Thursday, August 27, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बने सुनील जिंदल ने अपने 'मेनिफेस्टो व मिशन' पत्र के जरिए मुद्दों पर जो फोकस किया है, उससे दूसरे उम्मीदवारों के सामने प्रोफेशन को लेकर अपने विचार व अपनी प्राथमिकताएँ स्पष्ट करने की मजबूरी आ पड़ी है

नई दिल्ली । सुनील जिंदल द्धारा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में अपना 'मेनिफेस्टो कम मिशन' घोषित करने से नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की चुनावी राजनीति में खासा उबाल पैदा हो गया है । सुनील जिंदल की 'मेनिफेस्टो कम मिशन' घोषणा को जहाँ कई लोगों से तारीफ मिली है, वहीं कुछेक लोगों ने उसकी आलोचना भी की है । तारीफ करने वाले लोगों का कहना है कि सुनील जिंदल ने अपनी इस घोषणा से चुनावी अभियान को मुद्दा आधारित बनाने का काम किया है, अन्यथा अभी तक चुनावी अभियान में बेमतलब और फ़िजूल की बातें ही हो रही थीं । आलोचना करने वाले लोगों का कहना है कि सुनील जिंदल ने मेनिफेस्टो के साथ जिस तरह मिशन शब्द जोड़ा है, उससे लगता है कि उन्होंने अपने आप को अभी से विजयी मान लिया है । आलोचना करने वाले लोगों की एक शिकायत और है तथा वह यह कि सुनील जिंदल की जो 'मेनिफेस्टो कम मिशन' घोषणा है, उससे आभास मिलता है कि उन्हें रीजनल काउंसिल और रीजनल काउंसिल सदस्य की सीमाओं का पता ही नहीं है, और वह ऐसे काम करने की बातें कर रहे हैं जो किसी एक रीजनल काउंसिल सदस्य के बस की बात ही नहीं है । तारीफ और आलोचना की बात अपनी जगह है - कोई भी कुछ कहेगा या करेगा तो उसकी तारीफ भी होगी और आलोचना भी होगी ही; महत्वपूर्ण बात लेकिन यह हुई है कि सुनील जिंदल की इस 'मेनिफेस्टो कम मिशन' घोषणा ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनावी माहौल में गर्मी जरूर पैदा कर दी है ।
जैसा कि सुनील जिंदल की इस 'मेनिफेस्टो कम मिशन' घोषणा की तारीफ करने वाले लोगों का कहना है कि इस घोषणा ने एक बड़ा और अच्छा काम यह किया है कि इसने दूसरे उम्मीदवारों को भी यह सोचने और बताने के लिए मजबूर किया है कि काउंसिल सदस्य के रूप में आखिर वह करेंगे क्या ? प्रोफेशन और प्रोफेशन से जुड़े लोगों के लिए वह क्या कुछ होने तथा करने की जरूरत समझ रहे हैं । सुनील जिंदल की 'मेनिफेस्टो कम मिशन' घोषणा की तारीफ करने वाले लोगों का कहना है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले उम्मीदवार अभी तक प्रोफेशन से जुडी सूचनाओं तथा सद्वचनों को ही दोहराते जाने में लगे हुए हैं । ऐसा लगता है कि जैसे उनके पास अपनी तरफ से कुछ कहने के लिए है ही नहीं, और वह बस इधर-उधर से नक़ल मार कर अपने आप को लोगों के बीच 'दिखाने' की तीन-तिकड़म लगा रहे हैं । उम्मीदवारों ने सद्वचनों की तो ऐसी रेल-पेल मचा रखी है कि समझना मुश्किल हो रहा है कि यह चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, या सत्संगी प्रवचनकर्ता ? काउंसिल में इन्हें प्रोफेशन के उत्थान के लिए काम करना है, या वहाँ इन्हें प्रवचन देने हैं ? कोई इन्हें बताने/समझाने वाला नहीं मिला कि आप एक प्रोफेशन से जुड़े इंस्टीट्यूट की गवर्निंग काउंसिल में जाने की कोशिश कर रहे हो, तो उसी के अनुरूप बात और व्यवहार करो न तथा थोड़ा मैच्योर बनो ! लोगों को यह बताओ कि काउंसिल में जा कर करोगे क्या ? यह जो कुछ इधर से नकल मार कर और कुछ उधर से नकल मार कर सद्वचन पेल देते हो, इससे क्या दिखाना/जताना चाहते हो ? 
