देहरादून । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में एक बार फिर पुरानी पटकथा ही दोहरा दी गई है । अश्वनी
काम्बोज ने भी अंततः सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के पिछले वर्षों
के ऐसे कई उम्मीदवारों का अनुसरण किया, जो पहले तो मुकेश गोयल के विरोधी
नेताओं के यहाँ लुटते और ठगे जाते हैं, और फिर मुकेश गोयल की शरण में आ
जाते हैं - कुछेक ऐसे 'वीर-बहादुर' भी हैं जो मुकेश गोयल के उम्मीदवार से
बुरी तरह चुनाव हारने के बाद मुकेश गोयल की शरण में आकर (सेकेंड वाइस)
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनते हैं, और फिर मुकेश गोयल को गाली देते हुए अपने आप
को बड़ा तुर्रमखाँ 'दिखाने' लगते हैं । इस वर्ष तो बड़ा मजेदार सीन बना -
पिछले दो वर्षों में विरोधी नेताओं के हाथों ठगे गए राजेश गुप्ता और अश्वनी
काम्बोज में से राजेश गुप्ता तो पहले ही मुकेश गोयल की शरण में आ गए थे,
और अश्वनी काम्बोज भी लगातार हापुड़ के चक्कर लगा रहे थे । अश्वनी
काम्बोज थोड़ी होशियारी बरत रहे थे, वह अपनी उम्मीदवारी के लिए मुकेश गोयल
का समर्थन तो चाह रहे थे, लेकिन पूरी तरह उनकी ही शरण में दिखने से बचने की
कोशिश भी कर रहे थे । अश्वनी काम्बोज को उम्मीद थी कि राजेश गुप्ता
उम्मीदवार के रूप में टिके नहीं रह पायेंगे और तब मुकेश गोयल झक मार कर
उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए मजबूर होंगे । राजेश गुप्ता की
उम्मीदवारी के प्रति फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल की
नाराजगी को 'सुनते/देखते' हुए अश्वनी काम्बोज को विश्वास था कि ज्यादा
प्रयास किए बिना वह दोनों नावों की सवारी कर लेंगे । मुकेश गोयल लेकिन लायन
राजनीति के 'बाजीगर' यूँ ही नहीं कहे/माने/समझे जाते हैं । उन्होंने न
केवल कमजोरी के बावजूद राजेश गुप्ता को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाए रखा, बल्कि नाराजगी
के बावजूद विनय मित्तल को भी अपने साथ जोड़े रखा ।
मेरठ में राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग की कामयाबी ने अश्वनी काम्बोज की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया । उक्त मीटिंग के जरिये मुकेश गोयल ने जता/दिखा दिया कि अपने उम्मीदवार के लिए वह सिर्फ वोट ही नहीं, बल्कि जरूरत पड़ने पर नोट भी जुटा सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में शायद यह पहली बार हुआ कि एक उम्मीदवार की मीटिंग करने के लिए क्लब्स आगे आए और उन्होंने अपने खर्चे पर उम्मीदवार के प्रति समर्थन 'दिखाने' की मीटिंग आयोजित की । यह मुकेश गोयल का कमाल था और यह सिर्फ मुकेश गोयल ही कर/करवा सकते थे । मेरठ में जो नजारा देखने को मिला, वह अश्वनी काम्बोज के लिए तीन विकल्प देता सीधा संदेश था कि या तो मुकेश गोयल की शरण में आ जाओ, या घर बैठो और या लगातार दूसरी हार स्वीकारने के लिए तैयार रहो । जो लोग 'रचनात्मक संकल्प' नियमित पढ़ते हैं, उन्हें 20 फरवरी की रिपोर्ट याद होगी, जिसमें साफ कहा/बताया गया था कि इस बार की खास बात यह है कि जो दो उम्मीदवार मैदान में खड़े नजर आ रहे हैं, वह दोनों ही उम्मीदवार इस उम्मीद में उम्मीदवार बने हैं कि दूसरा जल्दी ही मैदान छोड़ देगा - और तब वह निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लिया जायेगा । उक्त रिपोर्ट में बताया गया था कि चुनावी सीन आगे बढ़ेगा, कोई एक उम्मीदवार मैदान छोड़ देगा । 