Sunday, July 29, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में जल्दी ही होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर जीएस धामा के क्लब से अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने एमएस जैन से सबंध सुधारने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन की कोशिशों में पलीता लगाया और उन्हें मुसीबत में फँसाया

मेरठ । मनीष शारदा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है । दरअसल दीपक जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए शशिकांत गोयल की उम्मीदवारी का समर्थन करने की तैयारी कर रहे थे, और ऐसा करके वह पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एमएस जैन की नाराजगी दूर करने का दाँव चल रहे थे । रोटरी क्लब मेरठ प्रभात के शशिकांत गोयल को एमएस जैन के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । एमएस जैन ने ही दीपक जैन को भी उम्मीदवारी के लिए प्रेरित किया था, और उनको जीत दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका दिलवाई थी; जीतने के बाद दीपक जैन ने लेकिन एमएस जैन को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका और उनकी अपेक्षाओं के मुताबिक उन्हें कोई पद या तवज्जो नहीं दी । दीपक जैन के रवैये से अपमानित महसूस करने वाले एमएस जैन डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़ गए । जल्दी ही होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए अपने क्लब के शशिकांत गोयल को उम्मीदवार बनवा कर एमएस जैन ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में वापस लौटने की कोशिश की, तो उनकी कोशिश को दीपक जैन का समर्थन मिलता नजर आया । दीपक जैन के नजदीकियों के अनुसार, शशिकांत गोयल की उम्मीदवारी का समर्थन करने के जरिये दीपक जैन ने वास्तव में एमएस जैन से संबंध सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाने का काम किया है । दीपक जैन को उम्मीद रही कि शशिकांत गोयल की उम्मीदवारी को वह समर्थन देंगे, तो एमएस जैन उनके प्रति पाली हुई नाराजगी को भूल जायेंगे और उनके कार्यों तथा फैसलों का समर्थन करने लगेंगे । मनीष शारदा की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने लेकिन एमएस जैन से सबंध सुधारने की दीपक जैन की कोशिशों में पलीता लगा दिया है ।
मनीष शारदा रोटरी क्लब मेरठ महान के सदस्य हैं, जो डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर जीएस धामा का क्लब है । इस नाते मनीष शारदा को विश्वास है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन का समर्थन उन्हें ही मिलेगा । मनीष शारदा को पक्का भरोसा है कि दीपक जैन के लिए जीएस धामा के क्लब के उम्मीदवार को छोड़ कर एमएस जैन के क्लब के उम्मीदवार का समर्थन करना किसी भी तरह से संभव नहीं होगा । दीपक जैन के नजदीकियों के अनुसार, मनीष शारदा का यह भरोसा सच भी है; मनीष शारदा की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने के बाद दीपक जैन सचमुच मुसीबत में फँस गए हैं और शशिकांत गोयल की उम्मीदवारी के समर्थन से वह पीछे हटते दिख रहे हैं । दूसरे लोगों को भी लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक जैन जिस तरह से नाकारा साबित हो रहे हैं, और डिस्ट्रिक्ट के सामान्य कामकाज तक या तो ठप पड़े हैं और या लेट-लतीफी का शिकार बने हुए हैं; वैसे में जीएस धामा तथा उनके क्लब के लोगों को भी नाराज करने का खतरा दीपक जैन नहीं उठायेंगे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में जो थोड़े से काम हुए भी हैं, वह जीएस धामा और उनके क्लब के लोगों की मदद से ही हो सकेंगे । अन्यथा दीपक जैन के गवर्नर-काल का हाल यह है कि लोगों को अभी तक यही नहीं पता है कि डिस्ट्रिक्ट टीम में कौन कौन प्रमुख पदाधिकारी है । क्लब्स के पदाधिकारियों की भी आधिकारिक सूची अभी तक लोगों को उपलब्ध नहीं हो सकी है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की क्लब्स के पदाधिकारियों के साथ होने वाली आधिकारिक मीटिंग (जीओवी) में कुछ पता न होने के कारण दीपक जैन प्रायः चुपचाप ही बैठने को मजबूर होते हैं, और मीटिंग में मौजूद कोई वरिष्ठ रोटेरियन ही जीओवी की औपचारिकता पूरी करता है । दीपक जैन दरअसल वोटों की खरीद-फरोख्त करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद तो पा गए हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद की जिम्मेदारी सँभालने की काबिलियत हासिल नहीं कर पाए हैं - और इसका खामियाजा डिस्ट्रिक्ट को भुगतना पड़ रहा है ।
ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को यह भी लग रहा है कि दीपक जैन का समर्थन शशिकांत गोयल को नहीं मिलेगा और मनीष शारदा को मिल जायेगा - तो क्या हो जायेगा ? अधिकतर लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक जैन जिस तरह से नाकारा साबित हो रहे हैं, उसे देखते हुए लगता नहीं है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में - किसी के पक्ष में कोई बेईमानी करने के अलावा - वह कोई राजनीतिक भूमिका सचमुच निभा भी पायेंगे । शशिकांत गोयल और मनीष शारदा, दोनों की ही समस्या यह है कि दोनों का ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ कोई परिचय नहीं है । उनके काम-काज की और उनकी क्षमताओं की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच कोई पहचान नहीं है; उनके लिए सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि दोनों के ही क्लब्स ने दीपक जैन और श्रीहरि गुप्ता के बीच हुए चुनाव में मेरठ के उम्मीदवार श्रीहरि गुप्ता की खिलाफत की थी, जिस कारण उनके लिए अब मेरठ में ही समर्थन जुटाना मुश्किल होगा । दोनों के मेरठ के होने के कारण दोनों एक-दूसरे को ही वोटों की चोट पहुँचायेंगे, वह बात अलग से है और 'कंगाली में आटे के गीले' होने की कहावत को चरितार्थ करती है - जिसका फायदा तीसरे उम्मीदवार के रूप में रोटरी क्लब मुरादाबाद ब्राइट की दीपा खन्ना को हो सकता है । दीपा खन्ना की उम्मीदवारी घोषित होने के बाद राजकमल गुप्ता जिस सहयोगभावना के साथ अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट गए हैं, उसके कारण दीपा खन्ना मुरादाबाद से अकेली उम्मीदवार रह गई हैं । मुरादाबाद में दीपा खन्ना को इस कारण भी एकतरफा समर्थन मिलता नजर आ रहा है क्योंकि मुरादाबाद में कई लोगों को लग रहा है कि मेरठ के बाद अब मुरादाबाद में भी महिला गवर्नर होनी चाहिए । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन को मुरादाबाद में किसी किसी को उकसाने और उम्मीदवार बनाने की कोशिश करने के मामले में सक्रिय सुना/बताया तो जा रहा है, लेकिन उनके भरोसे कोई उम्मीदवार बनने को राजी हो जायेगा - इसकी संभावना कम ही दिख रही है । अपने अपने उम्मीदवारों के साथ एमएस जैन और जीएस धामा के आमने-सामने हो जाने तथा दीपक जैन के उनके बीच फँस जाने की स्थिति से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी परिदृश्य दिलचस्प तो हो ही गया है ।

Saturday, July 28, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की गाजियाबाद ब्रांच में पिछले वर्ष हुए घपले के मामले में सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य मुकेश बंसल को भी खींच लिए जाने से, यह मामला अब सेंट्रल रीजन की चुनावी राजनीति के मैदान में शिफ्ट होता हुआ लग रहा है

गाजियाबाद । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की गाजियाबाद ब्रांच में पिछले वर्ष हुई घपलेबाजी का मामला ब्रांच के मौजूदा चेयरमैन पुनीत सखुजा, पिछले वर्ष के चेयरमैन सचिंदर गर्ग और सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य मुकेश बंसल के लिए एकसाथ जी का जंजाल बन गया है - और सभी की निगाह एक अगस्त को होने वाली ब्रांच की एजीएम पर है, जिसमें पिछले वर्ष के एकाउंट्स प्रस्तुत और स्वीकार किए जाने की कार्रवाई होनी है । इस वर्ष की एजीएम को लेकर गाजियाबाद के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और उनके नेताओं की ही नहीं, बल्कि सेंट्रल रीजन के तमाम नेताओं की दिलचस्पी दरअसल इसलिए है - क्योंकि हर कोई जानना/देखना चाहता है कि पिछले वर्ष हुए घपले को पकड़ने में पुनीत सखुजा ने जो तत्परता और आक्रामकता दिखाई, उसे वह लॉजिकल कन्क्लूजन तक ले जा पाते हैं या उनकी तत्परता और आक्रामकता बीच रास्ते में ही दम तोड़ देती है । पुनीत सखुजा इस बात पर गर्व करते हैं कि उन्होंने तत्परता और आक्रामकता के साथ कार्रवाई करते हुए ब्रांच और इंस्टीट्यूट के करीब साढ़े छह लाख रुपए बचाए; दूसरे लोगों को लेकिन लगता है कि इतना काफी नहीं है; उनका कहना है कि पिछले वर्ष हुए इस घपले के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि आगे कोई इस तरह का घपला करने के बारे में न सोच सके । यह माँग करने वाले लोग दरअसल पिछले वर्ष के चेयरमैन सचिंदर गर्ग को 'सजा' दिलवाना चाहते हैं । उनका तर्क है कि सचिंदर गर्ग की मिलीभगत के बिना उक्त घपला हो ही नहीं सकता था ।
इस मामले में रोमांचपूर्ण पहलू यह है कि कुछेक लोग सचिंदर गर्ग की ऊँगली पकड़ कर मुकेश बंसल का 'पहुँचा' पकड़ने की कोशिश करने लगे हैं । उनका कहना है कि सचिंदर गर्ग चूँकि मुकेश बंसल के 'आदमी' हैं, इस नाते पिछले वर्ष चेयरमैन भले ही सचिंदर गर्ग थे - लेकिन ब्रांच में राजपाट मुकेश बंसल का ही चला था; और ऐसा हो ही नहीं सकता कि पिछले वर्ष जो घपला हुआ, उसकी जानकारी मुकेश बंसल को न हो । इस तर्क के साथ, पिछले वर्ष हुए घपले में कुछेक लोग मुकेश बंसल की जिम्मेदारी भी 'तय' करने/करवाने के काम में लगे हैं । कई लोगों को यह भी लगता है कि मौजूदा वर्ष चूँकि चुनावी वर्ष है, इसलिए उम्मीदवार लोग अपने आप को आगे बढ़ाने के लिए दूसरे उम्मीदवारों को नीचे खींचने का काम करेंगे ही - और इस काम में घपलेबाजी के आरोप मामले को सनसनीखेज तो बनाते ही हैं । सचिंदर गर्ग ने इस बात का फायदा उठाते हुए घपलेबाजी के आरोप की अपने ऊपर पड़ी धूल को झाड़ने का काम शुरू भी कर दिया है । उनका कहना है कि मुकेश बंसल को फँसाने के लिए उन्हें नाहक ही बलि का बकरा बनाया जा रहा है और मामले को बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जा रहा है । उनका कहना है कि जो मामला है, वह वास्तव में अतिरिक्त भुगतान संबंधी छोटी सी प्रशासनिक चूक का मामला है, जिसे घपला कहना उचित नहीं है । सचिंदर गर्ग का कहना है कि लेकिन चुनावी मुकाबलेबाजी की होड़ में लगे लोगों ने बात का बतंगड़ बना दिया है, और मुकेश बंसल के साथ नजदीकी के कारण उन्हें बदनामी का शिकार बनना पड़ रहा है ।
मामला हालाँकि इतना सीधा/सरल भी नहीं है, क्योंकि मामले में पुनीत सखुजा को खासी गंभीर लड़ाई लड़नी पड़ी है । मामला यदि अतिरिक्त भुगतान संबंधी छोटी सी प्रशासनिक चूक का होता, तो ब्रांच के चेयरमैन के रूप में पुनीत सखुजा को एफआईआर करवाने की धमकी देने की हद तक नहीं जाना पड़ता । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष ब्रांच में लगे कम्प्यूटर्स के भुगतान में गड़बड़ी को पकड़ने का काम पुनीत सखुजा ने चेयरमैन का अपना कार्यकाल शुरू होते ही पकड़ लिया था । पहले तो पिछले वर्ष के ब्रांच के पदाधिकारियों तथा कम्प्यूटर्स सप्लाई करने वाले बेंडर ने गड़बड़ी की बात से साफ इंकार किया, लेकिन कागजातों में ही गड़बड़ी के जो संकेत और सुबूत नजर आ रहे थे - उन्हें देखते हुए पुनीत सखुजा ने सख्ती दिखाई और मामले में एफआईआर दर्ज करने की बात की । इसके बाद बेंडर करीब साढ़े छह लाख रुपये वापस करने के लिए राजी हुआ और ब्रांच को उक्त रकम वापस मिली । उम्मीद की जा रही थी कि रकम वापस मिलने से मामला समाप्त हो जायेगा, लेकिन हुआ उल्टा । दरअसल रकम वापस मिलने से, और सख्ती करने के बाद वापस मिलने से यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि मामला घपलेबाजी का ही है । इसमें अब जिम्मेदारी तय करने की बात शुरू होने लगी । कुछेक लोगों ने कहना शुरू किया कि उक्त घपलेबाजी पिछले वर्ष के पदाधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं हो सकती है, इसलिए उनके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए । पुनीत सखुजा इस बारे में यह कहते हुए अपने हाथ खड़े कर दे रहे हैं कि जो हुआ, उसकी पूरी रिपोर्ट उन्होंने इंस्टीट्यूट प्रशासन को भेज दी है; किसके खिलाफ क्या कार्रवाई होनी चाहिए, यह इंस्टीट्यूट प्रशासन को तय करना है, उन्हें नहीं ।
पुनीत सखुजा के इस रवैये से लोगों को लगा है कि ब्रांच के प्रशासनिक स्तर पर उक्त मामला अब खत्म हो गया है । इस मामले में लेकिन मुकेश बंसल को भी खींच लिए जाने से लोगों को लग रहा है कि अब यह मामला ब्रांच के प्रशासनिक स्तर से हट कर चुनावी राजनीति के मैदान में शिफ्ट हो रहा है । इसी नाते लोगों की निगाह एक अगस्त को होने वाली ब्रांच की एजीएम पर है । एजीएम में यह मामला कैसे हैंडिल होता है, इस पर निर्भर करेगा कि राजनीतिक मैदान पर इस मामले को कैसे खेला जायेगा । उम्मीद यही की जा रही है कि पिछले वर्ष गाजियाबाद ब्रांच में हुए घपले को लेकर गाजियाबाद और सेंट्रल रीजन में राजनीतिक नजरिये से बबाल अभी मचेगा, और राजनीति की पिच पर यह मामला आसानी से दफ्न नहीं होगा ।

Friday, July 27, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 के ग्लोबल ग्रांट प्रोजेक्ट को जरूरी शर्तों को पूरा किए बिना ही मंजूर करवाने के पीछे राजा साबू की इमरजेंसी आखिर क्या है; और मुट्ठी भर रोटेरियंस के भ्रष्ट आचरण का रोना रोने वाले गुलाम वहनवती इस मामले में मजबूर क्यों हो गए हैं ?

