Monday, July 31, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में तेजपाल खिल्लन की मनमानी हरकतों से विनय गर्ग क्या एक कागजी और कठपुतली चेयरमैन साबित होते जा रहे हैं ?

नई दिल्ली । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों के चयन को लेकर तेजपाल खिल्लन और जेपी सिंह के बीच जो साँप-छुछुंदर की सी लड़ाई चल रही है, उसने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग के लिए भारी मुसीबत पैदा कर दी है । एसके मधोक को जीएलटी एरिया लीडर तथा अनिल तुलस्यान को जीएमटी एरिया लीडर बनवा कर जेपी सिंह ने तेजपाल खिल्लन को नीचा दिखाने का जो काम किया, उसका बदला लेते हुए तेजपाल खिल्लन ने मल्टीपल के पदाधिकारियों का मनमाने तरीके से जो चयन किया - उससे जेपी सिंह तथा उनके साथियों का तो शायद ही कुछ बिगड़े, लेकिन विनय गर्ग के लिए जरूर आफत खड़ी होती नजर आ रही है । विनय गर्ग ने विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के गवर्नर्स से मल्टीपल टीम के लिए नाम देने के लिए कहा था और उन्हें आश्वस्त किया था कि उन्हें विश्वास में लेकर ही वह उनके डिस्ट्रिक्ट से पदाधिकारियों का चयन करेंगे । लेकिन मल्टीपल पदाधिकारियों का जो चयन हुआ है, उसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की नहीं चली है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने अपने आपको ठगा हुआ पाया है । डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के जिन पूर्व गवर्नर किशोर वर्मा को मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट गेस्ट बनाया गया है, उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आनंद साहनी ने डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सदस्यों व पीएसटी के स्कूलिंग कार्यक्रम में आमंत्रित तक नहीं किया । और तो और, ड्यूज तक हड़प जाने वाले चोट्टे किस्म के लोगों को मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में पदाधिकारी बना लिया गया है, जो पिछले मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के लिए भी बोझ थे और जाहिर तौर पर जो मौजूदा चेयरमैन विनय गर्ग पर भी बोझ ही साबित होंगे ।
तेजपाल खिल्लन के लिए दिन कुछ अच्छे नहीं चल रहे हैं । उनके धुर विरोधी विनोद खन्ना डायरेक्टर अपॉइंटी बन गए हैं, जेपी सिंह इंटरनेशनल डायरेक्टर बन गए हैं, केएम गोयल को डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के प्रबंधक के रूप में विस्तार मिल गया है, एसके मधोक जीएलटी एरिया लीडर बन गए हैं - यानि चारों तरफ से तेजपाल खिल्लन को निराश करने वाली खबरें ही मिली हैं । ऐसे में, उम्मीद की गयी थी कि मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारी चुनने का उनके पास जो मौका है, उसका वह बेहतर इस्तेमाल करेंगे और अपनी स्थिति को सुधारने और मजबूत करने/बनाने का काम करेंगे । किंतु पैसों की लूट-खसोट और चोरी-चकारी के आरोपों में घिरे लोगों को चुनने के कारण तेजपाल खिल्लन विरोधियों के साथ-साथ अपने लोगों के निशाने पर भी आ गए हैं । तेजपाल खिल्लन की इस सोच और हरकत से मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग के लिए मुश्किलें बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है - काउंसिल पदाधिकारी के रूप में जो नाकारा और चोट्टे किस्म के लोग तेजपाल खिल्लन ने विनय गर्ग के सिर पर बैठा दिए हैं, उनसे किसी भी तरह का सहयोग मिल पाना तो विनय गर्ग के लिए मुश्किल होगा ही, उनके रहते दूसरे लोग - खासकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स भी सहयोग करने से बचेंगे ।
मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारियों का चयन करने में तेजपाल खिल्लन ने जैसी जो मनमानी की है, उसकी मल्टीपल के नेताओं के बीच तीखी प्रतिक्रिया हुई है - जिसका खामियाजा विनय गर्ग को भुगतना पड़ सकता है । मजे की बात यह है कि तेजपाल खिल्लन की हरकत के लिए सत्ता पक्ष के लोग ही इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल को ही कोस रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि नरेश अग्रवाल की कमजोरी ने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को मजाक का विषय बना दिया है । विनय गर्ग के पहले के विरोधी और नए बने विरोधी लेकिन खुश हैं कि तेजपाल खिल्लन की हरकत से विनय गर्ग एक कठपुतली चेयरमैन बन जा रहे हैं । तेजपाल खिल्लन ने हालाँकि विनय गर्ग को आश्वस्त किया है कि मल्टीपल काउंसिल की टीम के सदस्यों के चयन से जो लोग खुश नहीं हैं, उनके बस की कुछ करना है नहीं और वह बस रो-धो कर चुप हो जायेंगे । तेजपाल खिल्लन की यह बात काफी हद तक सच भी है - केएम गोयल, विनोद खन्ना, जगदीश गुलाटी, जेपी सिंह, जितेंद्र चौहान, मुकेश गोयल आदि अभी भले ही मल्टीपल काउंसिल की टीम के सदस्यों के चयन से खुश न हों; लेकिन अंततः इनके लिए कुछ कर पाना भी संभव नहीं होगा । समस्या लेकिन दूसरी है और वह यह कि तेजपाल खिल्लन की हरकत से खफा मल्टीपल के नेताओं और डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों ने यदि असहयोग का रवैया अपनाया तब विनय गर्ग तो एक कागजी चेयरमैन बन कर ही रह जायेंगे । यह देखना दिलचस्प होगा कि विनय गर्ग एक कागजी और तेजपाल खिल्लन के हाथों की कठपुतली साबित होते हैं, या इससे बचने की कोशिश करते हैं ।

Sunday, July 30, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में टीके रूबी व जितेंद्र ढींगरा की जोड़ी के सामने अपनी उम्मीदवारी को समर्पित कर कपिल गुप्ता ने राजा साबू गिरोह की राजनीति को तगड़ी चोट पहुँचाई

यमुना नगर । कपिल गुप्ता को टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा की जोड़ी के सामने अपनी उम्मीदवारी को समर्पित करता देख राजा साबू गिरोह के लोगों की राजनीति को तगड़ा झटका लगा है, जिससे उबरने की कोशिश में उनकी तरफ से कपिल गुप्ता को तरह तरह से उकसाने और भड़काने के प्रयास हो रहे हैं । मजे की बात यह है कि पिछले दिनों, वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हो रहे चुनाव में तो कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध करने में राजा साबू गिरोह के कुछेक नेता आगे-आगे थे, लेकिन अब वर्ष 2020-21 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव को लेकर कपिल गुप्ता जब पीछे हटते दिख रहे हैं - तो उनका विरोध करने वाले वही नेता अचानक से कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी में संभावना देखने लगे हैं । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020-21 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव में टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा की जोड़ी की तरफ से रमेश बजाज की उम्मीदवारी को जहाँ पक्का सा माना जा रहा है, वहाँ राजा साबू गिरोह की तरफ से उम्मीदवारी को लेकर अभी असमंजस बना हुआ है । उम्मीद की जा रही थी कि उनकी तरफ से पूनम सिंह और कपिल गुप्ता में से कोई एक उम्मीदवार बनेगा/रहेगा । कपिल गुप्ता लेकिन जिस तरह से टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा की जोड़ी के सामने अपनी उम्मीदवारी को समर्पित करते नजर आ रहे हैं, उससे राजा साबू गिरोह को अपना गेम-प्लान बिगड़ता दिख रहा है ।
कपिल गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा की जोड़ी ने उन्हें अगले रोटरी वर्ष में 'अपना' उम्मीदवार बनाने का भरोसा दे दिया है, जिसके चलते कपिल गुप्ता ने इस वर्ष रमेश बजाज की उम्मीदवारी की राह में काँटा बनने का इरादा त्याग दिया है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सलूजा तो कपिल गुप्ता को इस समर्पण के लिए राजी करने का प्रयास कर ही रहे थे, प्रमोद विज और रंजीत भाटिया जैसे पूर्व गवर्नर्स को भी कमजोर पड़ता देख कपिल गुप्ता को भी अपनी उम्मीदवारी समर्पित करने में ही अपनी भलाई दिखी । कपिल गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, प्रमोद विज और रंजीत भाटिया ने पहले तो कपिल गुप्ता में उम्मीदवारी के लिए हवा भरने की कोशिश की थी, लेकिन फिर धीरे धीरे वह ठंडे पड़ते गए । दरअसल उन्होंने समझ लिया कि जब वर्ष 2018-19 के लिए चुनाव हो रहा था, तब हालात अलग थे और उस समय टीके रूबी व जितेंद्र ढींगरा के उम्मीदवार के रूप में रमेश बजाज की उम्मीदवारी से मुकाबला किया जा सकता था, लेकिन अब के हालात में रमेश बजाज की उम्मीदवारी से निपटना मुश्किल होगा । प्रमोद विज और रंजीत भाटिया को ठंडा पड़ता देख, कपिल गुप्ता के सामने टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा की जोड़ी के सामने अपनी उम्मीदवारी का समर्पण करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा ।
कपिल गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटता देख राजा साबू गिरोह के नेताओं को दोहरा झटका लगा है - एक तरफ तो उनके पास उम्मीदवारों की कमी हो गयी, और दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट में लोगों को टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा की राजनीतिक ताकत और बढ़ती हुई दिखी है । राजा साबू गिरोह के लोगों ने हालाँकि अभी भी टीके रूबी के गवर्नर-काल के प्रति असहयोग व उपेक्षा का रवैया अपनाया हुआ है, लेकिन धीरे धीरे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स राजा साबू की छत्र-छाया से बाहर निकल कर इस 'सच्चाई' को स्वीकारने लगे हैं कि टीके रूबी ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'हैं' । राजा साबू, यशपाल दास और शाजु पीटर ही अभी इस 'सच्चाई' को हजम कर पाने में दर्द महसूस कर रहे हैं और उनकी मरोड़े कम नहीं हो रही हैं । उन्हें उम्मीद थी कि प्रमोद विज और रंजीत भाटिया भी उनके जैसे तेवर बनाए रहेंगे; किंतु कपिल गुप्ता के उम्मीदवारी से पीछे हटने में उन्हें कपिल गुप्ता के साथ-साथ प्रमोद विज और रंजीत भाटिया भी टीके रूबी व जितेंद्र ढींगरा की जोड़ी के आगे समर्पण करते नजर आ रहे हैं । दरअसल इसीलिए, कपिल गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटता तथा उन्हें टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा की जोड़ी के साथ जुड़ता देख राजा साबू और उनके नजदीकियों की बेचैनी बढ़ गयी है ।
बढ़ती बेचैनी में राजा साबू के नजदीकी एक तरफ कपिल गुप्ता और उनके साथ-साथ प्रमोद विज व रंजीत भाटिया को कोसने में लगे हैं, तथा दूसरी तरफ उन्हें भड़काने व उकसाने के प्रयास भी कर रहे हैं । उनका कहना है कि कपिल गुप्ता अगले रोटरी वर्ष में टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा की मदद से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने का जो ख्बाव देख रहे हैं, वह कभी पूरा नहीं होगा - क्योंकि वह लोग उन्हें प्रमोद विज व रंजीत भाटिया के 'आदमी' के रूप में देखते हैं और इसलिए उन्हें कभी समर्थन नहीं देंगे । कपिल गुप्ता को यह याद दिलाते हुए भी भड़काने/उकसाने का प्रयास किया जा रहा है कि उन्होंने रमेश बजाज से पहले अपनी उम्मीदवारी घोषित की थी, इसलिए रमेश बजाज उनसे पहले कैसे गवर्नर बन सकते  हैं ? समझा जाता है कि कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी जब पहली बार सामने आई थी, तब उन्हें सतीश सलूजा के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना गया था और जितेंद्र ढींगरा का समर्थन भी उनके साथ बताया गया था । समस्या लेकिन तब पैदा हुई, जब कपिल गुप्ता ने पानीपत में अपने आप को प्रमोद विज व रणजीत भाटिया के साथ खड़ा कर लिया । उनकी इस कार्रवाई के विरोध में ही रमेश बजाज की उम्मीदवारी प्रकट हुई । अचानक प्रकट हुई रमेश बजाज की उम्मीदवारी से जितेंद्र ढींगरा खुश नहीं थे और वह मजबूरी में ही रमेश बजाज की उम्मीदवारी के साथ बने हुए थे ।
जितेंद्र ढींगरा को उस समय दरअसल अपनी चिंता थी । राजा साबू के चक्रव्यूह को भेद कर जितेंद्र ढींगरा सत्ता के निकट तो पहुँच गए थे, लेकिन वह देख रहे थे कि राजा साबू की 'कौरव सेना' ने उन्हें चारों तरफ से घेरा हुआ है और उन्हें 'कुरुक्षेत्र' में ही निपटा देने की कोशिश की जाएगी । इसलिए जितेंद्र ढींगरा को डर हुआ था कि रमेश बजाज की उम्मीदवारी के चक्कर में कहीं वह अपने लिए मुसीबतों को न बढ़ा लें । बाद के हालात में जब टीके रूबी के हाथ सत्ता की सीधी बागडोर आ गयी तो राजा साबू की कौरव सेना का घेरा अपने आप दरक उठा और कमजोर पड़ गया । इससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के समीकरण भी बदल गए हैं और राजा साबू गिरोह के भरोसे उम्मीदवार बनने वाले लोग अपनी अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते नजर आए । ऐसे में, कपिल गुप्ता ने होशियारी दिखाई और टीके रूबी व जितेंद्र ढींगरा की जोड़ी के साथ समझौता कर लिया । कपिल गुप्ता के इस फैसले ने राजा साबू गिरोह की राजनीति को तगड़ी चोट पहुँचाई है और उनके लिए आगे की राह को और ज्यादा मुश्किल बना दिया है ।

Friday, July 28, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ को भरोसा है कि उन पर लग रहे मनमानी बेईमानियों के आरोपों से उन्हें इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे अवश्य ही बचा लेंगे

