Sunday, June 23, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता इस वर्ष के सीए डे समारोह को दो वर्ष पहले की कारस्तानियों के असर से बचाने की कोशिशों के चलते राजेश शर्मा को समारोह की तैयारी से जानबूझ कर दूर रख रहे हैं क्या ?

नई दिल्ली । एक जुलाई को होने वाले सीए डे प्रोग्राम की तैयारी के लिए स्टडी सर्किल कोऑर्डिनेशन कमेटी की मीटिंग में तवज्जो न दिए जाने से सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के प्रति खासे भड़के हुए नजर आ रहे हैं । उल्लेखनीय है कि अतुल गुप्ता द्वारा बुलाई गई उक्त मीटिंग में नॉर्दर्न रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों में एक अकेले राजेश शर्मा ही उपास्थित नहीं थे । राजेश शर्मा की तरफ से कहा/सुना जा रहा है कि उक्त मीटिंग का निमंत्रण उन्हें न तो उचित समय से मिला और न उचित तरीके से; उन्हें ऐसा लगा जैसे चाहा जा रहा है कि वह मीटिंग में शामिल न हों - इसलिए वह मीटिंग में शामिल नहीं हुए । राजेश शर्मा के नजदीकियों का कहना है कि सीए डे पर होने वाले कार्यक्रम की तैयारी से राजश शर्मा को जानबूझ कर दूर रखा जा रहा है, और स्टडी सर्किल कोऑर्डिनेशन कमेटी की मीटिंग से भी उन्हें बाहर रखने की कोशिश की गई । अतुल गुप्ता के नजदीकियों का कहना/बताना है कि सीए डे पर दिल्ली में होने वाले इंस्टीट्यूट के मुख्य समारोह की जिम्मेदारी अतुल गुप्ता ने ली हुई है, और वह उक्त समारोह को लेकर बहुत ही सावधान हैं - ताकि समारोह को लेकर कोई झमेला या विवाद न हो; इसी कोशिश में वह सीए डे समारोह की तैयारी तथा उसके आयोजन से राजेश शर्मा को दूर रखना चाहते हैं । दरअसल दो वर्ष पहले की राजेश शर्मा की कारस्तानियों के कारण सीए डे समारोह के साथ राजेश शर्मा की ऐसी बदनामी जुड़ी है कि अतुल गुप्ता को उन्हें इस वर्ष के समारोह की तैयारी से दूर रखने में ही भलाई नजर आ रही है ।
सीए डे समारोह के नाम पर राजेश शर्मा ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को ऐसे घाव दिए हैं, जो दो वर्षों बाद भी दर्द देते हुए लग रहे हैं । इसीलिए अतुल गुप्ता को डर है कि सीए डे समारोह की तैयारी में राजेश शर्मा का नाम यदि  जुड़ा और वह तैयारी में यदि 'दिखे' तो लोग भड़क सकते हैं और तब सीए डे समारोह का कबाड़ा हो सकता है । राजेश शर्मा भी चूँकि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य हैं, इसलिए सीए डे समारोह में उनके शामिल होने पर तो अतुल गुप्ता कोई रोक नहीं लगा सकते हैं, लेकिन अतुल गुप्ता अपनी तरफ से भरसक प्रयास करना चाहते हैं कि सीए समारोह की तैयारी में राजेश शर्मा ज्यादा न नजर आए - यदि वह नजर आयेंगे, तो लोगों को दो वर्ष पहले मिले घाव फिर से हरे हो जायेंगे । स्टडी सर्किल कोऑर्डिनेशन कमेटी की मीटिंग में राजेश शर्मा की अनुपस्थिति अतुल गुप्ता के उन्हीं प्रयासों का नतीजा है । अतुल गुप्ता के इस रवैये ने राजेश शर्मा के लिए फजीहत वाली स्थिति बना दी है । उनके नजदीकियों के अनुसार, राजेश शर्मा का रोना है कि दो वर्ष पहले की घटनाओं को लोग भूल रहे हैं, लेकिन सीए डे समारोह की तैयारी से उन्हें दूर रखने के अतुल गुप्ता के प्रयास लोगों को उन घटनाओं की याद दिला रहे हैं । राजेश शर्मा को लगता है कि अतुल गुप्ता यह जानबूझकर कर रहे हैं, ताकि लोग दो वर्ष पहले की घटनाओं को भूल न जाएँ और याद रखें । अन्य कई लोगों को लेकिन लगता है कि सीए डे समारोह के नाम पर राजेश शर्मा की बदनामी कुछ इस तरह जुड़ गई है कि सीए डे समारोह का जिक्र आते ही राजेश शर्मा की कारस्तानी लोगों को सहज ही याद आ जाती है । एक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट ने रेखांकित किया कि जिस तरह बैशाखी के पर्व पर जलियाँबाला बाग हत्याकांड व जनरल डायर की करतूत की याद अपने आप आ जाती है, वैसे ही सीए डे समारोह के नाम पर दो वर्ष पहले प्रोफेशन से जुड़े लोगों के अपमान से संबद्ध घटनाएँ और राजेश शर्मा की हरकतें याद आ जाती हैं ।
अतुल गुप्ता उन्हीं यादों को दबाए/छिपाए रखने के उद्देश्य से राजेश शर्मा को सीए डे समारोह की तैयारी से दूर रखना चाहते हैं । अतुल गुप्ता दरअसल पिछले वर्ष हुए सीए डे समारोह में रही कम उपस्थिति से डरे हुए हैं । दो वर्ष पहले घटी घटनाओं का असर एक वर्ष पहले हुए समारोह पर पड़ा था, जिसके कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट्स समारोह से दूर ही रहे थे, और समारोह के आयोजन स्थल - विज्ञान भवन की करीब एक तिहाई सीटें खाली ही रह गईं थीं । इस वर्ष का समारोह भी विज्ञान भवन में हो रहा है और समारोह की जिम्मेदारी सँभालने के चलते अतुल गुप्ता नहीं चाहते हैं कि इस बार भी सीटें खाली रह जाएँ । सीए डे के इस वर्ष के समारोह को सफल बनाने के लिए अतुल गुप्ता ने स्टडी सर्किल्स के पदाधिकारियों पर भरोसा किया है; और इसी भरोसे के तहत उन्होंने स्टडी सर्किल्स के पदाधिकारियों के साथ मीटिंग की, जिसमें ऐसी स्थिति 'बनी' या 'बनाई' गई कि राजेश शर्मा इस मीटिंग से गायब ही दिखे । स्टडी सर्किल्स के पदाधिकारियों ने अतुल गुप्ता को आश्वस्त तो किया है कि वह पर्याप्त संख्या में समारोह के लिए लोगों को जुटायेंगे तथा विज्ञान भवन की सीटें खाली नहीं रहने देंगे; लेकिन कुछेक स्टडी सर्किल्स में चूँकि ऐसे लोग पदाधिकारी हैं जिन्हें राजेश शर्मा के नजदीकियों तथा अतुल गुप्ता के विरोधियों के रूप में देखा/पहचाना जाता है, इसलिए अतुल गुप्ता सीए डे समारोह को लेकर थोड़े सशंकित भी हैं; उन्हें यह भी डर है कि अपनी उपेक्षा से भड़के हुए राजेश शर्मा भी समारोह को फेल करने/करवाने की कोशिश कर सकते हैं । ऐसे में, देखना दिलचस्प होगा कि अतुल गुप्ता इस वर्ष के सीए डे समारोह को राजेश शर्मा की बदनामी तथा हरकतों से कैसे बचाते हैं ?

Saturday, June 22, 2019

रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी होल्गर नेक ने अपनी कोर टीम में सुशील गुप्ता के 'लोगों' को ही बनाए रख कर रोटरी में सुशील गुप्ता का प्रभाव खत्म हुआ मान कर खुशी मनाने वाले उनके विरोधियों को तगड़ा झटका दिया है

नई दिल्ली । सुशील गुप्ता के इस्तीफा देने के बाद इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद की जिम्मेदारी संभालने वाले होल्गर नेक ने सुशील गुप्ता द्वारा बनाई गई कोर टीम को ही अपनी कोर टीम बना कर सुशील गुप्ता के विरोधियों को तगड़ा झटका दिया है । उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य कारणों से सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा देने के बाद सुशील गुप्ता के विरोधी नेताओं के मन बड़े गदगद थे । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने के बाद सुशील गुप्ता से नजदीकियाँ बनाने और 'दिखाने' वाले महत्त्वाकांक्षी नेताओं ने भी उनके इस्तीफा देते ही रंग बदलना शुरू कर दिया था । सुशील गुप्ता के विरोधियों और अवसरवादी नेताओं ने मान/समझ लिया था कि रोटरी इंटरनेशनल की 'व्यवस्था' तथा उसकी राजनीति में सुशील गुप्ता का प्रभाव खत्म हो गया है, और इसलिए उन्हें सुशील गुप्ता की परवाह करने की जरूरत नहीं है । लेकिन सुशील गुप्ता की जगह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बने होल्गर नेक ने उनकी 'समझ' पर पत्थर गिरा दिए हैं । इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय होल्गर नेक की कोर टीम की चल रही मीटिंग की तस्वीरों में यह देखने को मिल रहा है कि सुशील गुप्ता द्वारा अपनी कोर टीम के लिए चुने गए पदाधिकारियों को ही होल्गर नेक ने अपनी कोर टीम में बनाए रखा है और इसके जरिये उन्होंने वास्तव में यह 'संदेश' देने का काम किया है कि उन्हें सुशील गुप्ता से अलग न समझा जाए । होल्गर नेक के इस संदेश ने सुशील गुप्ता के विरोधियों और अवसरवादी नेताओं की 'खुशियों' पर जैसे ताला डाल दिया है । 
उल्लेखनीय है कि सुशील गुप्ता के इस्तीफा देने के बाद, इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद पर होल्गर नेक का 'चयन' हुआ था, तब भी यह चर्चा चली थी कि उनके चयन में सुशील गुप्ता की पसंद का ध्यान रखा गया है । दरअसल इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद के दावेदारों में होल्गर नेक की स्थिति बहुत ही कमजोर थी; इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के चुनाव की राजनीति के खिलाड़ियों में कोई भी उन्हें 'दौड़' में नहीं पा/देख रहा था । सुशील गुप्ता के इस्तीफे के बाद, प्रेसीडेंट नॉमिनी पद के लिए होने वाले पुनर्निर्वाचन में उन उम्मीदवारों का पलड़ा भारी देखा/पहचाना जा रहा था जिनका सुशील गुप्ता के साथ तगड़ा मुकाबला हुआ था, और जो बहुत मामूली अंतर से पिछड़ गए थे । होल्गर नेक को तो कोई भी संभावित प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में नहीं देख रहा था; यहाँ तक कि वह खुद भी कोई उम्मीद नहीं रखे थे और इसीलिए प्रेसीडेंट नॉमिनी पद के लिए होने वाले पुनर्निर्वाचन की प्रक्रिया में उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । लेकिन जब उनके नाम की घोषणा हुई, तब हर किसी को हैरानी हुई । नोमीनेटिंग कमेटी ने जितनी आसानी से होल्गर नेक के नाम पर सहमति बनाई, उतनी आसानी से तो सुशील गुप्ता भी नहीं चुने गए थे । नोमीनेटिंग कमेटी में सुशील गुप्ता को कड़ी टक्कर देने वाले उम्मीदवारों के समर्थकों ने होल्गर नेक को चुने जाने के मामले में ज्यादा टाँग नहीं अड़ाई तो इसका कारण यही रहा कि नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को सुशील गुप्ता की राय का सम्मान करने का 'इशारा' था और उनकी 'पसंद' के रूप में होल्गर नेक को प्रेसीडेंट नॉमिनी का पद मिल गया ।
होल्गर नेक को सुशील गुप्ता की पसंद के रूप में मिली चर्चा को सुशील गुप्ता के विरोधियों ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया और यह मान लिया कि रोटरी में सुशील गुप्ता के दिन अब पूरे हो गए हैं । वैसे भी, रोटरी में पद पाने वाला यह कहाँ ध्यान रखता है कि उसे किन लोगों के सहयोग से पद मिला है ? लेकिन होल्गर नेक ने सुशील गुप्ता द्वारा अपनी कोर टीम के लिए चुने गए पदाधिकारियों को ही अपनी कोर टीम में बनाए रखने के फैसले से यह दिखा/जता दिया है कि उन्हें सुशील गुप्ता के 'प्रतिनिधि' के रूप में ही देखा/पहचाना जाए । सुशील गुप्ता ने अपनी कोर टीम में अपने देश से रंजन ढींगरा को चुना था, होल्गर नेक ने रंजन ढींगरा को अपनी कोर टीम में उसी पद पर बनाए रखा है । इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय होल्गर नेक की कोर टीम की चल रही मीटिंग में यह देखने को भी मिला कि सिर्फ रंजन ढींगरा ही नहीं, सुशील गुप्ता की कोर टीम के दूसरे सदस्य भी होल्गर नेक की कोर टीम में पहले के अपने अपने पदों पर बनाए रखे गए हैं । होल्गर नेक के इस फैसले ने सुशील गुप्ता के विरोधियों और अवसरवादी नेताओं को तगड़ा झटका दिया है; सुशील गुप्ता के प्रभाव को खत्म हुआ मान कर उन्होंने रोटरी में अपने जो जो मंसूबे बनाए थे, वह सब उन्हें फेल होते हुए दिख रहे हैं । होल्गर नेक के रवैये को देखते हुए उन्हें यह मुश्किल लग रहा है कि सुशील गुप्ता की 'अनुपस्थिति' का वह कोई फायदा उठा सकेंगे । होल्गर नेक के प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने में तथा उनके द्वारा सुशील गुप्ता की टीम को ही अपनी टीम बना लेने के फैसले में एक यह संदेश भी निहित है कि सुशील गुप्ता भले ही बीमार हों, और बीमारी के चलते वह प्रेसीडेंट नॉमिनी का पद छोड़ने के लिए मजबूर हुए हों - लेकिन रोटरी में उनका प्रभाव पहले जैसा ही बना हुआ है; और यह बात रोटरी में उनके विरोधियों तथा अवसरवादी महत्त्वाकांक्षी नेताओं के लिए काफी मुसीबतभरी है ।

