Monday, June 27, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में राजीव सिंघल के कोऑर्डीनेटर बनने की 'खबर' से लोगों को लगा है कि मनोज देसाई ने दीपक बाबु और दिनेश शर्मा को इस्तेमाल करके 'पप्पू' बना दिया है

मेरठ । राजीव सिंघल ने खुद के कोऑर्डीनेटर बनने का दावा करके दीपक बाबु और दिनेश शर्मा को इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के हाथों ठगे जाने का अहसास कराया है । उल्लेखनीय है कि दीपक बाबु और दिनेश शर्मा पिछले कुछ समय से मनोज देसाई के निरंतर संपर्क में थे और मनोज देसाई की बातें सुनकर आश्वस्त थे कि रोटरी इंटरनेशनल उनके साथ अन्याय नहीं करेगा और कोई न कोई रास्ता निकाल कर उन्हें होते 'दिख' रहे नुकसान की भरपाई करेगा । 26 जून की मुरादाबाद मीटिंग में रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में संजय खन्ना द्वारा की गई घोषणाओं ने लेकिन उनके लिए सारे रास्ते बंद कर दिए हैं । संजय खन्ना ने साफ बता दिया है कि दीपक बाबु और दिनेश शर्मा रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि नहीं रह गए हैं और इस नाते से कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में शामिल होने के अधिकारी नहीं रह गए हैं । संजय खन्ना की इस घोषणा के बाद दीपक बाबु और दिनेश शर्मा एक सामान्य रोटेरियन रह गए हैं । संजय खन्ना की घोषणा से मिले झटके से यह दोनों अभी सँभलने की कोशिश कर ही रहे थे कि राजीव सिंघल ने अगले रोटरी वर्ष में खुद के एक कोऑर्डीनेटर बनने का दावा करके इन पर जैसे बम ही गिरा दिया है । 26 जून की मीटिंग में संजय खन्ना ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह जानकारी तो दी थी कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट का कामकाज चलाने/देखने के लिए रोटरी इंटरनेशनल कोऑर्डीनेटर नियुक्त करेगा, लेकिन कोऑर्डीनेटर की संख्या तथा उनके नाम संजय खन्ना ने नहीं बताए थे - इसलिए कोऑर्डीनेटर की बात पर किसी का भी ध्यान नहीं गया । राजीव सिंघल के दावे ने लेकिन कोऑर्डीनेटर के मुद्दे पर डिस्ट्रिक्ट में बबाल मचा दिया है ।
राजीव सिंघल के इस दावे ने लोगों को ज्यादा हरकत में ला दिया है, जिसके अनुसार अगले रोटरी वर्ष के लिए रोटरी इंटरनेशनल ने चार कोऑर्डीनेटर चुने हैं जिनमें एक वह भी हैं । रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से हालाँकि अभी इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन राजीव सिंघल के दावे के अनुसार उनके साथ सुरेश अग्रवाल, एमएस रे तथा एके अग्रवाल को कोऑर्डीनेटर बनाया गया है - और जल्दी ही इसकी घोषणा कर दी जायेगी । राजीव सिंघल ने इस बात को भी छिपाने की कोई कोशिश नहीं की है कि उन्हें कोऑर्डीनेटर बनवाने में इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने निर्णायक भूमिका निभाई है । मनोज देसाई की निर्णायक भूमिका की बात बताने के पीछे राजीव सिंघल का उद्देश्य क्या रहा, यह तो वह जानें - लेकिन इस बात ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को भड़काने का काम जरूर किया है । लोगों का कहना है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट में जो कुछ भी तमाशा हुआ है; पहले सुनील गुप्ता ने और फिर बाद में दीपक बाबु ने जो तमाम हरकतें कीं - जिनके नतीजे के रूप में न सिर्फ उन्हें बल्कि डिस्ट्रिक्ट को भी बदनामी व दुर्गति का शिकार होना पड़ा है; उसमें अधिकतर में राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को अनैतिक तरीके से फायदा पहुँचाने की तिकड़में थीं । गौर करने की बात यह है कि राजीव सिंघल ने मनोज देसाई के साथ अपने संबंधों का इस्तेमाल करके ही सुनील गुप्ता तथा दीपक बाबु को फँसाया था और उन्हें अपने तरीके से इस्तेमाल किया था । पहले सुनील गुप्ता ने और फिर दीपक बाबु ने इस उम्मीद के साथ राजीव सिंघल के पक्ष में 'बेईमानी' तक की, ताकि मनोज देसाई से वह फायदे उठा सकें । इसी बात को ध्यान में रखते हुए लोगों को शिकायत है कि जिन राजीव सिंघल के कारण डिस्ट्रिक्ट बर्बादी के कगार पर पहुँचा है, उन्हीं राजीव सिंघल को कोऑर्डीनेटर बनाने/बनवाने के पीछे मनोज देसाई का उद्देश्य वास्तव में क्या है ?
मजे की बात यह है कि कोऑर्डीनेटर के बाकी तीन लोगों के नाम पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कोऑर्डीनेटर के रूप में राजीव सिंघल का नाम सामने आने पर डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच खासी हलचल है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लग रहा है कि राजीव सिंघल को जबर्दस्ती उन पर थोपा जा रहा है । इसके लिए इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें कोसा जा रहा है । लोगों का कहना है कि मनोज देसाई एक जिम्मेदार पद पर हैं, और डिस्ट्रिक्ट 3100 की इस वर्ष घटी घटनाओं से अच्छी तरह परिचित हैं; और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में राजीव सिंघल की भूमिका तथा उनकी उम्मीदवारी के नाम पर होने वाली उठापटक को भी अच्छी तरह से जानते हैं - इसके बावजूद उन्होंने राजीव सिंघल को कोऑर्डीनेटर बनवा दिया । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगता है कि राजीव सिंघल चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार थे, और उनकी उम्मीदवारी के नाम पर डिस्ट्रिक्ट में खासी उठापटक रही है - इसलिए मनोज देसाई को उन्हें कोऑर्डीनेटर नहीं बनाना/बनवाना चाहिए था । लोगों का मानना और कहना है कि मनोज देसाई का यह फैसला पक्षपाती फैसला है तथा इस फैसले के जरिए उन्होंने अपनी भूमिका को विवादास्पद बना दिया है; और उनके इस फैसले से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बबाल और बढ़ेगा । राजीव सिंघल को कोऑर्डीनेटर बनाने/बनवाने के मामले में मनोज देसाई की आलोचना इसलिए भी हो रही है क्योंकि राजीव सिंघल का नाम राकेश रस्तोगी का नाम काट कर जोड़ा गया है । मजे की बात यह है कि इस मामले में मनोज देसाई की फजीहत कराने का काम खुद राजीव सिंघल ने किया है । राजीव सिंघल की तरफ से ही कहा/बताया गया है कि कोऑर्डीनेटर के रूप में राकेश रस्तोगी का नाम हटा/हटवा कर मनोज देसाई ने ही उन्हें कोऑर्डीनेटर बना/बनवाया है ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की इस कार्रवाई से सबसे ज्यादा झटका दीपक बाबु और दिनेश शर्मा को लगा है । इन्हें और इनके नजदीकियों को लग रहा है कि मनोज देसाई ने इन्हें धोखे में रख कर इन्हें ठग लिया है । दीपक बाबु और दिनेश शर्मा ने कई बार इस बात के संकेत दिए कि रोटरी इंटरनेशनल ने उनके साथ जो अन्याय किया है, उसके खिलाफ वह अदालत में जायेंगे । कई बार संकेत देने के बावजूद वह अदालत लेकिन गए नहीं । उनके नजदीकियों का कहना है कि मनोज देसाई ने मीठी मीठी बातें करके उन्हें अदालत जाने से रोक तो लिया, लेकिन उनके लिए किया कुछ नहीं । राजीव सिंघल को कोऑर्डीनेटर बना/बनवा कर तो मनोज देसाई ने जैसे दीपक बाबु और दिनेश शर्मा के जले पर नमक रगड़ने का काम किया है । दीपक बाबु और दिनेश शर्मा को लगता है कि मनोज देसाई यदि चाहते तो उन्हें बेहतर पोजीशन पर रख सकते थे; जब चार कोऑर्डीनेटर बनने/बनाने थे - तो दो कोऑर्डीनेटर के पद तो इन्हें दिए जा सकते थे । राजीव सिंघल के कोऑर्डीनेटर बनने की 'खबर' से दीपक बाबु और दिनेश शर्मा को ही नहीं, दूसरे लोगों को भी लगा है कि मनोज देसाई व राजीव सिंघल ने मिल कर इन्हें इस्तेमाल किया है और इन्हें 'पप्पू' बना दिया है । राजीव सिंघल के कोऑर्डीनेटर बनने की आहट से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस तरह की नाराजगीभरी खलबली है, उससे लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट में बबाल अभी थमेगा नहीं । इस बबाल के केंद्र में मनोज देसाई के आ जाने से मामला लेकिन खासा गंभीर और दिलचस्प हो गया है ।

Saturday, June 25, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में दीपक बाबु तथा कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की धोखों, गलतबयानियों व तिकड़मों भरी चालबाजियों ने रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि संजय खन्ना की चुनौतियों को और बढ़ाया

