Friday, March 29, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में क्लब के लोगों की सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए रवि भाटिया की उम्मीदवारी को मजबूत आधार दिया है

नई दिल्ली । रवि भाटिया की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के समर्थन में उनके क्लब के प्रमुख सदस्यों ने जैसा अभियान चलाया हुआ है, उससे रवि भाटिया की उम्मीदवारी को ठोस समर्थन आधार और व्यापक पहचान मिलती दिख रही है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में ऐसा कम देखने को मिला है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार को शुरू दिन से अपने क्लब के लोगों का सक्रिय समर्थन मिले । अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम शुरू में उम्मीदवार को खुद ही करना पड़ता है । बाद में फिर जब वह अपने क्लब के लोगों को साथ लेकर निकलता भी है तो क्लब के लोगों का काम सिर्फ 'दिखना' भर होता है । किन्हीं किन्हीं मामलों में तो उम्मीदवारों को अपने ही क्लब में विरोध का सामना करना पड़ा है । विनोद बंसल का उदाहरण तो बहुत ही मौजूँ है - उनकी उम्मीदवारी को उनके अपने क्लब में ही चुनौती का सामना करना पड़ा था और उनकी उम्मीदवारी के मुद्दे पर उनके क्लब में विभाजन तक हो गया था । जेके गौड़ का मामला भी कम दिलचस्प नहीं रहा । उनके क्लब के अशोक अग्रवाल कहने को तो जेके गौड़ की उम्मीदवारी के साथ थे, लेकिन दूसरों को हमेशा यही लगता रहा कि अशोक अग्रवाल के होते हुए जेके गौड़ को दुश्मनों की जरूरत नहीं पड़ेगी; दुश्मनों वाला काम अशोक अग्रवाल ही कर लेंगे । जेके गौड़ को एकतरफ तो कई लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी कि अशोक अग्रवाल उनके साथ ही हैं; और दूसरी तरफ इस बात पर ध्यान रखना पड़ा कि अशोक अग्रवाल मदद के नाम पर कहीं उनका कबाड़ा न कर दें । संजय खन्ना को भी अपने क्लब के लोगों का समर्थन जुटाने - 'दिखाने' में काफी इंतजार करना पड़ा और बिलकुल आख़िरी दिनों में ही क्लब के लोग उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रिय 'दिखे' थे । रमेश अग्रवाल का अपने क्लब में भले रूतबा चाहें जैसा भी हो, लेकिन पहले वर्ष में जब वह हारे तब और दूसरे वर्ष में जब वह जीते तब - अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम उन्हें अकेले ही करना पड़ा था ।
हाल-फ़िलहाल के इन उदाहरणों को देखते/पहचानते हुए रवि भाटिया की स्थिति बहुत ही अच्छी दिखाई देती है - उनके क्लब के कुछेक प्रमुख लोग डिस्ट्रिक्ट के होली मिलन समारोह में जिस तरह उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में चर्चा करते नजर आये उससे लोगों के बीच यह संदेश गया है कि रवि भाटिया की उम्मीदवारी को अपने क्लब में एकतरफा और पूरा समर्थन है । इस संदेश का इसलिए खासा महत्व है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कुछेक नेता लगातार यह प्रचार कर रहे हैं कि रवि भाटिया को अभी तो अपने क्लब में ही अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाना है । डॉक्टर सुब्रमणियन का नाम लेकर रवि भाटिया की उम्मीदवारी के लिए क्लब में संकट और विरोध की बातें करके कुछेक नेता अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने की फ़िराक में लगे हुए हैं । इसलिए रवि भाटिया के क्लब के प्रमुख सदस्यों की सक्रियता ने रवि भाटिया की उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने का काम तो किया ही है, रवि भाटिया की उम्मीदवारी के खिलाफ काम करने वाले नेताओं को भी 'चुप' हो जाने के लिए मजबूर किया है ।   
डिस्ट्रिक्ट के होली मिलन समारोह में रवि भाटिया के क्लब के जो लोग सक्रिय थे, उनमें से एक मुनीश गौड़ से इन पँक्तियों के लेखक की भी बात हुई । मुनीश गौड़ पिछले रोटरी वर्ष में क्लब के अध्यक्ष थे और तमाम प्रतिकूल दवाबों के बावजूद उन्होंने संजय खन्ना की उम्मीदवारी को समर्थन दिया था । तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर असित मित्तल ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए उनका समर्थन पाने के लिए उनके क्लब के वोटों को कम करने की चाल चली थी, लेकिन क्लब के अध्यक्ष के रूप में मुनीश गौड़ ने किसी भी दबाव में आने से तो इंकार किया ही, साथ ही पूरे वोटों का अधिकार भी प्राप्त किया । मुनीश गौड़ के दबदबे के सामने असित मित्तल की एक नहीं चली थी । वही मुनीश गौड़ डिस्ट्रिक्ट के होली मिलन समारोह में जोर शोर से यह दावा कर रहे थे कि क्लब में रवि भाटिया की उम्मीदवारी को लेकर किसी भी तरह का कोई विरोध नहीं है, और जो कोई भी इस तरह की बात कर रहा है वह सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए ऐसा झूठ बोल रहा है । मुनीश गौड़ ने दावा किया कि रवि भाटिया की उम्मीदवारी की बात सामने आने और उनकी उम्मीदवारी को क्लब में हरी झंडी मिलने के बाद उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में जिन भी लोगों से बात की है, उन्होंने पाया है कि रवि भाटिया की उम्मीदवारी के प्रति डिस्ट्रिक्ट के लोगों में उत्साह है और समर्थन का भाव है । मुनीश गौड़ का ही कहना/बताना रहा कि रवि भाटिया को चूँकि डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोग जानते हैं और रवि भाटिया भी अधिकतर लोगों को चूँकि जानते हैं इसलिए रवि भाटिया की उम्मीदवारी के प्रति डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अभी से ही समर्थन का तेवर नजर आ रहा है ।
मुनीश गौड़ ने हालाँकि यह भी स्वीकार किया कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेताओं को रवि भाटिया की उम्मीदवारी के प्रति दिख रहे समर्थन का दृश्य अच्छा नहीं लग रहा है और वह लगातार किसी न किसी को उम्मीदवार बनाने की मुहिम में जुटे हुए हैं । यह सच है कि नकारात्मक सोच रखने वाले ऐसे नेताओं को अभी तक अपनी मुहिम में सफलता नहीं मिली है - दरअसल उम्मीदवार हो सकने वाले लोग 'ऐसे' नेताओं पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं, जिनका उद्देश्य ही अपनी राजनीति 'दिखाने' के लिए झूठे वायदों के आधार पर अपने लोगों को ही चूसने, लुटवाने और मजाक का विषय बना देना रहता है । रवि भाटिया की उम्मीदवारी के प्रति डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच दिख रहे समर्थन को पहचानते/समझते हुए उन लोगों के क़दमों को भी पीछे हटते हुए पाया जा रहा है जिनकी उम्मीदवारी की चर्चा सुनी जा रही थी । मुनीश गौड़ का कहना है कि रवि भाटिया की उम्मीदवारी के प्रति तमाम अनुकूल स्थितियों के बावजूद क्लब के लोग रवि भाटिया की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचा सकने वाले नेताओं की गतिविधियों से सावधान हैं और इसलिए रवि भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थन में क्लब के लोग सक्रिय हैं । रवि भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थन के प्रति उनके क्लब के लोगों की इस सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को एक नई शक्ल तो दी ही है, साथ ही रवि भाटिया की उम्मीदवारी को मजबूत आधार भी दिया है ।

Thursday, March 21, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में केएस लूथरा की समझ और हौंसले की जीत तथा गुरनाम सिंह की हार में अनुपम बंसल को बड़ी राहत मिली है