Friday, June 21, 2019

रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन से संबंध 'सुधारने' की तमाम कोशिशों के बावजूद इंदौर इंस्टीट्यूट में बड़ी भूमिका न मिलने से निराश और परेशान डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर विनोद बंसल को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी तैयारियों पर पानी फिरता नजर आ रहा है

नई दिल्ली । इंदौर में 3 से 8 दिसंबर के बीच हो रहे रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में बड़ी भूमिका न मिल पाने के कारण विनोद बंसल इंस्टीट्यूट के कन्वेनर भरत पांड्या और चेयरमैन टीएन सुब्रमणियन से खासे नाराज हैं । विनोद बंसल के लिए झटके वाली बात यह है कि इस मामले में उन्हें इंस्टीट्यूट के चीफ काउंसलर कमल सांघवी से मदद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन कमल सांघवी भी उनकी कोई मदद नहीं कर रहे हैं । इंदौर इंस्टीट्यूट की कमेटियों में हालाँकि उन लोगों की ही भरमार है, जो राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू, अशोक महाजन व केआर रवींद्रन के 'खेमे' में देखे/पहचाने जाते हैं और जिन्होंने भरत पांड्या को इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव जितवाने में मदद की थी; इसलिए विनोद बंसल को इंदौर इंस्टीट्यूट में कोई तवज्जो न मिलना कोई 'राजनीतिक हैरानी' की बात नहीं है, लेकिन फिर भी विनोद बंसल परेशान हैं - तो इसका कारण यह है कि पिछले कुछेक महीनों में उन्होंने उक्त खेमे के साथ नजदीकी बनाने की बहुतेरी कोशिशें की हैं, और फिर भी उन्हें अपनी कोशिशों का फल मिलता हुआ नहीं दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि विनोद बंसल को सुशील गुप्ता वाले खेमे के सदस्य के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और इसी नाते इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के पिछले चुनाव में उन्हें अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में देखा/पहचाना गया था; बाद में हालाँकि उनकी तरफ से भरत पांड्या और उनके नजदीकियों को बताने/समझाने के काफी प्रयास हुए कि वह तो चुनाव में तटस्थ थे और उन्होंने अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में कोई काम नहीं किया था । इंदौर इंस्टीट्यूट में लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद विनोद बंसल तवज्जो पाने में विफल रहे हैं, उससे लगता है कि उनकी समझाइस भरत पांड्या को समझ में आई नहीं है ।  
विनोद बंसल को दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी के संबंध में इंदौर इंस्टीट्यूट में बड़ी भूमिका निभाना जरूरी लगता है । यह इसलिए क्योंकि पिछले दिनों उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इलेक्ट व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स नॉमिनी के साथ साथ प्रमुख रोटेरियंस के साथ तार जोड़ने का काम खासी प्रमुखता के साथ किया है; उन्हें लगता है कि उनका यह काम सचमुच में तब प्रभावी बन सकेगा, जब यह लोग इंदौर इंस्टीट्यूट में उन्हें कोई बड़ी भूमिका निभाते हुए देखेंगे; ऐसे में उन्हें डर है कि जब ऐसा नहीं होगा, तो उनके सारे किये-धरे पर पानी ही फिर जाएगा । लेकिन इंदौर इंस्टीट्यूट के कन्वेनर भरत पांड्या और चेयरमैन टीएन सुब्रमणियन उन्हें कोई भूमिका निभाने का मौका देने को तैयार ही नहीं हो रहे हैं । विनोद बंसल को अब यह भी लगने लगा है कि भरत पांड्या और टीएन सुब्रमणियन यह व्यवहार खेमे के बड़े नेताओं के इशारे पर ही कर रहे हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में विनोद बंसल के लिए यह बात और भी ज्यादा झटके वाली है । 
दरअसल विनोद बंसल देखे/पहचाने भले ही सुशील गुप्ता वाले खेमे में हैं, और सुशील गुप्ता के साथ उनके नजदीक के संबंध भी रहे - लेकिन सुशील गुप्ता खेमे के समर्थन के भरोसे इंटरनेशनल डायरेक्टर बन पाने का उन्हें भरोसा नहीं हो पाया । सुशील गुप्ता वाले खेमे में अशोक गुप्ता और रंजन ढींगरा का पलड़ा उनसे भारी है । कई मौकों पर सुशील गुप्ता उन्हें झटका देते हुए अशोक गुप्ता और रंजन ढींगरा को आगे बढ़ाते हुए नजर आए । यह देखने के बाद विनोद बंसल ने दूसरे खेमे के नेताओं के साथ पींगें बढ़ाना शुरू किया । कुछेक लोगों को लगता है और उनका कहना है कि विनोद बंसल ने पहले से ही दूसरे खेमे के नेताओं के साथ संबंध जोड़ने/बनाने शुरू कर दिए थे, और इस बात को देखते/समझते हुए ही सुशील गुप्ता के यहाँ उनकी भूमिका संदेहास्पद हो गई थी और इस कारण सुशील गुप्ता वाले खेमे में उनकी वैसी जगह नहीं बन पाई जैसी अशोक गुप्ता और या रंजन ढींगरा की है । विनोद बंसल के लिए लगता है कि बदकिस्मती की बात यह रही है कि वह दूसरे खेमे के लोगों के बीच भी अपनी विश्वसनीयता नहीं बना सके हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले काफी समय से विनोद बंसल पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के साथ नजदीकी बनाने और 'दिखाने' की खूब कोशिशें करते आ रहे हैं; अपने डिस्ट्रिक्ट में उन्होंने केआर रवींद्रन का बड़े जोरशोर से एक कार्यक्रम भी करवाया ।  विनोद बंसल को उम्मीद रही कि केआर रवींद्रन से नजदीकी बना और 'दिखा' कर वह  उनके वाले खेमे के नेताओं और 'सदस्यों' का सहयोग/समर्थन पा लेंगे; लेकिन इंदौर इंस्टीट्यूट में बड़ी भूमिका पाने की उनकी कोशिशों को जो झटका लगा है, उससे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में उन्हें अपनी उम्मीदों पर पानी फिरता दिख रहा है ।

Thursday, June 20, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में रोटेरियंस के करीब 14 लाख रुपयों पर हाथ साफ करने के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मनप्रीत सिंह गंधोके को बचाने के लिए, इस्तीफा दे चुकने के बावजूद पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हेमंत अरोड़ा डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में बने हुए हैं