मुरादाबाद । रोटरी इंटरनेशनल के विशेष प्रतिनिधि के रूप में संजय खन्ना के 26 जून को पहली बार मुरादाबाद आने के मौके पर डिस्ट्रिक्ट 3100 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रह गए दीपक बाबु तथा राजनीतिबाज पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने फिर से अपना अपना पुराना खेल शुरू कर दिया है । दीपक बाबु 26 जून के 'अपने' कार्यक्रम में संजय खन्ना को आने के लिए राजी कर लेने को अपनी बड़ी जीत के रूप में देख रहे हैं, तो कुछेक पूर्व गवर्नर्स संजय खन्ना के आने की आड़ में गलत-सलत सूचनाएँ लोगों के बीच फैला रहे हैं - और इस तरह यह लोग अपना अपना स्वार्थ साधने की कोशिशों में एक बार फिर से जुट गए हैं । इसी तरह की हरकतें यह पहले भी करते रहे हैं और इन हरकतों से इन्हें फायदे की बजाए नुकसान ही होता रहा है; लेकिन इसके बावजूद फिर से इन्होंने अपनी हरकतों को शुरू कर दिया है - जिससे साबित हो रहा है कि इन्होंने बार-बार होने वाली अपनी फजीहतों से कोई सबक नहीं सीखा है । लोगों को सबसे ज्यादा हैरानी दीपक बाबु के रवैये पर है - डिस्ट्रिक्ट 3100 में अभी हाल के दिनों में जो कुछ भी हुआ है, उसका सबसे ज्यादा नुकसान दीपक बाबु को हुआ है; जो हुआ, उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार भी दीपक बाबु ही रहे - लेकिन फिर भी वह कोई सबक सीखते हुए और मैच्योरिटी दिखाते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । पता नहीं क्यों, वह इस सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं हो रहे हैं कि अपनी बेवकूफियों से उन्होंने अपना खुद का ऐसा नुकसान कर लिया है, जिसकी भरपाई अब नहीं हो सकती है । वह नुकसान की 'मात्रा' को कम तो कर सकते हैं, 'इस' नुकसान को वह एक दूसरे तरह के फायदे में तो बदल सकते हैं - किंतु जो नुकसान उन्हें हुआ है, उसे अब वह नहीं बचा सकते हैं : उन तरीकों से तो हरगिज नहीं, जिन तरीकों से उन्होंने नुकसान को आमंत्रित किया है । दीपक बाबु लेकिन अपने 'तरीके' छोड़ने को तैयार नहीं दिख रहे हैं - उन्होंने जिस तरह की हरकतों से अपना खुद का नुकसान किया है, मजे की बात यह है कि उसी तरह की हरकतों से वह नुकसान को पलटने की कोशिश कर रहे हैं । और इसी कोशिश में उन्होंने संजय खन्ना की पहली यात्रा/मीटिंग को इस्तेमाल करने की चाल चली है ।
दीपक बाबु ने क्लब पदाधिकारियों को सम्मानित करने के नाम पर 26 जून को मुरादाबाद में एक कार्यक्रम की योजना बनाई है । इस कार्यक्रम की कोई वैधानिक मान्यता नहीं है, किंतु चूँकि कहीं से तो कोई शुरुआत होनी ही है - इसलिए डिस्ट्रिक्ट में हर किसी ने दीपक बाबू के इस कार्यक्रम को 'स्वीकार' कर लिया । संजय खन्ना के इस कार्यक्रम में आने की सहमति मिलने के बाद इस कार्यक्रम का महत्त्व और बढ़ गया । कार्यक्रम का महत्त्व बढ़ जाने से दीपक बाबु के दिमाग भी चढ़ गए । उन्होंने कार्यक्रम के साथ साथ कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग भी रख ली; और इसके लिए संजय खन्ना की सहमति भी ले ली । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की पिछली दो मीटिंग्स में चूँकि कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के दीपक बाबु के साथ अच्छे अनुभव नहीं रहे थे, इसलिए उन्होंने संजय खन्ना से कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में शामिल होने से साफ मना कर दिया । उनका कहना रहा कि दीपक बाबु कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के फैसलों का सम्मान नहीं करते हैं, अपने स्वार्थपूर्ण मनमाने फैसले थोपने का प्रयास करते हैं, और पक्षपातपूर्ण तरीके से व्यवहार करते हैं - इसलिए उनके साथ कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग करने का कोई मतलब नहीं है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के इस विरोध के कारण संजय खन्ना ने कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग के दीपक बाबु के प्रस्ताव को खारिज कर दिया; उन्होंने कहा कि 26 जून के औपचारिक कार्यक्रम से पहले वह पूर्व गवर्नर्स से मिलेंगे और स्थितियों को जानेंगे/समझेंगे जरूर - लेकिन उस मुलाकात-बातचीत को किसी मीटिंग के रूप में नहीं देखा जायेगा । संजय खन्ना के इस रवैये से दीपक बाबु की 'योजना' को तगड़ा झटका लगा है । उनके नजदीकियों का कहना है कि दीपक बाबु ने सोचा यह था कि रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में संजय खन्ना के सामने वह सभी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से कहलवा लेंगे कि डिस्ट्रिक्ट में कोई गड़बड़ नहीं है, सभी के बीच बहुत ही प्रेम-भाव है, एक-दूसरे के प्रति बहुत ही सम्मान-भाव है - और इस आधार पर वह संजय खन्ना से डिस्ट्रिक्ट को नॉन डिस्ट्रिक्ट स्टेटस से बाहर करवाने की संस्तुति करवा लेंगे । दीपक बाबु को लगता है कि इस तरह वह एक जुलाई से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद पा लेंगे ।
दीपक बाबु की इस योजना से परिचित मेरठ के कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तो इतने जोश में आ गए कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के बहाल हो जाने की खबरें अखबारों में छपवा भी दीं । मेरठ के कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में जोश भरने का कारण दरअसल इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की एक चिट्ठी भी बनी, जिसके आधार पर बृज भूषण, एमएस जैन और वागीश स्वरूप की तरफ से आरोपमुक्त किए जाने के दावे तक किए जाने लगे । लेकिन इनकी बदकिस्मती रही कि आरोपमुक्त किए जाने के इनके दावों पर डिस्ट्रिक्ट में किसी ने भी विश्वास नहीं किया । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले को और केआर रवींद्रन की हाल की चिट्ठी को जिसने भी पढ़ा है, उसने पाया है कि केआर रवींद्रन के कहे हुए का मनमाना अर्थ निकालते/बताते हुए आरोपी तीनों पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की तरफ से आरोपमुक्त होने के दावे सरासर झूठे हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने अपनी अप्रैल की मीटिंग में जो फैसला लिया था, उसमें साफ शब्दों में डिस्ट्रिक्ट में आर्थिक व प्रशासनिक गड़बड़ियों में बृजभूषण, एमएस जैन और वागीश स्वरूप को प्रमुख भूमिका निभाने का दोषी घोषित किया था । 
अभी हाल ही में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन ने इन तीनों को संबोधित जो पत्र लिखा है उसमें उन्होंने स्पष्ट कहा है कि बोर्ड के फैसले में जो कहा गया है वह डिस्ट्रिक्ट के लीडर्स के रूप में उनकी कार्रवाइयों के संबंध में कहा गया है । केआर रवींद्रन ने अपने पत्र में कहीं भी यह नहीं कहा है कि बोर्ड का जो फैसला है वह गलत है और या वह बोर्ड के फैसले को वापस लेते हैं - जाहिर है कि बोर्ड का जो फैसला है वह अपनी जगह अभी भी कायम है । 
केआर रवींद्रन ने यह जरूर स्पष्ट किया है कि बोर्ड के फैसले का यह मतलब नहीं है कि इन तीनों ने कोई फ्रॉड किया है और या अपनी जेबें भरी हैं । इस स्पष्टीकरण के बावजूद, रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले में लगाया गया आरोप अभी भी मौजूद है और जो कम गंभीर नहीं है ।
दीपक बाबु और कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के इस रवैये ने दिखाया/जताया है कि पिछले अनुभवों के नतीजों से उन्होंने कुछ नहीं सीखा है; और वह अभी भी धोखों, गलतबयानियों व तिकड़मों के सहारे अपने स्वार्थ पूरे करने के मौके बनाने में लगे हैं । उनका यह रवैया इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की उस उम्मीद के खिलाफ है, जिसमें इन लोगों से सकारात्मक रवैया अपनाने की अपेक्षा की गई है । दीपक बाबु और कुछेक पूर्व गवर्नर्स के इस व्यवहार ने कई अन्य पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स व डिस्ट्रिक्ट के लोगों को जिस तरह से भड़का दिया है, उससे डिस्ट्रिक्ट का झगड़ा एक बार फिर सतह पर आता नजर आ रहा है । डिस्ट्रिक्ट के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि यह सब ऐसे मौके पर हो रहा है, जबकि रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में संजय खन्ना पहली बार डिस्ट्रिक्ट में आ रहे हैं । जाहिर तौर पर ऐसे में संजय खन्ना के लिए चुनौती और बढ़ जाती है । हर किसी की निगाह इसी बात पर है कि अलग अलग 'उद्देश्यों' व ग्रुपों में बँटे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स व डिस्ट्रिक्ट के अन्य सदस्य 26 जून के कार्यक्रम में संजय खन्ना के सामने क्या सीन 'बनाते' हैं और संजय खन्ना डिस्ट्रिक्ट की अपनी पहली यात्रा के क्या अनुभव लेकर मुरादाबाद से लौटते हैं ?

Wednesday, June 22, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट में वित्तीय धांधलियों के खिलाफ अनूप मित्तल द्धारा क्लब के पदाधिकारियों की प्रशासनिक व राजनीतिक स्तर पर की गई दोहरी घेराबंदी ने क्लब के खत्म होने का खतरा पैदा किया