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की पूर्व चेयरपरसन पूजा अग्रवाल बंसल की लगातार दोहराई जाती माँग के दबाव में मौजूदा चेयरमैन राकेश मक्कड़ अंततः रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने के लिए मजबूर हुए हैं - और 4 अगस्त को रीजनल काउंसिल की मीटिंग के लिए घोषणा हो गयी है । इस माँग के चलते लगातार फजीहत का शिकार बन रहे राकेश मक्कड़ हालाँकि अभी भी अपनी मनमानी बेईमानियों को छिपाने और दबाने की कोशिशों से बाज नहीं आ रहे हैं - और इसी कोशिश के चलते 4 अगस्त की मीटिंग के लिए उन्होंने कोई एजेंडा तय तथा घोषित नहीं किया है । इंस्टीट्यूट के नियमानुसार, रीजनल काउंसिल का कोई सदस्य एजेंडे में कुछ जोड़ता है और काउंसिल के दो-तिहाई सदस्य उसका विरोध नहीं करते हैं, तो वह बात एजेंडे में शामिल होती है - लेकिन राकेश मक्कड़ किसी भी नियम को स्वीकारने तथा अपनाने से बचने का प्रयास कर रहे हैं और अपने ही मनमाने एजेंडे पर रीजनल काउंसिल की मीटिंग करना चाहते हैं । उन्हें अच्छी तरह पता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्यों के बीच उनकी हरकतों के खिलाफ बेहद नाराजगी है और मीटिंग में उनकी मनमानी चलेगी नहीं, जिस कारण मीटिंग में बबाल हो सकता है - इसके बावजूद राकेश मक्कड़ एजेंडे के मामले में नियमों का पालन करने के लिए तैयार नहीं हैं ।
राकेश मक्कड़ चेयरमैन के रूप में मनमानी करने तथा काउंसिल में लूट-खसोट मचाने, और अपनी मनमानी लूट-खसोट को छिपाने/दबाने के लिए इंस्टीट्यूट के नियमों के साथ खिलवाड़ करने की ताकत सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा से प्राप्त कर रहे हैं । अपने नजदीकियों को उन्होंने आश्वस्त किया है कि रीजनल काउंसिल में वह भले ही अल्पमत में हैं, लेकिन अंततः मामला तो फिर इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी और प्रेसीडेंट के पास ही जायेगा न, जहाँ राजेश शर्मा मामले को संभाल लेंगे । सीए डे फंक्शन के बबाल में इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी और प्रेसीडेंट ने जिस तरह से राजेश शर्मा का बचाव किया, उसका उदाहरण देते हुए राकेश मक्कड़ लोगों को आश्वस्त कर रहे हैं कि राजेश शर्मा के होते हुए इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी और प्रेसीडेंट उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेंगे । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट जैसे देश के प्रतिष्ठित संस्थान के सेक्रेटरी वी सागर और प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने अपने व्यवहार और रवैये से अपनी ऐसी पहचान और औकात बना ली है कि एक रीजनल काउंसिल का एक बेईमान पदाधिकारी मनमानी कर रहा है और काउंसिल सदस्यों के आरोपों पर ही दावा भी कर रहा है कि इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी और प्रेसीडेंट भी उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकेंगे ।
राकेश मक्कड़ पर इंस्टीट्यूट के नियमों की अवहेलना करते हुए इंस्टीट्यूट के पैसे को अपने भाई के हाथों लुटवा देने का गंभीर आरोप है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्यों ने ही इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को संबोधित ज्ञापन में खुलासा करते हुए आरोप लगाया है कि काउंसिल की तरफ से चलाई जा रही कोचिंग क्लासेस में फैकल्टी नियुक्त करने के मामले में भारी बेईमानी की जा रही है, नियुक्ति के जरिए कमीशन खाया जा रहा है और चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ ने इंस्टीट्यूट के नियमों की अवहेलना करते हुए मनमानी शर्तों पर अपने भाई को भी फैकल्टी नियुक्त कर दिया । ज्ञापन में इंस्टीट्यूट के उक्त नियम को रेखांकित करते हुए - जिसके अनुसार काउंसिल के पदाधिकारी अपने रिश्तेदारों, पार्टनर्स व क्लाइंट्स को लाभ का कोई काम अलॉट नहीं कर सकते हैं - बताया गया है कि राकेश मक्कड़ ने अपने भाई राजेश मक्कड़ को काउंसिल द्वारा चलाई जा रही बहुत सी क्लासेस दीं, और उन्हें भुगतान करने के मामले में भी नियमों व चली आ रही व्यवस्था में मनमाने तरीके से परिवर्तन किया गया - जिसमें राजेश मक्कड़ को ज्यादा पैसा दिया गया, और काउंसिल को मिलने वाला पैसा घट गया है । इसके साथ-साथ, आरोप है कि चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ अपने भाई की कोचिंग को प्रमोट करने के काम में लगे हुए हैं, और इसमें वह अलग अलग तरीके से इंस्टीट्यूट के नाम को भी इस्तेमाल कर रहे हैं - और इस तरह इंस्टीट्यूट के नियम-कानूनों का उन्होंने मजाक बना कर रख दिया है । कोचिंग क्लासेस तथा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के प्रिंटिंग व फोटोकॉपी के काम देने में भी धाँधली के आरोप ज्ञापन में लगाए गए हैं ।
आरोपों की गंभीरता इस आरोप से लगाई/समझी जा सकती है कि कोचिंग क्लासेस में कैसे क्या हो रहा है, इस बात को काउंसिल सदस्यों से भी छिपाया जा रहा है - काउंसिल के ही सदस्यों का कहना है कि वह कई दिनों से पदाधिकारियों से पूछ/कह रहे हैं कि काउंसिल द्वारा चलाई जा रही कोचिंग क्लासेस में किस तरह से नियुक्तियाँ और भुगतान हुए हैं, लेकिन उन्हें जबाव नहीं दिया जा रहा है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को संबोधित ज्ञापन में कहा गया है कि काउंसिल के अकाउंट उन्हें दिखाने/बताने से तो बचा ही जा रहा है, उनके सवालों के जबाव भी नहीं दिए जाते हैं । यहाँ तक कि पिछले कार्यकारी वर्ष के आखिरी कुछ महीनों में कार्यकारी चेयरपरसन रहीं पूजा अग्रवाल बंसल तक से खर्चों के विवरण तथा अकाउंट छिपाए गए हैं । समझा जा सकता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ और उनके दो-तीन साथी पदाधिकारियों ने किस तरह से कब्जा किया हुआ है और वह मनमानी लूट-खसोट मचाए हुए हैं कि काउंसिल के दूसरे सदस्यों से ही उन्हें तथ्य छिपाने पड़ रहे हैं । चेयरमैन राकेश मक्कड़ की बेशर्मी और निर्लज्जता का आलम यह है कि अपने टीए/डीए के बिल उन्होंने नगद तक ले लिए हैं, जो काउंसिल के नियमों का खुला उल्लंघन है ।
राकेश मक्कड़ का प्रयास यह है कि रीजनल काउंसिल की मीटिंग में यह आरोप रिकॉर्ड पर न आ सकें, और इसके लिए ही वह मीटिंग के एजेंडे को अपने मनमाने तरीके से तय करना चाहते हैं । उनकी इस हरकत से मीटिंग में बबाल हो, और काउंसिल व इंस्टीट्यूट की फजीहत हो - उन्हें इसकी चिंता नहीं है । उन्हें भरोसा है कि राजेश शर्मा के साथ उनके कनेक्शन के कारण इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर और प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे अंततः उन्हें बचा लेंगे । राकेश मक्कड़ के भरोसे के बावजूद काउंसिल के सदस्यों ने भी उम्मीद और कोशिश नहीं छोड़ी है कि राकेश मक्कड़ जैसे बेईमान की दाल अब ज्यादा दिन तक गलती नहीं रह सकेगी । उनका कहना है कि राकेश मक्कड़ को आखिरकार रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा है न - जिससे कि वह लगातार बचते और इंकार करते आ रहे थे । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल की पूर्व चेयरपरसन पूजा अग्रवाल बंसल ने इंस्टीट्यूट प्रशासन को 12वीं मेल लिखी थी, जिसके बाद राकेश मक्कड़ के लिए रीजनल काउंसिल की मीटिंग से बचना/भागना संभव नहीं रह गया । इस तरह राकेश मक्कड़ की मनमानी बेईमानियों के खिलाफ काउंसिल सदस्यों ने अपनी लड़ाई का पहला चरण जीत लिया है, उन्हें उम्मीद है कि आगे भी सच्चाई की ही जीत होगी ।

Thursday, July 27, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के जेके गौड़, मुकेश अरनेजा, सतीश सिंघल जैसे पदाधिकारियों और नेताओं के निकम्मेपन और भ्रष्टाचार का स्मारक बने रोटरी वरदान ब्लड बैंक के उद्घाटन अवसर को उनकी छाया से भी बचाया गया

गाजियाबाद । रोटरी वरदान ब्लड बैंक का उद्घाटन रोटरी के पदाधिकारियों और सदस्यों की अनुपस्थिति में आज हो गया । रोटरी के पदाधिकारियों और सदस्यों की अनुपस्थिति का कारण यह रहा कि उन्हें आज हुए उद्घाटन कार्यक्रम की हवा भी नहीं लग सकी थी - और उन्हें पूरी तरह दरकिनार कर ब्लड बैंक का उद्घाटन कर लिया गया । रोटरी के पैसे से वरदान हॉस्पिटल में बने ब्लड बैंक के उद्घाटन अवसर से रोटरी के पदाधिकारियों और सदस्यों को ही दूर रख कर - उनका जो सार्वजनिक अपमान किया गया, वह समाज में रोटरी पदाधिकारियों और सदस्यों की 'औकात' का एक उदाहरण भी है । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि वरदान हॉस्पिटल में रोटरी क्लब्स प्रोजेक्ट के नाम पर प्रायः पैसे देते रहते हैं; करीब सवा करोड़ रुपए के खर्चे से लगने वाले ब्लड बैंक को लगाने के लिए भी वरदान हॉस्पिटल को चुना गया - लेकिन वरदान हॉस्पिटल के पदाधिकारियों ने ब्लड बैंक के उद्घाटन अवसर पर रोटरी पदाधिकारियों और सदस्यों को कोई तवज्जो देने की जरूरत तक नहीं समझी । मजेदार दृश्य यह देखने में आ रहा है कि उपेक्षा के अपमान से तिलमिलाए रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3012 के पदाधिकारी और सदस्य तो वरदान हॉस्पिटल के पदाधिकारियों को कोसने में लगे हैं; लेकिन वरदान के पदाधिकारियों का कहना है कि रोटरी के पदाधिकारियों के भरोसे रहते तो ब्लड बैंक कभी उद्घाटित न हो पाता ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी ग्लोबल ग्रांट नंबर 1527923 के तहत एक लाख 90 हजार डॉलर से अधिक रकम की लागत वाले रोटरी वरदान ब्लड बैंक की रूपरेखा रोटरी क्लब साहिबाबाद, रोटरी क्लब गाजियाबाद ग्रेटर और रोटरी क्लब गाजियाबाद इंडस्ट्रियल टाउन ने संजय खन्ना के गवर्नर-काल में तैयार की थी; जिसे जेके गौड़ के गवर्नर-काल में पूरा होना था । जेके गौड़ ने अपने गवर्नर-काल की 10 फरवरी को रोटरी इंटरनेशनल के तत्कालीन प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के हाथों इसका उद्घाटन करवाने की योजना भी बना ली थी । लेकिन ब्लड बैंक की आड़ में 'लूट के बँटवारे' को लेकर ब्लड बैंक का काम देख रहे जेके गौड़ तथा उनके साथियों और डीआरएफसी के रूप में मुकेश अरनेजा के बीच जो झगड़ा फैला, तो फिर उसे सँभलते सँभलते ब्लड बैंक का काम पिछड़ता ही गया । झगड़े के फैलने और सँभलने के बीच ही आरोप सुनाई दिए कि इस ब्लड बैंक की आड़ में इसके काम से जुड़े रोटरी नेताओं ने 45 लाख रुपए से ज्यादा की रकम हड़प कर अपनी अपनी अंटी में कर ली है । रकम हड़प लेने के बाद रोटरी नेताओं और पदाधिकारियों ने इस ब्लड बैंक में दिलचस्पी लेना ही बंद कर दिया ।
वरदान हॉस्पिटल से जुड़े लोगों ने ब्लड बैंक से जुड़े रोटरी पदाधिकारियों से बार बार गुजारिश की कि वह इसका काम पूरा करें/करवाएँ, ताकि यह चालू हो सके - रोटरी पदाधिकारी लेकिन तरह तरह की बहानेबाजियों से उनकी गुजारिश को अनसुना करते रहे । इस कारण लाइसेंस लेने का काम भी काफी पिछड़ गया । रोटरी पदाधिकारियों ने उचित समय से - और जल्दी से जल्दी ब्लड बैंक का काम करने/करवाने में तो दिलचस्पी नहीं ली, लेकिन एक दूसरे पर दोषारोपण करने में उन्होंने अपनी काफी एनर्जी लगाई । जेके गौड़ और मुकेश अरनेजा के साथ साथ सतीश सिंघल भी आरोपों की चपेट में आए और उन पर आरोप लगा कि वह इस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा करने की फ़िराक में हैं, ताकि इसकी कमाई भी हड़पने का मौका उन्हें मिले । रोटरी पदाधिकारियों के निकम्मेपन और लूट खसोट की जुगाड़ में रहने की 'सोच' को देखते हुए वरदान हॉस्पिटल वालों को समझ में आ गया कि रोटरी वरदान ब्लड बैंक को यदि बचाना और चलाना है, तो उन्हें खुद ही इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी । लिहाजा, बाकी बचे जरूरी कामों को उन्होंने खुद ही पूरा किया/करवाया । वरदान हॉस्पिटल के पदाधिकारियों ने रोटरी वरदान ब्लड बैंक के उद्घाटन अवसर से ब्लड बैंक की योजना से जुड़े तथा इसके लिए रकम देने/दिलवाने वाले रोटरी पदाधिकारियों को दूर रखने का काम इसीलिए किया, ताकि रोटरी पदाधिकारी इसकी कमाई में हिस्सा माँगने/लूटने के लिए तैयार न हो जाएँ ।
रोटरी वरदान ब्लड बैंक रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3012 के जेके गौड़, मुकेश अरनेजा, सतीश सिंघल जैसे पदाधिकारियों और नेताओं के निकम्मेपन और भ्रष्टाचार का एक ऐसा स्मारक है, जिसके उद्घाटन अवसर को उनकी छाया से भी बचाने की कोशिश की गयी है - और इस तरह से इन्हें इनकी 'असली पहचान' से परिचित कराया गया ।

Wednesday, July 26, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल के धंधेबाजों, दंगाईयों और ब्लैकमेलरों के सामने कमजोर पड़ने से डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री से निकाले गए विक्रम शर्मा को लायनिज्म में वापसी का मौका मिला

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा के वीएस कुकरेजा के क्लब का सदस्य बनने के जरिए लायनिज्म को पुलिस थानों और अदालतों तक ले जाने वाले लोगों ने एक बार फिर लायंस इंटरनेशनल की लीडरशिप को तमाचा जड़ा है - और लायंस इंटरनेशनल की लीडरशिप तमाचे की चोट को चुपचाप सहलाने पर मजबूर हुई है । उल्लेखनीय है कि विक्रम शर्मा डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में थे, जहाँ उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए तीन-चार बार प्रयास किये थे । उनके आखिरी प्रयास में ही जो भीषण ड्रामा हुआ था, उसकी सजा के कारण डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री फिर डिस्ट्रिक्ट नहीं रहा - और अभी तक डिस्ट्रिक्ट का अधिकार प्राप्त नहीं कर सका है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में अपने आपको महारथी समझने वाले पूर्व गवर्नर्स डीके अग्रवाल और हर्ष बंसल ने लायंस इंटरनेशनल के नियमों और कायदों से बेईमानी और धोखाधड़ी करते हुए विक्रम शर्मा को फर्जी तरीके से गवर्नर तो 'चुनवा' दिया था, लेकिन लायंस इंटरनेशनल के प्रकोप से वह उन्हें नहीं बचवा सके - बल्कि डीके अग्रवाल, हर्ष बंसल और विक्रम शर्मा की कारस्तानी ने डिस्ट्रिक्ट को ही 'सड़क' पर ला दिया । पहले चुनावी लड़ाई में और फिर नियम-कायदों की लड़ाई में हार का मुँह देखने वाले विक्रम शर्मा ने उस प्रकरण में फिर थाना और अदालत का सहारा लेने का प्रयास भी किया था - नतीजा लेकिन यह हुआ कि उन्हें लायनिज्म से ही निकाल दिया गया था । डीके अग्रवाल और हर्ष बंसल ने अपने अपने तरीके से प्रयास तो बहुत किए कि विक्रम शर्मा को लायनिज्म में फिर से शामिल कर लिया जाए, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की जिम्मेदारी संभाल रहे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर केएम गोयल ने उनके प्रयासों को सफल नहीं होने दिया ।
लेकिन यह तब तक की बात थी, जब कि लायंस इंटरनेशनल की लीडरशिप में दम होता और 'दिखता' था ! नरेश अग्रवाल के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने के साथ लायंस इंटरनेशनल की लीडरशिप ने जिस तरह अपाहिज होना शुरू किया और धंधेबाजों, दंगाईयों और ब्लैकमेलरों के सामने समर्पण करना शुरू किया - तो विक्रम शर्मा को लायनिज्म में लौटने का सुनहरा मौका दिखा । यह एक मजेदार तुलना होगी कि करीब दो वर्ष पहले लायनिज्म की चुनावी लड़ाई को थाना और अदालत ले गए विक्रम शर्मा को लायंस इंटरनेशनल की तत्कालीन लीडरशिप ने एक झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया था, लेकिन ठीक वही हरकत करने वाले वीएस कुकरेजा के खिलाफ कार्रवाई करने में नरेश अग्रवाल के नेतृत्व वाली लीडरशिप की कंपकंपी छूट गयी है । ऐसे में, डीके अग्रवाल और हर्ष बंसल ने भी समझ लिया कि विक्रम शर्मा से लायनिज्म की 'सेवा' करवाने के लिए उन्हें वीएस कुकरेजा की शरण में ही भेजना उचित होगा । लायनिज्म से बाहर कर दिए गए विक्रम शर्मा की चोर दरवाजे से हुई वापसी ने लोगों को कहने का मौका दिया है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन में वीएस कुकरेजा के क्लब में विक्रम शर्मा की मौजूदगी लायन राजनीति में मात और लताड़ खाने वाले लोगों को थानों और अदालतों में जाने के लिए प्रेरित करने का काम भी करेगी । यह प्रसंग इस बात का भी उदाहरण बन गया है कि नरेश अग्रवाल की स्वार्थपूर्ण 'कमजोरी' लायनिज्म को पता नहीं कैसे कैसे दिन दिखवाएगी ?
विक्रम शर्मा को वीएस कुकरेजा के क्लब में प्रवेश दिलवाने में सफल हो कर डीके अग्रवाल और हर्ष बंसल ने अपने लिए भी मल्टीपल में अहम् पद पाने की उम्मीद बढ़ा ली है । दरअसल इन दोनों के लिए ही समस्या और चुनौती की बात यह हो गयी है कि वैसे तो यह बड़े नेता हैं लेकिन मल्टीपल में इनकी कोई पूछ ही नहीं हो रही है । मल्टीपल में राजनीति का जो खाका बना है और नए नए लोग मुखर व सक्रिय हैं - वह इन्हें या तो पहचानते ही नहीं हैं और पहचानते भी हैं तो कोई तवज्जो नहीं देते हैं । अपने लिए जगह बनाने के लिए इन्हें तेजपाल खिल्लन की शरण में आना जरूरी लगा होगा और इसके लिए ही इन्होंने विक्रम शर्मा रूपी अपने मोहरे के जरिए पहली चाल चली है । इस चाल के सफल हो जाने से डीके अग्रवाल और हर्ष बंसल को भी उम्मीद बँधी है कि जैसे विक्रम शर्मा को दोबारा से लायनिज्म की 'सेवा' करने का मौका मिल गया है, ठीक उसी तरह से उन्हें भी नेतागिरी करने/दिखाने का मौका मिल जायेगा । धंधेबाजों, दंगाईयों और ब्लैकमेलरों के सामने नरेश अग्रवाल ने जिस तरह से अपने आप को कमजोर और असहाय साबित किया है - उससे विक्रम शर्मा, डीके अग्रवाल और हर्ष बंसल को भी अपने दिन फिरने का संकेत मिला है; और उन्होंने प्रयास शुरू कर दिए हैं ।

