Wednesday, April 30, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को नीचा दिखाने के उद्देश्य से आयोजित किये गए विरोधी खेमे के एक कार्यक्रम में वीके हंस की उपस्थिति और उनकी इस उपस्थिति को संभव बनाने में दीपक टुटेजा की सक्रियता में एक नये समीकरण के बनने/बनाये जाने की कोई संभावना छिपी है क्या ?

नई दिल्ली । वीके हंस ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को नीचा दिखाने के उद्देश्य से आयोजित किये गए विरोधी खेमे के एक कार्यक्रम में उपस्थित होकर क्या सत्ता खेमे में फूट पड़ने के संकेत दिये हैं ? सत्ता खेमे से जुड़े लोगों को उक्त कार्यक्रम में वीके हंस की उपस्थिति पर हैरानी हुई है और कइयों ने तो सार्वजनिक रूप से सवाल भी उठाया है कि वीके हंस उक्त कार्यक्रम में कैसे और क्यों गए ? सत्ता खेमे के एक प्रमुख नेता राजिंदर बंसल ने तो वीके हंस की इस मुद्दे पर खुली आलोचना की है । बात यदि विरोधी खेमे के एक कार्यक्रम में वीके हंस के जाने भर की होती तो भी कोई बड़ी बात नहीं होती - लेकिन वीके हंस ने इस मामले में जो सफाई दी है, उससे मामला और उलझ गया है । वीके हंस का कहना है कि उन्हें तो धोखे से उक्त कार्यक्रम में बुलाया गया । धोखा यह किया गया कि उन्हें बताया गया था कि यह कार्यक्रम लायंस क्लब दिल्ली पंजाबी बाग का कार्यक्रम है । वीके हंस ने दावा किया कि उन्हें इस कार्यक्रम का जो निमंत्रण मिला, वह लायंस क्लब दिल्ली पंजाबी बाग की तरफ से ही मिला था । वीके हंस का कहना है कि वह तो उक्त कार्यक्रम में यह सोच कर गए थे कि वह लायंस क्लब दिल्ली पंजाबी बाग के कार्यक्रम में जा रहे हैं ।
वीके हंस की इस सफाई पर सत्ता खेमे के ही लोगों का कहना/पूछना लेकिन यह है कि कार्यक्रम स्थल पर पहुँच कर वीके हंस ने जब यह देखा कि उन्हें धोखे से यहाँ बुलाया गया है और इस कार्यक्रम का वास्तविक उद्देश्य डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को नीचा दिखाना है, तो फिर वह वहाँ से तुरंत वापस क्यों नहीं लौटे और क्यों उस कार्यक्रम का हिस्सा बने ? सत्ता खेमे के लोगों को हैरानी और परेशानी इसी बात की है कि यदि सचमुच वीके हंस को धोखे से उक्त कार्यक्रम में बुलाया गया था; और उनके वहाँ पहुँचते हीं धोखे की पोल चूँकि खुल गई थी, तो उन्होंने वहाँ अपने साथ हुए धोखे का विरोध क्यों नहीं किया और क्यों नहीं वह अपने साथ हुए धोखे का विरोध करते हुए उक्त कार्यक्रम से वापस लौटे ? कार्यक्रम से वापस लौटने के लिए उनके पास अच्छा बहाना/मौका था - लेकिन न तो उन्होंने अपने साथ हुए धोखे का वहाँ कोई विरोध किया और न ही इस बात को उठाया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की उपस्थिति या अनुमति/सहमति के बिना डिस्ट्रिक्ट के नाम पर कार्यक्रम कैसे आयोजित किया जा रहा है ?
इस मामले को संगीन वीके हंस के इस खुलासे ने बनाया कि उक्त कार्यक्रम में वह पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक टुटेजा के साथ गए थे । उक्त कार्यक्रम की जो तसवीरें अभी तक सामने आई हैं, उनमें दीपक टुटेजा कहीं दिखे तो नहीं हैँ, लेकिन आरोपों में फ़ँसे वीके हंस का बचाव करने की दीपक टुटेजा ने जो कोशिशें की हैं उससे लोगों को वीके हंस की यह बात सच ही लगी है कि उक्त कार्यक्रम में वह दीपक टुटेजा के साथ गए थे । वीके हंस के बचाव में दीपक टुटेजा ने भी यही बात कही है कि उन्हें तो धोखे से उक्त कार्यक्रम में बुलाया गया था । अब यदि दीपक टुटेजा भी धोखे से उक्त कार्यक्रम में बुलाए गए थे तो जो सवाल वीके हंस के लिए हैं वही सवाल दीपक टुटेजा के लिए भी हैं । मजे की बात यह हुई है कि कार्यक्रम के बाद दीपक टुटेजा ने फेसबुक पर तो बिना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के डिस्ट्रिक्ट सेमिनार होने पर सवाल उठाया है - लेकिन बुनियादी सवाल तो अभी भी बना हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की अनुमति या सहमति या सहभागिता के बिना किए जाने वाले तथाकथित डिस्ट्रिक्ट कार्यक्रम में वीके हंस हिस्सा क्यों बने ? और अब तो इस सवाल में यह सवाल भी जुड़ गया कि वीके हंस की इस हिस्सेदारी में दीपक टुटेजा की क्या भूमिका रही ?
यह सवाल दरअसल इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि पिछले महीनों में - डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस से भी पहले - एक तरफ से दीपक टुटेजा और दूसरी तरफ से अजय बुद्धराज व डीके अग्रवाल के 'मिलने' की आहटें कई बार सुनाई पड़ी थीं - जिनमें डिस्ट्रिक्ट में एक नये समीकरण को आकार लेते हुए देखा/पहचाना जा रहा था । क्या यह सिर्फ एक संयोग है कि अभी जिस कार्यक्रम में दीपक टुटेजा द्धारा वीके हंस को ले जाये जाने की बात पर हंगामा बरपा हुआ है उस कार्यक्रम का निमंत्रण वीके हंस और दीपक टुटेजा को अजय बुद्धराज व डीके अग्रवाल के क्लब कि तरफ़ से मिलने का दावा किया गया है । अगर यह सिर्फ संयोग है - तो खुदा की कसम, बड़ा दिलचस्प और रहस्यपूर्ण संयोग है ! क्योंकि अभी कुछ ही दिन पहले इन्हें लायंस क्लब दिल्ली किरण के एक कार्यक्रम का निमंत्रण मिला था, जिसमें शामिल होने से इन्होंने इस कारण से इंकार कर दिया था कि उसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को शामिल नहीं किया जा रहा था । अजय बुद्धराज और डीके अग्रवाल के क्लब से निमंत्रण मिला तो उसमें जाते हुए वीके हंस को - और उसमें वीके हंस को ले जाते हुए दीपक टुटेजा को यह देखने की जरूरत क्यों महसूस नहीं हुई कि यहाँ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को शामिल किया जा रहा है या नहीं ? कुछ ही दिनों में आखिर ऐसा क्या हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा इनके लिए कोई मुद्दा नहीं रह गए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को नीचा दिखाने के उद्देश्य से आयोजित किये गए विरोधी खेमे के एक कार्यक्रम में वीके हंस की उपस्थिति और उनकी इस उपस्थिति को संभव बनाने में दीपक टुटेजा की सक्रियता में क्या एक नये समीकरण के बनने/बनाये जाने की कोई संभावना छिपी है । सत्ता खेमे के लोगों में जो हलचल-सी मची दिख रही है, उससे लग रहा है कि उन्होंने जैसे इस संभावना को 'पढ़' लिया है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजिंदर बंसल आमतौर पर किसी स्थिति या प्रसंग पर कठोर प्रतिक्रया नहीं देते हैं, लेकिन इस मुद्दे पर उन्होंने जिस साफगोई से वीके हंस को लपेटा है, उससे आभास मिलता है कि उन्होंने वीके हंस के इस किए-धरे के पीछे के राजनीतिक मन्तव्य और खेल को जैसे समझ लिया है । इस तरह, वीके हंस के किए-धरे ने डिस्ट्रिक्ट में और खासतौर से सत्ता खेमे में हलचल तो मचा ही दी है ।  

Tuesday, April 29, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 की पेट्स में अधिकतर पूर्व गवर्नर्स ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त करके जिस पलड़े को डॉक्टर सुब्रमणियन की तरफ झुका दिया था, सेट्स में हुई राजनीति उस पलड़े को दीपक गुप्ता की तरफ ले आती हुई दिखी है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के बनते समीकरणों मैं पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट के दूसरे सक्रिय रोटेरियंस के बीच हलचल सी पैदा कर दी है । डिस्ट्रिक्ट के दूसरे सक्रिय रोटेरियंस के बीच सवाल दरअसल यह उठा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई का सारा पक्ष-विपक्ष यदि पूर्व गवर्नर्स ही तय कर लेंगे तो फ़िर हम क्या करेंगे ? पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में से जिस तरह दो-तीन ने शरत जैन को अपना उम्मीदवार बना लिया है और बाकी अधिकतर ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है, उसे 'देख' कर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के दूसरे खिलाड़ियों ने अपने आपको उपेक्षित और अपमानित महसूस किया है तथा अपने स्तर पर 'कुछ' करने की तैयारी शुरु की है ।
इस तैयारी के बीज पड़े सेट्स मैं । सेट्स में इसके लिए मौका भी इसलिए बना, क्योंकि वहाँ न तो उम्मीदवार थे और न ही उन उम्मीदवारों के प्रवर्तक थे । संजय खन्ना ने सेट्स को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के पचेड़े से बचाने के लिये ही यह व्यवस्था की थीं कि 'जब न रहेगा बाँस तो न बजेगी बाँसुरी ।' असल में, संजय खन्ना पेट्स को राजनीति की भेंट चढ़ते देख चुके थे । पेट्स में हालाँकि राजनीति तो अपने आपने तरीके से सभी ने की थी, लेकिन शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थक अरनेजा गिरोह के लोगों ने तो सारी हदें पार कर दी थीं । पेट्स में जितने भी पूर्व गवर्नर्स उपस्थित थे, उनमें सिर्फ़ मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ही ऐसे थे जिन्होंने रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का कोई भी काम वहाँ नहीं किया और सिर्फ़ शरत जैन की उम्मीदवारी का ही काम किया और इस तरह से पेट्स को डिस्टर्ब करने का ही काम किया । इसी से सबक लेकर संजय खन्ना ने उम्मीदवारों और उनके प्रवर्तकों को सेट्स से दूर ही रखा ।
सेट्स में नेता और उनके प्रवर्तक नहीं थे, तो दूसरे लोगों को राजनीति करने का मौका मिला । सेट्स में मौजूद लोगों ने, खास तौर से कुछेक असिस्टेंट गवर्नर्स ने पहल करके अपनी अपनी इस शिकायत को मुखर रूप से प्रस्तुत किया कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में भूमिका निभाने की तैयारी कर रहे पूर्व गवर्नर्स और उनके समर्थन के भरोसे बने उम्मीदवार - उन्हें तो कुछ समझ ही नहीं रहे हैं; और ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें तो उन लोगोँ ने अपना अपना पालतू समझ लिया है; उन्होंने जैसे मान लिया है कि वह जहाँ कहेंगे - दूसरे लोग वहीं अपना अगूँठा लगायेंगे । अपनी अपनी शिकायतों को रखने की इस प्रक्रिया में अपने आप ही जैसे यह तय होता गया कि उन्हेँ पूर्व गवर्नर्स के कहने भर से किसी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करना है, बल्कि उम्मीदवार की सक्रियता और उसकी परफॉर्मेंस का आकलन करके ही फैसला करना होगा । यह तय करने में चूँकि कुछेक असिस्टेंट गवर्नर्स और 'स्पेशल 26' से जुड़े लोगों की भूमिका रही - इसलिए इस फैसले को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में महत्वपूर्ण परिघटना के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
उल्लेखनीय है कि एक हिंदी फिल्म के टाइटल के अनुरूप नामकरण के साथ बनाये गए ग्रुप 'स्पेशल 26' करीब डेढ़ वर्ष पहले साथ-साथ अध्यक्ष रहे और अध्यक्ष के रूप में सक्रिय रहे 26 लोगों का एक ग्रुप है, जिसके सदस्य डिस्ट्रिक्ट में पुराने घिसे/पिटे तौर-तरीकों को बदलने की इच्छा रखते हैं तथा काम-काज और सक्रियता के नये रूप स्थापित करना चाहते हैं । 'स्पेशल 26' डिस्ट्रिक्ट के करीब 55 क्लब्स पर अपना प्रभाव मानता है । इस ग्रुप के कुछेक लोगों के संबंध हालाँकि मुकेश अरनेजा के साथ भी हैँ, लेकिन वह चूँकि रमेश अग्रवाल को फूटी आँख भी नहीं देख सकते हैं - इसलिए इस ग्रुप के लोगों में शरत जैन की उम्मीदवारी के प्रति तो समर्थन का कोई भाव नहीँ दिखता है । 'स्पेशल 26' के लोग पिछले दिनों यह चिंता प्रकट करते हुए अवश्य देखे/सुने गए कि डॉक्टर सुब्रमणियन और दीपक गुप्ता के उम्मीदवार होने की स्थिति में तो उनके सामने भारी धर्मसंकट हो जायेगा कि वह इन दोनों में से किसका समर्थन करें ? यह धर्मसंकट लेकिन सिर्फ 'स्पेशल 26' के लोगों के सामने ही नहीं है, डिस्ट्रिक्ट के दूसरे अन्य कई लोगों के सामने भी है । इसका कारण यही है कि डॉक्टर सुब्रमणियन और दीपक गुप्ता बहुत से लोगों के बीच कॉमन समर्थन-आधार रखते हैं ।
इस धर्मसंकट का हल हालाँकि - 'पूर्व गवर्नर्स के कहने भर से किसी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करने और उम्मीदवार की सक्रियता तथा उसकी परफॉर्मेंस का आकलन करके ही फैसला करने' की बढ़ती और संगठित होती सोच में छिपा है । इस सोच ने दीपक गुप्ता के लिए संभावनाओं को बढ़ाने का काम किया है । उल्लेखनीय है कि पेट्स में जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर पूर्व गवर्नर्स ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त करके पलड़े को डॉक्टर सुब्रमणियन की तरफ झुका दिया था, सेट्स में हुई राजनीति उस पलड़े को दीपक गुप्ता की तरफ ले आती हुई दिखी है । सेट्स में जो राजनीति हुई, उससे यह साफ हो गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का समर्थन मनोवैज्ञानिक फायदा भले ही देता हो, लेकिन असली मुकाबला सक्रियता और परफॉर्मेंस के सहारे ही जीता जा सकेगा । सेट्स में असिस्टेंट गवर्नर्स और 'स्पेशल 26' के कुछेक लोगों की पहल से जो राजनीति हुई, उसका फायदा उठाने में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने जिस तरह की तत्परता दिखाई उससे आभास मिलता है कि दीपक गुप्ता और उनके समर्थकों ने जैसे समझ लिया है कि अधिकतर और प्रमुख पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने भले ही डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त किया हो, किंतु सक्रियता और परफॉर्मेंस के सहारे बाजी अपने पक्ष में करने का मौका उनके लिये अभी भी बचा हुआ है ।  

Thursday, April 24, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में चेयरपरसन पद के लिए विजय शिरोहा की उम्मीदवारी को संभव बनाने की तैयारी के साथ-साथ जितेंद्र सिंह चौहान ने अशोक कुमार सिंह के रूप में वैकल्पिक व्यवस्था की है क्या ?

