पानीपत
। डिस्ट्रिक्ट के हाल ही में हुए कार्यक्रमों में रमेश बजाज को जिस तरह
आगे-आगे रखा गया है, उससे लग रहा है कि जितेंद्र ढींगरा और टीके रूबी की
जोड़ी ने मौजूदा रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के
चुनाव में रमेश बजाज को कामयाब बनाने के लिए अभी से कमर कस ली है । उल्लेखनीय
है कि भिन्न परिस्थिति में पिछले दिनों वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद के लिए
हो रहे चुनाव में भी रमेश बजाज उम्मीदवार थे, और दूसरे उम्मीदवारों के
मुकाबले उनकी स्थिति को जीत के काफी नजदीक माना/देखा जा रहा था । रमेश बजाज
के नजदीकियों का तो बल्कि कहना है कि उनकी इस स्थिति से ही घबरा कर राजा
साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने डीसी बंसल से कोर्ट केस करवाने
तथा प्रवीन चंद्र गोयल से वापस वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद पर लौटने का
आवेदन करवाने का काम किया । इससे वर्ष 2018-19 के गवर्नर के लिए हो रहा
चुनाव रद्द हो गया । रमेश बजाज की संभावित जीत को टाल/टलवा कर राजा
साबू और उनके गिरोह के गवर्नर्स जश्न अभी मना ही रहे थे, कि रोटरी
इंटरनेशनल ने टीके रूबी को अगले रोटरी वर्ष का गवर्नर नियुक्त करने का बम
उनके सिर पर फोड़ दिया । बदली परिस्थिति में इस वर्ष अब वर्ष 2020-21 के
गवर्नर का चुनाव होगा । इस वर्ष के अभी तक हुए डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों
में रमेश बजाज को जिस तरह से आगे आगे रखा गया है, उससे संकेत मिल रहा है कि
टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा ने इस वर्ष रमेश बजाज को उम्मीदवार बनाने
और उन्हें कामयाबी दिलवाने की तैयारी कर ली है ।
राजा साबू और उनके
गिरोह के गवर्नर्स अभी टीके रूबी के गवर्नर बनने पर लगी चोट को सहलाने में
ही लगे हुए हैं, और उनके लिए अभी यही समझना मुश्किल हो रहा है कि टीके
रूबी के गवर्नर-काल में वह करें - तो आखिर क्या करें ? टीके रूबी के
गवर्नर-काल के शुरू के कार्यक्रमों में तो वह शामिल ही नहीं हुए, फिर
उन्होंने शामिल होना शुरू किया तो 'चोरों की तरह' शामिल हुए - आए और झलक
दिखा कर चले गए । वह यह भी समझ रहे हैं कि वह यदि डिस्ट्रिक्ट के
कार्यक्रमों में शामिल नहीं हुए तो लोगों के बीच उनके प्रति और ज्यादा
नकारात्मकता बनेगी तथा लोगों के साथ उनकी दूरी और बढ़ेगी । यह स्थिति
डिस्ट्रिक्ट में और डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में 'वापसी' करने की उनकी
कोशिशों को नुकसान पहुँचाने का ही काम करेगी - ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के
लोगों के बीच अपने लिए सम्मान और समर्थन पाने/बढ़ाने के लिए उन्हें
डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में शामिल होना ही पड़ेगा । जाहिर है कि उनके लिए
कुछ भी करना आसान नहीं है ।
टीके रूबी के गवर्नर बनने से विरोधी खेमे के लोगों का कॉन्फीडेंस भी बढ़ा है, और कॉन्फीडेंस बढ़ता है तो मैच्योरिटी भी 'दिखने' लगती है । जब तक टीके रूबी गवर्नर घोषित नहीं हुए थे, और विरोधी खेमे की तरफ से अकेले जितेंद्र ढींगरा 'सत्ता' के हिस्सा थे - तब तक विरोधी खेमा कमजोर नजर आ रहा था, और जितेंद्र ढींगरा भी डरे डरे से और सावधानी से 'चलते' हुए दिख रहे थे; लेकिन टीके रूबी के गवर्नर बनने के बाद सत्ता समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं, और विरोधी खेमे की सत्ता पर पूरी पकड़ न सिर्फ बन गयी है - बल्कि वह ज्यादा कॉन्फीडेंस के साथ और मैच्योरिटी के साथ व्यवहार करने लगा है । रमेश बजाज की उम्मीदवारी को प्रमोट करने में जो तत्परता दिखाई गयी है, उसमें उनका कॉन्फीडेंस देखा जा सकता है; तथा टीके रूबी के गवर्नर-काल में जिस तरह से सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास किया जा रहा है, उसमें उनकी मैच्योरिटी की झलक है । उल्लेखनीय है कि टीके रूबी