Saturday, June 30, 2012

रमेश अग्रवाल ने असित मित्तल को नीचा दिखाने की अपनी कारस्तानी को सही साबित करने के लिए शेखर मेहता के नाम का इस्तेमाल किया

नई दिल्ली | रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के अपने कार्यकाल की शुरुआत इंटरनेश्नल डायरेक्टर शेखर मेहता की उपस्थिति में करने की योजना बनाई और साथ ही साथ उन्हें अपनी चालबाजियों का शिकार भी बना लिया | असित मित्तल को नीचा दिखाने की अपनी कार्रवाई में रमेश अग्रवाल ने जिस तरह शेखर मेहता का नाम इस्तेमाल किया, उससे रमेश अग्रवाल ने एक फिर साबित किया कि उनकी चालबाजियों का शिकार होने से कोई भी नहीं बच सकता है | रमेश अग्रवाल ने अपने प्रायः हर काम में जिस तरह से घटियापन दिखाया है और जिस तरह से वह लगातार उन लोगों को भी नाराज़ करते जा रहे हैं जिनकी एक समय वह खुशामद और चापलूसी किया करते थे - उससे लोगों को यह देख कर तो कोई हैरानी नहीं हुई कि रमेश अग्रवाल ने असित मित्तल को एक फिर नीचा दिखाया; लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि रमेश अग्रवाल अपना घटियापन दिखाने के चक्कर में शेखर मेहता तक को नहीं बख्शेंगे | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश अग्रवाल ने एक से एक मूरखतापूर्ण नजारों को प्रस्तुत किया है, जिसकी श्रृंखला में उन्होंने ऐलान किया कि वह तीस जून के कार्यक्रम में कॉलर एक्सचेंज नहीं करेंगे | कई एक लोगों के सामने रमेश अग्रवाल ने यह कहने/बताने में भी कोई संकोच नहीं किया कि लोगों के बीच असित मित्तल की जिस तरह की बदनामी है, उसे देखते हुए उनसे कॉलर एक्सचेंज करना उन्हें अपमानित होने जैसा लगता है | उल्लेखनीय है कि असित मित्तल की बिजनेस संबंधी बेईमानियों को लेकर रमेश अग्रवाल उन्हें पहले भी कई बार जलील कर चुके हैं | रमेश अग्रवाल को तीस जून के बाद असित मित्तल को जलील करने का मौका चूँकि नहीं मिलता, इसलिए उन्होंने तीस जून को मिल सकने वाले मौके का इस्तेमाल कर लेने में भी कोई चूक नहीं की | उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में यह प्रथा भी है और तकनीकी रूप से देखें तो यह सही भी है कि चूँकि तीस जून तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का अंतिम कार्यदिवस होता है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहते हुए वह पद की जिम्मेदारी आने वाले गवर्नर को सौंप दे | रमेश अग्रवाल ने लेकिन न डिस्ट्रिक्ट की प्रथा का सम्मान किया और न व्यावहारिकता को अपनाया | तीस जून को उन्होंने जब कॉलर एक्सचेंज नहीं किया है, तो एक जुलाई को वह किस्से कॉलर एक्सचेंज करेंगे - भूतपूर्व हो चुके गवर्नर असित मित्तल से ? एक जुलाई को असित मित्तल तो गवर्नर हैं नहीं, कॉलर उनके पास है ही नहीं - उसे तो वह उतार चुके हैं; अब जो चीज उनके पास है नहीं, उसे वह दे कैसे सकते हैं ? लेकिन रमेश अग्रवाल की जिद है कि वह एक जुलाई को कॉलर लेंगे - लेंगे लेकिन किससे ? नियम और संविधान के संदर्भ में इस बात को यदि देखें तो यह 'संवैधानिक संकट' जैसा मामला है | रमेश अग्रवाल ने जिसे अपनी जिद और असित मित्तल को जलील करने की अपनी कोशिश में पैदा किया है | रमेश अग्रवाल के नजदीकियों तथा डिस्ट्रिक्ट के कुछेक बड़े नेताओं ने उन्हें ऐसा न करने को लेकर समझाने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी; बल्कि उन्होंने सभी को यह कह कर चुप करा दिया कि इस बारे में उन्होंने इंटरनेश्नल डायरेक्टर शेखर मेहता से बात कर