चंडीगढ़ । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हेमंत अरोड़ा ने इस्तीफा देने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में बने रहने का फैसला किया है, क्योंकि उन पर मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मनप्रीत सिंह गंधोके को करीब 14 लाख रुपयों की 'लूट' के आरोप से 'बचाने' की जिम्मेदारी आ पड़ी है । मनप्रीत सिंह गंधोके पर मुआवजे के रूप में डिस्ट्रिक्ट को मिले करीब 14 लाख रुपए कब्जाने का आरोप है, जिसमें उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल की मदद मिली । लोगों के बीच आरोप तो यह भी सुना जा रहा है कि मनप्रीत सिंह गंधोके ने गिरोह के बाकी लोगों को भी उक्त रकम में से हिस्सा दिया है, और इसीलिए राजा साबू से लेकर गिरोह के बाकी सभी पूर्व गवर्नर्स सदस्य मामले पर पर्दा डालने तथा मनप्रीत सिंह गंधोके को बचाने के प्रयासों में लगे हैं । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की पिछले दिनों हुई मीटिंग में जब यह मामला उठा, तो पूर्व गवर्नर मधुकर मल्होत्रा ने मनप्रीत सिंह गंधोके का बचाव करने का जोरदार तरीके से प्रयास किया । राजा साबू गिरोह को इस मामले को डिस्ट्रिक्ट एकाउंट में एडजस्ट करने की जरूरत पड़ेगी, और इसके लिए उन्हें हेमंत अरोड़ा की मदद चाहिए होगी - इसलिए इस्तीफा देने के बावजूद हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में बनाए रखा गया है । चार्टर्ड एकाउंटेंट होने के नाते एकाउंट्स को एडजस्ट करने में हेमंत अरोड़ा की एक्सपर्टीज है, और इसी एक्सपर्टीज का इस्तेमाल करते हुए वह दिलीप पटनायक के गवर्नर-वर्ष की फायदे वाली बैलेंसशीट को घाटे वाली बैलेंस शीट में बदलने का करतब दिखा चुके हैं । दरअसल उसी बेईमानीपूर्ण करतब के कारण हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाये जाने पर आपत्ति करते हुए डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में प्रस्ताव रखा गया था, जिसके चलते होने वाली फजीहत से बचने के लिए हेमंत अरोड़ा ने डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से इस्तीफा देने में अपनी भलाई देखी/समझी थी ।
उल्लेखनीय है कि राजा साबू और उनके 'गिरोह' के गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट के तमाम प्रोजेक्ट्स व ट्रस्ट के हिसाब-किताब से जुड़ी बातें डिस्ट्रिक्ट के लोगों से - यहाँ तक कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स तक से - छिपा कर रखते हैं, जिसे लेकर निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी को रोटरी इंटरनेशनल तक में शिकायत करने के लिए मजबूर होना पड़ा था; और जिसके चलते राजा साबू और उनसे जुड़े पूर्व गवर्नर्स की भूमिका को संदेह से देखा जाता है ।  मनप्रीत सिंह गंधोके के मामले में भी तथ्यों पर पर्दा डालने का प्रयास हो रहा है । 'रचनात्मक संकल्प' को जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार मामला मनप्रीत सिंह गंधोके के गवर्नर वर्ष का है । अपने गवर्नर वर्ष में उन्होंने बैंकॉक में कॉन्फ्रेंस करने की योजना बनाई थी, और जिसके रजिस्ट्रेशन के रूप में वह रोटेरियंस से पैसे ले चुके थे । राजा साबू ने लेकिन उनकी योजना में पंक्चर कर दिया था । उसी वर्ष चूँकि इंटरनेशनल कन्वेंशन बैंकॉक में हो रही थी, तो मनप्रीत सिंह गंधोके ने एक तरफ तो टूर ऑपरेटर कंपनी से बैंकॉक जाने के कार्यक्रम के समय में परिवर्तन करा लिया और दूसरी तरफ रोटेरियंस को इंटरनेशनल कन्वेंशन में जाने के लिए राजी कर लिया । यह सब हो तो गया, लेकिन इस चक्कर में हिसाब-किताब काफी गड़बड़ा गया और लोगों को पैसों का काफी नुकसान हुआ । मनप्रीत सिंह गंधोके ने हिसाब-किताब की गड़बड़ी के लिए टूर ऑपरेटर कंपनी को जिम्मेदार ठहराया और उपभोक्ता अदालत में उसके खिलाफ शिकायत कर दी । उपभोक्ता अदालत ने टूर ऑपरेटर कंपनी को दोषी ठहराते हुए करीब 14 लाख रुपए डिस्ट्रिक्ट 3080 को वापस करने का आदेश दिया । उक्त करीब 14 लाख रुपए डिस्ट्रिक्ट 3080 को मिले । यह रकम वास्तव में उन 80 रोटेरियंस की है, जिन्होंने मनप्रीत सिंह गंधोके की योजना में 'बदलाव' होने के कारण पैसों का नुकसान उठाया था । कायदे से और व्यवहारिक रूप से यह पैसा डिस्ट्रिक्ट के उन 80 रोटेरियंस को वापस किया जाना चाहिए था; लेकिन मनप्रीत सिंह गंधोके ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल के साथ मिलकर इस रकम को खुद ही हड़प लिया । 
जिन लोगों को डिस्ट्रिक्ट एकाउंट के जरिये हुए इस घपले की जानकारी मिली, उन्हें प्रवीन गोयल के रवैये पर खासी हैरानी हुई । उनके लिए यह समझना मुश्किल हुआ कि जो पैसा डिस्ट्रिक्ट के पास आया, और जिसे 80 रोटेरियंस को वापस होना था - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में प्रवीन गोयल ने उसे मनप्रीत सिंह गंधोके को क्यों दे दिया ? दरअसल इसी बात से लोगों को शक हुआ है कि प्रवीन गोयल को भी उक्त रकम में से कुछ हिस्सा मिला है, और इसीलिए 80 रोटेरियंस को वापस किया जाने वाला पैसा उन्होंने डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से मनप्रीत गंधोके को दे दिया । उल्लेखनीय है कि मनप्रीत सिंह गंधोके पर अपने क्लब के एक प्रोजेक्ट के तहत बने रोटरी वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर के निर्माण कार्य में घपले का आरोप रहा है, जिसके चलते उन्हें क्लब से निलंबित करने का फैसला तक हो गया था, जिसे उन्होंने मन-मनौव्वल करके अप्रभावी करवा लिया था । मनप्रीत सिंह गंधोके खासे खुशकिस्मत हैं कि क्लब के सदस्यों से लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों तक के पैसों पर हाथ साफ करने के बावजूद राजा साबू से लेकर उनके गिरोह के दूसरे पूर्व गवर्नर्स उन्हें बचाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं । इसी तत्परता के चलते हेमंत अरोड़ा इस्तीफा देने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में बने रहने के लिए राजी हो गए हैं । उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हेमंत अरोड़ा की कारगुजारियों पर चर्चा के लिए रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल ने जो प्रस्ताव दर्ज करवाया था, उसे निष्प्रभावी करने के लिए डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में बिजनेस सेशन शुरू होने से ठीक पहले डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से हेमंत अरोड़ा का इस्तीफा ले लिया गया था । राजा साबू और उनके गिरोह के अन्य गवर्नर्स को दरअसल डर हुआ था कि बिजनेस सेशन में मामला आयेगा, तो पता नहीं क्या क्या सुनने को मिलेगा और क्या क्या पोल खुलेगी - इसलिए उन्होंने हेमंत अरोड़ा से छुटकारा पा लेने में ही भलाई देखी/पहचानी थी । लेकिन अब पता चला है कि हेमंत अरोड़ा का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है । इससे लोगों को समझ में आ रहा है कि उस समय दिया गया हेमंत अरोड़ा का इस्तीफा वास्तव में उनकी चालबाजी थी, ताकि रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के प्रस्ताव पर डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में चर्चा न हो सके ।  उस समय हेमंत अरोड़ा ने भी बड़ा नाटक दिखाया था कि वह तो डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में एक दिन भी नहीं रहना चाहते हैं; लेकिन अब वह अपने इस्तीफे को स्वीकार करवाने के लिए कोई जोर नहीं दे रहे हैं । समझा जाता है कि मनप्रीत सिंह गंधोके के मामले को एडजस्ट करने/करवाने के लिए राजा साबू गिरोह को हेमंत अरोड़ा की एक्सपर्टीज की जरूरत पड़ेगी, और इसीलिए इस्तीफा दे चुकने के बावजूद वह डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में बने हुए हैं ।

Wednesday, June 19, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता की मदद से नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने की तैयारी में अपने आप को विवादों से बचाने के लिए तैयार की गई पंकज गुप्ता की रणनीति ही उनके लिए मुसीबत बनी

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी पंकज गुप्ता ने इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता की मदद से अगले वर्ष चेयरमैन बनने के लिए अपने आप को विवादों से बचाने का जो उपक्रम किया था, उसने उल्टा ही असर करते हुए उन्हें मुसीबत में और फँसा दिया है । पंकज गुप्ता की हाल-फिलहाल में इस बात के लिए काफी आलोचना हुई है कि सेक्रेटरी होने के बावजूद वह काउंसिल के कामकाज में समय नहीं देते हैं, और काउंसिल के कार्यालय में कभी-कभार ही आते हैं और वह भी बहुत कम समय के लिए । उनकी तरफ से इसका हमेशा ही यही जबाव मिला कि वह काम से काम रखने वाले व्यक्ति हैं, और फालतू में काउंसिल कार्यालय में बैठ कर अपना समय नष्ट नहीं करना चाहते हैं । पंकज गुप्ता की तरफ से इस बारे में और जो कुछ भी कहा गया, उससे लोगों को 'साउंड' हुआ जैसे वह कहना चाह रहे हैं कि वह बहुत व्यस्त व्यक्ति हैं, और उनके पास काउंसिल कार्यालय में आने का समय नहीं है और वह फोन पर ही सेक्रेटरी पद की जिम्मेदारी संभाल/निभा लेंगे । इस तरह की बातों और उनके रवैये की हालाँकि आलोचना भी हुई, लेकिन उन्होंने उन पर ध्यान नहीं दिया । पंकज गुप्ता खुशकिस्मत रहे कि काउंसिल के दूसरे पदाधकारियों और सदस्यों के बीच ऐसे झगड़े रहे कि उन झगड़ों के शोर में उनका 'मामला' दबा रहा । लेकिन पिछले दिनों कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के साथ हुई रीजनल काउंसिल सदस्यों की अनौपचारिक मीटिंग में उनके 'रवैये' का खास नोटिस लिया गया, और उन्हें कुछ नसीहतें मिलीं । उसके बाद हुई चर्चाओं में जिक्र रहा कि पंकज गुप्ता दरअसल जानबूझ कर काउंसिल कार्यालय नहीं आते थे । वह अपने आप को झगड़ों से दूर दिखाना चाहते थे, ताकि किसी विवाद में उनका नाम न आ सके । अपनी इस रणनीति में वह सफल भी थे, लेकिन 6 जून की रीजनल काउंसिल की अनौपचारिक मीटिंग के बाद पंकज गुप्ता के लिए हालात बदल गए हैं ।
लोगों के बीच जिक्र है कि पंकज गुप्ता अपने आप को विवादों से इसलिए दूर रखना चाहते थे, ताकि अगले चेयरमैन के चुनाव/चयन के समय उनकी दाल गल सके । माना/समझा जा रहा है कि अगले वर्ष इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट होने के नाते अतुल गुप्ता नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में ऐसा चेयरमैन 'चाहेंगे', जिसके साथ कोई विवाद न जुड़ा हो; चेयरमैन पद के लिए जो लोग अत्यंत 'सक्रिय' नजर आते हैं या समझे जाते हैं, वह सब किसी न किसी विवाद में फँसे हुए हैं । ऐसे में पंकज गुप्ता को लगता है कि वह अतुल गुप्ता की पसंद हो सकते हैं । अतुल गुप्ता के समर्थन के सहारे/भरोसे रतन सिंह यादव भी हालाँकि चेयरमैन बनने के चक्कर में थे, और इस चक्कर में वह जब तब काउंसिल सदस्यों के 'पितामह' बनने की कोशिश करते रहते थे - लेकिन अपने स्टडी सर्किल में नितिन कँवर को स्पीकर के रूप में बुलाकर उन्होंने अतुल गुप्ता को नाराज कर लिया है और अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है । रतन सिंह यादव को जिस दिन से यह पता चला है कि नितिन कँवर को अपने स्टडी सर्किल में बुलाने के कारण अतुल गुप्ता उनसे नाराज हो गए हैं, उन्होंने अगले वर्ष के चेयरमैन पद की दौड़ से अपने को अलग करने की घोषणा कर दी है । हालांकि काउंसिल के सदस्यों को उनकी बात पर भरोसा नहीं है; सदस्यों का मानना और कहना है कि रतन सिंह यादव अभी भले ही कह रहे हों कि वह अगले वर्ष चेयरमैन बनने की होड़ से दूर रहेंगे - लेकिन उनकी बात का कोई भरोसा नहीं है, वह अपनी ही बात से पलट कर कभी भी होड़ में शामिल हो जायेंगे । अतुल गुप्ता के रतन सिंह यादव से नाराज हो जाने की चर्चा ने लेकिन पंकज गुप्ता को अतुल गुप्ता के समर्थन के प्रति और आश्वस्त किया ।
पंकज गुप्ता के पास/साथ लेकिन यह आश्वस्ति अभी आई ही थी कि उनकी रणनीति के फेल होने के हालात बन गए और अपने आप को विवादों से दूर रखने की उनकी कोशिश उलटे उनके गले पड़ गई है । हालाँकि अभी भी हालात पूरी तरह से उनके हाथ से निकले नहीं हैं, लेकिन यह जरूर तय हो गया है कि विवादों से बचने का उनका पुराना तरीका उनके काम अब नहीं आयेगा । काउंसिल के पदाधिकारियों और सदस्यों के बीच अभी तो झगड़ा शांत है, लेकिन यह कब तक शांत रह पायेगा - यह दावे से कोई नहीं कह पा रहा है । पंकज गुप्ता अभी तक तो कार्यालय से दूर रह कर झगड़े के दागों से अपने आप को बचाये हुए थे, लेकिन आगे वह कैसे बचेंगे - यह देखना दिलचस्प होगा ।

Tuesday, June 18, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अशोक जैन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी छोड़ने से पूर्व गवर्नर्स रमेश अग्रवाल और शरत जैन का समर्थन ललित खन्ना को मिलने की संभावना बनी, जिसके चलते ललित खन्ना की उम्मीदवारी को बड़ा फायदा मिलता दिख रहा है

