Friday, February 27, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राधेश्याम बंसल को निशाना बनाते हुए विजय गुप्ता और चरनजोत सिंह नंदा ने जो बखेड़ा खड़ा किया, उसके पीछे असल उद्देश्य कहीं चेयरमैन पद पर राज चावला की ताजपोशी को रोकने का तो नहीं है

नई दिल्ली । राधेश्याम बंसल ने सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को आईना दिखाया तो वह इस कदर भड़क गए कि उन्होंने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नए पदाधिकारियों के चुनाव की कार्रवाई को ही बाधित कर दिया । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नए पदाधिकारियों का जो चुनाव आज होना था, नॉर्दर्न रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के रवैये के चलते उसके लिए अब चार मार्च की तारीख तय की गई है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों द्धारा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में आज जो 'बहादुरी' दिखाई गई उसके बारे में जिसने भी जाना उसका यही कहना रहा कि काश, यह लोग सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग्स में भी ऐसी ही बहादुरी दिखा सकते होते - तो इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन की शक्ल कुछ अलग ही बनी होती । इस बात को खास तौर से रेखांकित किया गया कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग्स में ये लोग या तो उपस्थित होने के लिए समय ही नहीं निकाल पाते हैं और जो उपस्थित होते भी हैं, वह वहाँ होने वाली पक्षपातपूर्ण व भ्रष्ट कार्रवाइयों पर या तो चुप रहते हैं और या उनका समर्थन करते हैं । राधेश्याम बंसल ने उनकी इसी कमजोर नस को दबाया तो फिर वह ऐसे बिलबिला गए कि मीटिंग के एजेंडे को ही निशाना बना बैठे ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में शामिल हुए सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राधेश्याम बंसल को निशाने पर लेते हुए अवार्ड देने में हुए पक्षपात और एक बिल्डिंग को मनमाने तरीके से किराये पर लेने का मुद्दा उठाया । इन दोनों मुद्दों पर राधेश्याम बंसल अकेले घिरते हुए दिखे - रीजनल काउंसिल के सदस्यों में भी किसी ने उनके बचाव में आने की कोशिश नहीं की । ये मुद्धे उठाने वाले सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने इन दोनों मामलों में जाँच की जरूरत को रेखांकित किया और जाँच कमेटी बैठाने/बनाने की बात कही । किसी ने भी - यहाँ तक कि राधेश्याम बंसल ने भी इस बात का विरोध नहीं किया । सभी की सहमति बनी कि इन दोनों मामलों की जाँच के लिए जाँच कमेटियाँ बनेंगी । कायदे से यह बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए थी और मीटिंग को अगले एजेंडे की तरफ बढ़ना चाहिए था - लेकिन सेंट्रल काउंसिल के सदस्य; खासकर चरनजोत सिंह नंदा, संजीव चौधरी और विजय गुप्ता इसके बाद भी इन मामलों को लेकर कमेंटबाजी करते रहे तथा अपनी कमेंटबाजी के जरिये राधेश्याम बंसल को जलील करते रहे । यह नजारा देख कर राधेश्याम बंसल ने भी आक्रामक रुख अपना लिया और सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की तरफ सवाल उछाला कि सेंट्रल काउंसिल में अवार्ड देने में पक्षपात नहीं होता है क्या और वहाँ मनमाने तरीकों से जमीनों के सौदे नहीं होते हैं क्या - वहाँ आप लोग जाँच करवाने के माँग क्यों नहीं उठाते हो ?
राधेश्याम बंसल के इस बाउंसर ने सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को बुरी तरह तिलमिला दिया । यह ठीक है कि यदि सेंट्रल काउंसिल में अवार्ड देने में पक्षपात होते हैं और मनमाने तरीके से जमीनों के सौदे होते हैं, तो राधेश्याम बंसल को - या किसी भी रीजनल काउंसिल के चेयरमैन को - यह सब करने का अधिकार नहीं मिल जाता है । राधेश्याम बंसल ने यदि कोई 'बेईमानियाँ' की हैं तो उन्हें इस तर्क से स्वीकार या सही नहीं ठहराया जा सकता है कि इंस्टीट्यूट के दूसरे पदाधिकारी भी ऐसा करते हैं । लेकिन इसके साथ साथ, यह सवाल भी मौजूँ तो है ही कि जो लोग राधेश्याम बंसल द्धारा की गई 'बेईमानियों' को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं और उनकी जाँच करवाना चाहते हैं, वह अन्य दूसरे पदाधिकारियों की बेईमानियों के बारे में सवाल क्यों नहीं उठाते हैं और उन मामलों में जाँच करवाने की बात क्यों नहीं करते हैं ? राधेश्याम बंसल को कठघरे में खड़े करने की कोशिश करने वाले सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने जब देखा/पाया कि राधेश्याम बंसल उलटे उन्हें ही कठघरे में खड़े करने का प्रयास करने में जुट गए हैं, तो वह और ज्यादा भड़क गए । मीटिंग में उपस्थित कुछेक सदस्यों का कहना है कि राधेश्याम बंसल के सवाल पर चरनजोत सिंह नंदा, संजीव चौधरी और विजय गुप्ता तो ऐसे भड़के जैसे राधेश्याम बंसल ने मीटिंग में उनके कपड़े उतार लिए हों । इसके बाद मीटिंग में बस तू-तू मैं-मैं होने लगी । कुछेक लोगों ने कोशिश भी की कि पदाधिकारियों के चुनाव के मीटिंग के मुख्य एजेंडे पर काम शुरू हो - लेकिन उनकी कोशिश सफल नहीं हो सकी; और चरनजोत सिंह नंदा, संजीव चौधरी व विजय गुप्ता ने ऐसा माहौल बना दिया कि मीटिंग के लिए आए सदस्य तितर-बितर हो गए तथा मीटिंग हो सकने की संभावना ही खत्म हो गई ।
राधेश्याम बंसल द्धारा चेयरमैन के रूप में की गईं 'बेईमानियों' के प्रति सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने जो रवैया दिखाया, उसकी आमतौर पर प्रशंसा ही की गई है । लेकिन इस बात को वह जिस एक्स्ट्रीम तक ले गए और मीटिंग के मुख्य एजेंडे पर उन्होंने काम नहीं होने दिया उससे उनकी फजीहत भी हो रही है । कई लोगों को लग रहा है कि सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने मीटिंग में बखेड़ा खड़ा ही इसलिए किया जिससे कि रीजनल काउंसिल के नए पदाधिकारियों का चुनाव न हो सके । लोगों के बीच यह सवाल खासा चर्चा में है कि राधेश्याम बंसल की कार्यप्रणाली से सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को यदि वास्तव में इतनी ही नाराजगी थी तो इससे पहले उन्होंने कभी भी अपनी नाराजगी को जाहिर क्यों नहीं किया ? दरअसल इसी वजह से लोगों को लग रहा है कि राधेश्याम बंसल को लेकर बखेड़ा खड़ा करने के पीछे असली उद्देश्य चुनाव को टलवाना ही था ।
असल में, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नए पदाधिकारियों के चुनाव को लेकर मीटिंग जब शुरू हुई, उससे पहले 13 सदस्यों वाली रीजनल के 9 सदस्यों वाले सत्ता खेमे ने पर्चियाँ डाल कर 'पदाधिकारियों का चुनाव' कर लिया था । मीटिंग में उनके द्धारा चुने गए पदाधिकारियों पर औपचारिक मोहर लगने भर का काम होना था । 9 सदस्यों वाले सत्ता खेमे ने जो चुनाव कर लिया था, उसमें राज चावला को चेयरमैन के रूप में चुना गया था । राज चावला के चुनाव ने चरनजोत सिंह नंदा और विजय गुप्ता को तगड़ा झटका दिया । विजय गुप्ता पिछले कुछ दिनों से दीपक गर्ग को चेयरमैन बनवाने की तिकड़मों में लगे हुए थे और विजय गुप्ता की तिकड़मों के भरोसे दीपक गर्ग ग्रुप तोड़ने पर आमादा हो गए दिख रहे थे, लेकिन चुनाव की सुबह उन्होंने समझ लिया कि ग्रुप तोड़ने के बाद उनके हाथ-पल्ले कुछ नहीं लगना - इसलिए उन्होंने ग्रुप में ही बने रहने में अपनी भलाई देखी और समर्पण कर दिया । राज चावला पहले चेयरमैन पद के उम्मीदवार नहीं थे; उनकी उम्मीदवारी अचानक से आई । उनके चेयरमैन बनने से सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले लोगों ने कयास लगा लिया कि चेयरमैन बनने के बाद राज चावला सेंट्रल काउंसिल के लिए भी आयेंगे ।
राज चावला सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करते हैं तो सबसे ज्यादा चोट विजय गुप्ता और चरनजोत सिंह नंदा द्धारा लाये जाने वाले उम्मीदवार को ही पहुँचायेंगे । रीजनल काउंसिल के सदस्य के रूप में राज चावला अत्यंत सक्रिय रहे हैं, और दिल्ली ही नहीं बल्कि कई ब्रांचेज में सदस्यों के साथ उनके निरंतरता वाले संपर्क/संबंध रहे हैं । सेंट्रल काउंसिल के लिए राज चावला की संभावित उम्मीदवारी कई दूसरे उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ सकती है । अपना अपना खेल बचाने के लिए, राज चावला की सेंट्रल काउंसिल की संभावित उम्मीदवारी को रोकने के लिए उन्हें चेयरमैन बनने से रोकना जरूरी लगा । समझा जा रहा है कि इसके लिए ही सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने आज की मीटिंग में बखेड़ा खड़ा किया और चेयरमैन पद पर होने वाली राज चावला की ताजपोशी के कार्यक्रम को स्थगित करवा दिया । इससे चेयरमैन के चुनाव को प्रभावित कर सकने तथा चेयरमैन के पद पर राज चावला की जगह किसी और की ताजपोशी करवाने की तिकड़म के लिए उन्हें समय मिल सकेगा ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में आज जो बखेड़ा हुआ है, उसने इस वर्ष होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में नए समीकरणों के बनने की रूपरेखा तो तैयार कर ही दी है; अब यदि 'चुने' जाने के बाद भी राज चावला को चेयरमैन नहीं बनने दिया गया, तो नए समीकरण आज की मीटिंग के 'खलनायकों' के लिए तो बहुत ही चुनौतीपूर्ण होंगे ।

Wednesday, February 25, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद के लिए अपने राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता से 'कुछ भी कर गुजरने' का महामंत्र मिलने के बाद दोस्तों को छोड़ने, माफी माँग कर विरोधियों को गले लगाने, कमजोरों की कमजोरियों का फायदा उठाने जैसी तिकड़मों में जुट कर दीपक गर्ग ने चुनावी गहमागहमी को खासा भड़का दिया है

