जयपुर । रोटरी इंस्टीट्यूट 2015 में शामिल होने आए रोटरी के हर आम और खास को खुश खुश वापस भेजने में अशोक गुप्ता भले ही कामयाब रहे हैं, किंतु उनकी यह कामयाबी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की तरफ बढ़ती उनकी राह को आसान बनाएगी - इसका विश्वास उनके नजदीकियों व शुभचिंतकों को भी नहीं है । रोटरी इंस्टीट्यूट 2015 के चेयरमैन के रूप में अशोक गुप्ता ने जो व्यवस्था की और आमंत्रितों की जिस तरह की आवभगत हुई, उसकी चैतरफा तारीफ ही सुनने को मिल रही है । रोटरी इंस्टीट्यूट में शामिल होने गया हर छोटा/बड़ा रोटेरियन अशोक गुप्ता की आयोजन-क्षमता का गुण गाता हुआ ही सुना जा रहा है - किंतु इस उपलब्धि के राजनीतिक लाभ में 'ट्रांसफर' हो सकने का सवाल जब आता है, तब सभी लोग अलग अलग राय सुनाने/बताने लगते हैं । तो क्या अशोक गुप्ता ने जो मेहनत की है, उसका उन्हें कोई राजनीतिक फल नहीं मिलेगा ? इंस्टीट्यूट जयपुर में करने की लॉबीइंग करने से लेकर उसे आयोजित करने में लगा अशोक गुप्ता का श्रम क्या बेकार चला जायेगा ? सभी मानते और कहते हैं कि जयपुर में इंस्टीट्यूट का आयोजन कराने/करने के पीछे अशोक गुप्ता का मुख्य उद्देश्य इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए संभावित अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाना तथा रोटरी के बड़े नेताओं के बीच अपनी धाक जमाना था ।
अशोक गुप्ता अपनी धाक दिखाने/ज़माने में तो सफल हुए हैं, लेकिन इस सफलता के बावजूद इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए बड़े नेताओं का समर्थन जुटाने की उनकी कोशिश सफल नहीं हो सकी है । अशोक गुप्ता के ही नजदीकियों का कहना है कि अशोक गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी के बाबत इंस्टीट्यूट में जयपुर में इकट्ठा हुए रोटरी के सभी बड़े नेताओं की समर्थन की हामी भरवाने की कोशिश तो खूब की, लेकिन सभी बड़े नेता बड़ी सफाई और चालाकी से हामी भरने से बच निकले । उल्लेखनीय है कि अशोक गुप्ता को कल्याण बनर्जी, सुशील गुप्ता, शेखर मेहता, मनोज देसाई आदि का समर्थन माना/बताया जाता है - लेकिन इनमें से कोई भी अभी तक अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी की खुली वकालत करता हुआ नहीं सुना गया है । अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों के लिए यह बात चिंता की इसलिए है क्योंकि अशोक गुप्ता के साथ इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए और कई उम्मीदवारों की उम्मीदवारी भी प्रस्तुत होनी है, ऐसे में यदि उनके समर्थक समझे जाने वाले नेताओं ने ही उनके समर्थन से हाथ खींच लिया - तो फिर उनका तो सारा खेल ही गड़बड़ा जायेगा । अशोक गुप्ता को सबसे ज्यादा मदद पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता से मिलने की उम्मीद रही है, लेकिन अब सुशील गुप्ता के रंग-ढंग ही उन्हें बदले बदले से नजर आ रहे हैं । सुशील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट से जिस तरह अचानक से रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई है, उससे अशोक गुप्ता के कान खड़े हुए हैं । जयपुर इंस्टीट्यूट से लौटते ही रंजन ढींगरा ने जिस तरह से अपने क्लब में अपनी उम्मीदवारी का प्रस्ताव पास कराया है, उससे इंस्टीट्यूट को प्रभावी तरीके से आयोजित करने को लेकर मिली प्रशंसा से प्राप्त अशोक गुप्ता का उत्साह हवा हो गया है । रंजन ढींगरा को सुशील गुप्ता के बहुत खास नजदीकी के रूप में देखा/पहचाना जाता है - दरअसल इसीलिए अशोक गुप्ता को सुशील गुप्ता के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे हैं ।
