Friday, December 29, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में संजीव राय मेहरा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जितवाने में रवि चौधरी के साथ-साथ विनय भाटिया पर भी मिलीभगत के आरोपों के चलते लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया का गवर्नर-वर्ष भी विवादों और घटिया हरकतों की भेंट चढ़ेगा !

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर संजीव राय मेहरा की चुनावी जीत की खबर आने/मिलने से पहले ही उन्हें जितवाने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया की हरकतों की शिकायत दर्ज हो जाने से उनकी जीत का रंग फीका पड़ गया है । शिकायत में चुनावी प्रक्रिया को रोकने, चुनाव को रद्द करने तथा दोबारा चुनाव करवाने की माँग की गई है । यूँ तो चुनाव में हारने वाले पक्ष की तरफ से बेईमानी होने के आरोप लगना सामान्य बात है, और नतीजा आने के बाद लगने वाले आरोपों को अक्सर ही गंभीरता से नहीं लिया जाता है; लेकिन संजीव राय मेहरा के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि चुनाव जीतने के लिए उनके और रवि चौधरी व विनय भाटिया द्वारा की गई और की जा रही हरकतों का कच्चा-चिट्ठा डिस्ट्रिक्ट की इलेक्शन ग्रीवेंस कमेटी को चुनाव पूरा होने से पहले ही भेजा जा चुका था । रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के प्रेसीडेंट एसएन चतुर्वेदी की तरफ से इलेक्शन ग्रीवेंस कमेटी को संजीव राय मेहरा, रवि चौधरी, विनय भाटिया और पूर्व गवर्नर सुशील खुराना की हरकतों का जो ब्यौरा सौंपा गया - उसे एक नजर भर देखने से ही साफ हो जाता है कि डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव नहीं, बल्कि चुनाव के नाम पर मजाक हुआ है । इस ब्यौरे में संजीव राय मेहरा, रवि चौधरी, विनय भाटिया और सुशील खुराना की जैसी जिन कार्रवाइयों का जिक्र है और उनके सुबूत हैं - उससे जाहिर है कि इन प्रमुख लोगों को न तो रोटरी के नियम-कानूनों की परवाह रही और न इन्होंने अपनी ही प्रतिष्ठा की फिक्र की; इनका उद्देश्य किसी भी तरह से बस चुनाव जीतना था, और इसके लिए यह घटिया से घटिया हरकत करने को तैयार थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी द्वारा क्लब्स के प्रेसीडेंट्स पर संजीव राय मेहरा को वोट देने के लिए जिस जिस तरह के दबाव बनाए गए, उसके चलते कई एक क्लब्स में झगड़े तक हो गए और रोटरी क्लब दिल्ली पंचशील पार्क के प्रेसीडेंट के लिए तो हालात इस्तीफा देने तक पहुँच गए ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी ने संजीव राय मेहरा को चुनाव जितवाने के लिए पक्षपातपूर्ण 'नंगे नाच' का प्रदर्शन तब किया, जबकि दो वर्ष पहले ही डिस्ट्रिक्ट के कुछेक प्रमुख लोग चुनावी संलग्नता के आरोप में रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड से लताड़ खा चुके हैं । उस लताड़ के चलते उम्मीद की गई थी कि डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी तथा चुनावबाज नेता सबक लेंगे और अपने आपको चुनावी संलग्नता से दूर रखेंगे । लेकिन संजीव राय मेहरा को चुनाव जितवाने के लिए रवि चौधरी, विनय भाटिया, सुशील खुराना ने जिस पक्षपातपूर्ण निर्लज्जता का प्रदर्शन किया, उसे देख/जान कर लगता नहीं है कि इन्हें रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड द्वारा लगाई गई लताड़ की कोई परवाह रही । रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की 'तैयारी' कर रहे, डिस्ट्रिक्ट और रोटरी की पहचान और प्रतिष्ठा की चिंता करते रहने वाले पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता से कई बार रवि चौधरी और विनय भाटिया की हरकतों को लेकर शिकायत की गई, लेकिन उन्होंने भी चुप्पी साधे रखने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । मजे की बात यह रही कि सुशील गुप्ता की चुप्पी और सीओएल सदस्य सुशील खुराना सहित डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया की खुली पक्षधरता के बावजूद संजीव राय मेहरा को अपने निकटतम प्रतिद्वंदी अनूप मित्तल से कुल छह वोट ज्यादा मिले - संजीव राय मेहरा को 63 तथा अनूप मित्तल को 57 वोट मिले । समझा जा सकता है कि संजीव राय मेहरा के लिए डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी बेशर्मी और निर्लज्जता पर न उतरते, तो उन्हें कितनी बड़ी हार का सामना करना पड़ता ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया का रवैया इस मामले में काफी गंभीर रहा । रवि चौधरी के बारे में तो लोग मान लेते हैं कि वह बदतमीज किस्म के व्यक्ति हैं और उन्हें इस बात की भी परवाह नहीं है कि उनकी हरकतों से उनकी जो बदनामी हो रही है, उससे रोटरी में सम्मानजनक ढंग से उनके बने रहने के मौके उनके पास नहीं बचेंगे; रवि चौधरी खुद कई बार कह चुके हैं कि उन्हें रोटरी में नहीं रहना है और वह तो रोटरी छोड़ देंगे - इसलिए उन्हें इस बात की फिक्र करने की जरूरत नहीं है कि उनकी हरकतों से रोटरी और डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ खुद उनकी भी फजीहत हो । लेकिन विनय भाटिया को तो अभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनना' है, और स्वभाव में वह रवि चौधरी जैसे बदतमीज भी नहीं हैं - फिर क्यों वह संजीव राय मेहरा के चुनाव में क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को प्रभावित करने के मामले में रवि चौधरी से भी आगे निकलने की होड़ में रहे ? विनय भाटिया खुद तो सक्रिय रहे ही, अगले रोटरी वर्ष की अपनी गवर्नर-टीम के प्रमुख सदस्यों के रूप में पप्पूजीत सिंह सरना तथा अशोक कंतूर तक को उन्होंने संजीव राय मेहरा के पक्ष में वोट जुटाने के अभियान में लगाए रखा । विनय भाटिया ने अपने गवर्नर-काल में अशोक कंतूर को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनवाने/जितवाने की जिम्मेदारी भी ले ली है । मजे की बात यह है कि विनय भाटिया अपने गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल की बात भी सुनने/मानने और समझने को तैयार नहीं दिखते हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड से डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों और नेताओं को जो लताड़ मिली थी, वह विनय भाटिया के चुनाव में ही मिली थी । इसके बावजूद विनय भाटिया पर कोई असर नहीं है, तो क्या यह मान लेना चाहिए कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालने की तैयारी कर रहे - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया को रोटरी इंटरनेशनल के वरिष्ठ पदाधिकारियों के फैसलों और उनके दिशा-निर्देशों की कोई परवाह नहीं है, और उनका गवर्नर-वर्ष भी रवि चौधरी के गवर्नर-वर्ष की तरह विवादों और घटिया हरकतों की भेंट चढ़ेगा ?

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में प्रवीन राजगढ़िया के मामले में और अपने गवर्नर-काल के अकाउंट्स न देने के किस्से के फिर से उठने के कारण पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएल खट्टर चौतरफा मुसीबत में फँसे

रोहतक । प्रवीन राजगढ़िया के साथ हरियाणा के लीडर्स की रोहतक में होने वाली मीटिंग के लगातार स्थगित होते जाने से प्रवीन राजगढ़िया के नजदीकियों और समर्थकों के बीच पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएल खट्टर के प्रति नाराजगी और विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है । प्रवीन राजगढ़िया के नजदीकियों की तरफ से केएल खट्टर पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए जा रहे हैं । रोहतक में पूर्व गवर्नर राजिंदर बंसल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह का निमंत्रण न मिलने के बाद से तो प्रवीन राजगढ़िया और उनके समर्थक बुरी तरह भड़के हुए हैं । उल्लेखनीय है कि उक्त समारोह में हरियाणा के चारों-पाँचों लीडर्स उपस्थित हुए थे । प्रवीन राजगढ़िया ने प्रयास किया था कि जब सभी लीडर्स रोहतक में आ ही रहे हैं, तो समारोह से पहले प्रस्तावित मीटिंग हो सकती है । केएल खट्टर ने मीटिंग हो पाने में तो असमर्थता व्यक्त कर ही दी; प्रवीन राजगढ़िया को अधिष्ठापन समारोह का निमंत्रण तक नहीं मिला । प्रवीन राजगढ़िया के लिए यह घटना काफी झटके वाली रही । उनकी तरफ से लोगों के बीच माहौल तो यह बनाया/दिखाया गया था कि हरदीप सरकारिया को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने के तरीके पर उनकी तरफ से नाराजगी व्यक्त किए जाने से हरियाणा की लीडरशिप बुरी तरह से 'हिल' गई है, लेकिन देखने में यह आया कि उनकी नाराजगी के बावजूद लीडरशिप के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी है । प्रवीन राजगढ़िया के नजदीकियों का कहना है कि रोहतक में होने वाली मीटिंग को लेकर केएल खट्टर जिस तरह से टालमटोल करते नजर आ रहे हैं, और बार-बार तरह तरह की बहानेबाजी करके मीटिंग के दिन को आगे बढ़ाते नजर आ रहे हैं - उससे अब लगने लगा है कि केएल खट्टर सिर्फ टाइम पास कर रहे हैं, और प्रवीन राजगढ़िया को बेवकूफ बना रहे हैं ।
प्रवीन राजगढ़िया के नजदीकियों और समर्थको को अब महसूस हो रहा है कि केएल खट्टर की बातों में आकर उन्होंने बड़ी गलती कर दी और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी जगहँसाई और फजीहत करवा ली है । प्रवीन राजगढ़िया के कुछेक नजदीकियों की तरफ से हालाँकि अभी भी दावा किया जा रहा है कि उनके चैप्टर को अभी बंद हुआ नहीं समझा जाए, और प्रवीन राजगढ़िया अपने साथ हुए 'खेल' का उचित समय पर बदला जरूर लेंगे । नजदीकियों का कहना है कि प्रवीन राजगढ़िया लीडर्स को पूरा समय देना चाहते हैं, ताकी बाद में वह यह न कह सकें कि वह तो बात करना चाहते थे - प्रवीन राजगढ़िया ने ही जल्दी मचा दी थी । इस मामले में केएल खट्टर भी खुद को बुरी तरह घिरा हुआ महसूस कर रहे हैं । दरअसल इस मामले में हरियाणा के बाकी लीडर्स ने केएल खट्टर को अकेला छोड़ दिया है । बाकी लीडर्स अभी हरदीप सरकारिया को और उनके बाद पुनीत बंसल को समर्थन देने के मुद्दे पर पुनर्विचार करने के मूड में बिलकुल भी नहीं हैं । उनकी तरफ से केएल खट्टर को बता दिया गया है कि प्रवीन राजगढ़िया से उन्होंने जो कहा है, उसे वह खुद ही देखें । बाकी लीडर्स के इसी रवैये के चलते, प्रवीन राजगढ़िया से रोहतक में मीटिंग करने के वायदे को निभा पाना केएल खट्टर के लिए मुश्किल हो रहा है । केएल खट्टर के लिए मुसीबत की बात यह है कि बाकी लीडर्स की तरफ से उन्हें यह और सुनने को मिल रहा है कि प्रवीन राजगढ़िया को उन्होंने नाहक ही ज्यादा तवज्जो दे दी है, और मामले को थोड़ा टेढ़ा कर दिया है - अन्यथा प्रवीण राजगढ़िया कुछ दिन शोर मचा कर खुद ही शांत हो जाते । बाकी लीडर्स की नसीहत सुनते हुए केएल खट्टर ने लगता है कि उन्हीं का फार्मूला अपना लिया है और प्रवीन राजगढ़िया को कभी इग्नोर करने तो कभी 'चिंता मत करो' का झाँसा देकर लटकाए हुए हैं । केएल खट्टर की इस झाँसेबाजी से प्रवीन राजगढ़िया और उनके नजदीकी व समर्थक भड़के हुए तो बहुत हैं, लेकिन उनकी समझ में आ नहीं रहा है कि इस स्थिति में वह करें, तो आखिर क्या करें ?

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नई दिल्ली । केएल खट्टर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर तथा डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डीनेटर केएम गोयल के आक्रामक रवैये के कारण एक अलग तरह की फजीहत के दरवाजे पर पहुँच गए हैं । केएल खट्टर के लिए यह फजीहत पूर्व गवर्नर हर्ष बंसल द्वारा केएम गोयल पर लगाए एक आरोप के चलते पैदा हुई है । हर्ष बंसल ने डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डीनेटर के रूप में केएम गोयल पर डिस्ट्रिक्ट के हिसाब-किताब में हेराफेरी करने की आशंका व्यक्त करते हुए अकाउंट्स समय से न देने का आरोप लगाया है । हर्ष बंसल का कहना है कि केएम गोयल की इस हरकत पर उनकी तरफ से यदि उचित स्पष्टीकरण नहीं आया, तो वह इस मामले को आगे ले जायेंगे । केएम गोयल ने अधिकृत रूप से तो इस आरोप का जबाव नहीं दिया है, लेकिन अलग अलग मौकों पर कुछेक लोगों के बीच उन्होंने अपने आक्रामक तेवर दिखाए और कहा कि हर्ष बंसल को समय से अकाउंट्स लेने/पाने का इतना शौक है तो पहले राकेश त्रेहन और केएल खट्टर से अकाउंट्स माँगे, जो अभी तक नहीं मिले हैं । केएम गोयल की तरफ से यहाँ तक कहा गया कि हर्ष बंसल की हिम्मत केएल खट्टर से अकाउंट्स माँगने की नहीं होगी, जिनसे वह एक बार पिट चुके हैं । केएम गोयल की यह बात हर्ष बंसल और केएल खट्टर, दोनों के लिए चुनौती की तरह है । हर्ष बंसल भले ही एक बार केएल खट्टर से पिट चुके हैं, लेकिन वह इतने बेशर्म किस्म के व्यक्ति के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं कि दोबारा भी पिटने के लिए तैयार हो जायेंगे । केएल खट्टर के लिए मुसीबत की बात यह है कि हर्ष बंसल यदि बेशर्मी पर सचमुच उतर ही आए तो उन्हें नाहक एक बार फिर फिजूल के विवाद और झगड़े में पड़ना पड़ेगा - और हो सकता है कि वह विवाद और झगड़ा खुद उनके लिए भी फजीहत का कारण बने, क्योंकि यदि अपने गवर्नर-काल के अकाउंट्स न देने का उन पर लगा केएम गोयल का आरोप सच है तो यह उनके लिए फजीहत का कारण तो बन ही जाएगा ।

Wednesday, December 27, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स द्वारा मिड ईयर रिव्यू मीटिंग को रद्द करवाने की कार्रवाई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार अशोक गुप्ता के लिए वरदान ही बनी

