Wednesday, December 31, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना चुनावबाज स्वार्थी नेताओं के दवाब में निरर्थक साबित हो चुके पायलट प्रोजेक्ट के अनुसार ही चुनाव कराने के लिए मजबूर बने हुए हैं क्या; अन्यथा न्यायपूर्ण और सही दिखने वाला फैसला लेने में आखिर हिचक क्यों रहे हैं ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना डिस्ट्रिक्ट की चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके से पूरा करने के मामले में बुरी तरह घिर गए हैं और यही कारण है कि उनके लिए लोगों के सवालों का जबाव देते हुए नहीं बन रहा है और उन्हें सवालों के जबाव देने से बचने की कोशिश करनी पड़ रही है । यह ठीक है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में संजय खन्ना के सामने एक विकट स्थिति आ पड़ी है और फैसलों के संदर्भ में उन पर चौतरफा दबाव है - लेकिन ऐसे ही अवसर तो परीक्षा की घड़ी होते हैं । संजय खन्ना को जानने/पहचानने और समझने का दावा करने वाले लोगों को लग रहा है और उनमें से कई कह भी रहे हैं कि परीक्षा की इस घड़ी में उन्हें संजय खन्ना में वह संजय खन्ना नहीं दिखाई दे रहे हैं, जिन संजय खन्ना को वह जानते/पहचानते और समझते रहे हैं । संजय खन्ना को हमेशा ही साफ दो-टूक बात कहते और फैसला लेते हुए देखा पाया गया है; मुश्किल से मुश्किल तथा प्रतिकूल दबावों में भी अपना रास्ता बनाने/निकालने का हुनर उन्होंने दिखाया हुआ है । लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके से अपनाने के मामले में उनका सारा हुनर पता नहीं क्यों हवा होता हुआ दिखाई दे रहा है और चुनावी प्रक्रिया को लेकर पूछे जा रहे सवालों के जवाब देना उनके लिए मुश्किल हो रहा है और वह जैसे असहाय से बन गए हैं ।संजय खन्ना के सामने सवाल बड़ा सीधा है - सवाल यह है कि वह जिस पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार चुनाव कराने की बात कर रहे हैं, उन नियमों का पालन हो भी पा रहा है क्या ? और यदि नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है तो फिर पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार चुनाव कराने की बात क्यों की जा रही है ? एक तरफ तो पायलट प्रोजेक्ट के नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है, और दूसरी तरफ आप पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार चुनाव कराने की बात कर रहे हैं - आप आखिर किसे धोखा दे रहे हैं ?
पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार, इलेक्शन कमेटी में डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स ही रह सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के चुनाव के लिए बनी इलेक्शन कमेटी में पहली बार ऐसा होगा कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर भी उसमें होंगे । डिस्ट्रिक्ट 3011 के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व गवर्नर का; और डिस्ट्रिक्ट 3012 के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर का कोई भी हस्तक्षेप क्यों होना चाहिए ? नियम विरुद्ध हुए इस काम को दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के लिए अलग अलग इलेक्शन कमेटी बना कर होने से टाला जा सकता था । दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के लिए यदि अलग अलग नोमीनेटिंग कमेटी बन सकती हैं, तो अलग अलग इलेक्शन कमेटी क्यों नहीं बन सकती थीं ?
पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार, चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से पहले जोन्(स) बना लिए जाने चाहिए । यहाँ, चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी जोन्(स) का कोई अता-पता नहीं है ।
पायलट प्रोजेक्ट में चुनावी प्रक्रिया के लिए एक समय-सारणी तय की गई है; लेकिन चुनावी प्रक्रिया का कोई भी काम तय की गई तारीख पर नहीं हो पाया है ।
इस कारण तय तारीख तक ड्यूज जमा न हो पाने की वजह से चुनावी प्रक्रिया से बाहर कर दिए गए क्लब्स का मामला गर्म हो गया है । उल्लेखनीय है कि पायलट प्रोजेक्ट के नियम के अनुसार जिन क्लब्स ने 30 सितंबर तक अपने ड्यूज क्लियर नहीं किए हैं, उन्हें चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जायेगा । इस मामले में तो तय तारीख का सख्ती से पालन कर लिया गया है लेकिन बाकी मामलों में तारीखों के पालन की कोई परवाह नहीं है । लोगों का सवाल है कि जब अधिकतर मामलों में तय की गई तारीखों का पालन नहीं हो पा रहा है, तो ड्यूज जमा होने की तारीख के पालन पर ही सारा का सारा जोर क्यों दिया जा रहा है ? डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 नए डिस्ट्रिक्ट हैं, इसलिए इनमें सभी लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित किए जाने की वैसे भी जरूरत है । इस जरूरत को पूरा करने की उम्मीद यह देख कर और बढ़ी कि जब अन्य सभी मामलों में तय की गई तारीखों को आगे बढ़ा दिया गया है, तो इस मामले में भी तारीख की छूट मिल जाएगी । किंतु पायलट प्रोजेक्ट के नियमों का सारा का सारा बोझ इसी मामले पर डाल दिया गया है ।
पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के पालन के कारण उम्मीदवारों के क्लब्स के साथ जो अन्याय हो रहा है, उसने संजय खन्ना के गवर्नर-काल में बने नियमों के पालन के रूप का मजाक बना कर रख दिया है । नियम के अनुसार डॉक्टर सुब्रमणियन, सुरेश भसीन, शरत जैन, दीपक गुप्ता के क्लब इनकी उम्मीदवारी के कारण वर्ष 2016-17 के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के हिस्सा नहीं हो सकते हैं । यहाँ तक तो बात ठीक है । लेकिन इनके क्लब्स से वर्ष 2017-18 के लिए चुने जाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले फैसले में शामिल होने का अधिकार भी छीन लिया गया है । इसी तरह सरोज जोशी, रवि चौधरी, सतीश सिंघल, प्रसून चौधरी के क्लब्स से वर्ष 2016-17 के लिए चुने जाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले फैसले में शामिल होने का अधिकार छीन लिया गया है । पायलट प्रोजेक्ट के नियम का पालन करने के लिए दोनों वर्षों के लिए अलग अलग नोमीनेटिंग कमेटी बनायी जानी चाहिए थीं, किंतु जो नहीं बनायी गयीं ।
सौ बातों की एक बात ! जिस पायलट प्रोजेक्ट की बात की जा रही है, वह डिस्ट्रिक्ट 3010 के लिए लागू किया गया है - चुनाव लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के लिए हो रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के लिए तो कोई पायलट प्रोजेक्ट नहीं है । तब फिर इन डिस्ट्रिक्ट्स में होने वाले चुनाव के लिए पायलट प्रोजेक्ट की बात क्यों की जा रही है ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना का कहना है कि उन्होंने रोटरी के बड़े नेताओं से इस बारे में बात की है और उन्होंने पायलट प्रोजेक्ट के हिसाब से ही चुनाव कराने के लिए कहा है । किंतु जिन लोगों ने रोटरी इंटरनेशनल से पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के पालन न होने और या नियमों का पालन कराने के चक्कर में क्लब्स के अधिकारों के हनन होने का सवाल किया, उन्हें रोटरी इंटरनेशनल से जवाब मिला है कि इस सवालों का जवाब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से लीजिए । रोटरी इंटरनेशनल का लिखित में कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में चुनाव कराने की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की है; डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ही रोटरी इंटरनेशनल का अधिकृत अधिकारी है - इसलिए चुनाव से संबंधित सभी फैसले उसे ही करने है और सारे सवालों का जवाब भी उसे ही देना है ।
रोटरी इंटरनेशनल का यह आधिकारिक जवाब है, जिसके बाद संजय खन्ना के लिए पायलट प्रोजेक्ट को लागू करने बाबत बड़े नेताओं के कहे की आड़ लेने का कोई मतलब नहीं रह जाता है और ऐसा लगता है जैसे कि वह बहानेबाजी कर रहे हैं और उचित फैसला लेने से बच रहे हैं । लोगों का कहना है कि रोटरी के जो बड़े नेता उनसे पायलट प्रोजेक्ट के हिसाब से चुनाव कराने की बात कह रहे हैं, उनसे ही उन्हें उन सवालों के जवाब माँगने चाहिए जिन सवालों का जवाब दे पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है और जिन सवालों ने नई बदली परिस्थितियों में पायलट प्रोजेक्ट को निरर्थक और मजाक बना दिया है ।
यह बात तो कोई नहीं मानेगा कि संजय खन्ना चुनावबाज स्वार्थी नेताओं के दवाब में निरर्थक साबित हो चुके पायलट प्रोजेक्ट के अनुसार ही चुनाव कराने के लिए मजबूर बने हुए हैं । किंतु उन्हें जानने/पहचानने वाले लोगों को यह समझने में भी मुश्किल आ रही है कि संजय खन्ना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में न्यायपूर्ण और सही दिखने वाला फैसला लेने में आखिर हिचक क्यों रहे हैं ? इस मामले में संजय खन्ना की भूमिका इस कदर सवालों के घेरे में आ गई है कि ऐसा लगता है जैसे कि लोग कह रहे हों - Will the real Sanjay Khanna please stand up ?

Tuesday, December 30, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल की मॉरीशस में आयोजित हुई इसामे फोरम की मीटिंग में इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार के रूप में अपने आप को प्रस्तुत करने के मामले में सलीम मौस्सान से पिछड़ने के बाद नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के सामने खतरा पैदा हुआ

नई दिल्ली । मॉरीशस में संपन्न हुई इसामे (इंडिया, साउथ एशिया, अफ्रीका व मिडिल ईस्ट) फोरम की मीटिंग में सलीम मौस्सान की स्पीच ने सुनने वालों को जिस कदर प्रभावित किया, उसने लायंस इंटरनेशनल के सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव के संदर्भ में नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है । सलीम मौस्सान लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 351 लेबनॉन के बेरूत सेंट गेब्रियल लायंस क्लब के चार्टर प्रेसीडेंट हैं और होनोलुलु में वर्ष 2015 की 26 से 30 जून के बीच होने वाली इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में होने वाले इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव के लिए एक प्रमुख उम्मीदवार हैं । इसी पद के लिए भारत से नरेश अग्रवाल भी उम्मीदवार हैं । इस पद के लिए यूँ तो और भी उम्मीदवार हैं लेकिन मुख्य मुकाबला नरेश अग्रवाल और सलीम मौस्सान के बीच ही होता हुआ नजर आ रहा है ।
नरेश अग्रवाल लायंस इंटरनेशनल की चुनावी राजनीति में दखल रखने वाले कुछेक बड़े नेताओं के भरोसे अपनी जीत की उम्मीद लगाये हुए हैं, तो लायंस इंटरनेशनल की चुनावी राजनीति में सक्रिय कुछेक अन्य नेता सलीम मौस्सान की उम्मीदवारी के पक्ष में अभियान चलाये हुए हैं । नरेश अग्रवाल के लिए गंभीर चुनौती की बात यह है कि पिछली बार के सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में रॉबर्ट कोर्लव की जीत को सुनिश्चित करने वाले कई नेता इस बार सलीम मौस्सान की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हुए हैं । हालाँकि यह सच है कि हाल-फिलहाल के वर्षों में रहे प्रेसीडेंट्स के बीच नरेश अग्रवाल की अच्छी पैठ है, लेकिन अपने समर्थक व शुभचिंतक बड़े नेताओं को अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में सक्रिय कर पाने में नरेश अग्रवाल ज्यादा कामयाब नहीं हो पा रहे हैं । उनकी तुलना में सलीम मौस्सान अपने समर्थक व शुभचिंतक नेताओं को सक्रिय कर पाने और रखने में ज्यादा सफल नजर आ रहे हैं ।
नरेश अग्रवाल साधनों के मामले में भी और सक्रिय सहयोगियों के मामले में भी सलीम मौस्सान से पिछड़ते हुए दिख रहे हैं । दरअसल सारा मामला साधनों के इस्तेमाल का है । नरेश अग्रवाल साधनों के मामले में चूँकि कमजोर दिख रहे हैं, इसलिए उनके समर्थक व शुभचिंतक भी सचमुच कुछ करने से बचते नजर आ रहे हैं । दरअसल कुछ भी करने में पैसे खर्च होते हैं : नरेश अग्रवाल चाहते हैं कि उनके समर्थक अपना समय और अपनी एनर्जी लगाने के साथ-साथ अपना ही पैसा भी खर्च करें । इसका नतीजा है कि उनके समर्थक व शुभचिंतक कुछ भी करने से बचते हुए दिख रहे हैं । चुनाव में मुश्किल से छह महीने बचे हैं, लेकिन नरेश अग्रवाल अभी तक भी इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं बना सके हैं कि उनके समर्थक व शुभचिंतक वास्तव में कुछ करने के लिए प्रेरित हो सकें । नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी को अभी हाल ही में मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 310 थाईलैंड, मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 16 न्यू जर्सी, मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 13 ओहियो, मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 31 नॉर्थ क्रोलिया के काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की तरफ से एंडोर्समेंट मिला है; लेकिन नरेश अग्रवाल यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बना सके हैं जिससे कि यहाँ के वोट उन्हें सचमुच में मिल सकें ।
मॉरीशस में संपन्न हुई इसामे फोरम की मीटिंग में नरेश अग्रवाल की तैयारी की कमी की खूब पोल खुली । उनके सामने मौका था कि वहाँ मौजूद विभिन्न देशों के लायन नेताओं के बीच वह अपनी उम्मीदवारी का एक संगठित रूप प्रस्तुत करें, किंतु नरेश अग्रवाल ऐसा करने से चूक गए । सलीम मौस्सान ने किंतु इस मौके का जमकर फायदा उठाया । उन्होंने अपनी पत्नी आलिया तथा अपने समर्थकों के साथ लोगों के बीच अच्छा प्रभाव जमाया । मीटिंग में मौजूद लोगों के बीच आलिया द्धारा परिचित कराये जाने के बाद सलीम मौस्सान ने जो भाषण दिया, उसने भी सुनने वालों को खासा अभिभूत किया । इसामे फोरम की मीटिंग में दिए गए भाषण और लोगों के साथ की गई गर्मजोशी भरी बातचीतों के बाद सलीम मौस्सान की लोकप्रियता और स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है । उसके बाद अम्मान जॉर्डन, डिस्ट्रिक्ट 414 टुनिशिया, डिस्ट्रिक्ट 352 कैरो मिस्र में हुई उनकी मीटिंग्स में इस असर को साफ साफ देखा भी गया है । मॉरीशस में आयोजित हुई इसामे फोरम की मीटिंग में इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार के रूप में अपने आप को प्रस्तुत करने के मामले में नरेश अग्रवाल जिस तरह सलीम मौस्सान से पिछड़ गए हैं, उसके कारण इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद की दौड़ में शामिल रहने के लिए उनके सामने अपने अभियान को लेकर और गंभीर होने की जरूरत आ पड़ी है ।

Monday, December 29, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए लगाई जा रही दीपक गर्ग की तिकड़मों की पोल खुल जाने तथा राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी के सामने आ जाने से चेयरमैन पद की चुनावी लड़ाई खासी दिलचस्प हो गई है