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली अशोका के अशोक जैन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी से पीछे हटने के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी समीकरणों में खासा उलटफेर होता नजर आ रहा है, जिसके चलते ललित खन्ना की उम्मीदवारी को खासा फायदा होता देखा/पहचाना जा रहा है । ललित खन्ना की उम्मीदवारी के साथ अभी तक एक सबसे बड़ी समस्या यह थी कि डिस्ट्रिक्ट के सक्रिय नेताओं में उन्हें किसी नेता का समर्थन प्राप्त नहीं था, और इसे उनकी उम्मीदवारी की सबसे बड़ी कमजोरी के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव यूँ तो उम्मीदवारों के बीच ही होता है, लेकिन वास्तव में वह डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स नेताओं की खेमेबाजी से नियंत्रित होता है; और इसीलिए उम्मीदवारों की ताकत व कमजोरी का आकलन उन्हें मिलने वाले नेताओं के समर्थन के आधार पर किया जाता है । हालाँकि चुनावी राजनीति को नजदीक व गहराई से देखने/समझने वाले रोटेरियंस कहते/बताते हैं कि नेताओं का समर्थन वास्तव में किसी काम नहीं आता है, और सारी 'लड़ाई' उम्मीदवार को खुद ही लड़नी पड़ती है । कई बार नेता लोग भी इस बात को अप्रत्यक्ष रूप से 'स्वीकार' कर लेते हैं । जैसे मौजूदा रोटरी वर्ष में मुकेश अरनेजा, रमेश अग्रवाल, दीपक गुप्ता के खुल्ले समर्थन के बावजूद अमित गुप्ता को जब बहुत ही कम वोट मिले, तो मुकेश अरनेजा ने अपने बचाव में सफाई दी कि जब उम्मीदवार में ही दम नहीं था, तो 'हम' ही क्या करते ? इस तरह मुकेश अरनेजा ने ही स्वीकार कर लिया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में नेताओं के भरोसे रहने वाले उम्मीदवार को नेताओं का समर्थन नहीं बचा सकता है, और उम्मीदवार में अपना दम होना जरूरी है ।
इसके बावजूद, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में - और/या रोटरी के किसी भी अन्य चुनाव में - नेताओं का समर्थन भावनात्मक व मनोवैज्ञानिक स्तर पर उम्मीदवार के दम में दम पैदा करने का काम तो करता ही है । इसीलिए जल्दी से चुनावी मैदान छोड़ चुके अशोक जैन की उम्मीदवारी को - एक उम्मीदवार के रूप में अशोक जैन को कमजोर मानने के बावजूद - तवज्जो मिलती दिख रही थी । हर कोई मान रहा था कि अशोक जैन के लिए एक उम्मीदवार की भूमिका निभा पाना मुश्किल ही होगा, लेकिन दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के समर्थन के चलते उनकी उम्मीदवारी तवज्जो पाने लगी थी । किंतु अशोक जैन की उम्मीदवारी जितने अचानक तरीके से आई थी, उतने ही अचानक तरीके से विदा भी हो गई । अशोक जैन की उम्मीदवारी को ललित खन्ना के लिए चुनौती व मुसीबत के रूप में देखा/पहचाना गया था । इसलिए अशोक जैन की उम्मीदवारी के वापस होने का फायदा भी उन्हें ही मिलता दिख रहा है । ललित खन्ना को सबसे बड़ा फायदा यह मिलता दिख रहा है कि रमेश अग्रवाल और शरत जैन के रूप में जो पूर्व गवर्नर्स नेता अशोक जैन की उम्मीदवारी का झंडा उठा रहे थे, वह अब ललित खन्ना की उम्मीदवारी का झंडा उठाने में अपना फायदा देखेंगे । रमेश अग्रवाल ने वास्तव में अशोक जैन को जबर्दस्ती उम्मीदवार बनाया/बनवाया ही इसलिए था, ताकि वह वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपनी वापसी करने का मौका पा सकें । 
रमेश अग्रवाल के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि वह रोटरी में बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में उनकी विकट दुर्गति हुई पड़ी है और वह पूरी तरह अलग थलग पड़े हुए हैं । डिस्ट्रिक्ट में उनकी जो बुरी हालत है, उसका असर क्लब में उनकी 'हैसियत' पर भी पड़ने लगा है - और क्लब में उनकी मनमानियों पर सवाल उठने लगे हैं तथा उनका विरोध होने लगा है । अभी हाल ही में अपने क्लब में रमेश अग्रवाल को भारी फजीहत का सामना करना पड़ा है; दरअसल उसी फजीहत को देखते हुए रमेश अग्रवाल के भरोसे चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे अशोक जैन अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने के लिए मजबूर हुए । कहा जाता है कि ईश्वर जब एक दरवाजा बंद करता है, तो दूसरा दरवाजा खोल भी देता है । रमेश अग्रवाल को ललित खन्ना की उम्मीदवारी के रूप में दूसरा दरवाजा खुला मिल गया है; और यह बात ललित खन्ना के लिए भी बोनस प्वाइंट बनी है । ललित खन्ना की उम्मीदवारी को रमेश अग्रवाल का समर्थन मिलना एक आश्चर्य ही होगा - लेकिन आश्चर्य ही तो राजनीति में रोमांच पैदा करते हैं और उसमें नई नई संभावनाएँ बनाते हैं; इसीलिए तो माना/कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है । ललित खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थन में आने का रमेश अग्रवाल को एक बड़ा फायदा यह मिलता दिख रहा है कि इसके जरिये उन्हें अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता के नजदीक आने/रहने का मौका मिलेगा । दीपक गुप्ता को चूँकि ललित खन्ना के साथ/समर्थन में देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए रमेश अग्रवाल को लगता है कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी का समर्थन करने के जरिये वह दीपक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में तवज्जो पा सकेंगे; और पिछले दो वर्षों से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स द्वारा किनारे बैठाये गए वाली स्थिति से निजात पायेंगे । यह स्थिति नेताओं के समर्थन के मामले में कमजोरी का सामना कर रही ललित खन्ना की उम्मीदवारी को अचानक से बड़ी ताकत दे देती है ।

Friday, June 14, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी फाउंडेशन के लिए 'जबरन बसूली' के चलते मुसीबत में फँसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन की मदद के लिए अब उन रोटेरियंस की तरफ देख रहे हैं, जिन्हें अभी तक वह सुभाष जैन का 'आदमी' बताते हुए उपेक्षित और 'अपमानित' करते रहे थे

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की तैयारी करते हुए दीपक गुप्ता ने जो भी काम किए हैं, उनमें से कुछेक ऐसे रहे हैं जिन्होंने उन्हें रोटेरियंस के बीच 'चुटकुला' बना छोड़ा है । अपने गवर्नर-वर्ष के इंस्टॉलेशन समारोह को लेकर दीपक गुप्ता ने जो 'कांड' किया है, उसने उनकी चुटकुला पहचान को और गाढ़ा बनाने का काम ही किया है । एक मशहूर चुटकुला है कि एक कार्यक्रम के आयोजकों ने घोषणा की कि उनके कार्यक्रम में प्रवेश निःशुल्क है । कार्यक्रम के समाप्त होने के बाद लोग बाहर निकलने के लिए जब दरवाजे की तरफ बढ़े, तब उन्हें बताया गया कि बाहर निकलने के लिए उन्हें पैसे देने पड़ेंगे । लोगों ने यह कहते हुए आपत्ति की कि कहा तो यह गया था कि प्रवेश निःशुल्क है; तो उन्हें मासूमियतभरा जबाव मिला कि इसीलिए तो प्रवेश के समय आपसे पैसे नहीं माँगे गए थे । दीपक गुप्ता ने 'शंखनाद' शीर्षक से आयोजित हो रहे डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन समारोह को लेकर उसी चुटकुले को चरितार्थ किया है । दीपक गुप्ता ने घोषणा की है कि उक्त समारोह में शामिल होने वाले लोगों से कोई चार्ज नहीं लिया जायेगा; लेकिन अगले ही वाक्य में उन्होंने स्पष्ट किया है कि समारोह का निमंत्रण पत्र उन्हें ही मिलेगा, जो रोटरी फाउंडेशन के लिए 250 अमेरिकी डॉलर, यानि 17 हजार पाँच सौ रुपए देंगे । कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रत्येक रोटेरियन को जब 17 हजार पाँच सौ रुपए देने ही पड़ेंगे, तब फिर उनके लिए समारोह निःशुल्क कहाँ रहा ? चुटकुले वाले आयोजकों की तर्ज पर लोगों को दीपक गुप्ता का मासूमियत भरा जबाव और तर्क है कि यह रकम तो वह रोटरी फाउंडेशन के लिए ले रहे हैं, समारोह तो लोगों के लिए निःशुल्क ही है ।
दीपक गुप्ता की इस हरकत पर वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना हालाँकि यह है कि दीपक गुप्ता का उद्देश्य तो अच्छा है, लेकिन उद्देश्य को पाने का उनका तरीका बहुत ही फूहड़ और बेवकूफीभरा है । उल्लेखनीय है कि रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे जुटाना प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए प्राथमिक कार्य माना जाने लगा है, और इसके लिए रोटेरियंस को प्रेरित करने के उद्देश्य से छोटे/बड़े स्तर पर ट्रेनिंग प्रोग्राम किए जाते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से भी उम्मीद की जाती है कि वह अपने कार्यक्रमों में तथा क्लब्स में होने वाली जीओवी में रोटेरियंस को रोटरी फाउंडेशन में पैसे देने के महत्त्व के बारे में बताते हुए प्रेरित करेंगे; लेकिन दीपक गुप्ता ने रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने के मामले में प्रेरित करने/कराने का चक्कर छोड़ कर जबरन बसूली का रास्ता अपना लेने में सहूलियत देखी है । डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रोटेरियंस को रोटरी फाउंडेशन के प्रति जागरूक बनाने तथा उसको दान देने के लिए प्रेरित करने के मौके के रूप में भी देखते/पहचानते हैं; लेकिन दीपक गुप्ता ने उल्टी ही चाल पकड़ी है और डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन को जबरन बसूली का मौका बना दिया है । कुछेक लोगों को लगता है कि दीपक गुप्ता ने ऐसा करके दरअसल बड़ी चालाकी खेली है । उन्हें डर था कि डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन में प्रवेश निःशुल्क रखेंगे, तो बड़ी संख्या में लोग आ धमकेंगे, जिससे खर्चा बढ़ेगा; उपस्थिति सीमित करने/रखने के लिए वह कम लोगों को निमंत्रण देंगे तो जिन्हें निमंत्रण नहीं मिलेगा, वह नाराज होंगे - लेकिन अब 'मुफ्त' वाले लोग इंस्टॉलेशन में आयेंगे नहीं, और कोई शिकायत भी नहीं कर सकेगा कि उसे निमंत्रित नहीं किया गया । इस तरह रोटरी फाउंडेशन के नाम पर 17 हजार पाँच सौ रुपए का बोझ डाल कर दीपक गुप्ता ने दरअसल डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन में हो सकने वाली भीड़ को नियंत्रित करने का काम किया है । 
दीपक गुप्ता को लेकिन अपनी यह होशियारी भारी पड़ती हुई भी दिख रही है । 17 हजार पाँच सौ रुपए देकर डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने में रोटेरियंस दिलचस्पी लेते हुए नहीं दिख रहे हैं; जिसके बाद दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट के उन वरिष्ठ रोटेरियंस के दरवाजे खटखटाना शुरू किया है - जिन्हें अभी तक उन्होंने अपने किसी कार्यक्रम में नहीं पूछा/बुलाया था । दीपक गुप्ता के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि उन्होंने करीब सौ/सवा सौ ऐसे वरिष्ठ रोटेरियंस की सूची बनाई हुई है, जो सुभाष जैन के मौजूदा गवर्नर-वर्ष में मुख्य पदों पर हैं और सक्रिय हैं; दीपक गुप्ता इन्हें सुभाष जैन के 'आदमी' के रूप में देखते/पहचानते हैं, और इस नाते उन्होंने इन्हें अपने कार्यक्रमों से दूर दूर ही रखा है; लेकिन अब दीपक गुप्ता इन्हें तरह तरह से मैसेज करके डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए फुसलाने की कोशिश कर रहे हैं । असल में, दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन के रजिस्ट्रेशन के लिए उन लोगों से कोई मदद नहीं मिल रही है, जिन्हें उन्होंने अपने आसपास जोड़ा हुआ है । इस मामले में दीपक गुप्ता को सबसे तगड़ा झटका डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा की तरफ से लगा है । उनका रोना है कि मुकेश अरनेजा रजिस्ट्रेशन के लिए मदद तो नहीं ही कर रहे हैं, उलटे लोगों को डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन के खिलाफ भड़का और रहे हैं । दरअसल, रोटरी फाउंडेशन के लिए की जा रही जबरन बसूली की शिकायत लोगों ने मुकेश अरनेजा से की, तो मुकेश अरनेजा ने यह कहते/बताते हुए अपनी जान छुड़ाई कि उन्होंने तो दीपक गुप्ता को बहुत समझाया था कि डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन यदि निःशुल्क कर रहे हो, तो 'सचमुच' निःशुल्क करो; और यदि रोटरी फाउंडेशन के नाम पर पैसे लेना ही चाहते हो, तो रकम प्रतीकात्मक रखो और कम रखो - लेकिन दीपक गुप्ता ने उनकी सुनी/मानी ही नहीं । मुकेश अरनेजा के इस जबाव को दीपक गुप्ता लोगों को भड़काने वाला बता रहे हैं; और ऐसे में डिस्ट्रिक्ट इंस्टॉलेशन की मदद के लिए अब वह डिस्ट्रिक्ट के उन वरिष्ठ रोटेरियंस की तरफ देख रहे हैं, जिन्हें अभी तक वह सुभाष जैन का 'आदमी' बताते हुए उपेक्षित और 'अपमानित' करते रहे थे ।