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट 3080 में बीते छह महीनों में हुए कामकाज का लेखाजोखा करने तथा उसके आधार पर अगले छह महीनों के कामकाज का निर्धारण करने के उद्देश्य से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी द्वारा आयोजित की जा रही मिड ईयर रिव्यू मीटिंग - इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अशोक गुप्ता और भरत पांड्या के बीच हो रहे चुनावी मुकाबले की गर्मी की भेंट चढ़ गई है । 29 दिसंबर को चंडीगढ़ में हॉलिडे इन होटल में बुलाई गई मीटिंग को रद्द करने के लिए आधिकारिक रूप से तो 'अपरिहार्य परिस्थितियों' को जिम्मेदार बताया गया है, लेकिन यह 'अपरिहार्य परिस्थितियाँ' वास्तव में क्या हैं - इसका खुलासा टीके रूबी की तरफ से नहीं किया गया है । दिलचस्प बात यह है कि इसका खुलासा राजा साबू गिरोह के सदस्यों की तरफ से किया गया, जिसके तहत कुछेक लोगों को बताया गया कि राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने टीके रूबी पर दबाव बना कर इस मीटिंग को रद्द करवाया है । राजा साबू गिरोह के गवर्नर्स का आरोप रहा कि रिव्यू के बहाने बुलाई जा रही इस मीटिंग में टीके रूबी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता को वोट डलवाने का काम कर सकते हैं, इसलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव होने के मौके पर कोई मीटिंग नहीं होनी चाहिए । राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के दोहरे चरित्र का मजेदार और बिलकुल नया उदाहरण यह है कि 6 जनवरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट प्रवीन गोयल द्वारा माउंट व्यू होटल में की जा रही 'परिचय' मीटिंग को लेकर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है । प्रवीन गोयल को दरअसल वह अपना 'आदमी' समझते हैं ।
उल्लेखनीय तथ्य यह है कि टीके रूबी भी पहले उनके ही आदमी थे, लेकिन अपने ही आदमियों की उठक-बैठक लगवाने की अपनी सोच और प्रवृत्ति के चलते राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने जब टीके रूबी के गवर्नर की कुर्सी तक पहुँचने में बाधाएँ खड़ी करना शुरू कीं, तो उसके चलते टीके रूबी अब उनके 'आदमी' नहीं रह गए हैं । सच बात यह है कि कुछ समय पहले तक डिस्ट्रिक्ट 3080 में सभी लोग राजा साबू के 'आदमी' बन कर ही रहे हैं; किंतु धीरे-धीरे जब राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की हरकतें बढ़ती गईं और उनकी असलियत लोगों के सामने आती गई - तब लोग उनके चंगुल से निकलते गए और अपने व्यवहार व अपने काम के भरोसे अपनी अपनी पहचान बनाते गए । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के लिए इससे बड़ी फजीहत की बात और क्या होगी कि उन्होंने जिन टीके रूबी को गवर्नर बनने से रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया, वह टीके रूबी न सिर्फ यह कि गवर्नर बने - बल्कि इंटरनेशनल डायरेक्टर जैसे बड़े चुनाव में राजा साबू गिरोह के लिए वह बड़े प्रतिद्वंदी बन गए हैं । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स के विरोध के बावजूद उनके डिस्ट्रिक्ट में ही इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता को अच्छा समर्थन मिलता दिख रहा है । मजे की बात यह रही कि इसके लिए टीके रूबी को ज्यादा कुछ करना भी नहीं पड़ा; उन्होंने तो सिर्फ जाल बिछाया - राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स उनके जाल में फँसते गए । कुछ ही समय पहले टीके रूबी ने एक इंटरसिटी सेमीनार में अशोक गुप्ता को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया । वह जानते थे कि राजा साबू और उनके गिरोह के लोग अशोक गुप्ता का डिस्ट्रिक्ट में आना हजम नहीं कर पायेंगे और उनके आने को निरस्त करवाने के लिए हाथ-पैर मारेंगे । यही हुआ भी । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने 'ऊपर से' दबाव डलवा कर अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में आने को तो रुकवा दिया, लेकिन इस के चलते अशोक गुप्ता और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी की बात डिस्ट्रिक्ट 3080 में एक जानी-पहचानी बात बन गई - और डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने टीके रूबी के बिना कुछ कहे/सुने ही जान लिया कि टीके रूबी का सहयोग और समर्थन अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए है ।
अशोक गुप्ता यदि उस इंटरसिटी सेमीनार में मुख्य अतिथि के रूप में आ जाते, तो उन्हें उतना राजनीतिक फायदा नहीं मिलता - जितना कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने उनके आने को रद्द करवा कर उन्हें दिलवा दिया । उस प्रसंग ने रोटरी के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों के बीच टीके रूबी की पहचान और भूमिका को भी और और विस्तार दिया । यही कहानी 29 दिसंबर की मिड ईयर रिव्यू मीटिंग के मामले में दोहराई गई है । इस मीटिंग का तो अशोक गुप्ता से तो कुछ लेना-देना भी नहीं था; लेकिन राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स चूँकि टीके रूबी - और अशोक गुप्ता को उनके समर्थन की बात से इतना बौखलाए हुए हैं कि टीके रूबी को यदि छींक भी आ जाए, तो वह अपने अपने जुकाम का ईलाज करने में जुट जाते हैं - लिहाजा उन्होंने टीके रूबी की इस मीटिंग को अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में वोटिंग कराने की तैयारी के रूप में देखा और इसे रद्द करने/करवाने के काम में जुट गए । टीके रूबी ने भी मीटिंग रद्द करने को लेकर कोई हील-हुज्जत नहीं की - क्योंकि वह जो करना चाहते थे, वह तो हो ही गया । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने ही डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तक यह संदेश 'भिजवा' दिया कि टीके रूबी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता को वोट दिलवाना चाहते हैं । टीके रूबी को इस संदर्भ में कुछ कहना/करना ही नहीं पड़ा । मीटिंग यदि होती, तो टीके रूबी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में कुछ नहीं कर पाते; यदि कुछ करने का प्रयास करते भी, तो विवाद में पड़ते । इस लिहाज से राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की उक्त मीटिंग को रद्द करवाने की कार्रवाई टीके रूबी और अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए वरदान ही बनी है ।

Monday, December 25, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई में डिस्ट्रिक्ट 3070 में प्रमुख पदों की सौदेबाजी के जरिए भरत पांड्या को वोट दिलाने की कोशिशों के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट बरजेश सिंघल को विरोध व रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत का सामना करना पड़ रहा है

जालंधर । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट बरजेश सिंघल पर अगले रोटरी वर्ष के अपने गवर्नर-काल के असिस्टेंट गवर्नर्स के पद के बदले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में भरत पांड्या के लिए वोट जुटाने का आरोप लगने - और रोटरी इंटरनेशनल में इस बारे में शिकायत होने से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा होने के साथ-साथ उसके समीकरणों में बदलाव आने के संकेत भी मिले हैं । उल्लेखनीय है कि अशोक गुप्ता और भरत पांड्या के बीच हो रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट 3070 में खासी गहमागहमी है । हालाँकि कुछेक पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि गहमागहमी ज्यादा नहीं है, गहमागहमी का शोर ज्यादा है - और इसका कारण पूर्व गवर्नर गुरजीत सिंह की सक्रियता है । गुरजीत सिंह ने भरत पांड्या की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ है; और पंचकुला में हुई नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग से लेकर कुआलालुम्पुर में हुए रोटरी इंस्टीट्यूट तक भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थन में काम करने को लेकर वह चर्चा में रहे हैं । कुआलालुम्पुर से लौट कर गुरजीत सिंह ने नॉर्दर्न क्षेत्र के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में अपनी सक्रियता दिखाने का प्रयास किया, लेकिन वहाँ कहीं उनकी ज्यादा चली नहीं - और इस कारण से उनकी चर्चा का ग्राफ जितनी तेजी से ऊँचा चढ़ा था, उतनी ही तेजी से वह नीचे भी आ गया । इसका कारण यह भी रहा कि गुरजीत सिंह को अपने ही डिस्ट्रिक्ट में भरत पांड्या के समर्थन के संदर्भ में अपनी सक्रियता को लेकर विरोध का सामना करना पड़ा । दरअसल डिस्ट्रिक्ट 3070 में भरत पांड्या की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थक नेताओं ने भरत पांड्या और उनके चुनावी-प्रबंधकों से साफ कह दिया कि उनकी उम्मीदवारी की कमान यदि गुरजीत सिंह के हाथ में रहेगी, तो डिस्ट्रिक्ट में उन्हें जो वोट मिल सकते हैं, वह भी उन्हें नहीं मिलेंगे । इसके बाद, भरत पांड्या की उम्मीदवारी के चुनाव-प्रबंधकों ने गुरजीत सिंह को 'ज्यादा न उड़ने' का निर्देश दिया, और तब गुरजीत सिंह ने अपनी सक्रियता की रफ़्तार धीरे की ।
गुरजीत सिंह की सक्रियता भरत पांड्या के लिए वास्तव में मुसीबत का कारण ही बनी । दरअसल भरत पांड्या के लिए गुरजीत सिंह की सक्रियता को रोटरी में आगे बढ़ने की उनकी 'सीढ़ी' के रूप में देखा/पहचाना गया । गुरजीत सिंह को एक महत्त्वाकांक्षी रोटेरियन के रूप में देखा/पहचाना जाता है; उन्होंने खुद भी कई लोगों से कहा है कि उन्हें रोटरी में 'आगे' बढ़ना है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3070 में सुरेंद्र सेठ को छोड़ कर किसी अन्य गवर्नर की रोटरी में ऊँची पहचान नहीं बन सकी है । इसका कारण यह भी रहा कि किसी ने ऊँची पहचान के लिए कोई प्रयास भी नहीं किया । सुरेंद्र सेठ की वक्तृत कला और उनकी सक्रियता की विविधता के चलते रोटरी में उनका एक आभामंडल बना, जो लगातार कायम रहा । तीन वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे गुरजीत सिंह ने रोटरी में ऊँची उड़ान भरने के बारे में सोचा तो, लेकिन वह ऐसा कोई काम करके दिखा नहीं सके जिससे कि रोटरी के बड़े नेताओं की निगाह में वह 'चढ़' सकें । बासकर चॉकलिंगम के इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में काम करना शुरू करने के बाद, गुरजीत सिंह ने उनके लिए कम्प्यूटर नेटवर्किंग को लेकर कुछ काम किया - जिसके चलते वह बासकर चॉकलिंगम के नजदीक तो आए, पर इस नजदीकियत का उन्हें कोई फायदा होता हुआ नहीं दिखा । इस बीच इंटरनेशनल डायरेक्टर पद को लेकर शुरू हुई गहमागहमी में उन्हें अपनी महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने का मौका नजर आया, और इस मौके को इस्तेमाल करने के लिए वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी मैदान में कूद पड़े । उन्हें विश्वास रहा कि वह भरत पांड्या की उम्मीदवारी के लिए काम करेंगे, तो भरत पांड्या के समर्थक बड़े नेता रोटरी में ऊँचा उठने की उनकी कोशिशों में अवश्य ही मदद करेंगे । इसी विश्वास के चलते गुरजीत सिंह ने भरत पांड्या की उम्मीदवारी के पक्ष में जोशो-खरोश के साथ मोर्चा संभाल लिया । गुरजीत सिंह को भरत पांड्या के यहाँ ज्यादा तवज्जो मिलती देख, भरत पांड्या के दूसरे समर्थक लेकिन नाराज हो गए - और यह कहते हुए भरत पांड्या के समर्थन से पीछे हट गए कि अब जो करेंगे, गुरजीत सिंह ही करेंगे ।
जोन 4 के नॉर्दर्न हिस्से के डिस्ट्रिक्ट्स में गुरजीत सिंह की अति-सक्रियता के कारण भरत पांड्या के संभावित समर्थकों में फैली नाराजगी ने भरत पांड्या की उम्मीदवारी को तगड़ा झटका दिया । गुरजीत सिंह के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3070 तक में भरत पांड्या ने अपना काफी समर्थन खो दिया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3070 में भरत पांड्या के लिए अच्छा समर्थन था - कुछ खेमेबाजी के समीकरणों के चलते और कुछ डिस्ट्रिक्ट के विभिन्न आयोजनों में भरत पांड्या के आने के कारण । डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में जो विभिन्न खेमे हैं, उनके नेताओं के साथ अलग-अलग कारणों से भरत पांड्या के संबंध बने और रहे - लेकिन जब भरत पांड्या को गुरजीत सिंह पर ज्यादा निर्भर देखा गया, तो उनके दूसरे समर्थक गुरजीत सिंह के साथ विरोध के चलते भरत पांड्या से दूर हो गए । इसीलिए भरत पांड्या के समर्थक बड़े नेताओं ने गुरजीत सिंह से दूरी भी बनाई और गुरजीत सिंह को लो-प्रोफाइल रहने को भी कहा गया । डिस्ट्रिक्ट 3070 में हाल-फिलहाल के वर्षों में गुरजीत सिंह की राजनीति चल तो रही है, लेकिन उनका ज्यादा असर अमृतसर के क्लब्स पर ही देखने को मिलता है । गुरजीत सिंह ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में जालंधर और लुधियाना के गवर्नर्स को जिस तरह अलग-थलग किया हुआ है, उसके कारण जालंधर और लुधियाना में गुरजीत सिंह का ज्यादा प्रभाव नहीं है । ऐसे में, भरत पांड्या को मिल सकने वाला समर्थन अमृतसर तक ही सिमट गया और बाकी क्षेत्रों में अशोक गुप्ता के लिए अच्छा मौका बना ।
गुरजीत सिंह के समर्थन का उल्टा असर होता देख - और डिस्ट्रिक्ट 3070 में भरत पांड्या के समर्थन-आधार को अशोक गुप्ता की तरफ जाता देख कर भरत पांड्या के रणनीतिकारों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट बरजेश सिंघल पर दबाव बनाया और उन्हें भरत पांड्या के लिए वोट जुटाने के काम पर लगाया है । बरजेश सिंघल का अभी लोगों के बीच ऐसा कोई असर तो है नहीं कि उनके कहने से लोग भरत पांड्या को वोट देने को तैयार हो जाएँ - इसलिए बरजेश सिंघल ने असिस्टेंट गवर्नर्स के पदों की सौदेबाजी के जरिए वोट खरीदने की योजना बनाई । डिस्ट्रिक्ट के लोगों से ही आरोप सुने गए हैं कि बरजेश सिंघल ने छोटे शहरों व क्षेत्रों के क्लब्स के वोट जुटाने के लिए क्लब्स के प्रमुख लोगों को असिस्टेंट गवर्नर्स व अन्य प्रमुख पदों का ऑफर दिया है, और उनसे क्लब के पासवर्ड माँग रहे हैं । इस तरह बरजेश सिंघल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव की व्यवस्था को ही हाईजैक करने की कोशिश कर रहे हैं । बरजेश सिंघल की इस हरकत पर तीखी प्रतिक्रिया सुनने को मिली है और इसकी शिकायत रोटरी इंटरनेशनल में भी किए जाने की चर्चा सुनी गई है । बरजेश सिंघल के नजदीकियों व शुभचिंतकों की तरफ से यह सुनने को भी मिला है कि बरजेश सिंघल को अभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभालना है, और ऐसी स्थिति में उन्हें अपनी टीम के पदों की सौदेबाजी से बचना चाहिए - अन्यथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियाँ निभा सकना उनके लिए मुश्किल होगा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की कुर्सी पर बैठने से पहले ही भारत पांड्या को वोट दिलवाने के चक्कर में बरजेश सिंघल डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ रोटरी इंटरनेशनल में भी अपने लिए जो विरोधी माहौल बना रहे हैं, उसे उनके नजदीकी और शुभचिंतक भी कोई शुभ लक्षण के रूप में नहीं देख रहे हैं ।

Saturday, December 23, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता के मुकाबले भरत पांड्या की स्थिति को कमजोर पाकर अशोक महाजन चुनावी मैदान में खुद उतरे और वोटिंग शिड्यूल में हुई घपलेबाजी का समर्थन करने के संकेत देने लगे