लखनऊ । गुरनाम सिंह के उम्मीदवार विशाल सिन्हा की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में हुई पराजय ने अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभालने वाले अनुपम बंसल को बड़ी राहत पहुँचाई है । हालाँकि पहली नजर में विशाल सिन्हा की पराजय अनुपम बंसल के लिए एक सदमे और झटके की तरह है - अनुपम बंसल ने चूँकि हमेशा ही विशाल सिन्हा को अपने खास दोस्त के रूप में सार्वजनिक रूप से 'स्वीकार' किया है और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी का खुल कर समर्थन किया; इसलिए विशाल सिन्हा की पराजय अनुपम बंसल के लिए तात्कालिक रूप से एक बड़ा सदमा और झटका है । लेकिन कुल मिलाकर विशाल सिन्हा की पराजय को अनुपम बंसल के लिए एक बड़ी राहत के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है तो इसका कारण मानवीय स्वभाव की उस विशेषता में है जिसे मशहूर अभिनेता आमिर खान की लोकप्रिय फिल्म 'थ्री इडियट्स' में कुछ इस तरह व्याख्यायित किया गया कि - दोस्त यदि पीछे रह जाये तो दुःख होता है, लेकिन यदि वही दोस्त आगे निकल जाये तो 'ज्यादा' दुःख होता है ।
मानवीय स्वभाव की इसी विशेषता के चलते विशाल सिन्हा की पराजय अनुपम बंसल के लिए सदमे और झटके की तरह है; लेकिन विशाल सिन्हा यदि जीतते तो अनुपम बंसल को ज्यादा बड़े सदमे और झटके का शिकार होना पड़ता । विशाल सिन्हा की पराजय को केएस लूथरा के प्रति गुरनाम सिंह के और भूपेश बंसल के प्रति विशाल सिन्हा के रवैये के एक नतीजे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । यह सच है कि केएस लूथरा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने में गुरनाम सिंह का बहुत सहयोग था; लेकिन सच यह भी है कि फिर केएस लूथरा को तरह-तरह से अपमानित करने और परेशान करने में भी गुरनाम सिंह ने कोई कसर नहीं छोडी । केएस लूथरा का कसूर क्या था ? सिर्फ इतना ही न कि अपनी कैबिनेट के कुछ पद उन्होंने गुरनाम सिंह के कहे अनुसार नहीं दिए । और भूपेश बंसल का क्या कसूर था ? सिर्फ यही न कि उन्होंने इन्स्टालेशन चेयरपर्सन तथा कांफ्रेंस चेयरपर्सन बनने के केएस लूथरा के ऑफर को स्वीकार कर लिया । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा को चूँकि यह पसंद नहीं आया, सो वह भूपेश बंसल के खिलाफ पिल पड़े । इन प्रसंगों ने लोगों के बीच यही सन्देश दिया कि जो कोई इनकी बात नहीं मानेगा, उसकी यह बुरी गत बनायेंगे । इसी आधार पर अनुपम बंसल के लिए गंभीर आफतों को आया देखा जा रहा था । तमाम लोगों का मानना और कहना था कि गुरनाम सिंह ने केएस लूथरा की जो दशा की, अनुपम बंसल की उससे भी बुरी दशा करते । भूपेश बंसल का बदला भी गुरनाम सिंह को अनुपम बंसल से ही लेना होता और तब अनुपम बंसल की दोहरी मुसीबत होती ।
विशाल सिन्हा की पराजय से गुरनाम सिंह को जो झटका लगा है, उसके बाद लेकिन अब अनुमान लगाया जा रहा है कि गुरनाम सिंह हालात की नजाकत को समझेंगे और अनुपम बंसल के प्रति वैसा रवैया नहीं अपनायेंगे, जैसा कि उन्होंने केएस लूथरा के साथ किया । विशाल सिन्हा की पराजय के कारण गुरनाम सिंह की जो राजनीतिक किरकिरी हुई है उसके लिए सिर्फ और सिर्फ गुरनाम सिंह के रवैये को ही जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है । केएस लूथरा उनके अच्छे-खासे भक्त थे, और वह गुरनाम सिंह के तमाम आपत्तिजनक व्यवहार को भी झेल ले रहे थे; लेकिन गुरनाम सिंह ने उन्हें पूरी तरह दबा कर रखने की जो कोशिश की, उसने उलटे उन्हीं को चोट पहुँचा दी है । केएस लूथरा से उन्हें जो चोट मिली है, उसके असर के कारण अब उनके लिए अनुपम बंसल को दबा कर रखना मुश्किल ही होगा । स्वाभाविक रूप से यह अनुपम बंसल के लिए बड़ी राहत की बात होगी ।
विशाल सिन्हा की पराजय को विशाल सिन्हा की नहीं, बल्कि गुरनाम सिंह की पराजय के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । विशाल सिन्हा की इस पराजय ने इस बात को साबित किया है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच गुरनाम सिंह के तौर-तरीकों को लेकर भारी नाराजगी है और गुरनाम सिंह लोगों का मन और मूड भाँपने में पूरी तरह विफल रहे हैं । गुरनाम सिंह ने केएस लूथरा की सामर्थ्य और उनके हौंसले को पहचानने/समझने में भी बड़ी गलती की । उल्लेखनीय है कि शिव कुमार गुप्ता की जीत का भरोसा खुद शिव कुमार गुप्ता और उनके दूसरे समर्थकों व शुभचिंतकों तक को नहीं था; एक अकेले केएस लूथरा को शिव कुमार गुप्ता के जीतने का भरोसा था और वही शिव कुमार गुप्ता तथा अपने साथियों/सहयोगियों का हौंसला बनाये हुए थे । चुनाव से पहले की उनकी बातों में छिपे अर्थों को यदि समझने की कोशिश करें तो पायेंगे कि उन्हें भी भरोसा इस बात का था कि डिस्ट्रिक्ट में लोग गुरनाम सिंह की मनमानियों से चूँकि ज्यादा परेशान हैं, इसलिए लोग गुरनाम सिंह के उम्मीदवार को हराने के लिए किसी को भी जितवायेंगे । जाहिर तौर पर यह शिव कुमार गुप्ता की जीत नहीं है, यह विशाल सिन्हा की हार भी नहीं है - यह गुरनाम सिंह की हार है और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के मन और मूड को पहचानने की केएस लूथरा की समझ और परख तथा प्रतिकूल स्थितियों में भी बनाये रखे गए हौंसले और हिम्मत की जीत है ।
यह अनुपम बंसल की भी 'जीत' है - जो किस्मत से उन्हें मिली है । यह सच है कि जो हारा है वह उनका खास दोस्त है और उनका वह खास दोस्त उनके खुले समर्थन के बावजूद हारा है - लेकिन फिर भी उनके खास दोस्त की हार में उनके लिए बड़ी राहत छिपी है । उम्मीद है कि अनुपम बंसल को अब गुरनाम सिंह के उन दबावों का सामना नहीं करना पड़ेगा, जिन दबावों का केएस लूथरा को करना पड़ा है । गुरनाम सिंह के फिजूल के दबाव नहीं होंगे तो अनुपम बंसल के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में कुछ अच्छा और सार्थक करना संभव हो सकेगा ।

Tuesday, March 19, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में प्रदीप जैन ने अजय बुद्धराज से सीख लेकर अपने क्लब को 'जिंदा' करने के लिए सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का झंडा उठाया है क्या