ली है, जो एक जुलाई के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि हैं; और जिन्होंने कहा है कि ऐसा हो सकता है | रोटरी में नियमों के साथ खिलवाड़ चूँकि कोई भी कर सकता है, इसलिए लोगों ने भी मान लिया कि शेखर मेहता ने भी हाँ कह दी होगी | और फिर क्या पता कि रमेश अग्रवाल ने सचमुच उनसे पूछा भी है या नहीं, और यदि पूछा भी है तो उन्हें पूरी बात तो नहीं ही बताई होगी | इस बात पर तो कोई भी विश्वास नहीं करेगा कि रमेश अग्रवाल ने शेखर मेहता को बताया होगा कि उन्हें चूँकि असित मित्तल को नीचा दिखाना है, इसलिए वह तीस जून को नहीं, बल्कि एक जुलाई को कॉलर पहनेंगे और शेखर मेहता ने उन्हें कह दिया होगा कि हाँ, आप ऐसा कर सकते हो | जाहिर है कि रमेश अग्रवाल ने असित मित्तल को नीचा दिखाने की कोशिश में की गई अपनी एक मूरखतापूर्ण कारस्तानी को सही साबित करने के लिए शेखर मेहता को या तो धोखा दिया है और या उनके नाम का इस्तेमाल किया है | रमेश अग्रवाल ने अपनी हरकतों से लगातार लोगों को अपमानित ही किया है, जिसका नतीजा है कि उनसे हमदर्दी रखने वाले और उनके काम आने वाले कई लोग उनका साथ छोड़ चुके हैं | इससे कोई सबक न लेते हुए रमेश अग्रवाल जिस तरह अपनी कारगुजारियों को अंजाम देते जा रहे हैं तथा इंटरनेश्नल डायरेक्टर शेखर मेहता तक का नाम इस्तेमाल कर रहे हैं और रोटरी को कलंकित कर रहे हैं उससे लोगों को लग रहा है कि रमेश अग्रवाल के गवर्नर-काल में उन्हें और-और नज़ारे देखने को मिलेंगे |

Friday, June 29, 2012

रवींद्र सिंह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाये जाने की सुगबुगाहट ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प बना दिया है

नई दिल्ली/गाजियाबाद | रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी की चर्चा ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प मोड़ दे दिया है | मजे की बात यह है कि खुद रवींद्र सिंह अपनी उम्मीदवारी को लेकर अभी बहुत सक्रिय नहीं दिख रहे हैं | इसके बावजूद उनकी उम्मीदवारी की चर्चा है - और उन लोगों के बीच है, पिछले चुनाव में जो संजय खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थन में थे | दरअसल इसी एक बात ने रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी की चर्चा को महत्वपूर्ण बना दिया है | गौर करने की बात यह है कि अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जो भी नाम चर्चा में हैं, वह सभी घूम-फिर कर उन्हीं नेता-लोगों के नज़दीक हैं जो पिछले चुनाव में रवि चौधरी के समर्थन में थे | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई को यदि खेमेबाजी के ऐंगल से देखते हैं तो पाते हैं कि पिछले चुनाव में जीतने वाले खेमे से अभी तक कोई उम्मीदवार सामने नहीं आया है | ऐसे में, पिछले चुनाव में जीतने वाले खेमे के मुख्य कर्ता-धर्ता यदि रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी की बात करते सुने जा रहे हैं, तो इससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में नया मोड़ आना स्वाभाविक ही है | उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में जीतने वाले खेमे के लोग अभी तक रवि भाटिया की उम्मीदवारी को समर्थन देने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन रवि भाटिया की उम्मीदवारी को चूँकि उनके क्लब से हरी झंडी नहीं मिली, लिहाजा पिछले चुनाव में जीतने वाले खेमे के लोगों की उम्मीदें अब रवींद्र