Wednesday, October 30, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के दीवाली मेले में अपने क्लब के लोगों के धोखे के शिकार सुधीर मंगला ने झोपड़-पट्टियों में वोट जुटाने वाले फार्मूले को अपनाया

नई दिल्ली । सुधीर मंगला अपने क्लब के पदाधिकारियों और दूसरे सदस्यों से बुरी तरह खफा हैं । इसका कारण बताते हुए उनके क्लब के कुछेक सदस्यों का ही कहना है कि सुधीर मंगला को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में खड़े होने से इंकार करके उनके क्लब के सदस्यों ने उनके साथ धोखा किया है और इस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उन्हें अकेला छोड़ दिया है । उल्लेखनीय है कि क्लब के सदस्यों की हरकत के कारण सुधीर मंगला को डिस्ट्रिक्ट में लोगों के तरह-तरह के सवालों का सामना करना पड़ा है - जिनमें प्रमुख सवाल यही रहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में जब वह अपने क्लब के सदस्यों का ही सहयोग और समर्थन नहीं जुटा पा रहे हैं, तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट के दूसरे क्लब्स का सहयोग और समर्थन भला कैसे और क्यों मिलेगा ? इस तरह के सवालों के चलते डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच सुधीर मंगला की खासी किरकिरी हो रही है । इसलिए क्लब के पदाधिकारियों और सदस्यों के प्रति उनकी नाराजगी और उनके आरोप स्वाभाविक ही जान पड़ते हैं ।
सुधीर मंगला के सामने यह स्थिति हाल ही में आयोजित हुए डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में उस समय पैदा हुई, जब वहाँ मौजूद डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने पाया कि सुधीर मंगला के क्लब से तो एक भी पदाधिकारी और या सदस्य यहाँ नहीं है । लोगों ने सुधीर मंगला से पूछा तो सुधीर मंगला ने पहले तो यह कहते हुए सवालों को टाला कि 'आ रहे हैं, रास्ते में हैं', 'मुझसे तो कहा था कि आयेंगे' आदि-इत्यादि । फिर वह एक अलग कहानी सुनाने लगे कि उनके क्लब के पदाधिकारी और सदस्य चूँकि विनोद बंसल से नाराज हैं, इसलिए उन्होंने दीवाली मेले का बहिष्कार किया है । सुधीर मंगला ने कुछेक लोगों को बताया कि विनोद बंसल ने अपनी टीम में उनके क्लब के किसी भी सदस्य को जगह नहीं दी है और इसके चलते डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में किसी सदस्य का नाम और फोटो नहीं छप सका है, इसलिए उनके क्लब के लोग विनोद बंसल से बहुत नाराज हैं । नाराजगी दरअसल इस कारण से और बढ़ी क्योंकि क्लब के कई सदस्यों के विनोद बंसल के साथ वर्षों के संबंध हैं और वह विनोद बंसल से भी पुराने रोटेरियन हैं  - विनोद बंसल ने लेकिन किसी भी बात का लिहाज नहीं रखा ।
यह कहानी सुनाने के बाद भी, लोगों के सवालों से सुधीर मंगला का लेकिन पीछा नहीं छूटा । लोगों ने सुधीर मंगला से कहा भी कि उनके क्लब के सदस्यों के विनोद बंसल से चाहें जैसी जो नाराजगी है, पर यहाँ तो उन्हें आपकी उम्मीदवारी को मजबूती देने के लिए आना था - आना चाहिए था । सुधीर मंगला इस बात का कोई जबाव नहीं दे पाये । इससे लोगों ने यही नतीजा निकाला कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत सुधीर मंगला की उम्मीदवारी को लेकर उनके अपने ही क्लब के लोगों में न तो कोई उत्साह है और न ही सहयोग व समर्थन का कोई भाव है । इस लिहाज से सुधीर मंगला की स्थिति चारों उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा ख़राब नज़र आई । क्योंकि बाकी तीनों उम्मीदवारों के क्लब से - किसी से कम तो किसी से ज्यादा - लोग डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में शिरकत करने आये हुए थे और इस तरह अपने अपने उम्मीदवार के प्रति सहयोग और समर्थन व्यक्त कर रहे थे । सुरेश भसीन के साथ उनके क्लब के दो-तीन सदस्यों को देखा/पहचाना जा रहा था; राजीव देवा के क्लब की अध्यक्षा को भी लोगों के साथ मिलते-जुलते देखा गया; रवि भाटिया के क्लब से तो पच्चीस से तीस सदस्य अपने-अपने परिवारों के साथ वहाँ मौजूद थे । जाहिर है कि रवि भाटिया के क्लब के पदाधिकारियों व सदस्यों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रवि भाटिया की उम्मीदवारी को बहुत गंभीरता से लिया हुआ है और अपने-अपने तरीके से उन्होंने रवि भाटिया की उम्मीदवारी का प्रमोशन किया ।
उम्मीदवारी का 'प्रमोशन' सुधीर मंगला ने भी किया - क्लब के साथी रोटेरियंस उनके साथ भले ही न खड़े हों, लेकिन उनके दोनों बेटे बड़ी मेहनत से लोगों को शराब बाँटने में लगे हुए थे । इस तरह - वोट जुटाने के लिए शराब बाँटने के जिस फार्मूले को झोपड़-पट्टियों में इस्तेमाल करते/होते सुना जाता है, सुधीर मंगला ने उसे रोटरी में इस्तेमाल करने का दाँव चला है । सुधीर मंगला को लगता है कि उनके क्लब के लोग भले ही उनके काम न आ रहे हों, लेकिन शराब बाँटने की उनकी तरकीब अवश्य ही उनके काम आयेगी । रोटरी की चुनावी प्रक्रिया में उम्मीदवार लोग फैलोशिप की आड़ में शराब पिलाते ही हैं, और इसे लोगों के बीच स्वीकार्यता प्राप्त है । लेकिन सुधीर मंगला ने शराब पिलाने के काम को जिस तरह से अंजाम दिया, उसे देख कर कई लोगों को गंभीर ऐतराज हुए और वे वहाँ कहते हुए सुने गए कि सुधीर मंगला ने रोटेरियंस को झोपड़-पट्टी वाला समझ लिया है क्या जो शराब के जरिये उनके वोट खरीदने की कोशिश कर रहे हैं । कई वरिष्ठ रोटेरियंस का भी कहना रहा कि चुनावी प्रक्रिया में फैलोशिप के नाम पर खाना-'पीना' होता ही है, और इससे संबंध मजबूत व विश्वासपूर्ण बनते हैं; लेकिन सुधीर मंगला ने जो किया वह 'आउट ऑफ प्रोपोर्शन' है और इसलिए उसमें फूहड़ता दिखी । वोट पाने के लिए शराब पिलाने के काम में अपने बेटों को इस्तेमाल करने के लिए तो सुधीर मंगला की आलोचना उन लोगों ने भी की, जो उनके साथ समझे जाते हैं ।
सुधीर मंगला के नजदीकियों का इस पर हालाँकि कहना यह भी है कि सुधीर मंगला को जब अपने क्लब के सदस्यों से सहयोग नहीं मिल रहा है, तो वह अपने बेटों की मदद ही लेंगे । इस तरह की बातों की प्रतिक्रिया में ही सुधीर मंगला ने अपने क्लब के पदाधिकारियों तथा दूसरे सदस्यों के प्रति अपनी नाराजगी प्रकट की है और अपने क्लब के सदस्यों पर धोखा देने का और उन्हें अकेला छोड़ देने का आरोप लगाया है । सुधीर मंगला के क्लब के लोगों ने क्यों उन्हें अकेला छोड़ दिया है और क्यों उनके साथ धोखा कर रहे हैं - यह तो वही जानें; सुधीर मंगला ने लेकिन चुनाव जीतने के लिए झोपड़-पट्टियों वाला फार्मूला अपना लिया है । सुधीर मंगला को विश्वास है कि उनकी उम्मीदवारी के प्रमोशन में उनके क्लब के लोग भले ही उनके साथ सहयोग न करें, लेकिन झोपड़-पट्टियों वाला फार्मूला जरूर उनके काम आयेगा ।

Monday, October 28, 2013

एमसीआई में प्रतिनिधित्व को लेकर हो रहे चुनाव में डॉक्टर विनय अग्रवाल के खिलाफ चलाये जा रहे डॉक्टर पंकज सिंघल के प्रचार अभियान ने प्रोफेशन को कलंकित किया हुआ है