चंडीगढ़ । रोटरी फाउंडेशन ने जरूरी शर्तों को अनदेखा करते हुए डिस्ट्रिक्ट 3080 के रोटरी ग्लोबल ग्रांट जीजी 1875158 के आवेदन को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत 97 हजार अमेरिकी डॉलर, यानि करीब 67 लाख रुपए दिए जायेंगे । यह पैसा यूगांडा के मसाका शहर के हॉस्पिटल के मरीजों के ईलाज में तथा हॉस्पिटल के मेडीकल स्टाफ को आँख, नाक, कान, गले, दाँत की देखभाल व उनके ईलाज के लिए प्रशिक्षण देने पर खर्च किया जायेगा । इसके लिए डॉक्टरों तथा वॉलिंटियर्स की एक टीम चंडीगढ़ से मसाका जाएगी । मसाका, चंडीगढ़ से करीब साढ़े पाँच हजार किलोमीटर दूर है । मसाका की आबादी एक लाख से भी कम है । मरीज कहीं के भी हों, उनके ईलाज की व्यवस्था होनी ही चाहिए, और यह व्यवस्था कोई भी कहीं से भी कर सकता है । रोटरी इंटरनेशनल और रोटेरियंस ने मरीजों की देखभाल और उनके ईलाज पर विशेष ध्यान केंद्रित किया हुआ है, और इसके लिए खासी तत्परता के साथ काफी पैसा खर्च किया जाता है । हालाँकि पैसा कड़ी जाँच-पड़ताल के तहत ही खर्च किया जाता है, खासकर भारत के डिस्ट्रिक्ट्स की तरफ से जाने वाले आवेदनों की तो कड़ी जाँच-पड़ताल की जाती है । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल के क्लब के एक बड़े ग्रांट-प्रोजेक्ट की तीन बार ऑडिट करने की जरूरत पड़ी, जिसके चलते विनोद बंसल तथा क्लब के अन्य पदाधिकारियों के लिए शर्मिंदगी की स्थिति बनी । वित्तीय घपलेबाजी के आरोपों के चलते ही डिस्ट्रिक्ट 3012 में सतीश सिंघल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्त हुए और डिस्ट्रिक्ट 3030 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर निखिल किबे को रोटरी से ही बाहर होना पड़ा । रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी गुलाम वहनवती पिछले दिनों कई मौकों पर इस शर्मनाक तथ्य को बता चुके हैं कि भारत के कुछेक मुट्ठी भर रोटेरियंस के भ्रष्ट आचरण की वजह से रोटरी इंटरनेशनल में भारत की छवि कलुषित हो रही है; इस तथ्य पर गंभीर चिंता प्रकट करते हुए उन्होंने बार-बार इसे बेहद शर्मनाक बताया है ।
इसके बावजूद, डिस्ट्रिक्ट 3080 के एक ग्रांट-आवेदन को जरूरी शर्तों को अनदेखा करते हुए मंजूर कर लिया जाता है । ऐसा इसलिए हो जाता है, क्योंकि इसके लिए पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू की जोरदार सिफारिश होती है । जाहिर है कि यह सुविधा हर किसी को नहीं मिलेगी । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल है कि मसाका जैसे एक छोटे से शहर में लोगों के नाक, कान, आँख, गले के ईलाज में ऐसी क्या इमरजेंसी आ गई कि राजा साबू को जरूरी शर्तों को पूरा किए बिना अपने ग्रांट-आवेदन को मंजूर करने के लिए कहना पड़ा, और रोटरी फाउंडेशन के चेयरमैन को उनकी बात मानने के लिए मजबूर भी होना पड़ा ? आरोपपूर्ण चर्चाओं के अनुसार, मामला इमरजेंसी ईलाज का नहीं है, इमरजेंसी तो राजा साबू और उनके नजदीकियों के मौज-मजे की है । उल्लेखनीय है कि मसाका, अफ्रीका की एक साफ पानी की अत्यंत सुंदर व मशहूर झील, लेक विक्टोरिया के पश्चिम किनारे पर बसा शहर है और अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना/पहचाना जाता है । वहाँ घूमने/फिरने के लिहाज से जुलाई/अगस्त के महीने को ही उपयुक्त देखा/माना जाता है । राजा साबू ने जुलाई महीने में ही वहाँ के मरीजों के ईलाज की तैयारी की थी । मूल रूप में यह राजा साबू के क्लब का ही प्रोजेक्ट था । लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जितेंद्र ढींगरा ने प्रोजेक्ट को पूरा ब्यौरा जाने बिना प्रोजेक्ट के आवेदन पर हस्ताक्षर करने से चूँकि मना कर दिया था, इसलिए राजा साबू का यह प्रोजेक्ट खटाई में पड़ता दिख रहा था । ज्यादा देर होती तो मरीजों के ईलाज के बहाने जुलाई/अगस्त के सुहाने मौसम में मसाका घूमने जाने का मौका राजा साबू और उनके साथियों से छिन जाता । इसलिए अपने पूर्व प्रेसीडेंट होने के कारण बने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए राजा साबू ने जरूरी शर्तों को पूरा किए बिना ही रोटरी फाउंडेशन से ग्रांट मंजूर करवा ली है ।
डिस्ट्रिक्ट के लोगों के लिए हैरानी की बात यह है कि राजा साबू को अपने डिस्ट्रिक्ट के भौगिलिक क्षेत्र - यानि चंडीगढ़, यमुनानगर, देहरादून, सहारनपुर, रुड़की, अंबाला, पानीपत तथा इनके आसपास के क्षेत्रों में नाक, कान, आँख, गले के मरीज दिखाई नहीं देते हैं क्या ? यह क्षेत्र, और खासकर उत्तराखंड का क्षेत्र इस समय बारिश और बाढ़ की भारी तबाही का शिकार है, और वहाँ राहत-कार्यों की तत्काल जरूरत है - राजा साबू और उनके साथी, पूर्व गवर्नर शाजु पीटर व मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल, उनकी तबाही पर ध्यान न देते हुए लेकिन मसाका जाने की तैयारी कर रहे हैं या करवा रहे हैं । इस ग्रांट के लिए जिस खुफिया तरीके से तैयारी की गई है, वही ग्रांट के नाम पर होने वाली घपलेबाजी के संदेह खड़ा करती है । रोटरी फाउंडेशन के नियमानुसार, डिस्ट्रिक्ट में ग्लोबल ग्रांट के आवेदन पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के भी हस्ताक्षर होना जब जरूरी हैं, तब सवाल यही है कि राजा साबू, शाजु पीटर और प्रवीन गोयल की तिकड़ी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जितेंद्र ढींगरा से तथ्यों को छिपा क्यों रही है; और क्यों जरूरी शर्तों को पूरा किए बिना ग्लोबल ग्रांट को मंजूर करवाया गया है ? रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे गुलाम वहनवती, जो भारत के कुछेक मुट्ठी भर रोटेरियंस के भ्रष्ट आचरण के कारण रोटरी इंटरनेशनल में भारत के लिए बनने वाली शर्मनाक स्थिति का रोना रोते रहते हैं, इस मामले में आश्चर्यजनक रूप से चुप हैं । कुछेक लोगों का तो आरोप है कि शर्तों को पूरा किए बिना राजा साबू की ग्लोबल ग्रांट  मंजूर करवाने का काम गुलाम वहनवती ने ही किया है । देखना दिलचस्प होगा कि इसके बाद भी रोटरी के कार्यक्रमों में गुलाम वहनवती भारत के कुछेक मुट्ठी भर रोटेरियंस के भ्रष्ट आचरण के कारण रोटरी इंटरनेशनल में भारत के लिए बनने वाली शर्मनाक स्थिति की बात पर घड़ियाली आँसू बहाना जारी रखते हैं, या इस मामले को छोड़ देते हैं ।


Thursday, July 26, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार अमित गुप्ता की अपने क्लब के चार्टर डे समारोह को अपनी उम्मीदवारी के 'शक्ति-प्रदर्शन' के रूप में 'दिखाने' की कोशिश, डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तथा अन्य प्रमुख लोगों की बेरुखी के कारण फेल हुई

गाजियाबाद । रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के चार्टर डे समारोह के राजनीतिक नजरिये से अप्रभावी और विफल रहने से अशोक अग्रवाल के समर्थकों और शुभचिंतकों ने राहत की साँस ली है । वह दरअसल अमित गुप्ता और उनके साथियों के उस प्रयास से थोड़ा घबराए हुए थे, जिसके तहत 21 जुलाई की बजाये 25 जुलाई को हुए इस समारोह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को हवा देने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा था । अमित गुप्ता की तरफ से क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तथा डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सक्रिय व महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे लोगों को आमंत्रित करने तथा उनकी उपस्थिति को संभव बनाने के प्रयास जिस तरह से हुए, उसके कारण लोगों के बीच चर्चा चली थी कि अमित गुप्ता इस समारोह को अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में एक शक्ति-प्रदर्शन के रूप में देख रहे थे । रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल चूँकि अमित गुप्ता के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन का भी क्लब है, इसलिए क्लब के चार्टर डे समारोह को कामयाब बनाने के लिए अमित गुप्ता को ज्यादा प्रयास करने की भी जरूरत नहीं थी - लेकिन फिर भी वह समारोह को लेकर दिन-रात एक किए हुए थे, उससे माना/समझा यह जा रहा था कि उनकी तरफ से पूरी कोशिश थी कि समारोह की कामयाबी का श्रेय उन्हें ही मिले; और कोई यह न कह सके कि क्लब के चार्टर डे समारोह में तो लोगों की भीड़ सुभाष जैन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के कारण जुटी । राजनीतिक नजरिये से अमित गुप्ता ने दाँव तो अच्छा चला और उसके लिए अपनी तरफ से मेहनत भी खूब की, लेकिन उम्मीद के मुताबिक सफलता न मिलने के कारण उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया दिख रहा है । अमित गुप्ता की मेहनत पर फिरे पानी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के संदर्भ में उनके प्रतिद्धंद्धी दूसरे उम्मीदवार अशोक अग्रवाल के समर्थकों व शुभचिंतकों को बड़ी राहत दी है ।
अमित गुप्ता को सबसे तगड़ा झटका क्लब्स के प्रेसीडेंट्स की तरफ से लगा है । अमित गुप्ता की तरफ से प्रयास था कि वह ज्यादा से ज्यादा प्रेसीडेंट्स को समारोह में उपस्थित 'दिखा' सकें । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की चाबी चूँकि प्रेसीडेंट्स के पास ही देखी/पहचानी जाती है, इसलिए माना/समझा जा रहा था कि अमित गुप्ता के 'द्वारा' आयोजित हो रहे समारोह में उनके निमंत्रण पर पहुँचे प्रेसीडेंट्स की संख्या डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी का 'वजन' बढ़ाने का काम करेगी । लेकिन अमित गुप्ता के निमंत्रण पर पहुँचे प्रेसीडेंट्स की संख्या के 25 के आसपास ही रहने/दिखने से अमित गुप्ता का सारा प्लान और सारी तैयारी को तगड़ा झटका लगा है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सक्रिय व महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे लोगों की उपस्थिति भी काफी कम दिखी/रही । अमित गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह रही कि उनके क्लब के चार्टर डे समारोह में प्रेसीडेंट्स तथा डिस्ट्रिक्ट के अन्य प्रमुख लोगों की जो उपस्थिति रही भी उसे क्लब की साख और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का क्लब होने के नतीजे के रूप में देखा/पहचाना गया - और उसका भी अमित गुप्ता को श्रेय नहीं दिया गया । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल को डिस्ट्रिक्ट और गाजियाबाद के एक अच्छे व प्रभावी क्लब के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और इस क्लब के आयोजनों में पदाधिकारियों की इच्छानुसार व तैयारीनुसार भीड़ जुटती रही है । इस वर्ष तो क्लब को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का क्लब होने का भी 'रुतबा' मिला हुआ है, लिहाजा क्लब के चार्टर डे समारोह में जो भीड़ जुटी - उसे कोई बहुत अप्रत्याशित रूप में नहीं देखा/पहचाना गया; और इसलिए उसके लिए अमित गुप्ता को कोई श्रेय देता हुआ नहीं दिखा ।
और इस तरह अमित गुप्ता की एक अच्छी-खासी योजना और उसे क्रियान्वित करने की सारी तैयारी धरी की धरी रह गई है । चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि अमित गुप्ता अपनी योजना को क्रियान्वित करने में चूँकि किसी बड़े नेता और या खेमे का सहयोग नहीं ले सके, इसलिए उनकी मेहनत लोगों के बीच विश्वसनीयता नहीं बना सकी । उनकी मेहनत में चूँकि उनके क्लब के सदस्य और पदाधिकारी भी उनके साथ नहीं नजर आये, इसलिए दूसरे क्लब्स के पदाधिकारियों - खासकर प्रेसीडेंट्स के बीच अमित गुप्ता के निमंत्रण को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया । कुछेक लोगों का कहना है कि अमित गुप्ता ने क्लब के चार्टर डे समारोह की तैयारी को पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया था, जिस कारण लोगों ने चार्टर डे समारोह को क्लब की बजाये अमित गुप्ता के कार्यक्रम के रूप में देखा/पहचाना और इसके राजनीतिक स्वरूप को देखते हुए इससे दूर रहने का फैसला किया । इस तरह, अमित गुप्ता की होशियारी उन्हें फायदा पहुँचाने की बजाये नुकसान पहुँचा गई । लोगों का मानना/कहना है कि चार्टर डे समारोह में जो लोग जुटे भी, उन्हें क्लब की साख होने तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का क्लब होने की पहचान होने के चलते समारोह में उपस्थित माना गया । इस मानने/समझने ने अमित गुप्ता के लिए उनके अपने क्लब के चार्टर डे के एक बढ़िया मौका बन सकने की संभावना को खत्म कर दिया । लोगों को लगता है और उनका कहना है कि इस विफलता ने अमित गुप्ता को दोहरा नुकसान पहुँचाया है । उनके लिए मुसीबत की बात सिर्फ यही नहीं है कि वह एक बढ़िया मौके का सही से इस्तेमाल नहीं कर सके, बल्कि इससे भी बड़ी मुसीबत की बात यह है कि इस विफलता ने लोगों को यह भी दिखाया/जताया है कि चुनावी प्रबंधन के मामले में वह एक अच्छे रणनीतिकार भी नहीं हैं ।

Tuesday, July 24, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में चुनावबाज नेताओं के मुसीबतों में घिरे रहने के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई से दूर रहने के चलते चुनावी मुकाबला अशोक अग्रवाल के लिए एकपक्षीय होता जा रहा है क्या ?

