Friday, June 29, 2012

रवींद्र सिंह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाये जाने की सुगबुगाहट ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प बना दिया है

नई दिल्ली/गाजियाबाद | रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी की चर्चा ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प मोड़ दे दिया है | मजे की बात यह है कि खुद रवींद्र सिंह अपनी उम्मीदवारी को लेकर अभी बहुत सक्रिय नहीं दिख रहे हैं | इसके बावजूद उनकी उम्मीदवारी की चर्चा है - और उन लोगों के बीच है, पिछले चुनाव में जो संजय खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थन में थे | दरअसल इसी एक बात ने रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी की चर्चा को महत्वपूर्ण बना दिया है | गौर करने की बात यह है कि अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जो भी नाम चर्चा में हैं, वह सभी घूम-फिर कर उन्हीं नेता-लोगों के नज़दीक हैं जो पिछले चुनाव में रवि चौधरी के समर्थन में थे | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई को यदि खेमेबाजी के ऐंगल से देखते हैं तो पाते हैं कि पिछले चुनाव में जीतने वाले खेमे से अभी तक कोई उम्मीदवार सामने नहीं आया है | ऐसे में, पिछले चुनाव में जीतने वाले खेमे के मुख्य कर्ता-धर्ता यदि रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी की बात करते सुने जा रहे हैं, तो इससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में नया मोड़ आना स्वाभाविक ही है | उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में जीतने वाले खेमे के लोग अभी तक रवि भाटिया की उम्मीदवारी को समर्थन देने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन रवि भाटिया की उम्मीदवारी को चूँकि उनके क्लब से हरी झंडी नहीं मिली, लिहाजा पिछले चुनाव में जीतने वाले खेमे के लोगों की उम्मीदें अब रवींद्र सिंह पर आ टिकी है | यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि रवींद्र सिंह पहले हालाँकि उसी 'गिरोह' के सदस्य थे, जो गिरोह पिछले चुनाव में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में था | एक समय था जब रवींद्र सिंह, मुकेश अरनेजा की आँख का तारा हुआ करते थे; नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य के रूप में रवींद्र सिंह ने असित मित्तल की उम्मीदवारी का खुला समर्थन किया था; रमेश अग्रवाल के चुनाव में समर्थन जुटाने के लिए रवींद्र सिंह ने दिन-रात भाग-दौड़ की थी; और विनोद बंसल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की राह को आसान बनाने के लिए अपनी उम्मीदवारी की बलि दे दी थी, जिसके लिए विनोद बंसल ने सार्वजानिक रूप से उनका आभार व्यक्त किया था - लेकिन रवींद्र सिंह को मुकेश अरनेजा, असित मित्तल और रमेश अग्रवाल से बदले में सिर्फ धोखा ही मिला | जल्दी ही यह भी देख/जान लिया जायेगा कि विनोद बंसल ने जिन रवींद्र सिंह का सार्वजानिक रूप से सबसे पहले आभार व्यक्त किया था, गवर्नर के रूप में उनका उन्हीं रवींद्र सिंह के प्रति कैसा-क्या रवैया रहता है ? मुकेश अरनेजा, असित मित्तल और रमेश अग्रवाल से मिले धोखे के कारण ही रवींद्र सिंह पिछले चुनाव के आते-आते तक 'गिरोह' से अलग हो गए थे | क्या यह सिर्फ संयोग है कि 'गिरोह' के उम्मीदवार रवि चौधरी की उम्मीदवारी में घोषित रूप से पलीता लगाने की शुरुआत रवींद्र सिंह के क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद हैरीटेज से ही हुई थी ? संजय खन्ना की चुनावी जीत में रोटरी क्लब गाजियाबाद हैरीटेज की सुस्पष्ट आक्रामक पहल की मुख्य भूमिका थी | रवींद्र सिंह के क्लब के अध्यक्ष अरविंद सिंघल ने जिस तरह 'गिरोह' की तरफ से पड़े तमाम दबावों, लालचों और सिफारिशों का सामना करते हुए अपने 'लक्ष्य' को नहीं छोड़ा - उसके पीछे रवींद्र सिंह की सोची-विचारी रणनीति से मिल रही 'ताकत' ही काम कर रही थी | रवींद्र सिंह ने अपनी रणनीति का नज़ारा हालाँकि इससे पिछले वर्ष ही दिखा दिया था, जब उनकी उम्मीदवारी विनोद बंसल की राह में रोड़ा बन रही थी | विनोद बंसल की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे 'गिरोह' के नेता पहले तो रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे थे और चूँकि वह दूसरों की खिल्ली उड़ाने में बड़े एक्सपर्ट हैं, इसलिए वह रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी की खिल्ली