Thursday, April 28, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में इंटरनेशनल बोर्ड के निर्देश का पालन करने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला की कोशिश पर दीपक तलवार ने 'चोरी और सीनाजोरी' वाला रवैया दिखाया

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले पर अमल करने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला की तैयारी पर दिखाए दीपक तलवार के रवैये ने डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक माहौल को न सिर्फ और गर्मा दिया है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर मंगला की लाचारी व निरीहता को एक बार फिर सामने ला दिया है । उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल बोर्ड की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला को निर्देश मिला कि इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में भूमिका निभाने वाले जिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को उसके फैसले में नामित किया गया है, उन्हें वह आगे से ऐसा न करने की चेतावनी दें । इस निर्देश का पालन करते हुए सुधीर मंगला ने इंटरनेशनल बोर्ड द्वारा नामित तीनों पूर्व गवर्नर्स - दीपक तलवार, सुशील खुराना व विनोद बंसल को एक तय दिन/समय पर अपने ऑफिस में पहुँचने के लिए ईमेल लिखा । दीपक तलवार इससे भड़क गए और उन्होंने इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले को गलत बताते हुए सुधीर मंगला के ऑफिस पहुँचने से साफ इंकार कर दिया । इस पर सुधीर मंगला ने उन्हें ध्यान दिलाया कि वह जो कर रहे हैं, उसके लिए उन्हें रोटरी इंटरनेशनल से निर्देश मिला है - और एक रोटेरियन के रूप में उन्हें भी जिसका पालन करना चाहिए । इस पर दीपक तलवार ने उन्हें लंबी-चौड़ी मेल लिख मारी, जिसमें इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले को ब्यौरेवार तरीके से गलत ठहराते हुए उन्होंने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि वह सुधीर मंगला के ऑफिस नहीं पहुँचेंगे । डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोगों ने दीपक तलवार के इस तर्क को तो सही माना है कि इंटरनेशनल बोर्ड ने उन्हें तथा अन्य पूर्व गवर्नर्स को उचित प्रक्रिया अपनाए बिना जिस तरह से 'अपराधी' घोषित कर दिया है, वह गलत है; लेकिन दूसरे कई लोगों की तरह उनका भी मानना और कहना है कि रोटरी इंटरनेशनल के निर्देश के अनुसार काम करने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की बात तो दीपक तलवार को सुननी/माननी ही चाहिए । मजे की बात यह है कि सुशील खुराना और विनोद बंसल ने सुधीर मंगला का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है । उनका कहना है कि सुधीर मंगला रोटरी इंटरनेशनल के निर्देश का पालन रहे हैं, जिसे पूरा करने में हमें सहयोग करना ही चाहिए; इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले से हमारा जो विरोध है, उसे हम मान्य व उचित तरीके से इंटरनेशनल पदाधिकारियों के सामने रखेंगे ।
सुशील खुराना और विनोद बंसल के सहयोगात्मक रवैये को देखने के बाद तो हर किसी को दीपक तलवार का रवैया 'चोरी और सीनाजोरी' वाला लग रहा है । दीपक तलवार के लेकिन अपने तर्क हैं : उन्होंने इस झगड़े में आशीष घोष को भी लपेट लिया है । उनका कहना है कि सुधीर मंगला इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले की तो सिर्फ आड़ ले रहे हैं, वास्तव में वह आशीष घोष के इशारे पर काम कर रहे हैं । दीपक तलवार का तर्क है कि इंटरनेशनल बोर्ड का फैसला तो सुधीर मंगला के पास सात दिन पहले आ गया था; और उन्होंने तो इस फैसले को छिपा ही लिया था - लेकिन चार दिन बाद आशीष घोष ने जितेंद्र गुप्ता के जरिए इसे 'टॉक ऑफ द टाउन' बना दिया । दीपक तलवार का कहना है कि आशीष घोष ही सुधीर मंगला को भड़का कर उन्हें बेइज्जत कराना चाहते हैं, और वह आशीष घोष की इस योजना को सफल नहीं होने देंगे । आशीष घोष की इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन से चूँकि अच्छी ट्यूनिंग बताई/देखी जाती है, इसलिए कुछेक लोगों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के बारे में केआर रवींद्रन के पास जो फीडबैक है, वह उन्हें आशीष घोष से ही मिला होगा । दरअसल इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले में जो कुछ भी कहा गया है, वह पूरी पूरी तरह सच है - जो लोग इस फैसले पर सवाल उठा भी रहे हैं, उनका तर्क घूमफिर कर यही है कि जब कोई चुनावी शिकायत दर्ज नहीं हुई, तो फिर उसकी जाँच और सजा क्यों ? कई दूसरे लोग इस तर्क को एक अन्य तर्क से खारिज कर रहे हैं - कि किसी हत्या की यदि एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, तो इस बिना पर क्या हत्यारे को सजा नहीं होना चाहिए ? दरअसल इसी तरह की बातों के चलते डिस्ट्रिक्ट के लोगों को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक तलवार का रवैया 'चोरी और सीनाजोरी' वाला लग रहा है ।
सुशील खुराना और विनोद बंसल के रवैये ने दीपक तलवार की 'सीनाजोरी' को और बेनकाब कर दिया है । सुशील खुराना और विनोद बंसल के रवैये की तारीफ करते हुए लोगों का कहना है कि यह दोनों यदि इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले से दुखी और निराश होने के बावजूद रोटरी के दायरे में रहने के लिए तैयार हैं, तो दीपक तलवार अपने आप को रोटरी से ऊपर क्यों समझ रहे हैं ? कुछेक लोगों को हैरानी सुधीर मंगला के रवैये पर भी है : उनका कहना/पूछना है कि सुधीर मंगला आखिर किस मजबूरी में दीपक तलवार को 'सीनाजोरी' करने का मौका दे रहे हैं; और वह भी तब जबकि सुधीर मंगला ने तो रोटरी इंटरनेशनल के निर्देश पर ही उन्हें 'सम्मन' भेजा है । हैरान होने वाले इन लोगों का मानना/कहना है कि दीपक तलवार 'सीनाजोरी' दरअसल कर इसीलिए रहे हैं क्योंकि वह जानते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर मंगला के बस की कुछ करना है ही नहीं - और 'सीनाजोरी' वाले रवैये से वह लोगों को यह भी जता देंगे कि इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ।
दीपक तलवार के रवैये को देखते हुए कुछेक लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला को 'गर्म' करने के प्रयास भी करने लगे हैं : उनका कहना है कि मौका अच्छा है, इंटरनेशनल प्रेसीडेंट डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को लेकर बुरी तरह खफा हैं ही - ऐसे में सुधीर मंगला को डिस्ट्रिक्ट में लोगों को दिखा देना चाहिए कि उन्हें 'लल्लूलाल' न समझा जाए और वह कठोर फैसला कर सकते हैं । कठोर फैसले के रूप में इस वर्ष के चुनाव को रद्द कर देने का सुझाव सुधीर मंगला को दिया जा रहा है । यह सुझाव देने वालों का कहना है कि इंटरनेशनल बोर्ड तक ने जब यह मान लिया है कि इस वर्ष के चुनाव में रोटरी नियमों व दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ है और यह उल्लंघन सभी उम्मीदवारों ने किया है, तो इस बिना पर चुनाव रद्द हो ही सकता है । रही बात चुनावी शिकायत के न होने की - तो जब कोई शिकायत न होने के बावजूद इंटरनेशनल बोर्ड मामले पर विचार कर फैसला ले सकता है, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ऐसा क्यों नहीं कर सकता है ? और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पास अब तो इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले का आधार भी है । यह सुझाव देने वाले लोगों का कहना है कि ऐसा फैसला करके सुधीर मंगला जाते जाते डिस्ट्रिक्ट में अपनी धमक भी दिखा/जता देंगे, और दीपक तलवार की 'सीनाजोरी' का भी जबाव दे देंगे । यह सुझाव देने वाले लोगों को उम्मीद हालाँकि कम ही है कि सुधीर मंगला कठोर फैसला करने का साहस सचमुच दिखा पायेंगे, लेकिन फिर भी वह इसलिए प्रयास कर लेना चाहते हैं कि शायद सुधीर मंगला का हरियाणवी जोश निकल आए और वह दीपक तलवार की 'सीनाजोरी' का जबाव देने का मन बना ही लें, और कोई कठोर फैसला कर ही डालें ।
उम्मीद और नाउम्मीदी की इस उहापोह ने डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक माहौल का पारा तो खासा ऊँचा चढ़ा ही दिया है ।

Wednesday, April 27, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में पप्पू जीत सिंह सरना की कारस्तानियों को 'छिछोरापन' बता कर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने विनय भाटिया की जीत की चमक को धूल में मिला दिया है

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने अभी हाल ही की अपनी मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव से संबंधित तथाकथित शिकायत पर फैसले की जो जलेबी सी बनाई है, उसने डिस्ट्रिक्ट में हर किसी को निराश किया है । विनय भाटिया और उनके नजदीकियों का रोना है कि बोर्ड ने जब खुद ही माना है कि चुनाव को लेकर उसे कोई शिकायत नहीं मिली है, तब उसने एक ऐसा फैसला क्यों लिया है जिसमें विनय भाटिया की जीत को कलंकित करने का भाव नजर आता है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले दूसरे उम्मीदवारों व उनके समर्थकों का कहना है कि बोर्ड ने जब यह साफ साफ समझ और मान लिया है कि विनय भाटिया की जीत रोटरी इंटरनेशनल के नियमों व मार्ग-दर्शनों का उल्लंघन करके प्राप्त की गई है तब फिर उन्हें 'सजा' क्यों नहीं दी गई ? चुनाव संबंधी शिकायत न मिलने के 'तथ्य' को बोर्ड मीटिंग में स्वीकार करने तथा फैसले में उसे दर्ज करने की बात से रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड की कार्रवाई ही सवालों के घेरे में आ गई । हर किसी को इस बात पर हैरानी है कि चुनाव संबंधी जब कोई शिकायत हुई ही नहीं, तब फिर यह मामला बोर्ड मीटिंग में आया ही क्यों और कैसे ? उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के किन्हीं भी विवादों व झगड़ों के इंटरनेशनल बोर्ड तक पहुँचने की एक प्रक्रिया रोटरी में सुनिश्चित है, जिसका पालन करते हुए ही कोई मामला बोर्ड मीटिंग तक पहुँचता है । डिस्ट्रिक्ट 3011 के मामले में उक्त प्रक्रिया का किसी भी स्तर पर कोई पालन हुआ ही नहीं । मान लेते हैं कि इंटरनेशनल बोर्ड को खुद संज्ञान लेकर किसी मामले को अपने एजेंडे में शामिल करने का अधिकार है, और इसी अधिकार के तहत बोर्ड ने डिस्ट्रिक्ट 3011 के मामले पर विचार किया - तो सवाल है कि बोर्ड ने यदि डिस्ट्रिक्ट 3011 के मामले को इतना गंभीर समझा कि खुद से उसका संज्ञान लेकर उसे अपने एजेंडे में शामिल किया, तब फिर उस पर निर्णायक कार्रवाई करने से वह पीछे क्यों हट गया ?
जाहिर है कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के रवैये को लेकर सवाल बहुतेरे हैं, लेकिन जबाव किसी का नहीं है । इसलिए लगता है कि डिस्ट्रिक्ट 3011 के मामले को बोर्ड मीटिंग के एजेंडे में शामिल कर लेने तथा फिर उस पर फैसला लेने से पीछे हटने को लेकर इंटरनेशनल बोर्ड खुद किसी षड्यंत्रकारी 'राजनीति' का शिकार हो गया है । यह मानने का कारण डिस्ट्रिक्ट 3100 तथा डिस्ट्रिक्ट 3080 की घटनाओं के प्रति इंटरनेशनल बोर्ड के रवैये में ही छिपा है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के मामलों को लेकर भी कोई फॉर्मल शिकायत बोर्ड के पास नहीं पहुँची है, किंतु फिर भी उस डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में डालने तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट को उनके पद से हटाने जैसे कठोर फैसले लिए गए । इसके विपरीत डिस्ट्रिक्ट 3080 के मामलों में एक से अधिक बार फॉर्मल शिकायत हुईं हैं, किंतु उसके मामले को बोर्ड मीटिंग तक आने ही नहीं दिया गया । डिस्ट्रिक्ट 3080 पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू का डिस्ट्रिक्ट है, जहाँ उनकी शह पर होने वाली चुनावी धांधलियों का आलम यह है कि चुनावी प्रक्रिया को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को बार बार रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से लताड़ मिल रही है और पिछले रोटरी वर्ष में होने वाला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव अभी तक भी नहीं हो सका है - लेकिन फिर भी उस डिस्ट्रिक्ट के खिलाफ कार्रवाई व फैसला करना तो दूर की बात, इंटरनेशनल बोर्ड चर्चा तक करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है । इससे साबित होता है कि इंटरनेशनल बोर्ड में मनमाने तरीके से और राजनीतिक षड्यंत्रों से प्रेरित होकर ही फैसले होते हैं ।
डिस्ट्रिक्ट 3011 के प्रति इंटरनेशनल बोर्ड के रवैये के पीछे 'राजनीति' इसलिए भी देखी जा रही है, क्योंकि बोर्ड ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन द्वारा गठित की गई जिस कथित जाँच कमेटी की रिपोर्ट का हवाला दिया है, उस जाँच कमेटी के बारे में डिस्ट्रिक्ट में कोई कुछ जानता तक नहीं है । एक अकेले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एमएल बिदानी ने लोगों को बताया है कि उनके साथ गवर्नर रहे दक्षिण भारत के एक डिस्ट्रिक्ट के एक पूर्व गवर्नर का उनके पास फोन आया था और उन्होंने चुनाव से जुड़ी कुछ बातें उनसे पूछी थीं, जिन्हें उन्होंने साफ बता दिया था कि हमारे यहाँ ज्यादा राजनीति नहीं होती है । एमएलए बिदानी का कहना है कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि जिसने उनसे बात की, वह किसी जाँच कमेटी का सदस्य है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के लिए भी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन ने एक जाँच कमेटी गठित की थी, लेकिन उस जाँच कमेटी के दो सदस्य दो दिन तक मेरठ में रुके/रहे थे, और डिस्ट्रिक्ट के हर पदाधिकारी को रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से इसकी सूचना दी गई थी; तथा सभी से कहा गया था कि जो कोई भी इस कमेटी से मिल कर अपनी बात कहना चाहता है, वह दिल्ली स्थित साउथ एशिया कार्यालय में फोन करके अपने मिलने का समय तय कर सकता है । डिस्ट्रिक्ट के कई लोग कमेटी से मिले थे । किंतु डिस्ट्रिक्ट 3011 में ऐसा कुछ नहीं हुआ । यहाँ लोगों को कमेटी की बात तो अब पता चली जब इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले में उसका जिक्र आया । समझा जाता है कि कमेटी के सदस्यों ने डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोगों से बात की होगी, और उनसे उन्हें जो सुनने को मिला उन्होंने उसे ही सच मान लिया - तथा उसी के आधार पर अपनी रिपोर्ट बना दी । रिपोर्ट भी क्या बना दी, जलेबी सी तल दी । इंटरनेशनल बोर्ड ने उक्त रिपोर्ट के हवाले से ही कहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के सभी चारों उम्मीदवारों ने चुनाव संबंधी रोटरी इंटरनेशनल के नियमों व मार्ग-दर्शनों का उल्लंघन किया है । जिस जाँच में यह नतीजा निकल कर आया है, उस पर तो फिर 'खोदा पहाड़ और निकली चुहिया' वाला मुहावरा ही सटीक बैठता है ।
रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले ने विनय भाटिया को राहत भले ही दे दी हो, लेकिन उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को जिस तरह से नामित किया गया है - उससे विनय भाटिया की जीत का 'वजन' खत्म हो गया है । विनय भाटिया की जीत पर डिस्ट्रिक्ट के लोग दरअसल पहले से ही सहज नहीं थे : जैसे यह सच है कि फूलन देवी संसद का चुनाव जीती थी, किंतु उनकी जीत को देश का मानस स्वीकार नहीं कर सका था; ठीक उसी तर्ज पर यह सच है कि पहले रवि चौधरी और फिर विनय भाटिया चुनाव जीते हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों का मानस उनकी जीत को स्वीकार नहीं कर पाया है - अधिकतर लोगों को यह सवाल कचोटता है कि अब रवि चौधरी व विनय भाटिया जैसे लोग गवर्नर बनेंगे ! इन दोनों को गवर्नर चुनवाने में चूँकि दीपक तलवार, सुशील खुराना व विनोद बंसल की सक्रिय भूमिका रही - इसलिए इंटरनेशनल बोर्ड ने जब इन तीनों को चुनावी राजनीति करने के लिए नामित किया तो यही लगता है कि डिस्ट्रिक्ट को और रोटरी को रवि चौधरी व विनय भाटिया जैसे लोग 'देने' का दंड इन्हें मिला है । विनय भाटिया के सबसे बड़े समर्थक पप्पू जीत सिंह सरना के लिए तो रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने बहुत ही शर्मनाक स्थिति बना दी है । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में पप्पू जीत सिंह सरना ने जो कारस्तानियाँ कीं, इंटरनेशनल बोर्ड ने उन्हें 'छिछोरापन' कहा है और स्पष्ट आदेश सुनाया है कि ऐसे व्यक्ति को आगे कभी नोमीनेटिंग कमेटी का सदस्य न बनाया जाए । पप्पू जीत सिंह सरना को लेकर की गई इंटरनेशनल बोर्ड की इस टिप्पणी ने विनय भाटिया की जीत के प्रभाव को गहरी चोट पहुँचाई है । विनय भाटिया की गवर्नरी तो बच गई है, लेकिन उनकी गवर्नरी की चमक धूल में मिल गई है ।