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के 'ठंडे' रवैये ने अमित गुप्ता की तुलना में अशोक अग्रवाल के लिए चुनावी मुकाबले को आसान बना दिया है । दरअसल व्यक्तित्वों की तुलना के मामले में अशोक अग्रवाल का पलड़ा यूँ भी भारी माना/देखा जाता है । यह बहुत स्वाभाविक भी है; क्योंकि अशोक अग्रवाल को रोटरी में अमित गुप्ता से अधिक समय हो चुका है, जिसके चलते उन्होंने ज्यादा बसंत और पतझड़ यहाँ देखे हैं । अमित गुप्ता के मुकाबले अशोक अग्रवाल ने 'काम' भी ज्यादा किया है । पिछले दो-तीन वर्षों में अमित गुप्ता ने भी हालाँकि काफी काम किया है, लेकिन उनके काम के 'नेचर' में फर्क रहा है । अमित गुप्ता ने जो काम किए हैं वह व्यवस्था-संबंधी रहे हैं, उनके काम से गवर्नर्स को तो फायदे मिले हैं, लेकिन लोगों के बीच उनकी छवि बनने/बनाने में कोई फायदा नहीं हुआ । इसके विपरीत अशोक अग्रवाल ने राजनीतिक काम किए, जिसके कारण लोगों के बीच उनकी पहचान तो बनी ही - राजनीतिक रूप से वह जिनके काम आए, उनके और उनके समर्थकों के साथ अशोक अग्रवाल के संबंध और गहरे बने । राजनीतिक काम करने के कारण अशोक अग्रवाल की राजनीतिक समझ व उनके अनुभव में भी इजाफा हुआ । वही समझ और अनुभव अब उनकी अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के काम आ रहा है । अमित गुप्ता ने चूँकि कभी कोई 'राजनीतिक' काम नहीं किया, इसलिए राजनीतिक समझ व अनुभव के मामले में वह कोरे कागज की तरह हैं । उनके नजदीकियों और समर्थकों का ही कहना है कि अमित गुप्ता अभी भी अपनी उम्मीदवारी को लेकर जिस तरह से सक्रिय हैं, उसमें 'राजनीतिक ऐंगल' पूरी तरह से नदारत ही है । अमित गुप्ता अभी तक भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव लड़ना - या कोई भी चुनाव लड़ना - एक 'राजनीतिक काम' होता है, जिसे राजनीतिक तरीके से ही अंजाम दिया जा सकता है । उनकी इस कमजोरी का अशोक अग्रवाल पूरा पूरा फायदा उठा रहे हैं । मजे की बात यह है कि अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में फायदा उठाने के लिए भी अशोक अग्रवाल को ज्यादा प्रयास भी नहीं करने पड़ रहे हैं ।
रोटरी में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव - या अन्य कोई भी चुनाव - उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि कभी स्पष्ट रूप से तो कभी 'छिपे' रूप से वास्तव में खेमों के बीच का चुनाव होता है । डिस्ट्रिक्ट 3012 में लेकिन इस वर्ष एक अप्रत्याशित स्थिति यह बनी है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव दो उम्मीदवारों के बीच ही होता नजर आ रहा है । दरअसल सतीश सिंघल के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्त होने के कारण एक खेमा पूरी तरह धूल-धूसरित हो गया है । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय द्वारा सतीश सिंघल के खिलाफ हुई कठोर कार्रवाई के कारण डिस्ट्रिक्ट के एक चुनावबाज नेता मुकेश अरनेजा को 'चुप' बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।  मुकेश अरनेजा हालाँकि सीधी हो जाने वाली 'चीज' हैं नहीं; लेकिन लगता है कि सतीश सिंघल के खिलाफ हुई कार्रवाई ने उन्हें वास्तव में डरा दिया है । सुना जाता है कि रोटरी के बड़े नेताओं ने उन्हें आगाह कर दिया है कि रोटरी इंटरनेशनल में उनके खिलाफ बहुत शिकायतें हैं, और वह यदि अपनी हरकतों से बाज नहीं आए तो उनका हाल भी सतीश सिंघल जैसा हो सकता है । इसके बाद से ही मुकेश अरनेजा को अपनी हरकतों पर काबू रखने के लिए मजबूर होना पड़ा है । सतीश सिंघल के नजदीकी रहे दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने भी सतीश सिंघल के खिलाफ हुई कार्रवाई से बने माहौल में 'राजनीति' से दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी है । डिस्ट्रिक्ट के एक दूसरे चुनावबाज नेता रमेश अग्रवाल अपनी हरकतों के चलते डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़े हुए हैं और सचमुच कुछ कर सकने में असमर्थ हैं । नेताओं की मुसीबतें और असहायता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन के लिए वरदान बनी हैं और उन्हें अपने गवर्नर-काल में किसी चुनावी झमेले का सामना नहीं करना पड़ रहा है । सुभाष जैन शायद पहले ऐसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, जिन्हें दोनों उम्मीदवारों का हर संभव सहयोग भी मिल रहा है, और कोई भी उम्मीदवार उनके लिए 'जिम्मेदारी' नहीं बना है - और इस तरह राजनीतिक पक्षपात के आरोपों से भी वह पूरी तरह बचे हुए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं और पूर्व/मौजूदा/भावी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई से दूर रहने की इस स्थिति ने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी माहौल को 'ठंडा' बनाया हुआ है, और इस ठंडेपन ने अमित गुप्ता की चुनावी संभावनाओं को ग्रहण लगाया हुआ है । व्यक्तित्वों की लड़ाई में अशोक अग्रवाल से पिछड़ने के बावजूद अमित गुप्ता के नजदीकियों व समर्थकों को उम्मीद थी कि डिस्ट्रिक्ट के चुनावी माहौल में जब गर्मी आयेगी और चुनावबाज नेताओं व गवर्नर्स की खेमेबाजी सक्रिय होगी, तो अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद अमित गुप्ता की उम्मीदवारी आगे बढ़ेगी और अशोक अग्रवाल के लिए चुनौती पैदा करेगी । चुनावबाज नेता चूँकि अपनी अपनी मुसीबतों में घिरे हैं, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई को उनकी छतरी नहीं मिली है; और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव वास्तव में दो उम्मीदवारों के बीच का चुनाव हो कर रह गया है । इस स्थिति में अमित गुप्ता के लिए अपनी कमजोरियों को ढँक पाना मुश्किल हुआ है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले में वह 'अकेले' से दिख रहे हैं और इस कारण उनकी स्थिति कमजोर ही बनी रह जा रही है । दरअसल अमित गुप्ता की चूँकि अपनी कोई 'राजनीतिक' पहचान नहीं है, और डिस्ट्रिक्ट में उनकी उम्मीदवारी की वकालत करने वाला कोई बड़ा नेता नहीं है - इसलिए लोगों से मिलजुल कर अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की उनकी कोशिशों का कोई सुफल उन्हें मिलता दिख नहीं रहा है । अशोक अग्रवाल की चूँकि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अच्छी व प्रभावी 'राजनीतिक' पहचान है, इसलिए उन्हें अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन ज्यादा कुछ किये बिना ही मिलता नजर आ रहा है । लोगों का मानना/कहना है कि हालात यदि ऐसे ही बने रहे, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी मुकाबला अशोक अग्रवाल के लिए एकपक्षीय ही हो जायेगा ।

Saturday, July 21, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के झमेले में बीएम श्रीवास्तव को चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट ट्रेजरर के पद से हटाने को लेकर पड़ रहे पराग गर्ग व विशाल सिन्हा के दबाव के सामने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह समर्पण करेंगे क्या ?

लखनऊ । बीएम श्रीवास्तव को चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट ट्रेजरर पद से हटाने को लेकर विशाल सिन्हा और पराग गर्ग की तरफ से पड़ रहे दबाव ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह को खासी मुसीबत में फँसा दिया है । उल्लेखनीय है कि एके सिंह ने बीएम श्रीवास्तव के साथ अपने नजदीकी संबंधों के चलते तथा उनकी काबिलियत को देखते/पहचानते हुए उन्हें चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट ट्रेजरर बनाया था । अन्य नियुक्तियों के साथ-साथ इस नियुक्ति के लिए भी एके सिंह ने गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा से अनुमति ले ली थी । बीएम श्रीवास्तव के चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट ट्रेजरर बनने पर किसी को भी आपत्ति नहीं थी । लेकिन बीएम श्रीवास्तव के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनने के बाद से हालात बदलने लगे । बीएम श्रीवास्तव को केएस लूथरा खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । बीएम श्रीवास्तव के केएस लूथरा खेमे से उम्मीदवार बन जाने की बात से गुरनाम सिंह व विशाल सिन्हा बिफरे हुए हैं । दरअसल बीएम श्रीवास्तव के केएस लूथरा खेमे की तरफ से उम्मीदवार बनने से गुरनाम सिंह खेमे से उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे बीएन चौधरी अपनी उम्मीदवारी को लेकर अगर-मगर करने लगे । उम्मीदवारी को लेकर बीएन चौधरी को अगर-मगर करता देख जगदीश अग्रवाल और पराग गर्ग अपनी अपनी उम्मीदवारी की संभावनाएँ तलाशने गुरनाम सिंह के चक्कर काटने लगे । पराग गर्ग के मामले में स्थिति बड़ी दिलचस्प और विकट है - दरअसल पराग गर्ग कुछ समय पहले तक गुरनाम सिंह की बड़ी खिलाफत और आलोचना किया करते थे, तथा उन्हें लायनिज्म का ठग बताते थे और उनकी ठगी को खत्म करने की शपथ खाते थे; लेकिन अब वह उन्हीं गुरनाम सिंह - और उनके विशाल सिन्हा जैसे बदनाम चेले का समर्थन जुगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं । पराग गर्ग को विश्वास है कि वह गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा का समर्थन तो प्राप्त कर लेंगे; लेकिन बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी उन्हें अपने लिए सबसे बड़ी बाधा लग रही है ।
पराग गर्ग दरअसल अब की बार कोई रिस्क नहीं 'रखना' चाहते हैं, अब की बार वह किसी भी तरह से सफलता पाना ही चाहते हैं - और इसके लिए वह कोशिश करना चाहते हैं कि उनके अलावा कोई और उम्मीदवार न हो । बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी को वापस करवाने के लिए पराग गर्ग फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मनोज रुहेला पर दबाव बना चुके हैं । एक मौके पर वह मनोज रुहेला को धमकी भरे अंदाज में कह/बता चुके हैं कि बीएम श्रीवास्तव यदि उम्मीदवार बने रह कर उनकी सफलता में बाधा बने तो वह डिस्ट्रिक्ट को ही खत्म करवा देंगे । पराग गर्ग के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि बीएम श्रीवास्तव ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करने से पहले पराग गर्ग के घर जा कर उनसे सलाह की थी, जिसमें पराग गर्ग ने उनसे साफ कहा था कि उन्हें लायनिज्म की गवर्नरी में कोई दिलचस्पी नहीं है और वह बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे । इसलिए अब उनके सामने बीएम श्रीवास्तव को उम्मीदवारी से पीछे हटने के लिए कहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बचा है । इस स्थिति में पराग गर्ग के सामने बीएम श्रीवास्तव के समर्थक नेताओं पर दबाव बनाने तथा उन्हें बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी का समर्थन करने से रोकने का ही उपाय बचा है, जिसे उन्होंने मनोज रुहेला पर आजमाया है । पराग गर्ग के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि उनकी इस कार्रवाई को बीएम श्रीवास्तव तथा उनके समर्थकों ने उनकी कमजोरी के रूप में देखा/पहचाना है । उन्हें लगा है कि पराग गर्ग चुनाव से डर रहे हैं और किसी भी तरह से चुनाव को टालना/टलवाना चाहते हैं । इससे बीएम श्रीवास्तव तथा उनके समर्थक नेताओं का हौंसला बढ़ा है,और उनके इस बढ़े हौंसले ने पराग गर्ग के लिए हालात को और मुश्किल बना दिया है । 
हालात की मुश्किल से निपटने के लिए ही पराग गर्ग को एके सिंह की टीम से बीएम श्रीवास्तव को चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट ट्रेजरर के पद से हटवाना जरूरी लग रहा है । इस मामले में उन्हें विशाल सिन्हा का समर्थन भी मिल रहा है । विशाल सिन्हा का कहना है कि केएस लूथरा खेमे के उम्मीदवार बनते/रहते हुए बीएम श्रीवास्तव 'हमारी' डिस्ट्रिक्ट टीम में नहीं रह सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह के लिए समस्या की बात यह है कि वह अपने आप को विशाल सिन्हा के 'पिटठू' के रूप में नहीं 'दिखने' देना चाहते हैं; वह चाहते हैं कि लोगों को ऐसा न लगे या 'दिखे' कि असली गवर्नर तो विशाल सिन्हा हैं, और वह तो सिर्फ 'मोहरा' हैं । एके सिंह यदि बीएम श्रीवास्तव को चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट ट्रेजरर के पद से हटाते हैं, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी पहचान और साख पर धब्बा लगेगा ही - लिहाजा वह बीएम श्रीवास्तव को चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट ट्रेजरर के पद से हटाने से बचना चाहते हैं । एके सिंह ने बीएम श्रीवास्तव को डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में तवज्जो व जगह देना तो हालाँकि बंद किया हुआ है, लेकिन वह बीएम श्रीवास्तव को चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट ट्रेजरर के पद से हटाने को फिलहाल तैयार नहीं हो रहे हैं । पराग गर्ग और विशाल सिन्हा लेकिन बीएम श्रीवास्तव को चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट ट्रेजरर के पद पर बने नहीं रहने देना चाहते हैं; उन्हें लगता है कि इससे बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी को मनोवैज्ञनिक फायदा मिलेगा, जिसके चलते पराग गर्ग के लिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का पहले से ही मुश्किल बना हुआ चुनावी मुकाबला - और मुश्किल हो जायेगा । यह देखना दिलचस्प होगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी पहचान व साख के लिए सावधान बने एके सिंह, पराग गर्ग और विशाल सिन्हा के दबाव के सामने समर्पण करते हैं, या बीएम श्रीवास्तव को चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट ट्रेजरर बनाये रखते हैं ।

Friday, July 20, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता अपने नजदीकी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की हरकतों के कारण ऑस्ट्रेलियाई स्टडी टूर तथा अमृतसर में हो रही सेंट्रल काउंसिल मीटिंग के मामले में गंभीर आरोपों में फँसे

