Monday, April 30, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 के प्रेसीडेंट्स इलेक्ट सेमीनार में इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम के कड़े तेवरों से सुरेश सबलोक को मोहरा बना कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी को घेरने/फँसाने की चली राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की चाल एक बार फिर फेल हुई

चंडीगढ़ । प्रेसीडेंट्स इलेक्ट व सेक्रेटरीज इलेक्ट सेमीनार में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किए गए और पधारे इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम के कड़े तेवर देख कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट प्रवीन गोयल ने वर्ष 2020-21 के लिए चुने गए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज को बधाई देने का कार्यक्रम करने में ही भलाई देखी/पहचानी । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के इशारे पर प्रवीन गोयल पहले रमेश बजाज को बधाई देने/दिलवाने का कार्यक्रम करवाने में आनाकानी कर रहे थे । दरअसल राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स अभी भी रमेश बजाज की जीत की घोषणा को हजम नहीं कर पा रहे हैं । प्रेम भल्ला, शाजु पीटर, जेपीएस सिबिआ, रंजीत भाटिया, रमन अनेजा आदि पूर्व गवर्नर्स ने बासकर चॉकलिंगम से मिलकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी की शिकायत की कि उन्होंने चैलेंजिंग उम्मीदवार सुरेश सबलोक के पक्ष में आईं कॉन्करेंस की संख्या को जानबूझ कर कम दिखा कर मनमाने तरीके से रमेश बजाज को विजेता घोषित कर दिया है । बासकर चॉकलिंगम ने लेकिन उन्हें यह जानकारी देते हुए उनका मुँह बंद कर दिया कि टीके रूबी लगातार उन्हें और दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस को तथ्यों से अवगत कराते रहे हैं और उन्होंने जो भी फैसला लिया, वह उनसे विचार-विमर्श करके ही लिया है । इन पूर्व गवर्नर्स ने बासकर चॉकलिंगम के सामने धमकी वाले अंदाज में यह बात भी कही कि इस मामले में यदि अभी कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो सुरेश सबलोक रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करेंगे । बासकर चॉकलिंगम ने भी उन्हें टका सा जबाव दे दिया कि मेरे हिसाब से टीके रूबी ने जो किया है, वह ठीक किया है - अब इसके बाद जिसे जो करना है, वह करे । बासकर चॉकलिंगम द्वारा मौजूदा लीडर्स के साथ खिंचवाई जा रही तस्वीर में रमेश बजाज को भी शामिल किए जाने का दृश्य देख कर राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स पीछे हटने के लिए मजबूर हुए और प्रवीन गोयल को भी 'संदेश' मिल गया कि रमेश बजाज को विजेता मानने में ही उनकी भलाई है; और फिर रमेश बजाज के लिए बधाई देने/दिलवाने वाला कार्यक्रम करवाने को लेकर आनाकानी करने वाला रवैया उन्होंने छोड़ा और प्रेसीडेंट्स इलेक्ट व सेक्रेटरीज इलेक्ट सेमीनार में उन्होंने वर्ष 2020-21 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश बजाज का स्वागत किया/करवाया ।
बासकर चॉकलिंगम के कड़े तेवर देख कर राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स अभी भले ही पीछे हटने के लिए मजबूर हुए हैं; लेकिन लोगों को आशंका है कि अपनी घटिया व टुच्ची सोच को वह आसानी से छोड़ेंगे नहीं और कुछ न कुछ बबाल खड़ा करेंगे ही । मजे की बात यह है कि उनके द्वारा किए जाने वाले संभावित बबाल का वास्ता देकर सुरेश सबलोक टीके रूबी वाले खेमे के नेताओं के साथ सौदेबाजी करने लगे हैं । सुरेश सबलोक ऑफर दे रहे हैं कि टीके रूबी वाले खेमे के नेता अगले वर्ष में उन्हें यदि अपना उम्मीदवार बना/मान लेने का आश्वासन दें, तो वह राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के हाथों का खिलौना नहीं बनेंगे और उनकी बात नहीं मानेंगे और इस बार अपनी हार स्वीकार कर लेंगे और चुप बैठेंगे । टीके रूबी वाले खेमे के नेता लोग लेकिन सुरेश सबलोक के इस ऑफर में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । उनका मानना/कहना है कि सुरेश सबलोक यदि उनकी बाँह मरोड़ कर अपनी उम्मीदवारी के लिए उनका समर्थन चाह रहे हैं, तो यह तो नहीं हो पायेगा । सुरेश सबलोक यदि दोस्तों की तरह साथ आएँ तो अगले दो-तीन वर्षों में गवर्नर चुन लिए जा सकेंगे - लेकिन इसके लिए कोई सौदेबाजी नहीं की जा सकती है । टीके रूबी वाले खेमे के नेताओं का कहना है कि सुरेश सबलोक सौदेबाजी फलीभूत न होने की स्थिति में यदि डीसी बंसल वाले 'रास्ते' पर ही जाना चाहते हैं, तो फिर उन्हें कौन रोक सकता है ? राजा साबू गिरोह के चक्कर में फँस कर डीसी बंसल को अपना रोटरी जीवन बर्बाद करने से जब कोई नहीं रोक पाया, तो सुरेश सबलोक को भी कोई नहीं रोक पायेगा ।
ऐसे में, सभी की निगाह इस बात पर है कि सुरेश सबलोक एक सच्चे रोटेरियन की तरह क्या इस सच्चाई को स्वीकार करेंगे कि वह निर्धारित समय तक अपने चैलेंज के लिए जरूरी कॉन्करेंस की व्यवस्था करने में असफल रहे हैं और इस तरह इस वर्ष की चुनावी लड़ाई को हार चुके हैं; और या राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की बबाल पैदा करने वाली राजनीति का 'मोहरा' बनेंगे । उनके नजदीकियों की मानें तो सुरेश सबलोक इस बात को जान/समझ तो रहे हैं कि राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स उन्हें इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन कहीं न कहीं उन्हें यह भी लग रहा है कि इस तरह इस्तेमाल होकर ही वह टीके रूबी वाले खेमे के नेताओं को अगले वर्ष के समर्थन के समझौते के लिए राजी कर सकते हैं - इसलिए हो सकता है कि वह राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स का 'मोहरा' बने रहें । देखने की बात सिर्फ यह होगी कि सुरेश सबलोक को मोहरा बना कर राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स का खेल कितना दूर तक जायेगा और चलेगा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर रमेश बजाज की जोरदार चुनावी जीत और उनकी जीत को इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम की तरफ से मिली खुली व स्पष्ट दो-टूक मान्यता से टीके रूबी वाले खेमे के नेताओं तथा समर्थकों के हौंसले खासे बुलंद हैं । प्रेसीडेंट्स इलेक्ट व सेक्रेटरीज इलेक्ट सेमीनार में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी द्वारा दिए गए भाषण को लोगों की जो तालियाँ मिलीं, और बासकर चॉकलिंगम ने अपने भाषण में टीके रूबी की जैसी जो खुली ढेर प्रशंसा की - उससे भी टीके रूबी वाले खेमे के लोगों को उत्साह मिला है, और राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स दबाव में आए हैं और कमजोर पड़ते दिखे हैं । लेकिन फिर भी अगले कुछ दिनों की घटनाएँ डिस्ट्रिक्ट के आगे के माहौल को तय करने वाली साबित होंगी ।

Thursday, April 26, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पिछली बार अच्छे-खासे वोट पा कर भी असफल रहे हरीश चौधरी, अनिल अग्रवाल, रतन सिंह यादव, अजय सिंघल, अविनाश गुप्ता, मुकुल अग्रवाल आदि को इस बार भी बेवकूफियाँ करते देखते नए उम्मीदवारों को उत्साह मिला है

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अब की बार अपनी जीत को पक्की करने के लिए हरीश कुमार चौधरी ने एक बड़ा काम यह किया है कि अपने नाम में उन्होंने 'जैन' शब्द और जोड़ लिया है । पिछले चुनाव में वह हरीश कुमार चौधरी के नाम से उम्मीदवार थे, और पहली वरीयता में 596 वोट पाकर वह 16वें नंबर पर थे, लेकिन फिर भी वह 'विजेता 13' की सूची में नहीं आ सके थे । अब की बार वह हरीश कुमार चौधरी जैन के नाम से उम्मीदवार होंगे, और उन्हें विश्वास है कि नाम में जैन शब्द जोड़ लेने से जैन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स उन पर वोटों की ऐसी बारिश करेंगे कि चुनावी जीत उनसे बच कर निकल ही नहीं पाएगी । उनका विश्वास पूरा होगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन यह जरूर पता चल रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल को अगले टर्म में कैसे कैसे पदाधिकारी मिल सकते हैं ? इससे भी मजेदार किस्सा अनिल अग्रवाल का है । पिछली बार 451 वोट पाकर अनिल अग्रवाल 23वें नंबर पर थे; और अगली बार के लिए अच्छी तैयारी कर रहे थे । पिछले वर्ष लेकिन एक टीवी चैनल के स्टिंग में काले धन को सफेद करने के चक्कर में पकड़े जाने के बाद उनकी उम्मीदवारी की संभावना पर ग्रहण लगता दिखा । काफी समय तक तो उन्होंने हालाँकि 'बहादुरी' वाले तेवर दिखाए, जिसका संदेश था कि बेईमान और अपराधी किस्म के लोग क्या चुनाव नहीं जीतते हैं; लेकिन धीरे-धीरे उनके तेवर ढीले पड़ते गए और उन्होंने लालू यादव से प्रेरणा लेकर उनके 'रास्ते' को अपनाया । जिस प्रकार लालू यादव ने बेईमानी व लूट-खसोट में पकड़े जाने के बाद अपनी पत्नी राबड़ी देवी को आगे कर दिया था, उसी तर्ज पर अनिल अग्रवाल ने अपनी पत्नी रोबिना अग्रवाल को आगे करने की तैयारी दिखाई है । उनके नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि अगले चुनाव में अनिल अग्रवाल अपनी जगह अपनी पत्नी रोबिना अग्रवाल को चुनाव लड़वायेंगे - और इस तरह इंस्टीट्यूट को रोबिना अग्रवाल के रूप में एक राबड़ी देवी मिलेंगी ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का अगला चुनाव उन उम्मीदवारों के लिए बहुत खास है, जो पिछली बार जोरदार सक्रियता तथा अच्छे-खासे वोट पाकर भी सफल नहीं हो पाए थे । हरीश कुमार चौधरी और अनिल अग्रवाल के अलावा ऐसे लोगों में रतन सिंह यादव, अजय सिंघल, अविनाश गुप्ता, मुकुल अग्रवाल आदि का नाम लिया/सुना जा रहा है । पिछली बार भी इन्हें 'जीतने वाले' उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था और इनका प्रदर्शन अच्छा भी रहा था । इसी बिना पर इन्हें इस बार मजबूत उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । किंतु मजे की बात यह है कि इनमें से कोई भी पिछली बार की अपनी जीत को हार में बदलने वाले कारणों की पहचान/पड़ताल करता और उन्हें दूर करने की कोशिश करता हुआ नजर नहीं आ रहा है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की चुनावी राजनीति पर निगाह रखने वाले दिल्ली के अनुभवी नेताओं का मानना/कहना है कि यह लोग दरअसल यह समझते हैं कि इनके लिए अगला चुनाव वहाँ से शुरू होगा, जहाँ पिछला चुनाव खत्म हुआ था; जबकि सच यह है कि हर चुनाव में एक अलग केमिस्ट्री होती है । इस बात को हरित अग्रवाल के उदाहरण से समझा जा सकता है । वर्ष 2012 के चुनाव में हरित अग्रवाल पहली वरीयता में 605 वोट पाकर नौवें नंबर पर थे, और काउंसिल के सदस्य बने थे; लेकिन वर्ष 2015 के चुनाव में पहली वरीयता में कुल 422 वोट के साथ 24वें नंबर पर जा लुढ़के थे - और काउंसिल सदस्य होने के बावजूद चुनाव हार गए थे । इस तरह के कई लोगों के और उदाहरण मिल जायेंगे, जिन्हें पिछली बार की तुलना में कम वोट मिले होते हैं । ऐसे उदाहरण भी हैं, जबकि पिछली बार की तुलना में ज्यादा वोट तो मिले - लेकिन सफलता नहीं मिली । आलोक कृष्ण इसके सबसे बदकिस्मत उदाहरण हैं । वर्ष 2012 में पहली वरीयता में 625 वोट के साथ दसवें नंबर पर रहने वाले आलोक कृष्ण वर्ष 2015 में पहली वरीयता में 877 वोट के साथ पाँचवें नंबर पर तो पहुँच गए, लेकिन काउंसिल में नहीं पहुँच सके ।
इन उदाहरणों के बावजूद रतन सिंह यादव अब की बार तो अपनी जीत पक्की ही मान कर चल रहे हैं । अपनी जीत को पक्का तो वह पिछली बार भी मान रहे थे; जिसके चलते उन्होंने नतीजा आने से पूर्व ही पहले वर्ष में ही चेयरमैन बनने के लिए जुगाड़ बैठाना भी शुरू कर दिया था । इस अति-आत्मविश्वास के चलते वह दरअसल यह देख/समझ ही नहीं पाए कि उनके चुनाव अभियान में कैसी क्या बेवकूफियाँ हो रही हैं । उनका पूरा चुनाव अभियान झूठ और बड़बोले दावों पर टिका था । उनके एक घनघोर समर्थक जयदीप सिंह गुसाईं ने सोशल मीडिया में उनकी बढ़ाई करते हुए पेल दिया कि वह इंस्टीट्यूट की कई कमेटियों में रह चुके हैं । इस पर लोगों ने पूछ लिया कि कौन कौन सी कमेटियों में ? इसका जबाव देने में उक्त समर्थक के तो पसीने छूट गए । उसके बचाव में उतरते हुए रतन सिंह यादव ने तो लेकिन बेवकूफी की पराकाष्ठा को छू लिया । उन्होंने जबाव दिया कि अभी मैं चुनाव में व्यस्त हूँ; चुनाव पूरा हो जाने पर मैं बताऊँगा कि मैं इंस्टीट्यूट की कौन कौन सी कमेटियों में रहा हूँ । रतन सिंह यादव के इस जबाव के चलते लोगों के बीच उनकी खासी फजीहत हुई । अच्छे-खासे वोट पाने के बाद भी रतन सिंह यादव के असफल रहने में उक्त प्रसंग का कितना क्या रोल था, यह तो नहीं पता; लेकिन उक्त प्रसंग से यह जरूर पता चला कि उनका चुनाव-अभियान किस तरह के झूठों व बड़बोले दावों पर निर्भर था और अपने झूठ व बड़बोले दावों को 'मैनेज' करने की उनकी तैयारी भी बेवकूफीपूर्ण थी । यही नजारा अब की बार भी देखने को मिल रहा है । उनके नजदीकियों का ही कहना है कि वह या तो ज्ञान बाँटने का अहँकार दिखाते हैं (मानो दूसरे सभी अज्ञानी हैं) और या बेसिरपैर की बातों में लगे रहते हैं । कोढ़ में खाज वाली बात यह हुई कि उन्हें अजय सिंघल का संग-साथ और मिल गया है । यह दोनों दुनिया जहान की खराब बातों पर कमेंट करेंगे, लेकिन प्रोफेशन और इंस्टीट्यूट की गड़बड़ियों पर चुप्पी साधे रहेंगे और बेईमानों के साथ खड़े दिखेंगे । अजय सिंघल को भी पिछली बार अच्छे वोट मिले थे । इस बार भी वह जीतने की उम्मीद कर रहे हैं; लेकिन अपना चुनाव अभियान वह ऐसे उपदेशात्मक तरीके से चला रहे हैं कि उनके ही एक शुभचिंतक को उन्हें सलाह देनी पड़ी कि चुनाव दिसंबर में ही हैं । यह बताने/कहने के पीछे उक्त शुभचिंतक का इशारा शायद यही रहा है कि बेसिर पैर की बातें छोड़ों और अपने चुनाव को लेकर गंभीर हो जाओ ।
अविनाश गुप्ता थोड़े जहीन और महीन किस्म के व्यक्ति हैं और अपनी बातों व अपने व्यवहार से पढ़े-लिखे 'लगते' भी हैं । पिछली बार भी उन्हें जीतने वाले उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा था, और इस बार भी जीतने वाले संभावितों की लिस्ट में उनका नाम है । कई लोग यह कहते हुए भी सुने जाते हैं कि उनके जैसे लोगों को काउंसिल में होना ही चाहिए । लेकिन चुनाव लड़ने के नाम पर अविनाश गुप्ता की तरफ से जिस तरह की हरकतें होती देखी/सुनी जा रही हैं, उससे उनके शुभचिंतकों के बीच भी निराशा है । कुछेक को तो कहते हुए भी सुना गया है कि चुनाव अभियान में अच्छे-भले लोगों की भी अक्ल पता नहीं कहाँ घास चरने चली जाती है । पिछली बार जीतते जीतते रह गए मुकुल अग्रवाल को भी इस बार जीतने की संभावना वाले उम्मीदवारों में देखा/गिना जा रहा है, लेकिन उनके नजदीकियों का भी रोना है कि इस बार की चुनौतियों पर मुकुल अग्रवाल का ध्यान ही नहीं है । मुकुल अग्रवाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती गौरव गर्ग ही हैं, जो पिछली बार उनकी उम्मीदवारी के बड़े समर्थक थे - लेकिन इस बार खुद उम्मीदवार हो गए हैं । ऐसे में, पिछली बार पहली वरीयता के 610 वोट पाकर पंद्रहवें नंबर की उन्हें जो जगह मिली थी, उस जगह को ही बचा कर रख पाना उनके लिए बड़ी मुसीबत और चुनौती की बात है । इससे निपटने के लिए लेकिन वह कुछ खास प्रयास करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । पिछली बार के चुनाव में अच्छी स्थितियों में रहने वाले उम्मीदवारों को इस बार अभी तक ढीले-ढाले रवैये में देखते और पिछली बार जैसी ही बेवकूफियाँ करते देखते पिछली बार ज्यादा पीछे रहे तथा नए उम्मीदवारों के बीच जिस तरह का उत्साह देखने को मिल रहा है, उसने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनावी परिदृश्य को अभी से रोमांचक बना दिया है ।