नई दिल्ली । राजिंदर नारंग ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करके दीपक गर्ग के चेयरमैन बनने की तैयारी को तगड़ा झटका दिया है । दीपक गर्ग के लिए यह झटका इसलिए तगड़ा रहा क्योंकि उन्होंने राजिंदर नारंग को तो किसी गिनती में रखा ही नहीं था; और राजिंदर नारंग को खेल से बाहर रख कर ही अपनी चेयरमैनी के लिए फील्डिंग सजाई थी । दीपक गर्ग की इसमें कोई गलती भी नहीं थी । राजिंदर नारंग ने खुद ही ऐलान किया हुआ था कि चेयरमैनी में अभी उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है । लेकिन यह कई दिन पहले की बात है । दीपक गर्ग ने गलती किंतु यह की कि राजिंदर नारंग ने चेयरमैनी की दौड़ से बाहर रहने का जो ऐलान किया था, दीपक गर्ग ने उसे काउंसिल की चुनावी राजनीति के पूरे खेल से बाहर होने का ऐलान मान लिया । दीपक गर्ग यह समझने में चूक गए कि राजिंदर नारंग काउंसिल में हैं, तो काउंसिल की चुनावी राजनीति से बाहर कैसे रह सकते हैं ? यही चूक दीपक गर्ग को फिलहाल भारी पड़ी है ।
दीपक गर्ग ने अचानक से प्रस्तुत हुई राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी के पीछे इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के दो सदस्यों - अतुल गुप्ता और संजय अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराया है । मजे की बात यह है कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए प्रस्तुत खुद दीपक गर्ग की उम्मीदवारी के पीछे सेंट्रल काउंसिल के एक अन्य सदस्य विजय गुप्ता को देखा/पहचाना जा रहा है । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दीपक गर्ग को विजय गुप्ता के आदमी के रूप में पहचाना जाता है । माना/समझा जा रहा है कि विजय गुप्ता इंस्टीट्यूट के चुनावी वर्ष में रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद पर अपने आदमी के रूप में दीपक गर्ग को इसलिए बैठाना चाहते हैं, ताकि उनके मार्फत वह अपने चुनाव अभियान में फायदा उठा सकें । इस मानने/समझने पर दीपक गर्ग ने चेयरमैनी पद के अपने रास्ते में अचानक से पैदा हुई समस्या के लिए अतुल गुप्ता और संजय अग्रवाल को जिम्मेदार ठहरा कर एक तरह से मुहर लगाने का ही काम किया है; और यही साबित किया है कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद का चुनाव सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों के बीच की स्पर्द्धा में फँस गया है ।
राजिंदर नारंग ने जब तक चेयरमैन पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात नहीं कही थी, तब तक काउंसिल के लोगों के बीच की चर्चा के अनुसार दीपक गर्ग ने विशाल गर्ग और स्वदेश गुप्ता के पक्के समर्थन का दावा करते हुए हंसराज चुघ और मनोज बंसल के साथ दोहरा फ्रंट अलग-अलग खोला हुआ था और छह छह महीने की चेयरमैनी के लिए बात चलाई हुई थी । हंसराज चुघ ने चूँकि सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात चलाई हुई है, इसलिए उन्हें पता है कि सेंट्रल काउंसिल के दूसरे संभावित उम्मीदवार उन्हें चेयरमैन नहीं बनने देंगे; मनोज बंसल विरोधी खेमे के होने के कारण चेयरमैन होने/बनने की उम्मीद नहीं रखते हैं - उनकी उम्मीद बस यही है कि सत्ता खेमे के लोगों के झगड़े-टंटे के चलते जैसे इस बार उन्हें वाइस चेयरमैन का पद मिल गया, वैसे ही चेयरमैन का पद भी मिल जाए तो मिल जाए । इसलिए ही इन दोनों की तरफ से दीपक गर्ग को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली । प्रतिक्रिया सकारात्मक तो थी, लेकिन वह आशंकाग्रस्त भी थी । दीपक गर्ग को 'कुछ ज्यादा ही तिकड़मी' समझा/पहचाना जाता है, इसलिए हंसराज चुघ को भी और मनोज बंसल को भी आशंका यह थी कि दीपक गर्ग उनके साथ पता नहीं क्या खेल खेल रहे हैं । इन दोनों ने अपनी अपनी आशंका को दूर करने का अपने अपने स्तर पर जो प्रयास किया, उससे उनकी आशंकाएँ दूर हुईं या नहीं - यह तो पता नहीं चला लेकिन उनके प्रयासों के चलते दीपक गर्ग के खेल की पोल जरूर खुल गई ।
दीपक गर्ग के खेल की पोल खुलने के बाद ही राजिंदर नारंग ने चेयरमैन पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत कर दी । पोल खुलने से दीपक गर्ग के खेल को जो झटका लगा, राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से वह झटका और बड़ा हो गया । उल्लेखनीय है कि पिछली बार भी दीपक गर्ग ने अपना जो खेल जमाने का प्रयास किया था, वह राजिंदर नारंग के कारण ही असफल हुआ था । राजिंदर नारंग की सक्रियता के कारण ही राधे श्याम बंसल को चेयरमैन का पद और विरोधी खेमे के होने के बावजूद मनोज बंसल को वाइस चेयरमैन का पद मिल सका था । दीपक गर्ग के पल्ले कुछ नहीं पड़ा था । राजिंदर नारंग को भी हालाँकि कुछ नहीं मिला था - लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिलने की बात इसलिए कोई महत्व नहीं रखती क्योंकि वह तो कुछ पाने की दौड़ में शामिल ही नहीं थे । पिछली बार भी दीपक गर्ग ने राजिंदर नारंग को इग्नोर करने/धोखे में रखने का काम किया था - जिसके चलते हुई फजीहत के कारण फिर दीपक गर्ग को उनसे दोस्ताना किस्म की माफी आदि माँगनी पड़ी थी । पिछली बार का यह सबक था कि राजिंदर नारंग अपने लिए कुछ पाने की स्थिति में भले ही न हों, लेकिन दूसरों का काम बनाने/बिगाड़ने की स्थिति में जरूर होते हैं । दीपक गर्ग ने इस सबक को याद नहीं रखा और नतीजा है कि उनका सारा गेमप्लान फिलहाल चौपट होता हुआ दिख रहा है ।
अपने खेल को बचाने के लिए दीपक गर्ग ने राजिंदर नारंग पर हमला बोला है । वह समझ रहे हैं कि राजिंदर नारंग को चूँकि सेंट्रल काउंसिल का चुनाव नहीं लड़ना है और चूँकि उनका नाम सेंट्रल काउंसिल के किसी उम्मीदवार के साथ भी नहीं जुड़ा हुआ है तो इसलिए कहीं उनके चेयरमैन बनने का मौका न बन जाये । इसी कारण से दीपक गर्ग ने राजिंदर नारंग का नाम सेंट्रल काउंसिल के दो सदस्यों - अतुल गुप्ता और संजय अग्रवाल के साथ जोड़ने का प्रयास किया है । दीपक गर्ग को लगता है कि इसी तरीके से वह राजिंदर नारंग का रास्ता रोक सकते हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए लगाई जा रही दीपक गर्ग की तिकड़मों की पोल खुल जाने तथा राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी के सामने आ जाने से चेयरमैन पद की चुनावी लड़ाई खासी दिलचस्प हो गई है । इस लड़ाई में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि खेल तो अब शुरू हुआ है ।

Sunday, December 28, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की चुनावी राजनीति में अरुण मित्तल की चाल से अलग-थलग पड़े डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन की एपीएस कपूर और या जीजी गर्ग की उम्मीदवारी के सहारे अपना काम बनाने की कोशिश सफल हो पायेगी क्या ?

गाजियाबाद । अरुण मित्तल और मुकेश गोयल ने फिरकी चली तो डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का सारा ताना-बाना ही बदल गया है । अभी कुछ ही दिन पहले मुजफ्फरनगर में कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जिस जोड़ी ने डिस्ट्रिक्ट का धुरंधर बनने की कोशिश की थी - उसे दोहरी चोट पड़ी है । एक तरफ तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार अजय सिंघल उनकी पकड़ से छूटते दिख रहे हैं; और दूसरी तरफ अपनी इज्जत बचाने के लिए उनके सामने उन्हीं सुनील जैन व अनीता गुप्ता के साथ जाने की मजबूरी आ पड़ी है जिनके साथ जाने के लिए कुछ ही दिन पहले वह अजय सिंघल को मना कर रहे थे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट का धुरंधर बनने की कोशिश करने वाली कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जोड़ी ने अजय सिंघल को हिदायत दी थी कि वह अरुण मित्तल, सुनील निगम, सुनील जैन और अनीता गुप्ता से बिलकुल नहीं मिलेंगे । लेकिन अरुण मित्तल ने तगड़ी चाल चली और वह सुनील निगम को लेकर मुकेश गोयल से जा मिले, जिससे अजय सिंघल की उम्मीदवारी के झंडे को पूरी तरह अपने कब्जे में करने में मुकेश गोयल को सुविधा हो गई; और डिस्ट्रिक्ट का धुरंधर बनने की कोशिश करने वाली कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जोड़ी पूरी तरह अलग-थलग पड़ गई है । 
 हालाँकि, लायंस क्लब गंगोह सेंट्रल के एपीएस कपूर की उम्मीदवारी की संभावना ने कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जोड़ी को 'रास्ता' दिखाया है, जिस पर चल कर वह सुनील जैन व अनीता गुप्ता की शरण में जा सकते हैं । एपीएस कपूर को सुनील जैन के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । एपीएस कपूर के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के मूड/मिजाज को देख कर ही अपनी उम्मीदवारी को आगे बढ़ायेंगे और सिर्फ सुनील जैन के द्धारा इस्तेमाल होने के लिए ही उम्मीदवार नहीं बनेंगे । सुनील जैन ने लेकिन स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव तो होकर रहेगा; एपीएस कपूर यदि उम्मीदवार नहीं बनेंगे तो वह जीजी गर्ग को उम्मीदवार बना देंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील जैन की जरूरत दरअसल यह है कि क्लब्स से ड्यूज मिलें और उनकी कॉन्फ्रेंस अच्छे से हो । वह जानते हैं कि यदि चुनाव नहीं हुए तो क्लब्स से उन्हें ड्यूज तो नहीं ही मिलेंगे, डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करना भी उनके लिए मुश्किल हो जायेगा । इसी जरूरत के चलते सुनील जैन पिछले दिनों मुकेश गोयल से भी मिले थे और अजय सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करने का प्रस्ताव उनके सामने रखा था; इस प्रस्ताव में उन्होंने समर्थन की लेकिन जो 'कीमत' चाही थी, वह मुकेश गोयल को बहुत ज्यादा लगी थी और उन्होंने सुनील जैन के प्रस्ताव को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था ।
मुकेश गोयल से मिले इस स्पष्ट इंकार के बाद ही सुनील जैन ने एपीएस कपूर को खोजा और उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाने की तैयारी कर ली । एपीएस कपूर के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि एपीएस कपूर पूरी गंभीरता से चुनाव लड़ना चाहेंगे और एक उम्मीदवार को जो कुछ भी करने की जरूरत होती है उसे वह पूरा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन वह यह जरूर समझना चाहेंगे कि सुनील जैन के पास चुनाव का खाका क्या है और वह किस आधार पर एपीएस कपूर की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवायेंगे । नजदीकियों का यह भी कहना है कि यदि वह यह समझेंगे कि सुनील जैन उनकी उम्मीदवारी को सिर्फ अपने 'मकसद' के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं तो फिर वह सुनील जैन के चक्कर में नहीं पड़ेंगे । एपीएस कपूर पर दबाव बनाने के लिए ही सुनील जैन ने जीजी गर्ग का नाम उछाला है; हालाँकि जीजी गर्ग को जानने वाले लोगों का कहना है कि जीजी गर्ग भले ही सुनील जैन के बिजनेस पार्टनर हों और उनके शिक्षा संस्थान में सलाहकार के पद पर हों और इस नाते सुनील जैन उन पर अपना अधिकार समझते हों - लेकिन फिर भी जीजी गर्ग उनके द्धारा इस्तेमाल होने तथा उनके द्धारा बलि का बकरा बनाये जाने के लिए तो तैयार नहीं ही होंगे ।
सुनील जैन दरअसल यह बताते हुए एपीएस कपूर और जीजी गर्ग में हवा भरने की कोशिश कर रहे हैं कि लायन राजनीति को उन्होंने समझ लिया है - यहाँ तीन महीने पहले उम्मीदवार बनो, पैसे खर्च करो और चुनाव जीत लो : जैसे वह जीते और गवर्नर बने । 'सफलता' की अपनी कहानी में सुनील जैन लेकिन इस तथ्य को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं कि तीन महीने पहले वह उम्मीदवार तब बने थे जब मुकेश गोयल के समर्थन का उन्हें भरोसा मिल गया था और उनके सामने एक बड़ा कमजोर सा उम्मीदवार था । निश्चित रूप से उनकी जीत में उनके द्धारा किया गया खर्च भी एक कारण था - लेकिन वह एक अकेला कारण नहीं था । एपीएस कपूर तथा उनके नजदीकी इस तथ्य को समझ/पहचान रहे हैं - और डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ी अनुमान लगा रहे हैं कि जीजी गर्ग भी निश्चित ही इस तथ्य को समझ/पहचान रहे होंगे; और इसीलिए उम्मीदवारी की चर्चा शुरू हो जाने के बाद भी न एपीएस कपूर की तरफ से और न जीजी गर्ग की तरफ से कोई करंट दिखाई देना शुरू हुआ है ।
एपीएस कपूर को लेकर लोगों को यह जरूर लग रहा है कि हो सकता है वह यह समझ रहे हों कि इस बार प्रतीकात्मक तरीके से वह अपनी उम्मीदवारी रख लेते हैं तो अगली बार के लिए उनकी उम्मीदवारी का पलड़ा भारी हो जायेगा । अवतार कृष्ण का अनुभव लेकिन उन्हें इस फार्मूले पर जाने से रोक रहा है : अवतार कृष्ण पिछली बार की अपनी उम्मीदवारी के भरोसे इस बार अपनी उम्मीदवारी का पलड़ा भारी नहीं रख सके । एपीएस कपूर के शुभचिंतकों का ही कहना है कि एपीएस कपूर यदि सचमुच गवर्नर बनना चाहते हैं तो उन्हें इस सच्चाई पर जरूर ध्यान देना चाहिए कि जो लोग मुकेश गोयल को गालियाँ देते रहे थे और कसमें खाते सुने जाते थे कि वह मुकेश गोयल के समर्थन के बिना ही गवर्नर बन कर दिखायेंगे - उन्हें भी गवर्नर बनने के लिए मुकेश गोयल की शरण में आने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।
इस बार मुकेश गोयल ने अजय सिंघल के साथ जैसी जो केमिस्ट्री बैठाई, उसका ही नतीजा रहा कि कोई और उम्मीदवार मैदान में आने का साहस ही नहीं कर सका । अजय सिंघल ने खुद भी अपनी सक्रियता से और अपने व्यवहार से किसी को नाराज होने का या विरोधी होने का मौका नहीं दिया और नेताओं के बीच की प्रतिस्पर्धा के बावजूद हर खेमे में अपनी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता का आधार बनाया । यह अजय सिंघल की रणनीति की कुशलता का ही परिणाम रहा कि उन्होंने अपने ऊपर लगे 'मुकेश गोयल के उम्मीदवार' के ठप्पे को भी मिटाने/छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया और इस ठप्पे के साथ ही मुकेश गोयल के धुर विरोधियों के बीच अपनी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता व समर्थन प्राप्त किया । अजय सिंघल और मुकेश गोयल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जिस तरह से एकतरफा माहौल बनाया और डिस्ट्रिक्ट के नेताओं को विकल्पहीन बनाया उसे देख कर ही सुनील जैन जिन अवतार कृष्ण के भरोसे मैदान में डटने की तैयारी कर रहे थे, उन अवतार कृष्ण ने सुनील जैन की बजाये मुकेश गोयल पर भरोसा करना ज्यादा उपयोगी समझा । कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जोड़ी ने सुनील जैन के खिलाफ तो मोर्चा खोला हुआ था और वह अजय सिंघल को उनसे दूर रहने की हिदायत दे रहे थे; किंतु मुकेश गोयल से दूरी बनाये रखने के बावजूद उनके खिलाफ मोर्चा खोलने से बचते नजर आ रहे थे ।
अजय सिंघल की उम्मीदवारी को लेकर मुकेश गोयल की राजनीति चल तो अच्छे से रही थी, लेकिन लगभग अकेले होने के कारण मुकेश गोयल दबाव में भी थे । इसीलिए कुंजबिहारी अग्रवाल व अरविंद संगल की जोड़ी भी और सुनील जैन भी माने बैठे थे कि कुछ न होते/करते भी वह अपनी अपनी राजनीति और मनमानी करते रह सकेंगे । अरुण मित्तल की चाल ने लेकिन उन दोनों से ही यह मौका छीन लिया है । अरुण मित्तल ने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम को साथ लेकर मुकेश गोयल के साथ आने का जो फैसला किया उसने मुकेश गोयल को दबावमुक्त करने का काम किया है और दूसरे नेताओं के तोते उड़ा दिए हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि जिन नेताओं के तोते उड़े हैं वह अपने अपने तोते वापस लाने के लिए क्या करते हैं और करते हैं उसके बाद भी उनके तोते वापस आते हैं या नहीं ?