अशोक गुप्ता के लिए राहत की बात यही है कि प्रतिस्पर्द्धी खेमे में भी अभी तक उम्मीदवार को लेकर एकमतता नहीं बनी है, और वहाँ भी कई उम्मीदवारों के बीच भारी उठा-पटक है । राजेंद्र उर्फ राजा साबू खेमे से यूँ तो भरत पांड्या की उम्मीदवारी सबसे प्रबल है; किंतु दीपक कपूर और सुरेंद्र सेठ भी राजा साबू खेमे के भरोसे ही ताल ठोक रहे हैं । देश में पोलियो अभियान के मुखिया के रूप में काम करते रहे दीपक कपूर की लोगों के बीच पहचान तो खूब है, किंतु इस पहचान को समर्थन में बदलने की कोई कोशिश दीपक कपूर की तरफ से होती हुई नहीं दिखी है - लोगों ने पाया/समझा तो यह है कि इस तरह की किसी कोशिश के लिए दीपक कपूर प्रेरित भी नहीं दिखे हैं । दीपक कपूर को जानने वालों का कहना तो यह है कि एक उम्मीदवार के रूप में 'दिखना' और काम करना उनके बस में शायद है भी नहीं । दीपक कपूर का रोटरी से जो जुड़ाव रहा है, उसमें रोटरी का काम करने की बजाए रोटरी में बिजनेस करने वाला मामला ज्यादा है - इसलिए उनकी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता बनना लोगों को मुश्किल लग रहा है । दीपक कपूर की उम्मीदवारी में 'दम' देखने वाले लोगों का हालाँकि तर्क है कि पोलियो अभियान के मुखिया के रूप में दीपक कपूर ने चूँकि नेताओं को तरह तरह से उपकृत किया है, इसलिए उन उपकारों के बदले में दीपक कपूर अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन की उम्मीद कर सकते हैं । राजा साबू खेमे से दीपक कपूर के उम्मीदवार होने की स्थिति में अशोक गुप्ता के लिए नॉर्थ में समर्थन जुटाना मुश्किल हो जायेगा; जबकि अशोक गुप्ता नॉर्थ के लोगों के भरोसे ही इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की दौड़/होड़ में हैं ।
अशोक गुप्ता को लेकिन विरोधी खेमे की बजाए अपने खेमे के नेताओं से ही समस्या पैदा होती हुई दिख रही है । उनके खेमे के नेताओं में सुशील गुप्ता तथा शेखर मेहता की निगाह चूँकि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के पद पर है, इसलिए इन दोनों के राजा साबू के उम्मीदवार के खिलाफ जाने की किसी को भी बहुत उम्मीद नहीं है; और जहाँ तक मनोज देसाई की बात है, उनके लिए ज्यादा कुछ कर सकने के मौके नहीं हैं । पिछली बार राजा साबू खेमे ने उनके इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में ज्यादा रोड़े नहीं डाले थे, इसका ख्याल रखते हुए उनके लिए भी सीमा से बाहर जाकर अशोक गुप्ता के लिए कुछ कर पाना मुश्किल ही होगा । अशोक गुप्ता अपने समर्थक नेताओं की 'कमजोरियों' को चूँकि जानते/पहचानते हैं, इसलिए ही उन्होंने इंस्टीट्यूट में उन्हें घेरने तथा अपनी उम्मीदवारी के लिए उन्हें समर्थन व्यक्त करने के लिए तैयार करने का प्रयास किया था । नेता लोग लेकिन ज्यादा घाघ निकले - वह अशोक गुप्ता के इंतजामों की तो तारीफ करते रहे, लेकिन उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त करने से बचते रहे ।
अशोक गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि रोटरी इंस्टीट्यूट में अशोक गुप्ता ने जो बढ़िया इंतजाम किए थे, वह सिर्फ तारीफ बटोरने के लिए नहीं किए थे - इंतजामों के जरिए उन्होंने वास्तव में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी संभावित उम्मीदवारी के लिए रोटरी के बड़े नेताओं का समर्थन 'प्राप्त' करने का जुगाड़ बैठाया था । उनका वह जुगाड़ तो काम करता हुआ नहीं दिखा है, और इसलिए ही अशोक गुप्ता का इंस्टीट्यूट में अच्छा इंतजाम करना इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उनकी संभावित उम्मीदवारी के संदर्भ में व्यर्थ ही गया लग रहा है ।