हाँसी/नई दिल्ली । विजय शिरोहा से चुनावी मुकाबले में पराजित हुए प्रदीप जैन ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का झंडा उठा कर एक मजेदार सीन बनाया है । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थन में प्रदीप जैन को सक्रिय देख कर लोगों ने मजाक यह करना शुरू किया है कि जो प्रदीप जैन खुद अपना चुनाव नहीं जीत सके, वह सुरेश जिंदल को भला कैसे चुनाव जितवायेंगे ? प्रदीप जैन जब खुद उम्मीदवार थे तब भी वह ऊँचे-ऊँचे दावे किया करते थे लेकिन अपने तमाम दावों के बावजूद वह चुनाव नहीं जीत सके । प्रदीप जैन ने उम्मीदवार बनने में भी लोगों का बड़ा मनोरंजन किया था । वह खुद ही लोगों को बताते थे कि जब भी कोई उनसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार होने के लिए कहता था तो वह जबाव में यह कहते हैं कि उन्हें क्या पागल कुत्ते ने काटा है । लोगों को यह बताते बताते पता नहीं कब उन्हें 'पागल कुत्ते ने काट लिया' और वह उम्मीदवार बन गए । तमाम तीन-तिकड़मों के बावजूद लेकिन वह चुनाव नहीं जीत सके । प्रदीप जैन लेकिन एक बार फिर मनोरंजनकारी भूमिका में आ गए हैं । ऊँची-ऊँची फेंकने के बावजूद अपना चुनाव न जीत सकने वाले प्रदीप जैन ने सुरेश जिंदल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जितवाने के लिए एक बार फिर ऊँची-ऊँची फेंकना शुरू कर दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव लड़ने को 'पागल कुत्ते के काटे' का नतीजा बताने वाले प्रदीप जैन के खुद उम्मीदवार बनने को अपवाद मान कर भूल चुके लोगों को यह देख कर एक बार फिर आश्चर्य हुआ है कि अपनी चुनावी पराजय के बाद जो प्रदीप जैन लायन सदस्यों को बुरा-भला कहते हुए लायनिज्म से गायब दिख रहे थे, वह प्रदीप जैन अचानक से फिर कैसे और क्यों सक्रिय हो गए हैं ? अचानक से सामने आई प्रदीप जैन की सक्रियता के पीछे छिपे कारणों की पड़ताल करने वाले लोगों को लेकिन जल्दी ही सारा माजरा समझ में आ गया । प्रदीप जैन के क्लब के लोगों का ही कहना/बताना है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी में दरअसल प्रदीप जैन को अपने क्लब के ड्यूज बसूलने का मौका नजर आया है सो वह फिर सक्रिय हो गए हैं । उल्लेखनीय है कि प्रदीप जैन का क्लब - लायंस क्लब हाँसी - ड्यूज न दिए जाने के कारण कैंसिल हुआ पड़ा है । क्लब के जो सदस्य हैं उन्होंने चूँकि ड्यूज देने में कोई दिलचस्पी नहीं ली इसलिए लायंस इंटरनेशनल को बकाया ड्यूज नहीं पहुँचाये जा सके और इसके नतीजे में लायंस इंटरनेशनल ने उनके क्लब को कैंसिल कर दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए सुरेश जिंदल के उम्मीदवार होने से प्रदीप जैन को अपने क्लब के ड्यूज जमा होते हुए 'दिखे' तो उन्होंने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का झंडा उठा लेने में देर नहीं की । लोगों का कहना है कि सुरेश जिंदल को जितवाने को लेकर प्रदीप जैन जो ऊँची-ऊँची फेंक रहे हैं, उसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि जो खुद अपना चुनाव नहीं जीत सका वह दूसरे किसी को क्या जितवायेगा ? सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के संदर्भ में प्रदीप जैन जो दावे कर रहे हैं, वह सिर्फ अपने क्लब के ड्यूज बसूलने के लिए कर रहे हैं । 
प्रदीप जैन के नजदीकियों के अनुसार प्रदीप जैन को यह आईडिया अजय बुद्धराज से मिला । प्रदीप जैन को पता चला कि अजय बुद्धराज ने जो एक क्लब - लायंस क्लब नई दिल्ली प्रयास - अपनी पत्नी को गिफ्ट किया हुआ था, वह ड्यूज जमा न होने के कारण कैंसिल है; जिसे सुरेश जिंदल के सहयोग से जिंदा करने का उपक्रम किया जा रहा है । प्रदीप जैन को अजय बुद्धराज का यह आईडिया अच्छा लगा और उन्होंने भी सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया ताकि वह भी अजय बुद्धराज की तरह अपने क्लब को जिंदा करवा लें । सुरेश जिंदल से हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि सुरेश जिंदल को उन लोगों से ही ज्यादा खतरा है जो अपने अपने स्वार्थ में उनकी उम्मीदवारी के साथ जुड़ने का काम कर रहे हैं और ऊँची-ऊँची बातें करके उन्हें बरगला रहे हैं ।

Monday, March 18, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में अजय बुद्धराज ने अपनी नेतागिरी बचाने/ज़माने के लिए क्या विजय शिरोहा को किनारे करने की चाल चली है

नई दिल्ली । अजय बुद्धराज ने जो किया, विरोधी खेमे के नेता उसे करने में लगातार लहूलुहान हुए जा रहे थे - लेकिन फिर भी नहीं कर पा रहे थे । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को मोहरा बना कर अजय बुद्धराज ने जो 'राजनीति' की है, उसे देख/जान कर विरोधी खेमे के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं है कि जिस सत्ता खेमे की ताकत को वह हर तरह की तीन-तिकड़म के बाद भी कमजोर नहीं कर पा रहे थे, उसे अजय बुद्धराज की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने लगभग छिन्न-भिन्न कर दिया है । ऊपर-ऊपर से देखें तो लगता है कि जैसे अजय बुद्धराज ने सुरेश जिंदल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की बिसात भर बिछाई है, लेकिन इस बिसात के जरिये उन्होंने जो पाने की कोशिश की है उसे देखना/समझना भी कोई मुश्किल नहीं है । उनकी कोशिश को समझने के लिए घटनाओं के सिर्फ सीक्वेंस पर गौर करना काफी होगा ।
सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के अचानक से अवतरित होने की जो कहानी डिस्ट्रिक्ट के पक्ष-विपक्ष के लोगों के बीच चर्चा में है उसके अनुसार सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन की खोज है । यह सवाल हालाँकि अभी तक भी अनुत्तरित है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को राकेश त्रेहन ने खोजा या फिर अपनी उम्मीदवारी के साथ सुरेश जिंदल ने सबसे पहले राकेश त्रेहन के यहाँ शरण ली ? हुआ चाहे जो हो यहाँ से आगे की कहानी का घटनाक्रम यह बताया जा रहा है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को पक्का करने के बाद राकेश त्रेहन ने अजय बुद्धराज से संपर्क किया । इसके बाद सारी कमान अजय बुद्धराज के हाथ में आ गई । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को समर्थन दिलाने के लिए अजय बुद्धराज ने आश्चर्यजनक रूप से अपने खेमे के दिल्ली के अरुण पुरी और दीपक टुटेजा जैसे नेताओं से भी पहले विरोधी खेमे के हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल से संपर्क किया । अपने खेमे में उन्होंने डीके अग्रवाल से जरूर बात कर ली थी । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु अजय बुद्धराज ने हरियाणा में चंद्रशेखर मेहता से तो बात कर ली, लेकिन अपने खेमे के सुशील खरिंटा से बात करना उन्होंने जरूरी नहीं समझा । यहाँ तक कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा तक को उन्होंने कोई तवज्जो नहीं दी ।
विजय शिरोहा के प्रति दिखाया गया अजय बुद्धराज का यह रवैया हर किसी के लिए चौंकाने वाला रहा । आने वाले लायन वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते विजय शिरोहा का चुनावी नजरिये से खासा महत्व है, लेकिन फिर भी अजय बुद्धराज ने उनकी पूरी तरह से उपेक्षा की । विजय शिरोहा और हरियाणा के पक्ष-विपक्ष के अधिकतर नेताओं को सुरेश जिंदल के उम्मीदवार होने का पता तब चला जब अजय बुद्धराज ने दिल्ली के नेताओं से सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को हरी झंडी दिलवा दी थी । विजय शिरोहा को अँधेरे में रख कर अजय बुद्धराज ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को जिस तरह से आगे बढ़ाया है उसने हर किसी के सामने यह सवाल खड़ा किया है कि विजय शिरोहा से अजय बुद्धराज ने आखिर किस दुश्मनी का बदला लिया है ? जल्दी ही लेकिन हर किसी की समझ में आ गया कि अजय बुद्धराज ने बदला विजय शिरोहा से नहीं, बल्कि दीपक टुटेजा से लिया है । विजय शिरोहा को तो दीपक टुटेजा का 'खास' होने का नुकसान उठाना पड़ा है । अजय बुद्धराज ने विजय शिरोहा को इसीलिये अलग-थलग करने की कोशिश की, ताकि दीपक टुटेजा को कमजोर किया जा सके ।
दीपक टुटेजा के कारण अजय बुद्धराज को अपनी नेतागिरी दरअसल खतरे में पड़ी दिख रही थी । असल में, अभी तक भी हालाँकि खेमे के नेता के तौर पर पहचाना डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज को ही जा रहा है, लेकिन देखने में आ रहा है कि चल दीपक टुटेजा की रही है । चुनावी तीन-तिकड़म में दरअसल दीपक टुटेजा ने ऐसी महारथ हासिल कर ली है कि चुनावी लड़ाई उनकी देख-रेख में ही होने लगी और इसका नतीजा यह हुआ कि दीपक टुटेजा की भूमिका महत्वपूर्ण हो उठी । दीपक टुटेजा ने हालाँकि कभी भी अपनी इस हैसियत का फायदा उठाने या अपने आप को खेमे का मुखिया दिखाने का प्रयास नहीं किया, लेकिन अजय बुद्धराज को कई बार यह बात भी नागवार गुजरी कि किन्हीं-किन्हीं मौकों पर दीपक टुटेजा ने उनसे पूछे बिना ही फैसले कर लिए । डीके अग्रवाल को तो इस स्थिति से कभी कोई शिकायत नहीं हुई लेकिन अजय बुद्धराज के लिए यह बर्दाश्त करना मुश्किल होता गया । इसलिए उन्हें दीपक टुटेजा के असर को कम करना जरूरी लगने लगा । दीपक टुटेजा से निपटने के लिए अजय बुद्धराज को हर्ष बंसल और चंद्रशेखर मेहता से हाथ मिलाने में भी कोई गुरेज नहीं हुआ है - उन चंद्रशेखर मेहता के साथ भी, जिनके साथ उनका गाली-गलौच पूर्ण समारोह सार्वजनिक रूप से आयोजित हुआ था ।
दीपक टुटेजा से निपटने की कोशिश में अजय बुद्धराज ने दाँव तो बहुत बड़ा और ऊँचा चला है - देखने की बात होगी कि उनका यह दाँव डिस्ट्रिक्ट की राजनीति को किस मोड़ पर ले जाता है और इससे अजय बुद्धराज को सचमुच कोई फायदा होता भी है या नहीं ? 