Saturday, December 27, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में दिल्ली और हरियाणा से बारी-बारी से गवर्नर बनने की व्यवस्था को तोड़ने की विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की कोशिश के खिलाफ हरियाणा के लोगों में नाराजगी और विरोध

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा की 'फार्मूलेबाज' उम्मीदवारी के खिलाफ उम्मीदवार लाने की हरियाणा के लायन सदस्यों की तैयारी ने दिल्ली के लायन नेताओं द्धारा पकाई जा रही खिचड़ी में धूल पड़ने का खतरा पैदा कर दिया है । विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं - हर्ष बंसल, राकेश त्रेहन, अजय बुद्धिराज, सुरेश बिंदल आदि ने विक्रम शर्मा को गवर्नर बनवाने के लिए जो फार्मूला तैयार किया है उसमें हरियाणा के साथ की जाने वाली धोखाधड़ी को लेकर हरियाणा के लायन सदस्यों के बीच खासी नाराजगी और विरोध है । इसी नाराजगी और विरोध के चलते हरियाणा के लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि वह देखते हैं कि विक्रम शर्मा कैसे गवर्नर बनते हैं ?
उल्लेखनीय है कि विक्रम शर्मा को गवर्नर बनवाने के लिए उनके समर्थक नेताओं ने अभी तक जो भी चाल चली है, वह उल्टी ही पड़ी है और पास आती दिख रही गवर्नर की कुर्सी विक्रम शर्मा से और दूर होती गई है । अपने तमाम फार्मूलों के पिटते जाने के बाद विक्रम शर्मा के समर्थक नेता पिछले दिनों एक नया फार्मूला लेकर आये हैं : अपने इस नए फार्मूले में उन्होंने आरके शाह के समर्थक नेताओं की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है और प्रस्ताव रखा है कि हम लोग आपस में लड़ने की बजाये दोस्ती कर लेते हैं तथा विक्रम शर्मा व आरके शाह को बारी बारी से आगे-पीछे गवर्नर बना लेते हैं । आरके शाह के समर्थक नेताओं ने इस प्रस्ताव को पूरी तरह अभी रिजेक्ट तो नहीं किया है, लेकिन स्वीकार करने के लिए हामी भी नहीं भरी है । उनका कहना है कि जिन भी नेताओं ने यह फार्मूला तैयार किया है वह नेता ही इस फार्मूले पर पहले हरियाणा के लोगों की सहमति बनाये तब इसे स्वीकार करने के बारे में सोचा जा सकता है ।
दरअसल विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं ने जो फार्मूला तैयार किया है, वह हरियाणा के साथ धोखा करता है । डिस्ट्रिक्ट में चूँकि दिल्ली और हरियाणा से बारी-बारी से गवर्नर बनने की व्यवस्था बनी हुई है, इसलिए विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं के द्धारा तैयार किया गया फार्मूला हरियाणा के लोगों का हक मारता है तथा हरियाणा के लोगों के साथ धोखा करता है । इस फार्मूले को तैयार करने वाले हर्ष बंसल, राकेश त्रेहन, अजय बुद्धिराज, सुरेश बिंदल आदि का मानना और कहना है कि सत्ता के साथ रहने की कोशिश में चंद्रशेखर मेहता तो झक मार कर इस फार्मूले का समर्थन करने को मजबूर होंगे और फिर बाकी बचे लोगों की परवाह करने की जरूरत नहीं है । इन नेताओं के इस रवैये से हरियाणा के लोगों में नाराजगी पैदा हुई है । नाराजगी के चलते ही हरियाणा के लोगों ने विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी की राह में रोड़े डालने की तरकीबों पर विचार करना शुरू कर दिया है और कहना शुरू कर दिया है कि वह देखते हैं कि विक्रम शर्मा कैसे गवर्नर बनते हैं ?
हरियाणा के लायन नेताओं के बीच जो चर्चा है, उसके अनुसार वह विक्रम शर्मा के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने की तैयारी कर रहे हैं । इस तैयारी से जुड़े एक बड़े लायन नेता का कहना है कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी जिस भी पद/वर्ष के लिए प्रस्तुत होगी, हरियाणा से उनके खिलाफ उम्मीदवार आयेगा । विक्रम शर्मा के खिलाफ उम्मीदवार लाने की तैयारी करने वाले लोगों का मानना और कहना है कि हरियाणा के साथ जो धोखाधड़ी करने की तैयारी की जा रही है, उससे हरियाणा के लोग तो आहत होंगे ही और दिल्ली में भी कई लोग इसे पसंद नहीं करेंगे और ऐसे में विक्रम शर्मा के खिलाफ उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले उम्मीदवार के लिए चुनाव जीतना जरा भी मुश्किल नहीं होगा । हरियाणा के लायन सदस्यों के बीच विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के खिलाफ बढ़ती नाराजगी ने विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं के फार्मूले को ही संदेह के घेरे में ला दिया है ।

Thursday, December 25, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में राजीव गुप्ता की उम्मीदवारी का संकेत मिलने के साथ सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच जो उथल-पुथल मची, उसने सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का और उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार प्रसून चौधरी को बढ़त दिलाने का ही काम किया है

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के राजीव गुप्ता की अगले रोटरी वर्ष में प्रस्तुत होने वाली उम्मीदवारी की चर्चा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के अभियान को खासी तगड़ी चोट पहुँचाई है । राजीव गुप्ता इस वर्ष असिस्टेंट गवर्नर हैं और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के शुरू से ही घनघोर समर्थक रहे हैं । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के जो भी समर्थक रहे हैं, उनमें राजीव गुप्ता सबसे आगे रहे हैं और सबसे ज्यादा सक्रिय रहे हैं । राजीव गुप्ता के दिलचस्पी लेने के कारण ही रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार का अधिष्ठापन समारोह सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के एक बड़े लॉन्चिंग पैड के रूप में आयोजित हुआ था । रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के अध्यक्ष आशीष अग्रवाल अधिष्ठापन समारोह में जितने लोगों को आमंत्रित कर रहे थे, राजीव गुप्ता ने निजी दिलचस्पी लेकर उससे ज्यादा लोगों को आमंत्रित करवाया था और इस चक्कर में हुए अतिरिक्त खर्च की भरपाई भी की थी । इस भरपाई को लेकर क्लब के लोगों के बीच थोड़ा विवाद भी हुआ था - कुछ लोगों का कहना था कि यह भरपाई राजीव गुप्ता ने की थी, लेकिन कुछ अन्य लोगों का कहना था कि अतिरिक्त खर्च हुई रकम राजीव गुप्ता ने सतीश सिंघल से दिलवाई थी । इस तरह के छोटे-मोटे विवादों के बावजूद रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार का अधिष्ठापन समारोह बहुत जोरदार रूप में संपन्न हुआ था; और उस समारोह में सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का जैसा जो प्रमोशन हुआ था उससे सतीश सिंघल की उम्मीदवारी ने एक ऊँची छलाँग भरी थी ।
रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के अधिष्ठापन समारोह में सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को जो ऊँची छलाँग मिली, उससे राजीव गुप्ता को भी एक बड़े स्ट्रैटिजिस्ट की पहचान मिली और माना जाने लगा कि राजीव गुप्ता के साथ रहने से सतीश सिंघल के लिए अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाना और उसे बढ़ाते जाना जरा भी मुश्किल नहीं होगा ।
लेकिन वही राजीव गुप्ता अंततः सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के लिए घाटे का वाहक बने हैं ।
यह इसलिए हुआ क्योंकि राजीव गुप्ता ने सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का झंडा उठाने के साथ-साथ अगले रोटरी वर्ष में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के संकेत देने भी शुरू कर दिए । उनके हवाले से लोगों के बीच चर्चा फैली कि सतीश सिंघल को चुनवाने/जितवाने के बाद राजीव गुप्ता अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । माना/समझा गया कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के पक्ष में राजीव गुप्ता ने जो सक्रियता दिखाई है, उसके पीछे उनका मकसद अगले वर्ष प्रस्तुत होने वाली अपनी उम्मीदवारी के लिए जमीन तैयार करना है । इसका परिणाम यह हुआ कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के ऐसे कई समर्थक - जो राजीव गुप्ता की प्रस्तावित उम्मीदवारी के पक्ष में नहीं थे, भड़क गए और उन्होंने सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थन से बचना शुरू कर दिया । अगले रोटरी वर्ष के लिए राजीव गुप्ता के ही क्लब के अनूप मित्तल के नाम की भी चर्चा थी । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों ने रोटरी क्लब नोएडा एक्सीलेंस के प्रवीण निगम को उम्मीदवार के रूप में प्रमोट करना शुरू कर दिया । हालात यह बने कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थक सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के लिए काम करने की बजाए अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति करने में लग गए ।
इससे सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का अभियान तो पिछड़ा ही - साथ ही उनके समर्थकों के बीच परस्पर विरोधी खेमेबाजी भी होने लगी । सतीश सिंघल के प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार प्रसून चौधरी ने इस स्थिति का पूरा पूरा फायदा उठाया । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के ऐसे समर्थकों पर, जो राजीव गुप्ता की प्रस्तावित उम्मीदवारी के विरोधी हैं - प्रसून चौधरी की तरफ से डोरे डाले गए और सतीश सिंघल के कई समर्थकों को अपनी तरफ मिला लिया गया । इसी का नतीजा है कि चुनाव अभियान शुरू होते समय जिन लोगों को सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थन में देखा/समझा जा रहा था, उनमें से कई अब प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रिय देखे जा रहे हैं । इस तरह, राजीव गुप्ता की उम्मीदवारी का संकेत मिलने के साथ सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच जो उथल-पुथल मची, उसने सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का ही काम किया है ।
मजे की बात यह हुई है कि अगले रोटरी वर्ष में प्रस्तुत होने वाली राजीव गुप्ता की उम्मीदवारी की चर्चा भी अब ठंडी पड़ गई है । राजीव गुप्ता के क्लब के लोगों का ही कहना है कि क्लब में अपनी उम्मीदवारी को लेकर राजीव गुप्ता ने कोई बात नहीं की है । उनसे पूछा भी गया तो उन्होंने यह कहते हुए बात को टाल दिया कि क्लब के लोग तो उनकी उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं, ऐसे में अभी वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर क्या बात करें ? क्लब के बाहर भी उनके जो नजदीकी हैं, उनका कहना है कि राजीव गुप्ता ने अब अपनी उम्मीदवारी को लेकर बात करना बंद दिया है । उनके कुछेक नजदीकियों का कहना है कि पहले भी वह यह कहते थे कि सतीश सिंघल के जीतने पर ही वह अगले वर्ष अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे; हो सकता है कि अब उन्हें सतीश सिंघल के जीतने का भरोसा न रह गया हो और इसीलिए उन्होंने अपनी उम्मीदवारी की बात करना बंद कर दिया हो । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के संदर्भ में यह एक बड़ा ट्रैजिक सा प्रसंग बन गया है कि जिन राजीव गुप्ता को सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के सबसे बड़े समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, उन्हीं राजीव गुप्ता के कारण सतीश सिंघल की उम्मीदवारी अपने प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के मुकाबले पिछड़ती हुई नजर आ रही है ।

Monday, December 22, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में शरत जैन को चुनवाने/जितवाने की मुहिम में वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एमएल अग्रवाल को इस्तेमाल करने के साथ-साथ पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के समर्थन का दावा करते हुए केआर रवींद्रन, पीटी प्रभाकर और मनोज देसाई की आँखों में धूल झोंकने की तैयारी