Tuesday, April 26, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के चुनाव में अनुपम बंसल पर प्राप्त की गई केएस लूथरा की धमाकेदार जीत ने विशाल सिन्हा के राजनीतिक मंसूबों को पूरी तरह से धूल में मिला दिया है

लखनऊ । केएस लूथरा ने इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के चुनाव में अनुपम बंसल को जो जोरदार मात दी है, उसने विशाल सिन्हा के राजनीतिक मंसूबों पर पानी फेरने तथा उनके 'राजनीतिक धंधे' को पूरी तरह चौपट कर देने का काम किया है । विशाल सिन्हा अगले लायन वर्ष के अपने गवर्नर-काल में कुछेक लोगों को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए यह कहते हुए प्रेरित कर रहे थे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मेरा सहयोग/समर्थन रहेगा, तो चुनाव जीतना आसान रहेगा । लेकिन विशाल सिन्हा के तमाम समर्थन और उनकी निरंतर सक्रियता के बावजूद अनुपम बंसल जिस भारी अंतर से केएस लूथरा से चुनाव हार गए हैं, उसे देखते हुए विशाल सिन्हा के सामने संकट यह पैदा हुआ है कि ऐसे में डिस्ट्रिक्ट में कौन होगा जो उनके समर्थन पर भरोसा करेगा ? हर किसी के मन में और जुबान पर यही सवाल है कि विशाल सिन्हा जब अपने सबसे खास दोस्त अनुपम बंसल को चुनाव नहीं जितवा सके, तो फिर वह और किसे चुनाव जितवा सकेंगे ? विशाल सिन्हा के लिए मुसीबत की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों का मानना और कहना है कि अनुपम बंसल की इतनी बुरी हार के लिए वास्तव में विशाल सिन्हा ही जिम्मेदार हैं । डिस्ट्रिक्ट में अपने रवैये और व्यवहार से विशाल सिन्हा ने दरअसल अपनी एक नकारात्मक पहचान ही बनाई है - कुछेक लोगों को हालाँकि उम्मीद थी कि विशाल सिन्हा जब एक कार्यकर्ता का चोला छोड़ कर 'नेता' बनने की तरफ अग्रसर होंगे तो वह अपने रवैये व व्यवहार में सुधार करेंगे तथा सचमुच एक 'जेंटिलमैन' बनने का प्रयास करेंगे; किंतु ऐसी उम्मीद रखने वालों को निराशा ही हाथ लगी है । इसका खामियाजा हालाँकि खुद विशाल सिन्हा ने ही भुगता है । विशाल सिन्हा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का अपना पहला चुनाव, निहायत कमजोर 'दिख' रहे शिव कुमार गुप्ता से हार गए - यह केएस लूथरा की विशाल सिन्हा को पहली चोट थी । दूसरी बार में विशाल सिन्हा तब सफल हो सके, जब उन्होंने केएस लूथरा की हर रोज सुबह-शाम पूजा की और उन्हें अपने समर्थन के लिए मनाया । तीसरी बार अशोक अग्रवाल की हार के रूप में विशाल सिन्हा को केएस लूथरा ने एक बार फिर 'धोया' । अब की बार, विशाल सिन्हा ने केएस लूथरा के साथ अपना पिछला 'हिसाब-किताब' बराबर करने की भारी तैयारी की - लेकिन केएस लूथरा ने एक बार फिर उन्हें ऐसी जोरदार पटकनी दी, जिसकी चोटें ठीक होने में बहुत समय लगेगा ।
अबकी बार, केएस लूथरा से बदला ले लेने का विशाल सिन्हा को पूरा भरोसा था । वह चूँकि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, इसलिए उन्हें भरोसा रहा कि अगले लायन वर्ष की अपनी डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पद 'बेच' कर वह अनुपम बंसल के लिए वोट खरीद लेंगे - और केएस लूथरा से अपना पिछला सारा हिसाब-किताब बराबर कर लेंगे । उनके इस भरोसे को और भरोसा नीरज बोरा का समर्थन मिलने से मिला । अनुपम बंसल को चूँकि गुरनाम सिंह के उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा था, और नीरज बोरा को गुरनाम सिंह के विरोधी के रूप में पहचाना जाता रहा है - इसलिए नीरज बोरा को जब अनुपम बंसल के समर्थन में देखा गया, तो अनुपम बंसल का पलड़ा भारी होता हुआ नजर आया । गुरनाम सिंह, नीरज बोरा और विशाल सिन्हा की तिकड़ी ने एक बड़ा काम यह किया कि कैबिनेट सेक्रेटरी लालजी वर्मा व चीफ एडवाइजर एचएन सिंह को अनुपम बंसल की उम्मीदवारी के पक्ष में सक्रिय कर/करा दिया । इन तिकड़ी का वास्तविक उद्देश्य दरअसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार गुप्ता का समर्थन पाना था, जो तटस्थ भूमिका में थे - और जिनकी तटस्थ भूमिका तिकड़ी को पसंद नहीं आ रही थी । शिव कुमार गुप्ता पर दबाव बनाने लिए इस तिकड़ी ने उनके दोनों प्रमुख सहयोगियों - लालजी वर्मा व एचएन सिंह को उनके खिलाफ कर दिया । गुरनाम सिंह, नीरज बोरा व विशाल सिन्हा ने केएस लूथरा को डिस्ट्रिक्ट में अकेला व अलग-थलग कर देने के उद्देश्य से खासा पक्का और ठोस जाल बुना - लेकिन वह केएस लूथरा को जाल में कैद नहीं कर पाए । उलटे केएस लूथरा ने ही उन्हें उनके बनाए जाल में ऐसा फँसा दिया है कि उसमें से निकल पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है ।
मजे का सीन यह बना है कि अनुपम बंसल के ही कुछेक नजदीकी अनुपम बंसल की भारी हार के लिए विशाल सिन्हा को कोस रहे हैं । उनका कहना है कि अनुपम बंसल को उम्मीदवार बनाने से लेकर उन्हें जितवाने की कोशिश करने के नाम पर विशाल सिन्हा ने जो हरकतें कीं, उनने लोगों को नाराज करने का काम ही किया, जिसका फायदा केएस लूथरा ने उठाया । दरअसल अनुपम बंसल की उम्मीदवारी और उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में जो 'शिवजी की बारात' बनी, उसे एक अवसरवादी गठजोड़ के रूप में देखा/पहचाना गया - जिसके बस की केएस लूथरा तथा उनकी राजनीति से निपटना था ही नहीं । केएस लूथरा ने पिछले वर्षों में बार-बार अपने आप को आम लायन से जुड़ा हुआ साबित किया है; पिछले वर्षों में जब भी मुकाबले की स्थिति बनी है, केएस लूथरा ने हर बार साबित किया है कि वह 'जनता के आदमी' हैं और आम लायन सदस्य की नब्ज पहचानते हैं - और उन्हें तिकड़मों से नहीं हराया जा सकता । विशाल सिन्हा बार बार, कई बार केएस लूथरा से 'पिटे' हैं, पर फिर भी वह इस बात को नहीं समझ सके । विशाल सिन्हा से भी ज्यादा दिलचस्प नजारा लालजी वर्मा व एचएन सिंह ने पेश किया : डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस से छह दिन पहले तक यह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ मिल कर चुनाव की तैयारी कर/करवा रहे थे, उसके बाद इन्होंने अनुपम बंसल की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया और उनके लिए वोट जुटाने/माँगने के काम पर लगे; किंतु अब जब अनुपम बंसल चुनाव बुरी तरह हार गए तो यह लोगों को ज्ञान बाँट रहे हैं कि इस चुनाव का तो कोई औचित्य ही नहीं था और यह चुनाव करा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने लोगों को गुमराह किया है । कोई इनसे पूछे कि भाई जब आपको इतना ज्ञान है, तो यह आपने चुनाव से पहले लोगों को क्यों नहीं बताया; आपने अनुपम बंसल तथा उनके समर्थक नेताओं को क्यों नहीं आगाह किया कि इस चुनाव का कोई औचित्य नहीं है, इसके चक्कर में अपनी फजीहत क्यों करवा रहे हो ? इनके अनुसार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने लोगों को गुमराह किया, पर यह इस सवाल पर चुप्पी साध लेते हैं कि यह खुद गुमराह क्यों हुए ? इस सवाल का जबाव यह कभी नहीं देंगे - इन्हें दरअसल अपनी खीझ मिटानी है जो इनके समर्थन के बावजूद अनुपम बंसल के बुरी तरह हार जाने से पैदा हुई है ।
इनसे भी बुरी स्थिति लेकिन बीएन चौधरी की हुई है । बीएन चौधरी ने विशाल सिन्हा के गवर्नर-काल में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की तैयारी कर ली थी, और इस तैयारी के तहत ही उन्होंने विशाल सिन्हा के गवर्नर-काल के कैबिनेट सेक्रेटरी का पदभार भी सँभाल लिया है । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने कुछेक मौकों पर उनकी उम्मीदवारी की घोषणा भी कर दी है । लेकिन अनुपम बंसल की जो बुरी गत बनी है, उसे देख कर बीएन चौधरी का सारा जोश हवा होता हुआ नजर आ रहा है । उन्हें लग रहा है कि विशाल सिन्हा के चक्कर में वह अपनी अनुपम बंसल जैसी फजीहत क्यों करवाएँ ? बीएन चौधरी के बदले बदले मिजाज को देख कर विशाल सिन्हा ने कुछेक दूसरे संभावित उम्मीदवारों पर डोरे डालने की कोशिश की, लेकिन कोई भी विशाल सिन्हा को फँसता हुआ नहीं दिख रहा है । विशाल सिन्हा की समस्या यह है कि वह संभावित उम्मीदवारों से आखिर किस मुँह से कहें कि चिंता मत करो, मैं मदद करूँगा - क्योंकि सभी ने देख ही लिया है कि विशाल सिन्हा की मदद के बाद बेचारे अनुपम बंसल का अंततः क्या हाल हुआ है । जाहिर तौर पर इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के चुनाव में अनुपम बंसल पर प्राप्त की गई केएस लूथरा की धमाकेदार जीत ने विशाल सिन्हा के तमाम राजनीतिक मंसूबों को फिलहाल तो धूल में मिला दिया है ।

Monday, April 25, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी मामले में जेपी सिंह की ऐतिहासिक फजीहत करने/कराने के बाद, उनके विरोधियों ने उन्हें ब्लड बैंक के मामले में घेरने की तैयारी शुरू की

नई दिल्ली । जेपी सिंह ने लायंस की चुनावी राजनीति में एक अनोखा रिकॉर्ड बनाया है - इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए वह अकेले उम्मीदवार थे, लेकिन फिर भी वह चुनाव हार गए । इस तरह जेपी सिंह को किसी और ने नहीं हराया, बल्कि खुद उन्होंने ही अपने आप को हरा दिया । कुछेक लोगों का कहना है कि जेपी सिंह की खुद की हरकतों व कारस्तानियों ने ही उन्हें चुनाव में हरा दिया है । इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी बनने की जेपी सिंह की तैयारी को इस तरह से जो 'जोर का झटका' लगा है, उसने आरोपों-प्रत्यारोपों की एक नई सीरीज शुरू कर दी है : जेपी सिंह ने लायन राजनीति में हुई अपनी 'इस सबसे बड़ी दुर्गति' के लिए अपने समर्थकों व नजदीकियों को ही जिम्मेदार ठहराया है, जबकि उनके समर्थकों व नजदीकियों के अनुसार जेपी सिंह अपनी खुद की करनी तथा ब्लड बैंक की कमाई 'हड़पने' के आरोपों के कारण इस दशा को प्राप्त हुए हैं । जेपी सिंह का कहना है कि अपने विरोधियों की उन्हें पहचान थी, किंतु वह संख्या में इतने कम थे और हैं कि वह चुनावी हार का कारण नहीं हो सकते - उन्हें तो अपने समर्थकों व नजदीकियों से ही धोखा मिला है । जेपी सिंह इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी के मामले में मिले झटके के लिए मुख्य रूप से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रमोद सपरा तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह की भूमिका को जिम्मेदार मानते हैं; उनका कहना है कि ऐन मौके पर इन दोनों ने उन्हें धोखा दिया - जिसके चलते उनके लिए हालात मुश्किल हो गए । इन दोनों की तरफ से लेकिन जेपी सिंह के इस आरोप का मजाक उड़ाया जा रहा है : इनका कहना है कि जेपी सिंह बड़े नेता हैं, वह डिस्ट्रिक्ट की और मल्टीपल की तथा उससे और ऊपर की राजनीति चलाते हैं - हमारे जैसे छोटे नेता उनकी अपनी हार का कारण भला कैसे हो सकते हैं ? दूसरे कई लोगों का कहना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी के मुद्दे पर मिली हार ने जेपी सिंह को वास्तव में आईना दिखाया है, और आईने में अपनी बिगड़ी तस्वीर के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराने की बजाए उन्हें अपने गिरेबान में झाँकना/देखना चाहिए । जेपी सिंह के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि इस समय जबकि वह अपने लायन जीवन के सबसे बड़े संकट से गुजर रहे हैं, तब उनके प्रति हमदर्दी दिखाने के लिए कोई नहीं है और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के रूप में देखे जाने वाले लोग भी उनकी दशा पर मजे ले रहे हैं ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की राजनीति लगता है कि जेपी सिंह का बंटाधार करेगी । विडंबना की बात यह है कि मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जेपी सिंह को सबसे मजबूत उम्मीदवार के रूप देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन अपने खुद के डिस्ट्रिक्ट में जेपी सिंह को न सिर्फ नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं, बल्कि उसके बाद भी उन्हें फजीहत का शिकार होना पड़ रहा है । अब किसी उम्मीदवार की इससे बड़ी फजीहत और क्या होगी कि वह अकेला उम्मीदवार होता है, लेकिन फिर भी वह चुनाव हार जाता है । जेपी सिंह के साथ के लोगों का ही कहना है कि इस स्थिति के लिए खुद जेपी सिंह ही जिम्मेदार हैं । दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए रमेश नांगिया की प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी से जेपी सिंह जिस बुरी तरह से डर गए - फिर वही डर उन्हें ले डूबा । रमेश नांगिया के ही कुछेक समर्थकों का कहना है कि उन्हें रमेश नांगिया के जीतने की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी, लेकिन जेपी सिंह ने रमेश नांगिया की उम्मीदवारी सामने आने पर जिस तरह की घबराहट दिखाई और जिस तरह की बेबकूफियाँ कीं - उससे जेपी सिंह ने अपने प्रति विरोध को संगठित व आक्रामक बनाने का काम किया, और जिसका नतीजा हुआ कि रमेश नांगिया को चुनावी मैदान से हटवा देने के बाद भी वह चुनाव हार गए । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों को जानने/समझने वाले लोगों का मानना और कहना है कि रमेश नांगिया की उम्मीदवारी को लेकर जेपी सिंह अपनी घबराहट न दिखाते, और लोगों के बीच अपना समर्थन मजबूत करने तथा बढ़ाने में जुटते तो रमेश नांगिया को हरा कर वही चुनाव जीतते - लेकिन जेपी सिंह अपनी उम्मीदवारी के लिए काम करने की बजाए रमेश नांगिया की उम्मीदवारी को वापस कराने और रद्द कराने की तिकड़मों में लग गए । इससे लोगों के बीच यही संदेश गया कि वह रमेश नांगिया की उम्मीदवारी से डर गए हैं । इस संदेश का सीधा और गहरा असर यह हुआ कि जेपी सिंह की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों के हौंसले पस्त पड़े, जबकि उनके विरोधियों में खासा जोश भर गया ।
इस असर को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के पहले दिन रमेश नांगिया की उम्मीदवारी को रद्द करने की कार्रवाई से और पंख लगे । जेपी सिंह ने सोचा तो यह था कि वह रमेश नांगिया की उम्मीदवारी को ही रद्द करवा देंगे, तो चुनाव का झँझट ही खत्म हो जायेगा और उनकी हार का खतरा पूरी तरह टल जायेगा । जेपी सिंह ही क्या, अन्य कोई भी नहीं जानता था कि इस तिकड़म से जेपी सिंह सिर्फ अपनी हार को ही नहीं, इतिहास बनाने वाली अपनी फजीहत को भी आमंत्रित कर रहे हैं । चुनाव हो जाता, और जेपी सिंह हार जाते - तो यह चुनावी दुनिया की एक सामान्य घटना होती; लेकिन जो हुआ वह ऐतिहासिक इसलिए हुआ क्योंकि उम्मीदवार एक ही था, अकेला था - लेकिन फिर भी हार गया । अपनी स्थापना के सौंवे वर्ष में प्रवेश करने जा रहे लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में जेपी सिंह संभवतः पहले और अकेले उम्मीदवार होंगे, जो अकेले उम्मीदवार होने के बावजूद चुनाव हार गए । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के पहले दिन रमेश नांगिया की उम्मीदवारी को रद्द करने/कराने की कार्रवाई का जो जोरदार विरोध हुआ, उससे भी जेपी सिंह ने कोई सबक नहीं लिया । जेपी सिंह ने मान लिया कि रमेश नांगिया के उम्मीदवार न रहने से उनका एंडोर्सी बनना अब सुनिश्चित ही है, और इसलिए लोगों की नाराजगी व उनके विरोध की उन्हें परवाह करने की क्या जरूरत है ? इसी विश्वास के चलते उन्होंने विरोध करने वाले लोगों की वॉयस वोट कराने की माँग को मान लेने दिया । वॉयस वोटिंग में जब उनके समर्थन में पड़े वोटों की संख्या (98) उनके विरोध में पड़े वोटों की संख्या (116) से 18 कम निकली - तो जेपी सिंह के तोते उड़ गए । इस तरह इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी बनने की जेपी सिंह की तैयारी पर जो 'वाट लगी', वह सिर्फ चुनाव हारने का मामला भर नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक किस्म की फजीहत है । जेपी सिंह की यह जो फजीहत हुई है, लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में उनके जैसी ऐसी फजीहत शायद ही कभी किसी की हुई होगी ।
जेपी सिंह के लिए मुसीबत की बात यह है कि उनका जो यह हाल हुआ है, उससे डिस्ट्रिक्ट में उनके विरोधियों के हौंसले खासे मजबूत हुए हैं - और इन मजबूत हौंसलों के बल पर उनके विरोधी अब उन्हें ब्लड बैंक के मामले में घेरने की तैयारी कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि ब्लड बैंक में जेपी सिंह की बेईमानी तथा लूट के किस्से यूँ तो बहुत मशहूर हैं, लेकिन इन किस्सों को कहने/बताने वाले लोग इस मामले में जेपी सिंह को कभी घेर नहीं पाए । लगता है कि अब उन्हें मौका मिला है, और इस मौके का इस्तेमाल करने के लिए वह अपनी अपनी कमर कसने लगे हैं । जेपी सिंह के सामने मुसीबत यह है कि ब्लड बैंक पर अपना कब्जा यदि वह छोड़ भी देते हैं, तो यहाँ की गई गड़बड़ियों को मुद्दा बना कर उनके विरोधी उनका लायन राजनीति का कैरियर खत्म करने की कार्रवाई करेंगे; और यदि वह ब्लड बैंक पर अपना कब्जा बनाए रखने का प्रयास करते हैं - तो उनका यह प्रयास उनकी राजनीति को एक अलग तरीके से कमजोर करेगा । कई लोग मानते/कहते ही हैं कि इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी मामले में जेपी सिंह की हुई फजीहत की जड़ में ब्लड बैंक की राजनीति ही है । ऐसे में जेपी सिंह के लिए एक तरफ कुँआ तो दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है - जिसे इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के चुनावी नतीजे ने और भी संगीन बना दिया है ।

