Sunday, July 26, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के रोहतक में रवि गुगनानी की सक्रियता वाले आयोजन में पुष्पा सेठी की केंद्रीय उपस्थिति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवारों को जैसे सोते से जगा दिया है, और उन्हें भी कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित किया है - जो लोगों को 'दिखे' भी और जिसकी चर्चा हो

नई दिल्ली । अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह में डिस्ट्रिक्ट के आम और खास रोटेरियंस की उपस्थिति को संभव बनाने के बाद, रोटरी क्लब रोहतक के एक महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट के उद्घाटन समारोह में अपनी केंद्रीय उपस्थिति बना/जता कर पुष्पा सेठी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की ठंडी पड़ी चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा कर दी है । रोटरी क्लब रोहतक के महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट के तहत स्थापित किए गए सुभाष महेंद्रु मेमोरियल रोटरी फिजियोथैरेपी सेंटर के उद्घाटन मौके पर पहुँच कर पुष्पा सेठी ने अपने आप को दूसरे उम्मीदवारों से 'आगे' दिखाने का जो काम किया है, दरअसल उसके चलते दूसरे उम्मीदवारों के बीच हलचल मची है । असल में, उक्त मौके पर रोहतक के कई वरिष्ठ व प्रमुख रोटेरियंस की मौजूदगी तथा वरिष्ठ रोटेरियन रवि गुगनानी की सक्रियता के बीच पुष्पा सेठी की केंद्रीय उपस्थिति के राजनीतिक अर्थ लगाये जा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के सभी खिलाड़ी रोहतक क्षेत्र के वोट पाने के लिए सबसे पहले रवि गुगनानी का दरवाजा खटखटाते हैं, और तरह तरह से उनसे रिश्ते जोड़ते हुए उनका समर्थन पाने की कोशिश करते हैं । ऐसे में, रवि गुगनानी की सक्रियता वाले आयोजन में उम्मीदवारों में अकेले पुष्पा सेठी की केंद्रीय उपस्थिति को देख कर डिस्ट्रिक्ट की राजनीति का तापमान तो बढ़ना ही है । 
उल्लेखनीय है कि सुभाष महेंद्रु रोहतक के एक बड़े सक्रिय और मिलनसार किस्म के व्यक्ति थे, इसलिए उनकी स्मृति में स्थापित किए गए फिजियोथैरेपी सेंटर के साथ रोहतक के रोटेरियंस का एक भावुक किस्म का संबंध है । इस सेंटर की स्थापना में चूँकि रवि गुगनानी की विशेष संलग्नता रही है, इस कारण से इस सेंटर के साथ उनका कुछ खास जुड़ाव है, जिसे उद्घाटन अवसर की तस्वीरों में भी लोगों ने देखा है । इसीलिए उद्घाटन अवसर पर उनकी सक्रियता के बीच पुष्पा सेठी की केंद्रीय उपस्थिति के राजनीतिक अर्थ निकाले/लगाये जा रहे हैं । यह अर्थ वास्तव में इसलिए भी लगाये जा रहे हैं, क्योंकि अभी हाल ही में पुष्पा सेठी के क्लब के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन का वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर जो आयोजन हुआ था, उसने भी डिस्ट्रिक्ट के लोगों का ध्यान खींचा है । क्लब की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए बहुत ही सुनियोजित रूप से तैयार किए गए कार्यक्रम में कई पूर्व गवर्नर्स तथा प्रेसीडेंट्स के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट के अन्य कई प्रमुख लोगों की उपस्थिति ने उसे चुनावी नजरिये से खास बना दिया है । क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम को पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी के प्रमोशन कार्यक्रम के रूप में ही देखा/पहचाना गया है, और इसीलिए उस कार्यक्रम के बाद अचानक से पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी को गंभीरता से लिया जाने लगा - और उसी की निरंतरता में रोटरी क्लब रोहतक के महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट के आयोजन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के संभावित उम्मीदवारों में अकेले उनकी उपस्थिति से उनकी उम्मीदवारी के अभियान का ग्राफ कुछ और ऊपर उठ गया है ।                   
पुष्पा सेठी की इन सक्रियताओं ने दूसरे उम्मीदवारों को जैसे सोते से जगा दिया है, और उन्हें भी कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित किया है - जो लोगों को 'दिखे' भी और जिसकी चर्चा हो । दरअसल कोरोना प्रकोप के कारण बने हालात के चलते रोटरी और डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियाँ चूँकि वर्चुअल प्लेटफॉर्म तक सिमट गई हैं, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों को अपने संपर्क अभियान के लिए फोन कॉल्स व वाट्सऐप तक ही सीमित हो जाना पड़ा है । सिर्फ फोन कॉल्स व वॉट्सऐप के जरिये चुनावी अभियान चलाने की सीमाएँ हैं, और उनके जरिये कोई 'माहौल' नहीं बन सकता है - तब तो बिलकुल भी नहीं, जबकि अभियान चलाने वाले लोगों में क्रियेटिविटी व कल्पनाशीलता का नितांत अभाव हो । इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि 'लीडर' बनने की इच्छा रखने वाले और उसके लिए कमर कसने वाले लोगों ने बदली परिस्थितियों की जरूरतों के अनुरूप नए तौर-तरीके खोजने/अपनाने में अपना सिर खपाने की कोई जरूरत ही नहीं समझी है । वास्तव में इसीलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति को लेकर डिस्ट्रिक्ट में सुस्ती पसरी हुई पड़ी है, जिसमें लेकिन पुष्पा सेठी की सक्रियता ने कुछ हलचल मचाई है ।

Saturday, July 25, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स द्वारा कंसल्टिंग फर्म्स को करीब 72 लाख रुपये की फीस देने के बाद भी, 2 करोड़ 43 लाख रुपये से अधिक का इंटरेस्ट व लेट फीस चुकाने के मामले में प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता तथा सेंट्रल काउंसिल के दूसरे सदस्य आरोपों से बच सकते हैं क्या ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता जीएसटी प्रावधानों के तहत इंटरेस्ट व लेट फीस के रूप में इंस्टीट्यूट द्वारा मोटी रकम गवाँने के मामले में लोगों की नाराजगी का बुरी तरह से शिकार हो रहे हैं । लोगों को हैरानी और नाराजगी है कि इनडायरेक्ट टेक्सेज जैसे विषय के एक्सपर्ट अतुल गुप्ता के इंस्टीट्यूट में होते/रहते हुए इंस्टीट्यूट को इंटरेस्ट व लेट फीस के रूप में इतनी मोटी रकम आखिर क्यों गवाँना पड़ी है ? इसे इंस्टीट्यूट प्रशासन के निकम्मेपन की पराकाष्ठा के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और सवाल उठाया जा रहा है कि सेंट्रल काउंसिल के सदस्य आखिर करते क्या हैं ? उल्लेखनीय है कि आरटीआई के तहत माँगी गई जानकारी के जबाव में खुद इंस्टीट्यूट प्रशासन ने बताया है कि जीएसटी के मामले में इंस्टीट्यूट ने पिछले तीन वर्षों में 2 करोड़ 35 लाख से अधिक रकम इंटरेस्ट के रूप में तथा साढ़े सात लाख से अधिक रकम लेट फीस के रूप में चुकाई है - इससे भी ज्यादा विडंबना की और दिलचस्पी की बात यह है कि इस दौरान इंस्टीट्यूट ने जीएसटी के मामले में कंसल्टिंग फर्म्स को करीब 72 लाख रुपये की फीस भी दी है । अतुल गुप्ता ने अपने नजदीकियों के जरिये यह कहते/बताते हुए 'बचने' की कोशिश तो की है कि वह तो इस वर्ष प्रेसीडेंट हैं, इसलिए उन्हें पिछले तीन वर्षों के किसी मुद्दे पर 'आरोपी' नहीं बनाया जा सकता है - लेकिन लोगों का कहना है कि इस तरह की तकनीकी बहानेबाजी से अतुल गुप्ता अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं, और सेंट्रल काउंसिल सदस्य तथा वाइस प्रेसीडेंट के रूप में अपने नाकारापन पर पर्दा नहीं डाल सकते हैं ।
अतुल गुप्ता की तरफ से कुछेक और तकनीकी व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए भी बचने की कोशिश की जा रही है, लेकिन उनकी कोई भी कोशिश लोगों की नाराजगी को शांत नहीं कर पा रही है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को भी इस मामले में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है; उनके लिए लोगों को समझाना मुसीबत बन गया है कि सेंट्रल काउंसिल में उनके होते हुए, उनकी नाक के नीचे से इंस्टीट्यूट का पैसा इस तरह उड़ता क्यों रहा - और क्यों उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया ? लोगों को ज्यादा हैरानी इस बात को लेकर भी है कि जिन कंसल्टिंग फर्म्स की सर्विस के बाद भी इंस्टीट्यूट को प्रत्येक वर्ष इंटरेस्ट व लेट फीस के रूप में मोटी रकम गवाँना पड़ती रही, उन कंसल्टिंग फर्म्स को हटा कर दूसरी फर्म्स की सेवाएँ क्यों नहीं ली गईं ? आखिर क्यों, उन्हीं कंसल्टिंग फर्म्स को मोटी रकम फीस के रूप में भी दी जाती रही, और इंटरेस्ट व लेट फीस के नाम पर इंस्टीट्यूट का खजाना भी खाली किया जाता रहा ? इस मामले को गंभीरता से देख रहे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि अतुल गुप्ता तथा सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को कम से कम अब तो इस बात का जबाव देना ही चाहिए कि अपना काम ठीक से न कर पाने वाली कंसल्टिंग फर्म्स को काम पर लगाए रखने तथा उन्हें फीस के रूप में मोटी रकम देते रहने के लिए कौन जिम्मेदार है, और ऐसा करने में उसे क्या लाभ हुआ ? 
आरटीआई के तहत इंस्टीट्यूट प्रशासन द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में कंसल्टिंग फर्म्स को करीब 72 लाख रुपये फीस के रूप में दिए गए हैं - लेकिन जीएसटी प्रावधानों के तहत इंटरेस्ट व लेट फीस देने के मामले में किसी भी वर्ष नहीं बचा जा सका है । वर्ष 2017-18 में इंस्टीट्यूट ने इंटरेस्ट के रूप में करीब एक करोड़ 78 लाख रुपये तथा लेट फीस के रूप में करीब 10 हजार रुपये चुकाए; उसके अगले वर्ष, यानि वर्ष 2018-19 में इंटरेस्ट तो घट कर करीब 6 लाख 14 हजार रहा - लेकिन लेट फीस 7 लाख 40 हजार के पार जा पहुँची; 2019-20 में इंस्टीट्यूट ने इंटरेस्ट के रूप में करीब साढ़े 51 लाख रुपये चुकाए तथा लेट फीस के रूप में छह हजार से अधिक रुपये दिए । इस तरह, पिछले तीन वर्षों में इंस्टीट्यूट ने कंसल्टिंग फर्म्स को करीब 72 लाख रुपये की फीस भी दी, और 2 करोड़ 43 लाख रुपये से अधिक का इंटरेस्ट व लेट फीस भी चुकाई । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए प्रोफेशनल स्टैंडर्ड्स तय करने वाली संस्था में ऐसा होना शर्मनाक तो है ही - नाकारापन तथा बेईमानी के संकेत भी देता है; इसलिए प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता तथा सेंट्रल काउंसिल के दूसरे सदस्य आरोपों से बच नहीं सकते हैं ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता सदस्यता वृद्धि तथा फाउंडेशन की जमा राशि के मामले में उलटे नतीजे देकर, डिस्ट्रिक्ट और रोटरी को पीछे घसीटने पर शर्मिंदा होने की बजाये, अपनी उपलब्धियों का ढोल पीटने तथा खुद ही खुद को शाबासी देने में क्यों लगे हुए हैं ?

