अहमदाबाद । सुनील तलति ने सेंट्रल काउंसिल के लिए मनीष बक्षी की उम्मीदवारी को प्रस्तुत करवा कर अपने बेटे अनिकेत तलति के राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने/रखने का प्रयास तो अच्छा किया है, लेकिन फिलहाल उनके लिए अनिकेत तलति को रीजनल काउंसिल का चुनाव जितवाना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है । उल्लेखनीय है कि पहले अनिकेत तलति के सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की चर्चा थी, किंतु अंततः सुनील तलति के बेटे की बजाए सुनील तलति के पार्टनर मनीष बक्षी की उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई है । पिछले दो चुनावों में भी मनीष बक्षी की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की चर्चा थी, पर वह हो नहीं सकी थी । समझा जाता है कि सुनील तलति ने इस बार मनीष बक्षी को उम्मीदवार बनवा कर उनकी उम्मीदवारी का 'किस्सा'
हमेशा के लिए खत्म कर देने की चाल चली है, जिससे कि वह आगे अनिकेत तलति के लिए समस्या न पैदा कर सकें । समझा जाता है कि सुनील तलति ने यह बड़ी ऊँची चाल चली है - जिसमें उन्होंने मनीष बक्षी को 'निपटा' देने के साथ-साथ अनिकेत तलति को दोतरफा रूप से 'सुरक्षित' कर लिया है । सुनील तलति ने दरसअल जान/समझ लिया कि धीनल शाह और पराग रावल की उम्मीदवारी के रहते हुए सेंट्रल काउंसिल में अनिकेत तलति का इस बार जीतना मुश्किल क्या, असंभव ही है; जीतना मनीष बक्षी को भी नहीं है - और इस तरह सुनील तलति ने सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी से अनिकेत तलति को पीछे खींच कर एक तरफ तो उन्हें हार के दाग से बचा लिया, और दूसरी तरफ मनीष बक्षी की 'बलि' लेकर अनिकेत तलति के लिए आगे का रास्ता भी साफ कर लिया है ।
सुनील तलति की यह चाल है तो बड़ी ऊँची, लेकिन इसमें एक बड़ा पेंच अनिकेत तलति को रीजनल काउंसिल का चुनाव जितवाने को लेकर फँसा है । इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट सुनील तलति के लिए अपने बेटे को रीजनल काउंसिल का चुनाव जितवाना यूँ तो कोई मुश्किल नहीं होना चाहिए, किंतु अहमदाबाद में रीजनल काउंसिल के लिए चार उम्मीदवार हो जाने से मामला जरा टेढ़ा सा हो गया है । बात चार उम्मीदवारों की भी नहीं है - असल बात यह है कि चार उम्मीदवारों में सबसे कमजोर स्थिति अनिकेत तलति की ही है, और उन्हीं पर चौथी सीट निकालने की जिम्मेदारी भी है । वेस्टर्न रीजनल काउंसिल के 22 सदस्यों में अहमदाबाद से अभी तीन सदस्य हैं, जिनमें से एक पराग रावल सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार हो गए हैं; तथा बाकी दो सुबोध केडिया व प्रियम शाह रीजनल काउंसिल की सदस्यता को बनाये रखने के लिए चुनावी मैदान में होंगे । रीजनल काउंसिल के लिए नए उम्मीदवारों के रूप में अनिकेत तलति और पुरुषोत्तम खण्डेलवाल का नाम आया है । इन दोनों में पुरुषोत्तम खण्डेलवाल की उम्मीदवारी को अनिकेत तलति की उम्मीदवारी के मुकाबले भारी देखा/पहचाना जा रहा है - इस नाते से सुबोध केडिया, प्रियम शाह व पुरुषोत्तम शाह की जीत को सुनिश्चित माना जा रहा है; किंतु अनिकेत तलति तक आते आते मामला फँसता नजर आ रहा है ।
