गाजियाबाद । रोटरी क्लब वैशाली में निलंबन रद्द होने के तुरंत बाद ही प्रेसीडेंट इलेक्ट पद को लेकर क्लब के प्रमुख कर्ताधर्ताओं के बीच
जो घमासान मचा है, उसने उन लोगों को बड़ा निराश किया है - जिन्हें उम्मीद थी
कि क्लब के प्रमुख लोगों ने अपनी कारस्तानियों के चलते मिली बदनामियों और
मुसीबतों के हाल ही के अपने अनुभव से सबक सीखा होगा और अब वह अपनी स्वार्थी व घटिया सोच को छोड़ कर गंभीरता व मैच्योरिटी का व्यवहार करेंगे । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब वैशाली अपने पदाधिकारियों के आपसी झगड़ों तथा
रोटरी विरोधी गतिविधियों में संलग्न रहने के कारण पिछले कुछेक महीनों से निलंबित था । क्लब के पदाधिकारियों तथा उनके नजदीकी सदस्यों ने क्लब के ही दूसरे सदस्यों को अपनी लंपटता व लफंगई का शिकार नहीं बनाया, बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व रोटरी के अन्य बड़े पदाधिकारियों - और रोटरी के कार्यक्रमों के खिलाफ भी अशालीन व अभद्र व्यवहार प्रदर्शित किया । उनकी हरकतों पर जब चारों तरफ से बदनामी व थू थू के दाग पड़े और गहरे होने लगे - तो क्लब के पदाधिकारियों को कुछ अक्ल आई, और तब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व अन्य पदाधिकारियों से उन्होंने माफी माँगना शुरू किया । माफी व खुशामद का सहारा लेकर उन्होंने अपने क्लब का
निलंबन वापस करवा लिया - उनके लिए इससे भी बड़ी राहत की बात यह रही कि जिन
प्रसून चौधरी, विकास चोपड़ा व प्रेम माहेश्वरी के साथ वह अपना झगड़ा बता रहे
थे, उन्होंने अपना एक अलग क्लब बना लिया । इससे हर किसी को उम्मीद बनी कि रोटरी क्लब वैशाली का झमेला समाप्त हो गया है, तथा यह क्लब भी अब दूसरे क्लब्स की तरह चलेगा ।
किंतु निलंबन से बाहर आए रोटरी क्लब वैशाली में अब एक नया झगड़ा सुना जा रहा है - जो प्रेसीडेंट इलेक्ट पद को लेकर है । उल्लेखनीय
है कि इस पद पर नरेन सेमवाल थे, जिन्होंने लेकिन पेट्स से पहले इस्तीफा दे
दिया था । क्लब का निलंबन खत्म हो जाने के बाद किंतु जो फिर से प्रेसीडेंट
इलेक्ट बनाए जाने की माँग करने लगे हैं - क्लब के दूसरे लोग इसके लिए लेकिन राजी नहीं हैं ।
उनका कहना है कि मुश्किल समय में नरेन सेमवाल जिस तरह क्लब के लोगों को
अँधेरे में रख कर अपनी जिम्मेदारी से भाग खड़े हुए, उसे देखते हुए वह अब
अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभाने लायक नहीं रह गए हैं - और इसलिए उन्हें
दोबारा से प्रेसीडेंट इलेक्ट नहीं बनाया जा सकता है । नरेन सेमवाल का कहना
है कि क्लब जब निलंबित था और उसके निलंबन के वापस होने की कोई संभावना नहीं
दिख रही थी, तब ऐसे क्लब के प्रेसीडेंट इलेक्ट के रूप में उन्हें फजीहत व
अपमान महसूस हो रहा था - जिससे मुक्त होने के लिए उन्हें प्रेसीडेंट इलेक्ट
पद छोड़ देना जरूरी लगा । क्लब के दूसरे प्रमुख लोगों का कहना लेकिन यह
है कि क्लब में सलाह किए बिना मनमाने तरीके से नरेन सेमवाल ने जिस तरह
प्रेसीडेंट इलेक्ट पद छोड़ा, वह क्लब के साथ धोखा करने जैसा मामला है - और
इसे देखते हुए उन्हें अध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता है । मनोज भदोला की अगले रोटरी वर्ष में भी अध्यक्ष बनने की इच्छा और कोशिश को जान/देख कर क्लब के सदस्यों में अलग
बेचैनी है । मनोज भदोला ने कुछेक सदस्यों से कहा है कि यह वर्ष तो
झगड़े/झंझटों में ही निकल गया, और उन्हें अध्यक्ष के रूप में कुछ करने का
मौका ही नहीं मिला - इसलिए वह चाहते हैं कि अगले वर्ष भी वह अध्यक्ष बनें