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की इंटरनेशनल अफेयर्स कमिटी के ऑस्ट्रेलियाई स्टडी टूर की 'जिम्मेदारी' हड़पने की ट्रेवल एजेंटों की कोशिशों को इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के नजदीकी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का जिस तरह से सक्रिय सहयोग मिल रहा है, उसके कारण नवीन गुप्ता खासी मुश्किलों में फँसे दिख रहे हैं । अपने नजदीकी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की हरकत के कारण नवीन गुप्ता के सामने बदनाम होने का खतरा पैदा हो गया है, और उनके लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि अपने नजदीकी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की इस हरकत से वह कैसे निपटें ? नवीन गुप्ता के नजदीकी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने नवीन गुप्ता के साथ अपनी नजदीकी का वास्ता देकर ट्रेवल एजेंटों से सौदेबाजी शुरू कर दी है कि ऑस्ट्रेलियाई स्टडी टूर की जिम्मेदारी दिलवाने के ऐवज में उन्हें क्या मिलेगा ? इनमें से किसी किसी ने तो ट्रेवल एजेंटों को नवीन गुप्ता की भी 'कीमत' बता दी है । उल्लेखनीय है कि नवीन गुप्ता सिर्फ इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट ही नहीं हैं, बल्कि ऑस्ट्रेलियाई स्टडी टूर की आयोजक इंटरनेशन अफेयर्स कमिटी के चेयरमैन भी हैं । कमिटी की तरफ से 2 से 10 नवंबर के बीच जाने वाले ऑस्ट्रेलियाई टूर के लिए ट्रेवल एजेंटों से कुल दाम माँगे गए हैं । नवीन गुप्ता के नजदीकी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की सिफारिश पर 'नए' 'नए' ट्रेवल एजेंटों को भी एप्रोच किया गया है । इंस्टीट्यूट की तरफ से जारी पत्र में चूँकि यह स्पष्ट कर दिया गया है कि जरूरी नहीं है कि सबसे कम दाम बताने वाले ट्रेवल एजेंट को ही टूर की जिम्मेदारी दी जाये, इसलिए 'जिम्मेदारी' दिलवाने की जिम्मेदारी लेने वाले नवीन गुप्ता के नजदीकी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के लिए ऐवज में अपना हिस्सा 'लेना' आसान हो गया है । उनका ट्रेवल एजेंटों से कहना है कि हमारा हिस्सा भी टूर के दाम में जोड़ लो, बाकी हम देख लेंगे । 
इंटरनेशनल अफेयर्स कमिटी का प्रस्तावित ऑस्ट्रेलियाई स्टडी टूर अपने प्रारूप को लेकर भी विवाद में है । आरोप लगा है कि प्रेसीडेंट के रूप में नवीन गुप्ता ने अपने चहेतों और नजदीकियों को इंस्टीट्यूट के पैसे पर ऑस्ट्रेलिया घुमाने के लिए इस टूर का आयोजन किया है । कमिटी के एक सदस्य ने इन पँक्तियों के लेखक से बात करते हुए हालाँकि दावा किया है कि इस टूर पर इंस्टीट्यूट का कोई पैसा खर्च नहीं होगा, और टूर पर जाने वाले लोग अपना अपना खर्च वहन करेंगे । लेकिन सेंट्रल काउंसिल की 'कार्यप्रणाली' से परिचित होने का दावा करने वाले अन्य कुछेक लोगों का कहना है कि इस तरह के आयोजनों के खर्च का ब्यौरा कभी भी सार्वजनिक नहीं किया जाता है, और इस तरह के आयोजन वास्तव में इंस्टीट्यूट के पैसे पर मौज-मजा करने के उद्देश्य से ही आयोजित किए जाते हैं । ट्रेवल एजेंटों को जारी पत्र में जिस तरह से दर्शनीय स्थलों पर जाने की व्यवस्था की बात की गई है, उससे ही जाहिर है कि 'स्टडी' तो सिर्फ बहाना है, असली उद्देश्य तो घूमना-फिरना है । टूर पर जाने वाले लोगों की संख्या को 25 से 35 के बीच सीमित करने से भी आभास मिल रहा है कि टूर का खर्च इंस्टीट्यूट के खाते से ही निकलेगा । आरोप लगाने वाले लोगों का तर्क है कि टूर का खर्च यदि जाने वाले लोगों से ही वसूल किया जाना है, तो फिर टूर में जाने वाले लोगों की संख्या को 35 तक सीमित करने की जरूरत क्या है ? टूर में ज्यादा लोग जायेंगे, तो प्रत्येक के लिए टूर सस्ता भी होगा । वास्तव में, टूर के प्रारूप ने सारे मामले को संदेहास्पद बना दिया है । नवीन गुप्ता के नजदीकी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की हरकतों ने संदेहों को आरोपों में बदलने का काम किया है ।
प्रेसीडेंट के रूप में नवीन गुप्ता के व्यवहार, निजी खुन्नसों व स्वार्थों के चलते किसी के भी कहने में आने और अपने नजदीकियों पर पूरी तरह निर्भर रहने तथा अधिकतर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को इग्नोर करने व अँधेरे में रखने के रवैये के कारण नवीन गुप्ता का प्रेसीडेंट-काल विवादों के शोर-शराबे का शिकार होता जा रहा है ।इंटरनेशनल अफेयर्स कमिटी की तरफ से इंटरनेशनल टूर प्रायः हर वर्ष होते ही हैं, और वह 'चुपचाप' हो जाते रहे हैं । नवीन गुप्ता के प्रेसीडेंट-वर्ष में ही यह टूर विवाद का विषय बन रहा है, तो इसका कारण यही है कि नवीन गुप्ता सेंट्रल काउंसिल में अपने नजदीकियों के हाथों इस कदर खिलौना बने हुए हैं कि वह उन्हें जब-तब जैसे चाहें वैसे नचाते रहते हैं । अमृतसर में हो रही सेंट्रल काउंसिल मीटिंग भी नवीन गुप्ता के 'खिलौना' बने होने के कारण आरोपों के घेरे में फँस गई है । इस मीटिंग में सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को अपनी अपनी पत्नियों के साथ शामिल होना है - जाहिर है कि मीटिंग के नाम पर पिकनिक होनी है । ऐसा हर वर्ष होता है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को वर्ष में एक बार इंस्टीट्यूट के पैसे पर अपनी अपनी पत्नियों को भी मौज-मजा करवाने का अवसर मिलता है । यह काम भी हर वर्ष 'चुपचाप' तरीके से हो जाता है, लेकिन इस वर्ष इस आयोजन को लेकर भी बबाल पैदा हो गया है । बबाल इसलिए पैदा हुआ है, क्योंकि इस आयोजन में धर्मशाला घूमने जाने का प्रोग्राम भी जोड़ दिया गया है, जो आयोजन के पहले के प्रारूप में नहीं था । आरोप है कि नवीन गुप्ता के नजदीकी काउंसिल सदस्यों की जीभ लपलपाई और उन्होंने योजना बनाई कि जब अमृतसर तक जा ही रहे हैं, तो धर्मशाला भी घूम लेते हैं । पत्नियाँ भी खुश हो जायेंगी । इंस्टीट्यूट की राजनीति करने का उन्हें भी तो कुछ फायदा मिले । सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्यों का ही कहना है कि धर्मशाला घूमने का प्रोग्राम बाद में जोड़ने से उन्हें लोगों के आरोपपूर्ण सवालों का सामना करना पड़ रहा है । सदस्यों का रोना है कि नवीन गुप्ता के एक फैसले के चलते, जो उन्होंने अपने नजदीकी सदस्यों के दबाव में लिया, उन्हें प्रोफेशन के लोगों के बीच बदनाम होना पड़ रहा है । इस तरह, नवीन गुप्ता को दोहरी 'मार' पड़ रही है - अपने नजदीकियों की हरकतों के चलते एक तरफ उन्हें सेंट्रल काउंसिल में ही विरोध व नाराजगी की बातें सुनना पड़ रही हैं, और दूसरी तरफ लोगों के बीच उनकी बदनामी हो रही है ।

Thursday, July 19, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को नीचा दिखाने की कोशिश के जरिये अपने नाकारापन को छिपाने की निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की चाल उल्टी पड़ी है और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच वह खुद तमाशा बन गए हैं

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के प्रति निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी द्वारा निरंतर की जा रही बदजुबानी और बद्तमीजी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के लिए वरदान साबित होती दिख रही है । दरअसल रवि चौधरी द्वारा निरंतर की जा रही बदजुबानी व बद्तमीजी के कारण लोगों ने जिज्ञासावश पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के कामकाजों तथा उनकी उपलब्धियों का जायेजा लिया, तो उन्हें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की बड़ी उपलब्धियों का रिकॉर्ड मिला - और इस रिकॉर्ड को देखते हुए डिस्ट्रिक्ट में शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की विविधतापूर्ण भूमिकाओं को सम्मान के साथ रेखांकित किया जा रहा है । ऐसा नहीं है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के कामकाज का रिकॉर्ड कहीं छिपा/दबा पड़ा हुआ था, और इस कारण वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों - खासकर नए सदस्यों की आँखों से ओझल था; वास्तव में होता यह था कि 'मौजूदा' डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सहज व स्वाभाविक रूप में अपने कामकाज का शोर मचाता था, और उसके इस शोर में पिछले गवर्नर्स के काम छिप/दब जाते थे - नतीजतन लोग, खासकर नए सदस्य पिछले गवर्नर्स के कामकाज से अपरिचित ही रह जाते थे । पिछले रोटरी वर्ष में, रवि चौधरी के गवर्नर-काल में लेकिन यह सिलसिला टूटा - क्योंकि रवि चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में लोगों के साथ बद्तमीजी तथा लफंगई करने के अलावा ऐसा कुछ किया ही नहीं, जिसका लोग नोटिस लेते । दुनिया में दस्तूर है कि कुछ न करने वाला अपने नाकारापन को छिपाने के लिए दूसरों को नाकारा बताने लगता है । रवि चौधरी ने भी इसी फार्मूले को अपनाया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी न तो कुछ अच्छा व बड़ा सोच सके और न कर सके; इसलिए दुनिया के दस्तूर के अनुसार उन्होंने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को निशाने पर ले लिया । रवि चौधरी जब तब यह कहते फिरे कि पूर्व गवर्नर्स ने कुछ किया नहीं है और उन्होंने सिर्फ राजनीति ही की है । रवि चौधरी ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की निरंतर आलोचना करके यह कोशिश की कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपने नाकारापन को वह छिपा लेंगे । रवि चौधरी की बदकिस्मती से लेकिन उनका दाँव उल्टा पड़ा है । 
रवि चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से हटने के बाद भी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की आलोचना करना जारी रखा, तो लोगों का ध्यान पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के कामकाज पर गया । कुछेक प्रेसीडेंट्स व नए रोटेरियंस ने इन पँक्तियों के लेखक को बताया कि दरअसल रवि चौधरी के मुँह से बार बार पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की आलोचना सुन सुन कर उन्हें जिज्ञासा हुई कि डिस्ट्रिक्ट में जो स्थायी प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, और रोटरी फाउंडेशन में साल-दर-साल डिस्ट्रिक्ट की जो सहभागिता रहती है वह पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की मदद व प्रेरणा के बिना आखिर कैसे संभव होती है ? इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने पिछले वर्षों पर नजर डाली, तो उनका परिचय पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की गौरवशाली भूमिकाओं व उपलब्धियों से हुआ । जब जाना, तब पता चला कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुदर्शन अग्रवाल की सक्रियताभरी प्रेरणा न होती, तो डिस्ट्रिक्ट में रोटरी कैंसर हॉस्पिटल तथा रोटरी ब्लड बैंक जैसे प्रमुख व महत्त्वपूर्ण स्थायी प्रोजेक्ट्स अस्तित्व में न आ पाते । सुदर्शन अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट की भौगोलिक सीमा के बाहर भी, देहरादून में करीब दस करोड़ रुपए की लागत से गर्ल्स स्कूल स्थापित किया है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता को देश में वाटर हार्वेस्टिंग प्रोजेक्ट्स, लिट्रेसी व एजुकेशन मिशन, रोटरी फाउंडेशन आदि के लिए प्रमुख प्रेरणास्रोत के रूप में तो देखा/पहचाना जाता ही है, साथ ही गिफ्ट ऑफ लाइफ प्रोजेक्ट, पोलियो मिशन तथा विन्स जैसे कार्यक्रमों के संस्थापक सदस्य के रूप में भी उनकी भूमिका को रेखांकित किया जाता है । दीपक कपूर और रमन भाटिया की पोलियो मिशन में जो भूमिका रही हैं, उसकी सर्वत्र प्रशंसा ही होती है । लोगों ने जाना कि मंजीत साहनी ने अपने डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, बल्कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भी कैटरेक्ट सर्जरी के प्रोजेक्ट्स को क्लब्स के बीच प्रेरित व प्रोत्साहित किया और अपने प्रयत्नों से उन्हें संभव भी बनाया । चार करोड़ रुपए की लागत से दिल्ली में बन रहे आई हॉस्पिटल के मुख्य प्रेरणास्रोत मंजीत साहनी ही हैं, और उन्हीं के प्रयत्नों से पिछले दिनों हरियाणा के मेवात क्षेत्र के करीब 400 गाँवों में टॉयलेट बनने का काम हो सका है ।
रंजन ढींगरा ने विभिन्न राज्यों में वाटर हार्वेस्टिंग प्रोग्राम के तहत चकडैम बनवाने में जो दिलचस्पी दिखाई है, उसके बारे में सुन/जान कर लोगों को पता चला कि उनके डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स की सोच कितनी व्यापक रही है । विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के लीडर्स को ट्रेनिंग देने में रंजन ढींगरा की जो सक्रियता व संलग्नता रही है, उसने भी डिस्ट्रिक्ट 3011 की पहचान को समृद्ध करने का काम किया है । सुरेश जैन की उदारताभरी बड़ी सोच व संलग्नता के चलते डिस्ट्रिक्ट को रोटरी डायबेटिक सेंटर तथा रोटरी हैबिटेट सेंटर जैसे महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स मिले हैं । अशोक घोष ने लिट्रेसी मिशन व रोटरी फाउंडेशन के लिए जो काम किया है, उसके लिए उन्हें रोटरी इंटरनेशनल से अवॉर्ड/सम्मान मिले हैं । राजेश बत्रा ने लीडर्स की ट्रेनिंग के मामले में तथा सदस्यता वृद्धि के लिए किये गए कामों के लिए विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में तारीफ प्राप्त की है । रमेश चंद्र ने लिट्रेसी व विन्स प्रोग्राम में; दमनजीत सिंह ने पर्यावरण से जुड़े प्रोजेक्ट्स में; वीरेंदर उर्फ बॉबी जैन ने हैल्थ प्रोजेक्ट्स में; सुशील खुराना ने गुड़गाँव स्थित रोटरी पब्लिक स्कूल की स्थापना में; सुधीर मंगला ने विन्स व पोलियो कार्यक्रम में जो योगदान दिया है, वह रोटरी के प्रति उनकी गहरी जिम्मेदारी तथा उनकी संलग्नता को जाहिर करता है । दीपक तलवार ने रोटरी फ्रेंडशिप एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत 40 से अधिक देशों के साथ जो संबंध बनाए और मैचिंग ग्रांटस के तहत प्रोजेक्ट्स करने की जो शुरुआत की, उसने डिस्ट्रिक्ट को एकअलग ही पहचान दिलाई है । आशीष घोष ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल करते हुए विदेशों तक से रोटरी फाउंडेशन के लिए जो डोनेशंस जुटाए, उसके चलते रोटरी इंटरनेशनल में उनकी बड़ी पहचान बनी और वहाँ उन्हें महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ मिलीं । अमित जैन ने पोलियो मिशन में उल्लेखनीय सहभागिता दिखाई और पोलियो मिशन के काम को व्यापक पहचान दिलाई । विनोद बंसल ने रोटरी ब्लड बैंक को नई और प्रभावी पहचान देने/दिलाने का काम जितने कम समय में किया है, वह रोटरी में एक अनुकरणीय उदाहरण बना है । रोटरी फाउंडेशन और समृद्ध करने में विनोद बंसल के योगदान को भी उल्लेखनीय माना/पाया गया है और सीएसआर (कार्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी) स्कीम के जरिये कार्पोरेट सेक्टर को रोटरी के साथ जोड़ने में उनकी सक्रियता का लाभ दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स ने भी खूब उठाया है । संजय खन्ना ने मल्टीनेशनल कंपनियों के साथ रोटरी के प्रोजेक्ट्स को जोड़ने का जो काम किया है, और जिसके तहत माइक्रोसॉफ्ट प्रोजेक्ट व सिंगर मशीन सेंटर प्रोजेक्ट्स के तहत 75 से अधिक जो सेंटर अभी तक स्थापित किए हैं, उसने डिस्ट्रिक्ट ही नहीं रोटरी को भी एक अलग व व्यापक पहचान दी है । डॉक्टर सुब्रमणियन की रोटरी विकलांग केंद्र को स्थापित करने व निरंतरता के साथ चलाने में जो भूमिका है, वह हर किसी के लिए प्रेरणास्पद है । 
इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की सक्रियताओं व उपलब्धियों के सामने रवि चौधरी अपने नाकारापन व निकम्मेपन के कारण बौने बन कर रह गए हैं । रवि चौधरी ने अपनी हरकतों से रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का नाम खराब करने का ही काम किया है । रवि चौधरी पहले और अकेले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, जिनके बदतमीजी व अशालीन व्यवहार के लिए रोटरी इंटरनेशनल तक में शिकायत हुई । वास्तव में, अपने नाकारापन तथा अपनी हरकतों और अपनी बदनामियों को छिपाने के लिए ही रवि चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को निशाना बनाया और यह कहते हुए लोगों के बीच उन्हें बदनाम करने की कोशिश की कि उन्होंने तो कुछ किया ही नहीं है और वह तो सिर्फ राजनीति ही करते हैं । रवि चौधरी की इस तरह की बातों से डिस्ट्रिक्ट के लोगों को, खासतौर से नए सदस्यों को यह जानने की उत्सुकता हुई कि पिछले वर्षों के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने आखिर किया क्या क्या है - और तब उन्हें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के कार्यों व उपलब्धियों का ब्यौरा मिला और रवि चौधरी के झूठ की पोल खुली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को नीचा दिखाने की कोशिश के जरिये अपने नाकारापन को छिपाने की रवि चौधरी की चाल उल्टी पड़ी और अन्य पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के मुकाबले अपने नाकारापन के जाहिर हो जाने से रवि चौधरी डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच खुद तमाशा बन गए हैं ।

Tuesday, July 17, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल में अनुज गोयल की वापसी की कोशिश सेंट्रल रीजन में मुकेश कुशवाह व मुकेश बंसल की बनती दिख रही जोड़ी के कारण मुसीबत में फँसती नजर आ रही है क्या ?