इसका कारण यह है कि पिछली बार अहमदाबाद ब्रांच के चुनाव में अनिकेत तलति की स्थिति पुरुषोत्तम खण्डेलवाल के मुकाबले बहुत पीछे थी । पुरुषोत्तम खण्डेलवाल को पहली वरीयता के जहाँ 638 वोट मिले थे, वहाँ अनिकेत तलति को मात्र 196 वोट ही मिले थे । चुनाव में कुल पड़े वोटों का 27 प्रतिशत हिस्सा अकेले पुरुषोत्तम खण्डेलवाल को मिला था, और इस तरह से उन्होंने एक अनोखा रिकॉर्ड बनाया था । ब्रांच में काम करते हुए उन्होंने लोगों के बीच अपनी स्थिति को और सुदृढ़ ही बनाया है । ब्रांच में यूँ तो अनिकेत तलति की परफॉर्मेंस भी अच्छी ही रही है, किंतु वह इतनी अच्छी नहीं रही है कि पुरुषोत्तम खण्डेलवाल के साथ उनका जो अंतर रहा था - उसे खत्म या कम कर सके । सुनील तलति के बेटे होने के बावजूद अनिकेत को ब्रांच के चुनाव में जिस तरह से पिछड़ना पड़ा था और अच्छी स्थिति प्राप्त कर पाने में वह विफल रहे थे - उसे देखते हुए ही रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी के सफल होने को लेकर संदेह बना हुआ है ।
हालाँकि रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों में पराग रावल के न होने को अनिकेत तलति के लिए एक मौके के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल के पिछले चुनाव में पराग रावल को पहली वरीयता के 2068 वोट मिले थे, जिस कारण से सुबोध केडिया और प्रियम शाह मुश्किल से अपनी सीट निकाल पाए थे । माना जा रहा है कि पराग रावल ने रीजनल काउंसिल छोड़ कर सेंट्रल काउंसिल का रुख करके रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों को राहत की बड़ी साँस दी है - और पिछली बार पराग रावल ने जो तमाम सारे वोट खुद झटक लिए थे, वह अब की बार सभी उम्मीदवारों में बटेंगे, और सभी की नैय्या पार हो जाएगी । कुछेक लोगों को लेकिन पराग रावल की जगह पुरुषोत्तम खण्डेलवाल लेते हुए नजर आ रहे हैं; और उन्हें लग रहा है कि पुरुषोत्तम खण्डेलवाल हो सकता है कि पराग रावल जितने वोट न भी ले पाएँ, तो भी सुबोध केडिया और प्रियम शाह के वोटों में जो सुधार होगा - वह अनिकेत तलति का रास्ता रोकने का काम करेगा । पिछले चुनाव में पहली वरीयता के वोटों की गिनती में प्रियम शाह 805 वोटों के साथ 14वें नंबर पर तथा सुबोध केडिया 686 वोटों के साथ 17वें नंबर पर थे; जो फाइनल नतीजे में क्रमशः 1103 वोटों के साथ 20वें और 1131 वोटों के साथ 19वें स्थान पर रहे थे । इस नतीजे के संदर्भ में देखें तो अहमदाबाद के चौथे उम्मीदवार के लिए रीजनल काउंसिल में जगह बनाना मुश्किल नजर आता है । अनिकेत तलति के लिए चुनौती की बात यह है कि चौथे उम्मीदवार के रूप में उन्हें ही देखा/पहचाना जा रहा है ।
अनिकेत तलति के लिए यह चुनौती इसलिए और बड़ी है क्योंकि इस बार की उनकी उम्मीदवारी को अगली बार, यानि वर्ष 2018 में सेंट्रल काउंसिल के लिए उनकी संभावित उम्मीदवारी के लिए आधार भूमि तैयार करने के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । वर्ष 2018 में धीनल शाह द्वारा खाली की गई सीट पर अनिकेत तलति को फिट करने की अपनी योजना को क्रियान्वित करने के लिए ही सुनील तलति ने इस बार मनीष बक्षी को बलि का बकरा बना दिया है । सुनील/अनिकेत तलति के कुछेक समर्थकों की सलाह थी भी कि अनिकेत को रीजनल काउंसिल के चुनाव के झमेले में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि यदि वह चुनाव नहीं जीत सके तो फिर अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए उनका दावा कमजोर हो जायेगा । सुनील तलति ने किंतु अपने अनुभव से जाना/सीखा है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में जानबूझ कर गैप करना नुकसान ही पहुँचाता है । इस तरह अनिकेत तलति के लिए एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है; इस स्थिति में उनकी उम्मीदवारी रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत तो हो गई है - किंतु इस प्रस्तुत हो गई उम्मीदवारी को कामयाब बनाने की चुनौती उनके सामने अभी मुँह बाये खड़ी है ।