नई दिल्ली । एमसीआई (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) में दिल्ली प्रदेश काउंसिल का प्रतिनिधित्व करने को लेकर छिड़ी चुनावी लड़ाई में सड़क छाप राजनीति के सारे नज़ारे और तमाशे देखे जा सकते हैं । एमसी आई में दिल्ली प्रदेश काउंसिल का प्रतिनिधित्व करने को लेकर जो दो उम्मीदवार - डॉक्टर विनय अग्रवाल और डॉक्टर पंकज सिंघल चुनावी मैदान में हैं; उन्हें ऐसी-ऐसी बातों को लेकर निशाना बनाया जा रहा है जिनका प्रोफेशन और प्रोफेशन की बुनियादी जरूरतों से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं है । एमसीआई में दिल्ली प्रदेश काउंसिल का प्रतिनिधि करेगा क्या, कैसे करेगा और कुछ कर भी सकेगा या नहीं - इसे लेकर कोई बात नहीं हो रही है । बात हो रही है एक दूसरे की बेईमानियों की । जिम्मेदार डॉक्टर्स का कहना है कि चुनाव में जो दो उम्मीदवार हैं, उन पर किसी भी तरह के कोई आरोप यदि रहे भी हैं तो अब मजबूरी यह है कि इन्हीं दोनों में से किसी एक को चुनना है इसलिए समझने की कोशिश यह होनी चाहिए की इनमें से कौन एमसीआई में दिल्ली प्रदेश काउंसिल का प्रभावी तरीके से प्रतिनिधित्व कर पायेगा । लेकिन यही समझने की कोशिश नहीं हो रही है और पूरे चुनावी अभियान को गटर छाप बना दिया गया है ।
इसकी शुरुआत करने का श्रेय डॉक्टर पंकज सिंघल को है । डॉक्टर पंकज सिंघल पिछले काफी समय से अलग-अलग मुद्दों पर अलग-अलग तरीके से डॉक्टर विनय अग्रवाल को घेरने की कोशिश करते रहे हैं । डॉक्टर पंकज सिंघल की अभी तक की कोशिशों को डॉक्टर विनय अग्रवाल के साथ उनकी व्यक्तिगत किस्म की रंजिश या खुन्नस के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है । लेकिन एमसीआई में प्रतिनिधित्व की चुनावी लड़ाई में डॉक्टर पंकज सिंघल ने जिस तरह डॉक्टर विनय अग्रवाल के खिलाफ ताल ठोकी है, उसे देख कर लगता है कि डॉक्टर पंकज सिंघल को मेडिकल प्रोफेशन में डॉक्टर विनय अग्रवाल के दूसरे विरोधियों से खाद-पानी न सिर्फ मिल रहा है, बल्कि वह डॉक्टर विनय अग्रवाल के विरोधियों के हाथों इस्तेमाल भी हो रहे हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य डॉक्टर विनय अग्रवाल को बदनाम करना भर है ।
दरअसल, एमसीआई में प्रतिनिधित्व को लेकर उत्सुकता दिखा रहे दिल्ली प्रदेश काउंसिल के तमाम सूरमाओं ने जिस तरह डॉक्टर विनय अग्रवाल के सामने समर्पण कर दिया, उसे देख कर डॉक्टर विनय अग्रवाल के विरोधियों का तगड़ा झटका लगा । डॉक्टर विनय अग्रवाल दिल्ली प्रदेश में एकमात्र नेता होने का तमगा न प्राप्त कर लें और लोगों के बीच ऐसा संदेश न जाये कि डॉक्टर विनय अग्रवाल का सामना करने का दम किसी में है ही नहीं - इसके लिए आनन-फानन में डॉक्टर पंकज सिंघल की उम्मीदवारी सामने लाई गई । उल्लेखनीय है कि दिल्ली प्रदेश में चलने वाली डॉक्टर्स की राजनीति में कई गुट सक्रिय हैं; इन गुटों की तरफ से एमसीआई में प्रतिनिधित्व को लेकर जो भी नाम चर्चा में थे उनमें डॉक्टर पंकज सिंघल का नाम कहीं नहीं था । दिल्ली में डॉक्टर्स की चुनावी राजनीति में डॉक्टर पंकज सिंघल की ऐसी हैसियत कभी दिखी भी नहीं कि उन्हें एमसीआई में प्रतिनिधित्व करने को लेकर होने वाले चुनाव के संभावित खिलाड़ी के रूप में देखा/पहचाना भी जाये । डॉक्टर पंकज सिंघल ने पीछे आईएमए की ईस्ट दिल्ली ब्रांच का जो चुनाव लड़ा था, उसमें उन्हें अपने प्रतिद्धंद्धी को मिले करीब ढाई हज़ार वोटों के मुकाबले मात्र 90 के करीब वोट मिले थे । डॉक्टर्स की सबसे छोटी चुनावी लड़ाई में इस गति को प्राप्त होने वाले डॉक्टर पंकज सिंघल से कौन उम्मीद कर सकता है कि वह उन डॉक्टर विनय अग्रवाल को चुनावी टक्कर दे सकेंगे जिनके सामने डॉक्टर्स की चुनावी राजनीति के सचमुच के सूरमा पहले ही समर्पण कर चुके हैं ?
दिल्ली के डॉक्टर्स की चुनावी राजनीति में डॉक्टर विनय अग्रवाल के घनघोर विरोधियों को भी यह उम्मीद नहीं है कि एमसीआई में प्रतिनिधित्व को लेकर जो चुनावी मुकाबला हो रहा है, उसमें डॉक्टर विनय अग्रवाल को किसी भी तरह से मात दी जा सकेगी । डॉक्टर विनय अग्रवाल की उम्मीदवारी को जिस तरह से चारों तरफ से समर्थन सिर्फ मिल ही नहीं रहा है, बल्कि बाकायदा घोषित हो रहा है; तमाम प्रमुख डॉक्टर्स और उनके संगठन डॉक्टर विनय अग्रवाल के समर्थन में सार्वजनिक रूप से बयान दे रहे हैं उससे हर कोई यह मान/समझ रहा है कि यह चुनाव एकतरफा चुनाव है और डॉक्टर विनय अग्रवाल की भारी जीत होगी । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि पीछे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष पद के चुनाव में डॉक्टर पंकज सिंघल ने डॉक्टर विनय अग्रवाल के प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार का खुला समर्थन किया था और डॉक्टर विनय अग्रवाल को हरवाने की हर संभव कोशिश की थी, लेकिन डॉक्टर विनय अग्रवाल भारी बहुमत से उक्त चुनाव जीते थे । इस तथ्य को यहाँ याद करने की प्रासंगिकता सिर्फ यह समझने के लिए है कि डॉक्टर पंकज सिंघल कभी भी डॉक्टर विनय अग्रवाल के लिए कोई चुनौती पैदा नहीं कर सके हैं ।
ऐसे में, हर किसी के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि डॉक्टर पंकज सिंघल ने डॉक्टर विनय अग्रवाल के खिलाफ नफरत भरा जो अभियान चला रखा है, उसके पीछे उद्देश्य वास्तव में क्या है ? और इस अभियान के लिए डॉक्टर पंकज सिंघल को खाद-पानी कहाँ से मिल रहा है ?
दिल्ली के डॉक्टर्स की चुनावी राजनीति के कई खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि डॉक्टर विनय अग्रवाल की चुनावी सफलताएँ किसी को भी चमत्कृत तो कर सकती हैं, किंतुं उनकी यह सफलताएँ उनकी लोकप्रियता का कम और चुनावों को मैनेज करने की उनकी सामर्थ्य का ज्यादा सुबूत हैं । दूसरे चुनावी नेताओं में चूँकि यह सामर्थ्य नहीं है इसलिए चुनावी मुकाबले में पिछड़ जाने के बावजूद वह डॉक्टर विनय अग्रवाल को मन से स्वीकार नहीं कर पाते हैं और डॉक्टर विनय अग्रवाल के प्रति एक नकारात्मक भाव उनके मन में बन जाता है । डॉक्टर विनय अग्रवाल की हर सफलता उक्त नकारात्मक भाव को और मजबूत करती जाती है । तमाम सफलताओं के बावजूद कई डॉक्टर्स डॉक्टर विनय अग्रवाल को इसलिए भी ऐक्सेप्ट नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें लगता है कि डॉक्टर विनय अग्रवाल प्रोफेशनली बहुत क्वालीफाई नहीं हैं । डॉक्टर विनय अग्रवाल मात्र एमबीबीएस हैं । प्रोफेशन आज जिस स्थिति में है, उसमें मात्र एमबीबीएस की कोई वकत नहीं है । इसीलिये लोग मानते और कहते हैं कि डॉक्टर विनय अग्रवाल 'डॉक्टर' नहीं हैं, उन्होंने डॉक्टरी की सिर्फ डिग्री ली हुई है और डॉक्टरी के प्रोफेशन में वह एक बिजनेसमैन हैं । इसीलिये प्रोफेशन की तमाम संस्थाओं में डॉक्टर विनय अग्रवाल की गहरी घुसपैठ और उनकी लगातार कामयाबियों ने उनके विरोधियों की संख्या में भी इजाफ़ा किया है ।
डॉक्टर विनय अग्रवाल के विरोधियों का दुखड़ा लेकिन यह है कि वह उनका कुछ बिगाड़ भी नहीं पाते हैं । इस कारण से उनके बीच जो निराशा पैदा होते है, वह उन्हें डॉक्टर पंकज सिंघल जैसे लोगों के नजदीक ले जाती है । डॉक्टर विनय अग्रवाल के विरोधी यह अच्छी तरह जानते/समझते हैं कि पंकज सिंघल - जो खुद लज्जित करने जैसे आरोपों में घिरे हैं और कुछेक मामलों में 'सजा' तक पा चुके हैं - के जरिये वह डॉक्टर विनय अग्रवाल को कोई चुनावी चुनौती तो नहीं दे पायेंगे, लेकिन डॉक्टर पंकज सिंघल के जरिये वह डॉक्टर विनय अग्रवाल को परेशान और बदनाम जरूर कर सकेंगे । एमसीआई में प्रतिनिधित्व को लेकर चुनाव की स्थिति इसी उद्देश्य से जबर्दस्ती ऐन मौके पर बनाई गई; और इसी 'उद्देश्य' को प्राप्त करने के नजरिये से डॉक्टर पंकज सिंघल का चुनाव प्रचार प्रेरित है । डॉक्टर पंकज सिंघल के प्रचार की टोन डॉक्टर विनय अग्रवाल को कितना परेशान और बदनाम कर पायेगी, यह तो डॉक्टर विनय अग्रवाल जानें - दूसरे लोग जो जान रहे हैं, वह यह कि डॉक्टर पंकज सिंघल के प्रचार ने प्रोफेशन को जरूर बदनाम और कलंकित किया हुआ है ।

Sunday, October 27, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3261 में अरुण गुप्ता और राकेश दवे के बीच होते दिख रहे सीधे मुकाबले की संभावना ने वर्ष 2015-16 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को दिलचस्प बनाया

जबलपुर/रायपुर । बलदीप सिंह मैनी की उम्मीदवारी के ढीले पड़ने से वर्ष 2015-16 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाला चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है । उल्लेखनीय है कि यह चुनाव पिछले रोटरी वर्ष में ही होना था, लेकिन बलदीप सिंह मैनी की उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले उनके क्लब ने कोर्ट-कचहरी करके मामले को ऐसा फँसाया कि फिर चुनाव स्थगित ही कर देना पड़ा । लंबी जद्दो-जहद के बावजूद बलदीप सिंह मैनी और उनके क्लब - रोटरी क्लब जबलपुर को कुछ भी हासिल नहीं हुआ; पर उन्होंने जो किया उसके चलते डिस्ट्रिक्ट को इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी नहीं मिला । पिछले वर्ष न हो पाया चुनाव अब जब इस वर्ष होने जा रहा है तो बलदीप सिंह मैनी अपनी उम्मीदवारी को लेकर ढीले-से लग रहे हैं, जिस कारण यह चुनाव अब जबलपुर के अरुण गुप्ता और रायपुर के राकेश दवे के बीच सीधे मुकाबले में बदल गया दिख रहा है ।
वर्ष 2015-16 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव के बदले समीकरण ने अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को यह दावा करने का बल दिया है कि बलदीप सिंह मैनी के ढीले पड़ने से अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी को फायदा होगा । यह दावा करने के पीछे उनका तर्क है कि जबलपुर और मध्य प्रदेश के जो क्लब बलदीप सिंह मैनी के साथ जा सकते थे, वह अब अरुण गुप्ता का समर्थन करेंगे और इससे अरुण गुप्ता का समर्थन आधार बढ़ेगा । राकेश दवे की उम्मीदवारी के समर्थक लेकिन इस तर्क से सहमत नहीं है और बलदीप सिंह मैनी के रवैये को राकेश दवे के लिए अनुकूल मान रहे हैं । उनका तर्क है कि बलदीप सिंह मैनी अभी भी उम्मीदवार हैं, इसलिए उनके समर्थन में जो क्लब थे वह तो उनके साथ रहेंगे ही - जिसमें उनका खुद का क्लब भी शामिल है; इसलिए अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक जिस फायदे की उम्मीद कर रहे हैं, उसका तो कोई सवाल ही नहीं है । बलदीप सिंह मैनी के रवैये में राकेश दवे की उम्मीदवारी के समर्थकों को अपने लिए फायदा इसलिए भी दिख रहा है क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि बलदीप सिंह मैनी को सक्रिय न पाकर उनके समर्थक अरुण गुप्ता की तरफ जाने की बजाये राकेश दवे की तरफ जायेंगे ।
अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को लगता है कि इस बात का आभास है कि बलदीप सिंह मैनी के ढीले पड़ने से अरुण गुप्ता को फायदा अपने आप नहीं मिलेगा, बल्कि फायदा जुटाने के लिए उन्हें प्रयास करना पड़ेगा । अरुण गुप्ता और उनके समर्थकों ने इस बाबत प्रयास शुरू भी कर दिया है । अपने प्रयास के तहत उन्होंने एक तरफ तो जबलपुर और मध्य प्रदेश में अपने लिए समर्थन संगठित करने का अभियान शुरू किया है तो दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट के बाकी लोगों को भावनात्मक अपील से प्रभावित करने का दाँव चला है । इस दाँव से उन्होंने राकेश दवे का 'शिकार' करने का लक्ष्य निर्धारित किया है । अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि वर्ष 2015-16 में मध्य प्रदेश के क्लब्स को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में तय हुई सर्वसम्मत व्यवस्था के तहत यह उनका अधिकार है । उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश, ओडिसा और छत्तीसगढ़ क्षेत्र में फैले डिस्ट्रिक्ट में सर्वसम्मत रूप से यह तय हुआ समझौता है कि तीनों प्रदेशों के क्लब्स को बारी-बारी से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में प्रतिनिधित्व मिलेगा । इस समझौते के तहत वर्ष 2015-16 में मध्य प्रदेश के क्लब्स का नंबर है । उक्त समझौते का हवाला देकर अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने राकेश दवे को घेरने की तैयारी की है ।
राकेश दवे की उम्मीदवारी के समर्थकों ने इस 'हमले' से अपना बचाव करने की तैयारी के तहत अपना जबाव लगता है कि पहले से बना के रखा हुआ है । उनका कहना है कि यह सच है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में तीनों प्रदेशों के क्लब्स को बारी-बारी से प्रतिनिधित्व देने को लेकर एक अलिखित समझौता है - लेकिन यह समझौता दरअसल एक सुविधा है, कोई अधिकार नहीं है । यह सुविधा देने/लेने के पीछे उद्देश्य यह रहा है कि हर प्रदेश के क्लब्स अपने-अपने यहाँ नेतृत्व को विकसित करें और सक्रिय करें । राकेश दवे की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि वर्ष 2015-16 में मध्य प्रदेश के क्लब्स का प्रतिनिधित्व करने की इच्छा रखने वाले वाले लोगों ने न तो नेतृत्व विकसित करने को लेकर कोई काम किया और न कोई सक्रियता ही दिखाई । उन्होंने इसका सुबूत यह दिया कि मध्य प्रदेश से दो लोगों ने अपनी अपनी उम्मीदवारी तो प्रस्तुत कर दी, लेकिन उनके क्षेत्र के क्लब्स के ड्यूज समय से जमा हों - इसके लिए उनमें से किसी ने भी कोई प्रयास नहीं किया । यही कारण रहा कि जबलपुर के 12 क्लब्स में से कुल 6 के ही ड्यूज समय से जमा हो सके । यह हाल तब है जब जबलपुर से दो लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की दौड़ में शामिल हुए । राकेश दवे की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना/पूछना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने की इच्छा और कोशिश करने वाले लोगों को यह भी बताना चाहिए कि नेतृत्व करने की उनकी ऐसी कैसी कोशिश है कि इनके अपने शहर के आधे क्लब्स के ड्यूज ही समय से जमा नहीं हो सके ? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ड्यूज यदि समय से जमा होते तो इन्हें ही तो फायदा होता ।
राकेश दवे की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में प्रतिनिधित्व को लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में टकराव पहले भी होता रहा है और दोनों ही तरफ से दूसरे की बारी पर दावा करने के प्रयास होते रहे हैं, इसलिए राकेश दवे यदि मध्य प्रदेश की बारी पर दावा कर रहे हैं, तो इससे उनके खिलाफ लोगों के बीच कोई माहौल नहीं बनता है । क्योंकि लोग यह भी देखेंगे कि राकेश दवे ने ऐसा तब किया जब मध्य प्रदेश से कोई भी उम्मीदवार बनने को तैयार होता हुआ नहीं दिख रहा था ।
अरुण गुप्ता और राकेश दवे के बीच होते दिख रहे चुनावी मुकाबले में दोनों तरफ से जिस तरह की तैयारी और जिस तरह के तर्क देखे/सुने जा रहे हैं उससे वर्ष 2015-16 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाला चुनावी मुकाबला रोमांचपूर्ण होता जान पड़ रहा है । यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुकाबले में और कौन-कौन से मोड़ आते हैं ।

Friday, October 25, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी अभियान में रवि भाटिया के मुकाबले पिछड़ते जाने के लिए सुधीर मंगला ने सुरेश भसीन को जिम्मेदार ठहराना शुरू किया