सिंह पर आ टिकी है | यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि रवींद्र सिंह पहले हालाँकि उसी 'गिरोह' के सदस्य थे, जो गिरोह पिछले चुनाव में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में था | एक समय था जब रवींद्र सिंह, मुकेश अरनेजा की आँख का तारा हुआ करते थे; नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य के रूप में रवींद्र सिंह ने असित मित्तल की उम्मीदवारी का खुला समर्थन किया था; रमेश अग्रवाल के चुनाव में समर्थन जुटाने के लिए रवींद्र सिंह ने दिन-रात भाग-दौड़ की थी; और विनोद बंसल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की राह को आसान बनाने के लिए अपनी उम्मीदवारी की बलि दे दी थी, जिसके लिए विनोद बंसल ने सार्वजानिक रूप से उनका आभार व्यक्त किया था - लेकिन रवींद्र सिंह को मुकेश अरनेजा, असित मित्तल और रमेश अग्रवाल से बदले में सिर्फ धोखा ही मिला | जल्दी ही यह भी देख/जान लिया जायेगा कि विनोद बंसल ने जिन रवींद्र सिंह का सार्वजानिक रूप से सबसे पहले आभार व्यक्त किया था, गवर्नर के रूप में उनका उन्हीं रवींद्र सिंह के प्रति कैसा-क्या रवैया रहता है ? मुकेश अरनेजा, असित मित्तल और रमेश अग्रवाल से मिले धोखे के कारण ही रवींद्र सिंह पिछले चुनाव के आते-आते तक 'गिरोह' से अलग हो गए थे | क्या यह सिर्फ संयोग है कि 'गिरोह' के उम्मीदवार रवि चौधरी की उम्मीदवारी में घोषित रूप से पलीता लगाने की शुरुआत रवींद्र सिंह के क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद हैरीटेज से ही हुई थी ? संजय खन्ना की चुनावी जीत में रोटरी क्लब गाजियाबाद हैरीटेज की सुस्पष्ट आक्रामक पहल की मुख्य भूमिका थी | रवींद्र सिंह के क्लब के अध्यक्ष अरविंद सिंघल ने जिस तरह 'गिरोह' की तरफ से पड़े तमाम दबावों, लालचों और सिफारिशों का सामना करते हुए अपने 'लक्ष्य' को नहीं छोड़ा - उसके पीछे रवींद्र सिंह की सोची-विचारी रणनीति से मिल रही 'ताकत' ही काम कर रही थी | रवींद्र सिंह ने अपनी रणनीति का नज़ारा हालाँकि इससे पिछले वर्ष ही दिखा दिया था, जब उनकी उम्मीदवारी विनोद बंसल की राह में रोड़ा बन रही थी | विनोद बंसल की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे 'गिरोह' के नेता पहले तो रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे थे और चूँकि वह दूसरों की खिल्ली उड़ाने में बड़े एक्सपर्ट हैं, इसलिए वह रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी की खिल्ली ही उड़ा रहे थे | लेकिन जब उन्हें रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी के कारण विनोद बंसल की उम्मीदवारी में फच्चर फंसता हुआ नज़र आया तो वह रवींद्र सिंह को मनाने में जुटे | रवींद्र सिंह चूँकि भले व्यक्ति हैं, इसलिए वह जल्दी से मान भी गए | रवींद्र सिंह माने, तो विनोद बंसल का रास्ता साफ हुआ | रवि चौधरी के समय में, 'गिरोह' के लोगों ने एक फिर रवींद्र सिंह को हलके में लिया | विनोद बंसल के समय में, कुछ समय बाद 'गिरोह' के नेताओं को अक्ल आ गई थी और उन्होंने रवींद्र सिंह की अहमियत को समझ लिया था - लिहाजा विनोद बंसल का काम बन गया था | लेकिन रवि चौधरी के समय रवींद्र सिंह की अहमियत को समझने/पहचानने में गिरोह के नेता चूक गए - जिसका नतीजा हुआ कि उम्मीदवार के रूप में रवि चौधरी चारों खाने चित्त नज़र आये | यही तथ्य चुनावी राजनीति की उठा-पटक में रवींद्र सिंह को और उनकी रणनीतिक सोच को महत्वपूर्ण बनाता है | यही