Thursday, June 13, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हरीश चौधरी जैन ने छह दिन पहले ही मिली फटकार को भूल कर 30 जून के कार्यक्रम की तैयारी की मीटिंग से कुछेक पदाधिकारियों व सदस्यों को दूर रखा और इस तरह झगड़े वाली स्थिति फिर से पैदा की

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों और सदस्यों को मिलजुल कर काम करने की सेंट्रल काउंसिल सदस्यों द्वारा दी गई नसीहत एक सप्ताह भी टिकी नहीं रह पाई और 30 जून के कार्यक्रम की तैयारी को लेकर की गई मीटिंग में पदाधिकारियों और सदस्यों के बीच का झगड़ा फिर फूट पड़ा । निकासा चेयरमैन राजेंद्र अरोड़ा का रोना है कि जिस कार्यक्रम में बच्चों/छात्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होनी है और उनका सहयोग चाहिए होगा, उस कार्यक्रम की तैयारी के लिए होने वाली मीटिंग में निकासा चेयरमैन होने के बावजूद उन्हें बुलाया तक नहीं गया । राजेंद्र अरोड़ा के अलावा, नितिन कँवर, सुमित गर्ग और अविनाश गुप्ता को भी उक्त मीटिंग की सूचना तक नहीं दी गई । इस मामले में इनकी नाराजगी चेयरमैन हरीश चौधरी जैन के प्रति फूट रही है । इनका कहना है कि इस बात को अभी सप्ताह भी नहीं हुआ है, जबकि हरीश चौधरी जैन को सेंट्रल काउंसिल सदस्यों से कसकर फटकार पड़ी थी और उन्हें चेतावनी मिली थी कि काउंसिल के कार्यक्रमों में उन्हें सभी पदाधिकारियों और सदस्यों की भागीदारी को सुनिश्चित करना/रखना चाहिए । हरीश चौधरी जैन लेकिन एक सप्ताह से भी कम समय में उक्त फटकार और नसीहत को भूल गए हैं । मजे की और विडंबना की बात यह भी है कि हरीश चौधरी जैन अभी जिन लोगों को सूचित किए बिना एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम की तैयारी करने के बारे में मीटिंग करने को तैयार हो गए; अभी तक वह उन्हीं लोगों के भरोसे रहा करते थे । हरीश चौधरी जैन इतनी तेजी से अपना रंग बदल लेंगे, यह नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में उनके नजदीक रहे लोगों ने सोचा भी नहीं था - और इस तरह उन्होंने अपने आप को हरीश चौधरी जैन के हाथों ठगा हुआ पाया ।
30 जून के साँस्कृतिक कार्यक्रम के बारे में अब मीटिंग करना और उसकी तैयारी की शुरुआत करना भी चेयरमैन के रूप में हरीश चौधरी जैन के नाकारापन का पुख्ता सुबूत है । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल हर वर्ष सीए दिवस की पूर्व संध्या पर, 30 जून को साँस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करती है, जिसमें चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तथा उनके परिवार के सदस्य और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स छात्र विभिन्न तरह के साँस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं । इस कार्यक्रम की तैयारी अप्रैल से शुरू हो जाती है; जिसमें सबसे पहले कार्यक्रम प्रस्तुत करने की इच्छा रखने वाले लोगों के आवेदन माँगे जाते हैं, आवेदकों की प्रस्तुतियों की झलक देखी जाती है और एक कमेटी आवेदकों में से ऐसे लोगों को चुनती है जिनकी प्रस्तुतियों को कार्यक्रम के योग्य माना/पाया जाता है; फिर चुने हुए लोग अपनी प्रस्तुतियों की आगे तैयारी करते हैं । चेयरमैन हरीश चौधरी जैन ने लेकिन अप्रैल और मई का पूरा महीना लड़ने/झगड़ने में ही बिता दिया; और अब जब 30 जून में मुश्किल से ढाई सप्ताह का समय बचा है, तब उन्हें उक्त कार्यक्रम को करने की सुध आई है । समझा जा सकता है कि जिस कार्यक्रम की तैयारी में तीन महीने का समय लगता रहा है, उसे ढाई सप्ताह में कैसे किया जा सकेगा ? जाहिर है कि कार्यक्रम के नाम पर महज खानापूर्ति ही होगी । खानापूर्ति भी अच्छे से की जा सकती थी, यदि रीजनल काउंसिल के सभी पदाधिकारियों और सदस्यों को साथ लेकर उसे पूरा करने की कोशिश की जाती । लेकिन जिस कार्यक्रम की तैयारी के पहले कदम में ही विवाद और झगड़ा पैदा हो गया हो, उसका क्या हश्र होगा - इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
30 जून के कार्यक्रम की तैयारी के लिए बनी कमेटी में गौरव गर्ग को जगह मिलने पर भी हैरानी व्यक्त की जा रही है । कुछेक लोग इसे गौरव गर्ग की 'ब्लैकमेल की राजनीति' की सफलता के रूप में 'देख' रहे हैं । लोगों का कहना है कि गौरव गर्ग ने पिछले दिनों रीजनल काउंसिल में हो रही मनमानियों को मुद्दा बना कर काउंसिल कार्यालय में धरना देने का जो आयोजन किया था, उसी के फल के रूप में उन्हें संदर्भित कमेटी में जगह मिली है - ताकि आगे वह धरने जैसा कोई काम न करें । उल्लेखनीय है कि गौरव गर्ग की शिकायत थी कि रीजनल काउंसिल में क्या हो रहा है, रीजनल काउंसिल सदस्य होने के बावजूद उन्हें भी पता नहीं होता है; इसलिए अपने धरने के जरिये वह माँग करेंगे कि रीजनल काउंसिल के आयोजनों की तैयारी में रीजनल काउंसिल के सभी सदस्यों को शामिल किया जाए । लेकिन अब जब 30 जून के कार्यक्रम की तैयारी से रीजनल काउंसिल के चार सदस्यों को, जिनमें एक पदाधिकारी भी है, दूर रखा जा रहा है तो गौरव गर्ग चुप्पी साधे हुए हैं - क्योंकि उन्हें कमेटी में पद मिल गया है । इसी से लोगों को कहने का मौका मिला है कि गौरव गर्ग का धरनेबाजी का सारा नाटक वास्तव में अपने लिए पद पाने के लिए था; और उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि रीजनल काउंसिल के आयोजनों में सभी सदस्यों की भागीदारी हो और सभी सदस्यों को पता हो कि काउंसिल में आखिर हो क्या रहा है ? 30 जून के कार्यक्रम की तैयारी के लिए हुई मीटिंग में जिस तरह से पदाधिकारियों और सदस्यों को दूर रखने की कोशिश हुई है, उससे नजर आ रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में हालात सुधरने वाले हैं नहीं ।

Monday, June 10, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता द्वारा अपनी कोर टीम के सदस्य मनीष गोयल पर मुकेश अरनेजा के लिए जासूसी करने के लगाए आरोप ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता को डराया

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की तैयारी कर रहे दीपक गुप्ता और उनके गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर की भूमिका निभाने वाले मुकेश अरनेजा के बीच गलतफहमियाँ पैदा होने तथा झगड़े जैसी स्थितियाँ बनने के लिए मनीष गोयल को जिम्मेदार ठहराए जाने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता के सामने मुसीबत खड़ी हो गई है । उल्लेखनीय है कि दीपक गुप्ता की ही तरह आलोक गुप्ता की कोर टीम में भी मनीष गोयल को खासी तवज्जो मिलती दिख रही है । मनीष गोयल को एक अच्छे कार्यकर्त्ता के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और इसी नाते वह पहले दीपक गुप्ता तथा अब आलोक गुप्ता की 'आँखों के तारे' बन रहे हैं । दीपक गुप्ता के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि मनीष गोयल ने काफी मेहनत से दीपक गुप्ता के काम किए हैं, और संभवतः उनकी इसी खूबी को देख कर आलोक गुप्ता ने भी उन्हें अपने नजदीक किया है । लेकिन पिछले कुछेक दिनों से मनीष गोयल का नाम दीपक गुप्ता और मुकेश अरनेजा के बीच मनमुटाव की स्थितियाँ बनाने के मामले में आ रहा है । दीपक गुप्ता ने अपने नजदीकियों के बीच पहले तो संदेह जताया था और अब वह सीधे सीधे आरोप लगाने लगे हैं कि मनीष गोयल उनके यहाँ मुकेश अरनेजा के जासूस की तरह काम कर रहे हैं, और उनकी गतिविधियों व कामकाज की तैयारी के बारे में मुकेश अरनेजा को पल पल की खबरें देते/पहुँचाते रहे हैं । दीपक गुप्ता के इस आरोप ने आलोक गुप्ता को मुसीबत में डाल दिया है; आलोक गुप्ता को डर हुआ है कि मनीष गोयल कहीं उनके यहाँ भी तो मुकेश अरनेजा की जासूसी नहीं करेंगे ?
दीपक गुप्ता को कई बार यह देख/जान कर हैरानी हुई कि उनके कई फैसले उद्घाटित होने से पहले ही संबद्ध लोगों को मालूम होते है, और कई एक मामलों में दीपक गुप्ता को यह भी पता चला कि यह सब मुकेश अरनेजा के जरिये होता है ।मुकेश अरनेजा ने कई लोगों को बताया कि उन्होंने उन्हें दीपक गुप्ता की टीम में फलाँ पद दिलवा दिया है; कुछेक लोगों से तो मुकेश अरनेजा ने यहाँ तक दावा कर दिया कि दीपक गुप्ता तो तुम्हें उक्त पद देना ही नहीं चाहता था, लेकिन मैंने जोर दिया तब तुम्हें उक्त पद मिल सका है । दीपक गुप्ता के आयोजनों में दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स से आने वाले वरिष्ठ रोटेरियंस व पदाधिकारियों तक के साथ मुकेश अरनेजा ने ऐसा ही खेल खेला । मुकेश अरनेजा ने उन्हें फोन करके पूछा/कहा कि अरे, दीपक गुप्ता ने अभी आपको फोन नहीं किया है; मैंने उससे कहा है कि आपको फोन करे; मैं फिर उससे आपको फोन करने के लिए कहता हूँ; आदि-इत्यादि । दीपक गुप्ता ने जब इस तरह की बातें सुनीं तो वह हैरान हुए और मुकेश अरनेजा की इस हरकत पर नाराज हुए । कई मामलों में 'मौके' इतने सटीक थे कि दीपक गुप्ता के फोन करने से ठीक पहले मुकेश अरनेजा का फोन पहुँचा हुआ था और 'दूसरी तरफ' जो व्यक्ति था, उसने यही समझा कि मुकेश अरनेजा की कोशिशों से ही दीपक गुप्ता ने उन्हें फोन किया है । मुकेश अरनेजा की इस तरह की हरकतों से दीपक गुप्ता नाराज तो हुए ही, लेकिन उन्हें इस बात पर हैरानी भी हुई कि जो बातें और जो काम चार-पाँच लोगों के बीच ही डिस्कस हुए हैं, उनकी खबर मुकेश अरनेजा तक कैसे पहुँची । दीपक गुप्ता को यह समझने में हालाँकि देर नहीं लगी कि यह सब मनीष गोयल की ही कारस्तानी है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में मनीष गोयल को मुकेश अरनेजा के 'आदमी' के रूप में ही पहचाना जाता है । दीपक गुप्ता की कोर टीम में मनीष गोयल को मुकेश अरनेजा की सिफारिश पर ही जगह मिली है । मजे की जानकारी यह भी है कि मुकेश अरनेजा ने मनीष गोयल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का उम्मीदवार बनाने की तैयारी भी की थी, लेकिन दीपक गुप्ता के दिलचस्पी न लेने के कारण मुकेश अरनेजा और मनीष गोयल को फिर पीछे हटना पड़ा । दीपक गुप्ता के नजदीकियों का कहना/बताना है कि दीपक गुप्ता ने एक कार्यक्रम में मनीष गोयल से स्पॉन्सरशिप के लिए कहा था, लेकिन मनीष गोयल उसके लिए तैयार नहीं हुए । इसी से दीपक गुप्ता को आभास हुआ कि मनीष गोयल मुफ्त में उम्मीदवार बनना चाहते हैं, और इसीलिए उन्होंने मनीष गोयल की उम्मीदवारी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई; फलस्वरूप मनीष गोयल की उम्मीदवारी की बात जितनी तेजी से उठी, उतनी ही तेजी से वह दब भी गई । दीपक गुप्ता को अब लग रहा है कि मनीष गोयल की उम्मीदवारी को वह शह/समर्थन यदि दे देते तो मनीष गोयल और मुकेश अरनेजा मिलकर उनकी गवर्नरी का पता नहीं क्या हाल करते । मुकेश अरनेजा के साथ दीपक गुप्ता के संबंध पहले ही तनावपूर्ण हो चुके थे, जिस कारण मुकेश अरनेजा उनके किसी किसी कार्यक्रम को बीच में ही छोड़ कर निकल गए थे; बात बढ़ने पर हालाँकि मुकेश अरनेजा ने सफाई दी थी कि एक बार तबियत खराब होने पर तथा एक बार एक काम के कारण उन्हें कार्यक्रम के बीच से जाना पड़ा था । लेकिन दीपक गुप्ता ने मनमुटाव की बातों पर पर्दा डालने की कोई कोशिश नहीं की । दीपक गुप्ता को लग रहा है और जो उन्होंने अपने नजदीकियों के बीच कहा भी कि मुकेश अरनेजा और उनके बीच संबंधों को खराब करने का काम मुकेश अरनेजा के लिए की गई मनीष गोयल की जासूसी ही जिम्मेदार है । दीपक गुप्ता के इस अनुभव और आरोप ने आलोक गुप्ता को चिंता में डाल दिया है; उन्हें डर हुआ है कि मनीष गोयल उनके गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार बनने का प्रयास करेंगे और मुकेश अरनेजा के लिए जासूसी भी करेंगे - और इस तरह उनका गवर्नर-वर्ष कहीं मुकेश अरनेजा की हरकतों की भेंट न चढ़ जाए ।