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अजय जुनेजा की उम्मीदवारी को विनोद बंसल के समर्थन की बात सच है या मिसमैनेजमेंट के कारण पैदा हुई गलतफहमी है

नई दिल्ली । विनोद बंसल ने डीटीटीएस में अजय जुनेजा को आमंत्रित करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी भूमिका को विवादास्पद बना लिया है । डीटीटीएस में अजय जुनेजा की उपस्थिति दरअसल उस समय सवालों के घेरे में आ गई जब लोगों ने डीटीटीएस में रवि भाटिया की अनुपस्थिति के बारे में विनोद बंसल से पूछा । विनोद बंसल से यह सुनकर कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों को डीटीटीएस में आमंत्रित नहीं किया है; लोगों ने उनसे पूछा कि तब फिर यहाँ अजय जुनेजा कैसे हैं ?
विनोद बंसल ने इसका जबाव यह दिया कि उन्हें यह पता ही नहीं है कि अजय जुनेजा भी उम्मीदवार हैं ? विनोद बंसल के इस जबाव ने लोगों को हैरान किया और फिर उन्होंने आपस में चर्चा शुरू की कि जो बात पूरे डिस्ट्रिक्ट को पता है वह विनोद बंसल को क्यों नहीं पता है ? यह सवाल भी उठा कि विनोद बंसल को रवि भाटिया के उम्मीदवार होने का ही कैसे पता चला है ? विनोद बंसल ने जो कुछ भी पहले 'किया' और फिर जो कहा उससे स्पष्ट हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों को लेकर उनकी अपनी कोई 'राजनीति' है ।
विनोद बंसल की बदकिस्मती यह है कि 'कोई राजनीति न करने' के उनके दावे पर किसी को विश्वास नहीं है । 'उन्हें पता नहीं था' जैसी उनकी बातों को कोई भी सच नहीं मान रहा है । डीटीटीएस में रवि भाटिया को आमंत्रित न करने और अजय जुनेजा को आमंत्रित करने के पीछे विनोद बंसल की सोची-समझी राजनीति को ही देखा/पहचाना जा रहा है । सतीश सिंघल और राजीव देवा को चूँकि कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है, इसलिए उनमें से किसी को बुला लिया और किसी को नहीं बुलाया - इसे लेकर कोई भी कयास नहीं लगा रहा है; लेकिन रवि भाटिया और अजय जुनेजा के नाम पर गहमागहमी है । विनोद बंसल के नजदीकियों को ही लग रहा है कि रवि भाटिया की उम्मीदवारी को चूँकि राजेश बत्रा का समर्थन है इसलिए विनोद बंसल को रवि भाटिया की उम्मीदवारी पसंद नहीं आ रही है । विनोद बंसल को लग रहा है कि रवि भाटिया के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने की स्थिति में राजेश बत्रा की राजनीती जमेगी/बढ़ेगी और उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा । अपनी राजनीति ज़माने/चलाने के लिए विनोद बंसल को 'अपना' उम्मीदवार लाना जरूरी लग रहा है - और अपनी इसी जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने अजय जुनेजा की तरफ 'देखा' है । डीटीटीएस में कई लोगों ने इस बात का नोटिस लिया कि कई मौकों पर विनोद बंसल और अजय जुनेजा गुपचुप गुपचुप रूप से 'अपनी' खिचड़ी पका रहे थे । दरअसल दोनों की अकेले अकेले होने वाली छोटी-छोटी बातचीतों में ही लोगों ने अजय जुनेजा के जरिये राजनीति करने/ज़माने की विनोद बंसल की कोशिशों को चरितार्थ होते देखा ।
विनोद बंसल से हमदर्दी रखने वाले कुछेक लोगों के लिए हालाँकि इस बात को हजम कर पाना मुश्किल भी हो रहा है कि अजय जुनेजा की उम्मीदवारी को विनोद बंसल भला क्यों समर्थन देंगे ? विनोद बंसल जब उम्मीदवार थे तब अजय जुनेजा ने अपनी उम्मीदवारी के जरिये उन्हें कम तंग किया था क्या ? विनोद बंसल कुछ भी 'भूलने' वाले व्यक्ति नहीं हैं - किये गए वायदे को न निभा पाने की सूरत में भूलने का वास्ता देकर बच निकलने की विनोद बंसल भले ही जब-तब कोशिश करते रहते हों - लेकिन 'भूलते' वह कुछ भी नहीं हैं । जब वह सुधीर मंगला को नहीं 'भूले' तब फिर अजय जुनेजा को भला कैसे 'भूल' जायेंगे ? ऐसा सोचने/मानने वाले लोगों का कहना यह है कि डीटीटीएस की तैयारी में हुए मिसमैनेजमेंट के कारण विनोद बंसल को इस विवाद में फँसना पड़ा है । उनका कहना है कि विनोद बंसल यदि डीटीटीएस में शामिल होने का निमंत्रण देते समय यदि यह पूछते चलते कि आमंत्रित होने वाला रोटेरियन उम्मीदवार बनने की तैयारी तो नहीं कर रहा है - तब यह बखेड़ा ही खड़ा नहीं होता । समस्या लेकिन यह है कि यह सब करने का विनोद बंसल के पास समय ही नहीं है । विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट का काम करने के लिए न तो कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया है, न कोई टीम बनाई है - इसका एक कारण यह तो है ही कि उनके पास समय नहीं है; दूसरा कारण यह भी लगता है कि उन्हें किसी पर भरोसा ही नहीं है । इसका नतीजा यह हो रहा है कि उनके आयोजनों की दूसरों को जानकारी नहीं है और डिस्ट्रिक्ट में क्या हो रहा है यह उन्हें पता नहीं चलता । इसके चलते वह विवाद में जा फँसते हैं ।
अजय जुनेजा की उम्मीदवारी को समर्थन देने का जो आरोप विनोद बंसल पर लगा है - वह सच है या मिसमैनेजमेंट के कारण पैदा हुई गलतफहमी का नतीजा है, यह विनोद बंसल की आगे की गतिविधियों से ही तय हो सकेगा । इसलिए लोगों को लगता है कि विनोद बंसल की आगे की गतिविधियाँ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की दिशा और दशा को तय करने का काम करेंगी । 

Tuesday, March 12, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में विशाल सिन्हा के आयोजनों में जुटती भीड़ से उनकी उम्मीदवारी को मिलने वाले व्यापक समर्थन का अंदाज मिलता है

