नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के
चेयरमैन पद की दौड़ में शामिल नेताओं के अपनी अपनी दौड़ को रोक देने के
आभासों से लग रहा है कि चार मार्च को चुनाव की औपचारिकता पर मोहर लगने की
कार्रवाई में राज चावला के नाम पर मोहर लग ही जायेगी । उल्लेखनीय है कि
रीजनल काउंसिल के कई लोगों ने अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित होकर चेयरमैन
पद की कुर्सी पर कब्जा करने की तैयारी की हुई थी, जिसे देखते हुए 27 फरवरी
की मीटिंग में समीकरणों में भारी उलटफेर होने की संभावना देखी जा रही थी ।
27 फरवरी की मीटिंग लेकिन जब सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के रवैये की भेंट चढ़
गई, तब भी लगा यह था कि चेयरमैन पद पर निगाह लगाये घोषित और अघोषित लोगों
को पाँच दिन का जो समय मिल गया है, उसमें वह अपने लिए नए समीकरण बैठा लेंगे
। 27 फरवरी की मीटिंग में और मीटिंग से पहले जो कुछ हुआ उसमें कुछेक बातें
ऐसी हुईं जिनसे आभास मिला कि जितना दिख रहा है, सिर्फ उतना ही नहीं हो रहा
है - छिपे तौर पर 'कुछ' और करने की भी तैयारी है । हालाँकि फिर जो
हालात बने, उसमें पर्दे के पीछे की सारी तैयारी धरी की धरी रह गई । लेकिन
षड्यंत्रों की जो आहट उस दिन मिली, उससे यह आशंका जरूर बनी कि चार मार्च तक
का जो समय मिल गया है उसमें चेयरमैन पद की दौड़ में शामिल नेता लोग अपने
अस्त्रों-शस्त्रों को नए सिरे से धार देंगे और चार मार्च को एक नया घमासान
देखने को मिलेगा ।
काउंसिल की चुनावी राजनीति में
सक्रिय नेताओं की बात मानें तो रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए जो लोग दौड़ में थे,
उन्होंने अपने अपने हथियार लेकिन अब रख दिए हैं । जो लोग चेयरमैन नहीं 'बन'
पाये और या राज चावला के चेयरमैन 'बनने' से परेशान हैं, उन्होंने भी
स्थिति को लगता है कि स्वीकार कर लिया है । चेयरमैन बनने के लिए दीपक
गर्ग सबसे ज्यादा उतावले थे । उन्होंने हर संभव तिकड़म करके देख लिया था ।
सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता का समर्थन तो उन्हें था ही, साथ ही
उन्होंने सत्ता खेमे और विरोधी खेमे में भी अपनी चेयरमैनी के लिए समर्थन
जुटा लेने का दावा किया था । किंतु 27 फरवरी को जब अपने समर्थकों को
उन्होंने परखा तो यह देख कर तो उनके तोते उड़ गए कि जिन समर्थकों के भरोसे
वह चेयरमैन पद पर दावा करने जा रहे हैं, वह तो दूसरे उम्मीेदवारों के साथ
भी तार जोड़े हुए हैं । दीपक गर्ग ने मौके की नजाकत को समझा और पलटी मारने
में देर नहीं लगाई और वह ग्रुप की एकता की बात करने लगे तथा पर्ची के जरिये
फैसला करने की व्यवस्था के लिए राजी हो गए । चेयरमैन के लिए 'फैसला' हो
जाने के बाद भी जब 27 फरवरी की मीटिंग में चेयरमैन का चुनाव नहीं हो पाया,
तब एकबार फिर दीपक गर्ग की तरफ लोगों का संदेह गया और आशंका हुई कि दीपक
गर्ग को पाँच दिन का जो समय मिल गया है, उसमें वह फिर अपने लिए कोई तिकड़म
लगायेंगे ।
दीपक गर्ग ने इन संदेहों व आशंकाओं को खत्म
करने के लिए अपनी तरफ से लेकिन यह साफ कर दिया है कि वह ग्रुप के साथ हैं
और ग्रुप के फैसलों का साथ देंगे । दीपक गर्ग ने इन पँक्तियों के लेखक से
बात करते हुए भी यह स्पष्ट किया कि ग्रुप के फैसलों के खिलाफ जाने की उनकी न
तो कोई सोच है और न ही कोई तैयारी है । इन पँक्तियों के लेखक से बात
