Thursday, August 30, 2012

नोमीनेटिंग कमेटी के लिए अचानक और आश्चर्यजनक रूप से प्रस्तुत हुई दमनजीत सिंह की उम्मीदवारी ने बड़े रोटरी नेताओं की सक्रियता का खेल उजागर किया

नई दिल्ली/मुंबई | दमनजीत सिंह ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को तो चक्कर में डाल ही दिया है, पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की राजनीति के लिए भी गंभीर संकट पैदा कर दिया है | दमनजीत सिंह राजनीति से कोसों दूर रहने वाले एक भले रोटेरियन के रूप में डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पहचाने जाते हैं; लेकिन 'राजनीति से कोसों दूर रहने वाले' दमनजीत सिंह की एक चाल ने डिस्ट्रिक्ट ही नहीं देश की रोटरी की राजनीति की चाल बिगाड़ दी है | चूँकि सच यही है कि दमनजीत सिंह राजनीति से कोसों दूर रहने वाले रोटेरियन हैं, इसलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए जैसे ही दमनजीत सिंह की उम्मीदवारी की प्रस्तुति की चर्चा चली, जूलियस सीजर के 'यू टू ब्रूटस' वाली स्टाइल में डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने जैसे एक-दूसरे से पूछा - 'दमनजीत सिंह भी !' एक तरफ सच यदि यह है कि दमनजीत सिंह राजनीति से कोसों दूर रहने वाले रोटेरियन हैं, तो दूसरी तरफ सच यह भी है कि कोयले की खदान में रहते हुए कोई कब तक अपने हाथ काले होने से बचा सकता है | सो, डिस्ट्रिक्ट के लोगों के सामने एक ऐसा सच सामने था जिसे स्वीकार करते हुए उन्हें चक्कर आ रहा था - इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए दमनजीत सिंह भी उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं | जो लोग सिर्फ दमनजीत सिंह को जानते हैं उन्हें इस जानकारी से आश्चर्य हो रहा था; लेकिन जो लोग मानते हैं कि हर 'घटना' के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है उन्होंने समझने की कोशिश की कि राजनीति से कोसों दूर रहने वाले दमनजीत सिंह के राजनीति के मैदान में उतरने के पीछे कारण आखिर क्या है ?
दमनजीत सिंह के निकटवर्तियों के हवाले से ऐसे लोगों ने जाना/पाया कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए प्रस्तुत होने वाली दमनजीत सिंह की उम्मीदवारी के पीछे भरत पांड्या और मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर अशोक महाजन हैं | यहाँ यह जानना महत्वपूर्ण है कि भरत पांड्या इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार हैं और यशपाल दास व अशोक महाजन ने उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने का बीड़ा उठाया हुआ है | डिस्ट्रिक्ट 3010 में अशोक महाजन का काम अभी कुछ समय पहले तक मुकेश अरनेजा देखते थे, लेकिन 'जहाँ देखी तवा परांत, वहीं बिताई सारी रात' जैसी अपनी फितरत के चलते मुकेश अरनेजा ने अब शेखर मेहता से अपने तार जोड़े हुए हैं; लिहाजा अशोक महाजन को डिस्ट्रिक्ट 3010 में अपनी राजनीति चलाने के लिए कोई और 'आधार' चाहिए | दमनजीत सिंह पर हाथ रख कर अशोक महाजन ने वास्तव में डिस्ट्रिक्ट 3010 में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है | अशोक महाजन और शेखर मेहता की निगाह रोटरी इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट पद पर है, और इसीलिए उन्हें प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट में 'अपने' आदमी चाहिए हैं | डिस्ट्रिक्ट 3010 की चौधराहट सुशील गुप्ता अपने पास रखना चाहते हैं - उनका राजनीतिक गठजोड़ शेखर मेहता के साथ तो बनता है, लेकिन अशोक महाजन के साथ नहीं बनता |
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव के जरिये डिस्ट्रिक्ट 3010 को इन तीनों ने अपनी अपनी प्रयोगशाला बना लिया है | सुशील गुप्ता अपने डिस्ट्रिक्ट की चौधराहट को अपने पास बनाये रखने के लिए रंजन ढींगरा पर दांव लगाना चाहते हैं; शेखर मेहता को लगता है कि मुकेश अरनेजा इस डिस्ट्रिक्ट में 'उनकी' राजनीति करेंगे; उन्हें दरअसल एक 'खाड़कू' किस्म का व्यक्ति चाहिए और वह मुकेश अरनेजा को इसके लिए बिलकुल फिट पाते हैं - इसलिए वह सुशील गुप्ता को मुकेश अरनेजा का समर्थन करने के लिए समझा रहे हैं | सुशील गुप्ता उन्हें मुकेश अरनेजा पर भरोसा करने से सावधान करने की कोशिश कर रहे हैं | कुछेक और लोगों ने भी शेखर मेहता को मुकेश अरनेजा जैसे अवसरवादी से बचने की सलाह दी है - शेखर मेहता को बताया/समझाया गया है कि मुकेश अरनेजा ने हर किसी को अपने स्वार्थ में इस्तेमाल ही किया है और हर किसी को धोखा ही दिया है | डिस्ट्रिक्ट 3010 में सुशील गुप्ता और शेखर मेहता के बीच इस मत-भिन्नता में आशोक महाजन ने अपनी दाल गलाने के लिए दमनजीत सिंह पर हाथ रखा है - उन्हें विश्वास है कि दमनजीत सिंह की साफ छवि उनका काम आसान बनायेगी | अशोक महाजन को विश्वास है कि दमनजीत सिंह को आगे करके वह डिस्ट्रिक्ट 3010 के उन नेताओं को भी अपने पाले में ले आयेंगे, जो राजा साबू के आदमी के रूप में जाने/पहचाने/समझे जाते हैं |
राजा साबू और कल्याण बनर्जी के बीच पिछले कुछ समय से जो 'सीजफायर' बना हुआ है, उसके चलते उम्मीद है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव बहुत दूर तक नहीं जायेगा और ज्यादा घमासान नहीं मचेगा और सारा खेल नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले तक ही चलेगा | इसलिए रोटरी की राजनीति में राजा साबू और कल्याण बनर्जी की छाया से निकल कर अपना अपना झंडा फहराने की तैयारी कर रहे सुशील गुप्ता, शेखर मेहता और अशोक महाजन ने अपनी सारी ताकत इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में लगा दी है | नोमीनेटिंग कमेटी का चुनाव इस कारण से भी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवारों की पसंद और भरोसा उन्हें चुनवाने/जितवाने का 'ठेका' लिए नेताओं की पसंद और भरोसे से अलग भी दिख रहा है | इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए भरत पांड्या यदि राजा साबू/अशोक महाजन ग्रुप के भरोसे हैं तो उन्हीं के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3140 - के गुलाम वहनवती को कल्याण बनर्जी ग्रुप की शह है | कल्याण बनर्जी ग्रुप से लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3060 के मनोज देसाई का पलड़ा भारी दिखता है, क्योंकि उनकी उम्मीदवारी में मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता दिलचस्पी लेते सुने गए हैं | डिस्ट्रिक्ट 3131 के विनय कुलकर्णी को भरोसा है कि राजा साबू/अशोक महाजन ग्रुप उन पर भी दांव लगा सकता है | डिस्ट्रिक्ट 3132 के राजीव प्रधान और उनके समर्थकों को उम्मीद है कि रोटरी के भले के लिए दोनों ग्रुप के नेता उन्हें ही इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवायेंगे | डिस्ट्रिक्ट 3040 के आलोक बिल्लोरे तथा डिस्ट्रिक्ट 3030 के मधु रुघवानी भी अपनी उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने की जुगत में लगे हैं, लेकिन अभी उन्हें अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों को आश्वस्त करने का काम ही करना पड़ रहा है |
दमनजीत सिंह की अचानक और आश्चर्यजनक रूप से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने नोमीनेटिंग कमेटी के लिए होने वाले चुनाव में पर्दे के पीछे चलने वाले खेल का एक संकेत भर दिया है | लेकिन यह ऐसा संकेत है जो बताता है कि नोमीनेटिंग कमेटी का चुनाव खासा दिलचस्प होने जा रहा है, क्योंकि इसमें बड़े नेताओं की सक्रिय भूमिका रहेगी |  
 