नई दिल्ली । सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के समर्थकों को सुरेश भसीन की सक्रियता ने बुरी तरह निराश किया हुआ है और उन्हें लगने लगा है कि सुरेश भसीन की उम्मीदवारी के रहते उनके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए रवि भाटिया की उम्मीदवारी से मुकाबला करना मुश्किल हो रहा है । सक्रियता के लिहाज से सुधीर मंगला निश्चित रूप से दूसरे उम्मीदवारों से इक्कीस दिख रहे हैं, लेकिन लोग जब इस बात पर विचार करना शुरू करते हैं कि उनका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कैसा हो, तो सुधीर मंगला के नंबर कम हो जाते हैं । सुधीर मंगला के व्यवहार और रवैये के प्रति लोगों को जैसी जो शिकायतें हैं, वह तो हैं हीं - रही सही कसर सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के झंडाबरदार विनय कुमार अग्रवाल ने पूरी कर दी है । विनय कुमार अग्रवाल की गाली-गलौच पूर्ण बातों के कारण सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के प्रति नकारात्मक भावना ही पैदा हुई है । सुधीर मंगला के समर्थकों का ही कहना है कि इस कारण से सुधीर मंगला के साथ आ सकने वाले कई लोगों का झुकाव सुरेश भसीन की तरफ होता जा रहा है । सुरेश भसीन ने अपनी सक्रियता के बल पर अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में अच्छी सफलता प्राप्त की है । अलग-अलग कारणों से जो लोग रवि भाटिया के साथ नहीं जा सकते हैं, और इस कारण जो सुधीर मंगला के साथ जाते दिख रहे थे - वह सुरेश भसीन के समर्थन में आते दिख रहे हैं । सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच इसी कारण से चिंता और निराशा पैदा हुई है ।
सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के समर्थकों ने दावा किया था कि वह सुरेश भसीन की उम्मीदवारी को वापस करवा देंगे; सुरेश भसीन अपनी उम्मीदवारी के साथ लेकिन चुनावी मैदान में न सिर्फ डटे हुए हैं, बल्कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन भी जुटाते जा रहे हैं । सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के समर्थक हालाँकि अभी भी उम्मीद बनाये हुए हैं और तर्क दे रहे हैं कि सुरेश भसीन खुद तो रवि भाटिया का मुकाबला कर नहीं पायेंगे, सुधीर मंगला के लिए भी हालात को मुश्किल बना रहे हैं । सुरेश भसीन के समर्थकों की तरफ से उन्हें लेकिन इसका सटीक जबाव मिल रहा है, जिसमें उन्हें सुनने को मिल रहा है कि सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के समर्थक नेता यदि सचमुच रवि भाटिया की खिलाफत करना चाहते हैं तो इसके लिए उन्हें सुधीर मंगला को छोड़ कर सुरेश भसीन की उम्मीदवारी के साथ जुड़ना/जुटना चाहिए ।
सुधीर मंगला के लिए बड़ी मुसीबत दरअसल अपने समर्थक नेताओं के कारण से ही पैदा हुई है । उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में जो नेता समझे जाते हैं वह उनके प्रति सकारात्मक रुख के कारण नहीं हैं, बल्कि अपनी नकारात्मक सोच के कारण उनके साथ हैं । जो लोग अलग-अलग कारणों से रवि भाटिया का विरोध करना चाहते हैं, वह मजबूरी में सुधीर मंगला के साथ खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं । सुधीर मंगला के और उनके घोषित समर्थक विनय कुमार अग्रवाल के रवैये के कारण वह लेकिन सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के साथ ज्यादा देर तक खड़े भी नहीं रह पा रहे हैं । कोई सुनियोजित और एकाग्र सोच व तैयारी न होने के कारण वह वास्तव में आपस में ही लड़-मर रहे हैं ।
सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को जेके गौड़ और उनके साथी नेताओं का समर्थन तो चाहिए - लेकिन अपनी बातों में वह जेके गौड़ और उनके साथी नेताओं को बदनाम करने का काम कर रहे हैं । जैसे, सुधीर मंगला और उनके कुछेक समर्थक नेता यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि जेके गौड़ के पक्ष में बेईमानी न की गई होती तो सुधीर मंगला तो पिछले वर्ष ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुन लिए गए होते । सुधीर मंगला और उनके कुछेक समर्थक पिछले वर्ष हुई राजनीति का आकलन जिस तरह कर रहे हैं उसमें जेके गौड़ और उनके नेताओं को बेईमान बताया जा रहा है : कहा/बताया जा रहा है कि पिछले वर्ष काम तो जेके गौड़ का ज्यादा था, लेकिन लोगों के बीच समर्थन सुधीर मंगला के प्रति था । सुधीर मंगला के प्रति लोगों के बीच समर्थन होने का कारण यह बताया जा रहे है कि जेके गौड़ को लोग गवर्नर-मैटेरियल नहीं मान रहे थे, जिसका फायदा सुधीर मंगला को मिल रहा था । सुधीर मंगला और उनके समर्थकों का दावा है कि जेके गौड़ के पक्ष में तब के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल ने यदि बेईमानी न की होती तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सुधीर मंगला ही चुने गए होते ।
सुधीर मंगला और उनके समर्थक इस तरह की बातें करके अपने लिए समर्थन घटाने का ही काम कर रहे हैं । उनकी इन बातों को सुनकर जेके गौड़ की गुडबुक में आने और या बने रहने की इच्छा रखने वाले लोग स्वतः ही सुधीर मंगला से दूर होंगे, और वह हो भी रहे हैं । सुधीर मंगला और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक जिस तरह के तर्क दे रहे हैं उनमें जिस तरह के विरोधाभास दिख रहे हैं उससे भी साफ हो रहा है कि वह सच्चाई और तथ्यों को लेकर पूरी तरह भ्रमित हैं । पिछले वर्ष को लेकर उनका मानना और कहना है कि पिछले वर्ष उम्मीदवार के रूप में काम जेके गौड़ का ज्यादा था, लेकिन फिर भी लोगों के बीच समर्थन सुधीर मंगला के लिए ज्यादा था । इस तरह, वह खुद मानते हैं कि ज्यादा काम का कोई खास मतलब नहीं होता है और अपेक्षाकृत कम काम करने वाला भी लोगों के बीच अच्छा समर्थन जुटा सकता है । लेकिन इस वर्ष की बात करते हुए वह बिलकुल उल्टा तर्क देते हैं और दावा करते हैं कि चूँकि रवि भाटिया का काम उनके मुकाबले कम है इसलिए लोगों के बीच उनका समर्थन ज्यादा है । यह उलटबयानी क्यों ? पिछले वर्ष कम काम के बावजूद यदि सुधीर मंगला को ज्यादा काम करने वाले जेके गौड़ के मुकाबले अच्छा समर्थन मिल रहा था तो इस वर्ष ज्यादा काम करने वाले सुधीर मंगला को अच्छा समर्थन मिलने के प्रति आश्वस्त कैसे हुआ जा सकता है ? सुधीर मंगला और उनके समर्थकों का मानना और कहना है कि पिछले वर्ष कम काम के बावजूद सुधीर मंगला को लोगों का समर्थन इसलिए था क्योंकि गवर्नर-मैटेरियल के संदर्भ में जेके गौड़ के मुकाबले सुधीर मंगला को ज्यादा नंबर मिल रहे थे । यही तर्क इस वर्ष लेकिन सुधीर मंगला के खिलाफ जा रहा है । गवर्नर-मैटेरियल के संदर्भ में रवि भाटिया को सुधीर मंगला से ज्यादा नंबर मिल रहे हैं । जिन लोगों को यह शिकायत है भी कि रवि भाटिया ने उनसे देर में संपर्क किया और या वह उनसे कम मिले - उन लोगों का भी मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लायक तो रवि भाटिया ही हैं ।
रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में किये गए कामकाज के संदर्भ में बात हो या आपसी व्यवहार की बात हो - सुधीर मंगला पर रवि भाटिया ही भारी पड़ते/दिखते हैं । एक उदाहरण से इसे समझा/पहचाना जा सकता है : जिस वर्ष डॉक्टर सुब्रमणियन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार बने उसी वर्ष उनके क्लब के रवि भाटिया भी उम्मीदवार होना चाहते थे, क्लब में लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन को समर्थन मिला । रवि भाटिया को इससे दुःख और निराशा तो हुई, लेकिन क्लब के फैसले को उन्होंने एक सच्चे खिलाड़ी की तरह स्वीकार किया और डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की वह जैसी जो मदद कर सकते थे उन्होंने की । ऐसी ही परिस्थितियों में लेकिन जब सुधीर मंगला पड़े तो उनका आचरण बिलकुल उलट था । सुधीर मंगला ने पहली बार अपनी उम्मीदवारी के लिए अचानक से तब दावा ठोका, जब उनके ही क्लब के विनोद बंसल अपनी उम्मीदवारी को लेकर काफी काम कर चुके थे । सुधीर मंगला ने जिद पकड़ी कि विनोद बंसल ने काम चाहें जितना कर लिया हो, लेकिन उम्मीदवार वह बनेंगे । इसे लेकर उन्होंने अपने ही क्लब में संघर्ष की स्थिति पैदा की । क्लब में उम्मीदवारी को लेकर विनोद बंसल के साथ हुए संघर्ष में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा - लेकिन फिर भी उन्होंने चुप बैठने की जरूरत नहीं समझी और क्लब में ऐसा बखेड़ा खड़ा किया कि क्लब में फूट हुई और सुधीर मंगला भी क्लब और अपने वर्षों पुराने साथियों को छोड़ गए ।
सुधीर मंगला ने अपने इसी तरह के व्यवहार और रवैये से अपने दोस्तों और अपने साथियों को अपने से दूर कर लिया है । उनके चुनाव अभियान पर भी इसका असर है । कई लोगों को - जिन्हें पहले सुधीर मंगला के साथ समझा/पहचाना जाता रहा था, अब उनसे अलग और या रवि भाटिया व सुरेश भसीन के साथ देखा/पहचाना जा रहा है । सुधीर मंगला और उनके समर्थक दावा तो करते हैं कि कई नेता उनके साथ हैं लेकिन 'वे' कई नेता उनके लिए कुछ करते हुए दिखते तो नहीं हैं; कुछेक नेता तो ऐसे हैं जिनके खुद के क्लब के ड्यूज का झगड़ा पड़ा हुआ है और यही साफ नहीं है कि चुनाव में उनके खुद के क्लब की कोई भागीदारी होगी भी या नहीं । इन्हीं नेताओं में से कुछ का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों में सुधीर मंगला और उनके घोषित समर्थक विनय कुमार अग्रवाल के प्रति जो नकार का भाव है, उसे देख/पहचान कर ही उन्होंने सुधीर मंगला के साथ दिखना बंद कर दिया है । सुधीर मंगला और उनके समर्थकों ने अपनी कमजोरी का ठीकरा सुरेश भसीन के सर फोड़ना शुरू कर दिया है । उनका कहना है कि सुरेश भसीन की उम्मीदवारी उनका खेल ख़राब कर रही है । मजे की बात यह है कि सुरेश भसीन के समर्थक भी ऐसी ही बात कह रहे हैं । उनका कहना है कि सुधीर मंगला की उम्मीदवारी हट जाये तो वह रवि भाटिया को अच्छी चुनौती दे सकेंगे । रवि भाटिया के मुकाबले पर आने के लिए सुधीर मंगला और सुरेश भसीन के बीच जो लड़ाई छिड़ी है, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है ।

Wednesday, October 23, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में दीपक बाबू के लिए दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने की राकेश सिंघल ने जो चाल सोची है, उसे अमल में लाना उनके लिए संभव होगा क्या