मुंबई । रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जोन 4 में कुछेक डिस्ट्रिक्ट्स में घोषित शिड्यूल से पहले वोटिंग लाइन खुल जाने से चुनावी व्यवस्था शक और आरोपों के घेरे में आ गई है । बीकानेर में आयोजित हुई रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3053 की कॉन्फ्रेंस में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए वोटिंग खुलने की और कई क्लब्स के वोट पड़ जाने की सूचना मिलने पर भरत पांड्या और उनके साथियों की तरफ से जिस तरह की खुशी देखने/सुनने को मिली, उससे लगा कि उन्हें ऐसा कुछ होने का भरोसा था और वह बस 'शुभसूचना' मिलने का इंतजार ही कर रहे थे । कुछेक डिस्ट्रिक्ट्स में 22 दिसंबर से वोटिंग लाइन खुलने को लेकर बात तो कही/सुनी जा रही थी, लेकिन उसे कन्फ्यूजन कहते/बताते हुए अनदेखा/अनसुना कर दिया गया था । दरअसल रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से प्रेसीडेंट्स को वोटिंग के संदर्भ में जो शिड्यूल मिला था, उसमें 22 दिसंबर से पासवर्ड मिलने और 30 दिसंबर से वोटिंग लाइन खुलने की बात कही गई थी । इसलिए मान लिया गया था कि कुछेक लोग गलतफहमी में 22 दिसंबर से ही वोटिंग लाइन खुलने की बात कर रहे हैं । पर अब जब कुछेक डिस्ट्रिक्ट्स में 22 दिसंबर को ही वोटिंग लाइन खुलने तथा वोट पड़ जाने की बात सामने आई है, तो लग रहा है कि शिड्यूल में गड़बड़ी करने की पहले से ही तैयारी थी । मजे की बात यह है कि वोटिंग शिड्यूल में हुई इस गड़बड़ी पर अशोक गुप्ता के समर्थकों की तरफ से तो आपत्ति व शिकायत हुई है, लेकिन भरत पांड्या की तरफ से कोई आपत्ति व शिकायत नहीं हुई है । भरत पांड्या की उम्मीदवारी के एक बड़े समर्थक पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर अशोक महाजन की तरफ से तो बल्कि यहाँ तक कहा/सुना गया है कि वोटिंग लाइन 30 की बजाए यदि 22 से खुल गई हैं, तो इसमें आपत्ति व शिकायत करने की भला क्या बात है ? इससे यह तो जाहिर हो ही रहा है कि वोटिंग शिड्यूल में गड़बड़ी सोची समझी योजना के साथ हुई और की गई है तथा इसके पीछे भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेता ही हैं ।
अशोक महाजन ने अभी हाल ही में पुणे में आयोजित हुए डिस्ट्रिक्ट 3131 के फाउंडेशन सेमीनार में शामिल होने के नाम पर जिस तरह की सक्रियता दिखाई और कोल्हापुर में डिस्ट्रिक्ट 3170 के पूर्व गवर्नर मोहन मुल्हेरकर के घर डिनर के लिए जाते हुए डिस्ट्रिक्ट 3131 के पूर्व गवर्नर दीपक शिकारपुर को भी अपने साथ लेते गए - तो लोगों की निगाह में मोहन मुल्हेरकर के घर की वह रात सिर्फ डिनर के लिए ही नहीं थी और उस रात वहाँ सिर्फ डिनर ही नहीं खाया गया, बल्कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव की राजनीति के लिए भी तिकड़में प्लान की गईं थीं । अशोक महाजन को पिछले कुछ दिनों में जोन 4 के वेस्टर्न हिस्से में पड़ने वाले डिस्ट्रिक्ट्स में तो सशरीर ही खासा सक्रिय देखा/पाया गया, और नॉर्दर्न हिस्से के डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों को उनके फोन खूब मिले हैं । कुछेक लोगों ने बताया है कि अशोक महाजन ने रोटरी कैरियर का वास्ता देकर उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अपना पक्ष तय करने का सुझाव दिया, तो कुछेक लोगों ने शिकायती स्वर में बताया कि अशोक महाजन ने उन्हें अशोक गुप्ता के समर्थकों व नजदीकियों के साथ रहने के लिए झिड़का । अशोक महाजन की बातों से लोगों को लगा कि उन्हें जैसे दूसरों की गतिविधियों की पूरी पूरी जानकारी है कि कौन किससे कब और कहाँ मिला है, और या मिलने का कार्यक्रम तय हुआ है । अशोक महाजन की सक्रियता देख/सुन कर लोगों को लगा है कि जैसे भरत पांड्या के चुनाव की कमान अब उन्होंने ही पूरी तरह संभाल ली है - और इस बात की परवाह करना छोड़ दिया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में खुली पक्षधरता दिखाने के लिए रोटरी में उनकी कितनी बदनामी होगी । अशोक महाजन के नजदीकियों का कहना है कि अशोक महाजन अभी तक तो पर्दे के पीछे रह कर भरत पांड्या की उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए काम कर रहे थे, लेकिन अभी जब उन्होंने भरत पांड्या की उम्मीदवारी की स्थिति को कमजोर पाया/देखा, तो उन्हें पर्दा हटा कर सामने आने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।
भरत पांड्या की उम्मीदवारी के रणनीतिकारों ने जोन 4 के डिस्ट्रिक्ट्स में अपने समर्थक तो खूब बनाए/तैयार किए थे, लेकिन देखा/पाया गया कि उन समर्थकों ने किया कुछ नहीं । भरत पांड्या और उनके साथियों को विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के जिन पूर्व गवर्नर्स से समर्थन और सहयोग मिलने की उम्मीद थी, उन्हें मौका आने पर जब चुप होते और पीछे हटते हुए देखा/पाया गया - तब भरत पांड्या और उनके साथियों को अपनी नाव पूरी तरह डूबती हुई लगी । अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों की सक्रियता ने विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में जो हवा बनाई, उसके चलते भरत पांड्या की उम्मीदवारी के लिए संकट और बढ़ा । यह नजारा देख अशोक महाजन को खुद मैदान में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में भरत पांड्या को चुनाव जितवाना अशोक महाजन को अपनी राजनीति के लिए बहुत ही जरूरी लग रहा है । दरअसल हाल के वर्षों में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की अशोक महाजन की कोशिशें जिस तरह फेल हुई हैं, उससे उनका राजनीतिक आभामंडल कमजोर हुआ है । उनके ही डिस्ट्रिक्ट के गुलाम वहनवती के रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी बनने से अशोक महाजन को दोहरी चोट पड़ी है । ट्रस्टी बनने के बाद से गुलाम वहनवती का कद अपने डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भी जिस तरह से बढ़ा है, उसे देखते/पहचानते हुए अशोक महाजन को अपने कद की चिंता करने के लिए मजबूर होना पड़ा है । गुलाम वहनवती के बढ़े कद के सामने अपने कद को बचाने के लिए अशोक महाजन को भरत पांड्या को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनवाना/चुनवाना जरूरी लग रहा है । मजे की बात यह है कि अशोक महाजन को यह भी लग रहा है कि उनका कद घटाने के लिए ही गुलाम वहनवती ने भरत पांड्या की उम्मीदवारी का विरोध किया हुआ है । भरत पांड्या की उम्मीदवारी अशोक महाजन और गुलाम वहनवती के बीच की होड़ में जिस तरह से फँस गई है, उससे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी को और बढ़त मिली है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के घोषित शिड्यूल से पहले वोटिंग लाइन खुलने के पीछे अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी की इसी बढ़त को रोकने की - भरत पांड्या समर्थकों की चाल को देखा/पहचाना जा रहा है । भरत पांड्या के समर्थकों को इस तरह की चालबाजी पर उतरता देख इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उनकी हालत पतली होने के संकेत ही पुख्ता हुए हैं ।

Friday, December 22, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा और शरत जैन की लड़ाई के चलते मुसीबत में फँसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल संगी-साथियों के किनारा कर लेने और या मजे लेने के कारण मुसीबत से निपटने के मामले में अकेले भी पड़े

नोएडा । मुकेश अरनेजा, जेके गौड़, दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता आदि की दोस्ती नोएडा रोटरी ब्लड बैंक के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतीश सिंघल की मुसीबतों को अंततः बढ़ाने वाली साबित हुई है क्या ? मजे की बात यह है कि सतीश सिंघल के विरोधियों का ही नहीं, उनके साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का भी मानना कहना है कि सतीश सिंघल की मौजूदा मुसीबत के लिए अलग-अलग कारणों से उनके यह दोस्त ही जिम्मेदार हैं । लोगों का कहना है कि सतीश सिंघल पर जिस तरह के आरोप हैं, जेके गौड़ पर रोटरी वरदान ब्लड बैंक के मामले में उसकी तुलना में कहीं ज्यादा गंभीर आरोप थे - लेकिन जेके गौड़ को वैसी मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ा, जैसी मुसीबत में सतीश सिंघल फँसे हैं । कुछ लोगों का यह भी मानना और कहना है कि अपने आप को मुसीबत में घिरता देख जेके गौड़ ने जिस होशियारी से मामले को हैंडल किया, वैसी होशियारी सतीश सिंघल नहीं दिखा सके - और मुसीबत में घिर गए । एक दिलचस्प संयोग यह है कि जेके गौड़ को बेईमानी के कीचड़ में लथेड़ने की तैयारी मुकेश अरनेजा ने की थी, जिसमें उनके मददगार की भूमिका में सतीश सिंघल, दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता थे; और अब जब सतीश सिंघल नोएडा रोटरी ब्लड बैंक के मामले में आरोपों के घेरे में फँसे हैं - तो अलग अलग कारणों से मुकेश अरनेजा, जेके गौड़, दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता को जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है ।
सतीश सिंघल के खिलाफ सतीश सिंघल के क्लब के पदाधिकारियों और प्रमुख सदस्यों को 'चार्ज' करने के पीछे शरत जैन की तिकड़म को पहचाना गया है, जिन्होंने मुकेश अरनेजा से बदला लेने के लिए इसे रचा है । उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा ने शरत जैन के गवर्नर-काल के एकाउंट्स को लेकर पंगा डाला हुआ है, जिसके चलते शरत जैन के गवर्नर-काल के एकाउंट्स विवाद में पड़ गए हैं और वह अभी तक पास नहीं हो पा रहे हैं । इस कारण से शरत जैन बदनामी के घेरे में हैं । इस घेरे से निकलने के लिए शरत जैन ने सतीश सिंघल से मदद की उम्मीद की थी, उनकी तरफ से सतीश सिंघल को संदेश भिजवाया गया था कि आप भी तो गवर्नर हो, आपके गवर्नर-काल के एकाउंट्स को भी तो पास करवाने की जरूरत पड़ेगी । शरत जैन की तरफ से दिए जा रहे इस संदेश में अप्रत्यक्ष रूप से धमकी वाला भाव रहा कि इस वर्ष एकाउंट्स पास होने में यदि हील-हुज्जत हुई, तो अगले रोटरी वर्ष में फिर 'देख लेना' । उल्लेखनीय है कि अगले रोटरी वर्ष में शरत जैन डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद पर होंगे । शरत जैन की तरफ से मिले इस संदेश की सतीश सिंघल ने शायद यह सोच कर कोई परवाह नहीं की कि वह भला 'कहाँ' पकड़े जायेंगे और उन्हें भला कौन पकड़ सकेगा ? सतीश सिंघल को 'देख लेने' के लिए लेकिन शरत जैन को अगले वर्ष तक इंतजार करने की जरूरत नहीं पड़ी - क्योंकि सतीश सिंघल की बदकिस्मती से, सतीश सिंघल जिस नोएडा रोटरी ब्लड बैंक को अपना अजेय दुर्ग समझे बैठे थे, उसकी दीवारों में हलचल हो गई और उन्हें उस दुर्ग से बाहर कर दिया गया । बात वहीं तक रह गई होती, तो ज्यादा बबाल न होता; ब्लड बैंक के नाम पर जिस तरह जेके गौड़ द्वारा किए गए कुकर्मों पर पर्दा पड़ गया, वैसे ही सतीश सिंघल का किया-धरा भी दब-छिप जाता - यदि नोएडा रोटरी ब्लड बैंक की लड़ाई की आग की आँच सतीश सिंघल के क्लब तक न आती । इस काम को करने के पीछे शरत जैन की तिकड़म को देखा/पहचाना जा रहा है ।
शरत जैन के नजदीकियों का कहना है कि अभी हाल ही में हुई काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में शरत जैन की तरफ से मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल को समझाने के प्रयास हुए थे कि वह उनके गवर्नर-काल के एकाउंट्स को पास करने/करवाने के मामले में अड़ंगा न डालें, अन्यथा उनके लिए भी आगे का रास्ता आसान नहीं होगा । शरत जैन बेचारे की छवि कुछ ऐसी 'सॉफ्ट' सी है कि कोई उनकी धमकी को गंभीरता से लेता ही नहीं है; मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल ने भी नहीं ली - नहीं ली, तो शरत जैन ने अपनी धमकी को चरितार्थ कर दिखाया । सतीश सिंघल के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि उनकी मुसीबत में मुकेश अरनेजा भी मजे ले रहे हैं । मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल खेमे के लोगों का ही कहना/बताना है कि सतीश सिंघल को मुसीबत में फँसा/घिरा देख मुकेश अरनेजा ने इसलिए राहत महसूस की है कि अब डीआरएफसी के रूप में क्लब्स को ग्रांट्स अलॉट करने के मामले में वह खुली मनमानी और बेईमानी कर सकेंगे । उन्हें शिकायत रही कि इस मामले में सतीश सिंघल कुछ न कुछ अड़ंगा लगाए रखते हैं । मुकेश अरनेजा के लिए समस्या की बात यह रही कि डीआरएफसी के रूप में वह सतीश सिंघल के साथ वैसा रवैया भी नहीं दिखा पा रहे थे, जैसा उन्होंने शरत जैन के साथ दिखाया । ऐसे में, मुकेश अरनेजा के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनी हुई थी कि डीआरएफसी के रूप में मनमानी व अकेले ही लूटखसोट करने के लिए वह कैसे सतीश सिंघल को रास्ते से हटाएँ या किनारे करें ? इसलिए ही सतीश सिंघल का मुसीबत में फँसना मुकेश अरनेजा को वरदान की तरह लगा है । और यही कारण है कि मुसीबत के समय सतीश सिंघल के साथ खड़े होने और उनके बचाव के लिए प्रयास करने की बजाए, मुकेश अरनेजा मजे लेते देखे/सुने जा रहे हैं ।
जेके गौड़ तो मजा लेने के 'मोड' से आगे की दशा में हैं - सतीश सिंघल की मुसीबत में उन्हें जैसे अपना बदला मिल गया है । रोटरी वरदान ब्लड बैंक के मामले में जेके गौड़ जब मुकेश अरनेजा के हाथों फजीहत का शिकार बन रहे थे, तब सतीश सिंघल ने जो रवैया दिखाया हुआ था - उससे जेके गौड़ बुरी तरह आहत रहे हैं । दरअसल उस फजीहत के पीछे जेके गौड़ ने सतीश सिंघल को ही चिन्हित किया हुआ था । उल्लेखनीय है कि रोटरी वरदान ब्लड बैंक को लगाने/लगवाने के काम में जेके गौड़ ने शुरू में सतीश सिंघल की मदद ली हुई थी, लेकिन बाद में फिर उन्होंने सतीश सिंघल को अलग कर दिया । जेके गौड़ का कहना था कि इसी बात से चिढ़ कर सतीश सिंघल ने मुकेश अरनेजा को ऐसे तथ्य बताए, जिनकी आड़ में मुकेश अरनेजा ने उनके लिए परेशानियाँ खड़ी कीं तथा जो उनके लिए फजीहत के कारण बने । इसीलिए जेके गौड़ को लग रहा है कि सतीश सिंघल के साथ जो हो रहा है, उससे उनका बदला पूरा हो गया है । दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जितवाने के लिए की गई कार्रवाइयों से सतीश सिंघल ने जिन तमाम लोगों को अपना विरोधी बना लिया है, वह सभी सतीश सिंघल की मुसीबतों में चटखारे तो ले ही रहे हैं - उनकी मुसीबतों को भड़काने में भी लगे हुए हैं । सतीश सिंघल के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता भी उनकी मदद करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । दीपक गुप्ता तो कुछेक जगह यह कहते हुए भी सुने गए हैं कि सतीश सिंघल ने जो बोया है, वह तो उन्हें काटना ही पड़ेगा न । आलोक गुप्ता की समस्या दूसरी है : कुछेक लोगों का कहना है कि सतीश सिंघल की मुसीबत को बढ़ाने में जिस तरह से उनके विरोधी और साथी एक हो गए हैं, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट 3100 की तर्ज पर कहीं उनकी गवर्नरी खतरे में न पड़ जाए और उनके गवर्नर-वर्ष में हुआ चुनाव रद्द न हो जाए । इसलिए आलोक गुप्ता ने अपने आपको सतीश सिंघल के साथ और या उनके नजदीक 'दिखने' से बचना शुरू कर दिया है ।
पहले नोएडा रोटरी ब्लड बैंक में और फिर अपने ही क्लब में मुसीबतों के निशाने पर आए सतीश सिंघल के लिए चुनौती की बात यही है कि लगभग जिस तरह के आरोपों के बावजूद जेके गौड़ और शरत जैन बेदाग़ बने हुए हैं, वह भी कैसे अपने पर लगे दागों को मिटाएँ/छिपाएँ और अपनी इज्जत बचाएँ ?