कारण है कि रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी की संभावनापूर्ण चर्चा ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प मोड़ दे दिया है | जैसा कि पहले कहा गया है कि रवींद्र सिंह अपनी उम्मीदवारी को लेकर खुद बहुत सक्रिय नहीं हैं - कुछ लोग इसके पीछे पिछले दिनों उनके बीमार पड़ने में देखते हैं तो कुछ लोग इसमें उनकी रणनीतिक चतुराई को पहचानने/समझने का प्रयास करते हैं | उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों रवींद्र सिंह पहले तो बीमार पड़े और फिर बीमारी के चलते कमजोरी का शिकार बने - इस कारण उनकी सक्रियता में स्वाभाविक रूप से कमी आई | उनकी उम्मीदवारी की संभावना को लेकर जिन लोगों ने भी सीधे उनसे बात की - इस संबंध में उनसे बात करने वाले लोगों में इन पंक्तियों का लेखक भी है - उन्हें रवींद्र सिंह ने रहस्यभरा गोल-मोल सा जबाव दिया - इससे उनकी उम्मीदवारी को लेकर बात और भी गंभीर हो गई | रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी में 'उम्मीद' देख रहे, संजय खन्ना को चुनाव जितवाने वाले खेमे के कर्ता-धर्ताओं का मानना और कहना है कि पिछली बार एक खेमे के रूप में उन्हें जो जोरदार चुनावी जीत मिली है, उसे जाया नहीं जाने देना चाहिए तथा खेमे की तरफ से अपना उम्मीदवार लाना चाहिए और इसीलिए रवींद्र सिंह को उम्मीदवार बनाने की तैयारी की जा रही है | रवींद्र सिंह को उम्मीदवार बनाने की तैयारी में जुटे, संजय खन्ना को चुनाव जितवाने वाले खेमे के कर्ता-धर्ता रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी पर दरअसल इसलिए जोर दे रहे हैं क्योंकि एक रोटेरियन के रूप में रवींद्र सिंह की कर्मभूमि वही गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश रहा है, जिसने संजय खन्ना को चुनाव जितवाने में महत्वपूर्ण व निर्णायक भूमिका निभाई | उन्हें यह भी लगता है कि पिछली बार गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश पहले भले ही रवि चौधरी की उम्मीदवारी के साथ दिखता रहा हो, लेकिन जैसे ही संजय खन्ना की सक्रियता बढ़ी वह संजय खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थन में आ खड़ा हुआ | इससे यही साबित हुआ है कि रवि चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे 'गिरोह' के जो नेता गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश में अपना समर्थन मानते हैं, उनका वह समर्थन है नहीं | ऐसे में, गाजियाबाद में भले ही पहले से उम्मीदवार हैं पर वह चूँकि 'गिरोह' के 'इस' या 'उस' नेता के भरोसे हैं, इसलिए रवींद्र सिंह के लिए अच्छा मौका हो सकता है | रवींद्र सिंह ने विनोद बंसल के लिए 'जो' किया था, उसे ध्यान में रखते हुए यह उम्मीद भी की जा सकती है कि विनोद बंसल का समर्थन उन्हें मिल जाये | यह उम्मीद इसलिए भी है क्योंकि 'गिरोह' में रहने के कारण विनोद बंसल को जिस बदनामी का शिकार होना पड़ा उससे यह उम्मीद भी की जाती है कि विनोद बंसल अब गिरोह के साथ नहीं रहना चाहेंगे | समय की नजाकत को पहचानते हुए विनोद बंसल ने 'गिरोह' के नेताओं से पीछा छुड़ाने और संजय खन्ना के साथ 'दिखने' की जो कोशिशें शुरू की हैं - उन कोशिशों में भी संजय खन्ना को चुनाव जितवाने वाले खेमे के कर्ता-धर्ताओं को रवींद्र सिंह के रूप में अपने उम्मीदवार के लिए उम्मीद नज़र आ रही है | इसी उम्मीद के चलते रवींद्र सिंह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाये जाने की सुगबुगाहट ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प बना दिया है |