Sunday, April 24, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रमोद विज के हाथों हो रही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन की 'धुलाई' को 'राजा' व उसके दुर्योधन/दुःशासन मजे ले ले कर जिस तरह से देख रहे हैं, वह डिस्ट्रिक्ट के लिए शर्मनाक स्थिति नहीं है क्या ?

देहरादून । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रमोद विज ने नए बने रोटरी क्लब पानीपत क्लासिक को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन के 'भीड़ भरे चौराहे पर कपड़े उतारने' की जो कार्रवाई की है, वह डिस्ट्रिक्ट 3080 की दशा का एक उदाहरण तो पेश करती ही है - साथ ही यह भी बताती है कि डिस्ट्रिक्ट का जो मौजूदा हाल है, उसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जैसे गरिमापूर्ण पद की हैसियत 'गुंडों के बीच फँसी रजिया' जैसी हो गई है । डेविड हिल्टन बेचारे शिक्षा जगत में काम करने वाले एक भले व्यक्ति रहे हैं । भारतीय शिक्षा जगत में उनके योगदान को बहुत ही सम्मान से देखा/पहचाना जाता है । एक शिक्षक के रूप में अपने योगदान के लिए वह देश के राष्ट्रपति द्वारा शिक्षकों के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं । इसके अलावा भी वह देश के शिक्षा क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित पुरस्कार De Rozio से भी पुरस्कृत हो चुके हैं । शिक्षा संबंधी स्थानीय व राज्यस्तरीय कमेटियों में ही नहीं - कई एक राष्ट्रीय कमेटियों में भी उनकी महत्वपूर्ण सक्रिय संलग्नता रही है - और इसी नाते से देश के शिक्षा क्षेत्र में डेविड हिल्टन का नाम खासा जाना/पहचाना है और प्रतिष्ठित है । इस प्रतिष्ठा के साथ डेविड हिल्टन जब रोटरी में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने, तो लोगों को उम्मीद बनी थी कि वह डिस्ट्रिक्ट में सदाचार व न्याय के पक्षधर बनेंगे और शिक्षा जगत में जिन वैल्यूज के समर्थक होने के नाते उन्होंने नाम कमाया है, उन्हीं वैल्यूज को वह रोटरी व डिस्ट्रिक्ट में भी स्थापित करेंगे । लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी बिलकुल उल्टी चाल ही देखने को मिली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डेविड हिल्टन ने जिस तरह से अपने आप को डिस्ट्रिक्ट के कुछेक प्रमुख पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की कठपुतली बना लिया, उससे उन्होंने डिस्ट्रिक्ट व रोटरी को तो कलंकित किया ही - साथ ही साथ अपनी साख व प्रतिष्ठा को भी धूल में मिला लिया है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डेविड हिल्टन ने खुद ही - पता नहीं किस लालच या भय के कारण - अपनी ऐसी दशा बना ली है कि कोई भी उन्हें 'धो' देता है । रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों से लेकर डिस्ट्रिक्ट के आम रोटेरियंस तक विभिन्न मौकों पर उन्हें लताड़ते रहे हैं तथा उनके कान उमेठते रहे हैं; और अब पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रमोद विज ने उनकी जो दशा की है - उसके चलते तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डेविड हिल्टन के लिए बहुत ही शर्मनाक स्थिति पैदा हो गई है । प्रमोद विज दरअसल एक नए बने रोटरी क्लब पानीपत क्लासिक को लेकर उखड़े हुए हैं । रोटरी क्लब पानीपत मिडटाउन द्वारा स्पॉन्सर्ड इस नए क्लब को अभी दो सप्ताह पहले ही रोटरी इंटरनेशनल से चार्टर मंजूर हुआ है तथा इसके लिए नए बने क्लब के पदाधिकारियों व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की तरफ से प्रशंसा पत्र भी प्राप्त हो चुका है । जाहिर है कि नए बने क्लब को लेकर हर कोई खुश है, लेकिन एक अकेले प्रमोद विज को इसे लेकर भारी मिर्ची लगी है । उनकी शिकायत है कि इस नए क्लब को बनाने को लेकर रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों का पालन नहीं हुआ है । इसके लिए प्रमोद विज ने डिस्ट्रिक्ट एक्सटेंशन चेयरमैन सुरेश गुगलानी तथा नए बने क्लब के जीएसआर एसएन गुप्ता को भी कोसा है । प्रमोद विज ने माँग की है कि डेविड हिल्टन नए क्लब का चार्टर रद्द करवाएँ । प्रमोद विज का कहना है कि डेविड हिल्टन ने यदि उनकी माँग के अनुरूप कदम नहीं उठाया, तो वह इस मामले को कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में उठायेंगे तथा जरूरत पड़ी तो रोटरी इंटरनेशनल में भी इसकी शिकायत करेंगे । प्रमोद विज का रवैया देख कर हर कोई यह सोचने पर मजबूर हुआ है कि एक नए बने क्लब में नियमों का ऐसा कौन सा उल्लंघन हो गया है, जिस पर न तो नया क्लब बनाने के काम से जुड़े डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों का ध्यान गया - और न रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों ने ही गौर किया । लोगों को लग रहा है कि प्रमोद विज बात का बतंगड़ बना रहे हैं; प्रमोद विज चूँकि स्पॉन्सरिंग क्लब के सदस्य हैं, इसलिए वह इस बात से चिढ़े हुए हैं कि एक नए क्लब को स्पॉन्सर करने के लिए क्लब के पदाधिकारियों से उनसे अनुमति क्यों नहीं ली - और इसीलिए नए बने क्लब के खिलाफ बबाल मचाए हुए हैं तथा इस मामले की आड़ में डिस्ट्रिक्ट में अपनी चौधराहट दिखाने/जताने का प्रयास कर रहे हैं ।
नए बने क्लब को लेकर प्रमोद विज के आरोप यदि सचमुच 'बहुत ही' गंभीर हैं, तो यह एक ऐसे डिस्ट्रिक्ट में कामकाज होने के तरीके की भी पोल खोलते हैं - जिसमें एक 'राजा' भी है, जो बातें बड़ी ऊँची-ऊँची करता है । प्रमोद विज के आरोप यदि सचमुच बहुत गंभीर हैं, तो क्या इससे यह साबित नहीं होता कि ऊँची ऊँची बातें करने वाले 'राजा' ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध कर धृतराष्ट्र वाली भूमिका ले ली है, और डिस्ट्रिक्ट को दुर्योधनों व दुःशासनो को सौंप दिया है - जिनकी दिलचस्पी डिस्ट्रिक्ट को अपनी जाँघ पर बैठाने/बैठाये रखने तक ही सीमित हो चली है, जिसे पूरा करने के लिए वह जब तब 'रोटरी' की साड़ी खींच कर उसे नंगा करते रहते हैं । डिस्ट्रिक्ट के दुर्योधनों व दुःशासनो के ग्रुप में शामिल होने के बावजूद प्रमोद विज को चूँकि ज्यादा मौका नहीं मिल रहा था, इसलिए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन के ही 'कपड़े उतारने' की तैयारी कर ली । डेविड हिल्टन ने चूँकि अपनी ही मर्जी से अपनी ऐसी स्थिति बना ली है कि कोई भी उन्हें दुत्कार देता है, सो प्रमोद विज को वह एक आसान शिकार भी लगे । कुछ लोगों का कहना है कि प्रमोद विज को हो सकता है कि यह भी लगा हो कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन का 'शिकार' करके वह अपने आप को 'राजा' का असली दुर्योधन साबित कर लेंगे, इसलिए उन्होंने सीधे डेविड हिल्टन पर हाथ डाल दिया । प्रमोद विज की इस कार्रवाई से डिस्ट्रिक्ट के दूसरे दुर्योधनों व दुःशासनो में हलचल मच गई है । प्रमोद विज की कार्रवाई को वह 'नौटंकी' करार दे रहे हैं और इसके पीछे एक दूसरी कहानी बताते हैं ।
उनके अनुसार, प्रमोद विज दरअसल इस बात से बुरी तरह चिढ़े हुए हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमन अनेजा अपने कार्यक्रमों में रंजीत भाटिया को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं, और उन्हें बिलकुल पूछ ही नहीं रहे हैं । प्रमोद विज दरअसल अपने आपको रंजीत भाटिया से बड़ा नेता समझते हैं, बड़ा इसलिए क्योंकि वह मानते/समझते हैं कि रंजीत भाटिया का समय तो निकल चुका है और आने वाला समय उनका है - इसलिए उन्हें उम्मीद थी कि रमन अनेजा उन्हें ज्यादा तवज्जो देंगे, किंतु हो उल्टा रहा है । रमन अनेजा ने अभी तक के अपने कार्यक्रमों में प्रमोद विज को तो किनारे लगाए रखा, जबकि रंजीत भाटिया को उन्होंने हर जगह आगे आगे रखा । रमन अनेजा की इस हरकत ने प्रमोद विज के तन-बदन में आग तो लगा दी है, लेकिन प्रमोद विज अभी रमन अनेजा से सीधे भिड़ने को तैयार नहीं हैं । उन्हें डर है कि सीधे भिड़ने के कारण रमन अनेजा से उनकी दूरी और बढ़ जाएगी और तब उन्हें बिलकुल ही अलग-थलग कर दिया जायेगा । प्रमोद विज को लेकिन रमन अनेजा को डराना भी जरूरी लगा है, और 'इसी' जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने डेविड हिल्टन को निशाने पर ले लिया है । दुर्योधन व दुःशासन ही एक दूसरे की 'राजनीति' की तिकड़मों को अच्छे से समझ सकते हैं, इसलिए उनका ही मानना और कहना है कि प्रमोद विज ने वास्तव में रमन अनेजा को डराने व सावधान करने के लिए ही डेविड हिल्टन पर हमला बोला है । प्रमोद विज के डेविड हिल्टन पर किए गए इस हमले से रमन अनेजा सचमुच डरेंगे या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन इस प्रकरण से डेविड हिल्टन व खुद प्रमोद विज की कलई खुल गई है ।
नए बने रोटरी क्लब पानीपत क्लासिक के मामले में नियम-कानूनों की दुहाई देने वाले प्रमोद विज से लोगों का पूछना है कि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के पालन होने की उन्हें यदि सचमुच कोई चिंता है, तो उन्हें बताना चाहिए की डिस्ट्रिक्ट में इससे पहले जब जब रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का उल्लंघन हुआ है, और अक्सर ही हुआ है - तब तब उन्होंने आवाज कभी उठाई क्या ? डेविड हिल्टन की जब तब होने वाली फजीहत से दुखी होने वाले लोगों का कहना है कि डेविड हिल्टन को पता नहीं क्यों यह बात समझ नहीं आ रही है कि उन्होंने अपने आप को जिस तरह से आँखों पर पट्टी बाँधे 'राजा' तथा उसकी कौरव सेना की कठपुतली बना लिया है, उसके कारण अपनी इज्जत को उन्होंने खुद ही गँवा लिया है - तथा इसी का नतीजा है कि कोई भी उन्हें जैसे चाहें वैसे 'धो' देता है; और डिस्ट्रिक्ट में कोई उनके साथ हमदर्दी तक नहीं दिखाता है । प्रमोद विज ने रोटरी क्लब पानीपत क्लासिक के मामले में जैसे उन्हें धोया हुआ है, और जैसे वह 'धुल' भी रहे हैं; और जिस धोने/धुलने को 'राजा' व उसके दुर्योधन/दुःशासन मजे ले ले कर देख रहे हैं - वह किसी भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए बहुत ही शर्मनाक स्थिति है ।
डिस्ट्रिक्ट में बहुत से लोगों को हैरानी है कि डेविड हिल्टन आखिर किस मजबूरी या किस स्वार्थ में अपनी इस शर्मनाक स्थिति को स्वीकार किए चले जा रहे हैं ?