Wednesday, December 20, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अपने एटीट्यूड के कारण मुकेश गोयल के साथियों की नाराजगी का शिकार बने राजेश गुप्ता की मुसीबतें अश्वनी काम्बोज की उम्मीद बनीं

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के अभियान को कमजोर पड़ता तथा विवादों में घिरता देख अश्वनी काम्बोज ने अपने लिए मौका ताड़ा है और वह चुनावी समर में एक बार फिर कूद पड़े हैं । उनके नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि इस वर्ष चुनाव लड़ने को लेकर अश्वनी काम्बोज गंभीर नहीं हैं, और उन्होंने तो बस चुनावी लड़ाई का 'पानी नापने' के उद्देश्य से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है । नजदीकियों के अनुसार, अश्वनी काम्बोज ने दरअसल अँधेरे में तीर चलाया है - उन्हें लगता है कि उनकी उम्मीदवारी आने से या तो राजेश गुप्ता मैदान छोड़ कर भाग लेंगे, और या राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेता अगले लायन वर्ष में उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने का आश्वासन देकर उनके साथ सौदेबाजी कर लेंगे । नजदीकियों के अनुसार, अश्वनी काम्बोज इस वर्ष किसी नेता/वेता के चक्कर में नहीं फँसेंगे; क्योंकि पिछले वर्ष ही उन्होंने जान/समझ लिया कि नेता लोग झूठे सब्ज़बाग दिखाते हुए लंबी-चौड़ी हाँकते हैं, वास्तव में न किसी का कोई प्रभाव है और न कोई कुछ कर सकता है - नेता लोग बातें बना कर सिर्फ ठगने के चक्कर में रहते हैं । दरअसल इसीलिए, अश्वनी काम्बोज ने इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी की बात से तौबा कर ली थी । बीच में हालाँकि उन्होंने उम्मीदवार होने के संकेत दिए थे, लेकिन उन्होंने पाया कि उनसे संकेत मिलते ही नेता लोग उन्हें 'नोंच खाने' की तैयारी करने लगे; उन्हें तरह तरह के खर्चे करने के लिए मजबूर करने लगे - लिहाजा वह उलटे पाँव लौट गए । वह तो, अभी हाल ही के दिनों में उन्होंने जब सुना कि मुकेश गोयल ने राजेश गुप्ता को उम्मीदवार के रूप में हरी झंडी देने का फैसला किया है और मुकेश गोयल खेमे में ही राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर विरोध का भाव है, तो अश्वनी काम्बोज को लगा कि चुनावी मैदान में उन्हें अपनी उम्मीदवारी का झंडा लगा तो देना ही चाहिए - काम नहीं बना तो झंडे को फिर लपेट कर रख लेंगे ।
राजेश गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर उत्सुकता तो दिखाई है, लेकिन साथ ही साथ उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उनके पास बहुत ही सीमित साधन हैं और उम्मीदवारी के नाम पर वह अनाप-शनाप पैसे नहीं खर्च करेंगे । राजेश गुप्ता ने इससे भी बड़ा झटका मुकेश गोयल खेमे को यह दिया कि उन्होंने मुकेश गोयल खेमे के दूसरे लोगों को कोई तवज्जो ही नहीं दी, जिससे मुकेश गोयल के नजदीकी बुरी तरह भड़क गए - और उन्होंने मुकेश गोयल से साफ कह दिया कि इस तरह के रवैये के चलते तो उनके लिए राजेश गुप्ता का समर्थन करना मुश्किल ही क्या, असंभव ही होगा । मुकेश गोयल ने हड़काया/समझाया तो राजेश गुप्ता कुछेक नेताओं से मिले/जुले तो, लेकिन उनके एटीट्यूड में उम्मीदवार 'वाला' भाव नहीं नजर आया । मुकेश गोयल के साथियों की शिकायत यह है कि राजेश गुप्ता ने तो अभी से अपने आप को गवर्नर मानना शुरू कर दिया है और उनका व्यवहार 'गवर्नर वाला' है । राजेश गुप्ता का यह व्यवहार मुकेश गोयल के साथियों के बीच इसलिए भी चिढ़ पैदा कर रहा है, क्योंकि पिछले वर्ष तक राजेश गुप्ता विरोधी खेमे के साथ थे और मुकेश गोयल खेमे के लिए मुसीबतें बढ़ाने के काम कर रहे थे । पिछले से पिछले लायन वर्ष में तो राजेश गुप्ता की पत्नी रेखा गुप्ता, विनय मित्तल के खिलाफ उम्मीदवार बनीं थी और उस चुनाव में बहुत ही बदमजगी पैदा हुई थी । पिछले लायन वर्ष में भी रेखा गुप्ता काफी समय तक उम्मीदवार होने/बनने की तैयारी में थीं और मुकेश गोयल खेमे के खिलाफ विरोधी खेमे के नेताओं की बदतमीजियों के लिए खाद-पानी का काम कर रहीं थीं । उन घटनाओं और प्रसंगों की याद चूँकि अभी भूली नहीं गई है, इसलिए मुकेश गोयल खेमे में राजेश गुप्ता अभी पूरी तरह स्वीकार्य नहीं हो सके हैं । राजनीति में यूँ तो दोस्ती और दुश्मनी ज्यादा लंबे समय  चलती है, लेकिन फिर भी दुश्मन को दोस्त बनने केलिए कुछ अतिरिक्त प्रयास तो करने ही होते हैं । राजेश गुप्ता लेकिन अतिरिक्त तो छोड़िये, उचित और पर्याप्त प्रयास करते हुए भी नजर नहीं आ रहे हैं । इसीलिए देखने में आ रहा है कि राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने के जरिए मुकेश गोयल ने भले ही अपना लिया हो, मुकेश गोयल के साथियों ने लेकिन उन्हें अभी नहीं अपनाया है ।
राजेश गुप्ता की इस स्थिति ने उम्मीदवारी की बात को तिलांजली दे चुके अश्वनी काम्बोज में फिर से हवा भरने का काम किया और उन्हें उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया । उन्हें लगा है कि एक बात तो यह है कि राजेश गुप्ता में चुनाव लड़ने का 'दम' नहीं है, इसलिए वह यदि अपनी तरफ से थोड़ी सी सक्रियता भी दिखायेंगे - तो हो सकता है कि राजेश गुप्ता मैदान ही छोड़ जाएँ; दूसरी बात यह कि राजेश गुप्ता यदि मैदान में डटे भी रहते हैं तो मुकेश गोयल खेमे का पूरा समर्थन तो राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी को नहीं ही मिलेगा - और तब मुकेश गोयल उनके साथ समझौता करने के लिए मजबूर होंगे और अगले लायन वर्ष में उनकी उम्मीदवारी को समर्थन देने का वायदा कर लेंगे । अश्वनी काम्बोज को दोनों ही स्थितियाँ अपने अनुकूल दिख रही हैं । एक बात तो अश्वनी काम्बोज ने समझ ली है कि मुकेश गोयल खेमे के विरोध के बीच तो उनके लिए चुनाव जीतना मुश्किल ही होगा; राजेश गुप्ता के एटीट्यूड के चलते मुकेश गोयल इस वर्ष जैसे और जितने दबाव में हैं - वैसी स्थिति आगे कभी बनेगी या नहीं, यह भी कहना मुश्किल है । इसलिए इस वर्ष 'दिख' रहे मौके का फायदा उठाने के लिए अश्वनी काम्बोज ने अपनी उम्मीदवारी का झंडा लहरा दिया है । उनके नजदीकियों का हालाँकि यह भी कहना है कि मौके की नजाकत को भांप/समझ कर राजेश गुप्ता ने यदि अपने एटीट्यूड में सुधार कर लिया और मुकेश गोयल के साथियों की नाराजगी को दूर करने -साथ अपनी उम्मीदवारी में यदि दम 'दिखा' दिया, तो फिर अश्वनी काम्बोज को पुनः 'भागने' में भी देर नहीं लगेगी । एक बात तय मानी जा रही है कि अश्वनी काम्बोज पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष 'चोट्टे' नेताओं का मोहरा तो नहीं ही बनेंगे ।

Tuesday, December 19, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में जेपी सिंह के क्लब के साथ हरियाणा के तीन क्लब्स को भी संयुक्त अधिष्ठापन समारोह में शामिल देख मदन बत्रा की उम्मीदवारी का अभियान विवाद, फजीहत और मुसीबत में फँसा

नई दिल्ली । मदन बत्रा की चेयरमैनशिप में दिल्ली में 23 दिसंबर को आयोजित हो रहा बीस क्लब्स का संयुक्त अधिष्ठापन समारोह - होने से पहले ही गंभीर विवाद में फँस कर आयोजकों के लिए फजीहत का सबब बन गया है । हो रही फजीहत को देखते हुए आयोजकों को भी अब लग रहा है कि संयुक्त अधिष्ठापन कार्यक्रम में पंचकुला, अंबाला और जगाधरी के क्लब्स शामिल करना उनके लिए गलत और मुसीबतभरा साबित हुआ है । उल्लेखनीय है कि अधिष्ठापित हो रहे बीस क्लब्स में 16 क्लब्स दिल्ली के हैं, और बाकी चार क्लब्स हरियाणा के अलग अलग शहरों के हैं । यह देख/जान कर ही लोगों को कहने का मौका मिला है कि इससे लग रहा है कि मदन बत्रा की उम्मीदवारी को हरियाणा में कुल चार क्लब्स का - और डिस्ट्रिक्ट के कुल बीस क्लब्स का ही समर्थन प्राप्त है । दरअसल संयुक्त रूप से क्लब्स के अधिष्ठापन करने के पीछे कारण यह होता/रहता है कि एक ही शहर और या क्षेत्र के क्लब अकेले अच्छे और प्रभावी तरीके से कार्यक्रम करने में सक्षम नहीं होते हैं, तो आपस में मिल कर कार्यक्रम कर लेने के लिए प्रेरित होते हैं । इसलिए संयुक्त रूप से होने वाले अधिष्ठापन में प्रायः एक ही शहर और या क्षेत्र के क्लब्स ही दिखते हैं । पिछले दिनों ही रमन गुप्ता की चेयरमैनशिप में अंबाला में जो संयुक्त अधिष्ठापन समारोह हुआ था, उसमें अंबाला के ही ग्यारह क्लब्स शामिल थे । वास्तव में इसीलिए दिल्ली में मदन बत्रा की चेयरमैनशिप में आयोजित हो रहे संयुक्त अधिष्ठापन समारोह में पंचकुला, अंबाला और जगाधरी के क्लब्स को शामिल किए जाने पर आश्चर्य किया जा रहा है । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि पंचकुला, अंबाला और जगाधरी के क्लब्स के अधिष्ठापन समारोह दिल्ली में करने की भला क्या तुक है ?
यह बात पहेली और सवाल इसलिए भी बना है, क्योंकि अगले ही दिन उन रमिंदर बावा की चेयरमैनशिप में सोलन में लायंस क्लब सोलन वैली का अधिष्ठापन कार्यक्रम हो रहा है - जो मदन बत्रा की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले जेपी सिंह खेमे के ही समझे जाते हैं । पंचकुला, अंबाला और जगाधरी के क्लब्स के अधिष्ठापन यदि सोलन वैली के साथ हो जाते तो फिर सवाल नहीं उठते - तब मान लिया और बता दिया जाता कि इन चार क्लब्स के लोगों के बीच अच्छी ट्यूनिंग है और उसी के कारण यह मिलजुल कर अपना अधिष्ठापन कर रहे हैं । लेकिन पंचकुला, अंबाला और जगाधरी के क्लब्स के अधिष्ठापन दिल्ली में होने के कारण लोगों के बीच सीधा संदेश यह गया है कि पंचकुला, अंबाला और जगाधरी में यह क्लब्स अकेले पड़ गए हैं, और इनके साथ हिमाचल के क्लब ने भी जुड़ना स्वीकार नहीं किया है - और इसलिए इन्हें मजबूरी में दिल्ली के क्लब्स के साथ अधिष्ठापित होना पड़ रहा है । ऐसा बेमेल और खिचड़ी सा अधिष्ठापन यूँ ही सामान्य तरीके से हो रहा होता, तो कोई बतंगड़ नहीं बनता; लेकिन यह संयुक्त अधिष्ठापन समारोह चूँकि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मदन बत्रा की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से हो रहा है - इसलिए इस अधिष्ठापन समारोह के बेमेल और खिचड़ी से होने को लेकर राजनीतिक बबाल मच गया है, जिसमें मदन बत्रा की उम्मीदवारी और उनके समर्थक खेमे के नेता निशाने पर और दबाव में आ गए हैं ।
23 दिसंबर को दिल्ली में हो रहे संयुक्त अधिष्ठापन समारोह में लायंस क्लब न्यू दिल्ली साऊथ के शामिल होने को लेकर भी चटखारेभरी चर्चाओं का शोर है । दरअसल न्यू दिल्ली साऊथ डिस्ट्रिक्ट का एक प्रतिष्ठित क्लब है, जिसने डिस्ट्रिक्ट को कई गवर्नर दिए हैं । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरचरण सिंह भोला इसी क्लब के सदस्य हैं, और इसी क्लब के जेपी सिंह इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडॉर्सी हैं । ऐसे में लोगों के बीच यही सवाल है कि इस क्लब की ऐसी स्थिति क्यों है कि इसे अपना अधिष्ठापन दूसरे उन्नीस क्लब्स के साथ मिलकर और उम्मीदवार के पैसे पर करना पड़ रहा है ? लोगों का मानना और कहना है कि इस क्लब को तो डिस्ट्रिक्ट के दूसरे क्लब्स के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए तथा एक मिसाल बनना चाहिए और - भव्य न सही - एक व्यवस्थित व प्रभावी तरीके से अपने नए पदाधिकारियों को अधिष्ठापित करना चाहिए । अपने अकेले के अधिष्ठापन समारोह में वह मदन बत्रा को खास तवज्जो देते और तब मदन बत्रा की उम्मीदवारी और भी ज्यादा प्रभावी तरीके से प्रमोट होती ! लेकिन न्यू दिल्ली साऊथ का भी अधिष्ठापन मदन बत्रा के पैसों पर हो रहे संयुक्त अधिष्ठापन समारोह में होता देख - लोगों को कहने का मौका मिला है कि न्यू दिल्ली साऊथ जैसे प्रतिष्ठित क्लब का भी उद्देश्य और ध्यान जब उम्मीदवार बने मदन बत्रा को इस्तेमाल करने में लगा है, तब मदन बत्रा की उम्मीदवारी का अभियान विवाद, फजीहत और मुसीबत में फँसने से भला कैसे बचेगा ?