वाराणसी/नई दिल्ली । अशोक कुमार सिंह ने मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके मल्टीपल की चुनावी राजनीति में खासी हलचल मचा दी है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ई के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अशोक कुमार सिंह अभी तक मल्टीपल के काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात से लगातार इंकार करते रहे हैं । उनके नजदीकियों का हालाँकि लगातार कहना रहा कि अशोक कुमार सिंह के मन में मल्टीपल काउंसिल के चेयरपरसन के पद की लालसा तो है, किंतु चूँकि इस पद के लिए की जाने वाली 'चुनावी प्रक्रिया' का पालन करने में वह अपने आप को असमर्थ मानते/पाते हैं, इसलिए उन्होंने इस पचड़े में न पड़ने में ही अपनी भलाई देखी और मन में लालसा होने के बावजूद मल्टीपल काउंसिल के चेयरपरसन पद की उम्मीदवारी से दो-टूक तरीके से इंकार ही करते रहे । लेकिन डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी ने उन्हें पता नहीं क्या घुट्टी पिलाई कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए जोर जोर से न न कहते रहने वाले अशोक कुमार सिंह हाँ कर बैठे ।
अशोक कुमार सिंह की इस हाँ ने सहजीव रतन जैन के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर दी है । डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सहजीव रतन जैन ने मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद तक पहुँचने की सारी 'जरूरतों' को समझ लिया था और उन जरूरतों को पूरा करने की व्यवस्था कर लेने का दावा किया था । मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जगदीश गोयल की उम्मीदवारी की भी चर्चा तो रही, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से लेता हुआ नहीं दिख रहा था । उनके ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स उनका मजाक बनाते हुए सुने जा रहे थे कि जगदीश गोयल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ही बड़ी मुश्किल में जैसे तैसे बने हैं, जिससे साबित रहा कि चुनावी लड़ाई लड़ना उनके बस की बात है ही नहीं । मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए जगदीश गोयल की उम्मीदवारी की चर्चा तो रही, किंतु जगदीश गोयल अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु कुछ करते हुए दिखे कभी नहीं । कुछेक लोगों को लगता था कि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में दिलचस्पी लेंगे, लेकिन विनोद खन्ना इनकी उम्मीदवारी के लिए कुछ भी करते नहीं नजर आये । इसी कारण से मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए सहजीव रतन जैन का पलड़ा भारी समझा जा रहा था ।
सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के लिए बस एक ही बात खिलाफ समझी जा रही थी और वह यह कि अभी मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन के पद पर जो जितेंद्र सिंह चौहान हैं, वह उसी डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू से हैं जिस डिस्ट्रिक्ट से सहजीव रतन जैन हैं । ऐसे में उनके विरोधी यह तर्क इस्तेमाल कर रहे थे कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन का पद लगातार एक ही डिस्ट्रिक्ट के पास कैसे रह सकता है ? सहजीव रतन जैन और उनके समर्थकों ने हालाँकि इस तर्क का जबाव जोरदार ढंग से देते हुए कहना/पूछना शुरू कर दिया था कि किसी डिस्ट्रिक्ट को - यानि उनके डिस्ट्रिक्ट को वर्षों तक चेयरपरसन पद से दूर रखने का काम यदि किया जा सकता है तो फिर लगातार दो वर्ष उसे उक्त पद देने में क्यों समस्या होनी चाहिए ? इसके साथ-साथ सहजीव रतन जैन ने इस सच्चाई को दरअसल समझ लिया कि इस तरह की बातें बेकार की बातें हैं और इन पर कोई भी ध्यान नहीं देता है; ध्यान सिर्फ इस बात पर दिया जाता है कि कौन उम्मीदवार दमदारी से चुनाव लड़ने की तैयारी करता है और दमखम दिखाता है । सहजीव रतन जैन ने इसीलिए दमदारी से चुनाव लड़ने की तैयारी करने पर अपना सारा ध्यान लगाया ।
सहजीव रतन जैन को मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन का पद लेकिन जब अपने बहुत नजदीक लग रहा था, तभी अशोक कुमार सिंह ने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके उनके सामने चुनौती पैदा कर दी है । अशोक कुमार सिंह की उम्मीदवारी यूँ तो सहजीव रतन जैन के लिए ज्यादा समस्या नहीं होती, क्योंकि अशोक कुमार सिंह के बारे में भी लोगों को लगता है कि यह चुनाव लड़ना उनके बस की बात नहीं है - इसीलिए अशोक कुमार सिंह अभी तक इस पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात से लगातार इंकार करते आये हैं । लेकिन जिस अचानक तरीके से उनकी उम्मीदवारी सामने आई है, उसमें परदे के पीछे किसी बड़े खेल को देखा जा रहा है । दरअसल इस बीच मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच चर्चा सुनाई पडी कि मल्टीपल काउंसिल के मौजूदा चेयरपरसन जितेंद्र सिंह चौहान ने सहजीव रतन जैन की राह में रोड़े बिछाने का काम शुरू कर दिया है । सुना गया कि जितेंद्र सिंह चौहान ने डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के लिए बैटिंग की और उनके लिए समर्थन जुटा भी लिया । उल्लेखनीय है कि इस वर्ष मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए विजय शिरोहा की ही उम्मीदवारी को सबसे ज्यादा मजबूत माना/समझा जा रहा था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी सक्रियता के तेवर देखते हुए मल्टीपल के चुनावी खिलाड़ियों ने पहचान लिया था कि चेयरपरसन पद की चुनावी लड़ाई लड़ने की सामर्थ्य उन्हीं में है । लेकिन उनके डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में उनके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता जिस तरह उनके विरोधी खेमे के हाथों का खिलौना बन गए, उससे उन्हें यह अहसास हो गया कि उनकी उम्मीदवारी के प्रस्ताव पर नरेश गुप्ता हस्ताक्षर नहीं करेंगे । इस तरह, तमाम मजबूती के बावजूद विजय शिरोहा की उम्मीदवारी का रास्ता बंद हो गया ।
मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स में चल रही चर्चाओं के अनुसार, जितेंद्र सिंह चौहान और विजय शिरोहा के कुछेक दूसरे शुभचिंतकों ने हालाँकि विजय शिरोहा की उम्मीदवारी को संभव बनाने के लिए कोई रास्ता खोजना अभी बंद नहीं किया है । इसी पृष्ठभूमि में अचानक से प्रस्तुत हुई अशोक कुमार सिंह की उम्मीदवारी के पीछे जितेंद्र सिंह चौहान की प्रेरणा को भी देखा जा रहा है । लोगों को लगता है कि विजय शिरोहा को उम्मीदवार बनाने की तैयारी कर रहे जितेंद्र सिंह चौहान ने अशोक कुमार सिंह के रूप में जैसे वैकल्पिक व्यवस्था की है । दरअसल इसी चर्चा के चलते मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद का चुनाव दिलचस्प मोड़ पर आ गया है ।

Tuesday, April 22, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 323 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए राजू मनवानी का समर्थन अरूणा ओसवाल के लिए फायदे के साथ-साथ मुसीबत का सौदा भी बना है और मुसीबत के इसी सौदे में संतोष शेट्टी के समर्थकों को उम्मीद की संभावना दिख रही है

मुंबई । इंटरनेशनल डायरेक्टर राजू मनवानी के खुले और सक्रिय समर्थन के चलते इंटरनेशनल डायरेक्टर एनडोर्सी के लिए अरुणा ओसवाल के लिए चुनावी लड़ाई आसान तो हो गई है, लेकिन साथ ही कई तरह की नई-नई मुश्किलों के पैदा होने के कारण चुनौतीपूर्ण भी हो गई है । अरुणा ओसवाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती - उनकी उम्मीदवारी की बागडोर थामने को लेकर राजू मनवानी और उमेश गाँधी के बीच छिड़े घमासान को नियंत्रित करने की है । राजू मनवानी यह साबित करने का और दिखाने/जताने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते कि अरुणा ओसवाल का इस बार का चुनाव उनके दिशा-निर्देशन में तथा उनकी सक्रियता के भरोसे लड़ा जा रहा है और उन्हीं के कारण अरुणा ओसवाल की स्थिति इस बार सुरक्षित देखी/समझी जा रही है; जबकि दूसरी तरफ उमेश गाँधी हर उस अवसर का 'लाभ' उठाने को तत्पर दिखते हैं जिससे यह साबित किया जा सके कि इस बार अरुणा ओसवाल की स्थिति मजबूत ही थी और राजू मनवानी तो महज श्रेय लेने के लिए अरुणा ओसवाल के समर्थन में आये हैं, और राजू मनवानी के कारण तो अरुणा ओसवाल के लिए मुश्किलें कम होने की बजाये बढ़ी ही हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि एक ही डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 323 ए थ्री - के सदस्य राजू मनवानी और उमेश गाँधी के बीच अपने आप को बड़ा दिखाने की होड़ तभी से मुखर रूप में लोगों के सामने हैं, जब वह क्रमशः डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर थे । वर्ष 2008-09 में राजू मनवानी जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर थे, तब वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उमेश गाँधी के साथ उनके खुले टकराव के कई दृश्य बने/दिखे थे ।
राजू मनवानी और उमेश गाँधी के बीच अपने आप को एक-दूसरे से बड़ा दिखाने/जताने की होड़ में हालाँकि अभी तक राजू मनवानी का ही पलड़ा भारी रहा है । वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उमेश गाँधी के न चाहने के बावजूद राजू मनवानी मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बने । उमेश गाँधी लेकिन अपनी बारी आने पर यह पद हासिल नहीं कर पाये और उन्हें मल्टीपल काउंसिल में वाइस चेयरपरसन के पद से ही संतोष करना पड़ा । इसके बाद, राजू मनवानी और अरुणा ओसवाल के बीच इंटरनेशनल डायरेक्टर पद को लेकर जो 'युद्ध-जैसा' माहौल बना उसमें उमेश गाँधी को राजू मनवानी से बदला लेने का मौका मिला और उन्होंने उस मौके का भरपूर इस्तेमाल भी किया, लेकिन उस समय भी वह राजू मनवानी का कुछ बिगाड़ नहीं सके और राजू मनवानी के सामने उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अरुणा ओसवाल जब दूसरे अटैम्प्ट में कूदीं तो उमेश गाँधी को लगा कि इस बार अरुणा ओसवाल की जीत से उन्हें अपनी स्थिति को 'बेहतर' बनाने का मौका मिलेगा - लेकिन 'अब भी' उनकी बदकिस्मती उनसे आगे चल रही थी । अरुणा ओसवाल की उम्मीदवारी की सक्रियता अभी शुरू ही हुई थी कि उमेश गाँधी यह देख कर अवाक् रह गए कि राजू मनवानी ने जबरदस्त पलटी मार कर अरुणा ओसवाल की उम्मीदवारी का न सिर्फ समर्थन करना शुरू कर दिया, बल्कि अरुणा ओसवाल की उम्मीदवारी की बागडोर भी थाम ली । इस तरह, अरुणा ओसवाल की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की दोबारा प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी में उमेश गाँधी अपने लिए जो मौका देख रहे थे, राजू मनवानी ने उसे भी उनसे छीन लिया । उमेश गाँधी ने लेकिन अभी भी हार नहीं मानी है और वह अरूणा ओसवाल के लिए काम करने में लगे हुए हैं - कुछेक लोगों का कहना है कि उमेश गाँधी वस्तुतः अरूणा ओसवाल के लिए काम करने की आड़ में दरअसल राजू मनवानी से आगे दिखने की कोशिश कर रहे हैं । अरूणा ओसवाल के कुछेक समर्थकों का कहना है कि राजू मनवानी और उमेश गाँधी के बीच की इस होड़ ने अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी के अभियान पर प्रतिकूल असर ही डाला है ।
मजे की बात है, जिसे दूसरे लोगों के लिए समझना मुश्किल हो रहा है कि अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में डिस्ट्रिक्ट के दो तुर्रमखां नेता जीजान लगाये हुए हैं, लेकिन फिर भी अरूणा ओसवाल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपने डिस्ट्रिक्ट में एनडोर्समेंट नहीं ले सकीं हैं । डिस्ट्रिक्ट ने वर्ष 1994-95 में मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन रहे संतोष शेट्टी को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एनडोर्स किया है । अरूणा ओसवाल ने दरअसल राजू मनवानी और उमेश गाँधी जैसे अपने दोनों समर्थकों के बीच की होड़ को देखते हुए ही डिस्ट्रिक्ट में एनडोर्समेंट लेने की कोशिश ही नहीं की - उन्हें डर था कि इन दोनों की होड़ के कारण कहीं वह डिस्ट्रिक्ट में ही हार गईं, तो फिर मल्टीपल में उनके लिए और समस्या होगी । यहाँ यह याद करना मौजूँ होगा कि अरूणा ओसवाल पिछली बार हर तरह की तीन-तिकड़म के बाद भी राजू मनवानी की तिकड़मों के सामने डिस्ट्रिक्ट में हार गईं थीं - जिसका खामियाजा उन्हें फिर मल्टीपल में भी भुगतना पड़ा । मल्टीपल में उन्हें इस आरोप का सामना करना पड़ा था कि वह जब डिस्ट्रिक्ट में नहीं जीत पाईं हैं तो मल्टीपल में जीतने की उम्मीद कैसे करती हैं ? और इसका जबाव वह नहीं दे पाईं थीं - और जबाव न दे पाना ही तब उन्हें भारी पड़ा था । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के दूसरे उम्मीदवार संतोष शेट्टी और उनके समर्थक हालाँकि वही सवाल इस बार भी उठा कर अरूणा ओसवाल को घेरने की कोशिश कर रहे हैं - लेकिन इस बार उस सवाल की धार ज्यादा तेज नहीं है; क्योंकि इस बार अरूणा ओसवाल डिस्ट्रिक्ट में चुनाव हारी नहीं हैं । लेकिन फिर भी सवाल बना हुआ है और वह अरूणा ओसवाल की 'पोजिशनिंग' को चोट भी पहुँचा रहा है - तो इसका जिम्मा उनके प्रतिद्धंद्धी संतोष शेट्टी पर नहीं, बल्कि उनके समर्थकों राजू मनवानी और उमेश गाँधी पर है ।
राजू मनवानी ने अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करके जो कलाबाजी दिखाई है, उसने सभी को हैरान किया है । यूँ तो यह सभी जानते/मानते हैं कि लायन राजनीति में दोस्तियाँ और दुश्मनियाँ ज्यादा दिन नहीं बनी/टिकी रह पाती हैं, लेकिन फिर भी पिछली बार राजू मनवानी और अरूणा ओसवाल के बीच हुए चुनाव के चलते जिस तरह की 'भयंकर मारकाट' मची थी, उसे देखते/जानते हुए लोगों के लिए राजू मनवानी को अरूणा ओसवाल के समर्थन में देखना किसी चमत्कार से कम नहीं लगा । राजू मनवानी के कुछेक नजदीकियों का कहना है कि राजू इमोशनल व्यक्ति हैं और इमोशन में आकर वह अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में आ गए; किंतु अन्य कुछेक लोगों का कहना है कि राजू व्यावहारिक व्यक्ति हैं, उन्होंने भाँप लिया कि अरूणा ओसवाल का विरोध करके उन्हें तो कुछ मिलेगा नहीं, साथ रह कर वह जरूर कुछ हासिल कर सकते हैं - लिहाजा वह अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी के समर्थक बन गए । राजू मनवानी की दिलचस्पी इस बीच देश की राजनीति में हुई है और उन्होंने राज्यसभा में सीट का जुगाड़ करने की तरफ अपना ध्यान लगाया है । हवा का रुख भाँप पर राजू मनवानी ने 'नरेंद्र मोदी विचार मंच' का गठन कर लिया है और उसकी गतिविधियों के जरिये संभावित सत्ता खेमे से नजदीकियाँ बनाना शुरू कर दी हैं । अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों का कहना है कि राजू मनवानी ने चूँकि समझ लिया है कि इस बार अरूणा ओसवाल को ही सफल होना है, इसलिए अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करके उन्होंने अरूणा ओसवाल की गुडबुक में शामिल होने की व्यवस्था कर ली है, जिस 'व्यवस्था' का लाभ वह राजयसभा की सीट जुगाड़ने के अपने प्रयासों में भी ले सकेंगे ।
अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने के राजू मनवानी के फैसले का उनके कई समर्थकों ने ही विरोध किया है और इस विरोध के चलते राजू मनवानी के कई समर्थक नेता चुप बैठ गए हैं और उन्होंने अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने से अपने हाथ खींच लिए हैं, और कई तो संतोष शेट्टी के समर्थन में खुल कर काम करने लगे हैं । इसी कारण से अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी के कई समर्थकों को लग रहा है कि राजू मनवानी का समर्थन अरूणा ओसवाल के लिए फायदे का सौदा होगा या नहीं - यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन राजू मनवानी का समर्थन अरूणा ओसवाल के लिए मुसीबत का सौदा जरूर बन गया है । अरूणा ओसवाल की उम्मीदवारी के समर्थकों को इस बार अरूणा ओसवाल की जीत की उम्मीद भले ही हो, लेकिन संतोष शेट्टी की उम्मीदवारी के समर्थकों को अरूणा ओसवाल के लिए बने इसी मुसीबत के सौदे में अपने लिए उम्मीद की संभावना दिख रही है ।