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के 'सत्ताधारी' नेताओं को क्लब के 'नए' सदस्य अनूप मित्तल से पंगा लेना खासा महँगा पड़ा है, और उनके सामने क्लब को गँवाने तक का गंभीर खतरा पैदा हो गया है । इस स्थिति के लिए क्लब के लोग क्लब के सर्वेसर्वा बनने की कोशिशों में लगे पूर्व प्रेसीडेंट अजीत जालान को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । आरोप है कि अजीत जालान ने अपना स्वार्थ साधने के लिए क्लब के अध्यक्ष भरत शेट्टी को मोहरा बना कर इस्तेमाल किया, और अपनी मनमानियाँ चलाने के लिए मौके बनाने के प्रयास किए और इस चक्कर में क्लब के सदस्यों के साथ धोखाधड़ी की; अनूप मित्तल ने इस धोखाधड़ी का विरोध किया तो उन्हें क्लब से निकालने की कार्रवाई शुरू करवा दी - लेकिन उनकी कोशिशों का अनूप मित्तल ने जो करारा जबाव दिया, उससे मामला उल्टा पड़ गया है और खतरा क्लब के ही सस्पेंड होने का पैदा हो गया है । मुसीबत की बात यह रही कि अजीत जालान जिन कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के भरोसे 'उछल' रहे थे और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला तक से बदतमीजी करने पर उतर आए थे, उन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने भी संकट के मौजूदा समय में हाथ पीछे खींच लिए हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला ने नियमों का हवाला देते हुए क्लब के प्रेसीडेंट भरत शेट्टी को चेतावनी देता हुआ एक बहुत ही कठोर पत्र लिखा है, जिसमें विवादित मामलों पर तथ्यपरक रूप से जबाव देने तथा क्लब के हिसाब-किताब में वित्तीय हेराफेरियों व ट्रस्ट के गठन में की गई बेईमानी के आरोपों का संतोषजनक जबाव देने के लिए कहा गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला ने यह जबाव देने के लिए 27 जून के सायं पाँच बजे तक का समय निर्धारित किया है; और स्पष्ट चेतावनी दी है कि उक्त समय सीमा में संतोषजनक जबाव न मिलने पर क्लब के पदाधिकारियों तथा क्लब के खिलाफ उचित कार्रवाई की जायेगी ।
रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट में बबाल तो शुरू हुआ 'रोटरी साऊथ वेस्ट चैरिटेबिल ट्रस्ट दिल्ली' के गठन को लेकर, लेकिन फिर इस बबाल ने क्लब के फंड्स में की जा रही धांधलियों के मामलों को भी चपेट में ले लिया - और फिर जब यह भेद खुला कि क्लब के कुछेक लोगों ने रोटरी की आड़ में धंधा करने को ही अपना लक्ष्य बनाया हुआ है, तो फिर बात बहुत बढ़ गई और उसमें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के भी पक्ष-विपक्ष बन गए । चर्चा तो यहाँ तक है कि इस बबाल की गर्मी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई तक भी पहुँची है, और मनोज देसाई ने कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की इस बात के लिए खिंचाई भी की है कि एक मामूली से विवाद को शह व समर्थन देकर उन्होंने खासे बड़े बबाल में बदल दिया है । मामला सचमुच बहुत मामूली सा ही था : इसी वर्ष 22 जनवरी को हुई क्लब की असेम्बली मीटिंग में एक नए ट्रस्ट के गठन को लेकर चर्चा हुई, जिसमें तय हुआ कि इक्यावन इक्यावन हजार रुपए देने वाले 21 सदस्यों को संस्थापक ट्रस्टी की पहचान देते हुए ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन करवाया जाए । इसके बाद, 29 अप्रैल को हुई क्लब की असेम्बली मीटिंग में बताया गया कि पाँच पूर्व प्रेसीडेंट्स को संस्थापक ट्रस्टियों की पहचान देते हुए ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन करवा लिया गया है । यह सुनकर और पाँच संस्थापक ट्रस्टियों के नाम सुन/जान कर सदस्यों को हैरानी हुई कि क्लब की असेम्बली मीटिंग में जब 21 संस्थापक ट्रस्टियों की बात हुई थी और संस्थापक ट्रस्टियों को इक्यावन इक्यावन हजार रुपए देने थे, तब संस्थापक ट्रस्टियों की संख्या पाँच ही कैसे रह गई और इन पाँच को भी इक्यावन इक्यावन हजार रुपए लिए बिना ही संस्थापक ट्रस्टी कैसे और क्यों बना दिया गया ? सबसे बड़ी नाइंसाफी तो पूर्व प्रेसीडेंट अनूप मित्तल के साथ हुई - अनूप मित्तल संस्थापक ट्रस्टी बनने की शर्त के अनुसार इक्यावन हजार दे चुके थे, किंतु फिर भी संस्थापक ट्रस्टियों में उनका नाम नहीं था । स्वाभाविक रूप से अनूप मित्तल ने इस पर सवाल उठाते हुए आपत्ति दर्ज की । क्लब के कई अन्य सदस्यों ने भी गुपचुप व मनमाने तरीके से संस्थापक ट्रस्टियों के चयन पर तथा ट्रस्ट के मजमून पर आपत्ति की ।
क्लब के प्रेसीडेंट भरत शेट्टी ने सदस्यों की आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया और ऐसे संकेत दिए कि वह ट्रस्ट को जैसे चाहेंगे वैसे बनायेंगे और चलायेंगे । ट्रस्ट के गठन में मुख्य भूमिका निभाने वाले अजीत जालान, आईएम सिंह, राजन कोचर आदि ने ट्रस्ट को लेकर सवाल उठाने वाले सदस्यों को धमकाना तक शुरू कर दिया कि जिसने भी सवाल उठाए, उसे क्लब से निकाल दिया जायेगा । इस तरह की धमकी ने लेकिन सदस्यों को चुप करने की बजाए और मुखर बना दिया । मुखरता में सदस्यों ने कहना/बताना शुरू कर दिया कि क्लब को कुछेक लोगों ने अपनी बपौती समझ रखा है और क्लब के फंड्स की लूट मचाई हुई है । यह बात भी खुली कि क्लब का एक ट्रस्ट पहले भी बना है, जिसके लिए मोटी रकम इकठ्ठा हुई थी और जिसे काम करने के लिए कई स्रोतों से मोटे पैसे मिले थे - लेकिन किसी को नहीं पता कि उन पैसों का क्या हुआ और ट्रस्ट वास्तव में करता क्या है ? अजीत जालान और संजीव वर्मा 'रोटरी ओर्गेन डोनेशन' नाम से एक ट्रस्ट चलाते हैं, जिसके लिए क्लब से हालाँकि कोई अनुमति और सहमति नहीं ली गई है - लेकिन जब तब जिसके लिए रोटेरियंस से पैसे इकट्ठे किए जाते रहे हैं । उसके हिसाब-किताब का किसी को कुछ अता-पता नहीं है । यह जो तीसरा ट्रस्ट मनमाने षड्यंत्रपूर्ण तरीके से बनाया जा रहा है, उसके पीछे भी अजीत जालान का 'दिमाग' बताया जा रहा है । इन्हीं तथ्यों से क्लब के सदस्यों को लगा और उनका आरोप रहा कि ट्रस्ट की आड़ में अजीत जालान ने धंधे का कोई जुगाड़ किया है । क्लब में पैसों के हिसाब-किताब में अजीत जालान का रिकॉर्ड वैसे भी कुछ अच्छा नहीं रहा है, और उनकी भूमिका संदेहास्पद ही रही है । पिछले रोटरी वर्ष में वह क्लब के ट्रेजरार थे; पिछले रोटरी वर्ष का हिसाब माँगते-माँगते क्लब के सदस्यों के हलक सूख गए हैं, लेकिन उन्हें हिसाब नहीं मिला है । डॉक्टर सुब्रमणियम ने अपने गवर्नर-वर्ष के अभी तक जो प्रोग्राम किए हैं, उनमें हिसाब-किताब की गड़बड़ी और पैसे 'बनाने' के जो आरोप सुने गए हैं, उनके लिए भी अजीत जालान को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है : अजीत जालान को डॉक्टर सुब्रमणियम ने अपने गवर्नर-वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार बनाया है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच आरोपपूर्ण चर्चा है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार के रूप में अजीत जालान ने डॉक्टर सुब्रमणियम के पेम/पेट्स/असेम्बली आदि कार्यक्रमों में खर्चों का भारी गोलमाल किया है ।
अजीत जालान चूँकि कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के सहयोग/समर्थन के भरोसे अभी तक अपनी मनमानियों को सफलतापूर्वक अंजाम दे पा रहे थे, इसलिए उनके हौंसले काफी बुलंद थे । इन्हीं बुलंद हौंसलों की बदौलत उन्होंने नए ट्रस्ट के संदर्भ में उठने वाले सवालों की परवाह नहीं की तथा सवाल उठाने वाले लोगों को खुद धमकाने तथा अपने समर्थक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से धमकवाने का काम शुरू कर दिया । क्लब के एकाउंट्स माँगने के 'अपराध' में विनोद साहनी को क्लब से निकलवाने में अजीत जालान सफल भी हुए । सफलता के मद में अजीत जालान और उनके साथियों ने अनूप मित्तल से पंगा ले लिया । बस यही उनसे गलती हो गई । लगा तो उन्हें यह कि अनूप मित्तल विभाजन के बाद अस्तित्व में आए नए डिस्ट्रिक्ट 3011 के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट में ट्रांसफर लेकर अभी करीब एक वर्ष पहले ही आए हैं, और इस हिसाब से अनूप मित्तल क्लब में नए हैं - लिहाजा वह उन्हें धमका लेंगे; लेकिन अनूप मित्तल ने क्लब में वित्तीय गड़बड़ियों का और मनमाने तरीके से ट्रस्ट बनाए जाने के मामले का ऐसा इश्यू बनाया कि क्लब के पदाधिकारियों पर शिकंजा कसता चला गया । अनूप मित्तल ने क्लब के पदाधिकारियों की प्रशासनिक स्तर के साथ-साथ राजनीतिक स्तर पर भी घेराबंदी की - जिसका नतीजा रहा कि एक तरफ तो क्लब के पदाधिकारियों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला से फटकार सुननी पड़ी तथा सुधीर मंगला की प्रशासनिक कार्रवाई का शिकार होना पड़ा, तथा दूसरी तरफ दस से ज्यादा लोगों ने क्लब के पदाधिकारियों पर लूटखसोट का आरोप लगाते हुए क्लब की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया । मजेदार बात यह हुई कि क्लब के पदाधिकारी अनूप मित्तल को क्लब से निकालने की धमकी दे रहे थे तथा इस बारे में कार्रवाई शुरू कर ही रहे थे, कि उससे पहले अनूप मित्तल ने ही जाल बिछा कर क्लब के पदाधिकारियों को ही फँसा दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला की तरफ से क्लब के प्रेसीडेंट भरत शेट्टी को शो-कॉज नोटिस मिलने के बाद क्लब के पदाधिकारियों के लिए अपनी इज्जत और क्लब के अस्तित्व को बचाना मुश्किल हो गया है । अजीत जालान हालाँकि क्लब के पदाधिकारियों को आश्वस्त कर रहे हैं कि सुधीर मंगला ने 27/28 जून को क्लब के खिलाफ कोई फैसला यदि लिया भी, तो वह चार दिन बाद गवर्नर बनने वाले डॉक्टर सुब्रमणियम से उस फैसले को पलटवा लेंगे । अजीत जालान का दावा है कि डॉक्टर सुब्रमणियम से उन्होंने बात कर ली है और डॉक्टर सुब्रमणियम ने उनसे वायदा किया है कि वह उनके क्लब को कोई नुकसान नहीं होने देंगे । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट में वित्तीय धांधलियों के खिलाफ मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला के कठोर रवैये और अजीत जालान के दावे के अनुसार डॉक्टर सुब्रमणियम के दिए भरोसे के बीच रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट का मामला सचमुच दिलचस्प हो उठा है ।

Tuesday, June 21, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने जा रहे शिव कुमार चौधरी की बदनामी व ठगी के किस्से लायंस इंटरनेशनल के 99वें अधिवेशन में फुकुओका में इकठ्ठा हुए लायन लीडर्स के बीच भी चर्चा का विषय बने

गाजियाबाद । जापान के फुकुओका में आयोजित हो रहे लायंस इंटरनेशनल के 99वें अधिवेशन में इकठ्ठा हुए लायन लीडर्स की परेड के लिए तो 24 जून का दिन सुनिश्चित किया गया है - लेकिन भारत से वहाँ पहुँचे हुए लायन लीडर्स ने, खासतौर से मल्टीपल 321 के लायन लीडर्स ने डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने जा रहे शिव कुमार चौधरी का 'जुलूस' वहाँ पहले से ही निकाला हुआ है । शिव कुमार चौधरी की कारस्तानियों के वहाँ खूब चर्चे हो रहे हैं; लायन लीडर्स हैरान हैं कि उनके बीच एक ऐसा व्यक्ति भी लीडर होने का दिखावा कर रहा है जो अपनी हरकतों के चलते अपने ही डिस्ट्रिक्ट में बुरी तरह से नापसंद किया जा रहा है; जो फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ-साथ पूर्व गवर्नर्स के खिलाफ लगातार अशालीन तरीके से अपशब्दों का इस्तेमाल करता है, जो क्लब्स में जाकर बदतमीजी करता है - जिसका नतीजा यह दिख रहा है कि क्लब्स के कार्यक्रमों में शिव कुमार चौधरी को बुलाया तक नहीं जा रहा है; फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तथा कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स शिव कुमार चौधरी के साथ खड़े तक नहीं दिखना चाह रहे हैं; और इस कारण से शिव कुमार चौधरी डिस्ट्रिक्ट में पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं । फुकुओका में शिव कुमार चौधरी द्धारा लायन सदस्यों के पैसे दबा लेने की हरकतों की भी खूब चर्चा हो रही है । मल्टीपल 321 के कुछेक लायन लीडर्स दूसरे मल्टीपल के लायन लीडर्स को सावधान कर रहे हैं कि शिव कुमार चौधरी आकर्षक बिजनेस ऑफर दे कर लोगों से पैसे ठगने में बहुत माहिर हैं; अपने डिस्ट्रिक्ट में कई लायन सदस्यों से वह पैसे ठग चुके हैं । शिव कुमार चौधरी बिजनेस के नाम पर जिससे पैसे ले लेते हैं, फिर वापस करने में तरह तरह की बहानेबाजी करते हैं । पैसे वापस करने के नाम पर एक लायन सदस्य को जो चेक दिया, वह चेक बाउंस हो गया - जिसका केस अदालत में है । इस तरह, शिव कुमार चौधरी की जिस बदनामी के चर्चे अभी तक सिर्फ उनके अपने डिस्ट्रिक्ट तक ही सीमित थे, आज वह फुकुओका में हो रहे इंटरनेशनल अधिवेशन में चर्चा का विषय बने हुए हैं ।
मजे की बात यह है कि फुकुओका में शिव कुमार चौधरी ने अपनी फजीहत का यह मौका स्वयं ही बनाया है । फुकुओका में मौजूद कुछेक लायन लीडर्स ने भारत में अपने नजदीकियों को बताया कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लायन लीडर्स के बीच शिव कुमार चौधरी ने अपने स्वभाव के अनुसार डींगें मारना शुरू कर दिया और अपने आप ही अपनी तारीफ करना शुरू कर दिया, जिस पर कुछेक लीडर्स ने उन्हें आईना दिखा दिया । इससे भड़क कर शिव कुमार चौधरी ने बकवासबाजी शुरू कर दी, तो फिर बात और बढ़ गई । शिव कुमार चौधरी को शायद इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनकी हरकतों की जानकारी दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लायन लीडर्स को भी होगी, उन्हें लगा कि वह जैसा जो कहेंगे/बतायेंगे - लोग उसे ही सच मान लेंगे; लेकिन जब बातें होना शुरू हुईँ तो पता चला कि मल्टीपल के लायन लीडर्स को शिव कुमार चौधरी की हर एक कारस्तानी के बारे में विस्तार से पता है । शिव कुमार चौधरी ने इसका ठीकरा फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल के सिर फोड़ने की कोशिश की, लेकिन जो कोशिश उन्हें और उल्टी पड़ी । शिव कुमार चौधरी ने आरोप लगाया कि मल्टीपल के लायन लीडर्स के बीच उन्हें बदनाम करने का काम अजय सिंघल ने किया है । मल्टीपल के लायन लीडर्स ने लेकिन जब अजय सिंघल की तारीफ की और शिव कुमार चौधरी की बदनामी व फजीहत के लिए शिव कुमार चौधरी की हरकतों को ही जिम्मेदार ठहराया - तो शिव कुमार चौधरी को और मिर्ची लगी । मल्टीपल के लायन लीडर्स पर लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, उन्होंने बल्कि दूसरे मल्टीपल के लायन लीडर्स को भी शिव कुमार चौधरी की असलियत से परिचित कराना शुरू कर दिया । इस कार्रवाई पर ही एक वरिष्ठ लायन लीडर ने चुटकी ली कि लायंस इंटरनेशनल की तरफ से तो फुकुओका में लायन लीडर्स की परेड अभी बाद में निकलेगी, मल्टीपल के लायन लीडर्स ने शिव कुमार चौधरी का 'जुलूस' लेकिन पहले ही निकाल दिया है ।
फुकुओका में शिव कुमार चौधरी को अपनी पीएसटी स्कूलिंग पर भी लायन लीडर्स की भारी लताड़ सुनने को मिली । पीएसटी स्कूलिंग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी का पहला कार्यक्रम था, जो बुरी तरह से फ्लॉप हुआ - न केवल फ्लॉप हुआ, बल्कि जिसने यह भी 'दिखाया' और साबित किया कि शिव कुमार चौधरी को लायंस इंटरनेशनल के नियमों की तथा व्यवस्था की बुनियादी जानकारी भी नहीं है । उल्लेखनीय है कि पीएसटी स्कूलिंग को लेकर आरोप यह है कि शिव कुमार चौधरी के आचरण/व्यवहार के प्रति विरोध दर्ज कराने के उद्देश्य से अधिकतर क्लब्स के पदाधिकारियों ने उनकी पीएसटी स्कूलिंग का बहिष्कार किया, जिस कारण उनकी पीएसटी स्कूलिंग में एक चौथाई पीएसटी भी नहीं पहुँचे । शिव कुमार चौधरी की तरफ से इस आरोप को झूठा बताते हुए कभी कार्यक्रम-स्थल की हाउसफुल की तस्वीरें पेश की जा रही हैं, तो कभी बताया जा रहा है कि पीएसटी स्कूलिंग में 'इतने' क्लब की भागीदारी हुई । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने जा रहे शिव कुमार चौधरी को क्या सचमुच इस बात का पता नहीं है, या वह झूठ बोल कर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं कि पीएसटी स्कूलिंग के सफल होने का पैमाना सिर्फ यह होगा कि उसमें पी(प्रेसीडेंट), एस(सेक्रेटरी) टी(ट्रेजरार) कितने थे - यह नहीं होगा कि कार्यक्रम में कितनी भीड़ थी और वहाँ कितने क्लब्स का प्रतिनिधित्व था । शिव कुमार चौधरी की तरफ से पीएसटी स्कूलिंग को सफल बताने के लिए बकवासबाजी तो खूब की गई है, लेकिन आरोप का सीधा जबाव देते हुए यह नहीं बताया गया है कि उनकी पीएसटी स्कूलिंग में पीएसटी कितने शामिल हुए । आरोप तो यही है कि पीएसटी ने उनकी पीएसटी स्कूलिंग का बहिष्कार किया । पीएसटी स्कूलिंग के नाम पर शिव कुमार चौधरी ने एक और धोखाधड़ी की : लायंस इंटरनेशनल के नियम व व्यवस्था के अनुसार पीएसटी स्कूलिंग में प्रेसीडेंट, सेक्रेटरी व ट्रेजरार की अलग अलग ग्रुप में स्कूलिंग होनी चाहिए । शिव कुमार चौधरी ने ऐसा न करके सभी को एक साथ भाषण सुनवा दिया - और इस तरह वास्तव में पीएसटी स्कूलिंग का मजाक बना दिया । शिव कुमार चौधरी ने इसके लिए फैकल्टी वीएस कुकरेजा को यह कहते हुए जिम्मेदार ठहरा दिया कि उन्होंने जैसा करने को कहा, हमने तो वैसा कर दिया । किंतु सच यह है कि यदि प्रेसीडेंट्स, सेक्रेटरीज व ट्रेजरार्स को अलग अलग बैठा कर स्कूलिंग कराई जाती, तो पीएसटी की उपस्थिति की पोल खुल जाती । इन तर्कों के साथ फुकुओका में लायन लीडर्स ने शिव कुमार चौधरी को लताड़ लगाई, तो शिव कुमार चौधरी को जबाव देते नहीं बना ।
पैसे ठगने की बातों ने तो फुकुओका में शिव कुमार चौधरी के लिए बहुत ही शर्मिंदगी की स्थिति पैदा की हुई है । शिव कुमार चौधरी की लोगों से पैसों की ठगी की जो बात अभी तक डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में ही लोगों को पता थी, अब वह लायन समाज के लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई है । इस मामले में शिव कुमार चौधरी के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि अपनी इस हरकत के लिए वह किसी दूसरे को जिम्मेदार भी नहीं ठहरा सकते हैं । किसी किसी से उन्होंने यह कहा/बताया भी कि वह जल्दी ही लोगों से लिए पैसे वापस करेंगे, तो उन्हें यह और सुनने को मिला कि - हाँ, डिस्ट्रिक्ट टीम के पद 'बेच' कर बहुत पैसे जुटा लिए होंगे, उससे कुछेक लोगों के पैसे तो वापस कर ही सकते हो । फुकुओका में इकठ्ठा हुए भारत के विभिन्न मल्टीपल्स के लायन लीडर्स शिव कुमार चौधरी को लेकर जब इस तरह की बातें करते हुए सुने जाते हैं, तो इससे सिर्फ शिव कुमार चौधरी की ही बदनामी नहीं हो रही है - बल्कि डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की और लायनिज्म की भी बदनामी हो रही है ।