Wednesday, June 27, 2012

'गंदी राजनीति' और 'षड्यंत्र' का शिकार बने अरुण जैन, सुधीर मंगला की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए मुसीबत बने

नई दिल्ली | अरुण जैन को अध्यक्ष पद से हटाये जाने का मामला सुधीर मंगला के लिए आफत बनता दिख रहा है | सुधीर मंगला के लिए राहत की बात यही है कि अरुण जैन को क्लब में कोई समर्थन नहीं मिला और अरुण जैन अलग-थलग ही नज़र आये हैं | लेकिन अरुण जैन को अध्यक्ष पद से हटाये जाने को लेकर जिस तरह की चिट्ठी-पत्री शुरू हो गई है और उसमें जिस तरह से सुधीर मंगला को सीधा निशाना बनाया जा रहा है - उससे सुधीर मंगला के लिए मुसीबत खड़ी हो गई दिख रही है | 'रचनात्मक संकल्प' को एक बेनामी चिट्ठी मिली है जिसमें अरुण जैन को अध्यक्ष पद से हटाये जाने के लिए सुधीर मंगला को जिम्मेदार बताया गया है | इस बेनामी चिट्ठी में सुधीर मंगला पर गंभीर आरोप यह लगाया गया है कि सुधीर मंगला ही रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी में हुए विभाजन के लिए जिम्मेदार थे और अब उनकी राजनीति रोटरी क्लब दिल्ली लुटियन को भी 'लुटाने' को तैयार है | सुधीर मंगला और क्लब के दूसरे सदस्य इस चिट्ठी के पीछे अरुण जैन को 'देखते' हैं, लेकिन अरुण जैन इस चिट्ठी के पीछे किसी भी रूप में होने से इंकार करते हैं | अरुण जैन लेकिन अपनी अध्यक्षी जाने का जो जो कारण बताते हैं, कमोवेश वही कुछ इस चिट्ठी में कहा/लिखा गया है | अरुण जैन क्लब के पदाधिकारियों के इस दावे को बिलकुल झूठा बताते हैं कि उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दिया है | उल्लेखनीय है कि बबाल से और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के सवालों से बचने के लिए क्लब के पदाधिकारियों ने दावा किया कि समय की कमी के चलते अरुण जैन ने खुद ही अध्यक्ष पद से हटने की पेशकश की थी और उन्होंने अपनी इच्छा से ही अध्यक्ष पद छोड़ा है | अरुण जैन का कहना है कि अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभाने के लिए उनके पास समय की कोई कमी नहीं है और उन्होंने न कभी अध्यक्ष पद छोड़ने की बात कही और न इस्तीफ़ा दिया | अरुण जैन का कहना है कि उन्हें गंदी राजनीति का शिकार बनाया गया और नियमों को ठेंगा दिखा कर षड्यंत्रपूर्ण तरीके से अध्यक्ष पद से हटाया गया है | किसने 'गंदी राजनीति' या 'षड्यंत्र' किया, अरुण जैन आपसी बातचीत में यह नहीं बताते | वह यही कह कर किसी का नाम लेने से बचते हैं कि 'आप सब जानते हैं |' लेकिन उनका पक्ष लेते हुए जो चिट्ठी सामने आई है उसमें - जो हुआ, उसके लिए सुधीर मंगला को जिम्मेदार ठहराया गया है | चिट्ठी में कहा गया है कि अरुण जैन तो पूरी मेहनत से न सिर्फ अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभा रहे थे, बल्कि सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए भी प्रयास कर रहे थे | चिट्ठी में कहा गया है कि क्लब के कुछेक सदस्य अरुण जैन को सहयोग तो नहीं ही कर रहे थे, तरह-तरह की बातों को फैला कर उन्हें बदनाम और कर रहे थे | अरुण जैन को यह देख/जान कर और बुरा लगा कि क्लब के ऐसे सदस्यों को सुधीर मंगला भी शह और समर्थन दे रहे हैं | अरुण जैन ने कई बार सुधीर मंगला को आगाह किया कि क्लब के कुछेक सदस्यों का जो रवैया और तरीका है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी मुश्किल में पड़ जा सकती