Wednesday, April 25, 2018

रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले के चलते डिस्ट्रिक्ट 3080 में तरह तरह की बेईमानियों के आरोपों में घिरे राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की गर्दन अभी तो बच गई है, लेकिन वह भी समझ रहे हैं कि इस बचने में - वास्तव में वह ऐसे फँसे हैं कि ज्यादा दिन बचे रह नहीं पायेंगे

चंडीगढ़ । रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू को रोटरी इंटरनेशनल के जनरल सेक्रेटरी जॉन हेव्को का 24 अप्रैल को लिखा/भेजा पत्र पढ़ने को मिला, तो राजा साबू के लिए यह समझना थोड़ा मुश्किल हुआ कि वह हँसे या रोएँ । हँसने का तो उन्हें इसलिए विचार आया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने उनके और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स की कारस्तानियों को लेकर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में जो पिटीशन दायर की थी, बोर्ड ने उसमें सीधी कार्रवाई करने से इंकार कर दिया है; लेकिन इस बात पर खुश होने और हँसने का आया विचार यह जान कर तुरंत उड़नछू हो गया कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने डिस्ट्रिक्ट के सभी पदाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी के साथ सहयोग करें और यदि ऐसा होता हुआ नहीं दिखा तो इंटरनेशनल उचित कार्रवाई करेगा । यह राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स के लिए रोने की बात है । उल्लेखनीय है कि टीके रूबी ने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को जो पिटीशन दी थी, उसमें उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3080 में रोटरी के नाम पर चल रहे कुछेक प्रोजेक्ट्स में हो रही पैसों की धाँधली का मुद्दा उठाया था और धोखाधड़ी करने वाले लोगों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की माँग की थी ।
अपनी पिटीशन में टीके रूबी ने आरोप लगाया था कि पूर्व गवर्नर्स का एक ग्रुप रोटरी के नाम पर प्रोजेक्ट्स करने के लिए बड़ी रकम इकट्ठी करता रहा है, जिसका कोई हिसाब-किताब वह डिस्ट्रिक्ट के मौजूदा नेतृत्व को देने को तैयार नहीं है । 
रोटरी इंटरनेशनल के अभी तक के इतिहास में यह अनोखी घटना है कि एक डिस्ट्रिक्ट का गवर्नर अपने डिस्ट्रिक्ट में रोटरी के नाम पर चल रहे प्रोजेक्ट्स का हिसाब-किताब जानने/देखने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है, लेकिन असफल हो रहा है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट 3080 में रोटरी के नाम पर चलने वाले तमाम प्रोजेक्ट्स की चाबी राजा साबू और यशपाल दास के पास है । डिस्ट्रिक्ट सर्विस सोसायटी का मुखिया, नियमानुसार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होता है; लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी को गवर्नर का पदभार सँभाले हुए दस महीने होने के बाद भी इस सोसायटी का हिसाब-किताब नहीं मिला है । इस सोसायटी का फंड पूरी तरह राजा साबू और यशपाल दास के कब्जे में है और वह मनमाने तरीके से इसका पैसा दाएँ/बाएँ करते रहते हैं । टीके रूबी कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में इस सोसायटी के हिसाब/किताब का मुद्दा उठा चुके हैं, दिल्ली स्थित रोटरी इंटरनेशनल के साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों के साथ-साथ इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन राजा साबू और यशपाल दास इस सोसायटी के फंड पर ऐसी केंचुली मार कर बैठे हुए हैं कि इसका हिसाब-किताब बाहर ही नहीं आ पा रहा है । रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट में दो करोड़ 83 लाख रुपए की घपलेबाजी का आरोप राजा साबू और यशपाल दास पर बुरी तरह चिपका हुआ है, लेकिन इस मामले में भी ट्रस्ट के चेयरमैन राजा साबू ने बेशर्मीभरी चुप्पी साधी हुई है । उनकी चुप्पी और हिसाब-किताब पर कुंडली मारे बैठे रहने के कारण ही टीके रूबी को इंटरनेशनल बोर्ड में पिटीशन देने के लिए मजबूर होना पड़ा ।
टीके रूबी की पिटीशन पर इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों का फैसला हालाँकि विभिन्न अकाउंट्स पर केंचुली मार कर बैठे राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स को फिलहाल राहत तो देती है, लेकिन उक्त फैसले में डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों पर नजर रखने की जो बात कही गई है, उससे लगता है कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों की तरफ से राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की गर्दन पर फंदा धीरे-धीरे ही सही लेकिन कसता जा रहा है । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने इस वर्ष जिस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार रमेश बजाज की उम्मीदवारी को चेलैंज करने/करवाने की कार्रवाई से अपने आप को दूर रखा है, उससे लग रहा है कि वह अपने आप को दबाव में और हारा हुआ मानने लगे हैं । इसके अलावा, राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स अपने ही एक साथी पूर्व गवर्नर मनप्रीत सिंह का हाल देख कर भी डरे हुए हैं । मनप्रीत सिंह को क्लब के एक प्रोजेक्ट में घपलेबाजी करने के आरोप में क्लब की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है, जिसके बाद से राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स को डर हुआ है कि कहीं अपनी अपनी बेईमानियों के कारण वह भी अपने अपने क्लब्स से निलंबित न कर दिए जाएँ । तरह तरह की बेईमानियों में संलिप्तता के चलते राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने वास्तव में लोगों को वह 'तोते' दिखा दिए हैं, जिनमें उनकी जान बसती है । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में पिटीशन के जरिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने दरअसल उन 'तोतों' की ही गर्दन मरोड़ने की कोशिश की है; राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स फिलहाल टीके रूबी की कोशिश से बच तो गए हैं, लेकिन वह भी समझ रहे हैं कि इस बचने में - वास्तव में वह ऐसे फँसे हैं कि ज्यादा दिन बचे रह नहीं पायेंगे ।

Tuesday, April 24, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल की ग्रांट हड़पने के लिए, पहले बीस लाख रुपए में विनय गर्ग को खरीदने की कोशिश के फेल हो जाने के बाद उन्हें मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद से हटवाने की कार्रवाई पर अदालती आदेश के चलते रोक लग जाने से 'गैंग ऑफ फोर' के सदस्यों पर तगड़ी चपत लगी है

नई दिल्ली । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के पद से विनय गर्ग को हटाने की कार्रवाई पर अदालती आदेश के चलते रोक लग जाने से 'गैंग और फोर' को जो करारी चपत लगी है, उसने मल्टीपल 321 के परिदृश्य को दिलचस्प तो बनाया ही है - नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-वर्ष में लायंस इंटरनेशनल की पहचान को कलंकित करने का काम भी किया है । इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों के संपर्क में रहने वाले बड़े लायन नेताओं का कहना/बताना है कि विनय गर्ग के मामले में जिस जल्दबाजी और बेवकूफीपूर्ण तरीके से कार्रवाई हुई है, उसके लिए बोर्ड में दूसरे देशों के सदस्य भारतीय सदस्यों और प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल को कोस रहे हैं; उन्हें लगता है कि लायनिज्म के नाम पर अपनी लूट-खसोट को बचाये/बनाये रखने तथा अपनी निजी 'दुश्मनियाँ' निकालने के लिए इंटरनेशनल बोर्ड में भारत के सदस्य अपनी स्थिति का मनमाना दुरुपयोग कर रहे हैं, और इसके लिए लायनिज्म और लायंस इंटरनेशनल को कलंकित करने का काम कर रहे हैं । विनय गर्ग और उनके संगी-साथी इसके लिए 'गैंग ऑफ फोर' को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । 'गैंग ऑफ फोर' में नरेश अग्रवाल, वीके लूथरा, विनोद खन्ना और जेपी सिंह का नाम लिया/बताया जा रहा है । एलसीआईएफ ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के तहत मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को मिले करीब एक करोड़ 31 लाख रूपए  को चोरी से बचाने की विनय गर्ग की कोशिशों से नाराज 'गैंग ऑफ फोर' ने विनय गर्ग को रास्ते से हटाने के लिए योजना तो बनाई, लेकिन वह योजना इतनी लचर निकली कि पहले ही धक्के में ढह गई । विनय गर्ग ने यह खुलासा करके मामले को और गंभीर बना दिया है कि उक्त ग्रांट के हिसाब-किताब को बिना देखे/जाँचे भुगतान करने के बदले में 'गैंग ऑफ फोर' की तरफ से उन्हें बीस लाख रुपए नगद देने का ऑफर दिया गया था । उन्होंने चूँकि उनका ऑफर नहीं माना, तब उन्हें रास्ते से ही हटा देने की योजना बनाई गई ।
अदालती आदेश के चलते लेकिन उक्त योजना फिलहाल पिट गई नजर आ रही है । विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद से हटाने के लिए 'गैंग ऑफ फोर' ने दरअसल लंबा रुट पकड़ा । लायंस इंटरनेशनल बोर्ड में फैसला विनय गर्ग की लायन सदस्यता खत्म करवाने का लिया गया । माना/समझा यह गया कि विनय गर्ग जब लायन सदस्य ही नहीं रहेंगे, तो मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के पद से तो स्वतः ही बाहर हो जायेंगे । इस योजना को विभिन्न चरणों में लागू होना था; लेकिन उतावलेपन और बेवकूफी में पहले चरण के साथ ही अंतिम चरण को भी लागू कर देने से मामला गड़बड़ा गया है । लायंस इंटरनेशनल की तरफ से विनय गर्ग और मल्टीपल काउंसिल ट्रेजरर स्वतंत्र सब्बरवाल के क्लब्स के प्रेसीडेंट को इन दोनों को क्लब से निकालने का निर्देश दिया गया था, और इसके लिए दो मई तक का समय उन्हें दिया गया था । क्लब प्रेसीडेंट्स को लिखे/भेजे पत्र में साफ लिखा है कि दो मई तक उन्होंने यदि उन्हें दिए गए निर्देश का पालन नहीं किया, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और क्लब का चार्टर रद्द कर दिया जाएगा । लायंस इंटरनेशनल कार्यालय में उतावलापन और बेवकूफी यह हुई कि 18 अप्रैल को उक्त पत्र लिखने/भेजने के साथ ही इंटरनेशनल के बेवसाइट 'माय एलसीआई' पर विनय गर्ग और स्वतंत्र सब्बरवाल को उनके पदों से हटा/हटाया गया दिखाया जाने लगा । तकनीकी और प्रशासनिक रूप से यह पूरी तरह गलत है । दरअसल विनय गर्ग और स्वतंत्र सब्बरवाल को मल्टीपल काउंसिल के उनके पदों से हटाए जाने की कहीं कोई सूचना नहीं है; इस बारे में लायंस इंटरनेशनल का कहीं कोई आदेश और या फैसला नहीं है; मल्टीपल में किसी को भी इस बारे में सूचित नहीं किया गया है - यह दोनों अभी भी अपने अपने क्लब के सदस्य हैं; दो मई तक की मोहलत तो खुद लायंस इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों ने दी हुई है ।
लायंस इंटरनेशनल कार्यालय की तरफ से अपने ही फैसले का मजाक बना दिए जाने की इस स्थिति के पीछे 'गैंग ऑफ फोर' के सदस्यों को ही देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि अपने अपने पदों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने कार्यालय के पदाधिकारियों से मनमाने फैसले करवा लिए, लेकिन अब जो उन्हें उलटे पड़ रहे हैं, और उनकी फजीहत करने वाले साबित हो रहे हैं । अदालती आदेश के चलते विनय गर्ग और स्वतंत्र सब्बरवाल को अपने अपने क्लब से निकाले जाने की लायंस इंटरनेशनल की कार्रवाई पर रोक लग जाने से मल्टीपल काउंसिल के पदों से उनके हटने की संभावना भी समाप्त हो गई है - जो 'गैंग ऑफ फोर' पर एक करारी चपत की तरह है । हालाँकि कई लोगों को लगता है कि 'गैंग ऑफ फोर' इस चपत के बाद भी चुप नहीं बैठेगा, और अपनी मनमानी तथा लूट को बरकरार रखने के लिए कोई न कोई तरकीब जरूर ही लगायेगा । वह क्या तरकीब लगायेगा, और उसका क्या नतीजा निकलेगा - यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन यह जरूर पता चल रहा है कि पहले बीस लाख रुपए में विनय गर्ग को खरीदने की कोशिश और फिर उन्हें मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद से हटवाने की कोशिश के फेल हो जाने से 'गैंग ऑफ फोर' के सदस्य बदहवास तो हुए हैं, और उनकी यह बदहवासी मल्टीपल में अभी और नाटक दिखायेगी ।

Monday, April 23, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में पुणे के अरुण गिरी द्वारा सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने के लक्ष्य-निर्धारण ने यशवंत कसार के लिए - बल्कि वास्तव में एसबी जावरे के लिए चुनौती खड़ी की