Tuesday, June 14, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की पीएसटी स्कूलिंग को खुद ही सफल घोषित करने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी वास्तव में डिस्ट्रिक्ट के 25 प्रतिशत पीएसटी की उपस्थिति भी संभव नहीं कर सके

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालने की तैयारी कर रहे शिव कुमार चौधरी को डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स जिस तरह से अपने अपने कार्यक्रमों से दूर रख रहे हैं और उन्हें कोई तवज्जो देने को तैयार नहीं हो रहे हैं - वह अपने आप में डिस्ट्रिक्ट की और लायंस इंटरनेशनल की एक बड़ी परिघटना है । लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की ऐसी फजीहत शायद ही हुई हो । मेरठ, गाजियाबाद, मोदीनगर, शामली, बिजनौर आदि शहरों में हाल-फिलहाल में लायंस क्लब्स के जो कार्यक्रम हुए या होने हैं - उनमें फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल को तो पर्याप्त तवज्जो मिलती दिख रही है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी को पूरी तरह अलग-थलग रखा गया है; जहाँ कहीं उन्हें बुलाया भी गया, वहाँ भी उन्हें कोई तवज्जो मिलती हुई नहीं दिखी है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी को सबसे बड़ा झटका अपने ही कार्यक्रम - पीएसटी स्कूलिंग में लगा, जहाँ डिस्ट्रिक्ट के कुल पीएसटी में से मुश्किल से एक-चौथाई पीएसटी ही शामिल होने आए । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में करीब सवा चार सौ पीएसटी हैं, लेकिन शिव कुमार चौधरी की पीएसटी स्कूलिंग में पीएसटी की गिनती खींचतान के सौ तक पहुँच पाई । लगता है कि खुद शिव कुमार चौधरी को भी पता था कि उनकी स्कूलिंग में ज्यादा लोग नहीं आयेंगे, इसलिए उन्होंने कार्यक्रम का आयोजन एक छोटे से कमरे में किया - और बाद में कार्यक्रम को हाउसफुल घोषित कर दिया । इस तरह की 'धोखाधड़ी' से शिव कुमार चौधरी अपने मुँहमियाँ मिटठू भले ही बन लें, किंतु डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़ने के कारण होने वाली अपनी फजीहत के सच को तो छिपा नहीं ही सकते हैं ।
डिस्ट्रिक्ट में अपनी फजीहत के लिए शिव कुमार चौधरी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश गोयल को जिम्मेदार ठहराते हैं । शिव कुमार चौधरी का कहना है कि यह मुकेश गोयल की राजनीति है, जिसके तहत वह लोगों को उनके खिलाफ भड़का रहे हैं और क्लब्स के पदाधिकारियों को अपने अपने कार्यक्रमों से उन्हें दूर रखने के लिए मजबूर कर रहे हैं । शिव कुमार चौधरी के इस आरोप को यदि सच मान भी लिया जाए - तो भी यह सवाल तो उठता ही है कि क्लब्स के पदाधिकारी अपने गवर्नर शिव कुमार चौधरी की बजाए एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश गोयल की बात क्यों मानते हैं ? शिव कुमार चौधरी कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के समर्थन का दावा करते हैं; एक वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर, जो इंटरनेशनल डायरेक्टर के पद पर भी रहे हैं, सुशील अग्रवाल घोषित रूप से शिव कुमार चौधरी के पक्ष में हैं - लेकिन फिर भी क्लब्स के पदाधिकारी यदि शिव कुमार चौधरी को अपने से दूर रखना चाहते हैं, उन्हें अपने कार्यक्रमों में बुलाना तक नहीं चाहते हैं, उनके कार्यक्रम में आना/जाना तक नहीं चाहते हैं; तो शिव कुमार चौधरी के लिए जरूरत अपने गिरेबाँ में झाँकने की हो जाती है । डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों का मानना और कहना है कि शिव कुमार चौधरी ने अपने व्यवहार और अपने रवैये से डिस्ट्रिक्ट में तमाम लोगों को अपना विरोधी बनाया हुआ है; किसी के साथ भी बदतमीजी कर देना जिस तरह से उनका स्वभाव है - उसके कारण लोगों को उनके साथ दूरी बनाने में ही अपना भला दिखता है । इसी बात की झलक पिछले दिनों हुए चुनाव में भी देखने को मिली थी, जिसमें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उनके उम्मीदवार के रूप में रेखा गुप्ता को तो बहुत ही बुरी पराजय का सामना करना पड़ा ही था - खुद उन्हें भी रिकॉर्ड नेगेटिव वोट मिले थे । शिव कुमार चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट में सबसे ज्यादा नेगेटिव वोट पाकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का रिकॉर्ड बनाया है । उम्मीद की गई थी कि इस रिकॉर्ड का सेहरा अपने सिर बँधने से शिव कुमार चौधरी सबक लेंगे और अपने व्यवहार व रवैये में सुधार करके लोगों के साथ सचमुच में फ्रेंडली बनने का प्रयास करेंगे ।
लेकिन लगता है कि शिव कुमार चौधरी ने नेगेटिव वोट से पड़ी चोट से कोई सबक नहीं सीखा, जिसका नतीजा उन्हें एक बार फिर पीएसटी स्कूलिंग में भुगतना पड़ा है । उल्लेखनीय है कि पीएसटी स्कूलिंग की लायनिज्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है; लायंस इंटरनेशनल का यह एक महत्त्वपूर्ण प्रोग्राम है; इस प्रोग्राम को प्रभावी तरीके से संभव करके ही लायन वर्ष की सफलता की नींव रखी जा सकती है; इसीलिए प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने डिस्ट्रिक्ट के प्रत्येक पी (प्रेसीडेंट), एस (सेक्रेटरी) तथा टी (ट्रेजरार) की उपस्थिति को पीएसटी स्कूलिंग में सुनिश्चित करें । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी ने लेकिन अपने डिस्ट्रिक्ट के पी, एस, टी की उपस्थिति को पीएसटी स्कूलिंग में सुनिश्चित करने का कोई प्रयास ही नहीं किया । मजे की बात यह रही, जैसा कि कार्यक्रम में मौजूद लोगों का ही कहना है कि कार्यक्रम स्थल पर कुर्सियों की कुल संख्या ही डिस्ट्रिक्ट के पी/एस/टी की कुल संख्या से बहुत कम थी । लगता है कि शिव कुमार चौधरी को पहले से ही पता था कि उनके पीएसटी स्कूलिंग कार्यक्रम में ज्यादा पीएसटी आयेंगे ही नहीं - इसलिए उन्होंने कुर्सियाँ कम रखवाईं, जिससे कि उनके भर जाने पर वह हाऊसफुल को दावा करते हुए पीएसटी स्कूलिंग कार्यक्रम को खुद ही सफल घोषित कर दें । जिस डिस्ट्रिक्ट पीएसटी स्कूलिंग कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट के एक चौथाई पीएसटी भी शामिल न हों, क्या उसे सफल कहा जा सकता ? और क्या इस असफलता का ठीकरा मुकेश गोयल के सिर फोड़ कर शिव कुमार चौधरी अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं ? पीएसटी स्कूलिंग में शिव कुमार चौधरी को जो झटका मिला है, वह नेगेटिव वोट डालने के बाद क्लब्स के पदाधिकारियों की तरफ से मिला उन्हें लगातार दूसरा झटका है; पहले झटके से उन्होंने कोई सबक नहीं सीखा, यह तो स्पष्ट हो चुका है; दूसरे झटके को लेकर भी वह जिस तरह की 'धोखाधड़ी' करके एक असफल कार्यक्रम को सफल साबित करने की कोशिश कर रहे हैं - उससे आभास मिल रहा है कि दूसरे झटके से भी वह कोई सबक सीखने को तैयार नहीं हैं ।
शिव कुमार चौधरी की पीएसटी स्कूलिंग में डिस्ट्रिक्ट के 75 प्रतिशत से अधिक पीएसटी नहीं आए; क्लब्स के कार्यक्रमों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी को बुलाया नहीं जा रहा, उनका सम्मान नहीं किया जा रहा - और फिर भी शिव कुमार चौधरी 'खतरे' को पहचानने/समझने की कोशिश तक नहीं कर रहे हैं; अपने व्यवहार व अपने रवैये को सुधारने का कोई प्रयास तक नहीं कर रहे हैं : उससे लग रहा है कि शिव कुमार चौधरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की पहचान व प्रतिष्ठा की फजीहत के नए रिकॉर्ड बनायेंगे ।