Monday, December 18, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की बोर्ड ऑफ स्टडीज कमेटी के चेयरमैन अतुल गुप्ता निकासा के साथ मिल कर स्टूडेंट कन्वेंशन करने की कोशिशों के चलते नितिन कँवर द्वारा की गई बदतमीजी की बात को भूल कर उन्हें 'पटाने' में लगे

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की बोर्ड ऑफ स्टडीज कमेटी के चेयरमैन अतुल गुप्ता को आजकल नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में निकासा चेयरमैन नितिन कँवर की खुशामद में जिस तरह से जुटना पड़ रहा है, उसने नॉर्दर्न रीजन के काउंसिल सदस्यों तथा आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स सदस्यों के बीच मजेदार नजारा प्रस्तुत किया हुआ है । नजारा मजेदार इसलिए बना है क्योंकि अभी कुछ ही दिन पहले नितिन कँवर ने अतुल गुप्ता के साथ जमकर बदतमीजी की थी, जिसके बाद से अतुल गुप्ता उनसे बुरी तरह खफा चल रहे थे - किंतु अब अचानक से अतुल गुप्ता ने पलटी मारी है और वह नितिन कँवर की खुशामद में लगे दिख रहे हैं । नितिन कँवर स्वाभाविक रूप से इस स्थिति को एंज्यॉय कर रहे हैं, और अपने साथियों के बीच अतुल गुप्ता के बदले व्यवहार और रवैये को लेकर चटखारे ले रहे हैं । नितिन कँवर द्वारा की गई बदतमीजी को भूलने तथा उनके प्रति अपना रवैया बदलने के लिए अतुल गुप्ता को मजबूर करने का कारण बना है - स्टूडेंट कन्वेंशन का स्थगित होना । उल्लेखनीय है कि स्टूडेंट कन्वेंशन के नाम पर निकासा चेयरमैन के रूप में नितिन कँवर और नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ द्वारा अनाप-शनाप खर्चे का हिसाब बना लेने के कारण रीजनल काउंसिल में स्टूडेंट कन्वेंशन का बजट पास नहीं हो सका और कन्वेंशन होने का मामला लटक गया । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के वाइस चेयरमैन विवेक खुराना ने इस मुद्दे पर विरोधी खेमे के सदस्यों का समर्थन करके चेयरमैन राकेश मक्कड़ और उनके गिरोह के सदस्यों को जो जोरदार पटखनी दी, उसकी 'चोट' बोर्ड ऑफ स्टडीज के चेयरमैन अतुल गुप्ता तक पर पड़ी है ।
मजे की बात यह रही कि पहले तो बोर्ड ऑफ स्टडीज के चेयरमैन के रूप में अतुल गुप्ता ने भी अनाप-शनाप बजट को लेकर राकेश मक्कड़ व नितिन कँवर की गर्दन दबोचने में विवेक खुराना व विरोधी खेमे के सदस्यों की मदद की थी; किंतु अब अतुल गुप्ता को राकेश मक्कड़ व नितिन कँवर की खुशामद में लगना पड़ रहा है । हद की बात यह हुई कि इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में छात्रों के लिए हुए टेलैंट हंट कार्यक्रम में अतुल गुप्ता ने राकेश मक्कड़ व नितिन कँवर तथा उनके साथियों को ही विश्वास में लिया, तथा विवेक खुराना और विरोधी खेमे के सदस्यों को पूछा तक नहीं । नितिन कँवर ने ही लोगों को बताया है कि अतुल गुप्ता स्टूडेंट कन्वेंशन करने के लिए जुगाड़ बैठाने हेतु उनकी खुशामद में लगे हुए हैं । दरअसल इंस्टीट्यूट के पाँचों रीजंस में नॉर्दर्न रीजन ही अकेला रीजन बचा रह गया है, जहाँ स्टूडेंट कन्वेंशन नहीं हो सकी है । इंस्टीट्यूट में अतुल गुप्ता इसी नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करते हैं । स्टूडेंट कन्वेंशन बोर्ड ऑफ स्टडीज का एक महत्त्वपूर्ण आयोजन होता है । ऐसे में, अतुल गुप्ता के लिए शर्मनाक स्थिति यह बनी है कि बोर्ड ऑफ स्टडीज के चेयरमैन होते हुए उनके अपने ही रीजन में स्टूडेंट कन्वेंशन नहीं हो पा रही है । नितिन कँवर के अनुसार, इस शर्मिंदगी से बचने के लिए अतुल गुप्ता इस जुगाड़ में हैं कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल को किनारे रख कर - बोर्ड ऑफ स्टडीज व निकासा मिल कर स्टूडेंट कन्वेंशन का आयोजन कर लें । नितिन कँवर के अनुसार, अतुल गुप्ता ने तो स्टूडेंट कन्वेंशन के लिए 19/20 जनवरी की तारीख भी तय कर ली है । इसी चक्कर में, इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य अतुल गुप्ता पिछले दिनों नितिन कँवर द्वारा की गई बदतमीजी की बात को भूल कर आजकल उन्हीं को 'पटाने' में लगे हुए हैं ।
अतुल गुप्ता के स्टूडेंट कन्वेंशन के लिए जुगाड़ लगाने की कोशिशों ने काउंसिल सदस्यों के बीच एक नए विवाद को भी जन्म दे दिया है । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ और उनके संगी-साथियों ने जब रीजनल काउंसिल की संस्तुति के बिना स्टूडेंट कन्वेंशन करने की तैयारी की थी, तब इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य संजीव चौधरी ने बड़ा बबाल मचाया था और तर्क दिया था कि रीजनल काउंसिल की संस्तुति के बिना स्टूडेंट कन्वेंशन करना इंस्टीट्यूट के नियमों का मजाक बनाना होगा । संजीव चौधरी द्वारा मचाए गए बबाल के कारण इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और तब राकेश मक्कड़ व नितिन कँवर को अपनी मनमानी छोड़कर रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसमें उनके द्वारा तय किये गए बजट के अनुसार स्टूडेंट कन्वेंशन करने का प्रस्ताव पास नहीं हो सका - और स्टूडेंट कन्वेंशन की आड़ में लूट/खसोट करने की राकेश मक्कड़ व नितिन कँवर की योजना फेल हो गई । ऐसे में, सवाल यह खड़ा हुआ है कि रीजनल काउंसिल की संस्तुति के बिना यदि पहले स्टूडेंट कन्वेंशन नहीं हो सकती थी - तो अब अतुल गुप्ता के प्रयासों से वह कैसे हो सकती है ? संजीव चौधरी की एक और आपत्ति थी और वह यह कि खुद बोर्ड ऑफ स्टडीज के नियमों के अनुसार, स्टूडेंट कन्वेंशन के लिए छात्रों के बीच प्रचार व अन्य तैयारी के लिए कम-से-कम तीन महीने का समय होना चाहिए । तो क्या, आनन/फानन में किसी भी तरह स्टूडेंट कन्वेंशन करने पर आमादा अतुल गुप्ता अपनी की कमेटी के नियम को ठेंगा दिखा देंगे - जिसके पालन के लिए सेंट्रल काउंसिल के ही सदस्य संजीव चौधरी ने पिछले दिनों खासा जोर दिया था ? स्टूडेंट कन्वेंशन करने के जुगाड़ में लगे अतुल गुप्ता के प्रयासों ने इस तरह नॉर्दर्न रीजन के काउंसिल सदस्यों तथा आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स सदस्यों के बीच दिलचस्प चर्चाओं का माहौल बनाया हुआ है ।

Saturday, December 16, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शशि शर्मा के प्री-पेट्स कार्यक्रम को इस्तेमाल करने की भरत पांड्या और उनके समर्थकों की योजना गुलाम वहनवती व विजय जालान से मिले धोखे तथा अशोक गुप्ता की निगरानी-व्यवस्था के चलते फेल हुई

मुंबई/जयपुर । भरत पांड्या और उनके समर्थक नेताओं ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में राजनीतिक फायदा उठाने के उद्देश्य से अपने डिस्ट्रिक्ट की प्री-पेट्स जयपुर में करवा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शशि शर्मा के लिए तो दोहरी मुसीबत खड़ी कर ही दी - साथ ही वह राजनीतिक फायदा भी नहीं उठा सके, जिसके लिए उन्होंने यह तिकड़म की थी । भरत पांड्या और उनके समर्थकों ने अपनी तिकड़म के असफल हो जाने के लिए गुलाम वहनवती और विजय जालान को जिम्मेदार ठहराया है । उधर प्री-पेट्स जयपुर में करने को लेकर शशि शर्मा से एक तरफ तो प्रेसीडेंट्स इलेक्ट्स तथा प्री-पेट्स के अन्य आमंत्रित जयपुर की सर्दी में फँसा देने के लिए नाराज हैं, और दूसरी तरफ रोटरी इंटरनेशनल के बड़े नेता प्री-पेट्स जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम को राजनीति का जरिया बना देने को लेकर खिलाफ हुए हैं । प्री-पेट्स में शामिल होने के लिए मुंबई से जयपुर पहुँचे डिस्ट्रिक्ट 3141 के रोटेरियंस का जयपुर की सर्दी ने जिस तरह 'स्वागत' किया, उससे कई रोटेरियंस के जयपुर घूमने के प्रोग्राम चौपट हो गए - और तब उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शशि शर्मा को जयपुर में प्री-पेट्स का आयोजन करने के लिए कोसा । लोगों के लिए यह समझना मुश्किल रहा कि जब सभी को यह पता है कि मध्य दिसंबर में जयपुर में कड़ाके की ठंड पड़ रही होती है, तब प्री-पेट्स का आयोजन यहाँ करने की क्या जरूरत थी ? लोगों का कहना है कि यदि किसी ठंडी जगह पर ही कार्यक्रम करना था तब फिर किसी पर्वतीय स्थान को चुनना चाहिए था ! उल्लेखनीय है कि पिछले वर्षों में डिस्ट्रिक्ट के प्री-पेट्स कार्यक्रम प्रायः महाराष्ट्र के दर्शनीय और या पर्वतीय शहरों में होते रहे हैं । पिछले रोटरी वर्ष में यह महाराष्ट्र के पर्वतीय शहर महाबालेश्वर में हुआ था । इसलिए आम रोटेरियंस के लिए जयपुर में प्री-पेट्स आयोजित करने का कारण समझना मुश्किल रहा । रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3141 के खास लोगों के लिए हालाँकि इसके पीछे की राजनीतिक चालबाजी पूरी तरह स्पष्ट थी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शशि शर्मा के प्री-पेट्स के आयोजन के जरिए दरअसल भरत पांड्या और उनके समर्थक नेताओं ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई के संदर्भ में प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार अशोक गुप्ता के गढ़ और घर पर धावा बोला है ।
भरत पांड्या और उनके समर्थक नेताओं की इस हरकत पर रोटरी इंटरनेशनल के बड़े नेताओं और जोन 4 के डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं के बीच तीखी प्रतिक्रिया हुई है । बड़े नेताओं ने हालाँकि सार्वजनिक रूप से कुछ कहा तो नहीं है, लेकिन कुछेक लोगों के साथ निजी बातचीत में इस बात पर नाराजगी दिखाई है कि भरत पांड्या और उनके समर्थक अशोक गुप्ता के कहीं के भी कार्यक्रमों में शामिल होने पर आपत्ति व शिकायत करते रहते हैं, लेकिन खुद कार्यक्रम करने के नाम पर अशोक गुप्ता के 'घर' में ही आ पहुँचे हैं । मजे की बात यह रही कि जयपुर में हो रहे अपने कार्यक्रम में सौजन्यतावश भी जयपुर में रह रहे किसी (पूर्व) गवर्नर्स को - एक अकेले अनिल अग्रवाल को छोड़ कर - आमंत्रित नहीं किया गया, जबकि ऐसा करना रोटरी में आम प्रथा है । अगले रोटरी वर्ष में शशि शर्मा के साथ गवर्नर होने वाले नीरज सोगानी तक को शशि शर्मा ने 'अपने' कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया । अनिल अग्रवाल को चूँकि रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 की राजनीति और व्यवस्था में अशोक गुप्ता के खिलाफ देखा/पहचाना जाता है, इसलिए उनसे फायदा उठाने की नीयत से उन्हें भरत पांड्या और उनके समर्थक नेताओं की तरफ से डिस्ट्रिक्ट 3141 के जयपुर में हो रहे प्री-पेट्स कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया और अनिल अग्रवाल कार्यक्रम में कुछ समय के लिए देखे भी गए - इस बात ने डिस्ट्रिक्ट 3141 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शशि शर्मा के प्री-पेट्स कार्यक्रम को जयपुर में करने के पीछे छिपे राजनीतिक एजेंडा को और स्पष्ट कर दिया ।
भरत पांड्या और उनके समर्थक नेताओं के लिए हालाँकि बदकिस्मती की बात यह रही कि स्पष्ट राजनीतिक एजेंडा रखने और उस पर अमल करने की तैयारी के बावजूद उनके हाथ कुछ लगा नहीं - और उन्हें खाली हाथ लौटने के लिए ही मजबूर होना पड़ रह है । भरत पांड्या और उनके समर्थकों ने इस असफलता का ठीकरा गुलाम वहनवती और विजय जालान के सिर यह कहते/बताते हुए फोड़ा है कि ऐन मौके पर इन दोनों के धोखा देने के कारण पूरी योजना फेल हो गई । भरत पांड्या और उनके समर्थकों को दरअसल यह देख कर तगड़ा झटका लगा कि ऐन मौके पर रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों की नाराजगी का वास्ता देकर गुलाम वहनवती और विजय जालान ने भरत पांड्या और उनके समर्थकों की राजनीति करने से बचने की ही कोशिश की । उल्लेखनीय है कि भरत पांड्या और उनके समर्थकों की कोशिश और तैयारी थी कि रोटरी में बड़े मुकाम पर पहुँचे इन पदाधिकारियों से वह जयपुर के कुछेक आम और खास रोटेरियंस को मिलवाएँ और जो उन्हें भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थन के लिए प्रेरित करें; लेकिन भरत पांड्या के नजदीकियों के अनुसार ही, इन दोनों ने यह कहते हुए इस खेल में शामिल होने से इंकार कर दिया कि रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत होने पर उनके लिए शर्मिंदगी की स्थिति बनेगी - इनका यह भी कहना रहा कि रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों ने जयपुर में हो रही प्री-पेट्स को अपनी निगरानी में लिया हुआ है और ऐसे में यहाँ कोई राजनीति करना अपने को मुसीबत में डालना हो सकता है । इसके अलावा, अशोक गुप्ता के समर्थकों ने भी भरत पांड्या और उनके समर्थकों की चालबाजी को फेल करने की पूरी तैयारी की हुई थी, और उनकी निगाह बराबर यह देखने पर थी कि जयपुर का कौन रोटेरियन भरत पांड्या और या उनके लोगों से मिलता है । इस कारण अनिल अग्रवाल के लिए भी कुछ कर पाना संभव नहीं हो सका और वह जयपुर में भरत पांड्या और उनके समर्थकों के मददगार की भूमिका नहीं निभा सके ।   
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार अशोक गुप्ता के गढ़ और घर - जयपुर में अपने डिस्ट्रिक्ट की प्री-पेट्स करने की योजना बनाने और योजना के क्रियान्वयन में फेल हो जाने के लिए भरत पांड्या और उनके समर्थकों की खासी किरकिरी हुई है । राजनीति करने और समझने वाले लोगों का कहना है कि वास्तव में यह योजना ही बेबकूफीभरी है और यह कुलमिलाकर भरत पांड्या और उनके समर्थकों की निराशा, हताशा और बौखलाहट को प्रकट करती है; तिस पर इसके बुरी तरह से फेल होने पर यह और साबित हो गया कि भरत पांड्या और उनके समर्थक कोई काम ढंग से कर ही नहीं सकते हैं । अशोक गुप्ता के समर्थकों और शुभचिंतकों ने अपने 'घर' पर हुए राजनीतिक हमले को जिस होशियारी के साथ फेल किया है, उसके बारे में सुन/जान कर जोन 4 के डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों और नेताओं ने महसूस किया और जाना है कि अशोक गुप्ता के पास/साथ काम करने वाले प्रतिबद्ध लोगों की अच्छी टीम है । भरत पांड्या और उनके समर्थकों की योजना ने जिस तरह उनके अपने लोगों के बीच आरोपों/प्रत्यारोपों के साथ कलह और नाराजगी पैदा कर दी है और उनके जयपुर से खाली हाथ लौटने की स्थितियाँ बना दी हैं - वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में भरत पांड्या की उम्मीदवारी के लिए एक बड़े झटके की बात है ।

Friday, December 15, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में रोटरी इंटरनेशनल के खिलाफ एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अंततः डीके शर्मा को रोटरी में ऐतिहासिक जीत मिली है और उनके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी तक पहुँचने का रास्ता साफ हुआ है

