नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन बनने में विफल रहे दीपक गर्ग ने
अब काउंसिल की एक्जीक्यूटिव कमेटी में जगह बनाने के लिए तिकड़म लगाना शुरू
कर दिया है । एक्जीक्यूटिव कमेटी के गठन की जिम्मेदारी में चूँकि उनके
राजनीतिक गुरु सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता की भी भूमिका रहनी है,
इसलिए उन्हें विश्वास है कि विजय गुप्ता एक्जीक्यूटिव कमेटी में तो उनकी
सीट पक्की करवा ही देंगे । दीपक गर्ग को भरोसा है कि विजय गुप्ता ने
उन्हें चेयरमैन बनवाने का जो बीड़ा उठाया था, उसमें वह भले ही असफल रहे हों -
लेकिन एक्जीक्यूटिव कमेटी में सदस्य तो वह उन्हें जरूर ही बनवा देंगे ।
दीपक गर्ग की इस कोशिश में योगिता आनंद और राजिंदर नारंग के साथ एक बार फिर
अन्याय होता दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि दीपक गर्ग की तिकड़म के चलते
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता समीकरण जिस तरह से बिगड़ा है,
उसमें सबसे ज्यादा घाटा इन्हीं दोनों का हुआ है । योगिता आनंद को पिछले
वर्ष की तुलना में पदों की वरीयता में पीछे धकेल दिया गया है, तो राजिंदर
नारंग को तो टीम से ही बाहर कर दिया गया है - जबकि पिछले वर्ष वह सेक्रेटरी
जैसे महत्वपूर्ण पद पर थे ।
विजय गुप्ता द्धारा लिखी गई पटकथा पर दीपक गर्ग ने जो शो मैनेज किया उसमें निशाना हालाँकि राजिंदर नारंग को बनाया गया, लेकिन चोट पहुँचाने का लक्ष्य विशाल गर्ग थे । दीपक गर्ग ने राजिंदर नारंग को दो तरह से घेर कर अपने खेल की शुरुआत की - एक तरफ तो उन्होंने राजिंदर नारंग पर आरोप लगाया कि वह ग्रुप तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, और दूसरी तरफ उन्होंने विशाल गर्ग को समझाया कि राजिंदर नारंग उन्हें बदनाम कर रहे हैं । इस तरह, राजिंदर नारंग के खिलाफ छेड़ी गई लड़ाई में उन्होंने विशाल गर्ग को अपने समर्थन में कर लिया । मजे की बात यही रही कि लड़ाई राजिंदर नारंग के खिलाफ थी ही नहीं, उन्हें तो बलि का बकरा बनाया जा रहा था; लड़ाई तो विशाल गर्ग के खिलाफ थी, और विशाल गर्ग अपने खिलाफ सजाई गई इस लड़ाई में अपने 'दुश्मनों' की ही मदद कर रहे थे । विशाल गर्ग सेंट्रल काउंसिल के लिए संभावित उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं और इस संभावना में सबसे ज्यादा खतरा विजय गुप्ता महसूस कर रहे हैं । दीपक गर्ग और विजय गुप्ता ने एक तरफ तो विशाल गर्ग को उनकी प्रशासनिक असफलताओं के लिए बदनाम किया/कराया और इस बदनामी के लिए राजिंदर नारंग को जिम्मेदार बता कर हरियाणा व पंजाब की ब्रांचेज में उनके लिए चुनौती खड़ी करने का प्रयास किया । विजय गुप्ता को इस बात में अपना फायदा दिखता है कि विशाल गर्ग और राजिंदर नारंग एक-दूसरे से लड़ते हुए दिखाई दें । विशाल गर्ग इस खेल को समझ नहीं सके और राजिंदर नारंग यही साबित करने की कोशिश में जुटे रहे कि उन्होंने ग्रुप तोड़ने की कोशिश नहीं की ।