गाजियाबाद । उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की सदस्यता जुगाड़ने में असफल रहने के बाद अनुज गोयल ने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में ही फिर से शरण लेने का जो फैसला किया है, उसने उनके समर्थकों को ही बुरी तरह बिदका दिया है और उनके कई समर्थक उनके खिलाफ खुल कर सामने आ गए हैं । अनुज गोयल को सबसे तगड़ा झटका गाजियाबाद में ही लगा है, जहाँ उनके घनघोर समर्थक रहे मुकेश बंसल ने ही बगावत का झंडा उठा लिया है । मुकेश बंसल के विरोध का अनुज गोयल को ऐसा झटका लगा है कि वह हर जगह मुकेश बंसल के रवैये का रोना रोते हैं और मुकेश बंसल पर धोखा देने का आरोप लगाते हैं । अनुज गोयल जगह जगह लोगों को बता रहे हैं कि मुकेश बंसल को इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में वह लेकर आये हैं, लेकिन मुकेश बंसल ने अब मुकेश कुशवाह से तार जोड़ लिए हैं; उनका गंभीर आरोप यह है कि पिछले चुनाव में मुकेश बंसल ने उनके भाई जितेंद्र गोयल की बजाये मुकेश कुशवाह का साथ दिया था - और जितेंद्र गोयल की हार का एक प्रमुख कारण मुकेश बंसल से मिला यह धोखा भी था । अनुज गोयल और जितेंद्र गोयल इन दिनों जहाँ कहीं भी जिस किसी से भी बात कर रहे हैं, मुकेश बंसल के रवैये का रोना जरूर रो रहे हैं । उनके लगातार जारी 'विलाप' से ऐसा लग रहा है जैसे अनुज गोयल की उम्मीदवारी को सबसे बड़ा खतरा मुकेश बंसल से ही है । अनुज गोयल के नजदीकियों के अनुसार, अनुज गोयल यह सुन/जान कर दरअसल डरे हुए हैं कि मुकेश बंसल ने कई जगह लोगों के बीच यह कहा हुआ है कि वह अनुज गोयल को सेंट्रल काउंसिल का चुनाव हरवाने के लिए हर संभव उपाय करेंगे । 
मुकेश बंसल दरअसल 2021 के चुनाव में सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनने की तैयारी में हैं । इस वर्ष हो रहा चुनाव मुकेश कुशवाह के लिए तीसरा और आखिरी चुनाव है, मुकेश बंसल की 'तैयारी' है कि मुकेश कुशवाह द्वारा की जाने वाली खाली जगह को वह भरें; इसके लिए उन्हें जरूरी लग रहा है कि अनुज गोयल चुनाव न जीत सकें । सेंट्रल रीजन में कई लोग अनुज गोयल को करिश्माई नेता मानते हैं, और दावा करते हैं कि वह तो चुनाव जीत ही जायेंगे - लेकिन जमीनी हकीकत बता रही है कि अनुज गोयल के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं होगा । दरअसल उनके करिश्मे की पोल तो पिछली बार खुल गई थी, जब वह अपने भाई जितेंद्र गोयल को चुनाव नहीं जितवा सके थे । पहली प्राथमिकता के वोटों की गिनती में जितेंद्र गोयल 22 उम्मीदवारों में 943 वोटों के साथ नवें नंबर पर रहे थे, और 1237 वोटों के साथ पाँचवें नंबर पर रहे मुकेश कुशवाह से 294 वोट पीछे थे । फाइनल गिनती तक पहुँचते पहुँचते जितेंद्र गोयल छठे नंबर तक तो पहुँच गए थे, लेकिन विजेता बनने से रह गए थे । जितेंद्र गोयल की यह हार उनके साथ-साथ वास्तव में अनुज गोयल की भी हार थी । उनसे पहले, नॉर्दर्न रीजन में एनडी गुप्ता ने अपने बेटे नवीन गुप्ता को तथा वेस्टर्न रीजन में कमलेश विकमसे ने अपने भाई नीलेश विकमसे को सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जितवाया है । उम्मीद की जा रही थी कि अनुज गोयल भी अपने भाई को चुनाव जितवा देंगे । नवीन गुप्ता अपने पिता तथा नीलेश विकमसे अपने भाई के चुनाव में कभी भी सक्रिय नहीं देखे गए थे;जबकि जितेंद्र गोयल तो हमेशा ही अनुज गोयल के 'स्टार प्रचारक' रहे हैं - इसलिए भी उम्मीद की गई थी कि जितेंद्र गोयल तो आसानी से चुनाव जीत जायेंगे । लेकिन वह चुनाव हार गए । जितेंद्र गोयल की हार ने अनुज गोयल के तथाकथित करिश्मे की ही पोल नहीं खोली, बल्कि यह भी दिखाया/बताया कि सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता को अपनी ही जेब में रखने की अनुज गोयल की 'कोशिश' को लोगों ने अच्छा नहीं माना और जितेंद्र गोयल के समर्थन से हाथ खींच कर वास्तव में अनुज गोयल की सत्ता-लोभी सोच को सबक सिखाया ।
सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके अनुज गोयल ने अपनी उसी सत्ता-लोभी सोच को एक बार फिर प्रदर्शित किया है, जिसके विरोध के कारण पिछली बार उनके भाई जितेंद्र गोयल को हार का सामना करना पड़ा था । उल्लेखनीय है कि अनुज गोयल पिछले दिनों बाबा रामदेव के भरोसे उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के सदस्य होने की जुगाड़ में थे, और इसलिए इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के मैदान से मुँह मोड़े हुए थे । लेकिन वहाँ जब उनकी दाल नहीं गली, तो वह फिर से इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में मुँह मारने आ गए हैं । मुकेश बंसल जैसे उनके नजदीकी रहे लोगों तक को उनका यह सत्ता-लोभी रवैया बुरा लगा है । उनके अपने नजदीकियों और समर्थकों का ही कहना/पूछना है कि अनुज गोयल को सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता अपने और अपने भाई के लिए ही क्यों चाहिए ? अनुज गोयल के इस सत्ता-लोभी रवैये के सवाल बन जाने के कारण ही अनुज गोयल के लिए इस बार का चुनाव एक बड़ी चुनौती है । दरअसल सेंट्रल रीजन में एक सीट बढ़ जाने का फायदा जयपुर को मिलता दिख रहा है । जयपुर/राजस्थान में बढ़े वोटों के भरोसे माना जा रहा है कि जयपुर में इस बार तीन लोग सेंट्रल काउंसिल में आ जायेंगे । सेंट्रल रीजन में पिछली बार सबसे ज्यादा वोट पाने वाले श्याम लाल अग्रवाल के इस बार चुनाव से दूर रहने की चर्चा है; चर्चा हालाँकि यह भी है कि उनके समर्थक उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए राजी करने के वास्ते उन पर दबाव भी बना रहे हैं, और साथ ही उनके किसी विकल्प को लाने के लिए भी प्रयासरत हैं । जयपुर और या राजस्थान में सेंट्रल काउंसिल के लिए तीन उम्मीदवार रहें या चार - उम्मीद की जा रही है कि जयपुर के तीन उम्मीदवार तो जीत ही जायेंगे । 
ऐसे में, अनुज गोयल को सेंट्रल काउंसिल में वापसी करने के लिए मनु अग्रवाल और मुकेश कुशवाह में से किसी एक की उम्मीदवारी की बलि लेनी होगी । इसके लिए उन्हें पहली वरीयता में इनमें से किसी एक से ज्यादा वोट पाने का प्रयास करना होगा । अनुज गोयल के नजदीकियों के अनुसार, अनुज गोयल ने अभी मुकेश कुशवाह को निशाने पर लिया है । उन्हें लगता है कि गाजियाबाद से चार उम्मीदवार होने के कारण जो समस्या उनके सामने है, वही समस्या मुकेश कुशवाह के सामने भी है और इसलिए वह कोशिश करें तो पहली वरीयता के वोटों की गिनती में मुकेश कुशवाह से आगे हो सकते हैं और सेंट्रल काउंसिल में वापसी कर सकते हैं । इस कोशिश में अनुज गोयल को लेकिन मुकेश बंसल बाधा बनते हुए दिख रहे हैं । मुकेश बंसल पिछले चुनाव में 31 उम्मीदवारों में 968 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर थे । उत्तर प्रदेश के उम्मीदवारों में उनका नंबर पहला था । इससे जाहिर है कि उत्तर प्रदेश के वोटरों पर उनका अच्छा प्रभाव है । इस प्रभाव के साथ मुकेश बंसल यदि अनुज गोयल को हरवाने की बात कहते/करते हैं, और मुकेश कुशवाह का साथ देते हैं - तो अनुज गोयल के लिए मामला मुश्किल तो बनता है । मुकेश बंसल पर दबाव बनाने के लिए अनुज गोयल गाजियाबाद में नितिन गुप्ता को समर्थन देने की बात करते सुने जा रहे हैं । नितिन गुप्ता पिछली बार भी उम्मीदवार थे, और पहली वरीयता के वोटों की गिनती में 487 वोट के साथ 17 वे नंबर पर थे । इस रिकॉर्ड को देखते हुए लगता नहीं है कि अनुज गोयल का समर्थन नितिन गुप्ता को कोई लाभ पहुँचा कर मुकेश बंसल का कुछ बिगाड़ सकेगा । क्या होगा, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन अनुज गोयल के खिलाफ कभी उनके ही नजदीकी रहे मुकेश बंसल के आक्रामक रवैये से सेंट्रल रीजन में चुनावी परिदृश्य दिलचस्प हो उठा है । 

Saturday, July 14, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता तथा सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा जैसे शुभचिंतकों के होते हुए नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पंकज पेरिवाल के मामले में भी इंस्टीट्यूट प्रशासन क्या आरएस बंसल के मामले जैसी कार्रवाई कर सकेगा क्या ?

लुधियाना । पंकज पेरिवाल के ऑफिस में इनकम टैक्स विभाग के छापे के बाद आरएस बंसल से इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों में टैक्स की चोरी करने/करवाने के मामले में 'पकड़े' जाने वाले 'अकेले' पदाधिकारी का तमगा छिन गया है । उल्लेखनीय है कि अभी तक आरएस बंसल ही इंस्टीट्यूट के अकेले पदाधिकारी थे, जो टैक्स की चोरी करने/करवाने के मामले में पकड़े गए हैं । यूँ तो इंस्टीट्यूट के कई पदाधिकारियों, इंस्टीट्यूट की काउंसिल्स के बहुत से सदस्यों पर फर्जी एंट्री के धंधे में लिप्त रहने के आरोप चर्चा में रहे हैं; लेकिन जैसा कि माना/कहा जाता है कि चोर तो वह होता है - जो 'पकड़ा' जाता है, जो पकड़ा नहीं जाता वह तो 'प्रोफेशनल' होता है; इसलिए आरएस बंसल जब 'पकड़े' गए तब उन्हें इंस्टीट्यूट के पहले और अकेले पदाधिकारी होने का खिताब मिला, जो टैक्स की चोरी करने/करवाने के मामले में धरे गए - और इसके चलते उन पर प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट की नाक कटवाने का दाग लगा और जिसके कारण उन्हें सेंट्रल काउंसिल के चुनाव से दूर रहना पड़ रहा है । आरएस बंसल ने हालाँकि पहले उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के बारे में यह सोच कर सोचा था कि इंस्टीट्यूट के चुनाव में बहुत से उम्मीदवार ऐसे हैं जो फर्जी एंट्री का काम करते हैं, इसलिए उन्हें ही क्यों चुनाव से दूर रहना चाहिए - लेकिन फिर जल्दी ही उन्हें 'पकड़े' जाने तथा 'न पकड़े' जाने का फर्क समझ में आ गया और उन्होंने अपने आपको चुनावी झमेले से दूर कर लिया । आरएस बंसल के साथ उनके एक नजदीकी रिश्तेदार अनिल अग्रवाल भी टैक्स की चोरी करने/करवाने के मामले में पकड़े गए थे, जो नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे; पकड़े जाने के बाद जिन्होंने लालू यादव वाला फार्मूला अपना कर अपनी पत्नी रोबिना अग्रवाल को उम्मीदवार बना/बनवा दिया है ।
लगता है कि हम मूल बात से भटक गए हैं जो पंकज पेरिवाल के इनकम टैक्स विभाग की जाँच-पड़ताल की चपेट में आने और इस तरह आरएस बंसल से तमगा छिनने को लेकर थी; इसलिए मूल बात पर लौटते हैं : नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन होने के नाते आरएस बंसल जब टैक्स चोरी करने/करवाने के मामले में 'पकड़े' गए थे, तब वह इंस्टीट्यूट के पहले और अकेले पदाधिकारी 'बने' थे, जो टैक्स चोरी के मामले में पकड़े गए; लेकिन आज नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मौजूदा चेयरमैन पंकज पेरिवाल के ऑफिस में पड़े इनकम टैक्स विभाग के छापे के बाद पंकज पेरिवाल भी 'क्लब' में आरएस बंसल के साथी हो गए हैं । पंकज पेरिवाल के ऑफिस में पड़े छापे का मुख्य कारण आधिकारिक रूप से तो अभी सामने नहीं आ पाया है, लेकिन लोगों के बीच चर्चा यही है कि उनके यहाँ पड़े छापे का संबंध काले को सफेद करने वाले मामले से ही है । आरएस बंसल एक टेलीविजन चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में काले को सफेद करने के काम में 'पकड़े' गए थे, तो पंकज पेरिवाल कुछेक और लोगों के पकड़े जाने के मामले में इनकम टैक्स विभाग द्वारा की गई जाँच-पड़ताल में विभाग के राडार पर आ गए हैं । दोनों के मामले में एक बड़ा फर्क यह भी है कि आरएस बंसल का मामला जब सामने आया था, तब हर कोई इंस्टीट्यूट से उन्हें सजा दिलवाने पर आमादा हो गया था, लेकिन पंकज पेरिवाल के मामले में कई लोग यह तर्क देते/बताते हुए उन्हें 'बचाने' की कोशिशों में लग गए हैं कि उनके यहाँ जो छापा पड़ा है वह विभाग की रूटीन कार्रवाई है और इसे इंस्टीट्यूट और या प्रोफेशन के लिए किसी नकारात्मक भाव से नहीं देखा जाना चाहिए ।
आरएस बंसल के मामले में इंस्टीट्यूट प्रशासन ने खुद ही संज्ञान ले कर उनके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था और उन्हें सजा दी थी, हालाँकि सजा इतनी मामूली सी थी कि लोगों ने उसे सजा की बजाये 'प्रोत्साहन' के रूप में ही देखा/पहचाना था । लेकिन पंकज पेरिवाल के मामले में उतना भी होता हुआ नहीं दिख रहा है । दरअसल इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में पंकज पेरिवाल के कई समर्थक हैं; सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा तो लुधियाना में उनके समर्थन से वोट पाने की तैयारी में हैं, इसलिए पंकज पेरिवाल के और ज्यादा मुसीबत में पड़ने से उनकी तो सारी तैयारी धरी रह जायेगी - जिस कारण राजेश शर्मा किसी भी तरह से पंकज पेरिवाल को बचाने का प्रयास करेंगे । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता भी पंकज पेरिवाल के शुभचिंतक के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं, इसलिए इस बात की किसी को भी उम्मीद नहीं है कि आरएस बंसल के मामले की तरह उनके मामले में भी इंस्टीट्यूट प्रशासन खुद से संज्ञान लेकर कोई कार्रवाई करेगा । हालाँकि संभावना यह भी है कि इंस्टीट्यूट इस समय चूँकि चुनावी हवा में है, इसलिए कुछेक लोग पंकज पेरिवाल के मामले को ठंडे बस्ते में आसानी से नहीं जाने देंगे । चुनावी हवा पंकज पेरिवाल के मामले को कितना भड़कायेगी, यह देखने की बात होगी ।

Friday, July 13, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में अधिष्ठापन समारोह के पैकेज के महँगे होने के आरोप से परेशान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस ने लॉस बेगास में ही अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आरके अग्रवाल को 'गहरा मंत्र' दिया है कि वरिष्ठ लायन को सेक्रेटरी बनाओगे, तो मेरी ही तरह पछताओगे

