नई दिल्ली । विनोद जैन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव से बाहर होने के 'कारण' प्रमोद जैन को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का जो मौका मिला है, वही कारण प्रमोद जैन की उम्मीदवारी के लिए चुनौती और मुसीबत बन गया है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को विनोद जैन की उम्मीदवारी प्रस्तुत/घोषित होने का इंतजार था; लेकिन इंतजार करने वाले लोगों को यह जानकर तगड़ा झटका लगा कि विनोद जैन तो एक बैंक खोलने की कोशिशों में लगे हैं और उसके लिए अनुमति प्राप्त करने की तिकड़मों में लगे हुए हैं । ऐसे में, लोगों के बीच यह माथापच्ची हो ही रही थी कि यदि विनोद जैन नहीं, तो फिर उनके ग्रुप का कौन सा सदस्य सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी के लिए आयेगा - कि प्रमोद जैन का नाम सामने आ गया । प्रमोद जैन को उस ग्रुप के एक अत्यंत सक्रिय सदस्य के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है, जिस ग्रुप के उम्मीदवार के रूप में विनोद जैन पिछले कई वर्षों से उम्मीदवार बनते तथा जीतते व हारते रहे हैं । ग्रुप के लोगों में प्रमोद जैन को प्रोफेशन के साथ सचमुच में जुड़े व्यक्ति के रूप में मान्यता मिलती रही है, और इसी मान्यता के चलते लोगों को हैरानी भी रही कि प्रमोद जैन जैसे 'पढ़े-लिखे' और प्रोफेशन में ईमानदारी के साथ जुड़े व्यक्ति विनोद जैन के साथ क्यों 'रहते' हैं । विनोद जैन की उम्मीदवारी की अनुपस्थिति में सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रमोद जैन को उम्मीदवार होने का मौका मिला, जिससे यह भी साबित हुआ कि प्रमोद जैन, ग्रुप में विनोद जैन के बड़े खास हैं । विनोद जैन के साथ 'दिखती' यह नजदीकी ही प्रमोद जैन के लिए मुसीबत बनी है ।
उल्लेखनीय है कि विनोद जैन की चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच यूँ भी कोई अच्छी छवि नहीं थी, बैंक वाले किस्से ने तो उनकी छवि को और भी नकारात्मक बना दिया है । मीडिया रिपोर्ट्स में भी बैंक खोलने की विनोद जैन की कोशिशों को आश्चर्य व संदेह के साथ देखा गया है । मीडिया रिपोर्ट्स में विनोद जैन को एक 'लो प्रोफाइल चार्टर्ड एकाउंटेंट' के रूप में पहचानते हुए प्रस्तावित बैंक के लिए आवश्यक पूँजी की उपलब्धता को लेकर संदेह और सवाल खड़े किए गए । संदेहों और सवालों को बढ़ाने का काम विनोद जैन के रवैये ने भी किया । मीडिया रिपोर्ट्स में कहा/बताया गया है कि विनोद जैन ने आवश्यक पूँजी के बाबत पूछे गए सवालों से हमेशा ही बचने की कोशिश की और कभी भी पूँजी सोर्सेज के बारे में जबाव नहीं दिया । इससे मीडिया में अनुमान लगाया गया कि प्रस्तावित बैंक के लिए आवश्यक पूँजी विनोद जैन अपनी जेब से ही लगायेंगे । मीडिया रिपोर्ट्स के संदेहों, सवालों और अनुमानों के आधार पर ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच चर्चा बनी और बढ़ी कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में विनोद जैन ने मोटा माल बनाया है, और उसी माल से अब वह बैंक खोल रहे हैं । विनोद जैन को लेकर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच चल रही यह चर्चा ही प्रमोद जैन की उम्मीदवारी के लिए बड़ी चुनौती बनी है ।
प्रमोद जैन के लिए चुनौती और मुसीबत की बात यह है कि अपने चुनाव अभियान के लिए उन्हें विनोद जैन पर ही निर्भर रहना है । चुनावी राजनीति के समीकरणों को समझने/साधने का जो अनुभव विनोद जैन को है, प्रमोद जैन स्वाभाविक रूप से उसका फायदा उठाना ही चाहेंगे और इसके लिए अपनी उम्मीदवारी का झंडा विनोद जैन के हाथों में सौंपना ही उन्हें सुविधाजनक लगेगा । विनोद जैन की 'बदनामी' को देखते हुए प्रमोद जैन का ऐसा करना आत्मघाती ही होगा । समस्या यह भी है कि विनोद जैन की 'बदनामी' के कारण प्रमोद जैन उन्हें अपने चुनाव-अभियान से यदि दूर रखते हैं तो विनोद जैन इसका बुरा मान सकते हैं और तब प्रमोद जैन के लिए अपने ग्रुप के लोगों का समर्थन जुटाना/पाना ही मुश्किल हो जायेगा - क्योंकि ग्रुप में तो विनोद जैन की ही पकड़ है । यानि प्रमोद जैन यदि अपने चुनाव अभियान में विनोद जैन का सहयोग व संग-साथ लेते हैं, तो मुसीबत में फँसते हैं; और यदि नहीं लेते हैं, तो आफत को आमंत्रित करते हैं ।
प्रमोद जैन के लिए यह स्थिति विडंबनापूर्ण इसलिए है क्योंकि लोगों के बीच उनकी अपनी छवि बहुत अच्छी है । प्रोफेशन के साथ उनका गहरा और जेनुइन लगाव है, इसलिए लोगों को उम्मीद और विश्वास है कि प्रमोद जैन यदि सेंट्रल काउंसिल में आते हैं तो यह इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बहुत ही अच्छी बात होगी । कुछेक लोगों ने इन पँक्तियों लेखक से कहा भी है कि सेंट्रल काउंसिल में गैर प्रोफेशनल काम करने वाले और फर्जी एंट्री का काम करने वाले लोग हों - इससे अच्छा है कि प्रमोद जैन जैसे जेनुइन व प्रोफेशन को समझने वाले लोग हों । यह विडंबना ही है कि जिन प्रमोद जैन को लोग सेंट्रल काउंसिल में देखना चाहते हैं, और प्रमोद जैन को यह मौका जिन विनोद जैन के कारण मिला है - उन्हीं विनोद जैन के कारण प्रमोद जैन का चुनावी रास्ता काँटों भरा दिख रहा है । इस विडंबनापूर्ण स्थिति को प्रमोद जैन किस तरह हैंडल करते हैं, यह देखने की बात होगी ।