Saturday, March 1, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में दीपक बाबू की शिकायत है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल रिश्वतकांड में सीबीआई की गिरफ्त में फँसे अपने छोटे दामाद के चक्कर में होने के कारण उनकी ठीक से मदद नहीं कर पा रहे हैं

मुरादाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने दीपक बाबू को कॉन्करेंस जुटाने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय देने के लिए ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी प्रक्रिया के शिड्यूल को तय करने से बचने की तरकीब लगाई है क्या ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट 3100 में मजेदार सीन बना हुआ है - नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन हो चुका है । अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करने का काम भी हो चुका है । लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने अभी तक भी यह घोषित नहीं किया है कि चेलैंज को मान्यता देने के लिए आवश्यक कॉन्करेंस कब तक जमा कराई जानी हैं । उल्लेखनीय है कि अधिकृत उम्मीदवार दिवाकर अग्रवाल चुने गए हैं और उनकी उम्मीदवारी को चेलैंज करने का काम दीपक बाबू ने किया है । रोटरी इंटरनेशनल के जो नियम-कानून हैं और प्रायः जो होता है - उसके अनुसार, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल को इस समय तक यह सुनिश्चित कर देना चाहिए था और घोषित कर देना चाहिए था कि दीपक बाबू को अपने चेलैंज को मान्य कराने के लिए आवश्यक कॉन्करेंस कब तक जमा करानी हैं । राकेश सिंघल ने अभी तक लेकिन ऐसा नहीं किया है । डिस्ट्रिक्ट में चर्चा है कि दीपक बाबू को क्लब्स से आवश्यक कॉन्करेंस मिल नहीं रही हैं; इसीलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहते हैं जिससे कि वह कॉन्करेंस जुटाने के लिए और प्रयास कर लें और इसी कारण से राकेश सिंघल कॉन्करेंस जमा करने के लिए समय-सीमा तय और घोषित नहीं कर रहे हैं ।
राकेश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक बाबू की मदद करने के चक्कर में पहले ही भारी फजीहत और किरकिरी का सामना करना पड़ा है और बार-बार मुहँकी खानी पड़ी है, लेकिन लगता है कि पीछे उन्हें जिन शर्मनाक हालातों से गुजरना पड़ा है - उससे उन्होंने कोई सबक नहीं लिया है ।
राकेश सिंघल ने पहले दीपक बाबू की मदद करने के उद्देश्य से दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को ही निरस्त करने की चाल चली थी, लेकिन अपनी उस चाल के चलते खुद उन्हें ही भारी फजीहत का शिकार होना पड़ा । डिस्ट्रिक्ट और डिस्ट्रिक्ट से बाहर अपनी चौतरफा किरकिरी करा लेने के बाद राकेश सिंघल को अंततः दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा था । इसमें मुहँकी खाने के बाद, दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने के फैसले को दीपक बाबू द्धारा रोटरी इंटरनेशनल में चुनौती देने को मुद्दा बना करा राकेश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने के लिए होने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की बैठक को स्थगित करने की तिकड़म लगाई - लेकिन उसमें भी उनकी दाल नहीं गली । इसके बाद, राकेश सिंघल ने कोशिश की कि नोमीनेटिंग कमेटी दीपक बाबू को अधिकृत उम्मीदवार चुन ले और या किसी को न चुने, ताकि चुनाव का मामला खुला बना रहे । लेकिन राकेश सिंघल की यह कोशिश भी विफल रही ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने के लिए तैयार हुई नोमीनेटिंग कमेटी ने राकेश सिंघल की सारी कोशिशों को धता बताते हुए दिवाकर अग्रवाल को अधिकृत उम्मीदवार चुन लिया । ऐसे में, राकेश सिंघल के पास दिवाकर अग्रवाल की राह में रोड़ा अटकाने के लिए एक ही तरीका बचा और वह यह कि वह दीपक बाबू से चेलैंज करवाएँ । दीपक बाबू के कई नजदीकियों ने उन्हें समझाया कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनके लिए किसी