'रचनात्मक संकल्प' की 20 फरवरी की रिपोर्ट में रेखांकित की गई बात अंततः सच साबित हुई । राजेश गुप्ता यदि थोड़ी हिम्मत दिखा देते और अपनी उम्मीदवारी पर टिके रहते, तो अश्वनी काम्बोज मैदान छोड़ देते - मुकेश गोयल ने उनके लिए जो तीसरा विकल्प छोड़ा था, उसे तो वह नहीं ही स्वीकारते । अश्वनी काम्बोज ने पहला विकल्प अपनाया, और उन्होंने मुकेश गोयल की लीडरशिप को स्वीकार कर लिया । अब जब दोनों उम्मीदवार मुकेश गोयल खेमे में आ गए, तो विनय मित्तल वाले ऐंगल ने अश्वनी काम्बोज का पलड़ा भारी बना दिया, और राजेश गुप्ता अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट गए ।
दरअसल दोनों उम्मीदवारों के सामने अलग अलग तरह की समस्याएँ थीं : राजेश गुप्ता ज्यादा पैसा भी खर्च नहीं करना चाहते थे, और विनय मित्तल की नाराजगी को भी दूर करने में वह सफल नहीं हो पाए थे; दूसरी तरफ अश्वनी काम्बोज अपने खेमे के नेताओं की असली औकात देख/पहचान चुके थे जो सिर्फ बड़बोले और ठग/लुटेरे किस्म के लोग हैं, और जिनकी कोशिश सिर्फ यह रहती कि कैसे वह अश्वनी काम्बोज से पैसे ठग लें । अश्वनी काम्बोज ने यह तय कर रखा था कि राजेश गुप्ता अपनी कमजोरी, जो विनय मित्तल की नाराजगी के चलते और बढ़ रही थी, के बावजूद यदि उम्मीदवार बने रहे तो वह अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट जायेंगे । अश्वनी काम्बोज ने इसीलिए अपनी गतिविधियों को बहुत ही सीमित तरीके से चलाया हुआ था और मीटिंग आदि में नाहक ही पैसे खर्च करने से वह बच रहे थे । वह इस उम्मीद में थे कि राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध करते हुए विनय मित्तल विद्रोह कर देंगे और तब उनका काम आसानी से बन जायेगा । लेकिन मेरठ में राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग की कामयाबी में जब उन्होंने संकेत देखा/पाया कि सारी अनुकूल स्थितियों के बावजूद उनका काम अपने आप - और मुकेश गोयल की शरण में जाए बिना नहीं बनेगा, तब उन्होंने मुकेश गोयल की लीडरशिप को स्वीकार करने का फैसला किया । मुकेश गोयल की शरण में आते ही अश्वनी काम्बोज के लिए हालात पूरी तरह अनुकूल हो गए - और एक बार फिर साबित हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की इच्छा रखने वाले लोगों को मुकेश गोयल की शरण में आना ही पड़ेगा ।
मेरठ में राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग की कामयाबी ने अश्वनी काम्बोज की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया । उक्त मीटिंग के जरिये मुकेश गोयल ने जता/दिखा दिया कि अपने उम्मीदवार के लिए वह सिर्फ वोट ही नहीं, बल्कि जरूरत पड़ने पर नोट भी जुटा सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में शायद यह पहली बार हुआ कि एक उम्मीदवार की मीटिंग करने के लिए क्लब्स आगे आए और उन्होंने अपने खर्चे पर उम्मीदवार के प्रति समर्थन 'दिखाने' की मीटिंग