लखनऊ । विशाल सिन्हा ने अपने प्रतिद्धन्द्धी शिव कुमार गुप्ता और उनका समर्थन कर रहे केएस लूथरा की मिलीजुली शक्ति से निपटने और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने और दिखाने के उद्देश्य से पिछले दिनों सघन अभियान चलाया है । उनके इस सघन अभियान की खास बात यह रही कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के प्रायः हर क्लब को और चुनाव को प्रभावित कर सकने वाले प्रायः हर प्रमुख लायन सदस्य को एप्रोच किया और उसे अपने साथ लाने की तथा उसे अपने साथ खड़ा दिखाने की कोशिश की । इस उपक्रम में उन्होंने काशीपुर में, शाहजहाँपुर में और फिर लखनऊ में मीटिंग्स कीं ।
इन मीटिंग्स में आसपास के क्लब्स के सदस्य तो उपस्थित हुए ही, दूर-दराज के नेता लोग भी शामिल हुए - जिसके जरिये विशाल सिन्हा ने हर जगह के लोगों को यह सन्देश देने की कोशिश की कि उन्हें प्रत्येक क्षेत्र के लोगों का समर्थन मिल रहा है । पहले काशीपुर में, फिर शाहजहाँपुर में और उसके बाद लखनऊ में गेट-टु-गेदर तथा ज्वाइंट नोमीनेशन के आयोजन के जरिये विशाल सिन्हा ने अपने आयोजनों को इस तरह से प्लान किया कि जो लायन सदस्य हर आयोजन में शामिल न हो पायें या जिन्हें हर आयोजन की रिपोर्ट न मिल पाए उन्हें भी यह सन्देश अपने आप मिल जाये कि विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में व्यापक समर्थन मिल रहा है ।
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में विशाल सिन्हा को दरअसल इस 'प्रचार' से बड़ी चुनौती मिल रही थी कि उनके साथ तो डिस्ट्रिक्ट के सिर्फ कुछ बड़े क्लब हैं तथा डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर छोटे क्लब्स गुरनाम सिंह द्धारा की जाने वाली उपेक्षा के कारण और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा के भावनात्मक दोस्ताना के कारण शिव कुमार गुप्ता के समर्थन में होंगे । अपने खिलाफ होने वाले इस प्रचार से निपटने के लिए ही विशाल सिन्हा ने पिछले दिनों हुईं मीटिंग्स को खास तौर से न सिर्फ डिज़ाइन किया बल्कि उन्हें अमली जामा भी पहनाया । डिस्ट्रिक्ट के बड़े क्लब्स को अपने साथ बनाये रखते हुए डिस्ट्रिक्ट के छोटे क्लब्स को भी विश्वास में लेने और अपने साथ खड़ा करने तथा दिखाने पर विशाल सिन्हा ने खास जोर दिया । इसी के साथ, उन्होंने ऐसे लोगों को भी अपने साथ लाने और दिखाने का काम किया जिन्हें उनके खिलाफ देखा/समझा जाता है; या उन्हें जिनके समर्थन को लेकर संदेह रहा है ।
विशाल सिन्हा और उनके खैरख्वाह गुरनाम सिंह ने यह समझने/पहचानने में हालाँकि थोड़ी देर कर दी कि डिस्ट्रिक्ट की इस बार की चुनावी लड़ाई उनके लिए उतनी आसान नहीं है, जितनी कि वह समझ रहे थे । केएस लूथरा को वह हलके में ले रहे थे, और यह मान कर चल रहे थे कि केएस लूथरा को बदनाम करके वह चुनावी लड़ाई को अपने पक्ष में कर लेंगे । विशाल सिन्हा के नजदीकियों का ही यह कहना है कि यह तो अच्छा हुआ कि समय रहते इस सच्चाई को पहचान लिया गया कि केएस लूथरा को कमजोर समझने/बताने से अपना ही नुकसान होगा । विशाल सिन्हा को भी यह समझने में थोड़ा समय लगा कि गुरनाम सिंह का समर्थन उनके अभियान को ताकत तो देगा, लेकिन सिर्फ गुरनाम सिंह के भरोसे बैठे रहेंगे तो नुकसान भी हो सकता है । यह समझने के बाद, विशाल सिन्हा खुद से सक्रिय हुए तो उन्हें अनुकूल नतीजे भी मिलने शुरू हुए । पिछले दिनों विशाल सिन्हा ने हर किसी का समर्थन जुटाने का जो प्रयास किया और अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करके हर किसी को अपने साथ जोड़ने की जिस तरह से कोशिश की, उनके आयोजनों में जुटती भीड़ ने 'बताया' है कि उसका उन्हें भरपूर फायदा हुआ है । अपनी निरंतर सक्रियता और हर किसी को अपने साथ करने की कोशिशों से विशाल सिन्हा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी को खासा मजबूत आधार दे दिया है और डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों की निगाह में अपनी अच्छी बढ़त बना ली है ।
विशाल सिन्हा को डिस्ट्रिक्ट के खास लोगों का समर्थन मिल रहा है, इसका अंदाजा यहाँ प्रस्तुत तस्वीरों से लगाया जा सकता है ।




  

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के संदर्भ में लगातार मिल रही प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं से सतीश सिंघल के लिए अपनी उम्मीदवारी को बनाये रखना मुश्किल हुआ

नई दिल्ली । सतीश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी प्रस्तावित उम्मीदवारी पर जिस तरह की प्रतिक्रिया मिली है, उसने उनको हतोत्साहित करने का ही काम किया है । विनोद गोयल की ‘अभी दो तीन वर्ष काम करने’ वाली सलाह ने तो सतीश सिंघल को बुरी तरह बिफरा दिया है । विनोद गोयल तथा अन्य लोगों से मिलने वाली प्रतिक्रिया ने सतीश सिंघल और उनके समर्थकों को यह अहसास साफ-साफ करा दिया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की तरफ जाने वाली राह उनके लिए आसान नहीं होगी । सतीश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी प्रस्तावित उम्मीदवारी के संदर्भ में अभी तक जिन भी लोगों से संपर्क किया है, उनमें से जिनसे भी इन पंक्तियों के लेखक की बात हो सकी है उन सभी का प्रायः एक स्वर में यही कहना है कि सतीश सिंघल का जो टेम्परामेंट है, उसके कारण एक उम्मीदवार ‘बनना’ उनके लिए मुश्किल ही होगा ।
दरअसल ब्लड बैंक को लेकर सतीश सिंघल का रोटेरियंस के प्रति - खासकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के प्रति - जो रवैया रहा था, उसे याद करते हुए लोगों का कहना है कि सतीश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट में पहले से ही लोगों को नाराज किया हुआ है, और अपनी एक नकारात्मक पहचान बनाई हुई है - ऐसे में उनके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए लोगों का समर्थन जुटाना काफी चुनौतीपूर्ण होगा । सतीश सिंघल उन दुर्भाग्यशाली लोगों में से हैं जिन्हें अपने अच्छे काम के लिए भी कोई समर्थन और प्रशंसा नहीं मिली है । सतीश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट में दूसरे ब्लड बैंक को स्थापित करने का ऐसा महत्त्वपूर्ण और बड़ा काम किया है, जिसे करने के बारे में दूसरे किसी ने सोचा तक भी नहीं है । इसके बावजूद - डिस्ट्रिक्ट में एक बड़े प्रोजेक्ट को अपने दम पर संभव कर दिखाने के बावजूद सतीश सिंघल को लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों से कोई तारीफ सुनने को नहीं मिली । सतीश सिंघल खुद भी इस बात को बड़ी तल्खी से, बड़ी निराशा से और बड़े गुस्से के साथ कहते/बताते रहे हैं कि उनके ब्लड बैंक जैसे बड़े प्रोजेक्ट को रोटेरियंस से कोई सहयोग और समर्थन नहीं मिला । उनके प्रोजेक्ट में दिलचस्पी न दिखाने और सहयोग न करने को लेकर सतीश सिंघल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स किस्म के लोगों को खुलेआम कोसते भी रहे हैं ।
सतीश सिंघल के इसी रवैये ने एक बड़ा काम करने के बावजूद उन्हें लोगों के निशाने पर ही रखा है - और उस प्रशंसा से उन्हें दूर ही रखा, जिसके कि वह वास्तव में हकदार हैं । उन्हें प्रशंसा की बजाये आलोचना ही मिली है । इसके लिए लेकिन वह खुद ही जिम्मेदार हैं । सार्वजनिक रूप से उन्हें जिम्मेदार ठहराने का काम किया था अमित जैन ने । अपने गवर्नर-काल में अमित जैन ने सतीश सिंघल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में सतीश सिंघल के रवैये की खुली आलोचना की थी । अमित जैन का कहना था कि सतीश सिंघल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को तो कोसते रहते हैं कि किसी ने उनके प्रोजेक्ट में दिलचस्पी नहीं ली और रोटरी इंटरनेशनल से मदद नहीं दिलवाई, लेकिन सच यह है कि सतीश सिंघल ने कभी भी उचित तरीके से मदद के लिए आवेदन ही नहीं दिया है । डिस्ट्रिक्ट के कुछेक प्रमुख लोगों ने भी बताया है कि सतीश सिंघल ने उनसे जब अपने प्रोजेक्ट में मदद के लिए कहा तो उन्होंने सतीश सिंघल से कहा कि वह उनके क्लब की किसी मीटिंग में आकर अपने प्रोजेक्ट के बारे में प्रेजेंटेशन दें, ताकि क्लब के सदस्यों को मदद के लिए प्रेरित किया जा सके - लेकिन सतीश सिंघल ने ऐसा कुछ करने में दिलचस्पी ही नहीं ली । जहाँ कहीं सतीश सिंघल प्रेजेंटेशन देने के लिए तैयार भी हुए, वहाँ मौके पर पहुँचे ही नहीं - जाहिर है कि उन्हें अपने प्रोजेक्ट के लिए मदद नहीं मिली । लोगों को इससे समस्या नहीं हुई कि सतीश सिंघल एक बड़े प्रोजेक्ट में डिस्ट्रिक्ट के लोगों को नहीं जोड़ सके और उनकी मदद नहीं ले सके - समस्या यह देख कर हुई कि सतीश सिंघल ने उनके प्रोजेक्ट में मदद न करने के लिए लोगों को लताड़ा और लोगों के प्रति अपनी नाराजगी को सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया; और बार-बार व्यक्त किया - और जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को खास तौर से लताड़ा । अपनी बातों से उन्होंने यह दिखाने/जताने की कोशिश की कि जैसे एक अकेले उन्हीं को रोटरी में कुछ करने का हौंसला है, तथा बाकी लोग तो कुछ करना ही नहीं चाहते हैं । सतीश सिंघल के इसी रवैये के कारण सतीश सिंघल को एक बड़ा प्रोजेक्ट संपन्न करने के बावजूद लोगों से तारीफ नहीं मिली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उनकी उम्मीदवारी को लेकर इसीलिए उनके नजदीकियों तक का कहना है कि सतीश सिंघल ने तो डिस्ट्रिक्ट में पहले से ही अपने विरोधी बनाये हुए हैं, ऐसे में उनके लिए अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाना मुश्किल ही होगा । चुनावी राजनीति की जरूरतों को पहचानने/समझने वाले लोगों का मानना और कहना है कि लोगों के साथ जुड़ने की कोशिश के बिना एक प्रोजेक्ट तो संभव किया जा सकता है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए समर्थन नहीं जुटाया जा सकता ।
सतीश सिंघल को मुकेश अरनेजा का उम्मीदवार समझे जाने के कारण भी लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है । कुछेक लोगों ने उनसे दो-टूक कहा कि मुकेश अरनेजा जैसे घटिया किस्म के व्यक्ति के सहारे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की कोशिश करोगे, तो भई हम तो आपका साथ नहीं देंगे । लोगों से मिली इस प्रतिक्रिया ने सतीश सिंघल के हाथ-पैर फुला दिए - और उन्हें लोगों के बीच सफाई देनी पड़ी कि वह मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार नहीं हैं । सतीश सिंघल के शुभचिंतकों ने भी उन्हें समझाया कि रवि चैधरी और आलोक गुप्ता के अनुभव से सबक लेकर उन्हें मुकेश अरनेजा से दूर ही रहना चाहिए, अन्यथा रवि चैधरी और आलोक गुप्ता जैसा हाल ही होगा । मजे की बात यह हुई कि सतीश सिंघल को इस ‘मुसीबत’ में फँसाया भी मुकेश अरनेजा ने ही - सतीश सिंघल ने तो अपनी उम्मीदवारी को मुकेश अरनेजा के समर्थन का दावा कभी किया नहीं; मुकेश अरनेजा ने ही उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन की-सी बातें की, जिससे उन्हें मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाने लगा । मुकेश अरनेजा के साथ दरअसल समस्या यह हुई है कि रवि भाटिया की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख नेताओं का जिस तरह समर्थन मिलता दिख रहा है, उसके चलते उनकी राजनीति के तो पूरी तरह पिटने की नौबत आ गई है । मुकेश अरनेजा के समर्थन के बावजूद पहले रवि चैधरी और फिर आलोक गुप्ता के साथ जो हुआ, उसे देखते/समझते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के संभावित उम्मीदवार मुकेश अरनेजा से ऐसे बच रहे हैं, जैसे मुकेश अरनेजा को कोई खुजली वाली बीमारी हो गई है । मुकेश अरनेजा ने हरीश मल्होत्रा से डॉक्टर सुब्रमणियन को उम्मीदवार बनवाने को लेकर बात की थी, ताकि रवि भाटिया की उम्मीदवारी को प्रस्तुत होने से रोका जा सके - लेकिन हरीश मल्होत्रा ने उन्हें ऐसी लताड़ लगाई कि बेचारे मुकेश अरनेजा को अपना-सा मुँह लेकर रह जाना पड़ा । डिस्ट्रिक्ट में अपनी राजनीति को बचाने के लिए मुकेश अरनेजा को अब एक ऐसे उम्मीदवार की जरूरत है जो रवि भाटिया की उम्मीदवारी को टक्कर दे सके। सतीश सिंघल को उम्मीदवारी प्रस्तुत करते देख मुकेश अरनेजा ने झट से उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन दिखाना शुरू कर दिया । मुकेश अरनेजा का खुद-ब-खुद आगे बढ़ कर उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करना सतीश सिंघल को पहले तो बहुत रास आया, लेकिन जैसे ही मुकेश अरनेजा के समर्थन को लेकर लोगों के विरोध से उनका सामना हुआ, उनकी आँखों के सामने रवि चैधरी और आलोक गुप्ता की तस्वीरें तैरने लगीं । फिर सतीश सिंघल ने अपनी उम्मीदवारी को मुकेश अरनेजा से बचाने का प्रयास शुरू किया । लगातार मिल रही प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं को देखते/झेलते हुए सतीश सिंघल और उनके शुभचिंतकों को लगने लगा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की दौड़ कोई आसान दौड़ नहीं है ।

