Monday, March 30, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के लिए यह सवाल मुसीबत बना हुआ है कि पिछले वर्षों में वह जब अपने तीन तीन उम्मीदवारों को चुनाव नहीं जितवा सके और लगातार पराजित होते रहे हैं, तो इस बार कुँवर बीएम सिंह को चुनाव वह कैसे जितवा देंगे ?

वाराणसी । प्रभात चतुर्वेदी और कुँवर बीएम सिंह के बीच सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव से पहले की स्थितियों को लेकर प्रस्तुत की गईं अपनी रिपोर्ट्स पर 'रचनात्मक संकल्प' को दोनों ही पक्षों की आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है । मजे की बात है कि दोनों ही पक्षों का आरोप है कि 'रचनात्मक संकल्प' स्थिति की सही तस्वीर प्रस्तुत नहीं कर रहा है । कुँवर बीएम सिंह की तरफ के लोगों का आरोप है कि 'रचनात्मक संकल्प' कुँवर बीएम सिंह की स्थिति को कमजोर करके आँक रहा है, जबकि उनकी स्थिति बहुत ही मजबूत है । प्रभात चतुर्वेदी की तरफ के लोगों का आरोप है कि 'रचनात्मक संकल्प' प्रभात चतुर्वेदी की स्थिति की उस मजबूती को नहीं पहचान और 'दिखा' रहा है, जितनी मजबूत वह वास्तव में है । यूँ तो चूँकि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले हर चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार को पूरा पूरा भरोसा होता है कि चुनावी नतीजा उसके ही पक्ष में आयेगा और वही जीतेगा, इसलिए दोनों उम्मीदवारों के समर्थक नेता यदि अपनी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं - तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है । लेकिन चुनाव जीतता तो कोई एक ही है - जाहिर है कि महत्व उम्मीदवारों के समर्थक नेताओं के दावे का उतना नहीं है, जितना दिखने वाली जमीनी सच्चाई का और बुनियादी सवालों के मिलने वाले जबावों का है ।
बहरहाल, पहले दोनों उम्मीदवारों के समर्थक नेताओं के दावों की पड़ताल करते हैं । कुँवर बीएम सिंह की तरफ से डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ लायन राधे मारवाह ने फोन करके 'रचनात्मक संकल्प' में प्रकाशित अभी तक की रिपोर्ट्स को एकतरफा बताते हुए सीधा दावा किया कि कुँवर बीएम सिंह को 150 के करीब वोट मिल रहे हैं । प्रभात चतुर्वेदी की तरफ के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर अशोक सिंह ने ईमेल भेज कर दावा किया कि प्रभात चतुर्वेदी को 130 से 150 के बीच वोट मिलेंगे । अब इनमें से किसके दावे को सही माना जाये ? या किसका दावा सही है, इसे नापने/समझने का आधार क्या हो ? हालाँकि इन दोनों लोगों ने अपने अपने दावे को लेकर अपने अपने आधार प्रस्तुत किए हैं । राधे मारवाह ने इन पँक्तियों के लेखक को बताया कि कुँवर बीएम सिंह को इलाहाबाद में एक नितिन यशार्थ के क्लब को छोड़ कर बाकी सभी क्लब्स का समर्थन प्राप्त है; सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, जौनपुर में पूरा पूरा समर्थन है; गोरखपुर क्षेत्र और वाराणसी में आधे से ज्यादा वोट मिलेंगे; दक्षिण क्षेत्र में रेनुकूट को छोड़ कर बाकी सभी क्लब के वोट मिलेंगे । राधे मारवाह ने यहाँ तक दावा किया कि रेनुकूट के प्रभात चतुर्वेदी के क्लब के भी चार-पाँच वोट कुँवर बीएम सिंह को मिल सकते हैं । इस दावे के संदर्भ में उनका तर्क रहा कि रेनुकूट क्लब में हिंडाल्को वालों व गैर-हिंडाल्को वालों के बीच तनातनी रहती है, जिसका फायदा कुँवर बीएम सिंह को मिलेगा । प्रभात चतुर्वेदी को मिलने वाले वोटों का गणित बताते हुए डॉक्टर अशोक सिंह ने दावा किया कि प्रभात चतुर्वेदी को वाराणसी के 24 तथा इलाहाबाद के 5 क्लब्स के, सुल्तानपुर व प्रतापगढ़ के आधे-आधे तथा गोरखपुर के सभी वोट मिलेंगे । जौनपुर और दक्षिण क्षेत्र के ज्यादातर वोट प्रभात चतुर्वेदी के खाते में जाने का डॉक्टर अशोक सिंह ने दावा किया ।
कुँवर बीएम सिंह के संदर्भ में राधे मारवाह के दावे को और प्रभात चतुर्वेदी के संदर्भ में डॉक्टर अशोक सिंह के गणित पर यदि विश्वास किया जाये, तो वोटों की गिनती तीन सौ तक पहुँचती है । समस्या की बात लेकिन यह है कि वोट तो कुल 210 के आसपास ही हैं । राधे मारवाह भी और डॉक्टर अशोक सिंह भी वरिष्ठ व अनुभवी व्यक्ति हैं - हम विश्वास करते हैं कि दोनों में से कोई भी हवा में बात नहीं कर रहा है; और दोनों लोग जो दावा कर रहे हैं वह क्लब्स के पदाधिकारियों व अन्य प्रमुख सदस्यों से मिले फीडबैक के आधार पर ही उन्होंने बनाया होगा । यानि, बहुत से क्लब्स के पदाधिकारी दोनों उम्मीदवारों और उनके समर्थक नेताओं को समर्थन देने की बात कर रहे हैं । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट के जो लोग दोनों को वोट देने की बात कह रहे हैं, उनका वोट वास्तव में जायेगा तो किसी एक को ही । उनका वोट सचमुच में किसे जायेगा, यह पहचानना/समझना उम्मीदवारों व उनके समर्थकों के साथ-साथ दूसरों के लिए भी बहुत मुश्किल है - मुश्किल क्या, असंभव ही है । यह पहचानना/समझना क्लब्स के स्तर पर ही मुश्किल और/या असंभव नहीं है, बल्कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के स्तर पर भी यही सीन है । डॉक्टर अशोक सिंह का दावा है कि 16 पूर्व गवर्नर्स प्रभात चतुर्वेदी के समर्थन में हैं; तो राधे मारवाह ने बताया कि 15 पूर्व गवर्नर्स कुँवर बीएम सिंह को वोट देंगे । यानि करीब 8/9 पूर्व गवर्नर्स ऐसे हैं, जो दोनों पक्षों को गोली दिए हुए हैं - और दोनों तरफ के लोग उन्हें अपने अपने साथ मान रहे हैं ।
जाहिर है कि चुनावी नतीजा हमेशा 'दिखने' वाले तथ्यों पर ही निर्भर नहीं होता है - वास्तव में वह कई 'छिपे' किस्म के तथ्यों पर आधारित होता है । हर चुनाव की एक अलग केमिस्ट्री होती है, हर वोट की भी एक अलग केमिस्ट्री होती है । वोट की और चुनाव की रहस्यमयी केमिस्ट्री का ताजा उदाहरण देखने के लिए दिल्ली के विधानसभा चुनाव को याद किया जा सकता है । लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें जीतने वाली और 70 विधानसभा सीटों में से 60 में सबसे आगे रहने वाली भारतीय जनता पार्टी - किसने कल्पना भी की होगी कि - मात्र सात महीने बाद हो रहे विधानसभा के चुनाव में कुल तीन सीट ही पा सकेगी । लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई के पिछले वर्षों के चुनावी परिदृश्य को याद करें, तो क्या यह बहुत रहस्यपूर्ण नहीं लगता कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जिस जगदीश गुलाटी/वीरेंद्र गोयल खेमे को खासा मजबूत माना/समझा जाता रहा है, उस खेमे के उम्मीदवार पिछले तीन चुनावों से लगातार हार रहे हैं ?
कुँवर बीएम सिंह और प्रभात चतुर्वेदी के बीच हो रहे चुनाव का नतीजा तो 12 अप्रैल को पता चलेगा, लेकिन वह नतीजा क्या हो सकता है - इसका कोई भी अनुमान परसेप्शन (अवधारणा) और सेंटीमेंट्स के आधार पर ही लगाया जा सकता है । कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की तरफ से अभी तक भी इस सवाल का कोई तर्कपूर्ण और संतोषजनक जवाब नहीं मिला है कि जगदीश गुलाटी/वीरेंद्र गोयल के नेतृत्व वाला जो खेमा पिछले वर्षों में अमित मोटवानी, प्रदीप जायसवाल, मुकेश पाठक को चुनाव नहीं जितवा सका है और लगातार पराजित होता रहा है, वह इस बार कुँवर बीएम सिंह को कैसे और क्यों चुनाव जितवा देगा ? एक और सेंटीमेंट कुँवर बीएम सिंह के समर्थकों के लिए बड़ी चुनौती है - कुँवर बीएम सिंह को इस बात से तो फायदा मिलता दिख रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आनंद श्रीवास्तव का समर्थन उनके साथ है; लेकिन फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रकाश अग्रवाल और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान को प्रभात चतुर्वेदी के साथ देखा/पहचाना जा रहा है । कुँवर बीएम सिंह के समर्थकों के लिए चुनौती इसलिए है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट के लोग मौजूदा गवर्नर की बजाये आने वाले गवर्नर के साथ ज्यादा रहना/दिखना पसंद करते हैं । यह बातें मुकाबले में कुँवर बीएम सिंह को पीछे धकेलती हैं । इन बातों के प्रभाव को निष्प्रभावी बनाने के लिए उनके समर्थक नेता हालाँकि प्रयास तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए मुसीबत की बात यह भी है कि प्रभात चतुर्वेदी के समर्थक नेता भी आश्वस्त होकर नहीं बैठे हुए हैं ।
दोनों उम्मीदवारों और उनके समर्थक नेताओं की सक्रियता को देखते हुए अधिकतर लोग - और वह लोग भी जिन्हें प्रभात चतुर्वेदी जीतते हुए दिख रहे हैं - मान रहे हैं कि चुनाव काँटे का है । जाहिर है कि अगले दस-बारह दिन खासी गहमा-गहमी वाले होंगे । अपने स्रोतों से मिलने वाले फीडबैक के जरिए इस गहमा-गहमी पर हमारी तो नजर होगी ही, आप भी फीडबैक देते रहेंगे तो स्थितियों को पहचानने/समझने में और मदद मिलेगी ।

Sunday, March 29, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में पेट्स में दिए जाने वाले गिफ्ट को स्पॉन्सर करने के मनमाने तरीके से लिए गए फैसले को लेकर फरीदाबाद में बबाल और निशाने पर विनय भाटिया

फरीदाबाद । पेट्स में प्रतिभागियों को दी जाने वाली किट के लिए गिफ्ट स्पॉन्सर करने को लेकर फरीदाबाद में बबाल हो गया है । पेट्स में जाने वाले लोगों के बीच इस बात को लेकर गहरी नाराजगी पैदा हो गई है कि तीन-चार लोगों ने मनमाने तरीके से गिफ्ट का खर्च उनके ऊपर डाल दिया है । उल्लेखनीय है कि तीन-चार लोगों ने मनमाने तरीके से फैसला किया और पेट्स में जाने वाले लोगों को गिफ्ट के खर्च के नाम पर पंद्रह-पंद्रह हजार रुपये देने का फरमान सुना दिया गया है । इन लोगों की शिकायत है कि गिफ्ट स्पॉन्सर करने का फैसला लेते समय तो इनसे कोई सलाह नहीं ली गई; और अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए फरीदाबाद की तरफ से गिफ्ट स्पॉन्सर करने के लिए हामी भर दी । इस स्पॉन्सरशिप का पैसा कैसे इकठ्ठा हो, इसके लिए भी सभी की सलाह लेना जरूरी नहीं समझा गया - और मनमाने तरीके से स्पॉन्सरशिप के खर्चे का बोझ पेट्स में जाने वाले लोगों के सिर मढ़ दिया गया । पेट्स के गिफ्ट स्पॉन्सर करने को चूँकि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत होने वाली विनय भाटिया की उम्मीदवारी के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है, इसलिए जो बबाल पैदा हुआ है उसके निशाने पर विनय भाटिया भी आ गए हैं ।
दरअसल पिछले एक आयोजन में रवि दयाल के क्लब द्धारा गिफ्ट स्पॉन्सर करने के बाद से ही विनय भाटिया द्धारा भी अगले किसी आयोजन में गिफ्ट स्पॉन्सर करने की चर्चा थी । उल्लेखनीय है कि रवि दयाल को भी अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसे में यह स्वाभाविक रूप से जरूरी हो गया माना गया कि जो काम रवि दयाल ने किया, वही काम विनय भाटिया भी करें । इसी जरूरत के चलते पेट्स में गिफ्ट स्पॉन्सर करने की जिम्मेदारी फरीदाबाद के नाम पर ले ली गई । एक आम धारणा है कि इस तरह की स्पॉन्सरशिप से यदि किसी उम्मीदवार का नाम जुड़ा होता है तो उसका खर्च वह उम्मीदवार और या उसका क्लब ही वहन करता है । रवि दयाल के क्लब ने जो गिफ्ट स्पॉन्सर किए उसका खर्च रवि दयाल ने वहन किया या उनके क्लब ने - यह वह जानें; विनय भाटिया की तरफ से स्पॉन्सर किए जाने वाले गिफ्ट का खर्चा फरीदाबाद के लोगों के सिर पर जिस तरह से डाल दिया गया - उसे लेकर फरीदाबाद के लोगों के बीच ही नाराजगी है । नाराज लोगों का कहना है कि विनय भाटिया को अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के लिए जो उपक्रम करने हैं, उनका खर्चा उन्हें खुद ही उठाना चाहिए; और किसी काम में उन्हें यदि दूसरों की मदद चाहिए भी तो उस काम को लेकर उन्हें दूसरों से कम-से-कम बात तो करना चाहिए - खर्चा जबरदस्ती दूसरों पर थोपना तो नहीं चाहिए ।
इस बबाल के चलते फरीदाबाद में लोग अब यह कहने लगे हैं कि विनय भाटिया कुछेक ऐसे स्वयंभू नेताओं के चंगुल में फँस गए हैं, जो किसी के लिए भी कुछ भी कहने/सुनने को और फरीदाबाद के नाम पर कोई भी फैसला करने को अपना अधिकार मानते/समझते हैं । ऐसे ही लोगों के कहने में आकर विनय भाटिया ने पहले तो फरीदाबाद के लोगों से बिना विचार-विमर्श किए पेट्स में फरीदाबाद की तरफ से गिफ्ट स्पॉन्सर करने का फैसला कर लिया; और उसके बाद गिफ्ट का खर्च फरीदाबाद के लोगों के जिम्मे डालने में भी उनसे कोई विचार-विमर्श नहीं किया । लोगों का कहना है कि विनय भाटिया और उनके साथ लगे फरीदाबाद के स्वयंभू नेताओं की इस तरह की मनमानियों का विरोध हो सकता है कि लोग अभी खुल कर न करें, लेकिन विनय भाटिया को समझना चाहिए कि इस तरह की मनमानियों के चलते वह लोगों को अपने से दूर कर लेंगे - जिससे उन्हें चुनाव में समस्या होगी । विनय भाटिया के नजदीकियों को भी लगता है कि उनके सामने सचमुच में यह बड़ी चुनौती है कि फरीदाबाद में वह किसकी कितनी बात मानें और कब मानें ? विनय भाटिया की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले दिल्ली के लोगों का भी मानना और कहना है कि फरीदाबाद में अपने ही समर्थक नेताओं के मनमाने रवैये के कारण विनय भाटिया फरीदाबाद के ही दूसरे लोगों के बीच जिस तरह से निशाना बनाये जाने लगे हैं - वह अगले रोटरी वर्ष में प्रस्तुत होने वाली उम्मीदवारी के संदर्भ में कोई अच्छे संकेत नहीं हैं ।