नई दिल्ली । शरत जैन की उम्मीदवारी की राह आसान बनाने के लिए अरनेजा गिरोह ने अब वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एमएल अग्रवाल को मोहरा बना कर इस्तेमाल करने की चाल चली है । अरनेजा गिरोह ने एमएल अग्रवाल को दोतरफा तरीके से इस्तेमाल करना शुरू किया है : अरनेजा गिरोह की तरफ से एक तरफ तो लोगों को बताया जा रहा है कि एमएल अग्रवाल को ऑफर दिया गया है कि शरत जैन यदि गवर्नर बनेंगे तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया जायेगा, लेकिन इसके लिए उन्हें दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को वापस कराने का काम करना होगा; दूसरी तरफ लोगों को बताया जा रहा है कि दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को बनाये रखने की जिद में एमएल अग्रवाल की भी नहीं सुन/मान रहे हैं । अरनेजा गिरोह की इस हरकत ने दूसरे वरिष्ठ पूर्व गवर्नर केके गुप्ता को बुरी तरह नाराज किया है । केके गुप्ता का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के लिए और रोटरी के लिए शर्मनाक बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (इलेक्ट) जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सक्रिय दिलचस्पी ले रहे हैं और एक पक्ष बन गए हैं ।
रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट केआर रवींद्रन, इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर और इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट मनोज देसाई बेचारे हर संभव कोशिश करने में जुटे हुए हैं कि रोटरी में चुनावी प्रक्रिया ईमानदारी से पूरी हो, तथा गवर्नर्स की उसमें सक्रिय और पक्षपाती भूमिका न हो - लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में जेके गौड़, रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा उनकी कोशिशों की जरा भी परवाह करते हुए नहीं दिख रहे हैं । वह कहते/बताते भी हैं कि उन्हें पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता का समर्थन है और इसलिए उन्हें किसी केआर रवींद्रन, किसी पीटी प्रभाकर और किसी मनोज देसाई के कहने/सुनने की परवाह करने की जरूरत नहीं है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (इलेक्ट) जेके गौड़ किस हद तक डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का हिस्सा बने हुए हैं इसे इस तथ्य से समझा/पहचाना जा सकता है कि पेम सेकेंड से दो दिन पहले वह पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की मीटिंग यह कह कर बुलाते हैं कि उन्हें पेम सेकेंड की कार्रवाई को अंतिम रूप देने के लिए विचार-विमर्श करना है । विचार-विमर्श के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इकठ्ठा होते हैं तो चर्चा शुरू होती है शरत जैन और दीपक गुप्ता के बीच होने वाले चुनाव को लेकर । यह देख कर केके गुप्ता नाराज होते हैं और जेके गौड़ से कहते हैं कि यह मीटिंग पेम सेकेंड की कार्रवाई पर विचार-विमर्श के लिए बुलाई गई हैं और उसके बारे में कोई बात ही नहीं हो रही है । केके गुप्ता के आपत्ति करने पर जेके गौड़ पेम सेकेंड की कार्रवाई के बारे में बात करना शुरू तो करते हैं, लेकिन वह बात पाँच/सात मिनट में पूरी हो जाती है और फिर चर्चा शरत जैन व दीपक गुप्ता के चुनाव की होने लगती है ।
जेके गौड़ का - और अरनेजा गिरोह के दूसरे नेताओं का कहना है कि चुनावी सक्रियता से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच मनमुटाव पैदा होता है, जिससे डिस्ट्रिक्ट का और रोटरी का नाम खराब होता है; इसलिए चुनाव की स्थिति को टाला जाना चाहिए और जो उम्मीदवार हैं उन्हें आगे-पीछे गवर्नर बनने के लिए राजी हो कर चुनावी मुकाबले की स्थिति से बच लेना चाहिए । ऊपर से तो यह बात बहुत अच्छी और जरूरी लगती है, लेकिन इसमें छिपा झूठ छिपा रह नहीं पाता है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच मनमुटाव पैदा होने तथा डिस्ट्रिक्ट और रोटरी का नाम खराब होने के लिए चुनावी सक्रियता जिम्मेदार नहीं होती है; बल्कि चुनावी सक्रियता के नाम पर क्लब्स में झगड़े करवाने तथा पदों की बंदरबाँट करने/करवाने की बातें जिम्मेदार होती हैं । शरत जैन और दीपक गुप्ता के बीच यदि ईमानदारी से चुनाव हो जाने दिया जाये, तो लोगों के बीच क्यों तो मनमुटाव होगा और क्यों डिस्ट्रिक्ट व रोटरी का नाम खराब होगा ? लोगों के बीच मनमुटाव यदि पैदा हो रहा है, क्लब्स में झगड़े हो रहे हैं तथा डिस्ट्रिक्ट का और रोटरी का नाम यदि खराब हो रहा है तो इसलिए क्योंकि जेके गौड़ ने - तथा अरनेजा गिरोह के दूसरे नेताओं ने शरत जैन को गवर्नर चुनवाने के लिए हर हथकंडा अपनाया हुआ है ।
दीपक गुप्ता के साथ रोटरी के एक आयोजन में अपनी मर्जी से खुशी खुशी खिंचवाई गई तस्वीर को फेसबुक पर लगाने के लिए मुकेश अरनेजा बौद्धिक संपदा अधिकार कानून के तहत कार्रवाई करने तक की धमकी देने लगते हैं; लेकिन शरत जैन के साथ खिंचवाई गई तस्वीरों को तरह तरह से फेसबुक पर प्रचारित करते/करवाते हैं । मुकेश अरनेजा, रमेश अग्रवाल, जेके गौड़ जब-जहाँ-जैसे मौका देखते हैं शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के काम में लगे रहते हैं । शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के चक्कर में जेके गौड़ ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की प्रतिष्ठा और गरिमा को तार-तार कर दिया है । पेम फर्स्ट और पेम सेकेंड में जेके गौड़ की भूमिका को जिन्होंने देखा है, उन्होंने कहा/बताया है कि जेके गौड़ तो बस 'गेस्ट एपियरेंस' वाली भूमिका में हैं और गवर्नरी का काम रमेश अग्रवाल ही कर रहे हैं ।
रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा ने जिस तरह जेके गौड़ के गवर्नर-काल पर कब्ज़ा कर लिया है, वैसा ही कब्ज़ा उनका आगे भी बना रहे - इसके लिए उन्हें शरत जैन को चुनवाना/जितवाना जरूरी लग रहा है । शरत जैन को चुनवाने/जितवाने के लिए हर हथकंडा अपनाने के बावजूद इन्हें चूँकि डर बना हुआ है कि कहीं दीपक गुप्ता न जीत जाएँ; इसलिए यह दीपक गुप्ता को मुकाबले से हटाने के प्रयासों में लगे हुए हैं । पहले इन्होंने इस काम के लिए रूपक जैन की मदद ली, किंतु उसमें असफल रहने के बाद अब इन्होंने एमएल अग्रवाल का दामन पकड़ा है । मजे की बात यह है कि यह एमएल अग्रवाल की मदद भी ले रहे हैं और एमएल अग्रवाल को बदनाम भी कर रहे हैं । अरनेजा गिरोह के नेताओं की तरफ से ही लोगों को बताया जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के लालच में एमएल अग्रवाल ने दीपक गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए राजी करने का काम शुरू कर दिया है । एमएल अग्रवाल अपने काम में असफल हो जाएँ, तब भी यह फायदा उठा सकें - इसके लिए इन्होंने दीपक गुप्ता को यह कहते हुए बदनाम करना शुरू कर दिया है कि दीपक गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी बनाये रखने की जिद में डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की जैसे कोई परवाह ही नहीं है । हालाँकि इस बात का इनसे कोई जवाब देते हुए नहीं बनता है कि डिस्ट्रिक्ट और रोटरी की आपको यदि सचमुच में परवाह है तो आप शरत जैन की उम्मीदवारी को वापस क्यों नहीं करवा देते ? शरत जैन की उम्मीदवारी वापस हो जायेगी तो चुनाव नहीं होगा और तब न लोगों के बीच मनमुटाव होगा और न डिस्ट्रिक्ट व रोटरी का नाम खराब होगा ।
जेके गौड़, रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा ने अपने किए-धरे को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के समर्थन का भी दावा करना शुरू कर दिया है । दरअसल उन्हें पता है कि डिस्ट्रिक्ट में 'अपने' उम्मीदवार को चुनवाने/जितवाने के लिए उन्होंने जिस जिस तरह की कारस्तानियाँ की हुई हैं, उसकी जानकारी रोटरी के बड़े नेताओं तक पहुँच रही है; और रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट केआर रवींद्रन, इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर और इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट मनोज देसाई जैसे लोगों को उनकी हरकतें खराब लग रही हैं । ऐसे में, जेके गौड़, रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा को लग रहा है कि वह सुशील गुप्ता के समर्थन का दावा करेंगे तो केआर रवींद्रन, पीटी प्रभाकर और मनोज देसाई आदि भी चुप रहेंगे - और उन्हें 'अपने' उम्मीदवार को चुनवाने/जितवाने के लिए कुछ भी हरकतें करने का मौका मिलता रहेगा ।

Sunday, December 21, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट गैरी हुआंग के सामने मिले प्रदर्शन के मौके का फायदा उठाने के बाद प्रसून चौधरी की तरफ से जोन स्तर पर शुरू हुईं मीटिंग्स के कार्यक्रम ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सतीश सिंघल के मुकाबले प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी को बढ़त दिलाई

गाजियाबाद । प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु जोन स्तर पर शुरू हुईं मीटिंग्स ने रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पुनः गर्मी पैदा कर दी है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3012 के गठन की औपचारिक घोषणा होने की प्रक्रिया पूरी होने तथा नए बने डिस्ट्रिक्ट के लिए चुनावी प्रक्रिया के दोबारा शुरू होने के कारण चुनाव की तारीख के आगे बढ़ने से चुनावी सरगर्मियाँ ठंडी पड़ गई थीं । चुनावी सरगर्मियाँ इसलिए भी ठंडी पड़ गईं थीं क्योंकि रोटरी वर्ष के पहले तीन-चार महीनों में उम्मीदवारों ने जमकर प्रचार अभियान चला लिया था और नया कुछ करने को बाकी नहीं रह गया था । सच यह है कि उम्मीदवार भी और 'वोटर' भी पूरी तरह पक/चट गए थे । दरअसल चुनाव चूँकि अक्टूबर/नवंबर में होते हैं, इसलिए उम्मीदवार अपनी सक्रियता का प्लान भी इसी तरह बनाते हैं कि उनका चुनाव अभियान अक्टूबर/नवंबर तक पूरा हो जाये । मौजूदा रोटरी वर्ष में भी उम्मीदवारों ने तो प्लान इसी तरह से बनाया और अपना चुनाव अभियान तय समय तक पूरा कर लिया, लेकिन चुनाव आगे खिसकता गया । ऐसे में, उम्मीदवारों के सामने सचमुच में यह संकट पैदा हो गया कि अब वह क्या करें ? इसी संकट के चलते चुनावी सरगर्मियाँ ठंडी पड़ गईं ।
लेकिन प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु जोन स्तर पर शुरू हुईं मीटिंग्स ने चुनावी हलचल में एक बार फिर से गर्मी पैदा करने का काम किया है । गाजियाबाद क्षेत्र के दो जोन में प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों ने मीटिंग्स कर ली हैं; दिल्ली के कुछेक जोन में मीटिंग्स के कार्यक्रम तय होने की सूचनाएँ मिल रही हैं और प्रसून चौधरी के समर्थकों की तरफ  से किया जा रहा दावा सुना जा रहा है कि जल्दी ही सभी जोन में मीटिंग्स के कार्यक्रम तय कर लिए जायेंगे तथा उचित समय तक सभी जोन में मीटिंग्स कर ली जायेंगी । प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों की इस आक्रामक रणनीति का उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार सतीश सिंघल की तरफ से कैसे मुकाबला किया जायेगा, इसका कोई संकेत लोगों को अभी तक नहीं मिला है । इस कारण, चुनाव अभियान के इस दूसरे दौर में सतीश सिंघल के मुकाबले प्रसून चौधरी के चुनाव अभियान को बढ़त लेते हुए देखा/पाया जा रहा है । 
प्रसून चौधरी को बढ़त इसलिए भी मिलती दिख रही है क्योंकि हाल ही में रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट गैरी हुआंग की उपस्थिति में डिस्ट्रिक्ट में हुए रू-ब-रू आयोजन में रोटरी फाउंडेशन के संदर्भ में प्रसून चौधरी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा । सतीश सिंघल का क्लब यूँ तो काफी प्रभावी बताया जाता है, लेकिन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट तथा डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के सामने जब प्रदर्शन का मौका आया तो पता नहीं क्यों सतीश सिंघल अपने को और अपने क्लब को चार्जड दिखाने से चूक गए । रू-ब-रू आयोजन में हुए 'प्रदर्शन' के आधार पर डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों ने प्रसून चौधरी और सतीश सिंघल के बीच तुलना की तो प्रसून चौधरी के पलड़े को भारी पाया/पहचाना । प्रसून चौधरी के पक्ष में डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के बीच बनी यह धारणा डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों तक ट्रांसफर हुई तो उसका फायदा प्रसून चौधरी को मिलना ही था । यह फायदा वैसे उतना नहीं मिलता, यदि प्रसून चौधरी की तरफ से जोन स्तर पर मीटिंग्स का कार्यक्रम न शुरू किया गया होता । प्रसून चौधरी की तरफ से जोन स्तर पर शुरू हुईं मीटिंग्स और मीटिंग्स की तैयारी ने एक तरह से कड़ी-से-कड़ी जोड़ने का काम किया और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के साथ हुए रू-ब-रू कार्यक्रम में भारी हुए अपने पलड़े को और भारी बना लिया है ।
प्रसून चौधरी को बढ़त बनाते देखने के बावजूद प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के कई एक समर्थक सतीश सिंघल से मिल सकने वाली चुनौती को लेकर हालाँकि गंभीर भी बने हुए हैं । उनका मानना और कहना है कि सतीश सिंघल अभी भले ही प्रसून चौधरी से पिछड़ते नजर आ रहे हों, लेकिन सतीश सिंघल को इस पिछड़न को दूर करने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं करने पड़ेंगे और थोड़े से प्रयासों से ही वह अपनी स्थिति को बेहतर बना सकेंगे । चुनाव अभियान के पहले चरण में भी ऐसा ही हुआ था । प्रसून चौधरी और सतीश सिंघल के बीच की होड़ को दिलचस्पी और नजदीक से देख रहे रोटेरियंस का मानना और कहना है कि प्रसून चौधरी के साथ अच्छी बात यह रही है कि उन्होंने शुरू से ही अपनी कमजोरियों को जाना/पहचाना और उन्हें दूर करते हुए आगे बढ़ने का काम किया; उनके रवैये के विपरीत सतीश सिंघल ने अपनी खूबियों पर मुग्ध होने/रहने का काम किया तथा अपनी कमजोरियों को पहचानने/समझने का ज्यादा प्रयास ही नहीं किया - उन्हें दूर करने का प्रयास तो फिर क्या ही होता । यही कारण रहा कि ऐसे कई प्रमुख रोटेरियंस जिन्हें सतीश सिंघल के साथ या तो होना चाहिए था और या जिन्हें उनके साथ शुरू में देखा भी जा रहा था - वह या तो चुप बैठे दिख रहे हैं और या प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठाये हुए नजर आ रहे हैं । दरअसल इसलिए ही सतीश सिंघल जहाँ मौकों का फायदा उठाने में चूकते हुए दिख रहे हैं; वहीं प्रसून चौधरी मौकों का फायदा उठाते हुए सतीश सिंघल के मुकाबले बढ़त बनाने में कामयाब होते हुए नजर आ रहे हैं ।  

Saturday, December 20, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में रमेश अग्रवाल के दावे के अनुसार पेम थर्ड के आयोजन के संदर्भ में धोखा खाने के बाद भी रोटरी क्लब सोनीपत उनके साथ बना रहेगा; किंतु पेम सेकेंड में भी क्या वह जेके गौड़ को अपनी कठपुतली बनाये रख सकेंगे ?