गाजियाबाद । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता सच्चाई को छिपाते तथा तथ्यों से खिलवाड़ करते हुए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच झूठी वाहवाही लेने की कोशिश भले ही कर रहे हों, लेकिन रोटरी जगत में यही माना/पहचाना जा रहा है कि उनके गवर्नर वर्ष में डिस्ट्रिक्ट 3012 तथा रोटरी को नुकसान ही हुआ है - तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट व रोटरी को पीछे ही ले गए हैं । सदस्य-संख्या के मामले में तो दीपक गुप्ता गोलमोल बातें बनाते हुए अपनी उपलब्धि का झूठा ही श्रेय लेने की कोशिश करते हुए 'रंगे हाथ' पकड़े गए हैं । उल्लेखनीय है कि वह जोरशोर से यह तो बता रहे हैं कि उनके गवर्नर वर्ष में 12 नए क्लब बने तथा 500 से अधिक नए सदस्य रोटरी से जुड़े - लेकिन यह बताते हुए वह धूर्तता यह दिखा रहे हैं कि वह यह नहीं बता रहे हैं कि उनके गवर्नर रहते हुए डिस्ट्रिक्ट की सदस्य संख्या क्या से क्या हुई है ? दरअसल वह यह इसलिए नहीं बता रहे हैं कि यह बात सामने आते ही उनकी पोल खुल जायेगी और लोगों को पता चल जायेगा कि उनके गवर्नर रहते हुए डिस्ट्रिक्ट व रोटरी को फायदा नहीं - बल्कि घाटा हुआ है । रोटरी इंटरनेशनल के रिकॉर्ड के अनुसार, एक जुलाई 2019 को जब दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभाला था, तब डिस्ट्रिक्ट की सदस्य-संख्या 3709 थी - लेकिन 30 जून 2020 को जब दीपक गुप्ता गवर्नर की कुर्सी से उतरे, तब सदस्य-संख्या घटकर 3695 रह गई । क्लब्स की औसत सदस्यता के संदर्भ में तो यह घाटा और भी बड़ा है, क्योंकि इस दौरान क्लब्स की संख्या 95 से बढ़कर 105 हुई है । सिर्फ इतना ही नहीं, रोटरी इंटरनेशनल के महिलाओं की सदस्यता को प्रोत्साहित करने के अभियान को पूरा करने के मामले में भी दीपक गुप्ता बुरी तरह असफल रहे हैं । उनके गवर्नर वर्ष में महिला सदस्यों की हिस्सेदारी 25.96 प्रतिशत से घटकर 23.57 प्रतिशत रह गई है ।
रोटरी फाउंडेशन के लिए जमा हुई रकम को लेकर भी दीपक गुप्ता तथ्यों से खिलवाड़ कर रहे हैं, और पूरी सच्चाई बताये बिना अपने आपको शाबासी दिए जा रहे हैं - जबकि सच्चाई यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्होंने रोटरी फाउंडेशन का अकाउंट भरने का नहीं, बल्कि खाली करने का काम किया है । दीपक गुप्ता रोटरी फाउंडेशन के लिए 10 लाख डॉलर से अधिक की रकम जमा होने की बात तो बता रहे हैं, लेकिन इस तथ्य को बहुत ही चालाकी से छिपा ले रहे हैं कि इसमें पाँच लाख डॉलर से अधिक की रकम तो टर्म गिफ्ट के रूप में है, जिसके बदले में तीन से चार गुना रकम ग्लोबल ग्रांट के रूप में रोटरी फाउंडेशन से ली जायेगी - यानि उक्त रकम दान नहीं है, बल्कि इन्वेस्टमेंट है; और यह रकम रोटरी फाउंडेशन के अकाउंट में जमा रकम को बढ़ाने का नहीं, उलटे घटाने का काम करेगी । इस तरह, दीपक गुप्ता ने रोटरी फाउंडेशन को चूना लगाने का ही काम नहीं किया है - बल्कि उनकी असफलता इस मामले में भी है कि टर्म गिफ्ट के नाम पर भी वह कुल करीब छह/आठ क्लब्स से ही पैसे जुटा पाए हैं और डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर क्लब्स की तरफ से उन्हें ठेंगा ही मिला है ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी का विकास सदस्यता वृद्धि तथा फाउंडेशन की जमा राशि पर ही निर्भर करता है, और इसीलिए रोटरी इंटरनेशनल इन दोनों क्षेत्रों में अधिक से अधिक ध्यान देने पर जोर देता है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता ने लेकिन दोनों ही क्षेत्रों में उलटे नतीजे देकर वास्तव में रोटरी को आगे बढ़ाने की बजाये, पीछे घसीटने का ही काम किया है । हद की बात यह है कि अपनी असफलता पर शर्मिंदा होने की बजाये वह आधी-अधूरी बातें बता कर दोनों ही क्षेत्रों में अपनी उपलब्धियों का ढोल पीट रहे हैं और खुद ही खुद को शाबासी देने में लगे हुए हैं । 

Sunday, July 19, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की वर्चुअल सीपीई मीटिंग में पंकज गुप्ता की भागीदारी देख कर लोगों को विश्वास हो चला है कि शशांक अग्रवाल ने आखिरकार पंकज गुप्ता को 'मैनेज' कर लिया है, और अब सभी वेंडर्स व फैकल्टीज के भुगतान हो जायेंगे

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन शशांक अग्रवाल को अंततः ट्रेजरर पंकज गुप्ता के सामने समर्पण करने के लिए मजबूर होना ही पड़ा, और कल शाम आयोजित हुई एक वर्चुअल सीपीई मीटिंग के निमंत्रण पत्र पर उनकी तस्वीर छाप कर शशांक अग्रवाल ने पंकज गुप्ता की नाराजगी को खत्म करने की कोशिश की । शशांक अग्रवाल हालाँकि कोशिश तो कर रहे थे कि पंकज गुप्ता उनके सामने समर्पण करेंगे, लेकिन उनकी कोशिशें सफल नहीं हो सकीं - और उन्हें ही पंकज गुप्ता के सामने झुकना पड़ा । पंकज गुप्ता को खुश करने व रखने के लिए शशांक अग्रवाल ने पंकज गुप्ता के नजदीकी विजय गुप्ता को भी, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए अमेरिका में अवसर तलाशने के मुद्दे पर हुई वर्चुअल सीपीई मीटिंग में शामिल किया और उनकी भी तस्वीर निमंत्रण पत्र में प्रकाशित की । उम्मीद की जा रही है कि पंकज गुप्ता के सामने समर्पण करके तथा उन्हें खुश करने की कोशिशो से शशांक अग्रवाल ट्रेजरर के रूप में पंकज गुप्ता से वेंडर्स व जीएमसीएस कोर्स की फैकल्टीज को दिए जाने वाले चेक्स पर हस्ताक्षर करवा लेंगे, तथा भुगतान न हो पाने के आरोपों से छुटकारा पा लेंगे । उल्लेखनीय है कि पिछले महीने आयोजित हुई रीजनल काउंसिल की एक ऑनलाइन मीटिंग में रीजनल काउंसिल को विभिन्न सर्विसेज उपलब्ध करवाने वाले वेंडर्स तथा जीएमसीएस कोर्स की फैकल्टीज को महीनों से भुगतान न होने का मुद्दा उठाया गया था, जिसका ठीकरा शशांक अग्रवाल ने ट्रेजरर पंकज गुप्ता के सिर पर यह कहते/बताते हुए फोड़ दिया था कि उन्होंने तो सब हिसाब बना/बनवा लिए हैं - लेकिन चेक्स पर ट्रेजरर पंकज गुप्ता द्वारा हस्ताक्षर न किए जाने के कारण भुगतान नहीं हो पाए हैं । मीटिंग के बाद शशांक अग्रवाल ने हालाँकि लोगों को आश्वस्त किया था कि वह पंकज गुप्ता को 'मैनेज' कर लेंगे ।
कल शाम हुई मीटिंग के निमंत्रण पत्र को देखने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को आभास हो चला है कि पंकज गुप्ता 'मैनेज' हो गए हैं । पंकज गुप्ता के नजदीकियों का कहना/बताना है कि पंकज गुप्ता ज्यादा 'डिमांडिंग' नहीं हैं, उन्हें इस बात से ज्यादा मतलब नहीं है कि चेयरमैन के रूप में शशांक अग्रवाल कहाँ कैसे क्या कर रहे हैं - वह तो सिर्फ इतना चाहते हैं कि ट्रेजरर के रूप में उनसे जिन चेक्स पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा जाए, उसका पूरा विवरण उन्हें दिया जाए । नजदीकियों के अनुसार, शशांक अग्रवाल ने जिन मामलों में विवरण दिए, पंकज गुप्ता ने उनके भुगतान को तुरंत हरी झंडी दे दी । शशांक अग्रवाल के नजदीकियों का कहना लेकिन यह रहा है कि पंकज गुप्ता रीजनल काउंसिल के हर कार्यक्रम में विशेष तवज्जो पाने की उम्मीद करते हैं, और सिर्फ अपने लिए ही नहीं - बल्कि अपने साथियों को भी तवज्जो देने की माँग करते रहे हैं, और 'माँग पूरी न होने पर' ही उन्होंने भुगतान रोक कर शशांक अग्रवाल के लिए परेशानी पैदा करना शुरू किया । पंकज गुप्ता को ऐसा करने का मौका उन आरोपों से मिला, जिनमें शशांक अग्रवाल पर अपने नजदीकियों को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से मनमाने तरीके से वेंडर्स व फैकल्टीज नियुक्त करने तथा उन्हें अनाप-शनाप तरीके से भुगतान करने की कोशिश करने की बातें कहीं गईं । इस तरह के आरोप चूँकि काउंसिल सदस्यों ने ही लगाए, और शशांक अग्रवाल काउंसिल सदस्यों के आरोपों पर जिस तरह से चुप्पी साधते व छिपते/बचते नजर आए - उससे शशांक अग्रवाल आरोपों के घेरे में और फँसते गए । ट्रेजरर के रूप में पंकज गुप्ता ने शशांक अग्रवाल द्वारा बनाये/बनवाये गए हिसाब पर आँखमूंद कर हस्ताक्षर करने से इंकार करके उस घेरे को और कसने का काम किया ।
शशांक अग्रवाल के नजदीकियों का कहना/बताना है कि हिसाब के विवरण की बात तो एक बहाना है, असल समस्या रीजनल काउंसिल के कार्यक्रमों में तवज्जो पाना है - इसलिए अब जब रीजनल काउंसिल की वर्चुअल सीपीई मीटिंग में पंकज गुप्ता तथा उनके साथी विजय गुप्ता को शामिल कर लिया गया है, और उनकी तस्वीरें भी निमंत्रण पत्र में प्रमुखता से छापी हैं; तो अब देखियेगा कि सभी चेक्स धड़ाधड़ हस्ताक्षरित हो जायेंगे और सभी वेंडर्स व फैकल्टीज के भुगतान हो जायेंगे । रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों व सदस्यों के बीच कार्यक्रमों में मंच पर बैठने तथा निमंत्रण पत्र व बैकड्रॉप में नाम/तस्वीर होने को लेकर 'झगड़े' हालाँकि हमेशा होते रहे हैं - लेकिन मौजूदा टर्म में यह झगड़े बहुत ही निचले स्तर पर पहुँचे हुए नजर आ रहे हैं । इसी चक्कर में रीजनल काउंसिल के मौजूदा टर्म का पहला और पिछ्ला वर्ष बर्बाद हुआ; दूसरे व मौजूदा वर्ष में लॉकडाउन के कारण हालाँकि ज्यादा मौके नहीं बने - लेकिन फिर भी पदाधिकरियों ने झगड़ने के मौके बना लिए, जिसके चलते भुगतान अटके और कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा । कल शाम हुई वर्चुअल सीपीई मीटिंग में पंकज गुप्ता को विजय गुप्ता के साथ तवज्जो मिली देख लोगों को उम्मीद बनी है कि इससे शशांक अग्रवाल व पंकज गुप्ता के बीच झगड़ा खत्म होगा, और रीजनल काउंसिल का काम पटरी पर लौटेगा । 

Saturday, July 18, 2020

रोटरी जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में रंजन ढींगरा तथा राजु सुब्रमणियन के बीच होते दिख रहे मुकाबले में, उत्तर/पश्चिम तथा एक ही डिस्ट्रिक्ट से बार-बार डायरेक्टर बनने के मुद्दे को हवा मिलने से अशोक गुप्ता व दीपक कपूर मुकाबले में शामिल होते नजर आ रहे हैं 

नई दिल्ली । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के संभावित उम्मीदवारों की सक्रियता बढ़ने से जोन 4 के डिस्ट्रिक्ट्स में राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज होती हुई नजर आ रही हैं । संभावित उम्मीदवारों की तरफ से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के संभावित उम्मीदवारों के साथ-साथ दूसरे नेताओं और पदाधिकारियों से भी संपर्क साधना शुरू करने की बातें सुनी जाने लगी हैं, और इससे जोन में तथा विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में राजनीतिक समीकरण तेजी से बनने/बिगड़ने लगे हैं । इस बार, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जोन 4 के 12 डिस्ट्रिक्ट्स में से करीब 8 या 9 उम्मीदवार तैयारी करते सुने जा रहे हैं । उम्मीदवारों की इस संभावित भीड़ ने जोन तथा डिस्ट्रिक्ट्स के राजनीतिक समीकरणों को बुरी तरफ से गड़बड़ा दिया है, और नए समीकरण व गठजोड़ बनने के रास्ते बनते नजर आ रहे हैं । उम्मीदवारों की संख्या भले ही 8 या 9 हो रही हो, लेकिन मुकाबले में राजु सुब्रमणियन, रंजन ढींगरा और अशोक गुप्ता को देखा/पहचाना जा रहा है; गुलाम वाहनवती और दीपक कपूर किस्मत के भरोसे मैदान में हैं - बाकी संभावित उम्मीदवारों को कोई भी गंभीरता से लेता हुआ नजर नहीं आ रहा है, लेकिन वह किसी का 'खेल' बनाने या किसी का बिगाड़ने का काम जरूर कर सकते हैं ।
खेमेबाजी के लिहाज से रंजन ढींगरा तथा अशोक गुप्ता को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता के खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; जबकि राजु सुब्रमणियन, गुलाम वाहनवती व दीपक कपूर को विरोधी खेमे के उम्मीदवार के रूप में समझा जा रहा । विरोधी खेमे का कोई एक नेता नहीं है - यह बात उनकी स्थिति को नुकसान भी पहुँचाती है और फायदा भी देती है । फिलहाल शेखर मेहता खेमे में रंजन ढींगरा का, तो विरोधी खेमे में राजु सुब्रमणियन का पलड़ा भारी नजर आ रहा है - और जोन के छोटे/बड़े कई नेताओं को इन्हीं दोनों के बीच मुकाबला होता 'दिख' रहा है । हालाँकि अपने अपने डिस्ट्रिक्ट में रंजन ढींगरा को दीपक कपूर से, तथा राजु सुब्रमणियन को गुलाम वाहनवती से टक्कर मिलती दिख रही है । रंजन ढींगरा के डिस्ट्रिक्ट से विनोद बंसल भी उम्मीदवार बनने की तैयारी में हैं, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है । पिछले कुछेक महीनों में उन्हें अपने डिस्ट्रिक्ट में लगातार मुसीबतों का सामना करना पड़ा है, और वह अलग-थलग पड़ते गए हैं । इसी के चलते, डिस्ट्रिक्ट के महत्त्वपूर्ण व प्रमुख प्रोजेक्ट रोटरी ब्लड बैंक के हिसाब-किताब में गड़बड़झाले के आरोपों के साथ वह प्रेसीडेंट पद से बड़े फजीहतभरे तरीके से हटाये गए । अतिमहत्त्वाकांक्षा और मौकापरस्ती वाले रवैये के चलते विनोद बंसल को हाल के दिनों में शेखर मेहता की नजदीकियत से भी हाथ धोना पड़ा है, जिसके तुरंत बाद से वह विरोधी खेमे में जगह पाने/बनाने के प्रयासों में जुट गए हैं - लेकिन वहाँ भी उनकी दाल गलती हुई नजर नहीं आ रही है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में इस बार खेमेबाजी वाला ऐंगल तो है ही, उत्तर/पश्चिम का और एक ही डिस्ट्रिक्ट से बार-बार डायरेक्टर बनने के मामले को भी हवा मिलती दिख रही है ।
उल्लेखनीय है कि राजु सुब्रमणियन तथा गुलाम वाहनवती उसी डिस्ट्रिक्ट के सदस्य हैं, जिस डिस्ट्रिक्ट के मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या सदस्य हैं । इस बिना पर जोन के नेताओं और पदाधिकारियों के बीच सवाल है कि हर बार एक ही डिस्ट्रिक्ट के लोग डायरेक्टर बनेंगे क्या ? पश्चिम और उत्तर का भी मामला है । मौजूदा डायरेक्टर भरत पांड्या पश्चिम से हैं, इसलिए उत्तर के रोटेरियंस को लगता है कि इस बार उत्तर से डायरेक्टर होना चाहिए । इस तरह की बातें राजु सुब्रमणियन व गुलाम वाहनवती की स्थिति को कमजोर करती हैं, और चुनावी मुकाबले को रंजन ढींगरा, अशोक गुप्ता तथा दीपक कपूर के बीच सीमित कर देती हैं । दीपक कपूर को उम्मीद है कि राजु सुब्रमणियन व गुलाम वाहनवती के मुकाबले से बाहर होने की स्थिति में विरोधी खेमे के नेताओं का समर्थन उन्हें मिलेगा, और उनका काम बन जायेगा । रंजन ढींगरा तथा अशोक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को लेकिन लगता है कि राजु सुब्रमणियन व गुलाम वाहनवती का मामला यदि बिगड़ा, तो उनकी कोशिश होगी कि इसका फायदा शेखर मेहता खेमे के उम्मीदवारों को मिलें - ताकि अगली बार वह उनका समर्थन पा सकें; यह फायदा लेकिन इस बात पर निर्भर करेगा कि नोमीनेटिंग कमेटी में रंजन ढींगरा और अशोक गुप्ता के समर्थक किस तरह अपने अपने उम्मीदवार के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास करते हैं ? एक संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि कई उम्मीदवारों के होने से नोमीनेटिंग कमेटी में किसी एक उम्मीदवार को जरूरी 60 प्रतिशत वोट न मिल पाएँ और नोमीनेटिंग कमेटी अधिकृत उम्मीदवार न चुन सके - और तब खुला चुनाव होने की नौबत आ जाए । उस स्थिति में अशोक गुप्ता के फायदे में रहने का अनुमान लगाया जा रहा है, क्योंकि जिन चार-पाँच उम्मीदवारों को मुकाबले में देखा/पहचाना जा रहा है, उनमें अकेले अशोक गुप्ता ही अपने डिस्ट्रिक्ट से एकमात्र उम्मीदवार हैं, और उनके डिस्ट्रिक्ट के वोट भी अन्य डिस्ट्रिक्ट्स की तुलना में ज्यादा हैं ।
बहरहाल, अभी तो खेल शुरू हुआ है - और उम्मीद की जा रही है कि इस खेल में अभी नए समीकरण बनेंगे/बिगड़ेंगे, जो डायरेक्टर पद की राजनीति की दशा और दिशा तय करेंगे !