Saturday, March 28, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में एलएलएम की ऊँची पढ़ाई का वास्ता देकर समर्थन जुटाने की कोशिश के चलते संदीप सहगल और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की बढ़ी मुसीबत के बीच अशोक अग्रवाल ने खासे धूमधाम के साथ उम्मीदवारी का पर्चा भरा

लखनऊ । संदीप सहगल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए बेहतर उम्मीदवार बताने के लिए उनके पढ़े-लिखे होने का जो तथ्य इस्तेमाल किया गया, उसने लोगों के बीच उल्टा ही असर किया है । लोगों को यह कहने का मौका मिला है कि संदीप सहगल की जिस पढ़ाई को गर्व के साथ उनकी उपलब्धि के रूप में बताया जा रहा है, उसी पढ़ाई से जुड़े प्रोफेशन में ही वह फिर टिके क्यों नहीं रह सके और क्यों उन्हें दूसरे कामकाजों की तरफ जाना पड़ा ? इसी से सवाल पैदा होता है कि इस बात की क्या गारंटी है कि यदि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी मिली तो कहीं वह ऐसा ही सौतेलापन अपनी गवर्नरी के साथ भी नहीं दिखायेंगे ? उल्लेखनीय है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने उनके पढ़े-लिखे होने का वास्ता देकर उनके एलएलएम होने की जानकारी लोगों को दी । संदीप सहगल वकील हैं, यह तो लोगों को पता रहा है; लेकिन वह सिर्फ एलएलबी नहीं हैं, बल्कि उन्होंने उसके बाद एलएलएम तक की पढ़ाई भी की है - यह अधिकतर लोगों को नहीं पता था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में किसी उम्मीदवार के एलएलएम की पढ़ाई करने या न करने का क्या मतलब हो सकता है - यह तो किसी को भी नहीं पता; लेकिन संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को ऐसा लगा कि यह जानकारी देकर वह लोगों के बीच संदीप सहगल के लिए समर्थन व स्वीकार्यता और बढ़ा लेंगे । किंतु उनका यह होशियारी भरा दाँव उल्टा पड़ गया है ।
लोगों के बीच चर्चा यह चली है कि महत्व इस बात का है कि एलएलएम की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने किया क्या ? लोगों को जो जानकारी है उसके अनुसार संदीप सहगल वकील होने के साथ-साथ कुछेक दूसरे काम-धंधे भी करते हैं । दूसरे काम-धंधों की तरफ संदीप सहगल को क्यों जाना पड़ा, इसकी कोई जानकारी तो लोगों को नहीं है - लेकिन लोगों का अनुमान है कि और ज्यादा कमाई के उद्देश्य से ही संदीप सहगल ने दूसरे काम-धंधों को अपनाया होगा । ऐसा करके उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है - लेकिन ऐसा करने के बाद उन्हें एलएलएम करने पर कम-से-कम इतराने का काम तो नहीं करना चाहिए । बहुत आदर्शात्मक तरीके से सोचें/देखें तो उन्होंने जो किया है उसे अपनी पढ़ाई के साथ विश्वासघात करने वाली श्रेणी में रखा जा सकता है । उन्होंने एलएलएम किया है तो वकालत के क्षेत्र में ही उन्हें झंडे गाड़ने चाहिए थे; वकालत के क्षेत्र में ही उन्हें नाम और दाम कमाने चाहिए थे । बहुत से लोग हैं जिन्होंने वकालत के क्षेत्र में ही नाम और दाम कमाए हैं । एक बार फिर दोहरायेंगे कि संदीप सहगल ने दूसरे काम-धंधों में हाथ आजमाया है, तो दुनियादारी के लिहाज से कुछ भी गलत नहीं किया है । सवाल सिर्फ यह है कि अपनी जिस ऊँची पढ़ाई पर वह पूरा भरोसा नहीं कर पाए; जीवन में उन्हें जो चाहिए था उसे वह अपनी पढ़ाई के प्रोफेशन से प्राप्त करने का हौंसला नहीं बनाये रख पाए - तब फिर अपनी उस पढ़ाई को एक उपलब्धि के रूप में दिखाने/जताने का मतलब आखिर क्या है ? जाहिर है कि उनकी ऊँची पढ़ाई उनके लिए एक सजावटी वस्तु से अधिक कुछ नहीं है ।
इसी से लोगों को यह कहने और पूछने का मौका मिला है कि संदीप सहगल ने जिस तरह अपनी पढ़ाई के साथ 'विश्वासघात' किया है और उसे मात्र एक सजावटी वस्तु बना कर रख छोड़ा है; कहीं वह - यदि मिली तो - डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी के साथ भी तो ऐसा नहीं करेंगे ? इस कहने/पूछने ने संदीप सहगल और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की मुसीबत बढ़ा दी है । मजे की बात यह हुई है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों का ही कहना है कि यह मुसीबत संदीप सहगल और उनके समर्थक नेताओं ने खुद ही आमंत्रित की है । दूसरे कुछेक लोगों को लगता है कि एलएलएम वाली बात बता कर समर्थन जुटाने की कोशिश संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की बौखलाहट का सुबूत पेश कर रही है । समर्थकों का ही सुझाव है कि चुनाव-अभियान के अंतिम दिनों में संदीप सहगल और उनके समर्थक नेताओं को बहुत सावधानी से बातें करने की जरूरत है, और बौखलाहट में बेसिरपैर की बातें करने या तर्कबाजी करने से उल्टा असर हो सकता है - जैसा कि एलएलएम की जुमलेबाजी करने के चक्कर में हो गया है ।
संदीप सहगल और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता जहाँ अपने द्धारा खुद बुलाई गई मुसीबत से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, वहाँ अशोक अग्रवाल ने अपने समर्थक नेताओं व क्लब्स के पदाधिकारियों व अन्य प्रमुख सदस्यों की उपस्थिति के बीच सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का पर्चा भरा । पर्चा भरने के दौरान उनका हौंसला बढ़ाने के लिए तथा उनके प्रति अपने समर्थन को जाहिर करने के लिए दो सौ से ज्यादा लायन नेता व सदस्य मौजूद थे । यह संख्या इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि उस समय एक तरफ तो नवरात्र का त्यौहार था और उसके साथ साथ उस समय भारत व आस्ट्रेलिया के बीच क्रिकेट के विश्व कप का सेमीफाइनल मैच खेला जा रहा था । इसके बावजूद अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन 'दिखाने' के लिए लखनऊ के दो सौ से अधिक लायन आये - इसे देख/जान कर अशोक अग्रवाल के खेमे में उत्साह और बढ़ा है । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विशाल सिन्हा और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अशोक अग्रवाल द्धारा अपनी अपनी उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल करने के दौरान के कुछ दृश्य इन तस्वीरों में देखे जा सकते हैं :






Friday, March 27, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनावी अभियान में प्रभात चतुर्वेदी से बुरी तरह पिछड़ते दिख रहे कुँवर बीएम सिंह की, कॉन्फ्रेंस चेयरमैन का पद बचाने की मजबूरी में सक्रिय हुए मंगल सोनी वाराणसी में कोई मदद वास्तव में कर सकेंगे क्या ?

वाराणसी । कॉन्फ्रेंस चेयरमैन पद से हटाने की धमकी का इस्तेमाल करने के जरिये मंगल सोनी को सक्रिय करने में जगदीश गुलाटी खेमे को जो कामयाबी मिली है, उसके कारण उनके खेमे में छाई हुई मुर्दनी कुछ कम हुई है और वह पुनः लोगों को उत्साहित करने में जुट गए हैं । उल्लेखनीय है कि मंगल सोनी की निष्क्रियता ने कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी का झंडा उठाये जगदीश गुलाटी खेमे को बुरी तरह निराश किया हुआ था । दरअसल वाराणसी में कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने वास्ते जगदीश गुलाटी खेमे के नेता मंगल सोनी पर निर्भर कर रहे थे । यूँ तो वाराणसी में कुँवर बीएम सिंह की उपस्थिति को पिछले दिनों सघन बनाने तथा उनको सम्मानित करने की कार्रवाईयाँ हुई हैं; और दीपक वधावन व मुकुंदलाल टंडन जैसे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वाराणसी में कुँवर बीएम सिंह के लिए वोट इकट्ठे करने के अभियान में भी लगे हुए थे, लेकिन जगदीश गुलाटी को इन दोनों पर भरोसा नहीं हो रहा था । भरोसे के लिए ही वह मंगल सोनी को सक्रिय होते हुए देखना चाह रहे थे । मंगल सोनी सक्रिय हों, इसके लिए जगदीश गुलाटी ने उन्हें कॉन्फ्रेंस चेयरमैन बनवा दिया था । जगदीश गुलाटी को विश्वास था कि कॉन्फ्रेंस चेयरमैन का पद पाकर मंगल सोनी उनके कहे अनुसार काम करने को तैयार हो जायेंगे । मंगल सोनी लेकिन कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के पक्ष में कुछ करते हुए दिखे नहीं । मंगल सोनी ने पहले तो एक पारिवारिक फंक्शन में व्यस्त होने का बहाना बनाया । पारिवारिक फंक्शन के हो जाने के बाद भी मंगल सोनी जब कुछ करते हुए नहीं दिखे, तब जगदीश गुलाटी का माथा ठनका ।
जगदीश गुलाटी को तब मंगल सोनी की 'बाँह मरोड़ने' की जरूरत महसूस हुई । इसी जरूरत को पूरा करते हुए मंगल सोनी को संदेश पहुँचा दिया गया कि वह यदि कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के काम में नहीं लगे तो कॉन्फ्रेंस चेयरमैन का पद उनसे वापस ले लिया जायेगा । यह धमकी काम कर गई और पद बचाने के लिए मंगल सोनी मैदान में कूद पड़ने के लिए मजबूर हुए । मंगल सोनी की देखरेख में वाराणसी में कुँवर बीएम सिंह की तरफ से पार्टी करने की तैयारी शुरू हो गई है । इसके लिए बढ़िया होटल और बढ़िया कैटरर तय कर लिया गया है तथा प्रयास किए जा रहे हैं कि इस पार्टी में प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार प्रभात चतुर्वेदी के आयोजन में शामिल हुए लोगों से ज्यादा लोग इकठ्ठा हों । जगदीश गुलाटी खेमे का प्रयास है कि वाराणसी की मीटिंग में ज्यादा से ज्यादा लोगों की भीड़ को जुटाया जाये, ताकि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह संदेश दिया जा सके कि वाराणसी में कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के लिए भी अच्छा-खासा समर्थन है । 
वाराणसी में अशोक सिंह के नेतृत्व में प्रभात चतुर्वेदी के लिए समर्थन जुटाने की जो मुहिम चली/बनी है, और इस मुहिम को जिस तरह से जो सफलता मिलती दिखी है - उसके चलते जगदीश गुलाटी को कुँवर बीएम सिंह के लिए वाराणसी में मंगल सोनी और उनकी देखरेख में होने वाली पार्टी पर ही भरोसा रह गया है । जगदीश गुलाटी को लगता है कि बढ़िया होटल में बढ़िया खिला-पिला कर वह कुँवर बीएम सिंह को वाराणसी में वोट दिलवा देंगे । वाराणसी में कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी की जिम्मेदारी मंगल सोनी द्धारा ले लेने के बाद से कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के समर्थकों में कुछ जोश तो भरा है, लेकिन इन समर्थकों में जो लोग राजनीति की हकीकत को समझते हैं उन्हें ज्यादा कुछ बदला या बदलता हुआ नहीं दिख रहा है । इनका कहना है कि मुकुंदलाल टंडन और दीपक वधावन आदि ने पहले से ही वाराणसी में कुँवर बीएम सिंह के समर्थन में मोर्चा सँभाला हुआ था और यहाँ जितना जो समर्थन जुटाया जा सकता था, वह जुटा लिया था । मंगल सोनी के लिए इसमें कोई बढ़ोत्तरी कर पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही होगा । दरअसल मंगल सोनी का लोगों के साथ जो उपेक्षापूर्ण रवैया रहता है, वह जिस तरह लोगों से दूर दूर रहते हैं - उसके कारण लायन राजनीति में उनका जो प्रभाव पहले कभी था भी, वह धीरे-धीरे कम होता गया है ।
मंगल सोनी से ज्यादा जुगाड़ तो दीपक वधावन के पास है, जिसे उन्होंने अपनी सक्रियता से बनाया है । दीपक वधावन चूँकि सक्रिय रहते हैं, इसलिए लोगों के साथ उनके मेलजोल वाले संबंध हैं । वाराणसी में कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के लिए अभी तक जो समर्थन बना/मिला है, उसमें काफी हद तक दीपक वधावन का ही काम और सहयोग है । यह जरूर है कि मंगल सोनी के सक्रिय होने से दीपक वधावन द्धारा जुटाए गए समर्थन को मजबूती मिल गई है और वह विश्वसनीय बन गया है । यह बात सभी मानते और कहते हैं कि वाराणसी की चुनावी राजनीति में सक्रियता भले ही दीपक वधावन की ज्यादा हो - लेकिन साख, विश्वास और भरोसा उनकी तुलना में मंगल सोनी का ज्यादा है । इसलिए मंगल सोनी भले ही कुँवर बीएम सिंह के लिए वोटों का और जुगाड़ न कर सकें, लेकिन दीपक वधावन ने जो वोट जुटाए हुए हैं उन्हें पक्का करने का काम अवश्य ही कर लेंगे । समस्या किंतु यह है कि इतने भर से तो कुँवर बीएम सिंह का काम बनता हुआ नहीं दिख रहा है । वाराणसी में अशोक सिंह के नेतृत्व में प्रभात चतुर्वेदी की उम्मीदवारी के पक्ष में जो फील्डिंग सजाई गई है, तथा वाराणसी के अधिकतर पुराने और नए 'गवर्नरों' ने जिस तरह प्रभात चतुर्वेदी की उम्मीदवारी के समर्थन में मोर्चा सँभाला हुआ है, उससे निपट पाना और मुकाबला कर पाना कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के लिए खासा चुनौतीपूर्ण ही है ।
कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के समर्थकों के लिए डिस्ट्रिक्ट का दक्षिण क्षेत्र सबसे बड़ी मुसीबत बना हुआ है । यूँ तो यहाँ के सबसे बड़े नेता वीरेंद्र गोयल उनके समर्थन में हैं, लेकिन फिर भी इस क्षेत्र के करीब 40 वोटों में से 35 से ज्यादा वोट प्रभात चतुर्वेदी के पक्ष में जाते दिख रहे हैं । इलाहाबाद में जगदीश गुलाटी के जो विरोधी हैं उन्होंने कुँवर बीएम सिंह के खिलाफ मोर्चा सँभाल लिया है । डिस्ट्रिक्ट के दक्षिण क्षेत्र में तथा इलाहाबाद में कुँवर बीएम सिंह की स्थिति के पतली होने की जानकारी चूँकि वाराणसी के लोगों को भी मिल रही है, इसलिए उनमें यह फीलिंग आ रही है कि प्रभात चतुर्वेदी के समर्थन में रहने में ही फायदा है । वाराणसी के लायन सदस्यों के बीच फैला यह अंडरकरेंट कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के समर्थकों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है । ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कॉन्फ्रेंस चेयरमैन का पद बचाने के मजबूरी में सक्रिय हुए मंगल सोनी के नेतृत्व में एक बड़े होटल और एक बड़े कैटरर की जो सेवाएँ ली जा रही हैं, उसका कैसा/क्या असर पड़ेगा - और पड़ेगा भी कि नहीं ?