मजे की बात तो यह होती है कि कई बार उम्मीदवार ऐसे ऐसे सद्वचन प्रस्तुत कर देते हैं, जिसमें कही गई बात उनके अपने व्यक्तित्व व व्यवहार के ठीक विपरीत होती है, और इस कारण वह लोगों के बीच हँसी के पात्र बनते हैं । बिडंवना यह होती है कि जिन सद्वचनों के सहारे उम्मीदवार लोग अपने आप को गंभीरता से लिए जाने की उम्मीद कर रहे होते हैं, वही सद्वचन उनका मजाक उड़वा रहे होते हैं । सुनील जिंदल ने 'मेनिफेस्टो कम मिशन' घोषणा करके एक तरफ तो अपने आपको दूसरे उम्मीदवारों से अलग व प्रोफेशन के प्रति जिम्मेदार उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया, तथा दूसरी तरफ चुनावी अभियान को मुद्दा आधारित बनाने का काम किया । सुनने में आ रहा है कि अब दूसरे उम्मीदवार भी सुनील जिंदल की नकल करके अपने अपने मेनिफेस्टो तैयार कर/करवा रहे हैं । इस तरीके से सुनील जिंदल ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में ट्रेंड सेटर का रोल निभाया है - और उनकी पहल से उम्मीद है कि उम्मीदवार लोग अब मुद्दों पर बात करना शुरू करेंगे । 
और जैसा कि होता है कि हर किसी को आलोचक भी मिलते ही हैं - सो सुनील जिंदल को भी वह मिले हैं । सुनील जिंदल द्वारा प्रस्तुत 'मेनिफेस्टो व मिशन' घोषणा को लेकर उनके आलोचकों ने उन्हें इस बात पर घेरा है कि इंस्टीट्यूट में किसी भी स्तर पर बिल्डिंग बनवाने में रीजनल काउंसिल सदस्य की भूमिका बहुत ही मामूली सी होती है; और वास्तव में कोई रीजनल काउंसिल सदस्य अपने स्तर पर तो बिल्डिंग नहीं ही बनवा सकता है । इसके अलावा, बिल्डिंग को लेकर प्रोफेशन में समस्या तो है, किंतु यह प्रमुख समस्या नहीं है । आलोचकों का कहना है कि सुनील जिंदल ने लेकिन इसे अपने 'मेनिफेस्टो व मिशन' पत्र में सबसे पहले प्रस्तुत करके इसे जो महत्ता दी है, उससे लगता कि काउंसिल सदस्य के रूप में उनकी प्राथमिकताएँ प्रोफेशन से जुड़े लोगों की प्राथमिकताओं से मेल नहीं खाती हैं - जो उनके और लोगों के बीच बने गैप को दर्शाता है । सुनील जिंदल की खुशकिस्मती यह है कि उनके इन आलोचकों में से कई हालाँकि यह भी मानते और कहते हैं कि प्राथमिकताओं के संदर्भ में और या रीजनल काउंसिल के अधिकार क्षेत्र के मामले में सुनील जिंदल ने अभी जिस अपरिपक्वता का परिचय दिया है, उसे वह समय रहते जल्दी से दूर भी कर सकते हैं । आलोचक लोग भी इस बात के लिए हालाँकि सुनील जिंदल की तारीफ भी कर रहे हैं कि सुनील जिंदल ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव अभियान को मुद्दों पर तो फोकस कर ही दिया है, और दूसरे उम्मीदवारों के सामने भी प्रोफेशन को लेकर अपने विचार व अपनी प्राथमिकताएँ स्पष्ट करने के लिए प्रेरित किया है । इस तरह, सुनील जिंदल की 'मेनिफेस्टो व मिशन' घोषणा ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले दूसरे उम्मीदवारों के सामने एक गंभीर चुनौती पैदा कर दी है - जिसे मजबूरी में ही सही, लेकिन दूसरे उम्मीदवारों को स्वीकार करना ही पड़ेगा ।