पुणे । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत यशवंत कसार की उम्मीदवारी को कामयाब बनाने/बनवाने के लिए इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य एसबी जावरे ने जिस तरह से कमर कस ली है, उसने पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा कर दी है । उल्लेखनीय है कि यशवंत कसार के अलावा वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए सत्यनारायण मूंदड़ा, रेखा धमनकर व अरुण गिरी के नाम चर्चा में हैं । सत्यनारायण मूंदड़ा रीजनल काउंसिल में अपना छटवाँ वर्ष, यानि दूसरा टर्म पूरा कर रहे हैं, और तीसरे टर्म के लिए चुनावी मैदान में होंगे - इसलिए उनकी जीत तो पक्की ही मानी जा रही है । यशवंत कसार, रेखा धमनकर व अरुण गिरी पिछले तीन वर्षों में क्रमशः पुणे ब्रांच के चेयरमैन रहे हैं - यशवंत कसार पिछले टर्म के आखिरी वर्ष में, तथा रेखा धमनकर व अरुण गिरी मौजूदा टर्म के पहले दो वर्षों में । अरुण गिरी वर्ष 2009 में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ चुके हैं, जिसमें उन्हें सफलता तो नहीं मिली थी - लेकिन उनका चुनावी प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा था । पुणे से रीजनल काउंसिल के लिए दो सीट निकलना आसान होता रहा है; पिछली बार तीन सीट निकालने के लिए कोशिशें तो खूब हुईं थीं - लेकिन उसमें कामयाबी नहीं मिल सकी थी । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए पुणे से निकलने वाली दो सीटों पर सत्यनारायण मूंदड़ा के साथ अरुण गिरी का दावा माना/पहचाना जा रहा है, इसलिए यशवंत कसार की उम्मीदवारी की नाव को पार लगाने के लिए एसबी जावरे को उनकी उम्मीदवारी की बागडोर अपने हाथ में लेना पड़ी है । 
यशवंत कसार को पुणे में एसबी जावरे के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । पिछली बार, पुणे ब्रांच का चेयरमैन रहते हुए यशवंत कसार ने एसबी जावरे का आशीर्वाद लेते हुए वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए पहले तो अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, लेकिन कुछ ही दिनों में एसबी जावरे ने सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी की सफलता को सुरक्षित बनाने के लिए यशवंत कसार की उम्मीदवारी की बलि ले ली थी । इसलिए यशवंत कसार की उम्मीदवारी को इस बार सफल बनाना एसबी जावरे अपनी नैतिक जिम्मेदारी मान रहे हैं । पुणे में एसबी जावरे की जो स्थिति है, उसमें उनका आशीर्वाद और उनका 'आदमी' होने की पहचान ही यशवंत कसार की जीत की गारंटी हो सकता था - लेकिन सत्यनारायण मूंदड़ा के चुनावी मैदान में डटे रहने और अरुण गिरी की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने से यशवंत कसार के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं । पिछली बार चुनावी वर्ष में यशवंत कसार पुणे ब्रांच के चेयरमैन थे, इसलिए लोगों के बीच उनकी पहचान और पैठ थी; लेकिन पिछले करीब दो वर्षों से वह चूँकि सीन से गायब हैं, और चुनावी राजनीति में चूँकि 'दिखने' वाले को ही लोग पहचानते हैं इसलिए यशवंत कसार के लिए इस बार का चुनावी मुकाबला खासा मुश्किल है । एसबी जावरे ने उन्हें हालाँकि इंस्टीट्यूट की 'कैपेसिटी बिल्डिंग ऑफ मेंबर्स इन प्रैक्टिस' कमेटी में को-ऑप्ट तो करवा दिया है, लेकिन उक्त कमेटी में को-ऑप्ट सदस्य रहते हुए यशवंत कसार के लिए वास्तव में ऐसा कुछ कर पाने की कोई संभावना होगी - जिसका वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में वह कोई फायदा उठा सकें, इसमें उनके नजदीकियों और समर्थकों को ही संदेह है ।
अरुण गिरी के आक्रामक चुनावी रवैये ने पुणे में चुनावी समीकरणों को जिस तरह से प्रभावित किया है, उसने पुणे के चुनावी परिदृश्य को रोचक बना दिया है । अरुण गिरी ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने का अपने लिए जो लक्ष्य निर्धारित और घोषित किया है, उसने दूसरे उम्मीदवारों के बीच और खलबली मचाई है । दरअसल अरुण गिरी के इस लक्ष्य निर्धारण को पुणे में चुनावी राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले लोगों ने काफी गंभीरता से लिया है । इसका कारण है कि अरुण गिरी अभी भले ही ब्रांच की मैनेजिंग टीम में हों, लेकिन चुनावी राजनीति के संदर्भ में उनकी पहचान काफी बड़ी और व्यापक है । करीब दो वर्ष पहले हुए ब्रांच के चुनाव में उन्हें चुनाव में कुल वोटों का एक-चौथाई हिस्सा मिला था । इस तथ्य का विशेष अर्थ और महत्त्व है । यह कोई छोटी बात नहीं है । ब्रांच के चुनाव में 14 उम्मीदवार थे; जिनमें 13 उम्मीदवारों के बीच करीब 75 प्रतिशत वोट बँटे थे, और करीब 25 प्रतिशत वोट अकेले अरुण गिरी को मिले थे । ऐसा नतीजा तभी पाया जा सकता है, जब हर जातीय समूह और वर्ग के वोटों तक पहुँच व स्वीकार्यता हो । पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में कोई मराठा, तो कोई मारवाड़ी, कोई गुजराती, कोई महिला, कोई नए व युवा वोटों पर निर्भर करता है - तब एक अकेले अरुण गिरी ऐसे उम्मीदवार रहे जिन्हें हर समूह और हर वर्ग से समर्थन मिला । एक बार सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ लेने के कारण अरुण गिरी की पुणे से बाहर के लोगों के बीच भी अच्छी पहचान और पैठ है । वर्ष 2009 में अरुण गिरी ने जब सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा था, तब वह पहली बार लोगो के सामने आए थे - हालाँकि तब भी पहली वरीयता में ही उन्हें करीब 850 वोट मिले थे, और एलिमिनेट होने के समय उन्हें मिलने वाले वोटों की गिनती एक हजार के पार हो गई थी । उनकी इसी बैक-ग्राउंड को देखते हुए वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सबसे ज्यादा वोट पाने के उनके लक्ष्य-निर्धारण को गंभीरता से लिया/देखा जा रहा है । इस स्थिति ने लेकिन यशवंत कसार के लिए - और यशवंत कसार के जरिये वास्तव में एसबी जावरे के लिए भारी मुसीबत खड़ी कर दी है । देखना दिलचस्प होगा कि यशवंत कसार को कामयाबी दिलवाने के लिए एसबी जावरे क्या क्या तरकीबें लगाते हैं ?

Saturday, April 21, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की डिसिप्लिनरी कमेटी की कार्रवाई शुरू होने के बाद नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के वाइस चेयरमैन नितिन कँवर उन्हीं लोगों से मदद की गुहार लगाते देखे जा रहे हैं, जिनके साथ वह बदतमीजियाँ करते रहे हैं

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के वाइस चेयरमैन नितिन कँवर इंस्टीट्यूट की डिसिप्लिनरी कमेटी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई शिकायत पर शुरू हुई कार्रवाई से बचने के लिए हाथ-पैर तो बहुत मार रहे हैं, पर फिलहाल उन्हें बचने की कोई सूरत नजर नहीं आ रही है । नितिन कँवर शिकायतकर्ताओं के दरवाजे खटखटा चुके हैं, लेकिन किसी से भी उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है; उनके राजनीतिक आका सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा लगता है कि पहले ही इस मामले में हाथ खड़े कर चुके हैं । राजेश शर्मा ने हालाँकि पहले उन्हें यह कहते हुए निश्चिन्त रहने का भरोसा दिया था कि प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता से मेरे अच्छे संबंध हैं जिसके चलते मैं तुम्हारे खिलाफ कार्रवाई शुरू ही नहीं होने दूँगा; लेकिन जब कार्रवाई शुरू हो गई तब राजेश शर्मा ने नितिन कँवर को बताया कि यह कार्रवाई अतुल गुप्ता और विजय गुप्ता ने शुरू करवाई है, इसलिए अब इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकूँगा । नितिन कँवर भी अपने खिलाफ शुरू हुई कार्रवाई के पीछे एक बड़े षड्यंत्र को इसलिए देख/पहचान रहे हैं, क्योंकि पूर्व चेयरमैन राकेश मक्कड़ और मौजूदा ट्रेजरर राजेंद्र अरोड़ा के खिलाफ तो डिसिप्लिनरी कमेटी में उनसे भी पहले शिकायत दर्ज हुई थी - लेकिन कार्रवाई उन दोनों की बजाये नितिन कँवर के खिलाफ पहले शुरू हो गई । नितिन कँवर चूँकि अतुल गुप्ता के साथ बदतमीजी कर चुके हैं और विजय गुप्ता के साथ भी उनका एक अप्रिय बबाल हो चुका है, इसलिए उन्हें राजेश शर्मा की यह बात सच भी लग रही है कि उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू होने/करवाने के पीछे उन दोनों सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का ही हाथ है । दरअसल इसी कारण से नितिन कँवर और उनके नजदीकियों को मामला गंभीर लग रहा है ।
गंभीर दिख रहे मामले से निपटने के लिए नितिन कंवर को अब उन लोगों से भी मदद की गुहार लगाना पड़ रही है, जिनके साथ वह लगातार बदतमीजियाँ करते रहे हैं । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पिछले वर्ष के कार्यकाल के अंतिम दिनों में, काउंसिल के 13 सदस्यों में से सात सदस्यों द्वारा दर्ज करवाई गई शिकायत में आरोप तो हालाँकि निकासा चेयरमैन के रूप में नीतिन कँवर की कारस्तानियों को लेकर हैं, लेकिन वास्तव में यह शिकायत नितिन कँवर की बदतमीजियों की प्रतिक्रिया में थी । असल में, काउंसिल सदस्यों में इतना मौसेरा-भाईचारा तो बन ही जाता है कि वह एक-दूसरे की बेईमानियों और वित्तीय अनियमितताओं को ईश्यू नहीं बनाते हैं और एक-दूसरे की बेईमानियों पर चुप बने रहते हैं; पिछले वर्ष के पदाधिकारियों की बेईमानियों के किस्से लेकिन इसलिए चर्चा में रहे - क्योंकि तब के पदाधिकारियों ने बेईमानी करने के साथ-साथ काउंसिल सदस्यों तक के साथ बदतमीजियाँ भी कीं । नितिन कँवर का व्यवहार तो बिलकुल सड़क-छाप व्यक्ति की तरह रहा, जिसमें काउंसिल सदस्यों को गालियाँ बकना और चीखना-चिल्लाना आमबात रहती थी । उनके व्यवहार के चलते ही कुछेक बार मीटिंग में पुलिस बुलवाने तक की नौबत आई और कुछेक बार तो मीटिंग को सुचारु रूप से चलवाने के लिए इंस्टीट्यूट को ऑब्जर्वर तक भेजने पड़े । वास्तव में, नितिन कँवर के सड़क-छाप व्यवहार से निपटने के लिए ही डिसिप्लिनरी कमेटी में उनकी शिकायत की गई थी और शिकायत में निकासा चेयरमैन के रूप में की गई उनकी मनमानियों और बेईमानियों को मुद्दा बनाया गया ।
डिसिप्लिनरी कमेटी द्वारा कार्रवाई शुरू करते हुए नितिन कँवर को आरोपों का जबाव देने के लिए कहा गया; नितिन कँवर ने अपनी तरफ से आरोपों का जबाव दे भी दिया है । उनके जबाव में लेकिन बहुत से झोल और झूठ हैं । शिकायत करने वाले काउंसिल सदस्यों का मानना और कहना है कि डिसिप्लिनरी कमेटी के सदस्यों की आँखों में धूल झोंकने और अपने जबावों को उचित ठहराने के लिए नितिन कँवर ने झूठे तथ्य और विवरण गढ़ लिए हैं । नितिन कँवर के जबाव में दिए गए तथ्यों को सत्यापित करने का काम अब शिकायतकर्ताओं को करना है । जाहिर है कि सारा मामला अब शिकायतकर्ताओं के रवैये पर निर्भर है । नितिन कँवर शिकायतकर्ताओं को मनाने की कोशिश कर रहे हैं कि वह उनके जबाव में दिए गए झूठे तथ्यों को न 'पकड़ें', ताकि मामला हल्का पड़ जाए और रफा/दफा हो जाए । शिकायतकर्ताओं में शामिल रहीं पूजा बंसल के रवैये पर सभी की निगाहें हैं - दरअसल करीब तीन महीने पहले जब शिकायत दर्ज हुई थी, तब पूजा बंसल विरोधी खेमे में थीं; लेकिन अब वह नितिन कँवर के साथ सत्ता खेमे में हैं । बाकी शिकायतकर्ताओं का नितिन कँवर से कहना है कि पहले सत्ता में शामिल अपनी सहयोगी पूजा बंसल को तो इस बात के लिए राजी करो कि वह तुम्हारे जबाव में दिए गए झूठे तथ्यों को अनदेखा करें, उसके बाद हमसे कोई उम्मीद करना । पूजा बंसल की तरफ से लेकिन कहा/बताया जा रहा है कि सत्ता में होने के बावजूद वह अपना स्टैंड नहीं बदलेंगी और वही करेंगी, जो बाकी शिकायतकर्ता करेंगे । समस्या दरअसल यह भी है कि पूजा बंसल यदि अकेले अपना स्टैंड बदल भी लेती हैं, और बाकी शिकायतकर्ता अपने पुराने स्टैंड पर कायम रहते हैं तो भी नितिन कँवर को तो राहत नहीं ही मिलेगी - पूजा बंसल की साख/पहचान और खराब होगी । ऐसे में नितिन कँवर के लिए सारा मामला मुसीबतभरा हो गया नजर आ रहा है । नितिन कँवर हालाँकि अपने नजदीकियों को आश्वस्त भी कर रहे हैं कि उनका मामला अभी भले ही मुश्किल में दिख रहा हो, लेकिन अंततः सब ठीक हो जायेगा । डिसिप्लिनरी कमेटी में काम करने और फैसले लेने के नाम पर जिस तरह की खानापूरियाँ होती हैं, उनका हवाला देते हुए नितिन कँवर का कहना है कि जब बड़े बड़े 'चोर' डिसिप्लिनरी कमेटी में बच जाते हैं, तो वह ही क्यों फँसेंगे ? उनकी इस बात में दम तो है ।

Friday, April 20, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सतीश सिंघल के रोटरी और डिस्ट्रिक्ट से बाहर होने की बन रही संभावना के चलते अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के गेम-प्लान के पूरी तरह तहस-नहस हो जाने की स्थिति डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अशोक अग्रवाल के लिए वरदान की तरह ही है