Friday, July 17, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर अरुण शर्मा की तरफ से आरोप सुनने को मिल रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज उनकी सिफारिश के बाद भी 'उनके' लोगों को डिस्ट्रिक्ट टीम में नहीं ले रहे हैं, और जितेंद्र ढींगरा की कठपुतली बने हुए हैं; उधर जितेंद्र ढींगरा के कई नजदीकी भी नाराज हैं कि रमेश बजाज उन्हें तवज्जो नहीं देते हैं

पानीपत । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर अरुण शर्मा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज से बुरी तरह नाराज हैं । अरुण शर्मा की शिकायत है कि रमेश बजाज उन्हीं की कोशिशों से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी पर बैठे हैं, और उन्हीं के सुझावों व सिफारिशों को स्वीकार नहीं कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट टीम के लिए अरुण शर्मा ने जिन रोटेरियंस के नामों की सिफारिश की, उनमें से कईयों को रमेश बजाज ने अपनी टीम में जगह नहीं दी है - और इसी बात से अरुण शर्मा खासे भड़के हुए हैं । अरुण शर्मा की तरफ से गंभीर आरोप यह सुना जा रहा है कि रमेश बजाज अपनी टीम के सदस्यों का चयन/चुनाव निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा की सलाह से कर रहे हैं, और जितेंद्र ढींगरा के कहने पर ही रमेश बजाज ने उनके सुझाए रोटेरियंस को पद नहीं दिए हैं, तथा जितेंद्र ढींगरा की कठपुतली बने हुए हैं । अरुण शर्मा की सिफारिश के बाद भी पद न पाने वाले कुछेक रोटेरियंस ने इन पंक्तियों के लेखक को बताया है कि रमेश बजाज ने ही उन्हें सूचित किया है कि उन्होंने तो उनके नाम टीम में शामिल कर लिए थे, और उन्हें पद दे दिए थे - लेकिन जितेंद्र ढींगरा के आपत्ति करने के बाद उन्हें उनके नाम टीम से हटाने पड़े हैं । उनके नामों को लेकर जितेंद्र ढींगरा की आपत्ति का कारण यह रहा कि टीके रूबी वाले मामले में डिस्ट्रिक्ट में पीछे दो/तीन वर्ष जो उठा-पटक चली थी, उसमें उनकी भूमिका काफी नकारात्मक थी; और उनकी उस नकारात्मक भूमिका को देखते/याद करते हुए वह उन्हें डिस्ट्रिक्ट टीम में तवज्जो मिलते हुए नहीं देख सकते हैं । मजे की बात लेकिन यह है कि जितेंद्र ढींगरा पर रमेश बजाज की टीम के सदस्यों के चयन/चुनाव पर अपनी पसंद/नापसंद थोपने के आरोपों के बावजूद रमेश बजाज की टीम में बहुत से ऐसे रोटेरियंस को जगह मिली सुनी/बताई गई है जो टीके रूबी वाले मामले में जितेंद्र ढींगरा की राजनीति के खिलाफ रहे थे ।
रमेश बजाज के लिए दुविधा, विडंबना और मुसीबत की बात दरअसल यह हुई है कि डिस्ट्रिक्ट में उन्हें अभी भी 'राजा साबू के आदमी' के रूप में पहचाना जाता है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी तक वह जितेंद्र ढींगरा ग्रुप की तरफ से पहुँचे हैं; और इस कुर्सी तक पहुँचने की उनकी कोशिशों को आसान बनाया है राजा साबू खेमे के अरुण शर्मा ने । इस तरह, रमेश बजाज दोनों खेमों में हैं - लेकिन दोनों खेमे के लोग उन पर संदेह करते हैं, और इस कारण से दोनों खेमों की तरफ से उन्हें अपेक्षित मदद नहीं मिल रही है । जितेंद्र ढींगरा खेमे के कई छोटे/बड़े प्रमुख सदस्यों के खुले ऐतराज के बाद भी रमेश बजाज ने राजा साबू खेमे के अरुण शर्मा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया, जिस कारण वह रमेश बजाज से नाराज हुए - और अब अरुण शर्मा की नाराजगी सामने आ रही है कि रमेश बजाज ने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर तो उन्हें बनाया, लेकिन उनकी सुनने/मानने की बजाये रमेश बजाज फैसले जितेंद्र ढींगरा के कहने से कर रहे हैं । मजेदार और विडंबनापूर्ण नजारा यह है कि एक तरफ तो अरुण शर्मा की तरफ से सुना/बताया जा रहा है कि रमेश बजाज उनकी सिफारिश के बाद भी 'उनके' लोगों को डिस्ट्रिक्ट टीम में नहीं ले रहे हैं; और दूसरी जितेंद्र ढींगरा के नजदीकियों की शिकायत है कि जितेंद्र ढींगरा ने कैसे व्यक्ति को गवर्नर बना/बनवा दिया है, जो उनके नजदीकियों और समर्थकों को अपनी टीम में जगह ही नहीं दे रहा है, और जिसने अपनी टीम में विरोधियों को भर लिया है ।
इस स्थिति के लिए हालाँकि कई लोग रमेश बजाज को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । उनका कहना है कि रमेश बजाज डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तो बन गए हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभाने/संभालने की काबिलियत वह नहीं दिखा पा रहे हैं - और यही कारण है कि वह न तो ढंग से कोई काम कर पा रहे हैं, और न लोगों की ठीक से मदद ले पा रहे हैं । दरअसल वह किसी भी तरफ के लोगों का भरोसा नहीं जीत पाए हैं; अपनी तरफ से हालाँकि वह चतुराई तो खूब दिखाते हैं, लेकिन उनकी चतुराई उन्हें उल्टी पड़ती है और उनकी फजीहत करवाती है । जितेंद्र ढींगरा के नजदीकी कुछेक बड़े व प्रमुख लोगों को रमेश बजाज बिलकुल भी तवज्जो नहीं देते हैं, लेकिन इससे उन्हें कोई लाभ होने की बजाये नुकसान ही उठाना पड़ा है - क्योंकि उनके इस व्यवहार के कारण उन्हें जितेंद्र ढींगरा ग्रुप का कोई सहयोग नहीं मिल पा रहा है - उधर राजा साबू खेमे के लोग उन्हें जितेंद्र ढींगरा के नजदीक पाते/देखते हुए उनसे दूर बने हुए हैं । अपने बिलकुल पहले कार्यक्रम - प्री-पेट्स - के आयोजन की जिम्मेदारी अरुण शर्मा के क्लब को देकर रमेश बजाज जिस मुसीबत में फँसे थे, और जिससे उन्हें जितेंद्र ढींगरा ने निकाला/बचाया था - उससे रमेश बजाज ने लगता है कि कोई सबक नहीं सीखा और वह लगातार वही गलतियाँ करते जा रहे हैं, जिनके कारण वह प्री-पेट्स में फजीहत का शिकार बने थे । दोनों तरफ के लोगों को खुश करने/रखने के चक्कर में रमेश बजाज ने दोनों तरफ के लोगों को नाराज किया हुआ है, जिस कारण डिस्ट्रिक्ट में उन्हें कोई भी गंभीरता से लेता हुआ नहीं दिख रहा है, और उनका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना एक मजाक सा बन कर रह गया है ।  

Thursday, July 16, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में मधु सिंह और पारस अग्रवाल के बीच भड़कती दिख रही कीचड़-उछाल होड़ सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनीता बंसल के लिए मुसीबत बनती नजर आ रही है, और उनका हाल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन के जगदीश अग्रवाल जैसा होने की आशंका हो चली है

आगरा । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह के सवालों और आरोपों का जबाव देने के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पारस अग्रवाल के खुद मैदान में उतर आने से उनके बीच आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर लंबा खिंचता दिख रहा है, जिसके सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनीता बंसल के लिए मुसीबत भरा साबित होने का अनुमान लगाया जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों को आशंका हो चली है कि मधु सिंह तथा पारस अग्रवाल के बीच चल रही तू-तू मैं-मैं के कारण सुनीता बंसल का हाल कहीं डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन के जगदीश अग्रवाल जैसा न हो जाए ? जगदीश अग्रवाल पिछले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे, जिन्होंने अपने रवैये और व्यवहार से डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख पूर्व गवर्नर्स को नाराज कर लिया था - जिसके चलते पूर्व गवर्नर्स ने उनके खिलाफ 51 प्रतिशत से अधिक नेगेटिव वोटिंग करवा दी और फलस्वरूप जगदीश अग्रवाल फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन सके और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की उनकी तैयारी पर पानी फिर गया । जगदीश अग्रवाल ने कोशिश की कि लायंस इंटरनेशनल चुनावी नतीजे को इग्नोर करके उन्हें फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बना दे, लेकिन लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने भी साफ कर दिया कि सेकेंड से फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट बनने के लिए जरूरी 51 प्रतिशत वोट वह चूँकि नहीं पा सके हैं, इसलिए वह (फर्स्ट वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की पात्रता खो चुके हैं । डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में सुनीता बंसल को चूँकि मधु सिंह के नजदीकी के रूप में देखा/पहचाना जाता है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों को लग रहा है कि मधु सिंह और पारस अग्रवाल के बीच चलने वाली कीचड़-उछाल राजनीति के चलते सुनीता बंसल का हाल जगदीश अग्रवाल जैसा ही होगा ।
उल्लेखनीय है कि सुनीता बंसल ने पिछले से पिछले लायन वर्ष में मधु सिंह के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, पारस अग्रवाल और जितेंद्र चौहान की जोड़ी ने लेकिन उन्हें जीतने नहीं दिया । पिछले लायन वर्ष में सुनीता बंसल फिर से मधु सिंह के सहयोग/समर्थन के भरोसे चुनावी दौड़ में शामिल हुईं । जितेंद्र चौहान चूँकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में एंडोर्समेंट लेने के चक्कर में थे, इसलिए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से दूर रहने की घोषणा की - और ऐसा लगा कि सुनीता बंसल निर्विरोध ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जायेंगी । लेकिन चुनाव की घोषणा होते ही जब दो और उम्मीदवार मैदान में आ कूदे तो डिस्ट्रिक्ट में हलचल मची और सुनने को मिला कि मधु सिंह और सुनीता बंसल के बीच पैसों को लेकर अनबन हो गई है, और मधु सिंह ने सुनीता बंसल से पैसे बसूलने के लिए फर्जी उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं । उनमें से एक उम्मीदवार के पारस अग्रवाल के क्लब का सदस्य होने के कारण इस चर्चा को भी बल मिला कि मधु सिंह और सुनीता बंसल के बीच होने वाली अनबन का फायदा उठा कर पारस अग्रवाल एक बार फिर सुनीता बंसल का काम बिगाड़ना चाहते हैं । लेकिन जल्दी ही, चूँकि मधु सिंह और सुनीता बंसल के बीच 'सौदा' पट गया और पारस अग्रवाल व जितेंद्र चौहान की जोड़ी भी डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में ज्यादा फँसना/पड़ना नहीं चाहती थी - इसलिए सुनीता बंसल के लिए रास्ता साफ हो गया । सुनीता बंसल का तो काम बन गया, लेकिन जो तमाशा हुआ - उसके चलते मधु सिंह की बड़ी किरकिरी हुई; लोगों के बीच बातें सुनने को मिलीं कि मधु सिंह ने सुनीता बंसल से 'इतने' रुपए लिए कि 'उतने' रुपए लिए । मधु सिंह ने अपनी इस फजीहत के लिए पारस अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराया और आरोप लगाया कि लोगों के बीच पारस अग्रवाल ही इस तरह की बातें फैला रहे हैं और उन्हें बदनाम कर रहे हैं ।
मधु सिंह ने जबावी हमला करते हुए पारस अग्रवाल के मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के अकाउंट को मुद्दा बनाया और तरह तरह के सवाल उठाते तथा आरोप लगाते हुए पारस अग्रवाल पर कीचड़ उछालना शुरू किया । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों के कारण मधु सिंह के पारस अग्रवाल विरोधी अभियान को खूब हवा भी मिली । मधु सिंह के सवालों और आरोपों का अभी हाल ही में जबाव देते हुए खुद पारस अग्रवाल भी मैदान में कूद पड़े हैं, जिसके बाद वाट्सऐप ग्रुपों में मधु सिंह और पारस अग्रवाल को लेकर तू-तू मैं-मैं और बढ़ गई है । पारस अग्रवाल के खुद मैदान में आ जाने से लोगों को लग रहा है कि पारस अग्रवाल और उनके साथियों ने मधु सिंह को 'ईंट का जबाव पत्थर से' देने की तैयारी कर ली है; और आने वाले दिनों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मधु सिंह के अकाउंट को लेकर सवाल तथा आरोप उछाले जायेंगे । इस झमेले में सुनीता बंसल के लिए मुसीबतें बढ़ती देखी जा रही हैं । सुनीता बंसल अभी तक मधु सिंह के साथ 'दिखती' रही हैं - पारस अग्रवाल और जितेंद्र चौहान की जोड़ी उन्हें लेकिन मधु सिंह के खिलाफ अपनी लड़ाई में अपने साथ करना चाहेगी; लोगों को लगता है कि ऐसे में, सुनीता बंसल ने यदि मधु सिंह के प्रति जरा भी नजदीकियत दिखाई, तो पारस अग्रवाल व जितेंद्र चौहान की जोड़ी उनके खिलाफ नेगेटिव वोटिंग करवा कर उन्हें फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बनने देगी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी तक पहुँचने के लिए सुनीता बंसल को दो बार चुनाव का सामना करना है और दोनों बार 51 प्रतिशत वोट पाने हैं, जो पारस अग्रवाल व जितेंद्र चौहान की जोड़ी के समर्थन के बिना उनके लिए मुश्किल क्या - असंभव ही होगा । इसीलिए मधु सिंह और पारस अग्रवाल के बीच भड़कती दिख रही कीचड़-उछाल होड़ सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनीता बंसल के लिए मुसीबत बनती नजर आ रही है ।