Sunday, June 9, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल की सादगी, ईमानदारी, पारदर्शिता, दूसरों को स्पेस तथा सम्मान देने की तत्परता ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीतिक आबोहवा को जिस तरह से बदला है; उसमें पुरानी और बार बार इस्तेमाल की जा चुकीं तरकीबों से मुकेश गोयल अपना राजनीतिक अस्तित्व सचमुच बचा सकेंगे क्या ?

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय मित्तल की बहुआयामी कामयाबी ने डिस्ट्रिक्ट की 'व्यवस्था' और चुनावी राजनीति के समीकरणों को जिस तरह से 'डिस्टर्ब' किया है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट एक बड़े बदलाव के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है । यह बड़ा बदलाव और चीजों/बातों को प्रभावित करने के साथ-साथ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश गोयल की स्थिति और भूमिका को मुख्य रूप से प्रभावित कर रहा है । उल्लेखनीय है कि पिछले कई वर्षों से मुकेश गोयल डिस्ट्रिक्ट की व्यवस्था और चुनावी राजनीति के केंद्र में रहे हैं; उनकी जगह लेकिन अब विनय मित्तल लेते हुए दिख रहे हैं । जैसे देश की राजनीति के केंद्र में पहले कॉंग्रेस होती थी, दूसरे दल उसके विरोध में गठबंधन करते/बनाते थे; लेकिन केंद्र की जगह अब बीजेपी ने ले ली है । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की चुनावी राजनीति में भी जो दूसरे नेता पहले मुकेश गोयल के विरोध के मौके खोजते थे और उनके खिलाफ गठबंधन बनाने में जुटते थे; लेकिन अब मुकेश गोयल खुद विनय मित्तल से लड़ने के लिए समर्थक खोज रहे हैं । कॉंग्रेस के परंपरागत समर्थन आधार में सेंध लगाकर जिस तरह से बीजेपी ने उसे कमजोर बना दिया है; लगभग उसी तर्ज पर मुकेश गोयल के समर्थन-आधार के बड़े हिस्से को अपने साथ करके विनय मित्तल ने मुकेश गोयल के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है । खुद मुकेश गोयल कहते हैं कि पहले भी उन्हें चुनौतियाँ मिली हैं, लेकिन अब जो चुनौती उनके सामने है - वह बड़ी भारी चुनौती है । मुकेश गोयल दावा तो करते हैं कि वह इस चुनौती से भी निपट लेंगे और विनय मित्तल का 'यह' कर देंगे, 'वह' कर देंगे - लेकिन उनके नजदीकियों और शुभचिंतकों को भी लग रहा है कि वास्तव में 'ऊँठ पहाड़ के नीचे' अब आया है । 
मुकेश गोयल के नजदीकियों और शुभचिंतकों का ही मानना और कहना है कि विनय मित्तल की तरफ से मिलने वाली चुनौती मुकेश गोयल के लिए इसलिए बड़ी और गंभीर है, क्योंकि पिछले कई वर्षों से मुकेश गोयल का जो राज-पाट चल रहा था - उसमें विनय मित्तल की बड़ी भूमिका थी । मुकेश गोयल के लिए मुसीबत की बात सिर्फ यह नहीं है कि कई वर्षों तक उनके साथी/सहयोगी रहे विनय मित्तल अब उनके सामने हैं, मुकेश गोयल के लिए मुश्किल की बात यह भी है कि उनके पास ऐसा कोई साथी/सहयोगी नहीं है जो विनय मित्तल की खूबियों के आसपास भी ठहरता हो । विनय मित्तल ने एक 'बदमाशी' और की; उन्होंने मुकेश गोयल की खूबियाँ तो सीख लीं, लेकिन कमजोरियों को छोड़ दिया - जिसका नतीजा यह है कि विनय मित्तल के सामने मुकेश गोयल असहाय से बने हुए हैं । पिछले वर्ष अश्वनी काम्बोज तथा इस वर्ष गौरव गर्ग की उम्मीदवारी का समर्थन मुकेश गोयल ने जिस मजबूरी में किया, उससे साबित हुआ है कि विनय मित्तल द्वारा रचे गए चक्रव्यूह को भेद पाने का मुकेश गोयल को कोई मौका नहीं मिल सका । इस वर्ष मुकेश गोयल आखिरी मौके तक कोई खेल करने की तैयारी में थे, लेकिन उनकी चालों से अच्छी तरह परिचित रहे विनय मित्तल ने उनकी ऐसी घेराबंदी की हुई थी कि वह फिर कोई साहस नहीं कर सके । अगले लायन वर्ष के लिए मुकेश गोयल 'अपने' उम्मीदवार को लाने के तेवर तो दिखा रहे हैं, लेकिन विनय मित्तल की रणनीति के सामने वह हथियार डालते और मजबूर होते ही नजर आ रहे हैं । इसका नजारा मुजफ्फरनगर में आयोजित अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने जा रहे संजीवा अग्रवाल की पहली माइक्रो कैबिनेट मीटिंग एवं कैबिनेट परिचय सम्मेलन में देखने को मिला । विनय मित्तल ने बड़ी होशियारी से मुकेश गोयल के लिए जाल बुना, जिसके तहत उन्होंने सबसे ऊपर मुकेश गोयल के साथ कुञ्ज बिहारी अग्रवाल का नाम रखा । विनय मित्तल जानते थे कि मुकेश गोयल अपने नाम के साथ कुञ्ज बिहारी अग्रवाल का नाम रखे जाने को बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे; यही हुआ और मुकेश गोयल नाराज होकर कार्यक्रम में नहीं गए - और इस तरह विनय मित्तल के बिछाए जाल में खुद ही जा फँसे ।
डिस्ट्रिक्ट में दरअसल कुछेक लोग ऐसे हैं, जो मुकेश गोयल और विनय मित्तल को साथ-साथ ही देखना चाहते हैं । ऐसे लोगों को अपने साथ लाने के लिए विनय मित्तल ऐसा कोई काम करते हुए 'दिखना' नहीं चाहते हैं जिसमें वह सार्वजनिक रूप से मुकेश गोयल की अवहेलना करते हुए नजर आएँ । इसीलिए विनय मित्तल ने मुकेश गोयल के लिए ऐसा बारीक जाल बुना है, जिसमें अपनी 'आदत' और अपने 'व्यवहार' के चलते मुकेश गोयल खुद ही फँसेंगे और गिरेंगे । मुकेश गोयल और विनय मित्तल के बीच चलने वाले शह और मात के खेल का सबसे रोचक पक्ष यह है कि विनय मित्तल को यह अच्छे से पता है कि मुकेश गोयल कहाँ क्या गलतियाँ करेंगे, इसलिए वह उसी के हिसाब से बातें/चीजें कर ले रहे हैं; जबकि मुकेश गोयल का इस बात पर लगता है कि कोई ध्यान ही नहीं है कि बदले हुए हालात में उन्हें क्या नई रणनीति बनाना चाहिए; वह पुराने ढर्रे पर ही हैं और उन्हें शायद इस बात का अहसास भी नहीं है कि पुराने ढर्रे पर रहने के चलते वह अपने नुकसान को और बढ़ा ही रहे हैं । विनय मित्तल ने जिस ईमानदारी के साथ गवर्नरी की है, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी साख और विश्वसनीयता बनी/बढ़ी है; और यह तथ्य उनका 'यह' और 'वह' करने की घोषणा करने वाले मुकेश गोयल के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है । विनय मित्तल ने जिस पारदर्शिता के साथ गवर्नर पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह किया है, उसे डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म के व्यापक हित में देखा/पहचाना जा रहा है । ईमानदारी से गवर्नरी करने का काम तो हालाँकि कुछेक और गवर्नर्स ने भी किया है, लेकिन विनय मित्तल ने कामकाज में जिस तरह की पारदर्शिता बनाये रखी, उसके कारण उनकी ईमानदारी लोगों को नजर भी आई - और यही बात उनके कद को उँचा करने वाली साबित हुई है; और इसी बात ने विनय मित्तल को राजनीतिक ताकत भी दी है । मुकेश गोयल के लिए 'कोढ़ में खाज' वाली बात यह हुई है कि अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल भी विनय मित्तल के नक्शेकदम पर चलने की तैयारी करते देखे जा रहे हैं । विनय मित्तल और संजीवा अग्रवाल के तौर-तरीकों से डिस्ट्रिक्ट की 'व्यवस्था' और उसका माहौल बदल रहा है; मुकेश गोयल इस बदलती व्यवस्था और माहौल में अपनी राजनीति फिट करने की कोशिश कर रहे हैं, और लगातार मात खाते दिख रहे हैं । उनके नजदीकियों और शुभचिंतकों का ही मानना और कहना है कि मुकेश गोयल इस सच्चाई को स्वीकार करने से मुँह छिपा रहे हैं कि विनय मित्तल की सादगी, ईमानदारी, पारदर्शिता, दूसरों को स्पेस तथा सम्मान देने की तत्परता ने डिस्ट्रिक्ट की आबोहवा को जिस तरह से बदला है, उसमें उनकी पुरानी और बार बार इस्तेमाल की जा चुकीं तरकीबें काम नहीं आयेंगी - तब तो और भी नहीं, जबकि उनके पास/साथ विनय मित्तल के जैसी खूबियों वाला कोई साथी/सहयोगी भी नहीं है ।

Saturday, June 8, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा दे चुके सुशील गुप्ता की बीमारी का फायदा उठा कर टीके रूबी को डीआरएफसी के पद से हटवा देंगे और ग्रांट के पैसे का मनमाना इस्तेमाल करने का अधिकार पा लेने के प्रयासों में जुटे

