Monday, March 31, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के गाजियाबाद में होने को आधी लड़ाई जीत लेने के दावे को, पूरी लड़ाई जीतने की उनकी राह में बाधा बनाने की अवतार कृष्ण के समर्थकों की तैयारी ने शिव कुमार चौधरी और उनके समर्थकों के सामने सचमुच में एक बड़ी चुनौती पैदा कर दी है

देहरादून । अवतार कृष्ण के समर्थकों ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के बाबत निकली कॉल की वैधता को लायंस इंटरनेशनल में चुनौती देकर सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को और गंभीर तो बना ही दिया है, साथ ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे उम्मीदवार शिव कुमार चौधरी और उनके समर्थकों के सामने एक कठिन चुनौती भी पैदा कर दी है । अवतार कृष्ण के समर्थकों द्धारा लायंस इंटरनेशनल में की गई शिकायत में पहली आपत्ति तो फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन द्धारा कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में निकाली गई कॉल को रद्द करने के फैसले पर की गई है; और दूसरी आपत्ति सुधीर जनमेजा द्धारा कथित रूप से तैयार की गई कॉल को मान्य कॉल का दर्जा देने को लेकर है । पहली शिकायत के संदर्भ में तर्क दिया गया है कि सुनील जैन ने जो कॉल निकाली थी, वह कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में निकाली थी और कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभाने का अधिकार उन्हें लायंस इंटरनेशनल ने दिया था । लायंस इंटरनेशनल द्धारा दी गई जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए सुनील जैन ने जो कॉल निकाली, उसे रद्द करने का अधिकार लायंस इंटरनेशनल के नियम के अनुसार किसी को नहीं है । लायंस इंटरनेशनल के नियम के अनुसार, उस कॉल में संशोधन तो किया जा सकता है लेकिन उसे रद्द नहीं किया जा सकता है । यही हवाला देते हुए लायंस इंटरनेशनल से माँग की गई है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का आयोजन सुनील जैन वाली कॉल के अनुसार किए जाने को सुनिश्चित किया जाना चाहिए ।
इस माँग को और तर्कपूर्ण बनाने के लिए दूसरी शिकायत में कहा गया है कि जिस कॉल को मान्य कॉल का दर्जा दिया गया है, उसमें फर्जीवाड़ा है । सुधीर जनमेजा द्धारा कथित रूप से तैयार बताई गई इस कॉल में कुछेक ऐसी एंट्रीज हैं, जो 'जिन्दा' सुधीर जनमेजा कर ही नहीं सकते थे । जाहिर है कि जिस कॉल को सुधीर जनमेजा द्धारा तैयार बताया गया है, उसमें उनके निधन के बाद हेराफेरी की गई है । अपने नजदीकियों द्धारा की गई इस हेराफेरी के बारे में जानकार सुधीर जनमेजा की आत्मा को कितना कष्ट पहुँचा होगा, यह तो पता नहीं; किंतु हेराफेरी के तथ्यों के सामने आने से मान्य कॉल संदेह के घेरे में जरूर आ गई है । संदेह पैदा करने वाले तथ्यों को रेखांकित करते हुए ही, अवतार कृष्ण के समर्थकों ने मान्य कॉल को अमान्य करने की माँग की है । अवतार कृष्ण के समर्थकों द्धारा लायंस इंटरनेशनल में की गई इन शिकायतों ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर - और उसके गाजियाबाद में होने को लेकर शक पैदा कर दिया है । इस पैदा हुए शक ने गाजियाबाद में शिव कुमार चौधरी द्धारा की जा रही तैयारियों के बेकार हो जाने का खतरा खड़ा कर दिया है ।
अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थकों को इसमें स्वाभाविक रूप से अपना फायदा दिख रहा है । वह लेकिन सिर्फ इस तरह से फायदा पाने के इंतजार में ही नहीं हैं; उन्होंने उस स्थिति में भी फायदा उठाने की तैयारी की हुई है जबकि उनकी शिकायतों का लायंस इंटरनेशनल कोई संज्ञान ही न ले । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थकों को दरअसल इस बात से कोई समस्या नहीं है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस गाजियाबाद में हो रही है - इससे तो उन्हें बल्कि फायदा होता दिख रहा है क्योंकि गाजियाबाद के दो प्रमुख लायन - अरुण मित्तल और सुनील निगम - तो खुल कर अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं । गाजियाबाद में कॉन्फ्रेंस होने से शिव कुमार चौधरी का खर्चा यदि कम होगा, तो अवतार कृष्ण का भी खर्चा कम होगा । गाजियाबाद में कॉन्फ्रेंस होने के फायदे उठाते हुए, अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थक लायंस इंटरनेशनल में शिकायत करके तो वास्तव में गाजियाबाद में कॉन्फ्रेंस होने का ठीकरा शिव कुमार चौधरी और उनके समर्थकों के सिर फोड़ना चाहते हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोग डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के किसी हिल स्टेशन पर होने का इंतजार करते हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के बहाने कई लोगों को परिवार सहित हिल स्टेशन पर पिकनिक मनाने का मौका मिल जाता है । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थक डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह बताना चाहते हैं कि पिकनिक मनाने का यह मौका इस बार उन्हें शिव कुमार चौधरी और उनके समर्थकों के कारण नहीं मिल पा रहा है ।
अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थकों ने लोगों को यह बताने का मौका बनाने के लिए ही लायंस इंटरनेशनल में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस से संबंधित कॉल को लेकर शिकायत की है । इस तरह से उन्होंने अपने दोनों हाथों में लड्डू रख लिए हैं । उनकी शिकायत स्वीकार की जाती है तो भी, और अगर नहीं की जाती है तो भी - उनके पास लोगों को यह बताने/दिखाने का मौका रहेगा कि उन्होंने तो डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस मसूरी में करवाने की बात की थी, लेकिन दूसरे खेमे के लोगों ने यह नहीं होने दिया । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थकों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के बहाने हिल स्टेशन में परिवार के साथ पिकनिक मनाने का अवसर छिनने से लोगों के बीच पैदा हुई नाराजगी को वह अवतार कृष्ण के समर्थन में बदल सकेंगे । मजे की बात है कि अवतार कृष्ण के समर्थकों को यह मौका शिव कुमार चौधरी के समर्थकों ने खुद ही दिया है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के गाजियाबाद में होने के फैसले पर मुहर लगने के तुरंत बाद शिव कुमार चौधरी के समर्थकों ने दावा करना शुरू कर दिया था कि आधी लड़ाई तो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के गाजियाबाद में होने के फैसले पर मुहर लगने के साथ ही जीत ली है । आधी लड़ाई के जीत लेने का यह दावा लेकिन अवतार कृष्ण के समर्थकों की चाल के चलते अब उल्टा पड़ता दिख रहा है । शिव कुमार चौधरी के समर्थकों के आधी लड़ाई जीत लेने के इस दावे को पूरी लड़ाई जीतने की उनकी राह में बाधा बनाने की अवतार कृष्ण के समर्थकों की तैयारी ने शिव कुमार चौधरी और उनके समर्थकों के सामने सचमुच में एक बड़ी चुनौती पैदा कर दी है ।

Wednesday, March 26, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में जब तक दूसरे उम्मीदवारों की जेब से पैसा निकलना था, विशाल सिन्हा तब तक उनसे उम्मीदवारी का 'फर्ज' अदा करवाते रहे; लेकिन अब जब उनके लिए अपनी जेब से पैसा निकालने का मौका आया तो वह लोगों को मुफ्तखोरी न करने की नसीहत देने लगे हैं

लखनऊ । विशाल सिन्हा ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जाने की इच्छा रखने वाले को बता/जता दिया है कि जो कोई भी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जाना चाहता है उसे अपनी जेब से ढाई हजार रुपये खर्च करने होंगे । विशाल सिन्हा ने किन्हीं किन्हीं लोगों से साफ साफ यह कह भी दिया है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जिन लोगों को मुफ्तखोरी की आदत हो गई है उन्हें इस बार डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जाने का विचार त्याग ही देना चाहिए । विशाल सिन्हा के इस रवैये पर लोग भड़के हुए हैं । उनका कहना है कि पिछले तो विशाल सिन्हा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में चलने/पहुँचने के लिए लोगों की खुशामद कर रहे थे और उसमें जाने वाले लोगों का खर्चा उठा रहे थे - इस बार फिर उनका रवैया बदला हुआ क्यों है ? विशाल सिन्हा ने पिछले वर्ष तो लोगों को खुशी खुशी मुफ्तखोरी करवाई थी, तब फिर इस बार वह मुफ्तखोरी की बात करते हुए लोगों को अपमानित करने का काम क्यों कर रहे हैं । जो भी लोग यह सवाल उठा रहे हैं, वही खुद ही इसका जबाव भी दे रहे हैं : उनका कहना है कि पिछली बार विशाल सिन्हा को चूँकि चुनाव लड़ना था और उसके लिए उन्हें लोगों के वोट चाहिए थे - इसलिए वह अपने खर्चे पर लोगों को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में ले गए थे; इस बार लेकिन उन्हें चुनाव तो लड़ना नहीं है, वह तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन ही गए हैं, लिहाजा उन्हें लोगों को अपमानित करने का अधिकार मिल गया है ।
विशाल सिन्हा ने दरअसल इसीलिए इस बार शुरू से यह कोशिश की कि इस बार उन्हें चुनाव न लड़ना पड़े । एके सिंह की उम्मीदवारी के सामने आने के बाद तो विशाल सिन्हा का सारा जोर इस बात पर केंद्रित हो गया कि किसी भी तरह से एके सिंह की उम्मीदवारी वापस हो ताकि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन सकें । विशाल सिन्हा दरअसल जानते थे कि यदि चुनाव की नौबत आई तो पहले तो उनके लिए चुनाव लड़ना ही संभव नहीं होगा; और यदि किसी तरह से उन्होंने चुनाव लड़ भी लिया तो जीतना मुश्किल होगा । इसीलिए विशाल सिन्हा ने रोना-धोना मचाकर अपने लिए सहानुभूति जुटाई और एके सिंह की उम्मीदवारी को वापस करवा दिया । उस प्रक्रिया में विशाल सिन्हा और उनके राजनीतिक गुरु गुरनाम सिंह ने हालाँकि सभी लोगों को यह आश्वासन दिया था कि चुनाव न होने की स्थिति में भी विशाल सिन्हा एक उम्मीदवार की 'जिम्मेदारियों' का निर्वाह करेंगे । पर अब जब एक उम्मीदवार के रूप में उनके सामने जिम्मेदारियों का निर्वाह करने का मौका आया है तो विशाल सिन्हा के तेवर बदल गए हैं और एक उम्मीदवार के रूप में उनसे 'उम्मीद' करने वाले लोगों को वह मुफ्तखोर का नाम देकर अपमानित करने में जुट गए हैं ।
यूँ अगर देखें तो विशाल सिन्हा 'जो' कर रहे हैं उसमें गलत कुछ भी नहीं है । एक उम्मीदवार को किसी के भी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जाने/पहुँचने का खर्च भला क्यों उठाना चाहिए ? इसलिए विशाल सिन्हा यदि यह कह रहे हैं कि वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जाने/पहुँचने वाले लोगों का खर्च नहीं उठायेंगे और यह खर्च स्वयं जाने/पहुँचने वाले को ही वहन करना होगा - तो इसमें वास्तव में गलत कुछ भी नहीं है । लेकिन फिर भी लोगों को यदि विशाल सिन्हा का रवैया पसंद नहीं आ रहा है तो इसका कारण यही है कि विशाल सिन्हा के रवैये में उन्हें 'नौ सौ चूहे खा चुकी बिल्ली के हज पर जाने' वाला मामला दिख रहा है । यही विशाल सिन्हा हैं जिन्होंने पिछले वर्ष लोगों की खूब आवभगत की थी और एक उम्मीदवार का 'फर्ज' निभाया था । सिर्फ यही नहीं, उससे पिछले वर्षों में वह उम्मीदवारों से यह 'फर्ज' निभववाते रहे हैं । लोगों का सवाल यही है कि विशाल सिन्हा के लिए जो बात पिछले कई वर्षों से ठीक और जरूरी रही है, वह इस बार गलत कैसे हो गई है ? लोगों को इसमें विशाल सिन्हा का अवसरवादी रवैया ही दिख रहा है । जब तक दूसरे उम्मीदवारों की जेब से पैसा निकलना था, विशाल सिन्हा तब तक उनसे उम्मीदवारी का 'फर्ज' अदा करवाते रहे; लेकिन अब जब उनके लिए अपनी जेब से पैसा निकालने का मौका आया तो वह लोगों को मुफ्तखोरी न करने की नसीहत देने लगे हैं ।
विशाल सिन्हा के इस रवैये ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनुपम बंसल और डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेता गुरनाम सिंह के सामने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है । अनुपम बंसल की समस्या यह है कि विशाल सिन्हा के इस रवैये के चलते उनकी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का कबाड़ा हो गया है; और गुरनाम सिंह की समस्या यह है कि उन्हें लोगों के इस सवाल का कोई जबाव नहीं सूझ रहा है और उन्हें इस सवाल के चलते मुँह छिपाना पड़ रहा है कि पिछले तमाम वर्षों से जो 'काम' वह दूसरे उम्मीदवारों से करवाते रहे हैं, वही काम वह अब विशाल सिन्हा से क्यों नहीं करवा रहे हैं ?

Tuesday, March 25, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के पीछे उनके समर्थक नेताओं के जुटने और शिव कुमार चौधरी को उनके नेताओं द्धारा अकेला छोड़ दिए जाने के कारण डिस्ट्रिक्ट में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है