Monday, April 21, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी और कई प्रमुख पूर्व गवर्नर्स द्धारा डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति व्यक्त किए गए समर्थन से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए शरत जैन की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे अरनेजा गिरोह पर दोहरी मार पड़ी है

नई दिल्ली । दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवारों के लिए एक साथ एक पहेली भी बन गए हैं और एक मुसीबत भी । मजे की बात यह है कि दूसरे उम्मीदवार और उनके प्रवर्तक/समर्थक दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में कोई दम भी देखने से इंकार कर रहे हैं, लेकिन साथ ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में अपने अपने खेल के बिगड़ने की आहट भी सुन रहे हैं । दरअसल दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट के जिन नेताओं से समर्थन मिलने की उम्मीद थी - वास्तव में जिनका समर्थन उन्हें घोषित भी हो गया था; लेकिन बाद में उनके पलट जाने और डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थन में हो जाने से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को तगड़ा झटका लगा । डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के नेताओं के समर्थन की घोषणा पेट्स में पहले दिन हुई और इस घोषणा के तुरंत बाद ही दीपक गुप्ता चूँकि अचानक से पेट्स-आयोजन से लौट आये - इसलिए उनके इस लौटने को उनके अपनी उम्मीदवारी से 'लौटने' के रूप में देखा गया । पेट्स से अचानक लौटने का जो कारण दीपक गुप्ता ने बताया, डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों ने उसे सच नहीं माना । जो स्थितियाँ बनीं, उसका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवारों के समर्थकों ने फायदा उठाने का पूरा प्रयास किया और दीपक गुप्ता के उम्मीदवार बने रहने को लेकर संदेह फैलाना शुरू कर दिया । दीपक गुप्ता ने लेकिन उम्मीदवार बने रहने का दावा करके उनके प्रयासों को फलीभूत नहीं होने दिया है । इस बीच जिन लोगों से उनकी बात हुई उनसे दीपक गुप्ता ने स्पष्ट कर दिया है कि चुनावी राजनीति को लेकर नेताओं के बीच क्या समीकरण बने हैं या आगे क्या बनते हैं, इसकी परवाह किये बिना वह अपनी उम्मीदवारी बनाये हुए हैं और बनाये रहेंगे ।
दीपक गुप्ता का यह तेवर दूसरे उम्मीदवारों और उनके समर्थकों के लिए पहेली बना है - उनके लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि दीपक गुप्ता को जब कहीं किसी नेता का समर्थन नहीं मिल रहा है तो फिर वह अपनी उम्मीदवारी को बनाये रखने का हौंसला आखिर कहाँ से पा रहे हैं ? दीपक गुप्ता के इस हौंसले ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए शरत जैन की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे अरनेजा गिरोह को सबसे ज्यादा संकट में डाला है । उल्लेखनीय है कि अरनेजा गिरोह गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश में अपना समर्थन-आधार मानता और बताता है - लेकिन दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के चलते उसके लिए यहाँ शरत जैन के लिए समर्थन जुटाना चुनौतीपूर्ण ही होगा । अरनेजा गिरोह ने गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश का इंचार्ज भले ही जेके गौड़ को बना रखा हो, लेकिन दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के कारण जेके गौड़ के लिए अपने गिरोह के लिए 'काम' करना उतना आसान नहीं होगा - जितना आसान उनके लिए सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल के लिए काम करना था । अरनेजा गिरोह को दरअसल दोहरी मार पड़ी है - डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख पूर्व गवर्नर्स ने जिस तरह डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त किया है, उसके चलते अरनेजा गिरोह के लिए दिल्ली के क्लब्स में भी समर्थन जुटाना मुश्किल होगा । दोहरी मुसीबत से बाहर निकलने की कोशिश में ही अरनेजा गिरोह ने दीपक गुप्ता पर अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए दबाव बनाया है; और इसके लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के बारे में झूठी ख़बरें फैलाने का हथकंडा भी उन्होंने अपनाया है । हालाँकि अभी तक उनका कोई हथकंडा सफल होता हुआ दिखा नहीं है ।
अरनेजा गिरोह को एक बड़ा झटका यह भी लगा है कि गिरोह का एक योद्धा तिहाड़ पहुँच गया है, जिसने सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने में बड़ी मेहनत की थी ।
अरनेजा गिरोह के लिए उम्मीद की किरण हालाँकि डॉक्टर सुब्रमणियन के रवैये में है । अरनेजा गिरोह के एक नेता का कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का समर्थन जो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कर रहे हैं, वह न तो सक्रिय रहते हैं और न ही सचमुच में कुछ करते हैं; खुद डॉक्टर सुब्रमणियन भी एक उम्मीदवार जैसी सक्रियता नहीं दिखा पाते हैं - इसलिए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को कई बड़े नेताओं के समर्थन के बावजूद उनके लिए शरत जैन के लिए दिल्ली में समर्थन जुटाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा । डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों को अपनी इस कमजोरी का अहसास शायद है - और इसीलिए उन्होंने अपनी इस कमजोरी को दूर करने के लिए कमर कस ली है । कमर कसने के इसी क्रम में डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों ने भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी वापस कराने के प्रयास किये हैं । उन्हें लगता है कि दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी वापस लेकर यदि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का समर्थन करते हैं तो डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को और बल मिलेगा ।
मजे की बात यह है कि दोनों खेमों के नेता लोग दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को वापस कराने का प्रयास भी कर रहे हैं, और साथ ही यह दावा भी कर रहे हैं कि दीपक गुप्ता का कुछ बनेगा नहीं । इस पर दीपक गुप्ता के समर्थकों का कहना है कि दोनों खेमों के लोगों को जब विश्वास है कि दीपक गुप्ता का कुछ नहीं बनेगा, तब फिर वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से परेशान क्यों हैं ? गाजियाबाद के कुछेक रोटेरियंस याद करते हैं कि जब जेके गौड़ ने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, तब भी इन लोगों ने जेके गौड़ की उम्मीदवारी को हलके में लिया था । जेके गौड़ के बारे में तो लोग हालाँकि कहते भी थे कि - 'अब जेके गौड़ जैसे लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनेंगे क्या': दीपक गुप्ता के बारे में लोग कम-अस-कम ऐसा तो नहीं ही मानते/कहते हैं । जाहिर है कि जेके गौड़ के मुकाबले दीपक गुप्ता का 'वजन' ज्यादा है । हालाँकि यह नतीजा निकालने की कोशिश करना अभी जल्दबाजी करना होगा कि बिना किसी समर्थन-आधार के सफल होने की जेके गौड़ की कहानी को दोहरा पाना दीपक गुप्ता के लिए संभव होगा या नहीं । कई लोगों का मानना और कहना है कि 'अभी तक' - यानि पेट्स के आयोजन तक - जेके गौड़ ने सक्रियता का जो लेबल बना लिया था, दीपक गुप्ता अभी उससे पीछे हैं । दीपक गुप्ता के समर्थकों का इस संदर्भ में लेकिन एक मजेदार तर्क है - कि दीपक गुप्ता लेकिन इसलिए 'सौभाग्यशाली' भी हैं कि उनके संभावित प्रतिद्धंद्धी उनसे भी ज्यादा ढीले हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के संभावित उम्मीदवारों की ढीलमढाल के बावजूद लेकिन परदे के पीछे चुनावी समीकरणों को बनाने/बिगाड़ने का खेल पूरा चल रहा है ।

Friday, April 18, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में बायोडेटा को गैरजरूरी बताते हुए शिव कुमार चौधरी का दावा है कि बायोडेटा कौन देखता है; लोग तो गिफ्ट देखते हैं और उनके द्धारा दिए गए गिफ्ट के बदले में लोग वोट उन्हें ही देंगे

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में होने वाले सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव से ठीक पहले अपनी अपनी ताकत दिखाने के उद्देश्य से हुईं मीटिंग्स में अवतार कृष्ण के मुकाबले शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी का तंबू जिस तरह उड़ा, उसने शिव कुमार चौधरी के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच निराशा और बेचैनी पैदा कर दी है । उल्लेखनीय है कि अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने और 'दिखाने' के लिए दोनों उम्मीदवारों की तरफ से अपनी अपनी आख़िरी मीटिंग एक ही दिन और लगभग मिलते-जुलते इलाके में आयोजित की गई । दोनों ही तरफ अपनी अपनी मीटिंग को कामयाब बनाने के लिए जी-तोड़ तैयारी की गई - जो स्वाभाविक ही था । किंतु दोनों की तैयारी का जो नतीजा निकला और दिखा - उसने शिव कुमार चौधरी के समर्थकों के तो तोते ही उड़ा दिए हैं । शिव कुमार चौधरी की मीटिंग में कई ऐसे क्लब और लोग भी नहीं पहुँचे जिनके पहुँचने का इंतजार किया जा रहा था; जबकि अवतार कृष्ण की मीटिंग में कई ऐसे लोग भी पहुँचे जिनके पहुँचने की वहाँ किसी को उम्मीद भी/ही नहीं थी । शिव कुमार चौधरी के लिए इससे भी ज्यादा झटके की बात यह रही कि उनके समर्थन में बताये जा रहे कई नेता तक उनकी मीटिंग में पहुँचे तो नहीं ही, न पहुँचने के लिए उन्होंने जो कारण बताये वह भी झूठे साबित हुए; क्योंकि उन्होंने जो कारण बताये उनके चलते उन्हें किसी भी मीटिंग में मौजूद नहीं होना चाहिए था, लेकिन वह अवतार कृष्ण की मीटिंग में सक्रिय दिखे । इससे जाहिर हुआ कि उन नेताओं ने पाला बदल लिया है और अब वह अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थन में हो गए हैं ।
शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के घोषित समर्थकों ने भी स्वीकार किया है कि पिछले दस दिनों में शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी को झटके पर झटके लगे हैं । मेरठ में हुई उनकी दूसरी मीटिंग उनकी पिछली मीटिंग के मुकाबले कमजोर रही । मीटिंग में उपस्थिति यदि कोई पैमाना है तो दूसरी मीटिंग के कमजोर होने का यही मतलब लगाया/निकाला गया कि मेरठ क्षेत्र में शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन घटा है । सहारनपुर में तो शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग का और भी बुरा हाल हुआ । उनकी मीटिंग में कुल दो क्लब के लोगों के ही पहुँचने की बात सामने आई; जबकि सहारनपुर में आयोजित हुई अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग में छह क्लब्स के लोगों की उपस्थिति बताई गई ।
शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों ने इस घटते समर्थन के लिए अरविंद संगल की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट लेने की तैयारी को जिम्मेदार ठहराया है । इनका साफ कहना है कि अरविंद संगल ने अपने स्वार्थ में शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी का बेड़ा गर्क कर दिया है । अरविंद संगल की 'हरकत' को दरअसल मुकेश गोयल को नीचा दिखाने और मुकेश गोयल को व्यक्तिगत व पारिवारिक रूप से चोट पहुँचाने की कोशिश के रूप में देखा/पहचाना गया । उल्लेखनीय है कि रिश्तेदारी के बावजूद मुकेश गोयल और अरुण मित्तल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर विपरीत खेमों में थे - यह बात तो कोई खास बात नहीं थी; और इस 'प्रॉब्लम' को मुकेश गोयल ने भी और अरुण मित्तल ने भी हल या स्वीकार कर लिया था । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट लेने खातिर अपना दावा पेश करके अरविंद संगल ने लेकिन मुकेश गोयल के सामने अरुण मित्तल की सीधी खिलाफत करने का मौका बनाने का प्रयास किया । शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में गाजियाबाद में हुई मीटिंग में बिन बुलाये आ कर अरविंद संगल ने मुकेश गोयल को घेरने/फँसाने की चाल चली । उनकी चाल में मुकेश गोयल तो नहीं फँसे, लेकिन शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी में मठ्ठा जरूर पड़ गया ।
दरअसल मुकेश गोयल ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट लेने के मामले में अरविंद संगल का समर्थन करने से न सिर्फ साफ इंकार कर दिया, बल्कि अरुण मित्तल के लिए अपना खुला समर्थन व्यक्त किया । इससे मुकेश गोयल के समर्थकों में संदेश यह गया कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में मुकेश गोयल ने शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन से हाथ खींच लिए हैं । इस संदेश के चलते ही मुरादाबाद में अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग को जोरदार सफलता मिली और मुरादाबाद में शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग से मुकेश गोयल के कई नजदीकी गायब रहे; उनमें से कुछेक तो उसी समय अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थन में हो रही मेरठ की मीटिंग में शामिल हुए ।
अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थन में होने वाली मीटिंग्स के अप्रत्याशित रूप से कामयाब होने को उनकी उम्मीदवारी के प्रति बढ़ते हुए समर्थन के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; तो शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में होने वाली मीटिंग्स में उम्मीद और तैयारी के अनुरूप लोगों के न जुटने में उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन को घटते हुए देखा/पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कैसा हो - इसे लेकर लोगों के बीच जो आकलन और मूल्यांकन हो रहा है, उसमें भी अवतार कृष्ण के मुकाबले शिव कुमार चौधरी को मात खानी पड़ रही है । मजे की बात यह है कि शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के कई एक समर्थक ही यह स्वीकार करते हुए सुने गए हैं कि व्यक्तित्व के मामले में अवतार कृष्ण का पलड़ा भारी दिखता है । इससे भी ज्यादा मजे की बात यह है कि लोगों के बीच व्यक्तित्व के मामले में कमजोर पड़ने का यह मौका खुद शिव कुमार चौधरी ने ही बनाया है - उम्मीदवार के रूप में उन्होंने अपना बायोडेटा ही प्रसारित नहीं किया है । उनके कुछेक समर्थकों ने जब उनका ध्यान इस बात की तरफ दिलाया और बायोडेटा प्रसारित करने की जरूरत को रेखांकित किया तो उनका जबाव था कि बायोडेटा से क्या होता है, उसे कौन पढ़ता/देखता है ? यही बात लेकिन उनके खिलाफ हो गई है । लोगों को यह कहने का मौका मिला है कि शिव कुमार चौधरी के पास बायोडेटा में लिखने/बताने को कुछ है ही नहीं, इसीलिए उन्होंने अपने बायोडेटा को प्रसारित नहीं किया है ।
इसी बिना पर कई लोगों का कहना है कि शिव कुमार चौधरी अभी युवा हैं, अभी उन्हें लायनिज्म के लिए काम करना चाहिए ताकि वह अपना बायोडेटा बना सकें और उसे लोगों को दिखा सकें - और तब उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के बारे में सोचना चाहिए । दूसरे लोग भले ही यह सब कह रहे हों, किंतु शिव कुमार चौधरी के खासमख़ासों का दावा है कि शिव कुमार चौधरी ने लोगों को जो महँगे महँगे गिफ्ट दिए हैं, उन्हें लेने वाले लोग उनके बायोडेटा की कोई परवाह नहीं करेंगे और गिफ्ट के बदले में वोट शिव कुमार चौधरी को ही देंगे । उनका कहना है कि लायन राजनीति में बायोडेटा का नहीं, गिफ्ट का महत्व होता है और गिफ्ट देने की होड़ में अवतार कृष्ण हमारे शिव कुमार चौधरी के मुकाबले कहीं नहीं टिकते हैं । खुद शिव कुमार चौधरी ने कई बार अवतार कृष्ण की खिल्ली उड़ाते हुए बताया है कि अवतार कृष्ण कहीं जाते हैं तो लोगों को अपना बायोडेटा देते हैं; जबकि मैं लोगों को गिफ्ट देता हूँ । सचमुच, सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को गिफ्ट और बायोडेटा के बीच का मुकाबला जिस तरह बना दिया गया है; उसके चलते यह देखना वास्तव में दिलचस्प होगा कि जीतता कौन है - गिफ्ट या बायोडेटा ?