चंडीगढ़ । सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा देने के बाद पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू और उनके संगी-साथी एक बार फिर अपने 'असली रंग' में आ गए हैं, और इसके तहत उन्होंने निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी को एक बार फिर निशाना बनाना शुरू कर दिया है । राजा साबू और उनके संगी-साथियों को दरअसल टीके रूबी का डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) बनना पसंद नहीं आ रहा है; वास्तव में उन्हें डर यह हुआ है कि टीके रूबी के डीआरएफसी बनने से रोटरी की ग्रांट्स में हेराफेरी करने तथा मनमानी से उसका इस्तेमाल करने की उनकी हरकतों पर रोक लग जाएगी - इसलिए वह किसी भी बहाने से टीके रूबी को डीआरएफसी पद से हटवाना चाहते हैं । इसके लिए टीके रूबी द्वारा अपने गवर्नर-वर्ष का एकाउंट न दिए जाने तथा पिछले रोटरी वर्ष के ग्रांट-एकाउंट को बंद न करने को बहाने के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है । उल्लेखनीय है कि सुशील गुप्ता जब तक इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी थे, तब तक राजा साबू और उनके संगी-साथी 'भीगी बिल्ली' बने हुए थे, और चुप बैठे थे, लेकिन सुशील गुप्ता के इस्तीफा देने के बाद वह फिर से अपनी हरकतों पर उतर आए हैं । असल में, राजा साबू और उनके संगी-साथी टीके रूबी से चलने वाली लड़ाई में बार-बार मात खाने के लिए टीके रूबी को मिलने वाले सुशील गुप्ता के समर्थन को जिम्मेदार मानते/ठहराते रहे हैं; उनका स्पष्ट आरोप रहा कि सुशील गुप्ता इंटरनेशनल कार्यालय में अपनी पहुँच का फायदा उठाते हुए टीके रूबी को बचाते तथा उन्हें लाभ पहुँचवाते रहे हैं । राजा साबू के संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स इसके लिए सुशील गुप्ता को सरेआम कोसते भी रहे हैं । यह तब की बात है, जब सुशील गुप्ता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी नहीं बने थे । ऐसे में, सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने के बाद तो राजा साबू और उनके संगी-साथियों को जैसे साँप सूँघ गया था ।
सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा देने के बाद लेकिन राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स बिलों से बाहर निकल आए हैं; कुछेक को कहते हुए सुना गया है कि सुशील गुप्ता ने सिर्फ इस्तीफा ही नहीं दिया है; बीमारी के चलते अब वह इतने असाध्य हो गए हैं कि कुछ कहने/करने लायक नहीं हैं, इसलिए वह अब देखते हैं कि टीके रूबी को कौन बचायेगा ? राजा साबू के संगी-साथी टीके रूबी पर दो 'गुनाह' करने का आरोप लगा रहे है - एक यह कि उन्होंने पिछले रोटरी वर्ष के अपने गवर्नर-काल का एकाउंट नहीं दिया है, और दूसरा अपने गवर्नर वर्ष का ग्रांट-एकाउंट उन्होंने बंद नहीं किया है । यह दोनों आरोप 'नौ सौ चूहे खा चुकी बिल्ली के हज पर जाने' वाले मुहावरे की याद दिलाते हैं । डिस्ट्रिक्ट में कई गवर्नर ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपने गवर्नर-वर्ष के एकाउंट नहीं दिए हैं; लेकिन राजा साबू और या उनके संगी-साथियों ने कभी उनके एकाउंट न देने को मुद्दा नहीं बनाया । जिनके एकाउंट मिले भी उनमें गड़बड़ी के आरोप लगे, लेकिन उन आरोपों को अनसुना किया गया । एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के एकाउंट में गड़बड़ी छिपाने के लिए के दो बार ऑडिट करने की 'बेईमानी' करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाया हुआ है । ग्रांट-एकाउंट की जहाँ तक बात है तो पूर्व गवर्नर डेविड हिल्टन ने तीसरे वर्ष ग्रांट-एकाउंट बंद किया था, जिसके चलते टीके रूबी पूरे वर्ष अपना काम नहीं कर सके थे । मजे की बात यह है कि डेविड हिल्टन और टीके रूबी के बीच गवर्नर रहे रमन अनेजा ने डेविड हिल्टन से ग्रांट बंद करने के लिए कहा भी नहीं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में ग्रांट का पैसा राजा साबू की मर्जी और सुविधा से खर्च होता रहा है, इसलिए डेविड हिल्टन ने ग्रांट-अकाउंट बंद नहीं किया और जिस कारण रमन अनेजा अपने गवर्नर-वर्ष की ग्रांट का उपयोग नहीं कर सके, तो इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा - क्योंकि राजा साबू की 'सेवा' तो होती ही रही; फर्क तब पड़ता, जब रमन अनेजा को 'ईमानदारी' से क्लब्स को ग्रांट देना होती । 
टीके रूबी अपने गवर्नर वर्ष में ग्रांट का पैसा 'ईमानदारी' से क्लब्स पर खर्च न कर सकें, और ग्रांट के पैसे का राजा साबू मनमाने तरीके से इस्तेमाल कर सके - इसलिए डेविड हिल्टन ने तीसरे वर्ष भी ग्रांट-एकाउंट खुला रखा और रोटरी वर्ष के अंत में मई/जून में उसे बंद किया । तब तक राजा साबू ने इतना जुगाड़ कर लिया था कि मेडीकल मिशन के उनके आयोजनों पर कोई आँच नहीं आ सके । राजा साबू ने इस वर्ष तो बल्कि तीन मेडीकल मिशन किए हैं । डिस्ट्रिक्ट में किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को अपने डिस्ट्रिक्ट के भौगोलिक क्षेत्र के और या देश के बीमारों का ईलाज करने/करवाने की जरूरत क्यों नहीं महसूस होती और क्यों वह दूसरे देशों के बीमारों के ईलाज में ही ग्रांट का पैसा लगा देते हैं ? इसी से लोगों को शक होता है कि राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स बीमारों के ईलाज की आड़ में वास्तव में कोई और 'धंधा' करते हैं । मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल की माँग और शिकायत अपनी जगह बिलकुल उचित ही है । टीके रूबी द्वारा ग्रांट-एकाउंट बंद न करने की स्थिति में प्रवीन गोयल के लिए वास्तव में यह संभव नहीं रह गया है कि वह अपने गवर्नर-वर्ष की ग्रांट का इस्तेमाल कर सकें - लेकिन उनकी इस स्थिति के लिए डेविड हिल्टन जिम्मेदार हैं; जिन्होंने तीसरे वर्ष अपना ग्रांट-एकाउंट तब बंद किया, जब टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष को समाप्त होने में मुश्किल से एक महीना ही बचा था । राजा साबू और उनके संगी-साथियों को लगता था कि एक महीने में टीके रूबी अपना ग्रांट-एकाउंट खुलवा नहीं सकेंगे, और टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष की ग्रांट पर भी वह हाथ साफ कर लेंगे । लेकिन उनकी बदकिस्मती रही कि टीके रूबी ने अपने गवर्नर-वर्ष का ग्रांट-एकाउंट खुलवा लिया । राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स ने इस पर काफी हायतौबा मचाई थी, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद वह कुछ कर नहीं सके थे । राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स का कहना रहा है कि टीके रूबी का ग्रांट-एकाउंट खुलवाने में सुशील गुप्ता का 'सहयोग' था ।
टीके रूबी को जो ग्रांट-एकाउंट जुलाई 2017 में मिलना चाहिए था, राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स की चालबाजियों के चलते वह उन्हें जून 2018 में मिला । ग्रांट-एकाउंट को उन्हें मई 2019 तक पूरा करना था । प्रवीन गोयल उससे पहले ही टीके रूबी पर ग्रांट-एकाउंट बंद करने के लिए दबाव बनाने लगे । रोटरी इंटरनेशनल के जनरल सेक्रेटरी को लिखे उनके पत्र में यह बात स्वतः ही स्पष्ट होती है । उनके पत्र का दिलचस्प पक्ष यह है कि ग्रांट-एकाउंट बंद न करने तथा अपने गवर्नर-काल का एकाउंट न देने का वास्ता देकर प्रवीन गोयल टीके रूबी के डीआरएफसी बनने पर निशाना साध रहे हैं और जनरल सेक्रेटरी से अनुरोध कर रहे हैं कि टीके रूबी के डीआरएफसी बनने के मामले का उन्हें 'रिव्यू' करना चाहिए । प्रवीन गोयल के इस पत्र से वास्तव में राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स की वह बौखलाहट ही सामने आती है, जो टीके रूबी के डीआरएफसी बनने से उनके बीच पैदा हुई है । राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स को लगता है कि अब जब सुशील गुप्ता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा दे चुके हैं, और बीमारी के कारण कुछ कहने/करने की स्थिति में नहीं हैं, तो वह टीके रूबी को डीआरएफसी के पद से हटवा देंगे और ग्रांट के पैसे का मनमाना इस्तेमाल करने का अधिकार पा लेंगे ।

Friday, June 7, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग तो रद्द हो गई; लेकिन अनौपचारिक मीटिंग में बने माहौल ने झगड़े-झंझट का फायदा उठाने की कोशिश करने वाले गौरव गर्ग और रतन सिंह यादव को भड़काया

