देहरादून/गाजियाबाद । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन को
पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल ने जो तवज्जो दी, उस तवज्जो ने
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को
फिर से जिंदा कर दिया है । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को पुनः लौटने की
साँसे हालाँकि मुकेश गोयल के उस रवैये से भी मिली जो उन्होंने अवतार कृष्ण
की उम्मीदवारी के वापस होने के मौके पर अरुण मित्तल और सुनील जैन के
प्रति दिखाया । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के ठंडे पड़ने पर मुकेश गोयल
ने जिस तरह के आलोचनात्मक शब्दों का सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल किया, उसने
अरुण मित्तल और सुनील जैन को भड़काने का काम किया । मुकेश गोयल द्धारा पैदा की गई चुनौती का जबाव देने के लिए उन्होंने अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी की डोर एक बार फिर से थाम ली ।
इसी बीच सुशील अग्रवाल ने सुनील जैन के साथ जिस तरह से तार जोड़ने की कोशिश
की, उससे भी अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को लेकर अरुण मित्तल और सुनील जैन
को बल मिला है ।
अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के बाबत अरुण मित्तल और सुनील जैन को
बल दरअसल यह देख कर भी मिला कि शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी मुकेश गोयल
और कुंजबिहारी अग्रवाल के बीच फँस गई है । फँस इसलिए गई है क्योंकि शिव
कुमार चौधरी तो दोनों का समर्थन मिलने का दावा कर रहे हैं, लेकिन उन दोनों
के बीच शिव कुमार चौधरी को अपनी अपनी गिरफ्त में लेने की होड़ मची हुई है ।
मुकेश गोयल के दिशा-निर्देश में गाजियाबाद में होने वाली मीटिंग जिस तरह
से दो बार स्थगित होकर अंततः रद्द ही हो गई, उससे मुकेश गोयल भड़के हुए हैं ।
मुकेश गोयल को लगता है कि उस मीटिंग को पहले स्थगित और फिर रद्द करवाने के
पीछे कुंजबिहारी अग्रवाल और सुशील अग्रवाल ही हैं । उधर कुंजबिहारी
अग्रवाल और सुशील अग्रवाल को भी लगता है कि शिव कुमार चौधरी ने जिस तरह से
मुकेश गोयल के साथ तार जोड़े हुए हैं उसके कारण उन्हें कभी भी गच्चा खाना पड़
सकता है । मजे की बात यह है कि दोनों तरफ के लोगों को लगता है कि अकेले
उनके भरोसे शिव कुमार चौधरी का काम नहीं बन सकेगा; और इसीलिए दोनों ही तरफ
से शिव कुमार चौधरी को सलाह और इशारा है कि 'उनसे' भी मिलते रहो । इस तरह
की सलाह और इशारे के बाद दोनों ही इस बात से डरते भी हैं कि शिव कुमार
चौधरी 'उनसे' - यानि दूसरे पक्ष से 'ही' न मिल जाये और वह ठगे रह जाएँ ।
इसी डर के चलते सुशील अग्रवाल ने सुनील जैन से संबंध जोड़ लिए
हैं, ताकि उन्हें यदि शिव कुमार चौधरी की तरफ से धोखे का शिकार होना पड़े तो
कम से कम उनके पास एक विकल्प तो रहे । सुशील अग्रवाल ने सुनील जैन के साथ इसलिए भी तार जोड़े हैं, ताकि उन्हें अगले लायन वर्ष में - सुनील जैन के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट में महत्वपूर्ण भूमिका मिल सके । सुशील अग्रवाल की इस 'कोशिश' ने ही अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी में दम भर दिया है ।
अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को विश्वास है कि सुशील
अग्रवाल और कुंजबिहारी अग्रवाल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए
अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी का समर्थन करने में ही अपना फायदा देखेंगे,
क्योंकि उसमें ही उन्हें अगले तीनों वर्ष सत्ता में बने रहने का मौका
मिलेगा । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का मानना और कहना
है कि सुशील अग्रवाल और कुंजबिहारी अग्रवाल को शिव कुमार चौधरी की
उम्मीदवारी का समर्थन करके भला क्या हासिल होगा - अगले दो वर्ष तो उन्हें
सत्ता से बाहर रहना ही होगा, और तीसरे वर्ष में भी सत्ता को मुकेश गोयल के साथ बाँटना होगा ।
शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की समस्या यह है कि उनके
पास इस तर्क का कोई तोड़ नहीं है - वह यह भी नहीं कह सकते कि तीसरे वर्ष में
यदि शिव कुमार चौधरी गवर्नर हुए तो सत्ता उन्हें मुकेश गोयल के साथ नहीं
बाँटनी पड़ेगी ।