Wednesday, August 29, 2012

लोगों की उपस्थिति के मामले में जेके गौड़ से पीछे रहने के बावजूद, आलोक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की राजनीति के चुनावी मैदान के बीचोंबीच तो आ ही गए हैं

गाजियाबाद | अपने क्लब के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह के आयोजन के जरिये आलोक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में ऊँची छलांग लगाई है और कल तक जो लोग उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे थे, उन्हें भी उनकी उम्मीदवारी का नोटिस लेने पर मजबूर किया है | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में उम्मीदवार के क्लब का अधिष्ठापन समारोह उम्मीदवार के शक्ति-प्रदर्शन का एक जरिया हो गया है | हालाँकि यह शक्ति-प्रदर्शन चुनावी नतीजे पर कोई निर्णायक असर नहीं डालता है - पिछले रोटरी वर्ष का ही उदाहरण देखें : संजय खन्ना के क्लब का अधिष्ठापन समारोह महज खानापूरी की तरह हुआ था, जबकि रवि चौधरी ने अपने क्लब का अधिष्ठापन समारोह जोर-शोर से किया था | रवि चौधरी को लेकिन उसका कोई लाभ नहीं मिला था | इसके बावजूद उम्मीदवार के क्लब के अधिष्ठापन समारोह पर लोगों की नजर होती है - उससे चुनावी नतीजे पर निर्णायक असर भले ही न पड़ता हो, लेकिन वह 'हवा' बनाने का काम तो करता ही है | यही कारण रहा कि जेके गौड़ के क्लब का अधिष्ठापन समारोह जिस भव्यता और भारी भीड़ के साथ संपन्न हुआ था, उसके बाद जेके गौड़ की उम्मीदवारी का वजन काफी बढ़ गया | क्लब के अधिष्ठापन समारोह के जरिये जेके गौड़ द्धारा अपनी उम्मीदवारी के दावे को मजबूत बनाने/दिखाने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों की निगाह आलोक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह पर थी |
आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के संदर्भ में उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह की महत्ता इसलिए भी थी, क्योंकि इससे पहले तक उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा था - कोई भी क्या, वह खुद भी अपनी उम्मीदवारी के प्रति गंभीर नज़र नहीं आ रहे थे | कई कई दिनों तक वह लोगों को कहीं दिखाई ही नहीं दे रहे थे | एक उम्मीदवार के रूप में उनका कभी गर्म तो कभी नर्म रवैया लोगों को उनकी उम्मीदवारी के प्रति असमंजस में डाले हुए था | अपनी उम्मीदवारी को लेकर आलोक गुप्ता खुद बहुत संजीदा नहीं दिख रहे थे, और इसीलिए उनकी उम्मीदवारी को किसी गिनती में नहीं लिया जा रहा था | इसी कारण से उनके क्लब का अधिष्ठापन कार्यक्रम उनकी उम्मीदवारी को बनाये रखने के संदर्भ में उनके लिए आख़िरी मौका था | आख़िरी मौका इसलिए भी था क्योंकि उन्होंने देख/जान लिया था कि जेके गौड़ अपने क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम को लेकर दिन-रात एक किए हुए हैं | आलोक गुप्ता के क्लब के एक पदाधिकारी ने ही इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि जेके गौड़ के क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम की तैयारियों को देख/जान कर ही उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह को 'अच्छे तरीके' से करने की जरूरत को समझा गया था | जेके गौड़ से कमजोर न दिखने की होड़ में ही आलोक गुप्ता ने समारोह स्थल के रूप में कंट्री इन पर जोर दिया | आमंत्रितों की संख्या के मामले में हालाँकि आलोक गुप्ता ने जेके गौड़ से पहले ही 'हार' मान ली थी और अपने सलाहकारों को बता दिया था कि वह ज्यादा लोगों को नहीं बुलाएँगे | इस बाबत उन्होंने एक अच्छा सा तर्क भी दिया कि वह कोई लंगर नहीं लगा रहे हैं | आलोक गुप्ता ने ज्यादा से ज्यादा क्लब-अध्यक्षों की उपस्थिति को संभव बनाने पर जोर दिया | जो लोग दोनों समारोहों में उपस्थित रहे, उन सभी का कहना रहा कि क्लब-अध्यक्षों की उपस्थिति के मामले में भी आलोक गुप्ता को जेके गौड़ से पीछे ही रहना पड़ा | आलोक गुप्ता के यहाँ जितने क्लब-अध्यक्ष उपस्थित हुए, जेके गौड़ के यहाँ उससे अधिक क्लब-अध्यक्ष उपस्थित थे |
लोगों की उपस्थिति के मामले में जेके गौड़ से पीछे रहने के बावजूद, आलोक गुप्ता अपने कार्यक्रम के जरिये डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के बीच अपनी धाक ज़माने में कामयाब रहे | उनकी इस कामयाबी ने उनकी उम्मीदवारी को चुनावी मैदान के बीचोंबीच ला दिया है - जो इससे पहले तक मैदान के किनारे-किनारे पर थी | इस कामयाबी को बनाये रखने और इसे बढ़ाने की जो चुनौती आलोक गुप्ता के सामने है - उनसे निपटने की उनकी सीमा भी लेकिन उनके इस धमाकेदार आयोजन में ही सामने आई | उनके आयोजन और आयोजन की व्यवस्था की जोरशोर से तारीफ करने वाले लोगों ने आलोक गुप्ता की मुकेश अरनेजा की तारीफ में पढ़े गए कसीदे की लेकिन आलोचना भी की है | आलोक गुप्ता ने मुकेश अरनेजा को लेकर जो भारी-भारी शब्द कहे, उनके उन शब्दों ने आयोजन में शामिल गवर्नर किस्म के लोगों को तो एक तरह से चिढ़ाने का ही काम किया है और कई लोगों का साफ कहना रहा कि मुकेश अरनेजा के प्रति यह 'भक्ति' ही आलोक गुप्ता को भारी पड़ेगी | आलोक गुप्ता से हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में मुकेश अरनेजा की बदनामी को देखते/पहचानते हुए आलोक गुप्ता को यह समझना और तय करना ही होगा कि उन्हें मुकेश अरनेजा के साथ कितना और कहाँ 'दिखना' है | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति में मुकेश अरनेजा का सहयोग/समर्थन उनके काम आ सकता है, लेकिन केवल मुकेश अरनेजा के भरोसे रहना उनके लिए आत्मघाती होगा | पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव में रवि चौधरी को कई लोगों ने समझाया था कि अपना चुनाव बचाना है तो मुकेश अरनेजा और असित मित्तल से बचो, रवि चौधरी ने लेकिन किसी की नहीं सुनी और चुनावी हार का शिकार हुए | इस बार भी सुना जा रहा था कि मुकेश अरनेजा ने रवि चौधरी को अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया है - रवि चौधरी ने अपनी कुछ सक्रियता प्रदर्शित भी की थी; लेकिन जब उन्होंने देखा/पाया कि एक मुकेश अरनेजा के अलावा और कोई उनके समर्थन में नहीं आ रहा है तो उन्होंने घर बैठने में ही अपनी भलाई देखी | इस बार रवि चौधरी पिछले वर्ष वाली गलती नहीं दोहराना चाहते हैं और इसीलिए अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते दिख रहे हैं | रवि चौधरी के अनुभव से आलोक गुप्ता ने लेकिन लगता है कि कोई सबक नहीं लिया है | सबक नहीं लिया, इसका नतीजा यह हुआ है कि अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह के शानदार आयोजन से उन्होंने जो चमक पैदा की, उस चमक को मुकेश अरनेजा की तारीफ करके लेकिन उन्होंने खुद ही धुंधला भी बना दिया |