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हरीश चौधरी जैन द्वारा बुलाई गई रीजनल काउंसिल की मीटिंग, इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी के हस्तक्षेप के बाद, रद्द हो गई । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी पंकज गुप्ता ने हरीश चौधरी जैन द्वारा बुलाई गई मीटिंग को इंस्टीट्यूट के नियम-कानूनों से खिलवाड़ बताया था और इंस्टीट्यूट में इसकी शिकायत करते हुए इसे रद्द करने की माँग की थी । इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी ने पंकज गुप्ता की आपत्ति को स्वीकार करते हुए चेयरमैन हरीश चौधरी जैन को ऐन मौके पर मीटिंग रद्द कर देने के लिए कहा । मीटिंग रद्द होने से बौखलाए हरीश चौधरी जैन तथा गौरव गर्ग ने इसका ठीकरा इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में सरकार द्वारा नामित सदस्य विजय झालानी के सिर फोड़ा है । इनका आरोप है कि विजय झालानी ने इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी पर दबाव बना कर मीटिंग रद्द करने/करवाने का फैसला करवाया है । हरीश चौधरी जैन तो इसलिए बौखलाए हैं क्योंकि मीटिंग रद्द होने से उनकी भारी फजीहत हुई है; गौरव गर्ग इसलिए बौखलाए हैं क्योंकि पिछले कुछेक दिनों से वह हरीश चौधरी जैन के नजदीक होने की कोशिश कर रहे हैं और संदर्भित मीटिंग के सबसे बड़े समर्थक व 'वकील' बने हुए थे; मीटिंग के जरिये उन्होंने पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता को 'फँसाने' के मंसूबे बनाए हुए थे - मीटिंग रद्द हो जाने से लेकिन उनके मंसूबे धरे रह गए । 'कोढ़ में खाज' वाली बात यह हुई कि हरीश चौधरी जैन द्वारा बुलाई गई और गौरव गर्ग द्वारा जोरशोर से समर्थित मीटिंग तो रद्द हो गई; लेकिन रीजनल काउंसिल सदस्यों व कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच रीजनल काउंसिल में चल रहे झगड़े-झंझट को लेकर अनौपचारिक मीटिंग हुई, जिसमें जो माहौल बना और बातें हुईं - वह हरीश चौधरी जैन तथा रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के बीच चल रहे झगड़े-झंझट में अपना फायदा देख रहे गौरव गर्ग, नितिन कँवर, राजेंद्र अरोड़ा, सुमित गर्ग और रतन सिंह यादव की 'उम्मीदों' पर पानी फेरने वाला साबित हुआ । 
अनौपचारिक मीटिंग में मौजूद सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों तथा सदस्यों को यह बात साफ साफ बता दी कि जैसा चल रहा है, यदि ऐसा ही चलता रहा तो रीजनल काउंसिल पदाधिकारियों के अधिकार 'छीन' लिए जायेंगे और रीजनल काउंसिल का काम इंस्टीट्यूट के अधिकारी करेंगे । यह सुन कर चेयरमैन हरीश चौधरी जैन के तेवर ढीले पड़े । हरीश चौधरी जैन को यह सुन/जान कर और झटका लगा कि वह कोई भी काम और कोई भी फैसला सेक्रेटरी को विश्वास में लिए बिना नहीं कर सकते हैं । इस पर नितिन कँवर, राजेंद्र अरोड़ा, सुमित गर्ग, गौरव गर्ग ने आपत्ति की, तो सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने बड़े 'प्यार' से उन्हें समझा दिया कि चेयरमैन के लिए ऐसा करना नियमानुसार जरूरी है; यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो फिर इंस्टीट्यूट कार्रवाई कर सकता है - सेक्रेटरी को विश्वास में लिए बिना बुलाई गई मीटिंग को रद्द करके इंस्टीट्यूट प्रशासन ने इसका संकेत दे दिया है; अब यह चेयरमैन पर निर्भर करता है कि वह इस संकेत को समझे या न समझे । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने सेक्रेटरी पंकज गुप्ता को भी नसीहत दी कि उन्हें अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों के पालन पर भी ध्यान देना चाहिए; उन्हें यह नहीं समझ लेना चाहिए कि उन्हें शामिल किए बिना कोई फैसला नहीं होने के नियम के चलते उन्हें मनमानी करने की छूट मिल जाएगी । दरअसल चेयरमैन हरीश चौधरी जैन का आरोप रहा कि सेक्रेटरी के रूप में पंकज गुप्ता काउंसिल के ऑफिस में तो कई कई दिनों तक आते नहीं हैं, और चाहते यह हैं कि काउंसिल में 'कोई वॉशरूम भी जाए तो उनसे पूछ कर जाए ।' सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने हरीश चौधरी जैन की इस शिकायत को गंभीरता से लिया, और पंकज गुप्ता को ऊपर वर्णित नसीहत दी । 
सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने कुछ नियमों का हवाला देकर, कुछ इंस्टीट्यूट प्रशासन की कार्रवाई का डर दिखा कर और कुछ 'बड़े भाई' जैसी भूमिका निभाते हुए प्यार से समझा कर रीजनल काउंसिल सदस्यों - खासकर पदाधिकारियों को यह संदेश देने में फिलहाल तो कामयाबी प्राप्त कर ली है कि उन्हें मिलजुल कर काम करना है । इससे उम्मीद बनी है कि रीजनल काउंसिल में पिछले काफी समय से चला आ रहा गतिरोध खत्म होगा और अराजकता की जो स्थिति बनी थी, उससे छुटकारा मिलेगा । अधिकतर लोग इस 'नतीजे' से संतुष्ट हैं; लेकिन इस नतीजे से गौरव गर्ग और रतन सिंह यादव को चूँकि अपनी 'राजनीति' पिटती हुई दिख रही है, इसलिए वह इस नतीजे पर तरह तरह के 'किंतु' 'परंतु' लगा रहे हैं । मीटिंग में गौरव गर्ग ने तो सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के साथ कुछेक मौकों पर बदतमीजीपूर्ण व्यवहार करने की कोशिश भी की । गौरव गर्ग ने एक मौके पर, जरूरत पड़ने पर दोबारा धरने पर बैठने की बात भी कही । पिछले दिनों धरने की नाटकबाजी के बाद कुछेक लोगों ने गौरव गर्ग को 'मिस्टर धरना गर्ग' कहना शुरू कर दिया है, इसलिए कल की मीटिंग में उन्होंने जब दोबारा धरने पर बैठने की बात कही, तो मीटिंग में मौजूद सभी लोगों के चेहरों पर मुस्कुराहट आ गई थी । रतन सिंह यादव ने मीटिंग में तो कुछ नहीं कहा, लेकिन मीटिंग के बाद कुछेक लोगों के बीच सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की यह कहते हुए आलोचना की कि वह रीजनल काउंसिल के कामकाज में नाहक ही हस्तक्षेप कर रहे हैं । असल में, रीजनल काउंसिल में जो झगड़ा चल रहा था, उसका सबसे ज्यादा फायदा गौरव गर्ग और रतन सिंह यादव ही उठा रहे थे । बिल्लियों के झगड़े में बंदर के फायदा उठाने वाले किस्से को चरितार्थ करते हुए गौरव गर्ग और रतन सिंह यादव झगड़ते सदस्यों के साथ दोस्ती गाँठने की कोशिश करते हुए नए नए समीकरण बनाने का प्रयास कर रहे थे, ताकि अगले चेयरमैन के चुनाव में वह अपना दावा ठोक सकें । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने रीजनल काउंसिल सदस्यों से बात करके रीजनल काउंसिल में माहौल सामान्य बनाने का जो प्रयास किया है, उसमें गौरव गर्ग और रतन सिंह यादव को अपनी अपनी योजना फेल होती हुई दिख रही है, इसलिए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की भूमिका से वह भड़के हुए हैं । 

Saturday, June 1, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर विनोद बंसल की पूर्व प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को खुश करने की कोशिश में आशीष घोष को कुछ न कुछ बनवा देने की मुहिम ने संजीव राय मेहरा के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के मामले को रोचक रूप दिया

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी संजीव राय मेहरा के गवर्नर-वर्ष के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद को लेकर राजेश बत्रा और रवि चौधरी के बीच चल रही खींचतान का फायदा आशीष घोष को मिलने की चर्चा ने डिस्ट्रिक्ट में एक दिलचस्प नजारा प्रस्तुत किया हुआ है । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद आशीष घोष को देने/सौंपने की विनोद बंसल द्वारा की जा रही वकालत ने मामले को और 'ट्रिकी' बना दिया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के चयन/चुनाव को लेकर संजीव राय मेहरा खासे दबाव में हैं; एक तरफ रवि चौधरी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के लिए हर हथकंडा आजमा रहे हैं - जिसके तहत उन्होंने संजीव राय मेहरा को धमकी दी हुई है कि वह यदि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर नहीं बनाये गए तो फिर गवर्नरी करना उनके लिए मुश्किल हो जायेगा; दूसरी तरफ राजेश बत्रा तथा अन्य कुछेक बड़े नेता उन्हें समझा रहे हैं कि रवि चौधरी यदि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बने, तो रवि चौधरी की हरकतों के चलते उनकी गवर्नरी का बेड़ागर्क तो अपने आप ही हो जायेगा । समझा जाता है कि संजीव राय मेहरा को रवि चौधरी के खिलाफ भड़काने का काम राजेश बत्रा इसलिए कर रहे हैं, ताकि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद उन्हें मिल जाए । रवि चौधरी और राजेश बत्रा की इस खींचतान में फँसे बेचारे संजीव राय मेहरा के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का फैसला कर पाना मुश्किल बना हुआ है, जबकि वह अपनी कोर टीम के सदस्यों की मीटिंग कर चुके हैं । रोटरी में जो 'व्यवस्था' है, उसके अनुसार 'भावी' डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सबसे पहला काम डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर तय करने का करता है, बाकी काम उसके बाद शुरू होते हैं । संजीव राय मेहरा को लेकिन उल्टी गंगा बहानी पड़ रही है; पिछले दिनों उन्होंने अपनी कोर टीम के सदस्यों को लेकर पहली मीटिंग तो कर ली है, लेकिन उनके डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का अभी तक भी कोई अता-पता नहीं है ।
दरअसल कोर टीम की मीटिंग के बाद संजीव राय मेहरा पर डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर 'बनाने' का दबाव और बढ़ गया है । इसी दबाव में आशीष घोष का नाम 'संकटमोचक' के रूप में सामने आया । संजीव राय मेहरा को कुछेक लोगों से सलाह मिली कि आशीष घोष चूँकि उनके ही क्लब के सदस्य हैं, इसलिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने का उनके पास एक प्रभावी तर्क है, जिसका कोई विरोध भी नहीं कर पायेगा - और इससे उनका संकट बिना किसी विवाद के समाप्त हो जायेगा । चर्चा है कि इस आईडिया का समर्थन करते हुए विनोद बंसल भी आशीष घोष को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनवाने की मुहिम में शामिल हो गए हैं । विनोद बंसल की इस वकालत से मामला लेकिन सुलझने की बजाये उलझ और गया दिख रहा है । मजेदार जानकारी यह है कि विनोद बंसल की गैरजरूरी वकालत के कारण ही डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) का पद आशीष घोष को मिलते मिलते रह गया । जानकारों का कहना/बताना है कि डीआरएफसी पद के लिए आशीष घोष के नाम पर सहमति बन गई थी, और बस घोषणा होने ही वाली थी कि हेमंत आहूजा के एक आयोजन में विनोद बंसल ने गैरजरूरी ढंग से आशीष घोष को डीआरएफसी बनाने की वकालत शुरू कर दी, जिससे डीआरएफसी बनाने और 'बनवाने' वाले नेता लोग भड़क गए और आशीष घोष का नाम तुरंत से कट गया । नेता लोगों को दरअसल यह देख कर बुरा लगा कि विनोद बंसल खामख्वाह ही डीआरएफसी के मामले में अपनी टाँग अड़ा रहे हैं और आशीष घोष को डीआरएफसी बनवाने का श्रेय लेना चाहते हैं । बिडंवना की बात यह रही कि नेता लोगों का ऐतराज विनोद बंसल के रवैये/व्यवहार से था, लेकिन नुकसान आशीष घोष को उठाना पड़ा । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के मामले में भी लोगों को डर है कि कहीं विनोद बंसल की वकालत आशीष घोष का बनता काम बिगाड़ न दे ।
आशीष घोष को कुछ न कुछ 'बनवा' देने में विनोद बंसल को जुटा देख कर भी कई लोगों को हैरानी हो रही है । इस हैरानी के चलते लोगों के बीच चर्चा है कि विनोद बंसल अचानक से आशीष घोष के शुभचिंतक कैसे बन गए ? यह हैरानी और चर्चा इसलिए है क्योंकि तीन/साढ़े तीन वर्ष पहले विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने में हुई धाँधलीबाजी का रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने बिना अधिकृत शिकायत के जो संज्ञान लिया था और डिस्ट्रिक्ट के तीन पूर्व गवर्नर्स को चेतावनी दी थी, जिनमें एक विनोद बंसल थे - उसके 'पीछे' विनोद बंसल ने आशीष घोष का हाथ बताया था और जिसके चलते दोनों के बीच काफी तल्खी पैदा हो गई थी । आशीष घोष के चूँकि तत्कालीन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के साथ खासे नजदीकी संबंध थे; इसलिए उन संबंधों का वास्ता देकर विनोद बंसल ने लोगों के कान भरे थे कि आशीष घोष ने ही केआर रवींद्रन को सारा फीडबैक दिया है, और डिस्ट्रिक्ट के लिए फजीहत वाले हालात पैदा किए । कानाफूसी के रूप में होने वाली इन बातों पर आशीष घोष ने काफी नाराजगी व्यक्त की थी और मामला खासा गंभीर हो गया था । तब से अब तक आँधी/बारिश के कई मौके आ चुके हैं और जिसके चलते वह मामला गहरे में दब गया है । इस बीच विनोद बंसल ने केआर रवींद्रन के साथ नजदीकी बनाने की कोशिशें की हैं; उन्हें लगता है कि रोटरी में उन्हें यदि 'ऊपर' बढ़ना है तो केआर रवींद्रन के साथ उनके अच्छे संबंध होने चाहिए; केआर रवींद्रन के साथ सचमुच अच्छे संबंध बने, इसके लिए विनोद बंसल को लगता है कि आशीष घोष के साथ भी उनके संबंध सुधरे होने चाहिए - और इसीलिए तीन/साढ़े तीन वर्ष पहले के मामले को भूल कर वह आशीष घोष के साथ अपने संबंध ठीक कर लेना चाहते हैं; और इसीलिए वह आशीष घोष को कुछ न कुछ बनवा देना चाहते हैं - और या उनके बनने का श्रेय लेना और 'दिखाना' चाहते हैं । डीआरएफसी के मामले में तो विनोद बंसल की तरकीब फेल हो गई; लेकिन आशीष घोष को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनवा कर वह उस 'झटके' से उबरने की कोशिश कर रहे हैं । संजीव राय मेहरा के नजदीकियों का कहना लेकिन यह है कि आशीष घोष के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के अच्छे चांस हैं, लेकिन जब से विनोद बंसल ने उनकी वकालत करना शुरू किया है तब से डर यह पैदा हुआ है कि डीआरएफसी वाले मामले की तरह कहीं इस मामले में भी विनोद बंसल की वकालत आशीष घोष को मिलता दिख रहा मौका छीन न ले ।