Friday, April 22, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 को वापस पटरी पर लाने की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर संजय खन्ना को सौंप कर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने वास्तव में संजय खन्ना की प्रशासनिक क्षमताओं व लीडरशिप क्वालिटी के प्रति अपने विश्वास का इज़हार किया है

नई दिल्ली । संजय खन्ना - डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना रोटरी की उपलब्धियों के संदर्भ में इस समय बल्ले बल्ले वाली स्थिति में आ गए हैं । यूँ वह हैं तो दिल्ली के एक डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर, लेकिन इस समय उनके नाम का डंका बज रहा है मेरठ/मुरादाबाद से लेकर अमेरिका के लॉस एंजिलिस के सैन डिएगो तक में । सैन डिएगो में 28 अप्रैल से 1 मई के बीच हो रही डिस्ट्रिक्ट 5280 की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में संजय खन्ना को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के प्रतिनिधि के रूप में शामिल होना है । किसी डिस्ट्रिक्ट की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के प्रतिनिधि के रूप में जाने का मौका यद्यपि कई पूर्व गवर्नर्स को मिलता रहता है, लेकिन संजय खन्ना को मिला यह मौका उल्लेखनीय इसलिए है - क्योंकि डिस्ट्रिक्ट 5280 का रोटरी में बड़ा खास महत्त्व है । रोटरी के प्रमुख प्रोजेक्ट-कार्यक्रम हों या रोटरी की इंटरनेशनल स्तर की राजनीति हो, इस डिस्ट्रिक्ट की सभी में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इस कारण से रोटरी पर 'राज करने' की इच्छा रखने वाले रोटरी नेता इस डिस्ट्रिक्ट में घुसने की और यहाँ अपने लिए 'जगह' बनाने की तिकड़मों में लगे रहते हैं । रोटरी का पुराना पाँचवा क्लब इसी डिस्ट्रिक्ट में है, और इस नाते से यह रोटरी के साथ शुरू से ही जुड़ा हुआ है । रोटरी के साथ अपनी इस ऐतिहासिक संलग्नता के कारण भी इसे रोटरी में विशेष पहचान और जगह मिली हुई है । ऐसे डिस्ट्रिक्ट की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के प्रतिनिधि के रूप में शामिल होने के संजय खन्ना को मिले मौके को निश्चित रूप से एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है ।
संजय खन्ना के लिए इससे भी बड़ी उपलब्धि की बात लेकिन उन्हें डिस्ट्रिक्ट 3100 का कार्यभार मिलना है । यह कार्यभार सौंप कर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने रोटरी के इतिहास में एक अनोखा अध्याय तो जोड़ा ही है, साथ ही संजय खन्ना को भी रोटरी के इतिहास में एक विलक्षण सम्मान से नवाजा है । रोटरी के 111 वर्षों के इतिहास में संभवतः यह पहला मौका होगा जब किसी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को किसी दूसरे डिस्ट्रिक्ट का - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वाला रूतबा दिया गया हो । संजय खन्ना ने पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट 3010 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभाला था, जिसके विभाजन के बाद वह डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर हैं - लेकिन अगले रोटरी वर्ष में वह डिस्ट्रिक्ट 3100 के निर्णायक कर्ताधर्ता - यानि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वाली हैसियत में होंगे । रोटरी इंटरनेशनल के संविधान में चूँकि किसी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को किसी दूसरे डिस्ट्रिक्ट का गवर्नर नियुक्त करने की 'व्यवस्था' नहीं है, इसलिए संजय खन्ना को डिस्ट्रिक्ट 3100 के रोटरी इंटरनेशनल के 'विशेष प्रतिनिधि' का नाम दिया गया है - जिसके तहत उनका काम डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स को उसी तरह से सपोर्ट करना होगा, जैसे एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर करता है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है - करीब ढाई महीने पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील गुप्ता को प्रशासनिक व आर्थिक गड़बड़ियों के आरोपों के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटा दिया गया था; और उनकी जगह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक बाबु को डिस्ट्रिक्ट का कार्यभार सौंपा गया था । दीपक बाबु लेकिन सुनील गुप्ता के भी 'गुरू' निकले । उनकी हरकतों को देख/जान कर रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने समझ लिया कि डिस्ट्रिक्ट 3100 में हालात बहुत ही खराब हैं, जिन्हें ठीक करने के लिए 'एक बड़े ऑपरेशन' की जरूरत पड़ेगी । इस जरूरत को समझते हुए इंटरनेशनल बोर्ड ने अभी हाल में संपन्न हुई अपनी मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट 3100 को 'नॉन डिस्ट्रिक्टेड' स्टेटस में डाल दिया और डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स को सपोर्ट करने की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना को सौंप देने का फैसला किया है ।
संजय खन्ना को इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले  के जरिए जो जिम्मेदारी मिली है, वह रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के बीच उनकी प्रभावी पहचान और प्रतिष्ठा का सुबूत तो है ही - साथ ही उनकी प्रशासनिक क्षमताओं व लीडरशिप क्वालिटी के प्रति इंटरनेशनल पदाधिकारियों के विश्वास का इज़हार भी है ।
किंतु संजय खन्ना को डिस्ट्रिक्ट 3100 की जो जिम्मेदारी मिली है, वह उनके लिए बड़ी चुनौती भी है । दरअसल इंटरनेशनल बोर्ड ने अपनी मीटिंग में जो फैसले लिए हैं, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट में भारी बबाल पैदा हो गया है । डिस्ट्रिक्ट को 'नॉन डिस्ट्रिक्टेड' स्टेटस तो मिला ही है, साथ ही पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स पर अगले पाँच वर्ष तक, यानि वर्ष 2021 तक रोटरी इंटरनेशनल व रोटरी फाउंडेशन में नियुक्तियाँ पाने पर रोक लगा दी गई है । तीन वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स - बृज भूषण, वागीश स्वरूप अग्रवाल व एमएस जैन को डिस्ट्रिक्ट में प्रशासनिक व वित्तीय गड़बड़ियों में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड के इस फैसले पर डिस्ट्रिक्ट के उन लोगों व पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच भारी रोष है, जो किसी भी गड़बड़ी में किसी भी स्तर पर शामिल नहीं रहे हैं और जिन पर कोई आरोप नहीं रहा है । उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पदाधिकारियों की करतूतों के लिए आखिरकार उन्हें भी सजा क्यों दी जा रही है - और उन्हें भी अपराधी की तरह क्यों ट्रीट किया जा रहा है ? डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट की बदहाली के लिए कुछ ही लोग जिम्मेदार हैं, जिन्हें सभी लोग पहचानते हैं और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन द्वारा जांच-पड़ताल के लिए भेजी गई टीम ने भी जिन्हें पहचान लिया - इसके बाद भी सजा सभी को दे दी गई है । इस बात को लेकर डिस्ट्रिक्ट के आम व खास लोगों में इस समय इंटरनेशनल पदाधिकारियों के प्रति खासी नाराजगी और विरोध का भाव है ।
मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट की बदहाली के लिए जिम्मेदार माने/बताए गए 'खास लोग', लोगों की इस नाराजगी का फायदा उठाने के लिए सक्रिय हो गए हैं । इस काम में दीपक बाबु के नजदीकी व समर्थक सबसे ज्यादा सक्रिय हैं । दरअसल इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले से सबसे बड़ा कुठाराघात दीपक बाबु और उनके नजदीकियों पर ही हुआ है । उल्लेखनीय है कि सुनील गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटा कर जब दीपक बाबु को डिस्ट्रिक्ट का कार्यभार सौंपा गया था, तब दीपक बाबु और उनके नजदीकी ऐसे खुश हुए थे - जैसे उन्हें कोई गड़ा हुआ खजाना मिल गया हो । खुशी में वह ऐसे पागल हो गए थे कि ऊँचे-ऊँचे सपने देखने लगे थे और बहकी बहकी बातें करने लगे थे - अगले वर्षों में कौन कौन लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनेंगे, वह इसकी सूची बनाने लगे थे और उन लोगों के साथ सौदेबाजी करने लगे थे; दीपक बाबु के दो वर्षों के लिए गवर्नर 'बनने' को वह दीपक बाबु के विरोधियों पर तमाचे बताने लगे थे । पर अब जब तमाचा उन्हीं पर पड़ गया है तो वह बुरी तरह बौखला गए हैं । पहले खुशी में पगलाने पर और अब बौखलाने पर वह इस सच्चाई पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं कि दीपक बाबु को संभलने/सुधरने के चार चार मौके मिले थे, किंतु उन्होंने तो डिस्ट्रिक्ट को जैसे अपनी निजी जागीर समझ लिया था और मनमानी करने में इस हद तक जुटे कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के फैसलों तक की अनदेखी करने लगे । अपनी मनमानी कारस्तानियों पर पर्दा डालने की गरज से ही दीपक बाबु के समर्थकों व नजदीकियों ने डिस्ट्रिक्ट को 'नॉन डिस्ट्रिक्टेड' स्टेटस देने के रोटरी इंटरनेशनल के फैसले के खिलाफ शोर मचाया हुआ है । उन्हें लगता है कि इस मामले में उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों का समर्थन मिल जायेगा और वह इंटरनेशनल पदाधिकारियों पर फैसले को पलटने के लिए दबाव बना लेंगे ।
संजय खन्ना के लिए चुनौती की बात यह है कि उन्हें ऐसे माहौल में डिस्ट्रिक्ट 3100 में रोटरी इंटरनेशनल के 'विशेष प्रतिनिधि' की जिम्मेदारी निभानी है । संजय खन्ना को हालाँकि परस्पर विपरीत स्थितियों में काम करने का अच्छा अनुभव है - डिस्ट्रिक्ट 3010 में उम्मीदवार के रूप में उन्होंने सत्ताधारी गवर्नर्स खेमे की लंपटई का मुकाबला करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीता था; और फिर गवर्नर के रूप में अपने विरोधियों को भी साथ लेकर काम किया था; यानि उन्हें विरोधियों से निपटना भी आता है और उन्हें साथ लेकर काम करने की तरकीब भी उन्हें पता है । संभवतः संजय खन्ना के इसी हुनर को देखते हुए रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में उन्हें डिस्ट्रिक्ट 3100 की जिम्मेदारी सौंपी है । सैन डिएगो में 28 अप्रैल से 1 मई के बीच हो रही डिस्ट्रिक्ट 5280 की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के प्रतिनिधि की भूमिका निभा कर लौटने के बाद संजय खन्ना को मेरठ/मुरादाबाद में डिस्ट्रिक्ट 3100 को वापस पटरी पर लाने में जुटना है । संजय खन्ना का राजनीतिक व प्रशासनिक हुनर है, रोटरी इंटरनेशनल पदाधिकारियों का उन पर भरोसा है और डिस्ट्रिक्ट 3100 में लोगों का बबाल है - ऐसे में यह देखना सचमुच दिलचस्प होगा कि आगे क्या होगा ?

Wednesday, April 20, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में दीपक बाबु की मनमानी, स्वार्थपूर्ण व धंधेबाजी से प्रेरित कारस्तानियाँ उनके साथ साथ अंततः डिस्ट्रिक्ट को भी ले डूबीं

मुरादाबाद । डिस्ट्रिक्ट 3100 के लिए कब्र खोदने का काम करने में सुनील गुप्ता को तो आठ महीने का समय लगा था, लेकिन दीपक बाबु ने डिस्ट्रिक्ट को कब्र में दफनाने का काम दो ढाई महीने में ही पूरा कर दिया है । सुनील गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से हटा कर जब दीपक बाबु को डिस्ट्रिक्ट का कार्यभार सौंपा था, तब दीपक बाबु और उनके संगी-साथियों ने इस बात पर जोरशोर से अहंकारभरी खुशी मनाई थी कि दीपक बाबु को तो दो वर्षों के लिए गवर्नरी करने का मौका मिल गया है - उस समय सचमुच कोई नहीं जानता था कि दो वर्षों के लिए मिले मौके को दीपक बाबु अपनी कारस्तानियों से दो महीने में ही खो देंगे । रोटरी के 111 वर्षों के इतिहास में दीपक बाबु संभवतः पहले और अकेले 'गवर्नर' हैं, जिन्हें गवर्नर का पदभार सँभालने से पहले ही गवर्नर पद के कामकाज करने से रोक दिया गया है । दीपक बाबु तो डिस्ट्रिक्ट असेम्बली करने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन उसके पाँच दिन पहले दिल्ली स्थित रोटरी इंटरनेशनल के साउथ एशिया ऑफिस में बुला कर उन्हें बता दिया गया कि वह यह असेम्बली न करें । इसके साथ ही उन्हें यह भी बता दिया गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में वह और कोई काम भी न करें । दीपक बाबु ने अपने नजदीकियों को यह भी बताया है कि अनौपचारिक रूप से उन्हें यह भी बता दिया गया है कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने डिस्ट्रिक्ट 3100 को बंद करने का फैसला कर लिया है, जिसके बारे में औपचारिक घोषणा जल्दी ही कर दी जाएगी ।
दीपक बाबु और उनके नजदीकियों ने इस स्थिति के लिए डिस्ट्रिक्ट के उन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को जिम्मेदार बताया/ठहराया है, जो रोटरी इंटरनेशनल में लगातार शिकायतें करते रहे हैं । उनका कहना है कि लगातार की जाने वाली शिकायतों के कारण रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के बीच डिस्ट्रिक्ट की पहचान और छवि खराब हुई, जिसकी परिणति यह हुई है कि डिस्ट्रिक्ट बंद होने के कगार पर आ पहुँचा है । बड़े परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह बात किसी हद तक सच हो सकती है - किंतु पिछले दिनों के घटनाक्रम को देखें तो यह साफ समझ में आ जाता है कि यह दीपक बाबु हैं, जिनकी हरकतें डिस्ट्रिक्ट को इस कगार पर ले आईं हैं । यह बात ध्यान रखने की है कि करीब ढाई महीने पहले रोटरी इंटरनेशनल ने जब सुनील गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से हटा कर दीपक बाबु को गवर्नर पद का कार्यभार सौंपा था, तब तमाम शिकायतों तथा शिकायतों के कारण डिस्ट्रिक्ट की खराब हुई पहचान व छवि के बावजूद रोटरी इंटरनेशनल ने डिस्ट्रिक्ट को बंद करने का फैसला नहीं सुनाया था । शिकायतें और शिकायतों के कारण डिस्ट्रिक्ट की खराब हुई पहचान व छवि डिस्ट्रिक्ट के बंद होने का कारण होतीं - तो रोटरी इंटरनेशनल सुनील गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटाने का फैसला करने के साथ ही डिस्ट्रिक्ट को बंद करने का भी फैसला कर लेता । रोटरी इंटरनेशनल ने उस समय यह फैसला नहीं किया था । उसने उम्मीद की थी कि सुनील गुप्ता जिस डिस्ट्रिक्ट को सँभाल नहीं पा रहे हैं, उस डिस्ट्रिक्ट को दीपक बाबु सँभाल लेंगे । लेकिन दीपक बाबु तो सुनील गुप्ता के भी 'गुरू' निकले । सुनील गुप्ता ने अपनी कारस्तानियों से सिर्फ अपने को डुबोया था, लेकिन दीपक बाबु की कारस्तानियाँ ऐसी रहीं कि वह खुद तो डूबे ही - साथ ही डिस्ट्रिक्ट को भी ले डूबे ।
दीपक बाबु दरअसल उस 'संदेश' को पढ़ने में पूरी तरह विफल रहे, जो रोटरी इंटरनेशनल ने सुनील गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटा कर दिया था । यह एक बहुत ही कठोर फैसला था । रोटरी के इतिहास में शायद ही कभी इस तरह से किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को उसके पद से हटाया गया हो । जाहिर तौर पर इस फैसले का साफ संदेश था कि डिस्ट्रिक्ट 3100 की घटनाओं को रोटरी इंटरनेशनल गंभीरता से ले रहा है, तमाम घटनाओं के लिए वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को जिम्मेदार मान रहा है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की हरकतों को वह अनदेखा करने के लिए तैयार नहीं है । दीपक बाबु को इस 'संदेश' को पढ़ना/समझना चाहिए था और जिम्मेदारी का परिचय देना चाहिए था - किंतु वह सुनील गुप्ता की ही तरह 'धंधेबाजी' पर उतर आए । बिडंवना की बात यह रही कि रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन ने जब देखा/पाया कि दीपक बाबु रोटरी इंटरनेशनल के दिए 'संदेश' को नहीं समझ रहे हैं, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव तथा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की आड़ में राजनीति करने तथा पैसे 'बनाने' की जुगाड़ में लगे हैं - तो उन्होंने दीपक बाबु के 'कान भी उमेठे' थे; किंतु दीपक बाबु ने उससे भी कोई सबक नहीं लिया । उल्लेखनीय है कि सुनील गुप्ता की जगह डिस्ट्रिक्ट का कार्यभार मिलते ही दीपक बाबु ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव तथा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की आड़ में जो खेल शुरू किया, उसे इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन ने यह हिदायत देते हुए रोक दिया कि वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस नहीं करेंगे, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय करवायेगा । इन हिदायतों से दीपक बाबु को समझ लेना चाहिए था कि केआर रवींद्रन की निगाह उनकी हरकतों पर है, और वह उन्हें मनमानी नहीं करने देंगे । दीपक बाबु की समझ पर लेकिन लगता है कि पत्थर पड़ गए थे, और उन्होंने अपने आप को सुनील गुप्ता का 'गुरू' साबित करने की ठान ही ली थी ।
सुनील गुप्ता की तर्ज पर ही दीपक बाबु ने अपने डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को, उनकी सलाह को और कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के फैसले को ठेंगा दिखाने का रवैया अपनाया और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को अपमानित करने की हद तक जा पहुँचे । इसी का नतीजा था कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट में घटने वाली घटनाओं के कारण डिस्ट्रिक्ट की होने वाली बदनामी का संज्ञान लेते हुए उनसे बचने के लिए जो कुछेक महत्वपूर्ण फैसले किए गए, दीपक बाबु ने उन्हें क्रियान्वित करने में कोई दिलचस्पी ही नहीं ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव कराने की जिम्मेदारी उनसे भले ही छीन ली गई थी, लेकिन उसके बावजूद उस चुनाव की आड़ में 'धंधा' करने का जुगाड़ बनाने का प्रयास दीपक बाबु ने फिर भी नहीं छोड़ा था । दीपक बाबु के इस रवैये पर डिस्ट्रिक्ट में जो तीखी प्रतिक्रिया हुई, उसके बाद सच्चाई की जाँच करने के लिए केआर रवींद्रन ने दो सदस्यीय टीम डिस्ट्रिक्ट भेजी । इस टीम के आने को दीपक बाबु एक खतरे के रूप में देखते/पहचानते तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों को विश्वास में लेकर इस टीम के सामने एक संगठित व सकारात्मक तस्वीर पेश करते तो आज नजारा कुछ और होता; किंतु दीपक बाबु ने इस मौके को अपनी टुच्ची व स्वार्थी राजनीति को सफल बनाने के मौके के रूप में इस्तेमाल किया - लेकिन उनकी चाल उन्हें ही उल्टी पड़ गई । उक्त टीम के सदस्यों ने दीपक बाबु सहित कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तथा कई अन्य रोटेरियंस से डिस्ट्रिक्ट का हाल-चाल लिया । इस जाँच में जो तथ्य सामने आए, उसने दीपक बाबु का असली चेहरा सामने ला दिया - जिसके बाद रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के सामने उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा ।
जाहिर है कि दीपक बाबु को बार बार चेतावनी 'मिली' - जिन्हें पहचान/समझ कर वह संभलने का प्रयास कर सकते थे; और अपने साथ साथ डिस्ट्रिक्ट को भी बचा सकते थे । किंतु अपने मनमाने व स्वार्थपूर्ण फैसलों तथा अहंकारभरे रवैये के चलते दीपक बाबु ने उन मौकों का कोई सदुपयोग नहीं किया - जो उन्हें बार बार मिलते रहे । दीपक बाबु की कारस्तानियाँ उन्हें तो ले ही डूबी हैं, साथ ही डिस्ट्रिक्ट को भी ले डूबी हैं ।

