चंडीगढ़
। राजेंद्र उर्फ राजा साबू के नेतृत्व में डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स को एक
तरफ तो वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में प्रवीन चंद्र
गोयल की उम्मीदवारी के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने में पसीने छूट रहे हैं,
और दूसरी तरफ वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद के चुनाव को जल्दी करा लेने की
अपनी तैयारी उन्हें विफल होती हुई दिख रही है - इससे उनके बीच आपस में ही
सिर-फुटौव्वल की स्थिति पैदा हो रही है, और अपनी नाकामियों के लिए वह एक
दूसरे को ही जिम्मेदार ठहराने लगे हैं । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर
यशपाल दास को प्रवीन चंद्र गोयल को अपने ही क्लब की कॉन्करेंस दिलवाने में
जो मशक्कत करना पड़ी है, उसके कारण वह दूसरे गवर्नर्स - खासकर मधुकर
मल्होत्रा के निशाने पर आ गए हैं । मधुकर मल्होत्रा को कहते सुना गया है कि
यशपाल दास ख्बाव तो इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने का देख रहे हैं, लेकिन
राजनीतिक हैसियत उनकी यह है कि अपने ही क्लब में मनमाफिक फैसला करवाने के
लिए उन्हें राजा साबू का नाम लेकर क्लब के पदाधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाना
पड़ रहा है । प्रवीन चंद्र गोयल के लिए कॉन्करेंस जुटाने वास्ते
गवर्नर्स को जिस तरह की तिकड़में करना पड़ रही हैं, और फजीहतें झेलना पड़ रही
हैं - उससे डीसी बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों की बेचैनी बढ़ती जा रही है ।
उनकी तरफ से शिकायतें सुनने को मिल रही हैं कि 22 अप्रैल से पहले उनका
चुनाव करवा लेने की तैयारी के फेल हो जाने से उनकी मुश्किलें पहले से ही बढ़
गईं हैं, तिसपर कॉन्करेंस जुटाने के काम में आ रही मुसीबतों की खबरों से डीसी बंसल के चुनाव पर खतरा और मंडराने लगा है ।
उल्लेखनीय
है कि डिस्ट्रिक्ट में अभी वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद के लिए टीके रूबी और
डीसी बंसल के बीच चुनाव होना है, तथा वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद के लिए
चुने गए अधिकृत उम्मीदवार जितेंद्र ढींगरा के खिलाफ प्रवीन चंद्र गोयल के
चेलैंज को मान्यता दिलवाने का काम होना है - इसमें सफलता मिली तो फिर उनके
बीच चुनाव होगा । प्रवीन चंद्र गोयल के चेलैंज को मान्यता दिलवाने के लिए
जरूरी कॉन्करेंस इकठ्ठा करने व जमा करने की अंतिम तारीख 22 अप्रैल है ।
राजा साबू ने गवर्नर्स को जितेंद्र ढींगरा व टीके रूबी को हरवाने की
जिम्मेदारी सौंपी हुई है । राजा साबू हालाँकि इस बात से इंकार करते हैं,
और कुछेक मौकों पर उन्होंने कहा/दोहराया भी है कि चुनाव से उनका कोई मतलब
नहीं है - लेकिन मधुकर मल्होत्रा और यशपाल दास जिस तरह से जब तब राजा साबू
का नाम लेकर समर्थन जुटाने का प्रयास करते और माहौल बनाते देखे गए हैं,
उससे यह जानने/समझने में किसी को भी शक नहीं रह गया है कि डिस्ट्रिक्ट में
चुनावी गंदगी करने/फैलाने के मुख्य प्रेरणा-स्रोत राजा साबू ही हैं ।
क्या कोई विश्वास कर सकता है कि जो राजा साबू अपने डिस्ट्रिक्ट में और
दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में चुनाव के खिलाफ बात करते रहे हों, और अधिकृत
उम्मीदवार को चेलैंज करने की कोशिशों का विरोध करते रहे हों, उन्हीं राजा
साबू के क्लब से - उनकी सहमति के बिना - अधिकृत उम्मीदवार चेलैंज हो जाए ? पर्दे