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस ने पुनीत बंसल व ओंकार सिंह रेनु के व्यवहार से तंग आकर अगले लायन वर्ष के गवर्नर आरके अग्रवाल को लॉस बेगास में एक महत्त्वपूर्ण सलाह यह दी है कि अपना गवर्नर-काल यदि ठीक से चलाना है, तो भूल कर भी किसी वरिष्ठ लायन को कैबिनेट सेक्रेटरी मत बनाना । मजे की बात यह है कि वीके हंस ने आरके अग्रवाल को दी गई इस सलाह को कुछेक दूसरों तक पहुँचाने का काम भी किया है । इसके जरिये वीके हंस ने वास्तव में जाहिर किया है कि पुनीत बंसल व ओंकार सिंह रेनु को कैबिनेट सेक्रेटरी बना कर वह पछता रहे हैं । वीके हंस के लिए मुसीबत की बात यह भी हुई है कि डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी के रूप में पुनीत बंसल व ओंकार सिंह रेनु के रवैये की वह किसी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से शिकायत भी करते हैं, तो उन्हें यही सुनने को मिलता है कि इन्हें सेक्रेटरी बनाने से पहले हम से सलाह की थी क्या; तुम्हीं ने तो इन्हें सेक्रेटरी बनाया है, तो तुम्हीं भुगतो - हम क्या करें ? वीके हंस को ज्यादा शिकायत करता देख/सुन लोग यहाँ तक कहने लगे हैं कि इन दोनों से अच्छी/मोटी रकम ऐंठने के चक्कर में वीके हंस ने इन्हें सेक्रेटरी बनाया है, तो अब शिकायत क्यों कर रहे हैं ? उल्लेखनीय है कि पुनीत बंसल को अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार बनना है, और ओंकार सिंह रेनु इसी वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनने की 'तैयारी' में हैं - इसलिए इन्हें डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बनने में अपना अपना राजनीतिक फायदा दिखा और वीके हंस को इन्हें बनाने में आर्थिक फायदा हुआ, तो इस दोहरे फायदे के चलते यह डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बन गए ।
लोगों को हैरानी हालाँकि इस बात पर है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वीके हंस का कामकाज अभी शुरू भी नहीं हुआ है, तब फिर वह पुनीत बंसल व ओंकार सिंह रेनु से आखिर किस बात पर नाराज हो गए हैं और उन्हें सेक्रेटरी बनाने के अपने फैसले पर पछताने लगे हैं ? वीके हंस के नजदीकियों का कहना है कि वीके हंस इन दोनों से दरअसल इस बात पर खफा हैं कि यह दोनों उन्हें फोन करके कुछ पूछते/बताते ही नहीं हैं; इसलिए जब कुछ काम होता है, तब वीके हंस को ही इन्हें फोन करना पड़ता है । पिछले कई दिनों से अमेरिका और कनाडा में घूम रहे तथा काम कर रहे वीके हंस इस बात से भी आहत हैं कि सेक्रेटरी होने के बावजूद पुनीत बंसल और ओंकार सिंह रेनु दिल्ली लौटने के अवसर पर उनके स्वागत के लिए कोई तैयारी ही नहीं कर रहे हैं । आरके शाह के रवैये से भी वीके हंस को झटका लगा है । उन्हें उम्मीद थी कि कम से कम आरके शाह तो उनके वापस लौटने के अवसर पर उनके स्वागत की तैयारी करेंगे/करवायेंगे, क्योंकि आरके शाह को इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनना' है और इसके लिए वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनके मान/सम्मान का ध्यान रखेंगे । वीके हंस ने अपने नजदीकियों से शिकायती लहजे में कहा है कि आरके शाह ने लगता है कि अपने आपको सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मान ही लिया है, और इसलिए एक उम्मीदवार के रूप में वह कुछ भी करने को तैयार नहीं दिखते हैं । पुनीत बंसल, ओंकार सिंह रेनु और आरके शाह के रवैये से निराश/हताश हो कर वीके हंस ने दिल्ली लौटने के अवसर पर अपने स्वागत की तैयारी करवाने की जिम्मेदारी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आरके अग्रवाल को सौंपी है, और आरके अग्रवाल ही वीके हंस के स्वागत में जुटने के लिए लोगों को राजी करने के काम में लगे हैं ।
पुनीत बंसल और ओंकार सिंह रेनु को लेकर वीके हंस की शिकायत यह भी है कि यह दोनों गोवा में होने वाले डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के काम में भी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, और जिस कारण अधिष्ठापन समारोह की तैयारी पिछड़ी हुई है । तैयारी तो पिछड़ी हुई है ही, रजिस्ट्रेशन चार्जेज को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है । गोवा में इन महीनों में ऑफ सीजन है, इसलिए दो रातों के लिए दस हजार रुपये प्रति व्यक्ति के रजिस्ट्रेशन चार्जेज लोगों को ज्यादा लग रहे हैं । कुछेक लोगों का दावा है कि वह इस सीजन में गोवा के अच्छे से अच्छे रिसॉर्ट्स में इससे काफी कम रकम में बुकिंग दिलवा सकते हैं । महँगे रजिस्ट्रेशन की शिकायत करते हुए लोगों का कहना है कि लगता है कि अधिष्ठापन समारोह के नाम पर वीके हंस ने मोटी कमाई की 'व्यवस्था' कर ली है । वास्तव में इसी तरह के आरोपों के चलते अधिष्ठापन समारोह के लिए रजिस्ट्रेशन का काम ढीला पड़ा हुआ है । अधिष्ठापन समारोह की तैयारी से जुड़े लोगों का कहना है कि वीके हंस ने एक तो महँगा पैकेज बनाया, जिसमें ज्यादा लोगों को विश्वास में भी नहीं लिया - और फिर खुद अमेरिका/कनाडा घूम रहे हैं, तथा लोगों के नाराजगी भरे सवालों का सामना हमें करना पड़ रहा है । वास्तव में, महँगे पैकेज की शिकायत करने वाले लोगों का गुस्सा यह देख/जान कर और भड़क रहा है कि पैकेज महँगा क्यों है, यह बताने वाला भी कोई नहीं है । वीके हंस की शिकायत है कि महँगे पैकेज का वास्ता देकर लोगों को भड़काने का काम डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोग ही कर रहे हैं; किंतु उनकी बड़ी शिकायत अपने साथ के पुनीत बंसल व ओंकार सिंह रेनु जैसे उन लोगों से है, जो बड़े बड़े पद लेकर तो बैठ गए हैं, लेकिन जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार नहीं हैं । इसीलिए लॉस बेगास में ही उन्होंने आरके अग्रवाल को 'गहरा मंत्र' दे दिया है कि वरिष्ठ लायन को सेक्रेटरी बनाओगे, तो मेरी ही तरह पछताओगे । हालाँकि दूसरे कई लोगों का कहना है कि वीके हंस को ही काम करना/लेना नहीं आता है, और वह समझ रहे हैं कि गवर्नर के रूप में उन्हें तो बस घूमना/फिरना है और तरह तरह से 'कमाई' करनी है - काम दूसरे लोग करेंगे ।

Thursday, July 12, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन को अलग-थलग करके इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट भरत पांड्या से जुगाड़ बैठा कर पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल की रोटरी रिसोर्स ग्रुप तथा जोन इंस्टीट्यूट में प्रमुख पद पाने की हसरत सचमुच पूरी हो सकेगी क्या ?

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल ने अपने राजनीतिक स्वार्थ साधने के चक्कर में एक तरफ इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट भरत पांड्या के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है, तो दूसरी तरफ अपने ही क्लब के प्रेसीडेंट अजय अग्रवाल के लिए फजीहत वाली स्थिति बना दी है । रमेश अग्रवाल के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली अशोका के नए पदाधिकारियों के 14 जुलाई को हो रहे अधिष्ठापन समारोह में भरत पांड्या को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है । भरत पांड्या को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने का आईडिया रमेश अग्रवाल का है, जिसे क्लब के प्रेसीडेंट ने पहले तो खुशी खुशी स्वीकार कर लिया - लेकिन जब उन्हें 'पता' चला कि ऐसा करने की प्रक्रिया में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता को तो छोड़िये, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन तक को उपेक्षित व अपमानित किया गया है, तब प्रेसीडेंट अजय अग्रवाल का माथा ठनका । दरअसल भरत पांड्या का कार्यक्रम तय करने से पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन तक को विश्वास में नहीं लिया गया, ताकि सुभाष जैन को उस कार्यक्रम से दूर रखा जा सके । समझा जाता है कि यह रमेश अग्रवाल की चालबाजी रही कि वह यदि पहले से सुभाष जैन तथा अन्य दो पदाधिकारियों को 14 जुलाई के कार्यक्रम में भरत पांड्या के आने की बात बताते, तो यह लोग उस दिन और कोई कार्यक्रम तय नहीं करते; इन तीनों को 14 जुलाई के कार्यक्रम का निमंत्रण तब मिला जब यह उस दिन के लिए अपने कार्यक्रम तय कर चुके हैं । इस तरह रमेश अग्रवाल ने 'साँप भी मार दिया और लाठी को भी टूटने से बचा लिया' - रोटरी इंटरनेशनल के तीनों पदाधिकारियों को 14 जुलाई के कार्यक्रम का निमंत्रण भी दे दिया गया है, और यह भी सुनिश्चित कर लिया गया है कि यह तीनों कार्यक्रम में आ न सकें; और भरत पांड्या के साथ रमेश अग्रवाल को ज्यादा समय बिताने का मौका मिल सके ।
रमेश अग्रवाल को भरत पांड्या के साथ अकेले ज्यादा समय बिताने की जरूरत इसलिए है, क्योंकि उन्हें भरत पांड्या से कई फेवर लेने हैं । इस वर्ष रोटरी रिसोर्स ग्रुप में कुछेक महत्त्वपूर्ण पद खाली होकर भरे जाने हैं, जिन पर रमेश अग्रवाल की निगाह है; वह रोटरी इंडिया विन्स के सेक्रेटरी पद से 'ऊपर' उठना चाह रहे हैं, और इस काम में भरत पांड्या उनकी मदद कर सकते हैं । इसके अलावा, भरत पांड्या को अगले कुछ दिनों में अगले रोटरी वर्ष में होने वाली जोन इंस्टीट्यूट के लिए प्रमुख पदाधिकारियों का चयन करना है - और रमेश अग्रवाल को उन प्रमुख पदाधिकारियों की सूची में भी अपना नाम लिखवाना है । यही कुछ जुगाड़ बैठाने के लिए रमेश अग्रवाल ने भरत पांड्या को अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है । समारोह में पधारे भरत पांड्या और उनके बीच कोई 'डिस्टरबेंस' न हो - इसके लिए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन के साथ ऐसा व्यवहार किया कि सुभाष जैन कार्यक्रम में पहुँच ही न सकें । भरत पांड्या चूँकि दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता के डायरेक्टर होंगे, और इस कारण से यह दोनों भी भरत पांड्या के साथ संबंध बनाने के उनके प्रयासों को डिस्टर्ब कर सकते हैं, इसलिए इन्हें भी सम्मानपूर्वक आमंत्रण नहीं दिया गया है, ताकि यह भी कार्यक्रम से दूर ही रहें । रमेश अग्रवाल की इस चालबाजी ने लेकिन भरत पांड्या के लिए खासी मुसीबत खड़ी कर दी है । रोटरी के प्रोटोकॉल के अनुसार, इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट के रूप में भरत पांड्या को किसी भी डिस्ट्रिक्ट में उसके गवर्नर को विश्वास में लेकर ही जाना चाहिए - और कम से कम किसी ऐसे कार्यक्रम में तो शामिल नहीं ही होना चाहिए, जिसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व अन्य दो पदाधिकारियों की उपेक्षा व अपमान हो रहा हो । रमेश अग्रवाल की चालबाजी के कारण लेकिन भरत पांड्या रोटरी के प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने के लिए मजबूर हो गए हैं, और इससे रोटरी में उनकी छवि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा ही ।
रमेश अग्रवाल की यह चालबाजी भरत पांड्या के लिए ही मुसीबत का कारण नहीं बनी है, बल्कि उनके क्लब के प्रेसीडेंट अजय अग्रवाल के लिए भी परेशानी का सबब बन गई है । रमेश अग्रवाल की हरकत के चलते अजय अग्रवाल के सामने अपने प्रेसीडेंट पद का कार्यकाल शुरू होते ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की 'काली सूची' में आ जाने का खतरा पैदा हो गया है । क्लब के पिछले प्रेसीडेंट मोहित गुप्ता को भी रमेश अग्रवाल ने अपनी ऐसी ही हरकत से फँसाया था । मोहित गुप्ता के अधिष्ठापन समारोह की चाबी अपने पास रखते हुए रमेश अग्रवाल ने तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल को उक्त कार्यक्रम में उचित तरीके से आमंत्रित नहीं किया /करवाया था, जिसका बदला सतीश सिंघल ने सिर्फ मोहित गुप्ता से ही नहीं, बल्कि उनके पिता वरिष्ठ रोटेरियन सतीश गुप्ता तक से भी लिया । वह तो सतीश सिंघल चूँकि खुद फजीहत का शिकार हो गए और अपनी गवर्नरी पूरी नहीं कर सके, इसलिए सतीश सिंघल का बदला पूरा नहीं हो सका और मोहित गुप्ता व सतीश गुप्ता बच गए । सतीश सिंघल के साथ रमेश अग्रवाल का चूँकि छत्तीस का आँकड़ा था, इसलिए उनके साथ रमेश अग्रवाल ने जो व्यवहार किया, वह तो समझ में आता है; किंतु सुभाष जैन के साथ भी रमेश अग्रवाल 'दुश्मनों' जैसा व्यवहार करेंगे - यह किसी ने नहीं सोचा था । डीआरएफसी बनने में असफल रहने का ठीकरा रमेश अग्रवाल ने मुख्य तौर पर आलोक गुप्ता के सिर फोड़ा है, इसलिए भी सुभाष जैन के प्रति उनका यह व्यवहार हर किसी को चौंका ही रहा है । रमेश अग्रवाल को नजदीक से जानने वाले लोगों का कहना हालाँकि यह है कि इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है, रमेश अग्रवाल हैं ही ऐसे । रमेश अग्रवाल के बारे में किसी ने कहा भी है - 'ऐसा कोई सगा नहीं, रमेश अग्रवाल ने जिसे ठगा नहीं ।'
रमेश अग्रवाल को जानने वालों का कहना है कि रमेश अग्रवाल अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, इसलिए भरत पांड्या के सामने अकेले अपने आप को 'दिखाने' तथा भरत पांड्या की कृपा से कुछ बड़े पद पा लेने का जुगाड़ बैठाने के लिए उन्होंने अपने क्लब के नए पदाधिकारियों के एक प्रमुख कार्यक्रम में प्रोटोकॉल के लिहाज से डिस्ट्रिक्ट के तीन पदाधिकारियों का ही पत्ता काट दिया है । आगे के दिनों में यह देखना/जानना दिलचस्प होगा कि इतना कुछ करने के बाद भी भरत पांड्या से रमेश अग्रवाल कुछ पाने में कामयाब होते हैं या नहीं !