Wednesday, March 25, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए फरीदाबाद का पूरा पूरा समर्थन पाने के लिए विनय भाटिया के सामने केसी लखानी और नवदीप चावला के साथ साथ फरीदाबाद के दूसरे नेताओं को भी बराबर बराबर तवज्जो देने की चुनौती

फरीदाबाद । विनय भाटिया की अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत होने वाली उम्मीदवारी के समर्थन के संदर्भ में फरीदाबाद की एकता में सेंध लगने की आहट ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को चौकन्ना कर दिया है । नवदीप चावला के पिता विश्वनाथ चावला के निधन का शोक मनाने जुटे फरीदाबाद के रोटेरियंस के बीच होने वाली चर्चाओं में शामिल रहे लोगों ने पाया कि विनय भाटिया फरीदाबाद में अपनी उम्मीदवारी का झंडा जिस तरह केसी लखानी को सौंपते हुए नजर आ रहे हैं, उससे कुछेक लोग अपने को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं और विनय भाटिया की उम्मीदवारी के प्रति उनके स्वर व तेवर बदले बदले से 'दिखने' लगे हैं । फरीदाबाद की चुनावी राजनीति को नजदीक से देखने/समझने वाले लोगों का कहना है कि फरीदाबाद में रोटरी - और रोटरी की राजनीति एक नई शक्ल लेने/बनाने की प्रक्रिया में है; और प्रक्रिया में होने के चलते वह बड़े नाजुक दौर में है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी इस नाजुकता को और नाजुक बना देती है । इसलिए लोगों को लगता है कि एक उम्मीदवार के रूप में विनय भाटिया को बहुत सावधानी के साथ अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अभियान चलाना होगा ।
विनय भाटिया की उम्मीदवारी के संदर्भ में फरीदाबाद में उथल-पुथल का संकेत पाने वाले एक वरिष्ट रोटेरियन ने भारतीय परिवारों में रिश्तों में होने वाली उथल-पुथल का उदाहरण देकर मामले को समझने/समझाने का प्रयास किया । उनका कहना रहा कि परिवार में सभी रिश्तेदार आपसे तब तक खुश बने रहते हैं जब तक आप अपने बेटे की शादी नहीं करते हैं । बेटे की शादी में कई रिश्तेदार यह शिकायत करने लगते हैं कि उनका उचित सम्मान नहीं हुआ - और इस शिकायत के साथ वह नाराज हो जाते हैं । फूफा किस्म के रिश्तेदार शिकायत करने और नाराज होने वाले लोगों में सबसे ज्यादा तथा सबसे आगे होते हैं । विनय भाटिया अभी तक एक कार्यकर्ता थे, सभी के साथ मिलकर काम कर रहे थे - इसमें किसी के शिकायत करने और नाराज होने का कोई मौका ही नहीं था; मौका तो अब आया है जब वह उम्मीदवार बने हैं । रोटरी के 'फूफा' लोग अब यह देखेंगे कि एक उम्मीदवार के रूप में विनय भाटिया उन्हें कितनी अहमियत दे रहे हैं । फूफा लोगों का नाटक यह भी रहता है कि उन्हें चाहें जितनी भी अहमियत दो, लेकिन फिर भी उन्हें शिकायत बनी ही रहती है ।
विनय भाटिया के लिए समस्या की बात इसलिए हुई है कि फरीदाबाद में रोटरी की राजनीति में केसी लखानी के रूप में एक नए 'फूफा' का अवतार हुआ है । केसी लखानी चाहते हैं कि उन्हें बड़ा फूफा माना जाए - उनकी इस चाहत को फरीदाबाद में लोगों ने पूरा भी कर दिया । इससे हालाँकि जो कुछेक लोग फरीदाबाद में रोटरी की राजनीति के फूफा बनने की लाइन में थे, उन्हें झटका लगा - किंतु इस झटके को उन्होंने झेल लिया । समस्या तब शुरू हुई जब केसी लखानी की ऊँगली पकड़ कर दूसरे लोग आगे आ गए तथा पहले वाले लोगों को उनके लिए जगह बनाने के लिए और पीछे हटना पड़ा । उल्लेखनीय है कि अभी करीब दो वर्ष पहले तक फरीदाबाद में रोटरी की राजनीति में जीतेंद्र गुप्ता और पप्पुजीत सिंह सरना का नाम आता था । धीरज भूटानी, मनमोहन गुप्ता, अमित अरोड़ा, तीरथराज अरोड़ा, सुधीर आर्य, सुमंत अवस्थी, जतिंदर सिंह छाबड़ा, सतीश गुसाईं, संदीप गोयल, आशीष गुप्ता, संतगोपाल गुप्ता, सुनील गुप्ता, विजय जिंदल, कृष्ण कौशिक, अमरजीत सिंह लाम्बा, जयप्रकाश मल्होत्रा, तजिंदर मलिक, राजेश मैंदीरत्ता, मनोहर पुनिआनी, दिनेश रघुवंशी, जगदीश सहदेव, सुरजीत सिंह सैनी आदि को भी बड़ी भूमिका निभाने के लिए तथा अपने अपने लिए जगह बनाने के प्रयासों में सक्रिय होता देखा जा रहा था । नवदीप चावला ने लेकिन अचानक से प्रकट होकर इन सब को पीछे धकेल दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनोद बंसल ने नवदीप चावला को जो तवज्जो दी, तो फिर दूसरे लोग पीछे हो गए ।
नवदीप चावला ने छलाँग तो ऊँची लगाई, हालाँकि फिर भी राजनीतिक रूप से पप्पुजीत सिंह सरना और जीतेंद्र गुप्ता को माइनस करने में वह सफल नहीं हो पाए थे । इसका मौका उन्हें केसी लखानी के सक्रिय होने से मिला । प्रोफेशनल कारणों से नवदीप चावला को केसी लखानी के यहाँ दूसरों के मुकाबले ज्यादा तवज्जो मिली । इसका नतीजा यह हुआ कि केसी लखानी फरीदाबाद में रोटरी की राजनीति में जब सबसे बड़े फूफा बने तो नवदीप चावला को छोटे फूफा का दर्जा मिला और बाकी लोग उनकी हाँ में हाँ मिलाने की भूमिका निभाने वाले बन कर रह गए । अपनी अपनी भूमिकाओं और अपनी अपनी महत्वाकांक्षाओं से पीछे धकेल दिए गए इन लोगों को अपने समर्थन में बनाये रखना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में विनय भाटिया के लिए वास्तव में गंभीर चुनौती होगी । नवदीप चावला के पिता विश्वनाथ चावला के निधन का शोक मनाने के लिए जुटे फरीदाबाद के रोटेरियंस के बीच जिस तरह की जो बातें हुईं उनमें विनय भाटिया के लिए यही चेतावनी छिपी महसूस की गई कि विनय भाटिया ने यदि केसी लखानी और नवदीप चावला पर भरोसा करने के साथ साथ दूसरे लोगों को इग्नोर करने का काम किया, तो उनकी उम्मीदवारी के संदर्भ में फरीदाबाद की एकता को वह दाँव पर लगाने का खतरा मोल लेंगे ।

Tuesday, March 24, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में लखनऊ क्षेत्र के ज्यादा से ज्यादा वोट जुटाने की कोशिशों के चलते अशोक अग्रवाल और उनके समर्थक नेताओं ने लखनऊ में जो सक्रियता बनाई और बढ़ाई है, उसे देखते हुए संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की चिंता और ज्यादा गहरा गई है

लखनऊ । लायंस विचार मंच द्धारा आयोजित आशीर्वाद समारोह में लायंस नेताओं और लखनऊ के क्लब्स के पदाधिकारियों तथा अन्य प्रमुख सदस्यों की जो भारी उपस्थिति देखने को मिली, उससे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थक खासे गदगद हैं । उनकी तरफ से दावा किया गया है कि तीन-चार क्लब को छोड़ कर लखनऊ के बाकी सभी क्लब्स के पदाधिकारी या अन्य प्रमुख लोग इस समारोह में शामिल हुए; जो दिखाता है कि लखनऊ में अशोक अग्रवाल के लिए भारी समर्थन है । इस समारोह के बहाने प्रकट दिखे लखनऊ के समर्थन ने अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थकों को दरअसल इसलिए भी उत्साहित किया है क्योंकि लखनऊ में कुल वोटों के आधे से भी अधिक वोट हैं । उल्लेखनीय है कि चुनाव में दो सौ से कुछ कम वोट पड़ने हैं, जिनमें एक सौ से अधिक वोट लखनऊ के हैं । इस समारोह से लखनऊ में अशोक अग्रवाल का पलड़ा भारी होने का जो सुबूत दिखा/मिला है, उसे देख कर अशोक अग्रवाल के समर्थक बड़ी जीत का अनुमान लगा रहे हैं । 
 मजे की बात यह है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक भी पहले से ही लखनऊ में अशोक अग्रवाल की बढ़त को पहचान और स्वीकार कर रहे थे । हालाँकि इस बढ़त का अंतर वह मामूली ही बता रहे थे । उनके अनुसार, लखनऊ में अशोक अग्रवाल को पचपन से साठ प्रतिशत समर्थन है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों को यद्यपि उम्मीद थी कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार गुप्ता के समर्थन के चलते वह इस अंतर को और कम कर लेंगे और संभव है कि वह लखनऊ में अशोक अग्रवाल से आगे भी निकल जाएँ । किंतु पिछले दिनों अपनी उम्मीदवारी के नामांकन के समय संदीप सहगल द्धारा किए गए शो और अब अशोक अग्रवाल के शो को जिन लोगों ने देखा है, उनका यही मानना और कहना है कि लखनऊ में अशोक अग्रवाल के साथ ज्यादा लोग व क्लब्स खड़े दिख रहे हैं । कितने ज्यादा - हालाँकि इसे लेकर मतभेद है । अशोक अग्रवाल के समर्थकों का दावा है कि लखनऊ में अस्सी प्रतिशत वोट उनके साथ हैं; लेकिन संदीप सहगल के समर्थक चालीस से पैंतालिस प्रतिशत वोटों पर अपना दावा अभी भी जता रहे हैं ।
मजे की बात यह है कि अशोक अग्रवाल और संदीप सहगल - दोनों के समर्थक उन लोगों को अपने साथ मान रहे हैं, जो दोनों तरफ के आयोजनों में दिख रहे हैं । उल्लेखनीय है कि लखनऊ में कुछ लोग ऐसे हैं जो संदीप सहगल के कार्यक्रम में भी शामिल हुए और फिर अशोक अग्रवाल के समारोह में भी सक्रिय दिखे । दोनों उम्मीदवारों के समर्थक नेता ऐसे लोगों को अपने अपने साथ मान रहे हैं; और इसके पक्ष में तर्कपूर्ण तरीके से दावा कर रहे हैं कि ऐसे लोगों ने उन्हें आश्वस्त किया हुआ है कि वह दिखें चाहें जहाँ, वोट 'आप' ही को देंगे । संदीप सहगल के समर्थकों के सामने लेकिन एक बड़ी समस्या यह है कि जो लोग दोनों तरफ दिख रहे हैं, उनका वोट देने का आश्वासन तो चलो वह मान लें; लेकिन जो उनके यहाँ उपस्थित न होकर अशोक अग्रवाल के समारोह में दिखे हैं, उनके आश्वासन पर वह कैसे भरोसा करें ? दरअसल इसी तथ्य ने अशोक अग्रवाल के समर्थकों के दावे को ज्यादा व्यावहारिक माना है । लखनऊ में तो तटस्थ किस्म के लोग हैं, उनका आकलन है कि लखनऊ में अशोक अग्रवाल को सत्तर प्रतिशत वोट तो पक्के मिल रहे हैं । चुनाव में अभी जो दिन बचे हैं, उनमें वह अपने वोटों के प्रतिशत को और बढ़ा भी सकते हैं ।
संभवतः इसीलिए अशोक अग्रवाल के समर्थक नेताओं ने लखनऊ पर अपना सारा जोर लगा दिया है । उन्होंने अभी विचार मंच के नाम पर समारोह किया है । 26 मार्च को नामांकन के नाम पर लोगों के बीच अपनी पैठ को और मजबूत बनाने का काम होगा; और फिर उसके बाद भी एक मीटिंग करने की तैयारी की बात सुनी जा रही है । लखनऊ में इस तरह अशोक अग्रवाल के समर्थकों ने जो सक्रियता दिखाई है - या दिखाने की तैयारी की है, उसके कारण संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच चिंता पैदा हुई है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में वोटों का जो गणित है, उसमें लखनऊ का ज्यादा - ज्यादा क्या, बहुत ज्यादा महत्व है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता जिस तराई क्षेत्र और अवध क्षेत्र के भरोसे हैं, वहाँ के वोटों की संख्या लखनऊ और शाहजहाँपुर के वोटों की संख्या के आधे से भी कम है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को भी यह गणित डराने लगा है कि तराई क्षेत्र और अवध क्षेत्र में सत्तर-पिचहत्तर प्रतिशत वोट यदि सचमुच में उन्हें मिल भी जाते हैं, तब भी जीतने के लिए लखनऊ-शाहजहाँपुर में पैंतालिस से पचास प्रतिशत वोटों का इंतजाम उन्हें करना ही होगा । लखनऊ में अशोक अग्रवाल और उनके समर्थक नेताओं की जो सक्रियता बनी और बढ़ी है, उसे देखते हुए संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की चिंता और ज्यादा गहरा गई है ।




 


Sunday, March 22, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चे को लेकर शुरू हुए बबाल के पीछे मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए राजीव मित्तल की उम्मीदवारी के अभियान पर प्रतिकूल असर डालने और उनके अभियान को नुकसान पहुँचाने का उद्देश्य तो कहीं नहीं है ?