गाजियाबाद । सतीश सिंघल की मुश्किलें और उनके कारण बनी स्थितियाँ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए जैसे वरदान बन कर आई हैं । दरअसल सतीश सिंघल को लेकर जो हालात बने हैं, उन्होंने अन्य संभावित उम्मीदवारों - अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के सामने अप्रत्याशित आफतें खड़ी कर दी हैं, और उनकी यही अप्रत्याशित आफतें अशोक अग्रवाल के लिए वरदान बन गईं हैं । मजे की बात यह है कि सतीश सिंघल के कारण बनी मुश्किलों को अमित गुप्ता और रवि सचदेवा ने अलग अलग तरीकों से खुद ही आमंत्रित किया है । रवि सचदेवा का मामला तो ज्यादा ही दिलचस्प है । उल्लेखनीय है कि सतीश सिंघल को मुसीबतों ने जब घेरना शुरू किया, और उसके एक पड़ाव पर उन्हें जब अपने ही क्लब से निकाला गया - तब रवि सचदेवा ने उन्हें अपने क्लब में शरण दी/दिलवाई । रवि सचदेवा और उनके संगी-साथियों ने सोचा था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उनके क्लब का सदस्य होगा, तो उनके क्लब की धाक बनेगी और एक उम्मीदवार के रूप में रवि सचदेवा का पलड़ा भारी होगा । ऐसा सोचते हुए उन्हें जरा भी आशंका नहीं रही होगी कि सतीश सिंघल को अपने क्लब में शामिल करने के साथ ही बदकिस्मती ने भी उनके क्लब में डेरा डाल दिया है । पहले तो, रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को बड़े जोरशोर के साथ प्रमोट करने के लिए जो कार्यक्रम बनाया गया, उसके ठीक एक दिन पहले सतीश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्त करने की घोषणा हो गई - जिसके चलते कार्यक्रम का सारा तामझाम निरर्थक हो गया । दूसरी मुसीबत अब यह आ पड़ी है कि सतीश सिंघल द्वारा रोटरी इंटरनेशनल के खिलाफ अदालती कार्रवाई शुरू किए जाने की प्रतिक्रिया में रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की तरफ से सतीश सिंघल को क्लब से निकालने के लिए दबाव बनाया जा रहा है । 
 उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल का यह नियम है कि कोई रोटेरियन यदि उसके खिलाफ अदालत जाता है, तो उसके क्लब को उसकी सदस्यता खत्म करने के लिए कहा जाता है, और यदि क्लब ऐसा नहीं करता है तो क्लब को ही बंद कर दिया जाता है । पिछले दिनों ही गवर्नरी के चक्कर में डिस्ट्रिक्ट 3100 और डिस्ट्रिक्ट 3080 में ऐसा हो चुका है । इसीलिए रवि सचदेवा के क्लब के सामने अपने आप को बचाये रखने के लिए एक ही विकल्प है - और वह यह कि वह सतीश सिंघल को क्लब से निकाल दें । यह स्थिति रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को बड़ा झटका देने वाली है, जिससे उबर पाना उनके लिए मुश्किल ही होगा । अमित गुप्ता का मामला थोड़ा अलग है, और एक बड़ी सुनियोजित योजना के फेल हो जाने की कहानी कहता है । दरअसल अमित गुप्ता ने अगले रोटरी वर्ष में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की योजना सतीश सिंघल के कहने पर ही बनाई थी । वास्तव में अमित गुप्ता इसी वर्ष उम्मीदवार होने की तैयारी कर रहे थे । उनके नजदीकियों ने उन्हें समझाया था कि यह वर्ष उनके लिए बहुत ही मुफीद रहेगा; क्योंकि मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति अपना अनमनापन प्रकट कर ही दिया था - इसलिए अलग अलग कारणों से अमित गुप्ता को कई नेताओं का समर्थन मिल सकने की संभावना बन रही थी । सतीश सिंघल ने लेकिन अमित गुप्ता को अपनी टीम में महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दीं और समझाया कि इन जिम्मेदारियों को निभाते और काम करते हुए इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पहचान और पैठ बनाओ और अगले वर्ष उम्मीदवार बनो ।
सतीश सिंघल ने तर्क दिया कि अगले वर्ष गवर्नर के क्लब का उम्मीदवार होने का फायदा मिलेगा और फिर निवर्त्तमान गवर्नर के रूप में मेरा और आने वाले दो गवर्नरों का समर्थन मिलेगा । किसी भी उम्मीदवार को यह तर्क लुभायेगा ही, सो अमित गुप्ता को भी इस तर्क ने लुभा लिया और अपने तमाम समर्थकों की सलाह को दरकिनार कर उन्होंने अगले वर्ष के लिए उम्मीदवारी लाने का फैसला कर लिया । उनके कुछेक नजदीकियों ने फिर भी समझाया कि इस वर्ष यदि हार भी गए तो अगले वर्ष अपनी स्थिति को मजबूत करोगे । अमित गुप्ता पर लेकिन सतीश सिंघल के तर्क का जादु चढ़ चुका था, लिहाजा उन्होंने किसी की नहीं सुनी । पर अब जब अमित गुप्ता को सतीश सिंघल की मदद की जरूरत पड़ी, तब सतीश सिंघल खुद मुसीबत में फँस गए और ऐसी मुसीबत में फँस गए कि किसी उम्मीदवार के तो काम के नहीं ही रह गए । सतीश सिंघल के मुसीबत में फँसने से अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के सामने बैठे-बिठाए जो संकट आ खड़ा हुआ है, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अशोक अग्रवाल को बिना कुछ करे-धरे ही लाभ की स्थिति में ला दिया है । सतीश सिंघल के साथ जो हुआ है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों का ताना-बाना पूरी तरह बिखर गया है और दूसरे किसी खेमे के 'बनने' की संभावना फिलहाल धूमिल ही लगती है । अलग अलग कारणों से और अलग अलग तरीकों से अमित गुप्ता तथा रवि सचदेवा चूँकि सतीश सिंघल के समर्थन पर निर्भर थे, इसलिए सतीश सिंघल के रोटरी और डिस्ट्रिक्ट से बाहर होने की बन रही संभावना के चलते इनका गेम-प्लान पूरी तरह तहस-नहस हो गया है । चुनावी मुकाबला शुरू होने से पहले ही संभावित प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवारों के गेम प्लान के ध्वस्त होने की स्थिति अशोक अग्रवाल के लिए वरदान से कम नहीं है ।

Thursday, April 19, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल में नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-वर्ष में उनके खुद के मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के चेयरमैन विनय गर्ग की लायन सदस्यता खत्म करवा कर क्या यह संदेश दिया गया है कि जो कोई भी नरेश अग्रवाल और उनके संगी-साथियों द्वारा की जाने वाली लूट-खसोट में रूकावट डालने की कोशिश करेगा, उसे लायनिज्म में नहीं रहने दिया जायेगा

नई दिल्ली । नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-वर्ष में, लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि लायंस इंटरनेशनल के पैसों की 'चोरी' करने वाले लोगों की बजाये - चोरी को रोकने की कोशिश करने वाले लोगों को सजा सुनाई गई है; और सजा भी ऐसी-वैसी नहीं, बल्कि सजा के नाम पर उन्हें लायनिज्म से ही निकाल दिया गया है । एलसीआईएफ ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के तहत करीब एक करोड़ 31 लाख रुपयों में चोरी रोकने की कोशिश करने के 'जुर्म' में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग तथा ट्रेजरर स्वतंत्र सब्बरवाल को उनके अपने अपने क्लब से निकालने के आदेश दिए गए हैं । इन दोनों के क्लब के प्रेसीडेंट को लायंस इंटरनेशनल कार्यालय से जो पत्र मिला है, उसमें यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि यह किसी और क्लब के सदस्य भी नहीं बन सकते हैं - और इस तरह लायनिज्म में इनकी मौजूदगी की सभी संभावनाओं को खत्म कर दिया गया है । समझा जाता है कि इस कार्रवाई के जरिये लायंस इंटरनेशनल में इस समय काबिज भारतीय पदाधिकारियों ने वास्तव में यह संदेश देने का काम किया है कि भविष्य में कोई भी लायंस इंटरनेशनल के पैसों की लूट का विरोध करेगा, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी । उल्लेखनीय है कि दिल्ली में इंटरनेशनल कन्वेंशन होनी है, जिसमें करोड़ों रुपयों का घालमेल होना है - इस घालमेल में अपना अपना हिस्सा बनाने के लिए बड़े लायन लीडर्स ने कमर कस ली है, कुछेक लायन लीडर्स ने तो अपने अपने बेटों को लायनिज्म से जुड़े धंधों में लगा दिया है; स्वाभाविक ही है कि कुछेक लोग उनकी चोरी-चकारी रोकने की कोशिश करेंगे ही । विनय गर्ग और स्वतंत्र सब्बरवाल के खिलाफ कार्रवाई करके विरोध करने वाले लोगों को चेतावनी देने का काम किया गया है । मजे की बात यह है कि लायंस इंटरनेशनल के पैसों की चोरी रोकने की कोशिश करने वाले मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारियों के खिलाफ तो कार्रवाई कर दी गई है, लेकिन लायंस इंटरनेशनल के ड्यूज का पैसा सीधे-सीधे हड़प जाने वाले डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है । यानि नरेश अग्रवाल का न्याय-मंत्र है : चौकीदार को सजा और चोर को माफी ।
एलसीआईएफ ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के तहत मिले करीब एक करोड़ 31 लाख रूपए में हुई बेईमानी को समझने/पहचानने के लिए कोई बहुत दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है । मामला बहुत सीधा सा है । जैसा कि उक्त ग्रांट को जो नंबर दिया गया है, उससे ही जाहिर है कि उक्त ग्रांट मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को मिली है । यह ग्रांट डायबिटीज प्रोजेक्ट के लिए मिली थी, जिसे मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में खर्च किया जाना था । इस प्रोजेक्ट के मुखिया पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी थे । लायंस इंटरनेशनल के कायदे-कानून के अनुसार, प्रोजेक्ट के नाम पर आई रकम को मल्टीपल व डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों की सलाहानुसार खर्च होना था, लेकिन हुआ यह कि उन्हें ही पूरी तरह अँधेरे में रख कर जगदीश गुलाटी ने उक्त रकम को एलसीसीआईए के पदाधिकारियों के साथ मिल कर ठिकाने लगा दिया । उक्त रकम चूँकि मल्टीपल के नाम पर आई थी, इसलिए वह मल्टीपल के अकाउंट में थी । जगदीश गुलाटी ने उक्त रकम की माँग की । मल्टीपल के पदाधिकारियों का कहना रहा कि जगदीश गुलाटी ने मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स के साथ जो धोखा किया, और प्रोजेक्ट की रकम को मनमाने तरीके से 'बाहर' के लोगों के साथ मिल कर खर्च कर लिया, उसे तो चलो छोड़ो - लेकिन जो पैसा खर्च किया है, उसका हिसाब तो दो कि कहाँ किस मद में कितना पैसा खर्च हुआ है, ताकि एलसीआईएफ को ग्रांट की रिपोर्ट सौंपी जा सके । जगदीश गुलाटी लेकिन हिसाब देने को तैयार नहीं हुए । आरोप है कि वह इसीलिए तैयार नहीं हुए, क्योंकि एक रुपए की चीज को पाँच-पाँच रुपए में खरीदा बताया/दिखाया गया है । जगदीश गुलाटी और ग्रांट की रकम को मनमाने तरीके से खर्च करने वाले उनके साथियों को विश्वास रहा कि एलसीआईएफ को वह जो और जैसा भी हिसाब भेजेंगे, वह उनके 'सैंया' नरेश अग्रवाल स्वीकार करवा ही देंगे, लेकिन मल्टीपल के पदाधिकारियों को हिसाब भेजा तो उनकी 'चोरी' निश्चित ही पकड़ी जाएगी ।
इसके बाद लेकिन जो हुआ, वह लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में पहली बार हुआ और सचमुच कमाल हुआ । नियम-कायदे के अनुसार, एलसीआईएफ किसी प्रोजेक्ट के तहत ग्रांट देती है, तो कुछ समय के पश्चात वह उस ग्रांट का हिसाब-किताब देने को कहती है । कई बार, कई बार क्या अक्सर ही हिसाब-किताब देने वाले लोग लापरवाही करते हैं तो उसके लिए रिमाइंडर आता है । ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के मामले में एलसीआईएफ ने लेकिन हिसाब-किताब माँगने की बजाये ग्रांट की रकम वापस माँगी । ग्रांट की रकम वापस माँगने का एलसीआईएफ ने कोई कारण भी नहीं बताया । ऐसे में समझा गया और आरोप लगे कि उक्त ग्रांट की रकम को मनमाने तरीके से खर्च कर लेने वाले लोगों ने हिसाब-किताब दिए बिना उक्त रकम को हासिल करने के लिए अपने 'सैंया' नरेश अग्रवाल की मदद ली । पुरानी कहावत है ही कि कोतवाल जब सैंया हो, तो चाहें जो कर लो । समझा जाता है और आरोप है कि प्रेसीडेंट के रूप में नरेश अग्रवाल की सिफारिश पर एलसीआईएफ के पदाधिकारियों ने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के लिए मंजूर हुई ग्रांट की रकम को मल्टीपल के पदाधिकारियों से वापस लेकर एलसीसीआईए के लोगों को सौंपने के लिए ही अपने ही नियम-कायदे को ताक पर रख दिया है । मल्टीपल काउंसिल 321 के पदाधिकारियों ने एलसीआईएफ के पदाधिकारियों को नियम-कायदों की बात बताने की कोशिश की तो मिलीभगत करके दो पदाधिकारियों - चेयरमैन विनय गर्ग और ट्रेजरर स्वतंत्र सब्बरवाल की प्राथमिक सदस्यता समाप्त करवाने के लिए कार्रवाई कर दी गई । मजे की बात यह है कि ग्रांट के नाम पर जो रकम मल्टीपल 321 में आई, वह वैसी की वैसी ही बैंक अकाउंट में रखी रही; उसमें से इकन्नी भी खर्च नहीं हुई और ब्याज सहित उक्त रकम एलसीआईएफ को वापस भी भेज दी गई - लेकिन फिर भी विनय गर्ग और स्वतंत्र सब्बरवाल के खिलाफ कार्रवाई कर दी गई । समझा जाता है कि इस कार्रवाई के जरिए लोगों को यह संदेश दिया गया है कि जो कोई भी नरेश अग्रवाल और उनके संगी-साथियों द्वारा की जाने वाली लूट-खसोट में रूकावट डालने की कोशिश करेगा, उसे लायनिज्म में नहीं रहने दिया जायेगा ।
मजेदार तथ्य यह भी है कि ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के तहत मिली रकम 8 नबंवर 2017 को मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के अकाउंट में आई थी, जिसे लेकर चले झमेले में 18 अप्रैल 2018 को विनय गर्ग व स्वतंत्र सब्बरवाल के खिलाफ कार्रवाई भी हो गई । यानि करीब पाँच महीने में एक ऐसे मामले में लायंस इंटरनेशनल ने कार्रवाई कर दी, जिसमें एक नए पैसे की भी गड़बड़ी नहीं हुई है और सारा पैसा ब्याज सहित एलसीआईएफ को वापस मिल गया है । इसके विपरीत, डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन का निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी करीब ग्यारह महीने से इंटरनेशनल ड्यूज के लाखों रुपए हड़पे बैठा है, और लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारी उसके खिलाफ लेकिन कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं । इस तरह नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-वर्ष में लायंस इंटरनेशनल में यह अजब-गजब तमाशा देखने को मिल रहा है, जहाँ चोर को माफी तथा चौकीदार को सजा मिल रही है ।

Wednesday, April 18, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से सतीश सिंघल की बर्खास्तगी के मामले में यथास्थिति बनाये रखने के अदालत के फैसले के चलते सतीश सिंघल को तो कोई फायदा नहीं ही मिला, डिस्ट्रिक्ट और उनकी टीम के सदस्यों तथा उनके प्रेसीडेंट्स को 'अनाथ' और हो जाना पड़ा है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्तगी के रोटरी इंटरनेशनल के फैसले के खिलाफ अदालत जाने की सतीश सिंघल की कार्रवाई ने डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के कामकाज को बुरी तरह प्रभावित किया है और क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को 'अनाथ' कर दिया है । सतीश सिंघल द्वारा अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ की गई अपील पर अदालत ने तात्कालिक रूप से जो फैसला दिया है, उसने क्लब्स के प्रोजेक्ट्स के लिए ग्रांट्स लेने/मिलने की प्रक्रिया को बाधित कर दिया है, और प्रेसीडेंट्स व अन्य पदाधिकारियों को अवॉर्ड्स आदि मिलने की संभावनाओं को खत्म कर दिया है । दरअसल अदालती फैसले के चलते डिस्ट्रिक्ट में पहली बार ऐसा होगा कि डिस्ट्रिक्ट में करीब ढाई महीने तक कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं होगा, डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस नहीं होगी और डिस्ट्रिक्ट टीम तथा क्लब्स के पदाधिकारियों को अवॉर्ड नहीं मिलेंगे । डिस्ट्रिक्ट और क्लब्स की फंक्शनिंग में चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की ही भूमिका होती है, इसलिए अब जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ही नहीं होगा तो उसकी भूमिका के साथ/जरिये होने वाले काम भी नहीं होंगे - और इस तरह क्लब्स के प्रेसिडेंट्स के लिए उनका कार्यकाल निरर्थक ही हो गया है । डिस्ट्रिक्ट 3012 के कुछेक क्लब्स के प्रेसीडेंट्स ने कहना शुरू भी कर दिया है कि सतीश सिंघल खुद भी डूबे और दूसरों को भी ले डूबे हैं ।
इस स्थिति को देख/भाँप कर कुछेक लोगों की तरफ से यह भी सुनने को मिला है कि सतीश सिंघल ने सारे मामले को हैंडल करने में न तो कोई व्यावहारिक होशियारी दिखाई और न ग्रेस ही प्रदर्शित किया, जिसके चलते न सिर्फ वह खुद मुसीबतों में घिरते/फँसते चले गए - बल्कि अब हालात यहाँ तक आ पहुँचे हैं कि मौजूदा रोटरी वर्ष के बाकी बचे समय के लिए डिस्ट्रिक्ट ही कब्र में जा पहुँचा है । सतीश सिंघल के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का भी मानना/कहना है कि मुसीबतों ने जब सतीश सिंघल को घेरना शुरू ही किया था, तब सतीश सिंघल यदि मामले की गंभीरता को समझते और हो सकने वाले नुकसान को कम से कम करने/रखने की कोशिश करते, तो न तो उन्हें बढ़ी/चढ़ी मुसीबतों का शिकार होना पड़ता और न ही डिस्ट्रिक्ट व उनके प्रेसीडेंट्स को अनाथ होना पड़ता । गवर्नरी शुरू करते हुए सतीश सिंघल ने दावा किया था कि उनका गवर्नर-काल ऐसा ऐतिहासिक होगा, जैसा किसी डिस्ट्रिक्ट में पहले न कभी रहा होगा, और न कभी आगे हो पायेगा । उनका दावा सही साबित तो हो गया है, लेकिन जिस रूप में वह सही साबित हुआ है - वह खुद उनके लिए और डिस्ट्रिक्ट के लिए बदकिस्मतीभरा ही है । कुछेक लोगों के अनुसार, बदकिस्मती की बात यह भी है कि जिस रोटरी में वह वर्षों से हैं और जिसे वह गर्व के साथ कहते/बताते रहे हैं, उस रोटरी के शीर्ष नेतृत्व के फैसले को स्वीकार करने में वह ग्रेस नहीं दिखा सके, और एक ऐसी प्रक्रिया में गए - जिसमें उन्हें तो कोई फायदा नहीं ही मिला, डिस्ट्रिक्ट और उनकी टीम के सदस्यों तथा उनके प्रेसीडेंट्स को 'अनाथ' और हो जाना पड़ा है ।
सतीश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्तगी के बाद रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय डिस्ट्रिक्ट 3012 के गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभाने के लिए किसी को नियुक्त करता - और उसकी देखरेख में बाकी बचे काम पूरे होते । लेकिन सतीश सिंघल की अदालती कार्रवाई के चलते अदालत ने यथास्थिति बनाये रखने का जो फैसला दिया है, उसके बाद डिस्ट्रिक्ट को बिना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के ही रहना होगा । यथास्थिति बनाये रखने के अदालत के फैसले के चलते सतीश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में काम करने का अधिकार तो नहीं ही मिला, उनकी जगह गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभाने के लिए किसी को नियुक्त करने का रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय का मौका भी छिन गया है । सतीश सिंघल के समर्थकों का कहना है कि जो स्थिति बनी है, वह निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है - लेकिन सतीश सिंघल को जब रोटरी के शीर्ष पदाधिकारियों से न्याय नहीं मिला, तो वह अदालत न जाते तो क्या करते ? पहली बात तो यह कि इस तर्क में यह अहंकार झलकता है कि जो फैसला हमारे माफिक नहीं है, वह न्याय नहीं है; यानि न्याय वही है जो हमारे माफिक हो, हमारे अनुकूल हो । दूसरी बात यह कि यदि मान भी लें कि रोटरी इंटरनेशनल ने सतीश सिंघल के साथ न्याय नहीं ही किया, तो ? किसी भी संस्था, समाज और या देश में जब हम होते हैं, तो हमें उसकी न्याय प्रणाली को स्वीकार करना ही होता है - भले ही वहाँ न्याय न हो रहा हो । सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी किसी को यदि लगता है कि उसके साथ न्याय नहीं हुआ है, तो उसके पास क्या करने को बचता है, तब उसे क्या करना चाहिए ? जीवन में बहुत से मौके आते हैं, जब हम अपने आप को अन्याय का शिकार होता पाते हैं; कई बार अपमानित होकर, खून का घूँट पीकर रह जाना पड़ता है - क्योंकि हर बार यदि न्याय पाने की कोशिश करेंगे, तो अपने साथ-साथ अपने नजदीकियों के जीवन को भी और और मुसीबत में ही डालेंगे ।
इसी तर्ज पर देखें, तो जो लोग रोटरी में वर्षों से हैं और इस बात पर गर्व करते रहे हैं, लेकिन रोटरी के शीर्ष नेतृत्व से एक फैसला उनके अनुकूल नहीं आता है तो वह उस नेतृत्व को ही अदालत में घसीट लेते हैं, अपने ही सहयोगियों के हक/अधिकार को छिनवा देते हैं - तो उनसे पूछा जाना चाहिए कि फिर रोटरी में हो क्यों और क्यों यहाँ रहना चाहते हो ? सतीश सिंघल की अदालती कार्रवाई से उन्हें न्याय - उनका मनमाफिक फैसला मिलेगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन उनकी कार्रवाई के चलते उनके सहयोगियों के रूप में उनकी टीम के सदस्य और उनके प्रेसीडेंट्स 'अनाथ' जरूर हो गए हैं ।