मुरादाबाद । दिवाकर अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी होड़ से बाहर करने की षड़यंत्रपूर्ण आहट ने डिस्ट्रिक्ट 3100 में चुनावी माहौल को खासा गर्मा दिया है । इस षड्यंत्र को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की शह और समर्थन मिलने की ख़बरों ने गर्मी के तापमान को और बढ़ाने का काम किया है ।  उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय को इस वर्ष होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए दो आवेदन प्राप्त हुए हैं - एक रोटरी क्लब मुरादाबाद हैरिटेज के दिवाकर अग्रवाल का और दूसरा रोटरी क्लब मुरादाबाद मिडटाउन के दीपक बाबू का । इन दोनों उम्मीदवारों के नामांकन दस्तावेजों की जाँच होनी है और उन्हें स्वीकार या अस्वीकार करने का फैसला होना है । यह काम एक औपचारिकता भर होता है, इसीलिए नामांकन की तारिख के गुजरते ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह चर्चा स्थापित हो गई कि इस बार का चुनाव दिवाकर अग्रवाल और दीपक बाबू के बीच होगा । इन दोनों के बीच मुकाबले की रणभेरी भी बज गई और दोनों की तरफ से सेना भी सजने लगी । लेकिन अचानक से पहले फुसफुसाहट के रूप में और फिर तथ्यात्मक रूप से यह चर्चा गर्म होने लगी कि दीपक बाबू के चुने जाने को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दिवाकर अग्रवाल को चुनावी मुकाबले से बाहर कर दिए जाने की तैयारी की जा रही है ।
इस तैयारी को चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट टीम के प्रभावी सदस्यों द्धारा अंजाम देते हुए देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए इस तैयारी में राकेश सिंघल की मिलीभगत की चर्चा को बल मिला । कुछेक लोगों का कहना है कि यह षड्यंत्र राकेश सिंघल के दिमाग की उपज है, जो डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चे को जुटाने की जरूरत के चलते पैदा हुई है; तो अन्य कुछेक लोगों का कहना है कि यह राकेश सिंघल के नजदीकी ऐसे लोगों का आयोजित किया गया षड्यंत्र है जो दीपक बाबू के खास हैं और इस वर्ष दीपक बाबू को किसी भी तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवा देना चाहते हैं । राकेश सिंघल के कुछेक अन्य नजदीकियों का कहना लेकिन यह है कि राकेश सिंघल इस बात को जान/समझ रहे हैं कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करना आसान नहीं होगा और इसके चलते जो लफड़ा पैदा होगा उसके कारण उन्हें सिर्फ बदनामी ही मिलेगी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी ही किरकिरी होगी । राकेश सिंघल पर लेकिन अपनी टीम के कुछेक प्रमुख सदस्यों का दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने को लेकर जो दबाव है उससे निपट पाना भी उनके लिए आसान नहीं है ।
राकेश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट टीम के कुछेक जिन प्रमुख सदस्यों ने दीपक बाबू को इस बार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने का बीड़ा उठाया है, उन्होंने दरअसल यह भाँप/समझ लिया है कि दिवाकर अग्रवाल से मुकाबला करते हुए तो दीपक बाबू को चुनाव नहीं जितवाया जा सकेगा । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उम्मीदवार के रूप में दिवाकर अग्रवाल और दीपक बाबू की जो सक्रियता रही है उसके नतीजे के रूप में बाजी दिवाकर अग्रवाल के हाथ में जाती दिख रही है । मेरठ क्षेत्र के क्लब्स में दिवाकर अग्रवाल को जो एकतरफा समर्थन मिलता नजर आ रहा है, उसने दीपक बाबू और उनके समर्थकों के लिए उम्मीद बिलकुल तोड़ दी है । मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद क्षेत्र में भी दीपक बाबू के लिए ऐसा कोई समर्थन नहीं दिख रहा है जिससे मेरठ में हो रहे नुकसान की भरपाई की जा सके । ऐसे में दीपक बाबू के समर्थकों को एक ही उपाय समझ में आ रहा है और वह उपाय यह कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को ही ख़त्म कर दिया जाये ताकि न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी - यानि जब दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी ही नहीं रहेगी तो दीपक बाबू को कोई मुकाबला ही नहीं करना पड़ेगा; और तब दीपक बाबू आराम से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जायेंगे ।
दीपक बाबू के इन समर्थकों को लगता है कि वे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल पर दबाव बना कर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करवा लेंगे । दीपक बाबू के इन समर्थकों का दावा है कि इलेक्शन कमेटी के जो तीन सदस्य हैं उनमें दो - विष्णु सरन भार्गव और कृष्ण गोपाल अग्रवाल का समर्थन तो वह दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने के लिए जुटा लेंगे और उसके बाद इलेक्शन कमेटी के तीसरे सदस्य योगेश मोहन गुप्ता यदि समर्थन नहीं करेंगे तो वह अल्पमत में रहेंगे और उनके विरोध का कोई मतलब नहीं होगा । यह बात दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने की तैयारी में जुटे लोगों ने इसलिए कही है क्योंकि योगेश मोहन गुप्ता सार्वजनिक रूप से घोषणा कर चुके हैं कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने का कोई कारण है ही नहीं ।
दिवाकर अग्रवाल के नामांकन को निरस्त करने की तैयारी कर रहे लोगों ने तर्क यह दिया है कि इस वर्ष की डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में दिवाकर अग्रवाल का नाम और पता/परिचय प्रकाशित हुआ है, जो चुनाव के लिए बने नियमों का उल्लंघन है और इस आधार पर दिवाकर अग्रवाल का नामांकन रद्द कर दिया जाना चाहिए । इस मुद्दे पर दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों का कहना है कि असिस्टेंट गवर्नर प्रोजेक्ट को-ऑर्डीनेटर का जो पद दिवाकर अग्रवाल को ऑफर किया गया था, उसे दिवाकर अग्रवाल ने 30 जून से पहले ही छोड़ दिया था । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में उनका जो नाम और पता/परिचय प्रकाशित हुआ है वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और या डायरेक्टरी तैयार करने वाले लोगों की गलती है; उनकी गलती की सजा दिवाकर अग्रवाल को भला क्यों मिलनी चाहिए ?
इसके अलावा, डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में नाम और पता/परिचय प्रकाशित होने की ही बात है तो वह तो दीपक बाबू का भी प्रकाशित हुआ है - दीपक बाबू का नाम और पता/परिचय तो विज्ञापन के रूप में प्रकाशित हुआ है जो प्रचार करने की श्रेणी में आता है, रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार जिसकी पूरी तरह से मनाही है । दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों का कहना है कि इस आधार पर नामांकन तो दीपक बाबू का निरस्त होना चाहिए । दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों का कहना है कि लेकिन वह दीपक बाबू की उम्मीदवारी को निरस्त करने की मांग नहीं कर रहे हैं; वह खुले चुनावी मुकाबले के लिए तैयार हैं और विश्वास करते हैं कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों को फैसला करने देना चाहिए ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के लिए जाहिर है कि फैसला करना आसान नहीं होगा । उनकी चिंता इस बात को लेकर भी है कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को मनमाने तरीके से निरस्त करने के फैसले को रोटरी के बड़े नेताओं ने यदि समर्थन नहीं दिया तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी तो बहुत बदनामी होगी । चुनावी मुकाबले के नजरिये से डिस्ट्रिक्ट में दीपक बाबू की बजाये यदि दिवाकर अग्रवाल का पलड़ा भारी दिख रहा है तो फिर डिस्ट्रिक्ट में ही दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने के फैसले पर बबाल हो जायेगा और उसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल की ही फजीहत होगी । जाहिर है कि दीपक बाबू को जबर्दस्ती और हेराफेरी से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने की कोशिश की राकेश सिंघल को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है और उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि उनकी कोशिश सफल हो ही जाये । इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा दीपक बाबू के लिए राकेश सिंघल और उनकी टीम के सदस्यों ने जो चाल सोची है, उसे वह अमल में ला भी पाते हैं या नहीं ?

Tuesday, October 22, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट काउंसलर बना कर भी उनकी गंदी हरकतों से संजय खन्ना क्या बचे रह सकेंगे ?

नई दिल्ली । संजय खन्ना ने अपने गवर्नर-काल के प्रमुख पदों की घोषणा करते हुए मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट काउंसलर बनाने का ऐलान किया तो दूसरों को तो छोड़िये, खुद मुकेश अरनेजा तक को बड़ी हैरानी हुई । संजय खन्ना के चुनाव में उनकी मदद करने वाले रोटेरियंस को लेकिन संजय खन्ना के इस फैसले ने बुरी तरह निराश किया । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जब संजय खन्ना चुनावी संघर्ष में थे, तब मुकेश अरनेजा ने उन्हें हरवाने की हर संभव कोशिश की थी । याद रखने की, या महत्व की बात यह नहीं है कि मुकेश अरनेजा ने संजय खन्ना की उम्मीदवारी के खिलाफ काम किया था - कोई भी चुनाव होता है तो लोग 'इस' तरफ या 'उस' तरफ होते ही हैं; और अच्छी बात यही मानी/समझी जाती है कि जीतने वाला इस बात को ज्यादा दिन तक याद न रखे कि कौन-कौन उसके खिलाफ था । इसलिए संजय खन्ना अपने गवर्नर-काल के लिए पदों का बँटवारा करते समय यदि इस बात को भूल रहे हैं कि किस किस ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन या विरोध किया था, तो इसे उनके बड़प्पन और उनकी महानता के रूप में ही देखा जाना चाहिए ।
मुकेश अरनेजा का मामला लेकिन अलग है । जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि याद करने/रखने की बात यह नहीं है कि मुकेश अरनेजा ने संजय खन्ना की उम्मीदवारी का विरोध किया था; संजय खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थकों को लेकिन यह बहुत अच्छी तरह से याद है कि संजय खन्ना को हरवाने के लिए मुकेश अरनेजा ने हद दर्जे के घटियापन और नीचता के स्तर का काम किया था । चुनाव में हर कोई किसी 'एक तरफ' होता ही है - यह बहुत स्वाभाविक है और हर किसी का लोकतांत्रिक अधिकार भी है; मुकेश अरनेजा लेकिन इस स्वाभाविक से अपने अधिकार को जिस धौंस और धमक के साथ इस्तेमाल करते हैं उसके कारण ही रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में उन्हें खूब बदनामी मिली है । रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति को लेकर विवाद और झगड़े पहले भी रहे/हुए हैं; मुकेश अरनेजा को लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को गटर-छाप बना देने का श्रेय है । संजय खन्ना को चुनाव में हरवाने के लिए मुकेश अरनेजा ने गटर-छाप हरकतों का जैसे एक नया रिकॉर्ड ही बना डाला था । मुकेश अरनेजा की उस समय की हरकतें लोगों को चूँकि खूब याद हैं, इसीलिए उन्हें संजय खन्ना द्धारा अपने कार्य-काल के लिए डिस्ट्रिक्ट काउंसलर बनाये जाने का फैसला करते देख लोगों को घोर आश्चर्य हुआ है । खुद मुकेश अरनेजा को भी आश्चर्य हुआ और अपने इस आश्चर्य को उन्होंने कई लोगों के सामने अभिव्यक्त भी किया । दरअसल, मुकेश अरनेजा को भी इस बात का अहसास तो होगा ही कि संजय खन्ना की उम्मीदवारी के साथ उन्होंने किस तरह की घटिया राजनीति की थी । मुकेश अरनेजा के लिए तो यह सचमुच अचरज की ही बात हुई कि संजय खन्ना उनकी घटिया किस्म की हरकतों को भी भूल और माफ़ कर सकते हैं !
संजय खन्ना के इस फैसले में कई लोगों ने संजय खन्ना की सदाशयता और समन्वयवादी सोच को व्यवहारिक रूप लेते हुए देखा है । उनका मानना और कहना है कि संजय खन्ना चूँकि एक बड़ी सोच के व्यक्ति हैं, इसलिए वह इस बात को याद करना/रखना नहीं चाहते हैं कि मुकेश अरनेजा ने उनके साथ क्या किया था; वह सभी लोगों को साथ लेकर चलना चाहते हैं और अपने गवर्नर-काल को प्रभावी बनाने के लिए सभी को - सज्जनों को भी और दुष्टों को भी - अपने साथ रखना चाहते हैं और इसीलिये उन्होंने मुकेश अरनेजा को भी अपनी टीम में प्रमुख जगह दी है । लेकिन कई अन्य लोगों को लगता है कि संजय खन्ना ने डर की वजह से मुकेश अरनेजा को काउंसलर का पद दिया है । कई लोगों को लगता है कि संजय खन्ना ने जाना/समझा कि मुकेश अरनेजा को उन्होंने यदि कोई पद नहीं दिया तो मुकेश अरनेजा बदला लेने के लिए अपनी गंदी चालों से उन्हें परेशान करेगा/रखेगा और नुकसान पहुँचायेगा - जैसा कि उसने अमित जैन के साथ किया और विनोद बंसल के साथ कर रहा है । लोगों के अनुसार, मुकेश अरनेजा को काउंसलर बना कर संजय खन्ना ने उम्मीद की है कि उन्हें मुकेश अरनेजा की गंदी हरकतों का शिकार नहीं होना पड़ेगा ।
मुकेश अरनेजा को काउंसलर बनाने के संजय खन्ना के फैसले पर लोगों को हैरानी इसलिए भी हुई है, क्योंकि उन्हें लगता है कि संजय खन्ना ने चाहे जिस भी कारण से यह फैसला लिया हो - इसका कोई सुफल संजय खन्ना को नहीं ही मिलने वाला है । वह असंतोषी किस्म के प्राणी हैं और अपनी हरकतों से बाज न आने की जैसे कसम खाये हुए हैं । अमित जैन ने तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था, लेकिन फिर भी उन्होंने अमित जैन को इतना तंग किया कि अमित जैन उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटाने को मजबूर हुए और फिर उसके बाद तो मुकेश अरनेजा ने शर्मसार कर देने वाली हरकतों को अंजाम दिया । विनोद बंसल के साथ तो मुकेश अरनेजा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता की चौकड़ी के सदस्य हैं, लेकिन फिर भी विनोद बंसल को उनकी कारस्तानियों का शिकार होना पड़ रहा है । लोगों के आश्चर्य का कारण यही है कि ऐसे में संजय खन्ना को क्यों और कैसे यह उम्मीद बनी है कि मुकेश अरनेजा को साथ में लेकर वह मुकेश अरनेजा की कारस्तानियों से बच सकेंगे ?
मुकेश अरनेजा ने जिस तरह खुशी-खुशी संजय खन्ना के ऑफर को स्वीकार कर लिया, उसे देख कर भी लोगों को कम हैरानी नहीं हुई है । लोगों का कहना है कि संजय खन्ना ने तो उन्हें पद का ऑफर देकर अपनी सदाशयता और अपने बड़प्पन का परिचय दिया है, किंतु मुकेश अरनेजा ने पद को स्वीकार करके अपने 'छोटे' होने का और पदों का लालची होने का ही एक बार फिर सुबूत दिया है । मुकेश अरनेजा के साथियों तक का कहना है कि मुकेश अरनेजा को जब इस बात का अहसास है कि उन्होंने संजय खन्ना के चुने जाने में हर संभव तरीके से रोड़े अटकाने का ही काम किया था, और उसे भी निहायत घटिया तरीके से किया था - तो उन्हें संजय खन्ना के ऑफर को स्वीकार करते हुए कुछ तो शर्म दिखानी चाहिए थी और उनके ऑफर को विनम्रता के साथ अस्वीकार कर देना चाहिए था । इससे उनकी कुछ तो इज्ज़त बनती । मुकेश अरनेजा को लेकिन इज्ज़त से ज्यादा पद की परवाह रहती है - इसीलिये उन्होंने संजय खन्ना के ऑफर को स्वीकार करने में जरा भी देर नहीं लगाई ।

Monday, October 21, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में दीपक टुटेजा का जन्मदिन मनवा कर ओंकार सिंह रेणु के शुभचिंतकों ने विक्रम शर्मा को अपने खेमे के नेताओं के बीच बदनाम करने की चाल चली है क्या