नई दिल्ली । राजीव मित्तल अपने गवर्नर-काल की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार बीएम शर्मा के खर्चे पर मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन की अपनी उम्मीदवारी का प्रमोशन करने के आरोप के घेरे में आ फँसे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच यह आवाज उठी है, जो कई मौकों पर सुनी गई है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को राजीव मित्तल ने चूँकि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की अपनी उम्मीदवारी के प्रमोशन के लिहाज से डिजाइन और आयोजित किया, इसलिए उसमें हुए खर्चे को भी उन्हें शेयर करना चाहिए । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन में पिछले कुछ वर्षों से यह एक अलिखित नियम बना हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का खर्चा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के जिम्मे रहता है । इसी अलिखित नियम के चलते इस वर्ष की ड्रिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का खर्च इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार बीएम शर्मा के जिम्मे था । बीएम शर्मा इस खर्च को वहन करने के लिए तैयार थे और उन्होंने वह किया भी । समस्या लेकिन इस कारण से पैदा हुई कि बीएम शर्मा ने जितने खर्च की उम्मीद की थी, या हिसाब लगाया था - वास्तव में खर्चा उससे कहीं ज्यादा हुआ । माना/समझा यह गया कि यह खर्चा इसलिए ज्यादा हुआ, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राजीव मित्तल ने अपने गवर्नर-काल की इस डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की अपनी उम्मीदवारी के प्रमोशन के रूप में डिजाइन और आयोजित किया ।
राजीव मित्तल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के उम्मीदवार के रूप में मल्टीपल के नेता लोगों को अपना जलवा दिखाने के उद्देश्य से अपने गवर्नर-काल की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को डिजाइन किया तथा मल्टीपल के तमाम बड़े नेताओं की उपस्थिति को संभव करने का प्रयास किया । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जोए प्रेस्टन की उपस्थिति के चलते राजीव मित्तल के लिए मल्टीपल के नेताओं को अपने इस 'शो' तक खींच लाना आसान तो हुआ, लेकिन उनकी इस कवायद ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का खर्चा खासा बढ़ा दिया । इसका बोझ बीएम शर्मा की जेब पर पड़ा । बीएम शर्मा ने हालाँकि खर्चे को लेकर अपनी तरफ से कोई शिकायत नहीं की है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोग जिस तरह उनके साथ हमदर्दी दिखाते हुए राजीव मित्तल से डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चे में कंट्रीब्यूट करने की माँग कर रहे हैं, उससे लग रहा है कि अपने नजदीकियों के बीच उन्होंने शायद खर्चे को लेकर रोना रोया होगा । डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोगों को यद्यपि यह भी लगता है कि हो सकता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजीव मित्तल से किसी तरह की खुन्नस रखने वाले लोग बीएम शर्मा के साथ हमदर्दी दिखाने की आड़ में अपनी भड़ास निकाल रहे हों ।
राजीव मित्तल से डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चे में कंट्रीब्यूट करने की माँग करने वाले लोगों का 'टारगेट' चाहें जो हो, दूसरे कई लोगों को भी लगता है और वह कहते भी हैं कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को राजीव मित्तल ने जब मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की अपनी उम्मीदवारी के प्रमोशन के लिए इस्तेमाल किया है - और उसके कारण डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन में खर्चा ज्यादा हुआ है, तो ज्यादा हुआ खर्चा राजीव मित्तल को वहन करना ही चाहिए । इस तरह की बातों ने राजीव मित्तल के सहयोगियों व समर्थकों को परेशान किया हुआ है । उन्हें डर हुआ है कि इस तरह की बातें मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए राजीव मित्तल की उम्मीदवारी के अभियान पर प्रतिकूल असर डालेंगी और उनके अभियान को नुकसान पहुँचाने का काम करेंगी । डिस्ट्रिक्ट में राजीव मित्तल के सहयोगियों व समर्थकों को यह आशंका भी है कि इस तरह की बातों के पीछे कहीं मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए राजीव मित्तल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का उद्देश्य ही तो नहीं है ? डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों के बीच भी यही सवाल चर्चा में है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में राजीव मित्तल को उनके अपने ही डिस्ट्रिक्ट में फँसाने/घेरने का लक्ष्य लेकर ही तो इस तरह की बातें नहीं हो रही हैं कहीं ?
यदि सचमुच ऐसा है, तो मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में अच्छी पटाखेबाजी होने का अनुमान लगाया जा रहा है ।  


Saturday, March 21, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रभात चतुर्वेदी जैसे पुराने और अनुभवी लायन के खिलाफ अपनी निजी खुन्नसबाजी के चलते कम अनुभवी कुँवर बीएम सिंह को उम्मीदवार के रूप में लाने के कारण जगदीश गुलाटी को डिस्ट्रिक्ट के लोगों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ रहा है

इलाहाबाद । कुँवर बीएम सिंह की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी प्रस्तुत करवाने तथा उसके लिए समर्थन जुटवाने में लगने के चलते जगदीश गुलाटी को डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ रहा है - उसके चलते एक दिलचस्प नजारा देखने को मिल रहा है । जगदीश गुलाटी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के साथ साथ पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर भी हैं, और इस नाते लोगों के बीच उनकी एक अलग तरह की पहचान होनी चाहिए तथा लोगों के बीच उनके प्रति खास तरह का सम्मान होना चाहिए । लेकिन कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी का झंडा उनके हाथ में होने के कारण न सिर्फ इलाहाबाद में, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के दूसरे शहरों व कस्बों में भी लोगों के बीच उनकी कारस्तानियों के जिक्र के साथ उनकी इज्जत उछल रही है और लगभग हर कोई उन्हें छोटी सोच का एक घटिया आदमी साबित कर देने के अभियान में लगा हुआ नजर आ रहा है । यह नजारा देख कर डिस्ट्रिक्ट में जो लोग जगदीश गुलाटी के नजदीकी और समर्थक हैं वह भी कहने को मजबूर हुए हैं कि कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के चक्कर में जगदीश गुलाटी ने नाहक ही अपनी फजीहत करवा ली है ।
जगदीश गुलाटी की फजीहत सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में किसी एक उम्मीदवार का समर्थन करने के कारण नहीं हो रही है - लोग इस बात को जानते/समझते हैं कि जब चुनाव होता है तब हर कोई इस तरफ या उस तरफ होता ही है । जगदीश गुलाटी पिछले वर्षों में भी किसी न किसी उम्मीदवार के समर्थन में थे; उस समय लोगों को यह बात जरा भी बुरी नहीं लगी थी कि जगदीश गुलाटी 'उनको' समर्थन क्यों दे रहे हैं ? लेकिन इस वर्ष कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के चक्कर में पड़ने के चक्कर में जगदीश गुलाटी लोगों के निशाने पर आ गए हैं, तो इसका कारण यह है कि लोग यह मान रहे हैं कि कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी जगदीश गुलाटी अपनी घटिया व टुच्ची राजनीति को डिस्ट्रिक्ट पर थोपने के उद्देश्य से लाए हैं; और उन्होंने डिस्ट्रिक्ट को नाहक ही चुनावी दलदल में धकेला है । उल्लेखनीय है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जगदीश गुलाटी पहले प्रभात चतुर्वेदी की उम्मीदवारी के ही समर्थक थे और खुल कर प्रभात चतुर्वेदी की तथा लायनिज्म में किये गए उनके कामों की तारीफ किया करते थे । शुरू के दिनों में जगदीश गुलाटी डिस्ट्रिक्ट में लोगों को बताया करते थे कि प्रभात चतुर्वेदी के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से डिस्ट्रिक्ट का और लायनिज्म का भला होगा और नाम बढ़ेगा । लेकिन फिर अचानक से लोगों ने देखा/पाया कि जगदीश गुलाटी ने डिस्ट्रिक्ट के और लायनिज्म के भले की बात करना छोड़ कर कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है । 
प्रभात चतुर्वेदी के गवर्नर बनने में डिस्ट्रिक्ट का और लायनिज्म का भला देख रहे जगदीश गुलाटी ने अचानक से रंग क्यों बदल लिया, इसका कोई कारण उन्होंने तो नहीं बताया है - लेकिन डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच जो चर्चा है उसमें कहा/सुना जा रहा है कि जगदीश गुलाटी को एक उम्मीदवार के रूप में प्रभात चतुर्वेदी का निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अशोक सिंह को तवज्जो देना पसंद नहीं आया और इसी नापसंदगी के कारण उन्होंने प्रभात चतुर्वेदी का विरोध करने का फैसला कर लिया । अशोक सिंह के साथ जगदीश गुलाटी का दरअसल छत्तीस का संबंध बना हुआ है और वह तरह तरह से अशोक सिंह को नीचा दिखाने का प्रयास करते रहते हैं । प्रभात चतुर्वेदी को अशोक सिंह से दूर रहने के बाबत उन्होंने शुरू में जताने/समझाने का प्रयास तो खूब किया था; लेकिन जब उन्होंने देखा/पाया कि प्रभात चतुर्वेदी लगातार अशोक सिंह को तवज्जो देते ही जा रहे हैं, तो फिर उन्होंने डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म के भले की बात छोड़ कर प्रभात चतुर्वेदी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया - और अपने निश्चय को पूरा करने के लिए कुँवर बीएम सिंह को मोहरा बना लिया ।
प्रभात चतुर्वेदी का कहना रहा कि एक उम्मीदवार के रूप में उनकी जरूरत यह है कि वह सभी को उचित सम्मान दें; और एक उम्मीदवार के रूप में ही नहीं एक लायन सदस्य के रूप में भी वह अपनी जिम्मेदारी समझते हैं कि वह प्रत्येक लायन को समान भाव से देखें और सभी को तवज्जो दें । प्रभात चतुर्वेदी के नजदीकियों का कहना है कि उन्होंने हमेशा ही जगदीश गुलाटी को तवज्जो दी और उनकी हर बात मानी; लेकिन अशोक सिंह से दूरी रखने की बात उन्हें लायनिज्म की भावना के खिलाफ लगी, इसलिए यह बात उन्होंने नहीं मानी । जगदीश गुलाटी को लेकिन यह बात बिलकुल भी रास नहीं आई कि उनके 'दुश्मन' अशोक सिंह के साथ प्रभात चतुर्वेदी किसी भी तरह का कोई संबंध रखें; उनकी इच्छा और माँग रही कि उनकी तरह प्रभात चतुर्वेदी भी अशोक सिंह को अपना दुश्मन मानें/समझें । प्रभात चतुर्वेदी ने चूँकि ऐसा नहीं किया, लिहाजा जगदीश गुलाटी ने उन्हें भी अपना दुश्मन मान लिया और उनकी राह में रोड़े बिछाने में लग गए । 
इस तरह जगदीश गुलाटी ने अपनी निजी खुन्नसबाजी को डिस्ट्रिक्ट में और लायनिज्म में लागू करने की जो कोशिश की, उस पर लोगों के बीच बड़ी तीखी प्रतिक्रिया हुई है - और कई लोग बढ़चढ़ कर पूर्व में की गई जगदीश गुलाटी की इसी तरह की हरकतों को याद कर रहे हैं । पूर्व में जगदीश गुलाटी द्धारा सताये गए लोग अचानक से मुखर होते हुए दिखे हैं, और इसके कारण जगदीश गुलाटी की भारी फजीहत हो रही है । लोगों की नाराजगी इस कारण से और बढ़ी है कि प्रभात चतुर्वेदी जैसे पुराने और अनुभवी लायन के खिलाफ जगदीश गुलाटी उन कुँवर बीएम सिंह को ले आये हैं जिन्हें कुल तीन-चार वर्ष का ही लायनिज्म का अनुभव है । लोगों का कहना है कि जगदीश गुलाटी को यदि प्रभात चतुर्वेदी के खिलाफ कोई उम्मीदवार लाना ही था, तो कम-अस-कम उनके जितना अनुभव रखने वाले और उनके जितना काम कर चुके लायन सदस्य को लाना चाहिए था । जगदीश गुलाटी ने जो किया उससे तो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में और लायनिज्म में अनुभव रखने वाले तथा काम करने वाले लोगों को पीछे धकेलने का ही काम किया है । इंटरनेशनल डायरेक्टर जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सँभाल चुके जगदीश गुलाटी के इस रवैये ने डिस्ट्रिक्ट में उनके समर्थकों व शुभचिंतकों तक को हैरान और परेशान किया है - और इसीलिए जगदीश गुलाटी डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोगों के निशाने पर हैं । 

Thursday, March 19, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में जौनपुर, सिंगरौली क्षेत्र और वाराणसी में हुईं मीटिंग्स से मिली प्रतिकूल खबरों ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार कुँवर बीएम सिंह के समर्थकों के बीच निराशा और चिंता पैदा की

इलाहाबाद । कुँवर बीएम सिंह की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से अभी हाल ही में जौनपुर और सिंगरौली क्षेत्र में जो मीटिंग्स हुईं उनमें उम्मीद से कम लोगों के जुटने से कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के समर्थकों को खासा तगड़ा झटका लगा है । उल्लेखनीय है कि सिंगरौली क्षेत्र कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के एक बड़े समर्थक वीरेंद्र गोयल का इलाका माना जाता है । इसके बावजूद, इस क्षेत्र में हुई मीटिंग के फीकी रहने से कुँवर बीएम सिंह के समर्थकों के बीच निराशा पैदा होना स्वाभाविक ही है । यह निराशा इसलिए और बढ़ी क्योंकि सिंगरौली की मीटिंग को आयोजित करने की जिम्मेदारी खुद वीरेंद्र गोयल ने उठाई हुई थी और इसके लिए उन्होंने निधि कुमार की भी मदद ली हुई थी । इन दोनों पूर्व गवर्नर्स की सक्रियता के बावजूद मीटिंग में न सिर्फ उपस्थिति कम रही, बल्कि मीटिंग में जो लोग उपस्थित थे भी वह भी प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार प्रभात चतुर्वेदी की तारीफ करते हुए सुने जा रहे थे । इलाहाबाद में कुँवर बीएम सिंह के समर्थकों को उक्त मीटिंग की जो रिपोर्ट्स मिली हैं, उनमें बताया गया है कि मीटिंग में मौजूद लोगों का आपसी बातचीत में आकलन था कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रभात चतुर्वेदी का पलड़ा भारी है । वीरेंद्र गोयल द्धारा आयोजित कुँवर बीएम सिंह की मीटिंग में आए लोग इस तरह की बातें करें, और प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार प्रभात चतुर्वेदी का गुणगान करें, तो कुँवर बीएम सिंह के समर्थकों के लिए मामला चिंता करने वाला तो बनता ही है ।
वीरेंद्र गोयल को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में यूँ तो एक कुशल रणनीतिकार के रूप में जाना/पहचाना जाता है; और उन्होंने कुछेक चुनावों में अपने उम्मीदवारों को चुनाव जितवाने में सफलता भी प्राप्त की है - लेकिन इस बार लगता है कि मामला उनके लिए भी उल्टा पड़ गया है । सिंगरौली क्षेत्र के लोग इस बात पर वीरेंद्र गोयल से खफा नजर दिख और सुने जा रहे हैं कि उन्हें कुँवर बीएम सिंह की बजाये अपने क्षेत्र के उम्मीदवार प्रभात चतुर्वेदी का समर्थन करना चाहिए था । वीरेंद्र गोयल का क्लब इस वर्ष जिस तरह से स्टेटस-को में गया, उससे भी लायनिज्म के प्रति वीरेंद्र गोयल के रवैये की पोल खुली, जिसके चलते लोगों से उनकी दूरी बनी । इसके बावजूद, कुँवर बीएम सिंह के समर्थकों को वीरेंद्र गोयल के 'करिश्मे' पर भरोसा था और वह विश्वास कर रहे थे कि लोगों के बीच वीरेंद्र गोयल की बदनामी भले ही हो, लेकिन फिर भी वह वोटों का जुगाड़ कर लेंगे । किंतु प्रभात चतुर्वेदी और उनके समर्थकों ने लोगों के बीच जो और जिस तरह की लामबंदी की है, उसके कारण वीरेंद्र गोयल द्धारा किए जा सकने वाले करिश्मे की संभावना भी धूमिल पड़ गई है । सिंगरौली क्षेत्र में कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के समर्थन में वीरेंद्र गोयल द्धारा की गई मीटिंग के प्रति क्षेत्र के लायन सदस्यों व पदाधिकारियों के उत्साह में जो कमी देखी गई, उसका यही नतीजा निकाला जा रहा है कि वीरेंद्र गोयल का अपने क्षेत्र में ही अब पहले जैसा प्रभाव नहीं रह गया है ।
इलाहाबाद में कुँवर बीएम सिंह के समर्थक जिस समय सिंगरौली क्षेत्र में हुई मीटिंग के निराशाजनक नतीजों के प्रति चिंता प्रकट कर रहे थे, लगभग उसी समय उन्हें वाराणसी में प्रभात चतुर्वेदी की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग के अप्रत्याशित तरीके से कामयाब होने की खबर मिली - जिसने उनकी चिंता को और बढ़ा दिया है । प्रभात चतुर्वेदी की उम्मीदवारी के समर्थन में वाराणसी में हुई मीटिंग में ऐसे लोगों को भी बढ़चढ़ कर सक्रियता दिखाते हुए और प्रभात चतुर्वेदी की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त करते हुए देखा/पहचाना गया, जिन्हें कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेता अपने साथ मानते/समझते हैं । इस परिदृश्य से कुँवर बीएम सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को खटका हुआ है कि वाराणसी में उनका समर्थन आधार कहीं घट तो नहीं रहा है, और उनके समर्थक कहीं प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार प्रभात चतुर्वेदी के समर्थन की तरफ तो नहीं बढ़ रहे हैं ।
जौनपुर, सिंगरौली क्षेत्र और वाराणसी में हुईं मीटिंग्स से कुँवर बीएम सिंह के समर्थकों को जिस तरह की प्रतिकूल खबरें मिली हैं, उनसे उनके बीच निराशा और चिंता पैदा हुई है तथा उन्होंने अपनी चुनावी रणनीति पर फिर से विचार करने की तथा अपनी रणनीति को व्यावहारिक रूप से क्रियान्वित करने की जरूरत को पहचाना और रेखांकित किया है । अपनी निराशा और अपनी चिंता से कुँवर बीएम सिंह के समर्थक कैसे उबरते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा ।

Wednesday, March 18, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में जेके गौड़ की तरह एक कठपुतली डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में 'दिखने' से बचने की कोशिश करने के बावजूद शरत जैन के लिए रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने से बचना संभव होगा क्या ?