नई दिल्ली । विजय गुप्ता द्धारा दीपक गर्ग को चेयरमैन बनवाने का जिम्मा ले लेने के कारण नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद का चुनावी परिदृश्य खासा दिलचस्प हो गया है । दीपक गर्ग ने खुद ही लोगों को बताया है कि विजय गुप्ता उनके लिए रणनीति तो बना ही रहे हैं और किस वोटर को कैसे अपने साथ किया जा सकता है इसकी तरकीबें भी भिड़ा रहे हैं - साथ ही यह भी तय कर लिया है कि यदि जरूरत पड़ी तो वह उनके पक्ष में वोट भी डालेंगे । विजय गुप्ता की इस सक्रिय मदद के भरोसे ही दीपक गर्ग ने रीजनल काउंसिल में बने अपने सत्ताधारी ग्रुप के साथियों/सहयोगियों को छोड़ देने - यानि अपने ग्रुप को तोड़ देने का निश्चय कर और जता दिया है । उल्लेखनीय है कि सत्ताधारी ग्रुप में यह व्यवस्था तय की गई थी कि किसी पद के लिए ग्रुप में यदि एक से अधिक लोग दिलचस्पी लेंगे तो फिर उनके बीच पर्ची डाल कर फैसला होगा । दीपक गर्ग चेयरमैन बनने की जल्दी में लेकिन अब उक्त व्यवस्था का पालन करने के लिए तैयार नहीं हैं । उनका साफ कहना है कि ग्रुप यदि उन्हें चेयरमैन नहीं बनाता है, तो वह दूसरे लोगों के समर्थन से चेयरमैन बन जायेंगे ।
दीपक गर्ग को विशाल गर्ग और स्वदेश गुप्ता का तो पक्का समर्थन है; और उनका दावा है कि ग्रुप के बाहर के लोगों में उन्होंने गोपाल केडिया, मनोज बंसल व हरित अग्रवाल का समर्थन जुटा लिया है । दीपक गर्ग के इस दावे पर हालाँकि अन्य लोगों को विश्वास नहीं है । उनका तर्क है कि मनोज बंसल व हरित अग्रवाल पिछले वर्ष चेयरमैन पद की चुनावी तिकड़मों में दीपक गर्ग से धोखा खा चुके हैं, इसलिए इस वर्ष दोबारा से वह दीपक गर्ग के झाँसे में आयेंगे - इसकी उम्मीद नहीं है । दीपक गर्ग का कहना लेकिन यह है कि पिछले वर्ष जो हुआ था, उसके लिए उन्होंने इन दोनों से माफी माँग ली है और इन्होंने उन्हें माफ भी कर दिया है । दीपक गर्ग अपने सत्ता खेमे में के राजेश अग्रवाल और योगिता आनंद को कमजोर कड़ी के रूप में देख/पहचान रहे हैं और उम्मीद जता रहे हैं कि वह इन दोनों को अपने समर्थन के लिए राजी कर लेंगे । दीपक गर्ग इस तरह आठ वोटों का जुगाड़ कर लेने के प्रति आश्वस्त हैं, हालाँकि चेयरमैन बनने के लिए उन्हें कुल सात वोट ही चाहिए होंगे । इन आठ वोटों के अलावा, सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता के वोट को वह रिजर्व में रखे हुए हैं । उनका कहना है कि यदि जरूरत पड़ी तो विजय गुप्ता अपना वोट डालेंगे और उनके पक्ष में डालेंगे । दीपक गर्ग तो सेंट्रल काउंसिल के एक अन्य सदस्य अतुल गुप्ता के वोट के भी अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में पड़ने का दावा कर रहे हैं । दूसरे लोगों को हालाँकि इस पर विश्वास नहीं हो रहा है ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले कुछेक अन्य लोगों का मानना और कहना है कि दीपक गर्ग के यह दावे हवाई हैं और इस तरह के दावे वह भ्रम फैलाने तथा चेयरमैन पद के दूसरे उम्मीदवारों को हतोत्साहित करने के लिए कर रहे हैं । उनका कहना है कि यह विजय गुप्ता की शिक्षा-दीक्षा व रणनीतिक तरकीबों का असर है । लोगों को लगता है कि विजय गुप्ता और दीपक गर्ग की जोड़ी ने रणनीति यह बनाई है कि झूठ बोलो और इतना बोलो कि लोगों को उनका झूठ सच लगने लगें । दीपक गर्ग को अपने तथाकथित दावों से इतना फायदा तो लेकिन हुआ ही है कि चेयरमैन पद के दूसरे उम्मीदवार सीधे चुनाव से बचने लगे हैं और पर्ची डालने वाली व्यवस्था को ही अपनाने पर जोर दे रहे हैं । चेयरमैन पद के लिए हंसराज चुघ तथा राजिंदर नारंग भी मैदान में हैं - लेकिन यह ग्रुप की पर्ची वाली व्यवस्था से ही चुनाव चाहते हैं । काउंसिल के मौजूदा चेयरमैन राधेश्याम बंसल भी ऐसा ही चाहते हैं । दीपक गर्ग के लिए मुसीबत की बात यह है कि जिन राजेश अग्रवाल और योगिता आनंद को वह कमजोर कड़ी के रूप में देख रहे हैं, वह भी पर्ची वाली व्यवस्था का पक्ष लेते हुए ग्रुप की एकता को बनाये रखने की बात करते सुने जा रहे हैं । दीपक गर्ग को स्वदेश गुप्ता के रवैये से ज्यादा बड़ा झटका लगा है । स्वदेश गुप्ता ने कहा है कि यदि पर्ची वाली व्यवस्था से चेयरमैन पद का चुनाव हुआ तो फिर वह भी अपना नाम देंगे । इससे लोगों के बीच यह संदेश गया है कि स्वदेश गुप्ता सचमुच में दीपक गर्ग के साथ उतना नहीं हैं, जितना कि दीपक गर्ग दावा कर रहे हैं ।
दीपक गर्ग को विशाल गर्ग का जरूर ठोस समर्थन मिल रहा है । हालाँकि लोगों का कहना है कि विशाल गर्ग दरअसल दीपक गर्ग का इस्तेमाल करके राधेश्याम बंसल से बदला लेने की कोशिश कर रहे हैं । विशाल गर्ग लुधियाना ब्रांच को अवार्ड न मिलने से राधेश्याम बंसल से बुरी तरह खफा हैं । विशाल गर्ग ने लुधियाना में लोगों को ब्रांच को अवार्ड दिलाने का भरोसा दिलाया हुआ था, लेकिन लुधियाना ब्रांच को अवार्ड न मिलने से लुधियाना में उनकी भारी किरकिरी हुई है । इसके लिए विशाल गर्ग ने राधेश्याम बंसल को जिम्मेदार ठहराया है । उनका आरोप है कि राधेश्याम बंसल ने उन्हें लुधियाना में मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है । इसके चलते विशाल गर्ग को ग्रुप को एक बनाये रखने की बात बेमानी लगने लगी है और दीपक गर्ग के जरिये उन्होंने ग्रुप की एकता को सीधा निशाना बना लिया है । दीपक गर्ग को यह समझाने में वह सफल रहे हैं कि ग्रुप की एकता बनाये रखने में सहयोग करने के बावजूद वह यदि चेयरमैन नहीं बन पाये तो ग्रुप की एकता का वह क्या करेंगे और चेयरमैन बनने के लिए उन्हें यदि ग्रुप से अलग भी होना पड़े तो उन्हें हिचकना नहीं चाहिए ।
दीपक गर्ग के राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता ने भी जब उन्हें चेयरमैन बनने के लिए 'कुछ भी कर गुजरने' का महामंत्र दिया तो फिर दीपक गर्ग दोस्तों को छोड़ने, माफी माँग कर विरोधियों को गले लगाने, कमजोरों की कमजोरियों का फायदा उठाने जैसी तिकड़मों से चेयरमैन बनने की होड़ में जुट गए हैं । दीपक गर्ग को इस जुटने का फायदा मिलता है या नहीं - यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन उनके इस तरह से जुटने ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद की चुनावी गहमागहमी को भड़का जरूर दिया है ।

Sunday, February 22, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में लायनिज्म को बदनाम व खत्म करवाने में लगे लोगों के साथ नरेश अग्रवाल की निकटता को देख/जान कर सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए नरेश अग्रवाल का समर्थन करने वाले लायंस इंटरनेशनल बिरादरी के बड़े नेताओं को डर हुआ है कि नरेश अग्रवाल को सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट चुनवा कर वह कहीं लायनिज्म को नुकसान पहुँचाने का काम तो नहीं कर रहे हैं

नई दिल्ली । नरेश अग्रवाल के मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट से लायंस इंटरनेशनल को जिस तरह से कोर्ट-कचहरी में घसीटा जाने लगा है, उसके कारण लायंस इंटरनेशनल के कई पदाधिकारी नरेश अग्रवाल की लीडरशिप क्षमता को लेकर संदेह करने लगे हैं और सवाल उठाने लगे हैं कि नरेश अग्रवाल यदि सचमुच इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बन गए तो लायंस इंटरनेशनल का क्या होगा ? उल्लेखनीय है कि नरेश अग्रवाल सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में उम्मीदवार हैं और लायंस इंटरनेशल के कई-एक नेताओं के भरोसे इस चुनाव को जीत लेने की कोशिशों में हैं । उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले नेताओं को लेकिन अब यह सवाल परेशान कर रहा है कि लायंस इंटरनेशनल को अदालती कार्रवाइयों में फँसाने वालों, तरह तरह से लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को परेशान करने वालों, तथा लायनिज्म को बदनाम करने वालों पर नरेश अग्रवाल यदि लगाम नहीं लगा सकते हैं तब फिर वह इंटरनेशनल कार्यालय की जिम्मेदारियों को कैसे सँभाल सकेंगे ? सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले लायंस इंटरनेशनल के नेताओं को इसीलिए लगने लगा है कि नरेश अग्रवाल का समर्थन करके कहीं वह कोई गलती तो नहीं कर रहे हैं ?
नरेश अग्रवाल के लिए यह सारा फजीता खड़ा हुआ है उनके अपने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हर्ष बंसल की हरकतों के कारण । मजे की बात यह है कि हर्ष बंसल लायन राजनीति में नरेश अग्रवाल के बड़े समर्थकों के समूह के सदस्य हैं, और नरेश अग्रवाल ने कई मौकों पर उनकी बड़ी खुल कर मदद की है । लेकिन वही हर्ष बंसल अब नरेश अग्रवाल के लिए भस्मासुर साबित हो रहे हैं । नरेश अग्रवाल की बदकिस्मती यह है कि हर्ष बंसल की कारस्तानियों को डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर नरेश गुप्ता का पूरा पूरा समर्थन मिल रहा है - उन नरेश गुप्ता का जो नरेश अग्रवाल की मदद से मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की तैयारी कर रहे हैं । नरेश गुप्ता ने सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के अभियान के लिए नरेश अग्रवाल को मोटी रकम दी है और लोगों को उन्होंने खुद ही बताया है कि उक्त मोटी रकम स्वीकार करते हुए नरेश अग्रवाल ने उन्हें भरोसा दिया है कि उनका यह रकम देना बेकार नहीं जायेगा और इस रकम के बदले में वह उन्हें मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवाने में हर संभव मदद करेंगे । नरेश अग्रवाल के यह दोनों खास लोग लेकिन लायंस इंटरनेशनल बिरादरी में नरेश अग्रवाल की किरकिरी करा रहे हैं ।
हर्ष बंसल ने अपनी टुच्ची और ओछी राजनीति को सफल बनाने के लिए लायंस इंटरनेशनल को - और उसके जरिये लायनिज्म को ही निशाना बना लिया है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में बार-बार लगातार 'पिटते' रहने के बाद हर्ष बंसल ने अब अदालती कार्रवाई पर दाँव लगाया है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी प्रक्रिया को रोकने के लिए हर्ष बंसल अपने एक फर्जी/जेबी क्लब के लोगों के जरिये अदालत की चौखट पर जा पहुँचे हैं । वह खुद ही लोगों को बता रहे हैं कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और लायंस इंटरनेशनल के खिलाफ केस करवाया है; उन्हें पता है कि लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से मामले में पैरवी करने को कहेगा और इसीलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता से उन्होंने पहले ही सौदा कर लिया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह आरोपों को स्वीकार कर लेंगे और इस तरह से अदालत में उनके पक्ष की जीत हो जायेगी । उनके पक्ष की जीत हो जायेगी - यानि डिस्ट्रिक्ट में चुनाव नहीं होगा और जब चुनाव नहीं होगा तो डिस्ट्रिक्ट को अगले पदाधिकारी नहीं मिलेंगे और तब डिस्ट्रिक्ट बंद ही हो जायेगा । हर्ष बंसल का दावा है कि उनकी इस चाल में उन्हें जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता का समर्थन प्राप्त है तो उनकी यह चाल कामयाब होगी ही होगी ।
लायंस इंटरनेशनल के कर्ता-धर्ताओं की चिंता यह नहीं है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री का क्या होता है ? उनकी चिंता दरअसल यह है कि डिस्ट्रिक्ट्स की चुनावी राजनीति में पिटने वाले लोगों ने यदि इसी चालबाजी को अपना तरीका बना लिया और इसी तरह यदि अदालती कार्रवाईयों के जरिये डिस्ट्रिक्ट्स को बंद करवाने की हरकतें होने लगीं - तो फिर लायनिज्म का क्या होगा ? उनके लिए चिंता की बात यह भी है कि ऐसी नकारात्मक सोच के लोगों को नरेश अग्रवाल का सहयोग व समर्थन रहता है तो फिर नरेश अग्रवाल के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने पर लायनिज्म का क्या होगा ? लायंस इंटरनेशनल के कर्ता-धर्ताओं के लिए हैरानी की बात यह है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की इच्छा रखने वाले नरेश अग्रवाल की क्या ऐसी भी राजनीतिक हैसियत नहीं है कि वह लायनिज्म को बदनाम और खत्म करवाने में लगे लोगों पर लगाम लगा/लगवा सकें ? दरअसल इसीलिए सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले लायंस इंटरनेशनल बिरादरी के बड़े नेता नरेश अग्रवाल की क्षमताओं पर संदेह करने लगे हैं और वह यह विचार करने को प्रेरित हुए हैं कि नरेश अग्रवाल को सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट चुनवाना कहीं लायनिज्म को नुकसान तो नहीं पहुँचायेगा ?

Saturday, February 21, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल में अपनी सक्रियता से लायन मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बना कर लायन राजनीति के धुरंधर खिलाड़ियों को अपने समर्थन में ले आने की सलीम मौस्सान की कोशिशों ने सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव को दिलचस्प तो बना ही दिया है, और साथ ही नरेश अग्रवाल के लिए चुनौती भी खड़ी कर दी है

नई दिल्ली । सलीम मौस्सान को अभी हाल ही में कैलिफोर्निया लायंस कन्वेंशन में तथा उससे पहले बैंकॉक में आयोजित हुई ओसीएल फोरम की मीटिंग में तथा उससे भी पहले तुर्की के इस्तांबुल में आयोजित ग्रेट लायंस मीटिंग में जो तवज्जो मिली है, उसने सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में उनकी स्थिति को अच्छी बढ़त दी है तथा उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार नरेश अग्रवाल के लिए खतरे की घंटी खासे जोर से बजा दी है । नरेश अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि इन जगहों पर उन्हें एकतरफा समर्थन मिलने की उम्मीद थी । यहाँ के कुछेक लायन नेताओं ने नरेश अग्रवाल को समर्थन के प्रति आश्वस्त किया हुआ था, किंतु जब समर्थन 'दिखाने' का समय आया तो मंच पर सलीम मौस्सान छाए हुए थे । नरेश अग्रवाल को जिन लोगों ने समर्थन के लिए आश्वस्त किया हुआ था, उन लोगों ने नरेश अग्रवाल को टका-सा जबाव दे दिया है कि सक्रियता के मामले में उनकी तुलना में चूँकि सलीम मोस्सान का पलड़ा लोगों को भारी दिखा है, इसलिए उनके आयोजनों में सलीम मौस्सान को अहमियत मिली है ।
रिपब्लिक ऑफ काँगो में आयोजित हुई ऑल अफ्रीका लायंस कॉन्फ्रेंस में सलीम मौस्सान की जैसी आवभगत हुई, उससे भी उनकी उम्मीदवारी को दम मिलता हुआ नजर आया है । यहाँ हुई उनकी जोरदार आवभगत का एक कारण यह भी रहा कि सलीम मौस्सान ने रिपब्लिक ऑफ काँगो के प्रशासनिक हलकों में अपने संपर्कों की झलक लायंस नेताओं को पहले ही दे दी थी । रिपब्लिक ऑफ काँगो के राष्ट्रपति से हुई उनकी मुलाकात की जानकारी ने लायन नेताओं को उनके साथ नजदीकी बनाने और दिखाने के लिए खासतौर से प्रोत्साहित किया ।
सलीम मौस्सान ने लेकिन सबसे बड़ा दाँव चला भारतीय लायन सदस्यों के बीच अपनी पहचान और उपस्थिति दर्ज कराने का । 66वें इंडियन रिपब्लिक डे के मौके पर बधाई संदेश भेजते हुए सलीम मौस्सान ने होशियारी यह दिखाई कि अपने बधाई संदेश के साथ उन्होंने अपनी जो तस्वीर लगाई उसमें वह भारतीय परंपरा के अनुरूप पगड़ी बाँधे हुए दिख रहे हैं । अपनी इस पोश्चरिंग से उन्होंने भारतीय लायन सदस्यों के बीच भावनात्मक अपील बनाने की जो कोशिश की है, उसे उनके एक बड़े मूव के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार के रूप में सलीम मौस्सान ने भारतीय लायन मतदाताओं के बीच अपने लिए समर्थन जुटाने की यूँ तो कोई बड़ी एक्सरसाइज अभी तक नहीं की है, हालाँकि यहाँ जो लोग नरेश अग्रवाल से खुश नहीं हैं उनके साथ सलीम मौस्सान का संपर्क बना हुआ है । समझा जा रहा है कि सलीम मौस्सान एक तरफ तो उचित मौका देख रहे हैं, और दूसरी तरफ तरीका समझने की कोशिश कर रहे हैं कि वह कब और कैसे भारतीय लायन सदस्यों के बीच अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करें ।
सलीम मौस्सान ने दरअसल अभी उन देशों में अपने संपर्क अभियान को संगठित किया हुआ है, जहाँ से मतदाताओं को इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में ले जा पाना आसान होगा । इस संदर्भ में नरेश अग्रवाल की तुलना में उनकी तैयारी ज्यादा व्यावहारिक है । नरेश अग्रवाल सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बड़े नेताओं के समर्थन के भरोसे ज्यादा तैयारी करने के मूड में नहीं दिख रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि चुनावी राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी जब उनके समर्थन में हैं, तो उन्हें ज्यादा कुछ करने की जरूरत ही नहीं है । सलीम मौस्सान को लगता है कि अपनी सक्रियता से वह यदि लायन मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बना लेते हैं, तो लायन राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी उनके समर्थन में भी आ जायेंगे । इसी नाते से, सलीम मौस्सान की सक्रियता ने सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है ।

