नई दिल्ली । राजिंदर नारंग ने
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत
करके दीपक गर्ग के चेयरमैन बनने की तैयारी को तगड़ा झटका दिया है । दीपक
गर्ग के लिए यह झटका इसलिए तगड़ा रहा क्योंकि उन्होंने राजिंदर नारंग को तो
किसी गिनती में रखा ही नहीं था; और राजिंदर नारंग को खेल से बाहर रख कर ही
अपनी चेयरमैनी के लिए फील्डिंग सजाई थी । दीपक गर्ग की इसमें कोई गलती
भी नहीं थी । राजिंदर नारंग ने खुद ही ऐलान किया हुआ था कि चेयरमैनी में
अभी उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है । लेकिन यह कई दिन पहले की बात है । दीपक
गर्ग ने गलती किंतु यह की कि राजिंदर नारंग ने चेयरमैनी की दौड़ से बाहर
रहने का जो ऐलान किया था, दीपक गर्ग ने उसे काउंसिल की चुनावी राजनीति के
पूरे खेल से बाहर होने का ऐलान मान लिया । दीपक गर्ग यह समझने में चूक
गए कि राजिंदर नारंग काउंसिल में हैं, तो काउंसिल की चुनावी राजनीति से
बाहर कैसे रह सकते हैं ? यही चूक दीपक गर्ग को फिलहाल भारी पड़ी है ।
दीपक
गर्ग ने अचानक से प्रस्तुत हुई राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी के पीछे
इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के दो सदस्यों - अतुल गुप्ता और संजय
अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराया है । मजे की बात यह है कि रीजनल काउंसिल के
चेयरमैन पद के लिए प्रस्तुत खुद दीपक गर्ग की उम्मीदवारी के पीछे सेंट्रल
काउंसिल के एक अन्य सदस्य विजय गुप्ता को देखा/पहचाना जा रहा है ।
इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दीपक गर्ग को विजय गुप्ता के आदमी के
रूप में पहचाना जाता है । माना/समझा जा रहा है कि विजय गुप्ता इंस्टीट्यूट के चुनावी वर्ष में रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद पर अपने आदमी के रूप में दीपक गर्ग को इसलिए बैठाना चाहते हैं, ताकि उनके मार्फत वह अपने चुनाव अभियान में फायदा उठा सकें । इस
मानने/समझने पर दीपक गर्ग ने चेयरमैनी पद के अपने रास्ते में अचानक से
पैदा हुई समस्या के लिए अतुल गुप्ता और संजय अग्रवाल को जिम्मेदार ठहरा कर
एक तरह से मुहर लगाने का ही काम किया है; और यही साबित किया है कि रीजनल
काउंसिल के चेयरमैन पद का चुनाव सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों के बीच की
स्पर्द्धा में फँस गया है ।
राजिंदर नारंग ने जब तक
चेयरमैन पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात नहीं कही थी, तब तक काउंसिल के
लोगों के बीच की चर्चा के अनुसार दीपक गर्ग ने विशाल गर्ग और स्वदेश गुप्ता
के पक्के समर्थन का दावा करते हुए हंसराज चुघ और मनोज बंसल के साथ दोहरा फ्रंट अलग-अलग खोला हुआ था और छह छह महीने की चेयरमैनी के लिए बात चलाई हुई थी ।
हंसराज चुघ ने चूँकि सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात चलाई
हुई है, इसलिए उन्हें पता है कि सेंट्रल काउंसिल के दूसरे संभावित
उम्मीदवार उन्हें चेयरमैन नहीं बनने देंगे; मनोज बंसल विरोधी खेमे के होने
के कारण चेयरमैन होने/बनने की उम्मीद नहीं रखते हैं - उनकी उम्मीद बस यही
है कि सत्ता खेमे के लोगों के झगड़े-टंटे के चलते जैसे इस बार उन्हें वाइस