Tuesday, April 17, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी के लिए ब्रांचेज के पदाधिकारियों व सदस्यों को काम दिलवाने का ऑफर देकर अपना समर्थक बनाने की संजीव सिंघल की कोशिशों ने आरोपों का रूप लिया

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की कुछेक ब्रांचेज के पदाधिकारियों के संजीव सिंघल पर काम दिलवाने का आश्वासन देकर सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश करने के आरोप ने इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों को मुश्किल में डाल दिया है । दरअसल उनके लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि एक संभावित उम्मीदवार के खिलाफ लगने वाले इस आरोप पर वह क्या और कैसे कार्रवाई करें ? हालाँकि आरोप की जो प्रकृति है, उसमें कोई नई बात नहीं है । इंस्टीट्यूट के चुनाव में कुछेक उम्मीदवार अपने लिए समर्थन जुटाने हेतु चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को काम देते/दिलवाते रहे हैं । फिर भी संजीव सिंघल पर लगे इस तरह के आरोप ने खासी खलबली मचाई हुई है और इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों तक को माथापच्ची करना पड़ रही है, तो इसका कारण शायद यही है कि संजीव सिंघल ने इस खेल को बड़े स्तर पर अंजाम देने की कोशिश की है और उनकी इस कोशिश से अन्य कुछेक उम्मीदवारों को अपने लिए खतरा महसूस होने लगा है । संजीव सिंघल बहुराष्ट्रीय फर्म ईवाय ग्लोबल की भारतीय सदस्य एसआर बाटलीबोई एंड कंपनी में पार्टनर हैं, जिस नाते चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को काम दिलवाने के मामले में वह बेहतर स्थिति में हैं । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए संजीव सिंघल ने तैयारी भी बड़े जोरशोर से शुरू की है, और इसीलिए एक उम्मीदवार के रूप में उनकी चुनावी सक्रियता पर हर किसी की सतर्क नजर है । 
संजीव सिंघल के लिए उम्मीदवार के रूप में समस्या और चुनौती की बात यह है कि बिग फोर के नाम पर संजीव चौधरी पहले से ही सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में चुनावी मैदान में हैं । संजीव चौधरी की सीट को अधिकतर लोग सुरक्षित ही मानते/समझते हैं; और साथ ही यह भी मानते/कहते हैं कि बिग फोर से एक ही उम्मीदवार सेंट्रल काउंसिल में आ सकेगा । बिग फोर के उम्मीदवारों के साथ मुसीबत की बात यह होती है कि उन्हें आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोट नहीं मिल पाते हैं, और उन्हें पूरी तरह फर्म के वोटों पर ही निर्भर होना/रहना पड़ता है । फर्म के वोटों पर संजीव चौधरी की दावेदारी ज्यादा मजबूत देखी जा रही है । यूँ भी नॉर्दर्न रीजन ईवाय के उम्मीदवारों के लिए मुफीद नहीं रहा है । ऐसे में संजीव सिंघल को कई प्रतिकूल अवधारणाओं का भी मुकाबला करना पड़ रहा है । उल्लेखनीय है कि चुनावी राजनीति में हकीकतों/तथ्यों का उतना प्रभाव नहीं पड़ता है, जितना अवधारणा (परसेप्शन) का पड़ता है । बिग फोर के उम्मीदवारों को लेकर लोगों के बीच जो और जैसी भी अवधारणाएँ हैं, वह सब संजीव सिंघल के खिलाफ माहौल बनाती हैं । इसलिए ही सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को लेकर संजीव सिंघल के लिए एक आक्रामक चुनावी रणनीति और 'सीन' बनाने की जरूरत थी भी, और जिसे उन्होंने बनाया भी ।
आक्रामक चुनावी रणनीति के तहत ही संजीव सिंघल ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज के पदाधिकारियों पर डोरे डालने शुरू किए, जिसका फायदा उन्हें कुछेक ब्रांचेज में सेमीनार आदि में स्पीकर के निमंत्रण के रूप में मिला भी है । इसे उनकी आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पैठ बनाने की कोशिश के रूप में देखा/पहचाना गया । उनकी इसी कोशिश में यह सुनने को मिला कि उन्होंने ब्रांचेज के पदाधिकारियों को कुछ काम/वाम दिलवाने के ऑफर दिए हैं । इस पर लोगों के कान खड़े हुए तो आरोप सामने आए कि ब्रांचेज के पदाधिकारियों तथा अन्य सदस्यों को काम दिलवाने का लालच देकर संजीव सिंघल उन्हें अपने समर्थक बनाने का प्रयास कर रहे हैं । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बने दूसरे लोगों को अपने समर्थक जब संजीव सिंघल के नजदीक जाते दिखे, तो उनका माथा गर्म हुआ और उन्होंने संजीव सिंघल पर लगने वाले आरोपों को हवा देने का काम शुरू किया और आरोपों को इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों तक पहुँचाया । जैसा कि शुरू में ही कहा गया है कि इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों के लिए समझना मुश्किल हो रहा है कि इन आरोपों पर वह कैसी और क्या कार्रवाई करें ? इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों की यह असमंजसता संजीव सिंघल के लिए राहत की बात तो है, लेकिन उन पर लगे आरोपों के चलते उनकी चुनावी रणनीति की जो पोल खुली है - वह उनकी मुसीबत बढ़ाने वाली भी है ।

Monday, April 16, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक जैन की अनुभवहीनता तथा सभी को जोड़ पाने में मिल रही विफलता के साथ-साथ गवर्नर पद की जिम्मेदारियों को गंभीरता से न लेने/समझने के उनके रवैये के कारण पेट्स जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम का कबाड़ा हुआ

शामली । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर का पदभार संभालने की तैयारी कर रहे दीपक जैन के पेट्स आयोजन में बदइंतजामी और अफरातफरी का जो माहौल बना/रहा, उसे देख/जान कर लोगों को चिंता हुई है कि दीपक जैन अपना गवर्नर-काल पूरा कैसे करेंगे ? कुछेक लोगों ने तो कहना शुरू भी कर दिया है कि वोटों की खरीद-फरोख्त करके दीपक जैन गवर्नर तो बन गए हैं, लेकिन रोटरी के कामकाज को लेकर चूँकि उनका कोई अनुभव नहीं है - इसलिए उनके गवर्नर-वर्ष का तो बस भगवान ही मालिक है । लोगों को यह देख कर ज्यादा हैरानी और निराशा है कि दीपक जैन अभी भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियाँ कितनी बड़ी और महत्त्वपूर्ण हैं; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद तो वोटों की खरीद-फरोख्त से मिल सकता है - लेकिन उसकी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए सबसे पहली जरूरत जिम्मेदारियों को समझने/पहचानने की है । पेट्स में जो बदइंतजामी व अफरातफरी का नजारा देखने को मिला, उसका छोटा सा कारण यह रहा कि एक दिन पहले तक रजिस्ट्रेशन लिए/किए जाते रहे, और वह भी फोन पर मुँहजबानी - और बिना यह जाने/समझे कि कमरे कुल हैं कितने । इसका नतीजा यह रहा कि पेट्स में पहुँचे लोगों को ठहरने के लिए कमरे ही नहीं मिले और कई लोग तो पूरे कार्यक्रम के दौरान कमरे के लिए ही भटकते रहे । इस स्थिति को संभालने के लिए भी होशियारी से प्रयास नहीं किए गए, जिसके चलते कई लोगों को आयोजन टीम के सदस्यों की बदतमीजी का भी शिकार होना पड़ा । इससे भी ज्यादा गंभीर बात यह हुई कि पेट्स में जिन प्रेसीडेंट इलेक्ट को होना चाहिए था, उनकी बजाए दूसरे लोगों का जमावड़ा ज्यादा हुआ । यह इसलिए हुआ क्योंकि दीपक जैन ने पेट्स के आयोजन की जरूरत और महत्ता को ही नहीं समझा/पहचाना और रोटरी के पेट्स जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम को पिकनिक का अड्डा बना दिया ।
दीपक जैन के रंग-ढंग और उनके रवैये के चलते ही डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर पूर्व गवर्नर्स ने पेट्स आयोजन का बहिष्कार किया, और गिनती के प्रायः वही पूर्व गवर्नर्स पेट्स में पहुँचे - दीपक जैन ने जिन्हें प्रमुख पद दिए हुए हैं । पूर्व गवर्नर एमएस जैन और योगेश मोहन गुप्ता की अनुपस्थिति पर सभी का ध्यान गया और कई लोगों को उनकी अनुपस्थिति पर हैरानी हुई । इसका कारण यह रहा कि दीपक जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाने से लेकर उन्हें चुनाव जितवाने के लिए हर धतकर्म करने में इन्हीं दोनों की भूमिका और संलग्नता थी । इन दोनों की मदद से दीपक जैन पहले उम्मीदवार बने और फिर गवर्नर का चुनाव जीते, और जीतने के बाद पहला काम दीपक जैन ने इन दोनों को किनारे करने का किया । दीपक जैन की शिकायत रही कि चुनाव जीतने के लिए क्लब्स के वोट खरीदने के नाम पर एमएस जैन और योगेश मोहन गुप्ता ने उनसे अनाप-शनाप पैसे खर्च करवाए और अपनी अपनी जेबें भी भरीं । इस शिकायत के चलते ही दीपक जैन ने इन दोनों को अपने गवर्नर-वर्ष के कोई प्रमुख पद नहीं दिए, जिसके चलते यह भड़क गए और दीपक जैन के बारे में विरोधी बातें कहने/करने लगे और उनसे दूर हो गए । इन दोनों के अलावा जो दूसरे गवर्नर्स हैं, उन्हें पहले से ही दीपक जैन के तौर-तरीके पसंद नहीं हैं और वह दीपक जैन से दूर दूर ही बने हुए हैं । दीपक जैन के नजदीकियों का कहना/बताना है कि दीपक जैन ने हालाँकि सभी पूर्व गवर्नर्स से मिल कर उन्हें अपने साथ जोड़ने के प्रयास किये हैं, लेकिन बात बनी नहीं है । पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि दीपक जैन उनसे मिले जरूर हैं और सहयोग भी माँगा है, लेकिन उनके रवैये और व्यवहार में गंभीरता का अभाव तथा अनमनापन सा महसूस हुआ; ऐसा लगा जैसे वह जबर्दस्ती उनके पास भेजे गए हैं । इसके चलते पूर्व गवर्नर्स के साथ उनकी बात बननी ही नहीं थी, और वह नहीं ही नहीं बनी ।
दीपक जैन ने जीएस धामा जैसे वरिष्ठ और अनुभवी पूर्व गवर्नर का सहयोग और समर्थन प्राप्त करने में जो सफलता पाई भी है, उस सफलता का भी फायदा उठा पाने में वह विफल साबित हो रहे हैं । जीएस धामा के सहयोग और समर्थन के कारण उनके क्लब ने पेट्स आयोजित करने की जिम्मेदारी ली, दीपक जैन लेकिन आयोजक-क्लब के पदाधिकारियों के साथ तालमेल ही नहीं बना सके । आयोजक क्लब के पदाधिकारियों ने पेट्स में हुई बदइंतजामी और अफरातफरी के लिए दीपक जैन को जिम्मेदार ठहराया है । उनकी शिकायत है कि दीपक जैन ने उन्हें कभी भी यह नहीं बताया कि पेट्स में कितने लोग आ रहे हैं, ताकि उसी हिसाब से इंतजाम किया जा सके । आयोजक क्लब के पदाधिकारियों की तरफ से दीपक जैन को बता दिया गया था कि पेट्स में कितने लोगों की व्यवस्था की गई है; उसके बाद भी दीपक जैन एक दिन पहले तक लोगों को पेट्स का निमंत्रण देते रहे और लोगों की पहुँचने की स्वीकृति व इच्छा को स्वीकार करते रहे । इसके चलते कार्यक्रम में अव्यवस्था और अराजकता तो होनी ही थी, और वह हुई भी । लोगों का कहना है कि दीपक जैन की अनुभवहीनता तथा सभी को जोड़ पाने में मिल रही विफलता के साथ-साथ गवर्नर पद की जिम्मेदारियों को गंभीरता से न लेने/समझने के उनके रवैये के कारण ही पेट्स जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम का कबाड़ा हुआ है । दीपक जैन के साथ सहानुभूति रखने वाले लोगों का कहना है कि दीपक जैन ने अपने व्यवहार और रवैये में यदि जल्दी ही सुधार नहीं किया, तो अगले रोटरी वर्ष के उनके गवर्नर-काल का भी बुरा हाल ही होगा ।

Sunday, April 15, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में लायनेस को स्वतंत्रता दिलवाने की लड़ाई में लायंस इंटरनेशनल का दरवाजा खटखटा कर रश्मि चौहान ने मामले को गंभीर रूप दिया

