नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना डिस्ट्रिक्ट की चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके से पूरा करने के मामले में बुरी तरह घिर गए हैं और
यही कारण है कि उनके लिए लोगों के सवालों का जबाव देते हुए नहीं बन रहा है
और उन्हें सवालों के जबाव देने से बचने की कोशिश करनी पड़ रही है । यह ठीक है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में संजय
खन्ना के सामने एक विकट स्थिति आ पड़ी है और फैसलों के संदर्भ में उन पर
चौतरफा दबाव है - लेकिन ऐसे ही अवसर तो परीक्षा की घड़ी होते हैं । संजय
खन्ना को जानने/पहचानने और समझने का दावा करने वाले लोगों को लग रहा है और
उनमें से कई कह भी रहे हैं कि परीक्षा की इस घड़ी में उन्हें संजय खन्ना
में वह संजय खन्ना नहीं दिखाई दे रहे हैं, जिन संजय खन्ना को वह
जानते/पहचानते और समझते रहे हैं । संजय खन्ना को हमेशा ही साफ दो-टूक
बात कहते और फैसला लेते हुए देखा पाया गया है; मुश्किल से मुश्किल तथा
प्रतिकूल दबावों में भी अपना रास्ता बनाने/निकालने का हुनर उन्होंने दिखाया
हुआ है । लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके से
अपनाने के मामले में उनका सारा हुनर पता नहीं क्यों हवा होता हुआ दिखाई दे
रहा है और चुनावी प्रक्रिया को लेकर पूछे जा रहे सवालों के जवाब देना उनके लिए मुश्किल हो रहा है और वह जैसे असहाय से बन गए हैं ।संजय
खन्ना के सामने सवाल बड़ा सीधा है - सवाल यह है कि वह जिस पायलट प्रोजेक्ट
के नियमों के अनुसार चुनाव कराने की बात कर रहे हैं, उन नियमों का पालन हो
भी पा रहा है क्या ? और यदि नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है तो फिर
पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार चुनाव कराने की बात क्यों की जा रही
है ? एक तरफ तो पायलट प्रोजेक्ट के नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है, और
दूसरी तरफ आप पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार चुनाव कराने की बात कर
रहे हैं - आप आखिर किसे धोखा दे रहे हैं ?
पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार, इलेक्शन कमेटी में डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स ही रह सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के चुनाव के लिए बनी इलेक्शन कमेटी में पहली बार ऐसा होगा कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर भी उसमें होंगे । डिस्ट्रिक्ट 3011 के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व गवर्नर का; और डिस्ट्रिक्ट 3012 के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर का कोई भी हस्तक्षेप क्यों होना चाहिए ? नियम विरुद्ध हुए इस काम को दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के लिए अलग अलग इलेक्शन कमेटी बना कर होने से टाला जा सकता था । दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के लिए यदि अलग अलग नोमीनेटिंग कमेटी बन सकती हैं, तो अलग अलग इलेक्शन कमेटी क्यों नहीं बन सकती थीं ?
पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार, चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से पहले जोन्(स) बना लिए जाने चाहिए । यहाँ, चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी जोन्(स) का कोई अता-पता नहीं है ।
पायलट प्रोजेक्ट में चुनावी प्रक्रिया के लिए एक समय-सारणी तय की गई है; लेकिन चुनावी प्रक्रिया का कोई भी काम तय की गई तारीख पर नहीं हो पाया है ।
इस कारण तय तारीख तक ड्यूज जमा न हो पाने की वजह से चुनावी प्रक्रिया से बाहर कर दिए गए क्लब्स का मामला गर्म हो गया है । उल्लेखनीय है कि पायलट प्रोजेक्ट के नियम के अनुसार जिन क्लब्स ने 30 सितंबर तक अपने ड्यूज क्लियर नहीं किए हैं, उन्हें चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जायेगा । इस मामले में तो तय तारीख का सख्ती से पालन कर लिया गया है लेकिन बाकी मामलों में तारीखों के पालन की कोई परवाह नहीं है । लोगों का सवाल है कि जब अधिकतर मामलों में तय की गई तारीखों का पालन नहीं हो पा रहा है, तो ड्यूज जमा होने की तारीख के पालन पर ही सारा का सारा जोर क्यों दिया जा रहा है ? डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 नए डिस्ट्रिक्ट हैं, इसलिए इनमें सभी लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित किए जाने की वैसे भी जरूरत है । इस जरूरत को पूरा करने की उम्मीद यह देख कर और बढ़ी कि जब अन्य सभी मामलों में तय की गई तारीखों को आगे बढ़ा दिया गया है, तो इस मामले में भी तारीख की छूट मिल जाएगी । किंतु पायलट प्रोजेक्ट के नियमों का सारा का सारा बोझ इसी मामले पर डाल दिया गया है ।
पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के पालन के कारण उम्मीदवारों के क्लब्स के साथ जो अन्याय हो रहा है, उसने संजय खन्ना के गवर्नर-काल में बने नियमों के पालन के रूप का मजाक बना कर रख दिया है । नियम के अनुसार डॉक्टर सुब्रमणियन, सुरेश भसीन, शरत जैन, दीपक गुप्ता के क्लब इनकी उम्मीदवारी के कारण वर्ष 2016-17 के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के हिस्सा नहीं हो सकते हैं । यहाँ तक तो बात ठीक है । लेकिन इनके क्लब्स से वर्ष 2017-18 के लिए चुने जाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले फैसले में शामिल होने का अधिकार भी छीन लिया गया है । इसी तरह सरोज जोशी, रवि चौधरी, सतीश सिंघल, प्रसून चौधरी के क्लब्स से वर्ष 2016-17 के लिए चुने जाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले फैसले में शामिल होने का अधिकार छीन लिया गया है । पायलट प्रोजेक्ट के नियम का पालन करने के लिए दोनों वर्षों के लिए अलग अलग नोमीनेटिंग कमेटी बनायी जानी चाहिए थीं, किंतु जो नहीं बनायी गयीं ।
सौ बातों की एक बात ! जिस पायलट प्रोजेक्ट की बात की जा रही है, वह डिस्ट्रिक्ट 3010 के लिए लागू किया गया है - चुनाव लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के लिए हो रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के लिए तो कोई पायलट प्रोजेक्ट नहीं है । तब फिर इन डिस्ट्रिक्ट्स में होने वाले चुनाव के लिए पायलट प्रोजेक्ट की बात क्यों की जा रही है ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना का कहना है कि उन्होंने रोटरी के बड़े नेताओं से इस बारे में बात की है और उन्होंने पायलट प्रोजेक्ट के हिसाब से ही चुनाव कराने के लिए कहा है । किंतु जिन लोगों ने रोटरी इंटरनेशनल से पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के पालन न होने और या नियमों का पालन कराने के चक्कर में क्लब्स के अधिकारों के हनन होने का सवाल किया, उन्हें रोटरी इंटरनेशनल से जवाब मिला है कि इस सवालों का जवाब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से लीजिए । रोटरी इंटरनेशनल का लिखित में कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में चुनाव कराने की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की है; डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ही रोटरी इंटरनेशनल का अधिकृत अधिकारी है - इसलिए चुनाव से संबंधित सभी फैसले उसे ही करने है और सारे सवालों का जवाब भी उसे ही देना है ।
रोटरी इंटरनेशनल का यह आधिकारिक जवाब है, जिसके बाद संजय खन्ना के लिए पायलट प्रोजेक्ट को लागू करने बाबत बड़े नेताओं के कहे की आड़ लेने का कोई मतलब नहीं रह जाता है और ऐसा लगता है जैसे कि वह बहानेबाजी कर रहे हैं और उचित फैसला लेने से बच रहे हैं । लोगों का कहना है कि रोटरी के जो बड़े नेता उनसे पायलट प्रोजेक्ट के हिसाब से चुनाव कराने की बात कह रहे हैं, उनसे ही उन्हें उन सवालों के जवाब माँगने चाहिए जिन सवालों का जवाब दे पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है और जिन सवालों ने नई बदली परिस्थितियों में पायलट प्रोजेक्ट को निरर्थक और मजाक बना दिया है ।
यह बात तो कोई नहीं मानेगा कि संजय खन्ना चुनावबाज स्वार्थी नेताओं के दवाब में निरर्थक साबित हो चुके पायलट प्रोजेक्ट के अनुसार ही चुनाव कराने के लिए मजबूर बने हुए हैं । किंतु उन्हें जानने/पहचानने वाले लोगों को यह समझने में भी मुश्किल आ रही है कि संजय खन्ना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में न्यायपूर्ण और सही दिखने वाला फैसला लेने में आखिर हिचक क्यों रहे हैं ? इस मामले में संजय खन्ना की भूमिका इस कदर सवालों के घेरे में आ गई है कि ऐसा लगता है जैसे कि लोग कह रहे हों - Will the real Sanjay Khanna please stand up ?
पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार, इलेक्शन कमेटी में डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स ही रह सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के चुनाव के लिए बनी इलेक्शन कमेटी में पहली बार ऐसा होगा कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर भी उसमें होंगे । डिस्ट्रिक्ट 3011 के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व गवर्नर का; और डिस्ट्रिक्ट 3012 के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर का कोई भी हस्तक्षेप क्यों होना चाहिए ? नियम विरुद्ध हुए इस काम को दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के लिए अलग अलग इलेक्शन कमेटी बना कर होने से टाला जा सकता था । दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के लिए यदि अलग अलग नोमीनेटिंग कमेटी बन सकती हैं, तो अलग अलग इलेक्शन कमेटी क्यों नहीं बन सकती थीं ?
पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार, चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से पहले जोन्(स) बना लिए जाने चाहिए । यहाँ, चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी जोन्(स) का कोई अता-पता नहीं है ।
पायलट प्रोजेक्ट में चुनावी प्रक्रिया के लिए एक समय-सारणी तय की गई है; लेकिन चुनावी प्रक्रिया का कोई भी काम तय की गई तारीख पर नहीं हो पाया है ।
इस कारण तय तारीख तक ड्यूज जमा न हो पाने की वजह से चुनावी प्रक्रिया से बाहर कर दिए गए क्लब्स का मामला गर्म हो गया है । उल्लेखनीय है कि पायलट प्रोजेक्ट के नियम के अनुसार जिन क्लब्स ने 30 सितंबर तक अपने ड्यूज क्लियर नहीं किए हैं, उन्हें चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जायेगा । इस मामले में तो तय तारीख का सख्ती से पालन कर लिया गया है लेकिन बाकी मामलों में तारीखों के पालन की कोई परवाह नहीं है । लोगों का सवाल है कि जब अधिकतर मामलों में तय की गई तारीखों का पालन नहीं हो पा रहा है, तो ड्यूज जमा होने की तारीख के पालन पर ही सारा का सारा जोर क्यों दिया जा रहा है ? डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 नए डिस्ट्रिक्ट हैं, इसलिए इनमें सभी लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित किए जाने की वैसे भी जरूरत है । इस जरूरत को पूरा करने की उम्मीद यह देख कर और बढ़ी कि जब अन्य सभी मामलों में तय की गई तारीखों को आगे बढ़ा दिया गया है, तो इस मामले में भी तारीख की छूट मिल जाएगी । किंतु पायलट प्रोजेक्ट के नियमों का सारा का सारा बोझ इसी मामले पर डाल दिया गया है ।
पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के पालन के कारण उम्मीदवारों के क्लब्स के साथ जो अन्याय हो रहा है, उसने संजय खन्ना के गवर्नर-काल में बने नियमों के पालन के रूप का मजाक बना कर रख दिया है । नियम के अनुसार डॉक्टर सुब्रमणियन, सुरेश भसीन, शरत जैन, दीपक गुप्ता के क्लब इनकी उम्मीदवारी के कारण वर्ष 2016-17 के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के हिस्सा नहीं हो सकते हैं । यहाँ तक तो बात ठीक है । लेकिन इनके क्लब्स से वर्ष 2017-18 के लिए चुने जाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले फैसले में शामिल होने का अधिकार भी छीन लिया गया है । इसी तरह सरोज जोशी, रवि चौधरी, सतीश सिंघल, प्रसून चौधरी के क्लब्स से वर्ष 2016-17 के लिए चुने जाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले फैसले में शामिल होने का अधिकार छीन लिया गया है । पायलट प्रोजेक्ट के नियम का पालन करने के लिए दोनों वर्षों के लिए अलग अलग नोमीनेटिंग कमेटी बनायी जानी चाहिए थीं, किंतु जो नहीं बनायी गयीं ।