चेयरमैन का पद मिल गया, वैसे ही चेयरमैन का पद भी मिल जाए तो मिल जाए ।
इसलिए ही इन दोनों की तरफ से दीपक गर्ग को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली । प्रतिक्रिया
सकारात्मक तो थी, लेकिन वह आशंकाग्रस्त भी थी । दीपक गर्ग को 'कुछ ज्यादा
ही तिकड़मी' समझा/पहचाना जाता है, इसलिए हंसराज चुघ को भी और मनोज बंसल को
भी आशंका यह थी कि दीपक गर्ग उनके साथ पता नहीं क्या खेल खेल रहे हैं । इन दोनों ने अपनी अपनी
आशंका को दूर करने का अपने अपने स्तर पर जो प्रयास किया, उससे उनकी आशंकाएँ
दूर हुईं या नहीं - यह तो पता नहीं चला लेकिन उनके प्रयासों के चलते दीपक गर्ग के खेल की पोल जरूर खुल गई ।
दीपक गर्ग के खेल की पोल खुलने के बाद ही राजिंदर नारंग ने चेयरमैन पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत कर दी । पोल
खुलने से दीपक गर्ग के खेल को जो झटका लगा, राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी
प्रस्तुत होने से वह झटका और बड़ा हो गया । उल्लेखनीय है कि पिछली बार भी
दीपक गर्ग ने अपना जो खेल जमाने का प्रयास किया था, वह राजिंदर नारंग के
कारण ही असफल हुआ था । राजिंदर नारंग की सक्रियता के कारण ही राधे
श्याम बंसल को चेयरमैन का पद और विरोधी खेमे के होने के बावजूद मनोज बंसल
को वाइस चेयरमैन का पद मिल सका था । दीपक गर्ग के पल्ले कुछ नहीं पड़ा था ।
राजिंदर नारंग को भी हालाँकि कुछ नहीं मिला था - लेकिन उन्हें कुछ नहीं
मिलने की बात इसलिए कोई महत्व नहीं रखती क्योंकि वह तो कुछ पाने की दौड़ में
शामिल ही नहीं थे । पिछली बार भी दीपक गर्ग ने राजिंदर नारंग को इग्नोर
करने/धोखे में रखने का काम किया था - जिसके चलते हुई फजीहत के कारण फिर
दीपक गर्ग को उनसे दोस्ताना किस्म की माफी आदि माँगनी पड़ी थी । पिछली बार का यह सबक
था कि राजिंदर नारंग अपने लिए कुछ पाने की स्थिति में भले ही न हों, लेकिन
दूसरों का काम बनाने/बिगाड़ने की स्थिति में जरूर होते हैं । दीपक गर्ग ने इस सबक को याद नहीं रखा और नतीजा है कि उनका सारा गेमप्लान फिलहाल चौपट होता हुआ दिख रहा है ।
अपने खेल को बचाने के लिए दीपक गर्ग
ने राजिंदर नारंग पर हमला बोला है । वह समझ रहे हैं कि राजिंदर नारंग को
चूँकि सेंट्रल काउंसिल का चुनाव नहीं लड़ना है और चूँकि उनका नाम सेंट्रल
काउंसिल के किसी उम्मीदवार के साथ भी नहीं जुड़ा हुआ है तो इसलिए कहीं उनके
चेयरमैन बनने का मौका न बन जाये । इसी कारण से दीपक गर्ग ने राजिंदर
नारंग का नाम सेंट्रल काउंसिल के दो सदस्यों - अतुल गुप्ता और संजय अग्रवाल
के साथ जोड़ने का प्रयास किया है । दीपक गर्ग को लगता है कि इसी तरीके से
वह राजिंदर नारंग का रास्ता रोक सकते हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल
काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए लगाई जा रही दीपक गर्ग की तिकड़मों की पोल खुल
जाने तथा राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी के सामने आ जाने से चेयरमैन पद की
चुनावी लड़ाई खासी दिलचस्प हो गई है । इस लड़ाई में दिलचस्पी रखने वाले लोगों
का मानना और कहना है कि खेल तो अब शुरू हुआ है ।