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के अंतर्गत आने वाले लायनेस क्लब्स और डिस्ट्रिक्ट को पूर्ण स्वतंत्रता देने/दिलवाने की माँग करते हुए पूर्व लायनेस डिस्ट्रिक्ट चेयरपरसन रश्मि चौहान ने लायंस इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल को पत्र लिख कर मामले को खासी गर्मी दे दी है । रश्मि चौहान हालाँकि पिछले काफी समय से इस मामले को उठा रही हैं, लेकिन कुछेक बड़े नेताओं के जुबानी समर्थन से ज्यादा इस मामले में कुछ हुआ नहीं है । रश्मि चौहान का कहना है कि लायंस इंटरनेशनल ने लायनेस क्लब्स व डिस्ट्रिक्ट को जब लायंस डिस्ट्रिक्ट से अलग कर दिया है और लायनेस की आधिकारिक मान्यता को समाप्त कर दिया है, तब फिर लायनेस के डिस्ट्रिक्ट चेयरपरसन की नियुक्ति डिस्ट्रिक्ट गवर्नर द्वारा क्यों की जा रही है - और लायनेस डिस्ट्रिक्ट के चेयरपरसन का चुनाव करने का अधिकार लायनेस क्लब्स को क्यों नहीं दिया जा रहा है ? रश्मि चौहान लायनेस क्लब्स और डिस्ट्रिक्ट को स्वतंत्रता न देने के लिए मुकेश गोयल को जिम्मेदार ठहराती हैं । नरेश अग्रवाल को लिखे पत्र में रश्मि चौहान ने एक तरह से लायनेस क्लब्स और डिस्ट्रिक्ट को मुकेश गोयल के चंगुल से निकालने की गुहार लगाई है । रश्मि चौहान का आरोप है कि मुकेश गोयल अपने कहे में रहने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के जरिये लायनेस डिस्ट्रिक्ट के चेयरपरसन पद पर मनमाने तरीके से नियुक्तियाँ करते हैं ।
मुकेश गोयल को निशाने पर लेकर रश्मि चौहान ने मामले में गर्मी तो पैदा कर दी है, लेकिन मामले को राजनीतिक रंग भी दे दिया है । मुकेश गोयल खेमे की तरफ से कहा/पूछा जा रहा है कि सारे झमेले के लिए यदि सिर्फ मुकेश गोयल ही जिम्मेदार हैं, तो पिछले लायन वर्ष में गवर्नर रहे मुकेश गोयल के धुर विरोधी शिव कुमार चौधरी ने रश्मि चौहान की बात क्यों नहीं मानी ? इसी बात के सहारे, मुकेश गोयल खेमे के लोगों को कहने का मौका मिल रहा है कि लायनेस चेयरपरसन के चयन के लिए स्वतंत्रता की रश्मि चौहान की माँग मुकेश गोयल विरोधी नेताओं की राजनीति से प्रेरित है । मुकेश गोयल खेमे के लोगों का कहना है कि लायनेस क्लब अभी भी चूँकि लायंस क्लब की अनुशंसा पर खुलते हैं और उन्हीं के द्वारा प्रायोजित किये जाते हैं, इसलिए लायनेस चेयरपरसन की नियुक्ति लायंस के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के द्वारा ही हो सकती है । किसी को यदि लायंस से पूरी तरह स्वतंत्र होना ही है, तो वह कोई और संस्था खोल ले - वह लायनिज्म की पहचान के साथ ही क्यों रहना चाहता है ? कुछेक लोगों का कहना है कि लायनेस क्लब्स चूँकि लायंस की राजनीति के सहायक भी बनते हैं, इसलिए लायंस डिस्ट्रिक्ट और क्लब की राजनीति करने वाले लोग  लायनेस क्लब और डिस्ट्रिक्ट की बागडोर अपने हाथ में रखना चाहते हैं और उन्हें स्वतंत्रता नहीं देना चाहते हैं । पिछले लायन वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने तो इसमें ठगी करने और पैसे बनाने के मौके भी खोज लिए । उन्होंने दो चेयरपरसन बनाने का काम किया और इसके बदले में दोनों से ही पैसे ऐंठे । पैसे ऐंठने के लालच में शिव कुमार चौधरी ने दो चेयरपरसन बनाने का जो काम किया, उनके बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने वाले अजय सिंघल और विनय मित्तल ने उसमें व्यवस्थासंबंधी सुविधा देखी/पहचानी, तो उन्होंने भी दो चेयरपरसन बनाने के काम को जारी रखा है ।
दो चेयरपरसन वाली व्यवस्था ने मुकेश गोयल को बंदरबाँट करने का और मौका दे दिया है । मुकेश गोयल को मिले इस मौके ने लायनेस के लिए स्वतंत्रता की माँग कर रहीं रश्मि चौहान की 'लड़ाई' को और मुश्किल बना दिया है । मजे की बात यह हुई है कि कई लायनेस को ही मौजूदा व्यवस्था ठीक लगती है, और वह रश्मि चौहान की ही खिलाफत करने लगी हैं । ऐसा होता ही है - अधिकतर लोग यथास्थिति के ही समर्थक होते हैं और जैसा चल रहा होता है, वैसा ही चलने देना चाहते हैं; इसीलिए व्यवस्था परिवर्तन चाहने वाले लोगों की लड़ाई मुश्किल होती है । रश्मि चौहान को इसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है । मुँहजबानी तो कई लोगों ने उनकी माँग का समर्थन किया है, लेकिन वास्तव में वह यह लड़ाई अकेले ही लड़ती देखीं जा रहीं हैं । पिछले दिनों हापुड़ में हुई लायंस की एक मीटिंग में उन्होंने मुकेश गोयल के सामने अपनी माँग रखने की कोशिश की, तो मुकेश गोयल ने उन्हें डपट कर चुप करा दिया । वहाँ उन्हें किसी का समर्थन नहीं मिला, लिहाजा उन्हें चुप हो जाना पड़ा । मीटिंग में तो रश्मि चौहान चुप हो गईं, लेकिन लायनेस को स्वतंत्रता दिलवाने के मुद्दे पर वह चुप नहीं हुई हैं । अपने मुद्दे को लेकर अब उन्होंने लायंस इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल को पत्र लिखा है । रश्मि चौहान द्वारा लायंस इंटरनेशनल का दरवाजा खटखटाए जाने से डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में लायनेस को स्वतंत्रता मिलने का मामला गंभीर हो गया है । नरेश अग्रवाल ने इस मामले में यदि गंभीरता दिखाई तो यह रश्मि चौहान की एक बड़ी जीत होगी ।

Friday, April 13, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अनीता गुप्ता व अरविंद संगल के समर्थन के भरोसे अश्वनी काम्बोज द्वारा शिव कुमार चौधरी की ब्लैकमेलिंग के सामने झुकने से इंकार करने के बाद भी धीरज गोयल उम्मीदवार बने रहेंगे क्या ?

देहरादून । अश्वनी काम्बोज के मुकेश गोयल खेमे में चले जाने से अनाथ और बर्बाद हुए विरोधी खेमे के नेताओं ने धीरज गोयल को आगे करके अश्वनी काम्बोज को ब्लैकमेल करने की जो तैयारी की है, उसने विरोधी खेमे के पूर्व गवर्नर्स और अश्वनी काम्बोज के बीच आँख-मिचौली वाला खेल शुरू कर दिया है । दरअसल अश्वनी काम्बोज ने अभी तो विरोधी खेमे के पूर्व गवर्नर्स की चाल में फँसने से इंकार किया हुआ है, लेकिन विरोधी खेमे के पूर्व गवर्नर्स ने भी खम ठोकी हुई है कि अश्वनी काम्बोज बचते कैसे हैं ? विरोधी खेमे के पूर्व गवर्नर्स में हालाँकि इस बात को लेकर मतभेद हैं कि अश्वनी काम्बोज को आखिर कितना ठगा जाए । विरोधी खेमे के अधिकतर पूर्व गवर्नर्स तो चाहते हैं कि अश्वनी काम्बोज डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उनके और उनके लोगों के लिए कमरों और खाने के साथ-साथ पीने की व्यवस्था कर दें; लेकिन लायनिज्म को धंधा और कमाई का जरिया बना लेने वाले इसी वर्ष पूर्व हुए गवर्नर शिव कुमार चौधरी इस सब के साथ-साथ कुछ और कमाई कर लेने की योजना पर काम कर रहे हैं । दरअसल इसी योजना के तहत उन्होंने धीरज गोयल का नामांकन करा दिया था । एक कुशल धंधेबाज की तरह उन्होंने पहले ही भाँप लिया था कि अश्वनी काम्बोज हो सकता है कि उनके हाथ से निकल जाएँ - अश्वनी काम्बोज या तो मैदान छोड़ जाते और या वह करते, जो उन्होंने किया । शिव कुमार चौधरी पहले वाली स्थिति में धीरज गोयल का इस्तेमाल करते हुए राजेश गुप्ता से पैसे ऐंठने का जुगाड़ लगाते, और दूसरी स्थिति में अश्वनी काम्बोज की जेब काटने की तैयारी करते । मजे की बात यह है कि धीरज गोयल की उम्मीदवारी की अभी तक कोई चर्चा नहीं थी, लेकिन अश्वनी काम्बोज के मुकेश गोयल खेमे में आते और चुनाव की संभावना खत्म होने के हालात बनते ही धीरज गोयल की उम्मीदवारी दिखाई देने लगी ।
शिव कुमार चौधरी की तरफ से अश्वनी काम्बोज से धीरज गोयल को 'बैठाने' की कीमत माँगी जा रही है । अश्वनी काम्बोज को गणित बताया/समझाया जा रहा है कि उन्होंने यदि धीरज गोयल को नहीं बैठाया, तो चुनाव में उन्हें ज्यादा पैसा भी खर्च करना पड़ेगा और भाग-दौड़ भी करना पड़ेगी; पैसा हमें दे दो और भाग-दौड़ से बच लो । अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों के अनुसार, अश्वनी काम्बोज लेकिन शिव कुमार चौधरी की इस ब्लैकमेलिंग के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं; अश्वनी काम्बोज का कहना है कि शिव कुमार चौधरी की ब्लैकमेलिंग के सामने यदि वह अभी झुके और उनकी 'माँग' मानी तो फिर शिव कुमार चौधरी आगे भी उन्हें तरह-तरह से ब्लैकमेल करते रहेंगे । अश्वनी काम्बोज का कहना है कि शिव कुमार चौधरी यदि धीरज गोयल को चुनाव लड़ाना ही चाहते हैं तो लड़ा लें । चुनाव होने पर उन्हें ज्यादा भाग-दौड़ करने के साथ-साथ ज्यादा पैसा खर्च करना होगा, तो वह कर लेंगे - लेकिन शिव कुमार चौधरी की ब्लैकमेलिंग के सामने समर्पण नहीं करेंगे । शिव कुमार चौधरी की ब्लैकमेलिंग के सामने झुकने से इंकार करने का साहस अश्वनी काम्बोज को अनीता गुप्ता और अरविंद संगल से भी मिल रहा है ।
अनीता गुप्ता और अरविंद कंसल ने अश्वनी काम्बोज को आश्वस्त किया हुआ है कि धीरज गोयल के बस की चुनाव लड़ना है ही नहीं, और वह शिव कुमार चौधरी की बातों में आकर उम्मीदवार तो बन गए हैं - लेकिन चुनाव लड़ने की सक्रियता नहीं दिखा सकेंगे । अनीता गुप्ता और अरविंद संगल ने अश्वनी काम्बोज को समझाया है कि विरोधी खेमे के समर्थक लोगों की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में रहने/खाने की व्यवस्था यदि हो जाती है तो धीरज गोयल को शिव कुमार चौधरी का 'आदमी' होने के नाते कोई पास भी नहीं बैठायेगा । अश्वनी काम्बोज इसके लिए तैयार हैं । उनका कहना है कि एक उम्मीदवार के रूप में उन्हें जेनुइन रूप में खिलाने, पिलाने और ठहराने की जो व्यवस्था करनी है उसमें वह कोई पक्षपात नहीं करेंगे - लेकिन किसी पूर्व गवर्नर से ब्लैकमेल नहीं होंगे । अनीता गुप्ता व अरविंद संगल के समर्थन के भरोसे शिव कुमार चौधरी की ब्लैकमेलिंग के सामने अश्वनी काम्बोज ने जिस दृढ़ता के साथ झुकने से इंकार करने वाला तेवर दिखाया है, उसके चलते शिव कुमार चौधरी को धीरज गोयल के सहारे बनाई गई अपनी स्कीम फेल होती हुई ही नजर आ रही है । धीरज गोयल भी लगता है कि समझ रहे हैं कि शिव कुमार चौधरी जैसे बदनाम व्यक्ति की संगत में वह सिर्फ फजीहत का ही शिकार बनेंगे - इसलिए उम्मीद की जा रही है कि राजेश गुप्ता और अश्वनी काम्बोज की तरह वह भी जल्दी ही शिव कुमार चौधरी की 'पकड़' से छूट लेंगे और उनके सहारे अश्वनी काम्बोज को ब्लैकमेल करने की शिव कुमार चौधरी की योजना धरी की धरी ही रह जाएगी ।

Thursday, April 12, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में अजय सनाढ्य की उम्मीदवारी के समर्थन में हुईं बुलंदशहर और फिरोजाबाद की मीटिंग्स की कामयाबी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में बाजी पलटने का संकेत दे रही हैं क्या ?

