नई दिल्ली । 24 जुलाई की रात करीब साढ़े ग्यारह बजे तक चली सेंट्रल काउंसिल की
मीटिंग में जो हुआ, वह इंस्टीट्यूट के इतिहास में इससे पहले कभी नहीं हुआ -
और इस मीटिंग में इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की जैसी फजीहत
हुई, वैसी इससे पहले किसी प्रेसीडेंट की नहीं हुई है । अपनी करतूतों और
कारस्तानियों के खुलासे पर नीलेश विकमसे को पचासों बार सॉरी सॉरी कहना पड़ा
। कई काउंसिल सदस्यों को हैरानी है कि नीलेश विकमसे को काउंसिल सदस्यों से
जो और जैसी लताड़ सुनने को मिली, उसके बाद भी वह प्रेसीडेंट पद पर बने
क्यों हुए हैं ? काउंसिल सदस्यों का ही कहना है कि नीलेश विकमसे में यदि
जरा सा भी आत्म सम्मान होता, तो वह कल ही अपने पद से इस्तीफा दे देते ।
काउंसिल सदस्यों की जली-कटी सुनते हुए नीलेश विकमसे ने बीच-बीच में यह तो
कहा कि मुझसे यदि इतनी ही शिकायत है तो मेरे खिलाफ शिकायत करो और कार्रवाई
करो/करवाओ - लेकिन इस बात पर उन्होंने कतई गौर नहीं किया कि सीए डे
फंक्शन से जुड़े मामले में काउंसिल सदस्यों की शिकायतों का यदि सचमुच कोई
आधार नहीं है, तो उन्हें बार बार माफी क्यों माँगना पड़ रही है । विजय
गुप्ता ने उनके नेतृत्व को पूरी तरह असफल बताया । रंजीत अग्रवाल ने पिछले
प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी के कार्यकाल को अच्छा बताते हुए उन पर सीधा हमला
किया । तरुण घिया ने आरोप लगाया कि उनके कार्यकाल में कमेटियों को
स्वतंत्रता से काम नहीं करने दिया जा रहा है, जिसकी परिणति सीए डे फंक्शन
की बदइंतजामी और बेईमानी में हुई ।
इस तरह की बातों से नीलेश विकमसे तिलमिलाए तो बहुत, लेकिन उनका आत्मसम्मान एक बार भी नहीं जागा । नीलेश विकमसे के लिए मुसीबत की बात यह बनी कि मीटिंग्स में हमेशा सौम्यता से अपनी बात रखने/कहने वाले संजय वासुदेवा, प्रेसीडेंट के निकट रहने की कोशिश करते रहने वाले अतुल गुप्ता, अपनी वरिष्ठता की गरिमा के अनुरूप व्यवहार करने वाले संजय अग्रवाल, हमेशा चुप बने रहने वाले देवाशीष मित्रा ने भी नीलेश विकमसे की 'धुलाई' में खासी दिलचस्पी ली; काउंसिल में नीलेश विकमसे के बहुत खास और उनके 'ट्रवल शूटर' समझे जाने वाले अनिल भंडारी मीटिंग में आए ही नहीं । नीलेश विकमसे को जिन सदस्यों से तरफदारी की उम्मीद थी, उन्होंने बेसिरपैर की बातें करते हुए टाइम पास करने का काम तो किया लेकिन नीलेश विकमसे की तरफदारी करने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई । मीटिंग में सबसे मजेदार रवैया राजेश शर्मा का रहा । मुद्दे पर बात करने में तो उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं ली; दो-तीन बार लेकिन उन्होंने यह रोना जरूर रोया कि सीए डे फंक्शन की बदइंतजामी और बेईमानी के लिए उन्हें ही क्यों जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, उनका कुसूर क्या है जो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उन्हें चोर और दलाल कहा जा रहा है । उनकी इन बातों को 'चोर की दाढ़ी में तिनके' के उदाहरण के रूप में देखा गया । कहा/पूछा भी गया कि यहाँ उन्हें कौन जिम्मेदार ठहरा रहा है, या कौन उन्हें चोर और दलाल कह रहा है - सोशल मीडिया में उनके बारे में यदि यह सब कहा जा रहा है, तो उन्हें वहाँ जबाव देना चाहिए; वहाँ तो लेकिन वह छिपते/बचते फिर रहे हैं ।