Friday, February 20, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री को बर्बाद और खत्म करवा देने की हर्ष बंसल की तमाम कारस्तानियों के प्रति डीके अग्रवाल को चुप देख कर डिस्ट्रिक्ट के लोग कहने लगे हैं कि डिस्ट्रिक्ट के संस्थापक रहे डीके अग्रवाल ने लगता है कि अब इसका क्रियाकर्म करवा देने की तैयारी कर ली है

नई दिल्ली । हर्ष बंसल की कारस्तानियों के चलते डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने अब डीके अग्रवाल को निशाना बनाना शुरू कर दिया है । लोगों को लग रहा है, और अब तो वह खुल कर कहने भी लगे हैं कि डिस्ट्रिक्ट में जो कीचड़ फैला हुआ है वह ऊपर ऊपर से देखने में भले ही हर्ष बंसल द्धारा फैलाया हुआ लग रहा हो, लेकिन हर्ष बंसल को कीचड़ फैलाने का प्रोत्साहन डीके अग्रवाल से मिल रहा है । डीके अग्रवाल के नजदीकी होने का दावा करने वाले लोगों का कहना हालाँकि यह है कि डीके अग्रवाल तो हर्ष बंसल का साथ छोड़ना चाहते हैं, लेकिन अजय बुद्धराज उन्हें ऐसा नहीं करने दे रहे हैं । नजदीकियों के लिए भी यह समझना मुश्किल बना हुआ है कि डीके अग्रवाल आखिर अजय बुद्धराज के सामने इतने असहाय क्यों बने हुए हैं कि चाहते हुए भी वह हर्ष बंसल का साथ नहीं छोड़ पा रहे हैं; और यह भी कि हर्ष बंसल के साथ रह कर अजय बुद्धराज आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं ? मजे की बात यह है कि डीके अग्रवाल भी और अजय बुद्धराज भी किसी से बात करते हुए हर्ष बंसल का पक्ष बिलकुल नहीं लेते; बल्कि हर्ष बंसल की खूब बुराई ही करते हैं - और हर तरह से यह दिखाने/जताने का ही प्रयास करते हैं जैसे कि हर्ष बंसल की हरकतों से वह भी बहुत दुखी हैं; लेकिन जब भी कोई उनसे हर्ष बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने की बात करता है तो यह बगलें झाँकने लगते हैं । हर्ष बंसल द्धारा सार्वजनिक रूप से लगातार की जाने वाली बदतमीजियों पर डीके अग्रवाल और या अजय बुद्धराज ने सार्वजनिक रूप से कभी भी कोई ऐतराज प्रकट नहीं किया है ।
डीके अग्रवाल के इस रवैये पर डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोग कहने भी लगे हैं कि डीके अग्रवाल ही डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के जन्मदाता हैं, और लगता है कि उन्होंने इसका दाह संस्कार करवाने की तैयारी भी कर ली है ।
उल्लेखनीय है कि डीके अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट के चार्टर गवर्नर हैं । वह काफी सक्रिय भी रहते हैं तथा डिस्ट्रिक्ट व लायनिज्म के भले के लिए हर तरह से मदद करने को तैयार भी रहते हैं । डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में हालाँकि वह एक खेमे का नेतृत्व करते रहे हैं, किंतु कभी भी उन्हें नकारात्मक सोच व गतिविधियों में दिलचस्पी लेते हुए नहीं देखा गया है; और इसी कारण से वह प्रतिद्धंद्धी खेमे के गवर्नर की भी मदद करते हुए देखे गए हैं । इन बहुआयामी खूबियों के कारण डीके अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट में अपनी खास पहचान और धाक है । उनकी इस पहचान और धाक का ही कमाल है कि घटिया सोच व टुच्ची हरकतों के लिए बदनाम जो हर्ष बंसल वर्षों उन्हें गालियाँ देते रहे, वह हर्ष बंसल भी अंततः उनके सामने समर्पण करने को मजबूर हुए । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के लिए हैरानी की बात लेकिन यह है कि डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म के भले के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले और इस वजह से वर्षों तक हर्ष बंसल के निशाने पर रहने वाले डीके अग्रवाल को अब क्या हो गया है और वह हर्ष बंसल के सामने आत्मसमर्पण करते हुए क्यों दिख रहे हैं ?
डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच यह चर्चा अब आम है कि डीके अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट के भीष्म पितामह के रूप में देखा जाता है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने हर्ष बंसल की कारस्तानियों के प्रति आँखें मूँदी हुईं हैं - उससे लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट को तबाह और खत्म कर देने की हर्ष बंसल की योजना को उन्होंने समर्थन दे दिया है । हर्ष बंसल की हरकतें अब डिस्ट्रिक्ट के अस्तित्व के लिए ही खतरा बनती जा रही हैं । हर्ष बंसल अभी तक तो बेहूदा शब्दावली और ओछी हरकतों से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बदमजगी ही फैलाया करते थे, लेकिन अब उन्होंने इंटरनेशनल कार्यालय को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है । अभी हाल ही में लायंस क्लब दिल्ली अशोक फोर्ट तथा देवेंद्र कुमार चुघ की तरफ से लायंस इंटरनेशनल के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर करने की सूचनाएँ मिली हैं, जिनका उद्देश्य डिस्ट्रिक्ट की चुनावी प्रक्रिया में बाधा पहुँचाना है । इन कार्रवाइयों के पीछे हर्ष बंसल को ही देखा/पहचाना जा रहा है । इन कार्रवाईयों के चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी प्रक्रिया यदि सचमुच बाधित हुई तो डिस्ट्रिक्ट तो बंद हुआ ही समझो । लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने हालाँकि अपने स्तर पर कार्रवाई शुरू कर दी है और वह इस हरकत को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं दिख रहा है । उसने लायंस क्लब दिल्ली अशोक फोर्ट का चार्टर कैंसिल करने की धमकी दे दी है; और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता से देवेंद्र कुमार चुघ के मामले के रिकॉर्ड माँगे हैं ।
लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने तो अपनी तरफ से कार्रवाई शुरू कर दी है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में इस हरकत को रोकने के लिए चुप्पी छाई हुई है । विरोधी खेमे के लोगों के पास तो करने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं; और सत्ता पक्ष के नेता आँखों पर पट्टी बाँध के बैठे हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता पूरी तरह से हर्ष बंसल के पिट्ठू बने हुए हैं । ऐसे में लोगों की उम्मीद डीके अग्रवाल से बनी/बढ़ी है । लोगों का कहना है कि डीके अग्रवाल ही हैं जिनकी सत्ता खेमे में भी और विरोधी खेमे में भी साख और प्रतिष्ठा है; तथा वही यदि हस्तक्षेप करें तो डिस्ट्रिक्ट को बर्बाद और खत्म होने से रोकने का काम कर सकते हैं । लेकिन डीके अग्रवाल का रवैया भी लोगों को हैरान किए हुए है । डीके अग्रवाल किसी से भी बातें करेंगे तो हर्ष बंसल की कारगुजारियों की बुराई ही करेंगे, लेकिन उनसे यदि कोई पहल करने के लिए कहता है तो फिर वह बचना शुरू कर देते हैं । डीके अग्रवाल के इस विरोधाभासी रवैये से ही लोगों को लगने लगा है कि हर्ष बंसल की तमाम कारस्तानियों को पर्दे के पीछे से डीके अग्रवाल का पूरा पूरा समर्थन है । इसी आधार पर कुछ लोग मानने और कहने लगे हैं कि डीके अग्रवाल ही इस डिस्ट्रिक्ट के संस्थापक रहे हैं, और लगता है कि वही अब इसका क्रियाकर्म करवा देने की तैयारी में हैं ।

Thursday, February 19, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की चुनावी राजनीति में अभी करीब दो महीने पहले तक जो मुकेश गोयल अकेले पड़े हुए थे, उन्हीं मुकेश गोयल ने अजय सिंघल को बिना किसी चुनावी मुकाबले के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी तक पहुँचाने का काम कर दिखाया है

देहरादून । सुनील जैन ने अंततः खुद ही साबित कर दिया कि एपीएस कपूर के जरिये उनके जिस चक्कर में होने की खबरें लोगों के बीच चर्चाओं में थीं, वह सब सच थीं । पाठकों को याद होगा कि गंगोह में तीसरी कैबिनेट मीटिंग के आयोजन के बाद 'रचनात्मक संकल्प' ने स्थितियों का जो आकलन प्रस्तुत किया था उसका शीर्षक था : 'तीसरी कैबिनेट मीटिंग में सुनील जैन की बेवकूफी और अनीता गुप्ता की बदतमीजी से जो माहौल बना, उसमें हस्तक्षेप करके अरुण मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का सारा गणित ही बदल दिया और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय सिंघल का रास्ता पूरी तरह साफ बना दिया' । इस आकलन में हालाँकि यह संभावना भी व्यक्त की गई थी कि सुनील जैन अभी थोड़े और प्रयास करेंगे । लेकिन सुनील जैन इतनी जल्दी समर्पण कर देंगे, इसका किसी को विश्वास नहीं था । यह बात सब जान रहे थे कि सुनील जैन के पास समर्पण के अलावा और कोई चारा नहीं है; सुनील जैन की सक्रियता की भाव-भंगिमा भी बता/जता रही थी कि उनकी सारी कसरत समर्पण की कीमत तय करने को लेकर है - बस ! सुनील जैन लेकिन अपनी कीमत भी नहीं पा सके ।
यहाँ यह तथ्य याद करना प्रासंगिक होगा कि अरुण मित्तल जब सुनील निगम को लेकर सुनील जैन से अलग हो गए थे, तब सुनील जैन ने मुकेश गोयल के सामने समर्पण करने का प्रस्ताव रखा था । उस समय समर्पण के लिए सुनील जैन ने लेकिन जो कीमत बोली थी, वह मुकेश गोयल को बहुत ज्यादा लगी थी । मुकेश गोयल ने उक्त कीमत देने से साफ इंकार कर दिया था । सुनील जैन ने तब एपीएस कपूर के जरिये मुकेश गोयल की बाँह मरोड़ने का दाँव चला और उम्मीद लगाई कि वह मुकेश गोयल को उक्त कीमत देने के लिए मजबूर कर देंगे । सुनील जैन का यह दाँव लेकिन उल्टा पड़ा । एक तरफ तो एपीएस कपूर की उम्मीदवारी उन पर बोझ की तरह लद गई, और दूसरी तरफ उनका अपना तथा अपने आप को डिस्ट्रिक्ट की 'मालकिन' समझ रहीं अनीता गुप्ता का व्यवहार ऐसा था कि लोगों के बीच उनकी फजीहत ही होती जा रही थी । एपीएस कपूर के ठिकाने - गंगोह - में तीसरी कैबिनेट मीटिंग को आयोजित करके सुनील जैन ने सोचा तो यह था कि यह उनकी तरफ से ऐसा मास्टर स्ट्रोक होगा जिसके बाद मुकेश गोयल उनकी माँग मानने को मजबूर हो जायेंगे; लेकिन वहाँ खुद सुनील जैन और अनीता गुप्ता की हरकतों से ऐसा माहौल बना कि 'अनीता गुप्ता हाय हाय' के साथ साथ 'सुनील जैन हाय हाय' के नारे गूँजे ।
गंगोह में आयोजित हुई इस तीसरी कैबिनेट मीटिंग में जो माहौल बना/दिखा उससे यह साबित हो गया कि सुनील जैन के हाथ अब कुछ नहीं बचा है । उस मीटिंग में मुकेश गोयल खेमे की बागडोर सँभाले बैठे अरुण मित्तल ने जिस तरह की चाल चली, उसके बाद सुनील जैन से सारे विकल्प छिन गए और उन्होंने समझ लिया कि उन्हें भी अब वही करना पड़ेगा जो दूसरे लोग अभी तक करते रहे हैं । कई उदाहरण हैं जिनमें देखा गया है कि मुकेश गोयल को पानी पी पी कर कोसने वाले अंततः मुकेश गोयल की शरण में जाने को मजबूर हुए हैं । तीसरी कैबिनेट मीटिंग में सुनील जैन की जो फजीहत हुई, उसके बाद सुनील जैन ने भी समझ लिया कि अब उनके पास मुकेश गोयल की शरण में जाने के अलावा और कोई चारा नहीं है । मुकेश गोयल की भी खूबी यह है कि जो भी उनकी शरण में आता है, उसे वह इस बात की परवाह किए बिना शरण में ले लेते हैं कि वह उनके बारे में कैसी क्या बकवास कर चुका है । मुकेश गोयल यह ज़हर पी लेने में सिद्धहस्त हो चुके हैं । इस कारण से उनके आसपास जुटे लोगों की भीड़ कई बार शिवजी की बारात की तरह की भीड़ जैसी दिखती है; और इस वजह से उन्हें अपने सच्चे शुभचिंतकों से आलोचना भी सुननी पड़ती है । लेकिन इसी हुनर ने मुकेश गोयल को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सबसे ताकतवर भी बनाया हुआ है ।
इसी हुनर का सुबूत है कि अभी करीब दो महीने पहले तक डिस्ट्रिक्ट में जो मुकेश गोयल अकेले पड़े हुए थे, और लोगों के बीच चर्चा गर्म रहती थी कि अजय सिंघल की नाँव को वह कैसे पार लगवायेंगे - उन्हीं मुकेश गोयल ने अजय सिंघल को बिना किसी चुनावी मुकाबले के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी तक पहुँचाने का काम कर दिखाया है । उनके तमाम विरोधी या तो उनके साथ आ खड़े हुए हैं और 'फ्रैंडशिप मीटिंग' कर रहे हैं और या अपने अपने घरों में दुबके पड़े हैं । मुकेश गोयल की रणनीति के सामने सुनील जैन के रूप में एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किस तरह असहाय बन गया और तमाम तिकड़मों के बावजूद पूरी तरह समर्पण के लिए मजबूर हो गया - यह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के इतिहास का अनोखा उदाहरण बन गया है ।