नई दिल्ली । शरत जैन की उम्मीदवारी को नुकसान से बचाने के लिए रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में रमेश अग्रवाल ने रोटरी क्लब सोनीपत के लोगों को धोखा देना मंजूर कर लिया । रमेश अग्रवाल से मिले धोखे के कारण रोटरी क्लब सोनीपत के लोगों की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भारी किरकिरी हुई है । रमेश अग्रवाल हालाँकि आश्वस्त हैं और दावा कर रहे हैं कि रोटरी क्लब सोनीपत में उनके कई पिटठू हैं, जिनके होने से वह क्लब उनके साथ ही रहेगा - वह क्लब के लोगों के साथ चाहें कितना ही धोखा करें । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब सोनीपत के साथ पेम थर्ड की आयोजन जिम्मेदारी को लेकर धोखा हुआ है । रमेश अग्रवाल ने पेम थर्ड के आयोजन की जिम्मेदारी रोटरी क्लब सोनीपत को दे दी थी । रोटरी क्लब सोनीपत के लोगों ने उसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी । पेम थर्ड के आयोजन में जिन जिन लोगों की मदद लेनी थी, उनके साथ मीटिंग कर ली गई थी और डिस्ट्रिक्ट के लोगों को निमंत्रित करना भी शुरू कर दिया गया था । लेकिन तभी भेद खुला कि जेके गौड़ ने तो पेम थर्ड के आयोजन के लिए रोटरी क्लब दिल्ली रिवरसाइड के सतीश गुप्ता को प्रस्ताव दिया हुआ है । सवाल पैदा हुआ कि उस प्रस्ताव पर फैसला हुए बिना और जेके गौड़ की जानकारी में लाये बिना रमेश अग्रवाल किसी और क्लब को पेम थर्ड के आयोजन की जिम्मेदारी कैसे दे सकते हैं ?
रमेश अग्रवाल के लिए यह सवाल हालाँकि बेमानी था - क्योंकि वह तो मानते और दिखाते हैं कि असली गवर्नर तो वही हैं, जेके गौड़ तो सिर्फ कठपुतली हैं, फैसला कठपुतली थोड़े ही करती है, इसलिए वह जो चाहें कर सकते हैं । किंतु फिर भी, इस संदर्भ में मामला थोड़ा पेचीदा हो गया । दरअसल सतीश गुप्ता को शरत जैन की उम्मीदवारी के पक्के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता है । शरत जैन की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों ने माना/समझा कि रमेश अग्रवाल की यह कारस्तानी शरत जैन की उम्मीदवारी के एक समर्थक को खो सकती है । रमेश अग्रवाल की कारस्तानियाँ पहले ही शरत जैन की उम्मीदवारी को बहुत नुकसान पहुँचा चुकी हैं । इसी बात को ध्यान में रखते हुए शरत जैन की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों और खुद शरत जैन ने रमेश अग्रवाल पर दबाव बनाया कि अपनी घटिया हरकतों को करने से वह कुछ दिनों के लिए तो बाज रहें । सतीश गुप्ता के प्रति रमेश अग्रवाल की खुन्नस से शरत जैन पहले से भी परिचित रहे हैं । सतीश गुप्ता से खुन्नस रखने के चलते ही रमेश अग्रवाल ने अपने क्लब में सतीश गुप्ता के बेटे मोहित गुप्ता को अध्यक्ष नहीं बनने दिया था । रमेश अग्रवाल की घटिया हरकत के चलते ही, मोहित गुप्ता को अध्यक्ष बनने के लिए दोबारा से लाइन में लगना पड़ा है और इस वर्ष उन्हें फिर से क्लब का सचिव बनने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।
शरत जैन और शरत जैन की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों का दबाव पड़ा तो रमेश अग्रवाल को पेम थर्ड के आयोजन की जिम्मेदारी रोटरी क्लब दिल्ली रिवरसाइड को देने के जेके गौड़ के फैसले को मंजूर करने के लिए मजबूर होना ही पड़ा । रमेश अग्रवाल की इस कारस्तानी से लेकिन रोटरी क्लब सोनीपत के लोगों की बड़ी फजीहत हुई है । उनकी फजीहत में मजा लेने वाले लोगों का कहना लेकिन यह है कि एक घटिया व्यक्ति के साथ रहने का यही नतीजा मिलता है । इस मामले में फजीहत भले ही रमेश अग्रवाल की भी हुई हो, लेकिन रमेश अग्रवाल इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि जो हुआ उससे शरत जैन की उम्मीदवारी को कोई नुकसान नहीं होगा । उनका दावा है कि रोटरी क्लब सोनीपत में उनके कई पिटठू हैं, जिनके कारण वह क्लब उनकी पकड़ से बाहर नहीं जा सकेगा ।
रमेश अग्रवाल चाहते हुए और प्रयास करने के बाद भी जिस तरह पेम थर्ड के आयोजन की जिम्मेदारी रोटरी क्लब सोनीपत को नहीं दिलवा सके, उसके लिए जेके गौड़ की भूमिका को भी श्रेय दिया जा रहा है । कुछेक लोगों को लगता है कि जेके गौड़ को यह बात बहुत बुरी लग रही है कि डिस्ट्रिक्ट में और डिस्ट्रिक्ट के बाहर की रोटरी में लोग उन्हें रमेश अग्रवाल की कठपुतली के रूप में देखें/पहचानें और इसीलिए इस मामले के जरिये उन्होंने यह दिखाने/जताने का प्रयास किया है कि वह रमेश अग्रवाल की कठपुतली नहीं हैं और उनके किसी फैसले को मानने से इंकार भी कर सकते हैं । जिन लोगों को लेकिन इस थ्योरी पर विश्वास नहीं है, उनका कहना है कि पेम सेकेंड में इस बात का पता चल जायेगा कि जेके गौड़ क्या सचमुच में रमेश अग्रवाल की कठपुतली नहीं बने रहना चाहते हैं ? उल्लेखनीय है कि पेम फर्स्ट में माइक ज्यादातर समय रमेश अग्रवाल के हाथ में ही रहा था; और जो बातें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ को कहनी चाहिए थीं, उन बातों को भी रमेश अग्रवाल ने कहा/बताया था । रमेश अग्रवाल के इस रवैये से ही लोगों को यह कहने का मौका मिला था कि रमेश अग्रवाल ने जेके गौड़ को कठपुतली बना कर रख दिया है और खुद ही गवर्नरी करने में लग गए हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि लोगों के बीच बनी इस राय/समझ को पेम सेकेंड में जेके गौड़ बदलने की कोई कोशिश करते हैं या अपने आप को रमेश अग्रवाल की कठपुतली ही साबित करते हैं ?

Thursday, December 11, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर और इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट मनोज देसाई ने जिस दृढ़ता के साथ डिस्ट्रिक्ट 3100 में हस्तक्षेप किया है, वैसा ही हस्तक्षेप वह डिस्ट्रिक्ट 3012 के मामले में भी करेंगे क्या; और या अरनेजा गिरोह की पक्षपातपूर्ण चुनावी भूमिका को अनदेखा ही करेंगे ?

नई दिल्ली । जेके गौड़, मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल से चेन्नई में 12 से 14 दिसंबर के बीच आयोजित हो रहे रोटरी इंस्टीट्यूट 2014 में क्या यह पूछा जायेगा कि अपने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी प्रक्रिया में वह पक्षपातपूर्ण भूमिका क्यों निभा रहे हैं, जिसे मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर और भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई बिलकुल भी पसंद नहीं करते हैं ? यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि हाल-फिलहाल में कुछ ऐसा घटा है जिससे पता चलता है कि यह दोनों बड़े नेता डिस्ट्रिक्ट्स की चुनावी राजनीति में गवर्नर्स की सक्रिय व पक्षपातपूर्ण भागीदारी के बहुत ही खिलाफ हैं और इस संदर्भ में कड़े फैसले भी ले रहे हैं । साथ ही साथ यह भी देखने में आ रहा है कि पीटी प्रभाकर और मनोज देसाई के इस रवैये की जेके गौड़, मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को जैसे कोई परवाह ही नहीं है; और वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में धड़ल्ले से एक पक्ष बने हुए हैं । पीटी प्रभाकर और मनोज देसाई की परवाह न करने के पीछे जेके गौड़, मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल का विश्वास यह है कि पीटी प्रभाकर के लिए तो अब चलाचली की बेला है; वह छह महीने और इंटरनेशनल डायरेक्टर हैं - इसलिए अब उनकी परवाह करने की जरूरत नहीं है; और रही बात मनोज देसाई की, तो मनोज देसाई को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनवाने में मुकेश अरनेजा का जो सहयोग/समर्थन रहा था उसे ध्यान में रखते हुए मुकेश अरनेजा के नेतृत्व वाले गिरोह की कारस्तानियों को मनोज देसाई अनदेखा ही करेंगे । अरनेजा गिरोह के नेताओं को विश्वास है कि मनोज देसाई एहसानफरामोश टाइप के व्यक्ति साबित नहीं होंगे - और इसी विश्वास के चलते वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपनी पक्षपातपूर्ण भूमिका को खुलेआम अपनाये हुए हैं ।
अरनेजा गिरोह के नेताओं को भले ही विश्वास हो कि रोटरी इंस्टीट्यूट 2014 के कार्यक्रमों के बीच पीटी प्रभाकर और मनोज देसाई डिस्ट्रिक्ट की चुनावी गतिविधियों के संदर्भ में की जा रही उनकी कारस्तानियों पर चुप ही रहेंगे, लेकिन रोटरी इंस्टीट्यूट 2014 में शामिल होने चेन्नई पहुँच रहे दूसरे कुछेक रोटरी नेताओं को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट 3012 में घट रही घटनाओं का पीटी प्रभाकर और मनोज देसाई अवश्य ही संज्ञान लेंगे । दरअसल अभी हाल ही में, डिस्ट्रिक्ट 3100 में पिछले वर्ष संपन्न हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी तथा सीओएल के चुनाव को निरस्त करने व कुछेक उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने के जो फैसले रोटरी इंटरनेशनल ने किए हैं - उनमें पीटी प्रभाकर की ही भूमिका को महत्वपूर्ण माना/देखा गया है । सिर्फ इतना ही नहीं, पीटी प्रभाकर तथा मनोज देसाई ने बाकायदा पत्र लिख कर कई नियमों तथा दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए डिस्ट्रिक्ट 3100 के डिस्ट्रिक्ट लीडर्स को चेतावनी दी कि डिस्ट्रिक्ट में यदि राजनीति को खत्म नहीं किया गया, तो डिस्ट्रिक्ट ही बंद कर दिया जायेगा । पीटी प्रभाकर तथा मनोज देसाई के इस कड़े रवैये से उम्मीद बनी थी कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में राजनीति करने वाले गवर्नर्स सबक लेंगे और चुनावी राजनीति में नहीं पड़ेंगे । किंतु डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट जेके गौड़ तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल पर इसका कोई असर नहीं है - और ये तीनों डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में होने वाले चुनाव में शरत जैन के लिए खुलेआम पक्षपातपूर्ण अभियान चलाने में लगे हुए हैं; और यह जताने/दिखाने में लगे हुए हैं जैसे कि इन्हें पीटी प्रभाकर व मनोज देसाई की कोई परवाह ही नहीं है । जाहिर तौर पर जेके गौड़, मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के इस रवैये से पीटी प्रभाकर और मनोज देसाई की भारी किरकिरी हो रही है । 
जेके गौड़ अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होंगे । रमेश अग्रवाल को उन्होंने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया है तथा मुकेश अरनेजा को डीआरएफसी का पद मिला है । उम्मीद तो यह की जाती थी कि डिस्ट्रिक्ट के महत्वपूर्ण पदों पर स्थापित इन लोगों की चिंता यह होनी चाहिए कि एक नए डिस्ट्रिक्ट में कैसे लोगों के बीच समन्वय और परस्पर विश्वास बनाये; लेकिन इन तीनों की चिंता यह बनी हुई है कि यह कैसे शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट का चुनाव जितवाएँ ? इसके लिए अगले रोटरी वर्ष की डिस्ट्रिक्ट टीम के पदों की बंदरबाँट करने से लेकर क्लब्स के लोगों को आपस में लड़वाने तक के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं - विभिन्न आधिकारिक आयोजनों में अपने साथ शरत जैन को खड़ा करके तस्वीरें खिंचवाई जाती हैं और फिर उन्हें लोगों के बीच प्रचारित किया जाता है । इससे भी ज्यादा बुरी बात यह हो रही है कि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ को जैसे बंधक बना लिया है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के काम जैसे खुद ही करते हुए नजर आ रहे हैं - उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद ही मजाक बन कर रह गया है । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि करीब पाँच वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में मुकेश अरनेजा ने तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अमित जैन को भी बंधक बनाने और उनके काम खुद करने की हरकत की थी, जिसके बाद अमित जैन ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से ही हटा दिया था । जेके गौड़ में लेकिन अमित जैन जैसा साहस नहीं है । लोगों को यह भी लगता है कि जेके गौड़ को बंधक बनाया नहीं गया है, वह खुद ही बंधक बने हैं - क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी सँभालना उन्हें मुश्किल लग रहा है । पेम वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ से ज्यादा सक्रिय तो डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रमेश अग्रवाल दिख रहे थे । यह देख कर कुछेक लोगों ने चुटकी भी ली कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का काम यदि रमेश अग्रवाल को ही करना है तो क्यों न रमेश अग्रवाल को ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बना दिया जाना चाहिए ।
जेके गौड़ की आड़ में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट पर जिस तरह से कब्ज़ा किया है, उस कब्ज़े को बनाये रखने के लिए उन्हें किसी भी तरह शरत जैन को चुनाव जितवाना जरूरी लग रहा है; और इस जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने पदों का लालच देने से लेकर क्लब्स में लड़ाने-भिड़ाने तक के हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं । मुकेश अरनेजा तो अपने ही क्लब की अध्यक्ष आभा गुप्ता को अपमानित करने व परेशान करने की हद तक जा पहुँचे, हालाँकि आभा गुप्ता की तरफ से उन्हें करारा जबाव मिला । अरनेजा गिरोह के इन नेताओं के लिए समस्या की बात असल में यह हुई कि शुरू में इन्हें उम्मीद नहीं थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को बनाये भी रख सकेंगे; दीपक गुप्ता लेकिन जब अपनी उम्मीदवारी को न सिर्फ बनाये रहे बल्कि उसके लिए व्यापक समर्थन भी जुटाते नजर आये तो अरनेजा गिरोह के इन नेताओं ने रूपक जैन की मदद लेकर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ सौदेबाजी करने की चाल चली । लेकिन उसमें भी उनकी दाल नहीं गली । अपने सारे अनुमानों व हथकंडों को फेल होता देख कर अरनेजा गिरोह को शरत जैन की जीत संभव बनाने के लिए खुल कर पक्षपात करने की हरकत पर उतरना पड़ा है । उनकी यह हरकत लेकिन मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर और भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की फजीहत करवा रही है । यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पीटी प्रभाकर और मनोज देसाई ने जिस दृढ़ता के साथ डिस्ट्रिक्ट 3100 में हस्तक्षेप किया है, वैसा ही हस्तक्षेप वह डिस्ट्रिक्ट 3012 के मामले में भी करते हैं; और या अरनेजा गिरोह की हरकतों को अनदेखा ही करेंगे ? 

Monday, November 24, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता के साथ खिंची अपनी तस्वीर को सार्वजनिक करने के लिए मुकेश अरनेजा ने रोटरी क्लब वैशाली के रमणीक तलवार को नोटिस दिया