विजय गुप्ता द्धारा लिखी गई पटकथा पर दीपक गर्ग ने जो शो मैनेज किया उसमें निशाना हालाँकि राजिंदर नारंग को बनाया गया, लेकिन चोट पहुँचाने का लक्ष्य विशाल गर्ग थे । दीपक गर्ग ने राजिंदर नारंग को दो तरह से घेर कर अपने खेल की शुरुआत की - एक तरफ तो उन्होंने राजिंदर नारंग पर आरोप लगाया कि वह ग्रुप तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, और दूसरी तरफ उन्होंने विशाल गर्ग को समझाया कि राजिंदर नारंग उन्हें बदनाम कर रहे हैं । इस तरह, राजिंदर नारंग के खिलाफ छेड़ी गई लड़ाई में उन्होंने विशाल गर्ग को अपने समर्थन में कर लिया । मजे की बात यही रही कि लड़ाई राजिंदर नारंग के खिलाफ थी ही नहीं, उन्हें तो बलि का बकरा बनाया जा रहा था; लड़ाई तो विशाल गर्ग के खिलाफ थी, और विशाल गर्ग अपने खिलाफ सजाई गई इस लड़ाई में अपने 'दुश्मनों' की ही मदद कर रहे थे । विशाल गर्ग सेंट्रल काउंसिल के लिए संभावित उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं और इस संभावना में सबसे ज्यादा खतरा विजय गुप्ता महसूस कर रहे हैं । दीपक गर्ग और विजय गुप्ता ने एक तरफ तो विशाल गर्ग को उनकी प्रशासनिक असफलताओं के लिए बदनाम किया/कराया और इस बदनामी के लिए राजिंदर नारंग को जिम्मेदार बता कर हरियाणा व पंजाब की ब्रांचेज में उनके लिए चुनौती खड़ी करने का प्रयास किया । विजय गुप्ता को इस बात में अपना फायदा दिखता है कि विशाल गर्ग और राजिंदर नारंग एक-दूसरे से लड़ते हुए दिखाई दें । विशाल गर्ग इस खेल को समझ नहीं सके और राजिंदर नारंग यही साबित करने की कोशिश में जुटे रहे कि उन्होंने ग्रुप तोड़ने की कोशिश नहीं की ।
राजिंदर नारंग को बहुत देर में इस बात के सुबूत मिले कि ग्रुप तोड़ने की
कोशिश तो दीपक गर्ग कर रहे थे और उन्हें तो सिर्फ इस्तेमाल किया जा रहा था ।
ग्रुप के सभी सदस्यों के सामने दीपक गर्ग के किये-धरे की पोल खुली तो
राजिंदर नारंग आरोप से तो बरी हो गए, लेकिन तब तक वह सत्ता गलियारे से भी
बाहर हो चुके थे । जिस सत्ता खेमे को बनाने में राजिंदर नारंग का भी सक्रिय
सहयोग रहा था - और कुछेक लोगों से तो ज्यादा ही रहा था, उस सत्ता खेमे के
लोगों ने उन्हें किनारे करके पदों की बंदरबाँट कर ली थी । सत्ता खेमे
के लोगों ने यह सब कर जरूर लिया था, लेकिन सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों की
सक्रियता के चलते जो गणित बना था उसके कारण काउंसिल में सत्ता का समीकरण
बदल चुका था । इस बदले समीकरण में एक मौके पर सत्ता की चाबी राजिंदर नारंग
के हाथ में आ गई थी । राजिंदर नारंग यदि पाला बदल लेते तो फिर काउंसिल के पदाधिकारियों का चुनाव उनकी मर्जी से होता ।
एक मौके पर चेयरमैन का चुनाव होता दिखा तो सत्ता खेमे में निकली पर्ची के
बल पर चेयरमैन पद के दावेदार राधेश्याम बंसल के पैरों तले की जमीन खिसक गई;
उन्हें लगा कि चेयरमैन की हाथ आई कुर्सी उनसे निकल ही जायेगी । तब
उन्होंने तथा खेमे के दूसरे लोगों ने और दीपक गर्ग ने भी उनकी खुशामद की और
उन्हें खेमे में ही बने रहने के लिए मनाने का प्रयास किया । राधेश्याम
बंसल ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने उनसे वायदा किया था कि यदि उनका
