Tuesday, May 26, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अपने हुड़दंगी आयोजनों के चलते बदनामी कमा और नुकसान उठा कर विनय भाटिया और उनके संगी-साथियों ने हुड़दंग से फिलहाल तौबा तो की है, लेकिन उनकी मुश्किलें जहाँ की तहाँ ही बनी हुई हैं

फरीदाबाद/नई दिल्ली । विनय भाटिया को लोग चैन नहीं लेने दे रहे हैं, और इसलिए उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में वह करें तो आखिर क्या करें ? अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु जब वह जोरशोर से लगे थे, तब लोग शिकायत कर रहे थे कि इतना हुड़दंग क्यों मचाये हुए हो; लोगों की सलाह पर उन्होंने हुड़दंग मचाना बंद किया तो अब लोग शिकायती लहजे में पूछ रहे हैं कि ठंडे क्यों पड़ गए हो ? जाहिर है कि लोग उनकी किसी भी कार्रवाई से खुश नहीं हो रहे हैं; और इसीलिए उनके सामने यह सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है कि लोग आखिर उनसे चाहते क्या हैं ? लोगों को तो छोड़िये, डिस्ट्रिक्ट को 'चलाने' वाले प्रमुख पदाधिकारियों ने उनसे जैसे मुँह मोड़ लिया दिख रहा है - उससे तो उनके शुभचिंतकों तक के बीच गहरी निराशा पैदा हो गई है । डिस्ट्रिक्ट के फेसबुक पेज पर डिस्ट्रिक्ट असेम्बली की सात सौ से अधिक तस्वीरें लगी हैं, जिनमें विनय भाटिया कहीं भी नजर नहीं आ रहे हैं; जबकि इससे पहले के आयोजनों की जो तस्वीरें इस पेज पर हैं उनमें विनय भाटिया की धूम मची दिखती है । इसी से लोगों के बीच सवाल उठे कि डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में विनय भाटिया ने दिलचस्पी नहीं ली, या उनकी दिलचस्पी में डिस्ट्रिक्ट चलाने वाले लोगों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई ? इसे विनय भाटिया की बदकिस्मती ही कहेंगे कि उन्होंने जो भी किया, उस पर विवाद हो गया - लोगों ने उसे अच्छा नहीं माना और उसके चलते उनकी उम्मीदवारी के संदर्भ में एक नकारात्मक प्रभाव बना । 
विनय भाटिया के कुछेक नजदीकियों का कहना लेकिन यह है कि शुरूआत में उनकी तरफ से जो हुड़दंग मचाया गया, वह एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा भी था - जिसका उद्देश्य दरअसल रवि दयाल को 'डराना' था । उल्लेखनीय है कि उस समय रवि दयाल की उम्मीदवारी को लेकर असमंजस बना हुआ था और रवि दयाल खुद अपनी उम्मीदवारी को लेकर हाँ/ना की स्थिति में फँसे हुए थे । ऐसे में, विनय भाटिया और उनके संगी-साथियों ने सोचा कि वह अपनी उम्मीदवारी का जोर दिखायेंगे तो रवि दयाल हतोत्साहित होंगे और चुनावी मैदान छोड़ देंगे । रवि दयाल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मैदान से बाहर करने/रखने के लिए विनय भाटिया और उनके संगी-साथियों ने जो रणनीति बनाई, उसका लेकिन उलटा ही असर दिखाई दिया । विनय भाटिया और उनके संगी-साथियों की तरफ से मचे हुड़दंग से पहले रवि दयाल की उम्मीदवारी को लेकर जो असमंजस था, वह हुड़दंग के बीच दूर हो गया और रवि दयाल चुनावी मैदान में आ डटे । विनय भाटिया के ही समर्थकों का मानना और कहना है कि उनकी रणनीति बूमरैंग कर गई और उम्मीदवार के रूप में रवि दयाल को डराने की बजाये ताकत दे गई । 
विनय भाटिया और उनके संगी-साथी दरअसल इस तथ्य को भूल बैठे कि हुड़दंग जब लाया जाता है और आता है, तब वह 'बेबकूफी' और 'बेहूदगी' नाम की अपनी चचेरी बहनों को अपने साथ लाता है । वह भले ही इस तथ्य को भूल बैठे, और उन्होंने सिर्फ हुड़दंग को बुलाया - लेकिन हुड़दंग अपने साथ बेबकूफी और बेहूदगी को लाना नहीं भूला । विनय भाटिया और उनके संगी-साथियों ने जिस तरह की जो हुड़दंगी हरकतें कीं - उनमें बेबकूफी और बेहूदगी के जो निशान दिखे, उससे फरीदाबाद से लेकर डिस्ट्रिक्ट तक में लोग नाराज हुए । पेट्स से पहले फरीदाबाद में तो नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि फरीदाबाद में कुछेक लोगों ने पेट्स में विनय भाटिया और उनके संगी-साथियों के साथ 'खड़े होने' तक से इंकार तक कर दिया । चारों तरफ किरकिरी हुई तो विनय भाटिया के ही कुछेक समर्थकों ने उन्हें सलाह दी कि इस तरह के हुड़दंग से फायदा कुछ नहीं होगा, उलटे नुकसान ही होगा - इसलिए इससे बचो । विनय भाटिया ने भी अपने अनुभव से समझा/पाया कि जो लोग यह सलाह दे रहे हैं, वह ठीक ही कह रहे हैं । इसलिए विनय भाटिया ने यह सलाह मानने में देर नहीं लगाई । 
विनय भाटिया ने लेकिन जब तक यह सलाह मानी और इस पर अमल किया, तब तक उनका बहुत नुकसान हो चुका था । अपने हुड़दंगी आयोजनों को संभव बनाने के लिए उन्होंने फरीदाबाद में लोगों से जिस तरह के 'सहयोग' माँगे, और इन सहयोगों को जुटाने के लिए जिस तरह की तरकीबें लड़ाई - उससे उन्होंने फरीदाबाद में तो कई लोगों को नाराज कर ही लिया; साथ ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भी अपनी 'कमजोरियों' को जाहिर कर दिया । समझा जाता है कि इससे ही रवि दयाल और उनके समर्थकों को बल मिला और उन्होंने रवि दयाल की उम्मीदवारी के झंडे को चुनावी मैदान में मजबूती से गाड़ दिया ।
जो हुआ, सो हुआ । बदनामी कमा और नुकसान उठा कर विनय भाटिया और उनके संगी-साथियों ने हुड़दंग से फिलहाल तौबा की । विनय भाटिया अपनी उम्मीदवारी के अभियान को चलाने के लिए फरीदाबाद के जिन लोगों पर निर्भर हैं, उन्हें जानने/पहचानने वाले लोगों का कहना हालाँकि यह है कि यह तौबा ज्यादा दिन तक बनी नहीं रह पाएगी । यह तो चलो बाद की बात है, इसे बाद में देखा जायेगा; विनय भाटिया के लिए लेकिन अभी की समस्या यह पैदा हो गई है कि अब जब वह उम्मीदवार के रूप में भले और गंभीर बनने/दिखने का प्रयास कर रहे हैं, तो लोग पूछ रहे हैं कि वह ठंडे क्यों पड़ गए हैं ?