गाजियाबाद । उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की सदस्यता जुगाड़ने में असफल रहने के बाद अनुज गोयल ने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में ही फिर से शरण लेने का जो फैसला किया है, उसने उनके समर्थकों को ही बुरी तरह बिदका दिया है और उनके कई समर्थक उनके खिलाफ खुल कर सामने आ गए हैं । अनुज गोयल को सबसे तगड़ा झटका गाजियाबाद में ही लगा है, जहाँ उनके घनघोर समर्थक रहे मुकेश बंसल ने ही बगावत का झंडा उठा लिया है । मुकेश बंसल के विरोध का अनुज गोयल को ऐसा झटका लगा है कि वह हर जगह मुकेश बंसल के रवैये का रोना रोते हैं और मुकेश बंसल पर धोखा देने का आरोप लगाते हैं । अनुज गोयल जगह जगह लोगों को बता रहे हैं कि मुकेश बंसल को इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में वह लेकर आये हैं, लेकिन मुकेश बंसल ने अब मुकेश कुशवाह से तार जोड़ लिए हैं; उनका गंभीर आरोप यह है कि पिछले चुनाव में मुकेश बंसल ने उनके भाई जितेंद्र गोयल की बजाये मुकेश कुशवाह का साथ दिया था - और जितेंद्र गोयल की हार का एक प्रमुख कारण मुकेश बंसल से मिला यह धोखा भी था । अनुज गोयल और जितेंद्र गोयल इन दिनों जहाँ कहीं भी जिस किसी से भी बात कर रहे हैं, मुकेश बंसल के रवैये का रोना जरूर रो रहे हैं । उनके लगातार जारी 'विलाप' से ऐसा लग रहा है जैसे अनुज गोयल की उम्मीदवारी को सबसे बड़ा खतरा मुकेश बंसल से ही है । अनुज गोयल के नजदीकियों के अनुसार, अनुज गोयल यह सुन/जान कर दरअसल डरे हुए हैं कि मुकेश बंसल ने कई जगह लोगों के बीच यह कहा हुआ है कि वह अनुज गोयल को सेंट्रल काउंसिल का चुनाव हरवाने के लिए हर संभव उपाय करेंगे ।
मुकेश बंसल दरअसल 2021 के चुनाव में सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनने की तैयारी में हैं । इस वर्ष हो रहा चुनाव मुकेश कुशवाह के लिए तीसरा और आखिरी चुनाव है, मुकेश बंसल की 'तैयारी' है कि मुकेश कुशवाह द्वारा की जाने वाली खाली जगह को वह भरें; इसके लिए उन्हें जरूरी लग रहा है कि अनुज गोयल चुनाव न जीत सकें । सेंट्रल रीजन में कई लोग अनुज गोयल को करिश्माई नेता मानते हैं, और दावा करते हैं कि वह तो चुनाव जीत ही जायेंगे - लेकिन जमीनी हकीकत बता रही है कि अनुज गोयल के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं होगा । दरअसल उनके करिश्मे की पोल तो पिछली बार खुल गई थी, जब वह अपने भाई जितेंद्र गोयल को चुनाव नहीं जितवा सके थे । पहली प्राथमिकता के वोटों की गिनती में जितेंद्र गोयल 22 उम्मीदवारों में 943 वोटों के साथ नवें नंबर पर रहे थे, और 1237 वोटों के साथ पाँचवें नंबर पर रहे मुकेश कुशवाह से 294 वोट पीछे थे । फाइनल गिनती तक पहुँचते पहुँचते जितेंद्र गोयल छठे नंबर तक तो पहुँच गए थे, लेकिन विजेता बनने से रह गए थे । जितेंद्र गोयल की यह हार उनके साथ-साथ वास्तव में अनुज गोयल की भी हार थी । उनसे पहले, नॉर्दर्न रीजन में एनडी गुप्ता ने अपने बेटे नवीन गुप्ता को तथा वेस्टर्न रीजन में कमलेश विकमसे ने अपने भाई नीलेश विकमसे को सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जितवाया है । उम्मीद की जा रही थी कि अनुज गोयल भी अपने भाई को चुनाव जितवा देंगे । नवीन गुप्ता अपने पिता तथा नीलेश विकमसे अपने भाई के चुनाव में कभी भी सक्रिय नहीं देखे गए थे;जबकि जितेंद्र गोयल तो हमेशा ही अनुज गोयल के 'स्टार प्रचारक' रहे हैं - इसलिए भी उम्मीद की गई थी कि जितेंद्र गोयल तो आसानी से चुनाव जीत जायेंगे । लेकिन वह चुनाव हार गए । जितेंद्र गोयल की हार ने अनुज गोयल के तथाकथित करिश्मे की ही पोल नहीं खोली, बल्कि यह भी दिखाया/बताया कि सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता को अपनी ही जेब में रखने की अनुज गोयल की 'कोशिश' को लोगों ने अच्छा नहीं माना और जितेंद्र गोयल के समर्थन से हाथ खींच कर वास्तव में अनुज गोयल की सत्ता-लोभी सोच को सबक सिखाया ।
सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके अनुज गोयल ने अपनी उसी सत्ता-लोभी सोच को एक बार फिर प्रदर्शित किया है, जिसके विरोध के कारण पिछली बार उनके भाई जितेंद्र गोयल को हार का सामना करना पड़ा था । उल्लेखनीय है कि अनुज गोयल पिछले दिनों बाबा रामदेव के भरोसे उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के सदस्य होने की जुगाड़ में थे, और इसलिए इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के मैदान से मुँह मोड़े हुए थे । लेकिन वहाँ जब उनकी दाल नहीं गली, तो वह फिर से इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में मुँह मारने आ गए हैं । मुकेश बंसल जैसे उनके नजदीकी रहे लोगों तक को उनका यह सत्ता-लोभी रवैया बुरा लगा है । उनके अपने नजदीकियों और समर्थकों का ही कहना/पूछना है कि अनुज गोयल को सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता अपने और अपने भाई के लिए ही क्यों चाहिए ? अनुज गोयल के इस सत्ता-लोभी रवैये के सवाल बन जाने के कारण ही अनुज गोयल के लिए इस बार का चुनाव एक बड़ी चुनौती है । दरअसल सेंट्रल रीजन में एक सीट बढ़ जाने का फायदा जयपुर को मिलता दिख रहा है । जयपुर/राजस्थान में बढ़े वोटों के भरोसे माना जा रहा है कि जयपुर में इस बार तीन लोग सेंट्रल काउंसिल में आ जायेंगे । सेंट्रल रीजन में पिछली बार सबसे ज्यादा वोट पाने वाले श्याम लाल अग्रवाल के इस बार चुनाव से दूर रहने की चर्चा है; चर्चा हालाँकि यह भी है कि उनके समर्थक उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए राजी करने के वास्ते उन पर दबाव भी बना रहे हैं, और साथ ही उनके किसी विकल्प को लाने के लिए भी प्रयासरत हैं । जयपुर और या राजस्थान में सेंट्रल काउंसिल के लिए तीन उम्मीदवार रहें या चार - उम्मीद की जा रही है कि जयपुर के तीन उम्मीदवार तो जीत ही जायेंगे ।
ऐसे में, अनुज गोयल को सेंट्रल काउंसिल में वापसी करने के लिए मनु अग्रवाल और मुकेश कुशवाह में से किसी एक की उम्मीदवारी की बलि लेनी होगी । इसके लिए उन्हें पहली वरीयता में इनमें से किसी एक से ज्यादा वोट पाने का प्रयास करना होगा । अनुज गोयल के नजदीकियों के अनुसार, अनुज गोयल ने अभी मुकेश कुशवाह को निशाने पर लिया है । उन्हें लगता है कि गाजियाबाद से चार उम्मीदवार होने के कारण जो समस्या उनके सामने है, वही समस्या मुकेश कुशवाह के सामने भी है और इसलिए वह कोशिश करें तो पहली वरीयता के वोटों की गिनती में मुकेश कुशवाह से आगे हो सकते हैं और सेंट्रल काउंसिल में वापसी कर सकते हैं । इस कोशिश में अनुज गोयल को लेकिन मुकेश बंसल बाधा बनते हुए दिख रहे हैं । मुकेश बंसल पिछले चुनाव में 31 उम्मीदवारों में 968 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर थे । उत्तर प्रदेश के उम्मीदवारों में उनका नंबर पहला था । इससे जाहिर है कि उत्तर प्रदेश के वोटरों पर उनका अच्छा प्रभाव है । इस प्रभाव के साथ मुकेश बंसल यदि अनुज गोयल को हरवाने की बात कहते/करते हैं, और मुकेश कुशवाह का साथ देते हैं - तो अनुज गोयल के लिए मामला मुश्किल तो बनता है । मुकेश बंसल पर दबाव बनाने के लिए अनुज गोयल गाजियाबाद में नितिन गुप्ता को समर्थन देने की बात करते सुने जा रहे हैं । नितिन गुप्ता पिछली बार भी उम्मीदवार थे, और पहली वरीयता के वोटों की गिनती में 487 वोट के साथ 17 वे नंबर पर थे । इस रिकॉर्ड को देखते हुए लगता नहीं है कि अनुज गोयल का समर्थन नितिन गुप्ता को कोई लाभ पहुँचा कर मुकेश बंसल का कुछ बिगाड़ सकेगा । क्या होगा, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन अनुज गोयल के खिलाफ कभी उनके ही नजदीकी रहे मुकेश बंसल के आक्रामक रवैये से सेंट्रल रीजन में चुनावी परिदृश्य दिलचस्प हो उठा है ।