सौ बातों की एक बात ! जिस पायलट प्रोजेक्ट की बात की जा रही है, वह डिस्ट्रिक्ट 3010 के लिए लागू किया गया है - चुनाव लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के लिए हो रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के लिए तो कोई पायलट प्रोजेक्ट नहीं है । तब फिर इन डिस्ट्रिक्ट्स में होने वाले चुनाव के लिए पायलट प्रोजेक्ट की बात क्यों की जा रही है ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना का कहना है कि उन्होंने रोटरी के बड़े नेताओं से इस बारे में बात की है और उन्होंने पायलट प्रोजेक्ट के हिसाब से ही चुनाव कराने के लिए कहा है । किंतु जिन लोगों ने रोटरी इंटरनेशनल से पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के पालन न होने और या नियमों का पालन कराने के चक्कर में क्लब्स के अधिकारों के हनन होने का सवाल किया, उन्हें रोटरी इंटरनेशनल से जवाब मिला है कि इस सवालों का जवाब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से लीजिए । रोटरी इंटरनेशनल का लिखित में कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में चुनाव कराने की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की है; डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ही रोटरी इंटरनेशनल का अधिकृत अधिकारी है - इसलिए चुनाव से संबंधित सभी फैसले उसे ही करने है और सारे सवालों का जवाब भी उसे ही देना है ।
रोटरी इंटरनेशनल का यह आधिकारिक जवाब है, जिसके बाद संजय खन्ना के लिए पायलट प्रोजेक्ट को लागू करने बाबत बड़े नेताओं के कहे की आड़ लेने का कोई मतलब नहीं रह जाता है और ऐसा लगता है जैसे कि वह बहानेबाजी कर रहे हैं और उचित फैसला लेने से बच रहे हैं । लोगों का कहना है कि रोटरी के जो बड़े नेता उनसे पायलट प्रोजेक्ट के हिसाब से चुनाव कराने की बात कह रहे हैं, उनसे ही उन्हें उन सवालों के जवाब माँगने चाहिए जिन सवालों का जवाब दे पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है और जिन सवालों ने नई बदली परिस्थितियों में पायलट प्रोजेक्ट को निरर्थक और मजाक बना दिया है ।
यह बात तो कोई नहीं मानेगा कि संजय खन्ना चुनावबाज स्वार्थी नेताओं के दवाब में निरर्थक साबित हो चुके पायलट प्रोजेक्ट के अनुसार ही चुनाव कराने के लिए मजबूर बने हुए हैं । किंतु उन्हें जानने/पहचानने वाले लोगों को यह समझने में भी मुश्किल आ रही है कि संजय खन्ना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में न्यायपूर्ण और सही दिखने वाला फैसला लेने में आखिर हिचक क्यों रहे हैं ? इस मामले में संजय खन्ना की भूमिका इस कदर सवालों के घेरे में आ गई है कि ऐसा लगता है जैसे कि लोग कह रहे हों - Will the real Sanjay Khanna please stand up ?