Sunday, June 12, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव कराने के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन को रोटरी इंटरनेशनल से 'फटकार' तथा अपने आकाओं से 'दुत्कार' मिली

देहरादून । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के मुद्दे पर दोहरी फजीहत का सामना करना पड़ा है । एक तरफ तो रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के कारगर न हो पाने के उनके तर्क को ख़ारिज करते हुए वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद का चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से कराना शुरू कर दिया है, तो दूसरी तरफ इस मामले में डिस्ट्रिक्ट के 'महारथी' पूर्व गवर्नर्स ने भी उनकी इज्जत बचाने का प्रयास करने से इंकार कर दिया । इस मामले में डेविड हिल्टन के साथ हुआ यह कि डिस्ट्रिक्ट के 'महारथी' पूर्व गवर्नर्स ने पहले तो उन्हें इस्तेमाल किया और रोटरी इंटरनेशनल के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव करवाने के प्रयास में उनसे रोड़ा डलवा दिया, लेकिन जब रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों ने कोड़ा फटकारा और वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद का चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से ही करवाने का निश्चय किया - तो डिस्ट्रिक्ट के 'महारथी' पूर्व गवर्नर्स ने 'कोड़े खाने' के लिए डेविड हिल्टन को अकेला छोड़ दिया । डेविड हिल्टन के नजदीकियों का कहना है कि इस मुद्दे पर डेविड हिल्टन ने यशपाल दास और मधुकर मल्होत्रा से मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन इन दोनों ने ही उनकी गुहार पर कोई ध्यान नहीं दिया । डेविड हिल्टन ने चाहा सिर्फ यह था कि वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद का चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से कराने की कार्रवाई पर एक सांकेतिक विरोध रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय में दर्ज कराया जाए; और डिस्ट्रिक्ट के पहले के रुख को दोहराया जाए । डेविड हिल्टन का सुझाव था कि यह सांकेतिक विरोध कुछेक क्लब्स की तरफ से भी दर्ज करवाया जा सकता है । इस सांकेतिक विरोध के जरिए डेविड हिल्टन दरअसल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के मुद्दे पर रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के रवैये से हो रही अपनी फजीहत की 'मात्रा' को कुछ कम करना चाहते थे । यशपाल दास व मधुकर मल्होत्रा ने लेकिन डेविड हिल्टन की इस चाहत को पूरा करने में कोई दिलचस्पी नहीं ली - और डेविड हिल्टन को अंततः दोतरफा फजीहत का शिकार होना पड़ा ।
डेविड हिल्टन दरअसल इस बात में अपनी भारी फजीहत होते हुए देख रहे थे कि अपने जिस डिस्ट्रिक्ट में करीब डेढ़ महीने पहले उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव करवाने में यह तर्क देते हुए अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी थी, कि डिस्ट्रिक्ट के वोटर्स को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की तकनीकी प्रक्रिया से परिचित करवाना संभव नहीं होगा - उसी डिस्ट्रिक्ट में रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव करवा रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन ने जो कहा था, उसका आशय वास्तव में यही था कि डिस्ट्रिक्ट के जो वोटर्स हैं, यानि क्लब्स के अध्यक्ष - वह इतने मूर्ख हैं कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की तकनीकी प्रक्रिया को अपना नहीं सकेंगे और इसलिए उनके डिस्ट्रिक्ट में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव करवाना संभव ही नहीं होगा । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने लेकिन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव शुरू करवा कर साबित कर दिया कि डेविड हिल्टन सिर्फ बहानेबाजी कर रहे थे और अपने क्लब्स के अध्यक्षों को मूर्ख बता कर वास्तव में अपना राजनीतिक ऊल्लू साध रहे थे । सच बल्कि यह है कि डेविड हिल्टन वास्तव में राजा साबू, यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा आदि अपने आकाओं के हुकुम की तामील कर रहे थे और उन्हीं के कहने पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव कराने से बहानेबाजी करते हुए इंकार कर रहे थे । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद के लिए पिछले करीब दो महीने में हुए चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराने की माँग खुद एक उम्मीदवार टीके रूबी ने की थी । उनका आरोप था कि चुनाव के नतीजे को अपने मनमाफिक करने के लिए कुछेक पूर्व गवर्नर्स - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन का इस्तेमाल करते हुए बेईमानी करेंगे, जिसे रोकने का एकमात्र तरीका इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव करवाना होगा । टीके रूबी की माँग के आधार पर ही रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन को वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद का चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से करवाने का सुझाव दिया था, जिसे डेविड हिल्टन ने अपने डिस्ट्रिक्ट में अव्यावहारिक बताते हुए मानने से इंकार कर दिया था । 
टीके रूबी का आरोप सच साबित हुआ - और वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद के चुनाव में भारी धाँधली तथा वोटों की हेराफेरी और उसमें पूर्व गवर्नर्स व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन की मिलीभगत के संकेत व सुबूत मिले । वर्ष 2017-18 के चुनाव में हुई धाँधली का संज्ञान लेते हुए रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने वर्ष 2018-19 के चुनाव को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से कराने का फैसला कर लिया और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन के तर्कों को सिरे से ख़ारिज करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी भूमिका को समाप्त कर दिया । रोटरी इंटरनेशनल के इस फैसले को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन व डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को प्रभावित व नियंत्रित करने वाले पूर्व गवर्नर्स की चालबाजियों पर करारे तमाचे की तरह ही देखा/पहचाना गया है । किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का इससे बड़ा अपमान नहीं हो सकता है । इस अपमान व तमाचे की गूँज व छाप को कुछ हल्का करने के लिए ही डेविड हिल्टन चाहते थे कि रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के इस फैसले का सांकेतिक विरोध तो कम से कम किया ही जाए - और रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के फैसले को चुपचाप तरीके से स्वीकार न किया जाए । डेविड हिल्टन के नजदीकियों के अनुसार, डेविड हिल्टन ने इस संबंध में यश पाल दास तथा मधुकर मल्होत्रा से बात की - लेकिन इन दोनों ने ही डेविड हिल्टन की बात पर ध्यान नहीं दिया । इन दोनों का कहना रहा कि रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने जब खुद ही पहल करके इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव कराने का फैसला किया है, तो डिस्ट्रिक्ट की तरफ से उसमें अड़ंगा डालने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए ।
इस पूरे प्रकरण में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन की भारी फजीहत हुई है । डेविड हिल्टन के लिए लोगों को इस बात का जबाव देना मुश्किल हो रहा है कि रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की पहल के चलते इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव हो सकता है, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव कराने के लिए क्यों तैयार नहीं हुए थे ? डेविड हिल्टन की इस हरकत से उनकी तो फजीहत हुई ही है, डिस्ट्रिक्ट का भी नाम खराब हुआ है । डेविड हिल्टन के लिए इससे भी ज्यादा बुरी बात यह हुई है कि डिस्ट्रिक्ट के जिन 'आकाओं' के कहने पर उन्होंने चुनाव में हेराफेरी का मौका बनाए रखने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग न कराने की हरकत की थी - उनके उन आकाओं ने अपमान व फजीहत की इस घड़ी में उन्हें अकेला छोड़ दिया है । यानि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से भी 'पिटे' और उन्होंने अपने डिस्ट्रिक्ट में अपने आकाओं से भी 'मार' खाई । डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी के आखिरी महीने में किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की ऐसी दोहरी फजीहत इससे पहले शायद ही किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की हुई होगी । 

Monday, June 6, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ट्रेजरार नितिन कँवर की ईगो व निजी खुन्नसबाजी के चलते अविनाश गुप्ता के खिलाफ शुरू हुई लड़ाई की आँच इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी तक पहुँचने से मामला खासा गंभीर हुआ