Monday, March 11, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की लड़ाई में विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल के तेवरों को देख कर सुरेश जिंदल अपनी उम्मीदवारी को फ़िलहाल स्थगित करने पर मजबूर हुए


रोहतक/नई दिल्ली । विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल ने मिलकर डिस्ट्रिक्ट के दिल्ली के नेताओं की राजनीति में ऐसा पंक्चर किया है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को लेकर होने वाली सारी राजनीति का तमाशा ही बन गया है । दिल्ली के नेताओं ने एकसाथ मिल कर जिन सुरेश जिंदल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार घोषित किया था, विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल के कारण उन सुरेश जिंदल के लिए अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में अभियान चलाना तक मुश्किल हो गया है और इसीलिये उन्हें रोहतक में घोषित की गई अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में होने वाली मीटिंग को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है । सिर्फ इतना ही नहीं, सुरेश जिंदल अपनी उम्मीदवारी के समर्थन को लेकर तैयार किये गए अपने दूसरे कार्यक्रमों को भी स्थगित करने के लिए मजबूर हुए हैं । इस तरह, सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी ही संकट में पड़ गई है ।
दिल्ली के कुछेक नेताओं ने हालाँकि सुरेश जिंदल को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि उन्हें विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल की चिंता नहीं करना चाहिए तथा अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम जारी रखना चाहिए, लेकिन सुरेश जिंदल ने लगता है कि तय कर लिया है कि उन्हें यदि विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल का समर्थन नहीं मिला तो फिर वह उम्मीदवार नहीं बनेंगे । विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल का सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी से विरोध सिर्फ इस बात को लेकर है कि सुरेश जिंदल उन्हें विश्वास में लिए बिना ही उम्मीदवार बन गए हैं । सुरेश जिंदल की इस 'हरकत को इन्होंने बड़ी होशियारी से 'हरियाणा के लोगों के अपमान' के साथ जोड़ दिया है । उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले राजिंदर बंसल ने पहल करके रोहतक में हरियाणा के लोगों की एक मीटिंग आयोजित की थी, जिसका कुल लुब्बोलुबाब यह था कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संदर्भ में हरियाणा की बारी के समय हरियाणा के लोगों को उम्मीदवार चुनने का मौका मिलना चाहिए । उक्त मीटिंग में विजय शिरोहा की उपस्थिति को सुनिश्चित करके राजिंदर बंसल ने एक बड़ी 'जीत' प्राप्त की थी, हालाँकि तब उनकी इस 'जीत' को दूसरे नेताओं ने इग्नोर ही किया था । दरअसल, उस समय इस बात को कोई समझ ही नहीं पाया कि उक्त मीटिंग से राजिंदर बंसल ने 'पाया' क्या ? इसीलिये किसी ने भी राजिंदर बंसल की 'चालों' को गंभीरता से नहीं लिया ।
यही कारण रहा कि दिल्ली के नेताओं ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को हरी झंडी देते समय इस बात का जरा भी ख्याल नहीं रखा कि राजिंदर बंसल इस हरी झंडी के बावजूद सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी की ट्रेन को रोक लेंगे । दिल्ली के नेताओं ने चूँकि चंद्रशेखर मेहता को साध लिया था, इसलिए उन्होंने मान लिया था कि अब राजिंदर बंसल ही क्या कर लेंगे ? राजिंदर बंसल को इग्नोर करने के साथ-साथ दिल्ली के नेताओं ने विजय शिरोहा को भी अनदेखा करने का एक और दुस्साहस किया । बस यही दुस्साहस उन्हें भारी पड़ा । राजिंदर बंसल ने विजय शिरोहा के साथ मिल कर - जिसकी आधार-भूमि वह पहले ही तैयार कर चुके थे - हरियाणा से आने वाले उम्मीदवार का फैसला हरियाणा के लोगों द्धारा तय करने का नारा उछाला । इसके बाद सुरेश जिंदल के लिए अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाना मुश्किल ही नहीं, असंभव हो गया । सुरेश जिंदल ने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु रोहतक में जो मीटिंग बुलाई उसमें रोहतक के अधिकतर लोगों के अनुपस्थित रहने का उन्हें जैसे ही आभास हुआ, उन्होंने उक्त मीटिंग स्थगित ही कर दी । सुरेश जिंदल के लिए बुरी बात यह हुई कि हरियाणा के जिन भी नेताओं से उन्होंने समर्थन को लेकर बात की, उनसे उन्हें यही ताना सुनने को मिला कि उम्मीदवार बनने के लिए तो हमसे सलाह करने की आपने जरूरत नहीं समझी, तो अब जिनकी सलाह से उम्मीदवार बने हो उनसे ही समर्थन मांगो ।
राजिंदर बंसल ने विजय शिरोहा के हाव-भाव देख/जान कर दरअसल बहुत पहले ही यह भाँप लिया था कि विजय शिरोहा जिन लोगों के साथ हैं, उन्हें बहुत दिनों तक झेल नहीं पाएंगे । राजिंदर बंसल ने जिस 'आधार' पर विजय शिरोहा को भाँपने/पहचानने में देर नहीं की, उस 'आधार' को समझने/पहचानने की लेकिन विजय शिरोहा के 'साथियों' ने कभी कोई जरूरत ही नहीं समझी और विजय शिरोहा की बातों को अव्यावहारिक बता कर उन्हें अनदेखा ही करते रहे । विजय शिरोहा के साथी नेताओं ने विजय शिरोहा को और उनके आदर्शों व लक्ष्यों को तो कोई तवज्जो नहीं ही दी, उनके राजनीतिक महत्व को भी कम करके आँका । विजय शिरोहा के प्रति विजय शिरोहा के साथी नेताओं की इसी लापरवाही को राजिंदर बंसल ने अपनी पूँजी बनाया और डिस्ट्रिक्ट के धुरंधर समझे जाने वाले नेताओं की साझी राजनीति के 'घोड़े' को न केवल थाम लिया, बल्कि उसे उल्टा लौटने पर भी मजबूर कर दिया । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का अभी का सच यही है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के सभी तुर्रमखां समझे जाने वाले नेताओं का समर्थन है, लेकिन फिर भी वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर आगे नहीं बढ़ रहे हैं क्योंकि विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल उनके समर्थन में नहीं हैं । अभी का नजारा यही है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार होने की इच्छा रखने वाले सभी संभावित उम्मीदवार विजय शिरोहा और राजिंदर बंसल से हरी झंडी मिलने के बाद ही आगे बढ़ने को तैयार होने की बात कर रहे हैं ।
विजय शिरोहा के बारे में पता नहीं कितने लोगों को यह जानकारी है कि वह कवितायेँ भी लिखते हैं । अपने फेसबुक अकाउंट पर अभी हाल में उन्होंने अपनी जिस कविता को पोस्ट किया है, उसे पढ़ कर उनके इरादों और उनकी जिद की थाह ली जा सकती है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में हाल ही में घटी घटनाओं को याद करते हुए इस कविता को पढ़िए और यह समझने की कोशिश कीजिये कि विजय शिरोहा के मन में आखिर चल क्या रहा है ? 