Tuesday, July 14, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में चुनावी फायदे के लिए बड़ी संख्या में क्लब्स व सदस्य बना कर, नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में दीपक तलवार से आगे निकलने की, विनय भाटिया की तैयारी पर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले ने पानी फेरा

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के एक फैसले के कारण पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया के लिए 'सिर मुँडाते ओले पड़ने' वाले हालात बन गए हैं । विनय भाटिया ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी का चुनाव जीतने के उद्देश्य से 'अपने' वोट बनाने के लिए कई नए क्लब बनाये, लेकिन रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के एक फैसले के चलते इस वर्ष बने क्लब्स को इस वर्ष होने वाले चुनाव में वोट देने का अधिकार नहीं मिलेगा - और इस तरह 'फर्जी' वोट बना कर चुनाव जीतने की विनय भाटिया की तैयारी शुरू होते ही औंधे मुँह गिर पड़ी है । उल्लेखनीय है कि रोटरी में होने वाले चुनावी मुकाबले में अपने आप को कमजोर समझने वाले उम्मीदवार फर्जी किस्म के नए क्लब बना कर तथा क्लब्स की सदस्यता फर्जी तरीके से बढ़ा कर 'अपने' वोट बनाते/बढ़ाते हैं, और चुनाव जीतने का जुगाड़ लगाते हैं । चुनाव संपन्न होते ही वोट बनाने/बढ़ाने के उद्देश्य से बने क्लब और सदस्य फिर गायब हो जाते हैं । चुनावी फायदे के लिए नए क्लब और नए सदस्य बनाने को लेकर रोटरी इंटरनेशनल को बहुत शिकायतें मिलती रही हैं - उन्हीं शिकायतों का संज्ञान लेकर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने कुछेक अन्य देशों के साथ-साथ भारत के लिए भी मौजूदा वर्ष से यह नियम बना दिया है कि इस वर्ष बनने वाले क्लब्स तथा नए सदस्यों को इस वर्ष के चुनाव में वोट देने/डालने का अधिकार नहीं मिलेगा । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के इस फैसले ने फर्जी वोट बना कर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में बढ़त बनाने की विनय भाटिया की तैयारी पर पानी फेर दिया है ।        
उल्लेखनीय है कि फर्जी तरीके से आठ दिन के लिए डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन 'बने' विनय भाटिया ने डिस्ट्रिक्ट वर्ष के पहले ही दिन 16 नए क्लब तथा करीब 500 नए सदस्य बनाने/बनवाने का काम किया था । उनकी तरफ से दावा किया गया था कि वह जल्दी ही 12 और नए क्लब बनायेंगे/बनवायेंगे तथा कुछेक क्लब्स की सदस्यता में वृद्धि करें/करवायेंगे । एकदम से कई नए क्लब बनाने/बनवाने की उनकी कार्रवाई को वास्तव में उनकी चुनावी तैयारी के रूप में ही देखा/पहचाना गया - और इस बारे में रोटरी इंटरनेशनल के विभिन्न पदाधिकारियों से शिकायतें भी की गईं । शिकायतों में साफ साफ कहा/बताया गया कि विनय भाटिया ने जो नए क्लब तथा सदस्य बनाये/बनवाये हैं, उनमें रोटरी इंटरनेशनल द्वारा तय की गई प्रक्रिया को नहीं अपनाया है, और 'कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा / भानुमती का कुनबा जोड़ा' वाली तर्ज पर क्लब्स बना दिए गए हैं, और जो चुनावी फायदा पहुँचा कर बंद हो जायेंगे । इस बारे में जोन 4 के रोटरी कोऑर्डीनेटर गुरजीत सिंह सेखों तथा असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डीनेटर प्रियेश भंडारी से भी शिकायत की गई; जिन्होंने लेकिन यह कहते हुए मामले से पल्ला झाड़ लिया कि उन्हें तो सिर्फ इस बात से मतलब है कि उनके 'कार्यकाल' में रोटरी की सदस्यता बढ़ रही है । रोटरी में दरअसल यह 'बीमारी' पक्का घर बना चुकी है कि हर पदाधिकारी रिकॉर्ड बनाने के चक्कर में रहता है - और इसके लिए किसी भी स्तर का फर्जीवाड़ा करने के तैयार रहता है, और/या फर्जीवाड़े पर आँखें बंद कर लेता है । विनय भाटिया द्वारा नए क्लब्स व सदस्य बनाने के अभियान को इसीलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा ने बढ़चढ़ कर न सिर्फ सहयोग दिया, बल्कि रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों को रौंदते हुए उन्होंने विनय भाटिया को फर्जी तरीके से डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन बनाने की भी कोशिश की - जिसके लिए उन्हें खासी लताड़ सुनने को मिली और अपने फैसले को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा ।
विनय भाटिया के लिए मुसीबत की बात यह रही कि फर्जी तरीके से डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन का पद पाने और फिर हटाये जाने के मामले में हुई फजीहत के चलते उनके नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव अभियान पर खासा प्रतिकूल असर पड़ा, और लोगों से उन्हें सुनने को मिला कि रोटरी इंटरनेशनल नियम-कानूनों से धोखा करने की उनकी कोशिशों को देखते हुए उन्हें किसी भी पद के भला क्यों चुना जाना चाहिए ? इसके आलावा, नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी करते सुने जा रहे वरिष्ठ पूर्व गवर्नर दीपक तलवार के मुकाबले विनय भाटिया को विभिन्न पैमानों के आधार पर कमजोर ही देखा/माना जा रहा है । रोटरी में काम करने का रिकॉर्ड हो, या रोटरी सक्रियता व प्रभाव का मामला हो - विनय भाटिया हर मामले में दीपक तलवार से बहुत ही 'हलके' पड़ते/लगते हैं । दीपक तलवार और विनय भाटिया के बीच तुलना करने के मौकों को हालाँकि विनोद बंसल ने विनय भाटिया के पक्ष में करने की यह कहते/बताते हुए कोशिश की कि विनय भाटिया उनके प्रतिनिधि हैं, इसलिए विनय भाटिया की कमजोरियों तथा उनके हल्केपन पर ध्यान मत दो । विनय भाटिया दरअसल विनोद बंसल के उम्मीदवार हैं, इसलिए उनका कहना/बताना है कि विनय भाटिया जैसे भी हैं और जो भी हैं - ध्यान रखने की बात सिर्फ यह है कि वह उनके प्रतिनिधि हैं; और यही मान कर उनका समर्थन करना है । विनोद बंसल की वैशाखी और फर्जी वोटों के सहारे विनय भाटिया अपनी उम्मीदवारी के अभियान को खड़ा करने की कोशिश कर ही रहे थे, कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड का फैसला आ गया - जिसने विनय भाटिया की सारी तैयारी को चारों खाने चित्त कर दिया है ।
विनय भाटिया हालाँकि अभी रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले की लिखावट के शब्दों को पकड़कर लोगों को - और शायद अपने आपको भरोसा देने/दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड का फैसला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव  संदर्भ में है; और नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में उक्त फैसला लागू नहीं होगा तथा उनके बनाये क्लब्स के वोटों का लाभ उन्हें मिलेगा । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड का फैसला जिन कारणों से और जिस बड़े स्तर पर लागू हुआ है, उसे देखते/समझते हुए अधिकतर लोगों को लेकिन यही विश्वास है कि उक्त फैसला सभी चुनावों पर लागू होगा, और इस फैसले ने विनय भाटिया के फर्जी वोट बना कर चुनाव जीतने के प्रयासों पर ग्रहण लगा दिया है ।

Sunday, July 12, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की नई टीम में दीपक तलवार को शामिल देख कर उनके समर्थकों ने अपने आपको ठगा हुआ महसूस किया है, और इसके कारण वह अकाउंट्स के गड़बड़झाले में पारस अग्रवाल के खिलाफ कोई न कोई कार्रवाई होने की 'उम्मीद' को खोता देख रहे हैं

नई दिल्ली । दीपक तलवार को मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के नए पदाधिकारियों की टीम में शामिल देख कर उनके नजदीकियों और समर्थकों को तगड़ा झटका लगा है, तथा उन्होंने अपने आप को ठगा हुआ महसूस किया है । नजदीकियों और समर्थकों का कहना/बताना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उन्होंने इनकी उम्मीदवारी का समर्थन करके जितेंद्र चौहान से 'दुश्मनी' मोल ले ली, जिसके चलते मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों की टीम में शामिल हो सकने की उनकी संभावनाएँ तो खत्म हो गईं - लेकिन खुद इन्होंने जितेंद्र चौहान के साथ 'सौदेबाजी' कर ली और मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट टीम में पद ले बैठे हैं । नजदीकियों और समर्थकों का सीधा आरोप है कि जितेंद्र चौहान ने तो इन्हें इसलिए मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट टीम में शामिल किया है, ताकि यह उनके चुनाव तथा पारस अग्रवाल के अकाउंट्स को लेकर लग रहे आरोपों पर 'आगे' न बढ़ें - और इन्होंने पद के लालच में लगता है कि जितेंद्र चौहान के सामने समर्पण कर दिया है । मजे की बात यह रही है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए मल्टीपल में एंडोर्समेंट लेने को लेकर जो प्रक्रिया अपनाई गई थी, उस पर दीपक तलवार के छोटे/बड़े समर्थकों ने तरह तरह के खूब आरोप लगाए थे । उन आरोपों के भरोसे समर्थकों को विश्वास था कि चुनाव के बाद चुनावी प्रक्रिया में नियमों के उल्लंघन को लेकर पिटीशन अवश्य ही दायर होगी, और चुनाव को ही रद्द करवा दिया जायेगा । लेकिन चुनाव संपन्न हो जाने तथा नतीजा घोषित हो जाने के बाद न तेजपाल खिल्लन ने पिटीशन दायर करने को लेकर कोई उत्सुकता दिखाई - और न दीपक तलवार ने । इनके इस रवैये से, नियमों के उल्लंघन को लेकर शोर मचाते रहे इनके समर्थकों को फजीहत का शिकार होना पड़ा ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में करारी हार का सामना करने के कारण फजीहत का शिकार बने दीपक तलवार के नजदीकियों व समर्थकों को लेकिन तुरंत ही पारस अग्रवाल के मल्टीपल चेयरपर्सन के कार्यकाल के अकाउंट्स का मुद्दा हाथ लग गया । पारस अग्रवाल के अकाउंट्स  की कुछेक 'कमजोर कड़ियों' को मुद्दा बना कर, दीपक तलवार के कई एक समर्थकों ने तरह तरह से पारस अग्रवाल पर फंदा कसने की तैयारी की । इस तैयारी की अगुवा बनीं पारस अग्रवाल व जितेंद्र चौहान के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू की निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह । मजे की बात यह रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में खुद मधु सिंह पर कई तरह के ड्यूज दबाने के आरोप रहे; अपने पर लगे आरोपों को क्लियर करने की बजाये वह लेकिन पारस अग्रवाल को बेईमान साबित करने के अभियान में जुटीं । उनके अभियान को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में भारी हार से बौखलाए दीपक तलवार के नजदीकियों तथा समर्थकों ने हवा देने का काम किया । उनके तमाम शोर-शराबे का लेकिन कोई असर पड़ता नहीं दिखा, जिससे उनकी बौखलाहट और बढ़ी । इस बौखलाहट में नजदीकियों और समर्थकों को उम्मीद रही कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनाव संबंधी शिकायतों को लेकर तो भले ही बात 'आगे' न बढ़ी हो, लेकिन पारस अग्रवाल के अकाउंट्स के मामले में तो अवश्य ही कुछ कार्रवाई होना चाहिए । नजदीकियों और समर्थकों को पक्का विश्वास रहा कि पारस अग्रवाल के अकाउंट्स को लेकर मचाया जा रहा उनका शोर-शराबा व्यर्थ नहीं जायेगा ।   
लेकिन जितेंद्र चौहान द्वारा 'बनाई' और/या बनवाई गई मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट टीम में तेजपाल खिल्लन के साथ-साथ दीपक तलवार को भी शामिल देख कर इनके नजदीकियों तथा समर्थकों को आभास हो चला है कि इन्होंने पद पाने के लालच में जितेंद्र चौहान के सामने समर्पण कर दिया है, और इसके चलते अब पारस अग्रवाल के अकाउंट्स के मामले में भी कुछ नहीं होगा । इस आभास के कारण ही, दीपक तलवार के नजदीकियों तथा समर्थकों ने अपने आप को ठगा हुआ पाया है । उन्हें झटका दरअसल यह देख कर लगा है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट टीम में सभी पद उन लोगों को मिले हैं, जो जितेंद्र चौहान की उम्मीदवारी में किसी न किसी रूप में मददगार थे - दीपक तलवार के नजदीकियों व समर्थकों में से किसी को भी कोई पद नहीं मिला है; जिनके पास पहले से पद थे और जो अभी भी पद पर बने रहने के लिए अधिकृत थे, उन्हें पद से हटा और दिया गया । दीपक तलवार के नजदीकियों व समर्थकों को इसका ज्यादा बुरा नहीं लगा; इसकी तो वह उम्मीद कर रहे थे - उन्हें विश्वास हो चला था कि ऐसा होगा ही; किंतु उन्होंने यह नहीं सोचा था कि दीपक तलवार खुद पद ले लेंगे । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट टीम में इन्हें पदासीन देख कर इनके नजदीकियों व समर्थकों को खासा तगड़ा झटका लगा है और उन्हें महसूस हुआ है कि उन्हें तो उनके अपनों ने ही ठग लिया है । दरअसल इसमें उन्हें अपनी 'वह' उम्मीद पूरी तरह ध्वस्त होती नजर आ रही है, जिसमें वह अकाउंट्स के गड़बड़झाले में पारस अग्रवाल के खिलाफ कोई न कोई कार्रवाई होने की आस लगाये बैठे हैं । 

