Monday, August 31, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की जीएमसीएस कमेटी के चेयरमैन की जिम्मेदारी ठीक से न निभाने को लेकर हरित अग्रवाल अपने जिन सबसे बड़े समर्थक सुधीर कत्याल के कारण मुसीबत में फँसे हैं, उन सुधीर कत्याल को कोर टीम से निकालने की अपने समर्थकों की माँग से हरित अग्रवाल की उम्मीदवारी का अभियान समर्थकों के झगड़े में फँसा

नई दिल्ली । हरित अग्रवाल नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के सबसे बड़े समर्थक सुधीर कत्याल को लेकर भारी मुसीबत में फँस गए हैं - और यह मुसीबत भी उनके अपने दूसरे समर्थकों ने ही पैदा की है । दरअसल उनके समर्थक सुधीर कत्याल को साथ रखने को लेकर आपस में बुरी तरह बँट गए हैं, और हरित अग्रवाल के लिए यह फैसला करना मुश्किल हो रहा है कि वह अपने किन समर्थकों की बात मानें । उल्लेखनीय है कि हरित अग्रवाल के समर्थकों का एक तबका हरित अग्रवाल की कोर टीम में सुधीर कत्याल को शामिल किए जाने का विरोध कर रहा है : इनका कहना है कि सुधीर कत्याल का जिस तरह का रवैया रहता है और वह जिस तरह की गाली-गलौच भरी बातें करते हैं उससे लोगों के बीच नकारात्मक असर पड़ता है, और इस कारण लोग खिलाफ हो जाते हैं । हरित अग्रवाल के समर्थकों के किंतु एक दूसरे तबके का मानना/कहना है कि चुनावी माहौल में सुधीर कत्याल की तरह के लोगों की भी उपयोगिता होती ही है, नॉनसेंस भी आखिर एक 'वैल्यू' होती है और चुनावी माहौल में नॉनसेंस वैल्यू से भी फायदा होता है, इसलिए सुधीर कत्याल को साथ में रखे जाना चाहिए । दोनों तबकों की बातें और उनके तर्क अपनी अपनी जगह सही हैं, किंतु समस्या की बात यह है कि दोनों तबके के लोग एक दूसरे की बातों को समझने लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं । जो लोग हरित अग्रवाल की उम्मीदवारी के अभियान को नियंत्रित करने वाली कोर टीम में सुधीर कत्याल को रखे जाने का विरोध कर रहे हैं, उनमें से कइयों ने तो हरित अग्रवाल को अल्टीमेटम तक दे दिया है कि सुधीर कत्याल यदि टीम में रहे तो फिर उनके लिए हरित अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में रहना मुश्किल होगा । वास्तव में अपने कुछेक समर्थकों को तो हरित अग्रवाल ने सुधीर कत्याल के चक्कर में खो भी दिया है । 
इन्हीं समर्थकों के दबाव में हरित अग्रवाल ने पिछले दिनों सुधीर कत्याल से दूरी भी बना ली थी ।सुधीर कत्याल ने तब रतन सिंह यादव की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया था । रतन सिंह यादव को लेकिन जल्दी ही समझ में आ गया कि सुधीर कत्याल यदि उनके समर्थन में रहे, तो फिर उनका बनता दिख रहा काम बिगड़ने में देर नहीं लगेगी । उनके समर्थकों/शुभचिंतकों ने भी उन्हें सुधीर कत्याल से दूर रहने की सलाह दी । और तब रतन सिंह यादव ने उनसे पीछा छुड़ा लिया । हरित अग्रवाल ने जिस तरह से सुधीर कत्याल से दूरी बना ली थी, सुधीर कत्याल उससे क्रोधित तो बहुत हुए थे और क्रोध में उन्होंने हरित अग्रवाल को बुरा-भला भी बहुत कहा था - लेकिन जब रतन सिंह यादव के यहाँ उनकी दाल नहीं गली और वह वहाँ से निकाल दिए गए, तब उन्होंने फिर से हरित अग्रवाल के यहाँ शरण ले ली । हरित अग्रवाल के एक नजदीकी ने इन पँक्तियों के लेखक को बताया कि सुधीर कत्याल के संग-साथ से खुद हरित अग्रवाल भी बहुत दुखी हैं, और अक्सर रोना रोते हैं कि सुधीर कत्याल के कारण उनका बहुत खर्चा हो रहा है; लेकिन सुधीर कत्याल से पीछा कैसे छुड़ाएँ, इसकी वह कोई तरकीब नहीं सोच पा रहे हैं । हालाँकि हरित अग्रवाल के एक अन्य नजदीकी ने इन पँक्तियों के लेखक से बात करते हुए दावा किया कि सुधीर कत्याल के साथ जो समस्या थी, बातचीत करके उसे हल कर लिया गया है और अब आगे कोई समस्या नहीं होगी । यद्यपि उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि दो लोगों के बीच कुछ न कुछ समस्या हो ही जाती है, और यह कोई बड़ी बात नहीं है । 