Wednesday, April 16, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के लोगों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने तो गौरवान्वित होने का अवसर उपलब्ध करवाया है; लेकिन फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता की कारस्तानी के कारण डिस्ट्रिक्ट के लोगों को शर्मसार होना पड़ रहा है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता आजकल खूब चर्चा में हैं - लेकिन उनके चर्चा में होने के कारण बिलकुल अलग-अलग हैं । कारण सिर्फ अलग-अलग ही नहीं हैं, बल्कि विपरीत ध्रुवों पर भी खड़े हैं । विजय शिरोहा के चर्चा में होने का कारण है, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में किये गए उनके कामों और प्राप्त की गईं उनकी उपलब्धियों के लिए लायंस इंटरनेशनल द्धारा ड्रीम अचीवर अवार्ड्स गोल्ड पिन तथा फर्स्ट स्टार जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से उन्हें नवाजा जाना; जबकि नरेश गुप्ता के चर्चा में होने का कारण है, एक फर्जी क्लब के कार्यक्रम का उद्घाटन करने को लेकर उठे सवालों का जबाव देने के लिए नरेश गुप्ता द्धारा एक फर्जी किस्म के नाम का सहारा लेना । जैसे एक झूठ को छिपाने के लिए फिर सौ झूठ बोलने पड़ते हैं; ठीक वैसे ही एक फर्जी काम पर पर्दा डालने के लिए नरेश गुप्ता को फर्जी लोगों का सहारा लेना पड़ रहा है और फर्जी हथकंडे अपनाने पड़ रहे हैं । इस तरह विजय शिरोहा के जरिये डिस्ट्रिक्ट के लोगों को डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की अपनी सदस्यता पर गर्व करने का मौका मिला है, तो नरेश गुप्ता की कारस्तानी ने उन्हें शर्मसार किया हुआ है ।
उल्लेखनीय है कि विजय शिरोहा को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बैरी पाल्मर ने पत्र लिख कर ड्रीम अचीवर अवार्ड्स गोल्ड पिन तथा फर्स्ट स्टार के लिए उनके चुने जाने की सूचना दी है । बैरी पाल्मार ने अपने पत्र में यह जानकारी भी दी है कि विजय शिरोहा का नाम 'ड्रीम अचीवर वेबसाइट' पर दिखाया जायेगा, जिससे कि दुनिया भर के लोग विजय शिरोहा के काम से और उनकी उपलब्धियों से परिचित हो सकें । विजय शिरोहा की यह उपलब्धि सिर्फ विजय शिरोहा के लिए ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के सदस्यों के लिए भी गौरव की बात है कि उनके डिस्ट्रिक्ट और उनके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का नाम लायंस इंटरनेशनल की एक वेबसाइट पर होगा और दुनिया भर के लोग उनके डिस्ट्रिक्ट में हुए काम और उनके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की उपलब्धियों के बारे में जानेंगे । हालाँकि डिस्ट्रिक्ट में कुछ जलफुक्नु टाइप के लोग हैं जिनके दिल काले हैं - जो अपने डिस्ट्रिक्ट और अपने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की इस उपलब्धि पर 'धुँआ छोड़ने' का काम अवश्य ही करेंगे; लेकिन फिर भी सच तो सच ही है और वह सच ही रहेगा । उल्लेखनीय बात यह हुई है कि विजय शिरोहा को लायंस इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बैरी पाल्मर की तरफ से तारीफ और सम्मान की यह सूचना ऐसे समय मिली है, जबकि फर्जी किस्म की मेलों के जरिये उनपर बेसिरपैर के आरोप लगाये जा रहे हैं । लायंस इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बैरी पाल्मर का पत्र वास्तव में विजय शिरोहा पर बेसिरपैर के आरोप लगाने वाले खुले और 'छिपे' लोगों के मुँह पर एक करारा तमाचा है । हालाँकि डिस्ट्रिक्ट के लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा पर बेसिरपैर के आरोप लगाने वाले खुले और 'छिपे' लोग इतने बेशर्म किस्म के लोग हैं कि लायंस इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बैरी पाल्मर के पत्र से और विजय शिरोहा को लायंस इंटरनेशनल से मिले सम्मान से भी कोई सबक नहीं लेंगे ।
डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के लोगों के सामने सचमुच एक मजेदार नजारा है - उनके सामने एक तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा हैं, जिन्हें लायंस इंटरनेशनल प्रेसीडेंट अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित होने की सूचना देकर उन्हें तथा डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों को गौरव महसूस करने का मौका दे रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के सामने लेकिन दूसरी तरफ फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता हैं, जो 'लायंस क्लब नई दिल्ली कीर्ति' नाम के एक फर्जी क्लब के एक तथाकथित प्रोजेक्ट का उद्घाटन करने के गंभीर आरोप में घिरे हैं और लायंस इंटरनेशनल के जो भी पदाधिकारी इस बारे में सुन रहे हैं वह नरेश गुप्ता के नाम पर थू-थू ही कर रहे हैं । हर किसी का मानना और कहना है कि लायंस इंटरनेशनल तथा डिस्ट्रिक्ट के एक पदाधिकारी होने के नाते नरेश गुप्ता को एक फर्जी क्लब के कार्यक्रम का उद्घाटन करना तो दूर, कार्यक्रम में जाना भी नहीं चाहिए था । इससे भी ज्यादा बुरी बात यह हुई है कि एक फर्जी काम करते हुए 'रंगे हाथ' पकड़े जाने के बाद नरेश गुप्ता खुद जबाव देने की बजाये एक फर्जी नाम से यह कह कर बचने की कोशिश कर रहे हैं कि यह खबर फलाँ-फलाँ द्धारा फैलाई जा रही है । एक चोर की चोरी का अपराध क्या इस तर्क से ख़ारिज किया जा सकता है कि उसकी शिकायत तो फलाँ ने की है । चोरी हुई है और चोर रंगे हाथ पकड़ा गया है, तो उसका अपराध तो बनता ही है । इसी तर्क के आधार पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों का कहना है कि अवैध तरीके से लायंस इंटरनेशनल के नाम और लोगो का इस्तेमाल करते हुए एक फर्जी क्लब के कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए नरेश गुप्ता 'रंगे हाथ' पकड़े गए हैं इसलिए इसके लिए उन्हें माफी तो माँगनी ही चाहिए । नरेश गुप्ता इसकी बजाये बचने के लिए एक फर्जी नाम का सहारा ले रहे हैं ।
नरेश गुप्ता की यह कारस्तानी आज मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच ही नहीं, लायंस इंटरनेशनल के अन्य बड़े पदाधिकारियों के बीच भी चर्चा का विषय बनी हुई है । हर किसी के सामने यही सवाल पैदा हुआ है कि नरेश गुप्ता हर काम फर्जी-फर्जी तरीके से ही करेंगे क्या ? डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के लोगों के सामने सचमुच विरोधाभासी स्थितियाँ बनी हैं : एक तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने उन्हें गौरवान्वित होने का अवसर उपलब्ध करवाया है; तो दूसरी तरह फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता की कारस्तानी के कारण उन्हें शर्मसार होना पड़ रहा है ।

Friday, April 11, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने जा रहे नरेश गुप्ता कुछेक लोगों की कठपुतली होने के कारण ही क्या लायंस क्लब नई दिल्ली कीर्ति नाम के फर्जी क्लब के कार्यक्रम का उद्घाटन करने को तैयार हुए ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का कार्यभार सँभालने की तैयारी कर रहे नरेश गुप्ता ने फर्जी क्लब्स को बंद/ख़त्म करने/करवाने की दिशा में प्रयास करना शुरू किया है और इस बारे में उन्होंने फर्जी क्लब्स के कुछेक 'मालिकों' से बात भी की है । नरेश गुप्ता की इस पहल को लेकर अधिकतर लोगों को उम्मीद भी जगी है कि शायद उनकी पहल से ही डिस्ट्रिक्ट को फर्जी क्लब्स से मुक्ति मिल जाये । कई एक लोगों को हालाँकि उनकी पहल की सफलता को लेकर शक भी है । उनका तर्क है कि नरेश गुप्ता जिन पूर्व गवर्नर्स की गोद में बैठे हुए हैं, उनके फर्जी क्लब्स बंद/ख़त्म करवा पाना उनके बस की बात नहीं है । नरेश गुप्ता ने अभी तक दरअसल अपना कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व बनाया/दिखाया ही नहीं है - उनकी जो गतिविधियाँ रही हैं उससे उन्होंने बार-बार अपने आप को कुछेक पूर्व गवर्नर्स की कठपुतली ही साबित किया है । इसी से, कई लोगों को लगता है कि नरेश गुप्ता में वह 'दम' ही नहीं है जिसके भरोसे वह फर्जी क्लब्स रखने वाले पूर्व गवर्नर्स पर कोई दबाव बना सकें और फर्जी क्लब्स बंद/ख़त्म करवा सकें । नरेश गुप्ता के 'दम/ख़म' का अभी लोग आकलन कर ही रहे थे कि लायंस क्लब नई दिल्ली कीर्ति के मेगा ब्लड डोनेशन कैम्प का उनके द्धारा उद्धघाटन करने की खबर मिली । इस खबर ने साबित कर दिया कि फर्जी क्लब्स बंद/ख़त्म करने/करवाने की उनकी पहल सिर्फ एक ड्रामा है - और उनके गवर्नर-काल में तो हो सकता है कि फर्जी क्लब्स को संरक्षण देने के नए नए रिकॉर्ड बनें ।
उल्लेखनीय है कि 'लायंस क्लब नई दिल्ली कीर्ति' - नाम से कोई क्लब लायंस इंटरनेशनल और डिस्ट्रिक्ट के रिकॉर्ड में नहीं है । इस नाम के किसी क्लब के गठन के लिए अभी तक - अभी तक कोई आवेदन डिस्ट्रिक्ट कार्यालय को नहीं मिला है । इस क्लब के सदस्यों के रूप में जिन लोगों के नाम बताये जा रहे हैं वह अभी भी - अभी भी लायंस क्लब दिल्ली कीर्ति के सदस्य हैं । इन तथ्यों के आधार पर यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि आज की तारीख में 'लायंस क्लब नई दिल्ली कीर्ति' एक फर्जी क्लब है । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता - जो दो महीने बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होंगे - इस फर्जी क्लब के एक कार्यक्रम का उद्घाटन करने के लिए तैयार हो जाते हैं । इससे समझा जा सकता है कि फर्जी क्लब्स के प्रति उनके मन में कितना सम्मान है । उनके द्धारा उद्घाटित इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज की उपस्थिति सारे नज़ारे को स्पष्ट कर देती है । लोग समझ लेते हैं कि नरेश गुप्ता तो इन दोनों पूर्व गवर्नर्स की कठपुतली के रूप में इस फर्जी क्लब के एक कार्यक्रम का उद्घाटन करने के लिए तैयार हो गए होंगे । कठपुतली को चूँकि अपना दिमाग तो होता नहीं है, और या उसे अपना दिमाग इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होती है - इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने जा रहे नरेश गुप्ता को यह फैसला करने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई कि वह एक फर्जी क्लब के कार्यक्रम में शामिल भी नहीं होंगे, उसका उद्घाटन करना तो दूर की बात है ।
एक तथाकथित क्लब - जो अभी बना ही नहीं है; जिसके 'बनने' के लिए अभी आवेदन तक नहीं किया गया है - लायंस इंटरनेशनल का और डिस्ट्रिक्ट का नाम इस्तेमाल कर रहा है; लायंस इंटरनेशनल का लोगो इस्तेमाल कर रहा है - और लायंस इंटरनेशनल व डिस्ट्रिक्ट के एक पदाधिकारी होते हुए नरेश गुप्ता उस पर कोई ऐतराज तक नहीं कर रहे हैं; ऐतराज करना तो दूर की बात - उसमें शामिल हो रहे हैं, उसका उद्घाटन कर रहे हैं । इससे नरेश गुप्ता की अकल और डिस्ट्रिक्ट व लायंस इंटरनेशनल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का सच ही सामने आया है । कुछेक लोग इस मामले में नरेश गुप्ता को संदेह का लाभ देते हुए तर्क दे रहे हैं कि नरेश गुप्ता को अभी ज्यादा कुछ पता नहीं है और वह तो इसलिए इस फर्जी क्लब के कार्यक्रम का उद्घाटन करने के लिए तैयार हो गए होंगे क्योंकि इस कार्यक्रम से अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन जैसे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जुड़े हुए हैं । इस मासूम से तर्क पर दूसरे लोगों का कहना है कि समस्या तो दरअसल यही है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालने की तैयारी कर रहे नरेश गुप्ता को समझना चाहिए कि उन्हें दूसरों की कठपुतली बन कर काम नहीं करना है, उन्हें अपनी अकल से काम करना है और फैसले लेने चाहिए ।
नरेश गुप्ता के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों को लगता है कि नरेश गुप्ता बेचारे एक भले व्यक्ति हैं; उनकी गलती बस इतनी है कि वह कुछेक चतुर लोगों के जाल में फँस गए हैं जो उन्हें तरह-तरह से इस्तेमाल करते हुए अपने अपने 'काम' बनाते हैं और बदनामी का कीचड़ नरेश गुप्ता के मुँह पर लगवा देते हैं । नरेश गुप्ता के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि नरेश गुप्ता यदि किन्हीं लोगों की कठपुतली बन कर ना रहे, उन्हें इस्तेमाल करने वाले लोगों की चालों से सावधान रहें और अपनी अकल से फैसले करें - तो विवादों में फँसने से और बदनाम होने से बच सकते हैं; अन्यथा तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनके हाथ बदनामी और परेशानी ही लगनी है । अपने साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों की यह सलाह नरेश गुप्ता अपना पायेंगे या नहीं, यह आगे देखने को मिलेगा । अभी तो उन्हें लोगों के इसी सवाल का जबाव देना है कि एक ऐसे क्लब - जो अभी डिस्ट्रिक्ट और लायंस इंटरनेशनल के रिकॉर्ड पर नहीं है, जिसके गठन के लिए अभी आवेदन तक नहीं दिया गया है, जिसके बताये जा रहे सदस्य वास्तव में एक दूसरे क्लब के सदस्य हैं - के कार्यक्रम का उद्घाटन करने के लिए क्यों तैयार हो गए; और एक फर्जी क्लब को डिस्ट्रिक्ट का, लायंस इंटरनेशनल का नाम तथा लोगो इस्तेमाल करता चुपचाप क्यों देखते रहे ? उनके सामने आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि डिस्ट्रिक्ट व लायंस इंटरनेशनल के एक पदाधिकारी होते हुए भी वह डिस्ट्रिक्ट व लायंस इंटरनेशनल के साथ होती हुई खुली ठगी का विरोध नहीं कर सके ?