Friday, July 10, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में चुनावी फायदे के लिए दीपक गुप्ता द्वारा बनाया गया रोटरी क्लब गाजियाबाद तेजस्वी सभी सदस्यों के इस्तीफा देने के कारण छह महीने में ही बंद हुआ, और जो दीपक गुप्ता की नटवरलालरूपी कार्यप्रणाली का एक दिलचस्प उदाहरण बना है 

गाजियाबाद । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने पिछले रोटरी वर्ष के अपने कार्यकाल में जो 12 नए क्लब बनाये/खोले थे, उनमें एक - रोटरी क्लब गाजियाबाद तेजस्वी - दीपक गुप्ता का कार्यकाल पूरा होते ही सभी सदस्यों के इस्तीफा दे देने के कारण बंद हो गया है । यह क्लब 11 दिसंबर 2019 को 66 सदस्यों के साथ खोला गया था, लेकिन ड्यूज जमा करने से बचने की सदस्स्यों की कार्रवाई के कारण छह महीने में ही बंद हो गया है । छह महीने के कार्यकाल में इस क्लब की एकमात्र 'महान उपलब्धि' यह रही कि इसके जो तीन वोट बने थे, वह सीओएल के चुनाव में शरत जैन को दो वोटों से जीत दिलवाने में मददगार रहे । वास्तव में यह क्लब शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाने के अभियान के तहत ही बना/बनाया गया था । 66 सदस्यों के साथ बने/बनाये गए इस क्लब के लिए दीपक गुप्ता को जोन 4 के रोटरी कोऑर्डीनेटर गुरजीत सिंह सेखों तथा असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डीनेटर प्रियेश भंडारी की तरफ से शाबासी भी मिली थी - उन बेचारों को क्या पता था कि दीपक गुप्ता उन्हें ही नहीं, बल्कि रोटरी के उच्च आदर्शों को भी ठग रहे हैं - और वह उनकी ठगी को शाबासी दे रहे हैं । बात सिर्फ इतनी सी ही नहीं है कि एक क्लब खुला और छह महीने में ही बंद हो गया - कोई भी तर्क कर सकता है कि इसके लिए तो क्लब के सदस्यों और पदाधिकारियों को जिम्मेदार माना व जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की इसमें भला क्या गलती है ? लेकिन रोटरी क्लब गाजियाबाद तेजस्वी का किस्सा इतना सीधा/सरल नहीं है, यह किस्सा वास्तव में दीपक गुप्ता की नटवरलालरूपी कार्यप्रणाली का एक दिलचस्प उदाहरण है - जिसमें उक्त क्लब के सदस्य 'इस्तेमाल' किए गए और रोटरी तथा उसके वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ 'धोखा' किया गया ।
उल्लेखनीय है कि उक्त क्लब 15 डॉलर प्रति सदस्य के शुल्क के साथ 11 दिसंबर को खुला था; इसके चार्टर सदस्यों की संख्या 66 थी - लेकिन फरवरी तक इसकी सदस्यता घटकर 20/25 के करीब हो गई । इस बीच, रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से करीब दो लाख का बिल आ गया - जिसे देख कर क्लब के पदाधिकारियों तथा सदस्यों का पारा गर्म हो गया; उनका कहना/बताना रहा कि उन्हें तो विश्वास दिलाया गया था कि जून तक उन्हें कोई बिल नहीं चुकाना होगा । इसके बाद, जैसी जो बातें सुनने को मिलीं - उससे साबित हो गया कि दीपक गुप्ता को लोगों ने 'रोटरी का नटवरलाल' नाम उचित ही दिया है । क्लब की तरफ से सुनने को मिला कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने क्लब के प्रमुख लोगों को फार्मूला सुझाया कि अभी 66 सदस्यों के साथ खोले जा रहे क्लब की सदस्यता जनवरी के अंत तक घटाकर 20/22 कर देना - जिससे कि 66 सदस्यों का शुल्क नहीं लगेगा - और क्लब आगे आसानी से बना/चलता रहेगा । क्लब के प्रमुख कर्ताधर्ताओं ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि दीपक गुप्ता जब एक/डेढ़ महीने के बाद सदस्यता एक तिहाई कर देने का सुझाव दे रहे हैं, तो क्लब की शुरुआत बड़ी सदस्य संख्या से करने की जरूरत भला क्या है ? उन्हें यह नहीं समझ में आया कि इसके पीछे दीपक गुप्ता की चालबाजी क्लब के तीन वोट बनवाने/पाने की है, जिन्हें सीओएल के चुनाव में शरत जैन के पक्ष में किया जायेगा । दीपक गुप्ता का इरादा यही था कि उनका काम बन जाये, उसके बाद सदस्यता घटा दी जाए । काम दीपक गुप्ता की योजना के अनुसार ही हुआ, लेकिन मामला तब बिगड़ गया - जब क्लब को रोटरी इंटरनेशनल से 66 सदस्यों का भारी-भरकम बिल मिला ।
क्लब के पदाधिकारियों ने कोशिश तो बहुत की कि क्लब के तीन वोटों का फायदा चूँकि शरत जैन को मिला है, इसलिए क्लब को मिले बिल का भुगतान वह करें - लेकिन शरत जैन ने अवसरवादी रवैया अपनाते/दिखाते हुए मामले में चुप्पी ही बनाये रखी । दीपक गुप्ता ने कुछ समय तक जरूर क्लब के पदाधिकारियों को झाँसा दिए रखा कि क्लब को मिले बिल के भुगतान को लेकर वह कुछ करेंगे - लेकिन क्लब के पदाधिकारियों को जल्दी ही समझ में आ गया कि रोटरी तथा रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों के साथ 'धोखा' करने वाले दीपक गुप्ता उनके साथ भी धोखा ही कर रहे हैं, इसलिए उन्होंने रोटरी से ही तौबा कर लेने में अपनी भलाई देखी और इस्तीफा देकर क्लब से अलग हो गए - और जब क्लब में कोई बचा नहीं रह गया, तो क्लब स्वतः बंद हो गया । रोटरी में क्लब्स प्रायः ड्यूज जमा न करने के कारण बंद होते हैं; लेकिन रोटरी क्लब गाजियाबाद तेजस्वी सभी सदस्यों के इस्तीफा दे देने के कारण बंद हुआ है । डिस्ट्रिक्ट 3012 में अभी तक 23 क्लब बंद हुए हैं, जिनमें सबसे कम समय तक यही क्लब अस्तित्व में रहा है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता की धोखाधड़ी का शिकार बने रोटेरियंस के रोटरी छोड़ जाने के कारण बंद हुआ है । विडंबना यह है कि रोटेरियंस के साथ धोखाधड़ी करने तथा रोटरी को बदनाम करने के बावजूद दीपक गुप्ता अभी भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी के 'नशे' से बाहर नहीं निकल पाए हैं - भूतपूर्व हो चुकने के बाद भी दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में न सिर्फ क्लब्स के प्रोजेक्ट में शामिल हो रहे हैं, बल्कि अभी भी रोटेरियंस को अवॉर्ड/सर्टीफिकेट घोषित कर रहे हैं तथा बाँट रहे हैं । इस तरह रोटरी से खिलवाड़ करना उनका अभी भी जारी है ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा द्वारा फर्जी तरीके से डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन बनाये गए विनय भाटिया, फजीहतपूर्ण तरीके से चेयरमैन पद से हटाये जाने के कारण डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच मजाक का विषय बन गए हैं, जिससे अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का उनका अभियान भी मुसीबत में फँस गया है 

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा ने अपनी बेशर्मीपूर्ण चालबाजियों से डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन का पद रंजन ढींगरा से छीन कर विनय भाटिया को सौंपने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन अंततः उन्हें मुँहकी ही खानी पड़ी - और आठ दिन के अंदर ही उन्हें विनय भाटिया को बड़े फजीहतभरे तरीके से डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन पद से हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा है । इस तरह विनय भाटिया ने रोटरी के इतिहास में आठ दिन के डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के पद पर रहने का अनोखा, लेकिन शर्मनाक रिकॉर्ड बनाया - शर्मनाक इसलिए, क्योंकि यह आठ दिन भी वह रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों का उल्लंघन करते हुए फर्जी रूप में ही चेयरमैन थे । रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था में यह पद तीन वर्ष के लिए मिलता है, लेकिन विनय भाटिया इस पद पर कुल आठ दिन ही रह पाए - और हटा दिए गए । आठवें दिन ही पद से हटा दिए जाने के कारण, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी के अभियान को खासा तगड़ा झटका लगा है । विनय भाटिया के लिए मुसीबत की बात यह रही कि डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के पद पर उन्हें बैठाने के लिए तरह तरह के हथकंडे तो इसीलिए अपनाए गए थे, ताकि उनकी उम्मीदवारी के अभियान को फायदा मिले - लेकिन आठवें दिन ही उन्हें चेयरमैन के पद से हटा देने के कारण उनकी सारी योजना तो फेल हुई ही, उन्हें लोगों के बीच शर्मिंदगी का सामना और करना पड़ रहा है । लोगों की कमेंटबाजी से पैदा होने वाली शर्मिंदगी से बचने के लिए विनय भाटिया को कुछेक वॉट्सऐप ग्रुप छोड़ने के लिए मजबूर तक होना पड़ा है । ऐसे में, विनय भाटिया के लिए समस्या यह पैदा हुई है कि नोमीनेटिंग कमेटी के लिए अपनी उम्मीदवारी के अभियान के तहत वह लोगों का सामना कैसे करें ?
विनय भाटिया के लिए शर्मिंदगी के साथ-साथ फजीहत की बात यह भी हुई है कि वह जब अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से प्रेसीडेंट्स तथा अन्य रोटेरियंस से मिलजुल रहे थे, तभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा की वह चिट्ठी प्रेसीडेंट्स व अन्य रोटेरियंस को मिली - जिसमें विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के पद से हटाने की जानकारी दी गई थी । संजीव राय मेहरा ने अपनी उक्त चिट्ठी में विनय भाटिया को पद से हटाने के कारणों के बारे में झूठ बोलते हुए, विनय भाटिया को फजीहत से बचाने की कोशिश तो खूब की - लेकिन उनकी और विनय भाटिया की बदकिस्मती रही कि प्रेसीडेंट्स व अन्य रोटेरियंस को यह अच्छी तरह से पता है कि विनय भाटिया को उक्त पद देने के लिए संजीव राय मेहरा ने किस हद तक की निचले स्तर की हरकतें करते हुए झूठ बोले, इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या के स्पष्ट दिशा-निर्देशों की अनदेखी करते हुए उन्हें बेइज्जत किया और रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों तक का मजाक बनाया । वह तो भरत पांड्या ने जब 'सख्ती दिखाई' और संजीव राय मेहरा को 'स्पष्ट संदेश' दिया कि यदि उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों का मजाक बनाते हुए अपनी मनमानी कार्रवाई को नहीं रोका, तो उनके खिलाफ भी अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है - तब संजीव राय मेहरा की अकड़ ढीली पड़ी और उन्होंने विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के पद से हटाया और रंजन ढींगरा को उनका अधिकार सौंपा । 
संजीव राय मेहरा और विनय भाटिया ने मिलकर डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन पद को लेकर जो तिकड़म तथा फर्जीवाड़ा किया, उसे क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तथा अन्य रोटेरियंस ने बड़ी हैरानी और अफसोस के साथ देखा/समझा है । कई एक प्रेसीडेंट्स का कहना/पूछना है कि इन लोगों के मन में जब रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों को लेकर कोई सम्मान नहीं है, इन्हें उनकी कोई परवाह नहीं करना है, इन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर तक की बात नहीं माननी है - तो यह लोग रोटरी में हैं क्यों, और क्यों इन्हें नए नए पद चाहिए ? प्रेसीडेंट्स के बीच उठने वाले इन सवालों ने विनय भाटिया के सामने खासी बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है । दरअसल अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से लोगों से मिलते/जुलते व बात करते हुए विनय भाटिया को इस सवाल का सामना करना पड़ रहा है कि चूँकि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रह चुके हैं, इसलिए उन्हें यह तो पता होगा ही कि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के तहत, सिर्फ एक गवर्नर के समर्थन के भरोसे, वह डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन नहीं बन सकते हैं - इसलिए उन्होंने फर्जी तरीके से उक्त पद पाने की कोशिश क्यों की ? रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों को जब उन्हें नहीं मानना है, तो वह रोटरी में कोई भी पद क्यों लेना चाहते हैं, और क्यों उम्मीदवार बने हुए हैं ? फर्जी तरीके से डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन बने/बनाये गए विनय भाटिया जिस फजीहतपूर्ण तरीके से चेयरमैन पद से हटाये गए हैं, उसके कारण वह लोगों के बीच मजाक का विषय बन गए हैं, जिससे अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का उनका अभियान मुसीबत में फँस गया है । 