के पीछे से राजा साबू द्वारा मोर्चा सँभाले रखने के बावजूद प्रवीन चंद्र
गोयल के लिए कॉन्करेंस जुटाना मुश्किल हो रहा है, और उधर 22 अप्रैल से पहले
वर्ष 2017-18 का चुनाव कराने की योजना को सफल बनाने की तैयारी भी कामयाब होती हुई नजर नहीं आ रही है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के
गवर्नर्स खेमे ने वर्ष 2017-18 के गवर्नर का चुनाव 22 अप्रैल से पहले करा
लेने की पूरी पूरी तैयारी थी । इसके लिए मनमाने तरीके से गवर्नर डेविड
हिल्टन के साथ चार पूर्व गवर्नर्स - प्रेम भल्ला, शाजु पीटर, प्रमोद विज व
जीके ठकराल - को लेकर बैलेटिंग कमेटी बना ली गई थी, और उसने काम करना शुरू
कर दिया था । टीके रूबी के क्लब की तरफ से इस बैलेटिंग कमेटी के खिलाफ
रोटरी इंटरनेशनल में आपत्ति की गई और इसे रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के
खिलाफ गठित हुआ बताया गया । रोटरी इंटरनेशनल ने इस आपत्ति को सही पाया
तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन को हिदायत दी कि वह रोटरी इंटरनेशनल
के नियमानुसार बैलेटिंग कमेटी का गठन करें । डेविड हिल्टन इस हिदायत को
मानने के लिए मजबूर हुए और फिर उन्होंने उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों को
लेकर बैलेटिंग कमेटी बनाई - जिसमें पूर्व गवर्नर प्रेम भल्ला के साथ
पूर्व क्लब अध्यक्ष वीके शर्मा व अजय मदान हैं । इस झमेले में एक तो समय
बर्बाद हुआ, और दूसरी बात यह हुई कि नई बनी बैलेटिंग कमेटी में राजा साबू
और उनके 'दूतों' के लिए मनमानी करना संभव नहीं रह गया । इसका नतीजा यह हुआ
है कि वर्ष 2017-18 का चुनाव 22 अप्रैल से पहले कराने की पूर्व डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर्स खेमे की योजना पर पानी फिर गया है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स
खेमे को दरअसल पता था कि प्रवीन चंद्र गोयल के लिए कॉन्करेंस जुटाने में
इन्हें फजीहत का सामना करना पड़ेगा - इसलिए ही इन्होंने 22 अप्रैल तक टीके
रूबी व डीसी बंसल वाला चुनाव करा लेने की योजना बनाई थी । इससे इन्हें
दो फायदे होने थे - एक तो कॉन्करेंस जुटाने में होने वाली फजीहत की पोल
खुलने से पहले ही यह डीसी बंसल को चुनाव जितवा लेते; और दूसरा फायदा यह
होता कि इस जीत का मनोवैज्ञानिक लाभ उठाते हुए यह कॉन्करेंस भी आसानी से
जुटा लेते और फिर प्रवीन चंद्र गोयल को चुनाव भी जितवा लेते ।
किंतु
बैलेटिंग कमेटी के मुद्दे पर गवर्नर्स खेमे को जो मात मिली, उससे उनकी
सारी रणनीति गड़बड़ाती दिख रही है । डीसी बंसल के समर्थकों व शुभचिंतकों को
भी अब लगने लगा है कि प्रवीन चंद्र गोयल के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने में
गवर्नर्स को जिस तरह से मुसीबतों के पापड़ बेलने पड़ रहे हैं, उसके चलते उनका
चुनाव भी खतरे की तरफ बढ़ता नजर आ रहा है । यशपाल दास के क्लब में जो हुआ,
उसकी बात डिस्ट्रिक्ट में फैल जाने के बाद तो मामला और बिगड़ गया है । डिस्ट्रिक्ट
में हो रही चर्चा के अनुसार, यशपाल दास के क्लब के पदाधिकारियों ने प्रवीन
चंद्र गोयल के पक्ष में कॉन्करेंस देने से साफ इंकार कर दिया था । यह देख
कर यशपाल दास ने अपनी इज्जत की दुहाई देना शुरू किया और कहा कि यदि
कॉन्करेंस नहीं मिली तो मैं राजा साबू को कैसे मुँह दिखाऊँगा; राजा
साबू ने मुझसे कहा है कि तुम्हारे क्लब की कॉन्करेंस तो आराम से मिल ही
