नई दिल्ली/गाजियाबाद | आलोक गुप्ता ने तैयारी तो पूरी की हुई है कि पेम थर्ड में रमेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी के प्रति अपना समर्थन घोषित कर दें, लेकिन आलोक गुप्ता के ही अन्य 'शुभचिंतकों' का कहना है कि आलोक गुप्ता का 'काम' होगा नहीं | आलोक गुप्ता ने जिन मुकेश अरनेजा की पिछले वर्षों में काफी 'सेवा' की है, जिन मुकेश अरनेजा को वह 'गुरूजी' कहते तथा मानते हैं, और अपनी सेवा के बदले में उन्हें जिन मुकेश अरनेजा से 'मदद' की उम्मीद भी है - मदद की उम्मीद स्वाभाविक ही है - उन मुकेश अरनेजा का ही स्पष्ट कहना है कि आलोक गुप्ता ने लगता है कि रमेश अग्रवाल को ठीक से पहचाना नहीं है | मुकेश अरनेजा की बातों पर ही यदि विश्वास किया जाये तो रमेश अग्रवाल से आलोक गुप्ता को मदद की उम्मीद नहीं ही करना चाहिए | मुकेश अरनेजा ने यह बातें जिस अंदाज़ में कहीं हैं, उनसे यह भी ध्वनित होता है कि आलोक गुप्ता को मुकेश अरनेजा से भी कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए | आलोक गुप्ता ने लेकिन इन दोनों से मदद मिलने की उम्मीद को अभी नहीं छोड़ा है | इसीलिए आलोक गुप्ता अगले रोटरी वर्ष में - यानि रमेश अग्रवाल के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी के लिए संभावनाएँ टटोल रहे हैं और इस उपक्रम में रमेश अग्रवाल का समर्थन जुटाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं | पेम थर्ड के आयोजन की जिम्मेदारी लेने तथा इस आयोजन का चेयरमैन बनने के पीछे आलोक गुप्ता की इसी कोशिश को देखा गया है | पिछले कुछ समय में आलोक गुप्ता ने अपने आप को रमेश अग्रवाल के नज़दीक दिखाने की कई एक सावधानीपूर्ण प्रयास किये हैं | उनके कुछेक प्रयासों को चूँकि रमेश अग्रवाल से समर्थन और सहयोग के रूप में प्रोत्साहन भी मिला, इसलिए आलोक गुप्ता की उम्मीदें भी बढीं |
उल्लेखनीय है कि आलोक गुप्ता की रमेश अग्रवाल से नजदीकियत कोई आज की बात नहीं है | यह नजदीकियत उस समय से देखी जा रही है, जब रमेश अग्रवाल पहली बार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार बने थे और असित मित्तल से हारे थे | उस समय गाज़ियाबाद के तमाम रोटरी नेता असित मित्तल के समर्थन में थे, लेकिन एक अकेले आलोक गुप्ता ने रमेश अग्रवाल का झंडा उठाया हुआ था | आलोक गुप्ता को उस समय कई एक लोगों ने समझाया भी था कि जब तुम देख रहे हो कि असित मित्तल के सामने रमेश अग्रवाल की बुरी दुर्गति होने जा रही है, और रमेश अग्रवाल का झंडा उठाये रखने के कारण तुम लोगों के बीच अलग-थलग पड़ रहे हो - तो फिर रमेश अग्रवाल के साथ क्यों हो ? आलोक गुप्ता ने लेकिन सभी को यह कह कर चुप कर दिया था कि रमेश अग्रवाल के साथ उनकी जो दोस्ती है उसके कारण वह रमेश का साथ नहीं छोड़ सकते हैं | रमेश अग्रवाल को जब जरूरत थी, तब आलोक अग्रवाल तन-मन और धन के साथ उनकी मदद को सक्रिय थे | इसी नाते उन्हें लगता है कि अब जब उन्हें जरूरत है तो रमेश अग्रवाल उनकी मदद करेंगे | आलोक गुप्ता को लेकिन शायद इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि जैसे संस्कार उन्हें मिले हैं कि जिसके साथ खड़े हो मुसीबत में भी उसके साथ खड़े रहो, वैसे संस्कार रमेश अग्रवाल को नहीं मिले हैं | असित मित्तल तो उनके बारे में एक बात अक्सर कहते हैं कि रमेश अग्रवाल की शक्ल तो काली है ही, उसका मन भी काला है | यही कारण है कि आलोक गुप्ता को भले ही यह भरोसा हो कि रमेश अग्रवाल उनकी मदद करेंगे, लेकिन अन्य कई लोगों ने आलोक गुप्ता को बता दिया है कि रमेश अग्रवाल एक धोखेबाज़ व्यक्ति है और वह उन्हें भी धोखा देने से बाज़ नहीं आएगा | अपनी इस भविष्यवाणी को सही साबित करने के लिए वह जे के गौड़ के मामले का उदाहरण भी देते हैं |