गाजियाबाद । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से गाजियाबाद में हुई मीटिंग को जो जोरदार सफलता मिली है, उसने उनकी उम्मीदवारी के विरोधियों के तो तोते उड़ा ही दिए हैं - उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों को भी हैरान किया है । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के उद्देश्य से हुई इस मीटिंग की तैयारी से जुड़े एक प्रमुख वरिष्ठ लायन ने इन पँक्तियों के लेखक से बात करते हुए स्वीकार किया कि मीटिंग के इतना कामयाब होने की तो उन्हें भी उम्मीद नहीं थी । उन्होंने बताया कि उन्होंने मीटिंग में 15 से 20 क्लब के करीब एक सौ लोगों के जुटने की उम्मीद की थी । मीटिंग में लेकिन 31 क्लब के दो सौ से अधिक लोग पहुँचे । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थक गाजियाबाद में हुई मीटिंग की इस कामयाबी से बम-बम हैं । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थकों का जोश यह जान कर और बढ़ा है कि ठीक उसी समय हरिद्धार में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे उम्मीदवार शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से आयोजित हुई मीटिंग में कुल 7 क्लब्स के 30 से 35 लोग ही पहुँचे ।
दोनों मीटिंग्स में उपस्थित क्लब्स तथा लायन सदस्यों की संख्या का यह अंतर हालाँकि इसलिए कोई मायने नहीं रखता - क्योंकि गाजियाबाद क्षेत्र में हरिद्धार क्षेत्र से ज्यादा क्लब्स हैं; इसलिए यह बहुत स्वाभाविक है कि गाजियाबाद में मीटिंग हरिद्धार से बड़ी ही होगी । लेकिन फिर भी दोनों मीटिंग्स में उपस्थित क्लब्स और लायन सदस्यों की संख्या का भारी अंतर इसलिए मायने रखता है - क्योंकि यह अंतर दरअसल दोनों मीटिंग्स के पीछे की तैयारियों और तैयारियों में जुटे लोगों की प्रतिबद्धतता को प्रकट करता है । गाजियाबाद में अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए हुई मीटिंग को सफल बनाने में उनके सभी समर्थक जी-जान से लगे थे, जबकि हरिद्धार में शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए हुई मीटिंग की तैयारी से उनके समर्थक नेता दूर ही रहे । तैयारी से ही दूर नहीं रहे, वह मीटिंग से भी दूर रहे - जबकि अवतार कृष्ण की मीटिंग में उनके कई समर्थक नेता मौजूद थे । हरिद्धार की मीटिंग के लिए सिर्फ क्लब्स के अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष को ही आमंत्रित किया गया था - हालाँकि कुछेक दूसरे लोग बिन बुलाये आ जरूर गए थे । हरिद्धार की मीटिंग की जिस तरह से तैयारी हुई और जिस तरह से वह हुई, उसे देख/जान कर यही संदेश लोगों के बीच गया कि जैसे उसे बड़े बेमन से आयोजित किया गया है, जबकि गाजियाबाद की मीटिंग की तैयारी में और उसके होने में पूरा पूरा जोश और उत्साह पाया/महसूस किया गया ।
हरिद्धार में आयोजित शिव कुमार चौधरी की मीटिंग से उनकी उम्मीदवारी के समर्थक बताये जा रहे नेताओं के गायब रहने को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बड़ी हैरानी के साथ देखा जा रहा है । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में जिन बड़े-बड़े नेताओं के नाम लिए जा रहे हैं, उनमें से कोई भी उनकी मीटिंग में आखिर क्यों नहीं पहुँचा ? शिव कुमार चौधरी की मीटिंग में उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में बताये जा रहे नेताओं में से किसी के भी न पहुँचने की खबर ने शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों को धक्का पहुँचाया है - उन्हें लग रहा है कि नेता लोग कहीं शिव कुमार चौधरी के साथ कोई खेल तो नहीं खेल रहे हैं; और/या शिव कुमार चौधरी ही नेताओं की मदद नहीं ले पा रहे हैं ?
यह सवाल गाजियाबाद में अवतार कृष्ण की मीटिंग के कामयाब होने के कारण भी पैदा हुआ है । गाजियाबाद क्षेत्र मुकेश गोयल के प्रभाव वाला वाला क्षेत्र माना जाता है, और शिव कुमार चौधरी के दावे के अनुसार मुकेश गोयल का समर्थन उनके साथ है । मुकेश गोयल अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में प्रतिपक्षी उम्मीदवार की मीटिंग फेल कराने के बड़े कुशल खिलाड़ी रहे हैं - उनका फ़तवा जारी होता है तो उनके समर्थक क्लब के लोग प्रतिपक्षी उम्मीदवार की मीटिंग में नहीं जाते हैं । ऐसे में यह सवाल उठा है कि मुकेश गोयल यदि सचमुच शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के साथ हैं तो उन्होंने अपने समर्थक क्लब्स के लोगों को अवतार कृष्ण की मीटिंग में जाने से रोका क्यों नहीं ? कुछेक लोगों को तो यह भी लगता है कि अवतार कृष्ण की मीटिंग को सफल बनाने में पर्दे के पीछे से मुकेश गोयल ने भी भूमिका निभाई है । मुकेश गोयल के नजदीकियों का कहना है कि शिव कुमार चौधरी चूँकि मुकेश गोयल को उचित तवज्जो नहीं दे रहे हैं, इसलिए मुकेश गोयल उनके लिए सचमुच में कुछ करने से बचते हुए दिख रहे हैं । इसी कारण से, गाजियाबाद क्षेत्र में अपने समर्थक क्लब्स के लिए उन्होंने अवतार कृष्ण की मीटिंग से दूर रहने का फ़तवा जारी नहीं किया ।
गाजियाबाद में अवतार कृष्ण की और हरिद्धार में शिव कुमार चौधरी की मीटिंग में जो भारी अंतर अभी देखा/पाया गया है, उससे कोई नतीजा निकालना अभी जल्दबाजी करना होगा । लेकिन अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के पीछे उनके समर्थक नेताओं के जुटने और शिव कुमार चौधरी को उनके नेताओं द्धारा अकेला छोड़ दिए जाने के कारण डिस्ट्रिक्ट में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव खासा दिलचस्प जरूर हो गया है । 

Sunday, March 23, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में राकेश त्रेहन और नरेश गुप्ता की जोड़ी ने लायंस क्लब दिल्ली किरण के एक प्रोजेक्ट के जरिये हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल, सुरेश बिंदल और अजय बुद्धराज को ऐसी 'गुप्त' चोट पहुँचाई है कि यह बेचारे खुल कर कराह भी नहीं पा रहे हैं

नई दिल्ली । लायंस क्लब दिल्ली किरण द्धारा आयोजित 'रक्तदान शिविर' के जरिये निवृत्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन ने अपने ही साथी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को जिस तरह उनकी औकात दिखा कर चोट पहुँचाई है, उससे उनके साथी गवर्नर्स बुरी तरह भन्नाए हुए हैं । मजे की बात यह हुई कि इस आयोजन के जरिये राकेश त्रेहन ने तैयारी तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को चोट पहुँचाने की - की थी, लेकिन चोट लगी राकेश त्रेहन के साथी पूर्व गवर्नर्स को । हर्ष बंसल, डी के अग्रवाल, अजय बुद्धराज आदि ने शिकायत की कि डिस्ट्रिक्ट के एक महत्वपूर्ण क्लब के आयोजन के निमंत्रण पत्र में बीस लोगों के नाम प्रकाशित हुए, लेकिन उनके नाम के लिए उसमें जगह नहीं बन सकी । राकेश त्रेहन ने तो यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि निमंत्रण पत्र में किसके नाम प्रकाशित होंगे, यह फैसला तो क्लब के पदाधिकारियों तथा आयोजन के कर्ता-धर्ताओं का था । उन्होंने हर्ष बंसल, डी के अग्रवाल, अजय बुद्धराज का नाम यदि नहीं प्रकाशित किया तो इसमें वह क्या कर सकते हैं ? क्लब के पदाधिकारियों और आयोजन के कर्ता-धर्ताओं ने लेकिन सच्चाई बता कर सारी पोल खोल दी । उनका कहना था कि इस आयोजन के जरिये वह तो कोई राजनीति नहीं करना चाहते थे, लेकिन नरेश गुप्ता और राकेश त्रेहन ने उन्हें मजबूर किया कि जैसा वह कहें, उन्हें वैसा ही करना पड़ेगा । नरेश गुप्ता अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होंगे, इसलिए क्लब के पदाधिकारियों व आयोजन के कर्ता-धर्ताओं के लिए उनकी बात मानना तो मजबूरी थी ही; और नरेश गुप्ता ने उन्हें मजबूर किया कि उन्हें राकेश त्रेहन के दिशा-निर्देशन में ही सभी काम करने हैं ।
राकेश त्रेहन के लिए यह आयोजन यह 'दिखाने' का अच्छा अवसर था कि नरेश गुप्ता पूरी तरह उनकी गिरफ्त में हैं और अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का ताज भले ही नरेश गुप्ता के सिर पर होगा, लेकिन गवर्नरी वह करेंगे । नरेश गुप्ता पूरी तरह सिर्फ और सिर्फ उनकी कठपुतली होंगे - इस बात को दिखाने/जताने के लिए राकेश त्रेहन को यह जरूरी लगा कि निमंत्रण पत्र में हर्ष बंसल, डी के अग्रवाल, अजय बुद्धराज आदि का नाम गलती से भी प्रकाशित न हो जाये । इन तीनों से भी ज्यादा बुरी गत तो बेचारे सुरेश बिंदल की बनी । दिलचस्प तथ्य यह है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश बिंदल आयोजक क्लब - लायंस क्लब दिल्ली किरण के ही सदस्य हैं, लेकिन इस आयोजन के निमंत्रण पत्र में उनका नाम निवेदकों की भीड़ के बीच डाला हुआ था । यहाँ सुरेश बिंदल को बेचारा इसलिए कहा गया है कि नरेश गुप्ता के गवर्नर-काल में सुरेश बिंदल ने अपनी चलने की उम्मीद संजोई हुई थी, लेकिन नरेश गुप्ता ने राकेश त्रेहन के साथ मिल कर उन्हें बिलकुल किनारे पर ही धकेल दिया है ।
लायंस क्लब दिल्ली किरण के इस आयोजन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा का भी नाम नहीं दिया गया । इसे लेकिन ज्यादा बड़ी बात के रूप में नहीं देखा/समझा गया - क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में सभी जानते हैं कि लायंस क्लब दिल्ली किरण का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के साथ शुरू से ही विरोध का संबंध रहा है । विरोध के इसी संबंध के चलते लायंस क्लब दिल्ली किरण के अधिष्ठापन समारोह में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को - तथा उनके समर्थक दिल्ली के तीनों पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक तलवार, अरुण पुरी व दीपक टुटेजा को नहीं बुलाया गया था । लायंस क्लब दिल्ली किरण के कर्ता-धर्ता यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा तथा उनके नजदीकियों के साथ विरोध का संबंध रखे हुए हैं और पहले से ही उन्हें अपने आयोजनों में आमंत्रित करने से बचते रहे हैं, तो इस बार भी उन्हें न आमंत्रित किये जाने में कोई हैरानी की बात नहीं है । लेकिन अपने अधिष्ठापन कार्यक्रम में हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल, अजय बुद्धराज आदि को इज्जत के साथ बुलाने वाले तथा उनका नाम निमंत्रण पत्र में प्रकाशित करने वाले वाले क्लब के पदाधिकारियों ने अब अपने एक प्रमुख कार्यक्रम में उन्हें - तथा अपने ही क्लब के सुरेश बिंदल को जिस तरह से बेइज्जत करने का प्रयास किया है, उसकी चर्चा छिड़ने पर उन्होंने इस सब के लिए राकेश त्रेहन को जिम्मेदार ठहराया है ।
राकेश त्रेहन और नरेश गुप्ता की जोड़ी ने लायंस क्लब दिल्ली किरण के एक प्रोजेक्ट को जिस तरह हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल, सुरेश बिंदल और अजय बुद्धराज का धुआँ निकालने के एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया है - उसके चलते डिस्ट्रिक्ट में एक दिलचस्प नजारा प्रस्तुत हुआ है । नरेश गुप्ता के साथ मिल कर राकेश त्रेहन ने इन्हें ऐसी 'गुप्त' चोट पहुँचाई है कि यह बेचारे भन्नाए हुए तो हैं, लेकिन खुल कर कराह नहीं पा रहे हैं ।  

Saturday, March 22, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में कुछेक लोगों के हाथों के कठपुतली बन कर काम/व्यवहार कर रहे फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता वास्तव में अपने गवर्नर-काल के लिए काँटे ही बो रहे हैं

नई दिल्ली । नरेश गुप्ता ने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के खिलाफ लायंस इंटरनेशनल में हुई शिकायत के पक्ष में हलफनामा देकर एक अनोखा इतिहास रचा/बनाया है । उल्लेखनीय है कि यूँ तो कई डिस्ट्रिक्ट्स में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के बीच तनातनी के संबंध रहते हैं और अक्सर ही वह एक दूसरे को फूटी आँख से भी देखने को तैयार नहीं होते हैं - लेकिन फिर भी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ऐसा कुछ भी करने से हमेशा ही बचता है, जिससे वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खिलाफ खड़ा हुआ साफ-साफ 'दिखे' । प्रायः यही देखा गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ चाहें कितने भी तल्ख़ संबंध हों, फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उन तल्ख़ संबंधों पर पर्दा डाले रखने का प्रयास करता है । नरेश गुप्ता ने लेकिन उस पर्दे को गिरा देने का रिकॉर्ड और ऐतिहासिक काम किया है । नरेश गुप्ता के इस रवैये पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को इसलिए भी हैरानी है क्योंकि नरेश गुप्ता और विजय शिरोहा के बीच ऐसी किसी तनातनी का कोई मामला कभी किसी के सामने आया भी नहीं है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दोनों हालाँकि परस्पर विरोधी खेमे में रहे हैं, लेकिन इसके अलावा दोनों के बीच किसी तरह के टकराव के कोई संकेत किसी को नहीं मिले हैं । यहाँ तक कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हुए चुनाव से पहले, विजय शिरोहा के खेमे की तरफ से नरेश गुप्ता के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग होने की जो बात हो रही थी, उस पर विजय शिरोहा ने ही अपनी पहल से धूल डलवाई थी । विजय शिरोहा ने खुद आगे बढ़ कर नरेश गुप्ता को आगाह भी किया था कि कुछेक लोग उनके व्यवहार से नाराज हैं और उनके खिलाफ नेगेटिव वोट करना चाहते हैं, इसलिए उन्हें थोड़ा सावधान होकर स्थितियों को संभाल लेना चाहिए । इस तरह, विरोधी खेमे में होने के बावजूद विजय शिरोहा ने तो नरेश गुप्ता के प्रति हमदर्दी और सहयोग व समर्थन का भाव ही रखा था - लोगों को आश्चर्य इसी बात का है कि आखिर तब फिर नरेश गुप्ता को विजय शिरोहा के विरोध में 'रिकॉर्ड' पर जाने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी और उन्होंने सहयोग/समर्थन की दोस्ताना भावना की बात तो छोड़िये डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म की गरिमा तक को दाग लगाने से परहेज नहीं किया ?
नरेश गुप्ता ने इसका बड़ा मासूम सा जबाव दिया है । जिसने भी उनसे इस बारे में पूछा, उससे उन्होंने यही कहा है कि वह विजय शिरोहा के खिलाफ बिलकुल नहीं हैं, और वह कुछ लोगों की बातों में आ गये, जिन्होंने उन्हें भावनात्मक रूप से बहला कर उनसे हलफनामे पर हस्ताक्षर करवा लिए । क्या यह उस व्यक्ति का जबाव है - और हरकत है जो तीन महीने बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालेगा ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद एक जिम्मेदारी का पद है - तीन महीने बाद एक ऐसा व्यक्ति इस पद पर बैठेगा जो लोगों की बातों में आ जाता है और भावनात्मक रूप से बहला लिया जाता है और जिससे ऐसा काम करवा लिया जाता है जिसके होने पर डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म को तो लज्जित होना ही पड़ता है, खुद वह भी लज्जित-सा महसूस करता है और उस काम को करने के बाद तरह-तरह की बहानेबाजी करके मुँह छिपाने की कोशिश करता है । यहाँ पिछले लायन वर्ष का एक प्रसंग याद करना प्रासंगिक होगा : पिछले लायन वर्ष में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन और तत्कालीन फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के बीच संबंध तब तक बहुत ही तल्ख़ हो चुके थे, जब राकेश त्रेहन को मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद की अपनी उम्मीदवारी के प्रस्तोता के रूप में विजय शिरोहा के हस्ताक्षर चाहिए थे । विजय शिरोहा ने राकेश त्रेहन के साथ अपने सारे झगड़े-झंझट को किनारे करके राकेश त्रेहन की उम्मीदवारी के पर्चे पर हस्ताक्षर किये थे । विजय शिरोहा के नजदीकियों ने कई कई बातों का हवाला देकर उन्हें हस्ताक्षर करने से रोकने की बहुतेरी कोशिश की थी, लेकिन विजय शिरोहा का एक ही जबाव था कि डिस्ट्रिक्ट के झगड़े को वह मल्टीपल तक नहीं ले जायेंगे । उनका कहना था कि वह नहीं चाहते हैं कि मल्टीपल में लोग यह कहें कि विजय शिरोहा के हस्ताक्षर नहीं करने से राकेश त्रेहन मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए नामांकन नहीं भर सके ।
विजय शिरोहा के इस रवैये की तुलना में नरेश गुप्ता का रवैया क्या है ? नरेश गुप्ता खुलेआम यह ऐलान कर रहे हैं कि विजय शिरोहा यदि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहेंगे और इसके लिए उनके हस्ताक्षर चाहेंगे, तो वह हरगिज हस्ताक्षर नहीं करेंगे । यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि नरेश गुप्ता और विजय शिरोहा के बीच संबंध उतने तल्ख़ भी नहीं हैं, जितने कि विजय शिरोहा और राकेश त्रेहन के बीच थे - लेकिन फिर भी विजय शिरोहा ने तो राकेश त्रेहन की उम्मीदवारी के कागज पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जबकि नरेश गुप्ता ने विजय शिरोहा की उम्मीदवारी के कागज पर हस्ताक्षर न करने का ऐलान किया है । इसी से जाहिर है कि नरेश गुप्ता कितनी छोटी सोच और कितने छोटे मन के व्यक्ति हैं । डिस्ट्रिक्ट में हालाँकि कई लोगों का कहना है कि नरेश गुप्ता इतने बुरे व्यक्ति नहीं हैं, उनकी संगत दरअसल ख़राब है और ख़राब संगत ने ही उनकी सोचने/समझने की और अपने भले/बुरे को पहचानने की शक्ति को उनसे छीन लिया है । हो सकता है कि यह बात सच हो, लेकिन ख़राब संगत तो उन्होंने खुद ही चुनी है - इसके लिए किसी और को तो दोषी नहीं ठहराया जा सकता है ।
संगत की बात पर नरेश गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की राह पर आने के किस्से को जानना प्रासंगिक होगा । सुभाष गुप्ता के निधन से खाली हुए पद को भरने का जब मौका आया था तब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश त्रेहन ने खाली हुए पद पर ओंकार सिंह को बैठाने की तैयारी की थी । विजय शिरोहा ने इसका विरोध किया था । विजय शिरोहा का ओंकार सिंह के साथ कोई विरोध नहीं था । उन्हें लेकिन यह बात पसंद नहीं आई थी कि सुभाष गुप्ता की चिता की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई थी और ओंकार सिंह ने उनके निधन से खाली हुई जगह को प्राप्त करने के लिए लॉबीइंग शुरू कर दी । इसी बीच डिस्ट्रिक्ट में यह चर्चा फैली कि ओंकार सिंह को सुभाष गुप्ता के निधन से खाली हुई जगह देने/दिलवाने के बदले में राकेश त्रेहन ने उनसे मोटी रकम का सौदा कर लिया है । इस चर्चा के कारण ओंकार सिंह को लेकर राकेश त्रेहन अलग-थलग और अकेले पड़ गए । इस बीच दीपक टुटेजा ने सुभाष गुप्ता के किसी नजदीकी को ही उनकी जगह देने का सुझाव रखा, जिसका विजय शिरोहा ने जोरशोर से स्वागत/समर्थन किया । दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा की इस पहल को दूसरे लोगों ने भी पसंद किया और बात जब इस पहल पर आगे बढ़ी तो नरेश गुप्ता का नाम सामने आया और सुभाष गुप्ता की जगह उन्हें मिली । इस आधार पर नरेश गुप्ता को दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा के नजदीक होना चाहिए था, नरेश गुप्ता लेकिन उन राकेश त्रेहन के नजदीक हो गए जो उन्हें मिली 'जगह' ओंकार सिंह को दिलाना चाहते थे - विजय शिरोहा अड़ंगा न लगाते तो दिला ही देते । नरेश गुप्ता को दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा के नजदीक होना चाहिए था, लेकिन वह राकेश त्रेहन के नजदीक हो गए - यह भी कोई बड़ी बात नहीं है । पक्ष-विपक्ष समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं । लेकिन नरेश गुप्ता जिस तरह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर विजय शिरोहा के खिलाफ की गई शिकायत में पार्टी बन गए हैं और जिस तरह मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए विजय शिरोहा की संभावित उम्मीदवारी के पर्चे पर हस्ताक्षर न करने की खुली घोषणा कर रहे हैं - उससे वास्तव में वह अपने 'चरित्र' का ही परिचय दे रहे हैं ।
नरेश गुप्ता के प्रति समर्थन और हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि नरेश गुप्ता जिस तरह से कुछेक लोगों के हाथों के कठपुतली बन कर काम/व्यवहार कर रहे हैं, उसके चलते वह वास्तव में अपने गवर्नर-काल के लिए काँटे बो रहे हैं । उनका गवर्नर-काल अच्छा चले, इसके लिए जरूरी है कि वह किसी या किन्हीं लोगों के साथ दुश्मनी जैसा व्यवहार न करें और सभी के साथ बना कर रखें । उनके साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का ही कहना है कि वह चाहें किसी के भी साथ रहें, अपने भले-बुरे का ध्यान जरूर रखें - ध्यान सिर्फ इस बात का रखें कि वह जिनके साथ हैं वह अपना स्वार्थ साधने के लिए उनका इस्तेमाल तो नहीं कर रहे हैं । चाहें यह सलाह देने वाले लोग हों, और या दूसरे लोग हों - अभी तो सभी यही मान/समझ रहे हैं कि नरेश गुप्ता दूसरों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं और इस तरह अपने लिए मुसीबतों को ही तैयार कर रहे हैं ।