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा ने अपने क्लब के सदस्यों के साथ मिल कर दीपक टुटेजा का जन्मदिन क्या मनाया, डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को जैसे साँप सूँघ गया है । विक्रम शर्मा इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे हैं; और जिन नेताओं के भरोसे वह यह तैयारी कर रहे हैं उनके लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक टुटेजा दुश्मन नंबर वन हैं । ऐसे में, विक्रम शर्मा द्धारा अपने क्लब के सदस्यों के साथ दीपक टुटेजा के जन्मदिन को समारोह पूर्वक मनाये जाने की खबर ने सभी को हैरान किया है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के बाद विक्रम शर्मा ने विरोधी खेमे के नेताओं के साथ मिलना-जुलना शुरू किया तो इसे एक बहुत स्वाभाविक तरीके से लिया गया । कोई भी उम्मीदवार सभी लोगों से मिलेगा-जुलेगा ही - इसलिए विरोधी खेमे के नेताओं से विक्रम शर्मा के मिलने-जुलने पर उनके खेमे के नेताओं ने कोई आपत्ति नहीं की । लेकिन विरोधी खेमे के एक प्रमुख नेता दीपक टुटेजा का जन्मदिन मनाना - और तब मनाना, जबकि विक्रम शर्मा के प्रमुख सलाहकार अजय बुद्धराज ने दीपक टुटेजा को दुश्मन नंबर एक घोषित किया हुआ हो; किसी को भी हजम नहीं हो रहा है । चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का यह मानना तो है कि विक्रम शर्मा ने दीपक टुटेजा का जन्मदिन मनाया है तो इसके लिए उन्होंने अपने खेमे के प्रमुख लोगों से अनुमति तो ले ही ली होगी; लेकिन हर किसी के लिए यह बात पहेली बनी हुई है कि विक्रम शर्मा को दीपक टुटेजा का जन्मदिन मनाने की अनुमति देने के पीछे उनके खेमे के नेताओं की चाल आखिर है क्या ?
इस बारे में लेकिन जितने मुँह, उतनी बातें हैं । विक्रम शर्मा के नजदीकियों का कहना है कि विक्रम शर्मा के जरिये दीपक टुटेजा का जन्मदिन मनवा कर दीपक टुटेजा को फुसलाने और अपनी तरफ करने का दाँव चला गया है । यह दाँव चलने/चलवाने वाले लोग भी हालाँकि जानते/समझते हैं कि इस तरह की कार्रवाईयों से दीपक टुटेजा को फुसलाना आसान नहीं होगा; लेकिन फिर भी उन्होंने यह दाँव चला/चलवाया है तो इसके पीछे उनकी सोच यह है कि इस कार्रवाई से दीपक टुटेजा को फुसलाया भले न जा सके, लेकिन उनके और विजय शिरोहा के बीच झगड़ा जरूर पैदा किया जा सकेगा । दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा के बीच 'पैदा हुए' झगड़े में अपने लिए मौका देख रहे विरोधी खेमे के नेताओं का विश्वास है कि तब इन दोनों में से कोई एक उनके साथ आने के लिए मजबूर होगा - और तब उनका राजनीतिक वनवास दूर हो जायेगा । विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के बीच यह विश्वास इसलिए और बढ़ा/मजबूत हुआ है, क्योंकि वे देख/जान रहे हैं कि सत्ता खेमे में आरके शाह की उम्मीदवारी को लेकर बहुत भरोसा नहीं बन पा रहा है । उम्मीदवारी के लिहाज से आरके शाह को कमजोर आँकते हुए विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को लगता है कि यही समय है जबकि वह सत्ता खेमे की एकता को छिन्न-भिन्न कर सकते हैं । विक्रम शर्मा द्धारा दीपक टुटेजा का जन्मदिन मनाये जाने के पीछे सत्ता खेमे की एकता को ख़त्म करने की कोशिश को देखा/पहचाना तो जा रहा है, लेकिन उस मूल सवाल का जबाव तो इसमें भी नहीं मिला है कि इस काम के लिए उन दीपक टुटेजा को 'हीरो' क्यों बनाया गया - जिन दीपक टुटेजा को विक्रम शर्मा के प्रमुख सलाहकार अजय बुद्धराज ने दुश्मन नंबर एक घोषित किया हुआ है ।
विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के एक बड़े समर्थक नेता ने हालाँकि इस प्रकरण को यह कहते/बताते हुए ज्यादा तवज्जो देने लायक मानने से इंकार किया कि विक्रम शर्मा ने तो अन्य पूर्व गवर्नर्स का भी जन्मदिन मनाया है; बल्कि दूसरे पूर्व गवर्नर्स का जन्मदिन तो उन्होंने ज्यादा तैयारी के साथ और ज्यादा बड़े स्तर पर मनाया है; दीपक टुटेजा का जन्मदिन तो विक्रम शर्मा ने साधारण तरीके से ही मनाया है । विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के एक अन्य समर्थक नेता का कहना है कि विक्रम शर्मा द्धारा दीपक टुटेजा का जन्मदिन आयोजित करवा कर विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के एक समर्थक ने दरअसल अजय बुद्धराज को नीचा दिखाने और अपमानित करने का काम किया है । इन समर्थक नेता का कहना है कि विक्रम शर्मा के साथ समस्या यह हुई है कि कई नेता उनके सलाहकार हो गए हैं और सभी अपने-अपने राजनीतिक हित साधने के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे हैं । किसी को यह बात पसंद नहीं आ रही है कि अजय बुद्धराज ने स्वतः ही विक्रम शर्मा के प्रमुख सलाहकार का 'पद' संभाल लिया है; तो किसी का दुःख यह है कि खेमे की तरफ से उम्मीदवार ओंकार सिंह रेणु को बनना चाहिए था, विक्रम शर्मा क्यों हो गए ? इसी तर्ज पर, कुछेक लोगों को लगता है कि दीपक टुटेजा का जन्मदिन मनवा कर ओंकार सिंह रेणु के शुभचिंतकों ने विक्रम शर्मा को अपने खेमे के नेताओं के बीच बदनाम करने की चाल चली है जिससे कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी खतरे में पड़े और ओंकार सिंह रेणु का काम बने ।
विक्रम शर्मा द्धारा दीपक टुटेजा का जन्मदिन मनवा कर विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने चाहें जो भी राजनीतिक हित साधने का उपक्रम किया हो, उसका नतीजा तो बाद में देखने को मिलेगा - लेकिन अभी जो दिख रहा है वह यह कि इस कार्रवाई से उनके बीच आपस में ही एक-दूसरे को लेकर शक/संदेह पैदा हो गया है; और इस स्थिति ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को खासा दिलचस्प बना दिया है ।

Saturday, October 19, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में सीओएल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को अचानक से वापस लेकर बृज भूषण अग्रवाल ने योगेश मोहन गुप्ता की मुश्किल बढ़ाई

मेरठ । बृज भूषण अग्रवाल ने एक नाटकीय घटनाक्रम में सीओएल के लिए प्रस्तुत की गई अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने की घोषणा करके डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प मोड़ पर ला खड़ा कर दिया है । बृज भूषण अग्रवाल ने जिस अचानक तरीके से अपनी उम्मीदवारी को वापस लिया है, उसे लेकर तरह-तरह की बातें सुनी/कही जा रही हैं । कुछ लोगों को लगता है कि सीओएल के लिए योगेश मोहन गुप्ता ने जिस तरह की तैयारी दिखाई उसे देख/आँक कर बृज भूषण अग्रवाल डर गए और उन्होंने समझ लिया कि चुनाव हारने से अच्छा यह होगा कि वह चुनाव से बाहर ही हो जाएँ । कुछेक अन्य लोगों का कहना लेकिन यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी के पाला बदल कर योगेश मोहन गुप्ता के साथ खड़े हो जाने की खबर मिलने के बाद बृज भूषण अग्रवाल के लिए कहीं कोई उम्मीद नहीं बची, तो फिर अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने में ही उन्हें अपनी भलाई दिखी । उल्लेखनीय है कि संजीव रस्तोगी पहले बृज भूषण अग्रवाल की उम्मीदवारी के साथ सिर्फ थे भर ही नहीं, बल्कि बृज भूषण अग्रवाल की उम्मीदवारी को हवा देते हुए भी 'दिख' रहे थे । हाल ही में, लेकिन पता नहीं योगेश मोहन गुप्ता ने उन्हें क्या घुट्टी पिलाई कि संजीव रस्तोगी मेरठ के रोटेरियंस की कोर कमेटी में लॉटरी द्धारा हुए फैसले को स्वीकारने की वकालत करने लगे । जबकि अभी हाल के दिनों तक यही संजीव रस्तोगी उक्त फैसले को धता बता कर बृज भूषण अग्रवाल की उम्मीदवारी को हवा दे रहे थे और इस कारण से उनके और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सुनील गुप्ता के साथ तनातनी की बातें सुनाई देने लगी थीं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी अपने गवर्नर-काल के महत्वपूर्ण पदों को बाँटने के जरिये बृज भूषण अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए राजनीतिक बिसात बिछा रहे थे - और ऐसा करते हुए वह दरअसल योगेश मोहन गुप्ता के लिए समस्याएँ खड़ी कर रहे थे । संजीव रस्तोगी का योगेश मोहन गुप्ता के साथ कुछ पुराना बैर है - जिसे दो वर्ष पहले, संजीव रस्तोगी की उम्मीदवारी का योगेश मोहन गुप्ता द्धारा किये गए विरोध से और मजबूती मिली । बृज भूषण अग्रवाल की सीओएल के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी में संजीव रस्तोगी को योगेश मोहन गुप्ता से निपटने का मौका दिखा तो उन्होंने तेवर कस लिए । संजीव रस्तोगी ने तेवर जरूर कस लिए और बृज भूषण अग्रवाल के समर्थन में लोगों को जुटाने की तैयारी भी की, लेकिन उनकी तैयारी उन्हें और बृज भूषण अग्रवाल को कोई खास नतीजा देती हुई नहीं दिखी । इसी बीच योगेश मोहन गुप्ता ने अपना दाँव चला । योगेश मोहन गुप्ता मानते और कहते हैं कि वह डिस्ट्रिक्ट में हरेक की औकात जानते और पहचानते हैं, इसलिए किसी को भी अपने पक्ष में करने में उन्हें ज्यादा समय नहीं लगता । संजीव रस्तोगी भी तभी तक बृज भूषण अग्रवाल की उम्मीदवारी को हवा देते हुए दिखे, जब तक कि योगेश मोहन गुप्ता उनसे नहीं मिले । हाल ही में, एक शाम जब योगेश मोहन गुप्ता ने संजीव रस्तोगी के दरवाजे पर दस्तक दी, तो संजीव रस्तोगी ने उनके साथ आने में और बृज भूषण अग्रवाल की उम्मीदवारी से हाथ खींचने में देर नहीं लगाई ।
सीओएल की उम्मीदवारी को लेकर पर्दे के पीछे जो खेल हुआ उसे बृज भूषण अग्रवाल द्धारा इन पंक्तियों के लेखक से कहे गए उन शब्दों के जरिये समझा/पहचाना जा सकता है, जिसमें उन्होंने बताया कि उनके और योगेश मोहन गुप्ता के बीच हुए समझौते के बाद उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है । उनके और योगेश मोहन गुप्ता के बीच क्या समझौता हुआ है - इसे लेकर बृज भूषण अग्रवाल ने तो कुछ नहीं बताया; लेकिन समझौते की बातचीत की टेबल पर मौजूद एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि योगेश मोहन गुप्ता ने बृज भूषण अग्रवाल को आश्वस्त किया है कि अगली बार सीओएल के लिए वह बृज भूषण अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे । योगेश मोहन गुप्ता से यह आश्वासन मिलने के बाद ही बृज भूषण अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने का फैसला किया ।
बृज भूषण अग्रवाल और योगेश मोहन गुप्ता के बीच हुए इस समझौते ने - और इस समझौते को कराने में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सुनील गुप्ता की भूमिका ने दूसरे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को भड़का दिया है । उनका कहना है कि रोटरी के पदों की बंदरबाँट बृज भूषण अग्रवाल और योगेश मोहन गुप्ता को कैसे और क्यों करने दी जा सकती है ? पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के आलावा, दूसरे कई लोगों का भी मानना और कहना है कि बृज भूषण अग्रवाल और योगेश मोहन गुप्ता चूँकि सीओएल में क्रमशः दो बार और एक बार जा चुके हैं, इसलिए अब दूसरे लोगों को मौका मिलना चाहिये । किस को मौका मिले - इसे चाहें वरिष्टता के आधार पर और या लॉटरी जैसे किसी तरीके से तय कर लिया जाये । अधिकतर लोगों का मानना और कहना है कि योगेश मोहन गुप्ता को पदों की ऐसी भूख है कि वह उक्त तर्क को मान कर अपनी उम्मीदवारी छोड़ेंगे नहीं - लेकिन कुछेक अन्य लोगों का तर्क है कि कौन विश्वास करता था कि बृज भूषण अग्रवाल बीच रास्ते में अचानक से अपनी उम्मीदवारी को छोड़ देंगे ? इस तर्क के भरोसे उनका कहना है कि जिस तरह से बृज भूषण अग्रवाल अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने के लिए मजबूर हुए हैं, उसी तरह से योगेश मोहन गुप्ता को भी अपनी उम्मीदवारी छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है ।
लाख टके का सवाल लेकिन यही है कि योगेश मोहन गुप्ता को कौन और कैसे अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के लिए मजबूर कर सकेगा ? यह बात सभी मानते और कहते हैं कि केवल बातें बनाकर और अच्छे-अच्छे तर्क देकर योगेश मोहन गुप्ता की उम्मीदवारी को वापस नहीं कराया जा सकेगा । इसके लिए तो उनके सामने कड़ी चुनौती प्रस्तुत करनी पड़ेगी और उन्हें इस बात का अहसास कराना पड़ेगा कि पदों की उनकी भूख को लोगों का समर्थन नहीं मिलेगा । योगेश मोहन गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच माहौल बना सकने वाले पूर्व गवर्नर को ही लोगों का समर्थन मिल सकेगा । बृज भूषण अग्रवाल की उम्मीदवारी के वापस होने से कुछेक लोगों को भले ही लगता हो कि योगेश मोहन गुप्ता की राह आसान हो गई है, लेकिन कई एक लोगों का मानना और कहना है कि बृज भूषण अग्रवाल के हटने से योगेश मोहन गुप्ता के लिए मामला ख़राब ज्यादा हो गया है । दरअसल बृज भूषण अग्रवाल का विरोध ज्यादा था - उनकी उम्मीदवारी के रहते उनके विरोधी योगेश मोहन गुप्ता को नापसंद करने के बावजूद उनके साथ खड़े होने के लिए मजबूर होते । लेकिन बृज भूषण अग्रवाल के हटने के बाद अब ऐसी कोई मजबूरी नहीं रही है । विरोध का जो दबाव पहले बृज भूषण अग्रवाल के ऊपर था, वह दबाव अब योगेश मोहन गुप्ता के ऊपर आ गया है । यह देखना दिलचस्प होगा कि कोई पूर्व गवर्नर अपनी सक्रियता से इस दबाव से योगेश मोहन गुप्ता को 'दबा' पाता है; या फिर योगेश मोहन गुप्ता पदों की अपनी भूख को शांत करने के लिए लोगों का समर्थन जुगाड़ ही लेंगे ।