Tuesday, July 25, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग में सदस्यों की सीधी सीधी लताड़ खाने वाले नीलेश विकमसे ने पहले प्रेसीडेंट बनने का रिकॉर्ड बनाया

नई दिल्ली । 24 जुलाई की रात करीब साढ़े ग्यारह बजे तक चली सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग में जो हुआ, वह इंस्टीट्यूट के इतिहास में इससे पहले कभी नहीं हुआ - और इस मीटिंग में इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की जैसी फजीहत हुई, वैसी इससे पहले किसी प्रेसीडेंट की नहीं हुई है । अपनी करतूतों और कारस्तानियों के खुलासे पर नीलेश विकमसे को पचासों बार सॉरी सॉरी कहना पड़ा । कई काउंसिल सदस्यों को हैरानी है कि नीलेश विकमसे को काउंसिल सदस्यों से जो और जैसी लताड़ सुनने को मिली, उसके बाद भी वह प्रेसीडेंट पद पर बने क्यों हुए हैं ? काउंसिल सदस्यों का ही कहना है कि नीलेश विकमसे में यदि जरा सा भी आत्म सम्मान होता, तो वह कल ही अपने पद से इस्तीफा दे देते । काउंसिल सदस्यों की जली-कटी सुनते हुए नीलेश विकमसे ने बीच-बीच में यह तो कहा कि मुझसे यदि इतनी ही शिकायत है तो मेरे खिलाफ शिकायत करो और कार्रवाई करो/करवाओ - लेकिन इस बात पर उन्होंने कतई गौर नहीं किया कि सीए डे फंक्शन से जुड़े मामले में काउंसिल सदस्यों की शिकायतों का यदि सचमुच कोई आधार नहीं है, तो उन्हें बार बार माफी क्यों माँगना पड़ रही है । विजय गुप्ता ने उनके नेतृत्व को पूरी तरह असफल बताया । रंजीत अग्रवाल ने पिछले प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी के कार्यकाल को अच्छा बताते हुए उन पर सीधा हमला किया । तरुण घिया ने आरोप लगाया कि उनके कार्यकाल में कमेटियों को स्वतंत्रता से काम नहीं करने दिया जा रहा है, जिसकी परिणति सीए डे फंक्शन की बदइंतजामी और बेईमानी में हुई । 
इस तरह की बातों से नीलेश विकमसे तिलमिलाए तो बहुत, लेकिन उनका आत्मसम्मान एक बार भी नहीं जागा । नीलेश विकमसे के लिए मुसीबत की बात यह बनी कि मीटिंग्स में हमेशा सौम्यता से अपनी बात रखने/कहने वाले संजय वासुदेवा, प्रेसीडेंट के निकट रहने की कोशिश करते रहने वाले अतुल गुप्ता, अपनी वरिष्ठता की गरिमा के अनुरूप व्यवहार करने वाले संजय अग्रवाल, हमेशा चुप बने रहने वाले देवाशीष मित्रा ने भी नीलेश विकमसे की 'धुलाई' में खासी दिलचस्पी ली; काउंसिल में नीलेश विकमसे के बहुत खास और उनके 'ट्रवल शूटर' समझे जाने वाले अनिल भंडारी मीटिंग में आए ही नहीं । नीलेश विकमसे को जिन सदस्यों से तरफदारी की उम्मीद थी, उन्होंने बेसिरपैर की बातें करते हुए टाइम पास करने का काम तो किया लेकिन नीलेश विकमसे की तरफदारी करने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई । मीटिंग में सबसे मजेदार रवैया राजेश शर्मा का रहा । मुद्दे पर बात करने में तो उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं ली; दो-तीन बार लेकिन उन्होंने यह रोना जरूर रोया कि सीए डे फंक्शन की बदइंतजामी और बेईमानी के लिए उन्हें ही क्यों जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, उनका कुसूर क्या है जो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उन्हें चोर और दलाल कहा जा रहा है । उनकी इन बातों को 'चोर की दाढ़ी में तिनके' के उदाहरण के रूप में देखा गया । कहा/पूछा भी गया कि यहाँ उन्हें कौन जिम्मेदार ठहरा रहा है, या कौन उन्हें चोर और दलाल कह रहा है - सोशल मीडिया में उनके बारे में यदि यह सब कहा जा रहा है, तो उन्हें वहाँ जबाव देना चाहिए; वहाँ तो लेकिन वह छिपते/बचते फिर रहे हैं ।
सीए डे फंक्शन में हुई बदइंतजामी और बेईमानी को लेकर मीटिंग में मोर्चा खोला धीरज खंडेलवाल और विजय गुप्ता ने । फंक्शन की तैयारी और व्यवस्था से जुड़े उनके सवालों ने नीलेश विकमसे को तरह तरह से परेशान किया और नीलेश विकमसे सॉरी सॉरी कहते हुए अपने आप को बचाने की कोशिश करते रहे । धीरज खंडेलवाल की तो बदकिस्मती रही कि उन्हें वेस्टर्न रीजन के अपने साथियों से कोई सहयोग नहीं मिला, किंतु विजय गुप्ता को अपने अभियान में नॉर्दर्न रीजन के सदस्यों से अप्रत्याशित सहयोग और समर्थन मिला । उल्लेखनीय है कि काउंसिल की अंदरूनी राजनीति में संजय अग्रवाल और अतुल गुप्ता को विजय गुप्ता के विरोधियों के रूप में देखा/पहचाना जाता है, लेकिन सीए डे फंक्शन में हुई बदइंतजामी और बेईमानी को लेकर विजय गुप्ता ने मीटिंग में जो सवाल उठाए - संजय अग्रवाल और अतुल गुप्ता ने उनका जोरदार समर्थन किया और उन्हें दोहराया । विजय गुप्ता ने नीलेश विकमसे से सवाल किया कि सीए डे फंक्शन की तैयारी और व्यवस्था से जुड़े सवालों को लेकर अलग अलग तारीखों में उन्होंने चार मेल लिखे, लेकिन उन्हें एक भी मेल का जबाव नहीं मिला । संजय अग्रवाल और अतुल गुप्ता ने इसी बात को आधार बना कर नीलेश विकमसे को घेरा कि इससे ही लगता है कि वह सवालों से बचना चाहते हैं और सच्चाई को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं । बात को बढ़ता देख विजय गुप्ता की शिकायत पर नीलेश विकमसे ने माफी माँग ली । 
नीलेश विकमसे को वेस्टर्न रीजन के कुछेक तथा सेंट्रल रीजन के सभी सदस्यों से लेकिन 'अच्छा' समर्थन मिला, जिन्होंने टाइम पास करके नीलेश विकमसे पर होने वाले हमलों की धार को कुंद करने का काम किया । मुकेश कुशवाह ने भाषण तो बड़ा लंबा सा दिया, किंतु बातों की उन्होंने जो जलेबी सी बनाई - उसे जो सुन ले, तो उसे यह समझने में देर नहीं लगेगी कि उनके जैसे लोग जब सेंट्रल काउंसिल में होंगे - तो इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन का बेड़ा ही गर्क होगा । यह महज इत्तफाक नहीं है कि काउंसिल में मुकेश कुशवाह और राजेश शर्मा की जोड़ी रंगा-बिल्ला की जोड़ी के रूप में (कु)ख्यात है । मीटिंग में कई काउंसिल सदस्यों ने जिस तरह से बेसिरपैर की लंबी लंबी बातें कीं, उससे आभास मिला है कि नीलेश विकमसे ने अपने बचाव के लिए पहले से ही रणनीति बनाई हुई थी कि उनके समर्थक सदस्य मीटिंग को लंबा खींचेंगे, ताकि किसी नतीजे पर पहुँचा ही नहीं जा सके । धीरज खंडेलवाल और विजय गुप्ता ने मीटिंग के शुरू में ही जो आक्रामक रवैया दिखाया, उसके चलते किसी भी सदस्य के लिए नीलेश विकमसे की तरफदारी करना तो संभव नहीं हो सका, लेकिन मीटिंग को लंबा खींच कर मामले को दफ़्न करने/करवाने में नीलेश विकमसे जरूर सफल हो गए । सुबह दस बजे शुरू हुई मीटिंग में 30 के करीब सदस्य उपस्थित थे, लेकिन मीटिंग जब देर रात तक खिंचती गई - तब 14/15 सदस्य ही बचे रह गए थे । नीलेश विकमसे मीटिंग को किसी नतीजे पर पहुँचने ही नहीं दे रहे थे और तब नीलेश विकमसे के माफीनामे और इस आश्वासन के साथ मीटिंग समाप्त हुई कि जैसी पक्षपातपूर्ण बेवकूफियाँ और बेईमानियाँ उन्होंने इस बार की हैं, वैसी वह आगे नहीं करेंगे ।
नीलेश विकमसे ने किसी कार्रवाई से तो अपने आप को और राजेश शर्मा को बचा लिया है, लेकिन राजेश शर्मा पर चोर और दलाल होने के आरोप का जो शोर है, उससे और राजेश शर्मा को बचाने के चक्कर में अपनी हो रही फजीहत से वह नहीं बच सके हैं - और इस मामले में इंस्टीट्यूट के 68 वर्षों के इतिहास में कल हुई मीटिंग इंस्टीट्यूट के पिछले और आगे आने वाले प्रेसीडेंट्स के लिए एक उदाहरण भी होगी और एक सबक भी । काउंसिल में नीलेश विकमसे के समर्थक व शुभचिंतक सदस्यों तक का भी मानना और कहना है कि भारी फजीहत के बाद भी नीलेश विकमसे प्रेसीडेंट पद पर बने रहना भले ही चाहते हों, लेकिन काउंसिल में उनकी विश्वसनीयता और सम्मान जरा भी बचा नहीं रह गया है ।

Sunday, July 23, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल क्या सचमुच बड़ी मुसीबत बन गए हैं ?

जयपुर । अशोक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट में जिन अनिल अग्रवाल को ठुड्डे लाइन लगा रखा है, वही अनिल अग्रवाल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई में अशोक गुप्ता के लिए मुसीबत बन गए हैं - और अशोक गुप्ता के लिए यह समझना मुश्किल बना हुआ है कि अनिल अग्रवाल से वह कैसे निपटें ? अभी पिछले दिनों ही रोटरी क्लब जयपुर बापूनगर के अधिष्ठापन समारोह में अशोक गुप्ता के 'मैन फ्राईडे' के रूप में पहचाने जाने वाले अजय काला ने अनिल अग्रवाल से इस मामले में बात करने का प्रयास भी किया, किंतु अजय काला का प्रयास सफल नहीं हो सका । मनीपाल यूनिवर्सिटी के ऑडीटोरियम में आयोजित हुए रोटरी क्लब जयपुर बापूनगर के अधिष्ठापन समारोह में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय काला इंस्टॉलेशन ऑफीसर के रूप में तथा तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल इंडक्शन ऑफीसर के रूप में मौजूद थे । अजय काला इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में डिस्ट्रिक्ट का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुने गए हैं । अजय काला और अनिल अग्रवाल की वैसे तो बिलकुल नहीं बनती है, लेकिन रोटरी क्लब जयपुर बापूनगर के आयोजन में जब दोनों के लिए एक दूसरे के नजदीक आने का मौका बना, तो अजय काला ने अशोक गुप्ता के प्रति अनिल अग्रवाल की नाराजगी को कम करने के लिए कोशिश की - लेकिन जैसा कि पहले ही बता दिया गया है कि उनकी कोशिश कामयाब नहीं हो सकी ।
अशोक गुप्ता और उनके संगी-साथी यूँ तो अनिल अग्रवाल को कुछ मानते/समझते नहीं हैं और लोगों के बीच लगातार यह बताते/जताते रहते हैं कि अनिल अग्रवाल के बस की कुछ है ही नहीं, और डिस्ट्रिक्ट से लेकर ऊपर की रोटरी तक में अनिल अग्रवाल के लिए कोई जगह नहीं है । पिछले रोटरी वर्ष में दुबई में हुए जोन इंस्टीट्यूट का निमंत्रण पाने के लिए अनिल अग्रवाल ने एड़ी-चोटी को जोर लगा लिया था, लेकिन अशोक गुप्ता ने उनकी ऐसी घेराबंदी करवाई हुई थी कि अनिल अग्रवाल इंस्टीट्यूट में फटक तक नहीं सके । अशोक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट में और डिस्ट्रिक्ट के बाहर अनिल अग्रवाल को बेइज्जत तो बहुत किए रखा, लेकिन अब इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उन्हीं अनिल अग्रवाल ने अशोक गुप्ता के लिए खासी फजीहत खड़ी की हुई है । अशोक गुप्ता को दरअसल उस समय तगड़ा झटका लगा, जब अलग अलग जगहों से उन्हें पता चला कि अनिल अग्रवाल अलग अलग डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों से, खासतौर से इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए चुने गए पूर्व गवर्नर्स से बात कर रहे हैं और उन्हें अशोक गुप्ता के कई कारनामों से परिचित कराते हुए उनके खिलाफ भड़का रहे हैं । शुरू में तो अशोक गुप्ता ने इन बातों को ध्यान देने लायन नहीं समझा; उन्होंने माना/समझा कि अनिल अग्रवाल हैं क्या, जो लोग उनकी बात को गंभीरता से लेंगे - लेकिन उन्हें जब लगातार इस तरह की बातें सुनने को मिली हैं, तो उनका माथा ठनका है ।
अनिल अग्रवाल अपने आप को पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू के बड़े खासमखास के रूप में 'दिखाते' हैं, इससे कुछेक लोग उन्हें गंभीरता से ले भी लेते हैं । अशोक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि अनिल अग्रवाल के छेड़े अभियान ने नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों के बीच अजय काला को खासा बदनाम कर दिया हुआ है, जिस कारण बाकी सदस्य अजय काला को अशोक गुप्ता के जासूस के रूप में देखते हैं और उनसे राजनीतिक बात करने से बचते हैं, जिस कारण अशोक गुप्ता को उचित फीडबैक नहीं मिल पा रहा है । अशोक गुप्ता के साथ समस्या की बात यह है कि दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में उनका कोई एक्सपोजर नहीं है; वहाँ बल्कि उनकी एक नकारात्मक पहचान है, उन्हें एक घमंडी व्यक्ति के रूप में देखा/पहचाना जाता है; हद की बात तो यह कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के मौके पर उनकी वकालत करने वाला कोई नहीं है । उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स उनके खिलाफ भले ही कुछ न कहते हों, लेकिन उनकी वकालत भी नहीं करते हैं । अशोक गुप्ता ने अजय काला को नोमीनेटिंग कमेटी के लिए जिस तरह चुनवाया है, उससे उनके अपने समझे जाने वाले कई पूर्व गवर्नर्स खफा हैं । उन्हें लगता है कि अशोक गुप्ता को हर जगह आगे करने के लिए अजय काला ही मिलते हैं, तो अजय काला से ही फिर अपना काम करवा लें । इस परिदृश्य के चलते अनिल अग्रवाल का अशोक गुप्ता विरोधी अभियान विश्वसनीय बन जाता है - और इस तरह अशोक गुप्ता को भी लग रहा है कि अनिल अग्रवाल कुछ न होते हुए भी उनके लिए बड़ी मुसीबत बन गए हैं ।

Friday, July 21, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की कुर्सी तक पहुँचने के लिए कमल सांघवी को पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन सबसे बड़ी बाधा क्यों लग रहे हैं ?