Friday, March 21, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में बदनाम और अपमानित करने वाली चिट्ठियों के पीछे विजय शिरोहा को ब्लैकमेल करके उनसे विक्रम शर्मा के चुनाव में खर्च हुए पैसे बसूलने की राकेश त्रेहन की चाल है क्या ?

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा ने अपने क्लब - लायंस क्लब नई दिल्ली गीतांजली - के अध्यक्ष सतीश दिवाकर को आश्वस्त किया है कि उनके नाम से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को परेशान, बदनाम और अपमानित वाले जो पत्र लिखे जा रहे हैं, उनसे उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा और इसलिए अपने नाम को इस्तेमाल होने को लेकर उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है । विक्रम शर्मा ने उन्हें बताया है कि यह सब जो चिट्ठीबाजी हो रही है, यह पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन की रणनीति का हिस्सा है और इस सब के जरिये राकेश त्रेहन दबाव बना कर विजय शिरोहा से उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में खर्च हुई उनकी रकम को वापस दिलवायेंगे । विक्रम शर्मा ने अभी हाल ही में अपने क्लब के अध्यक्ष तथा कुछेक अन्य सदस्यों से जो कुछ कहा है उसका मतलब यही है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को निशाना बना कर जो चिट्ठियाँ प्रसारित/प्रचारित की जा रही हैं, उसके पीछे असल उद्देश्य विजय शिरोहा और आरके शाह से पैसा ऐंठना है । विक्रम शर्मा के अनुसार, राकेश त्रेहन ने उन्हें भरोसा दिया है कि वह अलग-अलग नामों से रोजाना चिट्ठियाँ लिख लिख कर विजय शिरोहा को इतना परेशान कर देंगे कि विजय शिरोहा समझौता करने की बात करने लगेंगे और तब वह विजय शिरोहा से विक्रम शर्मा के चुनाव में खर्च हुए पैसे की भरपाई करने की माँग करेंगे ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन को लेकर विक्रम शर्मा की तरफ से लायंस इंटरनेशनल में औपचारिक रूप से शिकायत दर्ज करवाई गई है और इस शिकायत में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अमान्य करने की माँग की गई है । शिकायत करने/करवाने वालों को यदि अपने तथ्यों और लायंस इंटरनेशनल के न्याय-विवेक पर भरोसा है, तो उन्हें लायंस इंटरनेशनल से फैसला होने का इंतजार करना चाहिए । लेकिन फैसले का इंतजार करने की बजाये, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को जिस तरह से बदनाम करने की मुहिम छेड़ दी गई है, उससे साफ है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन को लेकर शिकायत करने/करवाने वालों को अच्छी तरह पता है कि उनकी शिकायत में कोई दम नहीं है और लायंस इंटरनेशनल से उन्हें कोई राहत नहीं मिलने वाली है । इसीलिए उस शिकायत की आड़ लेकर उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के खिलाफ हमला बोल दिया है, ताकि उन्हें ब्लैकमेल किया जा सके । राकेश त्रेहन की यह रणनीति विक्रम शर्मा को पसंद आ रही है - उन्हें लग रहा है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तो वह नहीं बन पाये, कम से कम उनका जो पैसा खर्च हुआ है, वही वापस मिल जाये ।
विक्रम शर्मा को अपने क्लब के अध्यक्ष सतीश दिवाकर से यह सब बातें कहने/बताने की जरूरत दरअसल इसलिए पड़ी, क्योंकि सतीश दिवाकर ने उनसे यह डर व्यक्त किया कि उनके नाम से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के बारे में जो बेबुनियाद और भद्दी बातें कही/लिखी जा रही हैं उसके कारण कहीं वह मुसीबत में न पड़ जाएँ । सतीश दिवाकर ने डर व्यक्त किया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने यदि उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई कर दी, तो वह बचेंगे कैसे ? क्लब के कुछेक दूसरे सदस्यों ने भी विक्रम शर्मा से इस बात के लिए विरोध जताया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के साथ निजी खुन्नस निकालने में लगे डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेताओं के जरिये वह सतीश दिवाकर के नाम को क्यों इस्तेमाल होने दे रहे हैं । इस पर ही विक्रम शर्मा ने उनके सामने यह खुलासा किया कि यह सब जो हो रहा है वह राकेश त्रेहन के द्धारा ही हो रहा है और राकेश त्रेहन ने मुझसे कहा है कि इससे किसी का कुछ नहीं बिगड़ेगा और मेरे जो पैसे चुनाव में खर्च हुए हैं वह मुझे विजय शिरोहा से मिल जायेंगे । क्लब के सदस्यों ने कहा भी कि राकेश त्रेहन जो काम दूसरे लोगों के नाम से कर रहे हैं, वही काम वह अपने नाम से क्यों नहीं करते हैं ? विक्रम शर्मा इस बात का कोई जबाव नहीं दे सके ।
विक्रम शर्मा से यह भी कहा गया कि चुनाव में उनके जो पैसे खर्च हुए हैं, वह डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेताओं के असली और नकली क्लब्स के ड्यूज देने में ही तो खर्च हुए हैं; तो जिन नेताओं ने अपने क्लब के ड्यूज के पैसे उनसे लिए हैं, वह उन्हें उनके पैसे वापस क्यों नहीं कर देते ? विक्रम शर्मा से कहा गया कि जो राकेश त्रेहन आपको विजय शिरोहा से पैसे दिलाने की बात कर रहे हैं, वह राकेश त्रेहन अपने असली और नकली क्लब्स के ड्यूज के उनसे लिए गए पैसे उन्हें वापस क्यों नहीं करते हैं ? विक्रम शर्मा इन बातों को सुनकर भी चुप ही रहे । विक्रम शर्मा लगातार एक ही बात कहते रहे कि राकेश त्रेहन ने उन्हें विश्वास दिलाया है कि वह विजय शिरोहा की ऐसी हालत कर देंगे, कि वह समझौता करने के लिए मजबूर होंगे और तब विजय शिरोहा को ब्लैकमेल करके उनसे वह सारे पैसे बसूल लिए जायेंगे जो चुनाव में खर्च हुए हैं ।
मजे की बात यह है कि विजय शिरोहा के खिलाफ चलाये जा रहे निंदा अभियान में प्रायः नकली क्लब्स के पदाधिकारियों को ही इस्तेमाल किया जा रहा है और इस तरह उन्हें एक संभावित मुश्किल की तरफ धकेला जा रहा है । नकली क्लब्स के जो पदाधिकारी बेचारे कभी किसी आयोजन में नहीं नजर आये और या जिन्होंने लायनिज्म के काम के लिए कभी चार लाइनें नहीं लिखीं, वह प्रायः रोज लंबे-लंबे पत्र लिख रहे हैं और उनमें लगभग एक सी ही भाषा है, एक सी ही बातें हैं, एक से ही तर्क हैं और एक से ही निशाने हैं । डिस्ट्रिक्ट में चर्चा है कि इन पत्रों के पीछे राकेश त्रेहन और हर्ष बंसल ही हैं । कुछेक पत्रों के पीछे अजय बुद्धराज और डीके अग्रवाल को भी पहचाना गया है । दिलचस्प बात यह है कि आपसी बातचीत में राकेश त्रेहन इन पत्रों के पीछे अजय बुद्धराज और डीके अग्रवाल के होने की बात करते हैं, तो अजय बुद्धराज और डीके अग्रवाल इन पत्रों को राकेश त्रेहन और हर्ष बंसल की कारस्तानी के रूप में देखते/बताते हैं । जाहिर है कि इन पत्रों के जरिये सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा को ही बदनाम करने की कोशिश नहीं की जा रही है, बल्कि अपने साथियों को भी बदनाम करने का मौका बना लिया जा रहा है ।

Thursday, March 20, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में कॉन्फ्रेंस के गाजियाबाद में होने से शिव कुमार चौधरी के सामने सिर्फ समर्थक नेताओं को ही साधे रखने की चुनौती नहीं है, कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरी जनमेजा के साथ निभाना भी एक बड़ी समस्या होगी

