नई दिल्ली । नरेश गुप्ता ने
फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के
आयोजन को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के खिलाफ लायंस इंटरनेशनल
में हुई शिकायत के पक्ष में हलफनामा देकर एक अनोखा इतिहास रचा/बनाया है ।
उल्लेखनीय है कि यूँ तो कई डिस्ट्रिक्ट्स में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और
फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के बीच तनातनी के संबंध रहते हैं और अक्सर
ही वह एक दूसरे को फूटी आँख से भी देखने को तैयार नहीं होते हैं - लेकिन
फिर भी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ऐसा कुछ भी करने से हमेशा ही बचता है, जिससे
वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खिलाफ खड़ा हुआ साफ-साफ 'दिखे' । प्रायः यही
देखा गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ चाहें कितने भी तल्ख़ संबंध हों,
फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उन तल्ख़ संबंधों पर पर्दा डाले रखने का
प्रयास करता है । नरेश गुप्ता ने लेकिन उस पर्दे को गिरा देने का रिकॉर्ड
और ऐतिहासिक काम किया है । नरेश गुप्ता के इस रवैये पर डिस्ट्रिक्ट के
लोगों को इसलिए भी हैरानी है क्योंकि नरेश गुप्ता और विजय शिरोहा के बीच
ऐसी किसी तनातनी का कोई मामला कभी किसी के सामने आया भी नहीं है । डिस्ट्रिक्ट
की चुनावी राजनीति में दोनों हालाँकि परस्पर विरोधी खेमे में रहे हैं,
लेकिन इसके अलावा दोनों के बीच किसी तरह के टकराव के कोई संकेत किसी को
नहीं मिले हैं । यहाँ तक कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हुए चुनाव से पहले,
विजय शिरोहा के खेमे की तरफ से नरेश गुप्ता के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग होने
की जो बात हो रही थी, उस पर विजय शिरोहा ने ही अपनी पहल से धूल डलवाई थी ।
विजय शिरोहा ने खुद आगे बढ़ कर नरेश गुप्ता को आगाह भी किया था कि कुछेक
लोग उनके व्यवहार से नाराज हैं और उनके खिलाफ नेगेटिव वोट करना चाहते हैं,
इसलिए उन्हें थोड़ा सावधान होकर स्थितियों को संभाल लेना चाहिए । इस तरह,
विरोधी खेमे में होने के बावजूद विजय शिरोहा ने तो नरेश गुप्ता के प्रति
हमदर्दी और सहयोग व समर्थन का भाव ही रखा था - लोगों को आश्चर्य इसी बात का
है कि आखिर तब फिर नरेश गुप्ता को विजय शिरोहा के विरोध में 'रिकॉर्ड' पर
जाने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी और उन्होंने सहयोग/समर्थन की दोस्ताना
भावना की बात तो छोड़िये डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म की गरिमा तक को दाग लगाने
से परहेज नहीं किया ?
नरेश गुप्ता ने इसका बड़ा मासूम सा जबाव दिया है । जिसने भी उनसे
इस बारे में पूछा, उससे उन्होंने यही कहा है कि वह विजय शिरोहा के खिलाफ
बिलकुल नहीं हैं, और वह कुछ लोगों की बातों में आ गये, जिन्होंने उन्हें
भावनात्मक रूप से बहला कर उनसे हलफनामे पर हस्ताक्षर करवा लिए । क्या
यह उस व्यक्ति का जबाव है - और हरकत है जो तीन महीने बाद डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर का पदभार सँभालेगा ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद एक जिम्मेदारी का पद
है - तीन महीने बाद एक ऐसा व्यक्ति इस पद पर बैठेगा जो लोगों की बातों में आ
जाता है और भावनात्मक रूप से बहला लिया जाता है और जिससे ऐसा काम करवा
लिया जाता है जिसके होने पर डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म को तो लज्जित होना ही
पड़ता है, खुद वह भी लज्जित-सा महसूस करता है और उस काम को करने के बाद