धनबाद । कमल सांघवी ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव की गहमागहमी के बीच अचानक से पर्दे के पीछे छिप कर अपने समर्थकों के साथ-साथ अपने विरोधियों को भी खासे अचरज में डाल दिया है । रोटरी जोन 6 ए के चुनावबाज नेताओं के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि ऐसे समय जबकि कमल सांघवी को सबसे ज्यादा सक्रिय होना चाहिए था, वह बिलकुल चुपचाप क्यों बैठ गए हैं ? कमल सांघवी बहुत ही सक्रिय रोटेरियन रहे हैं, और फिर अब तो इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए होने वाला उनका चुनाव बिलकुल सिर पर है - ऐसे में अपनी स्वाभाविक सक्रियता और चुनावी जरूरत को दरकिनार करके चुपचाप बैठ जाने की उनकी कार्रवाई ने हर किसी को हैरान किया हुआ है । ऐसे में उनके विरोधियों को कहने का मौका मिला है कि कमल सांघवी को लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को चूँकि उन्होंने साध ही लिया है, और वह पक्का उन्हें ही चुनेंगे - इसलिए अब उन्हें सक्रिय होने/दिखने की कोई जरूरत नहीं है । लेकिन जो लोग कमल सांघवी को जानते हैं, उनका कहना है कि कमल सांघवी इतने अवसरवादी नहीं हैं कि अपनी जीत को सुनिश्चित समझ लेने के बाद वह सक्रियता छोड़ दें - दरअसल इसीलिए कमल सांघवी को जानने वालों को उनकी चुप्पी ज्यादा उलझाए हुए है ।
कमल सांघवी के नजदीकियों के बीच उनके इस अप्रत्याशित व्यवहार के लिए रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । उनके कुछेक नजदीकियों की तरफ से सुनने को मिल रहा है कि रोटरी के बड़े नेताओं ने कमल सांघवी को आगाह किया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अपने प्रचार अभियान में वह ऐसा कोई काम न कर दें, जिससे कि केआर रवींद्रन को उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का मौका मिल जाए । कमल सांघवी को साफ-साफ बता दिया गया है कि वह केआर रवींद्रन के 'राडार' पर हैं, और केआर रवींद्रन उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मौके की तलाश में हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी में केआर रवींद्रन एक बड़े सख्त प्रशासक के रूप में कुख्यात/विख्यात हैं; और उन्होंने कुछेक डिस्ट्रिक्ट्स तथा कई एक गवर्नर्स का बड़ी निर्ममता से 'शिकार' किया हुआ है । केआर रवींद्रन पिछले से पिछले रोटरी वर्ष में प्रेसीडेंट थे, लेकिन रोटरी में उनका जलवा और आतंक अभी भी बना हुआ है । रोटरी के बड़े नेताओं ने कमल सांघवी को समझाया है कि पता नहीं क्यों उन पर केआर रवींद्रन की कड़ी निगाह बनी हुई है, इसलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर चुने जाने तक उन्हें बहुत ही सावधानी से रहने की जरूरत है ।
कमल सांघवी ने इसी जरूरत को पूरा करने के लिए अपनी सक्रियता को विराम दे दिया है । उनके नजदीकियों के अनुसार, उन्होंने समझा है कि वह जब कुछ करेंगे ही नहीं तो केआर रवींद्रन को उनके खिलाफ कार्रवाई करने का कोई मौका ही नहीं मिलेगा । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी के लिए कमल सांघवी को अब ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं लग रही है; उनके नजदीकियों का कहना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में उन्होंने अपने पक्ष में पक्का इंतजाम कर लिया है; इंटरनेशनल डायरेक्टर का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में या तो उनके 'आदमी' ही चुने गए हैं - और जिन डिस्ट्रिक्ट्स में दूसरे लोग चुने गए हैं, कमल सांघवी ने उनकी घेराबंदी कर/करवा ली है । कमल सांघवी ने अपनी कामयाबी के लिए जोन के डिस्ट्रिक्ट्स में जो फील्डिंग सजाई, उसे देख कर ही कई संभावशील उम्मीदवारों ने अपनी उम्मीदवारी से ही पीछे हटने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । इस कारण से कमल सांघवी के लिए चुनावी मुकाबला और आसान हो गया है । उनके सामने बस केआर रवींद्रन के निशाने पर आने से बचने की ही चुनौती है, इसलिए उन्होंने तय किया है कि वह उड़ेंगे ही नहीं - वह जब उड़ेंगे नहीं, तो केआर रवींद्रन के राडार पर भी नहीं 'दिखेंगे' और बचे रहेंगे । केआर रवींद्रन के खौफ के चलते कमल सांघवी के सक्रियता से बचने और पीछे हटने ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी रौनक को खत्म करने के साथ-साथ चुनावी परिदृश्य को एक अलग तरीके से रोचक भी बना दिया है ।

Thursday, July 20, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में ललित खन्ना के कार्यक्रम को बिगाड़ने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल की योजना को क्लब्स के प्रेसीडेंट्स ने ही फेल कर दिया

नई दिल्ली । ललित खन्ना के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह को बिगाड़ने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल ने जोर तो बहुत लगाया, लेकिन उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद जिस तरह से हर क्षेत्र से रोटेरियंस और क्लब-पदाधिकारी समारोह में पहुँचे - उससे दिखा कि सतीश सिंघल की कोशिशें सफल नहीं हो सकीं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी दीपक गुप्ता तक ने सतीश सिंघल की बात नहीं मानी, और वह भी ललित खन्ना के निमंत्रण पर उक्त समारोह में पहुँचे । रास्ते बंद होने के कारण कई लोगों के लिए हालाँकि समारोह स्थल तक पहुँचना असंभव हुआ और उन्हें वापस लौटने के लिए ही मजबूर होना पड़ा । लेकिन काँवड़-यात्रा के कारण रास्ते बंद होने और वैकल्पिक रास्तों पर जाम जैसी स्थिति होने के बावजूद ललित खन्ना के निमंत्रण पर उक्त समारोह में बड़ी संख्या में रोटेरियंस और क्लब-पदाधिकारियों के जुटे हुए दृश्य ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत ललित खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को उत्साहित करने का ही काम किया है । उक्त अधिष्ठापन समारोह वास्तव में ललित खन्ना की उम्मीदवारी को प्रमोट का ही प्रयास था - और इसीलिए सतीश सिंघल ने ऐसी तैयारी की थी कि उक्त समारोह में ज्यादा लोग न पहुँचे; किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के बावजूद उनकी चाल कामयाब नहीं हो सकी ।
सतीश सिंघल ने पहली बड़ी चाल तो यह चली कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्होंने रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के पदाधिकारियों को डेट ही नहीं दी और डेट को लेकर वह उन्हें चक्कर ही कटवाते रहे । 19 जुलाई के लिए तो सतीश सिंघल के पास बड़ा ठोस बहाना भी था, यह डेट वह पहले ही रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम के लिए बुक कर चुके थे; लेकिन क्लब पदाधिकारियों द्वारा सुझाई गईं बाद की कई तारीखों को भी अलग अलग वजहों से सतीश सिंघल जब नकारते गए, तब क्लब पदाधिकारियों ने समझ लिया कि सतीश सिंघल उनके क्लब में न आने का मन बना चुके हैं - और वह यदि उनके चक्कर में फँसे तो अधिष्ठापन समारोह कर ही नहीं पायेंगे । सतीश सिंघल ने कुछेक लोगों से कहा भी कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केके गुप्ता ने रोटरी इंटरनेशनल में जिस तरह से उनकी शिकायत की है, उसके बाद उनके लिए केके गुप्ता के क्लब के साथ कोई व्यवहार रखना संभव ही नहीं है; और वह देखेंगे कि रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ में कुछ भी अच्छा कैसे होता है । सतीश सिंघल ने सोचा था कि रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के अधिष्ठापन समारोह में जब वह नहीं जायेंगे, तो डिस्ट्रिक्ट टीम के तथा क्लब्स के पदाधिकारी भी नहीं जायेंगे - और वह सभी तो उनके पीछे पीछे उस कार्यक्रम में पहुँचेंगे जहाँ उनकी उपस्थिति होगी । अपनी सोच को व्यावहारिक तौर पर और पुख्ता करने के लिए सतीश सिंघल ने कई लोगों को यह कहने के लिए फोन किए और करवाए कि उन्हें उस कार्यक्रम में आना है जिसमें वह मुख्य अतिथि होंगे ।
सतीश सिंघल को विश्वास रहा कि उनकी चालबाजी कामयाब रहेगी और इसी विश्वास के भरोसे रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम के पदाधिकारियों से उन्होंने इंतजाम बढ़ा लेने को कह दिया । उनकी बात मान भी ली गयी, और जो कार्यक्रम पहले छोटे हॉल में होना था - उसे बड़े हॉल में शिफ्ट कर दिया गया और खाने की प्लेट्स की संख्या भी कुछ बढ़ा दी गईं । लेकिन दोनों कार्यक्रम हो जाने के बाद जब तुलनात्मक तथ्य सामने आए तो सतीश सिंघल को यह देख/जान कर तगड़ा झटका लगा कि डिस्ट्रिक्ट टीम के पदाधिकारियों के साथ-साथ क्लब्स के पदधिकारियों ने भी उनकी चालबाजी को फेल कर दिया है । क्लब-पदाधिकारियों के रवैये से तो सतीश सिंघल हैरान ही रह गए । दरअसल क्लब-पदाधिकारियों, खासकर प्रेसीडेंट्स को वह अपनी जेब में ही 'देखते' हैं और मानते/समझते हैं कि प्रेसीडेंट्स उनके कहने से ही उठेंगे/बैठेंगे । इसी भरोसे उन्हें उम्मीद रही कि उन्होंने जब फतवा जारी करवा दिया था कि क्लब्स के प्रेसीडेंट्स उस कार्यक्रम में रहेंगे जिस कार्यक्रम में वह होंगे, तब फिर प्रेसीडेंट उस कार्यक्रम में क्यों पहुँचे - जहाँ उन्हें नहीं होना था, और वह भी बड़ी संख्या में । सतीश सिंघल को यह जान कर तो और भी निराशा हुई कि उनके द्वारा तमाम 'व्यवस्था' करने के बावजूद 40 से 45 प्रेसीडेंट्स ललित खन्ना के निमंत्रण पर उनके कार्यक्रम में पहुँचे । सतीश सिंघल ने महसूस किया कि प्रेसीडेंट्स को काबू में रखने के लिए उन्हें उनकी गर्दनों पर शिकंजा अभी और कसना पड़ेगा ।
सतीश सिंघल के लिए इससे भी बड़ी मुसीबत की बात यह हुई कि उनकी 'तैयारी' के पीछे रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार आलोक गुप्ता के बीच वर्षों से बिगड़े संबंधों को सुधारने की कवायद को देखा जा रहा था,  लेकिन जो अंततः एक फूहड़ किस्म के प्रहसन के रूप में सामने आई । रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम के निर्माता सदस्य दरअसल पहले आलोक गुप्ता के क्लब में ही थे और उनके बड़े सहयोगी हुआ करते थे; लेकिन उनसे हुए भीषण झगड़े के बाद उन्होंने आलोक गुप्ता का साथ छोड़ कर प्लैटिनम बनाया और तभी से आलोक गुप्ता के साथ उनका बैर चल रहा है । सतीश सिंघल ने इस बैर को खत्म करने के लिए अपनी तरफ से तैयारी तो पक्की की थी, लेकिन उनकी तैयारी को दोनों तरफ से ही कोई सहयोग नहीं मिला । आलोक गुप्ता खुद बहुत देर से कार्यक्रम में पहुँचे; उनके पहुँचने का क्लब के पदाधिकारियों ने जल्दी से कोई नोटिस नहीं लिया - बहुत देर बाद जब नोटिस लिया भी तब इस उलाहने के साथ उनका स्वागत किया कि आलोक गुप्ता पहली बार हमारे क्लब में आए हैं, उम्मीद है कि वह इसलिए नहीं आएँ होंगे क्योंकि वह उम्मीदवार हैं । इस तरह की बातों ने सतीश सिंघल की सारी योजना और तैयारी पर पानी फेर दिया । सतीश सिंघल को आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक और मददगार के रूप देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन 19 जुलाई के कार्यक्रमों को लेकर उनकी तमाम तैयारी का जो हश्र देखने में आया है -उससे लग रहा है कि सतीश सिंघल का समर्थन और मदद कहीं आलोक गुप्ता के लिए मुसीबत न बन जाए ?

Wednesday, July 19, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में शाजु पीटर की माफियागीरी से परेशान क्लब सदस्यों की बेनामी मेल शाजु पीटर के खिलाफ खुली बगावत की शुरुआत है क्या ?