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी अपनी कारस्तानियों में अब इस हद तक दुस्साहसी हो गए हैं कि वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी तक को 'ऊल्लू' बनाने के काम में लग गए हैं । चर्चा है कि एम देवराज रेड्डी ने इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ सदस्य अविनाश गुप्ता के खिलाफ की जा रही रीजनल काउंसिल पदाधिकारियों की कार्रवाई का संज्ञान लिया है, जिसके बाद रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी मामले की लीपापोती में जुट गए हैं । उल्लेखनीय है कि अविनाश गुप्ता ने लिखित में की गई अपनी शिकायत में कहा/बताया है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी सुमित गर्ग ने उनसे टेलीफोन पर बात करते हुए स्वीकार किया व बताया कि चेयरमैन दीपक गर्ग के नेतृत्व में रीजनल काउंसिल के 'पॉवर ग्रुप' ने तय किया हुआ है कि अविनाश गुप्ता को नॉर्दर्न रीजन के किसी भी कार्यक्रम में 'दिखने' नहीं दिया जायेगा । अविनाश गुप्ता इंटरनेशनल टैक्सेशन में एक्सपर्ट वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, टैक्स रिसर्च फाउंडेशन के प्रेसीडेंट हैं । उन्होंने ऑस्ट्रिया की विएना यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल टैक्सेशन की पढ़ाई की है । वह एक प्रभावी वक्ता हैं और अपनी बात को कहने की कला के चलते प्रोफेशन के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं । अपनी लोकप्रियता के कारण ही वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की ब्रांचेज में स्पीकर के रूप में आमंत्रित किए जाते हैं । अब इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के ऐसे व्यक्ति के खिलाफ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी गोलबंद हो जाएँ और तय करें कि नॉदर्न रीजन के किसी भी कार्यक्रम में वह इन्हें 'दिखने' नहीं देंगे - तो इंस्टीट्यूट के मुखिया के रूप में एम देवराज रेड्डी का मामले में दिलचस्पी लेना स्वाभाविक ही है । गौर करने की बात यह है कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों पर जो आरोप है, वह सिर्फ आरोप या कयास भर नहीं है, बल्कि रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी सुमित गर्ग का कथन है । दरअसल सुमित गर्ग के कथन ने ही मामले को खासा गंभीर बना दिया है ।
इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी के दिलचस्पी लेने के कारण नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी मुश्किल में फँसे, तो उनकी मदद के लिए सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता आगे आए । पिछली 27 मई की अपनी रिपोर्ट में 'रचनात्मक संकल्प' विस्तार से बता चुका है कि कैसे विजय गुप्ता ही इस पूरे मामले के लिए 'जिम्मेदार' हैं । वह जिम्मेदार हैं, तो मददगार की भूमिका निभाने के लिए भी उन्हें ही आगे आना पड़ा । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की अभी पिछले दिनों ही में हुई मीटिंग में विजय गुप्ता को उक्त मामले को संभालने के लिए ही आना पड़ा । विजय गुप्ता की उपस्थिति में रीजनल काउंसिल के 'आरोपी' पदाधिकारियों ने मजेदार किस्म का नाटक किया : उन्होंने अविनाश गुप्ता के आरोप को सिरे से नकार दिया; सेक्रेटरी सुमित गर्ग ने इस बात से इंकार किया कि उन्होंने अविनाश गुप्ता से वैसा कुछ कहा है, जैसा कहने का दावा अविनाश गुप्ता ने किया है । यह प्रसंग नाटक में लेकिन तब तब्दील हुआ, जब रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों ने इन बातों को रिकॉर्ड करने से इंकार किया । मीटिंग में मौजूद कुछेक लोगों का सुझाव था कि अविनाश गुप्ता ने सुमित गर्ग से हुई बातचीत का हवाला देते हुए जिन जिन लोगों को ईमेल लिखी है, उन उन लोगों को सुमित गर्ग उस तरह की बातचीत न होने की तथा अविनाश गुप्ता के आरोप को झूठा ठहराते हुए ईमेल लिखें/भेजें । सुमित गर्ग ने, रीजनल काउंसिल के दूसरे 'आरोपी' पदाधिकारियों ने - और यहाँ तक कि विजय गुप्ता ने भी इस सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया । उनकी कोशिश रही कि बातों को रिकॉर्ड पर लाए बिना मामले को खत्म कर लिया जाए - तथा इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी को बता दिया जाए कि मामला कुछ है ही नहीं ।
ऐसे में किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल है कि अविनाश गुप्ता के आरोप जब रिकॉर्ड पर हैं, तो उनके आरोप के जबाव को रिकॉर्ड पर लाने में 'आरोपी' पदाधिकारी डर क्यों रहे हैं ? उल्लेखनीय है कि अविनाश गुप्ता ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन दीपक गर्ग को पत्र लिखकर आरोप लगाए हैं, लेकिन दीपक गर्ग की तरफ से उन्हें लिखित में जबाव नहीं मिला है । दीपक गर्ग लिख कर यह कहने का भी साहस नहीं कर पा रहे हैं कि उनके आरोप गलत हैं और झूठे हैं । हाल ही में हुई रीजनल काउंसिल की मीटिंग में, सेंट्रल काउंसिल सदस्य विजय गुप्ता की उपस्थिति में रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों ने यही नाटक किया - जिसके तहत उन्होंने बार-बार दोहराया कि अविनाश गुप्ता के आरोप गलत हैं और झूठे हैं, लेकिन अपने इस दावे को रिकॉर्ड पर न आने देने के लिए भी उन्होंने पूरा जोर लगाया । दरअसल उन्हें भी पता है कि अविनाश गुप्ता के आरोप पूरी तरह सच हैं, और अपने आरोपों के बाबत अविनाश गुप्ता के पास पुख्ता सुबूत भी हैं - उन्हें डर है कि वह यदि रिकॉर्ड पर अविनाश गुप्ता के आरोप को झूठा कहेंगे, तो खुद ही झूठे साबित हो जायेंगे । इसलिए रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी इस चालाकी से 'काम' कर रहे हैं कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी तक वह विजय गुप्ता के जरिए यह संदेश भी भिजवा दें कि उन पर लगाए जा रहे आरोप झूठे हैं, और यह बात रिकॉर्ड पर भी न आए । इस सारी कवायद के पीछे रीजनल काउंसिल के 'पॉवर ग्रुप' का वास्तविक उद्देश्य इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी को 'ऊल्लू' बनाने का है - इस कवायद का दिलचस्प पहलू यह है कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को इसमें सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता का पूरा पूरा सहयोग व समर्थन मिल रहा है ।
इसमें मजे की बात यह है कि इतना सब नाटक रीजनल काउंसिल के ट्रेजरार नितिन कँवर की निजी खुन्नसबाजी को निकालने के लिए किया जा रहा है । उल्लेखनीय है कि असल झगड़ा अविनाश गुप्ता और नितिन कँवर के बीच है, जिसमें रीजनल काउंसिल के चेयरमैन दीपक गर्ग व सेक्रेटरी सुमित गर्ग तथा सेंट्रल काउंसिल सदस्य विजय गुप्ता ने अपने आप को इस हद तक फँसा लिया है कि उनके लिए अपनी इज्जत तक बचाना मुश्किल हो रहा है - और उन्हें इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट तक के साथ चालबाजी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है । और सच पूछा जाए तो यह अविनाश गुप्ता व नितिन कँवर के बीच का कोई झगड़ा भी नहीं है - यह सिर्फ नितिन कँवर की ईगो है और निजी खुन्नसबाजी है, जिसके वशीभूत होकर उन्होंने अविनाश गुप्ता से पंगा ले लिया और फिर ऐसी आग भड़क उठी कि उसकी आँच इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट तक जा पहुँची है । मामला सिर्फ यह है कि अविनाश गुप्ता की तरह नितिन कँवर भी इंटरनेशनल टैक्सेशन में काम करते हैं, और अविनाश गुप्ता से सीनियर हैं । अविनाश गुप्ता चूँकि विदेश से पढ़ाई करके आए हैं, और अपने विषय को अच्छे से जानते/समझते हैं, अच्छा बोल लेते हैं - तो उन्होंने नितिन कँवर के बाद प्रोफेशन में आने के बावजूद उनकी तुलना में लोगों के बीच अच्छी पहचान बना ली । नितिन कँवर स्पीकर के रूप में लोगों को ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाते हैं और सेमीनार आदि में होने वाले सवालों का संतोषप्रद तरीके से जबाव नहीं दे पाते हैं, तो सेमीनार आदि में नितिन कँवर की बजाए अविनाश गुप्ता को ज्यादा बुलाया जाता है । किसी भी प्रोफेशन में ऐसा होता ही है : नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता भी प्रोफेशन में बहुतों से आगे हैं, तो बहुतों से पीछे भी हैं; नितिन कँवर को लेकिन और किसी से पीछे रह जाने का मलाल नहीं हुआ, किंतु अविनाश गुप्ता से पीछे रह जाने को वह बर्दाश्त नहीं कर पाए और 'पदीय-बदमाशी' से अविनाश गुप्ता को पीछे खींचने में जुट गए ।
दरअसल दोनों चूँकि राजनीति में भी हैं, इसलिए नितिन कँवर को यह बर्दाश्त नहीं हुआ कि राजनीतिक सर्किल में लोग उनकी बजाए अविनाश गुप्ता को ज्यादा तवज्जो दें । नितिन कँवर की चुनावी सफलता ने भी उनकी 'सार्वजनिक पहचान' में कोई सुधार नहीं किया । चुनावी सफलता के मायने तो होते हैं, लेकिन सार्वजनिक पहचान के संदर्भ में वह काम नहीं आती है । चुनावी जीत की बात करें तो फूलन देवी भी सांसद का चुनाव जीती ही थीं, लेकिन उनकी जीत उनकी सार्वजनिक पहचान बदलने में कोई भूमिका नहीं निभा पाई थी । प्रोफेशन में ही देखें तो बिना चुनाव लड़े और जीते गिरीश आहुजा की जो पहचान है, उसका मुकाबला सेंट्रल काउंसिल का कोई सदस्य या इंस्टीट्यूट का कोई प्रेसीडेंट नहीं कर सकता । 'फूलनदेवी' टाइप कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स रीजनल काउंसिल के और सेंट्रल काउंसिल के चुनाव तो जीत जाते हैं; चेयरमैन और प्रेसीडेंट भी बन जाते हैं - लेकिन अपनी 'सार्वजनिक पहचान' में कोई सुधार नहीं कर पाते हैं । नितिन कँवर को जब लगा कि रीजनल काउंसिल का चुनाव वह जीते हैं, रीजनल काउंसिल में 'पॉवर ग्रुप' का सदस्य वह हैं, रीजनल काउंसिल में ट्रेजरार वह हैं - फिर भी सेमीनार आदि में उनकी बजाए अविनाश गुप्ता को ज्यादा बुलाया जा रहा है, और इंटरनेशनल टैक्सेशन विषय के स्पीकर के रूप में उनकी बजाए अविनाश गुप्ता की वाहवाही लगातार होती ही जा रही है - तो नितिन कँवर को लगा कि अविनाश गुप्ता से निपटने के लिए उन्हें ऊँगली टेढ़ी करना ही पड़ेगी । अविनाश गुप्ता से निपटने के लिए नितिन कँवर ने रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों का सहयोग लिया और अविनाश गुप्ता को स्पीकर के रूप में आमंत्रित करने वाले आयोजनों को रद्द करवाने तथा उनमें अड़चनें पैदा करने के अभियान में जुट गए । रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी सुमित गर्ग ने अविनाश गुप्ता को बता भी दिया कि 'हम' अब तुम्हें नहीं छोड़ेंगे । इस कार्रवाई को अंजाम देते हुए नितिन कँवर उस मशहूर कहावत को भूल गए, जो एक हिंदी फिल्म में एक डायलॉग के रूप में भी इस्तेमाल हुई - कि 'जो लोग खुद शीशे के घरों में रहते हैं, उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिएँ ।' नितिन कँवर ने शायद इस बात पर भी गौर नहीं किया कि अविनाश गुप्ता चुनावी राजनीति में भले ही सफल न हो पाएँ हों, लेकिन उनके द्वारा की जा रही कार्रवाई का जबाव देने लायक राजनीति जानते ही होंगे । अविनाश गुप्ता ने नितिन कँवर की टुच्ची हरकत का जो जबाव दिया - उससे नितिन कँवर ही नहीं, उनका साथ देने वाले रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी भी संकट में फँस गए हैं । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी ने इस मामले में जो दिलचस्पी ली है, उससे नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की कारस्तानी का मामला गंभीर रूप लेता हुआ नजर आ रहा है ।

Friday, June 3, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अपनी पत्नी को जोन चेयरपरसन बनवा कर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल भारी मुसीबत में फँसे

सहारनपुर । सुशील अग्रवाल - पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल अपनी पत्नी अर्चना अग्रवाल को अगले लायन वर्ष की डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में जोन चेयरपरसन बनवा कर अजीब सी भारी मुसीबत में फँस गए हैं । जब से यह बात सामने आई है कि सुशील अग्रवाल की पत्नी शिव कुमार चौधरी की डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में जोन चेयरपरसन बनी हैं, तब से कई लोग सुशील अग्रवाल से संपर्क कर उनसे अनुरोध कर रहे हैं कि वह शिव कुमार चौधरी से उनके पैसे वापस दिलवा दें । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में यह चर्चा बड़ी आम है कि शिव कुमार चौधरी ने अपने बिजनेस में कई लोगों से पैसे लिए हुए हैं, लेकिन वायदानुसार वह उन्हें न तो उस पैसे पर कोई ब्याज या लाभांश दे रहे हैं, और न ही पैसे वापस कर रहे हैं । शिव कुमार चौधरी से अपने अपने पैसे वापस पाने की कोशिश करने वाले लोगों को अर्चना अग्रवाल के जोन चेयरपरसन बनने के बाद उम्मीद बँधी है कि सुशील अग्रवाल उनके पैसे अवश्य ही वापस दिलवा देंगे । लोगों के बीच पैदा हुई इस उम्मीद ने सुशील अग्रवाल के लिए भारी मुसीबत खड़ी कर दी है । सुशील अग्रवाल ने इस अयाचित मुसीबत से यह कहते हुए पीछा छुड़ाने की कोशिश भी की है कि शिव कुमार चौधरी के बिजनेस से उनका कोई लेना देना नहीं है, और उनकी बिजनेस डीलिंग में वह कोई दखल नहीं रखते हैं; सुशील अग्रवाल ने कुछेक लोगों से यह कहते हुए नाराजगी भी व्यक्त की कि शिव कुमार चौधरी को जब पैसे दिए थे तब मुझसे पूछा था क्या ? सुशील अग्रवाल की यह कोशिशें लेकिन सफल हो नहीं रही हैं - क्योंकि लोगों के भी अपने अपने तर्क हैं ।
शिव कुमार चौधरी से अपने अपने पैसे वापस पाने की जुगत लगा रहे डिस्ट्रिक्ट के लायन सदस्यों का कहना है कि सुशील अग्रवाल यदि सिर्फ एक पूर्व गवर्नर होते, तो वह उनसे इस तरह की उम्मीद नहीं करते । उनसे उम्मीद करने का यह भी कोई कारण नहीं बनता है कि सुशील अग्रवाल पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर हैं । लेकिन उनकी पत्नी के जोन चेयरपरसन बनने से यह बात जाहिर होती है कि शिव कुमार चौधरी के साथ उनके विशेष संबंध हैं, और इस नाते से डिस्ट्रिक्ट के लायन सदस्य उनसे यह उम्मीद कर सकते हैं कि लायन सदस्यों के साथ की गईं शिव कुमार चौधरी की बेईमानी का वह संज्ञान लें और शिव कुमार चौधरी को वह इस बात इस बात के लिए राजी करें कि जो लायन सदस्य उनसे अपने पैसे वापस माँग रहे हैं, उनके पैसे वह वापस करें । यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी ने अपने लिए बहुत ऊँचे मापदण्ड निर्धारित किए हैं - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह अच्छे अच्छे काम करना चाहते हैं और लोगों के बीच भाईचारा स्थापित करने वाले काम करना चाहते हैं जिससे डिस्ट्रिक्ट का और लायनिज्म का नाम और ऊँचा हो । लोगों का कहना है कि शिव कुमार चौधरी लेकिन यदि अपने अपने पैसे माँग रहे लोगों को पैसे वापस नहीं करेंगे, तो फिर अपने इन उद्देश्यों को कैसे पा सकेंगे ? अपनी बात को तर्कसंगत बनाने के लिए लोगों ने सुशील अग्रवाल को रोटेरियन असित मित्तल का उदाहरण भी दिया है । नोएडा के असित मित्तल रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व गवर्नर हैं, उनके भी उसी तरह के झमेले रहे जैसे कि शिव कुमार चौधरी के हैं - और जिन झमेलों को न निपटाने के कारण असित मित्तल पिछले करीब दो वर्षों से जेल की हवा खा रहे हैं । असित मित्तल की इस नियति के चलते रोटरी व डिस्ट्रिक्ट में उनके 'खास' रहे लोगों को भी खासी फजीहत का सामना करना पड़ा है । लोगों का कहना है कि अपनी पत्नी को जोन चेयरपरसन बनवा कर सुशील अग्रवाल ने शिव कुमार चौधरी के साथ जिस निकटता का इज़हार किया है, उसके कारण उन्हें इस बात की फ़िक्र करना ही चाहिए कि शिव कुमार चौधरी का भी कहीं असित मित्तल जैसा हाल न हो, और वह डिस्ट्रिक्ट व अपने 'खास' लोगों के लिए बदनामी का कारण न बनें ।
अर्चना अग्रवाल का जोन चेयरपरसन बनना वास्तव में एक बड़ी घटना है । उल्लेखनीय है कि सुशील अग्रवाल करीब 26 वर्ष पहले, 1990-92 में इंटरनेशनल डायरेक्टर थे; और करीब 32 वर्ष पहले, 1983-84 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे । जाहिर है कि उनकी पत्नी के रूप में अर्चना अग्रवाल ने लायन-व्यवस्था का सारा वैभव भोगा ही है और एन्जॉय किया है । वह खुद भी लायनेस चेयरपरसन रही हैं । ऐसे में, हर किसी के लिए यह हैरानी की बात है कि अर्चना अग्रवाल को जोन चेयरपरसन बनने की आखिर क्या जरूरत थी ? शिव कुमार चौधरी तथा उनके नजदीकियों ने अर्चना अग्रवाल के जोन चेयरपरसन बनने को उनकी 'जरूरत' की बजाए सुशील अग्रवाल और शिव कुमार चौधरी के बीच निकट के संबंध के नतीजे के रूप में प्रचारित किया है । सुशील अग्रवाल की पत्नी अर्चना अग्रवाल के जोन चेयरपरसन बनने से सुशील अग्रवाल से शिव कुमार चौधरी के निकट के संबंध 'साबित' भी हुए हैं, और निस्संदेह इससे शिव कुमार चौधरी का रुतबा भी बढ़ा है - किंतु यह सारी बातें सुशील अग्रवाल के लिए मुसीबत का सबब बन गई हैं । सुशील अग्रवाल के लिए यह समझना सचमुच मुश्किल हो रहा है कि वह शिव कुमार चौधरी को कैसे इस बात के लिए राजी करें कि उन्होंने जिन लोगों से पैसे लिए हैं, और उनमें से जो लोग अपने पैसे वापस माँग रहे हैं - उनके पैसे वह तत्काल वापस करें; अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि वह भी असित मित्तल वाली दशा को प्राप्त हों !