तरह-तरह की बहानेबाजी करके मुँह छिपाने की कोशिश करता है । यहाँ पिछले
लायन वर्ष का एक प्रसंग याद करना प्रासंगिक होगा : पिछले लायन वर्ष में
तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन और तत्कालीन फर्स्ट वाइस
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के बीच संबंध तब तक बहुत ही तल्ख़ हो चुके
थे, जब राकेश त्रेहन को मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद की अपनी उम्मीदवारी के
प्रस्तोता के रूप में विजय शिरोहा के हस्ताक्षर चाहिए थे । विजय शिरोहा ने
राकेश त्रेहन के साथ अपने सारे झगड़े-झंझट को किनारे करके राकेश त्रेहन की
उम्मीदवारी के पर्चे पर हस्ताक्षर किये थे । विजय शिरोहा के नजदीकियों
ने कई कई बातों का हवाला देकर उन्हें हस्ताक्षर करने से रोकने की बहुतेरी
कोशिश की थी, लेकिन विजय शिरोहा का एक ही जबाव था कि डिस्ट्रिक्ट के झगड़े
को वह मल्टीपल तक नहीं ले जायेंगे । उनका कहना था कि वह नहीं चाहते हैं
कि मल्टीपल में लोग यह कहें कि विजय शिरोहा के हस्ताक्षर नहीं करने से
राकेश त्रेहन मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए नामांकन नहीं भर सके ।
विजय शिरोहा के इस रवैये की तुलना में नरेश गुप्ता का रवैया क्या है ? नरेश गुप्ता खुलेआम यह ऐलान कर रहे हैं कि विजय शिरोहा यदि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहेंगे और इसके लिए उनके हस्ताक्षर चाहेंगे, तो वह हरगिज हस्ताक्षर नहीं करेंगे । यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि नरेश गुप्ता और विजय शिरोहा के बीच संबंध उतने तल्ख़ भी नहीं हैं, जितने कि विजय शिरोहा और राकेश त्रेहन के बीच थे - लेकिन फिर भी विजय शिरोहा ने तो राकेश त्रेहन की उम्मीदवारी के कागज पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जबकि नरेश गुप्ता ने विजय शिरोहा की उम्मीदवारी के कागज पर हस्ताक्षर न करने का ऐलान किया है । इसी से जाहिर है कि नरेश गुप्ता कितनी छोटी सोच और कितने छोटे मन के व्यक्ति हैं । डिस्ट्रिक्ट में हालाँकि कई लोगों का कहना है कि नरेश गुप्ता इतने बुरे व्यक्ति नहीं हैं, उनकी संगत दरअसल ख़राब है और ख़राब संगत ने ही उनकी सोचने/समझने की और अपने भले/बुरे को पहचानने की शक्ति को उनसे छीन लिया है । हो सकता है कि यह बात सच हो, लेकिन ख़राब संगत तो उन्होंने खुद ही चुनी है - इसके लिए किसी और को तो दोषी नहीं ठहराया जा सकता है ।
विजय शिरोहा के इस रवैये की तुलना में नरेश गुप्ता का रवैया क्या है ? नरेश गुप्ता खुलेआम यह ऐलान कर रहे हैं कि विजय शिरोहा यदि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहेंगे और इसके लिए उनके हस्ताक्षर चाहेंगे, तो वह हरगिज हस्ताक्षर नहीं करेंगे । यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि नरेश गुप्ता और विजय शिरोहा के बीच संबंध उतने तल्ख़ भी नहीं हैं, जितने कि विजय शिरोहा और राकेश त्रेहन के बीच थे - लेकिन फिर भी विजय शिरोहा ने तो राकेश त्रेहन की उम्मीदवारी के कागज पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जबकि नरेश गुप्ता ने विजय शिरोहा की उम्मीदवारी के कागज पर हस्ताक्षर न करने का ऐलान किया है । इसी से जाहिर है कि नरेश गुप्ता कितनी छोटी सोच और कितने छोटे मन के व्यक्ति हैं । डिस्ट्रिक्ट में हालाँकि कई लोगों का कहना है कि नरेश गुप्ता इतने बुरे व्यक्ति नहीं हैं, उनकी संगत दरअसल ख़राब है और ख़राब संगत ने ही उनकी सोचने/समझने की और अपने भले/बुरे को पहचानने की शक्ति को उनसे छीन लिया है । हो सकता है कि यह बात सच हो, लेकिन ख़राब संगत तो उन्होंने खुद ही चुनी है - इसके लिए किसी और को तो दोषी नहीं ठहराया जा सकता है ।
