नई
दिल्ली । ललित खन्ना के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के नए
पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह को बिगाड़ने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
सतीश सिंघल ने जोर तो बहुत लगाया, लेकिन उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद जिस
तरह से हर क्षेत्र से रोटेरियंस और क्लब-पदाधिकारी समारोह में पहुँचे -
उससे दिखा कि सतीश सिंघल की कोशिशें सफल नहीं हो सकीं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी दीपक गुप्ता तक ने सतीश सिंघल की बात
नहीं मानी, और वह भी ललित खन्ना के निमंत्रण पर उक्त समारोह में पहुँचे ।
रास्ते बंद होने के कारण कई लोगों के लिए हालाँकि समारोह स्थल तक पहुँचना
असंभव हुआ और उन्हें वापस लौटने के लिए ही मजबूर होना पड़ा । लेकिन
काँवड़-यात्रा के कारण रास्ते बंद होने और वैकल्पिक रास्तों पर जाम जैसी
स्थिति होने के बावजूद ललित खन्ना के निमंत्रण पर उक्त समारोह में बड़ी
संख्या में रोटेरियंस और क्लब-पदाधिकारियों के जुटे हुए दृश्य ने
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत ललित खन्ना की उम्मीदवारी
के समर्थकों व शुभचिंतकों को उत्साहित करने का ही काम किया है । उक्त
अधिष्ठापन समारोह वास्तव में ललित खन्ना की उम्मीदवारी को प्रमोट का ही
प्रयास था - और इसीलिए सतीश सिंघल ने ऐसी तैयारी की थी कि उक्त समारोह में
ज्यादा लोग न पहुँचे; किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के बावजूद उनकी चाल
कामयाब नहीं हो सकी ।
सतीश सिंघल ने पहली बड़ी चाल तो यह चली कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्होंने रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के पदाधिकारियों को डेट ही नहीं दी और डेट को लेकर वह उन्हें चक्कर ही कटवाते रहे । 19 जुलाई के लिए तो सतीश सिंघल के पास बड़ा ठोस बहाना भी था, यह डेट वह पहले ही रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम के लिए बुक कर चुके थे; लेकिन क्लब पदाधिकारियों द्वारा सुझाई गईं बाद की कई तारीखों को भी अलग अलग वजहों से सतीश सिंघल जब नकारते गए, तब क्लब पदाधिकारियों ने समझ लिया कि सतीश सिंघल उनके क्लब में न आने का मन बना चुके हैं - और वह यदि उनके चक्कर में फँसे तो अधिष्ठापन समारोह कर ही नहीं पायेंगे । सतीश सिंघल ने कुछेक लोगों से कहा भी कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केके गुप्ता ने रोटरी इंटरनेशनल में जिस तरह से उनकी शिकायत की है, उसके बाद उनके लिए केके गुप्ता के क्लब के साथ कोई व्यवहार रखना संभव ही नहीं है; और वह देखेंगे कि रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ में कुछ भी अच्छा कैसे होता है । सतीश सिंघल ने सोचा था कि रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के अधिष्ठापन समारोह में जब वह नहीं जायेंगे, तो डिस्ट्रिक्ट टीम के तथा क्लब्स के पदाधिकारी भी नहीं जायेंगे - और वह सभी तो उनके पीछे पीछे उस कार्यक्रम में पहुँचेंगे जहाँ उनकी उपस्थिति होगी । अपनी सोच को व्यावहारिक तौर पर और पुख्ता करने के लिए सतीश सिंघल ने कई लोगों को यह कहने के लिए फोन किए और करवाए कि उन्हें उस कार्यक्रम में आना है जिसमें वह मुख्य अतिथि होंगे ।