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन की जगह के बदल कर गाजियाबाद हो जाने को शिव कुमार चौधरी के समर्थक आधी लड़ाई जीत लेने के रूप में भले ही देख रहे हों, लेकिन चुनावी राजनीति के अनुभवी लोगों का मानना और कहना है कि गाजियाबाद में कॉन्फ्रेंस होने से शिव कुमार चौधरी को वास्तव में नुकसान होने का ज्यादा खतरा है । सबसे बड़ा खतरा तो यही है कि कॉन्फ्रेंस पर कब्जे को लेकर उनके दोनों समर्थक खेमे - मुकेश गोयल खेमा और कुंजबिहारी अग्रवाल खेमा - आपस में भिड़ेंगे, जिसका खामियाजा शिव कुमार चौधरी को उठाना पड़ सकता है । मजे की बात यह है कि कॉन्फ्रेंस गाजियाबाद में करवाने को लेकर मुकेश गोयल भी उत्सुक थे, और कुंजबिहारी अग्रवाल तथा सुशील अग्रवाल भी यही चाहते थे । मुकेश गोयल इसलिए उत्सुक थे जिससे कि कॉन्फ्रेंस पर कब्जा करने में उन्हें आसानी होगी और कॉन्फ्रेंस पर कब्जे के जरिये वह दिखा/जता सकेंगे कि डिस्ट्रिक्ट उनके कहे में है; कुंजबिहारी अग्रवाल और सुशील अग्रवाल की रणनीति में यह था कि गाजियाबाद में कॉन्फ्रेंस करवा कर और मुकेश गोयल को किनारे बैठा कर वह मुकेश गोयल के 'राजनीतिक खात्मे' का सार्वजनिक प्रदर्शन कर सकेंगे । उन्हें विश्वास है कि गाजियाबाद इलाका भले ही मुकेश गोयल का हो, लेकिन इस बार की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस पर कब्ज़ा मुकेश गोयल का नहीं बल्कि उनका होगा । अपना-अपना लक्ष्य पाने की कोशिश में यह दोनों भिड़ेंगे, जिसके चलते नुकसान शिव कुमार चौधरी का होगा ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल को राजनीतिक रूप से निपटाने की कुंजबिहारी अग्रवाल और सुशील अग्रवाल की पुरानी हसरत है, जो इस बार उन्हें पूरी होती हुई दिख रही है । दिलचस्प संयोग यह है कि शिव कुमार चौधरी अभी भले ही मुकेश गोयल की मदद ले रहे हों, लेकिन कुछ समय पहले तक वह यही घोषणा किया करते थे कि वह तो उम्मीदवार इसीलिए बने हैं ताकि मुकेश गोयल की राजनीतिक चौधराहट का खात्मा कर सकें । मुकेश गोयल के लिए चुनौती यह हो गई है कि उन्होंने अपने लोगों को तो अपना दुश्मन बना लिया है, और अब अपने घोषित दुश्मनों के साथ मिल कर उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन बचानी है । मुकेश गोयल को 'दुश्मनों' ने बाहर से भी घेर लिया है और भीतर से भी निशाने पर ले लिया है । हालाँकि उनके 'दुश्मनों' का ही यह भी मानना और कहना है कि मुकेश गोयल को निपटाना आसान नहीं है, और वह अपने बच निकलने की राह बना ही लेते हैं । डर लेकिन यही है कि मुकेश गोयल के बच निकलने की राह कहीं शिव कुमार चौधरी के अरमानों पर रोलर चला कर न बने !
शिव कुमार चौधरी के लिए मुसीबत की बात दरअसल यही है कि उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करते 'दिख' रहे नेता उन्हें चुनवाने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें चुनवाने की आड़ में अपने अपने राजनीतिक लक्ष्य प्राप्त करने की जुगाड़ में हैं । ऐसे में खतरा यही है कि उनके समर्थन में दिखने वाले जिस भी नेता को अपना लक्ष्य प्राप्त होता नहीं दिखेगा, तो वह कूद कर दूसरी तरफ जाने में देर नहीं लगायेगा । इसके लिए नेताओं ने पहले से व्यवस्था भी बना ली है - कुंजबिहारी अग्रवाल ने शिव कुमार चौधरी से नजदीकी बनाई हुई है तो सुशील अग्रवाल ने सुनील जैन से तार जोड़े हुए हैं । मुकेश गोयल तो सार्वजानिक रूप से कहते ही हैं - 'जिसमें मेरा फायदा, वही मेरा कायदा ।' मुकेश गोयल के एक अत्यंत नजदीकी का कहना है कि मुकेश गोयल यदि अभी हाल तक उन्हें खुलेआम गालियाँ देते रहे शिव कुमार चौधरी के साथ आ सकते हैं, तो स्थितियाँ प्रतिकूल होने पर उन्हें दूसरी तरफ जाने में देर क्यों लगेगी ? जाहिर है कि अपने समर्थकों को अपने साथ बनाये रखने की जिम्मेदारी शिव कुमार चौधरी को ही निभानी है । उनके समर्थक दोनों खेमों के नेताओं में आपसी उठापटक न हो, इसकी चिंता जब अभी हाल ही में मुजफ्फरनगर की एक मीटिंग में सामने आई तो उस मीटिंग में उपस्थित नेताओं ने एक स्वर में साफ साफ यह कह कर अपने हाथ झाड़ लिए कि मुकेश गोयल को संभालने की जिम्मेदारी विनीत शर्मा को ही लेनी होगी । विनीत शर्मा के यूँ तो मुकेश गोयल के साथ बहुत गहरे संबंध हैं और इन्हीं संबंधों की बदौलत उन्होंने मुकेश गोयल का समर्थन शिव कुमार चौधरी के लिए संभव बनाया है - लेकिन उक्त गहरे संबंधों के बावजूद पिछले वर्षों में कुछेक बार वह मुकेश गोयल के खिलाफ भी खड़े दिखे हैं; इसीलिए शिव कुमार चौधरी के साथ मुकेश गोयल के बने रहने में विनीत शर्मा के गहरे संबंध कोई गारंटी नहीं हैं ।
शिव कुमार चौधरी के सामने सिर्फ नेताओं को ही साधे रखने की चुनौती नहीं है । कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरी जनमेजा और उनकी कोर टीम के सदस्यों के साथ निभाना भी उनके लिए एक बड़ी समस्या होगी । सुधीर जनमेजा के साथ शिव कुमार चौधरी के बिगड़े संबंधों के 'कारणों' के गवाह चूँकि गुरी जनमेजा और उनकी कोर टीम के सदस्य रहे हैं, इसलिए वह शिव कुमार चौधरी से उनका बदला भी लेना चाहेंगे और शिव कुमार चौधरी को अपने कब्जे में भी रखना चाहेंगे । उम्मीदवार के रूप में शिव कुमार चौधरी ने जो एक फार्मूला अपनाया - कि सामने वाले को पहले सब्जबाग दिखाओ और फिर जब सचमुच कुछ करने का मौका आये तो बच निकलो - उसका शिकार उन्होंने सुधीर जनमेजा को भी बनाया । हालाँकि होशियारी सिर्फ शिव कुमार चौधरी ने ही नहीं दिखाई थी, सुधीर जनमेजा ने भी दिखाई थी - लेकिन जो संबंध बनाने की कोशिश शिव कुमार चौधरी ने की थी, उसे निभाने की ज्यादा जिम्मेदारी भी उन्हीं की थी । सुधीर जनमेजा की 'गलती' यही थी कि शिव कुमार चौधरी जिस तरह उन्हें इस्तेमाल करना चाहते थे, सुधीर जनमेजा उसकी पूरी कीमत उनसे बसूल करना चाहते थे । शिव कुमार चौधरी उन्हें इस्तेमाल तो करना चाहते थे, लेकिन उसकी कीमत नहीं देना चाहते थे - और यहीं बात बिगड़ गई । लगभग वही स्थिति अब है । शिव कुमार चौधरी गाजियाबाद में कॉन्फ्रेंस होने का फायदा उठाना चाहते हैं और इसकी कीमत भी देने की बात कर रहे हैं । सुनने में आया है कि उनकी तरफ से गुरी जनमेजा को बता दिया गया है कि कॉन्फ्रेंस का खर्चा वह कर देंगे । आशंका यह है कि यह 'खर्चा' वाला मामला बबाल पैदा कर सकता है - क्योंकि अभी यह तय नहीं हुआ है कि 'खर्चा' कितना होगा; और 'खर्चे' का हिसाब किसका माना जायेगा । सुधीर जनमेजा 'खर्चे' का जो हिसाब देते/बताते थे, वह कभी किसी की समझ में नहीं आया; गुरी जनमेजा जो 'खर्चा' बतायेंगी, वह शिव कुमार चौधरी को समझ में आ जायेगा - यह एक बड़ा प्रश्न है । और यही प्रश्न शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के लिए बड़ी चुनौती है ।
इसीलिए कई लोगों को लग रहा है कि गाजियाबाद में कॉन्फ्रेंस होने से शिव कुमार चौधरी को लाभ कम, नुकसान ज्यादा होने का खतरा है । रोचक तथ्य यह है कि इस खतरे को उन्होंने खुद ही आमंत्रित किया है और शायद अभी वह इस खतरे को समझ/पहचान भी नहीं पा रहे हैं ।

Wednesday, March 19, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अपनी सक्रियता की बजाए नेताओं के समर्थन पर ज्यादा भरोसा करने के कारण डॉक्टर सुब्रमणियन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी का दावा स्वतः कमजोर पड़ रहा है

नई दिल्ली । डॉक्टर सुब्रमणियन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी का झंडा खड़ा करने की कोशिशों में लगे लोगों के लिए संभावित समर्थकों के बीच डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी पर सहमति बनाना मुश्किल हो रहा है, और इसीलिए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को लेकर किया जाने वाला ऐलान लगातार टलता जा रहा है । इस सब के चलते डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को लेकर संशय लगातार बना हुआ है । दरअसल जो लोग डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के लिए प्रयत्नशील हैं, उनकी कोशिश है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के जो जो खिलाड़ी उनके साथ हो सकते हैं, पहले उनको विश्वास में ले लें और डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति उनके समर्थन की हामी भरवा लें - तब डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का ऐलान करें । ऐसा करने में समस्या यह हो रही है कि संभावित समर्थकों को या तो इकठ्ठा नहीं किया जा पा रहा है और या संभावित समर्थकों में डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को लेकर संदेह बना हुआ है । इसी चक्कर में पिछले दिनों जब भी संभावित समर्थकों को लेकर मीटिंग करने की तैयारी की गई, वह 'इस' या 'उस' कारण से टल गई और डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी पर सहमति बनाने का फैसला आगे के लिए बढ़ गया ।
डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के लिए बने इस प्लान को लेकर कुछेक लोगों के बीच मजाक भी सुनने को मिला है । एक मजेदार मजाक यह सुनने को मिला कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को अस्पताल में मरीज के होने वाले ऑपरेशन जैसा मामला समझ लिया गया है । जैसे अस्पताल में मरीज के ऑपरेशन से पहले तैयारी की जाती है - उसका वीपी चेक किया जाता है, उसका शुगर लेबल देखा जाता है, यह पता किया जाता है कि उसे और कोई बीमारी तो नहीं है, उसके रिश्तेदारों की सहमति ली जाती है - और हाँ, उसका पर्स भी चेक किया जाता है, यह जानने के लिए कि वह ऑपरेशन का खर्च उठा पायेगा या नहीं; ठीक उसी तर्ज पर जैसे डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की तैयारी की जा रही है । इस तैयारी में जैसे यह देखने/समझने से इंकार किया जा रहा है कि चुनाव लड़ना बिलकुल एक अलग तरह का मामला है; यह एक ऐसा मामला है जैसे सामने 'आग का दरिया है, और उसमें डूब के पार जाना है ।' डॉक्टर सुब्रमणियन एक बार चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बन चुके हैं - यहाँ जानबूझ कर यह कहने से बचा जा रहा है कि वह एक बार चुनाव लड़ चुके हैं; क्योंकि तब चुनाव उन्होंने लड़ा नहीं था, वह चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा भर बने थे - इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि उस अनुभव से अवश्य ही उन्होंने कुछ सबक सीखे होंगे । लेकिन लगता यही है कि चुनावी लड़ाई के कोई गुर उन्होंने अपने पिछले अनुभव से नहीं सीखे हैं, और अबकी बार भी वह सिर्फ चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा भर होना चाहते हैं, चुनाव लड़ना नहीं चाहते ।
दरअसल इसीलिए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के झंडाबरदार जिन संभावित समर्थकों को जुटा कर डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का ऐलान करना चाहते हैं, उनके बीच डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव पैदा नहीं हो पा रहा है । उनकी उम्मीदवारी के संदर्भ में जिन लोगों को संभावित समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है उनमें से कइयों को तो यही शक है कि डॉक्टर सुब्रमणियन सचमुच में एक उम्मीदवार की जिम्मेदारियों का निर्वाह कर भी सकेंगे ? इसीलिए उनमें से अधिकतर का कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन को पहले एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय होना चाहिए तथा इस बात को प्रखर तरीके से 'दिखाना' चाहिए कि एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय होने की सामर्थ्य उनमें है । कई लोगों का कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा करने से पहले जिस तरह की सर्वानुमति बनाने की कोशिश की जा रही है वह एक बेकार की कसरत है, जिसका किसी भी तरह से कोई फायदा नहीं मिलना है । डॉक्टर सुब्रमणियन और उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तोताओं को एक बात बहुत अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि यह सिर्फ उनकी 'लड़ाई' है, जिसे उन्हें 'खुद' लड़ना है - वह लड़ते हुए 'दिखेंगे' तो सहयोगी और समर्थक खुद-ब-खुद जुड़ते जायेंगे ।
डॉक्टर सुब्रमणियन और उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तोता जिन लोगों को अपने संभावित समर्थकों के रूप में देख रहे हैं, उनमें से अधिकतर दरअसल दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर चुके हैं । शिमला में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजय खन्ना के ऐजी व कोर टीम के ट्रेनिंग सेमीनार में इकठ्ठा हुए लोगों के बीच अगले रोटरी वर्ष के चुनावी परिदृश्य को लेकर चर्चा हुई थी, जिसमें बताया गया था कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने तो उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से साफ इंकार कर दिया है और वहाँ मौजूद सभी नेताओं ने अगले रोटरी वर्ष की चुनावी परिस्थितियों का आकलन करते हुए नतीजा निकाला था कि उनके लिए दीपक गुप्ता ही मोस्ट सूटेबल उम्मीदवार होंगे । इस नतीजे का इसलिए खास महत्व है कि जहाँ यह नतीजा निकाला गया था, वहाँ अगले रोटरी वर्ष के एक अन्य संभावित उम्मीदवार शरत जैन भी मौजूद थे । शरत जैन की उम्मीदवारी को ख़ारिज करते हुए जिस तरह से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त किया गया, उससे अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति के संदर्भ में दरअसल एक बात और साफ हुई - कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव उम्मीदवारों के साथ-साथ दो खेमों के बीच भी होगा । हाल ही में हुए सीओएल के चुनाव ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दो खेमों में बाँट दिया है - एक खेमे के रूप में अरनेजा गिरोह है; और जो लोग अरनेजा गिरोह के लोगों की टुच्ची और घटिया हरकतों के विरोध में हैं वह दूसरा खेमा बनाते हैं । अरनेजा गिरोह को सीओएल के चुनाव में तमाम घटिया तिकड़मों के बावजूद जिस तरह हार का मुँह देखना पड़ा, उसके चलते दूसरे खेमे के लोग बम-बम हैं ।
दूसरे खेमे के लोग अगले रोटरी वर्ष में भी अपनी एकता को बनाये रखना और दिखाना चाहते हैं और इसीलिए वह अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं । शरत जैन को चूँकि अरनेजा गिरोह के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए दूसरे खेमे के लोगों को एक ऐसे उम्मीदवार की तलाश है जो शरत जैन से मुकाबला कर सके । दूसरे खेमे के कई नेताओं को अपनी यह तलाश दीपक गुप्ता पर आकर ख़त्म होती हुई दिखती है, और इसीलिए शिमला में ऐजी व कोर टीम के ट्रेनिंग सेमीनार में जुटे नेताओं ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त कर दिया । दूसरे खेमे के नेताओं की इस एकता ने अपनी उम्मीदवारी की प्रस्तुति से साफ साफ इंकार कर चुके डॉक्टर सुब्रमणियन के मन में लड्डू फोड़ने का काम किया - उन्हें लगा कि जो माहौल है उसमें उनका काम बन सकता है; सो मौके का फायदा उठाने की गरज से उन्होंने यू-टर्न लिया और अपनी उम्मीदवारी की बात करने/चलाने लगे । डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को लेकर लेकिन जो नाटक चल रहा है, उसने उनकी उम्मीदवारी की बुनियादी कमजोरी को ही जाहिर करने का काम किया है । डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति हमदर्दी का भाव रखने वाले लोगों का ही मानना और कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन अपनी उम्मीदवारी के प्रति नेताओं के समर्थन को सुनिश्चित करने का जो उपक्रम कर रहे हैं उससे लोगों के बीच संदेश यही जा रहा है कि वह अपनी रणनीति और अपनी सक्रियता की बजाए नेताओं के समर्थन पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं । इससे लोगों के बीच ही नहीं, नेताओं के बीच भी उनकी उम्मीदवारी का दावा स्वतः कमजोर पड़ रहा है । इसी कारण से दूसरे खेमे के नेताओं के बीच डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव पैदा नहीं हो पा रहा है और डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा का ऐलान लगातार टलता जा रहा है ।

Tuesday, March 18, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में पैसों की घपलेबाजी के बाबत डिस्ट्रिक्ट कार्यालय की भूमिका को लेकर सुशील अग्रवाल और सुनील जैन मुश्किल में फँसे