Monday, April 18, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 एफ में मंडी गोविंदगढ़ की मीटिंग में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए पवन आहुजा की उम्मीदवारी के प्रति जाहिर हुए जोरदार समर्थन को देखते हुए बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थकों को अपनी हार साफ साफ नजर आने लगी है

मंडी गोविंदगढ़ । गोपाल कृष्ण शर्मा की रीजन कॉन्फ्रेंस में लायन सदस्यों व पदाधिकारियों की जुटी भीड़ तथा उस भीड़ में थर्ड फ्रंट के जाने-पहचाने नेताओं की सक्रिय उपस्थिति के बीच पवन आहुजा की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के प्रति जिस तरह का समर्थन घोषित किया गया, उसे देख/सुन कर बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थकों को तगड़ा झटका लगा है तथा उनके बीच गहरी निराशा फैल गई है । बिरिंदर सिंह सोहल के कुछेक समर्थकों ने तो कहना भी शुरू कर दिया है कि 'यमन 2016' के नाम से आयोजित हुई गोपाल कृष्ण शर्मा की रीजन कॉन्फ्रेंस में शामिल लायन सदस्यों ने पवन आहुजा की उम्मीदवारी के प्रति जिस जोश के साथ समर्थन व्यक्त किया, उसे देखने के बाद बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी के लिए कोई संभावना बची नहीं रह जाती है । बिरिंदर सिंह सोहल के कुछेक समर्थकों ने तो यह कहना भी शुरू कर दिया है कि अच्छा होगा कि बिरिंदर सिंह सोहल हार का सामना करने की बजाए प्रतिद्धंद्धी खेमे नेताओं के साथ समझौता कर अपनी उम्मीदवारी को वापस ले लें, और अगले वर्ष के लिए मौका बनाएँ/बचाएँ । उनके कुछेक शुभचिंतकों ने तो इस बाबत संभावनाएँ टटोलना/देखना शुरू भी कर दिया है । खास बात यह रही कि बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थक नेताओं ने गोपाल कृष्ण शर्मा की रीजन कॉन्फ्रेंस को फेल करने की हर संभव कोशिश की थी; उन्होंने गोपाल कृष्ण शर्मा को पवन आहुजा की उम्मीदवारी के प्रमुख समर्थक नेता हरीश दुआ का 'आदमी' बताते हुए प्रचारित किया था कि यह रीजन कॉन्फ्रेंस तो पवन आहुजा की चुनावी सभा के रूप में आयोजित हो रही है, और इसलिए लोगों को इसमें शामिल होने की जरूरत नहीं है । बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थक नेताओं के तमाम विरोधी व नकारात्मक प्रचार के बावजूद गोपाल कृष्ण शर्मा की रीजन कॉन्फ्रेंस में लोग बड़ी संख्या में न केवल शामिल हुए, बल्कि उन्होंने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए पवन आहुजा की उम्मीदवारी के प्रति अपना समर्थन भी खुल कर व्यक्त किया ।
मंडी गोविंदगढ़ में हुई रीजन कॉन्फ्रेंस ने बिरिंदर सिंह सोहल के लिए खतरे की घंटी सिर्फ इस कारण से ही नहीं बजाई है, कि उसमें 400 से ज्यादा लायन सदस्य व पदाधिकारी शामिल हुए और उन्होंने पवन आहुजा की उम्मीदवारी के प्रति खुल कर समर्थन व्यक्त किया - बिरिंदर सिंह सोहल के लिए दरअसल इससे भी बड़े झटके की बात यह रही कि पवन आहुजा की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाली भीड़ में थर्ड फ्रंट के नेताओं के रूप में पहचाने जाने वाले रजनीश ग्रोवर, राजीव अरोड़ा, सतपाल गुम्बर, एसएस गगनेजा, रवींद्र सग्गर, सुरजीत सिंह गुलयानी व अन्य कई नेताओं की सक्रिय भूमिका थी । उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों मुक्तसर में बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग में गिद्दरबहा, अबोहर, फाजिल्का, जलालाबाद, फिरोजपुर, फरीदकोट, कोटकापुर, बरगरी, खरा, मुक्तसर आदि जगहों से आए व शामिल हुए लायन सदस्यों का हवाला देते हुए बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने थर्ड फ्रंट खेमे वाले क्लब्स के समर्थन का दावा किया था । हालाँकि उनके लिए इस बात का जबाव देना मुश्किल बना हुआ था कि थर्ड फ्रंट के नेताओं के रूप में पहचाने जाने वाले वरिष्ठ लायंस उक्त मीटिंग में क्यों नहीं आए थे ? बिरिंदर सिंह सोहल के समर्थक नेताओं ने इस सवाल को हमेशा ही यह कह कर टाला कि जब लोग उनके साथ आ गए हैं तो लोगों के नेता कहाँ जायेंगे, वह भी उनके साथ आने को मजबूर होंगे । इस तरह की स्थितियों व बातों के बीच डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों की निगाह थर्ड फ्रंट के नेताओं के रूप में पहचाने जाने वाले वरिष्ठ लायन सदस्यों पर थी, और हर किसी के सामने यह सवाल था कि वह किसके समर्थन में खड़े होते हैं ? मंडी गोविंदगढ़ में पवन आहुजा की उम्मीदवारी के प्रति खासे जोश-खरोश के साथ समर्थन व्यक्त करती लायन सदस्यों व पदाधिकारियों की भीड़ के बीच थर्ड फ्रंट के नेताओं की सक्रिय मौजूदगी ने उक्त सवाल का साफ जबाव दे दिया है - और उनके इस जबाव ने बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की सारी उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया है तथा चुनाव में उन्हें अपना तम्बू उड़ता/उखड़ता हुआ दिखने लगा है ।
बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग से खुद को दूर रखने तथा पवन आहुजा की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग में शामिल होकर थर्ड फ्रंट के नेताओं ने अपने समर्थन का जो 'ऐलान' किया है, उस तक पहुँचने में उन्हें हालाँकि खासी जद्दोजहद करना पड़ी । उल्लेखनीय है कि थर्ड फ्रंट का गठन डिस्ट्रिक्ट के विभाजन का विरोध करने के उद्देश्य से हुआ है - इसके नेताओं के सामने दुविधा व चुनौती इस तथ्य के कारण थी कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन का समर्थन करने वाले नेता दोनों तरफ थे : पवन आहुजा की उम्मीदवारी के एक बड़े समर्थक नेता प्रीत कँवल सिंह डिस्ट्रिक्ट के विभाजन के समर्थक रहे हैं, तो बिरिंदर सिंह सोहल के गॉड फादर एचजेएस खेड़ा डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की जोरशोर से वकालत करते रहे हैं । ऐसे में थर्ड फ्रंट के नेताओं के लिए यह फैसला करना वास्तव में मुश्किल था कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में वह किसका समर्थन करें ? थर्ड फ्रंट के नेताओं की मुश्किल को समझते हुए पवन आहुजा के समर्थक नेताओं ने लचीला रुख अपनाया और उनकी तरफ से थर्ड फ्रंट के नेताओं को भरोसा दिया गया कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर वह मनमानी नहीं करेंगे तथा सभी को साथ लेकर सर्वमान्य तरीके से फैसला किया जायेगा । दूसरी तरफ एचजेएस खेड़ा का रवैया लेकिन अपनी मनमानी व दादागिरी चलाने वाला रहा । दरअसल उनकी रणनीति का आधार यह समझ रही कि थर्ड फ्रंट खेमे में जो क्लब आते हैं, उनके वोटों की संख्या चूँकि कुल वोटों का चौथा हिस्सा भी नहीं है - इसलिए उनकी परवाह करने की जरूरत नहीं है । एचजेएस खेड़ा का मानना और कहना रहा कि थर्ड फ्रंट खेमे के जो वोट हैं, उनमें के सिख वोट तो हर हालत में बिरिंदर सिंह सोहल को मिलेंगे ही - इसलिए थर्ड फ्रंट के नेताओं की खुशामद करने की कोई जरूरत नहीं है । एचजेएस खेड़ा के इस रवैये के चलते थर्ड फ्रंट के नेताओं के लिए पवन आहुजा की उम्मीदवारी के समर्थन में जाने का फैसला करना आसान  हो गया - उनकी आसानी ने लेकिन बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी के सामने गंभीर संकट पैदा कर दिया है ।
मजे की बात यह है कि बिरिंदर सिंह सोहल के जो समर्थक कुछ समय पहले तक एचजेएस खेड़ा के रवैये की तारीफ करते सुने जाते थे, वही अब एचजेएस खेड़ा को कोसते हुए सुने जा रहे हैं - उनका कहना है कि एचजेएस खेड़ा की रणनीति किताबी रूप में और सैद्धांतिक रूप में भले ही ठीक लगती हो, लेकिन व्यावहारिक धरातल पर उसने बिरिंदर सिंह सोहल की उम्मीदवारी का कबाड़ा ही किया है । उनका कहना है कि मंडी गोविंदगढ़ की मीटिंग में पवन आहुजा की उम्मीदवारी के प्रति जिस तरह का समर्थन देखने को मिला है, उससे जाहिर हो गया है कि बिरिंदर सिंह सोहल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ से बाहर हो गए हैं - और अब उनकी उम्मीदवारी के लिए कोई उम्मीद बची नहीं रह गई है ।

Sunday, April 17, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में प्रेम माहेश्वरी की अध्यक्षता में बने नए क्लब की संभावित गतिविधियों व सक्रियताओं की चुनौती के सामने रोटरी क्लब वैशाली के पदाधिकारी फिलहाल प्रेसीडेंट इलेक्ट चुनने के झगड़े में उलझे

गाजियाबाद । रोटरी क्लब वैशाली में निलंबन रद्द होने के तुरंत बाद ही प्रेसीडेंट इलेक्ट पद को लेकर क्लब के प्रमुख कर्ताधर्ताओं के बीच जो घमासान मचा है, उसने उन लोगों को बड़ा निराश किया है - जिन्हें उम्मीद थी कि क्लब के प्रमुख लोगों ने अपनी कारस्तानियों के चलते मिली बदनामियों और मुसीबतों के हाल ही के अपने अनुभव से सबक सीखा होगा और अब वह अपनी स्वार्थी व घटिया सोच को छोड़ कर गंभीरता व मैच्योरिटी का व्यवहार करेंगे । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब वैशाली अपने पदाधिकारियों के आपसी झगड़ों तथा रोटरी विरोधी गतिविधियों में संलग्न रहने के कारण पिछले कुछेक महीनों से निलंबित था । क्लब के पदाधिकारियों तथा उनके नजदीकी सदस्यों ने क्लब के ही दूसरे सदस्यों को अपनी लंपटता व लफंगई का शिकार नहीं बनाया, बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व रोटरी के अन्य बड़े पदाधिकारियों - और रोटरी के कार्यक्रमों के खिलाफ भी अशालीन व अभद्र व्यवहार प्रदर्शित किया । उनकी हरकतों पर जब चारों तरफ से बदनामी व थू थू के दाग पड़े और गहरे होने लगे - तो क्लब के पदाधिकारियों को कुछ अक्ल आई, और तब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व अन्य पदाधिकारियों से उन्होंने माफी माँगना शुरू किया । माफी व खुशामद का सहारा लेकर उन्होंने अपने क्लब का निलंबन वापस करवा लिया - उनके लिए इससे भी बड़ी राहत की बात यह रही कि जिन प्रसून चौधरी, विकास चोपड़ा व प्रेम माहेश्वरी के साथ वह अपना झगड़ा बता रहे थे, उन्होंने अपना एक अलग क्लब बना लिया । इससे हर किसी को उम्मीद बनी कि रोटरी क्लब वैशाली का झमेला समाप्त हो गया है, तथा यह क्लब भी अब दूसरे क्लब्स की तरह चलेगा ।
किंतु निलंबन से बाहर आए रोटरी क्लब वैशाली में अब एक नया झगड़ा सुना जा रहा है - जो प्रेसीडेंट इलेक्ट पद को लेकर है । उल्लेखनीय है कि इस पद पर नरेन सेमवाल थे, जिन्होंने लेकिन पेट्स से पहले इस्तीफा दे दिया था । क्लब का निलंबन खत्म हो जाने के बाद किंतु जो फिर से प्रेसीडेंट इलेक्ट बनाए जाने की माँग करने लगे हैं - क्लब के दूसरे लोग इसके लिए लेकिन राजी नहीं हैं । उनका कहना है कि मुश्किल समय में नरेन सेमवाल जिस तरह क्लब के लोगों को अँधेरे में रख कर अपनी जिम्मेदारी से भाग खड़े हुए, उसे देखते हुए वह अब अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभाने लायक नहीं रह गए हैं - और इसलिए उन्हें दोबारा से प्रेसीडेंट इलेक्ट नहीं बनाया जा सकता है । नरेन सेमवाल का कहना है कि क्लब जब निलंबित था और उसके निलंबन के वापस होने की कोई संभावना नहीं दिख रही थी, तब ऐसे क्लब के प्रेसीडेंट इलेक्ट के रूप में उन्हें फजीहत व अपमान महसूस हो रहा था - जिससे मुक्त होने के लिए उन्हें प्रेसीडेंट इलेक्ट पद छोड़ देना जरूरी लगा । क्लब के दूसरे प्रमुख लोगों का कहना लेकिन यह है कि क्लब में सलाह किए बिना मनमाने तरीके से नरेन सेमवाल ने जिस तरह प्रेसीडेंट इलेक्ट पद छोड़ा, वह क्लब के साथ धोखा करने जैसा मामला है - और इसे देखते हुए उन्हें अध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता है । मनोज भदोला की अगले रोटरी वर्ष में भी अध्यक्ष बनने की इच्छा और कोशिश को जान/देख कर क्लब के सदस्यों में अलग बेचैनी है । मनोज भदोला ने कुछेक सदस्यों से कहा है कि यह वर्ष तो झगड़े/झंझटों में ही निकल गया, और उन्हें अध्यक्ष के रूप में कुछ करने का मौका ही नहीं मिला - इसलिए वह चाहते हैं कि अगले वर्ष भी वह अध्यक्ष बनें और अध्यक्ष के रूप में कुछ अच्छे काम करके दिखाएँ, जिससे कि उन लोगों के मुँह बंद किए जा सकें जो कह रहे हैं कि अध्यक्ष के रूप में काम कर पाना मनोज भदोला के बस में है ही नहीं । मनोज भदोला की यह इच्छा और कोशिश जान/सुन कर क्लब के लोगों में घबराहट फैल गई है : उन्हें चिंता हुई है कि मनोज भदोला यदि सचमुच दोबारा अध्यक्ष बन गए तो क्लब की इज्जत बचने की जो थोड़ी बहुत उम्मीद बची हुई है भी, वह भी धूल में मिल जाएगी । क्लब में अधिकतर लोगों का मानना और कहना है कि इस वर्ष क्लब में जो झमेला हुआ, वह अध्यक्ष के रूप में मनोज भदोला की अकर्मयता व नाकामी का जीता-जागता सुबूत है; इसलिए उन्हें अध्यक्ष में रूप में एक वर्ष और देना क्लब को जानबूझ कर बर्बादी की तरफ धकेलने जैसा काम होगा ।
क्लब के कर्णधार 'बने' लोगों की समस्या यह है कि क्लब पर कब्जा जमाए लोगों की हरकतों से चूँकि सभी परिचित हैं, इसलिए कोई भी प्रेसीडेंट इलेक्ट बनने को तैयार नहीं है । हर किसी को डर दरअसल यह है कि क्लब को अपनी जागीर समझे बैठे कर्णधार अपनी अपनी मनमानी चलायेंगे और किसी को ठीक से काम ही नहीं करने देंगे - इसलिए आफत में क्यों पड़ना ? क्लब के कर्णधार 'बने' लोगों के बीच चूँकि आपस में भी विश्वास का भारी संकट है, और वह एक दूसरे की खिंचाई करने के चक्कर में ही लगे रहते हैं, इसलिए उनमें से भी कोई प्रेसीडेंट इलेक्ट बनने को तैयार नहीं हो रहा है । क्लब में मजेदार स्थिति यह बनी है कि नरेन सेमवाल और मनोज भदोला प्रेसीडेंट इलेक्ट बनने की तिकड़में लगा रहे हैं, लेकिन उनके ही संगी-साथी उन्हें प्रेसीडेंट इलेक्ट बनाने के लिए राजी नहीं हैं - दूसरी तरफ जिन्हें प्रेसीडेंट इलेक्ट बनने के लिए कहा जा रहा है, वह बनने से बचने की कोशिश कर रहे हैं ।
अपने आप को रोटरी क्लब वैशाली का कर्णधार समझ रहे लोगों के सामने वास्तव में प्रसून चौधरी, विकास चोपड़ा व प्रेम माहेश्वरी द्वारा बनाया गया नया क्लब भी एक गंभीर चुनौती है । डर यह है कि नए क्लब के कामकाज के सामने यदि रोटरी क्लब वैशाली के कामकाज टिक नहीं सके, तो डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच भारी बदनामी होगी । यह डर दरअसल इसलिए है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में हर कोई जानता है कि प्रसून चौधरी व विकास चोपड़ा के अध्यक्ष-काल में जो काम हुए, उनसे ही रोटरी क्लब वैशाली को डिस्ट्रिक्ट में खास ऊँचाई और प्रतिष्ठा मिली थी - जो बाद के वर्षों में क्रमशः घटती गई है । उम्मीद की जा रही है कि उन्हीं प्रसून चौधरी व विकास चोपड़ा की मदद से नया क्लब प्रेम माहेश्वरी के अध्यक्ष-काल में कामकाज के जरिए और नए रिकॉर्ड बनायेगा । ऐसे में, रोटरी क्लब वैशाली के कर्णधारों के सामने चुनौती है कि वह भी अपनी गतिविधियों व अपनी सक्रियताओं को इस तरह से आयोजित करें ताकि प्रसून चौधरी, विकास चोपड़ा व प्रेम माहेश्वरी के नए क्लब से पीछे न दिखें । नया क्लब जिस गुपचुप तरीके से बना - रोटरी क्लब गाजियाबाद हैरिटेज ने नए क्लब को स्पॉन्सर किया और वरिष्ठ रोटेरियन रवींद्र सिंह उसके जीएसआर बने; उससे साबित है कि डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के लोगों का समर्थन भी नए क्लब के साथ है । ऐसे में रोटरी क्लब वैशाली के पदाधिकारियों की चुनौती व जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है । किंतु वहाँ प्रेसीडेंट इलेक्ट पद को लेकर जो घमासान मचा हुआ है, उसे देखते/सुनते हुए वहाँ के हालात सुधरने की उम्मीद लगाए लोगों को झटका लगा है ।