अलीगढ़ । पहले बुलंदशहर और फिर फिरोजाबाद में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार अजय सनाढ्य की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने और 'दिखाने' के उद्देश्य से आयोजित हुईं मीटिंग्स में लोगों का जैसा जो उत्साहपूर्ण नजारा देखने को मिला, उसने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनावी परिदृश्य को खासा उठा-पटक भरा बना दिया है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे उम्मीदवार श्याम बिहारी अग्रवाल ने अपने साथ हुई नाइंसाफी और धोखाधड़ी को लेकर लोगों की सहानुभूति जुटाने की अच्छी कोशिश की थी, लेकिन लगता है कि वह सहानुभूति को समर्थन में बदलने का मैकेनिज्म नहीं बना सके हैं - जिसका नतीजा यह देखने को मिल रहा है कि अजय सनाढ्य की उम्मीदवारी को मिल रहे समर्थन में वृद्धि हुई है । बुलंदशहर में हुई मीटिंग में बुलंदशहर के पाँचों क्लब्स के पदाधिकारियों के साथ-साथ बुलंदशहर के दोनों पूर्व गवर्नर्स अशोक गुप्ता व राकेश सिंघल की उपस्थिति रही; तो फिरोजाबाद में फिरोजाबाद के चारों क्लब्स के पदाधिकारियों के साथ-साथ फिरोजाबाद के वरिष्ठ पूर्व गवर्नर विश्वदीप सिंह की उपस्थिति उल्लेखनीय रही । यह बात तो खुद अजय सनाढ्य के समर्थक बड़े नेताओं ने भी स्वीकार की है कि इसका मतलब यह नहीं है कि बुलंदशहर और फिरोजाबाद के सभी वोट अजय सनाढ्य को ही मिल जायेंगे; लेकिन दोनों जगहों में हुई मीटिंग्स की कामयाबी इस बात का संकेत तो देती ही है कि श्याम बिहारी अग्रवाल की सहानुभूति जुटाने की तमाम कोशिशों के बावजूद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए लोगों के बीच अजय सनाढ्य की उम्मीदवारी की स्वीकार्यता ज्यादा है ।
श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के अभियान को दरअसल इस बात से झटका लगा है कि उनके समर्थन में समझे/बताए जा रहे पूर्व गवर्नर्स उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में कुछ करते हुए 'दिख' नहीं रहे हैं । राजनीति में - और खासकर चुनावी राजनीति में होना/करना महत्त्वपूर्ण नहीं होता है, बल्कि 'दिखना' महत्त्वपूर्ण होता है । अजय सनाढ्य के समर्थन में जो पूर्व गवर्नर्स हैं, वह खुलकर अजय सनाढ्य के समर्थन में 'दिख' रहे हैं; लेकिन श्याम बिहारी अग्रवाल के समर्थक पूर्व गवर्नर्स अपने आप को पीछे किए हुए हैं - जिससे लोगों के बीच यह संदेश गया है कि उन्होंने श्याम बिहारी अग्रवाल की स्थिति को कमजोर भाँप लिया है और चूँकि कमजोर के साथ कोई नहीं 'दिखना' चाहता है, इसलिए उन्होंने अपने आप को श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के अभियान से खुद को अलग कर लिया है । समर्थक पूर्व गवर्नर्स के बीच मँझधार में छोड़ जाने से डाँवाडोल हुई नाव को सँभालने के लिए श्याम बिहारी अग्रवाल कोशिश तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि उनकी कोशिशें काफी नहीं पड़ रही हैं । दरअसल, इस बीच मौके का फायदा उठाते हुए अजय सनाढ्य ने अपनी कमजोरियों को दुरुस्त किया और लोगों के बीच पैठ बनाने की कोशिश की । अजय सनाढ्य पर सबसे गंभीर आरोप यही रहा है कि एक उम्मीदवार के रूप में वह खुद कुछ नहीं कर रहे हैं, और पूरी तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल तथा फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बीके गुप्ता पर निर्भर हैं । इस आरोप के चलते अपनी उम्मीदवारी को नुकसान होता देख अजय सनाढ्य ने लेकिन अपने आप को सक्रिय किया तथा आरोपियों का मुँह बंद किया । उन्हें इसका फायदा मिलता दिख रहा है ।
बुलंदशहर और फिरोजाबाद में हुईं मीटिंग्स की जोरदार सफलता से यह भी नजर आ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल के कार्य-व्यवहार के प्रति जिन लोगों को नाराजगी रही भी है, श्याम बिहारी अग्रवाल उसका भी फायदा नहीं उठा पा रहे हैं । यूँ भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से नाराज होने वाले लोग चाहते रहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उन्हें मना ले और उनकी नाराजगी को दूर कर दे, तो वह उसी के साथ जुड़ जाएँ । पारस अग्रवाल ने लोगों के इस इमोशंस को समझा और नाराज होने/रहने वाले लोगों को मना लिया । नाराज लोगों को चूँकि श्याम बिहारी अग्रवाल के समर्थक पूर्व गवर्नर्स से कोई 'सहारा' नहीं मिला, इसलिए लगता है कि उन्होंने भी नाराजगी छोड़ पारस अग्रवाल के साथ जुड़ने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । क्लब्स के पदाधिकारियों तथा लोगों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से अवॉर्ड तथा फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से पद लेने होते हैं, इसलिए वह इन दोनों की गुड-बुक में रहना चाहते हैं । इस 'स्थिति' का फायदा अजय सनाढ्य को मिलता नजर आ रहा है । श्याम बिहारी अग्रवाल के लिए हालात खासे अनुकूल थे; लेकिन उन्होंने हालात को निरंतर अनुकूल बनाए रखने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किए और यह माने/समझे रहे कि हालात अपने आप अनुकूल बने रहेंगे; इसलिए वह समझ ही नहीं पाए कि कब हालात उनके प्रतिकूल होने लगे । जब तक उन्हें इसका भान हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी । उनकी बदकिस्मती यह रही कि जो पूर्व गवर्नर्स उनके साथ थे, वह पीछे हटते गए - जिस कारण हालात को अपने अनुकूल बनाए रखना उनके लिए और मुश्किल हो गया । मुश्किल की बात यह हुई है कि हालात के खिलाफ होने का पता अब चला है जब बुलंदशहर और फिरोजाबाद में हुईं मीटिंग्स की सफलता देखी गई, और अब जब चुनाव में ज्यादा समय भी नहीं रह गया है ।

Wednesday, April 11, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के खुन्नसी और बदले की भावना वाले व्यवहार के साथ-साथ वेस्टर्न रीजन के लोगों के चिंताजनक व आक्रामक तेवर वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए मुसीबत बने

मुंबई । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के प्रतिष्ठित कार्यक्रम 'मेंबर्स मीट' से इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की अनुपस्थिति से छिड़ा विवाद इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ का पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा है । यूँ तो नवीन गुप्ता की अनुपस्थिति ने प्रफुल्ल छाजेड़ को कार्यक्रम में ही मुसीबत में फँसा दिया था; उस मुसीबत को लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था । उन्होंने उम्मीद की थी कि यह एक दिन की बात है, और एक ही दिन में खत्म हो जाएगी । लेकिन कार्यक्रम को हुए तीन सप्ताह बीत जाने के बाद भी प्रफुल्ल छाजेड़ की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं । दरअसल 'मेंबर्स मीट' जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की अनुपस्थिति को वेस्टर्न रीजन के लोगों के बीच प्रफुल्ल छाजेड़ की असफलता और कमजोरी के रूप में देखा जा रहा है । प्रफुल्ल छाजेड़ के नजदीकियों ने यह कहते/बताते हुए मामले को और हवा दी हुई है कि नवीन गुप्ता निवर्तमान प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे के साथ अपनी खुन्नस प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ निकाल रहे हैं, और प्रफुल्ल छाजेड़ मामले को ठीक से हैंडल नहीं कर पा रहे हैं । यह बात लोगों के बीच चर्चा में रही ही है कि नवीन गुप्ता को नीलेश विकमसे के साथ बहुत ही शिकायतें/दिक्कतें थीं । नवीन गुप्ता को सबसे बड़ी समस्या/दिक्कत यही थी कि नीलेश विकमसे ने उन्हें उचित सम्मान और तवज्जो नहीं दी, जो वाइस प्रेसीडेंट के रूप में उन्हें मिलना चाहिए थी । लगता है कि नवीन गुप्ता भी वाइस प्रेसीडेंट के रूप में प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ वैसा ही सुलूक कर रहे हैं - और करना चाहते हैं, जैसा कि नीलेश विकमसे ने उनके साथ किया था । समझा जाता है कि 'मेंबर्स मीट' कार्यक्रम में ऐन मौके पर आना स्थगित करके नवीन गुप्ता ने नीलेश विकमसे और प्रफुल्ल छाजेड़ से 'बदला' लेने का काम किया है ।
उल्लेखनीय है कि वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का 'मेंबर्स मीट' कार्यक्रम एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसमें वेस्टर्न रीजन की ब्रांचेज के पदाधिकारियों के साथ-साथ मुंबई के प्रमुख चार्टर्ड एकाउंटेंट्स शामिल होते हैं । वेस्टर्न रीजन से इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट रहे कई लोग भी इसमें शामिल होते हैं । इसी कार्यक्रम में इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट का स्वागत भी होता है । इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट बहुत ही उत्साह से इस कार्यक्रम में शामिल होता है । लेकिन इस बार पहली बार यह हुआ है कि इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट इस कार्यक्रम में नहीं पहुँचा । नवीन गुप्ता ने बहुत सफाई से उक्त कार्यक्रम में शामिल होने से अपने आप को बचा लिया । उन्होंने बताया कि जब वह मुंबई के लिए निकल रहे थे, तभी प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें बुलावा आ गया था और उन्हें मुंबई आना स्थगित करना पड़ा । लोगों को यह उनका बहाना लगता है । लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री ने उन्हें कोई गपशप करने के लिए तो बुलाया नहीं होगा; किसी नीतिगत मुद्दे पर बात करते के लिए ही बुलाया होगा - और प्रधानमंत्री यदि किसी नीतिगत मुद्दे पर बात करना चाहेंगे, तो प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट दोनों को बुलायेंगे; इसके अलावा, नवीन गुप्ता ने बाद में यह भी नहीं बताया कि प्रधानमंत्री ने किस नीतिगत मुद्दे पर उनसे बात की ? लोगों ने मजाक में याद भी किया कि कहीं न जाने/पहुँचने के लिए बहाना बनांना हो, तो छोटा व्यक्ति दस्त लगने की बात कहता है, और बड़ा आदमी प्रधानमंत्री द्वारा बुला लिए जाने की बात बताता है । इसी तरह के सवालों के चलते माना गया कि नवीन गुप्ता अपने खुन्नसी व्यवहार के चलते जानबूझ कर मेंबर्स मीट में नहीं पहुँचे । नवीन गुप्ता की अनुपस्थिति के चलते प्रफुल्ल छाजेड़ को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा । असल में हुआ यह कि मेंबर्स मीट में लोगों ने प्रोफेशन से जुड़े मुद्दों पर इंस्टीट्यूट प्रशासन की राय और रवैये को लेकर प्रफुल्ल छाजेड़ से सवाल किए । प्रफुल्ल छाजेड़ ने यह कहते हुए जबाव देने से बचने की कोशिश की कि उन्हें वाइस प्रेसीडेंट बने अभी मुश्किल से एक महीने का समय हुआ है, इसलिए नीतिगत मामलों में उनकी जानकारी आधी-अधूरी ही है । इस पर लोगों ने कहा भी कि वाइस प्रेसीडेंट बने भले ही महीना हुआ हो, लेकिन इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में तो कई वर्षों से हो - इसलिए प्रोफेशन से जुड़े मामलों पर अपनी राय तो दो/बताओ । प्रफुल्ल छाजेड़ ने लेकिन चुप रहने में ही अपनी भलाई देखी/समझी, और कार्यक्रम के दौरान पैदा हुई मुश्किलों को सहते हुए समय बिताया ।
प्रफुल्ल छाजेड़ ने समझा कि कार्यक्रम समाप्त होगा तो उन्हें मुश्किलों से छुटकारा स्वतः ही मिल जायेगा । लेकिन मुश्किलें उनका पीछा छोड़ती हुई नहीं दिख रही हैं । दरअसल नवीन गुप्ता के 'तेवर' देखते हुए वेस्टर्न रीजन के लोग दो खेमों में बँट गए नजर आ रहे हैं : एक खेमे में ऐसे लोग हैं जो चाहते हैं कि प्रफुल्ल छाजेड़ को नवीन गुप्ता से अपने संबंध बेहतर करना/बनाना चाहिए, ताकि नवीन गुप्ता के प्रेसीडेंट-वर्ष में वेस्टर्न रीजन के लोगों तथा ब्रांचेज को खुन्नसी फैसलों का शिकार न होना पड़े । दूसरे खेमे के लोग लेकिन यह चाहते हैं कि प्रफुल्ल छाजेड़ को ईंट का जबाव पत्थर से देना चाहिए - और उन्हें नवीन गुप्ता के खुन्नसी व्यवहार का बदला लेने के लिए प्रेसीडेंट के रूप में नवीन गुप्ता द्वारा लिए जाने वाले फैसलों में हस्तक्षेप करना चाहिए । इस दूसरे खेमे में सेंट्रल काउंसिल के जो सदस्य हैं, उनका कहना है कि सेंट्रल काउंसिल की पिछली एक मीटिंग में संजीव चौधरी की कमेटियों के पदाधिकारियों के चयन को लेकर नवीन गुप्ता के साथ जो झड़प हुई थी, उसमें प्रफुल्ल छाजेड़ को संजीव चौधरी का साथ देना चाहिए था - ताकि नवीन गुप्ता पर दबाव बनता और वह प्रफुल्ल छाजेड़ को गंभीरता से लेना शुरू करते । प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए समस्या की बात लेकिन यह हो रही है कि वह दोनों 'रास्तों' में से किसी भी रास्ते पर चलने में अपने आप को कंफर्टेबल नहीं पा रहे हैं । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के साथ-साथ वेस्टर्न रीजन के लोगों को साधे रखना प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए खासा चुनौतीपूर्ण और मुसीबतभरा मामला बन रहा है ।

Tuesday, April 10, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों में एक अकेले अशोक अग्रवाल ने पेट्स कार्यक्रम में बने विभिन्न मौकों का इस्तेमाल करने के मामले में दूसरे उम्मीदवारों की कमजोरी का फायदा उठाया

गाजियाबाद । पेट्स और सेट्स आयोजन में जुटे डिस्ट्रिक्ट के खास खास लोगों के बीच अमित गुप्ता, मुकेश गुप्ता, रवि सचदेवा की तुलना में अशोक अग्रवाल का जैसा जो प्रभाव दिखा, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में मामले को अशोक अग्रवाल के पक्ष में काफी हद तक झुका दिया है । रवि सचदेवा और मुकेश गुप्ता की उम्मीदवारी को तो हालाँकि अभी कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है, लेकिन अमित गुप्ता अभी से सरेंडर करते नजर आयेंगे - यह उम्मीद किसी को नहीं थी । पेट्स और सेट्स आयोजन में लोगों के बीच अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के अभियान की जो कमजोरी देखने को मिली, उसने उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को बुरी तरह से निराश किया है । रोटरी की चुनावी राजनीति में पेट्स के आयोजन का विशेष महत्त्व है । पेट्स को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के लॉन्चिंग पैड के रूप में देखा/पहचाना जाता है । दरअसल पेट्स में डिस्ट्रिक्ट का अमूमन हर वह व्यक्ति होता ही है, जिसकी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । पेट्स डिस्ट्रिक्ट का पहला बड़ा कार्यक्रम होता है; और चूँकि फर्स्ट इंप्रेशन को लास्ट इंप्रेशन भी माना जाता है - इसलिए अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेने वाले उम्मीदवार पेट्स में अपनी भूमिका को बहुत ही गंभीरता से लेते हैं ।
सुभाष जैन के गवर्नर-काल के अभी हाल ही में संपन्न हुए पेट्स आयोजन में लेकिन अशोक अग्रवाल के अलावा अन्य किसी उम्मीदवार को पेट्स के आयोजन को अपनी उम्मीदवारी का लॉन्चिंग पैड बनाने की तैयारी के साथ नहीं देखा गया । रवि सचदेवा ने पेट्स से ठीक पहले अपने क्लब के एक कार्यक्रम के जरिये अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने का उपक्रम किया था, जिससे उम्मीद बनी थी कि पेट्स में उनकी उम्मीदवारी के प्रमोशन का अच्छा सीन देखने को मिलेगा - लेकिन उनके नजदीकियों को यह देख/जान कर झटका लगा कि पेट्स से ठीक पहले हुए अपने क्लब के कार्यक्रम से बने प्रभाव का वह पेट्स में कोई फायदा नहीं उठा सके । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के अनुभवी खिलाड़ियों का मानना/कहना है कि एक उम्मीदवार के रूप में रवि सचदेवा की सक्रियता तुलनात्मक रूप से ठीक है, लेकिन उनकी सक्रियता में चूँकि कोई तारतम्य नहीं बन पा रहा है, इसलिए उनकी सक्रियता का कोई प्रभाव नहीं बन रहा है और इसीलिए चुनावी राजनीति से जुड़े लोग उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । मुकेश गुप्ता लोगों के बीच ऐसे बेगानेपन से रहते हैं कि लोगों को हैरानी इस बात की है कि वह उम्मीदवार बने क्यों हुए हैं ? पेट्स में अमित गुप्ता की तरफ से अच्छा 'प्रदर्शन' होने की उम्मीद की जा रही थी; इसका कारण यह था कि पेट्स में सबसे ज्यादा उपस्थिति उनके क्लब के सदस्यों की होनी थी, जिसके चलते समझा जा रहा था कि उनके क्लब के सदस्य उनकी उम्मीदवारी के लिए करें भले ही कुछ न - उनके साथ दिखेंगे ही, तो भी एक उम्मीदवार के रूप में अमित गुप्ता को बल पहुँचायेंगे । अमित गुप्ता के लिए झटके वाली बात लेकिन यह रही कि उनके अपने क्लब के सदस्य उनसे ऐसे बच बच कर रहे कि लोगों को यह समझने/पहचानने में देर नहीं लगी कि अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को तो अपने क्लब का समर्थन ही शायद ही मिले ।
इस माहौल का सीधा फायदा अशोक अग्रवाल को मिलता हुआ दिखा । दरअसल अशोक अग्रवाल को अपने अनुभव का फायदा मिला । अशोक अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में चूँकि खासे सक्रिय रहे हैं, और जेके गौड़ की चुनावी सक्रियता के साथ तो उनका बहुत नजदीक का संबंध रहा है, इसलिए माना जाता है कि उन्हें चुनावी लटकों-झटकों का भी पता है और वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पेट्स के मौके की महत्ता को भी जानते/समझते हैं । इसीलिए पेट्स में उनका रवैया लोगों को सुनियोजित और परफेक्ट लगा - एक चतुर खिलाड़ी की तरह उन्होंने पूरे आयोजन में बने विभिन्न मौकों का भरपूर फायदा उठाया । खास बात यह रही कि पेट्स की आयोजन-व्यवस्था की जो चौतरफा तारीफ हुई, उसका श्रेय सुभाष जैन के जिन जिन नजदीकियों को मिला - अशोक अग्रवाल उन लोगों में भी शामिल दिखे, और दूसरे नेताओं के साथ भी तालमेल बनाने तथा बनाए रखने का भी काम उन्होंने प्रमुखता से किया । अशोक अग्रवाल ने अपने आप को हर किसी के साथ जिस तरह से जोड़ा और 'दिखाया' - उससे एक उम्मीदवार के रूप में उन्हें लोगों के बीच प्रमुखता से पहचाना गया । रही सही कसर दूसरे उम्मीदवारों के कमजोर प्रदर्शन ने कर दी - उनके कमजोर प्रदर्शनों का सीधा फायदा अशोक अग्रवाल को मिला । फर्स्ट इंप्रेशन में अशोक अग्रवाल का पलड़ा भारी रहा है, लेकिन कहावत के अनुसार इसे लास्ट इंप्रेशन मानना जल्दबाजी करना होगा । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के घाघ नेता अभी अपने विकल्प खोले हुए हैं, जिस कारण चुनावी समीकरणों का खाका बनना अभी बाकी है । यूँ तो चुनावी समीकरणों का खाका बनने के बाद ही उम्मीदवारों की वास्तविक स्थिति स्पष्ट होगी; लेकिन अशोक अग्रवाल के मुकाबले दूसरे उम्मीदवार अभी से जिस तरह से कमजोर पड़ते दिख रहे हैं - उससे उम्मीद की जा रही है कि चुनावी समीकरणों का जो भी खाका बनेगा, वह अशोक अग्रवाल के लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण शायद नहीं होगा । फिर भी, पेट्स में बनाई गई अपनी बढ़त को आगे भी बनाये रखना अशोक अग्रवाल के लिए चुनौती तो है ही ।