देहरादून/गाजियाबाद । सुशील अग्रवाल और सुनील जैन को गुरी जनमेजा को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाना खासा भारी पड़ रहा है । कई लोगों ने इनसे कहा है और बार-बार कहा है कि इन्होंने गुरी जनमेजा को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तो चुनवा दिया है, लेकिन अब इन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि गुरी जनमेजा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह भी जिम्मेदारी के साथ करें । सुशील अग्रवाल और सुनील जैन हालाँकि यह कह कर बचने की कोशिश तो कर रहे हैं कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने के बाद गुरी जनमेजा अपने तरीके से ही फैसले कर रही हैं और उनकी नहीं सुन रही हैं - लेकिन लोगों को यही लग रहा है कि यह सिर्फ इनकी बहानेबाजी ही है । उधर गुरी जनमेजा के नजदीकियों को लग रहा है कि सुशील अग्रवाल और सुनील जैन ही गुरी जनमेजा को बदनाम करने वाली कहानियाँ फैला रहे हैं । मामला डिस्ट्रिक्ट अकाउंट के पैसों का है । उल्लेखनीय है कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गुरी जनमेजा की उम्मीदवारी सामने आने से चकित हुए लोगों को यही बताया गया था कि गुरी जनमेजा को राजी करने के लिए सुशील अग्रवाल और सुनील जैन ने सिर्फ एक ही तर्क इस्तेमाल किया था; और वह यह कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन कर ही उन्हें डिस्ट्रिक्ट अकाउंट की रकम मिल सकेगी । अब यह कहानियाँ सुनी जा रही हैं कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में गुरी जनमेजा इसलिए कुछ करने को तैयार नहीं हैं क्योंकि कुछ भी करने में पैसे खर्च होंगे । कुछ न करके डिस्ट्रिक्ट अकाउंट के पैसे बचाने से लेकर पैसों संबंधी कई तरह के घालमेलों के आरोप सुधीर जनमेजा पर भी थे ।
आकस्मिक रूप से दिवंगत हो चुकने से कुछ ही दिन पहले सुधीर जनमेजा को रीजन चेयरपर्सन अमर बोस गुप्ता का अपने 21 हजार रुपये वापस करने की माँग करता हुआ पत्र मिला था, जिसकी प्रतियाँ अमर बोस गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों को भेजी थीं । उनका पत्र सामने आने के बाद अन्य कई लोग अपने अपने पैसे माँगने के लिए पत्र लिखने/भेजने की बात करते सुने जाने लगे थे । लोगों का आरोप रहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा ने मोटी रकम तो जुटाई, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियों को निभाने में वह कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं - इसलिए उन्हें जुटाई गई रकम लोगों को वापस कर देनी चाहिए । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा ने 18 रीजन चेयरमैनों से 31-31 हजार रुपये; 34 जोन चेयरमैनों से 21-21 हजार रुपये; अधिकृत 24 कमेटी चेयरमैनों से 21-21 हजार रुपये; 15 डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरों से 15-15 हजार रुपये के हिसाब से 20 लाख रुपये से अधिक की रकम जुटाई । प्रत्येक लायन सदस्य से मिलने वाले 350 रुपये के डिस्ट्रिक्ट ड्यूज को जोड़ लें तो डिस्ट्रिक्ट के करीब 4800 लायन सदस्यों के करीब 17 लाख रुपये और डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में आते हैं । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन के जरिये मोटी रकम जुटाई गई है । डिस्ट्रिक्ट कार्यालय से जुड़े लोगों का ही कहना रहा है कि डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में करीब 50 लाख रुपये जमा होने चाहिए ।
डिस्ट्रिक्ट कार्यालय द्धारा हुए खर्च की जहाँ तक बात है तो लायन क्वेस्ट के कार्यक्रमों में जो पैसा खर्च हुआ उसका एक हिस्सा लायंस इंटरनेशनल कार्यालय से मिला और बाकी पैसा शिव कुमार चौधरी द्धारा देने का दावा किया गया । गाजियाबाद में आयोजित हुए फर्स्ट कैबिनेट मीटिंग और डिस्ट्रिक्ट अधिष्ठापन में हुए खर्च को जुटाने के लिए रजिस्ट्रेशन लिया गया था । हरिद्धार में आयोजित हुई दूसरी और शामली में आयोजित हुई तीसरी कैबिनेट मीटिंग का खर्चा उम्मीदवारों से लिया गया । जाहिर है कि डिस्ट्रिक्ट कार्यालय से कोई पैसा खर्च हुआ ही नहीं । यह मुद्दा और हिसाब-किताब तीसरी कैबिनेट मीटिंग में उस समय सामने आया था जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा ने वहाँ मौजूद लोगों के बीच घोषणा की कि डिस्ट्रिक्ट कार्यालय तीन-चार लाख रुपये के घाटे में चल रहा है । लोगों ने यह सुना तो सकते में आ गए । वह जानते ही थे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा ने सिर्फ और सिर्फ पैसे इकट्ठे करने का ही काम किया है और पचासों लाख रूपये इकट्ठे कर लिए हैं; तथा खर्च करने के नाम पर इकन्नी नहीं खर्च की है - और अब वह घाटे की बात कर रहे हैं । घाटे की इस बात को लोगों से और रकम ऐंठने की उनकी बहानेबाजी के रूप में देखा/पहचाना गया । इसके बाद, सुधीर जनमेजा ने कुछेक पदाधिकारियों को हटा कर उनकी जगह दूसरे लोगों को पद देने की जो कोशिश की, उस कोशिश में और पैसा जुटाने की उनकी तरकीब सामने आ गई । इसी तरकीब के नतीजे के रूप में अमर बोस गुप्ता का पत्र सामने आया और सुधीर जनमेजा का भांडा फूटा ।
सुधीर जनमेजा पैसों की घपलेबाजी के आरोपों में घिरना शुरू ही हुए थे कि एक दुखद घटनाचक्र में काल के शिकार हो गए । उनकी चिता में सिर्फ उनका शरीर ही नहीं जला, उनके ऊपर लग रहे आरोप और उनसे हो रही मांगें भी जल गईं । लेकिन उनकी चिता की राख के ठंडी होने से पहले ही जिस तरह उनकी पत्नी गुरी जनमेजा का नाम कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनाई देने लगा, उससे मामले ने एक बार फिर सिर उठाना शुरू कर दिया । गुरी जनमेजा को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए तैयार करने से लेकर बनवाने तक की जिम्मेदारी चूँकि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन ने निभाई थी, इसलिए जिन लोगों को डिस्ट्रिक्ट कार्यालय से अपना पैसा वापस चाहिए और या पैसों का हिसाब-किताब चाहिए - वह इन्हीं दोनों को घेर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में विज्ञापन के नाम पर जिन लोगों ने पैसा दिया है, वह अपना पैसा वापस दिलाने के लिए सुशील अग्रवाल और सुनील जैन का दरवाजा खटखटा रहे हैं । अपना अपना पैसा वापस माँगने वालों की बातों से ही यह भेद भी खुला कि सुधीर जनमेजा ने ताशकंद में पिकनिक मनाने जाने के कार्यक्रम के नाम पर भी मोटी रकम इकठ्ठा की थी, लेकिन कार्यक्रम का कोई अता-पता ही नहीं है । ऐसे लोगों ने भी सुशील अग्रवाल और सुनील जैन को पकड़ा है और उनसे कहा है कि जब ताशकंद जाने के कार्यक्रम का कुछ अता-पता ही नहीं है, तो उस पैसे को वापस करवाया जाये ।
सुशील अग्रवाल और सुनील जैन यह कहते हुए अपने को बचाने की कोशिश कर रहे हैं कि गुरी जनमेजा अपने तरीके से काम कर रही हैं और डिस्ट्रिक्ट अकाउंट के बारे में सच्चाई वही जानती हैं, इसलिए इस संबंध में उनसे ही संपर्क किया जाये । इनका यह जबाव लेकिन किसी को हजम नहीं हो रहा है - क्योंकि गुरी जनमेजा को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने में इन्हीं लोगों ने अपना दिन-रात एक किया हुआ था । लोगों को लगता है कि अपना अपना काम निकालने/बनाने के लिए इन्होंने गुरी जनमेजा को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाया है, लेकिन लोगों के काम करवाने से यह बचने की कोशिश कर रहे हैं । पैसों की घपलेबाजी के बाबत डिस्ट्रिक्ट कार्यालय की भूमिका को लेकर लोगों की नाराजगी जिस तरह बढ़ती जा रही है, उससे लगता है कि सुशील अग्रवाल और सुनील जैन के लिए आने वाले दिन खासे चुनौतीपूर्ण होंगे ।

Sunday, March 16, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने की दीपक बाबू की माँग को रोटरी इंटरनेशनल द्धारा ख़ारिज कर दिए जाने के बाद तो कॉन्करेंस जुटाने की दीपक बाबू की कोशिशों और उम्मीदों पर कुठाराघात ही हो गया है

मुरादाबाद । दीपक बाबू को अब रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने भी बता दिया है कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर उनकी जो शिकायतें हैं, उनमें किसी भी तरह का कोई तर्क-दम नहीं है । इसी के साथ, दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करवा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने का सपना देखने वाले दीपक बाबू की सारी तरकीबें धूल-धूसरित हो गईं हैं । दीपक बाबू के लिए इससे भी ज्यादा मुसीबत की बात यह हुई है कि रोटरी इंटरनेशनल का फैसला ऐसे समय आया है, जबकि रोटरी इंटरनेशनल में की गई अपनी शिकायत का वास्ता देकर वह अपनी उम्मीदवारी को मान्य करवाने के लिए आवश्यक क्लब्स के कॉन्करेंस जुटाने की कोशिशों में लगे हुए हैं । उल्लेखनीय है कि कॉन्करेंस के लिए क्लब्स के पदाधिकारियों को पटाने के उद्देश्य से वह बराबर यह तर्क दे रहे थे कि रोटरी इंटरनेशनल उनकी शिकायत पर कार्रवाई करते हुए दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त कर देगा, इसलिए क्लब्स के पदाधिकारियों को उनके साथ रहने में ही फायदा है । रोटरी इंटरनेशनल का नाम लेकर दीपक बाबू लोगों को दरअसल उल्लू बनाने का ही प्रयास कर रहे थे - अन्यथा वह अच्छी तरह से जानते/समझते थे कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के खिलाफ उनकी जो शिकायत है उसमें कोई तर्क-दम नहीं है; यदि सचमुच में होता तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ही दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त कर देते । गौर करने वाला तथ्य यह है कि दीपक बाबू ने दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने हेतु अपना शिकायती पत्र पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को ही सौंपा था, और राकेश सिंघल ने उनकी आपत्तियों के बारे में रोटरी के तमाम बड़े नेताओं से पूछताछ की थी; लेकिन सभी ने राकेश सिंघल को साफ साफ चेता दिया था कि दीपक बाबू की शिकायत में जो तर्क-तथ्य दिए गए हैं उनके आधार पर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त नहीं किया जा सकता है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल इसी कारण से दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने के लिए मजबूर हुए थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के यहाँ दीपक बाबू की जब दाल नहीं गली तब वह अपनी शिकायत को लेकर रोटरी इंटरनेशनल में जा पहुँचे । रोटरी इंटरनेशनल में अपनी शिकायत को ले जाते समय दीपक बाबू को अच्छी तरह पता था कि रोटरी इंटरनेशनल भी उनकी शिकायत के आधार पर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त नहीं करेगा, लेकिन फिर भी वह अपनी शिकायत को लेकर रोटरी इंटरनेशनल में गए तो सिर्फ इसलिए ताकि इसे दिखा/बता कर वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों को भ्रमित कर सकें और लोगों को धोखे में रखकर अपना उल्लू सीधा कर सकें । उनकी तरकीब काम तो नहीं कर रही थी, लेकिन फिर भी वह लोगों को उल्लू बनाने के काम में जुटे हुए थे । अभी वह कॉन्करेंस जुटाने हेतु जिन लोगों से मिले उन्हें वह यही बता रहे थे कि रोटरी इंटरनेशनल में उन्होंने जो शिकायत की है, उसका फैसला बस आने ही वाला है और उस फैसले में दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने का ही फैसला होगा । रोटरी इंटरनेशनल के फैसले ने लेकिन उनके सपनों पर पानी फेर दिया है ।
रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने दीपक बाबू को सूचित किया है कि उनकी शिकायत में दिए गए तथ्यों की पड़ताल हेतु तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई थी, जिसने बड़ी बारीकी से तथ्यों को देखा और उनकी व्याख्या की । अपनी पड़ताल और अपनी व्याख्या में उक्त कमेटी ने पाया कि ऐसा कोई कारण प्रस्तुत तथ्यों में नहीं मिलता है जिसके आधार पर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त किया जाये । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से मिले इस तो-टूक जबाव से साबित हो गया है कि दीपक बाबू जिस भरोसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने की तिकड़म लगा रहे थे, वह अपनी प्रकृति और अपनी सोच में कितना नकारात्मक और फर्जी था ।
मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में दीपक बाबू ने लोगों से व्यवहार ही नहीं किया । लोगों की एक आम शिकायत रही है कि उम्मीदवार होने के बावजूद उन्होंने लोगों से कभी भी सीधे मुँह बात तक नहीं की; कई मौकों पर तो उन्होंने बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में व्यवहार किया । कुछेक पूर्व गवर्नर्स तक ने यह महसूस किया और इस बात का जिक्र भी किया कि दीपक बाबू तो अपने आप को गवर्नर समझ रहे हैं । दिवाकर अग्रवाल के प्रति डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की खुन्नस को अपने लिए वरदान समझने वाले दीपक बाबू को उम्मीद रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल किसी भी कीमत पर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को मान्य नहीं होने देंगे, और वह बिना कुछ किए-धरे ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी हो जायेंगे । इस चक्कर में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने अपनी खासी किरकिरी करवाई और हुआ कुछ नहीं । दीपक बाबू सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के भरोसे रहे और उन्होंने लोगों की कोई परवाह नहीं की । बदले में लोगों ने भी उनकी कोई परवाह नहीं की । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की मदद भी दीपक बाबू के काम नहीं आई और नोमीनेटिंग कमेटी में भी लोगों ने दीपक बाबू को नकार दिया ।
दीपक बाबू ने लेकिन इस सब से कोई सबक नहीं सीखा है । अभी भी वह दावा कर रहे हैं कि उनकी उम्मीदवारी यदि मान्य हो जाती है तो वह वोट तो अध्यक्षों को पैसे देकर खरीद लेंगे । वोट खरीद कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने का सपना देख रहे और दावा कर रहे दीपक बाबू को लेकिन अभी तो कॉन्करेंस जुटाने के लाले पड़ रहे हैं । रोटरी इंटरनेशनल द्धारा उनकी शिकायत रद्द कर देने के बाद तो कॉन्करेंस जुटाने की उनकी कोशिशों और उम्मीदों पर कुठाराघात ही हो गया है । लोगों के सामने दीपक बाबू की पोल अब पूरी तरह खुल गई है और उनके नजदीकियों व समर्थकों ने भी मानना और कहना शुरू कर दिया है कि दिवाकर अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने से अब किसी भी तरह से नहीं रोका जा सकता है ।

Saturday, March 15, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अवतार कृष्ण की पुनः अवतरित हुई उम्मीदवारी ने शिव कुमार चौधरी के लिए मामला उतना आसान नहीं रहने दिया है, जितना कि वह कुछ दिन पहले तक लगता था