Saturday, August 25, 2012

पहले दाँव में ललित खन्ना से 'पिटने' के बाद, मुकेश अरनेजा ने ललित खन्ना पर उनके बिजनेस संबधी घपले को उजागर करके अब सीधी चोट की है

नई दिल्ली | मुकेश अरनेजा ने ललित खन्ना को निपटाने के लिए अब उनके एक बिजनेस संबंधी घपले को हथियार बना लिया है | मुकेश अरनेजा ने अपने कुछेक खास लोगों को जो किस्सा बताया है, उसके अनुसार ललित खन्ना को रोटरी इंटरनेशनल के एक प्रोजेक्ट के लिए वाटर पंप्स सप्लाई करने का एक बड़ा आर्डर मिला था, जिसे उन्होंने अपनी एक कंपनी एओवी इंटरनेशनल के जरिये पूरा किया था | ललित खन्ना ने अपनी उक्त कंपनी के जरिये जो वाटर पंप्स निर्यात किए थे, वह घटिया निकले - न सिर्फ घटिया निकले, बल्कि उनके इस्तेमाल के कारण लोगों की जान पर ही बन आई थी | उक्त वाटर पंप्स दरअसल रोटरी इंटरनेशनल के एक प्रोजेक्ट के तहत अफ्रीकी देशों में लगने थे, और उन्हें पानी की गुणवत्ता को भी नियंत्रित करना था तथा पानी को पीने योग्य बनाना था | ललित खन्ना ने लेकिन जो वाटर पंप्स निर्यात किए, वह अपनी गुणवत्ता पर खरे नहीं उतरे और उनके द्धारा सप्लाई किए गए वाटर पंप्स लोगों को जहरीला पानी देते हुए पाये गए | रोटरी इंटरनेशनल के उक्त प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों ने मामले को बहुत गंभीरता से लिया और - जैसा कि मुकेश अरनेजा का दावा है कि ललित खन्ना के खिलाफ कड़ी कार्यवाई करने की तैयारी की थी | मुकेश अरनेजा लोगों को बता रहे हैं कि उन्होंने ललित खन्ना को उस मामले से बचाया था | ललित खन्ना की कंपनी एओवी इंटरनेशनल द्धारा सप्लाई किए गए पंप्स की खामियों को लेकर तैयार की गई लिंडा मोरेला की रिपोर्ट तथा लिंडा मोरेला को ललित खन्ना की कंपनी के मार्केटिंग वाइस प्रेसीडेंट नरेश मेहता द्धारा सफाई में लिखे गए पत्र की प्रतिलिपियाँ 'रचनात्मक संकल्प' के पास मौजूद हैं |
ललित खन्ना के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अरनेजा इस किस्से को उछाल कर दरअसल ललित खन्ना पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं | उल्लेखनीय है कि इससे पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए ललित खन्ना की उम्मीदवारी का विरोध करके मुकेश अरनेजा ने ललित खन्ना पर दबाव बनाने की जो कोशिश की थी, वह बूमरेंग कर गई और उसने पलट कर मुकेश अरनेजा पर ही करारी चोट की | मुकेश अरनेजा को क्लब से निकालने की तैयारी की जाने लगी | मुकेश अरनेजा ने क्लब के पदाधिकारियों से माफी मांग कर क्लब से अपने निष्कासन को तो टलवा दिया, लेकिन अपनी इस फजीहत को वह पचा नहीं पाये हैं | ललित खन्ना को सबक सिखाने के लिए ही मुकेश अरनेजा ने रोटरी में किए उनके बिजनेस घपले को हथियार बना लिया है | मुकेश अरनेजा कह/बता रहे हैं कि उनके पास ललित खन्ना को ठिकाने लगाने के लिए बहुत से हथियार हैं - इसलिए ललित खन्ना और उनके समर्थक व शुभचिंतक उनके एक हथियार के फेल हो जाने पर ज्यादा खुश न हों | मुकेश अरनेजा लोगों को बता रहे हैं कि उनके पहले हमले को तो ललित खन्ना ने केके गुप्ता की मदद से झेल लिया है, लेकिन उनके अगले हमलों को झेल पाने में केके गुप्ता भी उनकी कोई मदद नहीं कर पायेंगे | मुकेश अरनेजा का दो टूक कहना है कि वह ललित खन्ना की ऐसी हालात कर देंगे कि ललित खन्ना के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बने रहना ही मुश्किल हो जायेगा और वह मैदान छोड़ने को मजबूर हो जायेगा | जो लोग ललित खन्ना को जानते/पहचानते हैं, उनका भी मानना और कहना है कि ललित खन्ना के बस की उम्मीदवार बने रहना है भी नहीं - मुकेश अरनेजा नाहक ही अपनी एनर्जी और समय बर्बाद कर रहे हैं | मुकेश अरनेजा को जानने वाले लोगों का कहना है कि मुकेश अरनेजा भी जानते हैं कि ललित खन्ना के बस की उम्मीदवार बनना नहीं है - लेकिन वह ऐसा कुछ करते रहना चाहते हैं जिससे लोगों को लगे कि ललित खन्ना का काम जो बिगड़ा है वह मुकेश अरनेजा ने बिगाड़ा है |
मुकेश अरनेजा को ललित खन्ना से बड़ी शिकायत यह हुई है कि ललित खन्ना उन्हें छोड़ कर केके गुप्ता के साथ जा मिले हैं | उल्लेखनीय है कि क्लब की राजनीति में पिछले कई वर्षों से ललित खन्ना की हैसियत और पहचान मुकेश अरनेजा के लिए काम करने वाले की थी | मुकेश अरनेजा उन्हें आगे बढ़ने - गवर्नर बनने के लिए प्रेरित तो करते रहे हैं, लेकिन ललित खन्ना जब सचमुच गवर्नर पद का चुनाव लड़ने को तैयार हो गए तब मुकेश अरनेजा पीछे हट गए | मुकेश अरनेजा के रवैये में धोखा देखने वाले ललित खन्ना ने तब केके गुप्ता का दामन पकड़ा | केके गुप्ता ने ललित खन्ना को जो राह पकड़वाई, ललित खन्ना को उस राह पर चलता देख मुकेश अरनेजा के तो हाथों के तोते उड़ गए | मुकेश अरनेजा के लिए अब किसी भी तरह ललित खन्ना की बढ़ती राह को रोकना जरूरी हो गया | मुकेश अरनेजा ने ललित खन्ना की बढ़ती राह को रोकने के लिए जिस तरह उनके बिजनेस संबंधी मामले को इस्तेमाल करना शुरू किया है - उससे उन लोगों को भी हैरानी हुई है जो मुकेश अरनेजा को पहले से ही एक घटिया सोच का व्यक्ति मानते थे | उनका कहना है कि उन्हें अंदाज़ नहीं था कि मुकेश अरनेजा उनकी सोच से भी ज्यादा घटिया साबित होंगे, और ललित खन्ना के खिलाफ इस हद तक जायेंगे | इस तरह की बातों से बेपरवाह, मुकेश अरनेजा ने ललित खन्ना की रोटरी में की गई बिजनेस संबधी बेईमानी को बताने/उछालने के जरिये यह दिखाना शुरू किया है कि ललित खन्ना के लिए रोटरी सिर्फ अपने बिजनेस को बढ़ाने का जरिया है |
मजे की बात यह है कि खुद ललित खन्ना का रवैया भी मुकेश अरनेजा की 'बात' को ही सही बताता है | ललित खन्ना क्लब की राजनीति में बहुत सक्रिय रहे हैं, लेकिन क्लब से आगे बढ़ने में उन्होंने कभी कोई दिलचस्पी नहीं ली | उनकी पत्नी नीलू खन्ना इनरव्हील क्लब में सक्रिय हैं और चेयरपरसन बनने की राह पर हैं | इनरव्हील में कई महिलाएँ सक्रिय हैं जिनके पति रोटरी में बिलकुल भी सक्रिय नहीं हैं | लेकिन नीलू खन्ना के साथ ऐसा नहीं है | उनके पति ललित खन्ना रोटरी में घमासान रूप में सक्रिय तो हैं - लेकिन कोई बड़ी जिम्मेदारी लेने से बचते रहे हैं | मुकेश अरनेजा अब जो बात ललित खन्ना के बारे में 'बता' रहे हैं, उससे लोगों को यही समझ में आ रहा है कि ललित खन्ना की रोटरी में सक्रियता अपने बिजनेस को बढ़ाने का जरिया भर है | पहले दाँव में ललित खन्ना से 'पिटने' के बाद, मुकेश अरनेजा ने ललित खन्ना पर उनके बिजनेस संबधी घपले को उजागर करके सीधी चोट की है | यह देखने की बात होगी कि ललित खन्ना इस चोट से मिले जख्म को कैसे भरते हैं और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी को बनाये रहते हैं या उससे पीछे हट जाते हैं ?  