"चक्रव्यूह से निकलने की कोशिश में लगा मन,
मकसद की पतवार लेकर
भंवर से भरे झील में
चलाता रहा नाव
प्यास से अनजान
प्यास से विमुख
हर रात सोया झील में......
चाँद हंसा शरद पूर्णिमा का
अमृत की बूंद गिरी....
मन ने अलसाई आँखों को खोला
पतवार की पकड़ मजबूत हुई
रास्ते का ज्ञान मिला..................

मकसदों की रास थामे ज़िन्दगी यूँ मिलेगी
कब सोचा था !
मन मचला , बलखाया, इतराया
अमावस्या की आहट से बेखबर
मंजिल की ओर बढा...
घना अँधेरा जब छाया
मन अकुलाया , घबराया
उजाले का इंतज़ार किया...
हँसा मन बिलख कर -
चक्रव्यूह के घेरे में मकसद की पतवार लेकर
न थी कहीं कोई ज़िन्दगी,
न कोई हल...
चलना था, बस चलना था...

मन को थी एक आस
एक छोटा-सा विश्वास
गर परिवर्तन जीवन का नियम है
तो इतना तो तय है
अमावस्या को भी जाना है
चाँद को फिर आना है..."


Thursday, March 7, 2013

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन के चुनाव में चरनजोत सिंह नंदा के लोगों ने राजिंदर नारंग को तोड़ने पर सारा जोर लगाया

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन के चुनाव में चरनजोत सिंह नंदा खेमे के लोगों के लिए अपनी पहचान और साख खोने का खतरा पैदा हो गया है । इस खेमे के नेताओं के सामने समस्या यह पैदा हो गई है कि चेयरमैन के चुनाव का जो परिदृश्य अभी तक बना हुआ है उसमें इनके पास करने को कुछ है ही नहीं । खेमे से जुड़े नेता यूँ तो अपने आप को बड़ा नेता मानते/समझते हैं, लेकिन नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में वह खाली बैठे हुए हैं और एक-दूसरे का तथा दूसरों का मुँह ताकने के अलावा उनके पास कोई काम ही नहीं है । इस खेमे के एसबी सिंह, सुधीर कत्याल, सुनील मग्गू, राजेश शर्मा आदि नेताओं ने अपने-अपने तरीके से अपने आप को चुनावी परिदृश्य में लाने की कोशिशें तो बहुत की हैं लेकिन उनकी दाल गली नहीं है । मजे की बात यह है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सबसे ज्यादा सदस्य इसी खेमे के पास हैं, लेकिन फिर भी इनके लिए करने को कुछ बचा नहीं है ।
उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चुने गए सदस्यों में मनोज बंसल, हरित अग्रवाल और राज चावला को इसी खेमे का माना/देखा जाता है । इन तीन में से एक - राज चावला उस आठ सदस्यीय ग्रुप का हिस्सा हो गए हैं, जिसने चेयरमैन पद की राजनीति की संभावना के विकल्पों को सीमित कर दिया है । बाकी दो - मनोज बंसल और हरित अग्रवाल उन लोगों में रह गए जिन्हें सिर्फ दर्शक की भूमिका निभानी पड़ सकती है । चरनजोत सिंह नंदा खेमे के लोगों को विश्वास था कि उनके पास चूँकि तीन सदस्य हैं, इसलिए चेयरमैन चुनने की चाबी उनके पास ही रहेगी । उनका यह विश्वास तब भी बना रहा जब आठ सदस्यों ने एक ग्रुप बना लिया । यह विश्वास बने रहने का कारण यह उम्मीद बनी कि आठ सदस्यों का ग्रुप बन जरूर गया है, लेकिन यह ग्रुप चलेगा नहीं । आठ सदस्यों का ग्रुप लेकिन जब चलता हुआ दिखा तो इन्होंने ग्रुप को तोड़ने की कोशिशें शुरू कीं - इनकी कोशिशों से झटका लेकिन ग्रुप को नहीं, इन्हें ही लगा । पहला झटका राज चावला ने ही इन्हें दिया । सुधीर कत्याल का दावा था कि उन्होंने राज चावला को चुनाव जितवाने के लिए दिन-रात एक किया था, लिहाजा अब वह जैसे जहाँ बैठने को कहेंगे राज चावला वहीं बैठेंगे । राज चावला ने लेकिन उन्हें और उनकी राजनीति को कोई तवज्जो नहीं दी । राज चावला ने उन्हें साफ बता दिया कि उनके चक्कर में वह अपनी संभावना को धूमिल नहीं करेंगे ।
चरनजोत सिंह नंदा खेमे के नेताओं को दूसरा झटका राजिंदर नारंग और योगिता आनंद से मिला । आठ सदस्यीय खेमे को तोड़ने में लगे नेताओं ने दरअसल इन्हीं दोनों को खेमे की कमजोर कड़ियों के रूप में देखा/पहचाना था । आठ सदस्यीय खेमे के बाकी छह सदस्यों को चूँकि 'इस' या 'उस' नेता के साथ जोड़ा जाता है, इसलिए उनके टूटने की संभावना कम देखी गई - और इस कारण आठ सदस्यीय खेमे को तोड़ने में लगे लोगों ने सारा जोर राजिंदर नारंग और योगिता आनंद को तोड़ने पर लगाया । योगिता आनंद को चुनाव के दौरान चूँकि चरनजोत सिंह नंदा के समर्थक राजेश शर्मा ने तरह-तरह से बहुत परेशान किया था, इसलिए उनके ग्रुप से आसानी से अलग होने की ज्यादा उम्मीद नहीं थी - लिहाजा सारा जोर राजिंदर नारंग पर लगाया गया । राजिंदर नारंग को चूँकि आठ सदस्यीय ग्रुप के पीछे की मुख्य चालक शक्ति के रूप में देखा/पहचाना गया इसलिए भी उन्हें घेरने/तोड़ने की कोशिशों पर ज्यादा जोर दिया गया ।
राजिंदर नारंग को ऑफर दिया गया कि वह यदि 'उनके' साथ आ जायें तो चेयरमैन बन सकते हैं । उल्लेखनीय है कि आठ सदस्यीय ग्रुप बनाने और उसे सँभाले रखने का काम तो राजिंदर नारंग कर रहे हैं, लेकिन चेयरमैन पद के लिए उनका खुद का नाम ही नहीं है - लिहाजा उन्हें घेरने/तोड़ने की कोशिशों में लगे लोगों को लगा कि उनकी महत्वाकांक्षा को भड़का कर वह अपना काम बना सकते हैं । राजिंदर नारंग को यह पहचानने/समझने में कोई देर नहीं लगी कि जो लोग उन्हें चेयरमैन का पद ऑफर कर रहे हैं, वह सिर्फ उन्हें झाँसा दे रहे हैं, क्योंकि उनके पास ऐसा कुछ है ही नहीं जिसके भरोसे वह किसी को चेयरमैन बनवा सकें । आठ सदस्यीय ग्रुप के बाहर जो पाँच सदस्य हैं उनमें एक गोपाल कुमार केडिया चेयरमैन बनने के लिए ताल ठोंके बैठे हैं । बाकी चार सदस्यों में एक मनोज बंसल भी 'मौके' की ताक में हैं । जाहिर है कि राजिंदर नारंग और योगिता आनंद को तोड़ने की कोशिश करने वाले चरनजोत सिंह नंदा खेमे के लोगों के पास कुछ है नहीं - वह तो दरअसल अपने आप को परिदृश्य में बनाये रखने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं ।
चरनजोत सिंह नंदा खेमे के नेताओं को अभी तक कामयाबी मिली नहीं है - लेकिन उन्होंने अभी तक हार भी नहीं मानी है । वह अभी भी तोड़-फोड़ की अपनी कोशिशों में लगे हुए हैं । वह सिर्फ यह दिखाना चाहते हैं कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो कुछ भी हो रहा है, वह उनके किये से हो रहा है - हो चाहे जो भी । उनके निशाने पर अभी भी राजिंदर नारंग ही हैं । उनका खेल यह है कि राजिंदर नारंग के टूटने से या उनकी भूमिका के संदिग्ध होने से आठ सदस्यीय ग्रुप अपने आप ही बिखर जायेगा । ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि वह राजिंदर नारंग पर भारी पड़ते हैं या राजिंदर नारंग उन पर भारी पड़ते हैं ।