Thursday, June 2, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में उम्मीदवार के रूप में बीएन चौधरी को 'कसने' के लिए विशाल सिन्हा ने सुधाकर रस्तोगी को मोहरा बनाया है क्या ?

लखनऊ । सुधाकर रस्तोगी की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करा कर विशाल सिन्हा ने एक तरफ तो बीएन चौधरी को 'कसने' की चाल चली है, तो साथ ही साथ अपनी राजनीति के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की है । हालाँकि अभी विशाल सिन्हा ने सुधाकर रस्तोगी की उम्मीदवारी में अपनी किसी भी तरह की भूमिका होने से इंकार किया है । किंतु किसी के लिए भी यह विश्वास करना संभव नहीं है कि विशाल सिन्हा के क्लब के सदस्य सुधाकर रस्तोगी बिना उनकी सहमति के उम्मीदवारी प्रस्तुत कर देंगे । इसीलिए हर कोई सुधाकर रस्तोगी की उम्मीदवारी को विशाल सिन्हा की राजनीतिक चाल के रूप देख/पहचान रहा है । उल्लेखनीय है कि घोषित रूप से विशाल सिन्हा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए बीएन चौधरी की उम्मीदवारी को प्रमोट किया हुआ है, और उन्हें चुनवाने/जितवाने का भरोसा दिया/दिलाया हुआ है । विशाल सिन्हा हालाँकि अभी यही दावा रहे हैं कि सुधाकर रस्तोगी की उम्मीदवारी से उनका कोई लेना-देना नहीं है, और वह सुधाकर रस्तोगी को हर्गिज हर्गिज उम्मीदवार नहीं बनने देंगे । लोगों को अपनी बात का विश्वास दिलाने के लिए विशाल सिन्हा यहाँ तक दावा कर रहे हैं कि सुधाकर रस्तोगी ने यदि अपनी उम्मीदवारी को वापस नहीं लिया, तो वह उनकी उम्मीदवारी को क्लब में पास ही नहीं होने देंगे तथा उन्हें क्लब से निकलवा देंगे । सुधाकर रस्तोगी का कहना है कि वह उम्मीदवार हैं और रहेंगे - और लोग देखेंगे कि विशाल सिन्हा ही उनकी उम्मीदवारी का झंडा लेकर आगे आगे चल रहे होंगे । यूँ तो सुधाकर रस्तोगी की बात को कोई तवज्जो नहीं देता, किंतु चूँकि वह विशाल सिन्हा के क्लब के सदस्य हैं - इसलिए उनकी बात और उनकी उम्मीदवारी को हर कोई गंभीरता से ले रहा है और विशाल सिन्हा की भूमिका पर सवाल उठा रहा है ।
विशाल सिन्हा के नजदीकियों का कहना है कि बीएन चौधरी की उम्मीदवारी की अनिश्चितता के चलते विशाल सिन्हा ने सुधाकर रस्तोगी को उम्मीदवारी के लिए तैयार किया है; लेकिन यदि बीएन चौधरी की उम्मीदवारी बनी रहती है तो वह सुधाकर रस्तोगी की उम्मीदवारी को वापस करवा देंगे । सुधाकर रस्तोगी की उम्मीदवारी के जरिए विशाल सिन्हा ने बीएन सिंह पर उम्मीदवारी बनाए रखने का दबाव बनाने की चाल भी चली है । नजदीकियों के अनुसार, विशाल सिन्हा को महसूस हो रहा है कि बीएन चौधरी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी से पीछे हट रहे हैं, और अपनी उम्मीदवारी को लेकर उतने उत्साहित नहीं दिख रहे हैं - जितने पहले थे । दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के चुनाव में गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के उम्मीदवार के रूप में अनुपम बंसल की केएस लूथरा के सामने जो चुनावी दुर्गति हुई, उसे देख कर गुरनाम सिंह व विशाल सिन्हा के भरोसे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की तैयारी कर रहे बीएन चौधरी का जोश हवा होता हुआ नजर आ रहा है । बीएन चौधरी को जानने वाले लोगों का मानना और कहना है कि बीएन चौधरी चुनावी लफड़े में फँसे बिना गवर्नर बनना चाहते हैं, और यदि वह देखेंगे कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की दौड़ एक चुनावी घमासान में बदल रही है - तो बीएन चौधरी उस दौड़ से बाहर निकल आयेंगे । केएस लूथरा की तरफ से मनोज रुहेला ने चूँकि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनावी तैयारी शुरू कर दी है, इसलिए लोगों को लग रहा है कि बीएन चौधरी की उम्मीदवारी अब ज्यादा दिन तक टिकी नहीं रहेगी । विशाल सिन्हा के नजदीकियों के अनुसार, विशाल सिन्हा को भी दरअसल यही डर सता रहा है । विशाल सिन्हा हालाँकि अपनी तरफ से बीएन चौधरी की उम्मीदवारी के गुब्बारे में हवा भरने की पूरी पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन साथ साथ वह यह भी देख रहे हैं कि गुब्बारे में हवा पूरी तरह ठहर नहीं पा रही है और बार बार निकल जा रही है । इसी बिना पर लोगों को लग रहा है कि सुधाकर रस्तोगी की उम्मीदवारी वास्तव में विशाल सिन्हा का प्लान नंबर दो है; और सुधाकर रस्तोगी दरअसल विशाल सिन्हा के वैकल्पिक उम्मीदवार हैं ।
विशाल सिन्हा को इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि उन्होंने अपने गवर्नर-वर्ष में 'अपने' उम्मीदवार को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने का बीड़ा उठाया है । ऐसा करके वास्तव में वह दो वर्ष पहले शिव कुमार गुप्ता के हाथों हुई अपनी चुनावी हार का घाव भरना चाहते हैं । विशाल सिन्हा ने अपनी उस चुनावी हार का ठीकरा केएस लूथरा के सिर यह कहते हुए फोड़ा था कि केएस लूथरा ने अपने गवर्नर पद का दुरूपयोग करते हुए शिव कुमार गुप्ता को चुनाव जितवा दिया । अपने गवर्नर-वर्ष में अपने उम्मीदवार को चुनाव जितवा कर विशाल सिन्हा अपने आरोप को सच साबित करना चाहते हैं - वह जानते हैं कि अन्यथा डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में केएस लूथरा के सामने उनकी बहुत ही किरकिरी होगी । विशाल सिन्हा के लिए चुनौती की बात यह भी है कि केएस लूथरा ही नहीं, शिव कुमार गुप्ता ने भी अपने गवर्नर-वर्ष में 'अपने' उम्मीदवार एके सिंह की जीत को संभव कर लिया । एके सिंह अब भले ही अपनी जीत के लिए गुरनाम सिंह को श्रेय दे रहे हों, और पूछने के अंदाज़ में कह रहे हों कि शिव कुमार गुप्ता ने उनके लिए किया ही क्या है - लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने देखा है और अभी उन्हें याद भी है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में यह शिव कुमार गुप्ता ही थे, जिन्होंने एके सिंह की उम्मीदवारी में वजन बनाए रखने के लिए किसी और की उम्मीदवारी को प्रोत्साहित तक नहीं होने दिया, और इसके लिए केएस लूथरा तक की नाराजगी मोल ली । शिव कुमार गुप्ता यदि ऐसा न करते और केएस लूथरा के उम्मीदवार को प्रोत्साहित करने के लिए तैयार हो जाते और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए भी चुनाव हो जाता - तो कौन दावे के साथ कह सकता है कि उसका नतीजा केएस लूथरा व अनुपम बंसल के चुनाव के नतीजे की तर्ज पर नहीं ही निकलता । एके सिंह की सफलता में निश्चित रूप से बहुत से लोगों का सहयोग है - कोई शक नहीं कि गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा का भी उनकी सफलता में महत्त्वपूर्ण किस्म का योगदान है; लेकिन उनकी सफलता में निर्णायक भूमिका निभाने का श्रेय यदि किसी को दिया जा सकता है, तो वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार गुप्ता के खाते में ही जाएगी ।
विशाल सिन्हा भी चाहते हैं कि अपने गवर्नर-वर्ष में वह 'अपने' उम्मीदवार को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने में निर्णायक भूमिका निभाएँ - ताकि वह अपने आप को केएस लूथरा और शिव कुमार गुप्ता से बड़ा नहीं, तो कम कम बराबर का नेता तो अपने आप को साबित करें । उन्हें ऐसा करना इसलिए भी जरूरी लग रहा है क्योंकि पिछले चार चुनावों से केएस लूथरा ने गुरनाम सिंह व विशाल सिन्हा की राजनीति की बैंड बजा रखी है : पहले, खुद विशाल सिन्हा चुनाव हारे; अगली बार अपनी राह सुरक्षित बनाने के लिए गुरनाम सिंह व विशाल सिन्हा को केएस लूथरा की भारी खुशामद करना पड़ी; उसके बाद केएस लूथरा ने संदीप सहगल को जितवाया; इस बार शिव कुमार गुप्ता की सुनियोजित राजनीति ने एके सिंह को सफलता दिलवाई, जबकि गुरनाम सिंह व विशाल सिन्हा के सहयोग/समर्थन के बावजूद अनुपम बंसल को केएस लूथरा से करारी किस्म की हार मिली । इस ट्रेक रिकॉर्ड को देखते हुए बीएन चौधरी यदि गुरनाम सिंह व विशाल सिन्हा के सहयोग/समर्थन पर भरोसे को लेकर आशंकित हैं, तो यह बहुत स्वाभाविक ही है । बीएन चौधरी की आशंका और आशंका के चलते पैदा हुई उनकी ढीलमढाम को देख कर विशाल सिन्हा को अपना प्लान शुरू में ही पिटता हुआ दिख रहा है । इसीलिए मदद के लिए वह सुधाकर रस्तोगी की उम्मीदवारी को ले आए हैं - जिसके जरिए एक तरफ तो वह डिस्ट्रिक्ट में लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि उनके पास उम्मीदवारों की कमी नहीं है, बीएन चौधरी ने यदि मैदान छोड़ा तो सुधाकर रस्तोगी उम्मीदवार बनेंगे; दूसरी तरफ उन्होंने बीएन चौधरी को भी चेतावनीभरा संकेत दिया है कि उम्मीदवार बने रहना है तो 'काम' शुरू करो - अन्यथा सुधाकर रस्तोगी के लिए जगह छोड़ो ।
विशाल सिन्हा की यह तरकीब बीएन चौधरी को एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय होने के लिए सचमुच प्रोत्साहित करेगी, या बीएन चौधरी तमाम लोगों की इस सोच को सही साबित करेंगे कि चुनाव की संभावना दिखने पर वह अपनी उम्मीदवारी को 'वापस' ले लेंगे - यह जल्दी ही साफ हो जायेगा ।