Sunday, August 19, 2012

सुरेश चंदर ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी तो प्रस्तुत कर दी है, लेकिन क्या वह एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय हो पायेंगे और काम कर सकेंगे

फरीदाबाद | सुरेश चंदर को उम्मीद तो यह थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करते ही उन पर समर्थन की बारिश होने लगेगी, लेकिन वह यह जान/देख कर हैरान हुए हैं कि जिन लोगों से उन्हें खुले समर्थन और सहयोग की उम्मीद थी उन्हीं लोगों ने उनका खेल ख़राब करने/बिगाड़ने का काम शुरू कर दिया है | सुरेश चंदर को सबसे तगड़ा झटका तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल की तरफ से लगा है | रमेश अग्रवाल ने उन्हें चेतावनी के लहजे में बताया है कि वह उनके नेतृत्व वाली डिस्ट्रिक्ट एक्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य हैं, इसलिए वह उम्मीदवार हो ही नहीं सकते हैं | रमेश अग्रवाल की इस चेतावनी के अलावा, सुरेश चंदर को फरीदाबाद में ही ऐसे लोगों के विरोध की आहटें सुनाई देने लगी हैं, जिनके साथ उनके सिर्फ अच्छे संबध ही नहीं रहे हैं, बल्कि वह जिनके काम भी आते रहे हैं | ऐसे लोगों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में सुरेश चंदर दरअसल अपने प्रतिद्धंदी लगने लगे हैं और इसलिए उनके लिए जरूरी हो गया है कि वह सुरेश चंदर को आगे बढ़ने से तथा सफल होने से रोकें | उल्लेखनीय है कि अजय जोनेजा और पप्पू सरना अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार बनने की तैयारी करते बताये जाते हैं - लिहाजा इन्हें सुरेश चंदर की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी में अपने लिए खतरा दिखाई देने लगा है |
सुरेश चंदर की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने अजय जोनेजा और पप्पू सरना के लिए तीन तरह से खतरा पैदा किया है - सुरेश चंदर यदि सफल हो जाते हैं, तो इनके लिए अगले वर्ष क्या अगले तीन-चार वर्षों तक उम्मीदवारी प्रस्तुत करना मुश्किल ही होगा; सुरेश चंदर यदि सफल नहीं होते हैं तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच संदेश जायेगा कि फरीदाबाद के उम्मीदवार में दम नहीं होता है और यह यूँ ही उम्मीदवार बन जाते हैं, और इसलिए जब अगले वर्ष यह उम्मीदवार बनेंगे तो कोई भी इन्हें गंभीरता से नहीं लेगा |  तीसरा और सबसे बड़ा खतरा अजय जोनेजा और पप्पू सरना को उन बातों से लगा है जिनमें बताया गया है कि सुरेश चंदर दरअसल अगले वर्ष की उम्मीदवारी की तैयारी कर रहे हैं और इस बार तो वह बैठने के लिये 'खड़े' हुए हैं  | फरीदाबाद में कुछेक लोगों का मानना और कहना है कि सुरेश चंदर वास्तव में अगले वर्ष उम्मीदवार होने की तैयारी में थे, लेकिन उनकी समस्या यह थी कि अगले वर्ष अजय जोनेजा और पप्पू सरना भी उम्मीदवार होने की तैयारी में सुने जा रहे थे | ऐसे में, सुरेश चंदर के सामने चुनौती यह थी कि वह कैसे अपने आप को इनसे आगे दिखाएँ/करें | किसी ने समझाया होगा या सुरेश चंदर को खुद समझ में आया होगा कि वह यदि इसी वर्ष अपनी उम्मीदवारी पेश कर दें और फिर जीतते हुए दिखने वाले किसी उम्मीदवार के पक्ष में 'बैठ' जाएँ तो अगले वर्ष अजय जोनेजा और पप्पू सरना के मुकाबले उनका दावा मजबूत हो जायेगा | सुरेश चंदर ने किन्हीं किन्हीं लोगों से यह कहा भी है कि वह तो इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी नहीं प्रस्तुत करना चाहते थे, लेकिन उनके शुभचिंतकों ने उन पर दवाब डाल कर उनकी उम्मीदवारी को इसी वर्ष प्रस्तुत करवा दिया है |
सुरेश चंदर ने अपनी उम्मीदवारी तो प्रस्तुत कर दी है, लेकिन अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों को - अपने ही लोगों को आश्वस्त करना उनके लिए मुश्किल हो रहा है | हर कोई उनसे यही पूछ रहा है कि उन्हें यदि सचमुच इसी वर्ष उम्मीदवार होना था, और वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर वास्तव में गंभीर हैं तो अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने में उन्होंने इतनी देर क्यों लगा दी ? सुरेश चंदर चूँकि इसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रहे हैं, इसलिए इसी चर्चा को बल मिल रहा है कि सुरेश चंदर इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी को लेकर बिलकुल भी गंभीर नहीं हैं और वास्तव में उन्होंने अगले वर्ष प्रस्तुत की जाने वाली अपनी उम्मीदवारी की तैयारी के तहत अभी अपनी उम्मीदवारी का शगूफा खड़ा किया है | हालाँकि कुछेक लोगों का मानना और कहना है कि सुरेश चंदर की उम्मीदवारी के पीछे किसी रणनीति और या षड्यंत्र को देखने की जरूरत नहीं है; सुरेश चंदर ऐसा कुछ नहीं कर सकते - उन्होंने जो कुछ किया है वह सिर्फ उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता और नासमझी का नतीजा है | फरीदाबाद के कुछेक नेताओं का ही कहना है कि सुरेश चंदर पिछले तीन-चार वर्षों में चूँकि प्रत्येक गवर्नर के साथ रहे हैं और तवज्जो पाते रहे हैं; रमेश अग्रवाल तो चूँकि उनकी खुलकर तारीफ करते रहे हैं इसलिए उन्हें गलतफहमी हो गई कि वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे तो हर कोई उनका समर्थन व सहयोग करने को खड़ा हो जायेगा | पर अब जब वह उम्मीदवार हो गए हैं तो हर कोई उनकी कमियों और कमजोरियों की पिटारी खोल कर बैठ गया है | सुरेश चंदर की क्षमताओं पर सवालिया निशान लगाते हुए सबसे गंभीर आरोप यह सुनने को मिला है कि पिछले रोटरी वर्ष में वह डिस्ट्रिक्ट चेयरमैन रायला थे, लेकिन रायला वह कर नहीं सके | लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की गुडबुक में आना एक बात है, लेकिन पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह करना बिलकुल दूसरी बात है और मुश्किल काम है | इसी तर्ज पर, सुरेश चंदर के नजदीकियों का ही मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उन्होंने अपनी उम्मीदवारी तो प्रस्तुत कर दी है, लेकिन एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय हो पाना और काम कर पाना उनके लिए शायद ही संभव हो पायेगा |   