ही उड़ा रहे थे | लेकिन जब उन्हें रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी के कारण विनोद बंसल की उम्मीदवारी में फच्चर फंसता हुआ नज़र आया तो वह रवींद्र सिंह को मनाने में जुटे | रवींद्र सिंह चूँकि भले व्यक्ति हैं, इसलिए वह जल्दी से मान भी गए | रवींद्र सिंह माने, तो विनोद बंसल का रास्ता साफ हुआ | रवि चौधरी के समय में, 'गिरोह' के लोगों ने एक फिर रवींद्र सिंह को हलके में लिया | विनोद बंसल के समय में, कुछ समय बाद 'गिरोह' के नेताओं को अक्ल आ गई थी और उन्होंने रवींद्र सिंह की अहमियत को समझ लिया था - लिहाजा विनोद बंसल का काम बन गया था | लेकिन रवि चौधरी के समय रवींद्र सिंह की अहमियत को समझने/पहचानने में गिरोह के नेता चूक गए - जिसका नतीजा हुआ कि उम्मीदवार के रूप में रवि चौधरी चारों खाने चित्त नज़र आये | यही तथ्य चुनावी राजनीति की उठा-पटक में रवींद्र सिंह को और उनकी रणनीतिक सोच को महत्वपूर्ण बनाता है | यही कारण है कि रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी की संभावनापूर्ण चर्चा ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प मोड़ दे दिया है | जैसा कि पहले कहा गया है कि रवींद्र सिंह अपनी उम्मीदवारी को लेकर खुद बहुत सक्रिय नहीं हैं - कुछ लोग इसके पीछे पिछले दिनों उनके बीमार पड़ने में देखते हैं तो कुछ लोग इसमें उनकी रणनीतिक चतुराई को पहचानने/समझने का प्रयास करते हैं | उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों रवींद्र सिंह पहले तो बीमार पड़े और फिर बीमारी के चलते कमजोरी का शिकार बने - इस कारण उनकी सक्रियता में स्वाभाविक रूप से कमी आई | उनकी उम्मीदवारी की संभावना को लेकर जिन लोगों ने भी सीधे उनसे बात की - इस संबंध में उनसे बात करने वाले लोगों में इन पंक्तियों का लेखक भी है - उन्हें रवींद्र सिंह ने रहस्यभरा गोल-मोल सा जबाव दिया - इससे उनकी उम्मीदवारी को लेकर बात और भी गंभीर हो गई | रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी में 'उम्मीद' देख रहे, संजय खन्ना को चुनाव जितवाने वाले खेमे के कर्ता-धर्ताओं का मानना और कहना है कि पिछली बार एक खेमे के रूप में उन्हें जो जोरदार चुनावी जीत मिली है, उसे जाया नहीं जाने देना चाहिए तथा खेमे की तरफ से अपना उम्मीदवार लाना चाहिए और इसीलिए रवींद्र सिंह को उम्मीदवार बनाने की तैयारी की जा रही है | रवींद्र सिंह को उम्मीदवार बनाने की तैयारी में जुटे, संजय खन्ना को चुनाव जितवाने वाले खेमे के कर्ता-धर्ता रवींद्र सिंह की उम्मीदवारी पर दरअसल इसलिए जोर दे रहे हैं क्योंकि एक रोटेरियन के रूप में रवींद्र सिंह की कर्मभूमि वही गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश रहा है, जिसने संजय खन्ना को चुनाव जितवाने में महत्वपूर्ण व निर्णायक भूमिका निभाई | उन्हें यह भी लगता है कि पिछली बार गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश पहले भले ही रवि चौधरी की उम्मीदवारी के साथ दिखता रहा हो, लेकिन जैसे ही संजय खन्ना की सक्रियता बढ़ी वह संजय खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थन में आ खड़ा हुआ | इससे यही साबित हुआ है कि रवि चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे 'गिरोह' के जो नेता गाजियाबाद/उत्तर प्रदेश में अपना समर्थन मानते हैं, उनका वह समर्थन है नहीं | ऐसे में, गाजियाबाद में भले ही पहले से उम्मीदवार हैं पर वह चूँकि 'गिरोह' के 'इस' या 'उस' नेता के भरोसे हैं, इसलिए रवींद्र सिंह के लिए अच्छा मौका हो सकता है | रवींद्र सिंह ने विनोद बंसल के लिए 'जो' किया था, उसे ध्यान में रखते हुए यह उम्मीद भी की जा सकती है कि विनोद बंसल का समर्थन उन्हें मिल जाये | यह उम्मीद इसलिए भी है क्योंकि 'गिरोह' में रहने के कारण विनोद बंसल को जिस बदनामी का शिकार होना पड़ा उससे यह उम्मीद भी की जाती है कि विनोद बंसल अब गिरोह के साथ नहीं रहना चाहेंगे | समय की नजाकत को पहचानते हुए विनोद बंसल ने 'गिरोह' के नेताओं से पीछा छुड़ाने और संजय खन्ना के साथ 'दिखने' की जो कोशिशें शुरू की हैं - उन कोशिशों में भी संजय खन्ना को चुनाव जितवाने वाले खेमे के कर्ता-धर्ताओं को रवींद्र सिंह के रूप में अपने उम्मीदवार के लिए उम्मीद नज़र आ रही है | इसी उम्मीद के चलते रवींद्र सिंह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाये जाने की सुगबुगाहट ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प बना दिया है |