चंडीगढ़ । रोटरी क्लब चंडीगढ़ मिडटाउन में हो रही घपलेबाजियों को उजागर करती एक बेनामी मेल ने उस खतरे से राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू तथा उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स का सीधा सामना करवा दिया है, जिसका डर उन्हें सता रहा था - और जिस डर के कारण ही टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न बनने देने के लिए राजा साबू और उनके गुर्गों ने पिछले दो वर्षों से बबाल मचाया हुआ था । राजा साबू और उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स नेताओं ने डिस्ट्रिक्ट और क्लब्स में ऐसा आतंक और अंधेर मचाया हुआ था कि उनकी कारस्तानियों पर आवाज उठाने की कोई हिम्मत ही नहीं कर सकता था । इसका नजारा करनाल में आयोजित हुई रमन अनेजा के गवर्नर-काल की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में भी देखने को मिला था, जब रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ पूर्व अध्यक्ष मोहिंदर पॉल गुप्ता द्वारा पूछे गए एक सवाल में हार्टलैंड प्रोजेक्ट का संदर्भ आने पर राजा साबू बुरी तरह बौखला गए थे और उनके चंपू पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेपीएस सिबिया ने मोहिंदर पॉल गुप्ता को सवाल पूछने से ही रोक दिया था । राजा साबू और उनके समर्थन की छाँह में पलते-बढ़ते पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इस बात को जरा भी बर्दाश्त नहीं कर पाते रहे हैं कि उनकी कारगुजारियों के बारे में कोई सवाल पूछे जाएँ । इसीलिए उन्हें डर था कि टीके रूबी यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने, तो लोगों को सवाल पूछने की प्रेरणा और हौंसला मिलेगा - और यह बात राजा साबू और उनके नजदीकी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की करतूतों को सामने लाने का काम करेगी ।
जिसका डर था, अंततः वही हुआ । टीके रूबी को गवर्नर पद से दूर रखने के लिए राजा साबू और उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स द्वारा की गई दो वर्षों की मेहनत व्यर्थ गई और टीके रूबी गवर्नर बने तो राजा साबू और उनके नजदीकियों के खिलाफ आवाजें उठना शुरू हो गईं - और इसके पहले शिकार बने हैं शाजु पीटर । रोटरी क्लब चंडीगढ़ मिडटाउन उन्हीं के क्लब के रूप में देखा/पहचाना जाता है, और जो बेनामी मेल कई लोगों को मिली है - उसमें शाजु पीटर को ही निशाना बनाया गया है । बेनामी मेल में शाजु पीटर पर क्लब में एक माफिया की तरह काम करने का आरोप लगाते हुए बताया गया है कि क्लब में अपनी मनमानी और विभिन्न ग्रांट्स की लूट को बनाए रखने के लिए शाजु पीटर क्लब्स के पूर्व प्रेसीडेंट्स तक को क्लब की गतिविधियों से दूर रखते हैं - और क्लब को चलाने में रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का खुला उल्लंघन करते हैं । इस बेनामी मेल में हुए खुलासे ने डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों को चौंकाया है, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में शाजु पीटर की पहचान और छवि एक बड़े जेनुइन व्यक्ति की रही है । लेकिन बेनामी मेल में दिए गए तथ्यों ने 'चमचमाती कारपेट' को जो थोड़ा सा उठाया है, तो उसके नीचे छिपी/छिपाई गई गंदगी ने ऊपरी चमक की सारी पोल खोल दी है । इस बेनामी मेल को क्लब में शाजु पीटर के खिलाफ उठते विद्रोह के रूप में भी देखा जा रहा है - लोगों का मानना और कहना है कि क्लब में शाजु पीटर की माफियागीरी से परेशान सदस्यों ने अभी तो पर्दे के पीछे रह कर मोर्चा खोला है, लेकिन जल्दी ही यह क्लब में शाजु पीटर के खिलाफ खुली बगावत में बदल जा सकता है ।
क्लब में शाजु पीटर और उनके नजदीकियों ने इस बेनामी मेल को उन असंतुष्ट सदस्यों का 'काम' बताया है, जो शाजु पीटर को बदनाम करके टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा को खुश करके लाइमलाइट में आना चाहते हैं । शाजु पीटर और उनके नजदीकी इस बेनामी मेल की टाइमिंग पर भी सवाल उठा रहे हैं - उल्लेखनीय है कि यह बेनामी मेल क्लब का अधिष्ठापन कार्यक्रम होने के तुरंत बाद आई है, जिसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी को आमंत्रित नहीं किया गया था । दरअसल राजा साबू और उनके समर्थक कुछेक नेताओं को टीके रूबी को गवर्नर के रूप में देखने में अभी भी भारी पीड़ा हो रही है, और इसीलिए उन्होंने टीके रूबी के प्रति उपेक्षा का भाव बनाया हुआ है - इसी भाव को प्रदर्शित करते हुए शाजु पीटर के क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी जितेंद्र ढींगरा को नहीं बुलाया गया; और उनके कार्यक्रम की शोभा एक अकेले राजा साबू ने बढ़ाई । शाजु पीटर और उनके नजदीकियों का ही कहना है कि क्लब के असंतुष्टों ने उम्मीद की है कि अधिष्ठापन कार्यक्रम में आमंत्रित न किए जाने से टीके रूबी नाराज होंगे ही और उनकी इस नाराजगी का फायदा उठाने के लिए ही असंतुष्टों ने टीके रूबी को संबोधित करते हुए मेल लिख दी है ।
शाजु पीटर और उनके नजदीकी क्लब के असंतुष्टों की इस कार्रवाई से अभी तो ज्यादा परेशान नहीं नजर आ रहे हैं, लेकिन दूसरे लोगों को लग रहा है कि यह उनके बुरे दिनों की शुरुआत का संकेत है - दूसरे लोगों को लग रहा है कि इस संकेत को समझ/पहचान कर शाजु पीटर ने यदि अपने तौर-तरीकों को नहीं सुधारा तथा क्लब के वरिष्ठ सदस्यों और पूर्व प्रेसीडेंट्स को उचित सम्मान देना शुरू नहीं किया, तो मुखर होती नाराजगी क्लब के विभाजन का कारण भी बन सकती है । शाजु पीटर के क्लब के सदस्यों की तरफ से शाजु पीटर के कारनामों की पोल खोलती आई इस बेनामी मेल ने इस बात की संभावना को भी पुष्ट किया है कि अब राजा साबू और उनके नजदीकियों के क्लब्स में विरोध और बगावत की आवाजें उठेंगी तथा गूँजेंगी ।

Monday, July 17, 2017

लायंस मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग की 'मजबूरी' का अजय सिंघल को फायदा उठाता देख आनंद साहनी, विनय गर्ग पर भड़के

चंडीगढ़ । विनय गर्ग और अजय सिंघल के बीच बढ़ती 'दिखी' नजदीकी ने आनंद साहनी को तगड़ा झटका देते हुए बुरी तरह से निराश किया है, जिसके चलते उन्होंने अपने नजदीकियों से रोना रोया है कि उनके लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि विनय गर्ग इतनी जल्दी रंग बदल लेंगे । आनंद साहनी को लगता है और उन्होंने कई एक मौकों पर यह कहा/जताया भी है, तथा मल्टीपल में कई लोग इस बात से सहमत भी हैं कि विनय गर्ग यदि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बन सके हैं - तो इसके लिए आनंद साहनी का दृढ़ समर्थन ही मुख्य रूप से जिम्मेदार है । उल्लेखनीय है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव को लेकर पीछे जो घमासानभरा नाटक चला था, उसमें विनय गर्ग को जीतने न देने के लिए लीडरशिप ने आनंद साहनी पर ही फोकस किया हुआ था । दरअसल विनय गर्ग के समर्थकों में आनंद साहनी को ही सबसे कमजोर कड़ी के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, और उन्हें 'तोड़ने' के लिए लीडरशिप के बड़े/छोटे नेताओं ने अपनी सारी ताकत लगाई हुई थी । आनंद साहनी ने लेकिन विनय गर्ग का साथ नहीं छोड़ा - और तमाम दंगे/फसाद के बावजूद अंततः विनय गर्ग मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने में सफल हुए । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग लेकिन जिस तरह से लीडरशिप के लोगों के नजदीक होने की कोशिश करते हुए दिखे हैं, उससे आनंद साहनी सहित उनके कई समर्थकों को खासा तगड़ा झटका लगा है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप में नरेश अग्रवाल का स्वागत करने के लिए दिल्ली में हुए आयोजन में विनय गर्ग को अजय सिंघल के नजदीक होने की कोशिश करता देख कर तो आनंद साहनी बुरी तरह जल-भुन से गए हैं । 
आनंद साहनी के इस 'जलने-भुनने' का कारण दरअसल यह है कि डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के गवर्नर के रूप में आनंद साहनी को इस वर्ष मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनना है, और इसमें उनका मुकाबला डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के गवर्नर अजय सिंघल से होने की चर्चा है । आनंद साहनी इस वर्ष के मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने/बनाने में विनय गर्ग से सहयोग और समर्थन मिलने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन विनय गर्ग को अजय सिंघल के साथ नजदीकी बनाने और 'दिखाने' की कोशिश करता देख आनंद साहनी का माथा ठनका है । आनंद साहनी के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जिन अजय सिंघल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में विनय गर्ग का जमकर विरोध किया था; और तेजपाल खिल्लन से बीस लाख रुपए का ऑफर मिलने के बाद भी जो विनय गर्ग को वोट देने के लिए राजी नहीं हुए थे - उन अजय सिंघल के साथ नजदीकी बनाने और उसे 'दिखाने' की विनय गर्ग को आखिर क्या जरूरत आ पड़ी है ? विनय गर्ग पर उनके ही साथियों/समर्थकों के यह आरोप तो सुने ही जा रहे हैं कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने के बाद विनय गर्ग उन्हें भूल/छोड़ कर लीडरशिप के नेताओं के नजदीक होने का प्रयास कर रहे हैं; इन्हीं आरोपों के चलते नरेश अग्रवाल का स्वागत करने के लिए दिल्ली में हुए मल्टीपल के पहले ही कार्यक्रम का विनय गर्ग के खास सहयोगी रहे उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के सुभाष बत्रा, अजय गोयल, चमनलाल गुप्ता जैसे पूर्व गवर्नर्स ने बहिष्कार किया - आनंद साहनी के लिए लेकिन यह समझना मुश्किल बना हुआ है कि विनय गर्ग उक्त कार्यक्रम में उनकी बजाए अजय सिंघल के साथ ज्यादा नजदीक होने और 'दिखने' का प्रयास क्यों कर रहे थे ? विनय गर्ग के इस व्यवहार को आनंद साहनी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव के संदर्भ में अपने लिए खतरे की घंटी के रूप में देख और 'सुन' रहे हैं ।
विनय गर्ग के नजदीकियों ने हालाँकि विनय गर्ग की मजबूरियों का वास्ता देकर आनंद साहनी को समझाने और आश्वस्त करने का प्रयास किया है, लेकिन आनंद साहनी को लगातार यही महसूस हो रहा है कि अपना काम निकल जाने के बाद विनय गर्ग ने उनसे मुँह फेर लिया है और मान लिया है कि अब वह उनके 'काम' के नहीं रह गए हैं । इस प्रसंग में विनय गर्ग के नजदीकियों का कहना है कि विनय गर्ग के कई समर्थक इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने के बाद विनय गर्ग के लिए परिस्थितियाँ बदल गयी हैं, और अब वह चुनाव से पहले की तरह से टकरावभरे रास्ते पर नहीं चल सकते हैं । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में अच्छे से काम करने के लिए विनय गर्ग के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह सभी को साथ लेकर चलें - और वह यही करने की कोशिश कर रहे हैं । उनकी कोशिश का अजय सिंघल ने यदि फायदा उठाया और अनुकूल प्रतिक्रिया व्यक्त की - जिसके चलते लोगों को विनय गर्ग और अजय सिंघल एक दूसरे के नजदीक नजर आए, तो इसमें आनंद साहनी को अपनी कमजोरी और विफलता को भी पहचानना चाहिए । विनय गर्ग के सामने दोहरी चुनौती है - उनके विरोधी तो हर कदम पर उन्हें फेल करने का प्रयास करेंगे ही, लेकिन विनय गर्ग को अपने समर्थकों के साथ-साथ अपने विरोधियों को भी अपने साथ लाने का प्रयास करना है । आनंद साहनी की नाराजगी लेकिन बता/दिखा रही है कि विरोधियों को साधने के चक्कर में विनय गर्ग अपने समर्थकों को नाराज कर रहे हैं । विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवाने में आनंद साहनी की भूमिका को देखते हुए - 'मजबूरियों' के चलते विनय गर्ग के बदलते व्यवहार के प्रति आनंद साहनी की नाराजगी विनय गर्ग के लिए मुसीबत भरी भी साबित हो सकती है ।

Sunday, July 16, 2017

लायंस इंटरनेशनल के इसामे सेक्रेटेरिएट के दिल्ली ऑफिस के मुखिया पद पर विनोद खन्ना को बैठाने के लिए केएम गोयल और दीपक तलवार के बढ़ते कदमों को नरेश अग्रवाल रोकेंगे क्या ?

नई दिल्ली । दिल्ली में पाँच वर्ष बाद होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन की तैयारी के लिए दिल्ली में बनने वाले इसामे सेक्रेटेरिएट के ऑफिस का मुखिया बनने के लिए विनोद खन्ना और केएम गोयल के बीच दिलचस्प मारामारी मची है, और दोनों ने ही अपने अपने तरीके से इस पद को हथियाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं । विनोद खन्ना की कोशिशों का पलड़ा लोगों को इसलिए भारी लग रहा है, क्योंकि उन्हें जेपी सिंह का समर्थन तो मिलता दिख ही रहा है - तेजपाल खिल्लन भी उनके सामने समर्पण करते नजर आ रहे हैं । तेजपाल खिल्लन यूँ तो दोनों को ही पसंद नहीं करते हैं लेकिन डायरेक्टर अपॉइण्टी होने के नाते विनोद खन्ना से उन्हें अपने धंधे में फायदा मिलने की उम्मीद दिखती है - इसलिए विनोद खन्ना के साथ जुड़ने में उन्हें फिलहाल फायदा नजर आ रहा है । केएम गोयल भी लेकिन चुप नहीं बैठे हैं : उनकी तरफ से मुद्दा बनाया जा रहा है कि नरेश अग्रवाल सारी मलाई क्या विनोद खन्ना को ही चटा देंगे ? डायरेक्टर अपॉइण्टी भी वही बनेंगे और दिल्ली में बनने वाले इसामे सेक्रेटेरिएट के ऑफिस के मुखिया भी वही बनेंगे ? इस सवाल से नरेश अग्रवाल दबाव में तो हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि नरेश अग्रवाल को यह डर तो सता रहा है कि उन्होंने यदि विनोद खन्ना को इसामे सेक्रेटेरिएट के दिल्ली ऑफिस का मुखिया बनाया तो आरोपों के घेरे में वह खुद भी आयेंगे ।
लायंस इसामे सेक्रेटेरिएट के दिल्ली ऑफिस के मुखिया बनने/बनाने की 'लड़ाई' में शान वर्ल्ड ट्रेवल्स के कूद पड़ने से भी मामला खासा दिलचस्प हो गया है । हालाँकि शान वर्ल्ड ट्रेवल्स है तो एक ट्रेवल एजेंसी, लेकिन मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में उसे लायंस इंटरनेशनल के 'गोद लिए पुत्र' के रूप में भी जाना/पहचाना जाता है - जिसका लालन-पालन करने में जेपी सिंह और विनोद खन्ना आदि का बड़ा सहयोग रहा है । धंधा जमाने के लिए शान वर्ल्ड ट्रेवल्स के प्रबंधकों ने जो राजनीतिक दाँव-पेंच चले हैं, उससे वह एक बड़े राजनीतिक खिलाड़ी भी बन गए हैं - यद्यपि लायन राजनीति में खुलकर भूमिका निभाने से वह बचते रहे हैं । इसामे सेक्रेटेरिएट के दिल्ली ऑफिस के मुखिया की लड़ाई में लेकिन शान वर्ल्ड ट्रेवल्स के प्रबंधकों की दिलचस्पी अपने धंधे के कारण पैदा हुई है; उन्हें डर है कि मुखिया यदि केएम गोयल बने तो ट्रेवल का काम उनकी बजाए केएम गोयल की बेटी की ट्रेवल एजेंसी को मिलेगा - इसीलिए उन्होंने अपना जितना जो राजनीतिक जोर है वह विनोद खन्ना को मुखिया बनाने/बनवाने पर लगाया हुआ है । 
इसामे सेक्रेटेरिएट के दिल्ली ऑफिस के मुखिया बनने की लड़ाई दरअसल इसलिए एक बड़ी लड़ाई बन गयी है, क्योंकि मुखिया पद में बड़ी मोटी कमाई का मौका है । विनोद खन्ना की काम-धाम के मामले में बहुत ही बुरी हालत है और लोगों के बीच अक्सर ही उनके कर्ज में डूबे होने की बातें सुनी जाती हैं । लोगों को लगता है कि दिल्ली में इंटरनेशनल कन्वेंशन होने को विनोद खन्ना ने अपनी माली हालत सुधारने के एक सुनहरे अवसर के रूप में देखा/पहचाना है, और इस मौके का वह पूरा पूरा फायदा उठाने की कोशिशों में हैं । केएम गोयल के सामने माली हालत सुधारने की विनोद खन्ना जैसी जरूरत और चुनौती तो नहीं है, लेकिन उनके पास भी चूँकि काम-धाम नहीं है - इसलिए वह अपने आप को मुखिया पद के लिए फिट मान रहे हैं । मुखिया पद केएम गोयल को अपनी 'राजनीतिक' हैसियत बढ़ाने के लिए ज्यादा जरूरी लग रहा है । उल्लेखनीय है कि केएम गोयल अकेले ऐसे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर हैं, जिन्हें उनका उचित 'राजनीतिक' हक नहीं मिल सका है - उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में उनकी कोई हैसियत नहीं समझी/देखी जाती है । इसीलिए उन्हें लगता है कि इसामे सेक्रेटेरिएट के दिल्ली ऑफिस का मुखिया बन कर वह अपनी राजनीतिक हैसियत और पहचान में इजाफा कर सकेंगे ।
इसामे सेक्रेटेरिएट के दिल्ली ऑफिस के मुखिया पद पर दीपक तलवार की उम्मीदवारी की चर्चा ने भी इस 'लड़ाई' को रोचक बना दिया है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक तलवार को हालाँकि विनोद खन्ना को केएम गोयल के 'जबाव' के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । चर्चा है कि 'लड़ाई' में अपने आप को विनोद खन्ना से पिछड़ता देख केएम गोयल ने दीपक तलवार का नाम आगे बढ़ाया है । उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल कन्वेंशन दिल्ली में करवाने के लिए जो फील्डिंग सजाई गयी थी, उसमें दीपक तलवार की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी । जानकारों का तो यहाँ तक कहना है कि दीपक तलवार का सहयोग यदि न मिला होता, तो उचित और जरूरी तैयारी हो ही नहीं पाती और इंटरनेशनल कन्वेंशन का दिल्ली में होना सपना ही रह जाता । दीपक तलवार पर्दे के पीछे से काम करने के मामले में बहुत ही विश्वसनीय व्यक्ति के रूप में पहचाने जाते हैं; और इससे भी बड़ी खूबी उनकी यह मानी/पहचानी गयी है कि बदले में वह कुछ चाहते भी नहीं हैं - उनकी इस खूबी का कई लोगों ने बहुत फायदा उठाया है । इसामे सेक्रेटेरिएट के दिल्ली ऑफिस के मुखिया पद को विनोद खन्ना और केएम गोयल से बचाने के लिए कई लोग दीपक तलवार का नाम ले रहे हैं । विनोद खन्ना और उनके समर्थक दीपक तलवार को मिल रहे समर्थन के पीछे केएम गोयल को देख रहे हैं, इसलिए मुखिया पद कब्जाने के लिए अपनी कोशिशों को उन्हें और तेज करने की जरूरत महसूस हो रही है । विनोद खन्ना को केएम गोयल से निपटना तो आसान दिख रहा था, लेकिन मुखिया पद के लिए दीपक तलवार का नाम आने से उनके लिए चुनौती खासी बढ़ गयी है - ऐसे में नरेश अग्रवाल के सामने भी मुसीबत खड़ी हो गयी है कि वह मुखिया पद के लिए केएम गोयल और दीपक तलवार के बढ़ते कदमों को आखिर कैसे रोकें ?