Wednesday, June 1, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बृज भूषण की कारगुजारियाँ रोटरी से बाहर की दुनिया में भी गुल खिला रही हैं, और वह अखबारों की सुर्खियाँ बन रहे हैं

मेरठ । बृज भूषण को रोटरी में की गईं अपनी कारस्तानियों की सजा वेस्टर्न यू पी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज में भी भुगतनी पड़ी है, जहाँ उन्हें वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड द्वारा बृज भूषण के खिलाफ की गई कार्रवाई का संज्ञान लेते हुए वेस्टर्न यू पी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष एएन सेठ ने इस बात की जाँच करने के लिए एक कमेटी का गठन किया था कि बृज भूषण के खिलाफ रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के आरोप आखिरकार कितने गंभीर हैं, और उन आरोपों के रहते हुए बृज भूषण चैम्बर के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद पर बने रहने योग्य हैं या नहीं । जाँच कमेटी में चैम्बर के सचिव आरके जैन, महेश चंद्र जैन तथा एसपी देशवाल थे; जिन्होंने अध्यक्ष एएन सेठ को सौंपी अपनी जाँच रिपोर्ट में बताया कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने बृज भूषण को जिस तरह की गतिविधियों में संलग्न पाया और जिनके कारण उनके खिलाफ कार्रवाई की, वह बहुत ही गंभीर किस्म की हैं; और ऐसे व्यक्ति के चैम्बर में रहने तथा उसमें पदाधिकारी बने रहने से चैम्बर की पहचान व प्रतिष्ठा पर नकारात्मक असर पड़ेगा । जाँच कमेटी ने सिफारिश की कि रोटरी में बृज भूषण द्वारा की गई कारगुजारियों को देखते हुए उन्हें चैम्बर के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद से तो हटा ही देना चाहिए, साथ ही चैम्बर की उनकी सदस्यता भी रद्द कर दी जानी चाहिए । जाँच कमेटी की रिपोर्ट व सिफारिश को स्वीकार करते हुए चैम्बर के अध्यक्ष एएन सेठ ने तुरंत प्रभाव से बृज भूषण को चैम्बर के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद से तो हटा ही दिया, चैम्बर की उनकी सदस्यता भी रद्द कर दी है ।
बृज भूषण के खिलाफ की गई वेस्टर्न यू पी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज की कार्रवाई की खबर को मेरठ के अखबारों ने जिस प्रमुखता से छापा, उसके चलते मेरठ क्षेत्र में यह खबर जंगल में आग की तरह तेजी से फैल गई और बृज भूषण की भारी थू थू हुई । बृज भूषण को सबसे ज्यादा फजीहत मेरठ के शिक्षा संस्थानों में झेलनी पड़ी, जहाँ कि वह अपेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च के चेयरमैन के नाते एक शिक्षाविद के रूप में अपनी पहचान व साख बनाए हुए थे । मैनेजमेंट विषय पर आलेख लिखने तथा शिक्षा संस्थाओं में लैक्चर देते रहने के कारण शिक्षा क्षेत्र में वह 'मैनेजमेंट गुरु' के रूप में पहचाने जाते रहे हैं । चैम्बर की कार्रवाई से लेकिन पोल खुली कि बृज भूषण वास्तव में किस तरह के 'मैनेजमेंट' की गुरुघंटाली करते रहे हैं । रोटरी में उनकी कारस्तानियों से लोग परिचित रहे हैं । रोटरी में पोलियो के नाम पर नेशनल पोलियोप्लस कमेटी के चेयरमैन दीपक कपूर तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर अशोक महाजन को खुश करके उन्होंने कैसी कैसी धांधलियाँ की हैं, इसे रोटरी में तो लोग खूब जानते हैं । साथी रोटेरियंस को बदनाम व परेशान करने के उद्देश्य से उनके खिलाफ बेनामी तरीके से झूठी बातें लिखने/फैलाने के काम में भी बृज भूषण को महारत हासिल रही है । हर वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को किसी न किसी तरीके से फुसला/धमका कर अपने लिए महत्वपूर्ण पद का जुगाड़ करना बृज भूषण का खास शौक व शगल रहा है । बृज भूषण हालाँकि खुशकिस्मत रहे कि तमाम धांधलियों और कारगुजारियों के बावजूद रोटरी में उनका 'सिक्का' चलता रहा - लेकिन जैसी की एक मशहूर कहावत है कि पाप का घड़ा आखिरकार एक न एक दिन फूटता ही है, तो बृज भूषण भी आखिरकार 'पकड़े' गए और रोटरी की सबसे बड़ी अथॉरिटी रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने रोटरी में की गईं उनकी कारस्तानियों के लिए उन्हें 'अपराधी' घोषित किया ।
रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में 'अपराधी' घोषित होने से बृज भूषण को यद्यपि ज्यादा असर नहीं पड़ा, क्योंकि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने उन्हें जिस तरह के 'अपराधों' में संलग्न पाया और घोषित किया - उनके उन 'अपराधों' को तो रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में खूब सुना/सुनाया जाता रहा है । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड की कार्रवाई से बृज भूषण कुछ दबाव में तो आए, लेकिन कुल मिलाकर रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में और रोटेरियंस के बीच उनकी स्थिति व हैसियत में कोई फर्क नहीं पड़ा । लेकिन रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड की कार्रवाई का संज्ञान लेकर चैम्बर में उनके खिलाफ जो कार्रवाई हुई है, उससे मेरठ क्षेत्र में उनकी भारी फजीहत हुई है । इससे एक नुकसान तो यह हुआ कि रोटरी से बाहर के लोगों के लोगों के बीच जिन लोगों को रोटरी में की जा रही उनकी कारगुजारियों की जानकारी नहीं थी, और जो समझते थे कि रोटरी में वह कोई बहुत महान महान काम रहे हैं - उनके बीच उनकी असलियत सामने आई और उनका वास्तविक चेहरा बेनकाब हुआ; दूसरा नुकसान साख व प्रतिष्ठा का हुआ : बृज भूषण जिन जिन संस्थाओं में हैं उनके पदाधिकारियों के कान खड़े हुए और वह विचार करने के लिए मजबूर हुए कि जो बृज भूषण रोटरी जैसी सेवा वाली संस्था तक में धांधलियाँ कर सकते हैं, वह बृज भूषण प्रोफेशनल संस्थाओं में क्या क्या नहीं कर गुजरेंगे ? दरअसल इसी विचार से प्रेरित होकर वेस्टर्न यू पी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने बृज भूषण को न सिर्फ वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद से हटा दिया, बल्कि चैम्बर की उनकी सदस्यता भी रद्द कर दी ।
बृज भूषण के लिए समस्या और मुसीबत की बात यह है कि रोटरी में उनकी कारस्तानियों का संज्ञान लेकर वेस्टर्न यू पी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने उनके खिलाफ जो कार्रवाई की है, वैसी ही कार्रवाई मेरठ क्लब में भी शुरू हो जाने की बातें सुनी जा रही हैं, जहाँ कि वह विशेष सचिव पद पर हैं । चैम्बर द्वारा की गई कार्रवाई की खबर सुन/जान कर मेरठ क्लब के पदाधिकारियों के बीच भी चर्चा छिड़ी है कि बृज भूषण को यदि मेरठ क्लब में विशेष सचिव के पद पर बने रहने दिया जाता है, तो इससे मेरठ क्लब की बदनामी नहीं होगी क्या ? कुछेक पदाधिकारियों ने मत व्यक्त किया है कि बृज भूषण से कहा जाए कि वह स्वयं ही मेरठ क्लब का पद व उसकी सदस्यता छोड़ दें, ताकि चैम्बर की तरह से उन्हें हटाने/निकालने की कार्रवाई न करना पड़े । समझा जाता है कि बृज भूषण ने मेरठ क्लब का पद और सदस्यता यदि स्वयं से नहीं छोड़ी, तो मेरठ क्षेत्र में अखबार पढ़ने वालों को मेरठ क्लब से बृज भूषण के निकाले जाने की खबर भी जल्दी ही पढ़ने को मिलेगी । इसे मात्र एक संयोग कहें, या विडंबना कहें, या बृज भूषण की बदकिस्मती कहें कि पिछले वर्ष तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी ने बृज भूषण को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद से हटाने/निकालने की जो कार्रवाई की थी, उसके बाद से बृज भूषण को लगातार मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है । उल्लेखनीय है कि संजीव रस्तोगी द्वारा डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद से हटाए जाने के बाद बृज भूषण ने सुनील गुप्ता पर डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने का दबाव बनाया । सुनील गुप्ता ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर तो बनाया, लेकिन इसके लिए उनसे इतने पापड़ बिलवाए, जितने बृज भूषण ने अपने रोटरी जीवन में कुल मिलाकर नहीं बेले होंगे । खासी फजीहत के बाद बृज भूषण को सुनील गुप्ता के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद मिल तो गया, लेकिन लगातार दूसरी बार वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए । पिछले वर्ष तो संजीव रस्तोगी ने उन्हें हटाया था, इस वर्ष रोटरी इंटरनेशनल ने जब सुनील गुप्ता को ही गवर्नर पद से हटा दिया - तो बृज भूषण का डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का कार्यकाल स्वतः अधूरा रह गया । उसके बाद उनके साथ जो जो हुआ है, उसकी कहानी तो फिर नई नई बात है और सभी को याद है ।
बृज भूषण के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि पिछले वर्ष संजीव रस्तोगी द्वारा डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटाए जाने के मामले को बृज भूषण यदि अपने लिए खतरे की घंटी के रूप में पहचानते तथा अपनी स्थिति का आकलन करते और सबक लेते हुए सावधान होते, तो आज वह अखबारों की सुर्खियाँ नहीं बनते । यह सोचने वाली बात है कि जिन संजीव रस्तोगी ने उन्हें खुशी व भरोसे के साथ डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था, वही संजीव रस्तोगी उन्हें हटाने के लिए आखिर क्यों मजबूर हो गए ? संजीव रस्तोगी के लिए यह फैसला करना आसान नहीं रहा होगा - क्योंकि इसमें खुद उनकी भी बदनामी होने का खतरा था; और दूसरे रोटरी के बड़े पदाधिकारियों का भी उनसे कहना था कि रोटरी वर्ष के बीच में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर को हटाने से अच्छे संकेत नहीं जायेंगे । संजीव रस्तोगी ने लेकिन बृज भूषण को हटाने में ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी, डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की भलाई देखी/पहचानी - तो अवश्य ही कोई बड़ी बात रही होगी । संजीव रस्तोगी को तो जो करना था, उन्होंने किया - लेकिन बृज भूषण को तो इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए था । वह 'मैनेजमेंट गुरु' हैं, उन्हें तो समझने की कोशिश करना चाहिए था कि उनके 'मैनेजमेंट' में आखिर गड़बड़ी कहाँ हो गई कि उन्हें उनके पद से हटा/निकाल दिया गया । वह यह समझने की कोशिश करते और अपने 'मैनेजमेंट' को दुरुस्त करते - तो हो सकता है कि आज उन्हें अपने ही शहर/क्षेत्र के अखबारों की सुर्खियाँ न बनना पड़ता ।