Wednesday, March 6, 2013

अशोक अग्रवाल और दीपक गुप्ता के दबाव में जेके गौड़ गाजियाबाद सेंट्रल के किसी सदस्य को डिस्ट्रिक्ट होली मिलन समारोह का चेयरमैन नहीं बना सके क्या ?

गाजियाबाद । रोटरी डिस्ट्रिक्ट होली मिलन समारोह पदों की बंदरबांट के आरोपों में फँस गया है । क्लब्स के अध्यक्षों तथा अन्य प्रमुख रोटेरियंस को अँधेरे में रख कर अशोक अग्रवाल और दीपक गुप्ता ने जिस षड्यंत्रपूर्ण तरीके से चेयरमैन के पद हथिया लिए हैं, उसके कारण लोगों के बीच भारी नाराजगी है । मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट होली मिलन समारोह की तैयारी के लिए मीटिंग्स तो की जा रही हैं, लेकिन सारी चीजें/बातें पहले से ही तय हो जा रही हैं और मीटिंग्स में तो बस फैसले सुनाये जाते हैं । पिछली मीटिंग में लोग जब मिले तो यह जान कर हैरान रह गए कि समारोह की आयोजन कमेटी के चेयरमैन अशोक अग्रवाल और दीपक गुप्ता बना दिए गए हैं । लोगों के बीच यह सहज सवाल पैदा हुआ और कुछेक ने यह पूछा भी कि इन्हें चेयरमैन किसने और कब बना दिया ? कुछेक लोगों ने यह भी कहा कि यदि इसी मनमाने तरीके से फैसले करने हैं तो फिर मीटिंग्स का नाटक करने की जरूरत भला क्या है ? इससे पिछली मीटिंग में समारोह स्थल को लेकर रोटरी क्लब नॉर्थ के अध्यक्ष सुधीर गोयल ने काफी हंगामा किया था ।
सुधीर गोयल इस बात से बुरी तरह खफा हुए कि रेड कारपेट में समारोह करने के नाम पर ज्यादा पैसा क्यों खर्च किया जा रहा है, जबकि उससे कम पैसे में उससे अच्छी, बड़ी और सुविधापूर्ण जगह में समारोह किया जा सकता है । सुधीर गोयल यह बताये जाने पर और भड़के कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल चाहते हैं कि समारोह रेड कारपेट में ही हो । यह सुन कर सुधीर गोयल ने कहा कि तो फिर रमेश अग्रवाल ही समारोह कर ले । सुधीर गोयल का कहना रहा कि होली मिलन समारोह के आयोजन की जिम्मेदारी जब गाजियाबाद के क्लब्स को दी गई है तो फिर उन्हीं को फैसला करने देना चाहिए और फैसले उन पर थोपे नहीं जाने चाहिए । लेकिन सुधीर गोयल की एक नहीं सुनी गई । लोगों के बीच चर्चा यह भी सुनी गई कि रेड कारपेट में ही समारोह आयोजित करने की जिद के पीछे मुख्य कारण रेड कारपेट में फँसे किसी के पैसे निकलवाना है । यानि होली मिलन समारोह के पीछे कई दूसरे दूसरे खेल भी चल रहे हैं । रेड कारपेट में ही समारोह करने की मनमानी के बाद अशोक अग्रवाल और दीपक गुप्ता को षड़यंत्र तरीके से चुपचाप चेयरमैन बना दिए जाने से लोग और भड़क गए हैं ।
बताया जाता है कि अशोक अग्रवाल और दीपक गुप्ता ने जेके गौड़ पर दबाव बना कर समारोह की तैयारी से जुड़े लोगों को अँधेरे में रख कर चेयरमैन का पद हथिया लिया है । इन दोनों ने रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के किसी सदस्य को चेयरमैन बनाने की जेके गौड़ की कोशिश को भी कामयाब नहीं होने दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में जेके गौड़ को रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल की जिस तरह से खुली मदद मिली थी, जिसके लिए वह कुछेक अवसरों पर उसके प्रमुख सदस्यों का सार्वजनिक रूप से खुल कर आभार भी व्यक्त कर चुके हैं - उसके बदले में वह गाजियाबाद सेंट्रल के योगेश गर्ग, सुभाष जैन, अतुल जैन और अतुल गोयल में से किसी एक को चेयरमैन बनाना चाहते थे, लेकिन अशोक अग्रवाल और दीपक गुप्ता ने उसमें अड़ंगा डाल दिया । अशोक अग्रवाल का विरोध तो स्वाभाविक था क्योंकि उनकी तो गाजियाबाद सेंट्रल के इन नेताओं से कभी भी बनी नहीं; दीपक गुप्ता ने इसलिए विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा कि गाजियाबाद सेंट्रल से किसी के चेयरमैन होने से उन्हें मनमानी करने का मौका नहीं मिलेगा । जेके गौड़ के रवैये पर भी लोगों को हैरानी हुई कि जो दीपक गुप्ता उम्मीदवार के रूप में हमेशा ही उनकी खिल्ली उड़ाते रहे, उन्हें उपेक्षित और लोगों के बीच अपमानित करने की कोशिश करते रहे उन दीपक गुप्ता को तो जेके गौड़ ने चेयरमैन बना दिया; लेकिन उनकी उम्मीदवारी का खुला समर्थन करने वाले गाजियाबाद सेंट्रल के लोगों में से किसी को चेयरमैन बनाने के मुद्दे पर वह अशोक अग्रवाल और दीपक गुप्ता के दबाव में आ गए ?
लोगों को लगता है कि जेके गौड़ तो सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं और इसीलिये वह अब इस बात को याद नहीं रखना चाहते हैं कि दीपक गुप्ता ने उनकी उम्मीदवारी में किस किस तरीके से रोड़े अटकाने और व्यक्तिगत रूप से उनकी खिल्ली उड़ाने का काम किया था - लेकिन अशोक अग्रवाल की मनमानियों के चलते वह असहाय से बने हुए हैं । दीपक गुप्ता के साथ आ जुड़ने से स्थिति और विकट हो गई है । लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता गाजियाबाद में होने वाले रोटरी के आयोजनों में उपस्थित होने के लिए भले ही समय न रखते हों लेकिन होली/दीवाली जैसे आयोजनों में मुखिया बनने के लिए तिकड़म लगाने और फिर उसकी तैयारी में मनमानी करने के लिए उनके पास समय की कोई कमी नहीं होती । इस वर्ष होने जा रहे होली मिलन समारोह की तैयारी में अशोक अग्रवाल और दीपक गुप्ता द्धारा षड्यंत्रपूर्ण तरीके से चेयरमैन के पद हथिया लेने से और मनमानी करने से जेके गौड़ की उम्मीदवारी के समर्थन में गाजियाबाद में जो एका बना था, उसके छिन्न-भिन्न होने का खतरा पैदा हो गया है ।