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल ने जिस तरह शरत जैन के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में 'काम करना' शुरू कर दिया है, उसे 'देख' कर मुकेश अरनेजा को खासा तगड़ा झटका लगा है । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के इस पद पर दरअसल मुकेश अरनेजा ने भी अपनी गिद्ध दृष्टि लगाई हुई है । उन्हें अभी भी लगता है कि रमेश अग्रवाल चूँकि नए बने डिस्ट्रिक्ट के पहले डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर हैं ही, इसलिए दूसरे डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने का मौका वह उनके लिए छोड़ देंगे । रमेश अग्रवाल लेकिन छोड़ने में नहीं, बल्कि कब्जाने में यकीन रखते हैं । मजे की बात यह है कि शरत जैन इस बात से इंकार कर रहे हैं कि उन्होंने रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना दिया है । उनके इस इंकार पर दो तरह की प्रतिक्रियाएँ हैं : जिन लोगों को उनके इस इंकार पर विश्वास है, उनका कहना है कि रमेश अग्रवाल की जैसी फितरत है उसके चलते वह इस बात का इंतजार नहीं करेंगे कि शरत जैन उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनायें - वह खुद ही बन जायेंगे; क्योंकि वह जानते हैं कि जब वह खुद ही बन जायेंगे तब शरत जैन की इतनी हिम्मत नहीं होगी कि वह उन्हें मना कर सकें या हटा सकें । शरत जैन के इंकार पर जिन लोगों को विश्वास नहीं है, उनका मानना और कहना है कि शरत जैन होशियारी दिखा रहे हैं : दूसरों के सामने तो वह यह पोज़ करते हैं जैसे कि वह रमेश अग्रवाल को उनकी हरकतों के कारण पसंद नहीं करते हैं, लेकिन अंदरखाने वह रमेश अग्रवाल से मिले हुए हैं और पूरी तरह उन पर निर्भर हैं ।
शरत जैन के सामने दरअसल एक बड़ी चुनौती यह है कि डिस्ट्रिक्ट में लोगों के सामने उनको यह दिखाना और साबित करना है कि वह जेके गौड़ की तरह रमेश अग्रवाल के पिट्ठू बन कर नहीं रहेंगे । शरत जैन के बारे में दूसरे लोगों को भी लगता है कि शरत जैन चूँकि जेके गौड़ की तुलना में ज्यादा काबिलियत रखते हैं, इसलिए रमेश अग्रवाल उन्हें वैसे नाच नहीं नचवा सकेंगे जैसे उन्होंने जेके गौड़ को नचाया हुआ है । लेकिन स्थितियों को बुनियादी रूप से जानने/समझने वालों को लगता है कि जेके गौड़ और शरत जैन में कोई खास अंतर नहीं है । ऐसे लोगों का कहना है कि हो सकता है कि जेके गौड़ के मुकाबले शरत जैन ज्यादा पढ़े-लिखे हों, उनकी अंग्रेजी जेके गौड़ से अच्छी हो, उनका कॉन्फिडेंस लेबल जेके गौड़ से बेहतर हो - लेकिन रोटरी के व्यावहारिक कामकाजी मामले में शरत जैन भी जेके गौड़ की तरह निल बटा निल ही हैं । जेके गौड़ के पास अशोक अग्रवाल और पूनम बाला जैसे प्रतिबद्ध व आज्ञाकारी व कर्मठ किस्म के सहयोगी तो हैं, शरत जैन को तो ऐसे सहयोगी शायद ही मिल पाएँ । इसलिए उनके लिए रमेश अग्रवाल के सामने समर्पण करने के अलावा कोई चारा नहीं होगा । चारा भले ही न हो, लेकिन अपने आप को जेके गौड़ से बेहतर दिखाने की चुनौती तो उनके सामने है ही - इसके लिए शरत जैन ने फार्मूला यह निकाला है कि दूसरे लोगों, खासकर रमेश अग्रवाल की हरकतों की खिलाफत करने वाले लोगों के सामने तो वह रमेश अग्रवाल की बुराई करते रहते हैं और उनसे दूर रहने की बात करते हैं, लेकिन हैं उन्हीं के भरोसे !
इसीलिए लोगों को लगता है कि रमेश अग्रवाल ने शरत जैन के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में काम करने की जो तैयारी 'दिखाई' है, उसमें शरत जैन की सहमति है । शरत जैन की सहमति की इस बात ने ही मुकेश अरनेजा के तोते उड़ाए हुए हैं । यह बात यदि सच है तो मुकेश अरनेजा की डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने की इच्छा तो बेमौत ही मारी गई हो जायेगी । शरत जैन की समस्या यह भी है कि उन्हें एक काम करने वाला व्यक्ति चाहिए । रमेश अग्रवाल की हरकतें चाहें जैसी हों, लेकिन वह काम करने के तो धुनी हैं ही । मुकेश अरनेजा को काम करने की बजाये राजनीति करने में ज्यादा मजा आता है । इस मजे के चक्कर में ही वह अमित जैन द्धारा डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने के कुछ ही दिन बाद पद से हटा दिए गए थे । अमित जैन वाला किस्सा शरत जैन को याद होगा ही, और स्वाभाविक रूप से वह नहीं चाहेंगे कि वह पहले तो मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाएँ और फिर उनकी कारस्तानियों के कारण उन्हें हटाने के लिए मजबूर हों ।
बात सिर्फ शरत जैन के चाहने और/या न चाहने की भी नहीं है । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद हथियाना रमेश अग्रवाल की भी जरूरत है । जरूरत का एक कारण आशीष घोष की बराबरी करने का भी है । रमेश अग्रवाल के कुछेक नजदीकियों का ही कहना है कि आशीष घोष ने लगातार दो वर्ष डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होने का जो रिकॉर्ड बनाया है, रमेश अग्रवाल उसकी बराबरी तो कर ही लेना चाहते हैं । दरअसल रमेश अग्रवाल को सीओएल के चुनाव में आशीष घोष से पराजय का जो डंक मिला है, उसने घाव कुछ ज्यादा गहरा किया हुआ है । उस घाव पर मरहम लगाने के लिए रमेश अग्रवाल को, लगातार दो वर्ष डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होने के आशीष घोष के रिकॉर्ड की बराबरी करना जरूरी लग रहा है । आशीष घोष का रिकॉर्ड हालाँकि कुछ अलग है - उन्होंने एक डिस्ट्रिक्ट (3010) के अंतिम तथा एक दूसरे डिस्ट्रिक्ट (3011) के पहले डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होने का रिकॉर्ड बनाया है; रमेश अग्रवाल इस रिकॉर्ड की बराबरी तो नहीं कर सकेंगे; लेकिन लगातार दो बार डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनकर उनके घाव की हीलिंग में कुछ तो मदद मिलेगी ही । समझा जाता है कि रमेश अग्रवाल ने इसीलिए अपने आप को शरत जैन के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है ।
शरत जैन अभी तो इंकार कर रहे हैं कि उन्होंने अभी किसी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर नहीं बनाया है; लेकिन जल्दी ही उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के नाम की घोषणा तो करनी ही पड़ेगी । वह कई लोगों से यह कहते रहे हैं कि जेके गौड़ की तरह वह रमेश अग्रवाल के पिट्ठू बनकर नहीं रहेंगे । जाहिर है कि उनके सामने यह दिखाने/जताने की एक बड़ी चुनौती है कि वह जेके गौड़ की तरह एक कठपुतली गवर्नर बनकर नहीं रहेंगे । यह दिखाने/जताने की शुरुआत डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए शरत जैन द्धारा किए गए फैसले से ही होगी - इसीलिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए उनकी तरफ से औपचारिक घोषणा का सभी को इंतजार है । सभी को यह जानने/देखने की उत्सुकता है कि खुद को शरत जैन के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में प्रोजेक्ट करने वाले रमेश अग्रवाल का वास्तव में होता क्या है ?

Tuesday, March 17, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में एके सिंह के नेतृत्व वाले विचार मंच का समर्थन संदीप सहगल की उम्मीदवारी के पक्ष में, केएस लूथरा की खुन्नस और शिव कुमार गुप्ता की लापरवाही के कारण घोषित नहीं हो सका क्या ?

लखनऊ । एके सिंह के नेतृत्व वाले विचार मंच ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए किसी भी उम्मीदवार का समर्थन करने से इंकार करके संदीप सहगल और उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों को तगड़ा झटका दिया है । उल्लेखनीय है कि एके सिंह को संदीप सहगल की उम्मीदवारी के सबसे बड़े समर्थक शिव कुमार गुप्ता के नजदीक माना/पहचाना जाता है और डिस्ट्रिक्ट में हर किसी की जुबान पर चर्चा है कि शिव कुमार गुप्ता ने अगले लायन वर्ष के अपने गवर्नर-काल में एके सिंह को वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की जिम्मेदारी ली हुई है । इतनी नजदीकियत के बावजूद, शिव कुमार गुप्ता के लिए यह संभव नहीं हो सका है कि वह एके सिंह के नेतृत्व वाले विचार मंच का समर्थन संदीप सहगल के लिए घोषित करवा सकें । संदीप सहगल और उनके समर्थकों को यह जान कर तो और भी बुरा लगा है कि उक्त विचार मंच की मीटिंग में अशोक अग्रवाल जब पहुँचे थे, तब तक मीटिंग पूरी हो चुकी थी और लोग उठ खड़े हुए थे; किंतु अशोक अग्रवाल को पहुँचा देख कर मीटिंग को जारी रखने का फैसला किया गया । शिव कुमार गुप्ता के नजदीकी के नेतृत्व वाले संगठन की मीटिंग में अशोक अग्रवाल को मिली इस तवज्जो ने संदीप सहगल और उनके समर्थकों को निराश किया है ।
संदीप सहगल और उनके समर्थकों की इस निराशा को कम करने के लिए केएस लूथरा ने हालाँकि दावा किया है कि एके सिंह के नेतृत्व वाले विचार मंच के फैसला न करने से और उनके आयोजन में अशोक अग्रवाल को अतिरिक्त तवज्जो मिलने से कुछ नहीं होता है; क्योंकि उक्त विचार मंच से जुड़े दूसरे लोग संदीप सहगल की उम्मीदवारी के साथ ही हैं । केएस लूथरा ने कहा है कि विचार मंच के नेताओं ने फैसला इसलिए ही नहीं किया क्योंकि वह जानते थे कि उनका फैसला लोग मानेंगे ही नहीं; इसलिए फैसला न करने में ही भलाई है । केएस लूथरा की यह बातें परस्पर एक दूसरे का ही विरोध करती हैं । उनका यह कहना यदि सच है कि विचार मंच से जुड़े ज्यादातर लोग संदीप सहगल की उम्मीदवारी के पक्ष में हैं, तो फिर विचार मंच के नेताओं ने संदीप सहगल की उम्मीदवारी का समर्थन करने का फैसला किया क्यों नहीं ? वह यह फैसला करते तो लोग उनके फैसले को मानते क्यों नहीं ? इस तरह, केएस लूथरा के सफाई रूपी दावे ने संदीप सहगल और उनके समर्थकों की निराशा को कम करने की बजाये बढ़ा और दिया है ।
एके सिंह के नेतृत्व वाले विचार मंच से समर्थन की घोषणा न होने से संदीप सहगल और उनके समर्थक निराश भले ही हों, लेकिन इस स्थिति के लिए वह खुद भी जिम्मेदार हैं । दरअसल एके सिंह ने मीटिंग में ही बता दिया था कि चूँकि दोनों में से किसी भी उम्मीदवार ने उनसे समर्थन माँगा ही नहीं है, इसलिए उन्होंने किसी भी उम्मीदवार के समर्थन की घोषणा न करने का फैसला लिया है और सदस्यों को अपने अपने विवेक के अनुसार फैसला लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया है । एके सिंह की बात यदि सच है, तो क्या यह हैरानी की बात नहीं है कि संदीप सहगल ने अपनी उम्मीदवारी के लिए विचार मंच का समर्थन उनसे माँगा क्यों नहीं ? संदीप सहगल के नजदीकियों का कहना है कि वह शायद इस उम्मीद में होंगे कि शिव कुमार गुप्ता विचार मंच का समर्थन घोषित करवाने के लिए एके सिंह से बात कर लेंगे; अब शिव कुमार गुप्ता ने यदि एके सिंह से बात नहीं की तो इसमें संदीप सहगल की भला क्या गलती है ? संदीप सहगल की गलती भले ही न हो, लेकिन इन तरह की बातों से नुकसान तो संदीप सहगल का ही हुआ है न । लोगों को लगता है कि संदीप सहगल और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता जिस तरह विचार मंच को अहमियत देने से बचे, उसकी प्रतिक्रिया में ही विचार मंच के लोगों ने अशोक अग्रवाल को तवज्जो दी । 
इस सारी घपलेबाजी के पीछे केएस लूथरा और एके सिंह के बीच की खुन्नस को भी देखा/पहचाना और जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट में लोग इस बात को अभी भी भूले नहीं हैं कि पिछले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए एके सिंह को अपनी उम्मीदवारी से केएस लूथरा के रवैये के चलते ही पीछे हटना पड़ा था । केएस लूथरा यूँ तो एके सिंह को गुरनाम सिंह का 'आदमी' बताते रहे हैं, लेकिन पिछले लायन वर्ष में अपने नजदीकियों और समर्थकों को हैरान करते हुए एके सिंह की उम्मीदवारी से दूरी बनाते हुए वह खुद ही गुरनाम सिंह के पास/साथ जा पहुँचे थे । अगले लायन वर्ष के लिए भी एके सिंह की उम्मीदवारी को लेकर केएस लूथरा ने अभी तक भी कोई सकारात्मक संदेश नहीं दिया है । समझा जा रहा है कि इस वर्ष यदि संदीप सहगल की जीत होती है, तो इसे गुरनाम सिंह के खिलाफ अपनी जीत बताते हुए केएस लूथरा अगले लायन वर्ष में एके सिंह की बजाये किसी और को उम्मीदवार के रूप में लायेंगे । केएस लूथरा के इस रवैये के चलते ही शिव कुमार गुप्ता को कई बार स्पष्ट करना पड़ा है कि अगले लायन वर्ष में केएस लूथरा का सहयोग व समर्थन यदि नहीं भी मिलता है, तब भी वह एके सिंह की उम्मीदवारी का ही समर्थन करेंगे । अगले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी को किस किस का समर्थन मिलेगा या नहीं मिलेगा, यह तो बाद में पता चलेगा; किंतु इस झमेले की उठापटक के चलते अभी संदीप सहगल की उम्मीदवारी के अभियान में मुसीबतें जरूर पैदा हो रही हैं ।

Monday, March 16, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम ने अगले वर्ष के अपने गवर्नर-काल के पदों की ऊँची कीमत तय करके अपने लिए मुसीबतों को आमंत्रित किया है क्या ?