Wednesday, February 18, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए हरियाणा क्षेत्र में कॉन्करेंस जुटाने के लिए दिल्ली में मिल रहे समर्थन के किए गए झूठे दावे की पोल खुलने के बाद रवि चौधरी के लिए हरियाणा में अपने समर्थन को बचाये/बनाये रख पाना एक बड़ी चुनौती बन गया है

नई दिल्ली । रवि चौधरी की उम्मीदवारी को समर्थन मिलने के मामले में दिल्ली में जो झटका लगा है, उससे उनके समर्थकों के बीच निराशा और गहरा गई है । उल्लेखनीय है कि रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में कॉन्करेंस जुटाने के लिए उनके समर्थक नेताओं - दीपक तलवार, सुशील खुराना, विनोद बंसल, दमनजीत सिंह, रमेश चंदर आदि ने एड़ी-चोटी को जोर लगा दिया था; लेकिन यह सब मिलकर दिल्ली में कुल तीन क्लब्स से ही कॉन्करेंस जुटा सके । इस तथ्य से लोगों को यही संकेत और संदेश मिला है कि दिल्ली में क्लब्स के पदाधिकारियों ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी को नकार दिया है । बड़े बड़े नेताओं के खुल कर सक्रिय होने के बावजूद दिल्ली में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अभियान जिस तरह से फेल हुआ है, उससे उनकी चुनावी तैयारियों को खासा तगड़ा झटका लगा है ।
यह झटका इसलिए लगा है क्योंकि सरोज जोशी और रवि चौधरी के बीच होने वाले चुनाव के लिए मान्य वोटों में दिल्ली का हिस्सा दो-तिहाई के करीब है । चुनाव में कुल करीब 75 वोटों के मान्य होने का अनुमान है, जिसमें करीब 50 वोट दिल्ली के हैं । रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों का ही मानना और कहना है कि रवि चौधरी को इन करीब 50 वोटों में से 5 से 7 वोट मिल जाएँ तो बहुत समझियेगा । रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों का दावा है कि हरियाणा क्षेत्र से उन्हें एकतरफा समर्थन मिलेगा । हरियाणा क्षेत्र के वोट करीब 25 हैं । इन सभी 25 वोटों के मिलने के रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों के दावे को यदि सच भी मान लिया जाए, रवि चौधरी तब भी जीत से बहुत पीछे रह जाते हैं । वोटों के इसी गणित ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों को बुरी तरह निराश किया हुआ है ।
रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों ने माथापच्ची करते हुए यह समझने की कोशिश की कि वह यदि और जोर लगाएँ तो हो सकता है कि दिल्ली में चार-पाँच वोट का वह और जुगाड़ बना लें - लेकिन तब भी जीत तो मिलती नहीं दिखती है । समस्या यह भी है, जिसे रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थक दबे स्वर में स्वीकार भी करते हैं, कि हरियाणा क्षेत्र के सभी वोट रवि चौधरी को मिलना मुश्किल ही होगा । ऐसे में, रवि चौधरी के लिए जीत और दूर हो जायेगी । हरियाणा क्षेत्र से रवि चौधरी को कॉन्करेंस दिलवाने में उनके समर्थक नेता कामयाब जरूर रहे हैं, लेकिन इस कामयाबी ने मुश्किलें बढ़ाने का ही काम किया है । दरअसल इस कामयाबी के लिए नेताओं को क्लब्स के पदाधिकारियों पर खासा दबाव बनाना पड़ा, जिसके चलते क्लब्स के पदाधिकारी भड़के हुए हैं और वह कहते हुए सुने गए हैं कि कॉन्करेंस तो इन्होंने जबर्दस्ती ले ली हैं, देखते हैं कि वोट कैसे लेते हैं ?
हरियाणा क्षेत्र के कई रोटेरियंस को यह डर भी सता रहा है कि रवि चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने के कारण वह कहीं डिस्ट्रिक्ट की मुख्य धारा से अलग-थलग न पड़ जाएँ और उनकी पहचान व भूमिका हाशिए की न होकर रह जाए ? उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजन के फार्मूले पर जब बात हो रही थी, तब एक फार्मूला दिल्ली और बाहरी दिल्ली क्षेत्र के रूप में डिस्ट्रिक्ट को विभाजित करने का भी आया था । दिल्ली के अधिकतर लोग इस फार्मूले से सहमत थे, किंतु बाहरी दिल्ली क्षेत्र के लोगों ने इसका तगड़ा विरोध किया था । बाहरी दिल्ली क्षेत्र के लोग दिल्ली के साथ ही रहना चाहते थे - इसीलिए ऐसा फार्मूला स्वीकार हुआ जिसके अनुसार दोनों विभाजित डिस्ट्रिक्ट्स में दिल्ली भी है । उसी भावना के कारण हरियाणा क्षेत्र के रोटेरियंस को लगता है कि चुनावी राजनीति में उन्हें भी ऐसा ही फैसला करना चाहिए जिससे कि वह दिल्ली के साथ ही जुड़े दिखें ।
इसी कारण से, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में हरियाणा क्षेत्र के कई प्रमुख रोटेरियंस को लगता है कि दिल्ली में यदि सरोज जोशी के लिए एकतरफा समर्थन दिख रहा है तो उन्हें भी कुछेक नेताओं के बहकावे में आने की बजाये दिल्ली वालों की राय के साथ ही जाना चाहिए । मजे की बात यह हुई है कि हरियाणा क्षेत्र में समर्थन जुटाने के लिए रवि चौधरी के समर्थकों ने उनके बीच दावा किया कि दिल्ली में तो रवि चौधरी के लिए अच्छा समर्थन है । यह धोखा देकर रवि चौधरी के लिए हरियाणा क्षेत्र में कॉन्करेंस तो जुटा ली गईं हैं; लेकिन अब जब दिल्ली में समर्थन का उनका दावा झूठा साबित हो गया है, तो हरियाणा में अपने समर्थन को बचाये/बनाये रख पाना उनके लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है ।
दिल्ली में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन आखिर बन क्यों नहीं पाया है ? इसका एक बड़ा कारण तो यह है कि दिल्ली में अधिकतर क्लब्स अधिकृत उम्मीदवार के पक्ष में ही जाते हैं और साफ साफ यह कहते हैं कि नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार को चुनाव में नहीं घसीटना चाहिए । इससे नाहक ही डिस्ट्रिक्ट में बदमजगी पैदा होती है । इसी तर्क के कारण कई क्लब्स सरोज जोशी की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं । उनका कहना है कि नोमीनेटिंग कमेटी में जब सरोज जोशी की उम्मीदवारी को जीत मिल गई है, तो उन्हें ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी घोषित करना चाहिए । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3010 अपने कुछेक नेताओं की टुच्ची व ओछी राजनीतिक हरकतों के कारण ही पायलट प्रोजेक्ट के फंदे में आया है । पायलट प्रोजेक्ट के पहले दो वर्ष में नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले का ही पालन हुआ है । मौजूदा तीसरे वर्ष में जब डिस्ट्रिक्ट 3010 दो डिस्ट्रिक्ट में विभाजित हो गया है तो विभाजित हुए एक डिस्ट्रिक्ट 3012 में भी नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले का ही पालन हो रहा है । डिस्ट्रिक्ट 3011 में लेकिन कुछेक नेताओं ने अपनी पैंतरेबाजी से चुनाव की स्थितियाँ पैदा कर दी हैं और डिस्ट्रिक्ट में घटिया चालबाजियों का खेल शुरू कर दिया है । नेताओं ने भले ही घटिया चालबाजियाँ अपना ली हों, लेकिन क्लब्स के पदाधिकारियों ने मैच्योरिटी का परिचय दिया है और वह चालबाजियों में फँसने से बचते हुए दिख रहे हैं ।
यही कारण है कि दिल्ली में रवि चौधरी की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने की उनके समर्थक नेताओं की तमाम कोशिशें फेल होती हुई नजर आ रही हैं । मजे की बात यह दिख रही है कि रवि चौधरी अपनी उम्मीदवारी को लेकर उतने सक्रिय नहीं दिख रहे हैं, जितने सक्रिय उनके समर्थक नेता हैं । इससे लोगों को - खासतौर से वोटरों को - रवि चौधरी को जानने/पहचानने/समझने का मौका ही नहीं मिल पाया है । रवि चौधरी की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने के लिए उनके समर्थक नेताओं ने जिस तरह की हरकतें और चालबाजियाँ की हैं उससे रवि चौधरी का काम और खराब हुआ है । नेताओं की हरकतों और चालबाजियों के कारण ही दिल्ली के क्लब्स रवि चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में कॉन्करेंस देने को तैयार नहीं हुए हैं । दिल्ली में रवि चौधरी की उम्मीदवारी को जो झटका मिला है, उससे उनके लिए चुनाव और भी ज्यादा मुश्किल हो गया है ।

Saturday, February 14, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी की सक्रियता व संलग्नता की निरंतरता पर बने असमंजस के कारण अरनेजा गिरोह के नेताओं ने अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक कुमार गर्ग की उम्मीदवारी से फिलहाल हाथ खींचा

नई दिल्ली । अशोक कुमार गर्ग को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए अरनेजा गिरोह द्धारा दिखाई जा रही हरी झंडी को फिलहाल पीछे कर लेने से अगले रोटरी वर्ष की चुनावी राजनीति का परिदृश्य थोड़ा धुँधला पड़ गया है । उल्लेखनीय है कि अभी कुछ दिन पहले तक अगले रोटरी वर्ष में अरनेजा गिरोह की तरफ से रोटरी क्लब दिल्ली शाहदरा के अशोक कुमार गर्ग को उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा खासी मुखर थी । अशोक कुमार गर्ग को उम्मीदवार बनाये जाने को लेकर क्लब में कोई बखेड़ा न खड़ा हो, इसके लिए पहले से ही व्यवस्था कर ली गई थी और इसी व्यवस्था के तहत संजीव रस्तोगी को क्लब से बाहर करवा दिया गया था । मान लिया गया था कि संजीव रस्तोगी के क्लब से बाहर हो जाने के बाद अशोक कुमार गर्ग के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है । अरनेजा गिरोह द्धारा तीन-तिकड़म से शरत जैन को विजय दिलवा देने के साथ तो अशोक कुमार गर्ग और उनके नजदीकियों ने यह मानना और जताना भी शुरू कर दिया था कि जिस तरह अरनेजा गिरोह ने शरत जैन को जितवा दिया है, वैसे ही उन्हें भी जितवा दिया जायेगा । लेकिन अरनेजा गिरोह के नेताओं ने अगले रोटरी वर्ष में अशोक कुमार गर्ग की उम्मीदवारी को लेकर अचानक से चुप्पी साध ली है ।
अरनेजा गिरोह के नेताओं के नजदीकियों का ही कहना है कि नेताओं को दरअसल अभी अशोक कुमार गर्ग की क्षमताओं पर भरोसा नहीं हो पा रहा है, और वह इस बात को लेकर खुद को ही आश्वस्त नहीं कर पा रहे हैं कि अशोक कुमार गर्ग एक उम्मीदवार की जिम्मेदारियों का निर्वाह कर पायेंगे या नहीं और वह उन्हें जितवा भी सकेंगे क्या ? अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव खासा गहमागहमी भरा होने की उम्मीद की जा रही है । दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी के साथ साथ रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के राजीव गुप्ता तथा रोटरी क्लब नोएडा एक्सीलेंस के प्रवीण निगम द्धारा भी अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए संभावनाएँ तलाशे जाने की बातें लोगों के बीच चर्चा में हैं । दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी इस बार अपनी अपनी उम्मीदवारी में असफल भले ही रहे हों, लेकिन अपने अपने अभियान को उन्होंने जिस सक्रियता व संलग्नता के साथ चलाया - उसके कारण वह लोगों के बीच पैठ बनाने में तो कामयाब रहे ही हैं । अगले रोटरी वर्ष में वह यदि सचमुच में अपनी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करते हैं तो दोनों एक दूसरे के आमने-सामने होंगे और वह एक दिलचस्प मुकाबला होगा । राजीव गुप्ता और प्रवीण निगम के बारे में भी उनके नजदीकियों का कहना है कि यदि उन्होंने वास्तव में अपनी अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया तो वह पूरी पूरी तैयारी से मैदान में उतरेंगे और मुकाबले को गंभीर व संगीन बनायेंगे ।
अरनेजा गिरोह के लोगों का कहना है कि इन लोगों की संभावित उम्मीदवारी को देखते हुए ही उनके नेताओं ने अभी यह फैसला टाल दिया है कि वह किसकी उम्मीदवारी का झंडा उठाये । नेता लोग पहले यह देख/समझ लेना चाहते हैं कि कौन कौन सचमुच में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करते हैं, और अपनी अपनी उम्मीदवारी के अभियान को वह कैसे चलाते हैं ? वह जिसका पलड़ा भारी देखेंगे, उसी का झंडा उठा लेंगे । इस बार प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने के बावजूद उन्हें जीत दिलवाने में असफल रहने से सबक लेते हुए अरनेजा गिरोह के नेता अगली बार के लिए सावधान हैं और किसी ऐसे उम्मीदवार के साथ ही जाना चाहेंगे जिसके जीतने की उम्मीद होगी । शरत जैन की जीत से अरनेजा गिरोह के नेताओं की इज्जत इस बार तो बच गई, अगली बार वह यदि अपने उम्मीदवार को नहीं जितवा सके, तो उनके लिए मुश्किल हो जायेगी । दरअसल इसीलिए अरनेजा गिरोह के नेताओं ने अशोक कुमार गर्ग की उम्मीदवारी से फिलहाल हाथ खींच लिए हैं ।
अशोक कुमार गर्ग के नजदीकी हालाँकि दावा तो कर रहे हैं कि शरत जैन उनकी उम्मीदवारी को समर्थन देने की वकालत कर रहे हैं, और इसलिए उन्हें विश्वास है कि नेताओं का समर्थन भी उन्हें मिल जायेगा । दूसरे लोगों को यद्यपि इस विश्वास पर विश्वास नहीं है । उनका तर्क है कि गिरोह में शरत जैन की हैसियत ऐसी नहीं है कि वह अपनी पसंद का फैसला करवा सकें । फैसला तो मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ही करेंगे । संभावित उम्मीदवार अपने अपने तरीके से उनका समर्थन पाने की कोशिशें तो कर ही रहे हैं, लेकिन साथ ही यह भी जानने/समझने का प्रयास कर रहे हैं कि अपनी अपनी उम्मीदवारी के अभियान को वह कैसे आगे बढ़ाये । दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी के रवैये पर भी काफी कुछ निर्भर है । इस वर्ष उनकी जो सक्रियता व संलग्नता रही है, उसी की निरंतरता में वह यदि अपने अभियान को बनाये रखते हैं तो दूसरे उम्मीदवारों के लिए उनसे मुकाबला करना मुश्किल हो सकता है; लेकिन यदि उनकी निरंतरता का क्रम टूटा तो दूसरे उम्मीदवारों को अपने लिए जगह बनाने का मौका मिल भी सकता है । इस सब के चलते अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी परिदृश्य अभी थोड़ा गफलत भरा तो बना दिख रहा है, लेकिन यह सभी को लग रहा है कि वह होगा खासा पेचीदा ।

Thursday, February 12, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रवि चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठाने के जरिये, कामकाज के मोर्चे पर मात खा रहे केसी लखानी अपनी पूछ-परख बनाये रखने के लिए रोटरी की राजनीति में हाथ आजमा लेने की तैयारी कर रहे हैं क्या ?