Friday, July 14, 2017

लायंस मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में अपने धंधे के लिए लीडरशिप से सौदेबाजी करने खातिर अभी तक वीएस कुकरेजा और चमनलाल गुप्ता को इस्तेमाल करते रहे तेजपाल खिल्लन अब विनय गर्ग को इस्तेमाल कर रहे हैं क्या ?

नई दिल्ली । विरोध के नाम पर एक दूसरे को गालियाँ देने, एक दूसरे के साथ धक्का-मुक्की करने तथा मार-पिटाई करने/कराने और पुलिस रिपोर्ट करने/करवाने के बाद लायंस नेताओं के बीच अब मेलमिलाप करने और मुस्कुराते हुए साथ-साथ फोटो खिंचवाने का मौसम है । यह तस्वीरें हालाँकि छलावा ही हैं, और इन्हें अपने अपने धंधे और अपनी अपनी पोजीशन बचाने के लिए लायन लीडर्स द्वारा किए जाने वाले नाटक के दृश्यों के रूप में ही देखा जाना चाहिए । इनके नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि खुद नरेश अग्रवाल और उनके साथ के लोगों को तेजपाल खिल्लन और उनके लोगों से जो बेइज्जती झेलनी पड़ी है, उसे वह भूले नहीं हैं और तेजपाल खिल्लन से वह एक एक बात का बदला लेने की तैयारी में हैं । इसी तैयारी के तहत विनोद खन्ना को डायरेक्टर अपॉइन्टी बनाया गया है, तथा एसके मधोक को जीएलटी एरिया लीडर का पद दिया गया है - तेजपाल खिल्लन को और गहरी चोट देने के लिए जेसी वर्मा को भी मल्टीपल में महत्त्वपूर्ण पद देने की तैयारी की जा रही है । तेजपाल खिल्लन की तरफ से हालाँकि दावा किया जा रहा है कि जेसी वर्मा को मिलने वाला नियुक्ति पत्र उन्होंने रुकवा दिया है, लेकिन जेपी सिंह के नजदीकियों का कहना है कि जेसी वर्मा को मल्टीपल में महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी अवश्य ही मिलेगी ।
जेसी वर्मा के नाम पर होने वाली खींचतान में पलड़ा हल्का होने का अनुमान लगता है कि तेजपाल खिल्लन को भी हो गया है, इसलिए उन्होंने लीडरशिप के सामने फिलहाल समर्पित होने का ही आभास देना शुरू किया हुआ है । इस चक्कर में हाल ही में हुई एक मीटिंग में उन्हें डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के पूर्व गवर्नर सुभाष बत्रा को भी डाँट कर चुप कराना पड़ा । सुभाष बत्रा का गुनाह बस इतना था कि वह कह रहे थे कि विनय गर्ग के रूप में अब जब मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन उनका अपना है, तो मल्टीपल के पद 'वह' देंगे । सुभाष बत्रा की बात का और लोग भी समर्थन करते और मामला आगे बढ़ता - उससे पहले ही तेजपाल खिल्लन ने सुभाष बत्रा को डाँटते हुए चुप किया और साफ ऐलान किया कि मल्टीपल के पद लीडरशिप ही तय करेगी । दरअसल अपना धंधा बचाने के लिए, तेजपाल खिल्लन अभी लीडरशिप को यह संदेश नहीं देना चाहते हैं कि वह लीडरशिप के 'काम' में अड़ंगा डालने की कोशिश कर रहे हैं । सुभाष बत्रा ने इस 'तथ्य' पर तो गौर किया नहीं, और अपनी नेतागिरी दिखाने में लग गए । फलस्वरूप तेजपाल खिल्लन को सबके सामने उन्हें फटकारना पड़ा । तेजपाल खिल्लन के नजदीकियों का कहना है कि जेसी वर्मा को मल्टीपल में कोई पद न मिले, तेजपाल खिल्लन इसके लिए प्रयास तो करेंगे - लेकिन एक सीमा तक ही करेंगे । दरअसल तेजपाल खिल्लन इस बात को बहुत ही अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में जेसी वर्मा ने जिन लोगों के लिए कठपुतली बन कर काम किया, वह लोग उसका उन्हें ईनाम तो देंगे/दिलवायेंगे ही न - इसलिए जेसी वर्मा को लेकर टकराव का माहौल बनाना उन्हें उचित नहीं लग रहा है ।
तेजपाल खिल्लन को लीडरशिप के सामने समर्पित रूप में देखते/पहचानते हुए उनके साथियों को तगड़ा झटका लगा है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के जिन पूर्व गवर्नर्स ने तेजपाल खिल्लन पर भरोसा किया हुआ था, वह यह जान कर घोर निराश हो रहे हैं कि तेजपाल खिल्लन ही विनय गर्ग को उनसे बच कर तथा उनसे दूर रहने की सलाह दे रहे हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के सुभाष बत्रा, अजय गोयल, चमनलाल गुप्ता जैसे पूर्व गवर्नर्स मल्टीपल की मीटिंग्स में विभिन्न मुद्दों पर बबाल मचाने के लिए बदनाम हैं; पिछले लायन वर्ष में इन लोगों ने पूर्व गवनर्स से खाने के पैसे लेने के मुद्दे पर खासा हंगामा किया था - उन्हीं बातों को रेखांकित करते हुए तेजपाल खिल्लन ने विनय गर्ग को समझाया है कि यह लोग जो माँग करते रहे हैं, उन्हें मानना संभव नहीं होगा; और इसलिए अच्छा होगा कि ऐसे लोगों से बच कर दूर ही रहो । डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के चलते विनय गर्ग के लिए तेजपाल खिल्लन की इस सलाह को मान पाना मुश्किल तो होगा, लेकिन न मानने पर चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग दूसरी तरह की मुसीबतों को आमंत्रित करेंगे । विनय गर्ग क्या करेंगे, यह तो आगे पता चलेगा - अभी लेकिन लोगों की जुबान पर यही बात है कि तेजपाल खिल्लन ने अपने धंधे के लिए लीडरशिप से सौदेबाजी करने के लिए अभी तक वीएस कुकरेजा और चमनलाल गुप्ता को इस्तेमाल किया था - और अब उन्हें भुला कर वह विनय गर्ग को इस्तेमाल कर रहे हैं ।

Wednesday, July 12, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अवॉर्ड मिलने के जोश में 'अगले कदम' पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की घोषणा करके गायब हो जाने वाले प्रशांत माथुर ने ललित खन्ना को बड़ी राहत दी

नई दिल्ली । प्रशांत माथुर तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का शिगूफा छोड़ कर गायब हो गए हैं, लेकिन ललित खन्ना का काम बढ़ा गए हैं । ललित खन्ना के लिए यह काम और बढ़ गया है कि वह लोगों को बताएँ कि प्रशांत माथुर जिन नेताओं के भरोसे उम्मीदवार होने की सोच रहे थे, उन नेताओं का समर्थन चूँकि उनके साथ ही है - इसलिए प्रशांत माथुर की उम्मीदवारी की संभावना नहीं है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव दो उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि दो खेमों के बीच होता है - इसलिए प्रशांत माथुर की उम्मीदवारी की घोषणा ने लोगों के बीच ललित खन्ना की उम्मीदवारी पर सवाल खड़े कर दिए थे । ललित खन्ना और प्रशांत माथुर चूँकि एक ही खेमे के साथ 'देखे/पहचाने' जाते हैं; और ललित खन्ना की उम्मीदवारी चूँकि पहले से ही चर्चा में है - इसलिए प्रशांत माथुर की अचानक घोषित हुई उम्मीदवारी से लोगों को आभास मिला कि जैसे खेमे के नेता ललित खन्ना की उम्मीदवारी की 'चाल' से खुश नहीं हैं और उनके ही कहने पर प्रशांत माथुर ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है । इससे ललित खन्ना के सामने लोगों के बीच खेमे के नेताओं के समर्थन का भरोसा बनाए रखने की चुनौती पैदा हुई । घोषणा करने के बाद से प्रशांत माथुर चूँकि एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय नहीं दिख रहे हैं, इसलिए ललित खन्ना का काम आसान तो हुआ है - लेकिन प्रशांत माथुर की घोषणा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में उन्हें जो नुकसान पहुँचाया है, जल्दी से जल्दी उसकी भरपाई करना उनके लिए एक चुनौती की बात तो है ही ।
प्रशांत माथुर के रवैये ने भी लोगों को हैरान किया है । उन्हें एक जिम्मेदार व्यक्ति व रोटेरियन के रूप में देखा/पहचाना जाता है । इसीलिए उन्होंने जब अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की तो उनकी घोषणा को लोगों ने गंभीरता से लिया - लेकिन फिर जल्दी ही देखा/पाया गया कि प्रशांत माथुर अपनी उम्मीदवारी को लेकर खुद ही गंभीर नहीं हैं । उनके कुछेक नजदीकियों ने हालाँकि दावा किया था कि वह चुनावी राजनीति की मुश्किलों से परिचित हैं, वह कॉर्पोरेट राजनीति में संलग्न रहते हैं और इसलिए भी राजनीति करने के तौर-तरीकों को जानते/समझते हैं - इस कारण से एक उम्मीदवार के रूप में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में एक दमदार खिलाड़ी साबित होंगे । प्रशांत माथुर लेकिन उम्मीदवारी की घोषणा करके गायब ही हो गए हैं - इससे लोगों ने यही समझा है कि जोश जोश में उन्होंने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा तो कर दी, लेकिन जब यह देखा/समझा कि उम्मीदवारी को निभाना 'आग का दरिया है, जिसे तैर कर पार करना' है तो फिर वह तुरंत ही पीछे हट गए । लोगों ने यह भी माना/कहा कि प्रशांत माथुर ने जिस अचानक तरीके से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की थी, उससे भी लगा था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति की बुनियादी तासीर से वह जरा भी परिचित नहीं हैं और बस अवॉर्ड के जोश में आकर उन्होंने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी ।
प्रशांत माथुर के कुछेक नजदीकियों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के थैंक्सगिविंग कार्यक्रम में शरत जैन से प्रशांत माथुर को 'सर्विस अबव सेल्फ' का जो अवार्ड मिला और उस पर जो तालियाँ बजीं - तो प्रशांत माथुर की आँखों में गवर्नर की कुर्सी चमक उठी । रोटरी में यह बड़ी आम घटना है : रोटरी की कार्यप्रणाली और इसमें का माहौल कई लोगों को खुद के महत्त्वपूर्ण होने का आभासी/झूठा अहसास कराता है; कुछ लोग इसे असली समझ बैठते हैं - और तब वह अपने आप को गवर्नर से कम समझने को राजी नहीं होते । लगता है कि प्रशांत माथुर भी इसी मृगमरीचिका का शिकार हुए और 'नेक्स्ट स्टेप इन रोटरी' के रूप में गवर्नर पद पर दावा कर बैठे । यह दावा करने के बाद वह दो-एक कार्यक्रमों में तो दिखाई दिए, लेकिन फिर पूरी तरह गायब ही हो गए । लोग उनके नजदीकियों से पूछ रहे हैं कि भई प्रशांत माथुर को गवर्नर बनना है, लेकिन वह हैं कहाँ ? नजदीकी परेशान हैं कि वह भला क्या जबाव दें ? प्रशांत माथुर के नजदीकियों से ज्यादा ललित खन्ना के लिए परेशानी खड़ी हुई है और उन्हें इस बात पर सफाई देनी पड़ रही है कि जिस खेमे का समर्थन उन्हें मिलने की बात हो रही है, उस खेमे की तरफ से प्रशांत माथुर कैसे और क्यों अपनी उम्मीदवारी की बात करने लगे हैं ? प्रशांत माथुर के सीन से गायब हो जाने के कारण ललित खन्ना को जबाव देने में आसानी तो हो गई है, लेकिन फिर भी प्रशांत माथुर की जोशबाजी के कारण ललित खन्ना पर जबाव देने का अतिरिक्त बोझ तो आ ही पड़ा है ।