सीए डे फंक्शन में हुई बदइंतजामी और बेईमानी को लेकर मीटिंग में मोर्चा खोला धीरज खंडेलवाल और विजय गुप्ता ने । फंक्शन की तैयारी और व्यवस्था से जुड़े उनके सवालों ने नीलेश विकमसे को तरह तरह से परेशान किया और नीलेश विकमसे सॉरी सॉरी कहते हुए अपने आप को बचाने की कोशिश करते रहे । धीरज खंडेलवाल की तो बदकिस्मती रही कि उन्हें वेस्टर्न रीजन के अपने साथियों से कोई सहयोग नहीं मिला, किंतु विजय गुप्ता को अपने अभियान में नॉर्दर्न रीजन के सदस्यों से अप्रत्याशित सहयोग और समर्थन मिला । उल्लेखनीय है कि काउंसिल की अंदरूनी राजनीति में संजय अग्रवाल और अतुल गुप्ता को विजय गुप्ता के विरोधियों के रूप में देखा/पहचाना जाता है, लेकिन सीए डे फंक्शन में हुई बदइंतजामी और बेईमानी को लेकर विजय गुप्ता ने मीटिंग में जो सवाल उठाए - संजय अग्रवाल और अतुल गुप्ता ने उनका जोरदार समर्थन किया और उन्हें दोहराया । विजय गुप्ता ने नीलेश विकमसे से सवाल किया कि सीए डे फंक्शन की तैयारी और व्यवस्था से जुड़े सवालों को लेकर अलग अलग तारीखों में उन्होंने चार मेल लिखे, लेकिन उन्हें एक भी मेल का जबाव नहीं मिला । संजय अग्रवाल और अतुल गुप्ता ने इसी बात को आधार बना कर नीलेश विकमसे को घेरा कि इससे ही लगता है कि वह सवालों से बचना चाहते हैं और सच्चाई को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं । बात को बढ़ता देख विजय गुप्ता की शिकायत पर नीलेश विकमसे ने माफी माँग ली ।
नीलेश विकमसे को वेस्टर्न रीजन के कुछेक तथा सेंट्रल रीजन के सभी सदस्यों से लेकिन 'अच्छा' समर्थन मिला, जिन्होंने टाइम पास करके नीलेश विकमसे पर होने वाले हमलों की धार को कुंद करने का काम किया । मुकेश कुशवाह ने भाषण तो बड़ा लंबा सा दिया, किंतु बातों की उन्होंने जो जलेबी सी बनाई - उसे जो सुन ले, तो उसे यह समझने में देर नहीं लगेगी कि उनके जैसे लोग जब सेंट्रल काउंसिल में होंगे - तो इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन का बेड़ा ही गर्क होगा । यह महज इत्तफाक नहीं है कि काउंसिल में मुकेश कुशवाह और राजेश शर्मा की जोड़ी रंगा-बिल्ला की जोड़ी के रूप में (कु)ख्यात है । मीटिंग में कई काउंसिल सदस्यों ने जिस तरह से बेसिरपैर की लंबी लंबी बातें कीं, उससे आभास मिला है कि नीलेश विकमसे ने अपने बचाव के लिए पहले से ही रणनीति बनाई हुई थी कि उनके समर्थक सदस्य मीटिंग को लंबा खींचेंगे, ताकि किसी नतीजे पर पहुँचा ही नहीं जा सके । धीरज खंडेलवाल और विजय गुप्ता ने मीटिंग के शुरू में ही जो आक्रामक रवैया दिखाया, उसके चलते किसी भी सदस्य के लिए नीलेश विकमसे की तरफदारी करना तो संभव नहीं हो सका, लेकिन मीटिंग को लंबा खींच कर मामले को दफ़्न करने/करवाने में नीलेश विकमसे जरूर सफल हो गए । सुबह दस बजे शुरू हुई मीटिंग में 30 के करीब सदस्य उपस्थित थे, लेकिन मीटिंग जब देर रात तक खिंचती गई - तब 14/15 सदस्य ही बचे रह गए थे । नीलेश विकमसे मीटिंग को किसी नतीजे पर पहुँचने ही नहीं दे रहे थे और तब नीलेश विकमसे के माफीनामे और इस आश्वासन के साथ मीटिंग समाप्त हुई कि जैसी पक्षपातपूर्ण बेवकूफियाँ और बेईमानियाँ उन्होंने इस बार की हैं, वैसी वह आगे नहीं करेंगे ।
