मेरठ । सीओएल के लिए दोबारा हुए चुनाव में ललित मोहन गुप्ता की जीत के बाद - मजेदार सीन यह बना है कि लोग बधाई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी को दे रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट
में लोग इस बात से ज्यादा खुश दिख रहे हैं कि संजीव रस्तोगी ने
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द बनाने का प्रयास
किया और उसमें कामयाब रहे । संजीव रस्तोगी के प्रयासों का ही नतीजा है
कि डिस्ट्रिक्ट में इस वर्ष चुनावी बदमजगी जरा भी नहीं फैली तथा जो भी
चुनाव - और चुनावी झगड़े थे, वह सब बिना किसी हील-हुज्जत के निपट गए हैं ।
संजीव रस्तोगी की यह उपलब्धि इसलिए और बड़ी है, क्योंकि उन्हें अपने
गवर्नर-काल के झगड़ों-टंटों से तो निपटना ही था, साथ ही उन्हें विरासत में
पिछले रोटरी वर्ष के झगड़ों को निपटाने का काम भी मिला था । पिछले रोटरी
वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल ने जिस तरह
डिस्ट्रिक्ट को तथा रोटरी को शर्मसार किया था, और जिनकी कारस्तानियों के
चलते न सिर्फ डिस्ट्रिक्ट का माहौल खराब हुआ बल्कि रोटरी समुदाय में
डिस्ट्रिक्ट 3100 की भारी बदनामी हुई - उसके बाद डिस्ट्रिक्ट को पटरी पर
लाना संजीव रस्तोगी के लिए बड़ी चुनौती थी । सीओएल के चुनाव को
शांतिपूर्ण तरीके से निपटा कर संजीव रस्तोगी ने उक्त चुनौती को सफलता
पूर्वक अंजाम तक पहुँचाया है - और इसीलिए लोगों को ललित मोहन गुप्ता की जीत
के मुकाबले संजीव रस्तोगी की 'जीत' ज्यादा बड़ी लग रही है ।
सीओएल का चुनाव कराना संजीव रस्तोगी के लिए भारी मुसीबत बना हुआ था । यह
चुनाव कराने की मुसीबत उन्हें विरासत में मिली थी । सीओएल का यह चुनाव
दरअसल पिछले रोटरी वर्ष में, राकेश सिंघल की गवर्नरी में हुआ था और राकेश
सिंघल ने इसमें बेईमानीपूर्ण तरीके से योगेश मोहन गुप्ता को जितवा दिया था ।
ललित मोहन गुप्ता ने रोटरी इंटरनेशनल में राकेश सिंघल और योगेश मोहन
गुप्ता की कारस्तानियों की शिकायत की, जिसे रोटरी इंटरनेशनल ने सही पाया और
योगेश मोहन गुप्ता की जीत को निरस्त कर दिया । सिर्फ इतना ही नहीं, योगेश
मोहन गुप्ता के लिए ऐसा माहौल बना दिया गया कि उन्होंने सीओएल के लिए
दोबारा होने वाले चुनाव से बाहर रहने में ही अपनी भलाई समझी । योगेश मोहन गुप्ता के मुकाबले से बाहर होने से ललित मोहन गुप्ता को जो राहत मिली, वह राहत लेकिन वागीश स्वरूप ने छीन ली । सीओएल के लिए अचानक से प्रकट हुई अखिलेश सरन कोठीवाल की उम्मीदवारी ने ललित मोहन गुप्ता की मुश्किलों को और बढ़ा दिया ।
ललित मोहन गुप्ता से भी ज्यादा लेकिन संजीव रस्तोगी की मुश्किलें बढ़ीं । सीओएल के चुनाव के
चक्कर में हालात धीरे धीरे पिछले वर्ष जैसी स्थितियों में पहुँचते दिख रहे
थे । दरअसल सीओएल के चुनाव की आड़ में बृज भूषण और योगेश मोहन गुप्ता जैसे
पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी से बदला लेने की फिराक में जुट गए
थे, तो कुछेक अन्य लोगों को भी सीओएल का चुनाव संजीव रस्तोगी से निपटने के मौके के रूप में दिख रहा था ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में संजीव रस्तोगी ने गर्मी-सर्दी
दिखा कर जो सहमति बनाई और जिसके कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुनील
गुप्ता को संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन से पीछे हटने के लिए मजबूर
होना पड़ा, उसकी प्रतिक्रिया में सुनील गुप्ता भी उन लोगों के साथ खड़े
दिखाई देने लगे जो संजीव रस्तोगी को फँसाना और बदनाम करने/कराने के खेल में
लगे हुए थे । कई लोग इस बात से भी चिढ़े बैठे थे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए संजीव रस्तोगी ने आम सहमति बना लेने में सफलता प्राप्त कर ली थी और इस सफलता से डिस्ट्रिक्ट में और रोटरी में अपना कद ऊँचा कर लिया था ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में तो संजीव रस्तोगी ने अपने
प्रयत्नों से आम सहमति बना ली थी, लेकिन सीओएल के चुनाव में आम सहमति बनाना
उनके लिए मेढ़कों को तोलने जैसा मुसीबतभरा काम साबित हो रहा था ।
संजीव रस्तोगी ने लेकिन अपने प्रयासों में कोई ढील नहीं छोड़ी । सीओएल के लिए आम सहमति बनाने के लिए एक तरफ तो उन्होंने पूर्व गवर्नर्स की