Wednesday, July 8, 2020

रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों तथा रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टीज की 'द रोटरी इंडिया ह्यूमैनिटी फाउंडेशन' की गतिविधियों तथा रोटेरियंस से डोनेशन के रूप में पैसे लेने की कोशिशों पर रोक लगाने की सिफारिशों ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता को जोर का झटका दिया है

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने 'द रोटरी इंडिया ह्यूमैनिटी फाउंडेशन' की गतिविधियों पर गंभीर आपत्ति प्रकट करते हुए, वास्तव में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता की गर्दन ही पकड़ ली है । शेखर मेहता 'द रोटरी इंडिया ह्यूमैनिटी फाउंडेशन' के चेयरमैन हैं, और स्काईलाइन हॉउस के उनके पते पर ही इस फाउंडेशन का मुख्यालय है । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों तथा रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टीज ने इस फाउंडेशन की गतिविधियों को रोटरी की 'समानांतर गतिविधियों' के रूप में देखा/पहचाना है, और आशंका व्यक्त की है कि इसकी गतिविधियाँ रोटेरियंस के बीच कन्फ्यूजन पैदा करके उन्हें रोटरी से अलग कर सकती हैं तथा इस तरीके से रोटरी इंटरनेशनल तथा रोटरी फाउंडेशन को नुकसान पहुँचाने वाली साबित हो सकती हैं । एक तरह से रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों तथा रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टीज ने शेखर मेहता के नेतृत्व में चलने वाले 'द रोटरी ह्यूमैनिटी फाउंडेशन' को रोटरी के लिए खतरे के रूप में देखा/पहचाना है - और इसके खिलाफ कार्रवाई शुरू की है । शेखर मेहता के लिए बड़े झटके वाली बात यह रही है कि उनके फाउंडेशन की गतिविधियों का संज्ञान लेते हुए तथा उन पर गंभीर आपत्तियाँ दर्ज करते हुए रोटरी इंटरनेशनल के बोर्ड व रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टीज की जून में जो मीटिंग्स हुईं, उनमें अधिकृत पदाधिकारी होने के बावजूद प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता, डायरेक्टर्स भरत पांड्या व कमल सांघवी तथा फाउंडेशन ट्रस्टी गुलाम वाहनवती को शामिल नहीं किया गया । 
उल्लेखनीय है कि देश के रोटेरियंस के बीच इस फाउंडेशन को शेखर मेहता की 'निजी दुकान' के रूप में ही देखा/पहचाना गया है, जिसे इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने के बाद से वह तेजी से बड़ा बना रहे हैं, तथा सजा/सँवार कर नई चमक के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं । रोटरी इंटरनेशनल की छत्रछाया में 'काम करने का नाम लेकर' यह फाउंडेशन रोटरी क्लब्स, अन्य तरह तरह के एनजीओज तथा सरकारी विभागों के साथ मिल कर गरीबों, बीमारों, अशिक्षितों तथा पिछड़े समुदायों के लिए काम करने की बात कर रहा है; इसने काम करने के लिए प्रायरिटीज एरिया'ज तय किए हैं, और उनके लिए छोटे-बड़े रोटेरियंस को लेकर भारी-भरकम टीमें बनाई हैं - और विभिन्न क्षेत्रों में काम को अंजाम देने के लिए रोटेरियंस से डोनेशन लिए/माँगे हैं । शेखर मेहता ने देश के प्रायः प्रत्येक बड़े रोटेरियन पदाधिकारी व नेता को इस फाउंडेशन में कोई न कोई पद देकर 'जोड़ा' है - और एक तरीके से यह 'दिखाया' हुआ है कि 'द रोटरी ह्यूमैनिटी फाउंडेशन' के लिए काम करने का मतलब रोटरी का काम करना है । कई प्रमुख व वरिष्ठ रोटेरियंस निजी बातचीत में इस फाउंडेशन को शेखर मेहता की निजी महत्त्वाकांक्षा से जोड़ कर देखते/बताते रहे हैं, और शिकायतें करते रहे हैं कि शेखर मेहता इसके जरिये अपना निजी संस्थान बना/खड़ा कर रहे हैं । शेखर मेहता चूँकि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की राह पर हैं, इसलिए तरह-तरह के स्वार्थों के चलते कोई भी खुलकर अपनी शिकायतों को व्यक्त नहीं कर पाया और शेखर मेहता को अपनी 'निजी दुकान' बढ़ाने का साफ रास्ता मिल गया ।
लेकिन रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड तथा रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टीज की मीटिंग्स में जो बातें हुईं हैं, जो सवाल उठे हैं और जिस तरह के निर्णय हुए हैं - उससे लगता है कि शेखर मेहता के फाउंडेशन को ग्रहण लग गया है, और वह मुसीबत में घिर गया है । बोर्ड सदस्यों व ट्रस्टीज की मीटिंग्स में इस बात पर सवाल उठे हैं कि 'द रोटरी इंडिया ह्यूमैनिटी फाउंडेशन' की गतिविधियों के लिए रोटरी इंटरनेशनल तथा रोटरी फाउंडेशन से अनुमति क्यों नहीं ली गईं; तथा रोटरी फाउंडेशन को अलग-थलग करके फाउंडेशन के लिए पैसा क्यों और कैसे लिया जा रहा है ? बोर्ड सदस्यों व ट्रस्टीज ने रोटरी इंटरनेशनल के जनरल सेक्रेटरी से अनुरोध किया है कि वह फाउंडेशन के पदाधिकारियों से यह सुनिश्चित करने को कहें कि उनकी सभी गतिविधियाँ रोटरी इंटरनेशनल तथा रोटरी फाउंडेशन के अंतर्गत होंगी और उनके प्रति ही जबावदेह व जिम्मेदार होंगी । रोटेरियंस से फाउंडेशन के लिए पैसे देने और जमा करने पर तुरंत रोक लगाने की माँग करते हुए अनुरोध किया गया है कि फाउंडेशन की गतिविधियों को तुरंत से रोका जाये और उन्हें रोटरी इंटरनेशनल तथा रोटरी फाउंडेशन के मॉडल के अनुरूप ही काम करने को कहा जाए । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों और रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टीज के इस रवैये से 'द रोटरी इंडिया ह्यूमैनिटी फाउंडेशन' के अस्तित्व को लेकर गंभीर संशय पैदा हो गया है, और इस फाउंडेशन के तहत बनी कमेटियों के पदाधिकारी तथा सदस्य अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने को लेकर दौड़-भाग करते करते, अचानक से 'गायब' हो गए दीपक गुप्ता को कोरोना पीड़ित होने की चर्चा के कारण भारी चुनावी नुकसान पहुँचा; और उन्हें चुनावी मुकाबले से बाहर हुआ ही देखा/समझा जा रहा है

सोनीपत । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश में मुश्किलों से जूझ रहे दीपक गुप्ता को कोरोना पॉजिटिव हो जाने की चर्चा के कारण और तगड़ा झटका लगा है, जिस कारण इस वर्ष होने वाला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव बिलकुल ही एकतरफा तथा विकल्पहीन होता हुआ नजर आ रहा है । दीपक गुप्ता के नजदीकियों ने तो कहना भी शुरू कर दिया है कि समर्थन न मिलने के कारण परेशान और निराश हो चले दीपक गुप्ता को कोरोना का शिकार हो जाने की चर्चा के कारण अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने का सम्मानजनक मौका मिल गया है । उनके नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि कोरोना पीड़ित होने की चर्चा से पहले दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख रोटेरियंस से मुलाकातें की थीं और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास किया था, लेकिन अपने प्रयासों का उन्हें कोई विश्वसनीय नतीजा मिलता हुआ नहीं लगा था - जिस कारण वह बुरी तरह निराश और परेशान हुए थे । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से उन्होंने रोटेरियंस से जो मुलाकातें कीं - उसके नतीजे में उन्हें किसी से भी सहयोग व समर्थन के आश्वासन तो नहीं मिले, कोरोना पीड़ित होने की मशहूरी लेकिन मिल गई । 
विडंबना की बात यह है कि दीपक गुप्ता ने अपनी तरफ से कोरोना पीड़ित होने की चर्चा पर कोई बात नहीं की है, जिसे उनकी तरफ से कोरोना पीड़ित होने की बात को छिपाने के प्रयास के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल, उनके कोरोना पीड़ित होने की चर्चा को तब बल किया, जब लोगों ने दीपक गुप्ता को अचानक से शांत और सीन से गायब पाया । लोगों को हैरानी हुई कि दीपक गुप्ता कहाँ तो इतने सक्रिय थे कि वॉट्सऐप और फोन के साथ-साथ, लॉकडाउन के कड़े दिशा-निर्देशों के बावजूद दिल्ली और गाजियाबाद व नोएडा तथा उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों/कस्बों के रोटेरियंस से मिलने/जुलने तक पहुँच रहे थे - लेकिन फिर अचानक से इस तरह से गायब हो गए कि वॉट्सऐप पर भी उनके संदेशों का अकाल पड़ गया । लोगों ने पता किया तो उन्हें दीपक गुप्ता के बीमार होने की खबर मिली और बीमारी को छिपाने तथा रहस्य बनाये रखने की उनकी कोशिशों के कारण उनके कोरोना पीड़ित होने की चर्चा फैली । इस चर्चा ने उन रोटेरियंस को बुरी तरह से परेशान किया, जिनसे दीपक गुप्ता पिछले दिनों मिले/जुले थे । कई रोटेरियंस ने कहा/बताया भी कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से दीपक गुप्ता लॉकडाउन के दौरान उनसे मिलने आये थे, तो उन्होंने उन्हें सलाह दी थी कि अभी उन्हें मिलने/जुलने पर ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए और सावधानी रखनी/बरतनी चाहिए - लेकिन दीपक गुप्ता ने उनकी सलाह को गंभीरता से नहीं लिया, और खुद ही शिकार हो बैठे ।
दीपक गुप्ता के कोरोना पीड़ित होने की चर्चा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले में आने और बने रहने के उनके प्रयासों पर पानी फेर दिया है । उम्मीदवार के रूप में उन्हें हालाँकि कहीं से भी कोई समर्थन मिलता हुआ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन उनकी उम्मीदवारी चुनावी परिदृश्य में रोमांच तो बनाये हुए थी ही - और इस रोमांच के भरोसे दीपक गुप्ता वास्तव में अगले रोटरी वर्ष के लिए अपनी उम्मीदवारी की पुनर्प्रस्तुति की उम्मीद लगाये हुए थे । दीपक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, दीपक गुप्ता को यह आभास तो हो गया था कि इस वर्ष होने वाले चुनाव में उनकी दाल गलने वाली नहीं है, लेकिन वह फिर भी अपनी उम्मीदवारी बनाये हुए थे - तो इस उम्मीद में, कि नेता लोग अगले वर्ष में उनकी उम्मीदवारी को समर्थन का भरोसा देकर उन्हें अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए मनाने का प्रयास करेंगे; और इस तरह अगले वर्ष में उनकी उम्मीदवारी का रास्ता साफ हो जायेगा । दीपक गुप्ता के कोरोना पीड़ित होने की चर्चा ने लेकिन उनसे वह उम्मीद भी छीन ली लगती है । दीपक गुप्ता के कोरोना पीड़ित होने की चर्चा ने दीपक गुप्ता को चुनावी नुकसान पहुँचाने के साथ-साथ, उनकी चुनावी सक्रियता के बहाने तरह तरह की अफवाहें फैलाने तथा शेखचिल्ली टाइप कयास लगाने के मौके बनाने वाले चुनावबाज और हमेशा चुनावी-मोड में रहने वाले रोटेरियंस को भी झटका दिया है । उक्त चर्चा के चलते एक तरफ यदि दीपक गुप्ता के चुनावी मुकाबले से बाहर होने की स्थिति बनी है, तो दूसरी तरफ चुनावबाज रोटेरियंस के सामने भी 'बेरोजगार' होने का खतरा पैदा हो गया है ।  

Saturday, July 4, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में बीएम श्रीवास्तव के कैबिनेट सेक्रेटरी बनने में गुरनाम सिंह और केएस लूथरा के बीच राजनीतिक गठजोड़ मजबूत होने के संकेत देखे/पहचाने जा रहे हैं, जिसमें बीएम श्रीवास्तव के साथ तेजेंद्रपाल सिंह की भी 'दाल' गलती हुई नजर आ रही है