फरीदाबाद । केसी लखानी ने नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुनी गई सरोज जोशी की अधिकृत उम्मीदवारी को चेलैंज करने की रवि चौधरी की कोशिशों का झंडा उठा कर हर किसी को चौंका दिया है । दरअसल रोटरी की चुनावी राजनीति में केसी लखानी को इतनी दिलचस्पी लेते हुए इससे पहले कभी नहीं देखा गया है । चार वर्ष पहले जब अजय जोनेजा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, तब उन्होंने केसी लखानी को अपने समर्थन में सक्रिय करने का प्रयास जरूर किया था - लेकिन केसी लखानी ने उनके प्रयासों का कोई बहुत सकारात्मक जबाव नहीं दिया था, और बस बड़े-बुजुर्गों की तरह आशीर्वाद आदि देकर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के पचड़े में फँसने से अपने आप को बचा लिया था । एक रोटेरियन के रूप में केसी लखानी ने अपनी भूमिका और सक्रियता को बहुत सीमित रखा हुआ था और कम ही मौकों पर उन्हें रोटरी की गतिविधियों में शामिल देखा/पाया गया है । रोटरी की चुनावी राजनीति में तो केसी लखानी को कभी भी सक्रिय नहीं देखा/पाया । इसीलिए अब जब उन्हें रवि चौधरी के लिए फरीदाबाद में कॉन्करेंस जुटाने की कार्रवाई में लगे देखा/सुना जा रहा है, तो हर किसी का चौंकना स्वाभाविक ही है ।
केसी लखानी के परिचितों का अनुमान है कि चूँकि वह एक भले व्यक्ति हैं और जो कोई उनके पास मदद माँगने जाता है, वह खासे उत्साह के साथ उसकी मदद करते हैं; इसलिए लगता है कि रवि चौधरी ने उनकी भलमनसाहत का इस्तेमाल करते हुए उन्हें अपने पक्ष में सक्रिय कर लिया है । अधिकतर लोगों को यह बात लेकिन हजम नहीं हो रही है । उनका तर्क है कि मदद तो सरोज जोशी ने भी माँगी होगी, केसी लखानी उनकी मदद करने लिए उत्साहित क्यों नहीं हुए ? उनकी भलमनसाहत रवि चौधरी पक्ष में ही क्यों जागी ? इसके जबाव में जबाव आया कि रवि चौधरी ने हो सकता है कि ज्यादा खुशामद कर ली होगी ! केसी लखानी के नजदीकियों का कहना ज्यादा मौजूँ है - उनका कहना है कि केसी लखानी के पास आजकल कोई काम-धाम नहीं है; धंधा उनका लगभग चौपट हो गया है - ऐसे में खुशामद करवाना उन्हें अच्छा लगने लगा है; और इतना वह समझ गए हैं कि चुनाव होगा तो उनकी ज्यादा खुशामद होगी । केसी लखानी ने कुछेक लोगों के बीच कहा भी है कि वह चाहते हैं कि चुनाव हो । केसी लखानी जान रहे हैं कि फरीदाबाद में एक बड़े उद्यमी के रूप में उनकी जो पहचान रही है और उस पहचान के कारण उनको यहाँ जो सम्मान मिलता रहा है, वह धीरे धीरे उनकी 'असलियत' खुलने के कारण अब धुँधला पड़ता जा रहा है - इसलिए यहाँ अब अपनी पूछ-परख बनाये रखने के लिए उन्हें रोटरी की राजनीति में हाथ आजमा लेना चाहिए ।
केसी लखानी के प्रति जो लोग आदर-भाव रखते हैं, उन्हें हैरानी लेकिन इस बात पर है कि उन्होंने रवि चौधरी के साथ दिखने का खतरा आखिर क्यों उठाया ? जेल में बंद असित मित्तल के साथ व्यापारिक लेन-देन के चलते रवि चौधरी खुद बड़े बदनामी भरे संकट में हैं । अपने पिछले चुनाव में लोगों के बीच समर्थन जुटाने के उद्देश्य से गाजियाबाद में आयोजित की गई मीटिंग में गायिका के रूप में आई लड़की को छेड़ने के चक्कर में वहाँ मौजूद लोगों के बीच मार-पिटाई हो जाने, खून-खच्चर हो जाने तथा पुलिस के आ जाने का जो बबाल हुआ था - उसका बदनामीभरा कलंक भी रवि चौधरी के माथे पर है । इन्हीं मामलों का संदर्भ लेते/देते हुए केसी लखानी को उनके कुछेक नजदीकियों ने आगाह भी किया था कि रवि चौधरी के चक्कर में आपको सिर्फ बदनामी ही मिलेगी, किंतु केसी लखानी ने उनकी भी नहीं सुनी/मानी । चुनाव का मजा लेने के लिए केसी लखानी इस हद तक चले जायेंगे और फरीदाबाद में रवि चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठा कर चलने लगेंगे - इसका अनुमान उनके नजदीकियों को भी नहीं था ।
लोगों को चौंकाते तथा हैरान करते हुए केसी लखानी ने जब यह कर ही लिया है, तो फरीदाबाद में लोगों ने मान लिया है कि केसी लखानी अब रोटरी की राजनीति करने में अपने आप को व्यस्त करेंगे । नजदीकियों का कहना है कि केसी लखानी का कामकाज चौपट तो हो ही गया है, अब वह पूरी तरह खत्म होने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है । कंपनी लॉ बोर्ड में अपने भाई पीडी लखानी के साथ लंबे चले कानूनी झगड़े के बाद केसी लखानी बिजनेस का बँटवारा करने में तो सफल रहे, लेकिन इस सफलता ने उनके बिजनेस की कमर पूरी तरह से तोड़ कर रख दी है । बैंक लिमिट्स का पूरी तरह दोहन कर लेने के चलते केसी लखानी ग्रुप भारी मुसीबत और दबाव में है । इन्हीं सब बातों को देखते हुए देश की प्रमुख रेटिंग संस्था क्रिसिल ने केसी लखानी ग्रुप की रेटिंग को घटा कर खतरे का सायरन बजा दिया है, जिसके बाद केसी लखानी के लिए संकट और भी ज्यादा बढ़ गया है । केसी लखानी के संकट को इस तथ्य से भी पहचाना जा सकता है कि पिछले रोटरी वर्ष में विनोद बंसल के गवर्नर-काल में उन्होंने रोटरी फाउंडेशन में जो दान देने की घोषणा की थी, उस घोषणा को व्यावहारिक रूप दे पाने में वह विफल साबित हुए थे और इस कारण से उनकी खासी किरकिरी भी हुई थी ।
लोगों को लगता है कि केसी लखानी सार्थक कुछ कर सकने में अब शायद समर्थ नहीं रहे हैं और इसीलिए रोटरी की चुनावी राजनीति में सक्रिय होने की उन्होंने तैयारी कर ली है । रवि चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठा कर केसी लखानी ने शायद यही दिखाने/जताने की कोशिश की है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में उम्मीदवारों के लिए अब उनका आशीर्वाद लेना भी जरूरी होगा ।

Tuesday, February 10, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में मौजूदा प्रेसीडेंट के रघु तथा वाइस प्रेसीडेंट मनोज फडनिस अपने अपने उम्मीदवारों के समर्थन में सचमुच सक्रिय होंगे और उन्हें समर्थन दिलवायेंगे क्या ?

नई दिल्ली । नीलेश विकमसे ने मनोज फडनिस, तो विजय गुप्ता ने के रघु व उत्तम 'गिरोह' की मदद से इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद पर पहुँचने की जो तैयारी की है - उसे राजकुमार अदुकिया ने मुद्दे की लड़ाई बना कर खासा दिलचस्प बना दिया है । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद की लड़ाई आम तौर पर निजी तिकड़मों पर आधारित रहती है और इसमें निजी स्तर पर की जाने वाली सौदेबाजियों को ही निर्णायक भूमिका निभाते हुए देखा गया है - इसीलिए नीलेश विकमसे को उम्मीद है कि एक विदेशी फर्म में पिछले वर्ष ही उनके पार्टनर बने मनोज फडनिस वाइस प्रेसीडेंट पद की कुर्सी दिलवाने में उनकी अवश्य ही मदद करेंगे । मनोज फडनिस इस समय इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट हैं और वह अगले प्रेसीडेंट होंगे । नीलेश विकमसे के नजदीकियों का कहना है कि प्रेसीडेंट के रूप में मनोज फडनिस की कृपा पाने के लिए सेंट्रल काउंसिल के कई सदस्य जुगाड़ में हैं और इसके बदले में मनोज फडनिस उनसे नीलेश विकमसे के लिए समर्थन माँग सकते हैं । नीलेश विकमसे के कुछेक समर्थकों का तो यहाँ तक कहना है कि पिछले वर्ष मनोज फडनिस को विदेशी फर्म में जो पार्टनरशिप मिली है, उसमें विकमसे भाईयों की बड़ी भूमिका थी - और अब मनोज फडनिस के सामने उस अहसान का बदला चुकाने की बारी है ।
नीलेश विकमसे को यदि मनोज फडनिस के रूप में आने वाले प्रेसीडेंट से मदद की उम्मीद है, तो विजय गुप्ता को के रघु के रूप में जाने वाले प्रेसीडेंट से सहायता मिलने का भरोसा है । विजय गुप्ता इस वर्ष के रघु के बड़े ही खास रहे हैं । उन्हें भरोसा है कि प्रेसीडेंट के रूप में के रघु ने सेंट्रल काउंसिल के जिन जिन लोगों पर भी कृपा की है, उनका समर्थन उन्हें मिल सकेगा । के रघु ने अपने प्रेसीडेंट-काल में जिन जिन लोगों पर कृपा की है, उनमें विजय गुप्ता का चूँकि पहला स्थान रहा है इसलिए दूसरे लोगों के बीच उनके प्रति विरोध का भाव भी रहा है । इसके बावजूद विजय गुप्ता को उम्मीद है कि के रघु दूसरे लोगों को उनका समर्थन करने के लिए राजी कर लेंगे । विजय गुप्ता को वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपना पलड़ा इसलिए भी भारी लगता है क्योंकि उन्हें उत्तम गिरोह के सदस्यों के समर्थन का भी विश्वास है । उत्तम गिरोह के पसंदीदा उम्मीदवार हालाँकि अनुज गोयल होते, लेकिन अनुज गोयल अगले टर्म में उम्मीदवार नहीं हो सकने के कारण वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी दौड़ से चूँकि बाहर हैं - इसलिए विजय गुप्ता को उम्मीद है कि उत्तम गिरोह के सदस्य उनका समर्थन करेंगे ।
विजय गुप्ता को हालाँकि नवीन गुप्ता और अतुल गुप्ता से झटका मिलने का डर भी बना हुआ है । नवीन गुप्ता वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपने पापा के भरोसे हैं । उनके पापा एनडी गुप्ता इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट हैं, और उन्हें पूरा विश्वास है कि वह उन्हें भी प्रेसीडेंट बनवा देंगे । अतुल गुप्ता ने अभी तक के अपने दो-वर्षीय कार्यकाल में सेंट्रल काउंसिल के जिन सदस्यों को अपने विभिन्न कार्यक्रमों/आयोजनों में अहमियत दी है उन्हें वह दी गई अहमियत याद दिला दिला कर वोट जुटाने का प्रयास कर रहे हैं । अतुल गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि उन्होंने पिछले दो वर्षों में सेंट्रल काउंसिल के बहुत से सदस्यों को अपने तरीके से उचित मान-सम्मान दिया है, लिहाजा उन्हें उम्मीद है कि चुनाव के मौके पर उक्त सदस्य उसका ध्यान रखेंगे और उनके पक्ष में वोट करेंगे । अतुल गुप्ता को उन सदस्यों के समर्थन की भी उम्मीद है, सेंट्रल काउंसिल में जिनका पहला टर्म है । अतुल गुप्ता ने पहले टर्म वाले सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का नेता बनने का प्रयास तो लगातार किया है - और अब अपने उसी प्रयास का वह फल पाने का विश्वास कर रहे हैं । 
राजकुमार अदुकिया ने वाइस प्रेसीडेंट का पद पाने के लिए एक अलग ही रास्ता अपनाया है । निजी तिकड़मों पर भरोसा करने से अलग उन्होंने मुद्दों पर समर्थन जुटाने का प्रयास किया है । जिन लोगों को उनके इस अलग रास्ते पर भरोसा नहीं भी है, वह भी लेकिन उनके तरीके की सराहना तो करते हुए दिख ही रहे हैं । राजकुमार अदुकिया कोशिश में हैं कि उन्हें सराहना के साथ साथ वोट भी मिल जाएँ । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए यूँ तो और भी उम्मीदवार सक्रिय हैं, लेकिन उन्होंने तीन-तिकड़मों को चलाने की बजाये अपने अपने संपर्कों, अपने अपने कामों और अपनी अपनी किस्मत पर भरोसा रखा हुआ है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनाव खासा अनिश्चितता भरा होता है और किसी के लिए भी यह समझ पाना प्रायः असंभव ही होता है कि किसकी नाँव पार लगेगी । अक्सर देखा गया है कि ज्यादा तीन-तिकड़म वाले उम्मीदवार बेचारे ताकते रह जाते हैं, और कोई छुपा रुस्तम बाजी मार ले जाता है । इसी तर्ज पर इस बार का चुनाव भी अनिश्चितता भरा तो है ही, किंतु मौजूदा प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट को जिस तरह से विजय गुप्ता और नीलेश विकमसे द्धारा इस बार के चुनाव में घसीट लिया गया है, उसके चलते इस बार का चुनाव खासा दिलचस्प तो हो ही गया है ।

Monday, February 9, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में सुशील खुराना और दीपक तलवार ने रवि चौधरी को कॉन्करेंस देने/दिलवाने के मामले में जिस तरह अपनी, अपने अपने क्लब के सदस्यों व पदाधिकारियों की, डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की इज्जत दाँव पर लगा दी हुई है - उससे यह सवाल बाजिव ही लगता है कि रवि चौधरी ने इन दोनों पर आखिर ऐसा कौन काला जादू किया हुआ है या इन्हें रवि चौधरी से आखिर क्या फायदा मिल रहा है ?

