Tuesday, July 24, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में चुनावबाज नेताओं के मुसीबतों में घिरे रहने के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई से दूर रहने के चलते चुनावी मुकाबला अशोक अग्रवाल के लिए एकपक्षीय होता जा रहा है क्या ?

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के 'ठंडे' रवैये ने अमित गुप्ता की तुलना में अशोक अग्रवाल के लिए चुनावी मुकाबले को आसान बना दिया है । दरअसल व्यक्तित्वों की तुलना के मामले में अशोक अग्रवाल का पलड़ा यूँ भी भारी माना/देखा जाता है । यह बहुत स्वाभाविक भी है; क्योंकि अशोक अग्रवाल को रोटरी में अमित गुप्ता से अधिक समय हो चुका है, जिसके चलते उन्होंने ज्यादा बसंत और पतझड़ यहाँ देखे हैं । अमित गुप्ता के मुकाबले अशोक अग्रवाल ने 'काम' भी ज्यादा किया है । पिछले दो-तीन वर्षों में अमित गुप्ता ने भी हालाँकि काफी काम किया है, लेकिन उनके काम के 'नेचर' में फर्क रहा है । अमित गुप्ता ने जो काम किए हैं वह व्यवस्था-संबंधी रहे हैं, उनके काम से गवर्नर्स को तो फायदे मिले हैं, लेकिन लोगों के बीच उनकी छवि बनने/बनाने में कोई फायदा नहीं हुआ । इसके विपरीत अशोक अग्रवाल ने राजनीतिक काम किए, जिसके कारण लोगों के बीच उनकी पहचान तो बनी ही - राजनीतिक रूप से वह जिनके काम आए, उनके और उनके समर्थकों के साथ अशोक अग्रवाल के संबंध और गहरे बने । राजनीतिक काम करने के कारण अशोक अग्रवाल की राजनीतिक समझ व उनके अनुभव में भी इजाफा हुआ । वही समझ और अनुभव अब उनकी अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के काम आ रहा है । अमित गुप्ता ने चूँकि कभी कोई 'राजनीतिक' काम नहीं किया, इसलिए राजनीतिक समझ व अनुभव के मामले में वह कोरे कागज की तरह हैं । उनके नजदीकियों और समर्थकों का ही कहना है कि अमित गुप्ता अभी भी अपनी उम्मीदवारी को लेकर जिस तरह से सक्रिय हैं, उसमें 'राजनीतिक ऐंगल' पूरी तरह से नदारत ही है । अमित गुप्ता अभी तक भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव लड़ना - या कोई भी चुनाव लड़ना - एक 'राजनीतिक काम' होता है, जिसे राजनीतिक तरीके से ही अंजाम दिया जा सकता है । उनकी इस कमजोरी का अशोक अग्रवाल पूरा पूरा फायदा उठा रहे हैं । मजे की बात यह है कि अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में फायदा उठाने के लिए भी अशोक अग्रवाल को ज्यादा प्रयास भी नहीं करने पड़ रहे हैं ।
रोटरी में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव - या अन्य कोई भी चुनाव - उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि कभी स्पष्ट रूप से तो कभी 'छिपे' रूप से वास्तव में खेमों के बीच का चुनाव होता है । डिस्ट्रिक्ट 3012 में लेकिन इस वर्ष एक अप्रत्याशित स्थिति यह बनी है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव दो उम्मीदवारों के बीच ही होता नजर आ रहा है । दरअसल सतीश सिंघल के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्त होने के कारण एक खेमा पूरी तरह धूल-धूसरित हो गया है । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय द्वारा सतीश सिंघल के खिलाफ हुई कठोर कार्रवाई के कारण डिस्ट्रिक्ट के एक चुनावबाज नेता मुकेश अरनेजा को 'चुप' बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।  मुकेश अरनेजा हालाँकि सीधी हो जाने वाली 'चीज' हैं नहीं; लेकिन लगता है कि सतीश सिंघल के खिलाफ हुई कार्रवाई ने उन्हें वास्तव में डरा दिया है । सुना जाता है कि रोटरी के बड़े नेताओं ने उन्हें आगाह कर दिया है कि रोटरी इंटरनेशनल में उनके खिलाफ बहुत शिकायतें हैं, और वह यदि अपनी हरकतों से बाज नहीं आए तो उनका हाल भी सतीश सिंघल जैसा हो सकता है । इसके बाद से ही मुकेश अरनेजा को अपनी हरकतों पर काबू रखने के लिए मजबूर होना पड़ा है । सतीश सिंघल के नजदीकी रहे दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने भी सतीश सिंघल के खिलाफ हुई कार्रवाई से बने माहौल में 'राजनीति' से दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी है । डिस्ट्रिक्ट के एक दूसरे चुनावबाज नेता रमेश अग्रवाल अपनी हरकतों के चलते डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़े हुए हैं और सचमुच कुछ कर सकने में असमर्थ हैं । नेताओं की मुसीबतें और असहायता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन के लिए वरदान बनी हैं और उन्हें अपने गवर्नर-काल में किसी चुनावी झमेले का सामना नहीं करना पड़ रहा है । सुभाष जैन शायद पहले ऐसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, जिन्हें दोनों उम्मीदवारों का हर संभव सहयोग भी मिल रहा है, और कोई भी उम्मीदवार उनके लिए 'जिम्मेदारी' नहीं बना है - और इस तरह राजनीतिक पक्षपात के आरोपों से भी वह पूरी तरह बचे हुए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं और पूर्व/मौजूदा/भावी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई से दूर रहने की इस स्थिति ने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी माहौल को 'ठंडा' बनाया हुआ है, और इस ठंडेपन ने अमित गुप्ता की चुनावी संभावनाओं को ग्रहण लगाया हुआ है । व्यक्तित्वों की लड़ाई में अशोक अग्रवाल से पिछड़ने के बावजूद अमित गुप्ता के नजदीकियों व समर्थकों को उम्मीद थी कि डिस्ट्रिक्ट के चुनावी माहौल में जब गर्मी आयेगी और चुनावबाज नेताओं व गवर्नर्स की खेमेबाजी सक्रिय होगी, तो अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद अमित गुप्ता की उम्मीदवारी आगे बढ़ेगी और अशोक अग्रवाल के लिए चुनौती पैदा करेगी । चुनावबाज नेता चूँकि अपनी अपनी मुसीबतों में घिरे हैं, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई को उनकी छतरी नहीं मिली है; और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव वास्तव में दो उम्मीदवारों के बीच का चुनाव हो कर रह गया है । इस स्थिति में अमित गुप्ता के लिए अपनी कमजोरियों को ढँक पाना मुश्किल हुआ है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले में वह 'अकेले' से दिख रहे हैं और इस कारण उनकी स्थिति कमजोर ही बनी रह जा रही है । दरअसल अमित गुप्ता की चूँकि अपनी कोई 'राजनीतिक' पहचान नहीं है, और डिस्ट्रिक्ट में उनकी उम्मीदवारी की वकालत करने वाला कोई बड़ा नेता नहीं है - इसलिए लोगों से मिलजुल कर अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की उनकी कोशिशों का कोई सुफल उन्हें मिलता दिख नहीं रहा है । अशोक अग्रवाल की चूँकि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अच्छी व प्रभावी 'राजनीतिक' पहचान है, इसलिए उन्हें अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन ज्यादा कुछ किये बिना ही मिलता नजर आ रहा है । लोगों का मानना/कहना है कि हालात यदि ऐसे ही बने रहे, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी मुकाबला अशोक अग्रवाल के लिए एकपक्षीय ही हो जायेगा ।