हरित अग्रवाल को सुधीर कत्याल के खर्चे उठाने को लेकर निजी रूप में जो परेशानी है, वह तो है ही - साथ ही उनकी सार्वजनिक भूमिका और खुन्नसी राजनीति से नुकसान अलग हो रहा है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राज चावला तथा काउंसिल की ट्रेजरर योगिता आनंद से अपनी निजी खुन्नस निकालने के लिए सुधीर कत्याल ने जीएमसीएस में छात्रों को घटिया खाना परोसने के मामले को जोरशोर से उठाया - और राज चावला व योगिता आनंद पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए; किंतु उनके संज्ञान में जब यह बात लाई गई कि जीएमसीएस कमेटी के चेयरमैन तो हरित अग्रवाल हैं, और वहाँ की बदइंतजामी के लिए सीधे वही जिम्मेदार हैं - तो सुधीर कत्याल को साँप सूँघ गया । सुधीर कत्याल ने हालाँकि पहले तो बात को संभालने की कोशिश की और कुतर्क दिया कि जीएमसीएस में जो खर्च होता है, उसके बिल चेयरमैन पास करता है और भुगतान ट्रेजरर करता है - इसलिए वही दोनों दोषी हैं; किंतु जब सवाल उठे कि कमेटी का चेयरमैन क्या सिर्फ झुनझुना बजाने के लिए होता है ? जीएमसीएस में जो बदइंतजामी है, उसे दूर करने के लिए कमेटी के चेयरमैन के रूप में हरित अग्रवाल ने क्या कदम उठाए - तो सुधीर कत्याल अपने 'स्वभाव' के अनुरूप मैदान छोड़ गए । सुधीर कत्याल तो मैदान छोड़ गए, लेकिन मुसीबत हरित अग्रवाल के जिम्मे कर गए । जीएमसीएस में बदइंतजामी का मामला उनके गले पड़ गया है, और जीएमसीएस कमेटी के चेयरमैन के रूप में उनकी अक्षमता तथा गैरजिम्मेदारी लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई है । हरित अग्रवाल के जो समर्थक सुधीर कत्याल को साथ नहीं रखना चाहते हैं, वह इसी मामले का उदाहरण देते हुए कह रहे हैं कि सुधीर कत्याल अपनी निजी खुन्नस में ऐसे ही काम करते रहेंगे और समस्याएँ खड़ी करते रहेंगे, इसलिए उनसे पीछा छुड़ा लेने में ही भलाई है । हरित अग्रवाल के जो समर्थक सुधीर कत्याल की 'जरूरत' को रेखांकित करते हैं, उनका भी मानना और कहना है कि सुधीर कत्याल ने जीएमसीएस में बदइंतजामी को जो रंग दिया, उससे वास्तव में हरित अग्रवाल की भारी फजीहत हुई है, और चुनावी नजरिए से हरित अग्रवाल को तगड़ा झटका लगा है । 
हरित अग्रवाल को जीएमसीएस मामले से जो झटका लगा है, उससे उन्हें मिल सकने वाले पहली वरीयता के वोटों पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है । पहली वरीयता के वोटों के मामले में पिछली बार का उनका रिकॉर्ड कोई बहुत अच्छा नहीं था । पिछली बार के चुनाव में हरित अग्रवाल को पहली वरीयता के कुल 605 वोट मिले थे, और वह 12वें नंबर पर आए थे । काउंसिल में उनका कामकाज कोई बहुत उल्लेखनीय तो नहीं रहा, किंतु काउंसिल में होने के कारण उन्होंने अपने आधार-क्षेत्र में कुछ बढ़ोत्तरी तो की ही है - और उसी के भरोसे हरित अग्रवाल तथा उनके समर्थकों को उम्मीद है कि पहली वरीयता के वोटों के मामले में उनकी स्थिति पिछली बार की तुलना में सुधरी हुई होगी; किंतु चुनावी वर्ष में जीएमसीएस कमेटी के चेयरमैन के रूप में बदइंतजामी का उन पर जो दाग लगा है, उसने उनकी उम्मीदों पर ग्रहण लगा दिया है । जीएमसीएस कमेटी के चेयरमैन की जिम्मेदारी ठीक से न निभाने के लिए हरित अग्रवाल अब जब सार्वजनिक रूप से निशाने पर हैं, तो लोग उन पर आखिर क्यों और कैसे विश्वास करेंगे ? हरित अग्रवाल के लिए मुसीबत सिर्फ जीएमसीएस में बदइंतजामी का दाग भर नहीं है - उनकी ज्यादा बड़ी मुसीबत यह है कि यह दाग उनके सबसे बड़े समर्थक सुधीर कत्याल के कारण उन पर लगा है; और इस प्रसंग के चलते उनके कई समर्थकों ने उन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि सुधीर कत्याल से पीछा छुड़ाओ । हरित अग्रवाल के अन्य कुछेक समर्थक हालाँकि सुधीर कत्याल को साथ में बनाए रखने की वकालत भी कर रहे हैं । हरित अग्रवाल के लिए यह समझना अभी मुश्किल हो रहा है कि सुधीर कत्याल और उन्हें साथ बनाए रखने की वकालत करने वाले उनके समर्थक सचमुच में उनके शुभचिंतक हैं, या समर्थक/शुभचिंतक के भेष में उनके 'दुश्मन' हैं ?