है, लेकिन सुधीर मंगला ने कभी भी उनकी बातों को तवज्जो नहीं दी; बल्कि अरुण जैन को ही ऐसी-ऐसी बातों के लिए जिम्मेदार ठहराया जिनके लिए अरुण जैन किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं थे | अरुण जैन को सुधीर मंगला से इस बात की गंभीर शिकायत रही कि सुधीर मंगला क्लब के उन लोगों के ज्यादा नज़दीक रहे जो अरुण जैन को न तो सहयोग करने को तैयार थे, और न अरुण जैन को काम करने दे रहे थे | अरुण जैन के हर फैसले पर ऊँगली उठाना और ऐतराज करना जिन्होंने अपना धर्म बना लिया था; तरह-तरह की बातें फैला कर जो लगातार अरुण जैन को बदनाम कर रहे थे | यह बात तो खुद सुधीर मंगला ने कही/बताई कि अरुण जैन अक्सर उनसे कहते थे कि क्लब में कुछेक लोग उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं | सुधीर मंगला का कहना लेकिन यह रहा कि अरुण जैन जब भी उनसे यह बात कहते, वह उनसे पूछते कि कौन उन्हें काम नहीं करने दे रहा है; अरुण जैन ने लेकिन उन्हें कभी किसी का नाम नहीं बताया | सुधीर मंगला का कहना है कि ऐसे में वह क्या कर सकते थे | सुधीर मंगला को हैरानी है कि अरुण जैन अपनी दशा के लिए उन्हें क्यों जिम्मेदार ठहरा रहे हैं | सुधीर मंगला को भले ही हैरानी हो, लेकिन अरुण जैन की तरफ से उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है | रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी में हुए विभाजन के लिए सुधीर मंगला को जिम्मेदार ठहरा कर तथा सुधीर मंगला पर 'गंदी राजनीति' व 'षड्यंत्र' करने का आरोप मढ़ कर यह जता दिया गया है कि अरुण जैन को अध्यक्ष पद से हटा देने की कार्रवाई सुधीर मंगला के लिए मुसीबत बन गई है |

Sunday, June 24, 2012

डॉक्टर सुब्रमणियन लीडर/गवर्नर बनना चाहते हैं या ऐनटरटेनर ?

नई दिल्ली | डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपनी जिस गायकी को एक उम्मीदवार के रूप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई में अपना हथियार बनाने की रणनीति बनाई थी, उसने उनकी उम्मीदवारी को चोट पहुँचाने का ही काम किया है | उल्लेखनीय है कि 23 जून को इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में अपनी गायकी के कार्यक्रम के जरिये डॉक्टर सुब्रमणियन ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने की जोरदार तैयारी की थी | किंतु उनके कार्यक्रम में न तो उनकी तैयारी की अपेक्षानुसार रोटेरियन पहुँचे और जो पहुँचे भी उन्होंने भी पाया/माना कि इस एक कार्यक्रम से अपनी उम्मीदवारी का प्रमोशन शुरू करके डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपनी उम्मीदवारी का बँटा धार कर लिया है | डॉक्टर सुब्रमणियन के शुभचिंतकों ने भी माना और कहा है कि इस कार्यक्रम के जरिये डॉक्टर सुब्रमणियन ने रोटेरियंस को अपनी उम्मीदवारी के प्रति उत्सुक और उत्साहित करने की जो कोशिश की, वह कोशिश न सिर्फ विफल रही बल्कि उसने उल्टा असर ही पैदा किया है | कुछ लोग मजाक में, तो कुछ गंभीरता के साथ यह पूछने/समझने में लग गए हैं कि डॉक्टर सुब्रमणियन लीडर/गवर्नर बनना चाहते हैं या ऐनटरटेनर ? वह अच्छा गाते हैं - यह जान कर रोटेरियंस उन्हें अपना गवर्नर भला क्यों चुनें ? डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए मुसीबत की बात यह भी हुई कि उसी 23 जून को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के एक दूसरे उम्मीदवार जेके गौड़ ने भी अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से