Tuesday, July 11, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की खुली तरफदारी के बावजूद कल की मीटिंग में राजेश शर्मा के खिलाफ हुई नारेबाजी से लगता नहीं है कि राजेश शर्मा को जलालत भरी मुसीबत से जल्दी ही छुटकारा मिल सकेगा ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट मुख्यालय में छह दिन बाद दूसरी बार 'राजेश शर्मा हाय हाय' और 'राजेश शर्मा चोर है' जैसे नारे गूँजे । फर्क यह रहा कि पिछली बार राजेश शर्मा ने जब यह नारे सुने थे, तब वह अलमारियों के पीछे छिप-छिपा कर और खिड़कियों से कूद-फांद कर मुख्यालय से भाग गए थे - लेकिन अब की बार उन्हें भागने का मौका नहीं मिला । कुछ लोगों का कहना है कि इस बार उन्हें भागना था भी नहीं; इस बार उन्हें साबित करना था कि उनकी चमड़ी बड़ी मोटी है और इस तरह के नारों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है । राजेश शर्मा को इस बार इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे और इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर सहित सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों की मौजूदगी में अपने खिलाफ होने वाली नारेबाजी को झेलना पड़ा । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के वाइस चेयरमैन विवेक खुराना तथा निकासा चेयरमैन नितिन कँवर के साथ-साथ ट्रेजरर सुमित गर्ग और सेक्रेटरी राजेंद्र अरोड़ा तक ने राजेश शर्मा के खिलाफ जो स्टैंड दिखाया, उसने कई लोगों को चौंकाया; क्योंकि इन चारों को राजेश शर्मा के नजदीकी और समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है; इन चारों को चूँकि किसी भी मामले में मुखर होते हुए भी कभी नहीं देखा गया - इसलिए प्रेसीडेंट और सेक्रेटरी की मौजूदगी में राजेश शर्मा की कारस्तानियों को लेकर इनकी मुखरता ने हर किसी का ध्यान खींचा । वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि इंस्टीट्यूट के 68 वर्षों के इतिहास में इतनी बेइज्जती किसी सेंट्रल काउंसिल सदस्य की नहीं हुई है, जितनी राजेश शर्मा की हुई है और हो रही है - और सार्वजनिक रूप से हो रही है ।
मजे की बात लेकिन यह है कि राजेश शर्मा और उनके समर्थक आश्वस्त हैं कि उनका यह 'बुरा' समय जल्दी ही बीत जाएगा और कुछ दिनों में ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भूल जायेंगे कि इस वर्ष के 'सीए डे' में उनके साथ क्या हुआ ? अपने आश्वस्त होने का कारण बताते हुए वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट ही नहीं, बल्कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के रवैए को भी वह रेखांकित कर रहे हैं । राजेश शर्मा के समर्थकों का कहना है कि कल हुई मीटिंग में सभी ने देखा कि प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने कैसे राजेश शर्मा की वकालत की और सेंट्रल काउंसिल सदस्य मुँह पर ताला डाले हुए चुपचाप बैठे रहे । राजेश शर्मा के समर्थकों का कहना है कि यह इस बात का सुबूत है कि राजेश शर्मा ने प्रेसीडेंट और सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को तो 'सेट' कर लिया है; उनकी तरफ से तो उन्हें कोई खतरा नहीं होगा - रही बात छुटभैये चार्टर्ड एकाउंटेंट्स नेताओं की, तो वह भी आखिर कब तक गला फाड़ सकेंगे ? राजेश शर्मा के समर्थकों का कहना है कि इंस्टीट्यूट के पिछले चुनाव में हार चुके कुछेक नेता इस उम्मीद में राजेश शर्मा के खिलाफ माहौल बनाए हुए हैं, कि इससे लोगों के बीच अपनी सक्रियता दिखाते हुए उनके लिए अगले चुनाव में जीत हासिल कर पाना आसान हो जाएगा - लेकिन ऐसे लोगों से राजेश शर्मा को कोई खतरा नहीं है ।
राजेश शर्मा और उनके समर्थक भले ही बेशर्मी के साथ 'बहादुरी' दिखाने की कोशिश कर रहे हैं और इस उम्मीद में हैं कि उनके खिलाफ मुखर बनी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नाराजगी जल्दी ही खत्म हो जाएगी; लेकिन सात दिन के भीतर ही राजेश शर्मा को इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे के सामने ही जिस तरह की जलालत झेलनी पड़ी - उसे देख कर दूसरे लोगों को लगता नहीं है कि राजेश शर्मा के बुरे दिन जल्दी ही खत्म होंगे । राजेश शर्मा की कारस्तानियों को और उन कारस्तानियों के चलते उनके खिलाफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पैदा हुई नाराजगी को देखते हुए उनके कई समर्थकों ने जिस तरह से उनके साथ दूरी बना ली है, उससे राजेश शर्मा का संकट काफी बढ़ गया है । राजेश शर्मा ने अपने रवैये और अपने व्यवहार से तमाम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को, खासतौर से इंस्टीट्यूट की राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को नाराज किया हुआ है - उन्हें 'सीए डे' के हादसे के चलते राजेश शर्मा से बदला लेने का अच्छा मौका मिला है, जिसे वह किसी भी तरह से खोना नहीं चाहेंगे । राजेश शर्मा के विरोधियों को लगता है कि इंस्टीट्यूट के मौजूदा प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने तो राजेश शर्मा के सामने समर्पण किया हुआ है, इसलिए उनसे तो कोई उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह राजेश शर्मा की नकेल कस सकें; लेकिन विरोधियों को लगता है कि राजेश शर्मा के खिलाफ यदि माहौल बनाए रखा गया तो अगले प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता को जरूर इस बात के लिए 'तैयार' किया जा सकेगा कि अगले वर्ष के अपने प्रेसीडेंट-काल में वह राजेश शर्मा को कोई तवज्जो न दें - और बिना तवज्जो के राजेश शर्मा की हालत जल बिन मछली वाली ही हो जाएगी ।
प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की खुली तरफदारी करने और सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के मौन समर्थन के बावजूद कल की मीटिंग में लोगों ने राजेश शर्मा को जिस तरह से बोलने तक नहीं दिया, और बोलने की उनकी हर कोशिश को उनके खिलाफ नारेबाजी तथा भद्दे कमेंट करके विफल कर दिया - उसे देख/जान कर लगता है कि राजेश शर्मा के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी की जड़ें काफी फैल गईं हैं और राजेश शर्मा को जलालत भरी मुसीबत से जल्दी ही छुटकारा मिलने की उम्मीद नहीं है ।

Monday, July 10, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में रमेश बजाज की उम्मीदवारी के जरिए टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा की जोड़ी ने राजा साबू खेमे को घेरने की तैयारी की

पानीपत । डिस्ट्रिक्ट के हाल ही में हुए कार्यक्रमों में रमेश बजाज को जिस तरह आगे-आगे रखा गया है, उससे लग रहा है कि जितेंद्र ढींगरा और टीके रूबी की जोड़ी ने मौजूदा रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में रमेश बजाज को कामयाब बनाने के लिए अभी से कमर कस ली है । उल्लेखनीय है कि भिन्न परिस्थिति में पिछले दिनों वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद के लिए हो रहे चुनाव में भी रमेश बजाज उम्मीदवार थे, और दूसरे उम्मीदवारों के मुकाबले उनकी स्थिति को जीत के काफी नजदीक माना/देखा जा रहा था । रमेश बजाज के नजदीकियों का तो बल्कि कहना है कि उनकी इस स्थिति से ही घबरा कर राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने डीसी बंसल से कोर्ट केस करवाने तथा प्रवीन चंद्र गोयल से वापस वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद पर लौटने का आवेदन करवाने का काम किया । इससे वर्ष 2018-19 के गवर्नर के लिए हो रहा चुनाव रद्द हो गया । रमेश बजाज की संभावित जीत को टाल/टलवा कर राजा साबू और उनके गिरोह के गवर्नर्स जश्न अभी मना ही रहे थे, कि रोटरी इंटरनेशनल ने टीके रूबी को अगले रोटरी वर्ष का गवर्नर नियुक्त करने का बम उनके सिर पर फोड़ दिया । बदली परिस्थिति में इस वर्ष अब वर्ष 2020-21 के गवर्नर का चुनाव होगा । इस वर्ष के अभी तक हुए डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में रमेश बजाज को जिस तरह से आगे आगे रखा गया है, उससे संकेत मिल रहा है कि टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा ने इस वर्ष रमेश बजाज को उम्मीदवार बनाने और उन्हें कामयाबी दिलवाने की तैयारी कर ली है ।
राजा साबू और उनके गिरोह के गवर्नर्स अभी टीके रूबी के गवर्नर बनने पर लगी चोट को सहलाने में ही लगे हुए हैं, और उनके लिए अभी यही समझना मुश्किल हो रहा है कि टीके रूबी के गवर्नर-काल में वह करें - तो आखिर क्या करें ? टीके रूबी के गवर्नर-काल के शुरू के कार्यक्रमों में तो वह शामिल ही नहीं हुए, फिर उन्होंने शामिल होना शुरू किया तो 'चोरों की तरह' शामिल हुए - आए और झलक दिखा कर चले गए । वह यह भी समझ रहे हैं कि वह यदि डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हुए तो लोगों के बीच उनके प्रति और ज्यादा नकारात्मकता बनेगी तथा लोगों के साथ उनकी दूरी और बढ़ेगी । यह स्थिति डिस्ट्रिक्ट में और डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में 'वापसी' करने की उनकी कोशिशों को नुकसान पहुँचाने का ही काम करेगी - ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपने लिए सम्मान और समर्थन पाने/बढ़ाने के लिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में शामिल होना ही पड़ेगा । जाहिर है कि उनके लिए कुछ भी करना आसान नहीं है ।
टीके रूबी के गवर्नर बनने से विरोधी खेमे के लोगों का कॉन्फीडेंस भी बढ़ा है, और कॉन्फीडेंस बढ़ता है तो मैच्योरिटी भी 'दिखने' लगती है । जब तक टीके रूबी गवर्नर घोषित नहीं हुए थे, और विरोधी खेमे की तरफ से अकेले जितेंद्र ढींगरा 'सत्ता' के हिस्सा थे - तब तक विरोधी खेमा कमजोर नजर आ रहा था, और जितेंद्र ढींगरा भी डरे डरे से और सावधानी से 'चलते' हुए दिख रहे थे; लेकिन टीके रूबी के गवर्नर बनने के बाद सत्ता समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं, और विरोधी खेमे की सत्ता पर पूरी पकड़ न सिर्फ बन गयी है - बल्कि वह ज्यादा कॉन्फीडेंस के साथ और मैच्योरिटी के साथ व्यवहार करने लगा है । रमेश बजाज की उम्मीदवारी को प्रमोट करने में जो तत्परता दिखाई गयी है, उसमें उनका कॉन्फीडेंस देखा जा सकता है; तथा टीके रूबी के गवर्नर-काल में जिस तरह से सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास किया जा रहा है, उसमें उनकी मैच्योरिटी की झलक है । उल्लेखनीय है कि टीके रूबी के गवर्नर-काल में उन लोगों को तो तवज्जो दी ही जा रही है, जो पिछले दो वर्षों के संघर्ष में उनके साथ खड़े रहे थे - साथ ही साथ उन लोगों को भी उचित जगह और सम्मान दिया जा रहा है, जो थे तो तत्कालीन सत्ता के साथ, लेकिन जो रोटरी और डिस्ट्रिक्ट के लिए सचमुच काम करना चाहते हैं । इससे टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा के नेतृत्व वाले खेमे का जनाधार और बढ़ता नजर आ रहा है । ऐसे में, रमेश बजाज की उम्मीदवारी को प्रमोट करने की उनकी कोशिश चुनावी समीकरणों को एकतरफा करती/बनाती दिख रही है ।
इस स्थिति ने कपिल गुप्ता और पूनम सिंह का मनोबल बुरी तरह तोड़ा हुआ है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018-19 के लिए हो रहे चुनाव में इन दोनों की उम्मीदवारी को भी कुछ कुछ गंभीरता से लिया जा रहा था । कपिल गुप्ता ने कुछ समय के लिए उम्मीदवार के रूप में अपनी अच्छी सक्रियता दिखाई थी, और पूनम सिंह को सक्रियता के साथ साथ अपने पति पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मनप्रीत सिंह के कारण भी थोड़ा गंभीरता से लिया/देखा जा रहा था । लेकिन यह तब की बात थी, जब टीके रूबी गवर्नर घोषित नहीं हुए थे और जितेंद्र ढींगरा भी रमेश बजाज की उम्मीदवारी का खुल कर समर्थन करने से बचते नजर आ रहे थे । टीके रूबी द्वारा गवर्नर का पद संभाल लेने के बाद जो स्थितियाँ बनी हैं, उसमें कपिल गुप्ता और पूनम सिंह के लिए मौका काफी घट गया है; और शायद इसीलिए उनकी तरफ से अपनी अपनी उम्मीदवारी को लेकर कोई हलचल नहीं है । राजा साबू खेमे की तरफ से अभी तक किसी और उम्मीदवार का नाम भी नहीं सुना गया है । इस वर्ष होने वाला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव राजा साबू खेमे के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होगा । यह बात वह भी जानते/समझते हैं कि इस वर्ष उनका कोई उम्मीदवार यदि रमेश बजाज से मुकाबला करता हुआ नहीं दिखा - जीत/हार की बात अलग है - तो डिस्ट्रिक्ट में उनके लिए हालात फिर बहुत ही बुरे होंगे । लगता है कि उनके लिए हालात को सचमुच बुरा बनाने के लिए ही टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा के नेतृत्व वाले खेमे ने रमेश बजाज को आगे करके इस वर्ष के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है ।

Saturday, July 8, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने अपने भाई कमलेश विकमसे से प्रोफेशनली आगे निकलने की 'तैयारी' में सीए डे के फंक्शन को तमाशा बनाया क्या ?

नई दिल्ली । 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी के मामलों में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की मिलीभगत के किस्से इंस्टीट्यूट के मुख्यालय के गलियारों में भी जिस तरह से सुने/सुनाए जा रहे हैं, उससे लग रहा है कि नीलेश विकमसे की मुसीबतें अभी जल्दी से खत्म होने वाली नहीं हैं । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में नोमीनेटेटड सदस्यों ने नीलेश विकमसे को 'बचाने' के लिए प्रयास तो शुरू कर दिए हैं, लेकिन नीलेश विकमसे को लेकर जिस तरह की 'नई' 'नई' बातों का खुलासा हो रहा है - उससे लगता नहीं है कि नीलेश विकमसे की परेशानियाँ जल्दी समाप्त होंगी । कई लोगों को लग रहा है कि उनकी परेशानियों को बढ़ाने का काम 'सीए डे' फंक्शन के मुख्य खलनायक राजेश शर्मा और इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर की तरफ से भी हो रहा है । ऐसा मानने और कहने वाले लोगों का तर्क है कि दरअसल इन दोनों को डर है कि नीलेश विकमसे अपने आप को बचाने के लिए कहीं इन्हें ही बलि का बकरा न बना दें, इसलिए इन्होंने नीलेश विकमसे को संकेत देना शुरू कर दिया है कि उन्होंने यदि इन्हें फँसा कर अपने आप को बचाने की कोशिश की तो यह उन्हें भी नहीं छोड़ेंगे । नीलेश विकमसे के शुभचिंतकों को भी लग रहा है कि 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी के मामलों में फँसने से बचने के लिए राजेश शर्मा और वी सागर की तरफ से उन्हें 'ब्लैकमेल' करने के प्रयास हो रहे हैं ।
मजे की बात यह है कि राजेश शर्मा तो अभी हालाँकि 'फरार' ही चल रहे हैं, जिस कारण सोशल मीडिया में उनकी तरफ से सूनापन ही फैला/बना हुआ है - लेकिन उनके नजदीकियों ने चर्चाओं का बाजार पूरी तरह गर्म बनाया हुआ है । उनकी तरफ से ही पूछने के अंदाज में बताया जा रहा है कि 'सीए डे' फंक्शन में राजेश शर्मा के परिवार की मौजूदगी की तो बातें की जा रही हैं, लेकिन नीलेश विकमसे के परिवार की उपस्थिति की बात कोई क्यों नहीं कर रहा है ? राजेश शर्मा के नजदीकियों की तरफ से ही बताया और पूछा जा रहा है कि नीलेश विकमसे का पूरा परिवार - उनके भाई और उनके अपने एकल परिवार के सदस्य फंक्शन में शामिल होने के लिए मुंबई से दिल्ली पहुँचे थे; उनके आने-जाने के किराए और दिल्ली में आने-जाने तथा ठहरने के खर्च किस मद से हुए हैं - यह सवाल क्यों नहीं चर्चा में हैं ? राजेश शर्मा के नजदीकियों की तरफ से सबसे गंभीर बात यह की जा रही है कि 'सीए डे' फंक्शन का जो स्वरूप बना, उसे पूरी तरह से नीलेश विकमसे ने तैयार किया था और उनका असली मकसद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को खुश करना था - जिनसे उन्हें प्रेसीडेंट पद से हटने के बाद महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों के रूप में फायदा उठाना था । इस बात से चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच नीलेश विकमसे की अपने भाई कमलेश विकमसे के साथ होने/चलने वाली प्रोफेशनल होड़ की बात एक बार फिर मुखर हो उठी है ।
उल्लेखनीय है कि वेस्टर्न रीजन के लोग दिल्ली के लोगों को बताते रहे हैं कि काउंसिल में आने का नीलेश विकमसे का एक प्रमुख उद्देश्य यह है कि उन्हें अपने भाई कमलेश विकमसे से प्रोफेशनली आगे 'निकलना' है । अन्य कई लोगों की तरह नीलेश विकमसे भी मानते हैं कि कमलेश विकमसे का सितारा इंस्टीट्यूट की काउंसिल का सदस्य बनने और फिर प्रेसीडेंट बनने के बाद ही बुलंद हुआ है । नीलेश विकमसे को उम्मीद रही कि काउंसिल में आने/रहने के चलते जिस तरह कमलेश विकमसे के लिए 'तरक्की' के रास्ते खुले, वैसे ही उनके लिए भी रास्ते बनेंगे और खुलेंगे । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रूप में नीलेश विकमसे ने अपनी तरक्की के रास्ते को खोलने/खुलवाने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ही 'सीए डे' फंक्शन के स्वरूप को ही पूरी तरह बदल दिया और उसे तमाशे का रूप दे दिया । राजेश शर्मा के नजदीकियों की तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर जो कुछ भी हुआ, उसके लिए मुख्य तौर पर नीलेश विकमसे ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं, राजेश शर्मा ने तो उनकी सिर्फ मदद की है । दिलचस्प नजारा यह देखने को मिल रहा है कि राजेश शर्मा के नजदीकी सिर्फ राजेश शर्मा की ही वकालत नहीं कर रहे हैं, बल्कि इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर को भी यह कहते हुए 'बचाने' के लिए माहौल बना रहे हैं कि सेक्रेटरी ने तो वही किया जो प्रेसीडेंट ने उन्हें करने को कहा - इसमें सेक्रेटरी की भला क्या गलती है ?
प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को बदनाम करने की राजेश शर्मा के नजदीकियों की कार्रवाई के पीछे राजेश शर्मा का ही दिमाग देखा/पहचाना जा रहा है; और माना जा रहा है कि इस तरह से राजेश शर्मा ने नीलेश विकमसे को 'ब्लैकमेल' करने की तैयारी की है, ताकि नीलेश विकमसे उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न कर सकें । राजेश शर्मा ने इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर की मदद करने/करवाने के जरिए उन्हें भी अपने साथ मिला लेने की चाल चली है । उल्लेखनीय है कि 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी के लिए राजेश शर्मा को ही मुख्य रूप से जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है, और जमकर उनकी लानत/मनालत हो रही है - जिसके कारण उन्हें लोगों की नजरों से छिपछिपा कर रहना पड़ रहा है । उन्हें जानने वालों का कहना लेकिन यह है कि राजेश शर्मा की चमड़ी बड़ी मोटी है, अभी हो रही लानत/मनालत से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा होगा; वह तो बस मौके का इंतजार कर रहे होंगे कि लोगों का गुस्सा शांत हो और वह फिर अपनी कारस्तानियों को खुल कर शुरू करें । अभी पर्दे के पीछे रहते हुए उन्होंने अपने नजदीकियों को काम पर लगाया हुआ है, जो प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की पोल-पट्टी खोलने में लगे हुए हैं । राजेश शर्मा का लगता है कि नीलेश विकमसे को दबाव में लेकर ही वह अपने आप को बचा सकेंगे ।