Wednesday, August 15, 2012

भावना दोषी की हमेशा ही खिलाफत करते रहना पंकज जैन के लिए मुसीबत बना, और प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए वरदान

मुंबई | भावना दोषी के चुनावी मैदान छोड़ने से पंकज जैन को जो फायदा होने की उम्मीद बनी थी, वह ललित गांधी की उम्मीदवारी की प्रस्तुति से मुसीबत में पड़ गई है - जिसका फायदा प्रफुल्ल छाजेड़ को मिलने का कयास लगाया जा रहा है | उल्लेखनीय है कि गौतम दोषी के टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में जेल जाने के बाद जब भावना दोषी के इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव से बाहर होने के संकेत मिलने लगे थे तब पंकज जैन के मन में लड्डू फूट रहे थे | इसका कारण यह था कि सेंट्रल काउंसिल के लिए होने वाली चुनावी दौड़ से भावना दोषी के बाहर होने में पंकज जैन अपना सीधा फायदा देख रहे थे | भावना दोषी और पंकज जैन चूँकि बंसीधर मेहता की फर्म में रहे हैं, इसलिए पंकज जैन को उम्मीद रही कि भावना दोषी के उम्मीदवार न होने से बंसीधर मेहता की फर्म के भावना दोषी समर्थक वोट अब उन्हें मिल सकेंगे | भावना दोषी के समर्थकों के वोटों के भरोसे अपनी चुनावी स्थिति में सुधार की उम्मीद कर रहे पंकज जैन को लेकिन उस समय तगड़ा झटका लगा, जब उन्हें पता चला कि ललित गांधी इस बार सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं | ललित गांधी कई वर्ष पहले वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में रह चुके हैं | ललित गांधी की उम्मीदवारी के कारण पंकज जैन के सामने अपने जैन वोटों के कटने/बिदकने का खतरा पैदा हुआ | पंकज जैन ने हालाँकि ललित गांधी की स्थिति को कमजोर बताने/दिखाने के जरिये यह स्थापित करने की कोशिश की कि ललित गांधी के लिए सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीतना आसान नहीं होगा - लेकिन वह खुद को आश्वस्त नहीं कर सके कि ललित गांधी की उम्मीदवारी उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचायेगी | सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले कई लोगों का मानना और कहना है कि ललित गांधी का क्या होगा, उन्हें चुनाव में सफलता मिलेगी या नहीं मिलेगी - यह तो समय बताएगा, लेकिन जो एक बात अभी से बताई जा सकती है वह यह कि ललित गांधी की उम्मीदवारी से पंकज जैन को जैन वोटों का काफी नुकसान होगा |
पंकज जैन अभी यह समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि भावना दोषी के उम्मीदवार न बनने से उन्हें बंसीधर मेहता की फर्म के भावना दोषी समर्थकों के कितने क्या वोट मिलेंगे और उन मिल सकने वाले वोटों से ललित गांधी की उम्मीदवारी के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई हो सकेगी या नहीं - कि उन्होंने पाया कि बंसीधर मेहता की फर्म के जिन वोटों पर वह निगाह लगाये हुए हैं, उनका झुकाव तो प्रफुल्ल छाजेड़ की तरफ है | दरअसल प्रफुल्ल छाजेड़ भी बंसीधर मेहता की फर्म में रहे हैं और उनका भी प्रशिक्षण भावना दोषी व पंकज जैन की तरह बंसीधर मेहता की फर्म में ही हुआ है | बंसीधर मेहता की फर्म के और उनसे जुड़े वोटों पर भावना दोषी का अच्छा कब्ज़ा रहा है | पंकज जैन ने पिछले चुनावों में इन वोटों में सेंध लगाने की हालाँकि काफी कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली | भावना दोषी के उम्मीदवार न होने की स्थिति में पंकज जैन को उक्त वोट मिलने की पूरी-पूरी उम्मीद थी, लेकिन उनकी वह उम्मीद भी पूरी होती हुई नहीं दिख रही है | बंसीधर मेहता की फर्म के और उनसे जुड़े लोगों की पंकज जैन से इस बात को लेकर खासी नाराजगी है कि पंकज जैन ने हमेशा ही भावना दोषी के वाइस प्रेसीडेंट बनने के प्रयासों में रोड़ा अटकाने का काम किया है | भावना दोषी के समर्थक व शुभचिंतक भावना दोषी के प्रेसीडेंट न बनने के लिए काफी हद तक पंकज जैन को भी जिम्मेदार मानते/ठहराते हैं | इसीलिए वह अब - भावना दोषी की उम्मीदवारी की अनुपस्थिति में पंकज जैन को ओबलाइज़ करने के लिए, उन्हें वोट देने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं नज़र आ रहे हैं |
प्रफुल्ल छाजेड़ को इसका फायदा मिलता हुआ दिख रहा है | बंसीधर मेहता की फर्म के और उनसे जुड़े लोग दरअसल 'घर' के व्यक्ति के साथ ही रहना चाहते हैं और प्रफुल्ल छाजेड़ भी चूँकि उनके साथ लगातार संपर्क बनाये रहे हैं इसलिए भावना दोषी की उम्मीदवारी की अनुपस्थिति में उनके प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ जुड़ने की संभावना देखी जा रही है | बंसीधर मेहता की फर्म के और उनसे जुड़े लोगों के बीच पंकज जैन की तुलना में प्रफुल्ल छाजेड़ का पलड़ा लोगों को यदि भारी नज़र आ रहा है, तो इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रफुल्ल छाजेड़ हमेशा ही भावना दोषी के साथ खड़े दिखे हैं | इंडियन मर्चेंट्स चैम्बर में पिछले वर्ष जब भावना दोषी अध्यक्ष थीं, तब भी प्रफुल्ल छाजेड़ ने को-ऑपटेड चेयरमैन के रूप में उनके साथ मिलकर काम किया था | प्रफुल्ल छाजेड़ ने अपने व्यवहार और अपनी सक्रियता के भरोसे अपनी पहचान और अपने संबंध तो बनाये ही, भावना दोषी के प्रति सहयोग और सम्मान का उनका जो रवैया रहा - उसके चलते भी भावना दोषी के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच उनकी पैठ बनी है | बंसीधर मेहता की फर्म के तथा उनसे जुड़े भावना दोषी समर्थकों के बीच पंकज जैन की तुलना में प्रफुल्ल छाजेड़ का पलड़ा यदि भारी दिख रहा है तो इसका कारण यही है कि पंकज जैन ने हमेशा ही भावना दोषी की खिलाफत की और उनसे आगे निकलने/दिखने की कोशिश की | भावना दोषी समर्थकों ने इसे पसंद नहीं किया है और इसीलिए वह पंकज जैन से दूरी बनाये रखना चाहते हैं | उनकी यह चाहत ही प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए वरदान बनी है | कई लोगों का लेकिन मानना/कहना है कि इस 'वरदान' को बनाये रखने तथा हासिल करने के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ को लगातार प्रयास भी करते रहने पड़ेंगे |