एक कार्यक्रम का आयोजन किया था, जो अप्रत्याशित रूप से सफल रहा | जेके गौड़ की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से आयोजित हुए कार्यक्रम में न केवल रोटेरियंस की उपस्थिति अच्छी दिखी, बल्कि हर किसी ने जेके गौड़ और उनके संगी-साथियों की व्यवहार कुशलता की जम कर तारीफ भी की और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में जेके गौड़ की सक्रियता व रोटेरियंस के बीच पैठ बनाने की कोशिशों को सकारात्मक रूप से रेखांकित भी किया | 23 जून से पहले जो रोटेरियंस डॉक्टर सुब्रमणियन और जेके गौड़ के बीच तुलना करते हुए डॉक्टर सुब्रमणियन को ज्यादा नंबर देते थे, 23 जून को हुए दोनों कार्यक्रमों की रिपोर्ट जानने के बाद यह कहते हुए सुने गए हैं कि डॉक्टर सुब्रमणियन को चुनावी राजनीति के तौर-तरीकों की जरा भी समझ नहीं है और कि वह अपनी उम्मीदवारी का कबाड़ा खुद ही कर लेंगे | डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए ज्यादा झटके की बात यह भी रही कि उन्होंने जिन भी रोटेरियंस को अपना गाना सुनने के लिए आमंत्रित किया, उनमें से कइयों से उन्हें यह सुनने को मिला कि उन्हें तो जेके गौड़ के कार्यक्रम में जाना है | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति के संदर्भ में, डॉक्टर सुब्रमणियन के कार्यक्रम की विफलता से निराश डॉक्टर सुब्रमणियन के नजदीकियों ने विफलता के लिए एक मजेदार कारण यह बताया कि कार्यक्रम के निमंत्रण कार्ड में चूँकि डिनर का जिक्र नहीं था, इसलिए रोटेरियंस ने इस कार्यक्रम में आने में दिलचस्पी नहीं दिखाई | ऐसा तर्क देने वाले डॉक्टर सुब्रमणियन के नजदीकियों से पूछा लेकिन यह गया कि यदि उन्हें लगता है कि रोटेरियंस डिनर के लालच में ही कार्यक्रम में आते हैं तो उन्होंने रोटेरियंस को डिनर का लालच दिया क्यों नहीं ? डॉक्टर सुब्रमणियन से अभी तक लोगों को यह शिकायत थी कि वह यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार हैं तो एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय क्यों नहीं हो रहे हैं | इस तरह की शिकायत करने वाले लोगों को लेकिन यह देख/जान कर घोर निराशा ही हुई है कि डॉक्टर सुब्रमणियन एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय भी हुए तो इस तरह कि उन्होंने रोटेरियंस को अपने से दूर करने का ही काम किया और रोटेरियंस को यह दिखाने/जताने का ही काम किया कि उन्हें चुनावी राजनीति के 'तौर-तरीके' न तो पता हैं और न ही वह उन्हें जानना/समझना चाहते हैं | अधिकतर रोटेरियंस को शक/संदेह है कि डॉक्टर सुब्रमणियन एक उम्मीदवार के रूप में काम कर पायेंगे | 23 जून को हुए कार्यक्रम के जरिये डॉक्टर सुब्रमणियन ने एक उम्मीदवार के रूप में अपनी जिस तरह की सोच और तैयारी को प्रदर्शित किया है उससे उन रोटेरियंस का शक/संदेह इस विश्वास में बदलता हुआ नजर आ रहा है कि डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए एक उम्मीदवार के रूप में काम कर पाना सचमुच बहुत ही मुश्किल होगा | 23 जून को हुए दोनों कार्यक्रमों की रोटेरियंस के बीच जो तुलना हुई है उसमें जेके गौड़ का पलड़ा डॉक्टर सुब्रमणियन से भारी हो गया है | डॉक्टर सुब्रमणियन के शुभचिंतकों का भी मानना और कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने इस असफलता से यदि कोई सबक नहीं सीखा तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई में बने रहना उनके लिए सचमुच मुश्किल हो जायेगा |