नई दिल्ली । रवि चौधरी की तरफ से रोटरी क्लब गुड़गाँव और रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी की कॉन्करेंस मिलने का दावा सुन कर इन क्लब्स के पदाधिकारी और दूसरे वरिष्ठ सदस्य अपने आप को अपमानित महसूस कर रहे हैं । दरअसल इन दोनों क्लब्स ने अभी - अभी यानि इन पँक्तियों के लिखे जाने तक - कॉन्करेंस के बारे में फैसला नहीं किया है । इन क्लब्स के पदाधिकारी और दूसरे वरिष्ठ सदस्य लेकिन यह सुन/जान कर हैरान हैं कि रवि चौधरी आखिर किस आधार पर कॉन्करेंस मिलने का दावा कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि रवि चौधरी कई क्लब्स के लोगों से इस बात का दावा कर चुके हैं कि इन दोनों क्लब्स से उन्हें कॉन्करेंस मिल चुकी हैं । किसी ने उनसे यदि यह कहा भी कि अभी तो इन क्लब्स ने फैसला नहीं किया है, तो रवि चौधरी की तरफ से उन्हें सुनने को मिला कि फैसला तो होता रहेगा, कॉन्करेंस तो उन्हें मिल गईं हैं । रवि चौधरी का कहना है कि सुशील खुराना और दीपक तलवार ने जब उन्हें कॉन्करेंस को लेकर आश्वस्त कर दिया है तो वह यह मान रहे हैं और बता रहे हैं कि इन दोनों के क्लब्स की कॉन्करेंस तो इन्हें मिल ही चुकी हैं ।
रवि चौधरी द्धारा किए जा रहे इस तरह के दावों से दोनों ही क्लब्स के सदस्यों के बीच खलबली है । दोनों क्लब्स के सदस्यों का कहना है कि फैसला यदि सुशील खुराना और दीपक तलवार को ही करना है तो फिर कॉन्करेंस के लिए मीटिंग आदि करने का नाटक करने की जरूरत ही क्या है ? दोनों ही क्लब के सदस्यों को हैरानी इस बात की भी है कि सुशील खुराना और दीपक तलवार पर रवि चौधरी ने आखिर ऐसा कौन सा जादू किया हुआ है कि उन्होंने अपने अपने क्लब और उसके सदस्यों की इज्जत रवि चौधरी के पास गिरवी रख दी है । सदस्यों का कहना है कि इन्हें रवि चौधरी की यदि मदद करनी है, तो जरूर करें - लेकिन उसके लिए अपनी नहीं तो कम-अस-कम क्लब के सदस्यों की इज्जत की तो परवाह करें और उसे तो दाँव पर न लगाएँ । क्लब के सदस्यों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि क्लब में अभी फैसला हुआ नहीं है और रवि चौधरी लोगों को बताते फिर रहे हैं कि उन्हें कॉन्करेंस मिल गई है ।
रवि चौधरी के दावे से दरअसल यह आभास भी मिला कि सुशील खुराना और दीपक तलवार ने जैसे उन्हें समझाया हुआ है कि उनके अपने अपने क्लब में दूसरे सदस्यों तथा पदाधिकारियों की तो कोई हैसियत ही नहीं है; और अपने अपने क्लब में वह जो चाहेंगे फैसला करवा लेंगे । वास्तव में इसीलिए रवि चौधरी को भी इन क्लब्स के दूसरे सदस्यों व पदाधिकारियों के सम्मान की परवाह नहीं है और वह लोगों से साफ कह रहे हैं कि जब सुशील खुराना और दीपक तलवार ने उन्हें कॉन्करेंस का भरोसा दे दिया है तो फिर वह आश्वस्त हैं और क्लब ने फैसला भले ही न किया हो, लेकिन वह मान रहे हैं कि उन्हें इन दोनों क्लब्स की कॉन्करेंस मिल ही गई हैं । रोटरी क्लब गुड़गाँव तथा रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के सदस्य मान रहे हैं और कह रहे हैं कि जब उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्य उनका सम्मान नहीं रख पा रहे हैं, तो बाहर के रवि चौधरी से ही वह सम्मान की क्या उम्मीद करें ?
सुशील खुराना और दीपक तलवार का अपने अपने क्लब की कॉन्करेंस दिलवाना इसलिए भी सवालों के घेरे में है क्योंकि यह दोनों विभिन्न भूमिकाओं में रोटरी इंटरनेशनल का प्रतिनिधित्व करते हैं । सुशील खुराना डीआरएफसी हैं तथा दीपक तलवार इलेक्शन कमेटी के सदस्य हैं । इन पदों पर रहते हुए इनसे उम्मीद की जाती है कि यह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में किसी एक पक्ष के साथ 'खुले तौर' पर नहीं दिखें - कम-अस-कम डिस्ट्रिक्ट के अधिकृत उम्मीदवार खिलाफ तो न ही 'दिखें' । इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर और आने वाले दो वर्षों के लिए बनने जा रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई तथा अगले रोटरी वर्ष में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन डिस्ट्रिक्ट्स की चुनावी राजनीति में डिस्ट्रिक्ट व इंटरनेशनल पदाधिकारियों के खुले तौर पर शामिल होने/रहने की खिलाफत करते रहे हैं - लेकिन सुशील खुराना और दीपक तलवार को लगता है कि किसी की परवाह नहीं है ।
सुशील खुराना और दीपक तलवार ने रवि चौधरी को कॉन्करेंस देने/दिलवाने के मामले में जिस तरह अपनी, अपने अपने क्लब के सदस्यों व पदाधिकारियों की, डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की इज्जत दाँव पर लगा दी हुई है - उससे कुछेक लोगों द्धारा पूछा जा रहा यह सवाल बाजिव ही लगता है कि रवि चौधरी ने इन दोनों पर आखिर ऐसा कौन काला जादू किया हुआ है या इन्हें रवि चौधरी से आखिर क्या फायदा मिल रहा है ?

Sunday, February 8, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए समर्थन जुटाने के अपने सारे हथकंडों के पहले संजय खन्ना के साथ हुए चुनाव में और फिर अभी सरोज जोशी के मुकाबले नोमीनेटिंग कमेटी में फेल साबित होने के बाद रवि चौधरी द्धारा कॉन्करेंस जुटाने के लिए चला गया नया दाँव भी उलटा ही असर करता दिख रहा है

नई दिल्ली । रवि चौधरी ने कॉन्करेंस जुटाने के लिए जो सहानुभूति-कार्ड चला है, वह लोगों के बीच उल्टा ही असर कर रहा दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सरोज जोशी के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के फैसले को रवि चौधरी ने चेलैंज किया है, और अपने चेलैंज को मान्य बनाने के लिए वह कॉन्करेंस जुटाने में लगे हुए हैं । कुछेक पूर्व गवर्नर्स भी हालाँकि उनकी मदद में जुटे हुए हैं, लेकिन चूँकि उन पूर्व गवर्नर्स की खुली मदद के बावजूद नोमीनेटिंग कमेटी में उन्हें सरोज जोशी के मुकाबले हार का सामना करना पड़ा है - इसलिए रवि चौधरी अब अपने मददगार पूर्व गवर्नर्स पर भरोसा करने की बजाये खुद ही सक्रिय हुए हैं । रवि चौधरी खुद से सक्रिय तो हुए हैं लेकिन उनके लिए ऐसे तर्क जुटा पाना मुश्किल हो रहा है, जिनके जरिये वह लोगों को अधिकृत उम्मीदवार सरोज जोशी की खिलाफत करने के लिए राजी कर सकें । रवि चौधरी और उनके समर्थक बड़े नेताओं ने इसके लिए एक तरीका तो सरोज जोशी के खिलाफ नकारात्मक प्रचार करने तथा उनके खिलाफ छिछोरी बातें करने का अपनाया हुआ है और उम्मीद लगाई हुई है कि इस तरह की बातों से उन्हें आसानी से कॉन्करेंस मिल जायेगी । एक दूसरे तरीके के रूप में रवि चौधरी ने असित मित्तल के जरिये हुई अपनी लुटाई का किस्सा सुना सुना कर अपने लिए हमदर्दी जुटाने का प्रयास भी शुरू किया है ।
रवि चौधरी यह किस्सा हालाँकि कई कई बार लोगों को सुना/बता चुके हैं । रवि चौधरी के अनुसार, असित मित्तल के साथ अपनी दोस्ती निभाने चक्कर में उन्होंने असित मित्तल के लिए बैंक से एक बड़ी मोटी रकम लोन के रूप में ले ली थी, जिसकी मासिक किस्तें चुकाने का भरोसा असित मित्तल ने उन्हें दिया था । असित मित्तल ने किंतु अपना भरोसा पूरा नहीं किया और उक्त रकम हड़प ली तथा मासिक किस्तें चुकाने का बोझ रवि चौधरी के सिर पर थोप दिया । रवि चौधरी रोना रोते हैं कि असित मित्तल ने उन्हें ऐसा बुरा फँसाया है कि उनके ऊपर हर महीने ईएमआई के रूप में एक मोटी रकम का जुगाड़ करने का बोझ आ पड़ा है, जिसमें असफल होने पर उन्हें असित मित्तल के साथ ही जेल की हवा खानी पड़ सकती है । उल्लेखनीय है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर असित मित्तल पैसों की घपलेबाजी के कारण पिछले कई महीनों से जेल में हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने के चक्कर में कॉन्करेंस जुटाने में लगे रवि चौधरी जिस तरह इस किस्से को सुना/बता रहे हैं, उससे लग रहा है कि इस किस्से के जरिये वह लोगों के बीच अपने लिए हमदर्दी पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि इस हमदर्दी से उन्हें कॉन्करेंस मिल जायेंगी ।
लेकिन हमदर्दी जुटाने का उनका यह फार्मूला उलटा ही असर करता हुआ दिख रहा है । रवि चौधरी को मुश्किल में फँसा 'देख' कर लोगों को उनके प्रति हमदर्दी तो हो रही है; किंतु उनका कहना है कि इन मुश्किलों के बीच रवि चौधरी गवर्नरी के चक्कर में क्यों पड़े हैं और उन्हें अपना सारा ध्यान अपने को इस मुसीबत से बचाने/निकालने में लगाना चाहिए । कुछेक लोगों का कहना है कि रवि चौधरी इस किस्से में भी आधा सच बता रहे हैं और सही बात को छिपा रहे हैं । ऐसे लोगों के अनुसार, उन्होंने असित मित्तल के साथ दोस्ती निभाने के लिए नहीं बल्कि असित मित्तल से मिले एक लालच भरे ऑफर के चलते उक्त लोन लिया था । असित मित्तल ने उन्हें पट्टी पढ़ाई थी कि उन्हें बैंक को कुल जितना ब्याज देना होगा, वह उन्हें उससे कई गुना ज्यादा ब्याज देंगे; घर बैठे मुफ्त में पैसा मिलने वाले असित मित्तल के इस ऑफर से आकर्षित होकर रवि चौधरी ने उक्त लोन लिया था - योजना फेल हो जाने कारण रवि चौधरी लेकिन मुश्किल में फँस गए । यानि वह जिस मुसीबत में फँसे हैं उसमें अपने दोस्त असित मित्तल की बेईमानी और अपने खुद के लालच के कारण फँसे हैं - जिसके लिए वह लोगों की हमदर्दी पाने का प्रयास कर रहे हैं । 
रवि चौधरी के इस प्रयास पर लोगों का कहना लेकिन यह है कि रवि चौधरी जब ऐसी आफत में हैं तो वह डिस्ट्रिक्ट व रोटरी को क्या 'दे' पायेंगे और रोटरी में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कैसे कर पायेंगे ? इससे भी बड़ा डर लोगों को यह है कि रवि चौधरी द्धारा खुद ही व्यक्त की जा रही आशंका यदि सच साबित हो गई कि ईएमआई न चुका पाने के कारण यदि उन्हें जेल जाना पड़ गया तो डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की कितनी बदनामी होगी ? रवि चौधरी के दोस्त और उनके बड़े खैरख्वाह रहे पूर्व गवर्नर असित मित्तल के जेल में होने के कारण डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की पहले ही बहुत बदनामी हो चुकी है । लोगों के बीच इस तरह की चर्चाओं के चलते कॉन्करेंस जुटाने की रवि चौधरी की मुहिम को तगड़ा झटका लगता दिख रहा है । रवि चौधरी के समर्थक समझे जाने वाले कुछेक लोगों ने इस तथ्य को रेखांकित भी किया है कि लोगों के बीच इस तरह की चर्चाओं को सुन कर रवि चौधरी के कई संभावित समर्थकों ने उनके समर्थन से पीछे हटना शुरू कर दिया है । ऐसे लोगों का कहना है कि बेशक रवि चौधरी के साथ उनकी अच्छी दोस्ती है, लेकिन दोस्ती के चक्कर में वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहेंगे जिससे कि रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का नाम खराब होता हो ।
रवि चौधरी का कॉन्करेंस जुटाने के लिए चला गया यह हमदर्दी-कार्ड दूसरों को भले ही पिटता हुआ लग रहा हो, लेकिन खुद रवि चौधरी को अब शायद इसी का भरोसा रह गया है । दरअसल समर्थन जुटाने के उनके सारे हथकंडे पहले संजय खन्ना के साथ हुए चुनाव में और फिर अभी सरोज जोशी के मुकाबले नोमीनेटिंग कमेटी में फेल साबित हो चुके हैं; इसलिए उन्हें लग रहा है कि उनके पास अब बस यही एक आखिरी हथियार है । इसलिए वह इसे भी इस्तेमाल कर लेना चाहते हैं । इसका इस्तेमाल रवि चौधरी के सचमुच काम आ सकेगा क्या - यह देखना दिलचस्प होगा ।

Saturday, February 7, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में सीओएल के लिए ललित मोहन गुप्ता की जीत के साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी ने मुश्किलों और चौतरफा घेराबंदियों के बावजूद डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द बनाने तथा पिछले रोटरी वर्ष में मिली बदनामी के दाग को धोने/पोंछने में सफलता प्राप्त की