सिकंदराबाद । रोटरी इंटरनेशनल से लड़ी एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद डीके शर्मा के लिए वह रास्ता आखिरकार खुला, जिस पर चल कर वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी तक पहुँच पायेंगे । पौढ़ी-गढ़वाल की डिस्ट्रिक्ट व सेशन जज की अदालत के फैसले ने डिस्ट्रिक्ट 3100 के नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस को हटाने, डीके शर्मा को गवर्नर पद सौंपने तथा इस बात को रेखांकित करते हुए कि मौजूदा रोटरी वर्ष में अब चूँकि ज्यादा समय नहीं बचा रह गया है, इसलिए अगले रोटरी वर्ष के लिए भी उन्हें गवर्नर पद पर रहने का मौका देने की जो बातें कहीं हैं - वह रोटरी इंटरनेशनल के इतिहास में अनोखा अध्याय जोड़ती हैं । इस फैसले से अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हुआ चुनाव भी निरस्त हो जाता है और जिसके तहत डीके शर्मा के लिए दो रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर रहने का एक विलक्षण मौका बनता है । रोटरी इंटरनेशनल के इतिहास में दो रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहने का मौका इससे पहले शायद किसी को नहीं मिला है । इस अदालती फैसले ने डीके शर्मा के नजदीकियों और समर्थकों को ही नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के अन्य लोगों को भी राहत और खुशी पहुँचाई है - जो डिस्ट्रिक्ट को फिर से डिस्ट्रिक्ट बनते देखने का इंतजार कर रहे थे । अधिकतर लोगों का मानना और कहना रहा है कि डीके शर्मा को बिना कोई गुनाह किए ही रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से 'सजा' मिल रही है, इसलिए उनके साथ न्याय होना ही चाहिए । इसी भावना के चलते पौढ़ी-गढ़वाल की डिस्ट्रिक्ट व सेशन जज की अदालत में हुए फैसले का डिस्ट्रिक्ट में हर किसी ने स्वागत ही किया है और इसे डिस्ट्रिक्ट 3100 के लिए शुभ लक्षण के रूप में देखा/पहचाना है ।
रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से डीके शर्मा के साथ हो रहे 'अन्याय' को लेकर लोगों के बीच इसलिए भी उदासी और नाराजगी थी, क्योंकि हाल-फिलहाल के वर्षों में डीके शर्मा ही अकेले ऐसे चुने हुए गवर्नर हैं, जो बिना किसी विवाद और या शोर-शराबे के गवर्नर चुने गए । संजीव रस्तोगी के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जितनी शांति और आपसी भाईचारे की भावना के साथ संपन्न हुआ, वैसा उदाहरण डिस्ट्रिक्ट 3100 तो छोड़िए - दूसरे किसी डिस्ट्रिक्ट में भी मुश्किल से ही मिलेगा । डिस्ट्रिक्ट 3100 में और दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भी, निर्विरोध डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के उदाहरण तो खूब मिलेंगे - लेकिन उन उदाहरणों की पृष्ठभूमि में सौदेबाजियों और या पक्षपातपूर्ण रूप से डराने/फुसलाने/ललचाने वाली हरकतों की जालसाजियों के किस्से भी अवश्य ही सुनने को मिलेंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में संजीव रस्तोगी ने लेकिन अपने कार्यकाल में पारदर्शी तरीके से सभी को विश्वास में लेते हुए ऐसा अनोखा माहौल बनाया था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद को लेकर कोई झमेला ही पैदा नहीं हुआ और सारी कार्रवाई बड़े सामान्य ढंग से संपन्न हुई, जिसमें डीके शर्मा सर्वसहमति से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने गए । इससे ठीक पहले के वर्ष में दीपक बाबू के चुनाव में चूँकि खासे झगड़े-झंझट हुए थे, इसलिए डीके शर्मा के चुनाव के शांत/सहज भाव से निपट जाने पर सभी ने राहत, संतोष और खुशी की साँस ली थी । संजीव रस्तोगी के डिस्ट्रिक्ट में बनाए गए माहौल को लेकिन उनके बाद गवर्नर बने सुनील गुप्ता बनाए नहीं रख सके, जिस कारण सुनील गुप्ता के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट में खासे बबाल हुए और नतीजे के रूप में सुनील गुप्ता की गवर्नरी पूरी होने से पहले ही वापस ले ली गई और डिस्ट्रिक्ट का स्टेटस भी खत्म कर दिया गया । इससे दीपक बाबू और डीके शर्मा का गवर्नर बनने का मौका भी छिन गया ।
दीपक बाबू ने तो इस स्थिति को स्वीकार कर लिया, किंतु डीके शर्मा ने अपना मौका वापस पाने के लिए प्रयास करना शुरू किया । शुरू से ही उनका तर्क रहा कि एक रोटेरियन और एक उम्मीदवार के रूप में उनके व्यवहार और आचरण पर कभी कोई आरोप नहीं रहा, और उनका चुनाव निर्विरोध ही नहीं बल्कि निर्विवाद रूप से संपन्न हुआ - आखिर तब फिर उनसे गवर्नर बनने का उनका अधिकार क्यों छीना जा रहा है ? डीके शर्मा ने अपनी तरफ से पहले रोटरी के भीतर ही न्याय प्राप्त करने की कोशिश की, और इस कोशिश में उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल का हर दरवाजा खटखटाया; कई एक मौकों पर उन्हें तथा उनके साथियों को लगा भी कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी उनके साथ अन्याय नहीं होने देंगे और उनका गवर्नर-वर्ष शुरू होने से पहले ही डिस्ट्रिक्ट 3100 से नॉन-डिस्ट्रिक्ट का तमगा हट जाएगा और डीके शर्मा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद मिल जाएगा । लेकिन समय बीतते बीतते डीके शर्मा और उनके साथियों को समझ में आ गया कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी उन्हें उलझाए हुए रख कर झाँसा दे रहे हैं तथा रोटरी में उन्हें न्याय नहीं ही मिलेगा ।
डीके शर्मा को तब मजबूर होकर अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा । अदालती कार्रवाई के दौरान भी डीके शर्मा को रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों की तरफ से कई बार संकेत/संदेश मिले कि वह अदालती कार्रवाई को वापस ले लें, और उसके बदले में रोटरी इंटरनेशनल उन्हें उनका हक दे देगी - लेकिन हर बार डीके शर्मा को अपने ठगे जाने का अहसास हुआ । अदालती कार्रवाई में भी काफी उतार-चढ़ाव रहे, जिसमें कभी डीके शर्मा का तो कभी रोटरी इंटरनेशनल का पलड़ा भारी होता हुआ नजर आया । डीके शर्मा ने रेखांकित किया कि अदालती कार्रवाई में जब जब उनका पलड़ा भारी होता हुआ लगा, तब तब रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों की तरफ से समझौते की बातें हुईं - लेकिन जल्दी ही यह भेद भी खुलता गया कि समझौते की बातों के पीछे उद्देश्य किसी भी तरह से अदालती कार्रवाई को रुकवाना और वापस करवाना ही था । डीके शर्मा रोटरी इंटरनेशनल की इस चाल में नहीं फँसे और बार बार कहते रहे कि रोटरी इंटरनेशनल के साथ कानूनी लड़ाई लड़ना उन्हें अच्छा तो नहीं लग रहा है, लेकिन रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के पक्षपातपूर्ण और चालाकी भरे रवैये के कारण उन्हें यह कानूनी लड़ाई मजबूरी में लड़ना पड़ रही है । मजबूरी में लड़ी इस कानूनी लड़ाई में अंततः डीके शर्मा को जीत मिली है और उनके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी तक पहुँचने का रास्ता साफ हुआ है । डीके शर्मा के हक में आया कानूनी फैसला डीके शर्मा और डिस्ट्रिक्ट 3100 के साथ-साथ रोटरी के लिए भी खासा महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस फैसले से रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों द्वारा फैलाए और स्थापित किए गए उस झूठ का पर्दाफाश हुआ है कि रोटरी इंटरनेशनल की मनमानियों को अदालती कार्रवाई के जरिए चुनौती नहीं दी जा सकती है और न्याय नहीं पाया सकता है ।
 पौढ़ी-गढ़वाल की डिस्ट्रिक्ट व सेशन जज की अदालत का फैसला :





Thursday, December 14, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में हरदीप सरकारिया को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार चुनने के तरीके पर नाराजगी जाता रहे प्रवीन राजगढ़िया को 'समझाबुझा' कर मामला सचमुच सेटल कर लिया गया है, या पिक्चर अभी बाकी है ?

रोहतक । हरदीप सरकारिया को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने के तरीके को लेकर बबाल करने वाले वरिष्ठ लायन प्रवीन राजगढ़िया अचानक से चुप्पी साध कर अब खुद ही बबाल का कारण बन गए हैं । उनकी चुप्पी को लेकर तरह तरह की बातें हो रही हैं, जिन्हें भड़काने का काम लीडरशिप की तरफ से आने वाली उन बातों ने भी किया है - जिनमें दावा किया गया है कि प्रवीन राजगढ़िया को समझा लिया गया है और मामला सेटल हो गया है । इन बातों से लोगों के बीच सवाल पैदा हुआ है कि प्रवीन राजगढ़िया को आखिर क्या समझाया गया है और मामला किस शर्त पर सेटल हुआ है ? लोगों का कहना/पूछना है कि प्रवीन राजगढ़िया और लीडरशिप के नेताओं के बीच आखिर क्या सौदा/समझौता हुआ है, यह बात तो पता चलना चाहिए ? प्रवीन राजगढ़िया के नजदीकियों ने यह तो बताया था कि हरदीप सरकारिया को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने के तरीके पर प्रवीन राजगढ़िया द्वारा आपत्ति करने और नाराजगी दिखाने के बाद पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएल खट्टर ने प्रवीन राजगढ़िया को फोन किया था । उनके बीच क्या बात हुई, यह तो पता नहीं चल सका - लेकिन देखने में यह आया कि उसके बाद प्रवीन राजगढ़िया ने पूरी तरह चुप्पी साध ली । उनके चुप्पी साध लेने के साथ-साथ ही लीडरशिप की तरफ से सुनने को मिला कि प्रवीन राजगढ़िया को मना लिया गया है और मामला सेटल हो गया है । इससे लीडरशिप को निशाना बनाने वाले प्रवीन राजगढ़िया खुद लोगों के निशाने पर आ गए और उनके बीच सवाल उठे कि उन्होंने लीडरशिप से सौदेबाजी करने के लिए ही बबाल खड़ा किया था क्या ?
प्रवीन राजगढ़िया को लोगों की आलोचना का शिकार बनता देख उनके नजदीकियों ने कहा/बताया है कि वह पारिवारिक फंक्शन में शामिल होने के लिए बाहर गए हैं और वहाँ व्यस्त हैं, इसलिए उनकी तरफ से कुछ कहा/सुना नहीं जा पा रहा है; और इसलिए उनकी चुप्पी के कोई मनमाने अर्थ नहीं निकाले जाने चाहिए । नजदीकियों की तरफ से यह दावा भी किया गया है कि प्रवीन राजगढ़िया कोई छिप कर सौदेबाजी करने वाले व्यक्ति नहीं हैं, वह जो कुछ भी करेंगे सभी को बता कर और सभी को विश्वास में लेकर करेंगे । नजदीकियों ने यह भी बताया है कि केएल खट्टर से फोन पर उनकी जो बात हुई है, उसमें अभी यही तय हुआ है कि पारिवारिक फंक्शन से लौट कर उनकी लीडरशिप के नेताओं से रोहतक में मीटिंग होगी, जिसमें मामले पर विस्तृत विचार होगा । उल्लेखनीय है कि प्रवीन राजगढ़िया की मुख्य आपत्ति इस बात पर थी कि लीडरशिप के नाम पर पाँच लोग हरियाण के लायन सदस्यों की तरफ से फैसला नहीं ले सकते हैं, और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार का फैसला हरियाणा फोरम की मीटिंग में होना चाहिए । दरअसल हरदीप सरकारिया को उम्मीदवार चुने जाने पर लोग भड़के इसीलिए क्योंकि हरदीप सरकारिया की लोगों के बीच कोई सक्रियता ही नहीं थी । मजे की बात यह रही कि हरदीप सरकारिया को चुनने के पहले भी उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें सक्रिय करने तथा लोगों से मिल-जुल कर माहौल बनाने के लिए प्रेरित नहीं किया । इससे लोगों ने महसूस किया कि पूर्व गवर्नर्स ने मनमानी करते/दिखाते हुए एक ऐसा व्यक्ति उम्मीदवार के रूप में उनके सिर पर थोप दिया है, जो उन्हें तवज्जो देने की कोई जरूरत ही नहीं समझता है । प्रवीन राजगढ़िया ने लोगों की इसी भावना को अभिव्यक्त करते हुए लीडरशिप के फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया ।
प्रवीन राजगढ़िया के मोर्चा खोलने के बाद लीडरशिप ने एक काम यह तो किया कि उन्होंने हरदीप सरकारिया को सक्रिय किया है, जिसके चलते हरदीप सरकारिया ने हरियाणा में लोगों से बात/मुलाकात करना शुरू किया है और वह दिल्ली के पूर्व गवर्नर्स से भी मिल गए हैं । इसी के साथ-साथ लीडरशिप की तरफ से यह कहना भी शुरू किया गया है कि उम्मीदवार का फैसला तो लीडरशिप को ही करना था, हरियाणा फोरम की मीटिंग में यह फैसला नहीं हो सकता है । प्रवीन राजगढ़िया तथा अन्य लोगों की हालाँकि माँग ही यह है कि उम्मीदवार का फैसला हरियाणा फोरम की मीटिंग में हो । हरदीप सरकारिया को उम्मीदवार चुनने वाले पूर्व गवर्नर्स भी जानते/समझते हैं कि हरियाणा फोरम की मीटिंग में यदि उम्मीदवार चुनने की बात हुई तो हरदीप सरकारिया कतई उम्मीदवार नहीं चुने जा सकेंगे । इसीलिए उनकी कोशिश है कि उम्मीदवार तो उन्होंने चुन लिया है, अब हरियाणा फोरम में उनके फैसले पर मोहर लगा दी जाए । समझा जाता है कि प्रवीन राजगढ़िया को इसी बात के लिए राजी करने का प्रयास किया जायेगा । हरदीप सरकारिया के समर्थक पूर्व गवर्नर्स को विश्वास है कि प्रवीण राजगढ़िया को बहला/फुसला कर और या अगली बार उम्मीदवार बनाने का लालच देकर चुप करा लिया गया, तो फिर हरियाणा में और कोई उनके फैसले का विरोध नहीं करेगा । समस्या की बात लेकिन यह है कि हरदीप सरकारिया के समर्थक पूर्व गवर्नर्स अगली बार की उम्मीदवारी के लिए पुनीत बंसल के साथ वायदा कर चुके हैं; इसलिए सार्वजनिक रूप से उनके लिए प्रवीन राजगढ़िया से अगली बार का वायदा कर पाना तो संभव नहीं होगा - यह काम गुपचुप रूप से ही होगा । गुपचुप रूप से किए वायदे पर प्रवीन राजगढ़िया कितना भरोसा करेंगे, यह एक अलग सवाल है ।
प्रवीन राजगढ़िया के नजदीकियों के अनुसार, रोहतक में प्रवीन राजगढ़िया की पूर्व गवर्नर्स के साथ जो मीटिंग होनी है - लोगों की नजर अब उसके नतीजे पर है । हरदीप सरकारिया को उम्मीदवार चुनने के तरीके पर प्रवीण राजगढ़िया ने जो आपत्ति और नाराजगी जाहिर की है तथा उम्मीदवार चुनने के लिए हरियाणा फोरम की मीटिंग बुलाने की जो माँग की हुई है - उसके पीछे उनका वास्तविक इरादा क्या है; क्या वह सचमुच हरियाणा के लायन सदस्यों की आवाज को सुनने की वकालत कर रहे हैं या अपने लिए कोई सौदेबाजी करने का मौका बना रहे हैं - यह जल्दी ही स्पष्ट हो जायेगा ।

Wednesday, December 13, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई में अशोक गुप्ता को बढ़त बनाते देख पैदा हुई राजा साबू की बौखलाहट ने अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स में भरत पांड्या की उम्मीदवारी की कमजोर स्थिति की पोल खोलने का काम और कर दिया है