Wednesday, July 11, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए राजिंदर नारंग की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने पहले से ही मुसीबतों में घिरी चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग की उम्मीदवारी को और गहरी मुसीबत में धकेल दिया है

नई दिल्ली । राजिंदर नारंग द्वारा सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी को चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग ने अपने अपने लिए एक मुसीबत के रूप में देखा/पहचाना है, और इसीलिए इनकी तरफ से राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी को वापस करवाने के लिए तरह तरह की कोशिशें हो रही हैं । चरनजोत सिंह नंदा और हंसराज चुग के नजदीकियों की तरफ से जो कुछ सुनने को मिल रहा है, उसके अनुसार इनके लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि राजिंदर नारंग का जो आधार क्षेत्र है - उसमें इन्होंने पिछले दिनों अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने वास्ते काफी काम किया है, और इन्हें लगता है कि उक्त क्षेत्र में इन्होंने अपने अपने लिए अच्छा समर्थन जुटाया है । इन्हें लग रहा है कि लेकिन राजिंदर नारंग ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अचानक से उम्मीदवारी प्रस्तुत करके इनकी सारी 'मेहनत' पर पानी फेर दिया है और इनकी पूरी योजना का गुड़ गोबर कर दिया है । उल्लेखनीय है कि चरनजोत सिंह नंदा सेंट्रल काउंसिल में पुनर्वापसी के लिए जोर लगा रहे हैं, तो हंसराज चुग सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश करने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं । हंसराज चुग ने पिछली बार भी चुनाव लड़ा था, और वह थोड़े से अंतर से ही सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश करने से रह गए थे । अबकी बार उन्होंने सेंट्रल काउंसिल के लिए पहले से ही चुनावी तैयारी शुरू कर दी थी, ताकि पिछली बार रह गई कमी को पूरा किया जा सके । हंसराज चुग की तैयारी को लेकिन राजिंदर नारंग की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी से ग्रहण लगता नजर आ रहा है ।
राजिंदर नारंग इंस्टीट्यूट की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं, और हिसार ब्रांच के सदस्य हैं । हरियाणा के वेस्टर्न हिस्से का प्रतिनिधित्व करता हिसार एक ऐतिहासिक शहर है, जो भावनात्मक रूप से एक तरफ रोहतक व भिवानी से जुड़ता है, और दूसरी तरफ सिरसा व भटिंडा तक अपनी पहुँच बनाता, तथा तीसरी तरफ जींद, कैथल, कुरुक्षेत्र के रास्ते पानीपत व सोनीपत को अपने घेरे में लेता है । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में इस क्षेत्र को भारी उपेक्षा सहनी पड़ती है; दिल्ली के उम्मीदवार लोग चंडीगढ़, लुधियाना, जालंधर अमृतसर और शिमला तक के तो चक्कर लगा लेंगे, लेकिन यहाँ यदा-कदा ही झाँकने आयेंगे । हालाँकि इसका वाजिब कारण भी है - ब्रांचेज छोटी छोटी हैं, और उनके सदस्य भी आसपास के शहरों/कस्बों तक फैले हुए हैं । इस कारण न तो यहाँ से कोई उम्मीदवार बनने की हिम्मत करता है, और न दिल्ली या चंडीगढ़/लुधियाना के उम्मीदवार यहाँ समय और मेहनत खराब करना चाहते हैं । इस पूरे क्षेत्र में साढ़े तीन हजार से लेकर चार हजार के बीच चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हैं, और जो एक बड़े क्षेत्रफल में फैले/बिखरे हुए हैं । राजिंदर नारंग पहले और अकेले चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र को इंस्टीट्यूट के राजनीतिक नक्शे पर पहचान दिलाई है । रीजनल काउंसिल के पिछले चुनाव में इसी क्षेत्र के समर्थन के भरोसे राजिंदर नारंग 58 उम्मीदवारों में 777 वोटों के साथ छठे नंबर पर रहे थे । राजिंदर नारंग की कामयाबी ने दिखाया/बताया कि सफलता सिर्फ दिल्ली या चंडीगढ़/लुधियाना जैसे बड़े इलाकों/शहरों की ही बपौती नहीं है, बल्कि तुलनात्मक रूप से एक छोटे क्षेत्र को अपना आधार-क्षेत्र बना कर भी चुनावी सफलता प्राप्त की जा सकती है । राजिंदर नारंग ने रीजनल काउंसिल के चुनाव में हिसार और आसपास के क्षेत्र को जो राजनीतिक पहचान दिलाई, उसी क्षेत्र में चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग ने सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के लिए शरण पाने का प्रयास किया ।
चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग ने अलग अलग कारणों से पिछले दिनों हिसार और उसके आसपास के क्षेत्र को अपनी सक्रियता का केंद्र बनाया हुआ है । दरअसल, चरनजोत सिंह नंदा को सेंट्रल काउंसिल में पुनर्वापसी करने की अपनी कोशिश में दिल्ली तथा चंडीगढ़, लुधियाना, अमृतसर जैसे बड़े इलाके व शहरों में विरोध का सामना करना पड़ रहा है । सेंट्रल काउंसिल में पुनर्वापसी की उनकी कोशिश को लोग अच्छी निगाह से नहीं देख रहे हैं और मान रहे हैं कि चरनजोत सिंह नंदा इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के हित में नहीं, बल्कि अपने निजी स्वार्थ में यह पुनर्वापसी करना चाह रहे हैं । कई जगह चरनजोत सिंह नंदा को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स - खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के तीखे विरोधभरे सवालों का सामना करना पड़ा है कि वह तमाम वर्ष सेंट्रल काउंसिल में रह चुके हैं, लिहाजा ऐसा कौन सा काम है - जो वह इतने वर्षों में नहीं कर सके और जिसके लिए वह फिर से सेंट्रल काउंसिल में आना चाहते हैं ? अपनी उम्मीदवारी का इस तरह विरोध होता देख चरनजोत सिंह नंदा ने उपेक्षित हिसार और उसके आसपास के क्षेत्र पर ध्यान देना शुरू किया । हंसराज चुग ने पिछली बार के चुनाव में काफी मेहनत की थी, पिछली बार चुनाव के समय वह रीजनल काउंसिल के सदस्य थे और उसका फायदा उन्हें मिला ही था - जो अब की बार उन्हें नहीं मिल सकेगा । ऐसे में उनके सामने यह चुनौती थी कि वह अपने समर्थन को बढ़ाने के लिए नए क्षेत्र खोजें, और इसी चुनौती को पूरा करने के लिए उन्होंने भी हिसार और आसपास के क्षेत्र पर ध्यान देना शुरू किया । दिल्ली और चंडीगढ़/लुधियाना में दौड़ लगाने वाले अधिकतर उम्मीदवारों को चूँकि इस क्षेत्र पर ध्यान नहीं था, इसलिए चरनजोत सिंह नंदा और हंसराज चुग ने अपने अपने तरीके से अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए इस क्षेत्र पर जो ध्यान दिया, उसका उन्हें सुफल भी मिलता नजर आ रहा था ।
लेकिन राजिंदर नारंग के सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से चरनजोत सिंह नंदा और हंसराज चुग को अपनी सारी तैयारी पर पानी फिरता दिख रहा है । इनके नजदीकियों का कहना है कि इन्हें दरअसल उम्मीद नहीं थी कि राजिंदर नारंग सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार हो जायेंगे । राजिंदर नारंग ने अचानक से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके चौंकाया तो कई लोगों को, लेकिन चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग की तो चुनावी व्यूह रचना को ही ध्वस्त कर दिया है । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में उपेक्षा का शिकार होने/रहने वाले हिसार क्षेत्र को राजिंदर नारंग ने पहचान व प्रतिष्ठा तो दिलवाई ही है, इंस्टीट्यूट की प्रशासनिक व्यवस्था का भी ध्यान इस क्षेत्र की तरफ खींचा है । पिछले पाँच/छह वर्षों में इस क्षेत्र में जो नई नई ब्रांचेज खुली हैं तथा स्टडी सर्किल शुरू हुए हैं, उन्हें क्षेत्र के लोगों के बीच राजिंदर नारंग की उपलब्धियों के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसे में, राजिंदर नारंग के उम्मीदवार हो जाने से इन्हें अब इस क्षेत्र में कुछ मिलता हुआ नहीं दिख रहा है । राजिंदर नारंग की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने पहले से ही मुसीबतों में घिरी चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग की उम्मीदवारी को और गहरी मुसीबत में धकेल दिया है । इनके नजदीकियों का कहना है कि इस अचानक आ टपके खतरे से निपटने के लिए इन्होंने अलग अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हुए राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी को वापस करवाने के लिए प्रयास शुरू किए हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि इनके प्रयास सफल होते हैं या राजिंदर नारंग अपनी उम्मीदवारी के जरिये इनके लिए मुसीबत बने ही रहते हैं । 

Monday, July 9, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में वंदना निगम व श्याम निगम की 'धोखाधड़ी' से खफा दीपक राज आनंद व अजय डैंग द्वारा की जाने वाली कानूनी कार्रवाई वंदना निगम के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद को फिर से खतरे में डालेगी क्या ?

कानपुर । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी पा चुकीं वंदना निगम तथा उनके पति श्याम निगम को अब अपने ही खेमे के लोगों की तरफ से धोखेबाज होने का आरोप सुनना/झेलना पड़ रहा है और अपनी गवर्नरी को बचाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है । उनके ही साथियों और नजदीकियों का कहना है कि गवर्नरी पाने के लालच में इन दोनों ने दीपक राज आनंद व अजय डैंग के साथ धोखा किया है । साथियों और नजदीकियों का कहना है कि यह दोनों दीपक राज आनंद व अजय डैंग के साथ धोखा नहीं करते और इनके अधिकार व सम्मान को बचाने के लिए प्रयास करते, तो भी वंदना निगम डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद पाती हीं - लेकिन दीपक राज आनंद व अजय डैंग के सम्मान व अधिकार को अनदेखा करके इन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए वह किसी की भी बलि चढ़ा सकते हैं । उल्लेखनीय है कि वंदना निगम हालाँकि यह दावा तो पहले से ही करती रही हैं कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के नाम पर जो भी गड़बड़झाला हुआ है, उसके लिए उन्हें नाहक ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है - जबकि उसके लिए पूरी तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक राज आनंद जिम्मेदार हैं । वंदना निगम की इस बात का दीपक राज आनंद तथा दूसरे लोगों ने इसलिए बुरा नहीं माना, क्योंकि उन्हें लगा कि वंदना निगम डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपना भरोसा बनाये रखने के लिए ऐसा कह रही हैं । लोगों को लगा कि वंदना निगम को चूँकि गवर्नरी करनी है और इसके लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनका भरोसा बने रहना जरूरी है, इसलिए वह यदि सारा दोष दीपक राज आनंद पर मढ़ रही हैं, तो दीपक राज आनंद को इसे अनदेखा/अनसुना कर देना चाहिए; आखिर खेमे के साथियों को मुसीबत के समय एक-दूसरे के लिए इतना तो करना ही चाहिए । निगम दंपति ने लेकिन लॉस वेगास में जो रवैया दिखाया और जिस तरह से दीपक राज आनंद व अजय डैंग के सम्मान व अधिकार को चुपचाप चोट पहुँचने दी, उसके चलते दीपक राज आनंद व अजय डैंग तथा खेमे के अन्य साथियों ने अपने आप को निगम दंपति के हाथों ठगा हुआ पाया है ।
दीपक राज आनंद, अजय डैंग तथा खेमे के अन्य सदस्यों का कहना है कि लायंस इंटरनेशनल ने जो फैसला लिया है, उससे ज्यादा झटका/धक्का तो उन्हें वंदना निगम और श्याम निगम के रवैये को देख कर लगा है । इन्होंने एकबार भी लीडरशिप के सामने यह नहीं कहा कि दीपक राज आनंद या अजय डैंग के साथ 'अन्याय' क्यों किया जा रहा है ? खेमे के लोगों का कहना है कि हो सकता है कि इनकी बात न सुनी जाती, और इनके कहने के बावजूद भी फैसला वही होता, जो हुआ है - लेकिन हमें इस बात की तसल्ली तो होती कि मुश्किल समय में यह हमारे साथ खड़े थे । लेकिन वंदना निगम और श्याम निगम की चुप्पी ने यह साबित किया कि ये सिर्फ मतलब के साथी हैं, और किसी के साथ भी कभी भी धोखा कर सकते हैं ।
वंदना निगम व श्याम निगम के प्रति उनके अपने खेमे में पैदा हुई नाराजगी तथा दीपक आनंद व अजय डैंग द्वारा लायंस इंटरनेशनल के फैसले की खामियों पर कानूनी सलाह लेने और अपने सम्मान व अधिकार के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने के विकल्प पर विचार करने की खबरों से संकेत मिल रहे हैं कि वंदना निगम को गवर्नरी मिल तो गई है - लेकिन वह ज्यादा दिन उनके पास रह पायेगी, इसे लेकर लेकर संदेह है । लायंस इंटरनेशनल के फैसले में कानूनी खामी यह देखी/पहचानी जा रही है कि वंदना निगम और बलविंदर सैनी को 'प्रोमोट' करने के फैसले से साबित यह हो रहा है कि लायंस इंटरनेशनल ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को वैध माना/पाया है; और यदि सचमुच डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को वैध माना/पाया गया है तो उसी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'चुने' गए अजय डैंग को उनका अधिकार क्यों नहीं दिया गया ? दरअसल डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू का झगड़ा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के 'होने' या 'न होने' को लेकर था - एक पक्ष कह रहा था कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस हुई है, दूसरे पक्ष का दावा था कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस नहीं हुई है । लायंस इंटरनेशनल यदि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस 'होने' के दावे को सच मानता तो वंदना निगम व बलविंदर सैनी 'प्रोमोट' होते तथा अजय डैंग सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित होते; लेकिन यदि लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस 'न होने' के दावे को सच मानता, तो ये तीनों पद पाने के अयोग्य माने जाते - और फिर व्यावहारिकता के तकाजे से यह होता कि वंदना निगम व बलविंदर सैनी 'नोमीनेट' होते और अजय डैंग को कुछ नहीं मिलता । लायंस इंटरनेशनल के फैसले में पेंच लेकिन यह फँसा है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की वैधता को लेकर तो कोई निर्णय नहीं लिया/दिया गया है, तथा वंदना निगम व बलविंदर सैनी को 'प्रोमोट' किया गया है । इन दोनों को 'नोमीनेट' की बजाये 'प्रोमोट' करने के फैसले से साबित होता है कि लायंस इंटरनेशनल ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को वैध माना है - तब फिर सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर उसमें हुई अजय डैंग की जीत को स्वीकार करने से क्यों इंकार कर दिया गया है ?
दीपक राज आनंद के बारे में लिए गए फैसले में तो और भी झोल देखा/पहचाना गया है । दीपक राज आनंद को लायनिज्म की छवि खराब करने के आरोप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्त करने तथा उन्हें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का ओहदा न देने का फैसला हुआ है । दीपक राज आनंद का कहना/पूछना है कि उन्होंने ऐसा क्या किया है, जिससे लायनिज्म की छवि खराब हुई है । उनका कहना है कि उनके खिलाफ कभी कोई आरोप ही नहीं लगा, और उन्हें 'अपराधी' घोषित करने से पहले किसी भी मामले में न उनका पक्ष लिया गया । उनका दावा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्होंने सभी काम पूरी दक्षता से किए हैं, और उनके किसी भी काम में कभी कोई शिकायत नहीं हुई; सदस्यता वृद्धि के काम में तो उन्होंने रिकॉर्ड स्थापित किया है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के झमेले में भी उन पर जो आरोप लगे हैं, लायंस इंटरनेशनल ने उनमें भी किसी आरोप को सत्यापित नहीं किया है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में कुछेक क्लब्स को वोटिंग अधिकार न देने का जो आरोप उन पर लगा है, उन्हें लेकर भी उनका कहना/पूछना है कि जिस आधार पर वह क्लब्स को वोटिंग अधिकार नहीं दे रहे थे, उस 'आधार' पर वोटिंग अधिकार देने से इंकार करने का अधिकार उन्हें लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानून ही देते हैं । और सौ बात की एक बात - वंदना निगम व बलविंदर सैनी को 'प्रोमोट' करने के जरिये जब लायंस इंटरनेशनल ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को वैधता दे दी, उससे यही तो साबित हुआ है कि लायंस इंटरनेशनल ने तमाम आरोपों को खारिज कर दिया है - तब फिर उन्हें किस बात की सजा ? लायंस इंटरनेशनल ने यदि आरोपों को सही पाया होता, तो वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अवैध घोषित करता और उसमें हुए फैसलों को अमान्य करता - वंदना निगम व बलविंदर सैनी को 'प्रोमोट' न करता ।
दीपक राज आनंद व अजय डैंग के अपने सम्मान और अधिकार को बचाने के लिए कानूनी कार्रवाई के विकल्पों पर विचार किए जाने की सूचना ने वंदना निगम के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को खतरे में डालने की संभावना पैदा कर दी है । वंदना निगम को डर हुआ है कि कानूनी कार्रवाई के चलते उन्हें मिला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद कहीं उनसे छिन न जाए । इस कारण से वंदना निगम और श्याम निगम तरह तरह से दीपक राज आनंद व अजय डैंग पर दबाव बन रहे हैं कि जो हुआ उसे एक दुःस्वप्न मान कर वह नई पहल की तरफ बढ़ें । दीपक राज आनंद व अजय डैंग और खेमे के दूसरे लोग लेकिन चूँकि लॉस बेगास में निगम दंपति द्वारा दर्शाये गए मतलबी व स्वार्थी रवैये से आहत महसूस कर रहे हैं, इसलिए वह अपने सम्मान और अधिकार को बचाने के साथ-साथ निगम दंपति को सबक भी सिखाना चाहते हैं । यानि डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में उठा-पटक अभी और चलेगी तथा सीन में मजेदार ट्विस्ट यह आया है कि वंदना निगम और श्याम निगम को अपने ही लोगों के साथ की गई 'धोखाधड़ी' का भी भुगतान भुगतना होगा ।