देहरादून/गाजियाबाद । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल ने जो तवज्जो दी, उस तवज्जो ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को फिर से जिंदा कर दिया है । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को पुनः लौटने की साँसे हालाँकि मुकेश गोयल के उस रवैये से भी मिली जो उन्होंने अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के वापस होने के मौके पर अरुण मित्तल और सुनील जैन के प्रति दिखाया । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के ठंडे पड़ने पर मुकेश गोयल ने जिस तरह के आलोचनात्मक शब्दों का सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल किया, उसने अरुण मित्तल और सुनील जैन को भड़काने का काम किया । मुकेश गोयल द्धारा पैदा की गई चुनौती का जबाव देने के लिए उन्होंने अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की डोर एक बार फिर से थाम ली । इसी बीच सुशील अग्रवाल ने सुनील जैन के साथ जिस तरह से तार जोड़ने की कोशिश की, उससे भी अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को लेकर अरुण मित्तल और सुनील जैन को बल मिला है ।
अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के बाबत अरुण मित्तल और सुनील जैन को बल दरअसल यह देख कर भी मिला कि शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी मुकेश गोयल और कुंजबिहारी अग्रवाल के बीच फँस गई है । फँस इसलिए गई है क्योंकि शिव कुमार चौधरी तो दोनों का समर्थन मिलने का दावा कर रहे हैं, लेकिन उन दोनों के बीच शिव कुमार चौधरी को अपनी अपनी गिरफ्त में लेने की होड़ मची हुई है । मुकेश गोयल के दिशा-निर्देश में गाजियाबाद में होने वाली मीटिंग जिस तरह से दो बार स्थगित होकर अंततः रद्द ही हो गई, उससे मुकेश गोयल भड़के हुए हैं । मुकेश गोयल को लगता है कि उस मीटिंग को पहले स्थगित और फिर रद्द करवाने के पीछे कुंजबिहारी अग्रवाल और सुशील अग्रवाल ही हैं । उधर कुंजबिहारी अग्रवाल और सुशील अग्रवाल को भी लगता है कि शिव कुमार चौधरी ने जिस तरह से मुकेश गोयल के साथ तार जोड़े हुए हैं उसके कारण उन्हें कभी भी गच्चा खाना पड़ सकता है । मजे की बात यह है कि दोनों तरफ के लोगों को लगता है कि अकेले उनके भरोसे शिव कुमार चौधरी का काम नहीं बन सकेगा; और इसीलिए दोनों ही तरफ से शिव कुमार चौधरी को सलाह और इशारा है कि 'उनसे' भी मिलते रहो । इस तरह की सलाह और इशारे के बाद दोनों ही इस बात से डरते भी हैं कि शिव कुमार चौधरी 'उनसे' - यानि दूसरे पक्ष से 'ही' न मिल जाये और वह ठगे रह जाएँ ।
इसी डर के चलते सुशील अग्रवाल ने सुनील जैन से संबंध जोड़ लिए हैं, ताकि उन्हें यदि शिव कुमार चौधरी की तरफ से धोखे का शिकार होना पड़े तो कम से कम उनके पास एक विकल्प तो रहे । सुशील अग्रवाल ने सुनील जैन के साथ इसलिए भी तार जोड़े हैं, ताकि उन्हें अगले लायन वर्ष में - सुनील जैन के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट में महत्वपूर्ण भूमिका मिल सके । सुशील अग्रवाल की इस 'कोशिश' ने ही अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी में दम भर दिया है । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को विश्वास है कि सुशील अग्रवाल और कुंजबिहारी अग्रवाल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी का समर्थन करने में ही अपना फायदा देखेंगे, क्योंकि उसमें ही उन्हें अगले तीनों वर्ष सत्ता में बने रहने का मौका मिलेगा । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का मानना और कहना है कि सुशील अग्रवाल और कुंजबिहारी अग्रवाल को शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करके भला क्या हासिल होगा - अगले दो वर्ष तो उन्हें सत्ता से बाहर रहना ही होगा, और तीसरे वर्ष में भी सत्ता को मुकेश गोयल के साथ बाँटना होगा । शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की समस्या यह है कि उनके पास इस तर्क का कोई तोड़ नहीं है - वह यह भी नहीं कह सकते कि तीसरे वर्ष में यदि शिव कुमार चौधरी गवर्नर हुए तो सत्ता उन्हें मुकेश गोयल के साथ नहीं बाँटनी पड़ेगी ।
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए शिव कुमार चौधरी के मुकाबले अवतार कृष्ण को अभी तक दरअसल 'साधनों' के संदर्भ के चलते कमजोर माना जा रहा था । शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों ने यह हवा बनाने में अच्छी सफलता प्राप्त कर ली थी कि अवतार कृष्ण के मुकाबले शिव कुमार चौधरी अच्छे पैसे खर्च करेंगे और तब अवतार कृष्ण उनके सामने मुकाबले में नहीं टिक पायेंगे । इस हवा के चलते अवतार कृष्ण अपनी उम्मीदवारी को लेकर खासी हिचक में थे । लेकिन जैसे जैसे समय आगे बढ़ा - शिव कुमार चौधरी के गुब्बारे की हवा निकलती गई; क्योंकि लोगों ने पाया कि उनकी तरफ से बस ऊँची-ऊँची बातें ही हैं, करना-धरना कुछ नहीं है । मुकेश गोयल के दिशा-निर्देश में होने वाली मीटिंग दो बार जिस तरह से स्थगित होकर अंततः रद्द हुई, उसके लिए बहाने चाहें जो बनाये गए हों - लेकिन दिखा यही कि शिव कुमार चौधरी खर्चे वाले काम को 'करने' की बजाये उससे 'बचने' में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं । यह 'दिखने' के बाद उनमें और अवतार कृष्ण में कोई अंतर नहीं रह गया । जो अंतर है भी, उसका कारण लोगों ने यही माना/समझा कि बेचारे अवतार कृष्ण को ऊँची-ऊँची हाँकना नहीं आता है ।
अवतार कृष्ण की उम्मीवारी के पुनः अवतरित होने का श्रेय, इस तरह, शिव कुमार चौधरी के रवैये हो भी है । अपनी उम्मीदवारी के लिए शिव कुमार चौधरी दरअसल कोई एक दिशा तय ही नहीं कर पाये । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में पहले वह मुकेश गोयल को गालियाँ देते रहे, फिर अचानक वह मुकेश गोयल के उम्मीदवार हो गए । मुकेश गोयल के उम्मीदवार होने के बाद भी वह पूरी तरह उनके नहीं हो सके और वहाँ उनकी स्थिति संदेह के घेरे में ही रही । लायन राजनीति में मुकेश गोयल को एक करिश्माई नेता के रूप में देखा/पहचाना जाता है । जो जो पूर्व गवर्नर मुकेश गोयल की आलोचना करते सुने जाते हैं, उनके इतिहास उठा कर देखें तो पायेंगे कि उनमें से अधिकतर जब उम्मीदवार थे तो मुकेश गोयल की ही शरण में थे । मुकेश गोयल के करिश्मे के कारण ही वह गवर्नर बन सके थे । संभवतः इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए मुकेश गोयल को गालियाँ देते रहने वाले शिव कुमार चौधरी अंततः मुकेश गोयल की शरण में आये । किसी के लिए भी यह समझना थोड़ा मुश्किल हुआ कि शिव कुमार चौधरी जब मुकेश गोयल की शरण में आ ही गए थे, तो वहाँ अपने लिए विश्वास क्यों नहीं बना सके ? इसका एक कारण यह समझा गया कि मुकेश गोयल एक करिश्माई नेता तो हैं लेकिन उनके करिश्मे के फलीभूत होने में 'कीमत' लगती है - शिव कुमार चौधरी ने उनके करिश्मे का तो फायदा उठाना चाहा, लेकिन 'कीमत' लगाने से बचते रहे । मुकेश गोयल करीब डेढ़ महीने तक गाजियाबाद में एक मीटिंग करने की तैयारी करते रहे, लेकिन शिव कुमार चौधरी वह मीटिंग नहीं कर सके । शिव कुमार चौधरी के इसी रवैये ने उनके और मुकेश गोयल के बीच संदेह के बीज बो दिए ।
संदेह के इन्हीं बीजों से अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी का फूल खिला है ।
अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी का फूल तो खिल गया है लेकिन उनके लिए भी मामला आसान नहीं है । उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में अभी जो नेता लोग दिख रहे हैं वह वास्तव में अपनी अपनी पोजीशन को स्थापित करने के प्रयासों के चलते उनकी उम्मीदवारी के साथ आये हैं । उनके लिए राहत की बात यही है कि उनके प्रतिद्धंद्धी शिव कुमार चौधरी के मामले में भी सच यही है । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का दावा है कि अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को अगले दो वर्षों में गवर्नर का पद-भार संभालने वालों का चूँकि समर्थन है, इसलिए मनोवैज्ञानिक रूप से उनका पलड़ा भारी हो जाता है । मनोवैज्ञानिक रूप से अवतार कृष्ण का पलड़ा तो भारी हो जाता है, लेकिन उसे व्यावहारिक रूप से संभव करने की चुनौती तो उनके सामने अभी है ही । यह जरूर है कि अवतार कृष्ण की पुनः अवतरित हुई उम्मीदवारी ने शिव कुमार चौधरी के लिए मामला उतना आसान नहीं रहने दिया है, जितना कि वह कुछ दिन पहले तक लगता था; और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है ।

Friday, March 14, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3120 में सुमेर अग्रवाल और रीता मित्तल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपने अपने अनुभवों के सबक के चलते सत्ता चौकड़ी पर दबाव बना कर रंजीत सिंह के लिए सचमुच चुनौती प्रस्तुत कर पायेंगे क्या ?

लखनऊ । प्रदीप मुखर्जी के नेतृत्व वाली डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी ने इस बार श्रीनाथ खत्री के बजाये प्रमोद कुमार को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने के खेल को जिस चतुराई के साथ अंजाम तक पहुँचाया है, उसे देख/जान कर अगली बार के लिए रंजीत सिंह के 'चुने जाने' को पक्का समझा जा रहा है । उल्लेखनीय है कि अगले रोटरी वर्ष में रंजीत सिंह को इस चौकड़ी के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों की बीच की चर्चाओं को सुने/माने तो रंजीत सिंह और चौकड़ी के नेताओं के बीच 'सौदा' हो चुका है, और चौकड़ी के नेताओं ने रंजीत सिंह को 'चुनवाने' की 'सुपारी' ले ली है । प्रदीप मुख़र्जी के नेतृत्व वाली चौकड़ी ने हालाँकि पिछली बार भी, वेद प्रकाश को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवा देने में सफलता प्राप्त की थी, लेकिन सुबोध अग्रवाल ने उनकी कारस्तानियों का प्रचार करके वेद प्रकाश की जीत का मजा कुछ किरकिरा कर दिया था । दरअसल उससे पिछली बार यह चौकड़ी सतपाल गुलाटी के मामले में गच्चा खा गई थी । चौकड़ी की तमाम कोशिशों के बावजूद सतपाल गुलाटी चुनाव हार गए थे । सतपाल गुलाटी की हार को जीत में बदलने के लिए इन्हें तत्कालीन इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता की शरण में जाना पड़ा था । शेखर मेहता की मदद से इन्होंने चक्कर चलाया और हारे हुए सतपाल गुलाटी को जितवाया । सतपाल गुलाटी के मामले में धक्का खा चुकने के बाद चौकड़ी के नेताओं ने वेद प्रकाश के मामले में रिस्क लेना ठीक नहीं समझा और उन्हें जितवाने के लिए हर तरह का धतकर्म किया । वेद प्रकाश को उन्होंने चुनवा तो लिया, लेकिन सुबोध अग्रवाल ने जिस तरह से उनकी पोल-पट्टी खोली, उससे उनकी बहुत किरकिरी भी हुई ।
प्रदीप मुखर्जी के नेतृत्व वाली चौकड़ी ने इसीलिए इस बार थोड़ी सावधानी के साथ अपना खेल जमाया । प्रतिद्धंद्धी लोगों ने समझा कि इस बार यह अपनी हरकतों से बाज रहेंगे, इसलिए पर्दे के पीछे चलने वाले खेल को उन्होंने जानने/समझने की कोई कोशिश ही नहीं की । श्रीनाथ खत्री बेचारे भले व्यक्ति हैं, उन्होंने सोचा कि वह कई वर्षों से रोटरी में सक्रिय हैं; सभी उन्हें और उनकी सक्रियता को जानते/पहचानते हैं; सभी के साथ उनके अच्छे और व्यावहारिक संबंध रहे हैं; इसलिए कोई भी उन्हें हराने के लिए षड्यंत्र क्यों करेगा ? श्रीनाथ खत्री इस बात को समझ ही नहीं पाए कि डिस्ट्रिक्ट पर कब्ज़ा जमाये बैठी चौकड़ी को उनके जैसे लोग गवर्नर के रूप में नहीं चाहिए और इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुने गए अधिकृत उम्मीदवार प्रमोद कुमार की उम्मीदवारी को चेलैंज करने के लिए श्रीनाथ खत्री ने जब अपनी तैयारी दिखाई तो डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेता इतनी बुरी तरह से बौखला गए कि उन्होंने क्लब्स के पदाधिकारियों पर तरह-तरह से श्रीनाथ खत्री के पक्ष में कॉन्करेंस न देने के लिए दबाव बनाया । भीषण दबाव के बावजूद श्रीनाथ खत्री को पर्याप्त संख्या में जब कॉन्करेंस मिल गईं और उनका चेलैंज मान्य हो गया, तो सत्ता खेमे की चौकड़ी के नेताओं के सचमुच पसीने छूट गए और उन्हें सतपाल गुलाटी की हार वाला सीन दिखने लगा । इसके बाद पहला काम तो यह किया गया कि इलेक्शन कमेटी पर पूरी तरह कब्ज़ा जमाया गया और फिर क्लब्स के पदाधिकारियों और नेताओं पर शिकंजा और कसा गया तथा ऐसी व्यवस्था की कि क्लब्स के पदाधिकारियों के लिए बच निकलना मुश्किल हो जाये । श्रीनाथ खत्री और उनके समर्थक समझ तो गए थे कि डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेता अब 'अपनी' पर आ गए हैं, लेकिन उनका मुकाबला कैसे करें यह वह नहीं समझ पाये और चुनाव हार बैठे ।
डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेताओं ने इस बार अपना काम थोड़ा सफाई से किया, इसलिए इस बार उन्हें ज्यादा बदनामी नहीं मिली । दरअसल इसी बात से अगली बार के लिए रंजीत सिंह का मामला बिलकुल फिट समझा जा रहा है । इस बार की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का जिम्मा उन्हें देकर डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेताओं ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह संदेश भी दे दिया है कि अगली बार के लिए उन्होंने किसका ठेका लिया है । रंजीत सिंह का मुकाबला सुमेर अग्रवाल और रीता मित्तल से होने की संभावना जताई जा रही है । सुमेर अग्रवाल पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट को अपने कब्जे में रखने वाले नेताओं की चालों का शिकार हो चुके हैं । रीता मित्तल तो सत्ता खेमे के नेताओं की ऐसी शिकार हुईं हैं कि ऐसा उदाहरण रोटरी के इतिहास में दूसरा नहीं मिलेगा । रीता मित्तल तो बाकायदा चुनाव जीती थीं और रोटरी इंटरनेशनल द्धारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी स्वीकार भी हो चुकीं थीं, लेकिन रोटरी इंटरनेशनल में चली तिकड़म के चलते वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन सकीं । ये दोनों ही डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेताओं की कारस्तानियों को चूँकि अच्छे से जानते/पहचानते हैं इसलिए रंजीत सिंह का इनके साथ होने वाला चुनाव आसान तो नहीं होगा, लेकिन फिर भी रंजीत सिंह के समर्थकों को विश्वास है कि डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेता रंजीत सिंह की नैय्या को पार लगवा ही देंगे ।
डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेताओं ने अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतपाल गुलाटी को जिस तरह अपने शिकंजे में फँसा लिया है, उससे भी यही संकेत मिलता है कि रंजीत सिंह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतपाल गुलाटी का भी पूरा पूरा सहयोग और समर्थन रहेगा । डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोगों को हालाँकि लगता है कि सुमेर अग्रवाल और रीता मित्तल चूँकि डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी की कारस्तानियों को जानते/समझते हैं और अपने अपने तरीके से उनका विरोध करते रहे हैं इसलिए अबकी बार वह और ज्यादा सतर्क रहेंगे - जिससे कि सत्ता चौकड़ी के नेताओं को मनमानी करने की पूरी आजादी नहीं मिलेगी और इसके चलते रंजीत सिंह के लिए मामला उतना आसान नहीं होगा, जितना कि समझा जा रहा है । इन्हीं लोगों का लेकिन साथ ही यह भी मानना और कहना है कि सत्ता चौकड़ी के नेताओं पर दबाव बनाने के लिए इन्हें पहले से ही सावधान रहना होगा और उनकी हरकतों पर इन्हें नजर रखनी होगी । यह देखना दिलचस्प होगा कि सुमेर अग्रवाल और रीता मित्तल अपने अपने अनुभवों से सबक लेकर किस तरह अपनी अपनी उम्मीदवारी को आगे बढ़ाते हैं और सचमुच में रंजीत सिंह के लिए कोई चुनौती पैदा कर पाते हैं या नहीं ।

Sunday, March 9, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डीटीटीएस कार्यक्रम में शरत जैन की और उनके समर्थक नेताओं की अनुपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच संदेहास्पद बना दिया है