चंडीगढ़ । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई में अशोक गुप्ता के मुकाबले भरत पांड्या को पिछड़ता देख बौखलाए राजा साबू ने कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में अपनी बौखलाहट को प्रदर्शित किया । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में राजा साबू ने अपनी बौखलाहट में निशाना बनाया मोहिंदर पॉल गुप्ता को, जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी की डिस्ट्रिक्ट टीम में कई एक कमेटियों में या तो चेयरमैन हैं और या सदस्य हैं । राजा साबू का कहना रहा कि मोहिंदर पॉल गुप्ता डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स पर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता को वोट देने के लिए तैयार कर रहे हैं, इसलिए मोहिंदर पॉल गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट टीम की सभी कमेटियों से हटा देना चाहिए । रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ पूर्व अध्यक्ष मोहिंदर पॉल गुप्ता ने पिछले कुछ समय से डिस्ट्रिक्ट में रोटरी के पैसों में हिसाब/किताब में पारदर्शिता तथा ईमानदारी लाने/बरतने के लिए अभियान छेड़ा हुआ है, और निरंतरता के साथ कई ऐसे ऐसे तथ्य उद्घाटित किये हैं, जिनसे पता चला है कि राजा साबू और उनके करीबी पूर्व गवर्नर्स ने किस किस तरीके की 'बेईमानियों' से विभिन्न ग्रांट्स को इधर से उधर करके मोटी मोटी रकमें जुटा लीं, और उनसे सेवा के नाम पर अपनी राजनीति तथा अपने मौज-मजे के लिए मौके बनाए है । इसलिए मोहिंदर पॉल गुप्ता को लेकर राजा साबू का गुस्सा सातवें आसमान पर हैं, पर अपने गुस्से में राजा साबू इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को बीच में ले आयेंगे - यह किसी ने कल्पना भी नहीं की थी । ऐसे में लोगों को लग रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अधिकृत उम्मीदवार होने के बावजूद भरत पांड्या की कमजोर होती/पड़ती स्थिति और उनके लिए कुछ कर न पाने की अपनी विवशता को देख कर राजा साबू इस हद तक बौखला गए हैं कि इसके लिए भी उन्होंने मोहिंदर पॉल गुप्ता को जिम्मेदार ठहरा दिया है ।
कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर राजा साबू द्वारा दिखाई गई बौखलाहट से कुछेक लोगों ने हालाँकि यह नतीजा भी निकाला है कि मोहिंदर पॉल गुप्ता के बहाने राजा साबू ने वास्तव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी जितेंद्र ढींगरा को 'चेतावनी' दी है । इन दोनों को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता है । ऐसे में माना/समझा जा रहा है कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव का जिक्र करके मोहिंदर पॉल गुप्ता को अशोक गुप्ता का समर्थक बताते हुए उन्हें कमेटियों से हटाने की माँग के जरिये राजा साबू ने वास्तव में टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा को खबरदार करने की कोशिश की है । मजे की बात यह हुई है कि अपनी इस कोशिश के जरिये राजा साबू ने वास्तव में इनकी और अशोक गुप्ता की मदद ही कर दी है । दरअसल टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा और मोहिंदर पॉल गुप्ता ने अभी तक इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव की तरफ ध्यान ही नहीं दिया था । टीके रूबी जिस तरह से घिरे हुए हैं, उसके चलते वह अपनी गवर्नरी संभल-संभल कर ही करने में लगे हैं; जितेंद्र ढींगरा इन दिनों अपने काम में व्यस्त है और मोहिंदर पॉल गुप्ता इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी खेल में 'बाहर' के व्यक्ति हैं (राजा साबू ने लेकिन अपनी बौखलाहट में उन्हें 'अंदर' का व्यक्ति बना दिया है) - इस कारण यह लोग अभी तक इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के अभियान से दूर ही थे; लेकिन राजा साबू ने इनका काम आसान करते हुए खुद ही लोगों को बता दिया है कि यह लोग इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता के साथ हैं, और चाहते हैं कि इनके डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स अशोक गुप्ता को वोट दें । 
कई लोगों को हैरानी हो सकती है और उनके लिए यह समझना मुश्किल हो सकता है कि राजा साबू इतनी बड़ी राजनीतिक बेबकूफी कैसे कर सकते हैं कि अपने विरोधियों का काम भी वह खुद ही कर दें ? लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों की उनके डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों को देखें/समझें तो पायेंगे कि राजनीतिक बेबकूफियाँ करने में राजा साबू बड़े 'एक्सपर्ट' हैं । राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स अपने खुले और सक्रिय समर्थन के बावजूद टीके रूबी के मुकाबले डीसी बंसल को 'जीत' नहीं दिलवा सके, यह तो उनकी राजनीतिक कमजोरी का सुबूत है - लेकिन टीके रूबी का इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होना राजा साबू की राजनीतिक बेबकूफी का प्रचंड सुबूत और उदाहरण है । वास्तव में राजा साबू के लिए फजीहत की बात ही यह हुई है कि उन्होंने अपनी सारी ताकत, अपनी सारी पहचान, अपनी सारी प्रतिष्ठा को सिर्फ इसलिए दाँव पर लगा दिया कि कहीं टीके रूबी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न बन जाएँ - लेकिन अंत में बेबकूफी करते हुए प्रवीन गोयल को पहले तो वर्ष 2017-18 की गवर्नरी सँभलवाने की और फिर हटवाने की ऐसी कोशिश की कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद टीके रूबी की गोद में खुद-ब-खुद आ गिरा । पिछले ढाई-तीन वर्षों की लड़ाई में राजा साबू ने अपनी हरकतों से अपने कई नए 'दुश्मन' बनाए, जिनमें से एक मोहिंदर पॉल गुप्ता की सक्रियता राजा साबू और उनके संगी-साथी गवर्नर्स की बेईमानियों की पोल खोलने का वाहक बनी । टीके रूबी को गवर्नर न बनने देने की जिद ने राजा साबू की सारी पहचान और प्रतिष्ठा को धूल में मिला दिया है - और आज राजा साबू राजनीतिक व आर्थिक बेईमानी के 'प्रतीक-पुरुष' बन गए हैं । बड़े पदों पर रहे लोगों के पतन की कीचड़ में लिथड़ने के किस्से यूँ तो बहुत हैं, लेकिन रोटरी में एक अकेले राजा साबू ने ही यह पतन-गाथा लिखी है । जिन लोगों ने रोटरी में राजा साबू का 'भव्य-काल' देखा है, उन लोगों के लिए राजा साबू को पतन की कीचड़ में लिथड़ते देखना सचमुच निराशाजनक और शर्मिंदगी भरा है ।
राजा साबू के पतन की यही स्थिति इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में भरत पांड्या के लिए मुसीबत बन गई है । कहने/होने को तो भरत पांड्या की उम्मीदवारी के सबसे बड़े समर्थक राजा साबू हैं, लेकिन राजा साबू के ही डिस्ट्रिक्ट में भरत पांड्या की स्थिति सबसे खराब है - सबसे खराब इसलिए क्योंकि यही एक डिस्ट्रिक्ट है, जहाँ भरत पांड्या के वोट अपने समर्थक नेताओं के कारण बढ़ने की बजाए घटेंगे । डिस्ट्रिक्ट में तमाम लोगों का कहना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में वह किसी भी उम्मीदवार को नहीं जानते हैं, लेकिन वह उस उम्मीदवार को तो हरगिज वोट नहीं देंगे जिसका समर्थन राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स कर रहे होंगे । यह स्थिति भरत पांड्या के लिए मुसीबत बनी है । राजा साबू ने अपने रवैये से अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अशोक गुप्ता के लिए सहानुभूति और समर्थन पैदा करने का ही काम किया है । कुछ समय पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने इंटरसिटी सेमीनार में अशोक गुप्ता को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था; अशोक गुप्ता द्वारा आमंत्रण स्वीकार कर लेने के बाद उनके नाम और फोटो के साथ निमंत्रण पत्र भी छप/बँट गए थे - लेकिन राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स ने आपत्ति व शिकायत करके अशोक गुप्ता का उक्त सेमीनार में आना स्थगित करवा दिया था । इसका असर लेकिन यह हुआ कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अशोक गुप्ता के प्रति सहानुभूति और समर्थन पैदा हुआ, और राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स का दाँव उल्टा पड़ा । अभी जब कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में राजा साबू ने अशोक गुप्ता का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए मोहिंदर पॉल गुप्ता को कमेटियों से हटाने की बात कही, तब फिर लोगों की तरफ से यही प्रतिक्रिया देखने/सुनने को मिली है । जिन लोगों को अभी तक इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर कोई जानकारी नहीं थी और जिन्होंने अभी तक अपनी कोई भूमिका तय नहीं की थी, राजा साबू की हरकत के चलते उनके सामने भी सारा नजारा स्पष्ट हो गया है, और लोगों के सामने राजा साबू तथा उनके संगी-साथी गवर्नर्स का राजनीतिक छोटापन एक बार फिर जाहिर हो गया है ।
भरत पांड्या और उनके नजदीकियों के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उनके सबसे बड़े समर्थक राजा साबू की अपने ही डिस्ट्रिक्ट में जो फजीहत हुई है, जिसके चलते रोटरी की व्यवस्था और राजनीति में राजा साबू पतन की ओर बढ़े हैं - उसकी प्रतिक्रिया के रूप में आसपास के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भी राजा साबू की 'अपील' न सिर्फ कमजोर पड़ी है, बल्कि राजा साबू के समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले नेताओं ने बचना/छिपना शुरू कर दिया है । इसका नतीजा यह है कि अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स में भरत पांड्या की उम्मीदवारी के लिए कैम्पेन चलाने और चुनाव की व्यवस्था देखने/सँभालने के लिए व्यक्तियों का टोटा तक पड़ गया है ।

Tuesday, December 12, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में आनंद दुआ के नाम पर बिछाई जा रही दिल्ली के पाँच सदस्यीय गुट की राजनीतिक बिसात को सुरेश बिंदल और केएल खट्टर की मिलीजुली चाल ने सचमुच पलट दिया है क्या ?

नई दिल्ली । आनंद दुआ की परेशानी और बेचैनी यह देख/जान कर बढ़ती जा रही है कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए संपर्क अभियान शुरू कर देने के बाद भी उनके समर्थक नेता उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी नहीं दे रहे हैं, जिसके चलते उनकी उम्मीदवारी का मामला उलझता ही जा रहा है । आनंद दुआ ने अपने नजदीकियों से यह कहते/बताते हुए अपना संपर्क अभियान शुरू किया था कि दिल्ली के पाँच पूर्व गवर्नर्स - डीके अग्रवाल, दीपक तलवार, अजय बुद्धराज, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा - के गुट ने उनकी उम्मीदवारी को समर्थन घोषित करने का भरोसा उन्हें दिया है । दरअसल इस भरोसे के बाद ही आनंद दुआ ने अपनी उम्मीदवारी के लिए संपर्क अभियान शुरू किया था । आनंद दुआ के नजदीकियों का कहना/बताना है कि उक्त पाँच पूर्व गवर्नर्स ने आनंद दुआ की उम्मीदवारी का झंडा उठाने का फैसला कर लिया है, और अपने इस फैसले की घोषणा सार्वजनिक करने के लिए वह बस 'उचित समय' का इंतजार कर रहे हैं । 'उचित समय' का इंतजार लेकिन जिस तरह से बढ़ता जा रहा है, उसे 'देख' कर आनंद दुआ की बेचैनी और परेशानी बढ़ने लगी है । उनके नजदीकियों ने भी उनसे पूछना शुरू कर दिया है कि जिन पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें समर्थन देने का भरोसा दिया था, वह कहीं उनका पोपट तो नहीं बना रहे हैं । इस गुट का समर्थन पाने के लिए योगेश भसीन द्वारा शुरू की गई कोशिशों को तथा योगेश भसीन की कोशिशों के शुरू होने के बाद गुट के नेताओं के बदले हुए तथा टालमटोल वाले रवैये को देखते हुए आनंद दुआ का माथा ठनका है और वह असमंजस में पड़ गए हैं ।
आनंद दुआ के नजदीकियों के अनुसार, आनंद दुआ की उम्मीदवारी का झंडा उठाने का वायदा करने वाले पूर्व गवर्नर्स अपना वायदा पूरा करने के लिए तैयार तो हैं, लेकिन वह इस बात से डरे हुए भी हैं कि चुनाव की नौबत आने पर आनंद दुआ कहीं मैदान तो नहीं छोड़ जायेंगे - और इस तरह कहीं उनकी फजीहत तो नहीं करा बैठेंगे ? इसी डर के कारण दिल्ली के उक्त पाँच पूर्व गवर्नर्स का गुट वायदा करने के बावजूद आनंद दुआ की उम्मीदवारी को अपने समर्थन की घोषणा करने से अभी बच रहा है । दरअसल सुरेश बिंदल की राजनीतिक चाल और हरियाणा में मची उथल-पुथल ने उन्हें बचाव की मुद्रा में ला दिया है । उल्लेखनीय है कि अभी करीब दस दिन पहले तक दिल्ली में उम्मीदवारों का जो राजनीतिक समीकरण था, वह दिल्ली के उक्त पाँच पूर्व गवर्नर्स के गुट के अनुकूल था । आनंद दुआ और आरके अग्रवाल के रूप में जिन दो उम्मीदवारों को सशक्त उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, वह इस गुट के भरोसे ही आगे कदम बढ़ाने का संकेत दे चुके थे । इस गुट के नेताओं को जिन सुरेश बिंदल से चुनौती मिलने का डर था, उन सुरेश बिंदल ने आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति अपनी नापसंदगी जाहिर कर दी थी - जिसके बाद उक्त गुट ने आनंद दुआ की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने का फैसला कर लिया था । इस फैसले के तहत ही आनंद दुआ को सक्रिय होने की सलाह दी गई, और आनंद दुआ ने भी अपने आप को उम्मीदवार मानते हुए संपर्क अभियान शुरू कर दिया । आनंद दुआ और उन्हें उम्मीदवार बनाने का फैसला करने वाले पाँच पूर्व गवर्नर्स के गुट को विश्वास था कि दिल्ली में कोई भी पूर्व गवर्नर आनंद दुआ की उम्मीदवारी का विरोध नहीं करेगा, और उस स्थिति में कोई दूसरा उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं करेगा - इसलिए फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आनंद दुआ को रास्ता पूरी तरह साफ मिलेगा ।
लेकिन सुरेश बिंदल की राजनीतिक चाल ने आनंद दुआ और उनकी उम्मीदवारी का झंडा उठाने को तैयार बैठे पाँच पूर्व गवर्नर्स के गुट की तैयारी को झटका दे दिया । आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति नापसंदगी जाहिर करने के बावजूद, आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी को समर्थन देने के क्लब के फैसले का वास्ता देकर सुरेश बिंदल ने आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठाने का संकेत देकर उक्त गुट को आनंद दुआ की उम्मीदवारी की घोषणा करने से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया । दरअसल उक्त गुट के नेताओं को यह भरोसा नहीं है कि चुनाव की स्थिति आने पर भी आनंद दुआ उम्मीदवार बने रहेंगे, और चुनाव लड़ने को तैयार होंगे ? आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर सुरेश बिंदल ने यदि पलटी मारी है, तो इसे एक बड़ी राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । सुरेश बिंदल के चूँकि हरियाणा की राजनीति की कमान सँभाले बैठे केएल खट्टर के साथ नजदीकी संबंध हैं, इसलिए आशंका व्यक्त की जा रही है कि आरके अग्रवाल को लेकर सुरेश बिंदल ने जो चाल चली है - कहीं सुरेश बिंदल और केएल खट्टर की मिलीजुली चाल तो नहीं है ? हरियाणा में हरदीप सरकारिया की उम्मीदवारी को लेकर जो बवाल मचा हुआ है, केएल खट्टर को उसके पीछे दिल्ली के उक्त पाँच सदस्यीय गुट का हाथ दिखता है - इसलिए भी दिल्ली की राजनीति में केएल खट्टर के नाक घुसाने को बदला लेने की करवाई के रूप में देखा/समझा जा रहा है । इससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति एक बड़ी लड़ाई की तरफ बढ़ती दिख रही है । दिल्ली के उक्त पाँच सदस्यीय गुट को राजनीतिक लड़ाई लड़ने में तो परहेज नहीं है, राजनीतिक लड़ाई में उसे अपना पलड़ा भारी ही नजर आ रहा है - लेकिन उस लड़ाई के लिए जो 'ईंधन' चाहिए होगा, आनंद दुआ की तरफ से उसकी 'सप्लाई' को लेकर वह आशंकित हैं । इसी आशंका के चलते उन्होंने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आनंद दुआ की उम्मीदवारी को समर्थन देने की घोषणा को रोक दिया है ।
आनंद दुआ की उम्मीदवारी का झंडा उठाने को तैयार बैठे दिल्ली के पाँच सदस्यीय गुट के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि हरदीप सरकारिया की उम्मीदवारी को लेकर हरियाणा में जो उबाल आ रहा था, वह ठंडा पड़ता दिख रहा है; पाँच सदस्यीय गुट के नेताओं को उम्मीद थी कि उक्त उबाल के कारण केएल खट्टर उनके सामने समर्पण करेंगे और उनके साथ जुड़ेंगे, केएल खट्टर ने लेकिन सुरेश बिंदल के साथ जुड़ने को महत्ता दी है । इससे दिल्ली के पाँच सदस्यीय गुट को अपनी राजनीति फेल होती हुई नजर आ रही है । मजे की बात यह है कि जमीनी स्थिति अभी भी उनके अनुकूल है; हरियाणा में लोग हरियाणा की लीडरशिप के फैसले के खिलाफ बगावत करने को तैयार बैठे हैं, और इसके लिए दिल्ली के उक्त पाँच सदस्यीय गुट के इशारे का इंतजार कर रहे हैं - दिल्ली में भी बाकी नेताओं के बीच चूँकि बिखराव की स्थिति है, इसलिए इस गुट के पास समर्थन जुटाने का अच्छा मौका है । लेकिन इन नेताओं को ही यह भी लग रहा है कि इस अच्छे मौके को हथियाने/पाने के लिए जो कसरत करना पड़ेगी, वह आनंद दुआ के भरोसे/सहारे नहीं सकती है । ऐसे में, लगता है कि दिल्ली का पाँच सदस्यीय गुट अपने ही बिछाए राजनीतिक जाल में खुद फँस गया है । इस स्थिति में योगेश भसीन को अपने लिए मौका नजर आया है; उन्हें लगा है कि अपने आप को मुसीबत से बचाने/निकालने के लिए दिल्ली का उक्त पाँच सदस्यीय गुट शायद उन्हें ही सहारा बना ले - इसलिए योगेश भसीन ने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी सक्रियता दिखा/बढ़ा कर अपनी तरफ से सहारा बनने का संकेत दे दिया है । योगेश भसीन की सक्रियता ने आनंद दुआ तथा उनके नजदीकियों को और चिंतित कर देने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के ताने-बाने को और दिलचस्प बना दिया है ।