Thursday, April 10, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थन में मुरादाबाद में हुई मीटिंग की जोरदार सफलता ने मुजफ्फरनगर खेमे को मुकेश गोयल पर हमला बोलने का मौका दिया और उसने शिव कुमार चौधरी को मुकेश गोयल से सावधान रहने की नसीहत दी

मुरादाबाद । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थन में मुरादाबाद में हुई मीटिंग को जो जोरदार सफलता मिली है, उसकी खबर ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे उम्मीदवार शिव कुमार चौधरी के समर्थकों के बीच निराशा और खलबली तो पैदा की ही है, उनके बीच परस्पर आरोपों और प्रत्यारोपों का पिटारा भी खोल दिया है । शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थक मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों ने आरोप लगाया है कि मुकेश गोयल के प्रभाव क्षेत्र में अवतार कृष्ण को जिस तरह का समर्थन मिलता दिख रहा है, उससे लगता है कि मुकेश गोयल ने शिव कुमार चौधरी को जितवाने का नहीं, बल्कि हरवाने का इंतजाम किया हुआ है । उल्लेखनीय है कि मुरादाबाद क्षेत्र को मुकेश गोयल के प्रभाव वाले क्षेत्र के रूप में देखा/पहचाना जाता है; ऐसे में प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार यहाँ मीटिंग न सिर्फ कर ले, बल्कि मीटिंग में क्षेत्र के तमाम लोगों को जुटा भी ले - तो विरोधियों के लिए मुकेश गोयल की राजनीतिक सामर्थ्य और नीयत पर शक होना स्वाभाविक ही है । मुकेश गोयल की राजनीतिक सामर्थ्य और नीयत पर शक करने का विरोधियों का मौका तब और जेनुइन लगने लगता है जब प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार की मीटिंग में मुकेश गोयल के नजदीकी और खास समझे जाने वाले लोगों ने बढ़चढ़ कर न सिर्फ हिस्सा लिया हो, बल्कि मुकेश गोयल के खिलाफ बयानबाजी भी की हो । मुरादाबाद में आयोजित हुई अवतार कृष्ण की मीटिंग का उल्लेखनीय पक्ष दरअसल यह रहा कि उसमें मुकेश गोयल की ताकत समझे जाने वाले लोगों की न सिर्फ शिरकत रही बल्कि उन्होंने शिब कुमार चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने के मुकेश गोयल के फैसले के प्रति खुली नाराजगी भी प्रकट की ।
असल में, इसी कारण से शिव कुमार चौधरी के समर्थक मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों ने मुकेश गोयल की राजनीतिक सामर्थ्य और नीयत पर सवाल उठाया है । शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थक मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों को मुकेश गोयल की उस बात ने और भड़काया है जिसमें मुकेश गोयल ने दावा किया कि मुरादाबाद में आयोजित हुई अवतार कृष्ण की मीटिंग में उनके जो लोग गए वह उनसे पूछ कर और उनकी अनुमति मिलने के बाद ही उक्त मीटिंग में गए थे । मुकेश गोयल की यह बात शिव कुमार चौधरी के दूसरे समर्थकों को बिलकुल भी समझ में नहीं आ रही है । उनका कहना है कि यदि सचमुच किन्हीं लोगों ने उनसे अवतार कृष्ण की मीटिंग में जाने या न जाने को लेकर पूछा था तो उन्होंने जाने की अनुमति क्यों दी ? उनका कहना है कि अपने लोगों को अवतार कृष्ण की मीटिंग में जाने की अनुमति देकर मुकेश गोयल ने एक तरह से अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की हवा बनाने में ही मदद की है और इससे शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के लिए चुनौती बढ़ी है । शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों के बीच इसी से शक और सवाल पैदा हुआ है कि मुकेश गोयल का वास्तविक खेल आखिर है क्या ?
इसी शक और सवाल के साथ शिव कुमार चौधरी के समर्थक मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि शिव कुमार चौधरी को मुकेश गोयल पर भरोसा नहीं करना चाहिए । दरअसल इस शक और सवाल ने शिव कुमार चौधरी के समर्थक मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों को मौका दिया है कि वह शिव कुमार चौधरी को मुकेश गोयल से अलग कर लें, और वह अपनी इस कोशिश को संभव बनाने में जुट गए हैं । असल में, मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों को शिव कुमार चौधरी का मुकेश गोयल का समर्थन लेना कभी भी पसंद नहीं आया । चुनावी जीत का समीकरण बनाने की मजबूरी में उन्होंने शिव कुमार चौधरी का मुकेश गोयल के पास जाना स्वीकार तो कर लिया था, लेकिन मुकेश गोयल को किसी भी तरह से तवज्जो देना उन्हें पसंद नहीं आया है । मुकेश गोयल ने जबसे शिव कुमार चौधरी से मुरादाबाद, गाजियाबाद, हापुड़ और मेरठ की मीटिंग का आयोजन करवाया है, तबसे तो मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों के तन-बदन में आग लगी हुई है । उन्हें लग रहा है कि शिव कुमार चौधरी आखिर मुकेश गोयल की इतनी बात क्यों मान रहे हैं ? मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों को लगता है कि शिव कुमार चौधरी को जब डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर नेताओं का समर्थन मिल रहा है, और मुकेश गोयल के समर्थन के बिना भी वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जीत सकते हैं तो फिर मुकेश गोयल को ढोने की भला क्या जरूरत है ?
मुरादाबाद में आयोजित हुई अवतार कृष्ण की मीटिंग में मुकेश गोयल के नजदीकियों के रूप में पहचाने जाने वाले लोगों के पहुँचने से मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों को मुकेश गोयल पर हमला करने का अच्छा मौका मिल गया है । उनका कहना है कि मुकेश गोयल के समर्थकों के बीच अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के प्रति बढ़ते दिखते समर्थन में मुकेश गोयल की कोई चाल छिपी है, जो शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाएगी । मुकेश गोयल के यह कहने से तो मामला और भी गंभीर हो जाता है कि मुरादाबाद में आयोजित हुई अवतार कृष्ण की मीटिंग में उनके जो लोग पहुँचे, वह उनसे पूछ कर और उनकी अनुमति लेकर ही पहुँचे थे । मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों का पूछना है कि अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थन में होने वाली मीटिंग को सफल बना/बनवा कर मुकेश गोयल आखिर हासिल क्या करना चाहते हैं ? मुरादाबाद में अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग के अप्रत्याशित रूप से सफल होने के कारण शिव कुमार चौधरी के समर्थकों के बीच यूँ भी खलबली थी; इस सफलता के चलते शिव कुमार चौधरी के समर्थक मुजफ्फरनगर खेमे के लोगों द्धारा मुकेश गोयल को निशाने पर ले लेने से शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के संदर्भ में मामला और भी पेजीदा हो गया है ।

Tuesday, April 8, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में जीतते दिख रहे सीओएल के चुनाव को बीके त्रिखा, रोटरी क्लब मेरठ कैंट, संजीव रस्तोगी और राकेश रस्तोगी के रवैये से हाथ से निकलने के डर के कारण योगेश मोहन गुप्ता बुरी तरह बौखला गए है