नई दिल्ली । शरत जैन की डीटीटीएस (डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमीनार) में अनुपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के छोटे-बड़े खिलाड़ियों का ध्यान खींचा है । शरत जैन अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने का ऐलान कर चुके हैं, इस कारण से डिस्ट्रिक्ट के हर प्रमुख कार्यक्रम में उनकी मौजूदगी की उम्मीद की जाती है । दरअसल इसीलिए डीटीटीएस में जब उन्हें अनुपस्थित पाया गया तो लोगों को हैरानी हुई । अगले रोटरी वर्ष के लिए राजनीतिक परिदृश्य चूँकि अभी बन रहा है, इसलिए संभावित उम्मीदवारों के लिए यह समय बड़ा नाजुक है - ऐसे में शरत जैन ने डिस्ट्रिक्ट के एक बड़े कार्यक्रम से अनुपस्थित होकर अपनी उम्मीदवारी के प्रति संदेह पैदा कर लिया है । शरत जैन की अनुपस्थिति इसलिए भी चर्चा का विषय बनी है, क्योंकि डीटीटीएस में उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता भी किसी को नजर नहीं आये । यानि पूरा का पूरा 'कुनबा' डीटीटीएस से गायब था । 'कुनबे' के एक सदस्य जेके गौड़ जरूर वहाँ उपस्थित थे, लेकिन वह भी कुनबे के सदस्य के तौर पर नहीं, बल्कि डीजीएन के तौर पर अपनी उपस्थिति को 'दिखाने' के लिए मशक्कत करते पहचाने जा रहे थे । डीजीएन होने के बावजूद जेके गौड़ डीटीटीएस कार्यक्रम में जुटे डिस्ट्रिक्ट के छोटे-बड़े प्रमुख लोगों के बीच जिस तरह अलग-थलग पड़े नजर आ रहे थे, उसे देख कर कई लोगों के मन में उनके प्रति दया-भाव भी पैदा हुआ । कई लोगों का मानना और कहना है कि जेके गौड़ ने अपने पद की मर्यादा का ख्याल न रखते हुए सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के चुनाव में मूर्खतापूर्ण उत्साह के साथ जो भूमिका निभाई, उसके कारण वह डिस्ट्रिक्ट में बुरी तरह से अलग-थलग पड़ गए हैं । इसी कारण से पिछले दिनों संपन्न हुए विनोद बंसल के आयोजन 'विक्टरी ओवर पोलयो' में और संजय खन्ना की ऐजी व कोर टीम के ट्रेनिंग प्रोग्राम में उन्हें अनुपस्थित होना पड़ा था, और अब डीटीटीएस में वह उपस्थित भी हुए तो लोगों से छुपते/बचते हुए से ।
जेके गौड़ की इस दशा में ही शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए चुनौती छिपी हुई है । जेके गौड़ की दशा को सीओएल के चुनाव के साइड इफेक्ट के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, तो शरत जैन की उम्मीदवारी को भी उसी साइड इफेक्ट के शिकार के रूप में पहचाना जा रहा है । यहाँ इस तथ्य को नोट करना प्रासंगिक होगा कि सीओएल के चुनाव के पहले तक जो शरत जैन सत्ता के बहुत नजदीक थे और विनोद बंसल तथा संजय खन्ना के आयोजनों में महत्वपूर्ण भूमिकाओं में आगे-आगे दिखते थे, सीओएल के चुनाव के बाद सत्ता से अलग कर दिए गए हैं । सीओएल के चुनाव से पहले हुए संजय खन्ना के प्रत्येक कार्यक्रम में आगे-आगे दिखने वाले शरत जैन सीओएल के चुनाव के बाद शिमला में हुए ऐजी व कोर टीम सेमीनार में बिलकुल पीछे धकेल दिए गए । शरत जैन ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को जब प्रस्तुत किया था, तब उन्हें डिस्ट्रिक्ट के सत्ताधारियों और उनके नजदीकी नेताओं का पूरा-पूरा समर्थन दिख रहा था । यह इसलिए भी दिख रहा था क्योंकि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजय खन्ना के 'ब्ल्यू-आईड ब्यॉय' बने हुए थे और उनका कोई भी काम शरत जैन के बिना होता हुआ नहीं दिख रहा था । माना जा रहा था कि उम्मीदवार भले ही वह अरनेजा गिरोह के हैं, लेकिन अपने गंभीर और सौम्य व सज्जन व्यक्तित्व के चलते वह डिस्ट्रिक्ट के दूसरे नेताओं का समर्थन भी जुटा लेंगे । विनोद बंसल और संजय खन्ना के आयोजनों में उन्हें जो भूमिका मिल रही थी, उन्हें निभाते हुए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के दूसरे नेताओं के बीच अपने आप को साबित करने की जो कोशिश की उसमें उन्हें सफलता मिलती हुई भी दिखी । लेकिन सीओएल के चुनाव ने सब गुड़ - गोबर कर दिया ।
सीओएल के चुनाव ने डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के बीच एक विभाजक रेखा खींच दी और नेताओं को दो पाले में बाँट दिया । सीओएल के चुनाव से शरत जैन का कोई लेना-देना नहीं था, और उन्होंने उस चुनाव में कोई भूमिका भी नहीं निभाई थी - लेकिन जिस तरह से कोयले का धंधा करने वालों के साथ उठने-बैठने पर मुँह काला होने से नहीं बचाया जा सकता है, वैसे ही शरत जैन को अरनेजा गिरोह का सदस्य होने की कीमत चुकानी पड़ी । शरत जैन सीओएल के चुनाव में हारने वाले पक्ष के साथ थे, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनके होने वाले प्रतिद्धंद्धी दीपक गुप्ता विजेता पक्ष के साथ थे - इस तथ्य ने शरत जैन की संभावना को तगड़ा झटका दिया । इस तथ्य को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में निर्णायक नहीं माना जा सकता, लेकिन फिर भी परसेप्शन के स्तर पर इस तथ्य ने दीपक गुप्ता को शरत जैन पर बढ़त बनाने का मौका तो दिया ही । शिमला में हुए ऐजी व कोर टीम सेमीनार कार्यक्रम में इसकी झलक भी देखने को मिली । डिस्ट्रिक्ट में कहा तो जाने ही लगा कि जो लोग हर तरह की तिकड़म के बाद भी रमेश अग्रवाल को सीओएल का चुनाव नहीं जितवा सके, वह शरत जैन को क्या जितवायेंगे ? सीओएल के चुनाव के बाद हुए, संजय खन्ना के ऐजी व कोर टीम सेमीनार कार्यक्रम में शरत जैन के साथ जो सुलूक हुआ उसने उनके लिए खतरे की घंटी की आवाज को साफ-साफ सुनवा दिया । यहाँ शरत जैन पूरी तरह अकेले पड़ गए थे; वह जिन लोगों के भरोसे उम्मीदवार बने हैं उनमें से कोई भी यहाँ उपस्थित नहीं था और जो लोग यहाँ उपस्थित थे उन्होंने यह जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि वह शरत जैन को अरनेजा गिरोह के एक सदस्य से ज्यादा कुछ नहीं समझते हैं और अरनेजा गिरोह के लोगों ने सीओएल चुनाव में जो किया है उसका बदला शरत जैन से लिया जायेगा ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए उत्सुकता का विषय अब यह था कि सीओएल के चुनाव के बाद बदली हुई स्थितियों का शरत जैन और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता किस तरह सामना करते हैं । इसके लिए डीटीटीएस कार्यक्रम का इंतजार किया जा रहा था । लोग यह देखना चाहते थे कि डीटीटीएस कार्यक्रम में शरत जैन और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता किस तरह से शामिल होते हैं, और लोगों के बीच पैठ बनाने के लिए क्या करते हैं ? शरत जैन और उनके समर्थक नेताओं ने अनुपस्थित होकर लेकिन लोगों को चौंका दिया है । उनकी अनुपस्थिति ने लोगों के बीच यही संदेश पहुँचाया है कि बदली हुई परिस्थितियों में वह लोगों का सामना करने से बच रहे हैं । इस तरीके से वह लेकिन सचमुच बच पायेंगे क्या ? लोगों का सामना तो आखिर उन्हें करना ही पड़ेगा न । कार्यक्रम में चर्चा थी कि अरनेजा गिरोह के जो फालतू किस्म के पीडीजी हैं, उनकी बात यदि जाने भी दें तो मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को तो डीटीटीएस कार्यक्रम में कुछ जिम्मेदारी भी दी गई थी - लेकिन फिर भी उन्होंने इससे दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी । दरअसल उन्हें लगा होगा कि वह किस मुँह से लोगों के बीच जायेंगे; जिन लोगों के बीच वह बड़ी-बड़ी डींगे मारा करते थे उनके सामने अपनी हार के लिए अब वह क्या कारण बतायेंगे ? शरत जैन के लिए तो लेकिन इस तरह का कोई संकट नहीं था ? डीटीटीएस में उनकी अनुपस्थिति ने इसीलिए लोगों का ज्यादा ध्यान खींचा और उनकी अनुपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को संदेहास्पद बना दिया है । अनुपस्थिति के पीछे हो सकता है कि कुछ निजी व्यस्तताएँ जिम्मेदार रही हों, लेकिन एक साथ शरत जैन का और उनके समर्थक नेताओं का डिस्ट्रिक्ट के एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम से अनुपस्थित होने से लोगों ने यही समझा है कि सीओएल के चुनाव में उन्हें जो झटका लगा है - वह कुछ ज्यादा जोर से लग गया है और अभी वह उसकी चोट को ही सहलाने में लगे हुए हैं ।

Friday, March 7, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अपनी उम्मीदवारी की संभावना से साफ-साफ इंकार कर चुके डॉक्टर सुब्रमणियन को चालबाज नेताओं ने सब्जबाग दिखाना शुरू किया

नई दिल्ली । डॉक्टर सुब्रमणियन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को लेकर उनके अपने क्लब में विवाद पैदा हो गया है । मजे की बात यह है कि डॉक्टर सुब्रमणियन अपनी उम्मीदवारी से साफ तौर से इंकार कर चुके हैं, लेकिन फिर भी क्लब के कुछेक लोग उन्हें उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उकसा रहे हैं । क्लब के ही अन्य कुछेक लोग लेकिन उनकी उम्मीदवारी का यह कह कर विरोध कर रहे हैं कि जब वह खुद ही अपनी उम्मीदवारी की संभावना से इंकार कर चुके हैं और यह कह चुके हैं कि यह 'खेल' उनके बस का नहीं है, तब फिर क्यों कुछेक लोग उन्हें उम्मीदवारी के लिए उकसा कर उन्हें बलि का बकरा बनाने की कोशिश कर रहे हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि अभी हाल ही में जब डिस्ट्रिक्ट के कुछेक बड़े नेताओं ने डॉक्टर सुब्रमणियन से उनकी उम्मीदवारी की संभावना को लेकर बात की थी, तब डॉक्टर सुब्रमणियन ने उन सभी से दो-टूक शब्दों में कह दिया था कि उन्होंने एक बार उम्मीदवार बन कर देख लिया है और समझ लिया है कि एक उम्मीदवार से जिस जिस तरह की अपेक्षाएँ की जाती हैं, उन्हें पूरा कर पाना उनके बस की बात नहीं है इसलिए वह उम्मीदवारी के बारे में न सोच रहे हैं और न कभी सोचेंगे । कुछ नेताओं के द्धारा डॉक्टर सुब्रमणियन को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उकसाने की ख़बरें चूँकि आम हो गईं थीं, इसलिए और कई लोगों ने भी उनसे उनकी उम्मीदवारी के बारे में पूछा था, लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन ने सभी को एक ही जबाव दिया था कि वह अपनी उम्मीदवारी के बारे में कुछ भी नहीं सोच रहे हैं ।
शिमला में अभी हाल ही में ऐजीटीएस में जुटे डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने आपसी बातचीत में अपनी अपनी जानकारियों के आधार पर यही निष्कर्ष निकाला था कि डॉक्टर सुब्रमणियन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को लेकर कोई सोच नहीं है और इसलिए उन्होंने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति एकतरफा समर्थन का भाव व्यक्त किया था । इसके साथ ही डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की संभावना पर पर्दा पूरी तरह पड़ गया था । किंतु कुछेक लोगों द्धारा इस पर्दे को उठाने की कोशिश करने की बातें इन दिनों सुनी जा रही हैं । डॉक्टर सुब्रमणियन के कुछेक नजदीकी लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के कुछेक खिलाड़ी अपने अपने राजनीतिक स्वार्थ में डॉक्टर सुब्रमणियन को उकसाने में लगे हैं और इसके लिए वह डॉक्टर सुब्रमणियन के क्लब के सदस्यों की सेवाएँ ले रहे हैं । वह डॉक्टर सुब्रमणियन को समझाने में लगे हैं कि अब की बार उनके लिए मौका बहुत ही अनुकूल है और इसलिए अब की बार उन्हें नहीं चूकना चाहिए ।
डॉक्टर सुब्रमणियन को हालाँकि यह समझाने वालों की भी कमी नहीं है कि जो नेता लोग उनके लिए मौके को अनुकूल बता रहे हैं उनके पिछले व्यवहार को उन्हें याद कर लेना चाहिए - क्योंकि उनमें से कुछ ऐसे हैं जो धोखेबाजी की कला के उस्ताद हैं और कुछ ऐसे हैं जो सिर्फ बातें ही करते हैं, सचमुच में कुछ नहीं करते हैं । यह समझाने वालों का डॉक्टर सुब्रमणियन से कहना है कि पिछली बार इन्हीं लोगों ने उन्हें धोखा दिया था, जिसके चलते उम्मीदवारी की दौड़ में उनकी बुरी गत बनी थी । ऐसे लोगों के कहने में आकर यदि वह अब फिर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करते हैं, तो उन्हें फिर से उनके धोखे का शिकार होना पड़ेगा । इन लोगों का यह भी कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन चूँकि अभी हाल तक अपनी उम्मीदवारी की संभावना से साफ साफ इंकार करते रहे हैं, इसलिए अब यदि उन्होंने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की तो उन्हें एक कन्फ्यूज्ड व्यक्ति ही समझा जायेगा, जो अपने अनुभव और अपने आकलन के आधार पर नहीं, बल्कि दूसरों के उकसाने में आकर फैसले करता है ।
डॉक्टर सुब्रमणियन के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों का भी मानना और कहना है कि अपनी उम्मीदवारी की संभावना से लगातार इंकार करते रहने के बाद अब यदि वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करते हैं तो इससे उनके बारे में लोगों के बीच ख़राब परसेप्शन ही बनेगा । ऐसे लोगों की डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए सलाह है कि उनके मन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को लेकर सचमुच में कोई मोह है तो उन्हें सोच-विचार कर योजना बनानी चाहिए और अगले किसी वर्ष में सुनियोजित तरीके से अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करना चाहिए । इन लोगों का तर्क है कि अबकी बार के लिए सुरेश भसीन, शरत जैन और दीपक गुप्ता ने जिस तरह से पहले से अपनी अपनी तैयारी कर ली है और अपनी अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया है, उसके कारण डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए अब बहुत देर हो चुकी है ।
मजे की बात यह है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की संभावना को बाकी तीनों संभावित उम्मीदवार अपने अपने लिए फायदे के अवसर के रूप में देख/पहचान रहे हैं । शरत जैन के समर्थकों को लगता है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी उनके विरोधियों के वोटों का बँटवारा करेगी, जिससे उन्हें फायदा होगा । दीपक गुप्ता के समर्थकों को लगता है कि डॉक्टर सुब्रमणियन और शरत जैन का प्रभाव क्षेत्र काफी कुछ एक-सा है, इसलिए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी शरत जैन को नुकसान पहुँचायेगी, जिससे उन्हें फायदा होगा । सुरेश भसीन के समर्थकों का आकलन है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी यदि सचमुच प्रस्तुत हुई तो वह एक तरफ शरत जैन को नुकसान पहुंचायेगी और दूसरी तरफ दीपक गुप्ता के समर्थन आधार में सेंध लगाएगी, जिससे उन्हें फायदा होगा । डॉक्टर सुब्रमणियन से वास्तव में हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि अब की बार उनके मुकाबले पर जो उम्मीदवार हैं - सुरेश भसीन, शरत जैन और दीपक गुप्ता, वह व्यक्तित्व, पहचान और साख के मामले में उन जेके गौड़, सुधीर मंगला और आलोक गुप्ता से इक्कीस ही हैं जो पिछली बार उनके मुकाबले पर थे । इसलिए इस बार स्थितियाँ उनके लिए अनुकूल नहीं बल्कि प्रतिकूल हैं और इस बार का मुकाबला उनके लिए और मुश्किल होगा । यह मुश्किल इसलिए भी होगा, क्योंकि अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह अभी तक भी कन्फ्यूज्ड ही हैं ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का मानना और कहना यही है कि डॉक्टर सुब्रमणियन को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उकसाने का काम उनके क्लब के अंदर के और क्लब के बाहर के वही लोग कर रहे हैं जो उनकी उम्मीदवारी की आड़ में दरअसल अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉक्टर सुब्रमणियन अपनी उम्मीदवारी से इंकार करने के अपने फैसले पर बने/टिके रहेंगे या उनकी उम्मीदवारी में अपना स्वार्थ देख रहे लोगों के चँगुल में फँसेगे ।  

Thursday, March 6, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में विशाल सिन्हा के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बन' जाने से अनुपम बंसल की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का कबाड़ा हुआ