सतीश सिंघल को विश्वास रहा कि उनकी चालबाजी कामयाब रहेगी और इसी विश्वास के भरोसे रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम के पदाधिकारियों से उन्होंने इंतजाम बढ़ा लेने को कह दिया । उनकी बात मान भी ली गयी, और जो कार्यक्रम पहले छोटे हॉल में होना था - उसे बड़े हॉल में शिफ्ट कर दिया गया और खाने की प्लेट्स की संख्या भी कुछ बढ़ा दी गईं । लेकिन दोनों कार्यक्रम हो जाने के बाद जब तुलनात्मक तथ्य सामने आए तो सतीश सिंघल को यह देख/जान कर तगड़ा झटका लगा कि डिस्ट्रिक्ट टीम के पदाधिकारियों के साथ-साथ क्लब्स के पदधिकारियों ने भी उनकी चालबाजी को फेल कर दिया है । क्लब-पदाधिकारियों के रवैये से तो सतीश सिंघल हैरान ही रह गए । दरअसल क्लब-पदाधिकारियों, खासकर प्रेसीडेंट्स को वह अपनी जेब में ही 'देखते' हैं और मानते/समझते हैं कि प्रेसीडेंट्स उनके कहने से ही उठेंगे/बैठेंगे । इसी भरोसे उन्हें उम्मीद रही कि उन्होंने जब फतवा जारी करवा दिया था कि क्लब्स के प्रेसीडेंट्स उस कार्यक्रम में रहेंगे जिस कार्यक्रम में वह होंगे, तब फिर प्रेसीडेंट उस कार्यक्रम में क्यों पहुँचे - जहाँ उन्हें नहीं होना था, और वह भी बड़ी संख्या में । सतीश सिंघल को यह जान कर तो और भी निराशा हुई कि उनके द्वारा तमाम 'व्यवस्था' करने के बावजूद 40 से 45 प्रेसीडेंट्स ललित खन्ना के निमंत्रण पर उनके कार्यक्रम में पहुँचे । सतीश सिंघल ने महसूस किया कि प्रेसीडेंट्स को काबू में रखने के लिए उन्हें उनकी गर्दनों पर शिकंजा अभी और कसना पड़ेगा ।
सतीश सिंघल के लिए इससे भी बड़ी मुसीबत की बात यह हुई कि उनकी 'तैयारी' के पीछे रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार आलोक गुप्ता के बीच वर्षों से बिगड़े संबंधों को सुधारने की कवायद को देखा जा रहा था, लेकिन जो अंततः एक फूहड़ किस्म के प्रहसन के रूप में सामने आई । रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम के निर्माता सदस्य दरअसल पहले आलोक गुप्ता के क्लब में ही थे और उनके बड़े सहयोगी हुआ करते थे; लेकिन उनसे हुए भीषण झगड़े के बाद उन्होंने आलोक गुप्ता का साथ छोड़ कर प्लैटिनम बनाया और तभी से आलोक गुप्ता के साथ उनका बैर चल रहा है । सतीश सिंघल ने इस बैर को खत्म करने के लिए अपनी तरफ से तैयारी तो पक्की की थी, लेकिन उनकी तैयारी को दोनों तरफ से ही कोई सहयोग नहीं मिला । आलोक गुप्ता खुद बहुत देर से कार्यक्रम में पहुँचे; उनके पहुँचने का क्लब के पदाधिकारियों ने जल्दी से कोई नोटिस नहीं लिया - बहुत देर बाद जब नोटिस लिया भी तब इस उलाहने के साथ उनका स्वागत किया कि आलोक गुप्ता पहली बार हमारे क्लब में आए हैं, उम्मीद है कि वह इसलिए नहीं आएँ होंगे क्योंकि वह उम्मीदवार हैं । इस तरह की बातों ने सतीश सिंघल की सारी योजना और तैयारी पर पानी फेर दिया । सतीश सिंघल को आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक और मददगार के रूप देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन 19 जुलाई के कार्यक्रमों को लेकर उनकी तमाम तैयारी का जो हश्र देखने में आया है -उससे लग रहा है कि सतीश सिंघल का समर्थन और मदद कहीं आलोक गुप्ता के लिए मुसीबत न बन जाए ?
सतीश सिंघल ने पहली बड़ी चाल तो यह चली कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्होंने रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के पदाधिकारियों को डेट ही नहीं दी और डेट को लेकर वह उन्हें चक्कर ही कटवाते रहे । 19 जुलाई के लिए तो सतीश सिंघल के पास बड़ा ठोस बहाना भी था, यह डेट वह पहले ही रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम के लिए बुक कर चुके थे; लेकिन क्लब पदाधिकारियों द्वारा सुझाई गईं बाद की कई तारीखों को भी अलग अलग वजहों से सतीश सिंघल जब नकारते गए, तब क्लब पदाधिकारियों ने समझ लिया कि सतीश सिंघल उनके क्लब में न आने का मन बना चुके हैं - और वह यदि उनके चक्कर में फँसे तो अधिष्ठापन समारोह कर ही नहीं पायेंगे । सतीश सिंघल ने कुछेक लोगों से कहा भी कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केके गुप्ता ने रोटरी इंटरनेशनल में जिस तरह से उनकी शिकायत की है, उसके बाद उनके लिए केके गुप्ता के क्लब के साथ कोई व्यवहार रखना संभव ही नहीं है; और वह देखेंगे कि रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ में कुछ भी अच्छा कैसे होता है । सतीश सिंघल ने सोचा था कि रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के अधिष्ठापन समारोह में जब वह नहीं जायेंगे, तो डिस्ट्रिक्ट टीम के तथा क्लब्स के पदाधिकारी भी नहीं जायेंगे - और वह सभी तो उनके पीछे पीछे उस कार्यक्रम में पहुँचेंगे जहाँ उनकी उपस्थिति होगी । अपनी सोच को व्यावहारिक तौर पर और पुख्ता करने के लिए सतीश सिंघल ने कई लोगों को यह कहने के लिए फोन किए और करवाए कि उन्हें उस कार्यक्रम में आना है जिसमें वह मुख्य अतिथि होंगे ।
सतीश सिंघल को विश्वास रहा कि उनकी चालबाजी कामयाब रहेगी और इसी विश्वास के भरोसे रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम के पदाधिकारियों से उन्होंने इंतजाम बढ़ा लेने को कह दिया । उनकी बात मान भी ली गयी, और जो कार्यक्रम पहले छोटे हॉल में होना था - उसे बड़े हॉल में शिफ्ट कर दिया गया और खाने की प्लेट्स की संख्या भी कुछ बढ़ा दी गईं । लेकिन दोनों कार्यक्रम हो जाने के बाद जब तुलनात्मक तथ्य सामने आए तो सतीश सिंघल को यह देख/जान कर तगड़ा झटका लगा कि डिस्ट्रिक्ट टीम के पदाधिकारियों के साथ-साथ क्लब्स के पदधिकारियों ने भी उनकी चालबाजी को फेल कर दिया है । क्लब-पदाधिकारियों के रवैये से तो सतीश सिंघल हैरान ही रह गए । दरअसल क्लब-पदाधिकारियों, खासकर प्रेसीडेंट्स को वह अपनी जेब में ही 'देखते' हैं और मानते/समझते हैं कि प्रेसीडेंट्स उनके कहने से ही उठेंगे/बैठेंगे । इसी भरोसे उन्हें उम्मीद रही कि उन्होंने जब फतवा जारी करवा दिया था कि क्लब्स के प्रेसीडेंट्स उस कार्यक्रम में रहेंगे जिस कार्यक्रम में वह होंगे, तब फिर प्रेसीडेंट उस कार्यक्रम में क्यों पहुँचे - जहाँ उन्हें नहीं होना था, और वह भी बड़ी संख्या में । सतीश सिंघल को यह जान कर तो और भी निराशा हुई कि उनके द्वारा तमाम 'व्यवस्था' करने के बावजूद 40 से 45 प्रेसीडेंट्स ललित खन्ना के निमंत्रण पर उनके कार्यक्रम में पहुँचे । सतीश सिंघल ने महसूस किया कि प्रेसीडेंट्स को काबू में रखने के लिए उन्हें उनकी गर्दनों पर शिकंजा अभी और कसना पड़ेगा ।
सतीश सिंघल के लिए इससे भी बड़ी मुसीबत की बात यह हुई कि उनकी 'तैयारी' के पीछे रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार आलोक गुप्ता के बीच वर्षों से बिगड़े संबंधों को सुधारने की कवायद को देखा जा रहा था, लेकिन जो अंततः एक फूहड़ किस्म के प्रहसन के रूप में सामने आई । रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लैटिनम के निर्माता सदस्य दरअसल पहले आलोक गुप्ता के क्लब में ही थे और उनके बड़े सहयोगी हुआ करते थे; लेकिन उनसे हुए भीषण झगड़े के बाद उन्होंने आलोक गुप्ता का साथ छोड़ कर प्लैटिनम बनाया और तभी से आलोक गुप्ता के साथ उनका बैर चल रहा है । सतीश सिंघल ने इस बैर को खत्म करने के लिए अपनी तरफ से तैयारी तो पक्की की थी, लेकिन उनकी तैयारी को दोनों तरफ से ही कोई सहयोग नहीं मिला । आलोक गुप्ता खुद बहुत देर से कार्यक्रम में पहुँचे; उनके पहुँचने का क्लब के पदाधिकारियों ने जल्दी से कोई नोटिस नहीं लिया - बहुत देर बाद जब नोटिस लिया भी तब इस उलाहने के साथ उनका स्वागत किया कि आलोक गुप्ता पहली बार हमारे क्लब में आए हैं, उम्मीद है कि वह इसलिए नहीं आएँ होंगे क्योंकि वह उम्मीदवार हैं । इस तरह की बातों ने सतीश सिंघल की सारी योजना और तैयारी पर पानी फेर दिया । सतीश सिंघल को आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक और मददगार के रूप देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन 19 जुलाई के कार्यक्रमों को लेकर उनकी तमाम तैयारी का जो हश्र देखने में आया है -उससे लग रहा है कि सतीश सिंघल का समर्थन और मदद कहीं आलोक गुप्ता के लिए मुसीबत न बन जाए ?