भी तरह से कोई समर्थन नहीं है, इसलिए चेलैंज-वेलैंज के चक्कर में न पड़ो; लेकिन राकेश सिंघल ने उन्हें आश्वस्त किया कि चुनाव चूँकि पोस्टल बैलेट से होगा, जिसमें क्लब अध्यक्ष को पैसे देकर वोट खरीद लेने का विकल्प होगा और उस काम में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मैं भी तुम्हारी मदद करूँगा - इसलिए चेलैंज करो । दीपक बाबू को राकेश सिंघल के इस 'खेल' में दम लगा और उन्होंने चेलैंज कर दिया । दीपक बाबू और राकेश सिंघल की जोड़ी के लिए लेकिन यह काम भी मुश्किल हो गया है । दीपक बाबू ने चेलैंज तो कर दिया है, लेकिन चेलैंज को मान्य कराने के लिए आवश्यक क्लब्स का समर्थन जुटाने में उन्हें सफलता नहीं मिल रही है । कई क्लब्स से दीपक बाबू को टका-सा जबाव सुनने को मिला है कि उम्मीदवार के रूप में आपने कभी बात तक भी नहीं की, तो अब समर्थन की उम्मीद कैसे और क्यों कर रहे हैं ? दीपक बाबू को चूँकि पर्याप्त क्लब्स से कॉन्करेंस नहीं मिल रही हैं इसलिए ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल कॉन्करेंस जमा कराने की समय-सीमा तय और घोषित नहीं कर रहे हैं ।
मजे की बात यह है कि दीपक बाबू के कुछेक नजदीकियों को ही अब लगने लगा है कि राकेश सिंघल सचमुच में दीपक बाबू के लिए कुछ कर तो पा नहीं रहे हैं और नाहक ही दीपक बाबू को इस्तेमाल करते हुए झगड़े को बनाये हुए हैं । दीपक बाबू के नजदीकियों को हालाँकि यह भी लगता है कि राकेश सिंघल दरअसल रिश्वतकांड में सीबीआई की गिरफ्त में फँसे अपने छोटे दामाद योगेंद्र मित्तल के चक्कर में परेशान होने के कारण डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों के लिए ज्यादा समय नहीं दे पा रहे हैं, और इसलिए भी दीपक बाबू की मदद नहीं कर पा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि राकेश सिंघल के छोटे दामाद योगेंद्र मित्तल दिल्ली में सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर हैं जो 60 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के मामले में सीबीआई की गिरफ्त में हैं । दामाद के आईआरएस अफसर होने का जो तथ्य अभी तक राकेश सिंघल के लिए गर्व का विषय था, उसी दामाद के रिश्वतकांड में फँसने से राकेश सिंघल के लिए शर्म की स्थितियाँ बनीं । इसका असर राकेश सिंघल की सामाजिक सक्रियता पर पड़ा । राकेश सिंघल ने मुरादाबाद में कम रहना शुरू किया है । जब भी कोई उन्हें फोन करता, राकेश सिंघल से उसे यही सुनने को मिलता कि वह बाहर हैं । शर्म के चलते ही राकेश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख आयोजनों में भी अपनी उपस्थिति को सीमित करना पड़ा है । दीपक बाबू के नजदीकियों का कहना है कि राकेश सिंघल इसीलिए दीपक बाबू की कुछ मदद नहीं कर पा रहे हैं । दीपक बाबू के नजदीकियों का कहना है कि ऐसे में राकेश सिंघल को दीपक बाबू को सब्जबाग नहीं दिखाने चाहिए और स्वीकार कर लेना चाहिए कि दीपक बाबू का कुछ नहीं हो सकता है ।
राकेश सिंघल ने दीपक बाबू के चक्कर में डिस्ट्रिक्ट में और रोटरी में अपनी जो फजीहत कराई है - और उसके बाद भी दीपक बाबू के लिए कुछ हासिल नहीं कर पाएँ हैं, उससे सबक लेने का सुझाव देते हुए राकेश सिंघल के शुभचिंतकों का कहना है कि राकेश सिंघल को हकीकत को स्वीकार कर लेना चाहिए : अपने दामाद के कारण वह वैसे ही परेशानी में हैं और लोगों को फेस करने से बचते/छिपते फिर रहे हैं, ऐसे में उन्होंने दीपक बाबू को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने का ठेका और ले लिया है । इस 'ठेके' के चलते अभी तक तो उन्हें सिर्फ बदनामी ही हाथ लगी है - आगे भी इसके अलावा कुछ और उन्हें मिल सकेगा, इसकी संभावना नहीं है । ऐसे में, शुभचिंतकों की राकेश सिंघल को सलाह है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियों का नियमानुसार पालन करें और अपनी मनमानियाँ थोपने की कोशिश न करें । अपने ही शुभचिंतकों की इस सलाह को राकेश सिंघल कैसे लेंगे, यह देखने की बात होगी ।