गरिमा और प्रतिष्ठा का वास्ता दिया, और दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के
रूप में अपनी कड़क व्यवस्था का संकेत देते हुए स्पष्ट कर दिया कि कोई भी
उम्मीदवार कैम्पेन करता हुआ पाया गया तो वह उसकी उम्मीदवारी को निरस्त कर
देंगे । संजीव रस्तोगी का सुझाव रहा कि सीओएल का चुनाव कॉलिज ऑफ
गवर्नर्स में ही हो जाना चाहिए और यहाँ हुए फैसले को सभी को स्वीकार कर
लेना चाहिए । कभी गर्म तो कभी नर्म तेवर दिखा कर संजीव रस्तोगी ने सीओएल के
चुनाव को कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में करवा लेने पर सभी उम्मीदवारों को अंततः
राजी कर लिया । इस राजीनामे के बावजूद सीओएल के चुनाव में जो घमासान मचा, उसे देख कर कई बार यह आशंका भी उठी कि उक्त राजीनामा बना भी रह सकेगा या नहीं ? किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के 'रूप' में संजीव रस्तोगी ने पहले से ही ऐसी पक्की व्यवस्था कर ली कि उक्त राजीनामा किसी भी तरह से बाधित न हो सके ।
सीओएल
के लिए दोबारा हुए चुनाव में कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में जो घमासान मचा, वह
पहले कभी देखने में नहीं आया । जो पूर्व गवर्नर पिछले कई कई वर्षों से
लोगों को नहीं दिखे हैं, वह भी इस चुनाव में वोट डालने आये । विष्णु सरन
भार्गव घायल होने तथा उठने-बैठने की मुश्किलों के बावजूद वोट देने आये । वागीश
स्वरूप ने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में अच्छी फील्डिंग सजाई थी और उनके
कुछेक समर्थक खासे आक्रामक तरीके से उनका कैम्पेन चलाये हुए थे । दूसरी
तरफ, ललित मोहन गुप्ता ने बड़ा काम यह किया कि पिछले दिनों दीपक बाबू के साथ निकटता दिखाने के चक्कर में दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों के साथ उनकी जो खटपट हो गई थी, उन्होंने उसे दूर कर लिया - जिसके बाद उनकी तरफ से मोर्चाबंदी सँभाली नीरज अग्रवाल ने । नीरज अग्रवाल का वागीश स्वरूप के साथ कुछ पुराना
लफड़ा है, जिसका हिसाब नीरज अग्रवाल ने इस चुनाव में चुकता किया । यह चुनाव
सिर्फ वागीश स्वरूप और ललित मोहन गुप्ता के बीच ही नहीं हो रहा था; जैसा कि
पहले कहा गया है कि इस चुनाव के जरिये कुछेक लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव
रस्तोगी से निपटने की फिराक में थे और इस कारण से भी वागीश स्वरूप और ललित
मोहन गुप्ता के समर्थकों व विरोधियों के बीच अदला-बदली हुई और नए नए
समीकरण बने । खासी अनिश्चितता से परिपूर्ण घमासान तरीके से हुए इस चुनाव
में ललित मोहन गुप्ता को एक वोट से जीत मिली तो अधिकतर लोगों ने संतोष
व्यक्त किया कि ललित मोहन गुप्ता ने इस चुनाव को लेकर पिछले वर्ष से लगातार
जो मेहनत की और जो मुश्किल लड़ाई लड़ी अंततः उन्हें उसका फल मिला ।
ललित
मोहन गुप्ता को तो फल मिला ही, संजीव रस्तोगी को ज्यादा बड़ा फल मिला । दो
दिन पहले तक कोई भी उम्मीद नहीं कर रहा था कि सीओएल का चुनाव आराम से हो
सकेगा । संजीव रस्तोगी के इसी वर्ष अभी हाल तक बने 'दुश्मन' सीओएल के चुनाव के जरिये संजीव रस्तोगी को लपेटने की कोशिश कर रहे थे । संजीव रस्तोगी ने लेकिन दृढ़ता से और खासी होशियारी से काम किया और एक मुश्किल दिख रहे काम को अंततः अंजाम तक पहुँचा दिया ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में संजीव रस्तोगी का कार्यकाल खासा चुनौतीपूर्ण
रहा है । योगेश मोहन गुप्ता, बृज भूषण, राकेश रस्तोगी आदि जिन लोगों के
भरोसे उन्होंने अपने गवर्नर-काल को चलाने की तैयारी की थी, उनकी तरफ से मदद
मिलने की बजाये उन्हें कदम कदम पर काँटे ही बिछे मिले - जिस कारण से बारी
बारी से उन्हें इन लोगों को पदमुक्त करना पड़ा । बृज भूषण के साथ तो उनकी खासी गर्मागर्मी भी हुई । इस सबके चलते कई बार ऐसा लगा/दिखा जैसे कि डिस्ट्रिक्ट में संजीव रस्तोगी अकेले पड़ गए हैं ।
इतनी सब मुश्किलों और घेराबंदियों के बावजूद संजीव रस्तोगी ने डिस्ट्रिक्ट
में जिस तरह से सौहार्द बनाने में सफलता प्राप्त की तथा पिछले रोटरी वर्ष
में मिली बदनामी के दाग को धोने/पोंछने का जो काम किया है, उससे
डिस्ट्रिक्ट में और रोटरी समुदाय में वह बधाई के पात्र बने हैं ।