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा ने दीपक गुप्ता के साथ खिंची/खिंचवाई अपनी तस्वीर को फेसबुक की अपनी टाइमलाइन पर डालने के लिए रोटरी क्लब वैशाली के वरिष्ठ सदस्य रमणीक तलवार को बौद्धिक संपदा अधिकार कानून के तहत जो नोटिस दिया, उसका करारा जबाव देकर रमणीक तलवार ने मामले को खासा दिलचस्प बना दिया है । मुकेश अरनेजा का कहना रहा कि दीपक गुप्ता चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार हैं इसलिए दीपक गुप्ता के साथ उनकी यह तस्वीर लोगों को चुनाव के संदर्भ में प्रभावित करेगी । रमणीक तलवार को लिखे पत्र में मुकेश अरनेजा ने यह तो माना कि यह तस्वीर उनके साथ-साथ दीपक गुप्ता की भी बौद्धिक संपदा है, किंतु साथ ही यह दावा भी किया कि उनकी बिना अनुमति के इस तस्वीर को फेसबुक पर लाना गैरकानूनी है । रमणीक तलवार ने इसी तथ्य का हवाला देकर मुकेश अरनेजा को करारा जबाव दिया है । रमणीक तलवार का कहना रहा कि इस तस्वीर पर चूँकि दोनों का बौद्धिक संपदा अधिकार है, इसलिए दोनों यदि इसे हटाने की माँग करेंगे तो वह इसे तुरंत हटा लेंगे ।
मुकेश अरनेजा ने दीपक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार होने का हवाला देते हुए इस तस्वीर के उपयोग को जिस तरह अनुचित बताया है, उसमें उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उन्हें आपत्ति आखिर किस बात की है - इस बात की कि इस तस्वीर के कारण वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में संलग्न दिखते हैं जो कि वह नहीं हैं; और या उनकी आपत्ति इस बात के लिए है कि वह तो दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं कर रहे हैं जबकि यह तस्वीर उन्हें दीपक गुप्ता के 'साथ' दिखा रही है और लोगों को यह आभास दे रही है कि वह तो दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं । मुकेश अरनेजा की आपत्ति का कारण यदि पहला वाला है तो यह मुकेश अरनेजा के पाखंड और उनकी धूर्तता को प्रदर्शित करता है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक गुप्ता के प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार शरत जैन के साथ तो उनकी बहुत से तस्वीरें फेसबुक पर विभिन्न टाइमलाइन पर देखी जा सकती हैं; लेकिन शरत जैन के साथ अपनी उन तस्वीरों को हटाने की माँग करते हुए मुकेश अरनेजा को कभी भी नहीं सुना गया है । रमणीक तलवार ने बाकायदा सुबूत देकर शरत जैन के साथ उनकी संलग्नता को जाहिर किया है ।
आपत्ति का कारण यदि दूसरा वाला है तो फिर सवाल यह उठता है कि मुकेश अरनेजा को यदि एक तस्वीर से दीपक गुप्ता को फायदा हो जाने का डर है तो फिर उन्होंने दीपक गुप्ता के साथ तस्वीर खिंचवाई ही क्यों ? रमणीक तलवार के दावे के अनुसार, उक्त तस्वीर डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में खिंची थी - जहाँ बहुत से लोगों की तस्वीरें खिंची थीं । मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता के साथ खिंची इस एक तस्वीर से इतना भयभीत क्यों हो गए हैं कि इसे लोगों के सामने आने से रोकने के लिए उन्हें रमणीक तलवार को नोटिस देना पड़ा है ।
तस्वीर को देखें तो पहली ही नजर में यह स्पष्ट हो जाता है कि इस तस्वीर को खिंचवाते समय मुकेश अरनेजा ज्यादा उत्साहित हैं, न की दीपक गुप्ता । मुकेश अरनेजा ने जिस तरह दीपक गुप्ता को अपनी बाँह के घेरे में कसा हुआ है, उससे साफ आभास मिल रहा है कि दीपक गुप्ता को अपने नजदीक पाकर मुकेश अरनेजा बहुत खुश, गर्व से भरे हुए और उत्साह व आश्वस्ति से परिपूर्ण महसूस कर रहे हैं । मुकेश अरनेजा को हालाँकि झूठी मुस्कराहट का बड़ा ऊँचा खिलाड़ी माना जाता है, और उनके इस खिलाड़ीपने ने लोगों के बीच उनकी भूमिका को संदेहास्पद ही बनाया है और लोगों के लिए यह समझना मुश्किल होता है कि वह दिखा क्या रहे हैं और उनके मन में क्या होगा ? इसीलिए इस तस्वीर को देख कर यह समझना आसान नहीं है कि वह खुद को दीपक गुप्ता के नजदीक पाकर सचमुच उल्लास से भर गए और विभोर हो उठे या उनके जो भाव नजर आ रहे हैं, वह उनका एक नाटक भर है । तस्वीर को सार्वजनिक करने पर नोटिस दे कर मुकेश अरनेजा ने मामले को और रहस्यपूर्ण बना दिया है ।
रमणीक तलवार को नोटिस देने के साथ ही मुकेश अरनेजा ने कुछेक लोगों के बीच दावा किया है कि अब वह ऐसे लोगों को सबक सिखाना शुरू करेंगे जो रोटरी में उनके विरोधी हैं । मुकेश अरनेजा ने कुछेक लोगों को कहा/बताया है कि वकील आशीष माखीजा को उन्होंने जेके गौड़ की डिस्ट्रिक्ट टीम में महत्वपूर्ण पद दिलवाया ही इसलिए है ताकि वह लोगों को सबक सिखाने की अपनी कार्रवाई में उनकी मदद ले सकें । रमणीक तलवार को नोटिस देकर मुकेश अरनेजा ने लगता है कि अपने कहे हुए पर अमल करना शुरू कर दिया है । रमणीक तलवार ने मुकेश अरनेजा को जबाव तो तगड़ा दिया है, जिसके बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि मुकेश अरनेजा इस मामले को अब आगे कैसे बढ़ाते हैं ?

Sunday, November 23, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में समर्थकों की प्रभावी टीम और कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के समर्थन तथा अनुकूल रणनीतिक पहलुओं के बावजूद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी को अशोक अग्रवाल से तगड़ी चुनौती मिलती दिख रही है

लखनऊ । संदीप सहगल की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी की बागडोर थामने/थमाने को लेकर उनके समर्थक नेताओं के बीच जिस तरह की अफरातफरी मची हुई है, उसे देख/जान कर संदीप सहगल की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच खासी चिंता पैदा हुई है और उन्होंने हालात को सँभालने की जरूरत पर ध्यान दिया है । गुरनाम सिंह की प्रेशर-टैक्टिक से निपटने के लिए भी संदीप सहगल के समर्थक/शुभचिंतक कच्चे खिलाड़ी साबित हो रहे हैं, जिसके चलते उनका अभियान अपनी संगठित शक्ति को संचालित करने के मामले में न सिर्फ पिछड़ रहा है, बल्कि अपनी शक्ति को बिखरता हुआ भी पा रहा है । गुरनाम सिंह ने पिछले दिनों इस बात को जोर-शोर से प्रचारित किया कि नीरज बोरा अगले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी के लिए समर्थन लेने के बदले में मौजूदा लायन वर्ष में अशोक अग्रवाल का समर्थन करने के लिए तैयार हो गए हैं । उनकी इस बात को सच माना जाये, इसके लिए गुरनाम सिंह ने 'सुबूत' भी दे दिया और वह यह कि - इसीलिए तो संदीप सहगल के लिए नीरज बोरा न तो कहीं आ जा रहे हैं और न ही किसी को फोन कर रहे हैं । गुरनाम सिंह की यह दूसरी बात चूँकि सच है, इसलिए पहली वाली झूठी बात भी लोगों को सच-सी दिखने लगी । एके सिंह के समर्थन का सौदा तो गुरनाम सिंह ने पिछले वर्ष विशाल सिन्हा के लिए ही कर लिया था; लेकिन फिर भी उन्होंने अगले वर्ष प्रस्तुत होने वाली एके सिंह की उम्मीदवारी के समर्थन के बदले में अशोक अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने का जो दाँव चला है, तो यह उनकी तरकीब का ही एक नमूना है । गौरतलब है कि गुरनाम सिंह इसी तरह की बातों से लोगों को उलझाये रखते हैं । यह तो उनके प्रतिद्धंद्धियों को देखना है कि वह उनकी  इस तरह की तरकीबों से कैसे निपटें ?
नीरज बोरा को लेकर गुरनाम सिंह ने जो दाँव चला उसके चलते संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता जिस तरह बचाव करते हुए दिखे हैं, उससे साबित सिर्फ यह हुआ है कि वह गुरनाम सिंह की राजनीतिक तरकीबों को समझ नहीं रहे हैं, और उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे हैं - और इसीलिए उनसे निपटने की उन्होंने कोई व्यवस्था ही नहीं की है । अब यदि यह सच है कि नीरज बोरा, संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं तो साथ ही साथ सच यह भी है कि नीरज बोरा समर्थन में कुछ करते हुए 'दिख' नहीं रहे हैं । नीरज बोरा की व्यस्तताएँ चूँकि अलग हैं और लायन राजनीति में उनकी ज्यादा सक्रियता नहीं रहती है, इसलिए वह यदि कुछ करते हुए नहीं 'दिख' रहे हैं तो यह बहुत स्वाभाविक ही है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को चाहिए था कि वह इस हकीकत को पहचानें और यह तय करें कि वह किस तरह नीरज बोरा का समर्थन संदीप सहगल के साथ 'दिखाएँ' - वह ऐसा करने में चूक गए, जिसका फायदा उठाने में गुरनाम सिंह ने कोई चूक नहीं की । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक/शुभचिंतक यह मानते/समझते रहे कि जहाँ वीएस दीक्षित और शिव कुमार गुप्ता खड़े दिखेंगे, वहाँ नीरज बोरा को ही खड़ा देखा जायेगा, क्योंकि लायन राजनीति की पॉवर ऑफ अटॉर्नी नीरज बोरा ने इन्हें सौंप दी हुई हुई है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक/शुभचिंतक नेता यह समझने में चूक कर बैठे कि लायन राजनीति पॉवर ऑफ अटॉर्नी के भरोसे नहीं हो सकती है; और यहाँ सीधी सक्रियता ही काम करती है : सीधी सक्रियता यदि संभव नहीं हो पा रही हो तो उसका आभास या प्रतीकात्मक संकेत तो कम-अस-कम हो ।
चूँकि यह नहीं हो सका, तो उसका फायदा गुरनाम सिंह ने उठाया । गुरनाम सिंह ने गफलत पैदा करने का काम किया, तो अशोक अग्रवाल ने उस गफलत के बीच अपने लिए पैठ बनाने और समर्थन जुटाने का काम किया । अशोक अग्रवाल का लोगों के साथ चूँकि पुराना परिचय है; अशोक अग्रवाल लोगों को और लोग अशोक अग्रवाल को चूँकि नजदीक से जानते/पहचानते हैं और समय समय पर एक दूसरे को बरतते/परखते रहे हैं, इसलिए लोगों के साथ विश्वास का संबंध बना लेना उनके लिए आसान पड़ता है । शाहजहाँपुर चूँकि लखनऊ से ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए भी लखनऊ के लोगों के बीच पैठ बनाना उनके लिए आसान पड़ता है । संदीप सहगल के नजदीकी और समर्थक भी मानते/समझते तथा कहते हैं कि भौगोलिक दूरी के कारण उनके लिए लखनऊ के लोगों के साथ वैसी कैमिस्ट्री बना पाना मुश्किल हो रहा है, जैसे कैमिस्ट्री अशोक अग्रवाल की लखनऊ के लोगों के साथ है । इससे जाहिर है कि संदीप सहगल के नजदीकियों और समर्थकों को यह तो पता है कि समस्या और चुनौतियाँ क्या क्या हैं - लेकिन उनसे निपटने की कोई कारगर कोशिश उनकी तरफ से होती हुई नहीं दिख रही है ।
यह कारगर कोशिश इसलिए भी होती हुई नहीं दिख रही है क्योंकि अभी तक इसी बात को लेकर असमंजस बना हुआ है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर हो किसके हाथ में ? एक तरह से देखें तो नजारा यह दिख रहा है कि संदीप सहगल की सेना बिना सेनापति के लड़ रही है । संदीप सहगल के समर्थकों का ही नहीं, दूसरे कई लोगों का भी मानना और कहना है कि रणनीतिक पहलुओं से संदीप सहगल की स्थिति बहुत अच्छी है, लेकिन इस अच्छी स्थिति का फायदा उठाने के लिए जिस कार्य योजना को अपनाने की और जिस तरह का तंत्र निर्मित किए जाने की जरूरत है - उस पर या तो ध्यान नहीं दिया जा पा रहा है और या उसे क्रियान्वित नहीं किया जा पा रहा है । अशोक अग्रवाल के साथ उनके समर्थकों की टीम भले ही न दिख रही हो, लेकिन उनके और उनके समर्थक नेताओं के बीच जो तालमेल बना है और उस तालमेल के साथ वह अपना अपना काम करते हुए जिस तरह दिख रहे हैं, उससे उनकी उम्मीदवारी संदीप सहगल की उम्मीदवारी के लिए गंभीर चुनौती तो बनी ही है । संदीप सहगल के साथ समर्थकों की एक प्रभावी टीम लगी हुई दिख रही है और कई एक पूर्व गवर्नर का समर्थन भी उन्हें मिल रहा है, किंतु उनके बीच तालमेल के अभाव के चलते वह ऐसा असर बनाते हुए अभी तो नहीं दिख रहे हैं जैसा असर अनुकूल स्थितियों को देखते हुए उनका होना चाहिए । दरअसल इसीलिए गुरनाम सिंह को गफलत पैदा करने का मौका मिल रहा है और यही बात संदीप सहगल तथा उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए गंभीर चुनौती की तरह तो है ही - साथ ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को दिलचस्प भी बनाये हुए है ।

Saturday, November 22, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी के वरिष्ठ सदस्य विनय भाटिया की तैयारी ने अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी सुगबुगाहट को शुरू कर दिया है

नई दिल्ली । सुधीर मंगला के गवर्नर-काल की होने जा रही पेम वन के आयोजन की जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ फरीदाबाद के क्लब्स ने जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी के वरिष्ठ सदस्य विनय भाटिया की मुट्ठियाँ बँधवा/तनवा दी हैं, उससे फरीदाबाद के सक्रिय और प्रभावी रोटेरियंस के मैच्योर होने का संकेत मिला है । उल्लेखनीय है कि पेम वन से अगले रोटरी वर्ष के कार्यकलापों का एक आभासी परिचय मिलना शुरू हो जाता है । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का कार्यभार सँभालने वाले - अगले रोटरी वर्ष में क्लब अध्यक्ष पद का कार्यभार सँभालने वाले लोगों से पेम वन में जब एक साथ मिलते हैं, तो अगले रोटरी वर्ष में होने वाले आयोजनों का एक खाका-सा तैयार होने लगता है । इस मौके का फायदा अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की इच्छा रखने वाले रोटेरियंस भी उठाते हैं और वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों को अपनी संभावित प्रस्तावित उम्मीदवारी से परिचित तो कराते ही हैं, साथ ही लोगों पर यह छाप भी छोड़ते हैं कि वह अपने काम, अपनी आकांक्षाओं और अपने सपनों के प्रति वास्तव में कितने गंभीर हैं । 
अगले रोटरी वर्ष में विनय भाटिया की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने की दबी-छुपी सी चर्चा यूूँ तो पहले से थी, लेकिन विनय भाटिया या उनके क्लब या फरीदाबाद के रोटेरियंस की तरफ से कोई साफ संकेत नहीं मिल रहे थे । इस कारण विनय भाटिया की उम्मीदवारी को लेकर संशय भी बना हुआ था । इस संशय को फरीदाबाद के रोटेरियंस के बीच चलती रहने वाली उठापटक की खबरों से भी हवा मिल रही थी । प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 के कुछेक लोग अपने अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते और कुछेक लोग अपने अपने स्वभावों से 'मजबूर' होने के कारण इस संशय को हवा दे भी रहे थे । हालाँकि यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं थी कि दूसरे लोग क्या कर रहे हैं, या क्या नहीं कर रहे हैं; महत्वपूर्ण बात यह थी कि खुद विनय भाटिया क्या कर रहे हैं ? प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 की पेम वन की घोषणा होते ही लेकिन जिस तरह विनय भाटिया की संभावित उम्मीदवारी की तैयारी की बात सामने आई है, उससे एक बात तो साबित हुई ही है कि विनय भाटिया और उनके समर्थक व शुभचिंतक उनकी उम्मीदवारी को लेकर सचमुच में गंभीर हैं और टाइमिंग का पूरा-पूरा ध्यान रखे हुए हैं ।
पेम वन से पहले, अपनी उम्मीदवारी को लेकर विनय भाटिया ने न सिर्फ अपनी पक्की राय बना ली; बल्कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर फरीदाबाद में भी सभी लोगों से हरी झंडी प्राप्त कर ली । फरीदाबाद में चूँकि कुछेक और रोटेरियंस को संभावित उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जाता है, इसलिए विनय भाटिया ने यह स्पष्टता कर लेना जरूरी समझा कि अगले रोटरी वर्ष में फरीदाबाद से कोई और तो उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के बारे में नहीं सोच रहा है । विनय भाटिया का कहना था कि फरीदाबाद से एक ही उम्मीदवार आना चाहिए जिससे कि फरीदाबाद के रोटेरियंस बँटे हुए न दिखाई दें । विनय भाटिया ने इस सच्चाई को भी अच्छे से समझ लिया कि उन्हें सिर्फ फरीदाबाद के लोगों का या सिर्फ उनके ही भरोसे गवर्नर नहीं बनना है, बल्कि दिल्ली और गुड़गाँव क्षेत्र के लोगों का भी सहयोग और समर्थन चाहिए होगा - लिहाजा उन्होंने दिल्ली और गुड़गाँव क्षेत्र के प्रमुख लोगों से भी सहयोग और समर्थन का आश्वासन ले लिया । विनय भाटिया की पिछले चार-पाँच वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह की सक्रियता रही है उसके चलते डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी अच्छी पहचान और साख बनी ही है और इसका फायदा उन्हें अपनी उम्मीदवारी के लिए सहयोग व समर्थन का आश्वासन लेने में मिला भी । 
रोटरी फाउंडेशन के लिए पिछले दिनों फरीदाबाद में उम्मीद और लक्ष्य से ज्यादा रकम इकठ्ठा करवाने में विनय भाटिया की जिस तरह की संलग्नता रही, पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता उससे परिचित थे ही - इसलिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी की बात ने उन्हें उत्साहित ही किया । पिछले रोटरी वर्ष में हुए सीओएल के चुनाव में विनय भाटिया ने जिस तरह से आशीष घोष की उम्मीदवारी के लिए फील्डिंग की, उससे उन्हें आशीष घोष वाले खेमे में स्वीकार्यता मिली है । अमित जैन ने तो उन्हें अपना असिस्टेंट गवर्नर ही बनाया था । विनय भाटिया की विनोद बंसल के साथ जैसी जो कैमिस्ट्री रही है, उसके कारण तो उन्हें विनोद बंसल के 'ब्ल्यू आईड बॉय' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । विनोद बंसल ने तो विनय भाटिया की उम्मीदवारी का झंडा बाकायदा उठा लिया है । लोगों को कहते हुए सुना भी गया है कि विनय भाटिया की उम्मीदवारी को लेकर विनय भाटिया से ज्यादा उत्साहित और सक्रिय तो विनोद बंसल हैं । पेम वन के आयोजन तक, अगले रोटरी वर्ष में प्रस्तुत होने वाली उम्मीदवारी को लेकर विनय भाटिया ने इस तरह जैसी जो तैयारी की है उससे वह अपने आप को एक गंभीर उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करने में कामयाब रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों का लेकिन मानना और कहना है कि यह तो अभी तैयार होने भर का मामला है - असली खेल तो अभी शुरू होना है । असली खेल तब शुरू होगा, जब दूसरे उम्मीदवार सामने आयेंगे । अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वर्ष होने वाले दो चुनावों में जो दो लोग सफल नहीं हो पायेंगे, उनसे विनय भाटिया का मुकाबला हो सकता है । रोटरी क्लब दिल्ली मेगापोलिस के रवि दयाल का नाम भी अगले रोटरी वर्ष के संभावित उम्मीदवार के रूप में सुना जाता है । हालाँकि उनके नाम को लेकर लोगों के बीच कोई विश्वसनीयता नहीं बन पा रही है - क्योंकि पिछले वर्षों में उनका नाम तो कई बार आया, लेकिन उनकी उम्मीदवारी नहीं आई । रवि दयाल से परिचित लोगों का मानना और कहना है कि रवि दयाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए पूरी तरह परफेक्ट हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद तक पहुँचने के लिए पहले उम्मीदवार बनना पड़ेगा - जो 'बनने' की वह हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं । रवि दयाल के कुछेक नजदीकियों का हालाँकि दावा है कि अब की बार वह अवश्य ही उम्मीदवार बनने की हिम्मत करेंगे । रवि दयाल के अन्य कुछेक नजदीकियों तथा समर्थकों/शुभचिंतकों का लेकिन मानना और कहना है कि रवि दयाल के लिए उम्मीदवार हो सकना बड़ा मुश्किल है । सचमुच क्या होगा, यह जल्दी ही पता लग जायेगा । किंतु इतना पक्का हो गया है कि अगले रोटरी वर्ष में रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी के वरिष्ठ सदस्य विनय भाटिया अवश्य ही उम्मीदवार होंगे । विनय भाटिया की तैयारी ने डिस्ट्रिक्ट 3011 में अगले रोटरी वर्ष की चुनावी सुगबुगाहट को शुरू कर दिया है ।