मेरठ । योगेश मोहन गुप्ता को सीओएल के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद करीब चौथे महीने में ध्यान आया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने सीओएल के चुनाव को लेकर जो टाइम टेबल बनाया, उसके पीछे उनकी सीओएल पद के दूसरे उम्मीदवार को फायदा पहुँचाने की बदनीयत काम रही है । चूँकि हमारे यहाँ कहा गया है कि जब जागो तब सवेरा - इसलिए उनके देर से जागने की बात को यदि जाने भी दें; तो भी लगता है कि अभी भी उनकी नींद पूरी तरह से खुली नहीं है । क्योंकि सीओएल के चुनाव के टाइम टेबल को लेकर उन्होंने रोटरी साउथ एशिया कार्यालय को जो शिकायत की है, और जिसकी कॉपी उन्होंने इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता को भेजी है, उसमें विस्तार से टाइम टेबल की तारीखों का विवरण देने के बावजूद उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह आखिर चाहते क्या हैं ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने सीओएल के चुनाव के टाइम टेबल में चूँकि नियम-कानूनों का पालन नहीं किया है, इस आधार पर चुनाव को रद्द करने की और चुनावी प्रक्रिया को दोबारा से शुरू करने की ही माँग बनती है - योगेश मोहन गुप्ता ने लेकिन ऐसी कोई माँग नहीं की है । जाहिर है कि उन्होंने जो शिकायत की ही, उसमें नियम-कानूनों को लागू कराने पर जोर कम है - रोना-धोना ज्यादा है । योगेश मोहन गुप्ता जो यह संदेश देना चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल ने निहायत मनमाने तरीके से काम किया है और रोटरी के नियम-कानूनों की तथा आदर्शों की हर तरह से ऐसी-तैसी की है, उससे सभी सहमत हैं; लेकिन लोगों का यह भी पूछना है कि राकेश सिंघल की कारस्तानियों को योगेश मोहन गुप्ता चुपचाप बैठे देखते क्यों रहे और अब जबकि राकेश सिंघल सारा कबाड़ा कर चुके हैं, तो राकेश सिंघल के किए-धरे को लेकर अब रोना-धोना क्यों मचाये हैं ? योगेश मोहन गुप्ता का यह व्यवहार दरअसल हार की आशंका से पैदा हुई उनकी बदहवासी को प्रकट करता है । 
योगेश मोहन गुप्ता की यह बदहवासी सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को लेकर ही नहीं है; उनकी बदहवासी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी को लेकर, संजीव रस्तोगी के क्लब - रोटरी क्लब मेरठ कैंट के अध्यक्ष पूरन चंद चौधरी और रोटरी क्लब मेरठ सम्राट के वरिष्ठ सदस्य राकेश रस्तोगी को लेकर भी है । राकेश रस्तोगी के खिलाफ तो योगेश मोहन गुप्ता का गुस्सा सातवें आसमान पर है । यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा कि अभी कुछ समय पहले तक राकेश रस्तोगी उनके इतने खास हुआ करते थे कि सीओएल के चुनाव को लेकर बनी ऑब्जर्वर्स की टीम के लिए योगेश मोहन गुप्ता ने अपनी तरफ से राकेश रस्तोगी का नाम दिया था । सीओएल के चुनाव को लेकर कल तक मेरठ के एकतरफा समर्थन का दावा कर रहे योगेश मोहन गुप्ता अब अचानक से मेरठ के लोगों - और मेरठ के 'अपने' लोगों के ही इतना खिलाफ आखिर क्यों हो गए हैं ? दरअसल योगेश मोहन गुप्ता कल तक सीओएल के चुनाव में अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे, लेकिन जैसे ही चुनाव का समय आया तो उन्हें अपनी हार सामने दिखने लगी । हार की आशंका ने योगेश मोहन गुप्ता को बदहवास कर दिया है; और इस बदहवासी में उन्हें हर वह व्यक्ति और क्लब 'बिका' हुआ दिख रहा है जो उनके साथ नहीं है । योगेश मोहन गुप्ता लोगों को बता रहे हैं कि रोटरी क्लब मेरठ कैंट के अध्यक्ष पूरन चंद चौधरी ने सीओएल के दूसरे उम्मीदवार ललित मोहन गुप्ता से डेढ़ लाख रुपये लेकर क्लब के वोट उन्हें 'बेच' दिए हैं । रोटरी क्लब मेरठ कैंट चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी का भी क्लब है, इसलिए क्लब के वोट 'बेचने' की इस कार्रवाई में योगेश मोहन गुप्ता को संजीव रस्तोगी की मिलीभगत भी नजर आती है ।
रोटरी क्लब मेरठ कैंट के लोग लेकिन एक दूसरी बात बताते हैं । क्लब की जिस बोर्ड मीटिंग में सीओएल के लिए वोट तय हुआ, उस बोर्ड मीटिंग में मौजूद क्लब के एक वरिष्ठ सदस्य ने इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि मीटिंग शुरू होते ही क्लब के सेक्रेटरी बीके त्रिखा ने साफ कह दिया कि क्लब ने यदि योगेश मोहन गुप्ता को वोट देने का फैसला किया तो वह क्लब छोड़ देंगे । बीके त्रिखा का योगेश मोहन गुप्ता के साथ बहनोई का रिश्ता माना/ बताया जाता है, इसलिए उनसे यह सुनकर मीटिंग में मौजूद लोग हैरान हो गए । बीके त्रिखा ने लेकिन लोगों को ज्यादा देर हैरान नहीं रहने दिया; उन्होंने योगेश मोहन गुप्ता के प्रति अपने इस खुले विरोध का कारण बताया कि कुछ समय पहले वह अपनी नातिन के एडमिशन के लिए योगेश मोहन गुप्ता से मिले थे । अपने संस्थान में एडमिशन के लिए योगेश मोहन गुप्ता ने उन्हें डोनेशन का रेट बता दिया । उन्होंने योगेश मोहन गुप्ता से कहा भी कि सुनते हैं कि डायन भी अपनी जन-पहचान वालों के घर छोड़ देती है, तुम मुझसे भी डोनेशन लोगे । योगेश मोहन गुप्ता ने उन्हें दो-टूक बता दिया कि रिश्तेदारी की बात अपनी जगह है, लेकिन डोनेशन तो देना ही पड़ेगा । यह किस्सा सुनाते हुए बीके त्रिखा ने क्लब के लोगों से कहा कि अपने इस अनुभव के बाद अपने होते हुए वह योगेश मोहन गुप्ता के पक्ष में फैसला नहीं होने देंगे । बीके त्रिखा की इस बात को मानने में कोई समस्या इसलिए भी पैदा नहीं हुई क्योंकि रोटरी क्लब मेरठ कैंट का पहले से ही योगेश मोहन गुप्ता के साथ विरोध का रिश्ता बना हुआ है । कुछेक वर्ष पहले क्लब में योगेश मोहन गुप्ता का बायकाट करने का फैसला हुआ था, जिसे बदलवाने या ख़त्म करवाने के लिए न तो योगेश मोहन गुप्ता ने कभी कोई प्रयास किया और न क्लब के हर वर्ष आने वाले पदाधिकारियों ने ही उस फैसले को बदलने या ख़त्म करने की जरूरत समझी । ऐसे में, सीओएल के लिए ललित मोहन गुप्ता के पक्ष में फैसला करने में क्लब के पदाधिकारियों को जरा भी देर नहीं लगी ।
रोटरी क्लब मेरठ कैंट चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी का क्लब है, जिस कारण इसका महत्व कुछ बढ़ जाता है; इसलिए इसका ललित मोहन गुप्ता के पक्ष में जाने का फैसला डिस्ट्रिक्ट के दूसरे क्लब्स को भावनात्मक स्तर पर प्रभावित कर सकता है - इस संभावना को भाँप कर योगेश मोहन गुप्ता ने पैसे लेकर फैसला करने का आरोप लगा कर क्लब को बदनाम करना शुरू कर दिया । योगेश मोहन गुप्ता ने इस लपेटे में संजीव रस्तोगी को भी ले लिया । संजीव रस्तोगी से यूँ तो उनके संबंध ख़राब ही रहे हैं, लेकिन अभी पिछले दिनों रोटरी के एक कार्यक्रम के सिलसिले में वह और संजीव रस्तोगी साथ-साथ हैदराबाद गए थे और वहाँ एक ही कमरे में रहे थे और इस दौरान उनकी संजीव रस्तोगी के साथ चूँकि मीठी-मीठी बातें ही हुईं थीं, इसलिए उन्होंने मान लिया था कि संजीव रस्तोगी पुराने बैर को भूल गए हैं । लेकिन उनके क्लब के फैसले के ललित मोहन गुप्ता के पक्ष में आने से योगेश मोहन गुप्ता को दिन में तारे नजर आ गए । यह ठीक है कि क्लब की उस बोर्ड मीटिंग में संजीव रस्तोगी उपस्थित नहीं थे, लेकिन योगेश मोहन गुप्ता को विश्वास है कि संजीव रस्तोगी यदि दिलचस्पी लेते तो उनके क्लब का फैसला ललित मोहन गुप्ता के पक्ष में नहीं होता । इसी विश्वास के चलते योगेश मोहन गुप्ता को रोटरी क्लब मेरठ कैंट के ललित मोहन गुप्ता के पक्ष में जाने के फैसले में संजीव रस्तोगी की मिलीभगत दिखती है । इस मिलीभगत में योगेश मोहन गुप्ता अपने लिए बड़ा खतरा देख रहे हैं । उनका ऐसा देखना मौजूँ भी है - आने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के ललित मोहन गुप्ता के समर्थन में होने के संकेत मिलें, तो प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार के रूप में योगश मोहन गुप्ता के लिए खतरे की बात तो है । योगेश मोहन गुप्ता ने इस खतरे को दूर करने के लिए संजीव रस्तोगी के बारे में भी विरोध के खुले तेवर अपना लिए हैं ।
योगेश मोहन गुप्ता को लेकिन सबसे तगड़ा झटका राकेश रस्तोगी से लगा है और इस झटके का किस्सा तो बहुत ही मजेदार है । बीके त्रिखा ने, रोटरी क्लब मेरठ कैंट ने और संजीव रस्तोगी ने जो किया उसे तो फिर भी इस तर्क से देखा जा सकता है कि इनका योगेश मोहन गुप्ता के साथ पहले से ही विरोध का संबंध रहा है और इसलिए इन्होँने यदि योगेश मोहन गुप्ता के विरोध में खड़े होने का फैसला किया तो यह बहुत स्वाभाविक ही है । लेकिन राकेश रस्तोगी ? योगेश मोहन गुप्ता को सपने में भी शक नहीं था कि राकेश रस्तोगी ऐसा करेंगे ? मजे की बात यह है कि राकेश रस्तोगी ने जो कुछ किया है उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे लेकर योगेश मोहन गुप्ता को भड़कने की जरूरत पड़े । राकेश रस्तोगी ने दो काम किए : पहला काम उन्होंने यह किया कि सीओएल के चुनाव के संदर्भ में बनी ऑब्जर्वर्स कमेटी की पहली मीटिंग शुरू होने से कुछ ही पहले उन्होंने योगेश मोहन गुप्ता को ईमेल किया जिसमें उन्होंने योगेश मोहन गुप्ता के गवर्नर काल की क्लोजिंग सेरेमनी के आयोजन में खर्च हुए अपने करीब 27 हजार रुपयों के भुगतान की मांग की । यह रकम करीब पाँच वर्ष पहले खर्च हुई थी । राकेश रस्तोगी का कहना है कि यह रकम उन्होंने योगेश मोहन गुप्ता से मिले इस आश्वासन के चलते ही खर्च की थी कि इसका भुगतान उन्हें मिल जायेगा; लेकिन पिछले पाँच वर्षों में कई बार याद दिलाने के बावजूद योगेश मोहन गुप्ता ने इस रकम का भुगतान उन्हें नहीं किया और वह यह मान बैठे थे कि यह रकम तो उनकी डूब ही गई है । किंतु डूबी हुई यह रकम उन्हें अबकी बार के प्रयास में तुरंत मिल गई । योगेश मोहन गुप्ता ने दरअसल मौके की नजाकत को पहचाना, और जो रकम वह तरह तरह की बहानेबाजी करते हुए देने से बचते आ रहे थे - उसे उन्होंने राकेश रस्तोगी का ईमेल मिलते ही दे देने में अपनी भलाई समझी ।
राकेश रस्तोगी से मिले इस झटके को तो योगेश मोहन गुप्ता ने झेल लिया, लेकिन राकेश रस्तोगी से उन्हें जो दूसरा झटका मिला उसने उनके होश उड़ा दिए । दरअसल, योगेश मोहन गुप्ता को पता चला कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने दो क्लब्स को डुप्लीकेट बैलेट दे दिए हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने इसके पीछे कारण बताया कि एक क्लब का बैलेट कपड़ों के साथ धूल गया था, और दूसरे के बैलेट पर स्याही गिर गई थी । इस पर सवाल लेकिन यह पैदा हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पास अतिरिक्त बैलेट आये कहाँ से ? तब पता चला कि ऑब्जर्वर्स ने कुछेक अतिरिक्त बैलेट पर हस्ताक्षर करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को दिए हुए हैं । इस बात से योगेश मोहन गुप्ता के होश इसलिए उड़े कि यह बात राकेश रस्तोगी ने उन्हें पहले से क्यों नहीं बताई । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि राकेश रस्तोगी ऑब्जर्वर्स कमेटी में योगेश मोहन गुप्ता के प्रतिनिधि के तौर पर ही हैं; और उनका नाम देते/भेजते हुए योगेश मोहन गुप्ता ने उम्मीद की थी कि उन्हें अंदर की ख़बरें मिलती रहेंगी । राकेश रस्तोगी से लेकिन यह अंदर की खबर उन्हें नहीं मिली - इस बात को योगेश मोहन गुप्ता ने राकेश रस्तोगी द्धारा उनसे पैसे बसूलने के तरीके से जोड़ कर देखा और यह नतीजा निकाला कि राकेश रस्तोगी 'बिक' गए हैं । राकेश रस्तोगी को चूँकि संजीव रस्तोगी के निकट देखा/पहचाना जाता है इसलिए योगेश मोहन गुप्ता को अपना शक सच्चाई में बदलता हुआ भी लगा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश रस्तोगी ने हालाँकि यह स्पष्ट किया है कि अतिरिक्त बैलेट का रिकॉर्ड बना हुआ है और उनका दुरूपयोग होने की कोई संभावना नहीं है, लेकिन योगेश मोहन गुप्ता अतिरिक्त बैलेट को अपने खिलाफ एक षड्यंत्र के रूप में व्याख्यायित करते हुए भारी रोना-धोना मचाये हुए हैं ।
योगेश मोहन गुप्ता ने इस षड्यंत्र में सहभागी होने को लेकर राकेश रस्तोगी के खिलाफ पूरा मोर्चा खोला हुआ है । कुछेक लोगों को हालाँकि लगता है कि राकेश रस्तोगी ने अपने पैसे बसूलने के लिए जो तरीका अपनाया, वह मौके का फायदा उठाने की बदनीयती का सुबूत है; लेकिन कई अन्य लोग इस बिना पर राकेश रस्तोगी के तरीके को ठीक मान रहे हैं कि जब सीधी ऊँगली से घी न निकले तो ऊँगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है । इनका कहना है कि योगेश मोहन गुप्ता की जब तक चल रही थी, वह राकेश रस्तोगी का पैसा देने से बच रहे थे; इसलिए जब राकेश रस्तोगी को मौका मिला तो उन्होंने अपनी चला ली और अपना पैसा बसूल कर लिया - इसमें गलत क्या किया ? इस तरह की बातें होने से योगेश मोहन गुप्ता की मुश्किलें इसलिए बढ़ गईं हैं क्योंकि उनके दुर्व्यवहार तथा पैसों संबंधी शिकायतों के शिकार लोग अब खुल कर बोलने लगे हैं और इन बातों से उन्हें अपने चुनाव पर प्रतिकूल असर पड़ता दिख रहा है । योगेश मोहन गुप्ता को डर हुआ है कि इस तरह की बातें यदि बढ़ीं तो वह जीतता दिख रहा चुनाव कहीं हार न जाएँ । हार की इस आशंका के चलते ही योगेश मोहन गुप्ता बुरी तरह बौखला गए हैं और इस बौखलाहट में वह अपने विरोधियों को आरोपों के घेरे में लेने की रणनीति पर काम कर रहे हैं ।

Sunday, April 6, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में लायनिज्म के लिए और डिस्ट्रिक्ट के लिए कभी भी कुछ भी करने में दिलचस्पी न लेने वाले नरेश गुप्ता ने शान ट्रेवल्स से लाभ लेने के लिए लोगों को टोरंटो चलने के लिए प्रेरित करने के काम में जी-जान लगाया हुआ है क्या ?

नई दिल्ली । नरेश गुप्ता ने 'चलो टोरंटो' 'चलो टोरंटो' 'चलो टोरंटो' का जो नारा लगाया हुआ है, उसने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को हैरान और शान ट्रेवल्स वालों को बुरी तरह परेशान किया हुआ है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के लिए हैरानी का कारण यह है कि जिन नरेश गुप्ता ने लायनिज्म के काम में और डिस्ट्रिक्ट के काम में कभी कोई दिलचस्पी नहीं ली, वह अचानक से टोरंटो में हो रही इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस को लेकर इतने उत्साहित कैसे और क्यों हो गए कि लोगों को टोरंटो चलने के लिए प्रेरित करने के काम में जोर शोर से जुट गए हैं । डिस्ट्रिक्ट के लोगों की इस हैरानी का जबाव लेकिन शान ट्रेवल्स की परेशानी में छिपा है । शान ट्रेवल्स के लोगों ने इधर-उधर नरेश गुप्ता के रवैये को लेकर जिस तरह का रोना रोया है, उससे पता चलता है कि नरेश गुप्ता ने टोरंटो के लिए ज्यादा से ज्यादा फ्री टिकट के लिए शान ट्रेवल्स पर दबाव बनाया हुआ है, और नरेश गुप्ता की लगातार बढ़ती हुई माँग ने शान ट्रेवल्स वालों को परेशान कर दिया है । उल्लेखनीय है कि शान ट्रेवल्स टोरंटो के लिए अधिकृत ट्रेवल एजेंट है और टिकट बुक कराने से लेकर टोरंटो में रहने/घूमने की व्यवस्था कराने का काम उसी को दिया गया है । नरेश गुप्ता ने 'टोरंटो चलो' के अपने अभियान में भी शान ट्रेवल्स का नाम लिया है ।
यह एक जानी/पहचानी बात है कि कोई भी ट्रेवल एजेंसी ग्रुप बुकिंग में बुकिंग के 'नेता' को कई तरह की 'सुविधाएँ' देती हैं । शान ट्रेवल्स भी इस 'रिवाज' का पालन करती है । इस रिवाज का पालन करते हुए भी कई बार उसे लायन लीडर्स के कई अनुचित दबावों को भी झेलना पड़ता है और इसके चलते कई बार मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं के खुले विरोध का भी उसे सामना करना पड़ा है । अच्छे-बुरे अनुभवों के बीच शान ट्रेवल्स के कर्ता-धर्ता लेकिन लायन लीडर्स को झेलते रहे हैं और नाराजगी 'दिखाने' वाले नेताओं को मनाने में सफल होते रहे हैं । लेकिन शान ट्रेवल्स के लोग आजकल इधर-उधर जो रोना मचाये हुए हैं उससे लग रहा है कि नरेश गुप्ता उनके लिए खासे टफ साबित हो रहे हैं । शान ट्रेवल्स के लोग इस बात से ज्यादा परेशान हैं कि नरेश गुप्ता की माँगे रोज बढ़ती ही जा रही है । शान ट्रेवल्स के लोगों को पहला झटका तब लगा जब 'रिवाज' के अनुसार मिलने वाली सुविधाएँ लेने के बाद नरेश गुप्ता ने 'नरेश अग्रवाल कैम्पेन' के लिए मोटी रकम देने की माँग की । नरेश गुप्ता ने उनसे साफ कहा कि मल्टीपल काउंसिल की मीटिंग में जब गवर्नर्स  से 'नरेश अग्रवाल कैम्पेन' के लिए फंड जुटाने में सहयोग करने की बात कही गई थी और सभी गवर्नर्स उसमें अपनी तरफ से रकम देने की घोषणा कर रहे थे, तब उन्होंने भी लाख/डेढ़ लाख रुपये उस फंड में देने की घोषणा कर दी थी, जिसकी व्यवस्था शान ट्रेवल्स को करनी ही होगी । शान ट्रेवल्स के लोगों ने पहले तो नरेश गुप्ता की इन अनपेक्षित डिमांड से बचने की कोशिश की, लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि इससे बचना आसान नहीं होगा, सो उन्होंने नरेश गुप्ता की इस डिमांड को मान लिया ।
शान ट्रेवल्स के लिए लेकिन नरेश गुप्ता की इस माँग को मान लेने के बाद मुसीबत कम होने की बजाये बढ़ और गई । नरेश गुप्ता इसके बाद अपने समर्थक पूर्व गवर्नर्स के लिए मुफ्त टिकट/पैकेज की माँग करने लगे । नरेश गुप्ता का तर्क रहा कि उनके प्रयत्नों से शान ट्रेवल्स को डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में अच्छा बिजनेस मिल रहा है और इसलिए बिजनेस के 'अनुपात' में उन्हें मुफ्त टिकट/पैकेज मिलने चाहिए । शान ट्रेवल्स के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में उन्हें जो बिजनेस मिला है वह कुछेक दूसरे लोगों के कारण भी मिला है, और उसका 'लाभ' उन्हें उन दूसरे लोगों को देना पड़ रहा है । उल्लेखनीय है कि शान ट्रेवल्स के लोग लायन लोगों को टूर कराने के धंधे के पुराने खिलाड़ी हैं । उन्होंने बिजनेस जुटाने के अपने स्वतंत्र जुगाड़ कर लिए हैं और बिजनेस के लिए वह 'होने वाले' गवर्नर पर निर्भर नहीं करते हैं । नरेश गुप्ता का लेकिन कहना है कि अपने डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के लोगों के बीच 'टोरंटो चलो' का उन्होंने जो अभियान छेड़ा हुआ है उसके कारण ही शान ट्रेवल्स को उनके डिस्ट्रिक्ट से बिजनेस मिल रहा है और इसलिए इस डिस्ट्रिक्ट से मिलने वाले बिजनेस का सारा 'लाभ' उन्हें ही मिलना चाहिए ।
नरेश गुप्ता का यह तर्क - और इस तर्क के सहारे की जा रही नरेश गुप्ता की हार्ड बारगेनिंग शान ट्रेवल्स वालों के लिए भारी मुसीबत बन गई है । शान ट्रेवल्स वालों के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि नरेश गुप्ता को आगे करके उनसे 'लाभ' लेने का यह काम डिस्ट्रिक्ट के कुछेक ऐसे पूर्व गवर्नर्स कर रहे हैं जिन्हें शान ट्रेवल्स वाले पिछले वर्षों में तरह-तरह से उपकृत करते रहे हैं । इस कारण से शान ट्रेवल्स वाले नरेश गुप्ता के समर्थक गवर्नर्स से कोई मदद भी नहीं ले सकते हैं, क्योंकि जिनसे वह मदद की उम्मीद कर सकते हैं, उन्हें ही नरेश गुप्ता की बढ़ती डिमांड से वह लाभान्वित होते हुए 'देख' रहे हैं । नरेश गुप्ता की ज्यादा से ज्यादा लाभ लेने की कोशिशों का शान ट्रेवल्स वालों ने इधर-उधर जो रोना रोया, उससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों को अपनी इस हैरानी का जबाव भी मिल गया है कि लायनिज्म के लिए और डिस्ट्रिक्ट के लिए कुछ भी करने में दिलचस्पी न लेने वाले नरेश गुप्ता आखिर लोगों को टोरंटो चलने के लिए प्रेरित करने के काम में जी-जान क्यों लगाये हुए हैं ?    