मेरठ । सीओएल के लिए दोबारा हुए चुनाव में ललित मोहन गुप्ता की जीत के बाद - मजेदार सीन यह बना है कि लोग बधाई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी को दे रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोग इस बात से ज्यादा खुश दिख रहे हैं कि संजीव रस्तोगी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द बनाने का प्रयास किया और उसमें कामयाब रहे । संजीव रस्तोगी के प्रयासों का ही नतीजा है कि डिस्ट्रिक्ट में इस वर्ष चुनावी बदमजगी जरा भी नहीं फैली तथा जो भी चुनाव - और चुनावी झगड़े थे, वह सब बिना किसी हील-हुज्जत के निपट गए हैं । संजीव रस्तोगी की यह उपलब्धि इसलिए और बड़ी है, क्योंकि उन्हें अपने गवर्नर-काल के झगड़ों-टंटों से तो निपटना ही था, साथ ही उन्हें विरासत में पिछले रोटरी वर्ष के झगड़ों को निपटाने का काम भी मिला था । पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल ने जिस तरह डिस्ट्रिक्ट को तथा रोटरी को शर्मसार किया था, और जिनकी कारस्तानियों के चलते न सिर्फ डिस्ट्रिक्ट का माहौल खराब हुआ बल्कि रोटरी समुदाय में डिस्ट्रिक्ट 3100 की भारी बदनामी हुई - उसके बाद डिस्ट्रिक्ट को पटरी पर लाना संजीव रस्तोगी के लिए बड़ी चुनौती थी । सीओएल के चुनाव को शांतिपूर्ण तरीके से निपटा कर संजीव रस्तोगी ने उक्त चुनौती को सफलता पूर्वक अंजाम तक पहुँचाया है - और इसीलिए लोगों को ललित मोहन गुप्ता की जीत के मुकाबले संजीव रस्तोगी की 'जीत' ज्यादा बड़ी लग रही है ।
सीओएल का चुनाव कराना संजीव रस्तोगी के लिए भारी मुसीबत बना हुआ था । यह चुनाव कराने की मुसीबत उन्हें विरासत में मिली थी । सीओएल का यह चुनाव दरअसल पिछले रोटरी वर्ष में, राकेश सिंघल की गवर्नरी में हुआ था और राकेश सिंघल ने इसमें बेईमानीपूर्ण तरीके से योगेश मोहन गुप्ता को जितवा दिया था । ललित मोहन गुप्ता ने रोटरी इंटरनेशनल में राकेश सिंघल और योगेश मोहन गुप्ता की कारस्तानियों की शिकायत की, जिसे रोटरी इंटरनेशनल ने सही पाया और योगेश मोहन गुप्ता की जीत को निरस्त कर दिया । सिर्फ इतना ही नहीं, योगेश मोहन गुप्ता के लिए ऐसा माहौल बना दिया गया कि उन्होंने सीओएल के लिए दोबारा होने वाले चुनाव से बाहर रहने में ही अपनी भलाई समझी । योगेश मोहन गुप्ता के मुकाबले से बाहर होने से ललित मोहन गुप्ता को जो राहत मिली, वह राहत लेकिन वागीश स्वरूप ने छीन ली । सीओएल के लिए अचानक से प्रकट हुई अखिलेश सरन कोठीवाल की उम्मीदवारी ने ललित मोहन गुप्ता की मुश्किलों को और बढ़ा दिया ।
ललित मोहन गुप्ता से भी ज्यादा लेकिन संजीव रस्तोगी की मुश्किलें बढ़ीं । सीओएल के चुनाव के चक्कर में हालात धीरे धीरे पिछले वर्ष जैसी स्थितियों में पहुँचते दिख रहे थे । दरअसल सीओएल के चुनाव की आड़ में बृज भूषण और योगेश मोहन गुप्ता जैसे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी से बदला लेने की फिराक में जुट गए थे, तो कुछेक अन्य लोगों को भी सीओएल का चुनाव संजीव रस्तोगी से निपटने के मौके के रूप में दिख रहा था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में संजीव रस्तोगी ने गर्मी-सर्दी दिखा कर जो सहमति बनाई और जिसके कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुनील गुप्ता को संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा, उसकी प्रतिक्रिया में सुनील गुप्ता भी उन लोगों के साथ खड़े दिखाई देने लगे जो संजीव रस्तोगी को फँसाना और बदनाम करने/कराने के खेल में लगे हुए थे । कई लोग इस बात से भी चिढ़े बैठे थे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए संजीव रस्तोगी ने आम सहमति बना लेने में सफलता प्राप्त कर ली थी और इस सफलता से डिस्ट्रिक्ट में और रोटरी में अपना कद ऊँचा कर लिया था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में तो संजीव रस्तोगी ने अपने प्रयत्नों से आम सहमति बना ली थी, लेकिन सीओएल के चुनाव में आम सहमति बनाना उनके लिए मेढ़कों को तोलने जैसा मुसीबतभरा काम साबित हो रहा था ।
संजीव रस्तोगी ने लेकिन अपने प्रयासों में कोई ढील नहीं छोड़ी । सीओएल के लिए आम सहमति बनाने के लिए एक तरफ तो उन्होंने पूर्व गवर्नर्स की गरिमा और प्रतिष्ठा का वास्ता दिया, और दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी कड़क व्यवस्था का संकेत देते हुए स्पष्ट कर दिया कि कोई भी उम्मीदवार कैम्पेन करता हुआ पाया गया तो वह उसकी उम्मीदवारी को निरस्त कर देंगे । संजीव रस्तोगी का सुझाव रहा कि सीओएल का चुनाव कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में ही हो जाना चाहिए और यहाँ हुए फैसले को सभी को स्वीकार कर लेना चाहिए । कभी गर्म तो कभी नर्म तेवर दिखा कर संजीव रस्तोगी ने सीओएल के चुनाव को कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में करवा लेने पर सभी उम्मीदवारों को अंततः राजी कर लिया । इस राजीनामे के बावजूद सीओएल के चुनाव में जो घमासान मचा, उसे देख कर कई बार यह आशंका भी उठी कि उक्त राजीनामा बना भी रह सकेगा या नहीं ? किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के 'रूप' में संजीव रस्तोगी ने पहले से ही ऐसी पक्की व्यवस्था कर ली कि उक्त राजीनामा किसी भी तरह से बाधित न हो सके ।
सीओएल के लिए दोबारा हुए चुनाव में कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में जो घमासान मचा, वह पहले कभी देखने में नहीं आया । जो पूर्व गवर्नर पिछले कई कई वर्षों से लोगों को नहीं दिखे हैं, वह भी इस चुनाव में वोट डालने आये । विष्णु सरन भार्गव घायल होने तथा उठने-बैठने की मुश्किलों के बावजूद वोट देने आये । वागीश स्वरूप ने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में अच्छी फील्डिंग सजाई थी और उनके कुछेक समर्थक खासे आक्रामक तरीके से उनका कैम्पेन चलाये हुए थे । दूसरी तरफ, ललित मोहन गुप्ता ने बड़ा काम यह किया कि पिछले दिनों दीपक बाबू के साथ निकटता दिखाने के चक्कर में दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों के साथ उनकी जो खटपट हो गई थी, उन्होंने उसे दूर कर लिया - जिसके बाद उनकी तरफ से मोर्चाबंदी सँभाली नीरज अग्रवाल ने । नीरज अग्रवाल का वागीश स्वरूप के साथ कुछ पुराना लफड़ा है, जिसका हिसाब नीरज अग्रवाल ने इस चुनाव में चुकता किया । यह चुनाव सिर्फ वागीश स्वरूप और ललित मोहन गुप्ता के बीच ही नहीं हो रहा था; जैसा कि पहले कहा गया है कि इस चुनाव के जरिये कुछेक लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी से निपटने की फिराक में थे और इस कारण से भी वागीश स्वरूप और ललित मोहन गुप्ता के समर्थकों व विरोधियों के बीच अदला-बदली हुई और नए नए समीकरण बने । खासी अनिश्चितता से परिपूर्ण घमासान तरीके से हुए इस चुनाव में ललित मोहन गुप्ता को एक वोट से जीत मिली तो अधिकतर लोगों ने संतोष व्यक्त किया कि ललित मोहन गुप्ता ने इस चुनाव को लेकर पिछले वर्ष से लगातार जो मेहनत की और जो मुश्किल लड़ाई लड़ी अंततः उन्हें उसका फल मिला ।
ललित मोहन गुप्ता को तो फल मिला ही, संजीव रस्तोगी को ज्यादा बड़ा फल मिला । दो दिन पहले तक कोई भी उम्मीद नहीं कर रहा था कि सीओएल का चुनाव आराम से हो सकेगा । संजीव रस्तोगी के इसी वर्ष अभी हाल तक बने 'दुश्मन' सीओएल के चुनाव के जरिये संजीव रस्तोगी को लपेटने की कोशिश कर रहे थे । संजीव रस्तोगी ने लेकिन दृढ़ता से और खासी होशियारी से काम किया और एक मुश्किल दिख रहे काम को अंततः अंजाम तक पहुँचा दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में संजीव रस्तोगी का कार्यकाल खासा चुनौतीपूर्ण रहा है । योगेश मोहन गुप्ता, बृज भूषण, राकेश रस्तोगी आदि जिन लोगों के भरोसे उन्होंने अपने गवर्नर-काल को चलाने की तैयारी की थी, उनकी तरफ से मदद मिलने की बजाये उन्हें कदम कदम पर काँटे ही बिछे मिले - जिस कारण से बारी बारी से उन्हें इन लोगों को पदमुक्त करना पड़ा । बृज भूषण के साथ तो उनकी खासी गर्मागर्मी भी हुई । इस सबके चलते कई बार ऐसा लगा/दिखा जैसे कि डिस्ट्रिक्ट में संजीव रस्तोगी अकेले पड़ गए हैं । इतनी सब मुश्किलों और घेराबंदियों के बावजूद संजीव रस्तोगी ने डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह से सौहार्द बनाने में सफलता प्राप्त की तथा पिछले रोटरी वर्ष में मिली बदनामी के दाग को धोने/पोंछने का जो काम किया है, उससे डिस्ट्रिक्ट में और रोटरी समुदाय में वह बधाई के पात्र बने हैं ।

Tuesday, February 3, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की तीसरी कैबिनेट मीटिंग में सुनील जैन की बेवकूफी और अनीता गुप्ता की बदतमीजी से जो माहौल बना, उसमें हस्तक्षेप करके अरुण मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का सारा गणित ही बदल दिया और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय सिंघल का रास्ता पूरी तरह साफ बना दिया