Saturday, October 12, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में सीओएल के लिए बृज भूषण और योगेश मोहन गुप्ता के बीच छिड़ी लड़ाई में ललित मोहन गुप्ता और वागीश स्वरूप ने अपने लिए मौका देखा

मेरठ । योगेश मोहन गुप्ता ने सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने के साथ-साथ ही जिस तरह से अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अभियान शुरू कर दिया है, उससे डिस्ट्रिक्ट 3100 की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा हो गई है । योगेश मोहन गुप्ता चूँकि मानते और कहते हैं कि वह चुनाव में यदि खड़े हुए हैं तो सिर्फ लड़ने के लिए नहीं बल्कि 'जीतने' के लिए खड़े हुए हैं - इसलिए वह हर हथकंडा आजमाना अपना अधिकार और कर्तव्य समझते हैं । योगेश मोहन गुप्ता ने चूँकि इसी तर्ज पर सीओएल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अभियान शुरू किया है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा होना स्वाभाविक भी है । इस गर्मी का तापमान तब और बढ़ा जब मुरादाबाद के दौरे में योगेश मोहन गुप्ता के साथ ऐसे लोगों को देखा गया जो संजीव रस्तोगी के नजदीकी समझे जाते हैं । संजीव रस्तोगी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हैं और सीओएल की राजनीति में बृज भूषण अग्रवाल के समर्थन में समझे जाते हैं । उल्लेखनीय है कि सीओएल के लिए इस बार बृज भूषण अग्रवाल को शुरू से ही मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, किंतु मेरठ से एक उम्मीदवार लाने के नाम पर जो कसरत हुई उसने बृज भूषण अग्रवाल के लिए हालात को मुश्किल बना दिया है ।
दरअसल, सीओएल के लिए योगेश मोहन गुप्ता ने इस बार - लगातार दूसरी बार जब एक बार फिर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की सुगबुगाहट दिखाई तो मेरठ को 'एक' करने/रखने वाले लोगों ने लाटरी के जरिये बृज भूषण अग्रवाल और योगेश मोहन गुप्ता में से किसी एक की उम्मीदवारी तय करने का प्रस्ताव रखा । सभी की सहमति के बाद लाटरी खुली तो बाजी योगेश मोहन गुप्ता के हाथ लगी । बृज भूषण अग्रवाल ने लेकिन इस फैसले को स्वीकार करने से इंकार कर दिया । बृज भूषण अग्रवाल चूँकि दो बार सीओएल में जा चुके हैं, इसलिए कई लोग इस बार फिर प्रस्तुत होने वाली उनकी उम्मीदवारी के विरोध में कमर कस रहे थे । लाटरी से निकले फैसले को स्वीकार करने से इंकार करके बृज भूषण अग्रवाल ने अपने विरोधियों की संख्या को बढ़ाने का ही काम किया है । बृज भूषण अग्रवाल और उनके नजदीकियों को लेकिन इस विरोध की परवाह नहीं है । उन्हें अपनी राजनीतिक ताकत और अपने रणनीतिक कौशल पर भरोसा है । दूसरे लोगों को भी लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी का समर्थन उन्हें ताकत दे रहा है, जिसके भरोसे वह मेरठ में बनी कोर-टीम के फैसले को भी न मानने का दम दिखा रहे हैं । लाटरी से निकले फैसले ने योगश मोहन गुप्ता की उम्मीदवारी को यदि ताकत दी है, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव रस्तोगी के रवैये ने उनकी ताकत के गुब्बारे की हवा भी कम की हुई है ।
योगेश मोहन गुप्ता ने इसीलिये मुरादाबाद के दौरे में सुनियोजित तरीके से ऐसे लोगों को अपने साथ रखा जो संजीव रस्तोगी के नजदीक समझे जाते हैं । इस तरीके से उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को एक तरफ तो यह दिखाने/बताने की कोशिश की है कि संजीव रस्तोगी उस तरह से बृज भूषण अग्रवाल के साथ नहीं हैं जैसे कि बृज भूषण अग्रवाल और उनके लोग बता/जता रहे हैं और दूसरी तरफ उन्होंने यह संदेश देने का काम किया है कि संजीव रस्तोगी के नजदीकियों को अपनी तरफ कर लेना उनके लिए मुश्किल नहीं होगा । योगेश मोहन गुप्ता की इस चाल के सामने आने के बाद बृज भूषण अग्रवाल और संजीव रस्तोगी की तरफ से जो सफाईयाँ आईं हैं उसने ही दरअसल गर्मी का अहसास कराया है ।
सीओएल की चुनावी लड़ाई में मेरठ को बँटा देख कर ललित मोहन गुप्ता को बल मिला है और इसी बल के चलते उन्होंने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है । उनका सीधा सा तर्क है कि बृज भूषण अग्रवाल दो बार और योगेश मोहन गुप्ता एक बार चूँकि सीओएल में रह चुके हैं इसलिए अब डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों को मौका मिलना चाहिए । उल्लेखनीय है कि ललित मोहन गुप्ता ने सीओएल के पिछले चुनाव में भी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, लेकिन एक बड़ी दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो जाने के कारण उनकी उम्मीदवारी खुद-ब-खुद ही समाप्त हो गई थी । इस बार, ललित मोहन गुप्ता जिस तर्क के साथ अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट कर रहे हैं वह तर्क तो लोगों के बीच अपनी स्वीकार्यता बना रहा है, लेकिन इस स्वीकार्यता को समर्थन में बदलने के जिस मैकेनिज्म की जरूरत होती है उस पर ललित मोहन गुप्ता के लिए अभी बहुत काम करना बाकी है ।  
सीओएल के लिए वागीश स्वरूप ने भी हालाँकि अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की हुई है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी में अपनी जीत से ज्यादा बृज भूषण को हराने का ताव ज्यादा है । उन्होंने ऐलान भी किया हुआ है कि बृज भूषण को हराने का माद्दा यदि किसी और में उन्हें दिखाई दिया तो वह अपनी उम्मीदवारी छोड़ कर उसका समर्थन करेंगे । वागीश स्वरूप अभी तक हालाँकि यह तय नहीं कर पाए हैं कि बृज भूषण अग्रवाल को हराने का माद्दा किस में है । मुजफ्फरनगर में अभी हाल ही में हुई इंटरसिटी के दौरान योगेश मोहन गुप्ता ने वागीश स्वरूप को यह विश्वास दिलाने का भरसक प्रयास किया कि वह बृज भूषण अग्रवाल को हरा सकते हैं । वागीश स्वरूप लेकिन अभी योगेश मोहन गुप्ता के इस दावे पर विश्वास करने को तैयार नहीं हैं । योगेश मोहन गुप्ता के तौर-तरीके भी वागीश स्वरूप को पसंद नहीं हैं इसलिए उम्मीद की जा रही है कि वागीश स्वरूप का समर्थन योगेश मोहन गुप्ता को तो शायद नहीं ही मिलेगा ।
इसी तरह की स्थितियों के चलते सीओएल को लेकर डिस्ट्रिक्ट 3100 में छिड़ी चुनावी लड़ाई दिलचस्प हो उठी है ।

Wednesday, October 9, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने के किये राजीव देवा और सुधीर मंगला को भद्दी और बेहूदा किस्म की बातों का सहारा ही रह गया है क्या

नई दिल्ली । सुधीर मंगला और राजीव देवा की तरफ से एक दूसरे पर जो आरोप-प्रत्यारोप सुनाई दे रहे हैं, उन्हें सुन कर लोगों ने यह निष्कर्ष निकाल लिया है कि डिस्ट्रिक्ट में गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव इन दोनों के कारण गटर-छाप अभियान में बदलता जा है । अभी तक चुनाव के बहाने गंदगी फैलाने की जिम्मेदारी सुधीर मंगला के घोषित समर्थक पूर्व गवर्नर विनय कुमार अग्रवाल उठाये हुए थे, लेकिन अब राजीव देवा उन्हें पूरी टक्कर दे रहे हैं । राजीव देवा की 'वाणी' को जिन्होंने सुना है उनका कहना है कि विनय कुमार अग्रवाल के बाद अब राजीव देवा ने भी रोटरी में तथा डिस्ट्रिक्ट 3010 में सड़क-छाप टाइप का माहौल बनाने का जिम्मा सँभाल लिया है । विनय कुमार अग्रवाल द्धारा की/कही जाने वाली बातों में डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस के लिए इस्तेमाल की जा रही गाली-गलौचपूर्ण भाषा जहाँ सुधीर मंगला की उम्मीदवारी का कबाड़ा कर रही है, वहाँ राजीव देवा ने अपनी उम्मीदवारी का जनाजा निकालने की जिम्मेदारी खुद ही संभाल ली है । मजे की बात यह हुई है कि पहले यह दोनों दूसरे रोटेरियंस को अपनी अश्लील व अशालीन भाषा का शिकार बना रहे थे, लेकिन अब ये एक-दूसरे पर पिल पड़े हैं ।
शुरुआत राजीव देवा ने की । उन्होंने सुधीर मंगला को लेकर भद्दी बातें कहना शुरू किया तो सुधीर मंगला की तरफ से जबावी मोर्चा विनय कुमार अग्रवाल ने संभाला । राजीव देवा ने अकेले सुधीर मंगला को ही निशाना नहीं बनाया था - उन्होंने रवि भाटिया और सुरेश भसीन के लिए भी अपशब्दों का इस्तेमाल किया । रवि भाटिया और सुरेश भसीन ने लेकिन उनकी बातों को अनसुना ही किया, और उनके स्तर पर उतरने से बचने की ही कोशिश की । सुधीर मंगला के यहाँ से किंतु राजीव देवा को करारा जबाव मिला । सुधीर मंगला और विनय कुमार अग्रवाल को जब पता चला कि राजीव देवा रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी से सुधीर मंगला के निकलने की कहानी सुना कर सुधीर मंगला को बदनाम कर रहे हैं तो विनय कुमार अग्रवाल ने राजीव देवा की पोल-पट्टी खोलना शुरू किया । लोगों को बताया गया कि किस तरह राजीव देवा के क्लब ट्रेनर रहते हुए रोटरी क्लब दिल्ली कनाट प्लेस बंद हुआ । इससे पिछले वर्ष राजीव देवा की पत्नी मधु देवा के अध्यक्ष रहते हुए रोटरी क्लब दिल्ली रायसीना हिल्स बंद हुआ था । मधु देवा इससे पहले अध्यक्ष रहते हुए एक और क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली साउथ सबर्बन - बंद करवा चुकी थीं । मधु देवा के अध्यक्ष रहते हुए दो क्लब्स के बंद होने के लिए भी जिम्मेदार राजीव देवा को माना/पहचाना गया था । लोगों का कहना रहा कि मधु देवा तो नाम की अध्यक्ष थीं; पर्दे के पीछे से कामकाज राजीव देवा ही करते थे और उनकी हरकतों के चलते ही उक्त क्लब्स बंदी की कगार पर पहुँचे ।
राजीव देवा को रोटरी भी करनी है - लिहाजा उन्होंने तिकड़म लगाई और अपने क्लब और अपनी पत्नी के क्लब के बचे-खुचे लोगों को लेकर रोटरी क्लब दिल्ली कनाट प्लेस रायसीना हिल्स बना लिया । इसी वर्ष बने इस क्लब की तरफ से राजीव देवा उम्मीदवार हो गए हैं । विनय कुमार अग्रवाल का कहना है कि जो व्यक्ति क्लब नहीं चला सका और जिसके नाम तीन-तीन क्लब्स को बंद करने का रिकॉर्ड है वह डिस्ट्रिक्ट में क्या कर सकेगा ? मजे की बात यह है कि राजीव देवा कुछ करने का दावा कर भी नहीं रहे हैं । वह तो खुद कह रहे हैं कि वह तो मजे लेने के लिए उम्मीदवार बने हैं । रोटरी को राजीव देवा ने मजे लेने का जरिया ही माना/बनाया हुआ है और इसके चलते उन्होंने जो-जो हरकतें कीं तो उनके और उनकी पत्नी के क्लब्स बंद होते गए । रोटरी को मजे लेने का अड्डा माने बैठे राजीव देवा ने क्लब चलाने से ज्यादा क्लब्स को बंद करने का काम किया है । विनय कुमार अग्रवाल लोगों को बता रहे हैं कि राजीव देवा सिर्फ रोटरी में ही बदनाम नहीं हैं, बल्कि अपने कामकाज में भी बदनाम हैं । कॉम्पीटेंट ऑटोमोबाइल कंपनी लिमिटेड में वह अच्छी खासी नौकरी पर थे, किंतु अपनी हरकतों से उन्होंने कंपनी के मुख्य प्रवर्तक व सर्वेसर्वा राज चोपड़ा को इतना परेशान किया कि राज चोपड़ा को उन्हें बुरी तरफ झिड़क कर बाहर करना पड़ा । विनय कुमार अग्रवाल के दावे के अनुसार, रोटरी में तो राजीव देवा के लोगों के साथ झगड़े-झंझट रहे ही हैं - कामकाजी जीवन में भी उनके दूसरों के साथ लड़ने-झगड़ने वाले संबंध रहे हैं ।
सुधीर मंगला की तरफ के लोगों और राजीव देवा के बीच भद्दी भाषा में छिड़े आरोपों-प्रत्यारोपों को एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल इन दोनों ने माना/समझा हुआ है कि अश्लील और अशालीन बातें करके ये लोगों के बीच अपने लिए समर्थन जुटा लेंगे । इस 'फार्मूले' के भरोसे सुधीर मंगला और राजीव देवा ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा के क्लब्स पर खास ध्यान देना शुरू किया है । पता नहीं उन्हें क्यों ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा में लफंगे किस्म के लोग बसते हैं जो हल्की/भद्दी बातों के असर में उनका समर्थन करने को तैयार हो जायेंगे । उल्लेखनीय है कि सुधीर मंगला और राजीव देवा को उनकी बातों के स्तर के कारण ही दिल्ली के क्लब्स अपने-अपने अधिष्ठापन आयोजनों में इन्हें आमंत्रित किये जाने से बचे, जिसे देख/पहचान कर इन्होंने समझ लिया है कि दिल्ली के क्लब्स में तो इनकी दाल नहीं गलेगी; और इसीलिए इनकी उम्मीदें अब उत्तर प्रदेश और हरियाणा के क्लब्स पर आ टिकी हैं । यह सच है कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा के क्लब्स के लोग उतने इलीट किस्म के नहीं हैं, जितने दिल्ली के क्लब्स के लोग हैं - और इसी आधार पर सुधीर मंगला और राजीव देवा को लग रहा है कि वे भद्दी और बेहूदा किस्म की बातों से उत्तर प्रदेश और हरियाणा के क्लब्स में अपने लिए समर्थन जुटा लेंगे । ऐसे में, इन दोनों के बीच होड़ इस बात को लेकर छिड़ी है कि कौन ज्यादा बेहूदा और भद्दी बातें कर सकता है । सुधीर मंगला की तरफ से मोर्चा विनय कुमार अग्रवाल ने संभाला हुआ है तो राजीव देवा खुद ही उन्हें टक्कर दे रहे हैं । लगता है कि इन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है कि इनकी बातों और हरकतों से रोटरी और डिस्ट्रिक्ट की बदनामी तो हो ही रही है, साथ ही इन्हें भी इससे कोई फायदा नहीं हो रहा है ।