के गवर्नर-काल में उन लोगों को तो तवज्जो दी ही जा रही है, जो पिछले दो वर्षों के संघर्ष में उनके साथ खड़े रहे थे - साथ ही साथ उन लोगों को भी उचित जगह और सम्मान दिया जा रहा है, जो थे तो तत्कालीन सत्ता के साथ, लेकिन जो रोटरी और डिस्ट्रिक्ट के लिए सचमुच काम करना चाहते हैं । इससे टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा के नेतृत्व वाले खेमे का जनाधार और बढ़ता नजर आ रहा है । ऐसे में, रमेश बजाज की उम्मीदवारी को प्रमोट करने की उनकी कोशिश चुनावी समीकरणों को एकतरफा करती/बनाती दिख रही है ।
टीके रूबी के गवर्नर बनने से विरोधी खेमे के लोगों का कॉन्फीडेंस भी बढ़ा है, और कॉन्फीडेंस बढ़ता है तो मैच्योरिटी भी 'दिखने' लगती है । जब तक टीके रूबी गवर्नर घोषित नहीं हुए थे, और विरोधी खेमे की तरफ से अकेले जितेंद्र ढींगरा 'सत्ता' के हिस्सा थे - तब तक विरोधी खेमा कमजोर नजर आ रहा था, और जितेंद्र ढींगरा भी डरे डरे से और सावधानी से 'चलते' हुए दिख रहे थे; लेकिन टीके रूबी के गवर्नर बनने के बाद सत्ता समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं, और विरोधी खेमे की सत्ता पर पूरी पकड़ न सिर्फ बन गयी है - बल्कि वह ज्यादा कॉन्फीडेंस के साथ और मैच्योरिटी के साथ व्यवहार करने लगा है । रमेश बजाज की उम्मीदवारी को प्रमोट करने में जो तत्परता दिखाई गयी है, उसमें उनका कॉन्फीडेंस देखा जा सकता है; तथा टीके रूबी के गवर्नर-काल में जिस तरह से सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास किया जा रहा है, उसमें उनकी मैच्योरिटी की झलक है । उल्लेखनीय है कि टीके रूबी के गवर्नर-काल में उन लोगों को तो तवज्जो दी ही जा रही है, जो पिछले दो वर्षों के संघर्ष में उनके साथ खड़े रहे थे - साथ ही साथ उन लोगों को भी उचित जगह और सम्मान दिया जा रहा है, जो थे तो तत्कालीन सत्ता के साथ, लेकिन जो रोटरी और डिस्ट्रिक्ट के लिए सचमुच काम करना चाहते हैं । इससे टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा के नेतृत्व वाले खेमे का जनाधार और बढ़ता नजर आ रहा है । ऐसे में, रमेश बजाज की उम्मीदवारी को प्रमोट करने की उनकी कोशिश चुनावी समीकरणों को एकतरफा करती/बनाती दिख रही है ।
इस
स्थिति ने कपिल गुप्ता और पूनम सिंह का मनोबल बुरी तरह तोड़ा हुआ है ।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018-19 के लिए हो रहे चुनाव में इन दोनों की
उम्मीदवारी को भी कुछ कुछ गंभीरता से लिया जा रहा था । कपिल गुप्ता ने कुछ
समय के लिए उम्मीदवार के रूप में अपनी अच्छी सक्रियता दिखाई थी, और पूनम
सिंह को सक्रियता के साथ साथ अपने पति पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मनप्रीत
सिंह के कारण भी थोड़ा गंभीरता से लिया/देखा जा रहा था । लेकिन यह तब की
बात थी, जब टीके रूबी गवर्नर घोषित नहीं हुए थे और जितेंद्र ढींगरा भी रमेश
बजाज की उम्मीदवारी का खुल कर समर्थन करने से बचते नजर आ रहे थे । टीके रूबी द्वारा गवर्नर का
पद संभाल लेने के बाद जो स्थितियाँ बनी हैं, उसमें कपिल गुप्ता और पूनम
सिंह के लिए मौका काफी घट गया है; और शायद इसीलिए उनकी तरफ से अपनी अपनी
उम्मीदवारी को लेकर कोई हलचल नहीं है । राजा साबू खेमे की तरफ से अभी तक
किसी और उम्मीदवार का नाम भी नहीं सुना गया है । इस वर्ष होने वाला
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव राजा साबू खेमे के लिए बहुत ही
महत्त्वपूर्ण होगा । यह बात वह भी जानते/समझते हैं कि इस वर्ष उनका कोई
उम्मीदवार यदि रमेश बजाज से मुकाबला करता हुआ नहीं दिखा - जीत/हार की बात
अलग है - तो डिस्ट्रिक्ट में उनके लिए हालात फिर बहुत ही बुरे होंगे ।
लगता है कि उनके लिए हालात को सचमुच बुरा बनाने के लिए ही टीके रूबी और
जितेंद्र ढींगरा के नेतृत्व वाले खेमे ने रमेश बजाज को आगे करके इस वर्ष के
चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है ।