देहरादून । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन की गंगोह में आयोजित हुई तीसरी डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट मीटिंग में जैसी जो फजीहत हुई, उसे देख/जान कर लोगों ने समझ लिया है कि जब तक अनीता गुप्ता का संग-साथ है, तब तक सुनील जैन को दुश्मनों की जरूरत नहीं पड़ेगी । दुश्मन लोग प्रायः जो करना चाहते हैं, जो करने की कोशिश करते हैं, जो करने के लिए माहौल बनाते हैं - वह सब अनीता गुप्ता अकेले ही कर लेंगी । सुनील जैन बेचारे की किस्मत ऐसी है कि एक अकेली अनीता गुप्ता ही उनकी तथाकथित ख़ैरख्वाह हैं । सुनील जैन दावा तो करते रहे हैं कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट के 20 पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का समर्थन प्राप्त है - लेकिन 'मौके' पर देखा/पाया गया कि एक अकेली अनीता गुप्ता ही उनके 'साथ' थीं; और उनके संग-साथ के चलते सुनील जैन को भारी फजीहत का सामना करना पड़ा । 'अनीता गुप्ता हाय हाय' के साथ साथ 'सुनील जैन हाय हाय' के नारों के बीच कैबिनेट मीटिंग में जो माहौल बना, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन को जैसे दिन में तारे दिखा दिए ।
इस माहौल के बनने का जो दिलचस्प नतीजा निकला, वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए तैयार किए गए सुनील जैन के उम्मीदवार एपीएस कपूर की तुरत-प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया । कैबिनेट मीटिंग में जो नजारा बना, उसे देख एपीएस कपूर तुरंत से 'अपना कैम्प' छोड़ कर सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे उम्मीदवार अजय सिंघल के कैम्प में आ गए और वहाँ उन्होंने साफ शब्दों में अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने की घोषणा कर दी । एपीएस कपूर ने अजय सिंघल के कैम्प में मौजूद लोगों से साफ कहा कि वह गवर्नर तो बनना चाहते हैं लेकिन ऐसी जल्दी में नहीं हैं कि उन्हें इसी वर्ष गवर्नर बनना है । वहाँ उन्होंने जिस तरह से सुनील जैन को कोसा और कैबिनेट मीटिंग के नाम पर उनसे पचास हजार रुपये फालतू में खर्च करवाने का रोना रोया, उससे यह साफ हो गया कि उन्हें भी सुनील जैन और अनीता गुप्ता की असलियत समझ में आ गई है, और अब वह उनके झाँसे में नहीं बने रह सकेंगे । एपीएस कपूर ने लोगों के बीच प्रमुखता के साथ यह शिकायत की कि डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट मीटिंग के आयोजन का खर्चा तो सुनील जैन ने उनसे करवा लिया लेकिन उन्हें उसके बदले में उन्हें कोई फायदा नहीं दिया/दिलवाया ।
मजे की बात दरअसल यही रही कि गंगोह में डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट मीटिंग करने के लिए सुनील जैन ने डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों को भी यही संदेश दिया और एपीएस कपूर को भी यही समझाया कि इसके जरिए एपीएस कपूर को अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने का अवसर मिलेगा । यही कारण रहा कि सुनील जैन ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे उम्मीदवार अजय सिंघल को मीटिंग स्थल पर अपना कैम्प लगाने की अनुमति नहीं दी । सुनील जैन से अनुमति न मिलने के कारण अजय सिंघल को मीटिंग स्थल के पड़ोस की जगह पर अपना कैम्प लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा । सुनील जैन ने डिस्ट्रिक्ट के कैम्प को एपीएस कपूर का कैम्प बना दिया था । सुनील जैन द्धारा की गई इतनी सब तैयारी के बावजूद एपीएस कपूर ने अपने आप को ठगा हुआ पाया और मीटिंग खत्म खत्म होते होते उन्होंने अजय सिंघल के कैम्प के लोगों के सामने समर्पण कर दिया ।
डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट मीटिंग में जो हुआ, सुनील जैन के नजदीकियों ने उसके लिए अनीता गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया है । सुनील जैन के नजदीकियों का कहना है कि अनीता गुप्ता यदि लोगों के साथ बदतमीजी न करतीं तो इतना बबाल न होता । उल्लेखनीय है कि कैबिनेट मीटिंग शुरू होने के समय सुनील जैन का पलड़ा भारी दिख रहा था । विरोधी खेमे की तरफ से एक अकेले अरुण मित्तल मीटिंग में मौजूद थे । मीटिंग में उपस्थित हुई कुञ्ज बिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जोड़ी को सुनील जैन के साथ ही देखा/पहचाना जा रहा था । उनके अलावा सुनील जैन की परम ख़ैरख्वाह अनीता गुप्ता तो वहाँ थी हीं । यह स्थिति पूरी तरह सुनील जैन के अनुकूल थी । लेकिन यह अनुकूल स्थिति तब थोड़ा प्रतिकूल होना शुरू हुई जब डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की जगह व तारीख को लेकर सवाल शुरू हुए । सुनील जैन ने प्रयास किया कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की जगह व तारीख का चयन करने का अधिकार उन्हें दे दिया जाये, जिसे वह बाद में तय कर लेंगे । कैबिनेट के सदस्यों ने नियमों का हवाला देते हुए दावा किया कि यह बातें तो कैबिनेट मीटिंग में तय होंगी ।
मीटिंग में उपस्थित डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ सदस्यों का मानना और कहना है कि सुनील जैन मामले को ठीक तरीके से हैंडल नहीं कर पाये । उनका कहना रहा कि पिछले वर्षों में कैबिनेट जगह और तारीख तय करने का अधिकार गवर्नर को देती रही है, लेकिन यह तब तब हुआ जब जब गवर्नर कैबिनेट सदस्यों का विश्वास जीतने में सफल रहा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील जैन अपनी ही कैबिनेट के सदस्यों का विश्वास जीतने में चूँकि बुरी तरह विफल रहे हैं, और उन्होंने अपनी हरकतों से अपनी भूमिका को संदेहास्पद बना लिया है - इसलिए कैबिनेट के सदस्य डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की जगह व तारीख तय करने का अधिकार उन्हें देने को राजी नहीं हुए । सुनील जैन एक तरफ तो अपनी ही कैबिनेट के सदस्यों के बीच विश्वास नहीं बना सके, और दूसरी तरफ पूर्व गवर्नर्स में से भी किसी को अपनी वकालत के लिए तैयार नहीं कर सके । सुनील जैन ने अपने रवैये और व्यवहार से उन कुञ्ज बिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल को भी नाराज कर दिया, जिन्हें उनके संभावित समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । सुनील जैन को चारों तरफ से घिरा देख कर अनीता गुप्ता उनकी मदद के लिए आगे बढ़ीं, लेकिन उन्होंने निहायत बदतमीजीपूर्ण तरीके से मामले को सँभालने की जो कोशिश की उससे मामला सँभलने की बजाये बिगड़ और गया ।
अनीता गुप्ता के रवैये से मामला जब बिगड़ा, तब मीटिंग में मुकेश गोयल खेमे का अकेले प्रतिनिधित्व कर रहे अरुण मित्तल ने हस्तक्षेप किया और स्थिति का नियंत्रण अपने हाथ में लेते हुए बाजी न सिर्फ पूरी तरह पलट दी, बल्कि बाजी पर पूरी तरह कब्जा भी कर लिया । दरअसल अनीता गुप्ता ने कैबिनेट सदस्यों के साथ जब बदतमीजी करना शुरू किया और उनके इस रवैये से लोग भड़के तब अरुण मित्तल ने हस्तक्षेप करके कैबिनेट सदस्यों का पक्ष लिया । अनीता गुप्ता ने तब अपनी तुनकमिजाजी में सवाल और बात कर रहे कैबिनेट सदस्यों को बाहर जाने का फरमान सुना दिया, जिससे माहौल और गर्म हो उठा । इस गर्म माहौल पर अरुण मित्तल ने तत्काल सीधी चोट की और कैबिनेट मीटिंग का बहिष्कार करने का आह्वान किया । माहौल गर्म था ही, अरुण मित्तल के आह्वान ने उसमें और करंट पैदा कर दिया - जिसका नतीजा यह हुआ कि मीटिंग में मौजूद सभी लोग तुरंत उठ खड़े हुए और हाय हाय के नारे लगाते हुए बाहर निकलने लगे । 'अनीता गुप्ता हाय हाय', 'सुनील जैन हाय हाय' के नारे सुन कर कुञ्ज बिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल के लिए भी वहाँ बैठे रह पाना मुश्किल हुआ और वह भी उठ कर बाहर चले आये । बाहर आये लोग अजय सिंघल के कैम्प में इकठ्ठा हुए ।
एपीएस कपूर ने जब यह नजारा देखा, तो वह भी 'अपना' कैम्प छोड़ कर अजय सिंघल के कैम्प में आ गए । इस तरह सुनील जैन ने अपनी बेवकूफी और अनीता गुप्ता ने अपनी बदतमीजी से जो माहौल बनाया, उसमें अरुण मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का सारा गणित ही बदल दिया और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय सिंघल का रास्ता पूरी तरह साफ बना दिया । कुछेक लोगों को हालाँकि लगता है कि सुनील जैन मानेंगे नहीं और कोई न कोई उम्मीदवार जरूर लायेंगे; किंतु तीसरी कैबिनेट मीटिंग में सुनील जैन का जो हाल हुआ है और अच्छी भली पकड़ में आया उम्मीदवार जिस तरह उनके चंगुल से निकल भागा है, उसे देखते हुए अब कोई और चुनावी बलि का बकरा बनने को तैयार होगा - इसे लेकर संदेह है ।

Monday, February 2, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर को सबक सिखाने की पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता और भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की कार्रवाई के चलते रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में वर्ष 2016-17 के लिए दीपक बाबू की गवर्नरी को हरी झंडी मिली

मुरादाबाद । दीपक बाबू और उनके समर्थक खुशी खुशी लोगों को बता रहे हैं कि सुशील गुप्ता और मनोज देसाई ने मिलकर पीटी प्रभाकर की बैंड बजा दी है और दीपक बाबू को वर्ष 2016-17 के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी दिलवा दी है । इस संबंध में औपचारिक घोषणा हालाँकि अभी इन पँक्तियों के लिखे जाने तक नहीं हुई है, लेकिन दीपक बाबू और उनके नजदीकियों का कहना है कि बस किसी भी समय उक्त फैसला सुनाया जा सकता है ।
दीपक बाबू और उनके नजदीकियों व समर्थकों का यह दावा यदि सच है तो यह पीटी प्रभाकर के लिए सचमुच एक बड़ा झटका है । पीटी प्रभाकर इंटरनेशनल डायरेक्टर हैं और अपने आप को अगले रोटरी वर्ष में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे केआर रवींद्रन के बहुत नजदीक बताते/जताते हैं । पीटी प्रभाकर ने 9 जनवरी को दिल्ली में डिस्ट्रिक्ट 3100 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ हुई मीटिंग में स्पष्ट रूप से घोषणा की थी कि वह दीपक बाबू की अपील पर इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग में दीपक बाबू के पक्ष में फैसला नहीं होने देंगे । पीटी प्रभाकर ने उक्त मीटिंग में दीपक बाबू और उनके ख़ैरख्वाह पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे राकेश सिंघल की जमकर खिंचाई की थी । उक्त मीटिंग में राकेश सिंघल और दीपक बाबू के प्रति पीटी प्रभाकर का रवैया बहुत ही कठोर और अपमानजनक तो था ही; पीटी प्रभाकर ने मीटिंग में मौजूद लोगों के सामने साफ साफ यह कहने/बताने में भी कोई संकोच नहीं किया कि इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग में वह भी तो होंगे और वह देखेंगे कि वहाँ दीपक बाबू तथा राकेश सिंघल को कौन बचाता है ?
दीपक बाबू और उनके समर्थकों व नजदीकियों के दावे पर विश्वास करें तो पीटी प्रभाकर के इस खुले और दो-टूक रवैये के बावजूद दीपक बाबू की गवर्नरी को हरी झंडी मिल गई है और इसकी औपचारिक घोषणा किसी भी पल सुनी जा सकेगी ।
डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह सब एक चमत्कार की तरह लग रहा है । 9 जनवरी की दिल्ली की मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट के कमोबेश सभी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स थे और सभी ने पीटी प्रभाकर के तेवर देखे थे । पीटी प्रभाकर के तेवरों को देख कर हर कोई यही मान रहा था कि दीपक बाबू को तो अब कोई नहीं बचा सकता और इसी बिना पर डिस्ट्रिक्ट में वर्ष 2016-17 के गवर्नर के लिए दोबारा होने वाले चुनाव की तैयारियाँ भी शुरू हो गईं थीं । लेकिन इस बीच पर्दे के पीछे जो खेल चला, उसमें सारी कहानी ही बदल गई और अपने आप को आने वाले प्रेसीडेंट का नजदीकी बताने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर के लिए भारी फजीहत का मौका बना ।
डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोगों का कहना है कि दीपक बाबू ने जैसे पैसे खिला कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीत लिया था, वैसे ही मोटी रकम खर्च करके एक खिलाफ होते फैसले को अपने पक्ष में करा लिया है; कुछेक अन्य लोगों का विश्वास है कि दीपक बाबू ने यह सेटिंग पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू के जरिये की - दीपक बाबू के कुछेक नजदीकियों के राजा साबू से अच्छे संबंध हैं और उन्हीं संबंधों का इस्तेमाल करते हुए राजा साबू की मदद ली गई । दीपक बाबू के नजदीकी लेकिन इस चमत्कार के पीछे सुशील गुप्ता और मनोज देसाई की जुगलबंदी को जिम्मेदार मान रहे हैं । सुशील गुप्ता पूर्व और मनोज देसाई भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर हैं । दीपक बाबू के नजदीकियों का कहना है कि 9 जनवरी की मीटिंग में पीटी प्रभाकर ने जिस तरह से हस्तक्षेप किया और डिस्ट्रिक्ट 3100 के पूर्व गवर्नर्स के सामने सुशील गुप्ता को नीचा दिखाया उससे सुशील गुप्ता ने खुद को अपमानित महसूस किया और तभी उन्होंने पीटी प्रभाकर को उनकी 'औकात' दिखाने का निश्चय कर लिया । पीटी प्रभाकर से बदला लेने की सुशील गुप्ता की कार्रवाई दीपक बाबू के लिए वरदान बन गई ।
उल्लेखनीय है कि 9 जनवरी को दिल्ली में हुई मीटिंग को सुशील गुप्ता ने अपनी पहल करके बुलाया था । पीटी प्रभाकर को उक्त मीटिंग की जानकारी मिली तो वह उसमें जबरदस्ती 'घुस' आये थे । पीटी प्रभाकर दरअसल जयपुर जाने के रास्ते में उस दिन दिल्ली में थे, सो वह सुशील गुप्ता द्धारा बुलाई गई मीटिंग में 'मान न मान मैं तेरा मेहमान' वाली अदा के साथ जा पहुँचे । पीटी प्रभाकर की इस 'अदा' ने सुशील गुप्ता का सारा एजेंडा ही खराब कर दिया । सुशील गुप्ता ने उक्त मीटिंग अपनी चौधराहट जमाने/दिखाने के लिए बुलाई थी, लेकिन मीटिंग में चौधराहट दिखाई पीटी प्रभाकर ने । सुशील गुप्ता द्धारा बुलाई गई मीटिंग को पीटी प्रभाकर ने इस तरह से हाईजैक कर लिया था और ऐसा माहौल बना दिया था कि सुशील गुप्ता तो वहाँ एक्स्ट्रा ऑर्टिस्ट की तरह नजर आ रहे थे । जाहिर है कि सुशील गुप्ता का सारा प्लान तो चौपट हो ही गया था, डिस्ट्रिक्ट 3100 के पूर्व गवर्नर्स के सामने उनकी भारी किरकिरी भी हुई । दीपक बाबू के नजदीकियों का कहना है कि पीटी प्रभाकर की इस हरकत से अपने आप को अपमानित महसूस करते हुए सुशील गुप्ता ने तभी पीटी प्रभाकर को सबक सिखाने का निश्चय किया ।
अपने निश्चय को पूरा करने के लिए सुशील गुप्ता ने पहले तो मनोज देसाई को विश्वास में लिया । पीटी प्रभाकर की हरकतों से मनोज देसाई भी चूँकि दुखी हैं, इसलिए उन्होंने सुशील गुप्ता की योजना में सहयोग करने में कोई हिचक नहीं दिखाई । इन दोनों की जोड़ी ने पीटी प्रभाकर से खफा रहने वाले रोटरी इंटरनेशनल के अन्य पदाधिकारियों से भी तार जोड़े और डिस्ट्रिक्ट 3100 से आई दीपक बाबू की अपील के मामले को लेकर ऐसा ताना-बाना बुना कि पीटी प्रभाकर के हाथ-पैर बुरी तरह से बाँध दिए और उन्हें कुछ करने लायक ही नहीं छोड़ा । दीपक बाबू और उनके नजदीकी लोगों को बता रहे हैं कि पीटी प्रभाकर ने 9 जनवरी की मीटिंग में दीपक बाबू के लिए जो जो कहा था, फैसला ठीक उसका उलटा हुआ है । दीपक बाबू और उनके नजदीकी मजे ले ले लोगों को बता रहे हैं कि उनके मामले में पीटी प्रभाकर की जैसी फजीहत हुई है, वैसी इससे पहले किसी इंटरनेशनल डायरेक्टर की नहीं हुई है ।
पीटी प्रभाकर को सबक सिखाने की सुशील गुप्ता और मनोज देसाई की कार्रवाई में दीपक बाबू का काम बन गया लगता है । दीपक बाबू और उनके नजदीकी व समर्थक जब इतने भरोसे के साथ यह दावा कर रहे हैं, तो सच ही कर रहे होंगे । हालाँकि उनके इस दावे पर उनसे मिठाई माँगने वाले लोगों को वह अभी यही कह रहे हैं कि उक्त फैसला औपचारिक रूप से घोषित हो जाए, तब वह मिठाई भी खिलायेंगे ।
पीटी प्रभाकर की हरकत पीटी प्रभाकर के लिए ही उलटी पड़ी, और सुशील गुप्ता ने अपनी बेइज्जती का उनसे जो बदला लिया वह इस प्रसंग का सबसे रोमांचक व दिलचस्प पहलू है ।