Friday, November 21, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर तथा भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के द्धारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी को लिखे धमकी भरे पत्र से दीपक बाबू एंड कंपनी को कॉलिज ऑफ गवर्नर्स को 'ब्लैकमेल' करने का मौका मिला

मेरठ । मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर तथा भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने डिस्ट्रिक्ट 3100 के हालात पर जो संज्ञान लिया है और जिस कठोरता के साथ डिस्ट्रिक्ट लीडर्स पर समस्या( ओं ) को हल करने के लिए दबाव डाला है, उसमें दीपक बाबू एंड कंपनी को डिस्ट्रिक्ट के लीडर्स को 'ब्लैकमेल' करने का मौका मिल गया है । दीपक बाबू एंड कंपनी ने डिस्ट्रिक्ट लीडर्स को इस तरह के फिलर्स भेजे हैं कि डिस्ट्रिक्ट को यदि बचाना है तो दीपक बाबू को वर्ष 2016-17 का गवर्नर बनाओ । दीपक बाबू एंड कंपनी की यह माँग थोड़ी न्यायपूर्ण भी लगे तथा इसे दूसरे लोगों का भी समर्थन मिल सके, इसके लिए उन्होंने फार्मूला दिया है कि उनके बाद, यानि वर्ष 2017-18 में दिवाकर अग्रवाल को गवर्नर बनवा दो । वर्ष 2017-18 के लिए जिन चार लोगों की उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई है, उनके लिए दीपक बाबू एंड कंपनी का सुझाव है कि उन्हें समझा-बुझा कर उनकी उम्मीदवारी को वापस करवा दिया जाये । दीपक बाबू एंड कंपनी का यह फार्मूला ऊपर-ऊपर से देखें तो बड़ा अच्छा लगता है और ऐसा लगता है कि इसे मान लेने के बाद डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द की और भाईचारे की हवा बहने लगेगी - लेकिन इस फार्मूले को अपनाने में एक बड़ी समस्या यह है कि इससे रोटरी इंटरनेशनल के फैसले का अपमान होता है । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल ने हाल में लिए अपने एक फैसले में माना है कि वर्ष 2016-17 के लिए पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव में दीपक बाबू ने वोटों की खरीद-फ़रोख्त करके जीत प्राप्त की थी और इस बिना पर उस चुनाव को अमान्य घोषित करने के साथ ही यह फैसला भी दिया कि वर्ष 2016-17 के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में दीपक बाबू उम्मीदवार नहीं होंगे । रोटरी इंटरनेशनल के इस फैसले के आलोक में वर्ष 2016-17 में दीपक बाबू गवर्नर हो ही नहीं सकते हैं ।
रोटरी के आदर्शों, रोटरी के नियम-कानूनों, रोटरी भावना को उम्मीदवार के रूप में लगातार ठेंगा दिखाते रहे दीपक बाबू रोटरी इंटरनेशनल के इस फैसले को भी ठेंगा दिखाने के तेवर दिखा रहे हैं । उनके द्धारा प्रस्तुत फार्मूले में उन्हें एक संशोधन सुझाया गया कि वर्ष 2016-17 में दिवाकर अग्रवाल को और उसके अगले वर्ष में उन्हें, यानि दीपक बाबू को गवर्नर बना लिया जाये - जिससे कि रोटरी इंटरनेशनल का मान भी रह जायेगा । दीपक बाबू एंड कंपनी ने लेकिन इस सुझाव को सिरे से नकार दिया है । दीपक बाबू एंड कंपनी ने साफ कर दिया है कि वर्ष 2016-17 के लिए दीपक बाबू को यदि गवर्नर नहीं 'चुना' गया तो वह डिस्ट्रिक्ट को ही बंद करवा देंगे । डिस्ट्रिक्ट को बंद करवा देने का हौंसला उन्हें मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर तथा भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई द्धारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी को लिखे धमकी भरे उस पत्र से मिला है, जिसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी को साफ साफ बता दिया गया है कि अब यदि उनके डिस्ट्रिक्ट से रोटरी इंटरनेशनल को चुनाव संबंधी कोई शिकायत मिली तो डिस्ट्रिक्ट के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी - जिसमें डिस्ट्रिक्ट को बंद कर देना भी हो सकता है । दीपक बाबू एंड कंपनी का कहना है कि यदि दीपक बाबू को वर्ष 2016-17 के लिए डिस्ट्रक्ट गवर्नर मंजूर नहीं किया गया तो वह वर्ष 2016-17 के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को रोकने के लिए रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करेंगे, जिसके बाद डिस्ट्रिक्ट बंद होता हो तो उनकी बला से बंद हो जाये ।
दीपक बाबू एंड कंपनी को शिकायत करने से रोकने के लिए कुछेक लोगों की तरफ से यह सुझाव भी आया कि वर्ष 2016-17 के लिए दीपक बाबू की उम्मीदवारी पर तो रोटरी इंटरनेशनल ने प्रतिबन्ध लगा दिया है; ऐसे में यदि दोबारा होने वाले चुनाव में दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को भी प्रस्तुत न होने दिया जाये या उसे न मंजूर किया जाये तो हो सकता है कि दीपक बाबू के कलेजे को ठंडक मिले और उनकी तरफ से शिकायत दर्ज न हो । दीपक बाबू एंड कंपनी को यह सुझाव भी मंजूर नहीं है - उनका कहना है कि दोबारा होने वाले चुनाव में दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को रोकने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पास चूँकि कोई वैधानिक अधिकार नहीं है इसलिए इस सुझाव का अमल में आ पाना ही संभव नहीं है; और यह सुझाव सिर्फ उन्हें झाँसा देने के लिए ही दिया जा रहा है । दीपक बाबू को यह डर भी है कि दिवाकर अग्रवाल यदि अभी गवर्नर नहीं बने तो आगे उनके साथ उन्हें चुनाव में फिर जूझना पड़ सकता है; दिवाकर अग्रवाल  के साथ वह दोबारा चुनाव के पचड़े में पड़ना नहीं चाहते हैं । लगता ऐसा है कि दिवाकर अग्रवाल भी दोबारा से उनके साथ चुनाव से बचना चाहते हैं - इसीलिए उनकी तरफ से दीपक बाबू एंड कंपनी द्धारा प्रस्तुत किए जा रहे फार्मूले को स्वीकार करने के संकेत दिए जा रहे हैं । इससे दीपक बाबू एंड कंपनी के हौंसले और बुलंद हुए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी लेकिन ऐसे किसी फार्मूले को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं, जो रोटरी इंटरनेशनल के फैसले की अवमानना करता दिख रहा हो । कुछेक लोगों को लगता है कि संजीव रस्तोगी कोई ऐसा फैसला होने ही नहीं देना चाहते हैं जिससे कि चुनाव की संभावना ख़त्म होती हो; वह चुनाव होते हुए देखना चाहते हैं ताकि उनकी कॉन्फ्रेंस अच्छे से हो सके । लेकिन बात सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी की ही नहीं है, डिस्ट्रिक्ट का कोई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर भी ऐसे किसी फार्मूले को समर्थन देता हुआ नहीं नजर आ रहा है जो रोटरी इंटरनेशनल के फैसले के खिलाफ जाता दिखता हो । मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर तथा भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुलाने का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी को जो निर्देश दिया है, उस पर अमल करते हुए संजीव रस्तोगी ने 23 नवंबर को मेरठ में कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुला ली है तथा यह संकेत दे दिया है कि डिस्ट्रिक्ट के हालात को लेकर कॉलिज ऑफ गवर्नर्स जो तय करेंगे, उस पर रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों की सलाहानुसार वह कार्रवाई करेंगे । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों - यानि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से अभी जो कुछ सुनने को मिल रहा है, उससे तो लग रहा है कि सारे मामले को लेकर वह खुद असमंजस में हैं । उन्हें असमंजस में पा/देख कर ही दीपक बाबू एंड कंपनी ने अपने तेवर और कड़े कर लिए हैं तथा यह दबाव बनाने में जुट गए हैं कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स उनके द्धारा बताये जा रहे फार्मूले को स्वीकार करे और रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों को इस बात के लिए राजी करे कि डिस्ट्रिक्ट को बचाये रखने के लिए यही एक फार्मूला है । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स दीपक बाबू एंड कंपनी की इस 'ब्लैकमेलिंग' के आगे झुकेंगे या नहीं और डिस्ट्रिक्ट को बचाने के लिए क्या फैसला करेंगे - यह 23 नवंबर की शाम तक पता चलेगा ।

Wednesday, November 19, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने जा रहे जेके गौड़ के पूरी तरह समर्पण कर देने से मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के लिए शरत जैन की उम्मीदवारी को सफल बनाने वास्ते डिस्ट्रिक्ट टीम के पदों की सौदेबाजी करना आसान हुआ

गाजियाबाद । शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद का चुनाव जितवाने के लिए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल जैसे उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने जो व्यूह रचना की है, उसमें गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस को उपेक्षित और अपमानित होने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है । अगले रोटरी वर्ष की जेके गौड़ की गवर्नर-काल की टीम के जिन थोड़े से सदस्यों के नाम घोषित किए गए हैं, उनमें तो गाजियाबाद तथा उत्तर प्रदेश के लोगों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं ही मिला है; टीम के कुछेक और नाम घोषित करके बाकी महत्वपूर्ण लोगों को भी सम्मान देने का काम नहीं किया गया । आरोप है कि ऐसा इसलिए नहीं किया गया ताकि टीम के उन पदों के जरिये शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु सौदेबाजी की जा सके ।
इस उपेक्षापूर्ण और अपमानजनक रवैये के लिए गाजियाबाद तथा उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस के बीच जेके गौड़ के प्रति खासतौर से रोष व नाराजगी है । यहाँ के रोटेरियंस याद करते हुए कहते/बताते हैं कि जेके गौड़ जब उम्मीदवार बने थे तब यहाँ के लोगों के बीच वायदा और दावा किया करते थे कि उनके गवर्नर-काल में गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस को खास तवज्जो मिलेगी और तमाम फैसले उनसे सलाह करके ही होंगे । लेकिन अब जब अपने वायदों और दावों पर सचमुच में अमल करने का मौका आया है तो जेके गौड़ का रवैया पूरी तरह से बदला हुआ है । जेके गौड़ के गवर्नर-काल में खास तवज्जो मिलने का इंतजार कर रहे गाजियाबाद के प्रमुख लोगों की ड्यूटी अपने पहले आयोजन - पेम वन में जेके गौड़ ने खाने का इंतजाम करने/देखने में लगाई हुई थी ।
जेके गौड़ के इस व्यवहार को देख कर एक नए डिस्ट्रिक्ट के रूप में रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के बनने और इसके पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ के कार्यभार सँभालने से गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस के बीच जो भारी उत्साह था, वह हवा हो गया है । जेके गौड़ ने जिस तरह से मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के आगे समर्पण कर दिया है, उसे देखकर गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस को तगड़ा झटका लगा है । पेम वन में जिस तरह से जेके गौड़ तो कम बोले, रमेश अग्रवाल ही लोगों को यह बताने में लगे रहे कि 'यह करेंगे', 'वह करेंगे' - उससे ऐसा लगा जैसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ नहीं, बल्कि रमेश अग्रवाल हैं । गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस ने यह मान लिया है कि नए डिस्ट्रिक्ट में उनकी हिस्सेदारी का अनुपात बढ़ने के बावजूद उनकी हैसियत दोयम दर्जे की ही रहेगी और उन्हें मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल जैसे लोगों की कृपा पर ही रहना पड़ेगा । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल आज जेके गौड़ के जरिये जिस तरह डिस्ट्रिक्ट पर 'राज' कर रहे हैं, उस 'राज' को बनाये रखने के लिए उन्हें शरत जैन को जितवाना जरूरी लग रहा है - ताकि कल वह शरत जैन के जरिये डिस्ट्रिक्ट पर अपना कब्ज़ा बनाये रख सकें ।
जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों पर नियुक्तियों को दरअसल इसीलिए टाला हुआ है, जिससे कि शरत जैन की जीत को सुनिश्चित किया जा सके । उनके अपने लोगों के अनुसार, इसके लिए दोतरफा रणनीति बनाई गई है । नोमीनेटिंग कमेटी में यदि शरत जैन का नाम अधिकृत उम्मीदवार के रूप में नहीं चुना गया तो चेलैंज करने के लिए कॉन्करेंस जुटाने और फिर वोट जुटाने के लिए उन पदों की सौदेबाजी की जायेगी; विपरीत स्थिति में, यानि नोमीनेटिंग कमेटी में शरत जैन के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने की स्थिति में प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार दीपक गुप्ता को कॉन्करेंस न मिल सकें उसके लिए उन पदों का सौदा किया जायेगा । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल का कहना है कि वह गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस को खूब जानते/समझते हैं; उन्हें अच्छे से पता है कि गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस के साथ चाहें जैसा व्यवहार कर लो, उन्हें चाहें कितना ही अपमानित कर लो - लेकिन फिर उन्हें कुछ दे दो, वह ठीक हो जाते हैं । इसी फार्मूले से वह अभी तक भी इस्तेमाल होते रहे हैं, और आगे भी होते रहेंगे । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने अपने अपने गवर्नर-काल में - तथा उसके बाद में भी जिन-जिन क्लब्स को और रोटेरियंस को परेशान किया और अपमानित किया, उन सभी को पदों का लॉलीपॉप दिखा कर पटा लेने का उन्हें पूरा-पूरा भरोसा है । जेके गौड़ को भी उन्होंने यही समझाया है कि गाजियाबाद में और या उत्तर प्रदेश में कोई यदि नाराज होता दिखता है तो परेशान मत होना, उसे कैसे पटाना है यह हमें पता है । जेके गौड़ को भी इस बात का पता है और इसीलिए अपनी पेम वन में उन्होंने गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस को उपेक्षित तथा अपमानित करने वाली स्थितियों को बनाने/रचने से जरा भी परहेज नहीं किया ।
मजे की बात यह है कि यह जो कुछ भी हो रहा है उसमें फजीहत कुल मिलाकर जेके गौड़ की ही हो रही है - उन्होंने जिस तरह से मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के सामने समर्पण किया हुआ है उसके चलते लोगों को यह कहने का मौका मिला है कि जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लायक दरअसल हैं नहीं; और इसलिए ही मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल उन्हें 'दबोच' लेने में कामयाब हुए हैं । जेके गौड़ से हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि जेके गौड़ के सामने हालाँकि सुनहरा मौका था कि वह अपनी टीम बनाते और खुद से फैसले लेते हुए 'दिखते' - ऐसा वह कर सकते थे; लेकिन पता नहीं वह क्यों इतना मजबूर हैं कि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के सामने समर्पण ही कर बैठे हैं । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने जेके गौड़ के गवर्नर-काल को शरत जैन की उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, जिससे जेके गौड़ के गवर्नर-काल का कबाड़ा होना तथा जेके गौड़ की फजीहत होना निश्चित ही माना जा रहा है । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के सामने समस्या यह है कि शरत जैन की उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों की सौदेबाजी का ही सहारा उनके पास बचा रह गया है ।