Monday, August 13, 2012

रमेश अग्रवाल को लेकर अपने रवैये में 180 डिग्री का कट मार कर आलोक गुप्ता ने राजनीतिक चतुराई का परिचय दिया है

गाजियाबाद/नई दिल्ली | रमेश अग्रवाल को लेकर आलोक गुप्ता के रवैये में 180 डिग्री का जो फर्क दिखा है, उसने सभी को हैरान तो किया ही है - साथ ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में नए समीकरण बनने के संकेत भी दिए हैं | पहले, रमेश अग्रवाल को लेकर आलोक गुप्ता के रवैये में दिखे 180 डिग्री के फर्क के बारे में जान लें : करीब आठ माह पहले रोटरी क्लब वैशाली द्धारा आयोजित हुए डिस्ट्रिक्ट टेबल टेनिस टूर्नामेंट में रमेश अग्रवाल का क्लब धोखाधड़ी और बेईमानी करता हुआ पकड़ा गया था और वहाँ मौजूद हर कोई धोखाधड़ी व बेईमानी करने के लिए रमेश अग्रवाल की थू-थू कर रहा था, तब एक अकेले आलोक गुप्ता वहाँ रमेश अग्रवाल की वकालत और उनका बचाव कर रहे थे | आलोक गुप्ता ने वहाँ मौजूद हर किसी को यह बताने की हर संभव कोशिश की थी कि रमेश अग्रवाल के क्लब पर धोखाधड़ी और बेईमानी करने का जो आरोप है, उसके लिए रमेश अग्रवाल किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं | अपनी इस कोशिश में आलोक गुप्ता कई लोगों से सीधे सीधे भिड़ भी गए थे और कुछेक लोगों के साथ उनकी खासी गर्मागर्मी भी हुई थी | वहाँ मौजूद हर किसी ने इस बात पर गौर किया था कि वहाँ एक अकेले आलोक गुप्ता ही रमेश अग्रवाल की वकालत कर रहे थे - और बहुत मुखर व आक्रामक होकर कर रहे थे | वहाँ जो कोई भी रमेश अग्रवाल को निशाना बना रहा था, आलोक गुप्ता उससे आमने-सामने होकर भिड़ जा रहे थे | लेकिन, अभी दो दिन पहले आयोजित हुए रोटरी क्लब गाजियाबाद साऊथ एण्ड के अधिष्ठापन समारोह में रमणीक तलवार जब रमेश अग्रवाल के खिलाफ आग उगल रहे थे तब हर कोई यह देख कर हैरान हो रहा था कि आलोक गुप्ता न सिर्फ उस आग में हाथ सेंक रहे थे, बल्कि उस आग से उपजी गर्मी का पूरा-पूरा मजा ले रहे थे | रमेश अग्रवाल के खिलाफ कही जा रही बातों का आलोक गुप्ता मजा तो ले ही रहे थे, वह रमणीक तलवार का समर्थन-सा करते हुए भी और उनके नजदीक दिखने की कोशिश भी करते हुए नज़र आ रहे थे | रमेश अग्रवाल के खिलाफ हो रहीं बातों पर आलोक गुप्ता के रवैये में आये इस शीर्षासनी फर्क को जिन लोगों ने भी पहचाना - उन्हें हैरानी हुई |
रमेश अग्रवाल के खिलाफ हो रही बातों पर आलोक गुप्ता के रवैये में आये इस 180 डिग्री के फर्क के जिन लोगों ने लेकिन राजनीतिक भावार्थ समझने की कोशिश की - उन्होंने इसे आलोक गुप्ता की राजनीतिक चतुराई से जोड़ कर देखा/पहचाना है | उनका मानना और कहना है कि आलोक गुप्ता ने लोगों के मूड को भाँपते/पहचानते हुए उसी के अनुरूप अपने रवैये को संयोजित व व्यवस्थित करना शुरू कर दिया है | उनके रवैये में दिखे बदलाव के लिए रमेश अग्रवाल के रवैये को भी जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है | आलोक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में आलोक गुप्ता को रमेश अग्रवाल से मदद मिलने की बहुत उम्मीद थी - यह कहना बल्कि ज्यादा सही होगा कि रमेश अग्रवाल की मदद के भरोसे ही आलोक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया | रमेश अग्रवाल और आलोक गुप्ता के रिश्ते को कई लोग राम-लक्ष्मण वाले संबंध के रूप में भी देखते/बताते रहे हैं | इसी संबंध के भरोसे आलोक गुप्ता ने यह आकलन किया और लोगों को बताया भी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का उनके पास इसी वर्ष मौका है | कुछ रमेश अग्रवाल के साथ अपने संबंधों के चलते और कुछ रमेश अग्रवाल के साथ अपनी नजदीकी लोगों को दिखाने तथा कुछ रमेश अग्रवाल के और नजदीक होने के उपक्रम में ही आलोक गुप्ता आठ माह पहले आयोजित हुए डिस्ट्रिक्ट टेबल टेनिस टूर्नामेंट में हर उस व्यक्ति से जा भिड़े थे जो रमेश अग्रवाल की खिलाफत कर रहा था | लेकिन पिछले आठ माह में यमुना और हिंडन में बहुत सा पानी बह गया है और आलोक गुप्ता समझ गए हैं कि रमेश अग्रवाल ने उनके साथ संबधों का कोई मान नहीं रखा है और अब जब उन्हें मदद की जरूरत