Tuesday, October 8, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के रोटेरियन मानव चावला ने आईफैक्स कला दीर्घा में रमेश राणा की पेंटिंग्स की एकल प्रदर्शनी का उद्घाटन किया

नई दिल्ली । नई दिल्ली में रफ़ी मार्ग स्थित आईफैक्स (ऑल इंडिया फ़ाईन ऑर्ट्स एण्ड क्रॉफ्ट्स सोसायटी) की कलादीर्घा में आयोजित रमेश राणा की पेंटिंग्स के आठवीं एकल प्रदर्शनी का रोटेरियन और वास्तु व एस्ट्रो ऐनलिस्ट मानव चावला ने आज उद्घाटन किया । प्रख्यात चित्रकार और आईफैक्स के कार्यकारी अध्यक्ष परमजीत सिंह ने कई अन्य प्रमुख कलाकारों, कला की शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों तथा कला प्रेमियों की उपस्थिति में संपन्न हुए उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता की ।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनीवर्सिटी और जीवाजी यूनीवर्सिटी ग्वालियर से कला की शिक्षा प्राप्त करने वाले रमेश राणा ने इससे पहले विभिन्न कला दीर्घाओं में आयोजित होने वाली सात एकल प्रदर्शनियों में अपनी पेंटिंग्स को प्रदर्शित किया है तथा इसके आलावा 45 से अधिक समूह प्रदर्शनियों में उनकी अलग-अलग पेंटिंग्स को दिखाया गया है । रमेश राणा ने कई कला शिविरों में भी भाग लिया है और आईफैक्स के स्कॉलरशिप अवॉर्ड के साथ-साथ उन्होंने
अन्य कुछ पुरस्कारों व सम्मानों को भी प्राप्त किया है ।
मानव चावला ने रमेश राणा की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी का उद्घाटन करने के बाद दिए अपने भाषण में रमेश राणा द्धारा अपनी पेंटिंग्स में प्रयुक्त किये गए रंगों की संरचना को खास तौर से रेखांकित किया और वास्तु के नजरिये से उसकी व्याख्या प्रस्तुत की । पेंटिंग्स में अभिव्यक्त होने वाले रूपाकारों को मानव चावला ने जिस तरह देखा/पहचाना उसके कारण वहाँ मौजूद लोगों को रमेश राणा की पेंटिंग्स को देखने का एक भिन्न नजरिया
मिला; और इसके चलते मानव चावला की बातों को ध्यान से सुना गया ।
मानव चावला यूँ तो श्री रतनम ग्रुप और श्री रतनम रियल एस्टेट में डायरेक्टर हैं तथा पार्थ रिएल्टर्स व पार्थ इंटरनेशनल में मैनेजिंग डायरेक्टर हैं किंतु उनकी दिलचस्पी के विषय वैदिक वास्तु और न्यूमरोलॉजी है । ज्योतिष व फेंग शुई में भी उनका अच्छा दखल है । वास्तु-एस्ट्रो-न्यूमरो-फेंग शुई एनालिष्ट के रूप में मानव चावला की विश्वसनीय पहचान है और इस क्षेत्र में उनकी सेवाएं लेने वालों में देश के विभिन्न प्रमुख शहरों के विशिष्ट लोग हैं । मानव चावला एक प्रभावी वक्ता हैं और अपने इस गुण के कारण वह देश भर में वास्तु व न्यूमरोलॉजी पर आयोजित होने वाले वैचारिक कार्यक्रमों में खास तौर से आमंत्रित किये जाते हैं तथा उत्सुकता के साथ सुने जाते हैं । सेमिनार व विचार गोष्ठियों में वक्ता के रूप में मानव चावला की प्रस्तुति का तरीका ऐसा रहता है कि वह धीर-गंभीर व नीरस-से विषय में भी जैसे जान डाल देते हैं और श्रोताओं के बीच उनकी बात को ध्यान से सुनने की दिलचस्पी खुद-ब-खुद पैदा हो जाती है । विषय को उसकी पूरी तथ्यात्मकता तथा रोचकता के साथ प्रस्तुत करने की ख्याति के चलते ही मानव चावला को विभिन्न रोटरी क्लब्स में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया जाता है और इस कारण रोटेरियंस के बीच उनकी पहचान एक रोटेरियन से अलग और खास है ।
मानव चावला अकेले ऐसे रोटेरियन हैं जो एक रोटरी सदस्य होते हुए दूसरे रोटेरियंस के सामने रोटरी से अलग किसी विषय पर अपनी विशेषज्ञता को प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किये जाते हैं ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी के आयोजनों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर, क्लब अध्यक्ष और दूसरे पदाधिकारी ही वक्ता के रूप में आते हैं । रोटरी में विभिन्न क्षेत्रों के होशियार व कामयाब लोगों की भी कोई कमी नहीं है - लेकिन अपने-अपने क्षेत्रों में साख बनाये हुए लोगों को रोटरी के आयोजनों में किसी भी तरह की तवज्जो मिलते हुए नहीं देखा गया है । रोटरी में यह मौका सिर्फ एक अकेले मानव चावला को मिलते हुए देखा गया है । रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में मानव चावला रोटरी क्लब गाजियाबाद नवोदय के चार्टर प्रेसीडेंट हैं तथा डिस्ट्रिक्ट स्तर पर कई जिम्मेदारियों का निर्वाह कर चुके हैं, जिनमें प्रमुख है वर्ष 2011-12 में डिस्ट्रिक्ट कांफ्रेंस प्रोमोशन में डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी पद की जिम्मेदारी ।
आईफैक्स में आयोजित कई प्रमुख चित्रकारों की उपस्थिति में रमेश राणा की पेंटिंग्स की एकल प्रदर्शनी के उद्घाटन के जरिये मानव चावला की सक्रियता और पहचान के दायरे का विस्तार ही हुआ है ।


Sunday, October 6, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में विनोद बंसल और पीटी प्रभाकर को बदनाम करके उन्हें ब्लैकमेल करने के सूत्रधार की खोज के संकेतों के मुकेश अरनेजा की तरफ जाने से मामला खासा दिलचस्प हुआ

नई दिल्ली । विनोद बंसल और पीटी प्रभाकर को बेनकाब करने का आह्वान करती हुई फर्जी ईमेल डिस्ट्रिक्ट के जिन पूर्व गवर्नर्स को भेजी गई है, उनमें से कुछ का माथा इस दिलचस्प संयोग को देख/पहचान कर ठनका है कि उक्त मेल मुकेश अरनेजा को नहीं भेजी गई है । मुकेश अरनेजा डिस्ट्रिक के बड़े नेता हैं; बड़े तुर्रमखाँ नेता हैं । डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट से बाहर भी उनका बड़ा नाम है । ऐसे में, सोचने/विचारने वाली बात यह है कि जो व्यक्ति विनोद बंसल और पीटी प्रभाकर को बेनकाब करना चाहता है, वह अपना आह्वान डिस्ट्रिक्ट 3010 के ऐसे पूर्व गवर्नर्स तक तो पहुँचा रहा है, जो बेचारे न तीन में हैं और तेरह में - तो फिर वह मुकेश अरनेजा को अपना आह्वान क्यों नहीं पहुँचा रहा है ?
यह सवाल इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि उक्त आह्वान करने वाले ने जो तरीका अपनाया है वह फर्जी, धोखाधड़ी और षड्यंत्र की श्रेणी में आता है । अब जो व्यक्ति फर्जी, धोखाधड़ी और षड्यंत्रपूर्ण तरीके से एक आह्वान कर रहा है और सभी से कर रहा है तो वह मुकेश अरनेजा को आह्वान क्यों नहीं कर रहा है ?
कहीं इसका कारण यह तो नहीं है कि यह आह्वान करने का काम खुद मुकेश अरनेजा ने ही किया है । सामान्य व्यवहार की बात है कि कोई भी जब दूसरों को - बहुत सारे दूसरों को - ईमेल भेजता है तो वह अपने आप को नहीं भेजता । अपने आप को भेजने की उसे जरूरत ही नहीं होती । तो क्या, मुकेश अरनेजा भी अनजाने में इसी सामान्य व्यवहार का पालन कर बैठे और 'रंगेहाथ' पकड़े जाने का सुराग दे बैठे । अपराधशास्त्र का एक महत्वपूर्ण सूत्र है कि हर अपराधी कोई न कोई ऐसी चूक कर बैठता है जिससे वह पकड़ा जाता है । इस तथ्य के आधार पर जो लोग यह मान रहे हैं कि उक्त फर्जी मेल मुकेश अरनेजा की ही कारस्तानी है, वह एक यह तर्क और दे रहे हैं कि मुकेश अरनेजा को फर्जी, धोखाधड़ी और षड्यंत्रपूर्ण तरीके से काम करने का बहुत शौक है । अपने इस शौक के चलते वह बार-बार 'पकड़ा' गया है - लेकिन बेशर्मी वाला गुण भी उसमें इस कदर कूट-कूट कर भरा हुआ है कि फिर भी वह बाज नहीं आता है ।
विनोद बंसल और पीटी प्रभाकर को बेनकाब करने का आह्वान करने की मुकेश अरनेजा की इस कारस्तानी के पीछे लोगों को एक और कारण ध्यान में आता है और वह यह कि मुकेश अरनेजा और उनके गिरोह के रमेश अग्रवाल, असित मित्तल और विनय कुमार अग्रवाल जैसे दूसरे लोग पिछले कुछ दिनों से विनोद बंसल को किसी न किसी बहाने से निशाने पर लेते रहे हैं । पिछले दिनों रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे जुटाने के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनोद बंसल ने जब एक बड़ा कीर्तिमान बनाया और इस कीर्तिमान के चलते वह रोटरी के बड़े नेताओं व पदाधिकारियों की निगाह में चढ़े तो इन लोगों की तो जैसे बुरी तरह सुलग गई । इसके चलते इन्होंने अलग-अलग मौकों पर तरह-तरह से विनोद बंसल को लेकर मुँहझाँसी की और विनोद बंसल को विभिन्न आरोपों के घेरे में लेते हुए उन्हें बदनाम करने की कोशिश की । विनोद बंसल का उससे जब कुछ बिगड़ता हुआ इन्हें नहीं दिखा तो - जैसा कि समझा जाता है - मुकेश अरनेजा ने फर्जी ईमेल के जरिये उन्हें बदनाम करने करने की चाल चली ।
मुकेश अरनेजा को - और उनके गिरोह के सदस्यों को विनोद बंसल से जो भी समस्याएँ और शिकायतें हैं उन्हें वह उनकी अनुपस्थिति में और या फर्जी तरीके से लोगों के बीच क्यों लाते हैं; सीधे बात क्यों नहीं करते हैं ? उनकी बातें, उनकी शिकायतें यदि सचमुच सही और प्रासंगिक हैं तो छिप कर उन बातों को कहने का भला क्या मतलब है ? लोगों को लगता है कि अपनी पहचान के साथ और सीधी बात करने की इनकी औकात नहीं है और इसीलिए यह फर्जी, धोखाधड़ी और षड्यंत्रपूर्ण तरीके अपनाते हैं । इस बार, विनोद बंसल और पीटी प्रभाकर को बदनाम करने के लिए जिस तरह का फर्जी तरीका अपनाया गया है, उससे लगता है कि असल उद्देश्य विनोद बंसल और पीटी प्रभाकर को ब्लैकमेल करने का है ।
विनोद बंसल और पीटी प्रभाकर को बदनाम करके उन्हें ब्लैकमेल करने के सूत्रधार की खोज के सारे संकेत मुकेश अरनेजा की तरफ जाने से यह सारा मामला खासा दिलचस्प हो गया है ।

Saturday, October 5, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में घटिया और टुच्ची राजनीति करने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कायर भी हैं !

