया है । सतीश सिंघल ने लोगों के बीच बाकायदा तर्क दिया कि चूँकि वह पुराने रोटेरियन हैं और उन्होंने रोटरी में बहुत काम किया है, इसलिए उम्मीदवार के रूप में उन्हें लोगों से समर्थन माँगने क्यों जाना चाहिए; लोगों को खुद ही आगे बढ़ कर उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करना चाहिए । पहले उन्होंने अपने क्लब के लोगों से यह उम्मीद की कि क्लब के लोगों को उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में सक्रिय हो जाना चाहिए । क्लब के लोगों ने पाया/देखा कि सतीश सिंघल उनके ही भरोसे अपनी उम्मीदवारी की नैया को पार लगाना चाहते हैं, तो फिर वह भी पीछे हट गए । इसी तरह धीरे धीरे सतीश सिंघल ने अपने तमाम समर्थकों को खो दिया है । अभी करीब दो महीने पहले इन पँक्तियों के लेखक से सतीश सिंघल की बड़ी जोरदार वकालत करने वाले एक वरिष्ठ रोटेरियन ने उनके रवैये से पैदा हुई निराशा को अब इन शब्दों के साथ अभिव्यक्त किया कि 'अरे, सतीश की बात छोड़िये; उसका कुछ समझ में नहीं आता है कि वह क्या कहता है और क्या करता है ।'
सतीश सिंघल का नुकसान प्रसून चौधरी का फायदा बना है । यह फायदा अपने आप नहीं बना है; इसके लिए प्रसून चौधरी ने अथक मेहनत की है । कम अनुभव होने तथा रोटरी की चुनावी राजनीति के लटकों-झटकों से अपरिचित होने के बावजूद प्रसून चौधरी ने सिर्फ अपनी सक्रियता और अपनी संलग्नता के भरोसे ही अपने आप को मुकाबले में आगे किया है । प्रसून चौधरी ने अपने व्यवहार और अपनी कार्यप्रणाली से क्लब्स के प्रभावी लोगों के बीच ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के बीच भी अपने लिए स्वीकार्यता का भाव बनाया है और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाया है । सतीश सिंघल को हालाँकि अभी भी यकीन है कि रोटरी में उन्होंने जो किया है, उसे देखते/समझते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए लोग उन्हें ही चुनेंगे; किंतु सतीश सिंघल के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि सतीश सिंघल ने अपने रवैये और व्यवहार से जिस तरह अपने समर्थकों को खो दिया है, उससे उनकी उम्मीदवारी के सफल होने की संभावना खत्म हो गई है । सतीश सिंघल को जिन लोगों से सहयोग और समर्थन मिलने की उम्मीद थी, और जो लोग शुरू में उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन व्यक्त करते हुए देखे भी जा रहे थे - वही लोग अब जब प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रिय नजर आ रहे हैं तो ऐसा लगना स्वाभाविक ही है कि सतीश सिंघल के लिए चुनौती अब बहुत मुश्किल हो गई है ।