जायेगी । यशपाल दास ने क्लब के पदाधिकारियों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल
करते हुए यह भी कहा कि मुझे इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनना है, और इसके लिए
राजा साबू की मदद की जरूरत होगी; ऐसे में यदि उनके क्लब के उम्मीदवार को
हमने कॉन्करेंस नहीं दी तो फिर राजा साबू मेरी मदद भी नहीं करेंगे । इस
तरह की बातों से यशपाल दास को प्रवीन चंद्र गोयल के पक्ष में अपने क्लब की
कॉन्करेंस दिलवाने में तो कामयाबी मिल गई - लेकिन इस प्रकरण से यह पोल भी
खुल गई कि प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी गवर्नर्स खेमे के लिए बोझ बन गई
है, और उनके लिए कॉन्करेंस जुटाने में ही गवर्नर्स नेताओं के छक्के छूट
रहे हैं । इस मामले में यशपाल दास की खिल्ली उड़ाने का मधुकर मल्होत्रा को जो मौका मिला है, जिसे इस्तेमाल करने में उन्होंने जरा सी भी देर नहीं लगाई - उसने डिस्ट्रिक्ट में एक अलग रौनक लगाई है ।
डीसी
बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों का ही कहना है कि प्रवीन चंद्र गोयल की
उम्मीदवारी के समर्थन में कॉन्करेंस जुटाने के चक्कर में गवर्नर्स खेमे की
तरफ से क्लब्स के पदाधिकारियों पर जो दबाव पड़/बन रहे हैं, उसके कारण
डिस्ट्रिक्ट में गवर्नर्स खेमे के प्रति नाराजगी व विरोध बढ़/फैल रहा है और
इसका खामियाजा डीसी बंसल की उम्मीदवारी को भुगतना पड़ सकता है । डीसी बंसल
की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगने लगा है कि प्रवीन चंद्र
गोयल के चक्कर में कहीं उनके हाथ आया सुनहरा मौका उनकी पहुँच से दूर न निकल
जाए । अभी कुछ दिन पहले तक डिस्ट्रिक्ट के जो लोग टीके रूबी व डीसी
बंसल के बीच होने वाले चुनाव में डीसी बंसल का पलड़ा भारी बता रहे थे, वही
लोग अब डीसी बंसल की उम्मीदवारी को मुसीबत में फँसा देख/बता रहे हैं ।
डीसी बंसल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले लोगों का भी
मानना और कहना है कि गवर्नर्स खेमे को प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी को
छोड़कर डीसी बंसल की उम्मीदवारी पर ध्यान देना चाहिए, जिससे कि डीसी बंसल की
उम्मीदवारी को कामयाब बनाया जा सके - अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि प्रवीन
चंद्र गोयल के चक्कर में डीसी बंसल का भी काम बिगड़ जाए । प्रवीन चंद्र गोयल
की उम्मीदवारी के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने के लिए गवर्नर्स खेमे को जिस
तरह से पक्के वाले क्लब्स में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उससे
दोहरा खतरा पैदा हुआ है : एक तरफ तो डर यह हुआ है कि तमाम धींगामुश्ती के
बाद भी प्रवीन चंद्र गोयल को जरूरी कॉन्करेंस मिले ही न, दूसरा डर यह है कि
कॉन्करेंस तो किसी तरह से जुटा ली जाएँ - लेकिन इसके लिए की गई
धींगामुश्ती में क्लब्स नाराज हो जाएँ, और नाराजगी का बदला वह चुनाव में
लें । दोनों ही स्थितियों में डीसी बंसल की उम्मीदवारी के लिए भारी खतरा है
। इस खतरे से बचने/निपटने के लिए डीसी बंसल के समर्थकों व शुभचिंतकों
को एक ही रास्ता समझ में आ रहा है, और वह यह कि गवर्नर्स खेमा प्रवीन चंद्र
गोयल की उम्मीदवारी से हाथ खींच ले तथा पूरी तरह से डीसी बंसल की
उम्मीदवारी पर ध्यान लगाए । गवर्नर्स खेमे में शुरू हुई आपसी सिर-फुटौब्बल
की इस स्थिति ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को खासा
दिलचस्प बना दिया है ।