है तो पूरी तरह से मुँह फेर लिया है | आलोक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, आलोक गुप्ता ने यह भी पाया कि रमेश अग्रवाल उन्हें मूर्ख बना रहे है और उन्हें सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं | आलोक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, शुरू में आलोक गुप्ता यह सुन/जान कर काफी उत्साहित और खुश होते थे कि रमेश अग्रवाल लगातार जेके गौड़ की बुराई करते रहते थे; लेकिन जल्दी ही आलोक गुप्ता ने पाया कि रमेश अग्रवाल उनसे बात करते हुए तो जेके गौड़ की बुराई करते हैं, लेकिन जेके गौड़ के काम भी आते रहते हैं | अच्छे-अच्छे क्लब्स पर अधिष्ठापन समारोह में ही जीओवी करा लेने तथा उनके अलावा अन्य गवर्नर्स को न बुलाने और या न बुलवाने के लिए दबाव डालने वाले रमेश अग्रवाल आश्चर्यजनक रूप से जेके गौड़ के क्लब पर काफी मेहरबान नज़र आये | जेके गौड़ के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में - जो कि वास्तव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में जेके गौड़ का शक्तिप्रदर्शन था - प्रोटोकॉल की जमकर धज्जियाँ उड़ीं, लेकिन प्रोटोकॉल की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले रमेश अग्रवाल चुपचाप बने रहे | इससे आलोक गुप्ता को पक्का विश्वास हो गया कि रमेश अग्रवाल उन्हें सिर्फ धोखा दे रहे हैं, और जेके गौड़ के साथ मिले हुए हैं |
इसके साथ ही, लोगों से मिलते-जुलते हुए आलोक गुप्ता ने पाया कि डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल की खिलाफत बढ़ रही है और कोई किसी कारण से तो कोई किसी कारण से रमेश अग्रवाल के खिलाफ हो रहा है | ऐसे में, संभवतः आलोक गुप्ता ने यह रणनीति बनाई हो कि उन्हें जब रमेश अग्रवाल की मदद नहीं मिल रही है तो उन्हें रमेश अग्रवाल के विरोधियों के बीच अपने लिए समर्थन जुटाने का प्रयास करना चाहिए | रोटरी क्लब गाजियाबाद साऊथ एण्ड के आयोजन में रमणीक तलवार की रमेश अग्रवाल विरोधी बातों पर मजा लेने और रमणीक तलवार के साथ दिखने में उनके इसी प्रयास को पहचाना जा रहा है | यहाँ यह याद करना भी प्रासंगिक होगा कि पिछले चुनाव में रवि चौधरी के अभियान की हवा निकालने की शुरुआत रमणीक तलवार ने ही की थी | इसके अलावा, संभवतः पिछले चुनाव का वह अनुभव भी आलोक गुप्ता को याद आया होगा - जिसके तहत वह जानते हैं कि रवि चौधरी को कई लोगों ने समझाया था कि असित मित्तल से दूरी बना कर रहो, अन्यथा असित मित्तल की करतूतें तुम्हें ले डूबेंगी; लेकिन रवि चौधरी ने इस समझाइश पर गौर नहीं किया और नतीजा भुगता | आलोक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, आलोक गुप्ता भी समझ रहे हैं कि रमेश अग्रवाल की करतूतें उस उम्मीदवार का बैंड बजा देंगी जो उनके समर्थन पर निर्भर रहेगा |
यह मानना/कहना तो जल्दबाजी करना होगा कि आलोक गुप्ता ने रमेश अग्रवाल पर निर्भर रहने का इरादा पूरी तरह छोड़ दिया है - लेकिन आठ माह पहले डिस्ट्रिक्ट टेबल टेनिस टूर्नामेंट में रमेश अग्रवाल को निशाना बनाने वालों पर टूट पड़ने वाले आलोक गुप्ता को अब रोटरी क्लब गाजियाबाद साउथ एण्ड के आयोजन में रमणीक तलवार की रमेश अग्रवाल विरोधी बातों पर मजा लेते और रमणीक तलवार के साथ नजदीकी बनाने की कोशिश करते देख कर यह जरूर समझा जा रहा है कि आलोक गुप्ता ने अब रमेश अग्रवाल के विरोधियों के बीच पैठ बनाने का प्रयास करना शुरू कर दिया है | आलोक गुप्ता के इस प्रयास को उनकी राजनीतिक चतुराई के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है | रमेश अग्रवाल को लेकर आलोक गुप्ता के रवैये में 180 डिग्री का जो फर्क दिखा है, उससे लग रहा है कि आलोक गुप्ता वह गलती नहीं करना चाहते हैं जो रवि चौधरी ने की - और यह देख/जान कर तो बिल्कुल भी नहीं कि रमेश अग्रवाल उन्हें धोखा देने पर पूरी तरह आमादा हैं |

Friday, August 10, 2012

मुकेश अरनेजा को क्लब से निकालने की तैयारी; क्योंकि हर किसी के साथ धोखाधड़ी करने की अपनी करतूत को उन्होंने अपने ही क्लब के 'अपने ही लोगों' के साथ आजमाना शुरू कर दिया है