चेयरमैन बनने का मौका लगा तो वह उनकी राह का रोड़ा नहीं बनेंगे । दीपक गर्ग ने अपने किये-धरे के लिए माफी माँगी और इस बात पर जोर दिया कि जो हुआ सो हुआ पर अब हमें आगे देखना चाहिए ।
राजिंदर नारंग के कुछेक नजदीकियों का उनसे कहना था कि वह जिन्हें अपना
मानते रहे हैं, उन्होंने उनके साथ तरह-तरह से धोखा ही किया है और उन्हें
बदनाम करने से लेकर उन्हें टीम से बाहर रखने/करने तक का काम किया है, ऐसे
में उनके साथ फिर जा मिलने का भला क्या औचित्य होगा ? राजिंदर नारंग ने
लेकिन माना कि जिन लोगों के साथ वह पिछले एक वर्ष से हैं, और जिनके साथ
काउंसिल में कुछ बेहतर करने का उन्होंने सपना देखा था और अपने स्तर पर जैसा
जो हो सकता था प्रयास किया - उन्हें उन्हीं के साथ रहना चाहिए । कुछेक साथियों द्धारा निशाना बनाये जाने और अलग-थलग किये जाने के प्रसंग को लेकर राजिंदर नारंग
का मानना रहा कि ऐसा करने वाले अब जब माफी माँग रहे हैं और जो हुआ उसे
भूलने की बात कह रहे हैं, तो उन्हें भी उदारता का परिचय देना चाहिए । राजिंदर नारंग को यह कहने/समझाने वाले लोगों की हालाँकि कमी नहीं थी कि इन लोगों की माफी-वाफी के चक्कर में न पड़ो और जो मौका मिल रहा है उसका फायदा उठाओ - राजिंदर नारंग ने लेकिन यही उचित समझा कि किसी पद के लालच में उन्हें पश्चाताप कर रहे अपने साथी रहे लोगों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए ।
राजिंदर नारंग ने विश्वास किया कि जो लोग अपने किये धरे के लिए माफी माँग
रहे हैं, वह अब दोबारा उन्हें अपने किसी षड्यंत्र का शिकार नहीं बनायेंगे ।
राजिंदर नारंग द्धारा अपने खेमे में ही बने रहने का फैसला करने के बाद ही
राधेश्याम बंसल के चेयरमैन बनने, स्वदेश गुप्ता के सेक्रेटरी बनने और राजेश
अग्रवाल के ट्रेजरार बनने का रास्ता साफ हुआ ।
नॉर्दर्न
इंडिया रीजनल काउंसिल के पदों की तो बंदरबाँट हो गई है - समय अब
एक्जीक्यूटिव कमेटी के गठन का है । एक्जीक्यूटिव कमेटी में 9 सदस्य होने
हैं । 26 फरवरी की मीटिंग में जो तय हुआ था उसके अनुसार सत्ता खेमे के 9 में से 7 लोगों को एक्जीक्यूटिव कमेटी में लेना है ।
ज्यादा झमेला विशाल गर्ग, हंसराज चुग, राजिंदर नारंग, दीपक गर्ग और योगिता
आनंद को लेकर है । इन पाँच में से तीन लोगों का चुनाव होना है । विशाल
गर्ग और हंसराज चुग की सीट पक्की समझी जा रही है और योगिता आनंद का बाहर
रहना तय माना जा रहा है । झगड़ा दीपक गर्ग और राजिंदर नारंग को लेकर है ।
राधेश्याम बंसल यूँ तो राजिंदर नारंग के प्रति झुकाव दिखा रहे हैं, किंतु
दीपक गर्ग ने उन पर अपने लिए दबाव बनाया हुआ है । दीपक गर्ग ने ही उन्हें सुझाया है कि राजिंदर नारंग को लेना ही है, तो विशाल गर्ग की जगह ले लो । दीपक
गर्ग को भरोसा है कि उनके राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता अपने प्रभाव का
इस्तेमाल करते हुए राधेश्याम बंसल को प्रभावित कर लेंगे और एक्जीक्यूटिव
कमेटी में उनकी जगह पक्की करवा ही देंगे । ऐसे में, राजिंदर नारंग के लिए एक बार फिर धोखाधड़ी का शिकार होने की और अलग-थलग कर दिए जाने की संभावना बन रही है ।