Saturday, November 15, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में रोटरी इंटरनेशनल से हरी झंडी मिलने के फलस्वरूप डिस्ट्रिक्ट गवर्नर द्धारा स्वीकार किए जाने के बाद भी दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी जिस तरह से निरस्त हुई है, उससे योगेश मोहन गुप्ता द्धारा समर्थित राजीव सिंघल की उम्मीदवारी आशंका में घिर गई है

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रोटरी क्लब मेरठ साकेत के राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को लेकर उठे विवाद ने डिस्ट्रिक्ट को एक बार फिर पिछले रोटरी वर्ष जैसी स्थितियों में पहुँचा दिया है । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि पायलट प्रोजेक्ट के नियम का उल्लंघन करते हुए वह गवर्नर टीम का हिस्सा बने और उनका नाम-पता-फोटो डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में छपा । ठीक इसी तर्क से, इस वर्ष राजीव सिंघल की उम्मीदवारी सवालों के घेरे में है । पिछले वर्ष डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में दिवाकर अग्रवाल का नाम-पता-फोटो तो एक जगह ही छपा था; इस वर्ष की डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में राजीव सिंघल का नाम-पता-फोटो तो दो जगह छपा है । राजीव सिंघल का कहना है कि उनका मामला दिवाकर अग्रवाल के मामले से बिलकुल अलग है; और दूसरी बात यह कि उनकी उम्मीदवारी को रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने स्वीकार्यता दे दी है तथा उस स्वीकार्यता के बाद ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने उनकी उम्मीदवारी को मंजूर कर लिया है ।
चूँकि हर मामला अपने आप में अलग ही होता है, इसलिए दिवाकर अग्रवाल और राजीव सिंघल के मामले में भी बहुत कुछ अलग अलग होगा ही - किंतु दोनों मामलों में एक बात समान है और वह यह कि पिछले रोटरी वर्ष में भी दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने से पहले तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से सलाह माँगी थी और वहाँ से हरी झंडी मिलने के बाद ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने उनकी उम्मीदवारी को स्वीकार किया था । इस बार भी ऐसा ही हुआ है । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से हरी झंडी मिलने के बाद स्वीकार होने के बावजूद दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी जिस तरह सवालों के घेरे में बनी रही थी, उसी तरह राजीव सिंघल की उम्मीदवारी भी सवालों के घेरे में हैं । दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी रोटरी इंटरनेशनल से हरी झंडी मिलने - और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर द्धारा स्वीकार किए जाने के बाद भी फजीहत में फँसी रही और फिर रोटरी इंटरनेशनल द्धारा ही जिस तरह से निरस्त हुई - उससे राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को लेकर आशंका बनी हुई है ।
यह आशंका इसलिए और बलवती है क्योंकि देखा/माना यह जा रहा है कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को रोटरी इंटरनेशनल ने दूसरी बार के अपने फैसले में तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए नहीं, बल्कि 'न्याय' में बैलेंस बनाने/दिखाने के लिए निरस्त किया । सीओएल के चुनाव वाले मामले में ललित मोहन गुप्ता के साथ भी इसी तरह का बैलेंस बनाने/दिखाने के चक्कर में नाइंसाफी हुई है । इसलिए ही रोटरी इंटरनेशनल से फ़िलहाल हरी झंडी मिलने के बाद भी राजीव सिंघल की उम्मीदवारी पर तलवार को लटकी हुई ही देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसा इसलिए भी है क्योंकि राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के पीछे योगेश मोहन गुप्ता को देखा/पहचाना जा रहा है - रोटरी इंटरनेशनल के बड़े नेताओं बीच जिनकी बड़ी बदनामी है । इसीलिए राजीव सिंघल से हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में नाम-पता-फोटो प्रकाशित होने का जो झमेला है, उसके चलते राजीव सिंघल को इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी को छोड़ ही देना चाहिए - अन्यथा हो सकता है कि पाते पाते भी उन्हें कुछ न मिले ।
राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को पचड़े में फँसा पाकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के बाकी उम्मीदवार अपनी अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिशों में जुट गए हैं - हालाँकि उनके सामने भी समस्याएँ और मुसीबतें कम नहीं हैं । रोटरी क्लब मुरादाबाद मिडटाउन के मनोज कुमार को मुरादाबाद से अकेले उम्मीदवार होने का फायदा मिल सकता था, लेकिन उन्हें चूँकि दीपक बाबू के कैम्प का आदमी माना जाता है और दीपक बाबू के कैम्प की हालत इन दिनों चूँकि खासी पतली है इसलिए मनोज कुमार के लिए ज्यादा मौका दिख नहीं रहा है । रोटरी क्लब मेरठ कॉसमॉस के संजय अग्रवाल की बदकिस्मती यह है कि उन्हें 'अपनों' का ही साथ/समर्थन मिलता हुआ नहीं दिख रहा है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एमएस जैन हालाँकि उन्हीं के क्लब के हैं, लेकिन उन्हें संजय अग्रवाल की बजाये रोटरी क्लब सिकंदराबाद के दिनेश शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थन में देखा/पहचाना जा रहा है । संजय अग्रवाल को इससे भी तगड़ा झटका मिला है डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुनील गुप्ता से । सुनील गुप्ता के चुनाव में संजय अग्रवाल ने काफी काम किया था, जिस नाते संजय अग्रवाल को उम्मीद थी कि उनकी उम्मीदवारी को सुनील गुप्ता का सहयोग/समर्थन मिलेगा - लेकिन सुनील गुप्ता उनकी उम्मीदवारी की किसी भी तरह से मदद करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । सुनील गुप्ता ने यह कहते हुए उनकी उम्मीदवारी से अपने आप को दूर कर लिया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद पर होने के कारण उनके लिए किसी उम्मीदवार का सहयोग/समर्थन करना उचित नहीं होगा । दिनेश शर्मा को अभी तक किसी भी तरह के विवादों से दूर होने के कारण बेहतर स्थिति में माना/समझा जा रहा था; लेकिन अभी हाल ही में उन्हें निशाने पर लेते हुए जो पर्चेबाजी शुरू हुई है उससे लोगों को यह आभास तो हो ही गया है कि कुछेक लोग उनके पीछे लग गए हैं । इन सब स्थितियों में वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले चुनाव का परिदृश्य दिलचस्प तो हो ही उठा है ।

Friday, November 14, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के दिसंबर 2015 में होने वाले चुनाव के लिए वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के लिए महेश मडखोलकर द्धारा उम्मीदवारी प्रस्तुत किए जाने की घोषणा ने मंगेश किनरे की उम्मीदवारी के लिए समस्या पैदा कर दी है

मुंबई । महेश मडखोलकर ने दिसंबर 2015 में होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के लिए अचानक से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करके मंगेश किनरे के समर्थकों व शुभचिंतकों को चिंता में डाल दिया है । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पिछले वर्ष चेयरमैन रहे मंगेश किनरे भी उक्त चुनाव में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी में हैं । मंगेश किनरे के समर्थकों व शुभचिंतकों की चिंता यह है कि महेश मडखोलकर की उम्मीदवारी मंगेश किनरे की उम्मीदवारी की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर डालेगी और मंगेश किनरे की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम करेगी । दरअसल इन दोनों का समर्थन-आधार क्षेत्र एक ही है - दोनों ही ठाणे क्षेत्र में पहचान-परिचय रखते हैं, दोनों ही महाराष्ट्रियन हैं और दोनों ही दक्षिणपंथी राजनीति में सक्रिय हैं । दक्षिणपंथी राजनीति में दोनों की सक्रियता का यह अंतर जरूर है कि महेश मडखोलकर शिव सेना के नजदीक हैं, तो मंगेश किनरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में पैठ रखते हैं । एक सा समर्थन-आधार रखने के कारण - दोनों के उम्मीदवार होने की स्थिति में दोनों के एक-दूसरे की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का डर स्वाभाविक ही है ।
मंगेश किनरे के नजदीकी चूँकि महेश मडखोलकर की तुलना में मंगेश किनरे की स्थिति मजबूत मानते हैं, इसलिए उन्हें लगता है कि महेश मडखोलकर को अभी रीजनल काउंसिल में ही काम करना चाहिए तथा अपने समर्थन-आधार को और फैलाना चाहिए तथा फिर उसके बाद सेंट्रल काउंसिल के लिए आना चाहिए । महेश किनरे के नजदीकियों की इस बात में दम भी है । पिछली बार, वर्ष 2012 में हुए रीजनल काउंसिल के चुनाव में मंगेश किनरे को महेश मडखोलकर की तुलना में अच्छा समर्थन मिला था । उस चुनाव में मंगेश किनरे को फर्स्ट प्रिफरेंस में 1290 वोट मिले थे, जो फाइनल में 1397 तक पहुँच गए थे और मंगेश किनरे चौथे नंबर पर रहे थे । उनके मुकाबले, महेश मडखोलकर का प्रदर्शन काफी पिछड़ा हुआ था । महेश मडखोलकर को उस चुनाव में फर्स्ट प्रिफरेंस में कुल 682 वोट मिले थे, जो फाइनल तक पहुँचते हुए 1063 हो गए थे; और महेश मडखोलकर 22वें - यानि अंतिम नंबर पर रहे थे । उससे पिछले चुनाव में, यानि वर्ष 2009 में महेश मडखोलकर ने सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा था और उसमें उन्हें इतना कम समर्थन मिला था कि अगली बार उन्होंने सेंट्रल काउंसिल का चुनाव न लड़ने में ही अपनी भलाई देखी । इसी ट्रेक रिकॉर्ड को देखते हुए महेश मडखोलकर के कुछेक नजदीकियों ने भी उन्हें सलाह दी है कि उन्हें अभी रीजनल काउंसिल में ही सक्रिय रहना चाहिए तथा यहाँ सक्रिय रहते हुए अपने प्रभाव क्षेत्र का दायरा बढ़ाना चाहिए ।
महेश मडखोलकर लेकिन किसी की नहीं सुन/मान रहे हैं और अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए ही उम्मीदवारी प्रस्तुत करने पर जोर दे रहे हैं । दरअसल उन्होंने पाया है कि रीजनल काउंसिल में करने के लिए कुछ खास है ही नहीं और रीजनल काउंसिल में रहना समय बर्बाद करना है । उनके समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि पिछले चुनावों में उनकी उम्मीदवारी का प्रदर्शन भले ही कमजोर रहा हो, लेकिन उन्होंने अपनी स्थिति को और मजबूत किया है तथा अपने समर्थन-आधार को और फैलाया है । उनका दावा है कि महेश मडखोलकर ने मारवाड़ी व गुजराती चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच अच्छी पैठ बनाई है और महाराष्ट्र व गुजरात की ब्रांचेज में अपने लिए समर्थन बनाया है - जिसका फायदा उन्हें आगामी चुनाव में निश्चित ही मिलेगा । महेश मडखोलकर के कुछेक समर्थकों को यह भी लगता है और वह कहते भी हैं कि वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में मंगेश किनरे ने अपने वोटरों को बुरी तरह से निराश किया है, जिस कारण उनके समर्थन-आधार में कमी आई है; और इसलिए महेश मडखोलकर के लिए अच्छा मौका बना है ।
मंगेश किनरे और महेश मडखोलकर के समर्थकों व शुभचिंतकों के दावे-प्रतिदावे चाहें जो हों - सेंट्रल काउंसिल में वर्षों बाद दो महाराष्ट्रियन सदस्य देखने के इच्छुक लोगों को मंगेश किनरे तथा महेश मडखोलकर की एकसाथ प्रस्तुत होने वाली उम्मीदवारी से झटका लगा है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के अभी तक के इतिहास में सिर्फ 12 वर्ष ऐसे रहे हैं, जबकि मुकुंद चितले तथा वाईएम काले के रूप में दो महाराष्ट्रियन सेंट्रल काउंसिल में एक साथ रहे हैं । महाराष्ट्रियन लॉबी के प्रतिनिधि के रूप में अभी श्रीनिवास जोशी को देखा जाता है । अगले चुनाव में भी उनकी उम्मीदवारी और जीत को पक्का ही माना जा रहा है । महाराष्ट्रियन लॉबी के लोगों को लगता है कि मंगेश किनरे और महेश मडखोलकर में से यदि कोई एक उम्मीदवार होता है तो इंस्टीट्यूट की तेईसवीं काउंसिल में दो महाराष्ट्रियन हो सकते हैं, अन्यथा मुकुंद चितले और वाईएम काले का रिकॉर्ड अभी बना रह सकता है ।