गाजियाबाद । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम को अगले लायन वर्ष के अपने गवर्नर-काल के पदों को 'बेचने' के लिए अब खुद ही मैदान में उतरना पड़ा है । डिस्ट्रिक्ट के कई लोगों ने इन पँक्तियों के लेखक को बताया है कि सुनील निगम ने उन्हें फोन करके पदों का ऑफर दिया और पद स्वीकार करने का अनुरोध किया । फोन पाने वाले लोगों को लगता है कि सुनील निगम को अपने गवर्नर काल की टीम के लिए पदाधिकारी नहीं मिल रहे हैं; और पूर्व गवर्नर्स भी उनकी मदद नहीं कर रहे हैं - इसलिए सुनील निगम को अब खुद ही मोर्चा सँभालना पड़ा है । सुनील निगम ने अपने गवर्नर-काल के लिए पदों के जो दाम तय किए हैं, उन्हें लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भारी आलोचना है । उल्लेखनीय है कि सुनील निगम ने रीजन चेयरमैन के लिए 41 हजार रुपये, जोन चेयरमैन के लिए 31 हजार रुपये तथा कमेटियों के चेयरमैंस से 15 हजार रुपये लेने तय किए हैं । लोगों के बीच इन कीमतों को बहुत ज्यादा माना गया है, और इसीलिए डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय दिखने वाले कई लोगों ने उनसे पद लेने से इंकार कर दिया है । पदों के लिए सिफारिश करने वाले पूर्व गवर्नर्स भी इस बार सिफारिशें करने से बचते दिख रहे हैं । ऐसे में, सुनील निगम को अपने गवर्नर-काल के पदों को बेचने के लिए खुद ही मैदान में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।
पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अरुण मित्तल को हालाँकि पदों की ऊँची कीमत बसूलने के मामले में सुनील निगम की मदद करते हुए सुना/देखा गया है । अरुण मित्तल ने पदों की इन ऊँची कीमतों को अपनी तरफ से जस्टिफाई करने की कोशिश तो खूब की है, लेकिन फिर भी पदों की यह ऊँची कीमतें लोगों को हजम नहीं हो पा रही हैं । लोगों को लगता है कि पदों को ऊँची कीमतों पर बेच कर सुनील निगल वास्तव में अपनी जेब भरने का जुगाड़ बना रहे हैं । दरअसल लोग चूँकि पहले धोखा खा चुके हैं - जब गवर्नर बड़ी बड़ी बातें करके मोटी रकम इकठ्ठा करने के अपने प्रयासों को पहले तो उचित ठहराते हैं, और फिर बाद में करते कुछ नहीं हैं । कोढ़ में खाज वाली बात यह है कि पैसों के मामले में सुनील निगम की साख और पहचान बहुत ही खराब है । इसलिए भी पदों के बदले में सुनील निगम द्धारा बसूली जाने वाली ऊँची कीमतें आरोपों के घेरे में हैं । सुनील निगम लेकिन कुछ खुशकिस्मत भी हैं क्योंकि इस मामले में उन्हें उन अरुण मित्तल का साथ और समर्थन मिला हुआ है, जिनकी लोगों के बीच अच्छी साख और पहचान है । अरुण मित्तल के संग/साथ के कारण लोग सुनील निगम की इस पैसा बटोरू योजना का खुल कर विरोध तो नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन वह उनकी इस योजना को हजम भी नहीं कर पा रहे हैं । यही कारण है कि पदों का ऑफर मिलने पर कई लोगों ने सुनील निगम को टका सा जबाव दे दिया है कि भई हम तो पदों पर खूब रह लिए, अब दूसरे लोगों को मौका दो ।
सुनील निगम के नजदीकियों का हालाँकि दावा है कि करीब साठ प्रतिशत पदों पर नियुक्तियाँ हो चुकी हैं और बाकी पद भी जल्दी ही भर लिए जायेंगे । सुना जा रहा है कि सुनील निगम ने इसके लिए तरीका यह निकाला कि जो लोग वर्षों से लायनिज्म में हैं लेकिन जिन्हें कभी पूछा नहीं गया, उन्हें पद ऑफर किया । ऐसे लोगों को पद ऑफर हुआ, तो वह तो फूल कर कुप्पा हो गए और उन्होंने सहर्ष ऑफर स्वीकार कर लिया । लायनिज्म में यूँ भी ऐसे लोगों की कमी तो है नहीं जो पैसे के बदले में पद लेने को तैयार बैठे रहते हैं । सुना गया है कि सुनील निगम ऐसे ही लोगों को टोपी पहना देने में कामयाब हुए हैं और इस तरह कई पद बेच चुके हैं । ऐसे लोगों के साथ एक फायदा यह भी है कि बाद में इन्हें जब कुछ होता हुआ नहीं दिखेगा तो यह ज्यादा हाय-हल्ला नहीं मचायेंगे । इस तरह से सुनील निगम ने कुछेक पद तो बेच लिए हैं, लेकिन अभी भी बहुत से पद बेचने का उन्हें जुगाड़ लगाना है । कोई मदद करता हुआ नहीं दिख रहा है, तो फिर उन्होंने खुद ही गुहार लगाना शुरू कर दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय दिखने वाले लोग जिस तरह से सुनील निगम के ऑफर को ठुकराते और या उससे बचते हुए नजर आ रहे हैं, उससे एक संकट की आहट यह सुनी जा रही है कि यही लोग सुनील निगम के गवर्नर-काल में बबाल काटेंगे । डिस्ट्रिक्ट में कई लोग ऐसे हैं जो करते धरते तो कुछ नहीं हैं लेकिन सक्रिय खूब रहते हैं और गवर्नर की ऐसीतैसी करने के मौके तलाश करते रहते हैं । गवर्नर को ऐसे लोगों को काबू में रखने की तरकीबें लगानी पड़ती हैं । इन तरकीबों में इनसे सहयोगराशि लिए बिना लिए इन्हें पद देना भी शामिल रहता है । सुनील निगम लेकिन जिस तरह पदों की ऐवज में पैसा जुटाने में लगे हैं, उससे ऐसा नहीं लग रहा है कि वह किसी को भी बिना पैसे लिए पद देंगे । ऐसे में कई लोग खाली रहेंगे । खाली दिमाग वैसे भी शैतान का घर कहा जाता है । खाली लोग यदि शैतानी करेंगे तो सुनील निगम के गवर्नर-काल की फजीहत ही होगी । पदों के लिए ऊँची कीमत तय करके सुनील निगम ने लगता है कि डिस्ट्रिक्ट के बबालियों को बबाल मचाने के लिए हथियार और मौका खुद ही दे दिया है ।

Sunday, March 15, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डॉक्टर सुब्रमणियन का रास्ता साफ करने के लिए सुरेश भसीन की उम्मीदवारी को वापस कराने वाले नेताओं के बदले बदले रवैये से खुद को ठगा महसूस कर रहे सुरेश भसीन को अपने समर्थकों व शुभचिंतकों की नाराजगी का भी सामना करना पड़ रहा है

नई दिल्ली । सुरेश भसीन की उम्मीदवारी को उन नेताओं के रवैये से तगड़ा झटका लगा है, जिनके भरोसे पर सुरेश भसीन ने मौजूदा रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को वापस ले लिए था और डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए रास्ता खुला छोड़ दिया था । उल्लेखनीय है कि सुरेश भसीन ने ऐसा डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थक नेताओं के इस आश्वासन पर किया था कि अगले रोटरी वर्ष में वह उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने में मदद करेंगे । सुरेश भसीन को यह आश्वासन देने वाले नेता लेकिन अब सरोज जोशी और या रवि दयाल और या विनय भाटिया की उम्मीदवारी की बातें करते सुने जा रहे हैं । सुरेश भसीन की उम्मीदवारी को लेकर तो वह कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रहे हैं । सुरेश भसीन के लिए इससे भी ज्यादा झटके की बात यह हुई है कि वही नेता अब इस बात से ही इंकार कर रहे हैं कि उन्होंने सुरेश भसीन को किसी भी तरह का कोई आश्वासन दिया था । नेताओं के इस रवैये से सुरेश भसीन के सामने अगले रोटरी वर्ष में प्रस्तुत की जाने वाली अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अभियान शुरू करना मुश्किल हो गया है ।
सुरेश भसीन को दोहरी समस्या का सामना करना पड़ रहा है - एक तरफ तो जिन नेताओं से उन्हें समर्थन मिलने की उम्मीद थी वह नेता उन्हें ठेंगा दिखाते हुए दिख रहे हैं; तो दूसरी तरफ उनके लिए लोगों को यह समझाना मुसीबत बना हुआ है कि उन्होंने इस बार अपनी उम्मीदवारी को वापस क्यों ले लिया ? सुरेश भसीन ने इस वर्ष जिस तरह अचानक से अपनी उम्मीदवारी को वापस ले लिया, उसके कारण उनके कई समर्थक उनसे नाराज हुए हैं और वह मानने/कहने लगे हैं कि सुरेश भसीन पर भरोसा करके तो वह अपने को ही मुसीबत में डालेंगे । कई लोगों ने उनसे भी कहा है कि हमने तो आपका समर्थन करने का फैसला लिया ही था और अपने इस फैसले से आपको अवगत भी करा दिया था, किंतु आपने हमें विश्वास में लिए बिना ही अपनी उम्मीदवारी को वापस ले लिया । ऐसे में अब कैसे विश्वास करें कि अगली बार आप ऐसा नहीं करेंगे ? इस शिकायत रूपी सवाल का जबाव देना सुरेश भसीन के लिए सचमुच मुश्किल बना हुआ है ।
सुरेश भसीन ने इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी को लेकर अच्छी तैयारी की थी और अपने लिए खासा समर्थन जुटा भी लिया था । उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार डॉक्टर सुब्रमणियन का हालाँकि अच्छा ऑरा (आभामंडल) था और ज्यादातर नेताओं का खुला समर्थन भी उनके साथ था, लेकिन फील्डवर्क के मामले में चूँकि उनकी कमजोरी दिख रही थी - इसलिए सुरेश भसीन को भी मुकाबले में देखा/पहचाना जा रहा था । डिस्ट्रिक्ट में हर कोई यूँ तो डॉक्टर सुब्रमणियन का पलड़ा ही भारी मान/समझ रहा था, लेकिन फिर भी डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थक नेता कोई खतरा नहीं मोल लेना चाहते थे । इस सबके चलते भी सुरेश भसीन को अच्छा-खासा समर्थन मिल गया था और लोग एक दिलचस्प मुकाबले का अनुमान लगा रहे थे । सुरेश भसीन ने लेकिन गुपचुप तरीके से अपनी उम्मीदवारी वापस लेकर उस अनुमान में पलीता लगा दिया । इससे उन लोगों को गहरा धक्का लगा, जो सुरेश भसीन के साथ जुड़ गए थे । वही लोग अब सुरेश भसीन के साथ दोबारा जुड़ने को तैयार होते हुए नहीं दिख रहे हैं और साफ साफ पूछ भी रहे हैं कि फिर से आप पर विश्वास क्यों करें ? इनमें से कुछेक का मानना और कहना है कि इस वर्ष जब चुनाव का परिदृश्य सुरेश भसीन के लिए खासा अनुकूल था तब वह चुनाव नहीं लड़ सके, तब फिर अगले रोटरी वर्ष में होने वाले चुनाव में वह कैसे टिके रह पायेंगे - क्योंकि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए होने वाले चुनाव के तो इस वर्ष के 'चुनाव' से ज्यादा ट्रिकी होने की संभावना बन रही है ।
अगले रोटरी वर्ष में होने वाले चुनाव को लेकर सबसे ज्यादा उत्साह में विनय भाटिया और उनके समर्थक हैं । इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर रवि चौधरी को जो जीत मिली है उससे वह बम बम हैं । रवि चौधरी की उम्मीदवारी के पीछे जो नेता लोग थे, विनय भाटिया को उन नेताओं के समर्थन का भरोसा है । विनय भाटिया के समर्थकों का मानना और कहना है कि  नेताओं ने जब रवि चौधरी को चुनाव जितवा दिया है, तो फिर विनय भाटिया को जितवाने में तो इन्हें कोई मुश्किल होगी ही नहीं । रवि चौधरी की जीत से विनय भाटिया के समर्थक व शुभचिंतक अभी से ही अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो गए हैं । डिस्ट्रिक्ट के दूसरे कई नेता रवि दयाल और सरोज जोशी की उम्मीदवारी में अपनी राजनीति के मौके देख रहे हैं । रवि दयाल की उम्मीदवारी को लेकर इन नेताओं में हालाँकि अभी भी बहुत आश्वस्ति का भाव नहीं है - रवि दयाल कभी तो अपनी उम्मीदवारी को लेकर सक्रिय होते से लगते/दिखते हैं, लेकिन कभी अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते हुए नजर आते हैं, इसलिए अभी तक भी वह अपने नजदीकी लोगों को भी अपनी उम्मीदवारी के प्रति आश्वस्त नहीं कर सके हैं । सरोज जोशी जरूर अपनी उम्मीदवारी को लेकर भरोसा बनाने का प्रयास करती हुई दिखी हैं, और उनके इन्हीं प्रयासों के भरोसे उनके समर्थकों को उम्मीद है कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट के नेताओं का समर्थन भी मिल जायेगा ।
डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के विनय भाटिया, रवि दयाल और सरोज जोशी के समर्थन में बँट जाने से सुरेश भसीन के लिए मामला जहाँ का तहाँ ही रह गया दिख रहा है । सुरेश भसीन के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि अभी भले ही सुरेश भसीन के साथ कोई न दिख रहा हो, लेकिन जल्दी ही जब बाकी तीनों उम्मीदवारों की कमजोरियाँ सामने आने लगेंगी, तब नेताओं के बीच भी एक अलग समीकरण बनेगा और तब सुरेश भसीन के लिए हालात उतने विरोधी नहीं रह जायेंगे, जितने अभी दिख रहे हैं । नेताओं के मामले में भले ही ऐसा हो जाये, लेकिन इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी को गुपचुप तरीके से वापस लेकर अपने जिन समर्थकों व शुभचिंतकों को सुरेश भसीन ने धक्का पहुँचाया है और नाराज किया है, उन्हें मनाना और अपने साथ लाना उनके लिए बड़ी चुनौती है ।

Friday, March 13, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के सेंट्रल रीजन में जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल ने अपने वोटों को सुरक्षित रखने तथा विनय मित्तल को सेंट्रल काउंसिल में घुसने से रोकने की व्यवस्था की है क्या ?