Saturday, April 16, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट के रूप में स्थापित होने वाले रोटरी वरदान ब्लड बैंक के घपले के लिए अजय सिन्हा व जेएस शेरावत के साथ-साथ अशोक अग्रवाल को भी जिम्मेदार 'दिखाने/बताने' के रवैये के चलते जेके गौड़ का मतलबी व अवसरवादी रूप सामने आया

गाजियाबाद । रोटरी वरदान ब्लड बैंक के घपले में अशोक अग्रवाल, अजय सिन्हा व जेएस शेरावत को 'दागी' बना/दिखा कर जेके गौड़ ने जिस तरह 'अकेला' छोड़ दिया है, उससे जेके गौड़ का अवसरवादी रूप एक बार फिर सामने आया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी वरदान ब्लड बैंक की आड़ में कमाई करने की तैयारी कर चुके जेके गौड़ ने जब अपने आप को चारों तरफ से घिरा पाया, और वह ब्लड बैंक के लिए प्रस्तावित मशीनों की कीमत को एक लाख 70 हजार डॉलर से घटा कर मात्र एक लाख डॉलर पर ले आने के लिए मजबूर हुए; और इस तरह 70 हजार डॉलर, यानि 45 लाख रुपए से अधिक की रकम डकार जाने का उनका 'इंतजाम' फेल हो गया - तो सवाल खड़ा हुआ कि इस 'लूट' का इंतजाम करने के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए और किसे सजा दी जाए ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ ने रोटरी वरदान ब्लड बैंक की कमेटी से अशोक अग्रवाल, अजय सिन्हा व जेएस शेरावत को बाहर करके यह साफ संदेश दिया है कि 45 लाख रुपए की रकम फर्जीवाड़ा करके डकारे जाने की 'योजना' इन तीनों ने ही बनाई थी, और सजा के तौर पर इन्हें कमेटी से बाहर कर दिया । मजे की बात यह है कि जिस कमेटी ने ब्लड बैंक के नाम पर 45 लाख रुपए की हेराफेरी करने की योजना बनाई थी, उसके मुख्य कर्ताधर्ता तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट शरत जैन व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सतीश सिंघल थे - इस योजना को 'सफल' बनाने के दाँव-पेंच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में खुद जेके गौड़ चल रहे थे; लेकिन जब जिम्मेदारी तय करने का समय आया तो जेके गौड़ ने बदनामी का दाग अशोक अग्रवाल, अजय सिन्हा व जेएस शेरावत पर लगा दिया ।
जेके गौड़ का कहना है कि डीआरएफसी के रूप में मुकेश अरनेजा ने उनसे इन तीनों को कमेटी से बाहर करने की माँग की थी, जिसे मानने के लिए वह मजबूर हुए । डीआरएफसी के रूप में मुकेश अरनेजा तो लेकिन ब्लड बैंक के लिए खरीदी जाने वाली मशीनों की खरीद से संबंधित डिटेल्स देने की माँग कर रहे थे - जिसे मानने व पूरा करने में जेके गौड़ ने कभी भी दिलचस्पी नहीं ली, और तरह तरह की बहानेबाजी करके वह जिसे लगातार अनसुना करते रहे तथा उससे बचने की तिकड़में लगाते रहे । इस चक्कर में उन्होंने अपने गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट के रूप में स्थापित होने वाले ब्लड बैंक का उद्घाटन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन से करवाने की महत्वाकांक्षी तैयारी तक को धूल में मिल जाने दिया । ऐसे में सवाल यह है कि मुकेश अरनेजा की माँग मानने की बजाए, रोटरी में और शहर/समाज में अपना नाम बनाने/दिखाने के मौके की बलि चढ़ाने के लिए तैयार हो जाने वाले जेके गौड़ - इस बार तीन लोगों को कमेटी से बाहर करने की मुकेश अरनेजा की माँग मानने के लिए मजबूर क्यों हो गए ? जो हुआ, उससे लोगों को प्रथम दृष्टया यही लगा कि ब्लड बैंक के लिए खरीदी जाने वाली मशीनों की आड़ में जेके गौड़ ने हेराफेरी की जो योजना बनाई थी, उसके आरोपों से खुद को बचाने के लिए जेके गौड़ ने अशोक अग्रवाल, अजय सिन्हा व जेएस शेरावत को फँसा दिया - और इसका आरोप भी वह मुकेश अरनेजा के सिर मढ़ने का प्रयास कर रहे हैं । इस मामले में लोगों को हैरानी इस बात पर है कि जेके गौड़ ने अशोक अग्रवाल तक का भी कोई लिहाज नहीं किया और ब्लड बैंक की 'लूट' के लिए उन्होंने अशोक अग्रवाल को भी 'जिम्मेदार' बताने/दिखाने से परहेज नहीं किया ।
अजय सिन्हा व जेएस शेरावत के साथ जेके गौड़ ने जो किया, उसे लेकर किसी को कोई हैरानी नहीं है - किंतु अशोक अग्रवाल को भी उन्होंने अजय सिन्हा व जेएस शेरावत के साथ 'खड़ा' दिया, यह जरूर लोगों के लिए हैरानी की बात है । जेके गौड़ ने यूँ तो बहुत से लोगों के साथ 'यूज एंड थ्रो' वाला फार्मूला अपनाया है, किंतु अशोक अग्रवाल के साथ भी वह अपना यह फार्मूला अपनायेंगे - इसका किसी को विश्वास तो क्या, आभास तक नहीं था । जो लोग जेके गौड़ के प्रति दुर्भावना रखते रहे हैं, उनका भी मानना और कहना रहा कि जैसे डायन के पड़ोस का एक घर छोड़ने की बात मानी/कही जाती रही है - ठीक उसी तर्ज पर जेके गौड़ भी अशोक अग्रवाल को 'छोड़े' रखेंगे । किंतु अब जब मौका आया, तो पता चला कि जेके गौड़ ने अशोक अग्रवाल को भी नहीं छोड़ा । अशोक अग्रवाल के साथ किए गए व्यवहार ने जेके गौड़ के 'असली चरित्र' को उद्घाटित किया है । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ आज रोटरी में जो कुछ भी हैं, उसमें अशोक अग्रवाल का बहुत बड़ा रोल है - सिर्फ बड़ा ही नहीं, प्रमुख व निर्णायक रोल है । जेके गौड़ जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार थे, तब भी; और अब जब जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, तब भी अशोक अग्रवाल उनके साथ जिस तरह से कंधे से कंधा मिला कर खड़े रहे हैं - डिस्ट्रिक्ट में व रोटरी में वैसा दूसरा उदाहरण मिलना मुश्किल क्या, असंभव ही है । जो लोग अशोक अग्रवाल को नजदीक से जानते/पहचानते हैं, वह भी इस बात पर हैरान रहे हैं कि अशोक अग्रवाल तो किसी को कुछ न समझें, फिर वह जेके गौड़ के साथ इस हद तक इन्वॉल्व कैसे हो गए ? जेके गौड़ और अशोक अग्रवाल के दूसरों के साथ भले ही कैसे भी संबंध रहे हों, और अपने अपने व्यवहार व रवैये के चलते दोनों चाहें कितने ही बदनाम रहे हों - लेकिन एक दूसरे के साथ निभाने के मामले में दोनों ने ही अपने नजदीकियों व जानने वालों को हैरान ही किया ।
लेकिन जेके गौड़ ने अंततः दिखा/बता दिया है कि उनका 'चरित्र' बिलकुल भी नहीं बदला है और अशोक अग्रवाल भी उनके लिए दूसरों जैसे ही हैं । कुछेक लोगों को लगता है कि जेके गौड़ के लिए अशोक अग्रवाल की जरूरत चूँकि अब पूरी हो गई है, अशोक अग्रवाल उनके लिए अब ज्यादा काम के नहीं रह गए हैं - इसलिए उन्होंने अशोक अग्रवाल को भी 'थ्रो' करने में  हिचक नहीं दिखाई है । डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट के रूप में स्थापित होने वाले रोटरी वरदान ब्लड बैंक के घपले तथा इस घपले के लिए अजय सिन्हा व जेएस शेरावत के साथ-साथ अशोक अग्रवाल को भी जिम्मेदार 'दिखाने/बताने' के जेके गौड़ के रवैये ने जेके गौड़ के मतलबी और अवसरवादी रूप को सामने लाने का काम किया है ।

Friday, April 15, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में संजीवा अग्रवाल की उम्मीदवारी को मुकेश गोयल की हरी झंडी मिलने पर डीआर गोयल द्वारा दिखाई जा रही नाराजगी ने अजय सिंघल को मुसीबत में फँसाने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक खिलाड़ियों के बीच फिलहाल तो गर्मी पैदा कर दी है