लखनऊ । बीएम श्रीवास्तव के कैबिनेट सेक्रेटरी बनने में, उनके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'चुने' जाने की राह खुलती/बनती हुई नजर आ रही है । माना/समझा जा रहा है कि बीएम श्रीवास्तव को कैबिनेट सेक्रेटरी बनाने का फैसला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कमल शेखर गुप्ता ने वरिष्ठ पूर्व गवर्नर गुरनाम सिंह के दबाव में लिया है । बीएम श्रीवास्तव को पूर्व गवर्नर केएस लूथरा के नजदीकी के रूप में देखा/पहचाना जाता है, और इस नाते कमल शेखर गुप्ता उन्हें कैबिनेट सेक्रेटरी बनाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन गुरनाम सिंह के दबाव के सामने उनकी एक न चली और उन्हें बीएम श्रीवास्तव को कैबिनेट सेक्रेटरी बनाने के लिए मजबूर होना ही पड़ा । बीएम श्रीवास्तव को कैबिनेट सेक्रेटरी बनवाने में गुरनाम सिंह ने जिस तरह से दिलचस्पी ली है, उसे देख कर ही समझा जा रहा है कि गुरनाम सिंह ने बीएम श्रीवास्तव को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में 'देखना' शुरू कर दिया है । उल्लेखनीय है कि नेगेटिव वोटिंग के कारण जगदीश अग्रवाल के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने में असफल रहने के बाद, खाली रह गए फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद के लिए चुनाव/चयन होना है - जिसके लिए बीएम श्रीवास्तव को प्रमुख उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । मजे की बात यह है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट की सत्ता में वह लोग हैं, जो करीब पंद्रह महीने पहले हुए चुनाव में बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के खिलाफ थे, और जिनकी खिलाफत के कारण बीएम श्रीवास्तव चुनाव हार गए थे । लेकिन पिछले पंद्रह महीनों में गोमती में बहुत से पानी बह गया है, और हालात इस कदर बदल गए हैं कि जगदीश अग्रवाल को नेगेटिव वोटिंग के जरिये बाहर कर दिया गया है - और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी खाली हो गई है ।
मजे की बात यह भी है कि बीएम श्रीवास्तव को भले ही केएस लूथरा के नजदीकी के रूप देखा/पहचाना जाता है, लेकिन पिछले से पिछले लायन वर्ष में हुए चुनाव में बीएम श्रीवास्तव ने केएस लूथरा को अपने चुनाव अभियान से दूर रख कर 'लगभग बेइज्जत' किया था । बीएम श्रीवास्तव का कहना था कि केएस लूथरा उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में यदि सक्रिय 'दिखेंगे' तो उन्हें वोटों का नुकसान पहुँचायेंगे; बीएम श्रीवास्तव की हिदायत थी कि केएस लूथरा उन्हें दूर से ही समर्थन दें, उन्हें चुनाव जितवाने का काम मनोज रुहेला कर लेंगे । मनोज रुहेला उस समय फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे, और बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी की कमान उनके ही हाथ में थी । उस समय लेकिन बीएम श्रीवास्तव चुनाव हार गए थे - और सिर्फ चुनाव ही नहीं हार गए थे, चुनाव अभियान के दौरान प्रतिबंधित क्षेत्र में 'वोटरों को लुभाने का सामान' ले जाने के मामले में पुलिसिया झमेले में भी फँस गए थे । बहरहाल, जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि तब से अब तक गोमती में बहुत सा पानी बह चुका है, और डिस्ट्रिक्ट में हालात खासे बदल चुके हैं । डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक समीकरणों में एक बड़ा बदलाव गुरनाम सिंह और केएस लूथरा के नजदीक आने के रूप में हुआ है । दरअसल, गुरनाम सिंह का नाम लेकर विशाल सिन्हा ने जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट में अपनी 'दुकान' जमाने/चलाने की कोशिश की, उससे गुरनाम सिंह को खासा तगड़ा झटका लगा । वास्तव में, विशाल सिन्हा की शह पर ही जगदीश अग्रवाल कई पूर्व गवर्नर्स के साथ-साथ गुरनाम सिंह को लेकर भी तरह तरह की बकवासबाजी कर रहे थे । उसके बाद ही, गुरनाम सिंह ने जगदीश अग्रवाल और विशाल सिन्हा से एकसाथ पीछा छुड़ाने की तैयारी की, जिसमें उन्हें केएस लूथरा का पूरा सहयोग मिला । समझा जाता है कि जिन केएस लूथरा को पिछले से पिछले लायन वर्ष में बीएम श्रीवास्तव ने अपने चुनाव अभियान से दूर रखा था, उन्हीं केएस लूथरा की कोशिशों से गुरनाम सिंह नेगेटिव वोटिंग के कारण खाली हुई फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी के लिए बीएम श्रीवास्तव के नाम पर विचार के लिए तैयार हुए हैं ।
केएस लूथरा की सिफारिश पर बीएम श्रीवास्तव के नाम पर तैयार होने के लिए गुरनाम सिंह पर लायंस क्लब शाहजहाँपुर विशाल के वरिष्ठ सदस्य तेजेंद्रपाल सिंह की भी सिफारिश है । तेजेंद्रपाल सिंह इस वर्ष होने वाले सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार होने/बनने की तैयारी में हैं, और उन्हें गुरनाम सिंह के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उनके साथ-साथ लायंस क्लब काशीपुर ग्रेटर के वरिष्ठ सदस्य अपूर्व मेहरोत्रा को भी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी में देखा/सुना जा रहा है, जिन्हें केएस लूथरा का समर्थन बताया/सुना जा रहा है । तेजेंद्रपाल सिंह के लिए मुसीबत की बात यह है कि शाहजहाँपुर के दोनों पूर्व गवर्नर्स - प्रमोद सेठ और संजय चोपड़ा उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ हैं, और इस कोशिश में हैं कि कैसे भी करके वह उनका खेल बिगाड़े और शाहजहाँपुर में तीसरा गवर्नर न बनने दें । ऐसे में, तेजेंद्रपाल सिंह को केएस लूथरा की मदद की जरूरत है, केएस लूथरा के साथ उनके अच्छे संबंध रहे भी हैं - उन अच्छे संबंधों को अब वह राजनीतिक समीकऱण में बदलना चाहते हैं । तेजेंद्रपाल सिंह के नजदीकियों का कहना/बताना है कि तेजेंद्रपाल सिंह ने गुरनाम सिंह को सलाह दी है कि वह यदि बीएम श्रीवास्तव को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवा देते हैं, तो इस वर्ष होने वाले सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में केएस लूथरा को समर्थन के लिए राजी किया जा सकेगा - अपूर्व मेहरोत्रा को अगली बार के लिए हरी झंडी दे दी जाएगी । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की खाली सीट को भरने के लिए गुरनाम सिंह क्या फैसला करेंगे, यह तो जब फैसला होगा तभी पता चलेगा - लेकिन बीएम श्रीवास्तव के कैबिनेट सेक्रेटरी बनने से यह संकेत जरूर मिलता है कि बीएम श्रीवास्तव को लेकर गुरनाम सिंह का रवैया सकारात्मक तो हुआ है ।  

Thursday, July 2, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में महिला स्टॉफ के साथ बदतमीजीपूर्ण व्यवहार के आरोपों के कारण, लॉकडाउन के दौरान चार महिला स्टॉफ को नौकरी से निकाले जाने के मामले में पुलिस की सक्रियता ने शशांक अग्रवाल और अजय सिंघल की मुसीबतें बढ़ाईं

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों द्वारा पदभार संभालते ही तरह तरह से परेशान करने तथा कोरोना प्रकोप से बने हालात का बहाना बना कर नौकरी से निकालने के आरोपों पर पुलिस जाँच शुरू होने के कारण चेयरमैन शशांक अग्रवाल और सेक्रेटरी अजय सिंघल के लिए मुसीबतें बढ़ती हुई लग रही हैं । इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में पिछले एक सप्ताह में दो/तीन बार पुलिस के आने से हड़कंप का माहौल है, और शशांक अग्रवाल व अजय सिंघल को तरह तरह की बहानेबाजी करके बचना/छिपना पड़ रहा है । हालाँकि जिन लोगों ने पुलिस रिपोर्ट को देखा/पढ़ा है, उनका कहना है कि रिपोर्ट में इनका नाम नहीं लिखा है, और शिकायत में भी नौकरी समाप्त करने की बात पर ज्यादा जोर है - इसलिए इन्हें डरने की जरूरत नहीं है । लेकिन इनके नजदीकियों और शुभचिंतकों को आशंका है कि मामले में जाँच शुरू होने पर जो जो बातें सामने आयेंगी, वह शशांक अग्रवाल और अजय सिंघल के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाली साबित हो सकती हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कार्यालय के 'माहौल' से परिचित लोगों का कहना/बताना है कि अजय सिंघल की जब तब स्टॉफ के लोगों से कहासुनी होती रहती है, और स्टॉफ के लोग अजय सिंघल के व्यवहार से खासे परेशान रहते हैं । मजे की बात यह है कि अजय सिंघल के सेक्रेटरी बनने और लॉकडाउन शुरू होने के बीच ज्यादा दिन नहीं थे, लेकिन कम दिनों में ही अजय सिंघल स्टॉफ के बीच खासे बदनाम हो गए । शशांक अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि शशांक अग्रवाल की गलती सिर्फ इतनी है कि उन्होंने अजय सिंघल की हरकतों पर कभी लगाम लगाने की कोशिश नहीं की, जिसका नतीजा है कि अजय सिंघल की कारगुजारियों के चलते पैदा होने वाली बदनामी का शिकार शशांक अग्रवाल को भी होना पड़ा है ।
लॉकडाउन के दौरान ऑफिस न आने के आरोप में चार महिला स्टॉफ को नौकरी से निकाल देने के मामले ने तूल दरअसल इसीलिए पकड़ा है, क्योंकि महिला स्टॉफ के साथ बदतमीजीपूर्ण व्यवहार के आरोप पहले से ही चर्चा में रहे हैं । काउंसिल के पदाधिकारियों के आपत्तिजनक व्यवहार को लेकर स्टॉफ द्वारा चूँकि पहले से ही आरोप लगाए जाते रहे हैं, इसलिए लॉकडाउन के दौरान चार महिला स्टॉफ को नौकरी से निकाले जाने के मामले को व्यापक संदर्भ में देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि संभवतः पुलिस भी इसीलिए मामले की जाँच-पड़ताल को लेकर अचानक से सक्रिय हुई है । उल्लेखनीय है कि पुलिस जिस शिकायत को लेकर सक्रिय हुई है, और रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों से पूछताछ करने इंस्टीट्यूट के मुख्यालय तक आ पहुँची है, वह करीब 35 दिन पुरानी है । कई दिनों तक पुलिस मामले में दिलचस्पी लेते हुए नहीं दिख रही थी; माना/समझा जा रहा था कि नौकरी से निकाले जाने की शिकायत को पुलिस अधिकारी अपने अधिकार-क्षेत्र से बाहर की बात मान रहे थे - और इसीलिए उन्होंने उक्त शिकायत को धूल खाने के लिए छोड़ दिया था । बाद में लेकिन पुलिस अधिकारियों का ध्यान उक्त शिकायत के व्यापक संदर्भों पर गया, और वह कार्रवाई में जुटे । कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि उक्त शिकायत चूँकि अन्य कई जगह की गई है, और खासकर महिला कल्याण विभाग में भी - इसलिए हो सकता है कि वहाँ के पदाधिकारियों का दबाव बना/पड़ा हो, और पुलिस को मामले की जाँच व कार्रवाई करने के लिए सक्रिय होना पड़ा ।
शशांक अग्रवाल और अजय सिंघल के नजदीकियों का कहना है कि पुलिस चाहें जिस भी कारण से जाँच-पड़ताल करने में जुटी हो, मामला चूँकि नौकरी से निकाले जाने का है - इसलिए वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकेगी । बहुत हद तक इस तर्क में दम है - लेकिन शिकायत चूँकि इस आरोप से शुरू होती है कि पदाधिकारियों ने पदभार संभालते ही उन्हें तरह तरह से परेशान करना शुरू कर दिया था; इसलिए मामला सिर्फ नौकरी से निकाले जाने का ही नहीं रह जाता है । इसके अलावा, यह तथ्य भी महत्त्वपूर्ण है कि लॉकडाउन के दौरान अजय सिंघल स्टॉफ से कार्यालय पहुँच कर ड्यूटी ज्वाइन करने के लिए कहते हैं, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बंद होने कारण कोई भी स्टॉफ ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर पाता है - लेकिन ड्यूटी ज्वाइन न करने का आरोप लगा कर नौकरी से चार महिला स्टॉफ को निकाला जाता है । सात/आठ वर्षों से काम कर रहे इन लोगों पर आरोप लगाया जाता है कि इन्हें काम करना नहीं आता है । मजेदार संयोग यह है कि शशांक अग्रवाल के चेयरमैन-वर्ष में काम न आने का आरोप लगा कर जिन स्टॉफ को नौकरी से निकाला जा रहा है, उनकी नियुक्ति शशांक अग्रवाल के पिता दुर्गादास अग्रवाल के चेयरमैन-वर्ष में हुई थी - और बड़े कठोर तरीके से लिए गए इंटरव्यू के बाद उन्हें नौकरी के लिए चुना गया था । दरअसल, जिस तरह से चार महिला स्टॉफ को नौकरी से निकाला गया है, उससे पूरा मामला और रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की भूमिका संदेहास्पद हो जाती है - और जो व्यापक जाँच-पड़ताल की माँग करती है । रीजनल काउंसिल के स्टॉफ को डर है कि यह मामला यदि यूँ ही रफा-दफा हो गया, और नौकरी से निकाले गए स्टॉफ को यदि न्याय नहीं मिला - तो काउंसिल पदाधिकारियों के हौंसले और बढ़ जायेंगे तथा उनकी बदतमीजियों का स्टॉफ को और ज्यादा शिकार बनना पड़ेगा ।  