Saturday, April 5, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में राजीव वशिष्ट को अपनी चुनावी तैयारी में शामिल करने की दीपक गुप्ता की कोशिश से जेके गौड़ बुरी तरह भड़के हैं

गाजियाबाद । दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के संदर्भ में राजीव वशिष्ट के साथ डिस्ट्रिक्ट के कुछेक बड़े नेताओं के यहाँ जाने पर जेके गौड़ की खीज और आलोचना का शिकार होना पड़ा है । जेके गौड़ ने कुछेक लोगों के बीच उलाहना दिया कि दीपक गुप्ता अब राजीव वशिष्ट के भरोसे अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटायेंगे क्या ? जिन लोगों के बीच जेके गौड़ ने अपनी यह खीज निकाली, उनके लिए यह समझना हालाँकि मुश्किल हुआ कि जेके गौड़ इस संदर्भ में ज्यादा नाराज दीपक गुप्ता से हैं या राजीव वशिष्ट से - और या दोनों से ? मोटे तौर पर यही समझा गया कि कुल मिलाकर वह दोनों से ही नाराज हैं । जेके गौड़ के नजदीकियों के अनुसार, जेके गौड़ को दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से इसलिए नाराजगी है क्योंकि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के कारण उनके पास ज्यादा राजनीति करने का मौका ही नहीं बचेगा - और न उन्हें 'अपने' बॉस लोगों की 'राजनीतिक सेवा' करने का अवसर मिलेगा । दीपक गुप्ता ने अपनी चुनावी तैयारी में राजीव वशिष्ट की मदद लेकर जेके गौड़ के इस आकलन और डर को सच भी साबित कर दिया है । दरअसल, इसीलिए राजीव वशिष्ट को अपनी चुनावी तैयारी में शामिल करने की दीपक गुप्ता की कोशिश से जेके गौड़ बुरी तरह भड़के हुए हैं ।
जेके गौड़ ने जिन लोगों को अपना यह भड़कना दिखाया, उनका कहना है कि जेके गौड़ अपनी उम्मीदवारी के दिनों को लगता है कि भूल गए हैं - जब मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल जैसे लोग उन्हें हतोत्साहित तथा लगभग अपमानित करते थे; और जब वह अपनी उम्मीदवारी की मदद के लिए राजीव वशिष्ट तथा उनके जैसे ही दूसरे लोगों की मदद पर निर्भर करते थे । जीतने के बाद जेके गौड़ को मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल अपने लगने लगे और राजीव वशिष्ट जैसे लोग उनके लिए पराये जैसे हो गए हैं - तो यह जेके गौड़ का शुद्ध अवसरवाद ही है । जेके गौड़ ने अपनी उम्मीदवारी के दिनों में जब राजीव वशिष्ट की कई कई मौकों पर मदद ली थी, तो अब वह इस बात पर क्यों भड़क रहे हैं कि उन्हीं राजीव वशिष्ट की मदद अब दीपक गुप्ता ले रहे हैं ?
जेके गौड़ का यह भड़कना शायद इसलिए हो कि उन्हें लगता है कि उनके होते हुए दीपक गुप्ता को राजीव वशिष्ट की मदद लेने की भला क्या जरूरत है ? उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ ने सार्वजानिक रूप से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में रहने की घोषणा की हुई है । दूसरे लोगों को भले ही लगता हो कि जेके गौड़ अपने 'राजनीतिक-बॉस' लोगों की 'नौकरी' ही करेंगे, लेकिन जेके गौड़ का खुद का कहना है कि वह गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश के लोगों के साथ रहेंगे और इस नाते से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में रहेंगे । जेके गौड़ के इतना साफ साफ कहने के बाद भी कई लोगों को उनकी बातों पर विश्वास नहीं है । डिस्ट्रिक्ट में पिछले दिनों सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ ने जिस तरह से अपना दोगला चरित्र दिखाया, उसके बाद उनकी कही हुई बात पर विश्वास करना लोगों के लिए मुश्किल हुआ है । उल्लेखनीय है कि सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ ने दावा तो किया था कि वह किसी के पक्ष में नहीं हैं; उमेश चोपड़ा के साथ तो उन्होंने यहाँ तक ऐलान कर दिया था कि यदि कोई कह दे कि उन्होंने रमेश अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश की है तो वह रोटरी छोड़ देंगे । लेकिन लगातार यह सूचनाएँ भी मिलती रही थीं कि जेके गौड़ कैसे क्लब के लोगों पर दबाव बना कर रमेश अग्रवाल के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने की मुहिम में लगे रहे और कैसे उन्होंने अपने स्टॉफ के लोगों को भेज भेज कर कॉन्करेंस इकठ्ठा की हैं । जेके गौड़ की इस धोखाधड़ी वाली भूमिका ने उनकी ऐसी कुख्याति बना दी है कि उनकी बातों पर लोगों के लिए विश्वास करना आसान नहीं रह गया है ।
इसीलिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को उनके समर्थन देने/करने की घोषणा को भी संदेह के साथ देखा/पहचाना जा रहा है । 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए जेके गौड़ ने खुद ही, राजीव वशिष्ट पर दीपक गुप्ता की निर्भरता को अपने प्रति अविश्वास के रूप में ही देखा/पहचाना हो शायद; और इसीलिए वह राजीव वशिष्ट को लेकर अभियान पर निकलने की दीपक गुप्ता की कार्रवाई से भड़के हैं । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले लोगों को लगता भी है कि दीपक गुप्ता को जेके गौड़ के प्रति सावधान रहने की जरूरत है - उन्हें जेके गौड़ का समर्थन लेने का भी प्रयास करना चाहिए और उन पर पूरी तरह भरोसा करने से भी बचना चाहिए । यह हालाँकि एक सामान्य-सी 'समझ' ही है और इसमें जेके गौड़ के लिए कोई नकारात्मक भाव नहीं है; लेकिन जैसा कि कहा/माना जाता है कि व्यक्ति किसी के कहने या न कहने से नहीं, बल्कि अपने ही अपराधबोध से ज्यादा पीड़ित होता है । जेके गौड़ की कारस्तानियाँ क्या रही हैं, यह दूसरे लोग तो कम जानते होंगे - खुद जेके गौड़ ज्यादा जानते होंगे; व्यक्ति दूसरों से तो झूठ बोल सकता है, लेकिन अपने आप से नहीं बोल सकता । इसीलिए माना/समझा जा सकता है कि राजीव वशिष्ट से दीपक गुप्ता के मदद लेने पर जेके गौड़ के बौखलाने के पीछे उनका अपराधबोध ही कारण रहा होगा, अन्यथा इस बात पर बौखलाने का तो कोई कारण नहीं बनता/दिखता है ।
जो भी हो, जेके गौड़ की इस बौखलाहट ने दीपक गुप्ता के सामने अपने समर्थकों तथा संभावित समर्थकों के बीच सामंजस्य और तालमेल बैठाने की चुनौती तो पैदा कर ही दी है ।

Friday, April 4, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को मजबूती और बढ़त पाता देख शिव कुमार चौधरी को अपनी उम्मीदवारी की कमान मुकेश गोयल को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा है

गाजियाबाद/देहरादून । अवतार कृष्ण ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु अपनी जिस तरह की सक्रियता दिखाई है, उसने विरोधी खेमे में तो खासी हलचल मचा ही दी है - साथ ही अपने समर्थकों व शुभचिंतकों को भी चकित किया है । यह दरअसल इसलिए हुआ क्योंकि किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि अवतार कृष्ण अपनी उम्मीदवारी को लेकर इतनी और इस तरह की सक्रियता दिखा पायेंगे । पिछले वर्षों में जब-जब, और इस वर्ष भी जब उनकी उम्मीदवारी की बात चली तो किसी ने भी उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं लिया । दरअसल हर किसी का यही मानना रहा कि अवतार कृष्ण के लिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में काम कर पाना संभव ही नहीं होगा और इसलिए उनकी उम्मीदवारी की बात चाहें जितनी चले, वह सचमुच में उम्मीदवार हो नहीं पायेंगे और यदि हो गये तो एक उम्मीदवार के रूप में काम नहीं कर पायेंगे । अवतार कृष्ण ने लेकिन इन सारी अवधारणाओं को गलत साबित कर दिया है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में अवतार कृष्ण ने जिस रणनीति के साथ अपना अभियान संयोजित किया है, उसने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे उम्मीदवार शिव कुमार चौधरी के लिए मुकाबले को खासा मुश्किल बना दिया है ।
मुश्किल बने मुकाबले में बने रहने के लिए शिव कुमार चौधरी को अपनी रणनीति में बड़े फेरबदल करने के लिए मजबूर होना पड़ा है । इस मजबूरी में ही उन्हें गाजियाबाद और मेरठ में स्नेह मिलन करने पड़ रहे हैं । उल्लेखनीय है कि गाजियाबाद में पार्टी करने को लेकर शिव कुमार चौधरी पर एक तरफ कुंजबिहारी अग्रवाल का दबाव था तो दूसरी तरफ से मुकेश गोयल का दावा था - इस दबाव और दावे से बचने के लिए ही उन्हें दो बार पूरी तैयारी कर लेने के बावजूद मीटिंग को पहले स्थगित और फिर रद्द करना पड़ा था । इस दबाव और दावे से बचने के लिए ही शिव कुमार चौधरी की तरफ से फार्मूला यह निकाला गया कि वह गाजियाबाद में मीटिंग करेंगे ही नहीं । उनकी तरफ से तर्क दिया गया कि चूँकि गाजियाबाद में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस हो ही रही है, इसलिए गाजियाबाद के लोगों को एंटरटेन करने का काम वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के दौरान ही कर लेंगे । कुंजबिहारी अग्रवाल और मुकेश गोयल की तरफ से बने दबाव से बचने का फार्मूला तो शिव कुमार चौधरी ने निकाल और अपना लिया; लेकिन अवतार कृष्ण की सक्रियता के कारण जो दबाव बना उससे बचने के लिए उन्हें गाजियाबाद में पार्टी करने का फैसला करने के लिए मजबूर होना ही पड़ा है । सिर्फ इतना ही नहीं, यह अवतार कृष्ण की सक्रियता के कारण बने दबाव का ही परिणाम है कि शिव कुमार चौधरी को मेरठ में दोबारा पार्टी करने का फैसला लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है । उल्लेखनीय है कि मेरठ में उन्होंने अभी हाल ही में पार्टी की थी, लेकिन फिर भी वह एक बार और मेरठ में पार्टी करने का फैसला करने के लिए मजबूर हुए हैं ।
यह सब दरअसल इसलिए हो रहा है क्योंकि इस बीच अवतार कृष्ण ने अपनी सक्रियता से लोगों के बीच अच्छी पैठ बना ली और शिव कुमार चौधरी के लिए आसान दिख रहा चुनाव खासा मुश्किल हो गया । असल में, शिव कुमार चौधरी अभी तक कुंजबिहारी अग्रवाल के कहने में ज्यादा थे, और मुकेश गोयल को लगातार इग्नोर कर रहे थे । इग्नोर किये जाने के कारण मुकेश गोयल भी चुपचाप बैठे थे और शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के पक्ष में होने के बावजूद उनके लिए कुछ करते हुए नहीं दिख रहे थे । इससे मुकेश गोयल के समर्थकों के बीच शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के प्रति शंका और आशंका का भाव पैदा हुआ । अवतार कृष्ण और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने इसी स्थिति का लाभ उठाया और मुकेश गोयल के समर्थकों के बीच अपनी पैठ बनाना शुरू की । इस काम में उन्हें आशातीत सफलता मिली । इस सफलता ने अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को मजबूती भी दी और बढ़त भी दी । शिव कुमार चौधरी ने अवतार कृष्ण की इस सफलता और बढ़त को पहचानने में देर नहीं की और तुरंत ही मुकेश गोयल को शरणागत हुए । मुकेश गोयल जैसे इसी का इंतजार कर रहे थे । उन्होंने आनन-फानन में मुरादाबाद, गाजियाबाद, हापुर, मेरठ आदि में स्नेह मिलन करने की तैयारी करने के आदेश दे दिए । शिव कुमार चौधरी ने भी अभी तो मुकेश गोयल के इस आदेश का पालन करने में अपनी भलाई देखी है । उन्हें लग रहा है कि इसी तरीके से वह अवतार कृष्ण द्धारा प्रस्तुत की गई चुनौती से निपट सकते हैं ।
अवतार कृष्ण द्धारा प्रस्तुत की गई चुनौती से इस तरीके से शिव कुमार चौधरी सचमुच निपट सकेंगे या नहीं, यह हालाँकि अभी देखने की बात होगी । देखने की बात दरअसल यह होगी कि मुकेश गोयल के दिशा-निर्देशन में होने वाले मुरादाबाद, गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ के स्नेह मिलनों के प्रति कुंजबिहारी एंड टीम का क्या रवैया रहता है । एक संभावना यह देखी जा रही है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस से ठीक पहले हो रहे इन स्नेह मिलनों के आयोजन से शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी की बागडोर मुकेश गोयल के हाथ में जाने का जो संकेत लोगों के बीच जा रहा है, उससे कुंजबिहारी अग्रवाल एंड टीम बिदकेगी ही - और तब देखने की बात यह होगी कि शिव कुमार चौधरी उन्हें खुश करने के लिए क्या करते हैं ? देखने की यह बात इसलिए और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि अवतार कृष्ण और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने हर स्थिति का लाभ उठाने की तैयारी की हुई है ।

Thursday, April 3, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के लिए लोगों के न मिलने की बात को छिपाने के लिए ही नरेश गुप्ता ने यह शगूफा छोड़ा है कि वह अपनी कैबिनेट अभी नहीं बनायेंगे, बाद में विक्रम शर्मा को जितवाने के लिए पक्के वाले समर्थकों को लेकर बनायेंगे