गाजियाबाद । जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी की घोषणा ने इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के सेंट्रल रीजन से सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे विनय मित्तल के लिए कड़ी चुनौती पैदा कर दी है । विनय मित्तल फिलहाल सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं, जहाँ उनका इस वर्ष पहला टर्म पूरा हो रहा है । अगले चुनाव में उनके सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनने की चर्चा तो लगातार थी, लेकिन पिछले दिनों इस चर्चा पर कुछ समय के लिए ब्रेक तब लगा जब सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के लिए लगातार तीन की बजाये चार टर्म तक सदस्य बने रहने का कानून बनने/बनाने की कोशिशों की बात पता चली । उक्त कोशिशें यदि सफल होतीं, तो अनुज गोयल एक बार फिर सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनते - और इसी आशंका में विनय मित्तल ने कहना/बताना शुरू कर दिया था कि तब वह सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं करेंगे । अभी हाल तक विनय मित्तल लोगों से यही कहते रहे थे कि यदि अनुज गोयल के लिए उम्मीदवार बनने की स्थितियाँ बनीं, तो फिर वह सेंट्रल काउंसिल की बजाये रीजनल काउंसिल के लिए ही उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । किंतु जैसे ही यह स्पष्ट हुआ कि लगातार तीन टर्म वाले कानून में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है, और वर्ष 2015 के चुनाव में अनुज गोयल सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार नहीं हो सकेंगे; वैसे ही विनय मित्तल ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात करना पुनः शुरू कर दिया ।
सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी के संदर्भ में विनय मित्तल की समझ यही रही कि उनके लिए कोई भी मौका अनुज गोयल की अनुपस्थिति में ही बन सकता है । अगले चुनाव में अनुज गोयल के उम्मीदवार न बन सकने की बात चूँकि पहले से ही लगभग स्पष्ट थी, इसलिए विनय मित्तल लगातार अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात चला रहे थे । इस बात में पिछले दिनों हालाँकि छोटा-सा ब्रेक आया, लेकिन फिर जल्दी ही सेंट्रल काउंसिल के लिए विनय मित्तल की उम्मीदवारी की बात दोबारा से पटरी पर आ गई । किंतु जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी की घोषणा ने विनय मित्तल के लिए समस्या खड़ी कर दी है । जितेंद्र गोयल, अनुज गोयल के भाई हैं और जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी को अनुज गोयल द्धारा अपनी सीट को बचाये/बनाये रखने की एक कसरत के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल दरअसल विनय मित्तल की जीत  की संभावना को रोकना चाहते हैं । अनुज गोयल को डर यह है कि उनकी खाली हुई सीट पर यदि विनय मित्तल काबिज हो गए तो फिर इंस्टीट्यूट की उनकी राजनीति तो पूरी तरह चौपट ही हो जाएगी । अनुज गोयल को विश्वास है कि जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये वह विनय मित्तल को सेंट्रल काउंसिल में घुसने से रोक लेंगे; और इस तरह से अगली से अगली बार - यानि वर्ष 2018 के लिए अपने लिए मौका बनाये रख सकेंगे ।
विनय मित्तल के शुभचिंतक तथा दूसरे लोग भी यह दावा तो कर रहे हैं कि जितेंद्र गोयल को चुनाव जितवाना अनुज गोयल के लिए संभव नहीं होगा; लेकिन वह अनुज गोयल के नजदीकियों की इस बात पर गौर नहीं कर रहे हैं कि जितेंद्र गोयल को चुनाव जितवाना अनुज गोयल का उद्देश्य है भी नहीं । चुनावी राजनीति के लिए जिस तरह के लटकों-झटकों की जरूरत होती है, उसमें जितेंद्र गोयल का हाथ खासा तंग रहता है और इसीलिए वह चुनावी राजनीति से हमेशा दूर ही रहे हैं । नजदीकियों के अनुसार, जितेंद्र गोयल भी जानते हैं और अनुज गोयल भी समझते हैं कि जितेंद्र गोयल के बस की चुनाव जीतना नहीं है; जितेंद्र गोयल जीतने के लिए उम्मीदवार बने भी नहीं है - वह तो बस अनुज गोयल के वोटों की चौकीदारी करने के लिए उम्मीदवार बने हैं । जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल ने अपने वोटों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था की है, ताकि विनय मित्तल उन्हें न ले लें । अनुज गोयल की अनुपस्थिति में ही विनय मित्तल ने अपनी उम्मीदवारी लाने के बारे में सोचा था, तो इसके पीछे भी यही कारण था कि खुद विनय मित्तल को भी लगता है कि वह अनुज गोयल के वोटों के सहारे ही सेंट्रल काउंसिल में पहुँच सकते हैं । जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल ने विनय मित्तल के इसी सहारे को छीनने का जुगाड़ बैठाया है ।
जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल ने मुकेश कुशवाह को भी लपेटे में लेने का दाँव चला है । उल्लेखनीय है कि मुकेश कुशवाह पिछली बार बहुत ही मामूली अंतर से जीते थे । मामूली अंतर से मिली जीत में भी गाजियाबाद तथा आसपास के क्षेत्रों में अनुज विरोधी वोटों का बड़ा सहयोग था । पिछली बार अनुज विरोधी वोट मुकेश कुशवाह को मिले थे; जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के चलते अबकी बार अनुज विरोधी वोट मुकेश कुशवाह और विनय मित्तल के बीच बंटेंगे तो नुकसान मुकेश कुशवाह को ही होगा । सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में मुकेश कुशवाह ने ऐसा कुछ किया भी नहीं है, जिससे उनके समर्थन-आधार को बढ़ा हुआ माना/देखा जाये । मुकेश कुशवाह को रवींद्र होलानी के रूप में देखा जा रहा है, जिनकी उम्मीदवारी सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता के बावजूद पिछली बार वीरगति को प्राप्त हुई थी । जितेंद्र गोयल की उम्मीदवारी के जरिये अनुज गोयल ने जो जाल बिछाया है, उसमें हो सकता है कि गाजियाबाद के तीनों ही उम्मीदवार ढेर हो जाएँ - जैसा कि पिछली बार कानपुर में हुआ था; तो यह स्थिति अनुज गोयल को सूट करती है । वर्ष 2018 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए अनुज गोयल ने 2015 के चुनाव की जो फील्डिंग सजाई है, उसने विनय मित्तल के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती खड़ी की है क्योंकि विनय मित्तल इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति को मुकेश कुशवाह के मुकाबले ज्यादा गंभीरता से लेते दिखे हैं और लंबी पारी खेलने की तैयारी किये बैठे हैं ।

Thursday, March 12, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी के नामांकन के मौके पर समर्थकों की बजाये 'विरोधियों' की ज्यादा उपस्थिति चुनाव में दोनों उम्मीदवारों के समर्थकों के पाला बदलने के किसी बड़े उलट-फेर का तो संकेत नहीं है

लखनऊ । संदीप सहगल की उम्मीदवारी का नामांकन यूँ तो खासे जोरशोर और कई एक बड़े नेताओं की उपस्थिति तथा विभिन्न क्लब्स से आये/जुटे लोगों की बड़ी भीड़ के साथ जमा किया गया, लेकिन उस बड़ी भीड़ में समर्थकों की बजाये 'विरोधियों' की मौजूदगी ने सभी का ध्यान खींचा और फिर यही बात लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ साथ सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी के नामांकन के समय भूपेश बंसल, केएस लूथरा, जीएन मेहरोत्रा, वीएस दीक्षित, एचएस सच्चर जैसे पूर्व गवर्नर्स मौजूद थे; तो लायंस क्लब लखनऊ, लखनऊ अभिलाषा, लखनऊ अंबर ब्ल्यू, लखनऊ आशीर्वाद, लखनऊ आस्था, लखनऊ आशीष, लखनऊ कैण्ट, लखनऊ ईस्ट गोमती, लखनऊ गोमती, लखनऊ ग्रेटर, लखनऊ इंदिरा, लखनऊ महानगर, लखनऊ इंटेलीजेंसिया, लखनऊ मैत्री, लखनऊ मेट्रोपोलिटन, लखनऊ अवध, लखनऊ अवध प्रेरणा, लखनऊ प्रतिष्ठा, लखनऊ राजधानी, लखनऊ राजधानी अनिंद, लखनऊ राजश्री, लखनऊ संस्कृति,लखनऊ सेवा, लखनऊ शान-ए-अवध डायमंड, लखनऊ शान-ए-अवध गोल्ड, लखनऊ शिवालिक, लखनऊ तहजीब, लखनऊ सुरभि, बाराबंकी, गोंडा, काशीपुर ग्रेटर, काशीपुर सेंट्रल, काशीपुर डायमंड, काशीपुर सिटी, जसपुर आदि क्लब्स के पदाधिकारी तथा अन्य लोग भी साथ में थे ।
उम्मीदवारी के नामांकन के समय बड़े नेताओं तथा विभिन्न क्लब्स के लोगों की मौजूदगी ने संदीप सहगल के समर्थकों को पहली नजर में तो खासा उत्साहित किया, लेकिन बाद में जैसे जैसे वहाँ मौजूद लोगों को 'पहचानना' शुरू किया गया - तो पहली नजर में पैदा हुआ और बना उत्साह हल्का पड़ता गया । नामांकन के समय मौजूद क्लब्स के लोगों को बाद में जब 'पहचानना' शुरू किया गया, तब यह 'जान' कर संदीप सहगल के समर्थकों को खासी हैरानी हुई कि लखनऊ के जिन क्लब्स व लोगों को संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थन में देखा/समझा जा रहा है, वह तो उक्त मौके पर नदारत थे; और जो वहाँ उपस्थित थे उनमें से कइयों को प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार अशोक अग्रवाल के समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । कुछेक क्लब्स और लोगों को तो अशोक अग्रवाल के ऐसे कट्टर समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जाता है जिनके बारे में संदीप सहगल के समर्थक नेताओं को पूरा पूरा विश्वास है कि वह संदीप सहगल की उम्मीदवारी के नामांकन के समय मौजूद भले ही थे, लेकिन उनका वोट पक्के तौर पर अशोक अग्रवाल के साथ ही है । इसी बिना पर संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक बड़े नेताओं ने इन पँक्तियों के लेखक से बात करते हुए स्वीकार किया कि जो लोग संदीप सहगल की उम्मीदवारी के नामांकन के मौके पर उपस्थित थे, उनमें से कई अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के नामांकन के समय भी उपस्थित हो सकते हैं ।
संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों को हालाँकि इस बात से ज्यादा हैरानी नहीं है कि अशोक अग्रवाल के समर्थक समझे जाने वाले क्लब्स व लोग संदीप सहगल की उम्मीदवारी के नामांकन के मौके पर उपस्थित हुए; उनको हैरानी और चिंता इस बात से हुई है कि लखनऊ में जिन लोगों को संदीप सहगल के साथ समझा जाता है, वह इस मौके पर गायब क्यों रहे ? तो क्या दोनों उम्मीदवारों के समर्थकों में कोई बड़ा उलट-फेर हो रहा है - और क्या इनके समर्थकों के उनके साथ और उनके समर्थकों के इनके साथ आने की संभावना बन रही है ? यह तो हालाँकि दूर की कौड़ी है, लेकिन संदीप सहगल के समर्थकों के बीच इस बात को लेकर चिंता तो प्रकट हुई ही है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थन में समझे जाने वाले लखनऊ के क्लब्स और लोग इस महत्वपूर्ण मौके से दूर दूर क्यों रहे ? इसी चिंता में संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने अब यह हिसाब-किताब लगाना शुरू किया है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक समझे जाने वाले जो लोग इस मौके पर उपस्थित नहीं हुए, वोटिंग के मौके पर वह कहीं धोखा तो नहीं देंगे ?

Wednesday, March 11, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता, प्रसून चौधरी, अशोक गर्ग, प्रवीन निगम की बातों व कोशिशों और सक्रियताओं ने अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति के परिदृश्य की झलक बनाना/दिखाना तो शुरू कर दिया है

नई दिल्ली । अशोक गर्ग की अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत की जाने वाली उम्मीदवारी दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की चर्चा और इस चर्चा में अरनेजा गिरोह की भूमिका के कारण हाँ / ना के पचड़े में फँसी हुई लग रही है । यूँ तो अशोक गर्ग किसी से भी मिलते हैं तो अपनी उम्मीदवारी की बात जरूर ही करते हैं, लेकिन इतने सब के बावजूद वह अपने नजदीकियों को भी अपनी उम्मीदवारी के प्रति आश्वस्त नहीं कर पा रहे हैं । उनके नजदीकियों और उनके क्लब के लोगों का ही मानना और कहना है कि अशोक गर्ग अपनी उम्मीदवारी के प्रति अभी तक बहुत जोश व दम नहीं दिखा पा रहे हैं । वह इसका कारण भी बताते हैं । उनका कहना है कि अशोक गर्ग को दरअसल अभी तक अपने नेताओं से पक्के तौर पर हरी झंडी नहीं मिली है । उल्लेखनीय है कि अशोक गर्ग को अरनेजा गिरोह के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । अरनेजा गिरोह के नेता लेकिन अभी यह भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि अशोक गर्ग एक उम्मीदवार की 'जिम्मेदारियों' को अफोर्ड कर भी पायेंगे या नहीं ? इसीलिए वह अभी अशोक गर्ग की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने से बच रहे हैं और उन्हें 'काम करने' की सलाह दे रहे हैं । उनके इस रवैये से अशोक गर्ग को आशंका हो रही है कि जिन नेताओं के भरोसे वह उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे हैं, वह नेता कहीं उन्हें धोखा तो नहीं देंगे ? इसी आशंका के चलते अशोक गर्ग अपनी उम्मीदवारी के प्रति बहुत जोश व दम नहीं दिखा पा रहे हैं ।
अशोक गर्ग उन सूचनाओं के चलते भी सशंकित हैं जिनमें बताया जा रहा है कि दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी भी अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए अरनेजा गिरोह के नेताओं का समर्थन जुटाने/पाने की जुगाड़ में हैं । उल्लेखनीय है कि इन दोनों की तरफ से भी अपनी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के दावे पेश किए गए हैं और इन्हें जहाँ जैसा मौका मिलता है वहाँ यह अपनी अपनी उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने के प्रति लोगों को विश्वास दिलाने के प्रयत्न करते देखे/सुने गए हैं । हालाँकि इनके कॉमन फ्रेंड्स इनमें से किसी एक के उम्मीदवार बनने की वकालत करते हुए भी सुने गए हैं और चूँकि दोनों ही इस वकालत के प्रति 'ओपन' होने की बात करते हैं - इसलिए दोनों की उम्मीदवारी के प्रति संशय भी बना हुआ है । इस संशय के बावजूद लोगों के बीच एक स्ट्रांग फीलिंग यह भी है कि अरनेजा गिरोह के नेता इन्हीं दोनों में से किसी एक का समर्थन कर सकते हैं । लोगों के बीच की यह स्ट्रांग फीलिंग ही अशोक गर्ग को उम्मीदवारी के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ने से रोक रही है । अरनेजा गिरोह के नेताओं का समर्थन अशोक गर्ग को यदि नहीं मिल सकेगा, तब फिर अशोक गर्ग के लिए उम्मीदवार हो सकना मुश्किल ही क्या, असंभव ही होगा । अरनेजा गिरोह के नेताओं के समर्थन के बिना उम्मीदवार हो सकने की बात कम-अस-कम अशोक गर्ग नहीं सोच सकेंगे ।
अरनेजा गिरोह के उम्मीदवार का मुकाबला किस से होगा, यह भी अभी साफ नहीं हो रहा है । चुनावी संदर्भ में अरनेजा गिरोह के लिए इस वर्ष का मुकाबला बराबरी का रहा । वह शरत जैन को तो कामयाबी दिलवा सका, लेकिन प्रसून चौधरी के मामले में उसे गच्चा खाना पड़ा । अरनेजा गिरोह के विरोध के बावजूद सतीश सिंघल जीतने में कामयाब हुए, उससे यह बात तो साफ हो गई कि अरनेजा गिरोह के विरोध के बावजूद चुनाव जीता जा सकता है । सतीश सिंघल डिस्ट्रिक्ट के दूसरे खेमे के नेता बनेंगे या नहीं, यह तो अभी नहीं पता; लेकिन इतना स्पष्ट है कि सतीश सिंघल अरनेजा गिरोह के नेताओं के पिटठू नहीं बनेंगे । यह स्पष्टता चाहे अनचाहे सतीश सिंघल के नेतृत्व में विरोधी खेमे के गठन की संभावनाओं का संकेत तो देती है - देखने की बात सिर्फ यह रह जाती है कि स्थितियाँ सतीश सिंघल को जो जिम्मेदारियाँ लेने की तरफ धकेल रही हैं, सतीश सिंघल उस जिम्मेदारी को उठा पाते हैं या नहीं ? दरअसल इसी कारण राजीव गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को लेकर चुप लगा गए लगते हैं । राजीव गुप्ता ने घोषणा की थी कि यदि सतीश सिंघल चुनाव जीते तो वह अगले रोटरी वर्ष में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । किंतु अब वह यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि सतीश सिंघल के भरोसे अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करना ठीक रहेगा क्या ?
सतीश सिंघल की जीत ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में जो मौका दिखाया है, उसका फायदा उठाने के लिए प्रवीन निगम की तरफ से सुगबुगाहट सुनी गई है । उनके नजदीकियों का कहना है कि अपनी उम्मीदवारी की शुरुआत के लिए वह किसी शुभ मुहुर्त का इंतजार कर रहे हैं । प्रवीन निगम के शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि दूसरे उम्मीदवार यदि अपने अपने गॉडफादर्स चुनने में ही व्यस्त रहेंगे और उनसे हरी झंडी मिले बिना अपनी अपनी सक्रियता से बचते रहेंगे, तो उससे पैदा हुई असमंजसता का फायदा उठाने का मौका उनके पास होगा । यह बात है तो ठीक, लेकिन इस फायदे को उठाने के लिए प्रवीन निगम को अपनी सक्रियता तो दिखानी पड़ेगी न - यह फायदा अपने आप तो नहीं मिलेगा न ।
इस तरह की बातों/चर्चाओं ने अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति के लिए माहौल बनाना तो शुरू कर दिया है । अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति का परिदृश्य अभी भले ही उलझा हुआ सा लग रहा हो, लेकिन इस तरह की बातों/चर्चाओं के चलते उसके जल्दी ही एक शक्ल ले लेने की संभावना भी बनती दिख रही है ।