संगत की बात पर नरेश गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की राह
पर आने के किस्से को जानना प्रासंगिक होगा । सुभाष गुप्ता के निधन से खाली
हुए पद को भरने का जब मौका आया था तब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश
त्रेहन ने खाली हुए पद पर ओंकार सिंह को बैठाने की तैयारी की थी । विजय
शिरोहा ने इसका विरोध किया था । विजय शिरोहा का ओंकार सिंह के साथ कोई
विरोध नहीं था । उन्हें लेकिन यह बात पसंद नहीं आई थी कि सुभाष गुप्ता की
चिता की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई थी और ओंकार सिंह ने उनके निधन से खाली
हुई जगह को प्राप्त करने के लिए लॉबीइंग शुरू कर दी । इसी बीच
डिस्ट्रिक्ट में यह चर्चा फैली कि ओंकार सिंह को सुभाष गुप्ता के निधन से
खाली हुई जगह देने/दिलवाने के बदले में राकेश त्रेहन ने उनसे मोटी रकम का
सौदा कर लिया है । इस चर्चा के कारण ओंकार सिंह को लेकर राकेश त्रेहन
अलग-थलग और अकेले पड़ गए । इस बीच दीपक टुटेजा ने सुभाष गुप्ता के किसी
नजदीकी को ही उनकी जगह देने का सुझाव रखा, जिसका विजय शिरोहा ने जोरशोर से
स्वागत/समर्थन किया । दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा की इस पहल को दूसरे
लोगों ने भी पसंद किया और बात जब इस पहल पर आगे बढ़ी तो नरेश गुप्ता का नाम
सामने आया और सुभाष गुप्ता की जगह उन्हें मिली । इस आधार पर नरेश
गुप्ता को दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा के नजदीक होना चाहिए था, नरेश गुप्ता
लेकिन उन राकेश त्रेहन के नजदीक हो गए जो उन्हें मिली 'जगह' ओंकार सिंह को
दिलाना चाहते थे - विजय शिरोहा अड़ंगा न लगाते तो दिला ही देते । नरेश
गुप्ता को दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा के नजदीक होना चाहिए था, लेकिन वह
राकेश त्रेहन के नजदीक हो गए - यह भी कोई बड़ी बात नहीं है । पक्ष-विपक्ष
समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं । लेकिन नरेश गुप्ता जिस
तरह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर विजय शिरोहा के खिलाफ की गई शिकायत में
पार्टी बन गए हैं और जिस तरह मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए विजय
शिरोहा की संभावित उम्मीदवारी के पर्चे पर हस्ताक्षर न करने की खुली घोषणा
कर रहे हैं - उससे वास्तव में वह अपने 'चरित्र' का ही परिचय दे रहे हैं ।
नरेश गुप्ता के प्रति समर्थन और हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि नरेश गुप्ता जिस तरह से कुछेक लोगों के हाथों के कठपुतली बन कर काम/व्यवहार कर रहे हैं, उसके चलते वह वास्तव में अपने गवर्नर-काल के लिए काँटे बो रहे हैं । उनका
गवर्नर-काल अच्छा चले, इसके लिए जरूरी है कि वह किसी या किन्हीं लोगों के
साथ दुश्मनी जैसा व्यवहार न करें और सभी के साथ बना कर रखें । उनके साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का ही कहना है कि वह चाहें किसी के भी साथ रहें, अपने भले-बुरे का ध्यान जरूर रखें - ध्यान सिर्फ इस बात का रखें कि वह जिनके साथ हैं वह अपना स्वार्थ साधने के लिए उनका इस्तेमाल तो नहीं कर रहे हैं । चाहें
यह सलाह देने वाले लोग हों, और या दूसरे लोग हों - अभी तो सभी यही मान/समझ
रहे हैं कि नरेश गुप्ता दूसरों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं और इस तरह
अपने लिए मुसीबतों को ही तैयार कर रहे हैं ।