Wednesday, July 1, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में नए रोटरी वर्ष के पहले ही दिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता के लिए 'चुनौती' खड़ी करते हुए, इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या की जैसी बेइज्जती की है, वैसी इससे पहले शायद ही किसी इंटरनेशनल डायरेक्टर की हुई होगी

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा ने अपने गवर्नर-वर्ष की शुरुआत रोटरी इंटरनेशनल के दिशा-निर्देशों को रौंदते तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या के स्पष्ट शब्दों में दिए गए निर्देश की अवहेलना करते हुए की । संजीव राय मेहरा का यह रवैया शेखर मेहता के लिए भी सीधी चुनौती बना है । इंटरेनशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट के रूप में शेखर मेहता आज ही रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्य बने हैं - और आज ही संजीव राय मेहरा ने दिखा दिया कि शेखर मेहता के अपने देश में ही रोटरी के नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ेंगी । विडंबना की बात यह रही कि संजीव राय मेहरा द्वारा खुलेआम किए जा रहे रोटरी के 'चीरहरण' का नजारा डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ पूर्व गवर्नर्स चुपचाप बैठे देखते रहे; और भरत पांड्या की खुल्लमखुल्ला हो रही बेइज्जती के गवाह जोन 4 के रोटरी कोऑर्डीनेटर गुरजीत सिंह सेखों तथा असिस्टेंट रोटरी कोऑर्डीनेटर प्रियेश भंडारी भी बने । संजीव राय मेहरा ने भरत पांड्या की बेइज्जती करते हुए रोटरी का जो 'चीरहरण' किया, वह डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन पद की नियुक्ति के संबंध में उनकी मनमानी से जुड़ा हुआ है । उन्होंने अपने रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन का पद रंजन ढींगरा की जगह विनय भाटिया को दिया है । अभी पंद्रह/बीस दिन पहले ही रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से उन्हें दो-टूक शब्दों में बताया गया था कि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार उक्त पद पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी की सहमति से ही कोई नियुक्ति हो सकती है, और कोई भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अकेले यह नियुक्ति नहीं कर सकता है । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में ही गवर्नर, गवर्नर इलेक्ट तथा गवर्नर नॉमिनी की सहमति से डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के पद पर रंजन ढींगरा की नियुक्ति हुई थी, जो रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के तहत तीन वर्षों के लिए होती है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में संजीव राय मेहरा ने भी रंजन ढींगरा के नाम पर अपनी सहमति दी थी; किंतु पिछले कुछ समय से संजीव राय मेहरा रोटरी नियमों की अनदेखी करते हुए 'अकेले' ही रंजन ढींगरा की जगह विनय भाटिया को उक्त पद देने का फैसला कर बैठे ।
उम्मीद की गई थी कि रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय द्वारा नियमों की स्पष्ट व्याख्या कर देने के बाद संजीव राय मेहरा मनमानी करने की अपनी कोशिश को छोड़ देंगे, लेकिन आज किए गए अपने पहले ही कार्यक्रम में उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानून को धता बता दिया ।
इस मामले में और भी ज्यादा गंभीर बात यह हुई कि कायर्क्रम शुरू होने से पहले इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या की तरफ से मिले निर्देश को भी संजीव राय मेहरा ने मानने से इंकार कर दिया । उल्लेखनीय है कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही संजीव राय मेहरा के पास भरत पांड्या का संदेश आ गया था, जिसमें उन्होंने साफ शब्दों में लिखा/कहा कि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार, भावी गवर्नर्स - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी - की सहमति के बिना वह डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन की नियुक्ति नहीं कर सकते हैं; और उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रंजन ढींगरा ही डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन हैं । इसके बावजूद, संजीव राय मेहरा ने कार्यक्रम में विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के रूप में संबोधित किया । सभी के लिए हैरानी की बात यह है कि शेखर मेहता के लिए चुनौती पैदा करने, भरत पांड्या की खुल्लमखुल्ला बेइज्जती करने और रोटरी इंटरनेशनल का चीरहरण करने की हरकत पर संजीव राय मेहरा आखिर क्यों टिके हुए हैं, और इसके लिए उन्हें 'खाद-पानी' आखिर कहाँ से मिल रहा है, और कौन उन्हें यह सब करने के लिए उकसा रहा है ?
समझा जाता है और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच चर्चा है कि बड़े पदाधिकारियों की बेइज्जती तथा रोटरी का चीरहरण करते हुए विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन बनाने के पीछे दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने हेतु बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की चुनावी राजनीति को साधने का उद्देश्य है । विनय भाटिया ने उक्त कमेटी के लिए अपनी उम्मीदवारी की तैयारी शुरू की हुई है ।उन्हें विनोद बंसल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि विनोद बंसल किसी भी तरह से विनय भाटिया को नोमीनेटिंग कमेटी का चुनाव जितवाना चाहते हैं, ताकि नोमीनेटिंग कमेटी में विनय भाटिया उनके काम आ सकें । डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के रूप में विनय भाटिया को क्लब्स के पदाधिकारियों के संपर्क में रहने का मौका मिलेगा, और इस तरह उन्हें अपनी उम्मीदवारी के लिए कैम्पेन करने का मौका मिलेगा । विनोद बंसल और विनय भाटिया के साथ-साथ संजीव राय मेहरा पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं - लोगों को लगता है कि उनके बीच काम का लेना-देना भी हो सकता है, जिसके 'सहारे' संजीव राय मेहरा ने विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन 'बनाने' का जिम्मा ले लिया है - और रोटरी पर पेशा 'भारी' पड़ गया है । उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में, जोन 7 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में कैम्पेन होने/करने के आरोपों के चलते विजेता रवि वदलमानी से डायरेक्टर पद छिन गया है - उससे कोई सबक न लेकर विनोद बंसल को खुश करने/रखने के लिए विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन बना कर रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों को बेइज्जत करने तथा रोटरी का चीरहरण करने का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा ने जो काम किया है, वह डिस्ट्रिक्ट और रोटरी में एक नए विवाद को जन्म देता हुआ लग रहा है ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अवॉर्ड देने/बाँटने में बंदरबाँट करने के साथ-साथ रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने के लिए अपनाई गई तिकड़मों को देख/सुन कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को लोग 'रोटरी का नटवरलाल' कहने लगे हैं

गाजियाबाद । रोटरी और समाज के लिए बेहतर काम करने वाले रोटेरियंस की पहचान करने तथा उन्हें पुरुस्कृत करने के - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपने अंतिम - कार्यक्रम में दीपक गुप्ता ने अवॉर्ड्स की जो बंदरबाँट की है, उसने डिस्ट्रिक्ट में काम करने वाले रोटेरियंस को न सिर्फ निराश व हतोत्साहित किया है, बल्कि पूरे कार्यक्रम का मजाक ही बना दिया । 'आउटस्टैंडिंग रोटेरियन' का अवॉर्ड पाने वाले एक रोटेरियन की शिकायत है कि उन्होंने इस वर्ष काफी काम किया, जिसमें उनके करीब दस लाख रुपये खर्च हुए - इसलिए उन्हें जब उक्त अवॉर्ड मिला तो उन्हें बड़ा गर्व हुआ; लेकिन उनका गर्व यह देख/जान कर हवा हो गया कि यही अवॉर्ड उनके ही क्लब के एक ऐसे सदस्य को भी मिला है, जिसने इकन्नी भी खर्च नहीं की और काम के नाम पर सिर्फ दीपक गुप्ता की चमचागिरी ही की । उसके बाद से, उनके क्लब के साथ-साथ दूसरे क्लब के लोग भी उनका मजाक उड़ा रहे हैं कि उनसे ज्यादा होशियार तो 'वह' निकला, जिसने रोटरी में 'न हींग लगाई, न फिटकरी' और अवॉर्ड ले बैठा । यह देख/सुन कर उन्हें भी पछतावा हो रहा है कि उन्होंने दीपक गुप्ता के साथ रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में नाहक ही काम किया, और मोटी रकम खर्च की । सचिन वत्स को 'बेस्ट रोटेरियन' के अवॉर्ड से नवाजे जाने को लेकर लोगों ने 'अँधा बाँटे रेवड़ी, अपनों अपनों को दे' कहावत को याद किया । सचिन वत्स को दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट इवेंट चेयरमैन बनाया था; एक इवेंट के आयोजन में सचिन वत्स द्वारा किए गए एक फर्जीवाड़े के कारण दीपक गुप्ता को अपनी पत्नी के साथ एक कानूनी झमेले में फँसना पड़ा - इसके बाद भी, सचिन वत्स का 'बेस्ट रोटेरियन' घोषित होना 'अंधा कानून' ही कहा/माना जायेगा । दीपक गुप्ता की हरकतों से तंग आकर मनीष गोयल ने डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी के पद से इस्तीफा दिया था, और तब सचिन वत्स ने उक्त पद की भी कुछ जिम्मेदारी संभाली । कुल मिला कर सचिन वत्स ने जो कुछ भी किया, उसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता की मदद के रूप में ही देखा/पहचाना जा सकता है - उसे रोटरी के और या समाज के लिए किए गए काम के रूप में नहीं देखा जा सकता है । रोटरी और समाज के लिए तो एक रोटेरियन के रूप में सचिन वत्स ने इकन्नी का भी काम नहीं किया । डिस्ट्रिक्ट के लोगों का कहना है कि इसलिए सचिन वत्स को 'बेस्ट रोटेरियन' बताना वास्तव में डिस्ट्रिक्ट के उन लोगों का अपमान है, जिन्होंने रोटरी के लिए अपनी जेबें ढीली कीं ।
इसी तरह के उदाहरणों के हवाले से, अवॉर्ड देने के मामले में दीपक गुप्ता को 'नटवरलाल' का नाम दिया गया । मजे की बात है कि अपना 'नटवरलाली' रूप दीपक गुप्ता ने सिर्फ अवॉर्ड देने के मामले में ही नहीं दिखाया है, बल्कि रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने के काम में भी उन्होंने अपनी इसी रूप का जमकर इस्तेमाल किया । पिछले दस/पंद्रह दिनों से वह लगातार झूठ पर झूठ बोल कर रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे देने को लेकर लोगों पर दबाव बनाते रहे हैं - किसी से कहा कि रोटरी फाउंडेशन में साढ़े नौ लाख डॉलर हो गए हैं, आप पचास हजार डॉलर दे दो, पूरे दस लाख डॉलर हो जायेंगे । उस समय जबकि वास्तव में थे करीब पाँच/छह लाख डॉलर ही । 28 जून तक का जो आँकड़ा अभी उपलब्ध है, उसके अनुसार रोटरी फाउंडेशन के लिए साढ़े सात लाख डॉलर से कुछ अधिक रकम ही जमा हुई है । दीपक गुप्ता के 'नटवरलाली' रूप का आलम यह रहा कि वह खुद तो रकम पूरी करके एकेएस सदस्य नहीं बने, लेकिन अपना रिकॉर्ड बनाने के लिए उन्होंने रोटरी क्लब दिल्ली सिटी की प्रेसीडेंट अमिता मोहिंद्रु पर तरह तरह से दबाव डाल और डलवा कर उनकी एकेएस सदस्यता की रकम पूरी जमा करवा ली । दीपक गुप्ता ने अनीता मोहिंद्रु को संकेत दिया था कि वह उन्हें वह उन्हें 'बेस्ट प्रेसीडेंट' का अवॉर्ड देंगे - दीपक गुप्ता ने उन्हें उक्त अवॉर्ड दिया भी, लेकिन अनीता मोहिंद्रु के साथ उन्होंने 'धोखा' यह किया कि उनके साथ एक अन्य प्रेसीडेंट को भी उक्त अवॉर्ड में साझेदार बना दिया ।
दीपक गुप्ता ने सिर्फ अनीता मोहिंद्रु के साथ ही 'धोखा' नहीं किया, बल्कि रोटरी फाउंडेशन के साथ भी वह मजाक कर रहे हैं । रोटरी फाउंडेशन के लिए वह जो मोटी रकम जुटाने के प्रयासों में रहे, रोटरी को तो वास्तव में उसका करीब चौथा हिस्सा ही मिलेगा - उस रकम का तीन चौथाई हिस्सा तो दरअसल गिफ्ट टर्म के रूप में है, जो रोटरी को 'देने' के लिए नहीं, बल्कि रोटरी से 'लेने' के लिए दिया गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता की क्या उपलब्धियाँ हैं, यह मेंबरशिप में हुई तथाकथित बढ़ोतरी से जाना/समझा जा सकता है । पिछले वर्ष, एक जुलाई को जब दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभाला था, तब डिस्ट्रिक्ट में 3769 सदस्य थे, जो उनके पदभार छोड़ते समय 3842 हैं - यानि 73 सदस्य बढ़े हैं । लेकिन इस वृद्धि को रेखांकित करते समय यह ध्यान करना मामले को दिलचस्प बना देता है कि दीपक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में 12 नए क्लब बने हैं, जिनकी कुल सदस्यता के साथ 375 नए सदस्य जुड़े हैं । इस तरह से देखें, तो वास्तव में दीपक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में कई सदस्य रोटरी और डिस्ट्रिक्ट छोड़ गए हैं । दीपक गुप्ता लगातार रोटरी के प्रति अपना गहरा लगाव दिखाते/जताते रहे हैं, और समय समय पर जाहिर करते रहे हैं कि वह रोटरी के बड़े जानकार हैं - जिस कारण से लोगों को उम्मीद थी कि उनका गवर्नर-वर्ष खास रहेगा; लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता ने लोगों को बुरी तरह निराश किया है । उनका गवर्नर-वर्ष अपनी ही टीम के बड़े पदाधिकारियों तथा कलीग गवर्नर्स के साथ-साथ बाहर के प्रोफेशनल्स के साथ 'बेईमानी' और 'धोखाधड़ी' करने के लिए बदनाम हुआ, और रोटरी के आदर्शों व नियमों के साथ खिलवाड़ करने वाला साबित हुआ है । यही सब देख/जान कई लोग उन्हें 'रोटरी का नटवरलाल' भी कहने लगे हैं ।