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए शिव कुमार चौधरी के मुकाबले अवतार कृष्ण को अभी तक दरअसल 'साधनों' के संदर्भ के चलते कमजोर माना जा रहा था । शिव
कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों ने यह हवा बनाने में अच्छी सफलता
प्राप्त कर ली थी कि अवतार कृष्ण के मुकाबले शिव कुमार चौधरी अच्छे पैसे
खर्च करेंगे और तब अवतार कृष्ण उनके सामने मुकाबले में नहीं टिक पायेंगे । इस हवा के चलते अवतार कृष्ण अपनी उम्मीदवारी को लेकर खासी हिचक में थे ।
लेकिन जैसे जैसे समय आगे बढ़ा - शिव कुमार चौधरी के गुब्बारे की हवा निकलती
गई; क्योंकि लोगों ने पाया कि उनकी तरफ से बस ऊँची-ऊँची बातें ही हैं,
करना-धरना कुछ नहीं है । मुकेश गोयल के दिशा-निर्देश में होने वाली मीटिंग
दो बार जिस तरह से स्थगित होकर अंततः रद्द हुई, उसके लिए बहाने चाहें जो बनाये गए हों - लेकिन दिखा यही कि शिव कुमार चौधरी खर्चे वाले काम को 'करने' की बजाये उससे 'बचने' में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं ।
यह 'दिखने' के बाद उनमें और अवतार कृष्ण में कोई अंतर नहीं रह गया । जो
अंतर है भी, उसका कारण लोगों ने यही माना/समझा कि बेचारे अवतार कृष्ण को
ऊँची-ऊँची हाँकना नहीं आता है ।
अवतार कृष्ण की उम्मीवारी के पुनः अवतरित होने का श्रेय, इस तरह, शिव कुमार चौधरी के रवैये हो भी है । अपनी उम्मीदवारी के लिए शिव कुमार चौधरी दरअसल कोई एक दिशा तय ही नहीं कर पाये । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में पहले वह मुकेश गोयल को गालियाँ देते रहे, फिर अचानक वह मुकेश गोयल के उम्मीदवार हो गए ।
मुकेश गोयल के उम्मीदवार होने के बाद भी वह पूरी तरह उनके नहीं हो सके और
वहाँ उनकी स्थिति संदेह के घेरे में ही रही । लायन राजनीति में मुकेश गोयल
को एक करिश्माई नेता के रूप में देखा/पहचाना जाता है । जो जो पूर्व गवर्नर
मुकेश गोयल की आलोचना करते सुने जाते हैं, उनके इतिहास उठा कर देखें तो
पायेंगे कि उनमें से अधिकतर जब उम्मीदवार थे तो मुकेश गोयल की ही शरण में थे । मुकेश गोयल के करिश्मे के कारण ही वह गवर्नर बन सके थे । संभवतः
इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए मुकेश गोयल को गालियाँ देते रहने वाले शिव
कुमार चौधरी अंततः मुकेश गोयल की शरण में आये । किसी के लिए भी यह समझना
थोड़ा मुश्किल हुआ कि शिव कुमार चौधरी जब मुकेश गोयल की शरण में आ ही गए थे,
तो वहाँ अपने लिए विश्वास क्यों नहीं बना सके ? इसका एक कारण यह समझा
गया कि मुकेश गोयल एक करिश्माई नेता तो हैं लेकिन उनके करिश्मे के फलीभूत
होने में 'कीमत' लगती है - शिव कुमार चौधरी ने उनके करिश्मे का तो फायदा
उठाना चाहा, लेकिन 'कीमत' लगाने से बचते रहे । मुकेश गोयल करीब डेढ़ महीने तक गाजियाबाद में एक मीटिंग करने की तैयारी करते रहे, लेकिन शिव कुमार चौधरी वह मीटिंग नहीं कर सके । शिव कुमार चौधरी के इसी रवैये ने उनके और मुकेश गोयल के बीच संदेह के बीज बो दिए ।
संदेह के इन्हीं बीजों से अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी का फूल खिला है ।
अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी का फूल तो खिल गया है लेकिन उनके लिए भी मामला आसान नहीं है । उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में अभी जो नेता लोग दिख रहे हैं वह वास्तव में अपनी अपनी पोजीशन को स्थापित करने के प्रयासों के चलते उनकी उम्मीदवारी के साथ आये हैं ।
उनके लिए राहत की बात यही है कि उनके प्रतिद्धंद्धी शिव कुमार चौधरी के
मामले में भी सच यही है । अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का
दावा है कि अवतार कृष्ण की उम्मीदवारी को अगले दो वर्षों में गवर्नर का
पद-भार संभालने वालों का चूँकि समर्थन है, इसलिए मनोवैज्ञानिक रूप से उनका पलड़ा भारी हो जाता है । मनोवैज्ञानिक रूप से अवतार कृष्ण का पलड़ा तो भारी हो जाता है, लेकिन उसे व्यावहारिक रूप से संभव करने की चुनौती तो उनके सामने अभी है ही । यह जरूर है कि
अवतार कृष्ण की पुनः अवतरित हुई उम्मीदवारी ने शिव कुमार चौधरी के लिए
मामला उतना आसान नहीं रहने दिया है, जितना कि वह कुछ दिन पहले तक लगता था; और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है ।