Monday, April 9, 2018

रोटरी इंटरनेशनल पदाधिकारियों का अजब गजब न्याय : चोरी के आरोपी को तुरंत 'फाँसी', और 'डकैती' के आरोपियों पर चुप्पी

चंडीगढ़ । रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल को ब्लड बैंक प्रोजेक्ट में पैसों की हेराफेरी करने के आरोप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्त कर देने के रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के फैसले ने राजा साबू और यशपाल दास  के नजदीकियों की नींद उड़ा दी हुई है । उन्हें डर हुआ है कि सतीश सिंघल पर जिस प्रकृति के आरोप थे, चूँकि ठीक उसी प्रकृति के आरोप राजा साबू और यशपाल दास पर हैं; बल्कि राजा साबू और यशपाल दास पर लगे आरोप तो और भी गंभीर प्रकृति के हैं - तो क्या राजा साबू और यशपाल दास को भी रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की तरफ से किसी सख्त कार्रवाई का शिकार होना पड़ेगा ? राजा साबू और यशपाल दास के नजदीकियों का ही मानना और कहना है कि सतीश सिंघल के खिलाफ जो आरोप रहे, वह तो सामान्य चोरी-चकारी की श्रेणी के आरोप हैं; जबकि राजा साबू और यशपाल दास पर जो आरोप हैं, वह तो डकैती की श्रेणी वाले कहे जा सकते हैं; इसके अलावा बड़ी बात यह है कि राजा साबू और यशपाल दास पर जो आरोप हैं, उनकी पुष्टि करने और उन्हें दोहराने का काम डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी के द्वारा भी किया गया है - इसलिए सतीश सिंघल के बाद राजा साबू और यशपाल दास के खिलाफ कार्रवाई होने की पूरी आशंका है । हालाँकि राजा साबू और यशपाल दास के कुछेक अन्य नजदीकियों और समर्थकों का कहना है कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के बस की छोटी मछलियों का शिकार करना ही है, बड़े मगरमच्छों पर हाथ डालना उनकी क्षमता से बाहर की बात है - इसलिए राजा साबू और यशपाल दास के कारनामे भले ही 'डकैती' वाले हों, रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की तरफ से उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकना मुश्किल ही क्या - असंभव ही है । आखिरकार, राजा साबू इंटरनेशनल प्रेसीडेंट और यशपाल दास इंटरनेशनल डायरेक्टर रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि राजा साबू की चेयरमैनशिप तथा यशपाल दास की देखरेख में चले रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट में दो करोड़ 83 लाख रुपए की घपलेबाजी के आरोपों पर तो इन दोनों ने चुप्पी ही साधे रखी है । खास बात यह रही कि सालों तक तो इन दोनों ने उक्त ट्रस्ट का हिसाब-किताब देने की जरूरत ही नहीं समझी; शोर-शराबे के कारण जब यह हिसाब-किताब देने को मजबूर हुए तब खुद इनके द्वारा दी गई बैलेंसशीट्स में ही दो करोड़ 83 लाख की घपलेबाजी का मामला लोगों ने पकड़ा । इस ट्रस्ट में इन दोनों की घपलेबाजी का आलम और बेशर्मीभरे इनके साहस का उदाहरण यह है कि यशपाल दास ने 17 अगस्त 2017 के अपने एक ईमेल पत्र में इस प्रोजेक्ट के पूरा होने की घोषणा करने के बाद 14 सितंबर 2017 को डिस्ट्रिक्ट सर्विस सोसायटी के एकाउंट से मनमाने व गुपचुप तरीके से 21 लाख 44 हजार रुपए ट्रांसफर कर लिए । नियमानुसार, डिस्ट्रिक्ट सर्विस सोसायटी का मुखिया डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होता है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी को नौ महीने बीत जाने के बाद भी इस सोसायटी का हिसाब-किताब नहीं मिला है । नियमानुसार, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट इस सोसायटी का सेक्रेटरी तथा निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ट्रेजरर होता है - लेकिन बेचारे प्रवीन चंद्र गोयल और रमन अनेजा को भी नहीं पता कि डिस्ट्रिक्ट सर्विस सोसायटी के फंड का आखिर होता क्या है ? इस सोसायटी का फंड पूरी तरह राजा साबू और यशपाल दास के कब्जे में है और वह मनमाने तरीके से इसका पैसा दाएँ/बाएँ करते रहते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में इस सोसायटी के हिसाब/किताब का मुद्दा उठा चुके हैं, दिल्ली स्थित रोटरी इंटरनेशनल के साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों के साथ-साथ इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन राजा साबू और यशपाल दास इस सोसायटी के फंड पर केंचुली मार कर बैठे हुए हैं और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को इसका हिसाब-किताब नहीं मिल पा रहा है । समझा जा रहा है कि राजा साबू और यशपाल दास को डर है कि डिस्ट्रिक्ट सर्विस सोसायटी का हिसाब-किताब यदि सामने आ गया, तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों के सामने पोल खुल जाएगी कि सोसायटी की सर्विस के नाम पर इकट्ठा किए गए पैसों से आखिर किन किन रसूख वाले लोगों की सर्विस हुई है । 
रोटरी इंटरनेशनल के अभी तक के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि एक डिस्ट्रिक्ट का गवर्नर अपने डिस्ट्रिक्ट में रोटरी के नाम पर चल रहे प्रोजेक्ट्स का हिसाब-किताब जानने/देखने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है, लेकिन असफल हो रहा है । डिस्ट्रिक्ट में रोटरी के नाम पर चलने वाले तमाम प्रोजेक्ट्स की चाबी चूँकि राजा साबू और यशपाल दास के पास है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी की शिकायतों पर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी भी चुप्पी साध जाते हैं । सुना जा रहा है कि थक-हार कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने राजा साबू और यशपाल दास की घपलेबाजियों को लेकर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में इस उम्मीद से पिटीशन डाली है, कि शायद इंटरनेशनल बोर्ड डिस्ट्रिक्ट के तमाम प्रोजेक्ट्स के हिसाब-किताब को राजा साबू और यशपाल दास के चंगुल से छुड़वा सके । डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल की उनके क्लब के पदाधिकारियों ने शिकायत की, तो रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने तुरंत जाँच कमेटी नियुक्त कर दी, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर करीब चार महीने के भीतर भीतर सतीश सिंघल के खिलाफ कार्रवाई भी कर दी गई - लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके गवर्नर की लगातार की जा रही शिकायतों पर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी कानों में तेल डाले बैठे हैं । इसका कारण क्या सिर्फ यही है कि डिस्ट्रिक्ट 3080 में रोटरी के नाम पर हो रही घपलेबाजी और लूट के आरोप जिन लोगों पर हैं, वह रोटरी में बड़े रसूख वाले लोग हैं ।
मजे की, लेकिन निहायत शर्म की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट 3080 में रसूख वाले लोग अपनी बेईमानियों के कारण रोटरी इंटरनेशनल की कार्रवाई से भले ही बच रहे हों, लेकिन अपने क्लब में 'पिट' रहे हैं । राजा साबू के नजदीकी पूर्व गवर्नर मनप्रीत सिंह को अभी हाल ही में क्लब के एक प्रोजेक्ट में घपलेबाजी करने के आरोप में क्लब की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है । मनप्रीत सिंह को क्लब से निलंबित किए जाने की घटना ने राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स को दबाव में तो ला दिया है, और उन्हें डर हुआ है कि कहीं अपनी अपनी बेईमानियों के कारण वह भी अपने अपने क्लब्स से निलंबित न कर दिए जाएँ । डिस्ट्रिक्ट 3080 के बड़े रसूख वाले लोग अपने अपने क्लब्स और डिस्ट्रिक्ट में भले ही लांछित हो रहे हों, लेकिन रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से उन्हें जिस तरह से अभयदान मिला हुआ है - उसने रोटरी इंटरनेशनल की न्यायप्रणाली पर सवाल जरूर उठा दिया है । लोगों के बीच यह चर्चा छिड़ी हुई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल के खिलाफ तत्परता से कार्रवाई करने वाले रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को राजा साबू तथा यशपाल दास जैसे लोगों के खिलाफ लगने वाले आरोपों के मामले में साँप क्यों सूँघ जाता है ?

Sunday, April 8, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में विशाल सिन्हा की बदतमीजीभरी धमकी के बाद भी एके सिंह अपने गवर्नर-वर्ष में बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी को समर्थन देने की अपनी घोषणा पर टिके/बने रहेंगे और या घुटने टेक देंगे ?

लखनऊ । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह ने अगले वर्ष के अपने गवर्नर-काल में होने वाले सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में बीएम श्रीवास्तव को समर्थन देने की घोषणा करके, और उनकी घोषणा पर उन्हें विशाल सिन्हा की तरफ से धमकी मिलने की घटना ने गुरनाम सिंह खेमे के लोगों के बीच खलबली मचा दी है । दरअसल गुरनाम सिंह खेमे के लोग एके सिंह को अपने 'आदमी' के रूप में देखते/पहचानते हैं, और बीएम श्रीवास्तव को केएस लूथरा खेमे ने अपना उम्मीदवार बनाने की घोषणा की है । इसलिए एके सिंह की बीएम श्रीवास्तव को समर्थन की घोषणा से गुरनाम सिंह खेमे में खलबली मचना स्वाभाविक ही था । इस खलबली को और बढ़ाने का काम किया विशाल सिन्हा की धमकी ने । उल्लेखनीय है कि एके सिंह की घोषणा पर गुरनाम सिंह की तरफ से तो हालाँकि कुछ सुनने को नहीं मिला है, लेकिन विशाल सिन्हा ने अपने स्वभावानुसार एके सिंह के प्रति अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए कहा है कि वह देखते हैं कि बीएम श्रीवास्तव को समर्थन दे कर एके सिंह गवर्नरी कैसे करते हैं ? विशाल सिन्हा की हाल ही की कुछेक हरकतों को उनकी इस प्रतिक्रिया के साथ जोड़ कर देखते हुए कई लोगों का कहना है कि गुरनाम सिंह को 'पापा जी' कहने वाले विशाल सिन्हा अब उनके 'पापा जी' बनने की कोशिश कर रहे हैं । ऐसे में, एके सिंह को विशाल सिन्हा की तरफ से मिली धमकी ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से जुड़ी डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को रोचक बना दिया है ।
बीएम श्रीवास्तव को एके सिंह की तरफ से समर्थन मिलने की घोषणा ने केएस लूथरा खेमे के लोगों को भी चौंकाया है । हालाँकि दोनों खेमे के कुछेक बड़े नेता एके सिंह की घोषणा को गुरनाम सिंह की योजना को क्रियान्वित करने की 'तैयारी' के रूप में भी देख/पहचान रहे हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों गुरनाम सिंह ने केएस लूथरा की तरफ 'दोस्ती' का हाथ बढ़ाया है, जिसमें उनकी तरफ से कहा गया है कि दोनों खेमे के उम्मीदवार बारी बारी से गवर्नर बनते रहें और इस तरह चुनाव के चक्कर से बचा जाए । गुरनाम सिंह की यहाँ तक की बात तो सभी को अच्छी लगी, लेकिन गुरनाम सिंह ने अगली बारी अपने खेमे के वीएन चौधरी को देने की माँग करके केएस लूथरा खेमे के लोगों को भड़का दिया । केएस लूथरा खेमे के नेताओं का कहना है कि वीएन चौधरी को चुनवाने के लिए गुरनाम सिंह 'एकता' बनाने का नाटक कर रहे हैं, और उसके बाद फिर वह अपने असली रंग में आ जायेंगे । गुरनाम सिंह के इरादे की पोल-पट्टी खोलने के लिए केएस लूथरा खेमे की तरफ से कहा गया कि गुरनाम सिंह यदि अपनी बात और अपने फार्मूले को लेकर ईमानदार हैं, तो इस बार चूँकि उनके खेमे का आदमी गवर्नर बना है, तो अगली बार का मौका उन्हें केएस लूथरा खेमे के आदमी को देना चाहिए । गुरनाम सिंह की तरफ से इसके लिए हामी नहीं भरी गई है । इसके बावजूद, एके सिंह की घोषणा में कुछेक लोगों को गुरनाम सिंह की हामी का संकेत नजर आ रहा है । लेकिन एके सिंह की घोषणा पर व्यक्त की गई विशाल सिन्हा की नाराजगी और धमकी ने उस संकेत की संभावना को घटा दिया है ।
एके सिंह की तरफ से भी स्पष्टीकरण सुनने को मिला है कि बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी को समर्थन देने की उनकी घोषणा उनका अपना फैसला है, और उनकी घोषणा से किसी खेमे की राजनीति का कोई लेना-देना नहीं है । एके सिंह की घोषणा से गुरनाम सिंह खेमे की तरफ से उम्मीदवार बनाए जा रहे वीएन चौधरी का 'दम' और कमजोर पड़ गया है । विशाल सिन्हा हालाँकि वीएन चौधरी में हवा भरने की कोशिश तो बहुत कर रहे हैं, किंतु लगता नहीं है कि वीएन चौधरी उनकी बातों में आयेंगे और उम्मीदवार बनेंगे । दरअसल वीएन चौधरी भी समझ रहे हैं कि इस बार अपने उम्मीदवार की जीत से विशाल सिन्हा घमंड में भले ही आ गए हों, लेकिन वोटों की भारी खरीद-फरोख्त के बाद भी तीन वोटों के मामूली अंतर से मिली जीत यह आश्वासन नहीं देती है कि काठ की हांडी दोबारा भी चढ़ सकेगी । वीएन चौधरी इसलिए भी उम्मीदवार नहीं बनना चाहेंगे क्योंकि वह जानते हैं कि वह यदि उम्मीदवार बन गए तो विशाल सिन्हा तो उन्हें लूट खायेंगे । बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी को समर्थन करने की एके सिंह की घोषणा से विशाल सिन्हा के बौखलाने का एक बड़ा कारण यह भी है कि विशाल सिन्हा को उम्मीदवार मिलना अब और मुश्किल हो जायेगा - और इस तरह उनका 'धंधा' ही चौपट हो जायेगा । 'धंधा' बचाने के लिए ही विशाल सिन्हा ने धमकी देकर एके सिंह पर दबाव बनाने की कोशिश की है । यह देखना दिलचस्प होगा कि विशाल सिन्हा की धमकी के सामने एके सिंह अपने गवर्नर-वर्ष में बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी को समर्थन देने की अपनी घोषणा पर टिके/बने रहते हैं, और या विशाल सिन्हा की बदतमीजी के सामने घुटने टेक देते हैं ।