नीलेश विकमसे ने किसी कार्रवाई से तो अपने आप को और राजेश शर्मा को बचा लिया है, लेकिन राजेश शर्मा पर चोर और दलाल होने के आरोप का जो शोर है, उससे और राजेश शर्मा को बचाने के चक्कर में अपनी हो रही फजीहत से वह नहीं बच सके हैं - और इस मामले में इंस्टीट्यूट के 68 वर्षों के इतिहास में कल हुई मीटिंग इंस्टीट्यूट के पिछले और आगे आने वाले प्रेसीडेंट्स के लिए एक उदाहरण भी होगी और एक सबक भी । काउंसिल में नीलेश विकमसे के समर्थक व शुभचिंतक सदस्यों तक का भी मानना और कहना है कि भारी फजीहत के बाद भी नीलेश विकमसे प्रेसीडेंट पद पर बने रहना भले ही चाहते हों, लेकिन काउंसिल में उनकी विश्वसनीयता और सम्मान जरा भी बचा नहीं रह गया है ।
इस तरह की बातों से नीलेश विकमसे तिलमिलाए तो बहुत, लेकिन उनका आत्मसम्मान एक बार भी नहीं जागा । नीलेश विकमसे के लिए मुसीबत की बात यह बनी कि मीटिंग्स में हमेशा सौम्यता से अपनी बात रखने/कहने वाले संजय वासुदेवा, प्रेसीडेंट के निकट रहने की कोशिश करते रहने वाले अतुल गुप्ता, अपनी वरिष्ठता की गरिमा के अनुरूप व्यवहार करने वाले संजय अग्रवाल, हमेशा चुप बने रहने वाले देवाशीष मित्रा ने भी नीलेश विकमसे की 'धुलाई' में खासी दिलचस्पी ली; काउंसिल में नीलेश विकमसे के बहुत खास और उनके 'ट्रवल शूटर' समझे जाने वाले अनिल भंडारी मीटिंग में आए ही नहीं । नीलेश विकमसे को जिन सदस्यों से तरफदारी की उम्मीद थी, उन्होंने बेसिरपैर की बातें करते हुए टाइम पास करने का काम तो किया लेकिन नीलेश विकमसे की तरफदारी करने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई । मीटिंग में सबसे मजेदार रवैया राजेश शर्मा का रहा । मुद्दे पर बात करने में तो उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं ली; दो-तीन बार लेकिन उन्होंने यह रोना जरूर रोया कि सीए डे फंक्शन की बदइंतजामी और बेईमानी के लिए उन्हें ही क्यों जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, उनका कुसूर क्या है जो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उन्हें चोर और दलाल कहा जा रहा है । उनकी इन बातों को 'चोर की दाढ़ी में तिनके' के उदाहरण के रूप में देखा गया । कहा/पूछा भी गया कि यहाँ उन्हें कौन जिम्मेदार ठहरा रहा है, या कौन उन्हें चोर और दलाल कह रहा है - सोशल मीडिया में उनके बारे में यदि यह सब कहा जा रहा है, तो उन्हें वहाँ जबाव देना चाहिए; वहाँ तो लेकिन वह छिपते/बचते फिर रहे हैं ।
सीए डे फंक्शन में हुई बदइंतजामी और बेईमानी को लेकर मीटिंग में मोर्चा खोला धीरज खंडेलवाल और विजय गुप्ता ने । फंक्शन की तैयारी और व्यवस्था से जुड़े उनके सवालों ने नीलेश विकमसे को तरह तरह से परेशान किया और नीलेश विकमसे सॉरी सॉरी कहते हुए अपने आप को बचाने की कोशिश करते रहे । धीरज खंडेलवाल की तो बदकिस्मती रही कि उन्हें वेस्टर्न रीजन के अपने साथियों से कोई सहयोग नहीं मिला, किंतु विजय गुप्ता को अपने अभियान में नॉर्दर्न रीजन के सदस्यों से अप्रत्याशित सहयोग और समर्थन मिला । उल्लेखनीय है कि काउंसिल की अंदरूनी राजनीति में संजय अग्रवाल और अतुल गुप्ता को विजय गुप्ता के विरोधियों के रूप में