Monday, December 11, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में रमन गुप्ता की उम्मीदवारी की तेज चाल, पिछले वर्ष डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पकड़ बनाने वाले जेपी सिंह खेमे को इस वर्ष धराशाही कर देने की तरफ बढ़ रही है क्या ?

अंबाला । रमन गुप्ता की चेयरमैनशिप में आयोजित हुए अंबाला के ग्यारह क्लब्स के संयुक्त अधिष्ठापन समारोह की जोरदार सफलता ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई को गर्मा देने के साथ-साथ एकतरफा भी बना दिया है । मजे की बात यह है कि अंबाला में आयोजित हुए ग्यारह क्लब्स के अधिष्ठापन समारोह में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के दोनों खेमों के नेता लोग शामिल हुए और दोनों खेमों के नेताओं ने ही माना/कहा कि इस समारोह के जरिए रमन गुप्ता ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को ऐसे मुकाम पर पहुँचा दिया है, जहाँ मदन बत्रा के लिए उन्हें 'पकड़' पाना और उनसे मुकाबला कर पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही है । समारोह में दिलचस्प नजारा उस समय देखने को मिला, जब मदन बत्रा की उम्मीदवारी के समर्थक जेपी सिंह खेमे के कुछेक नेताओं ने समारोह में मौजूद लोगों के बीच मदन बत्रा की उम्मीदवारी के पक्ष में बातें करना शुरू कीं - लेकिन लोगों से यह सुन कर उन्हें अपने कदम पीछे खींचने पड़े कि आपने इतना कमजोर उम्मीदवार क्यों चुना है कि दूसरे के कार्यक्रम में आ कर आपको उसका प्रचार करना पड़ रहा है ? मदन बत्रा के समर्थक नेताओं को लोगों से सीधे सीधे यह सवाल सुनना पड़ा कि इस तरह का आयोजन आप लोग कब कर रहे हो ? अलग अलग मौकों पर किसी किसी ने जबाव भी दिया कि इससे अच्छा और बड़ा कार्यक्रम करके दिखायेंगे, लेकिन आपसी निजी बातचीत में मदन बत्रा के समर्थक नेताओं ने भी स्वीकार किया है कि रमन गुप्ता ने अपने चुनाव अभियान का जो व्यापक रूप और स्टैंडर्ड तय कर दिया है, उसके सामने मदन बत्रा की उम्मीदवारी को टिका पाना मुश्किल ही होगा । पिछले लायन वर्ष में गुरचरण सिंह भोला को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जितवा कर जेपी सिंह खेमे ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर जो पकड़ बनाई थी, वह इस वर्ष बुरी तरह ढीली पड़ जाएगी - यह किसी ने नहीं सोचा था ।
रमन गुप्ता की चेयरमैनशिप में अंबाला में आयोजित हुए ग्यारह क्लब्स के अधिष्ठापन समारोह में आठ सौ से अधिक लायंस पदाधिकारियों व सदस्यों के उपस्थित होने का दावा किया गया है, जिनमें से डेढ़ सौ के करीब दिल्ली से गए/पहुँचे लोगों की मौजूदगी थी । इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पहुँचने पर हर किसी को हैरानी हुई । कई लोगों ने कहा भी कि इतने लोग तो डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में नहीं आते/पहुँचते हैं । समारोह में 70 के करीब मान्य अतिथियों का मंच सजाया गया था, जैसा कि कभी डिस्ट्रिक्ट के किसी कार्यक्रम में देखने को नहीं मिला है; समारोह में 75 के करीब क्लब्स का प्रतिनिधित्व होने का दावा किया गया है । इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जुटाने के लिए जो तैयारी की गई होगी, इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पहुँचने का जो विश्वास किया गया होगा, इतनी बड़ी संख्या में पहुँचे लोगों के लिए सुविधाओं की जो व्यवस्था की गई होगी - उस सब का विचार करें, तो यही पायेंगे कि ग्यारह क्लब्स के अधिष्ठापन समारोह के आयोजन के जरिए रमन गुप्ता ने एक बड़ा दाँव चला है; जिसके जरिए एक तरफ तो उन्होंने अपने संभावित समर्थकों व साथियों को अपने और नजदीक कर लिया है, तथा दूसरी तरफ अपने विरोधियों को चारों खाने चित्त कर देने का काम कर लिया है । रमन गुप्ता की चेयरमैनशिप में हुए आयोजन में पक्ष और विपक्ष का फर्क जैसे पूरी तरह से मिट गया था, और विरोधी पक्ष के जो लोग समारोह में पहुँचे हुए थे - वह भी रमन गुप्ता और उनके समर्थकों के साथ सहयोगी और मस्ती के मूड में दिख रहे थे ।  
ऐसे में, मदन बत्रा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के सामने चुनौती की बात यही है कि वह कैसे मदन बत्रा की उम्मीदवारी को बनाए/टिकाए रख सकें ? नेताओं के लिए चुनौती की बात इसलिए और बड़ी हो गई है क्योंकि हालात 'देख' कर मदन बत्रा ने 'कुछ भी करने' से कदम पीछे खींच लिए हैं । उनके समर्थक नेताओं का ही कहना है कि मदन बत्रा ने लगता है कि समझ लिया है कि वह जो भी पैसा खर्च करेंगे, वह बेकार ही जायेगा - इसलिए उन्होंने कुछ भी खर्च नहीं करने का मन बना लिया है । इससे उनके चुनाव अभियान को 'उठा' पाने की कोशिशें शुरू होने से पहले ही धराशाही हो गईं हैं । मदन बत्रा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने उनकी जगह किसी दूसरे उम्मीदवार की भी खोज की है, लेकिन जिसमें वह सफल नहीं हो पाए हैं । दरअसल रमन गुप्ता ने चुनावी चाल में जो तेजी दिखाई है, उसने दूसरे संभावित उम्मीदवारों को डरा दिया है और उन्होंने इस वर्ष के चुनावी मुकाबले से दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी है । इस स्थिति ने इस वर्ष के चुनावी मुकाबले को फिलहाल तो रमन गुप्ता के पक्ष में एकपक्षीय बना दिया है । जेपी सिंह खेमे के नेताओं के पास इस समय इसके अलावा जैसे कोई चारा ही नहीं बचा है कि वह इंतजार करें कि रमन गुप्ता और या उनके समर्थक नेता कोई बड़ी गलती करें, तो उनके लिए मुकाबले में वापस लौटने का मौका बने ।

Sunday, December 10, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डॉक्टर सुब्रमणियन को धोखा देने के बाद बनी परिस्थिति में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने फाउंडेशन बॉल को सफल बनाने तथा बासकर चॉकलिंगम की नाराजगी से बचने के लिए विनोद बंसल की शरण ली

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने अब विनोद बंसल के सामने समर्पण करके डॉक्टर सुब्रमणियन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट ईआन रिसेले के फाउंडेशन बॉल कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आने के कार्यक्रम के स्थगित होने के लिए रवि चौधरी ने डॉक्टर सुब्रमणियन को जिम्मेदार ठहराया है । रवि चौधरी ने कई लोगों को बताया है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम के यह कहते हुए कान भरे कि डिस्ट्रिक्ट में रवि चौधरी के खिलाफ बहुत ही गंभीर माहौल है, जिसके कारण लोग ईआन रिसेले से भी सवाल/जबाव कर सकते हैं और जिसके चलते उनके लिए भी मुसीबत खड़ी सकती है - इसलिए ईआन रिसेले की डिस्ट्रिक्ट 3011 के कार्यक्रम में न आने में ही भलाई है । रवि चौधरी के अनुसार, काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग के स्थगित हो जाने को लेकर भी डॉक्टर सुब्रमणियन ने बासकर चॉकलिंगम को यह कहते/बताते हुए भड़काया कि रोटरी इंटरनेशनल के वरिष्ठ पदाधिकारियों से फटकार खाने के बाद भी रवि चौधरी काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि उनकी कारस्तानियों को लेकर पूर्व गवर्नर्स उनकी अच्छी तरह से क्लास ले लेंगे । रवि चौधरी का कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन से मिले इस फीडबैक के बाद ही बासकर चॉकलिंगम ने ईआन रिसेले का कार्यक्रम स्थगित करवाया है । रवि चौधरी का कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन उनसे इस बात पर खफा हो गए हैं कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उनके उम्मीदवार मुनीश गौड़ की मदद नहीं कर रहे हैं । रवि चौधरी की इन बातों पर डॉक्टर सुब्रमणियन की तरफ से तो कुछ सुनने को नहीं मिला है, लेकिन उनके नजदीकियों का कहना/बताना है कि रवि चौधरी ने जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में मुनीश गौड़ की बजाए संजीव राय मेहरा की मदद करना जारी रखा हुआ है, उसके कारण डॉक्टर सुब्रमणियन उनसे बुरी तरफ नाराज हैं । रवि चौधरी के इस रवैये से डॉक्टर सुब्रमणियन अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और मान रहे हैं कि रवि चौधरी ने अपने स्वभावानुसार उन्हें भी अपनी धोखाधड़ी का शिकार बना लिया है ।
डॉक्टर सुब्रमणियन के नजदीकियों के अनुसार, डॉक्टर सुब्रमणियन को अफ़सोस है कि आभा झा चौधरी के साथ बदतमीजी करने के मामले में ठोस सुबूत होने के बावजूद रवि चौधरी को क्लीन चिट देने का फैसला करके उन्होंने बड़ी गलती कर दी; उन्हें रवि चौधरी जैसे व्यक्ति पर भरोसा करना ही नहीं चाहिए था । डॉक्टर सुब्रमणियन को लग रहा है कि आभा झा चौधरी के मामले में उनके द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को हर कोई पक्षपातपूर्ण मान/समझ रहा है और इसके लिए उनकी काफी बदनामी हुई है । डॉक्टर सुब्रमणियन का अपने नजदीकियों से कहना/बताना है कि उस समय तो रवि चौधरी ने उनकी बड़ी खुशामद की थी और मामले में किसी भी तरह से बचा लेने के लिए उनकी मिन्नतें की थीं, तथा बदले में मुनीश गौड़ की उम्मीदवारी की मदद करने का भरोसा दिया था । डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपने नजदीकियों को बताया कि अपना काम निकल जाने के बाद रवि चौधरी उनसे कहने लगे कि मुनीश गौड़ का डिस्ट्रिक्ट स्तर पर काम करने का कोई अनुभव नहीं है, और इसलिए लोगों के बीच उनकी स्वीकार्यता बनाना मुश्किल होगा; डॉक्टर सुब्रमणियन ने इसके जबाव में उनसे कहा भी कि तुम जिन संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी का झंडा उठाए हुए हो, उन संजीव राय मेहरा का ही डिस्ट्रिक्ट में कामकाज का कौन सा अनुभव है, वह बस एक सामान्य सदस्य की ही तरह तो रोटरी में रहे हैं - उन्होंने रोटरी और डिस्ट्रिक्ट के लिए किया क्या है ? डॉक्टर सुब्रमणियन ने उलाहने के रूप में उनसे यहाँ तक कह दिया कि रोटरी और डिस्ट्रिक्ट के लिए कुछ करने को ही यदि आधार के रूप में देखना है तो फिर अनूप मित्तल का विरोध क्यों कर रहे हो - रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में अनूप मित्तल जितना काम भला और किसने किया है ? पिछले वर्ष कुल एक वोट से ही तो वह गवर्नर नॉमिनी चुने जाने से रह गए थे, इसलिए इस वर्ष सभी को उनका ही समर्थन करना चाहिए । रवि चौधरी इस बात पर चुप ही लगा गए, जिससे डॉक्टर सुब्रमणियन ने समझ लिया कि काम के अनुभव की बात तो सिर्फ एक बहाना है, जिसे वह उन्हें धोखा देने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं ।
रवि चौधरी की बदकिस्मती यह रही कि डॉक्टर सुब्रमणियन को धोखा देने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी है, और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के डिस्ट्रिक्ट के एक प्रमुख कार्यक्रम में आने का ऐतिहासिक मौका डिस्ट्रिक्ट से छिन गया । इससे पहले डिस्ट्रिक्ट में कभी ऐसा नहीं हुआ कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट ने डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रम में आने के लिए स्वीकृति दी हो, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की करतूतों के कारण ऐन मौके पर आना स्थगित कर दिया हो । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रवि चौधरी के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट में आने से इंकार करने के बाद रवि चौधरी को इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने के लिए मजबूर होना पड़ा । इसमें भी रवि चौधरी को डॉक्टर सुब्रमणियन द्वारा उनके खिलाफ भूमिका निभाए जाने का डर है; उनके सामने खतरा यह है कि बासकर चॉकलिंगम के साथ अपनी नजदीकियत का फायदा उठा कर डॉक्टर सुब्रमणियन उनके खिलाफ माहौल बना सकते हैं । इससे बचने के लिए रवि चौधरी ने विनोद बंसल की शरण ली है । मजे की बात है कि कुछ ही दिन पहले तक विनोद बंसल के खिलाफ तमाम तरह की बकवासबाजी करने वाले रवि चौधरी ने विनोद बंसल को फाउंडेशन बॉल कार्यक्रम में बासकर चॉकलिंगम का परिचय प्रस्तुत करने की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है । रवि चौधरी को उम्मीद है कि यह जिम्मेदारी ले कर और कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र में अपना नाम देख कर विनोद बंसल खुश हो जायेंगे तथा पिछले दिनों उनके द्वारा की गई बकवासबाजी की बात को भूल कर फाउंडेशन बॉल कार्यक्रम को सफल बनाने तथा बासकर चॉकलिंगम से बचाने में उनकी मदद करेंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी की तमाम तरह की बदनामियों से जुड़े विवादों की छाया में हो रहे फाउंडेशन बॉल कार्यक्रम पर सभी लोगों की निगाह यह देखने पर भी है कि इस कार्यक्रम में रवि चौधरी के नाम और क्या नया विवाद जुड़ता है ?