गाजियाबाद । संजीवा अग्रवाल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए मुकेश गोयल की हरी झंडी मिल जाने से खफा डीआर गोयल ने इसके लिए अजय सिंघल को जिम्मेदार ठहराया है, और आरोप लगाया है कि अजय सिंघल ने उनकी बजाए संजीवा अग्रवाल की वकालत की - जिसके चलते मुकेश गोयल ने उनकी बजाए संजीवा अग्रवाल की उम्मीदवारी के दावे को प्राथमिकता दी । डीआर गोयल तथा उनके शुभचिंतकों का कहना है कि वह तो पिछली बार ही अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाह रहे थे, किंतु मुकेश गोयल ने उन्हें अगली बार समर्थन देने का भरोसा देकर उनकी 'चाह' को वापस करवा दिया था । डीआर गोयल तथा उनके शुभचिंतकों का कहना है कि इस 'काम' में अजय सिंघल ने भी अपनी दिलचस्पी व सक्रियता दिखाई थी - लेकिन जब 'अगली बार' के उम्मीदवार का फैसला करने का समय आया, तो अजय सिंघल को डीआर गोयल को दिया गया भरोसा याद नहीं आया; और मुकेश गोयल के सामने अजय सिंघल ने संजीवा अग्रवाल की वकालत की । डीआर गोयल तथा उनके शुभचिंतकों की शिकायत यह है कि अजय सिंघल यूँ तो उनके ही कैम्प के 'आदमी' हैं, लेकिन इसके बावजूद जरूरत पड़ने पर अजय सिंघल ने उनकी मदद से मुँह मोड़ लिया । अजय सिंघल के नजदीकियों का कहना लेकिन यह है कि डीआर गोयल की उम्मीदवारी को यदि तवज्जो नहीं मिली है, तो इसके लिए खुद डीआर गोयल ही जिम्मेदार हैं - और वह नाहक ही अजय सिंघल पर आरोप मढ़ रहे हैं । ऐसा कहने वालों का कहना यह भी है कि इस बार का चुनाव हो जाने के बाद अगली बार के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर डीआर गोयल को सक्रिय होना चाहिए था, लेकिन वह सक्रिय नहीं हुए और अपनी सक्रियता के बल पर संजीवा अग्रवाल ने बाजी मार ली - तो अब डीआर गोयल को इसके लिए अजय सिंघल को दोषी नहीं ठहराना चाहिए ।
मजे की बात यह है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के अगले दावेदार को लेकर जिन संजीवा अग्रवाल, डीआर गोयल और अजय सिंघल के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों का परिदृश्य देखने को मिल रहा है - वह तीनों लायंस क्लब गाजियाबाद के सदस्य हैं, तथा अजय सिंघल अगले लायन वर्ष में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होंगे । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी को लेकर संजीवा अग्रवाल से मात खाए डीआर गोयल को लगता है कि अजय सिंघल यदि उनकी मदद करें, तो उनका काम अभी भी बन सकता है । अजय सिंघल लेकिन इस पचड़े में पड़ने में दिलचस्पी लेते हुए नहीं दिख रहे हैं । क्लब में उनके नजदीकियों का कहना है कि पिछले चुनाव का जो नतीजा रहा, उसे देखते हुए अजय सिंघल को मुकेश गोयल के खिलाफ खड़े होने में कोई फायदा नहीं नजर आ रहा है और वह वैसी बेवकूफी हरगिज नहीं करना चाहेंगे, जैसी शिव कुमार चौधरी ने की और डिस्ट्रिक्ट में पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए । इसके अलावा, अजय सिंघल के लिए डीआर गोयल पर भरोसा करना भी संभव नहीं है । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्षों में डीआर गोयल की उम्मीदवारी की चर्चा कई बार छिड़ चुकी है - लेकिन डीआर गोयल अपनी उम्मीदवारी को लेकर जितनी तेजी से आगे बढ़ते हैं, उससे दुगनी तेजी से फिर पीछे हटते हुए नजर आते हैं; यही कारण है कि उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं लेता है । इस बार भी यही हुआ : इस बार के चुनाव से पहले तो डीआर गोयल उम्मीदवार बनने के लिए बहुत बेताब थे; इतने बेताब कि उन्हें मनाने/बैठाने के लिए मुकेश गोयल को काफी मशक्कत करना पड़ी और धमकाने व पुचकारने तक के हथकंडे आजमाने पड़े । 'अगली बार' का आश्वासन लेकर डीआर गोयल मान/बैठ भी गए, किंतु अगली बार की उम्मीदवारी को सचमुच क्लियर करवाने का मौका आया तो डीआर गोयल 'सोते' पाए गए । उनकी नींद तब टूटी, जब अगली बार का झंडा संजीवा अग्रवाल के हाथों में आ गया ।
संजीवा अग्रवाल से मिली चोट डीआर गोयल और उनके संगी-साथियों को लगता है कि कुछ ज्यादा चुभ रही है, इसलिए उनकी तरफ से गर्मी दिखाई जा रही है - अपनी इस गर्मी में हालाँकि अभी वह अजय सिंघल को ही झुलसाने का काम कर रहे हैं; लेकिन उनकी गर्मी 'देख' कर उन्हें लोगों से तरह तरह की सलाहें भी मिलने लगी हैं । इसमें एक सलाह को तो डीआर गोयल की तरफ से सिरे से नकार दिया गया है, जिसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी के समर्थन से उम्मीदवार बन जाने की बात कही गई है । इस बार के चुनाव में शिव कुमार चौधरी के उम्मीदवार के रूप में रेखा गुप्ता की जो बुरी गत बनी, उससे सबक लेकर डीआर गोयल किसी भी हालत में शिव कुमार चौधरी के उम्मीदवार बनने को तो राजी नहीं हैं । किंतु एक दूसरी सलाह में उन्हें दम दिखता है - जिसमें बताया गया है कि इस बार के चुनावी नतीजे से यह नहीं मान लेना चाहिए कि मुकेश गोयल के समर्थन के बिना चुनाव जीतना असंभव ही है । ऐसा कहने वालों का तर्क है कि इस बार के चुनाव में विनय मित्तल को जो जोरदार ऐतिहासिक जीत मिली है, वह वास्तव में विनय मित्तल की खुद की जीत है । यह ठीक है कि विनय मित्तल को मुकेश गोयल का समर्थन था; रेखा गुप्ता के रूप में उनके सामने एक कमजोर उम्मीदवार था; डिस्ट्रिक्ट में शिव कुमार चौधरी की बदनामियाँ रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को और कमजोर कर रही थीं - लेकिन फिर भी विनय मित्तल को जो रिकॉर्ड-तोड़ बम्पर जीत मिली, वह सिर्फ उन्हीं को मिल सकती थी; उनकी जगह कोई और उम्मीदवार होता, तो ऐसी जीत नहीं प्राप्त कर पाता । जीत प्राप्त कर भी पाता - यह भी कौन दावे के साथ कह सकता है ? इसी बिना पर डीआर गोयल के नजदीकियों को समझाया जा रहा है कि संजीवा अग्रवाल, विनय मित्तल नहीं हैं और डीआर गोयल, रेखा गुप्ता नहीं हैं - इसलिए यदि शिव कुमार चौधरी की छाया से बचकर उम्मीदवार बनते हैं तो मौका अच्छा है ।
इस अच्छे 'मौके' को और अच्छा बनाने का काम शिव कुमार चौधरी की छाया संजीवा अग्रवाल पर पड़ने की संभावना करती है : लोगों के बीच चर्चा है कि संजीवा अग्रवाल के शिव कुमार चौधरी के साथ बिजनेस रिलेशन रहे हैं जो उनके बीच अच्छे संबंध होने/रहने का सुबूत हैं । उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी का झंडा भले ही मुकेश गोयल को थमा दिया है, लेकिन वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी का भी सहयोग/समर्थन लेने का प्रयास करेंगे । संजीवा अग्रवाल के इस प्रयास के चलते, अपनी अपनी मजबूरियों और जरूरतों के चलते मुकेश गोयल और शिव कुमार चौधरी के तार एक बार फिर जुड़ सकते हैं । यह संभावना डीआर गोयल के लिए 'वरदान' बन सकती है - क्योंकि मुकेश गोयल के कई साथियों ने उन्हें खुली चेतावनी दी हुई है कि उन्होंने यदि अब फिर शिव कुमार चौधरी को तवज्जो दी, तो वह उनका साथ छोड़ देंगे । यानि, शिव कुमार चौधरी का सहयोग/समर्थन पाने की संजीवा अग्रवाल की कोशिश अंततः उनका काम बिगाड़ने का ही 'काम' करेगी । इसी तर्क के आधार पर कुछेक नेता डीआर गोयल की उम्मीदवारी को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं; और इसी बिना पर डीआर गोयल व उनके शुभचिंतक अजय सिंघल पर दबाव बना कर उन्हें अपने साथ करने की कोशिश कर रहे हैं । लायंस क्लब गाजियाबाद के कई लोगों का कहना लेकिन यह है कि डीआर गोयल की उम्मीदवारी को हवा देने की चाहें जो कोई भी कोशिश कर रहा हो, तथा स्थितियाँ चाहें कितना ही डीआर गोयल की उम्मीदवारी के अनुकूल हों - लेकिन डीआर गोयल की उम्मीदवारी इतनी सीली हुई है कि वह कोई आग पकड़ ही नहीं सकेगी; दरअसल इसलिए भी अजय सिंघल ने डीआर गोयल कैम्प का 'आदमी' होने के बावजूद उनकी उम्मीदवारी की प्रस्तुति में अपनी तरफ से कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है ।
यही कारण है कि संजीवा अग्रवाल की उम्मीदवारी को मुकेश गोयल की तरफ से हरी झंडी मिल जाने पर डीआर गोयल और उनके समर्थकों द्वारा दिखाई जा रही नाराजगी ने फिलहाल भले ही अजय सिंघल को मुसीबत में फँसाने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के बीच गर्मी पैदा कर दी हो - लेकिन किसी को भी उम्मीद नहीं है कि यह गर्मी ज्यादा दिन तक बनी रह सकेगी । अजय सिंघल भी इसीलिए डीआर गोयल व उनके शुभचिंतकों की अभी की नाराजगी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं ।

Saturday, April 9, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में प्रवीन चंद्र गोयल को अपने क्लब की कॉन्करेंस दिलवाने में यशपाल दास द्वारा की गई मशक्कत की मधुकर मल्होत्रा द्वारा उड़ाई गई खिल्ली के कारण बने माहौल में डीसी बंसल की उम्मीदवारी के लिए मुसीबत बढ़ी

चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ राजा साबू के नेतृत्व में डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स को एक तरफ तो वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने में पसीने छूट रहे हैं, और दूसरी तरफ वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद के चुनाव को जल्दी करा लेने की अपनी तैयारी उन्हें विफल होती हुई दिख रही है - इससे उनके बीच आपस में ही सिर-फुटौव्वल की स्थिति पैदा हो रही है, और अपनी नाकामियों के लिए वह एक दूसरे को ही जिम्मेदार ठहराने लगे हैं । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास को प्रवीन चंद्र गोयल को अपने ही क्लब की कॉन्करेंस दिलवाने में जो मशक्कत करना पड़ी है, उसके कारण वह दूसरे गवर्नर्स - खासकर मधुकर मल्होत्रा के निशाने पर आ गए हैं । मधुकर मल्होत्रा को कहते सुना गया है कि यशपाल दास ख्बाव तो इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने का देख रहे हैं, लेकिन राजनीतिक हैसियत उनकी यह है कि अपने ही क्लब में मनमाफिक फैसला करवाने के लिए उन्हें राजा साबू का नाम लेकर क्लब के पदाधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ रहा है । प्रवीन चंद्र गोयल के लिए कॉन्करेंस जुटाने वास्ते गवर्नर्स को जिस तरह की तिकड़में करना पड़ रही हैं, और फजीहतें झेलना पड़ रही हैं - उससे डीसी बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों की बेचैनी बढ़ती जा रही है । उनकी तरफ से शिकायतें सुनने को मिल रही हैं कि 22 अप्रैल से पहले उनका चुनाव करवा लेने की तैयारी के फेल हो जाने से उनकी मुश्किलें पहले से ही बढ़ गईं हैं, तिसपर कॉन्करेंस जुटाने के काम में आ रही मुसीबतों की खबरों से डीसी बंसल के चुनाव पर खतरा और मंडराने लगा है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में अभी वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद के लिए टीके रूबी और डीसी बंसल के बीच चुनाव होना है, तथा वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद के लिए चुने गए अधिकृत उम्मीदवार जितेंद्र ढींगरा के खिलाफ प्रवीन चंद्र गोयल के चेलैंज को मान्यता दिलवाने का काम होना है - इसमें सफलता मिली तो फिर उनके बीच चुनाव होगा । प्रवीन चंद्र गोयल के चेलैंज को मान्यता दिलवाने के लिए जरूरी कॉन्करेंस इकठ्ठा करने व जमा करने की अंतिम तारीख 22 अप्रैल है । राजा साबू ने गवर्नर्स को जितेंद्र ढींगरा व टीके रूबी को हरवाने की जिम्मेदारी सौंपी हुई है । राजा साबू हालाँकि इस बात से इंकार करते हैं, और कुछेक मौकों पर उन्होंने कहा/दोहराया भी है कि चुनाव से उनका कोई मतलब नहीं है - लेकिन मधुकर मल्होत्रा और यशपाल दास जिस तरह से जब तब राजा साबू का नाम लेकर समर्थन जुटाने का प्रयास करते और माहौल बनाते देखे गए हैं, उससे यह जानने/समझने में किसी को भी शक नहीं रह गया है कि डिस्ट्रिक्ट में चुनावी गंदगी करने/फैलाने के मुख्य प्रेरणा-स्रोत राजा साबू ही हैं । क्या कोई विश्वास कर सकता है कि जो राजा साबू अपने डिस्ट्रिक्ट में और दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में चुनाव के खिलाफ बात करते रहे हों, और अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करने की कोशिशों का विरोध करते रहे हों, उन्हीं राजा साबू के क्लब से - उनकी सहमति के बिना - अधिकृत उम्मीदवार चेलैंज हो जाए ? पर्दे के पीछे से राजा साबू द्वारा मोर्चा सँभाले रखने के बावजूद प्रवीन चंद्र गोयल के लिए कॉन्करेंस जुटाना मुश्किल हो रहा है, और उधर 22 अप्रैल से पहले वर्ष 2017-18 का चुनाव कराने की योजना को सफल बनाने की तैयारी भी कामयाब होती हुई नजर नहीं आ रही है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स खेमे ने वर्ष 2017-18 के गवर्नर का चुनाव 22 अप्रैल से पहले करा लेने की पूरी पूरी तैयारी थी । इसके लिए मनमाने तरीके से गवर्नर डेविड हिल्टन के साथ चार पूर्व गवर्नर्स - प्रेम भल्ला, शाजु पीटर, प्रमोद विज व जीके ठकराल - को लेकर बैलेटिंग कमेटी बना ली गई थी, और उसने काम करना शुरू कर दिया था । टीके रूबी के क्लब की तरफ से इस बैलेटिंग कमेटी के खिलाफ रोटरी इंटरनेशनल में आपत्ति की गई और इसे रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के खिलाफ गठित हुआ बताया गया । रोटरी इंटरनेशनल ने इस आपत्ति को सही पाया तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन को हिदायत दी कि वह रोटरी इंटरनेशनल के नियमानुसार बैलेटिंग कमेटी का गठन करें । डेविड हिल्टन इस हिदायत को मानने के लिए मजबूर हुए और फिर उन्होंने उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों को लेकर बैलेटिंग कमेटी बनाई - जिसमें पूर्व गवर्नर प्रेम भल्ला के साथ पूर्व क्लब अध्यक्ष वीके शर्मा व अजय मदान हैं । इस झमेले में एक तो समय बर्बाद हुआ, और दूसरी बात यह हुई कि नई बनी बैलेटिंग कमेटी में राजा साबू और उनके 'दूतों' के लिए मनमानी करना संभव नहीं रह गया । इसका नतीजा यह हुआ है कि वर्ष 2017-18 का चुनाव 22 अप्रैल से पहले कराने की पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स खेमे की योजना पर पानी फिर गया है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स खेमे को दरअसल पता था कि प्रवीन चंद्र गोयल के लिए कॉन्करेंस जुटाने में इन्हें फजीहत का सामना करना पड़ेगा - इसलिए ही इन्होंने 22 अप्रैल तक टीके रूबी व डीसी बंसल वाला चुनाव करा लेने की योजना बनाई थी । इससे इन्हें दो फायदे होने थे - एक तो कॉन्करेंस जुटाने में होने वाली फजीहत की पोल खुलने से पहले ही यह डीसी बंसल को चुनाव जितवा लेते; और दूसरा फायदा यह होता कि इस जीत का मनोवैज्ञानिक लाभ उठाते हुए यह कॉन्करेंस भी आसानी से जुटा लेते और फिर प्रवीन चंद्र गोयल को चुनाव भी जितवा लेते ।
किंतु बैलेटिंग कमेटी के मुद्दे पर गवर्नर्स खेमे को जो मात मिली, उससे उनकी सारी रणनीति गड़बड़ाती दिख रही है । डीसी बंसल के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी अब लगने लगा है कि प्रवीन चंद्र गोयल के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने में गवर्नर्स को जिस तरह से मुसीबतों के पापड़ बेलने पड़ रहे हैं, उसके चलते उनका चुनाव भी खतरे की तरफ बढ़ता नजर आ रहा है । यशपाल दास के क्लब में जो हुआ, उसकी बात डिस्ट्रिक्ट में फैल जाने के बाद तो मामला और बिगड़ गया है । डिस्ट्रिक्ट में हो रही चर्चा के अनुसार, यशपाल दास के क्लब के पदाधिकारियों ने प्रवीन चंद्र गोयल के पक्ष में कॉन्करेंस देने से साफ इंकार कर दिया था । यह देख कर यशपाल दास ने अपनी इज्जत की दुहाई देना शुरू किया और कहा कि यदि कॉन्करेंस नहीं मिली तो मैं राजा साबू को कैसे मुँह दिखाऊँगा; राजा साबू ने मुझसे कहा है कि तुम्हारे क्लब की कॉन्करेंस तो आराम से मिल ही जायेगी । यशपाल दास ने क्लब के पदाधिकारियों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करते हुए यह भी कहा कि मुझे इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनना है, और इसके लिए राजा साबू की मदद की जरूरत होगी; ऐसे में यदि उनके क्लब के उम्मीदवार को हमने कॉन्करेंस नहीं दी तो फिर राजा साबू मेरी मदद भी नहीं करेंगे । इस तरह की बातों से यशपाल दास को प्रवीन चंद्र गोयल के पक्ष में अपने क्लब की कॉन्करेंस दिलवाने में तो कामयाबी मिल गई - लेकिन इस प्रकरण से यह पोल भी खुल गई कि प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी गवर्नर्स खेमे के लिए बोझ बन गई है, और उनके लिए कॉन्करेंस जुटाने में ही गवर्नर्स नेताओं के छक्के छूट रहे हैं । इस मामले में यशपाल दास की खिल्ली उड़ाने का मधुकर मल्होत्रा को जो मौका मिला है, जिसे इस्तेमाल करने में उन्होंने जरा सी भी देर नहीं लगाई - उसने डिस्ट्रिक्ट में एक अलग रौनक लगाई है ।
डीसी बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों का ही कहना है कि प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी के समर्थन में कॉन्करेंस जुटाने के चक्कर में गवर्नर्स खेमे की तरफ से क्लब्स के पदाधिकारियों पर जो दबाव पड़/बन रहे हैं, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट में गवर्नर्स खेमे के प्रति नाराजगी व विरोध बढ़/फैल रहा है और इसका खामियाजा डीसी बंसल की उम्मीदवारी को भुगतना पड़ सकता है । डीसी बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगने लगा है कि प्रवीन चंद्र गोयल के चक्कर में कहीं उनके हाथ आया सुनहरा मौका उनकी पहुँच से दूर न निकल जाए । अभी कुछ दिन पहले तक डिस्ट्रिक्ट के जो लोग टीके रूबी व डीसी बंसल के बीच होने वाले चुनाव में डीसी बंसल का पलड़ा भारी बता रहे थे, वही लोग अब डीसी बंसल की उम्मीदवारी को मुसीबत में फँसा देख/बता रहे हैं । डीसी बंसल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले लोगों का भी मानना और कहना है कि गवर्नर्स खेमे को प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी को छोड़कर डीसी बंसल की उम्मीदवारी पर ध्यान देना चाहिए, जिससे कि डीसी बंसल की उम्मीदवारी को कामयाब बनाया जा सके - अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि प्रवीन चंद्र गोयल के चक्कर में डीसी बंसल का भी काम बिगड़ जाए । प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने के लिए गवर्नर्स खेमे को जिस तरह से पक्के वाले क्लब्स में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उससे दोहरा खतरा पैदा हुआ है : एक तरफ तो डर यह हुआ है कि तमाम धींगामुश्ती के बाद भी प्रवीन चंद्र गोयल को जरूरी कॉन्करेंस मिले ही न, दूसरा डर यह है कि कॉन्करेंस तो किसी तरह से जुटा ली जाएँ - लेकिन इसके लिए की गई धींगामुश्ती में क्लब्स नाराज हो जाएँ, और नाराजगी का बदला वह चुनाव में लें । दोनों ही स्थितियों में डीसी बंसल की उम्मीदवारी के लिए भारी खतरा है । इस खतरे से बचने/निपटने के लिए डीसी बंसल के समर्थकों व शुभचिंतकों को एक ही रास्ता समझ में आ रहा है, और वह यह कि गवर्नर्स खेमा प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी से हाथ खींच ले तथा पूरी तरह से डीसी बंसल की उम्मीदवारी पर ध्यान लगाए । गवर्नर्स खेमे में शुरू हुई आपसी सिर-फुटौब्बल की इस स्थिति ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है ।