देखा/पहचाना जाता है, लेकिन सीए डे फंक्शन में हुई बदइंतजामी और बेईमानी को लेकर विजय गुप्ता ने मीटिंग में जो सवाल उठाए - संजय अग्रवाल और अतुल गुप्ता ने उनका जोरदार समर्थन किया और उन्हें दोहराया । विजय गुप्ता ने नीलेश विकमसे से सवाल किया कि सीए डे फंक्शन की तैयारी और व्यवस्था से जुड़े सवालों को लेकर अलग अलग तारीखों में उन्होंने चार मेल लिखे, लेकिन उन्हें एक भी मेल का जबाव नहीं मिला । संजय अग्रवाल और अतुल गुप्ता ने इसी बात को आधार बना कर नीलेश विकमसे को घेरा कि इससे ही लगता है कि वह सवालों से बचना चाहते हैं और सच्चाई को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं । बात को बढ़ता देख विजय गुप्ता की शिकायत पर नीलेश विकमसे ने माफी माँग ली ।
नीलेश विकमसे को वेस्टर्न रीजन के कुछेक तथा सेंट्रल रीजन के सभी सदस्यों से लेकिन 'अच्छा' समर्थन मिला, जिन्होंने टाइम पास करके नीलेश विकमसे पर होने वाले हमलों की धार को कुंद करने का काम किया । मुकेश कुशवाह ने भाषण तो बड़ा लंबा सा दिया, किंतु बातों की उन्होंने जो जलेबी सी बनाई - उसे जो सुन ले, तो उसे यह समझने में देर नहीं लगेगी कि उनके जैसे लोग जब सेंट्रल काउंसिल में होंगे - तो इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन का बेड़ा ही गर्क होगा । यह महज इत्तफाक नहीं है कि काउंसिल में मुकेश कुशवाह और राजेश शर्मा की जोड़ी रंगा-बिल्ला की जोड़ी के रूप में (कु)ख्यात है । मीटिंग में कई काउंसिल सदस्यों ने जिस तरह से बेसिरपैर की लंबी लंबी बातें कीं, उससे आभास मिला है कि नीलेश विकमसे ने अपने बचाव के लिए पहले से ही रणनीति बनाई हुई थी कि उनके समर्थक सदस्य मीटिंग को लंबा खींचेंगे, ताकि किसी नतीजे पर पहुँचा ही नहीं जा सके । धीरज खंडेलवाल और विजय गुप्ता ने मीटिंग के शुरू में ही जो आक्रामक रवैया दिखाया, उसके चलते किसी भी सदस्य के लिए नीलेश विकमसे की तरफदारी करना तो संभव नहीं हो सका, लेकिन मीटिंग को लंबा खींच कर मामले को दफ़्न करने/करवाने में नीलेश विकमसे जरूर सफल हो गए । सुबह दस बजे शुरू हुई मीटिंग में 30 के करीब सदस्य उपस्थित थे, लेकिन मीटिंग जब देर रात तक खिंचती गई - तब 14/15 सदस्य ही बचे रह गए थे । नीलेश विकमसे मीटिंग को किसी नतीजे पर पहुँचने ही नहीं दे रहे थे और तब नीलेश विकमसे के माफीनामे और इस आश्वासन के साथ मीटिंग समाप्त हुई कि जैसी पक्षपातपूर्ण बेवकूफियाँ और बेईमानियाँ उन्होंने इस बार की हैं, वैसी वह आगे नहीं करेंगे ।
नीलेश विकमसे ने किसी कार्रवाई से तो अपने आप को और राजेश शर्मा को बचा लिया है, लेकिन राजेश शर्मा पर चोर और दलाल होने के आरोप का जो शोर है, उससे और राजेश शर्मा को बचाने के चक्कर में अपनी हो रही फजीहत से वह नहीं बच सके हैं - और इस मामले में इंस्टीट्यूट के 68 वर्षों के इतिहास में कल हुई मीटिंग इंस्टीट्यूट के पिछले और आगे आने वाले प्रेसीडेंट्स के लिए एक उदाहरण भी होगी और एक सबक भी । काउंसिल में नीलेश विकमसे के समर्थक व शुभचिंतक सदस्यों तक का भी मानना और कहना है कि भारी फजीहत के बाद भी नीलेश विकमसे प्रेसीडेंट पद पर बने रहना भले ही चाहते हों, लेकिन काउंसिल में उनकी विश्वसनीयता और सम्मान जरा भी बचा नहीं रह गया है ।