Sunday, July 8, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अशोक अग्रवाल ने अपने क्लब के सदस्यों को विश्वास में लेने के साथ साथ अपनी तरफ से डिस्ट्रिक्ट के लोगों से संपर्क करने की अपनी कोशिशों को भी बढ़ाया है, जिसका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में उन्हें अच्छा नतीजा भी मिलता दिख रहा है

गाजियाबाद । अशोक अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु न सिर्फ अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना शुरू किया है, बल्कि अपनी सक्रियता को भी बढ़ाया है, और वन-टू-वन पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया है । मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अधिकतर लोग अशोक अग्रवाल की स्थिति को ही मजबूत मान रहे हैं, और अधिकतर लोगों को लग रहा है कि उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार के रूप में अमित गुप्ता के लिए उनका मुकाबला करना मुश्किल क्या, असंभव ही होगा । कई एक लोगों ने तो कहना भी शुरू कर दिया कि अमित गुप्ता जब अशोक अग्रवाल की मजबूत स्थिति को देखेंगे और पायेंगे कि डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर लोग अशोक अग्रवाल के साथ हैं, तो वह अपनी उम्मीदवारी को वापस ही ले लेंगे । अधिकतर लोगों की इस राय और समझ ने लगता है कि अशोक अग्रवाल को अति-विश्वास से भर दिया और उन्होंने खुद को विजेता मानना/समझना शुरू भी कर दिया । लेकिन अमित गुप्ता को जब चुनावी मैदान में डटे देखा/पाया गया और महसूस किया गया कि अमित गुप्ता धीरे धीरे ही सही - चुनावी लड़ाई में 'टिक' और आगे बढ़ रहे हैं, तब अशोक अग्रवाल और उनके नजदीकियों का माथा ठनका । उन्हें डर हुआ कि अमित गुप्ता के साथ होने वाली उनकी चुनावी लड़ाई कहीं कछुए व खरगोश की दौड़ वाली कहानी को न दोहरा दे - जिसमें खरगोश और उसके साथी कछुए को दौड़ में कहीं देख/मान ही नहीं रहे थे व निश्चिन्त हो गए थे; और उनकी आँख तब 'खुली', जब उन्होंने दौड़ में अपने को पिछड़ा तथा कछुए को जीता हुआ पाया ।
अशोक अग्रवाल और उनके साथियों ने लगता है कि इस बात को समझा/पहचाना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में अभी वह भले ही आगे दिख रहे हैं - लेकिन उनके और अमित गुप्ता के बीच की दूरी कम भी होती जा रही है; और उन्होंने यदि लापरवाही बरतना जारी रखा तो उन्हें पीछे होने में भी देर नहीं लगेगी । दरअसल चुनावी प्रक्रिया में उम्मीदवार से लोगों को - खासकर 'अपने' लोगों को कुछ अलग किस्म की उम्मीदें हो जाती हैं, और वह एक अलग तरीके से 'सेंटीमेंटल' हो जाते हैं । कई बार उम्मीदवारों को यह गलती करते देखा गया है कि वह 'अपने' लोगों पर यह सोच कर ध्यान देना कम या बंद कर देते हैं कि यह तो 'अपना' है ही; उसका यह रवैया देख कर उसका 'अपना' सोचता है कि इसमें अभी से इतनी अकड़ आ गई है और यह अभी से ही हमें तवज्जो नहीं दे रहा है, सो वही 'अपने' उसे सबक सिखाने के लिए उसकी जड़ें खोद देते हैं - फिर वह उम्मीदवार 'मुझे तो अपनों ने ही मारा. गैरों में कहाँ दम था' बुदबुदाते हुए अपने दिन काटता है । यूँ तो यह हर 'स्तर' पर होता है - जैसा कि डिस्ट्रिक्ट में सतीश सिंघल के साथ हुआ; उनके क्लब के जिन लोगों ने ब्लड बैंक बनवाने में उनका हर तरह से साथ दिया था, सतीश सिंघल के व्यवहार से अपमानित महसूस करते हुए उन्हीं लोगों ने ही सतीश सिंघल को 'तबाह' भी कर दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अशोक अग्रवाल और उनके साथियों को खटका यह देख कर हुआ कि डिस्ट्रिक्ट में जब सभी उनके साथ हैं, तो अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को खाद-पानी आखिर कौन दे रहा है ?
अशोक अग्रवाल ने इस बीच अलग अलग बहानों से दो एक बड़ी पार्टियाँ दीं, जिनमें लोगों की अच्छी भागीदारी भी रही; इससे अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल तो अच्छा बना, लेकिन साथ साथ ही यह महसूस भी किया गया कि इससे लोगों के साथ व्यक्तिगत स्तर पर उनकी बॉन्डिंग नहीं बन रही है । कई लोग शिकायत करते हुए भी सुने गए कि अशोक अग्रवाल जब बिलकुल सामने ही पड़ जाते हैं, तब तो बड़े तपाक से मिलते हैं, लेकिन वैसे उनकी न तो कोई खोज-खबर लेते हैं और न अपनी तरफ से उनसे मिलने या बात करने की कोशिश करते हैं । इस तरह की बातों से अशोक अग्रवाल और उनके साथियों को वन-टू-वन मिलने पर ध्यान देने की जरूरत महसूस हुई । हाल-फिलहाल के दिनों में अशोक अग्रवाल ने अपने क्लब के सदस्यों पर भी ध्यान देना शुरू किया है; अभी तक वह अपने क्लब के गिने-चुने सदस्यों के साथ ही दिखाई देते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछेक दिनों में उन्होंने अपने क्लब के अधिकतर सदस्यों को विश्वास में लेना शुरू किया है और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु उन्हें सक्रिय करने का प्रयास किया है । अशोक अग्रवाल ने अपनी तरफ से लोगों से संपर्क करने की अपनी कोशिशों को भी बढ़ाया है, जिसका उन्हें अच्छा नतीजा मिलता दिख रहा है । अशोक अग्रवाल के रवैये में बदलाव आया है, तो उनके समर्थकों व शुभचिंतकों का भी उत्साह बढ़ा है - और समर्थकों व शुभचिंतकों के इस उत्साह ने अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के दावे को फिर से मजबूती देने का काम किया है ।

Saturday, July 7, 2018

रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारी गुलाम वहनवती 'भ्रष्ट आचरण के प्रति पूर्ण असहिष्णु बनें' का आह्वान तो जब तब करते रहते हैं, लेकिन जब देश और रोटरी को बदनाम करने वाले मगरमच्छों का मामला सामने आता है, तो उन्हें साँप सूँघ जाता है; उर्फ़ राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की हरकतें

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल 'सिर मुड़ाते ओले पड़ने' वाले मुहावरे के उदाहरण बन गए हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी पर बैठे उन्हें अभी मुश्किल से सप्ताह भर का समय हुआ है, कि चंडीगढ़ रोटरी क्लब सर्विस ट्रस्ट द्वारा टैक्स न देने के चक्कर में ट्रस्ट की बिल्डिंग पर सील होने का खतरा मँडराने की खबरें अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुई हैं, जिसके चलते आम लोगों के बीच रोटरी की खासी बदनामी हुई है । प्रवीन गोयल ने हालाँकि इस मामले पर इन पंक्तियों के लेखक से बात करते हुए दावा किया है कि एक दो दिन में सारा टैक्स जमा करवा दिया जायेगा, और बिल्डिंग को सील होने से बचा लिया जायेगा - लेकिन इस प्रकरण के अखबारों में प्रचारित हो जाने से लोगों के बीच रोटरी की जो बदनामी हो चुकी है, उसे वापस लौटा पाना तो मुश्किल ही होगा । पहली नजर में यह मामला व्यवस्थापकीय लापरवाही का लग सकता है, जिसके लिए किन्हीं छोटे पदाधिकारियों/कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहरा कर मामले से हाथ झाड़ा जा सकता है; लेकिन अभी हाल ही में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी को विभिन्न ट्रस्टों के हिसाब-किताब देने में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स के इंकार के मामले के रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड तक पहुँचने का प्रसंग याद करें, तो टैक्स न देने का यह मामला, जिसके चलते रोटरी की साख व प्रतिष्ठा धूल में मिलती नजर आ रही है, राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स के भ्रष्ट आचरण की पोल खोलने का काम करता है । प्रवीन गोयल के लिए फजीहत की बात सिर्फ यही नहीं है कि उनके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभालते ही अखबारों में रोटरी की इस तरह से बदनामी हो रही है, उनके लिए फजीहत की बात यह भी है कि उक्त ट्रस्ट उनके ही क्लब का एक प्रमुख प्रोजेक्ट है - और यह क्लब पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधुकर मल्होत्रा का भी क्लब है ।
सर्विस सोसायटी के हिसाब-किताब पर राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स कुंडली मार कर बैठे हुए हैं; निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड तक गुहार लगा ली, लेकिन इसका हिसाब-किताब उन्हें नहीं मिल सका । नियमानुसार सर्विस सोसायटी के तीन प्रमुख पदाधिकारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर, निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट होते हैं - लेकिन इन तीनों में से किसी के पास सर्विस सोसायटी का हिसाब-किताब नहीं है । क्लब के मौजूदा व पूर्व पदाधिकारियों का भी कहना/बताना है कि राजा साबू, मधुकर मल्होत्रा, यशपाल दास, शाजु पीटर ही हिसाब-किताब में काला-सफेद करते रहते हैं, और उन्हें कभी हिसाब-किताब देखने को नहीं मिला है । रोटरी इंटरनेशनल के एक प्रमुख पदाधिकारी गुलाम वहनवती ने अभी पिछले दिनों ही चेन्नई में आयोजित हुई रोटरी जोन 4, 5 और 6 के डिस्ट्रिक्ट्स के प्रमुख पदाधिकारियों की बैठक में बड़ी स्पष्टता के साथ इस तथ्य को रेखांकित किया कि मुट्ठी भर रोटेरियंस के भ्रष्ट आचरण की वजह से रोटरी इंटरनेशनल में भारत की छवि कलुषित हो रही है । उन्होंने इस तथ्य पर गंभीर चिंता प्रकट करते हुए इसे बेहद शर्मनाक बताया । इससे पहले फरवरी में हैदराबाद में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इलेक्ट के ट्रेनिंग प्रोग्राम में भी गुलाम वहनवती ने इसी तरह की बातें कहीं थीं, जिसकी रिपोर्ट रोटरी समाचार व रोटरी न्यूज के अप्रैल अंक में 'भ्रष्ट आचरण के प्रति पूर्ण असहिष्णु बनें' शीर्षक से प्रकाशित हुई थी । गुलाम वहनवती ने दोनों मौकों पर कहा/बताया था कि देश में करीब डेढ़ लाख रोटेरियंस हैं, और कुल करीब 50 रोटेरियंस ही ऐसे होंगे जो भ्रष्ट आचरण में लिप्त होंगे और जिनकी वजह से देश को रोटरी इंटरनेशनल में शर्मसार होना पड़ता है । गुलाम वहनवती ने बातें तो खूब कीं, लेकिन यह नहीं बताया कि भ्रष्ट आचरण में लिप्त रह कर देश और रोटरी को बदनाम करने वाले करीब 50 रोटेरियंस के खिलाफ कार्रवाई करने में रोटरी इंटरनेशनल असहाय क्यों है ?
रोटरी इंटरनेशनल ने पिछले दिनों भ्रष्ट आचरण में लिप्त रहने वाले कुछेक रोटेरियंस के खिलाफ हालाँकि कार्रवाई की है, जिसके तहत डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल को बर्खास्त किया गया तथा डिस्ट्रिक्ट 3030 के एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर निखिल किबे को रोटरी से ही निकाल देने का फैसला किया गया है । इन फैसलों पर हालाँकि लोगों का कहना रहा है कि रोटरी इंटरनेशनल 'चोरों' को तो सजा दे रहा है लेकिन 'डकैती' के आरोपियों को छोड़ दे रहा है । रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों की इस बात के लिए आलोचना भी हुई कि वह छोटी मछलियों के खिलाफ तो कार्रवाई कर रहे हैं, लेकिन बड़े मगरमच्छों की लूट को अनदेखा कर रहे हैं । इसीलिए रोटरी के लुटेरों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है । गौर करने की बात यह है कि रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से जिन दिनों निखिल किबे और सतीश सिंघल के खिलाफ कार्रवाई हो रही थी; और जिन दिनों गुलाम वहनवती मुट्ठी भर लोगों के भ्रष्ट आचरण के कारण देश और रोटरी की पहचान खराब होने के तथ्य बता रहे थे; ठीक उन्हीं दिनों राजा साबू की चेयरमैनी वाले उत्तराखंड रिलीफ फंड में करीब पौने तीन करोड़ के घपले के आरोप लगे और उन्हीं दिनों 'रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3080 सर्विस' सोसायटी के अकाउंट से चोरीछिपे 21 लाख रुपए से ज्यादा उक्त रिलीफ फंड में ट्रांसफर होने की खबर मिली । जाहिर है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को विश्वास था कि रोटरी इंटरनेशनल भ्रष्ट आचरण में लिप्त रोटेरियंस के खिलाफ भले ही कार्रवाई कर रहा हो, गुलाम वहनवती भले ही देश और रोटरी की छवि खराब होने का रोना रो रहे हों - लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई करने का 'दम' उनमें नहीं है । एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में अपने डिस्ट्रिक्ट के विभिन्न प्रोजेक्ट्स से जुड़े हिसाब-किताब लेने के लिए पिटीशन दायर करने के लिए मजबूर हो रहा हो, और गुलाम वहनवती  'भ्रष्ट आचरण के प्रति पूर्ण असहिष्णु बनें' का आह्वान कर रहे हों - तो गुलाम वहनवती का आह्वान एक ड्रामे का सीन ही लगता है ।
राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स के भ्रष्ट आचरण की पोल खोलती निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी की रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में दायर पिटीशन है, डिस्ट्रिक्ट के जीएमएल के मई अंक में भ्रष्ट हरकतों का ब्यौरा है, और चंडीगढ़ के अखबारों में प्रकाशित यह खबर है - लोगों का पूछना है कि गुलाम वहनवती को इससे ज्यादा और क्या सुबूत यह जानने के लिए चाहिए कि वह कौन से मुट्ठी भर लोग हैं जो अपनी भ्रष्ट हरकतों से देश और रोटरी को कलुषित कर रहे हैं ? लोगों का कहना है कि वह जानते हैं कि देश और रोटरी को बदनामी दिलवाने वाले बड़े मगरमच्छों के खिलाफ कार्रवाई करने/करवाने का 'दम' गुलाम वहनवती में नहीं है, इसलिए उनसे अनुरोध यही है कि लोगों के बीच माइक पर बोलने का जब मौका मिलता है, तो लंबी लंबी छोड़ने की जरूरत नहीं है और उससे बचो - इससे देश और रोटरी की इज्जत भले न बचा पाओ, लेकिन अपनी इज्जत जरूर बचा लोगे ।