आयोजित की । यह मुकेश गोयल का कमाल था और यह सिर्फ मुकेश गोयल ही कर/करवा सकते थे । मेरठ में जो नजारा देखने को मिला, वह अश्वनी काम्बोज के लिए तीन विकल्प देता सीधा संदेश था कि या तो मुकेश गोयल की शरण में आ जाओ, या घर बैठो और या लगातार दूसरी हार स्वीकारने के लिए तैयार रहो । जो लोग 'रचनात्मक संकल्प' नियमित पढ़ते हैं, उन्हें 20 फरवरी की रिपोर्ट याद होगी, जिसमें साफ कहा/बताया गया था कि इस बार की खास बात यह है कि जो दो उम्मीदवार मैदान में खड़े नजर आ रहे हैं, वह दोनों ही उम्मीदवार इस उम्मीद में उम्मीदवार बने हैं कि दूसरा जल्दी ही मैदान छोड़ देगा - और तब वह निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लिया जायेगा । उक्त रिपोर्ट में बताया गया था कि चुनावी सीन आगे बढ़ेगा, कोई एक उम्मीदवार मैदान छोड़ देगा । 'रचनात्मक संकल्प' की 20 फरवरी की रिपोर्ट में रेखांकित की गई बात अंततः सच साबित हुई । राजेश गुप्ता यदि थोड़ी हिम्मत दिखा देते और अपनी उम्मीदवारी पर टिके रहते, तो अश्वनी काम्बोज मैदान छोड़ देते - मुकेश गोयल ने उनके लिए जो तीसरा विकल्प छोड़ा था, उसे तो वह नहीं ही स्वीकारते । अश्वनी काम्बोज ने पहला विकल्प अपनाया, और उन्होंने मुकेश गोयल की लीडरशिप को स्वीकार कर लिया । अब जब दोनों उम्मीदवार मुकेश गोयल खेमे में आ गए, तो विनय मित्तल वाले ऐंगल ने अश्वनी काम्बोज का पलड़ा भारी बना दिया, और राजेश गुप्ता अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट गए ।
दरअसल दोनों उम्मीदवारों के सामने अलग अलग तरह की समस्याएँ थीं : राजेश गुप्ता ज्यादा पैसा भी खर्च नहीं करना चाहते थे, और विनय मित्तल की नाराजगी को भी दूर करने में वह सफल नहीं हो पाए थे; दूसरी तरफ अश्वनी काम्बोज अपने खेमे के नेताओं की असली औकात देख/पहचान चुके थे जो सिर्फ बड़बोले और ठग/लुटेरे किस्म के लोग हैं, और जिनकी कोशिश सिर्फ यह रहती कि कैसे वह अश्वनी काम्बोज से पैसे ठग लें । अश्वनी काम्बोज ने यह तय कर रखा था कि राजेश गुप्ता अपनी कमजोरी, जो विनय मित्तल की नाराजगी के चलते और बढ़ रही थी, के बावजूद यदि उम्मीदवार बने रहे तो वह अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट जायेंगे । अश्वनी काम्बोज ने इसीलिए अपनी गतिविधियों को बहुत ही सीमित तरीके से चलाया हुआ था और मीटिंग आदि में नाहक ही पैसे खर्च करने से वह बच रहे थे । वह इस उम्मीद में थे कि राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध करते हुए विनय मित्तल विद्रोह कर देंगे और तब उनका काम आसानी से बन जायेगा । लेकिन मेरठ में राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग की कामयाबी में जब उन्होंने संकेत देखा/पाया कि सारी अनुकूल स्थितियों के बावजूद उनका काम अपने आप - और मुकेश गोयल की शरण में जाए बिना नहीं बनेगा, तब उन्होंने मुकेश गोयल की लीडरशिप को स्वीकार करने का फैसला किया । मुकेश गोयल की शरण में आते ही अश्वनी काम्बोज के लिए हालात पूरी तरह अनुकूल हो गए - और एक बार फिर साबित हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की इच्छा रखने वाले लोगों को मुकेश गोयल की शरण में आना ही पड़ेगा ।