'रचनात्मक संकल्प' और 'मुकेश मिश्र' का नाम इस्तेमाल करते हुए ईमेल आईडी sankalprachnatmak@rediffmail.com से अभी कुछ देर पहले रोटेरियंस को भेजी गई मेल फर्जी है; इस मेल से वास्तविक 'रचनात्मक संकल्प' और 'मुकेश मिश्र' का कोई संबंध नहीं है । यह ईमेल आईडी हमारी नहीं है । हमारी ईमेल आईडी है : rachnatmak.sankalp@gmail.com
'रचनात्मक संकल्प' और 'मुकेश मिश्र' अपने नाम के इस दुरूपयोग की कड़े शब्दों में निंदा और भर्त्सना करते हैं ।
डिस्ट्रिक्ट 3010 में तीन-चार पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपनी टुच्ची और घटिया हरकतों के लिए डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, पूरे रोटरी समाज में बुरी तरह बदनाम हैं । साथी रोटेरियंस के खिलाफ बेहूदा, अश्लील व अशालीन किस्म की बातें करना इनका मुख्य काम है । रोटरी में इन्हें सभी पद चाहिए होते हैं और इन्हें पाने की कोशिश में यह अपने साथी रोटेरियंस को हर तरह से बदनाम करने का काम करते हैं । साथी रोटेरियंस में से अन्य कोई यदि इन्हें अपने से आगे बढ़ता हुआ दिखाई देता है तो यह उसे तरह-तरह से बदनाम करके उसका रास्ता रोकने की कोशिश करते हैं । अपनी इस कोशिश में यह दूसरों का नाम इस्तेमाल करके फर्जी पत्र और ईमेल लिखने तक लिखने का काम करने से परहेज नहीं करते हैं । इनमें इतना भी साहस नहीं है कि ये लोगों को जो बताना चाहते हैं, उसे अपने नाम से बतायें ।
इस तरह, फर्जी पत्रों का सहारा लेने वाले डिस्ट्रिक्ट 3010 के घटिया और टुच्ची राजनीति करने वाले जो तीन-चार पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, वह अपने आप को कायर भी साबित करते रहे हैं ।
इन्हीं पूर्व गवर्नर्स ने इस फर्जी ईमेल के जरिये अपनी घटिया राजनीति करने का एक और कायराना सुबूत पेश किया है ।
'रचनात्मक संकल्प' जिम्मेदार और विश्वसनीय तरीके से सूचनाओं व विचारों का आदान-प्रदान करने में यकीन करता है; और इसीलिए 'रचनात्मक संकल्प' में जो कुछ भी प्रकाशित होता है वह हमारी पूरी संपर्क-पहचान के साथ प्रकाशित होता है - ताकि तथ्यों व विचारों को लेकर यदि किसी को कुछ कहना है तो वह हमसे कह सके और तथ्यों व विचारों को सही रूप में देखा/परखा जा सके ।
तथ्यों की सच्चाई पर और उस सच्चाई को जानने/पहचानने की कोशिश पर हमारा पूरा यकीन है और अपने इस यकीन के कारण ही फर्जी तरीके से कुछ करने की हमें कभी कोई जरूरत नहीं पड़ती ।
हमें अपने पाठकों पर भी पूरा भरोसा है । हमें विश्वास है कि हमारे पाठक असली और नकली का फर्क समझते रहेंगे ।
हम एक बार फिर दोहराना चाहेंगे कि हमारा एक ही ईमेल आईडी है और वह है rachnatmak.sankalp@gmail.com
रोटरी के अपने पाठकों से हम अनुरोध करेंगे कि डिस्ट्रिक्ट 3010 के धोखेबाज, फरेबी और टुच्चे पूर्व गवर्नर्स की गतिविधियों से सावधान रहें । कहीं ऐसा न हो कि उनकी फर्जी कारस्तानियों का अगला निशाना या शिकार आप बनें !

Thursday, October 3, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में एके सिंह की उम्मीदवारी की आहट ने विशाल सिन्हा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की गुरनाम सिंह की तैयारी में रोड़ा डाला

लखनऊ । एके सिंह ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी के संकेत देकर गुरनाम सिंह के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है । गुरनाम सिंह के सामने संकट इसलिए क्योंकि गुरनाम सिंह के सामने इस बार विशाल सिन्हा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की चुनौती पहले से ही है । विशाल सिन्हा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की जिम्मेदारी गुरनाम सिंह ने ली तो पिछले लायन वर्ष में थी, लेकिन पिछले लायन वर्ष में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था । गुरनाम सिंह के सामने चुनौती यह है कि कहीं इस बार भी वह विशाल सिन्हा को नहीं जितवा/चुनवा नहीं पाए तो लायन राजनीति में उनकी चौधराहट ही समाप्त हो जायेगी । एके सिंह की उम्मीदवारी की तैयारी ने इसीलिये गुरनाम सिंह के सामने बड़ी समस्या पैदा कर दी है ।
मजे की बात यह है कि पिछले वर्ष गुरनाम सिंह ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बताया करते थे कि अगले वर्ष, अनुपम बंसल के गवर्नर-काल में वह एके सिंह को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवायेंगे । एके सिंह ने गुरनाम सिंह की पिछले वर्ष की घोषणा को ही आधार बना कर अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने की तैयारी शुरू कर दी है । गुरनाम सिंह का कहना है कि उन्होंने पिछले वर्ष एके सिंह को इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की बात कही तो थी, लेकिन चूँकि पिछले वर्ष विशाल सिन्हा नहीं जीत पाए इसलिए अब इस वर्ष पहले तो विशाल सिन्हा को चुनवाना है । इस पर एके सिंह का कहना है कि विशाल सिन्हा यदि इस बार भी नहीं जीत पाये, तो अगले वर्ष भी फिर वही उम्मीदवार होंगे और इस तरह तो उनका नंबर और आगे खिसक जायेगा । एके सिंह का कहना है कि उनकी उम्र ऐसी नहीं है कि वह और कई वर्ष इंतजार करें, जबकि विशाल सिन्हा तो अभी नौजवान हैं, वह इंतजार कर सकते हैं । एके सिंह का यह भी तर्क है कि पिछले वर्ष विशाल सिन्हा तमाम अनुकूल स्थितियों के बावजूद चुनाव नहीं जीत सके, इसलिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी स्वीकार्यता बनाने के लिए अभी और काम करना चाहिए तथा उसके बाद अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करना चाहिए ।
एके सिंह के इस तर्क के प्रति डिस्ट्रिक्ट के उन लोगों ने भी अपना समर्थन व्यक्त किया है जो गुरनाम सिंह के साथ समझे/पहचाने जाते हैं - गुरनाम सिंह को इसीलिए एके सिंह की उम्मीदवारी में अपने लिए खतरे की घंटी सुनाई दे रही है । गुरनाम सिंह हालाँकि ऊपर-ऊपर तो लोगों को यह दिखाने/जताने का प्रयास कर रहे हैं कि वह एके सिंह को इस वर्ष उम्मीदवार न बनने के लिए समझा लेंगे और एके सिंह वही करेंगे जो वह कहेंगे; लेकिन भीतर ही भीतर गुरनाम सिंह डरे हुए भी हैं और इसीलिये वह एके सिंह को तरह-तरह से मनाने की कोशिश कर रहे हैं । गुरनाम सिंह ने एके सिंह को फार्मूला सुझाया है कि अगले लायन वर्ष में चूँकि लखनऊ से बाहर के क्लब्स से उम्मीदवार आने का नंबर है, इसलिए वह बाराबंकी या आसपास के किसी इलाके के क्लब में अपना ट्रांसफर ले लें और इस तरह वह अगले ही वर्ष उम्मीदवार हो सकेंगे और उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवा दिया जायेगा । एके सिंह ने लेकिन इस तरह की बेईमानी करके लखनऊ से बाहर के क्लब्स का अधिकार चुराने से साफ इंकार कर दिया है । गुरनाम सिंह को लगने लगा है कि एके सिंह को भूपेश बंसल, नीरज बोरा, केएस लूथरा, शिव कुमार गुप्ता आदि से हवा मिल गई है - और इसलिए एके सिंह उनके द्धारा समझाए जाने के बावजूद अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने को तैयार नहीं हो रहे हैं ।
एके सिंह की उम्मीदवारी में गुरनाम सिंह के लिए खतरा देख रहे डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों का गणित यह है कि पिछले वर्ष विशाल सिन्हा को जो सौ वोट मिले थे, उनमें से पच्चीस से तीस वोट तो एके सिंह के ही थे । ऐसे में, एके सिंह के उम्मीदवार होने की स्थिति में तो विशाल सिन्हा को पिछले वर्ष के मुकाबले और बड़ी पराजय का सामना करना पड़ेगा । एके सिंह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनुपम बंसल से जिस तरह की तवज्जो मिल रही है, उसे देख/पहचान कर भी विशाल सिन्हा व गुरनाम सिंह के नजदीकियों को खतरा बिलकुल नजदीक दिख रहा है । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा का हालाँकि दावा है कि अनुपम बंसल उनके साथ धोखा नहीं करेंगे । उनका दावा अपनी जगह ठीक है - पर बात धोखे की नहीं है; बल्कि एक दूसरे की जरूरतों को समझने की है ।
उल्लेखनीय है कि हर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुछ 'जरूरतें' होती हैं, जिन्हें उम्मीदवार पूरी करता है । अनुपम बंसल और विशाल सिन्हा की चाहें कैसी और कितनी भी दोस्ती हो, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनुपम बंसल को चूँकि 'उम्मीदवार' विशाल सिन्हा से 'वह' सहयोग नहीं मिल रहा है जिसकी जब-तब उन्हें जरूरत होती है । अनुपम बंसल दरअसल इसीलिये एके सिंह को तवज्जो देने के लिए 'मजबूर' हुए क्योंकि उनकी डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी की जरूरतों को एके सिंह पूरा करने के लिए सहज रूप से तैयार हो गए । एके सिंह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनुपम बंसल से मिली तवज्जो को पाकर ही तो विशाल सिन्हा की राह का रोड़ा बन गए हैं । जिस दोस्ती का वास्ता देकर विशाल सिन्हा, अनुपम बंसल के अपने साथ रहने का दावा कर रहे हैं; विडंबना यह है कि उन्हीं अनुपम बंसल ने तो एके सिंह को विशाल सिन्हा की राह का रोड़ा बनने का मौका और हौंसला दिया है ।
एके सिंह की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी की तैयारी क्या गुल खिलाती है, और एके सिंह कहीं गुरनाम सिंह की झाँसापट्टी में आ तो नहीं जायेंगे - यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा; लेकिन उनकी उम्मीदवारी की संभावना से गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा जिस तरह परेशान हो उठे हैं - उससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों को एक बात तो साफ दिखने लगी है कि एके सिंह यदि सचमुच अपनी उम्मीदवारी पर टिके रहे तो गुरनाम सिंह को एक बार फिर पराजय का सामना करना पड़ेगा । एके सिंह के लिए स्थितियाँ सचमुच अनुकूल हैं : पिछली बार जीतने/जितवाने वाले लोगों का समर्थन तो उन्हें मिलेगा ही; पच्चीस से तीस वह वोट जो उनके कारण विशाल सिन्हा को मिले थे, उनकी जीत के अंतर को बढ़ाने का ही काम करेंगे । एक मनोवैज्ञानिक फायदा भी उन्हें मिलेगा । पिछली बार विशाल सिन्हा को कई वोट इस कारण भी मिले क्योंकि किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि गुरनाम सिंह के उम्मीदवार होने के कारण वह हार भी सकते हैं । गुरनाम सिंह की जो मुट्ठी बंद होने के कारण पिछले वर्ष लाख की थी, अब खुल जाने के बाद वह खाक की हो गई है । इन्हीं सब वजहों से गुरनाम सिंह भी समझ रहे हैं कि एके सिंह के उम्मीदवार होने की स्थिति में उनके लिए विशाल सिन्हा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवा पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही होगा । इसीलिये वह एके सिंह को इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी न प्रस्तुत करने के लिए मनाने/पटाने में हर तरह से लगे हुए हैं ।