Sunday, March 9, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डीटीटीएस कार्यक्रम में शरत जैन की और उनके समर्थक नेताओं की अनुपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच संदेहास्पद बना दिया है

नई दिल्ली । शरत जैन की डीटीटीएस (डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमीनार) में अनुपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के छोटे-बड़े खिलाड़ियों का ध्यान खींचा है । शरत जैन अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने का ऐलान कर चुके हैं, इस कारण से डिस्ट्रिक्ट के हर प्रमुख कार्यक्रम में उनकी मौजूदगी की उम्मीद की जाती है । दरअसल इसीलिए डीटीटीएस में जब उन्हें अनुपस्थित पाया गया तो लोगों को हैरानी हुई । अगले रोटरी वर्ष के लिए राजनीतिक परिदृश्य चूँकि अभी बन रहा है, इसलिए संभावित उम्मीदवारों के लिए यह समय बड़ा नाजुक है - ऐसे में शरत जैन ने डिस्ट्रिक्ट के एक बड़े कार्यक्रम से अनुपस्थित होकर अपनी उम्मीदवारी के प्रति संदेह पैदा कर लिया है । शरत जैन की अनुपस्थिति इसलिए भी चर्चा का विषय बनी है, क्योंकि डीटीटीएस में उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता भी किसी को नजर नहीं आये । यानि पूरा का पूरा 'कुनबा' डीटीटीएस से गायब था । 'कुनबे' के एक सदस्य जेके गौड़ जरूर वहाँ उपस्थित थे, लेकिन वह भी कुनबे के सदस्य के तौर पर नहीं, बल्कि डीजीएन के तौर पर अपनी उपस्थिति को 'दिखाने' के लिए मशक्कत करते पहचाने जा रहे थे । डीजीएन होने के बावजूद जेके गौड़ डीटीटीएस कार्यक्रम में जुटे डिस्ट्रिक्ट के छोटे-बड़े प्रमुख लोगों के बीच जिस तरह अलग-थलग पड़े नजर आ रहे थे, उसे देख कर कई लोगों के मन में उनके प्रति दया-भाव भी पैदा हुआ । कई लोगों का मानना और कहना है कि जेके गौड़ ने अपने पद की मर्यादा का ख्याल न रखते हुए सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के चुनाव में मूर्खतापूर्ण उत्साह के साथ जो भूमिका निभाई, उसके कारण वह डिस्ट्रिक्ट में बुरी तरह से अलग-थलग पड़ गए हैं । इसी कारण से पिछले दिनों संपन्न हुए विनोद बंसल के आयोजन 'विक्टरी ओवर पोलयो' में और संजय खन्ना की ऐजी व कोर टीम के ट्रेनिंग प्रोग्राम में उन्हें अनुपस्थित होना पड़ा था, और अब डीटीटीएस में वह उपस्थित भी हुए तो लोगों से छुपते/बचते हुए से ।
जेके गौड़ की इस दशा में ही शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए चुनौती छिपी हुई है । जेके गौड़ की दशा को सीओएल के चुनाव के साइड इफेक्ट के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, तो शरत जैन की उम्मीदवारी को भी उसी साइड इफेक्ट के शिकार के रूप में पहचाना जा रहा है । यहाँ इस तथ्य को नोट करना प्रासंगिक होगा कि सीओएल के चुनाव के पहले तक जो शरत जैन सत्ता के बहुत नजदीक थे और विनोद बंसल तथा संजय खन्ना के आयोजनों में महत्वपूर्ण भूमिकाओं में आगे-आगे दिखते थे, सीओएल के चुनाव के बाद सत्ता से अलग कर दिए गए हैं । सीओएल के चुनाव से पहले हुए संजय खन्ना के प्रत्येक कार्यक्रम में आगे-आगे दिखने वाले शरत जैन सीओएल के चुनाव के बाद शिमला में हुए ऐजी व कोर टीम सेमीनार में बिलकुल पीछे धकेल दिए गए । शरत जैन ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को जब प्रस्तुत किया था, तब उन्हें डिस्ट्रिक्ट के सत्ताधारियों और उनके नजदीकी नेताओं का पूरा-पूरा समर्थन दिख रहा था । यह इसलिए भी दिख रहा था क्योंकि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजय खन्ना के 'ब्ल्यू-आईड ब्यॉय' बने हुए थे और उनका कोई भी काम शरत जैन के बिना होता हुआ नहीं दिख रहा था । माना जा रहा था कि उम्मीदवार भले ही वह अरनेजा गिरोह के हैं, लेकिन अपने गंभीर और सौम्य व सज्जन व्यक्तित्व के चलते वह डिस्ट्रिक्ट के दूसरे नेताओं का समर्थन भी जुटा लेंगे । विनोद बंसल और संजय खन्ना के आयोजनों में उन्हें जो भूमिका मिल रही थी, उन्हें निभाते हुए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के दूसरे नेताओं के बीच अपने आप को साबित करने की जो कोशिश की उसमें उन्हें सफलता मिलती हुई भी दिखी । लेकिन सीओएल के चुनाव ने सब गुड़ - गोबर कर दिया ।