करते हुए उन्होंने दावा किया कि चार मार्च को आप देखियेगा कि मैं ग्रुप के
फैसलों के साथ ही खड़ा दिखूँगा । दरअसल दीपक गर्ग ने समझ लिया है कि पीछे
उन्होंने जैसी जो हरकतें की हैं उससे उन्हें हासिल तो कुछ हुआ नहीं, उलटे
उनकी बदनामी खासी हुई है । अपनी बदनामी के दाग धोने के लिए दीपक गर्ग को अब
ग्रुप के साथ बने रहना ही जरूरी लग रहा है । दीपक गर्ग के सामने दो और
समस्याएँ पैदा हो गईं हैं - अपने गेमप्लान के फेल हो जाने के लिए दीपक
गर्ग ने विशाल गर्ग को जिम्मेदार ठहराना शुरू किया है । दीपक गर्ग का कहना
है कि विशाल गर्ग दिख तो उनके साथ रहे थे, लेकिन अंदर ही अंदर वह वास्तव
में उनकी जड़ें खोदने का काम कर रहे थे । दीपक गर्ग का आरोप है कि उनकी
तिकड़मों की जो बातें लोगों के बीच चर्चा में हैं वह सब विशाल गर्ग ने
बताई/फैलाई हैं और इस तरह से विशाल गर्ग ने उन्हें धोखा दिया है । इसलिए अब
वह विशाल गर्ग से निपटना चाहते हैं और इसलिए ग्रुप में रहना चाहते हैं । वह समझ रहे हैं कि ग्रुप में रह कर ही वह विशाल गर्ग से निपट सकते हैं । दीपक गर्ग के सामने दूसरी समस्या प्रमोद माहेश्वरी ने पैदा की हुई है । प्रमोद माहेश्वरी चेयरमैन पद के लिए अपनी खिचड़ी पकाते देखे/सुने गए हैं । 27 फरवरी की मीटिंग से पहले उन्हें कई एक लोगों से एक वोट की कमी को पूरा करने की गुहार लगाते देखा/सुना गया था । उनका कहना था कि उन्होंने छह वोट तो जुगाड़ लिए हैं, बस एक वोट की कमी बाकी है । किसी को हालाँकि प्रमोद माहेश्वरी की इस बात पर भरोसा नहीं था और लोगों का यही कहना था कि प्रमोद माहेश्वरी एक एक वोट माँगते हुए ही वोट इकठ्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं । लोगों के बीच प्रमोद माहेश्वरी द्धारा चार मार्च की मीटिंग में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की चर्चा तो जरूर है, लेकिन हर किसी का मानना और कहना यही है कि उनके पास कुछ है नहीं । दीपक गर्ग को डर लेकिन यह है कि प्रमोद माहेश्वरी का दावा यदि सच है तो उनके लिए तो यह बहुत ही बुरा होगा । दीपक गर्ग के लिए चुनौती की बात यह भी हो गई है कि वह कुछ भी करें और प्रमोद माहेश्वरी को चेयरमैन न बनने दें । इसी कारण से दीपक गर्ग इस बात को लेकर बहुत परेशान हैं कि ग्रुप में कौन कौन हैं जो प्रमोद माहेश्वरी को समर्थन देने का भरोसा दिए हुए हैं । यह जानने और उस कथित भरोसे को खत्म करने के लिए दीपक गर्ग को ग्रुप के साथ रहने व 'दिखने' में ही अपनी भलाई नजर आ रही है ।
चेयरमैन बनने की दौड़ में शामिल उम्मीदवारों को दरअसल सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों के तटस्थ हो जाने से भी झटका लगा है । 27 फरवरी की मीटिंग में सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने जो किया और उनके किए से रीजनल काउंसिल के नए पदाधिकारियों का चुनाव जिस तरह से स्थगित हुआ, उससे उनकी भारी फजीहत हुई है । लिहाजा अब वह किसी नए विवाद में नहीं पड़ना चाहते हैं । यह वर्ष चूँकि चुनाव वर्ष है, इसलिए चुनाव में उतरने के प्रति गंभीर कोई भी उम्मीदवार राज चावला की राह का रोड़ा बनने की कोशिश करके बदनामी मोल नहीं लेना चाहेगा । दरअसल इन्हीं बनी स्थितियों में दीपक गर्ग ने अपने लिए नई भूमिका तय की है, जिस भूमिका के तहत उनके लिए विशाल गर्ग से निपटना और प्रमोद माहेश्वरी को रोकना जरूरी हो गया है । बाकी तो चार मार्च को जो होगा, सो होगा ही ।