Wednesday, April 18, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से सतीश सिंघल की बर्खास्तगी के मामले में यथास्थिति बनाये रखने के अदालत के फैसले के चलते सतीश सिंघल को तो कोई फायदा नहीं ही मिला, डिस्ट्रिक्ट और उनकी टीम के सदस्यों तथा उनके प्रेसीडेंट्स को 'अनाथ' और हो जाना पड़ा है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्तगी के रोटरी इंटरनेशनल के फैसले के खिलाफ अदालत जाने की सतीश सिंघल की कार्रवाई ने डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के कामकाज को बुरी तरह प्रभावित किया है और क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को 'अनाथ' कर दिया है । सतीश सिंघल द्वारा अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ की गई अपील पर अदालत ने तात्कालिक रूप से जो फैसला दिया है, उसने क्लब्स के प्रोजेक्ट्स के लिए ग्रांट्स लेने/मिलने की प्रक्रिया को बाधित कर दिया है, और प्रेसीडेंट्स व अन्य पदाधिकारियों को अवॉर्ड्स आदि मिलने की संभावनाओं को खत्म कर दिया है । दरअसल अदालती फैसले के चलते डिस्ट्रिक्ट में पहली बार ऐसा होगा कि डिस्ट्रिक्ट में करीब ढाई महीने तक कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं होगा, डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस नहीं होगी और डिस्ट्रिक्ट टीम तथा क्लब्स के पदाधिकारियों को अवॉर्ड नहीं मिलेंगे । डिस्ट्रिक्ट और क्लब्स की फंक्शनिंग में चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की ही भूमिका होती है, इसलिए अब जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ही नहीं होगा तो उसकी भूमिका के साथ/जरिये होने वाले काम भी नहीं होंगे - और इस तरह क्लब्स के प्रेसिडेंट्स के लिए उनका कार्यकाल निरर्थक ही हो गया है । डिस्ट्रिक्ट 3012 के कुछेक क्लब्स के प्रेसीडेंट्स ने कहना शुरू भी कर दिया है कि सतीश सिंघल खुद भी डूबे और दूसरों को भी ले डूबे हैं ।
इस स्थिति को देख/भाँप कर कुछेक लोगों की तरफ से यह भी सुनने को मिला है कि सतीश सिंघल ने सारे मामले को हैंडल करने में न तो कोई व्यावहारिक होशियारी दिखाई और न ग्रेस ही प्रदर्शित किया, जिसके चलते न सिर्फ वह खुद मुसीबतों में घिरते/फँसते चले गए - बल्कि अब हालात यहाँ तक आ पहुँचे हैं कि मौजूदा रोटरी वर्ष के बाकी बचे समय के लिए डिस्ट्रिक्ट ही कब्र में जा पहुँचा है । सतीश सिंघल के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का भी मानना/कहना है कि मुसीबतों ने जब सतीश सिंघल को घेरना शुरू ही किया था, तब सतीश सिंघल यदि मामले की गंभीरता को समझते और हो सकने वाले नुकसान को कम से कम करने/रखने की कोशिश करते, तो न तो उन्हें बढ़ी/चढ़ी मुसीबतों का शिकार होना पड़ता और न ही डिस्ट्रिक्ट व उनके प्रेसीडेंट्स को अनाथ होना पड़ता । गवर्नरी शुरू करते हुए सतीश सिंघल ने दावा किया था कि उनका गवर्नर-काल ऐसा ऐतिहासिक होगा, जैसा किसी डिस्ट्रिक्ट में पहले न कभी रहा होगा, और न कभी आगे हो पायेगा । उनका दावा सही साबित तो हो गया है, लेकिन जिस रूप में वह सही साबित हुआ है - वह खुद उनके लिए और डिस्ट्रिक्ट के लिए बदकिस्मतीभरा ही है । कुछेक लोगों के अनुसार, बदकिस्मती की बात यह भी है कि जिस रोटरी में वह वर्षों से हैं और जिसे वह गर्व के साथ कहते/बताते रहे हैं, उस रोटरी के शीर्ष नेतृत्व के फैसले को स्वीकार करने में वह ग्रेस नहीं दिखा सके, और एक ऐसी प्रक्रिया में गए - जिसमें उन्हें तो कोई फायदा नहीं ही मिला, डिस्ट्रिक्ट और उनकी टीम के सदस्यों तथा उनके प्रेसीडेंट्स को 'अनाथ' और हो जाना पड़ा है ।
सतीश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से बर्खास्तगी के बाद रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय डिस्ट्रिक्ट 3012 के गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभाने के लिए किसी को नियुक्त करता - और उसकी देखरेख में बाकी बचे काम पूरे होते । लेकिन सतीश सिंघल की अदालती कार्रवाई के चलते अदालत ने यथास्थिति बनाये रखने का जो फैसला दिया है, उसके बाद डिस्ट्रिक्ट को बिना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के ही रहना होगा । यथास्थिति बनाये रखने के अदालत के फैसले के चलते सतीश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में काम करने का अधिकार तो नहीं ही मिला, उनकी जगह गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभाने के लिए किसी को नियुक्त करने का रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय का मौका भी छिन गया है । सतीश सिंघल के समर्थकों का कहना है कि जो स्थिति बनी है, वह निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है - लेकिन सतीश सिंघल को जब रोटरी के शीर्ष पदाधिकारियों से न्याय नहीं मिला, तो वह अदालत न जाते तो क्या करते ? पहली बात तो यह कि इस तर्क में यह अहंकार झलकता है कि जो फैसला हमारे माफिक नहीं है, वह न्याय नहीं है; यानि न्याय वही है जो हमारे माफिक हो, हमारे अनुकूल हो । दूसरी बात यह कि यदि मान भी लें कि रोटरी इंटरनेशनल ने सतीश सिंघल के साथ न्याय नहीं ही किया, तो ? किसी भी संस्था, समाज और या देश में जब हम होते हैं, तो हमें उसकी न्याय प्रणाली को स्वीकार करना ही होता है - भले ही वहाँ न्याय न हो रहा हो । सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी किसी को यदि लगता है कि उसके साथ न्याय नहीं हुआ है, तो उसके पास क्या करने को बचता है, तब उसे क्या करना चाहिए ? जीवन में बहुत से मौके आते हैं, जब हम अपने आप को अन्याय का शिकार होता पाते हैं; कई बार अपमानित होकर, खून का घूँट पीकर रह जाना पड़ता है - क्योंकि हर बार यदि न्याय पाने की कोशिश करेंगे, तो अपने साथ-साथ अपने नजदीकियों के जीवन को भी और और मुसीबत में ही डालेंगे ।
इसी तर्ज पर देखें, तो जो लोग रोटरी में वर्षों से हैं और इस बात पर गर्व करते रहे हैं, लेकिन रोटरी के शीर्ष नेतृत्व से एक फैसला उनके अनुकूल नहीं आता है तो वह उस नेतृत्व को ही अदालत में घसीट लेते हैं, अपने ही सहयोगियों के हक/अधिकार को छिनवा देते हैं - तो उनसे पूछा जाना चाहिए कि फिर रोटरी में हो क्यों और क्यों यहाँ रहना चाहते हो ? सतीश सिंघल की अदालती कार्रवाई से उन्हें न्याय - उनका मनमाफिक फैसला मिलेगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन उनकी कार्रवाई के चलते उनके सहयोगियों के रूप में उनकी टीम के सदस्य और उनके प्रेसीडेंट्स 'अनाथ' जरूर हो गए हैं ।