Friday, July 7, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नेताओं की चालों और उनके बीच बनती नजर आ रही 'एकता' ने अनूप मित्तल के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले को मुसीबतपूर्ण तथा अनिश्चितताभरा बना दिया है

नई दिल्ली । मुनीश गौड़ और पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी की चर्चा के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का जो चुनाव बहुकोणीय होता हुआ दिख रहा है, उसमें अनूप मित्तल को घेरने की रणनीति देखी/पहचानी जाने के कारण डिस्ट्रिक्ट का राजनीतिक परिदृश्य खासा दिलचस्प हो उठा है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों को जानने/समझने की कोशिश करने वाले लोगों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नेता लोग किसी एक उम्मीदवार का समर्थन करने को लेकर भले ही एकमत न हों, लेकिन अनूप मित्तल का विरोध करने को लेकर उनके बीच गजब की 'एकता' है । इस एकता का कोई मूर्त रूप नहीं है, यानि अनूप मित्तल के विरोध को लेकर नेताओं के बीच 'बनी' एकता दिख कहीं नहीं रही है - लेकिन अनूप मित्तल के विरोध में अंडरकरंट ऐसा है जो सभी नेताओं को आपस में जोड़े रखने का काम कर रहा है । अनूप मित्तल ने अपनी तरफ से हालाँकि नेताओं का समर्थन पाने का हर संभव प्रयास किया है, लेकिन उनकी दाल 'कहीं' भी अभी तक तो गलती हुई नहीं दिखी है । पिछले रोटरी वर्ष के चुनाव में सुरेश भसीन से मामूली अंतर से पिछड़ जाने, तथा नेताओं द्वारा समर्थित उम्मीदवारों से बहुत आगे रहने के कारण अनूप मित्तल और उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि उनकी बढ़िया परफॉर्मेंस को देखते हुए कुछेक नेता लोग तो इस वर्ष उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में आ ही जायेंगे - लेकिन पिछले वर्ष की बढ़िया परफॉर्मेंस भी अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को नेताओं का समर्थन दिलवाने में विफल हो रही है ।
मजे की बात यह है कि अनूप मित्तल की इस विफलता के लिए खुद अनूप मित्तल को ही दोषी ठहराया जा रहा है । नेताओं की शिकायत है कि अनूप मित्तल के एटीट्यूड में दूसरों पर 'हावी' होने वाला जो भाव है, उसके चलते उन्हें 'अपनाना' मुश्किल हो जाता है और कई बार चाहते हुए भी उनके साथ रिश्ता बनाना दिक्कतभरा काम लगता है । हालाँकि अनूप मित्तल में हर वह खूबी है, जो कोई भी नेता 'अपने' उम्मीदवार में देखना/पाना चाहता है - लेकिन अनूप मित्तल चूँकि एक उम्मीदवार वाला 'भाव' नहीं दिखा/जता पाते हैं, इसलिए उनके लिए नेता(ओं) का समर्थन पाना मुश्किल बना हुआ है । यह एक मनोवैज्ञानिक सच्चाई है कि कोई भी नेता समर्थन चाहने वाले उम्मीदवार को अपने से एक सीढ़ी नीचे 'देखना' चाहता है - अनूप मित्तल के साथ समस्या लेकिन यह है कि वह खुद को नेता से दो सीढ़ी ऊपर 'दिखाते' हैं; और इसलिए नेता उनके साथ कनेक्ट ही नहीं हो पाता है, और यही कारण है कि हर नेता अनूप मित्तल की उम्मीदवारी का दुश्मन बना हुआ है । पिछले रोटरी वर्ष में अनूप मित्तल को किसी नेता का समर्थन नहीं मिला था, तो इसका कारण यही समझा गया था कि कोई चूँकि उनके जीत सकने का भरोसा नहीं बना सका था, इसलिए उनका समर्थन करने को तैयार नहीं हुआ था; लेकिन इस वर्ष तो उन्हें जीत के सबसे करीब समझा जा रहा है, उसके बाद भी कोई नेता उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने को तैयार होता नहीं दिख रहा है - तो यह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अनूप मित्तल के लिए बड़ी मुसीबत और चुनौती की बात है ।
अनूप मित्तल भी इसे समझ रहे हैं, और इसलिए ही जीत के सबसे करीब होते हुए भी वह नेताओं का समर्थन प्राप्त करने के प्रयासों में लगे हैं । मुनीश गौड़ और पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी की चर्चा ने लेकिन उनके प्रयासों को धक्का पहुँचाया है । इनकी उम्मीदवारी को अभी हालाँकि कोई भी ज्यादा महत्त्व नहीं दे रहा है, और किसी को भी यह भरोसा नहीं है कि इन दोनों की उम्मीदवारी डिस्ट्रिक्ट के चुनावी समीकरण को किसी भी तरह से बदल सकेगी - लेकिन इन दोनों की उम्मीदवारी अनूप मित्तल को नेताओं का समर्थन मिल सकने की संभावना को घटाने का काम जरूर करती हुई दिख रही है । जो स्थिति बन रही है, उसमें अनूप मित्तल के लिए मुसीबत दोहरी हो रही है - अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को इस वर्ष यदि सचमुच किन्हीं भी नेताओं का समर्थन नहीं मिला, तो इसका क्लब्स के प्रेसीडेंट्स पर प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा ही; साथ ही नेता लोगों ने अपने अपने उम्मीदवार उतार कर चुनावी मुकाबले को बहुकोणीय बनाया तो वरीयता वोटों की गिनती के चलते अनूप मित्तल के लिए मुकाबला अनिश्चितताभरा हो जाएगा । अनूप मित्तल की उम्मीदवारी के खिलाफ नेताओं की चलती चालों और उनके बीच बनती नजर आ रही 'एकता' ने अनूप मित्तल के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले को मुसीबतभरा तथा रोमांचक बना दिया है ।

Wednesday, July 5, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी के असली गुनहगारों के खिलाफ सचमुच कोई कार्रवाई करवा सकेंगे या मामला यूँ ही रफा दफा हो जाएगा ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता की पहल ने 'सीए डे' के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी पर विरोध के मुद्दे को प्रभावी और निर्णायक रूप देने का जो काम किया, उसके चलते काउंसिल के बाहर के नेताओं से नेतागिरी करने/दिखाने का मौका छिनता दिख रहा है । विजय गुप्ता की पहल को सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व कर रहे संजय अग्रवाल, अतुल गुप्ता, संजीव चौधरी और संजय वासुदेव का जो समर्थन मिला - उससे भी मुद्दे की लड़ाई सेंट्रल काउंसिल में ही केंद्रित होती हुई दिख रही है । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने भी चूँकि इन पाँचों सेंट्रल काउंसिल सदस्यों पर भरोसा करना/दिखाना शुरू किया है, इसलिए भी विरोध की बागडोर काउंसिल के बाहर के नेताओं के हाथ से छूटती/फिसलती नजर आ रही है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की पूर्व चेयरमैन पूजा बंसल और उनके पति मोहित बंसल की सक्रियता के कारण रीजनल काउंसिल में भी ग्यारह सदस्य खेमेबाजी की सीमाओं को तोड़ते हुए 'सीए डे' के नाम पर हुई घटनाओं के खिलाफ इकट्ठा हो गए हैं । रीजनल काउंसिल के मौजूदा चेयरमैन राकेश मक्कड़ और अगले वर्ष चेयरमैन बनने की तैयारी कर रहे पंकज पेरिवाल जरूर अभी भी राजेश शर्मा को बचाने के प्रयासों में लगे हुए हैं, लेकिन उनकी ज्यादा चल नहीं पा रही है ।
उल्लेखनीय है कि 'सीए डे' के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी के खिलाफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के गुस्से को संगठित रूप देने के लिए तीन जुलाई को इंस्टीट्यूट मुख्यालय में प्रदर्शन करने/बुलाने की पहल वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट मोहित बंसल ने की - उन्होंने घटना वाले दिन के विवरण तथा तस्वीरों के साथ एक बड़ा मेल-संदेश चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भेजने का काम तो किया ही, साथ ही प्रदर्शन के लिए पुलिस अनुमति लेने का औपचारिक काम भी किया । मजेदार नजारा यह रहा कि मोहित बंसल ने जब सारी तैयारी कर ली और प्रदर्शन के लिए माहौल बना दिया, तब प्रदर्शन में भागीदारी और नेतागिरी 'दिखाने' के लिए ऐसे कुछ लोग कूद पड़े - जो रीजनल काउंसिल के पिछले चुनाव में हार गए थे और अगले चुनाव में उम्मीदवार बनने की तैयारी में हैं । उन्हें लगा कि अगले वर्ष होने वाले अगले चुनाव में अपना 'चार्टर्ड एकाउंटेंट्स समर्थक' चेहरा दिखाने के लिए कुछ काम कर लेने का यह अच्छा मौका है । इनमें सबसे दिलचस्प स्थिति रतन सिंह यादव की देखने को मिली - वह 'सीए डे' की तैयारी में भी जबर्दस्ती घुस कर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'सूटेडबूटेड' के ड्रेस कोड में पहुँचने का आह्वान कर रहे थे, और विरोध प्रदर्शन में भी आगे आगे 'दिखने' की कोशिशों में लगे थे । उनके दोहरे रवैये पर सोशल मीडिया में उन पर लताड़ पड़ी, तो वह अपने रवैये पर माफी माँगते हुए भी नजर आए और उन्होंने अपनी टाइमलाइन से 'सूटेडबूटेड' वाली पोस्ट भी हटा ली । रतन सिंह यादव अपनी टाइमलाइन पर विभिन्न नेताओं को अक्सर निशाना बनाते रहते हैं, लेकिन जो नरेंद्र मोदी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को सीधी चमाट मार कर बेइज्जत कर गए, उनके बारे में रतन सिंह यादव चुप्पी साध गए हैं - और उसके बाद भी वह अपने आप को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का शुभचिंतक बताने/दिखाने का प्रयास कर रहे हैं ।
रतन सिंह यादव जैसे लोगों के कारण ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने काउंसिल के पदाधिकारियों पर ही भरोसा करना ज्यादा उचित समझा । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए जिम्मेदारी का चोला पहना और नाराज व गुस्से से भरे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से संवाद स्थापित किया - विजय गुप्ता मामले के कुछेक प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित करते हुए इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को ईमेल लिखकर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की भूमिका को जिम्मेदार बनाने की नींव रख चुके थे, अतुल गुप्ता ने नारेबाजी कर रहे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को आगे की रणनीति बनाने पर बात करने के लिए तैयार करने के लिए मशक्कत की और संजय अग्रवाल ने अपनी वरिष्ठता का वास्ता देकर माहौल को इमोशनल टच दिया । संजीव चौधरी और संजय वासुदेव की उपस्थिति और सक्रिय समर्थन ने उन्हें बल दिया । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने स्वीकार किया कि 'सीए डे' के आयोजन को लेकर जो अव्यवस्था हुई, उसका वह पहले से अनुमान लगा सकने में असफल रहे; और उनकी यह असफलता इसलिए रही क्योंकि 'सीए डे' के आयोजन से जुड़ी तैयारी में उन्हें ज्यादा शामिल ही नहीं किया गया । उन्होंने स्वीकार किया कि अब जो बातें और जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उनसे पता चल रहा है कि 'सीए डे' की तैयारी में ही भारी घपला था और इसीलिए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों तक से बातें छिपाई गयीं । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने आंदोलनरत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भरोसा दिलाया कि तैयारी के नाम पर जो भी गड़बड़ियाँ हुईं हैं, उनके बारे में वह चुप नहीं बैठेंगे और इसीलिए वह सेंट्रल काउंसिल की इमरजेंसी मीटिंग तत्काल बुलाने की माँग करने जा रहे हैं ।
'सीए डे' फंक्शन की तैयारी के नाम पर दरअसल जो कुछ होने के तथ्य अब सामने आ रहे हैं, उन्होंने दूसरे लोगों के साथ-साथ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को भी चौंकाया है । किसी की भी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि फंक्शन स्थल पर जब उपलब्ध सीटों की संख्या ही बीस हजार के करीब थी, तो 42 हजार पास बाँटने और इक्यावन हजार रजिस्ट्रेशन करने की क्या जरूरत थी - और ऐसा करने का फैसला आखिर था किसका ? सेंट्रल काउंसिल सदस्य इंस्टीट्यूट मुख्यालय में हुई उस मीटिंग के होने को लेकर खासे आंदोलित दिखे जिसमें इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर, राजेश शर्मा और गौरव अग्रवाल के साथ मिल कर फंक्शन में किराए के लोगों को लाने की बात कर रहे हैं और किराए के लोगों की जिम्मेदारियाँ तय कर रहे हैं । सवाल है कि वी सागर आखिर क्यों और किसके कहने पर 'सीए डे' फंक्शन में स्टूडेंट्स के नाम पर किराए के लोगों को लाने की व्यवस्था में जुटे थे; और वी सागर इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी हैं या राजेश शर्मा और गौरव अग्रवाल के सेक्रेटरी हैं ? विजय गुप्ता ने लोगों के बीच आश्चर्य प्रकट किया कि 'उस' मीटिंग के समय वह इंस्टीट्यूट मुख्यालय में मौजूद थे, लेकिन उन्हें भी उस मीटिंग की भनक तक नहीं लगी । सेंट्रल काउंसिल सदस्य इस बात पर भी हैरान हैं कि उनके साथ हुई बातचीत में खुद प्रेसीडेंट ने प्रोटोकॉल की व्यवस्था तय की थी और बताई थी, जिसके अनुसार मंच पर नरेंद्र मोदी का स्वागत करने के दौरान सिर्फ प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट को रहना था - तब फिर उस दौरान राजेश शर्मा मंच पर कैसे पहुँच गया ? इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व कर रहे इन पाँचों सदस्यों ने आंदोलनरत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भरोसा दिया/दिलाया कि इन तथा इन जैसे अन्य कई सवालों के जबाव वह प्रेसीडेंट से लेने का काम करेंगे ।
आंदोलनरत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने इन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों द्वारा दिए/दिलाए गए भरोसे पर भरोसा तो किया है, लेकिन वह इनकी गतिविधियों और इनके रवैए पर नजर रखने की भी तैयारी में हैं । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का मानना और कहना है कि 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर जो तमाशा हुआ है, उसके कारण इन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को भी काफी कुछ सहना पड़ा है; राजेश शर्मा की कारस्तानियों तथा प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे का उनके सामने किए गए समर्पण ने इंस्टीट्यूट का नाम खराब करने के साथ-साथ इन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के लिए भी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच खराब स्थितियाँ बनाई हैं - इसलिए इस मामले को यह आसानी से तो नहीं खत्म होने देंगे, लेकिन फिर भी यह देखना जरूरी होगा कि यह आखिर करते क्या हैं ? 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर हुई बदइंतजामी और बेईमानी के असली गुनहगारों के खिलाफ सचमुच कोई कार्रवाई हो सकेगी या मामला यूँ ही रफा दफा हो जाएगा - यह अब सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के रवैए पर ही निर्भर करेगा ।