उल्लेखनीय है कि जे के गौड़ को भी काफी समय तक यह मुगालता रहा था कि रमेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को समर्थन देंगे, और इसी मुगालते के चलते वह काफी समय से यह घोषणा करते आ रहे थे कि वह रमेश अग्रवाल के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे | पर अब जब रमेश अग्रवाल का गवर्नर-काल नज़दीक आ रहा है, तब जे के गौड़ को 'दिखने' लगा है और साथ ही विश्वास हो चला है कि रमेश अग्रवाल से उन्हें सिर्फ धोखा ही मिलेगा | दरअसल आलोक गुप्ता की अचानक से जिस तेजी के साथ सक्रियता बढ़ी - उसके पीछे रमेश अग्रवाल की 'प्रेरणा' को ही देखा/पहचाना गया | समझा जाता है कि रमेश अग्रवाल ने आलोक गुप्ता को हवा ही इसलिए दी, ताकि वह जे के गौड़ की उम्मीदवारी के दावे को कमज़ोर कर सकें और जे के गौड़ से उनकी जान छूटे |
आलोक गुप्ता का 'इस्तेमाल' करके रमेश अग्रवाल ने जे के गौड़ को तो धोखा दे दिया; लेकिन रमेश अग्रवाल अब आलोक गुप्ता के साथ क्या करेंगे - यह देखने की बात होगी | क्योंकि रमेश अग्रवाल से जो शह मिली, उससे आलोक गुप्ता इतने जोश में आ गये कि आनन-फानन में अपनी उम्मीदवारी की 'तैयारी' करने लगे | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की तैयारी में ही उन्होंने न सिर्फ पेम थर्ड के आयोजन का जिम्मा ले लिया बल्कि रमेश अग्रवाल की हर बेईमानीपूर्ण और ओछी बातों का खुलकर समर्थन करना भी शुरू कर दिया | पेम थर्ड के आयोजन की आड़ में आलोक गुप्ता ने अपने आप को प्रमोट करने की जो रणनीति बनाई, उसे देखते हुए कुछेक लोगों को लगा कि यह रणनीति आलोक गुप्ता ने रमेश अग्रवाल की सहमति से ही बनाई होगी और पेम थर्ड में रमेश अग्रवाल उन्हें अपने उम्मीदवार के रूप में समर्थन घोषित कर देंगे | आलोक गुप्ता के नजदीकियों को विश्वास है कि पेम थर्ड में रमेश अग्रवाल आगामी रोटरी वर्ष के प्रेसीडेंट्स के सामने आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को हरी झंडी दे देंगे | आलोक गुप्ता और उनके नजदीकियों को भले ही रमेश अग्रवाल से मदद की उम्मीद हो, लेकिन रमेश अग्रवाल को जानने/पहचानने वाले लोगों का कहना है कि आलोक गुप्ता को भी रमेश अग्रवाल से धोखा ही मिलेगा | उनका कहना है कि रमेश अग्रवाल 'यूज एंड थ्रो' पॉलिसी पर चलते हैं और लोगों को इस्तेमाल करते हैं और फिर उन्हें भूल जाते हैं | अपने क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली अशोका तक में उन्होंने अपनी इसी पॉलिसी को अपनाया हुआ है | वहाँ पहले तो उन्होंने कपिल गुप्ता को आगे बढ़ाया और उनसे पैसे खर्च करवाए, लेकिन जब उन्हें ऐसा लगा कि कपिल गुप्ता कहीं सचमुच आगे न बढ़ जाएँ तो उन्हें अपमानित करके किनारे बैठा दिया और अब शरत जैन को हवा दी हुई है | क्लब में ही चर्चा है कि शरत जैन को भी वह बस इस्तेमाल ही कर रहे हैं | अपनी इसी पॉलिसी के चलते रमेश अग्रवाल ने पहले तो जे के गौड़ को इस्तेमाल किया और फिर उन्हें ठेंगा दिखा दिया | इसी आधार पर लोगों को लगता है कि आलोक गुप्ता जब तक उनके काम आ रहे हैं, तब तक वह उनके साथ बने हुए हैं; लेकिन जैसे ही आलोक गुप्ता उनसे मदद की उम्मीद करेंगे - वह आलोक गुप्ता को पहचानने से भी इंकार कर देंगे |