Monday, March 9, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में लखनऊ में अशोक अग्रवाल से पिछड़ रहे संदीप सहगल के समर्थकों ने नीरज बोरा, भूपेश बंसल और शिव कुमार गुप्ता को जिम्मेदार ठहराना शुरू किया

लखनऊ । नीरज बोरा, भूपेश बंसल और शिव कुमार गुप्ता से अपेक्षित मदद न मिलने के कारण संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच निराशा पैदा हो रही है, और उनके बीच शिकायतें सुनी जा रही हैं कि इन लोगों को जितनी सक्रियता दिखानी चाहिए ये लोग उतनी सक्रियता दिखा नहीं रहे हैं । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि इन तीनों के ढीले-ढाले रवैये के कारण लखनऊ में संदीप सहगल की उम्मीदवारी के पक्ष में उतना समर्थन भी नहीं जुटाया जा पा रहा है, जितना कि आसानी से जुटाया जा सकता है ।
संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों को यह शिकायत इसलिए भी करनी पड़ रही है क्योंकि वह देख रहे हैं कि उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार अशोक अग्रवाल के समर्थन में गुरनाम सिंह के साथ-साथ संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल ने भी जी-तोड़ प्रयास जारी रखे हुए हैं, जिसके चलते लखनऊ में अशोक अग्रवाल का पलड़ा काफी भारी होता जा रहा है । उल्लेखनीय है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक बड़े नेता भी लगातार यह मानते और कहते रहे हैं कि लखनऊ में संदीप सहगल के मुकाबले अशोक अग्रवाल को बढ़त है । यह स्वीकार करने के साथ साथ वह हालाँकि यह दावा भी करते रहे हैं कि अशोक अग्रवाल की जो बढ़त है, उसे वह कम कर लेंगे । अशोक अग्रवाल की बढ़त को कम करने के लिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नीरज बोरा, भूपेश बंसल और शिव कुमार गुप्ता पर निर्भर थे । उन्हें भरोसा था कि इन लोगों की सक्रियता से वह लखनऊ में संदीप सहगल को अशोक अग्रवाल से ज्यादा पीछे नहीं रहने देंगे । किंतु चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आ रहा है वैसे वैसे संदीप सहगल के समर्थकों को यह देख कर निराशा हो रही है कि ये तीनों लोग अपेक्षित मदद नहीं कर रहे हैं ।
संदीप सहगल के समर्थकों को पिछले दिनों असल में उस समय बड़ा झटका लगा जब उन्हें पता चला कि लखनऊ के एक क्लब के कार्यक्रम का निमंत्रण प्राप्त करने की कोशिश करने के बाद भी संदीप सहगल को निमंत्रण नहीं मिला । इस जानकारी का लखनऊ से बाहर के, तराई क्षेत्र के लोगों के बीच नकारात्मक संदेश गया; और वहाँ लोगों को यह कहते हुए सुना गया कि संदीप सहगल के लखनऊ के समर्थक नेता यदि उन्हें किसी क्लब के कार्यक्रम का निमंत्रण भी नहीं दिलवा सकते हैं, तो फिर वोट कैसे दिलवायेंगे ? संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों ने हालाँकि यह तर्क देकर लोगों को कनविंस करने की कोशिश तो की कि केएस लूथरा के साथ अपने विरोध के चलते उक्त क्लब के पदाधिकारी संदीप सहगल को निमंत्रण देने के लिए तैयार नहीं हुए; लेकिन लोगों के बीच सवाल फिर भी बना रहा कि उक्त क्लब के पदाधिकारियों का विरोध यदि केएस लूथरा के साथ है भी तो नीरज बोरा, भूपेश बंसल और शिव कुमार गुप्ता तो निमंत्रण दिलाने के लिए प्रयास कर सकते थे ? इन्होंने प्रयास क्यों नहीं किया ? शिव कुमार गुप्ता तो फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, तीन-चार महीने बाद वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होंगे - वह यदि सचमुच चाहते और कोशिश करते तो संदीप सहगल को निमंत्रण तो मिल ही जाता और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच नकारात्मक संदेश नहीं जाता ।
संदीप सहगल की उम्मीदवारी के अभियान में दरअसल झंझट इस कारण भी बना दिख रहा है कि सारा बोझ एक अकेले केएस लूथरा के सिर आ पड़ा है, और दूसरे समर्थक नेताओं का उन्हें अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है । ले दे कर एक एचएस सच्चर और संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रिय हैं, लेकिन वह चुनावी राजनीति की वास्तविकताओं और जुगाड़ों की व्यवस्था से इस कदर अनजान हैं कि उनका काम भी केएस लूथरा को ही करना पड़ रहा है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए पहले यह व्यवस्था बनाई गई थी कि तराई क्षेत्र का काम एचएस सच्चर देखेंगे और लखनऊ का जिम्मा केएस लूथरा सँभालेंगे । लेकिन जब 'सचमुच का काम' करने का समय आया तो पता चला कि एचएस सच्चर को न तो ज्यादा कुछ पता है और न ही उनके लिए लोगों का साधना संभव होगा । तब केएस लूथरा को आगे आकर उनकी जिम्मेदारी सँभालनी पड़ी । तराई क्षेत्र के क्लब्स में केएस लूथरा का अच्छा परिचय और प्रभाव भी है; वहाँ वही स्थितियों को नियंत्रित भी कर सकते हैं । केएस लूथरा ने तराई क्षेत्र में जिम्मेदारी सँभाली तो लखनऊ का काम पिछड़ गया । कहने को तो लखनऊ में नीरज बोरा, भूपेश बंसल और शिव कुमार गुप्ता को संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थन में देखा/पहचाना जाता है । लेकिन नीरज बोरा और भूपेश बंसल चूँकि चुनावी राजनीति की जरूरत के हिसाब से सक्रिय होने का मिजाज नहीं रखते हैं, इसलिए उनके केएस लूथरा के पूरक बनने की किसी ने उम्मीद भी नहीं की; शिव कुमार गुप्ता फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते खुल कर ज्यादा कुछ करने से बचते हुए दिखे हैं ।
संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों की शिकायत यही है कि अशोक अग्रवाल को तो अपने समर्थक नेताओं - गुरनाम सिंह, अनुपम बंसल, संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा आदि का खुला और सक्रिय समर्थन मिल रहा है; जबकि संदीप सहगल एक अकेले केएस लूथरा के भरोसे छोड़ दिए गए हैं तथा उनके बाकी समर्थक नेता 'इस' कारण से या 'उस' कारण से या तो चुप बैठे हैं और या उतने सक्रिय नहीं हैं जितना सक्रिय उनको होना चाहिए । शिव कुमार गुप्ता को तो संदीप सहगल की उम्मीदवारी के बड़े घनघोर समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता है; इसलिए उनको भी ज्यादा सक्रिय न होता देख संदीप सहगल के समर्थकों के बीच असमंजस बना है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अशोक अग्रवाल और संदीप सहगल के बीच होने वाले चुनाव में लखनऊ का खास रोल है, जहाँ कि अशोक अग्रवाल का पलड़ा पहले से ही भारी देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसे में, संदीप सहगल को जिन लोगों से मदद की उम्मीद है उन लोगों से अपेक्षित मदद न मिलती देख कर संदीप सहगल के समर्थकों का निराश होना स्वाभाविक ही है । संदीप सहगल के कुछेक समर्थकों ने इसके लिए नीरज बोरा, भूपेश बंसल और शिव कुमार गुप्ता को जिस तरह से निशाने पर लेना शुरू कर दिया है, उससे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है ।

Wednesday, March 4, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए राजा साबू खेमे का समर्थन जुटाने के लिए डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक कपूर ने पहला कदम बढ़ा दिया है

नई दिल्ली । दीपक कपूर को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने के चक्कर में अब जब लोगों के बीच दिखने और सक्रिय होने की जरूरत महसूस हुई है तो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुधीर मंगला का दामन पकड़ कर पेट्स में अपने लिए एक बड़ी भूमिका का जुगाड़ कर लिया है । उल्लेखनीय है कि दीपक कपूर डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में कम ही नजर आते हैं । रोटरी में हालाँकि दीपक कपूर का बड़ा नाम है, किंतु उनका नाम रोटरी में धंधा जुटाने के संदर्भ में ज्यादा लिया/पहचाना जाता है । रोटरी के पब्लिकेशन के साथ जुड़ कर उन्होंने रोटरी के साथ सीधा सीधा धंधा तो किया ही है, पोलियो कार्यक्रम के मुखिया के तौर पर भी उन पर धंधा करने के ही आरोप रहे हैं । कुछ तो इन आरोपों के चलते हो सकने वाली फजीहत से बचने के लिए और कुछ अपने स्वभाव के चलते दीपक कपूर लोगों के बीच कभी-कभार ही प्रकट दिखे हैं । दीपक कपूर को रोटरी के नाम पर जो करना रहा, उसे करने के लिए लोगों के बीच सक्रिय होने/रहने की उन्हें कोई जरूरत भी नहीं थी - फलस्वरूप उन्होंने लोगों के साथ एक सुरक्षित किस्म की दूरी बनाये रखी । दीपक कपूर की रोटरी में करने/पाने की जिन ख्वाहिशों की चर्चा रही है, उनमें उनके इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की बात भी हालाँकि रही है - किंतु इस नाते भी उन्होंने कभी सक्रियता दिखाने की जरूरत नहीं समझी । लोगों का मानना/कहना रहा कि दीपक कपूर ने शायद माना/समझा हुआ था कि पोलियो को लेकर उनकी तथाकथित उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर ऐसे ही बना दिया जायेगा ।
दीपक कपूर को लेकिन अब समझ में आया कि लोगों के बीच सक्रिय हुए बिना वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की दौड़ में शामिल नहीं हो सकते हैं, लिहाजा उन्होंने अपनी सक्रियता बनाने/दिखाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं । और इस कोशिश के चलते चंडीगढ़ में आयोजित होने वाले अपने डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 के पेट्स कार्यक्रम में अपने लिए मुख्य भूमिका ले ली है । इस कार्यक्रम में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे । इसलिए दीपक कपूर के लिए यह कार्यक्रम एक अच्छा मौका है जिसमें अपनी सक्रियता दिखा कर वह राजा साबू का समर्थन जुटाने का भी जुगाड़ कर सकते हैं । राजा साबू खेमे के पास हालाँकि भरत पांड्या और सुरेंद्र सेठ के रूप में पहले से उम्मीदवार हैं, लेकिन उसे अभी यह तय करना है कि वह किस पर दाँव लगाये । पिछली बार मनोज देसाई के सामने भरत पांड्या की जो बुरी गत हुई थी, जिसके चलते भरत पांड्या ऑल्टरनेट उम्मीदवार का चुनाव भी नहीं जीत सके थे, उसके बाद अगली बार के लिए सुरेंद्र सेठ का नाम चला था । सुरेंद्र सेठ यूँ तो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और उनकी रोटरी के साथ साथ रोटरी के बाहर भी अच्छी पहचान व प्रतिष्ठा है, लेकिन रोटरी की चुनावी राजनीति के हथकंडों को सँभालने की प्रतिभा का सुबूत उन्हें अभी देना है । ऐसे में, दीपक कपूर को लगता है कि वह अपनी उम्मीदवारी के लिए राजा साबू का समर्थन जुटा लेंगे । राजा साबू का समर्थन जुटाने के लिए दीपक कपूर को सक्रिय होना जरूरी लगा है ।
अगले दो वर्ष में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के लिए जयपुर से अशोक गुप्ता भी कमर कस रहे हैं । उन्हें कल्याण बनर्जी खेमे और खासतौर से मनोज देसाई से मदद मिलने की उम्मीद है । अशोक गुप्ता अपनी यूनिवर्सिटी में रोटरी के बड़े नेताओं को बुला बुला कर तरह तरह से खुश करते रहे हैं और अपने इसी हथकंडे के भरोसे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की कुर्सी पर चढ़ जाने की उम्मीद लगाये हुए हैं । अशोक गुप्ता की ख्याति किसी भी तरह से लोगों को पटा कर अपना काम बना लेने का हुनर रखने वाले व्यक्ति की भी है; और उनके इसी हुनर के चलते कईयों को विश्वास है कि अगले इंटरनेशनल डायरेक्टर अशोक गुप्ता ही बनेंगे । हालाँकि अन्य कई लोगों को यह भी लगता है कि अशोक गुप्ता ने अपनी छोटी सोच से बनाये अपने रवैये से अपने विरोधी भी कम नहीं बनाये हैं और यह विरोधी ही उनकी राह में रोड़े डालेंगे ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति से परिचित कई लोगों का यह भी मानना और कहना है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में राजा साबू और कल्याण बनर्जी खेमे में अब पहले जैसी बहुत उठापटक वाली होड़ नहीं है; और इसीलिए मनोज देसाई की राह में राजा साबू खेमे की तरफ से रोड़ा डालने की कोई कोशिश नहीं हुई थी । मनोज देसाई पहले अशोक महाजन से हार गए थे और फिर दूसरी बार में जीत गए । इसी गणित से अगली बार भरत पांड्या का काम बन सकता है । भरत पांड्या को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनवाना अशोक महाजन की अपनी साख से जुड़ा मामला भी है । पिछली बार अशोक महाजन की खासी सक्रियता के बावजूद भरत पांड्या नहीं जीत सके थे, तो इससे उनकी कम अशोक महाजन की ज्यादा किरकिरी हुई थी । अशोक महाजन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की लाइन में हैं । इस नाते यह किरकिरी की बात है भी कि वह अपने आदमी को इंटरनेशनल डायरेक्टर नहीं बनवा सकते ? अगली बार चुनाव के संदर्भ में भी, अशोक महाजन का समर्थन भरत पांड्या के लिए यदि पूँजी है तो वह मुसीबत भी है । राजा साबू खेमे के ही कई एक नेता अशोक महाजन को 'नीचे खींचने' के उद्देश्य से भरत पांड्या का काम बिगाड़ सकते हैं । दीपक कपूर ऐसे नेताओं के भरोसे ही राजा साबू खेमे के उम्मीदवार होने की जुगाड़ में हैं । इस जुगाड़ को पूरा करने के लिए पहला कदम दीपक कपूर ने बढ़ा दिया है । उनका यह कदम इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए राजा साबू खेमे में राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर पायेगा, या नहीं - यह आने वाले समय में पता चलेगा ।