और अध्यक्ष के रूप में कुछ अच्छे काम करके दिखाएँ, जिससे कि उन लोगों के
मुँह बंद किए जा सकें जो कह रहे हैं कि अध्यक्ष के रूप में काम कर पाना
मनोज भदोला के बस में है ही नहीं । मनोज भदोला की यह इच्छा और कोशिश
जान/सुन कर क्लब के लोगों में घबराहट फैल गई है : उन्हें चिंता हुई है कि
मनोज भदोला यदि सचमुच दोबारा अध्यक्ष बन गए तो क्लब की इज्जत बचने की जो
थोड़ी बहुत उम्मीद बची हुई है भी, वह भी धूल में मिल जाएगी । क्लब में
अधिकतर लोगों का मानना और कहना है कि इस वर्ष क्लब में जो झमेला हुआ, वह
अध्यक्ष के रूप में मनोज भदोला की अकर्मयता व नाकामी का जीता-जागता सुबूत
है; इसलिए उन्हें अध्यक्ष में रूप में एक वर्ष और देना क्लब को जानबूझ कर
बर्बादी की तरफ धकेलने जैसा काम होगा ।
क्लब के कर्णधार
'बने' लोगों की समस्या यह है कि क्लब पर कब्जा जमाए लोगों की हरकतों से
चूँकि सभी परिचित हैं, इसलिए कोई भी प्रेसीडेंट इलेक्ट बनने को तैयार नहीं
है । हर किसी को डर दरअसल यह है कि क्लब को अपनी जागीर समझे बैठे कर्णधार
अपनी अपनी मनमानी चलायेंगे और किसी को ठीक से काम ही नहीं करने देंगे -
इसलिए आफत में क्यों पड़ना ? क्लब के कर्णधार 'बने' लोगों के बीच चूँकि आपस में भी विश्वास का भारी संकट है, और वह एक दूसरे की खिंचाई करने के चक्कर में ही लगे रहते हैं, इसलिए उनमें से भी कोई प्रेसीडेंट इलेक्ट बनने को तैयार नहीं हो रहा है । क्लब में मजेदार स्थिति यह बनी है कि नरेन सेमवाल और मनोज भदोला प्रेसीडेंट इलेक्ट बनने की
तिकड़में लगा रहे हैं, लेकिन उनके ही संगी-साथी उन्हें प्रेसीडेंट इलेक्ट बनाने के लिए राजी
नहीं हैं - दूसरी तरफ जिन्हें प्रेसीडेंट इलेक्ट बनने के लिए कहा जा रहा है, वह बनने
से बचने की कोशिश कर रहे हैं ।
अपने आप को रोटरी क्लब वैशाली का कर्णधार समझ रहे लोगों के सामने वास्तव में प्रसून चौधरी, विकास चोपड़ा व प्रेम माहेश्वरी द्वारा बनाया गया नया क्लब भी एक गंभीर चुनौती है । डर यह है कि नए क्लब के कामकाज के सामने यदि रोटरी क्लब वैशाली के कामकाज टिक नहीं सके, तो डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच भारी बदनामी होगी । यह डर दरअसल इसलिए है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में हर कोई जानता है कि प्रसून चौधरी व विकास चोपड़ा के अध्यक्ष-काल में जो काम हुए, उनसे ही रोटरी क्लब वैशाली को डिस्ट्रिक्ट में खास ऊँचाई और प्रतिष्ठा मिली थी - जो बाद के वर्षों में क्रमशः घटती गई है । उम्मीद की जा रही है कि उन्हीं प्रसून चौधरी व विकास चोपड़ा की मदद से नया क्लब प्रेम माहेश्वरी के अध्यक्ष-काल में
कामकाज के जरिए और नए रिकॉर्ड बनायेगा । ऐसे में, रोटरी क्लब वैशाली के
कर्णधारों के सामने चुनौती है कि वह भी अपनी गतिविधियों व अपनी सक्रियताओं
को इस तरह से आयोजित करें ताकि प्रसून चौधरी, विकास चोपड़ा व प्रेम
माहेश्वरी के नए क्लब से पीछे न दिखें । नया क्लब जिस गुपचुप तरीके से
बना - रोटरी क्लब गाजियाबाद हैरिटेज ने नए क्लब को स्पॉन्सर किया और वरिष्ठ
रोटेरियन रवींद्र सिंह उसके जीएसआर बने; उससे साबित है कि डिस्ट्रिक्ट के
सत्ता खेमे के लोगों का समर्थन भी नए क्लब के साथ है । ऐसे में रोटरी क्लब
वैशाली के पदाधिकारियों की चुनौती व जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है ।
किंतु वहाँ प्रेसीडेंट इलेक्ट पद को लेकर जो घमासान मचा हुआ है, उसे
देखते/सुनते हुए वहाँ के हालात सुधरने की उम्मीद लगाए लोगों को झटका लगा है
।