लखनऊ । विशाल सिन्हा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए राह के क्लियर होते ही जो रवैया अपनाया है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच निराशा और असंतोष-सा पैदा होने लगा है और इसका नतीजा यह होता दिख रहा है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के प्रति लोगों में कोई उत्साह नहीं बन रहा है । इस स्थिति को देख कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनुपम बंसल को अपनी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के बुरी तरह पिटने का आभास हो गया है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तैयारी को लेकर अनुपम बंसल पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं और उन्हें किसी से भी कोई 'सहयोग' नहीं मिल रहा है । गुरनाम सिंह ने हालाँकि उन्हें आश्वस्त किया था कि प्रमोद चंद्र सेठ चूँकि अपनी पत्नी मीरा सेठ को अगले लायन वर्ष में उम्मीदवार बनाना चाहते हैं, इसलिए वह 'सहयोग' करेंगे । प्रमोद चंद्र सेठ ने भी लेकिन 'सहयोग' को लेकर कोई उत्सुकता नहीं दिखाई है । उनका कहना है कि यदि डिस्ट्रिक्ट के सभी नेता लोग मिल कर यह आश्वासन दे दें कि अगले लायन वर्ष में वह मीरा सेठ की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे तथा और किसी की उम्मीदवारी को अवसर नहीं देंगे, तब तो वह इस बार की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में सहयोग कर सकते हैं, अन्यथा अभी कुछ करने का कोई मतलब नहीं होगा । दूसरे लोगों का भी कहना है कि इस बार विशाल सिन्हा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन रहे हैं, इसलिए कॉन्फ्रेंस की जिम्मेदारी उन्हें लेनी चाहिए ।
विशाल सिन्हा के तेवर लेकिन ऐसे हैं जैसे वह कह रहे हैं कि वह तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन ही गए हैं, अब उन्हें कुछ करने की जरूरत क्या है ? अनुपम बंसल को लगता है कि यह आभास था, कि विशाल सिन्हा के लिए यदि निर्विरोध चुने जाने का मौका बना तो ऐसा ही होगा । इसीलिए वह एके सिंह की उम्मीदवारी को हवा दे रहे थे । विशाल सिन्हा और उनके राजनीतिक गुरु गुरनाम सिंह को भी अच्छी तरह पता था कि एके सिंह के साथ चुनाव की नौबत यदि आई तो इस बार फिर से उनका हारना निश्चित है, इसलिए उन्होंने अपना सारा जोर एके सिंह को चुनावी मैदान से हटाने पर लगाया । इसके लिए उन्होंने केएस लूथरा और नीरज बोरा पर डोरे डाले । पिछले लायन वर्ष में जिन केएस लूथरा की ऐसी-तैसी करने, उन्हें परेशान करने और तरह-तरह से उन्हें अपमानित करने में लगे रहने वाले गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा इसीलिए इस बार उन्हीं केएस लूथरा की खुशामद में जुटे । नीरज बोरा की भी खासी मिजाज पुर्सी की गई और अंततः एके सिंह की उम्मीदवारी को वापस कराने में सफलता प्राप्त की । एके सिंह की उम्मीदवारी के वापस होते ही लेकिन अनुपम बंसल के दुर्दिन शुरू हो गए । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर उत्सुक डिस्ट्रिक्ट के लोग अनुपम बंसल से वहाँ के इंतजाम को लेकर कुछ पूछते हैं तो अनुपम बंसल उन्हें जबाव देते हैं कि यह बात तो उन्हें विशाल सिन्हा से पूछना चाहिए, क्योंकि वही उम्मीदवार हैं । इस पर लोग उन्हें बताते हैं कि उन्होंने यह पहले विशाल सिन्हा से ही पूछा था, और विशाल सिन्हा ने ही उनसे कहा है कि यह अनुपम बंसल से पूछो ।
उल्लेखनीय है कि विशाल सिन्हा को कई गवर्नरों के साथ कई उम्मीदवारों के लिए 'इंतजाम' करने का अनुभव है । पिछले कई वर्षों से वह उम्मीदवारों की तरफ से डिस्ट्रिक्ट के आम और खास लोगों के लिए 'इंतजाम' करते रहे हैं; इस नाते से उनसे उम्मीद की जाती है कि वह जानते ही हैं कि एक उम्मीदवार को क्या क्या करना होता है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनुपम बंसल को तथा डिस्ट्रिक्ट के खास व आम लोगों को शिकायत यही है कि सब कुछ जानते हुए भी विशाल सिन्हा अब जब खुद गवर्नर हैं तो उसी तरह के इंतजाम क्यों नहीं कर रहे हैं, जैसे वह दूसरे उम्मीदवारों से करवाते रहे हैं । विशाल सिन्हा तक भी चूँकि इस तरह की बातें पहुँची हैं तो उन्होंने इसका टका-सा जबाव दे दिया है कि एक उम्मीदवार को जो कुछ करना होता है उसे वह पिछले वर्ष कर चुके हैं, अब बार-बार थोड़े ही वह सब करेंगे । विशाल सिन्हा के इस जबाव से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और इस वर्ष के क्लब-अध्यक्ष अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं । लेकिन वह मजबूर हैं । उन्हें लग रहा है कि यदि चुनाव हो रहे होते तो वह विशाल सिन्हा को मजा चखा देते; लेकिन चूँकि चुनाव ही नहीं हो रहे हैं इसलिए वह विशाल सिन्हा के तेवरों को झेलने के लिए मजबूर हैं ।
गुरनाम सिंह ने विशाल सिन्हा का 'बोझ' प्रमोद चंद्र सेठ के सिर पर डालने की और तरह अनुपम बंसल की मदद करने की कोशिश की, तो प्रमोद चंद्र सेठ उसमें कोई दिलचस्पी लेते हुए नहीं दिखे । गुरनाम सिंह की तरफ से उन पर ज्यादा दबाव पड़ा तो उन्होंने माँग रख दी कि गुरनाम सिंह डिस्ट्रिक्ट के सभी नेताओं से अगले लायन वर्ष में मीरा सेठ की उम्मीदवारी के लिए खुला समर्थन घोषित करवाएँ तो वह विशाल सिन्हा का कुछ 'बोझ' उठा सकते हैं । गुरनाम सिंह ऐसा कुछ करने की स्थिति में हैं नहीं, लिहाजा उनका मामला अटक गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनुपम बंसल के लिए सचमुच चुनौती पैदा हो गई है कि अपनी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को वह कैसे अच्छे से आयोजित करें, क्योंकि विशाल सिन्हा ने तो मान लिया है कि वह तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन ही गए हैं, इसलिए उन्हें तो कुछ करने की जरूरत नहीं है । अनुपम बंसल को लग रहा है कि एके सिंह की उम्मीदवारी को वापस करा कर गुरनाम सिंह ने उनकी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का कबाड़ा कर दिया है और डिस्ट्रिक्ट के लोग भी अपने आप को ठगा हुआ पा रहे हैं ।

Monday, March 3, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में दीपक गर्ग को भरोसा है कि उनके राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए एक्जीक्यूटिव कमेटी में तो उनकी जगह पक्की करवा ही देंगे; और इस तरह राजिंदर नारंग क्या एक बार फिर धोखाधड़ी का शिकार होंगे

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन बनने में विफल रहे दीपक गर्ग ने अब काउंसिल की एक्जीक्यूटिव कमेटी में जगह बनाने के लिए तिकड़म लगाना शुरू कर दिया है । एक्जीक्यूटिव कमेटी के गठन की जिम्मेदारी में चूँकि उनके राजनीतिक गुरु सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता की भी भूमिका रहनी है, इसलिए उन्हें विश्वास है कि विजय गुप्ता एक्जीक्यूटिव कमेटी में तो उनकी सीट पक्की करवा ही देंगे । दीपक गर्ग को भरोसा है कि विजय गुप्ता ने उन्हें चेयरमैन बनवाने का जो बीड़ा उठाया था, उसमें वह भले ही असफल रहे हों - लेकिन एक्जीक्यूटिव कमेटी में सदस्य तो वह उन्हें जरूर ही बनवा देंगे । दीपक गर्ग की इस कोशिश में योगिता आनंद और राजिंदर नारंग के साथ एक बार फिर अन्याय होता दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि दीपक गर्ग की तिकड़म के चलते नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता समीकरण जिस तरह से बिगड़ा है, उसमें सबसे ज्यादा घाटा इन्हीं दोनों का हुआ है । योगिता आनंद को पिछले वर्ष की तुलना में पदों की वरीयता में पीछे धकेल दिया गया है, तो राजिंदर नारंग को तो टीम से ही बाहर कर दिया गया है - जबकि पिछले वर्ष वह सेक्रेटरी जैसे महत्वपूर्ण पद पर थे ।
विजय गुप्ता द्धारा लिखी गई पटकथा पर दीपक गर्ग ने जो शो मैनेज किया उसमें निशाना हालाँकि राजिंदर नारंग को बनाया गया, लेकिन चोट पहुँचाने का लक्ष्य विशाल गर्ग थे । दीपक गर्ग ने राजिंदर नारंग को दो तरह से घेर कर अपने खेल की शुरुआत की - एक तरफ तो उन्होंने राजिंदर नारंग पर आरोप लगाया कि वह ग्रुप तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, और दूसरी तरफ उन्होंने विशाल गर्ग को समझाया कि राजिंदर नारंग उन्हें बदनाम कर रहे हैं । इस तरह, राजिंदर नारंग के खिलाफ छेड़ी गई लड़ाई में उन्होंने विशाल गर्ग को अपने समर्थन में कर लिया । मजे की बात यही रही कि लड़ाई राजिंदर नारंग के खिलाफ थी ही नहीं, उन्हें तो बलि का बकरा बनाया जा रहा था; लड़ाई तो विशाल गर्ग के खिलाफ थी, और विशाल गर्ग अपने खिलाफ सजाई गई इस लड़ाई में अपने 'दुश्मनों' की ही मदद कर रहे थे । विशाल गर्ग सेंट्रल काउंसिल के लिए संभावित उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं और इस संभावना में सबसे ज्यादा खतरा विजय गुप्ता महसूस कर रहे हैं । दीपक गर्ग और विजय गुप्ता ने एक तरफ तो विशाल गर्ग को उनकी प्रशासनिक असफलताओं के लिए बदनाम किया/कराया और इस बदनामी के लिए राजिंदर नारंग को जिम्मेदार बता कर हरियाणा व पंजाब की ब्रांचेज में उनके लिए चुनौती खड़ी करने का प्रयास किया । विजय गुप्ता को इस बात में अपना फायदा दिखता है कि विशाल गर्ग और राजिंदर नारंग एक-दूसरे से लड़ते हुए दिखाई दें । विशाल गर्ग इस खेल को समझ नहीं सके और राजिंदर नारंग यही साबित करने की कोशिश में जुटे रहे कि उन्होंने ग्रुप तोड़ने की कोशिश नहीं की ।
राजिंदर नारंग को बहुत देर में इस बात के सुबूत मिले कि ग्रुप तोड़ने की कोशिश तो दीपक गर्ग कर रहे थे और उन्हें तो सिर्फ इस्तेमाल किया जा रहा था । ग्रुप के सभी सदस्यों के सामने दीपक गर्ग के किये-धरे की पोल खुली तो राजिंदर नारंग आरोप से तो बरी हो गए, लेकिन तब तक वह सत्ता गलियारे से भी बाहर हो चुके थे । जिस सत्ता खेमे को बनाने में राजिंदर नारंग का भी सक्रिय सहयोग रहा था - और कुछेक लोगों से तो ज्यादा ही रहा था, उस सत्ता खेमे के लोगों ने उन्हें किनारे करके पदों की बंदरबाँट कर ली थी । सत्ता खेमे के लोगों ने यह सब कर जरूर लिया था, लेकिन सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों की सक्रियता के चलते जो गणित बना था उसके कारण काउंसिल में सत्ता का समीकरण बदल चुका था । इस बदले समीकरण में एक मौके पर सत्ता की चाबी राजिंदर नारंग के हाथ में आ गई थी । राजिंदर नारंग यदि पाला बदल लेते तो फिर काउंसिल के पदाधिकारियों का चुनाव उनकी मर्जी से होता । एक मौके पर चेयरमैन का चुनाव होता दिखा तो सत्ता खेमे में निकली पर्ची के बल पर चेयरमैन पद के दावेदार राधेश्याम बंसल के पैरों तले की जमीन खिसक गई; उन्हें लगा कि चेयरमैन की हाथ आई कुर्सी उनसे निकल ही जायेगी । तब उन्होंने तथा खेमे के दूसरे लोगों ने और दीपक गर्ग ने भी उनकी खुशामद की और उन्हें खेमे में ही बने रहने के लिए मनाने का प्रयास किया । राधेश्याम बंसल ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने उनसे वायदा किया था कि यदि उनका चेयरमैन बनने का मौका लगा तो वह उनकी राह का रोड़ा नहीं बनेंगे । दीपक गर्ग ने अपने किये-धरे के लिए माफी माँगी और इस बात पर जोर दिया कि जो हुआ सो हुआ पर अब हमें आगे देखना चाहिए ।
राजिंदर नारंग के कुछेक नजदीकियों का उनसे कहना था कि वह जिन्हें अपना मानते रहे हैं, उन्होंने उनके साथ तरह-तरह से धोखा ही किया है और उन्हें बदनाम करने से लेकर उन्हें टीम से बाहर रखने/करने तक का काम किया है, ऐसे में उनके साथ फिर जा मिलने का भला क्या औचित्य होगा ? राजिंदर नारंग ने लेकिन माना कि जिन लोगों के साथ वह पिछले एक वर्ष से हैं, और जिनके साथ काउंसिल में कुछ बेहतर करने का उन्होंने सपना देखा था और अपने स्तर पर जैसा जो हो सकता था प्रयास किया - उन्हें उन्हीं के साथ रहना चाहिए । कुछेक साथियों द्धारा निशाना बनाये जाने और अलग-थलग किये जाने के प्रसंग को लेकर राजिंदर नारंग का मानना रहा कि ऐसा करने वाले अब जब माफी माँग रहे हैं और जो हुआ उसे भूलने की बात कह रहे हैं, तो उन्हें भी उदारता का परिचय देना चाहिए । राजिंदर नारंग को यह कहने/समझाने वाले लोगों की हालाँकि कमी नहीं थी कि इन लोगों की माफी-वाफी के चक्कर में न पड़ो और जो मौका मिल रहा है उसका फायदा उठाओ - राजिंदर नारंग ने लेकिन यही उचित समझा कि किसी पद के लालच में उन्हें पश्चाताप कर रहे अपने साथी रहे लोगों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए । राजिंदर नारंग ने विश्वास किया कि जो लोग अपने किये धरे के लिए माफी माँग रहे हैं, वह अब दोबारा उन्हें अपने किसी षड्यंत्र का शिकार नहीं बनायेंगे । राजिंदर नारंग द्धारा अपने खेमे में ही बने रहने का फैसला करने के बाद ही राधेश्याम बंसल के चेयरमैन बनने, स्वदेश गुप्ता के सेक्रेटरी बनने और राजेश अग्रवाल के ट्रेजरार बनने का रास्ता साफ हुआ ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदों की तो बंदरबाँट हो गई है - समय अब एक्जीक्यूटिव कमेटी के गठन का है । एक्जीक्यूटिव कमेटी में 9 सदस्य होने हैं । 26 फरवरी की मीटिंग में जो तय हुआ था उसके अनुसार सत्ता खेमे के 9 में से 7 लोगों को एक्जीक्यूटिव कमेटी में लेना है । ज्यादा झमेला विशाल गर्ग, हंसराज चुग, राजिंदर नारंग, दीपक गर्ग और योगिता आनंद को लेकर है । इन पाँच में से तीन लोगों का चुनाव होना है । विशाल गर्ग और हंसराज चुग की सीट पक्की समझी जा रही है और योगिता आनंद का बाहर रहना तय माना जा रहा है । झगड़ा दीपक गर्ग और राजिंदर नारंग को लेकर है । राधेश्याम बंसल यूँ तो राजिंदर नारंग के प्रति झुकाव दिखा रहे हैं, किंतु दीपक गर्ग ने उन पर अपने लिए दबाव बनाया हुआ है । दीपक गर्ग ने ही उन्हें सुझाया है कि राजिंदर नारंग को लेना ही है, तो विशाल गर्ग की जगह ले लो । दीपक गर्ग को भरोसा है कि उनके राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए राधेश्याम बंसल को प्रभावित कर लेंगे और एक्जीक्यूटिव कमेटी में उनकी जगह पक्की करवा ही देंगे । ऐसे में, राजिंदर नारंग के लिए एक बार फिर धोखाधड़ी का शिकार होने की और अलग-थलग कर दिए जाने की संभावना बन रही है ।