पेम थर्ड में वह 'समय' आ रहा है | आलोक गुप्ता ने तैयारी की हुई है कि रमेश अग्रवाल आगामी रोटरी वर्ष के प्रेसीडेंट्स के सामने उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए 'अपने' उम्मीदवार के रूप में समर्थन दिखाएँ/जताएँ | आलोक गुप्ता को विश्वास है कि रमेश अग्रवाल उन्हें उनकी सेवाओं का फल अवश्य ही देंगे - लेकिन दूसरों को लगता है कि रमेश अग्रवाल बहुत ही मतलबी और धोखेबाज किस्म का व्यक्ति है, इसलिए आलोक गुप्ता को भी उनसे सिर्फ धोखा ही मिलेगा | देखना सचमुच दिलचस्प होगा कि कौन सही साबित होता है - आलोक गुप्ता का भरोसा या रमेश अग्रवाल को मतलबी और धोखेबाज मानने वाले लोग |
Saturday, December 31, 2011
Thursday, December 22, 2011
इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया में कौन बनेगा अगला वाइस प्रेसीडेंट
नई दिल्ली | इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया को जयदीप शाह के बाद क्या के रघु, जे वेंकटेस्वर्लु, सुबोध कुमार अग्रवाल, मनोज फडनिस, विजय गर्ग, संजय कुमार अग्रवाल, विनोद जैन, चरनजोत सिंह नंदा में से ही प्रेसीडेंट मिलेगा ? दरअसल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए इन्हीं आठ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को सक्रिय देखा जा रहा है | वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनाव यूँ तो बहुत ही रहस्य और रोमांच से भरा होता है, और नतीजा आने से पहले तक किसी के लिए भी यह समझ पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव ही होता है कि अंतत कौन वाइस प्रेसीडेंट चुना जायेगा - लेकिन यह भी सच ही है कि वाइस प्रेसीडेंट चुना तो उन्हीं में से कोई एक जाता है जो उसके लिए प्रयासरत होते हैं | मौजूदा सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों में हालाँकि वाइस प्रेसीडेंट बनने की इच्छा तो मधुकर नारायण हिरेगंगे, एस संथानाकृष्णन, अभिजित बन्द्योपाध्याय, सुमंत्र गुहा ने भी प्रगट की है, लेकिन यह लोग अपनी इच्छा को क्रियान्वित करने के लिए चूँकि बहुत उत्सुक दिखाई नहीं दे रहे हैं इसलिए इनकी इच्छा को लेकर दूसरे लोग भी बहुत उत्सुक नहीं हैं | इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद को लेकर इस बार जो चुनाव होने जा रहा है, उसका एक मजेदार पक्ष यह नज़र आ रहा है कि इस बार का चुनाव फ़िलहाल नए और पुराने सदस्यों के बीच की गोलबंदी बन गया है | यही कारण है कि के रघु और संजय कुमार अग्रवाल जैसे पहली बार सेंट्रल काउंसिल में चुने गए सदस्य भी जोरशोर से वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में कूद पड़े हैं; और सेंट्रल काउंसिल में पहली बार सदस्य बने मधुकर नारायण हिरेगंगे और सुमंत्र गुहा भी वाइस प्रेसीडेंट पद के बारे में सोच-विचार करते सुने/पाए गए हैं |
वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से प्रस्तुत करने वाले अधिकतर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के लिए एक बात कॉमन है, और वह यह कि उन्हें अपने-अपने रीजन के दूसरे सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है | दरअसल प्रत्येक रीजन में कुछेक उम्मीदवारों के लिए बड़ी और मुख्य चिंता यह नहीं है कि वह जीतेंगे या नहीं जीतेंगे और जीतें तो कैसे जीतें; उनकी बड़ी और मुख्य चिंता यह है कि कहीं उनके रीजन का दूसरा कोई उम्मीदवार वाइस प्रेसीडेंट न चुन लिया जाये ? सदर्न रीजन में जे वेंकटेस्वर्लु को गंभीर और दमदार उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है | माना/समझा जा रहा है कि किस्मत यदि उनसे बहुत ही रूठी नहीं रही तो इस बार बाजी उनके हाथ आ सकती है, लेकिन इसके बावजूद वह जितनी कोशिश अपने लिए समर्थन जुटाने में कर रहे हैं, उससे ज्यादा चिंता वह के रघु को लेकर कर रहे हैं कि कहीं के रघु उनसे आगे न निकल जाएँ | ईस्टर्न रीजन में सुबोध कुमार अग्रवाल को अपने संभावित वोटरों को यह समझा पाना मुश्किल हो रहा है कि उनके अपने रीजन के सदस्य उनके 'इतना' खिलाफ क्यों हैं ? सेंट्रल रीजन के मनोज फडनिस की स्थिति को भी इस बार मजबूत समझा जा रहा है | इंस्टीट्यूट की राजनीति के पर्दे के पीछे के खिलाड़ी उनके समर्थन में सक्रिय बताये जा रहे हैं | मनोज फडनिस सेंट्रल काउंसिल में कई वर्षों से हैं, और लगातार सक्रिय रहने के बावजूद उनके कोई लफड़े/झगड़े भी सामने नहीं आये हैं; जिसके चलते काउंसिल सदस्यों के बीच उनकी स्वीकारोक्ति भी है | मनोज फडनिस के लिए एक बड़ी राहत की बात यह भी है कि वाइस प्रेसीडेंट पद के संदर्भ में 'धरतीपकड़' की पहचान बना चुके अनुज गोयल इस बार चुनावी चक्कर से दूर-दूर दिख रहे हैं | अनुज गोयल ने भी दरअसल समझ लिया है कि उनकी जितनी और जैसी बदनामी है, उसके चलते उनके लिए वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव से दूर रहने में ही भलाई है | अनुज गोयल की तरफ से मनोज फडनिस को राहत है, लेकिन विजय गर्ग अपनी उम्मीदवारी जता कर मनोज फडनिस के लिए समस्या खड़ी करने की कोशिश में हैं | नार्दर्न रीजन में वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को लेकर लगता है कि सिर्फ तमाशा हो रहा है | विनोद जैन वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर बहुत ही गंभीर हैं, लेकिन उनके लिए समस्या की बात यह है कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर उनके अलावा दूसरा कोई जरा भी गंभीर नहीं है | चरनजोत सिंह नंदा अपने को उम्मीदवार तो बता रहे हैं, लेकिन अपनी उम्मीदवारी को लेकर उन्होंने अभी तक जिन भी लोगों से बात की है उनके लिए यह समझना मुश्किल हुआ है कि वह अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में लगे हैं या यह पता करने में कि कौन वाइस प्रेसीडेंट बन सकता है, ताकि वह उसके साथ जा लगें | संजय कुमार अग्रवाल की उम्मीदवारी ने जरूर लोगों को हैरान किया है | पिछले वर्ष अमरजीत चोपड़ा के प्रेसीडेंट-काल में उनकी जैसी व्यापक सक्रियता रही थी, और इस वर्ष जी रामास्वामी के प्रेसीडेंट-काल में भी उनको जिस तरह के महत्वपूर्ण असाइनमेंट मिले हैं, उसके चलते यह तो लोगों को नज़र आ रहा था कि सत्ता-लॉबी में उन्होंने अपनी पैठ बना ली है; लेकिन यह किसी को अनुमान नहीं था कि वह वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में इतनी जल्दी कूद पड़ेंगे | सेंट्रल काउंसिल में उनका यह पहला ही टर्न है | पहले ही टर्न में यद्यपि कुछेक सदस्य वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार बन जाते हैं, लेकिन संजय कुमार अग्रवाल को चूँकि सत्ता-लॉबी के साथ जोड़ कर देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए माना/समझा जा रहा था कि वह अभी वाइस प्रेसीडेंट के लिए नहीं आयेंगे | लेकिन अब जब संजय कुमार अग्रवाल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार के रूप में आते दिख रहे हैं तो उनके इस आते दिखने में इंस्टीट्यूट की सत्ता-लॉबी का कोई खेल पहचानने की कोशिश की जा रही है |
इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए चुनावी गहमागहमी शुरू तो हो गई हैं, लेकिन संभावित उम्मीदवार अभी संभल कर ही अपने लिए समर्थन देखने/जुटाने का प्रयास कर रहे हैं | जो लोग अपनी उम्मीदवारी को सचमुच गंभीरता से ले रहे हैं, उनके लिए चुनौती की बात यह हो गई है कि कैसे वह अपने लिए समर्थन जुटाने का काम करें कि उनका काम करना दूसरे लोगों की नज़र में ज्यादा न चढ़े | वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव के लिए चलाये जाने वाले अभियान का एक अनुभव असल में सभी 'सच' मान रहे हैं और उससे डरे हुए हैं कि जो पहले से अभियान में जुटता है, चुनाव का दिन आते-आते वह पिछड़ जाता है | यह सोच कर कोई यदि अभी अभियान में नहीं जुटता है, तो वह उन उम्मीदवारों से अभी से पिछड़ता हुआ नज़र आता है, जो अभियान में जुटे हुए हैं | इसी गफलत में वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव की गहमागहमी पिछले वर्षों की तुलना में अभी कम दिख रही है, लेकिन संभावित उम्मीदवारों ने जिस तरह तैयारी शुरू कर दी है, उसे देखते हुए जल्दी ही गहमागहमी के तेज होने का अनुमान लगाया जा रहा है |
वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से प्रस्तुत करने वाले अधिकतर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के लिए एक बात कॉमन है, और वह यह कि उन्हें अपने-अपने रीजन के दूसरे सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है | दरअसल प्रत्येक रीजन में कुछेक उम्मीदवारों के लिए बड़ी और मुख्य चिंता यह नहीं है कि वह जीतेंगे या नहीं जीतेंगे और जीतें तो कैसे जीतें; उनकी बड़ी और मुख्य चिंता यह है कि कहीं उनके रीजन का दूसरा कोई उम्मीदवार वाइस प्रेसीडेंट न चुन लिया जाये ? सदर्न रीजन में जे वेंकटेस्वर्लु को गंभीर और दमदार उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है | माना/समझा जा रहा है कि किस्मत यदि उनसे बहुत ही रूठी नहीं रही तो इस बार बाजी उनके हाथ आ सकती है, लेकिन इसके बावजूद वह जितनी कोशिश अपने लिए समर्थन जुटाने में कर रहे हैं, उससे ज्यादा चिंता वह के रघु को लेकर कर रहे हैं कि कहीं के रघु उनसे आगे न निकल जाएँ | ईस्टर्न रीजन में सुबोध कुमार अग्रवाल को अपने संभावित वोटरों को यह समझा पाना मुश्किल हो रहा है कि उनके अपने रीजन के सदस्य उनके 'इतना' खिलाफ क्यों हैं ? सेंट्रल रीजन के मनोज फडनिस की स्थिति को भी इस बार मजबूत समझा जा रहा है | इंस्टीट्यूट की राजनीति के पर्दे के पीछे के खिलाड़ी उनके समर्थन में सक्रिय बताये जा रहे हैं | मनोज फडनिस सेंट्रल काउंसिल में कई वर्षों से हैं, और लगातार सक्रिय रहने के बावजूद उनके कोई लफड़े/झगड़े भी सामने नहीं आये हैं; जिसके चलते काउंसिल सदस्यों के बीच उनकी स्वीकारोक्ति भी है | मनोज फडनिस के लिए एक बड़ी राहत की बात यह भी है कि वाइस प्रेसीडेंट पद के संदर्भ में 'धरतीपकड़' की पहचान बना चुके अनुज गोयल इस बार चुनावी चक्कर से दूर-दूर दिख रहे हैं | अनुज गोयल ने भी दरअसल समझ लिया है कि उनकी जितनी और जैसी बदनामी है, उसके चलते उनके लिए वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव से दूर रहने में ही भलाई है | अनुज गोयल की तरफ से मनोज फडनिस को राहत है, लेकिन विजय गर्ग अपनी उम्मीदवारी जता कर मनोज फडनिस के लिए समस्या खड़ी करने की कोशिश में हैं | नार्दर्न रीजन में वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को लेकर लगता है कि सिर्फ तमाशा हो रहा है | विनोद जैन वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर बहुत ही गंभीर हैं, लेकिन उनके लिए समस्या की बात यह है कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर उनके अलावा दूसरा कोई जरा भी गंभीर नहीं है | चरनजोत सिंह नंदा अपने को उम्मीदवार तो बता रहे हैं, लेकिन अपनी उम्मीदवारी को लेकर उन्होंने अभी तक जिन भी लोगों से बात की है उनके लिए यह समझना मुश्किल हुआ है कि वह अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में लगे हैं या यह पता करने में कि कौन वाइस प्रेसीडेंट बन सकता है, ताकि वह उसके साथ जा लगें | संजय कुमार अग्रवाल की उम्मीदवारी ने जरूर लोगों को हैरान किया है | पिछले वर्ष अमरजीत चोपड़ा के प्रेसीडेंट-काल में उनकी जैसी व्यापक सक्रियता रही थी, और इस वर्ष जी रामास्वामी के प्रेसीडेंट-काल में भी उनको जिस तरह के महत्वपूर्ण असाइनमेंट मिले हैं, उसके चलते यह तो लोगों को नज़र आ रहा था कि सत्ता-लॉबी में उन्होंने अपनी पैठ बना ली है; लेकिन यह किसी को अनुमान नहीं था कि वह वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में इतनी जल्दी कूद पड़ेंगे | सेंट्रल काउंसिल में उनका यह पहला ही टर्न है | पहले ही टर्न में यद्यपि कुछेक सदस्य वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार बन जाते हैं, लेकिन संजय कुमार अग्रवाल को चूँकि सत्ता-लॉबी के साथ जोड़ कर देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए माना/समझा जा रहा था कि वह अभी वाइस प्रेसीडेंट के लिए नहीं आयेंगे | लेकिन अब जब संजय कुमार अग्रवाल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार के रूप में आते दिख रहे हैं तो उनके इस आते दिखने में इंस्टीट्यूट की सत्ता-लॉबी का कोई खेल पहचानने की कोशिश की जा रही है |
इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए चुनावी गहमागहमी शुरू तो हो गई हैं, लेकिन संभावित उम्मीदवार अभी संभल कर ही अपने लिए समर्थन देखने/जुटाने का प्रयास कर रहे हैं | जो लोग अपनी उम्मीदवारी को सचमुच गंभीरता से ले रहे हैं, उनके लिए चुनौती की बात यह हो गई है कि कैसे वह अपने लिए समर्थन जुटाने का काम करें कि उनका काम करना दूसरे लोगों की नज़र में ज्यादा न चढ़े | वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव के लिए चलाये जाने वाले अभियान का एक अनुभव असल में सभी 'सच' मान रहे हैं और उससे डरे हुए हैं कि जो पहले से अभियान में जुटता है, चुनाव का दिन आते-आते वह पिछड़ जाता है | यह सोच कर कोई यदि अभी अभियान में नहीं जुटता है, तो वह उन उम्मीदवारों से अभी से पिछड़ता हुआ नज़र आता है, जो अभियान में जुटे हुए हैं | इसी गफलत में वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव की गहमागहमी पिछले वर्षों की तुलना में अभी कम दिख रही है, लेकिन संभावित उम्मीदवारों ने जिस तरह तैयारी शुरू कर दी है, उसे देखते हुए जल्दी ही गहमागहमी के तेज होने का अनुमान लगाया जा रहा है |
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