नई दिल्ली । नरेश गुप्ता ने लगता है कि अपना, डिस्ट्रिक्ट का और लायनिज्म का नाम ख़राब करने का दृढ़ निश्चय और पक्का इरादा कर लिया है; और इसीलिए पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को निशाने पर लेने के बाद उन्होंने अब अभी हाल ही में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जीते आरके शाह को निशाने पर ले लिया है । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के खिलाफ लायंस इंटरनेशनल में हुई शिकायत के पक्ष में उनके हलफनामा देने से पैदा हुआ विवाद अभी थमा भी नहीं है कि उन्होंने आरके शाह को हराने का संकल्प व्यक्त कर दिया है ।
कहाँ हराने का ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की कुर्सी सँभालने की तैयारी कर रहे नरेश गुप्ता का कहना है कि इस बार हुई डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खिलाफ लायंस इंटरनेशनल में जो शिकायत हुई है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस और उसमें हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को अमान्य घोषित होना ही है; और इस तरह से आरके शाह और विक्रम शर्मा के बीच दोबारा चुनाव होगा । नरेश गुप्ता की खुली घोषणा है कि दोबारा होने वाले चुनाव में वह ऐसी व्यूह रचना करेंगे कि जीत विक्रम शर्मा को ही मिलेगी । नरेश गुप्ता अपनी इस घोषणा को लेकर इतने उत्साहित हैं कि विक्रम शर्मा को जितवाने वाली अपनी व्यूह रचना का भी उन्होंने खुलासा कर दिया है । नरेश गुप्ता ने ऐलान किया है कि वह अपनी कैबिनेट अभी नहीं बनायेंगे; डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस और उसमें हुए चुनाव के निरस्त किये जाने के लायंस इंटरनेशनल के फैसले के आने के बाद बनायेंगे, और तब अपनी कैबिनेट में वह ऐसे लोगों को लेंगे जो उनके कहने के अनुसार विक्रम शर्मा को वोट देने को राजी होंगे । नरेश गुप्ता का मानना और कहना है कि आरके शाह और विक्रम शर्मा के बीच जब दोबारा चुनाव की नौबत आयेगी, तब वोट देने का अधिकार अधिकृत कैबिनेट सदस्यों को ही होगा; इसलिए अपने पक्के समर्थकों वाले लोगों की कैबिनेट बना कर वह विक्रम शर्मा के लिए वोट इकट्ठे कर लेंगे ।
नरेश गुप्ता लगता है कि आजकल टेलीविजन पर रोज प्रसारित हो रहे 'महाभारत' सीरियल को देख रहे हैं और उसमें मामा शकुनि के तीन-तिकड़म वाले व्यवहार से बड़े प्रभावित हो रहे हैं; और या उन्हें मामा शकुनि टाइप का कोई सलाहकार मिल गया है, जो उन्हें तरह-तरह की योजनाएँ बताता/सिखाता रहता है । अब नरेश गुप्ता से कोई पूछे कि जब उन्हें विश्वास है कि लायंस इंटरनेशनल से फैसला डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस और उसमें हुए चुनाव के खिलाफ ही आयेगा, चुनाव दोबारा होगा, उनकी कैबिनेट के सदस्यों के द्धारा होगा, और जिसे अपनी कैबिनेट में पक्के वाले अपने समर्थकों को रख कर वह जीत लेंगे - तो फिर अपने पक्के वाले समर्थकों को लेकर अपनी कैबिनेट का गठन वह अभी ही क्यों नहीं कर ले रहे हैं, और क्यों अपनी कैबिनेट के गठन को वह टाल रहे हैं ?
जाहिर है कि उद्देश्य वह नहीं है, जो वह बता रहे हैं - उद्देश्य कुछ और है ! समझा जा रहा है कि उनके मामा शकुनि टाइप के सलाहकारों ने उन्हें पट्टी पढ़ाई है कि इस हथकंडे से वह तीन लाभ एक साथ उठा सकते हैं : पहला लाभ यह कि इस 'बात' से वह विक्रम शर्मा को भरमाये रख सकते हैं और उनसे कुछ और पैसे ऐंठ सकते हैं; दूसरा लाभ यह कि इस 'बात' से आरके शाह डरेंगे और डरे हुए आरके शाह की जेब भी ढीली करवाई जा सकती है; तीसरा लाभ यह होगा कि कैबिनेट में आने/रहने की इच्छा रखने वाले लोगों को लगेगा कि उनका नंबर पता नहीं आयेगा या नहीं, और इस आशंका के चलते वह कैबिनेट में अपनी जगह पक्की करने के लिए नरेश गुप्ता के चक्कर लगायेंगे और कैबिनेट में जगह पाने के लिए मुँह-माँगी कीमत देने को तैयार हो जायेंगे । नरेश गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि नरेश गुप्ता को अपने गवर्नर-काल के लिए ऐसे लोग मिल ही नहीं रहे हैं जो पद पाने की ऐवज में उन्हें मोटी रकम देने को तैयार हों । नरेश गुप्ता के सामने समस्या दरअसल यह है कि मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने कैबिनेट सदस्यों से पैसे न लेकर एक ऐसी मिसाल कायम कर दी है कि उनके लिए अपनी कैबिनेट के भावी सदस्यों से पैसे लेना मुश्किल हो गया है । विजय शिरोहा से पहले गवर्नर रहे राकेश त्रेहन ने कैबिनेट सदस्यों से मोटी रकम ली थी, जिसके चलते राकेश त्रेहन को लोगों के बीच भारी बदनामी झेलनी पड़ी है । ऐसे में नरेश गुप्ता के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि वह किसे फॉलो करें - राकेश त्रेहन को या विजय शिरोहा को ?
नरेश गुप्ता के सामने समस्या लेकिन यह भी नहीं है; क्योंकि फॉलो तो उन्हें राकेश त्रेहन को ही करना है । उनकी समस्या वास्तव में यह है कि उन्हें कैबिनेट के लिए ऐसे लोग मिलें कैसे जो उन्हें कैबिनेट में जगह पाने के बदले में पैसे देने को तैयार हों । नरेश गुप्ता जिन लोगों के साथ हैं उनमें से अधिकतर तो ऐसे हैं जिनके लिए ऐसे लोगों की व्यवस्था कर पाना मुश्किल क्या, असंभव ही होगा । नरेश गुप्ता ने अपनी हरकतों और अपने व्यवहार से दूसरे खेमे के लोगों को अपने इतना खिलाफ कर लिया है कि वह इस मामले में उनकी मदद करेंगे नहीं । लिहाजा नरेश गुप्ता के लिए अपनी कैबिनेट के लिए लोगों के मिल सकने के लाले पड़ गए हैं । यह पोल खुल न जाये, इसलिए नरेश गुप्ता ने यह शगूफा छोड़ दिया है कि वह अपनी कैबिनेट अभी बनायेंगे ही नहीं, बाद में विक्रम शर्मा को जितवाने के लिए बनायेंगे । यहाँ फिर दोहराते हैं कि यदि सचमुच में उद्देश्य विक्रम शर्मा को जितवाने वाली कैबिनेट बनाने का है, तो वह कैबिनेट तो अभी भी बनाई जा सकती है । या अभी नरेश गुप्ता को यह समझ में नहीं आ रहा है कि उनके पक्के वाले समर्थक कौन कौन हैं ?
नरेश गुप्ता से ज्यादा अच्छी तरह इस बात को भला और कौन जान/समझ सकता है कि पक्के वाले समर्थकों की कैबिनेट बना कर भी किसी को गवर्नर नहीं चुनवाया/बनवाया जा सकता है । यदि ऐसा हो सकता होता तो अभी कैबिनेट बनाने की तैयारी नरेश गुप्ता की बजाये ओंकार सिंह रेनु कर रहे होते । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होते हुए राकेश त्रेहन ने सुभाष गुप्ता के निधन से खाली हुई जगह पर ओंकार सिंह रेनु को बैठाने की योजना बनाई थी; और इसके लिए उनकी कैबिनेट में उनके पक्के वाले समर्थक भी थे, और जो नहीं भी थे उन्हें अल्पमत में लाने के लिए नए कैबिनेट सदस्य बना लेने की उनकी पूरी तैयारी थी - लेकिन फिर भी वह ओंकार सिंह रेनु के लिए कुछ नहीं कर सके और नरेश गुप्ता को सुभाष गुप्ता के निधन से खाली हुई जगह मिली । जो काम राकेश त्रेहन नहीं कर सके, वह नरेश गुप्ता कर लेंगे - इस पर कौन विश्वास कर सकता है भला ? राकेश त्रेहन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होते हुए भी न ओंकार सिंह रेनु के लिए कुछ कर पाये और न सुरेश जिंदल के काम आ सके । इसीलिए सभी को लगता है कि विक्रम शर्मा को जितवाने के लिए बाद में कैबिनेट बनाने की नरेश गुप्ता की बात सिर्फ एक बहाना है और इसके जरिये वह दरअसल एक तरफ विक्रम शर्मा से, दूसरी तरफ आरके शाह से और तीसरी तरफ किसी भी कीमत पर कैबिनेट में जगह पाने की इच्छा रखने वाले लोगों से पैसे ऐंठने की तैयारी कर रहे हैं ।

Wednesday, April 2, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में जीओवी के निमंत्रण के जरिये रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल के डॉक्टर सुब्रमणियन ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि अबकी बार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह गंभीर हैं और पिछली बार वाली गलतियाँ नहीं दोहरायेंगे

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल की तरफ से लोगों को 'डिस्ट्रिक्ट लीडर्स' के संबोधन के साथ जीओवी का जो निमंत्रण मिल रहा है, उसमें डॉक्टर सुब्रमणियन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के प्रमोशन की महक लोगों को महसूस हो रही है । निमंत्रण पाये कुछेक लोगों ने इन पँक्तियों के लेखक से कहा भी कि रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल से उन्हें कभी कोई निमंत्रण नहीं मिला और न ही उनका रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल के लोगों से किसी भी तरह का कोई संबंध ही रहा है, लेकिन फिर भी उन्हें क्लब की जीओवी का निमंत्रण मिला है - जिससे वह यही समझ रहे हैं कि क्लब के पदाधिकारियों ने डॉक्टर सुब्रमणियन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु काम करना शुरू कर दिया है । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में जब डॉक्टर सुब्रमणियन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई थी, तब क्लब के पदाधिकारियों तथा दूसरे सदस्यों पर एक गंभीर आरोप यही लगा था कि उन्होंने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के पक्ष में कोई खास सक्रियता नहीं दिखाई थी । लगता है कि उसी आलोचना से सबक लेकर क्लब के लोगों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अगले रोटरी वर्ष में प्रस्तुत होने वाली डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के संदर्भ में अभी से कमर कसना शुरू कर दिया है ।
जीओवी में 'डिस्ट्रिक्ट लीडर्स' के संबोधन के साथ लोगों को आमंत्रित करने की योजना के साथ लगता है कि क्लब के लोगों ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने का काम शुरू कर दिया है । उल्लेखनीय है कि परसेप्शन के स्तर पर डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को लेकर लोगों के बीच खासा नकारात्मक प्रभाव है । अधिकतर लोगों को शक है कि डॉक्टर सुब्रमणियन के पास एक उम्मीदवार की 'जिम्मेदारियों' का निर्वाह करने का समय पता नहीं होगा या नहीं; और एक उम्मीदवार के 'रूप में' व्यवहार कर सकना उनके बस की बात होगी भी या नहीं ? डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को लेकर खासे उत्साहित दिख रहे क्लब के एक वरिष्ठ सदस्य मुनीश गौड़ ने समय की समस्या की बात का हालाँकि जोरदार तरीके से खंडन किया है । उनका तर्क है कि डॉक्टर सुब्रमणियन कोई ऐसे डॉक्टर नहीं हैं जिन्हें सुबह-शाम दुकान खोलनी पड़ती है; वह सर्जन हैं और उनका काम सुबह आठ/नौ बजे तक पूरा हो जाता है - उसके बाद उनके पास समय ही समय है । मुनीश गौड़ ने दावा किया कि समय की समस्या दूसरे उम्मीदवारों को हो तो हो, डॉक्टर सुब्रमणियन को बिलकुल नहीं है । मुनीश गौड़ ने भी लेकिन यह स्वीकार किया कि एक उम्मीदवार के 'रूप में' ढलने को लेकर डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ समस्या है; और पिछली बार इसी वजह से डॉक्टर सुब्रमणियन को मात खानी पड़ी थी । मुनीश गौड़ ने दावा तो किया है कि इस बार लेकिन इस समस्या को सुलझा लिया जायेगा, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के कई लोगों को लगता है कि इस समस्या को हल करना डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए एक बड़ी चुनौती होगी ।
डॉक्टर सुब्रमणियन को इस बार एक बड़ा फायदा यह मिलता दिख रहा है कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों के बीच समर्थन की सहमति बन रही है । इस सहमति के चलते ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल ने उन्हें अपने बड़े आयोजनों में महत्व की स्थितियों में जगह दी; जिन जगहों पर 'दिखने' के जरिये डॉक्टर सुब्रमणियन ने यह संदेश देने की कोशिश की कि एक जिम्मेदार रोटेरियंस के रूप में डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के बीच उनकी स्वीकार्यता है । हालाँकि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थन में बताये जा रहे कई प्रमुख लोग दीपक गुप्ता को उनसे ज्यादा व्यवहारिक उम्मीदवार के रूप में देखते हैं और दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन भी व्यक्त कर चुके हैं । लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का कहना है कि वह दीपक गुप्ता को इस बार अपनी उम्मीदवारी न प्रस्तुत करने के लिए राजी कर लेंगे । मजे की बात यह है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को जिन शरत जैन की उम्मीदवारी के खिलाफ तैयार किया जा रहा है, उन शरत जैन के समर्थक नेता भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को वापस करा देने/लेने के दावे कर रहे हैं । शरत जैन की उम्मीदवारी के पीछे जिस अरनेजा गिरोह को देखा/पहचाना जा रहा है, उस अरनेजा गिरोह के उत्तर प्रदेश के 'सेनापति' जेके गौड़ ने कुछेक लोगों को कहा/बताया है कि उन्होंने दीपक गुप्ता को अगले रोटरी वर्ष की बजाये उससे अगले रोटरी वर्ष में, यानि अपने गवर्नर-काल में उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए राजी कर लिया है । जेके गौड़ ने इस बारे में विश्वास दिलाने के लिए तर्क भी दिया है कि - इसीलिए तो दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में अब कुछ करते हुए नहीं दिख रहे हैं, जबकि कुछ दिन पहले तक वह काफी सक्रिय थे । दीपक गुप्ता ने हालाँकि अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने की बात अभी नहीं कही है । अभी तक वह यही कहते सुने गए हैं कि संजय खन्ना के गवर्नर-काल में वह तो उम्मीदवार होंगे ही ।
इस तरह के दावों/प्रतिदावों के बीच जो माहौल बन रहा है, उसमें गर्मी लाने का काम लेकिन रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल की तरफ से जीओवी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए भेजे/मिले निमंत्रण ने किया है । इस निमंत्रण के जरिये क्लब के लोगों ने और - जाहिर है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि अबकी बार अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह गंभीर हैं और पिछली बार वाली गलतियाँ नहीं दोहरायेंगे । देखना दिलचस्प होगा कि ऐसा वह कह ही रहे हैं, या सचमुच में कर भी सकते हैं ?