Wednesday, April 6, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव कराने के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन के अड़ियल रवैये के सामने इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई लाचार और असहाय बने हुए हैं

देहरादून । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के मुद्दे पर इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की जैसी फजीहत की है, वह रोटरी के इतिहास की अनोखी और दिलचस्प घटना के रूप में याद रखी जाएगी । रोटरी के इतिहास में किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के हाथों किसी इंटरनेशनल डायरेक्टर की ऐसी फजीहत शायद ही हुई होगी, जैसी डिस्ट्रिक्ट 3080 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन ने मनोज देसाई की कर दी है । मजे की बात यह हुई है कि रोटरी न्यूज व रोटरी समाचार के अप्रैल अंक में मनोज देसाई ने क्रमशः अंग्रेजी व हिंदी में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के बहुत सारे फायदे गिनाते/बताते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग को रोटरी के लिए वक्त की जरूरत बताते हुए उसकी वकालत की है, किंतु डेविड हिल्टन को बात न अंग्रेजी में समझ में आई, और न हिंदी में । मनोज देसाई ने इस अपने लंबे-चौड़े आलेख में यह भी बताया है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग को अपनाने की योजना को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन तथा इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने बहुत सोच-विचार कर प्रस्तावित किया है तथा अभी हाल ही में जोन 5ए में बास्कर चोकालिंगम व सुनील जचारिआ के बीच संपन्न हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का तरीका ही अपनाया गया था । इतनी सब जानकारियों के बावजूद डेविड हिल्टन के कानों पर जूँ नहीं रेंगी और वह अपने गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए होने वाले दोनों चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराने के लिए तैयार नहीं हुए हैं ।
दरअसल डेविड हिल्टन के डिस्ट्रिक्ट के कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों ने मनोज देसाई से अनुरोध किया था कि आप लोग जब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के इतने फायदे बता रहे हो तथा उसकी इतनी वकालत कर रहे हो, तो उनके डिस्ट्रिक्ट में होने वाले चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से ही करवाईयेगा । यह अनुरोध करने वाले क्लब्स के पदाधिकारियों ने मनोज देसाई से साफ साफ कहा/बताया भी कि उनके डिस्ट्रिक्ट में जो चुनाव होने हैं, उनमें उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की तरफ से बेईमानी होने की आशंका है; इसलिए वह चाहते हैं कि उनके डिस्ट्रिक्ट में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग हो - जिससे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को बेईमानी करने का मौका न मिल सके और चुनाव निष्पक्ष हो सकें । उल्लेखनीय तथ्य यह है कि खुद मनोज देसाई ने अपने आलेख में बताया है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव निष्पक्ष तरीके से हो सकेंगे तथा चुनावी शिकायतें दर्ज नहीं करना पड़ेंगी । इसी बिना पर, क्लब्स के पदाधिकारियों की माँग पर मनोज देसाई ने डेविड हिल्टन को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग अपनाने को कहा, डेविड हिल्टन ने पहले तो इस पर चुप्पी साधने व टालमटोल वाला रवैया अपनाया - मनोज देसाई ने लेकिन जब यह कहना जारी रखा, तो डेविड हिल्टन ने उनकी बात मानने से साफ इंकार कर दिया । मनोज देसाई ने कुछेक लोगों से कहा भी कि अब मैं क्या करूँ, डेविड हिल्टन मेरी सुन ही नहीं रहे हैं ? यहाँ हैरानी डेविड हिल्टन के रवैये पर नहीं है, बल्कि मनोज देसाई की लाचारगी और बेचारगी पर है । मनोज देसाई इंटरनेशनल डायरेक्टर हैं, और वह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट व इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के फैसले को लागू करवाने के मामले में एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के सामने असहाय बने हुए हैं - यह एक दिलचस्प नजारा है ।
ऐसा नहीं है कि मनोज देसाई देसाई में किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खिलाफ कार्रवाई करने का दम या अधिकार नहीं है । अभी पिछले दिनों ही उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर सुनील गुप्ता का 'सिर कलम' किया है । सुनील गुप्ता पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मनमानियाँ करने, चुनाव संबंधी पक्षपातपूर्ण बेईमानियाँ करने तथा रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के आदेशों का पालन न करने के आरोप थे । मनोज देसाई ने 'झटके' के साथ उनकी गवर्नरी छीन ली । सुनील गुप्ता गुहार लगाते रहे कि उनकी गवर्नरी उतने दिन तो बनी रहने दो, जितने दिन में वह 'पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर' बनने के अधिकारी बन जाए । मनोज देसाई ने लेकिन स्पाइन सर्जन के अपने अनुभव का फायदा उठाते हुए सुनील गुप्ता की ऐसी सर्जरी की, कि वह न गवर्नर रहे और न 'पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर' कहलाने के अधिकारी रहे । रोटरी में लोगों के बीच हैरानी इसी बात की है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर सुनील गुप्ता पर दम दिखाने वाले मनोज देसाई का डिस्ट्रिक्ट 3080 के गवर्नर डेविड हिल्टन के सामने दम फूला/निकला क्यों पड़ा है ? क्या इसका कारण यह है कि सुनील गुप्ता की वकालत करने वाला चूँकि कोई नहीं था, तो उन पर तो मनोज देसाई ने अपनी बहादुरी दिखा दी; लेकिन डेविड हिल्टन के पीछे पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू का दम है, तो इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई अपनी फजीहत होने के बाद भी बगले झाँक रहे हैं ?
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3080 में नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवारों - टीके रूबी तथा जितेंद्र ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न बनने देने की जिद पर अड़े राजा साबू ने जिस जिस तरह की हरकतें कीं और करवाई हैं - उससे रोटरी में उनके डिस्ट्रिक्ट की तथा खुद उनकी भारी फजीहत हुई है । राजा साबू ने हालाँकि इससे कोई सबक नहीं सीखा है, और इसीलिए उनकी ही शह पर उनके डिस्ट्रिक्ट का गवर्नर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मामले में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट व इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा लिए गए फैसले को क्रियान्वित करने के इंटरनेशनल डायरेक्टर के अनुरोध को मानने से इंकार कर दे रहा है । इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की वकालत व माँग करने वाले लोगों का आरोप है कि राजा साबू एंड कंपनी को डर है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग में उन्हें बेईमानी करने का मौका नहीं मिलेगा और तब टीके रूबी व जितेंद्र ढींगरा चुनाव जीत जायेंगे । इन दोनों को चूँकि बेईमानी से ही हराया जा सकता है, और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग में बेईमानी करने की गुंजाइश नहीं मिलेगी/रहेगी - इसलिए राजा साबू की शह पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनाव कराने के मनोज देसाई के आदेशपूर्ण सुझाव को स्वीकार करने से साफ इंकार कर रहे हैं; और मामला चूँकि राजा साबू का है - इसलिए मनोज देसाई भी अपनी बेचारगी व लाचारगी दिखा कर अपनी फजीहत झेल रहे हैं ।
ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट 3080 में वर्ष 2017-18 के तथा वर्ष 2018-19 के गवर्नर के लिए होने वाले चुनाव ईमानदारी व निष्पक्ष तरीके से हो सकने को लेकर संदेह पैदा हो गया है, तथा रोटरी व उसके बड़े पदाधिकारियों के लिए इन दोनों चुनावों को निष्पक्ष तरीके से करवा पाना एक बड़ी चुनौती बन गया है ।

Tuesday, April 5, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में निलंबित रोटरी क्लब वैशाली का कार्यभार मनोज भदोला को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की बदौलत क्या सचमुच वापस मिलने जा रहा है ?

गाजियाबाद । रोटरी क्लब वैशाली का मामला पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के गले की फाँस बनता दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब वैशाली अपने पदाधिकारियों के आपसी झगड़ों तथा रोटरी विरोधी गतिविधियों में संलग्न रहने के कारण निलंबित है, जिस कारण क्लब के सदस्यों के ड्यूज लेना/जमा करना बंद कर दिया गया है । क्लब के पदाधिकारियों के एक गुट ने होशियारी दिखाते हुए रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय में ड्यूज जमा कराने की कोशिश की, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय ने लेकिन जिसे कामयाब नहीं होने दिया । क्लब के पदाधिकारियों के इसी गुट के लोगों की तरफ से अब दावा किया जा रहा है कि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वह जल्दी ही उनके क्लब का निलंबन खत्म करवायेंगे । इन्हीं लोगों की तरफ से यह दावा भी किया जा रहा है कि सुशील गुप्ता ने इनकी माँग भी मान ली है कि जिन पाँच/छह लोगों को यह क्लब में नहीं रखना चाहते हैं, उन्हें यह क्लब से निकाल सकते हैं । क्लब के दूसरे सदस्यों व पदाधिकारियों की तरफ से डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लेकिन यह सुनने को भी मिल रहा है कि यदि ऐसा हुआ तो वह इस अन्याय के खिलाफ रोटरी इंटरनेशनल से लेकर देश की अदालतों तक का दरवाजा खटखटायेंगे । इनका कहना है कि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की न्यायप्रियता पर उन्हें पूरा भरोसा है, और उन्हें उम्मीद है कि किन्हीं सिफारिशों के चलते वह क्लब पर उन लोगों को फिर से काबिज नहीं होने देंगे, जिन्होंने रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों का तो पालन नहीं ही किया - अपनी हरकतों से क्लब में झगड़ा पैदा किया तथा रोटरी को बदनाम किया ।
रोटरी क्लब वैशाली का जो झगड़ा है, उसके घटना-क्रम को यदि सिलसिलेवार तरीके से देखें, तो यह सीधे सीधे निलंबित क्लब के अध्यक्ष मनोज भदोला की मनमानी, बेबकूफीभरी, सौदेबाजीपूर्ण तथा रोटरी विरोधी कार्यप्रणाली का नतीजा है । मनोज भदोला न अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह कर सके और न अध्यक्ष पद की गरिमा को बनाए/बचाए रख सके । हालाँकि यह सच है कि उनके अध्यक्ष-काल में क्लब में रोटरी नियमों व रोटरी भावनाओं के जो घुर्रे बिखरे और क्लब में रोटरी मजाक बन कर रह गई, उसमें क्लब के दूसरे पदाधिकारियों तथा सदस्यों की भी भूमिका व जिम्मेदारी रही है - लेकिन यह सब हुआ इसलिए ही क्योंकि अध्यक्ष के रूप में मनोज भदोला स्थितियों को सँभालने की बजाए खुद एक पक्ष बन गए तथा रोटरी नियमों का उल्लंघन करने व रोटरी के उच्च आदर्शों व भावनाओं की ऐसी-तैसी करने में शामिल हो गए । मजे की बात यह है कि अब वही मनोज भदोला तथा उनके साथी लोगों को बता रहे हैं कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश अरनेजा तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सतीश सिंघल ने मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता को 'सेट' कर लिया है, और फैसला करने की जिम्मेदारी सुशील गुप्ता को मिल गई है - और सुशील गुप्ता न सिर्फ क्लब का निलंबन वापस करवायेंगे, बल्कि मनोज भदोला को अध्यक्ष पद भी वापस दिलवायेंगे और क्लब के कुछेक पदाधिकारियों व सदस्यों को क्लब से निकलवाने का अधिकार भी उन्हें दिलवायेंगे ।
मनोज भदोला व उनके साथियों की तरफ से डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बताया जा रहा है कि सुशील गुप्ता इस बात से बहुत प्रभावित हैं कि क्लब के सदस्यों का बहुमत उनके साथ है । डिस्ट्रिक्ट में जो लोग रोटरी क्लब वैशाली के मनोज भदोला के अध्यक्ष-काल की गतिविधियों व हरकतों से परिचित हैं, उन्हें हैरानी इस बात की है कि बहुमत के तथाकथित समर्थन की आड़ में सुशील गुप्ता क्या सचमुच मनोज भदोला की कार्रवाइयों व हरकतों को स्वीकृति प्रदान कर देंगे ? उल्लेखनीय है कि मनोज भदोला क्लब के अध्यक्ष बने थे - जिससे यह बात स्वतः जाहिर है कि क्लब के सदस्यों का उन्हें पूरा पूरा समर्थन प्राप्त था । क्लब में जो बबाल मचा, उसका संबंध उन्हें मिलने वाले समर्थन से बिलकुल भी नहीं था - उसका संबंध उनकी कार्रवाइयों व हरकतों से था । क्लब के पदाधिकारियों व सदस्यों का ही आरोप रहा कि अध्यक्ष के रूप में मनोज भदोला क्लब में सदस्यों के बीच व्यावहारिक सौहार्द बनाए रखने का कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं तथा पक्षपातपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का कोई पालन नहीं कर रहे हैं, क्लब के खर्चों का कोई हिसाब-किताब नहीं रख/कर रहे हैं, पिछले वर्ष किए गए प्रोजेक्ट के खर्चों का हिसाब देने/लेने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अपना समर्थन व वोट बेचने के लिए सौदेबाजी कर रहे हैं - और सबसे गंभीर आरोप यह कि फैलोशिप के नाम पर क्लब में शराबबाजी व लफंगई को बढ़ावा दिया जा रहा है । कोढ़ में खाज की बात यह कि शराबबाजी व लफंगे एक्शन वाली तस्वीरें सोशल साइट्स पर प्रसारित की जाती रहीं - जिससे कि न सिर्फ क्लब का बल्कि दूसरे आम लोगों के बीच रोटरी का और डिस्ट्रिक्ट का नाम भी खराब हुआ ।
इन्हीं आरोपों के चलते, मनोज भदोला व उनके साथियों के सुशील गुप्ता को 'सेट' कर लेने के दावे पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को हैरानी हुई है । वह आपस में एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि सुशील गुप्ता एक वरिष्ठ रोटेरियन हैं, इंटरनेशनल डायरेक्टर रहे हैं - क्या वह मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल की सिफारिश पर मनोज भदोला तथा उनके साथियों की रोटरी विरोधी हरकतों को बिलकुल ही नजरअंदाज कर देंगे और क्लब को उन्हीं लोगों को सौंप देने की वकालत करेंगे ? सुशील गुप्ता को रोटरी क्लब वैशाली के फेसबुक पेज पर लगाई गईं कुछेक बेहूदा व अशालीन किस्म की तस्वीरें भेजी गईं हैं - यह बताने के लिए कि मनोज भदोला अपने अध्यक्ष-काल में यह रोटरी का आखिर कौन सा प्रोजेक्ट कर रहे हैं, और या फैलोशिप के नाम पर किस तरह की लफंगई को शह दे रहे हैं । क्लब के ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट के कई लोगों का मानना और कहना है कि सुशील गुप्ता ने इन तथ्यों को अनदेखा करते हुए रोटरी क्लब वैशाली यदि सचमुच उन्हीं लोगों को वापस दिलवा दिया, जो क्लब में बबाल करवाने तथा क्लब को मटरगश्ती का अड्डा समझने/बनाने के काम में लगे रहे - तो यह डिस्ट्रिक्ट के लिए, रोटरी के लिए - और खुद उनकी प्रतिष्ठा के लिए आत्मघाती होगा ।