सीओएल के चुनाव ने डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के बीच एक विभाजक रेखा खींच दी और नेताओं को दो पाले में बाँट दिया । सीओएल के चुनाव से शरत जैन का कोई लेना-देना नहीं था, और उन्होंने उस चुनाव में कोई भूमिका भी नहीं निभाई थी - लेकिन जिस तरह से कोयले का धंधा करने वालों के साथ उठने-बैठने पर मुँह काला होने से नहीं बचाया जा सकता है, वैसे ही शरत जैन को अरनेजा गिरोह का सदस्य होने की कीमत चुकानी पड़ी । शरत जैन सीओएल के चुनाव में हारने वाले पक्ष के साथ थे, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनके होने वाले प्रतिद्धंद्धी दीपक गुप्ता विजेता पक्ष के साथ थे - इस तथ्य ने शरत जैन की संभावना को तगड़ा झटका दिया । इस तथ्य को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में निर्णायक नहीं माना जा सकता, लेकिन फिर भी परसेप्शन के स्तर पर इस तथ्य ने दीपक गुप्ता को शरत जैन पर बढ़त बनाने का मौका तो दिया ही । शिमला में हुए ऐजी व कोर टीम सेमीनार कार्यक्रम में इसकी झलक भी देखने को मिली । डिस्ट्रिक्ट में कहा तो जाने ही लगा कि जो लोग हर तरह की तिकड़म के बाद भी रमेश अग्रवाल को सीओएल का चुनाव नहीं जितवा सके, वह शरत जैन को क्या जितवायेंगे ? सीओएल के चुनाव के बाद हुए, संजय खन्ना के ऐजी व कोर टीम सेमीनार कार्यक्रम में शरत जैन के साथ जो सुलूक हुआ उसने उनके लिए खतरे की घंटी की आवाज को साफ-साफ सुनवा दिया । यहाँ शरत जैन पूरी तरह अकेले पड़ गए थे; वह जिन लोगों के भरोसे उम्मीदवार बने हैं उनमें से कोई भी यहाँ उपस्थित नहीं था और जो लोग यहाँ उपस्थित थे उन्होंने यह जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि वह शरत जैन को अरनेजा गिरोह के एक सदस्य से ज्यादा कुछ नहीं समझते हैं और अरनेजा गिरोह के लोगों ने सीओएल चुनाव में जो किया है उसका बदला शरत जैन से लिया जायेगा ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए उत्सुकता का विषय अब यह था कि सीओएल के चुनाव के बाद बदली हुई स्थितियों का शरत जैन और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता किस तरह सामना करते हैं । इसके लिए डीटीटीएस कार्यक्रम का इंतजार किया जा रहा था । लोग यह देखना चाहते थे कि डीटीटीएस कार्यक्रम में शरत जैन और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता किस तरह से शामिल होते हैं, और लोगों के बीच पैठ बनाने के लिए क्या करते हैं ? शरत जैन और उनके समर्थक नेताओं ने अनुपस्थित होकर लेकिन लोगों को चौंका दिया है । उनकी अनुपस्थिति ने लोगों के बीच यही संदेश पहुँचाया है कि बदली हुई परिस्थितियों में वह लोगों का सामना करने से बच रहे हैं । इस तरीके से वह लेकिन सचमुच बच पायेंगे क्या ? लोगों का सामना तो आखिर उन्हें करना ही पड़ेगा न । कार्यक्रम में चर्चा थी कि अरनेजा गिरोह के जो फालतू किस्म के पीडीजी हैं, उनकी बात यदि जाने भी दें तो मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को तो डीटीटीएस कार्यक्रम में कुछ जिम्मेदारी भी दी गई थी - लेकिन फिर भी उन्होंने इससे दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी । दरअसल उन्हें लगा होगा कि वह किस मुँह से लोगों के बीच जायेंगे; जिन लोगों के बीच वह बड़ी-बड़ी डींगे मारा करते थे उनके सामने अपनी हार के लिए अब वह क्या कारण बतायेंगे ? शरत जैन के लिए तो लेकिन इस तरह का कोई संकट नहीं था ? डीटीटीएस में उनकी अनुपस्थिति ने इसीलिए लोगों का ज्यादा ध्यान खींचा और उनकी अनुपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को संदेहास्पद बना दिया है । अनुपस्थिति के पीछे हो सकता है कि कुछ निजी व्यस्तताएँ जिम्मेदार रही हों, लेकिन एक साथ शरत जैन का और उनके समर्थक नेताओं का डिस्ट्रिक्ट के एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम से अनुपस्थित होने से लोगों ने यही समझा है कि सीओएल के चुनाव में उन्हें जो झटका लगा है - वह कुछ ज्यादा जोर से लग गया है और अभी वह उसकी चोट को ही सहलाने में लगे हुए हैं ।