नई दिल्ली | मुकेश अरनेजा को अपनी होशियारी खासी महंगी पड़ी है और उनके सामने क्लब से निकाले जाने का खतरा पैदा हो गया है | हाथ-पैर जोड़ कर और खुशामद करके अपना काम निकालने का हुनर भी चूँकि उन्हें खूब आता है, जिसका उपयोग करके फ़िलहाल तो उन्होंने क्लब से अपने निष्कासन की कार्रवाई को टलवा दिया है - लेकिन जो कुछ हुआ है उससे यह साफ हो गया है कि अब उनके अपने समझे जाने वाले लोग भी यह कहने/बताने लगे हैं कि मुकेश अरनेजा एक धोखेबाज व्यक्ति हैं और किसी भी रूप में विश्वास करने योग्य नहीं हैं | यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि दो वर्ष पहले भी मुकेश अरनेजा को अपने क्लब में फजीहत का सामना करना पड़ा था जब क्लब के पदाधिकारियों ने सीओएल के लिए उनकी उम्मीदवारी के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था | उस समय हुई फजीहत के लिए मुकेश अरनेजा की खुद की करतूतें ही जिम्मेदार थीं | उस समय भी मुकेश अरनेजा ने क्लब के सदस्यों की खुशामद करके तथा उनके हाथ-पैर जोड़ कर अपना काम हालाँकि बना लिया था | इस बार भी, अपने 'हुनर' से उन्होंने क्लब से निकाले जाने की कार्रवाई को तो प्रभावी नहीं होने दिया - लेकिन इस बार का मामला इसलिए बड़ा और गंभीर है, क्योंकि इस बार वह 'अपने ही' लोगों के निशाने पर आ गए हैं |
मामला मुकेश अरनेजा के 'खाड़कू' के रूप में पहचाने जाने वाले ललित खन्ना की उम्मीदवारी का है | पिछले कुछेक वर्षों से ललित खन्ना क्लब में उस गिरोह के प्रमुख सदस्य रहे हैं जो मुकेश अरनेजा के कहने पर किसी को भी बेइज्जत करने और किसी को भी उखाड़ने के लिए तैयार रहता रहा है | अभी कुछ दिन पहले तक, मुकेश अरनेजा के 'दुश्मन' को ललित खन्ना अपना दुश्मन माना करते थे | पर अब मुकेश अरनेजा ने ललित खन्ना के साथ भी दुश्मनों जैसा व्यवहार कर दिया है | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में ललित खन्ना यह देख/जान कर हैरान/परेशान हैं कि मुकेश अरनेजा ही उनकी उम्मीदवारी के सबसे बड़े दुश्मन बने हुए हैं | मजे की बात यह है कि ललित खन्ना को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए मुकेश अरनेजा ने ही 'तैयार' किया था | ललित खन्ना लेकिन जब सचमुच उम्मीदवार बन गए, तब मुकेश अरनेजा के तेवर बदल गए और वह ललित खन्ना की राह में रोड़े बिछाने के काम में लग गए | ललित खन्ना को अब समझ में आया कि मुकेश अरनेजा सचमुच में यह नहीं चाहते थे कि वह उम्मीदवार बनें - मुकेश अरनेजा ने यह सोच कर उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए प्रेरित करने का काम किया कि ललित खन्ना के बस की उम्मीदवार बनना है ही नहीं | लेकिन जब ललित खन्ना सचमुच उम्मीदवार बन गए, तब मुकेश अरनेजा उन हरकतों पर उतर आये जो कि उनके चरित्र की असली पहचान हैं |
मुकेश अरनेजा पहले तो ललित खन्ना को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में शामिल करने में जुटे, और जब ललित खन्ना सचमुच उम्मीदवार बन गए तो उन्हें दौड़ से बाहर करने में लग गए | इस काम में उन्होंने पहले तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल की मदद ली - ताकि 'सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे |' मुकेश अरनेजा के उकसाने पर रमेश अग्रवाल ने ललित खन्ना को चेताया कि चूँकि डिस्ट्रिक्ट टीम में शामिल होने की संस्तुति देने वाले फार्म में उन्होंने उम्मीदवार न बनने का वायदा किया था, इसलिए उनकी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं हो सकती है | रमेश अग्रवाल ने चेताया, तो मुकेश अरनेजा ने ललित खन्ना को डराया और हतोत्साहित किया कि नियमानुसार वह उम्मीदवार नहीं हो सकते है; कि रमेश नियमों का पालन करने के मामले में बड़ा पक्का है; वह उन्हें उम्मीदवार नहीं बनने देगा | रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के इस रवैये से निपटने के लिए ललित खन्ना ने जो किया, मुकेश अरनेजा को उसकी कतई उम्मीद नहीं थी | ललित खन्ना ने मदद के लिए केके गुप्ता का दरवाजा खटखटाया | ललित खन्ना चूँकि पिछले वर्षों में मुकेश अरनेजा के साथ मिल कर केके गुप्ता की खिलाफत ही करते रहे हैं, इसलिए मुकेश अरनेजा ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ललित खन्ना उनकी 'पिटाई' से बचने के लिए केके गुप्ता की शरण में जा पहुँचेंगे | केके गुप्ता ने नफासतभरा ऐसा खेल किया, जिसके सामने रमेश अग्रवाल की कानूनी समझ और मुकेश अरनेजा की तिकड़म चारों खाने चित्त जा पड़ी | केके गुप्ता ने इंटरनेशनल डायरेक्टर यश पाल दास को सारी बात बताई और उनसे पूछा कि ललित खन्ना को उम्मीदवार बनने से रोका जा सकता है क्या ? यश पाल दास ने लिखित में उन्हें बताया कि ललित खन्ना को उम्मीदवार बनने से नहीं रोका जा सकता है |
रमेश अग्रवाल की मार्फ़त ललित खन्ना की राह में रोड़े बिछाने की मुकेश अरनेजा की तरकीब फेल हुई तो वह अपनी 'औकात' में आ गए | ललित खन्ना की उम्मीदवारी को कमजोर बनाने/दिखाने के लिए मुकेश अरनेजा ने दूसरे उम्मीदवारों के प्रति अपना समर्थन जताना शुरू किया | अपनी इस हरकत से मुकेश अरनेजा ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह संदेश देने की कोशिश की कि ललित खन्ना को तो अपने क्लब का ही समर्थन प्राप्त नहीं है | मुकेश अरनेजा की इस हरकत ने ललित खन्ना का क्या नुकसान किया है, यह तो अभी सामने नहीं आया है; लेकिन मुकेश अरनेजा की इस हरकत ने उन्हें जरूर मुश्किल में डाल दिया है | क्लब के सदस्य इस बात को लेकर बहुत नाराज़ हैं कि मुकेश अरनेजा क्लब के उम्मीदवार की बजाये किसी भी दूसरे उम्मीदवार का समर्थन कैसे कर सकते हैं ? क्लब के कुछेक लोगों ने अध्यक्ष से गुहार लगाई है कि मुकेश अरनेजा यदि अपने हरकतों से बाज नहीं आता है तो इसे क्लब से निकालो | मुकेश अरनेजा के लिए संकट की बात यह हुई है कि यह गुहार लगाने वाले वह लोग हैं जो कल तक उनकी करतूतों में उनके खास सहयोगी हुआ करते थे | क्लब के अध्यक्ष राकेश मल्होत्रा हालाँकि रहे तो मुकेश अरनेजा के गिरोह के सदस्य हैं, लेकिन ललित खन्ना के साथ मुकेश अरनेजा ने जैसा जो खेल खेला उसके चलते वह भी मुकेश अरनेजा के खिलाफ हो गए हैं | उन्होंने भी मुकेश अरनेजा को क्लब से निकालने की गुहार के प्रति सहमति जताई | क्लब में अपने खिलाफ बने माहौल को भाँपने में मुकेश अरनेजा ने कोई गलती नहीं की; उन्होंने समझ लिया कि ललित खन्ना के साथ उन्होंने जो खेल किया है उसके कारण उनका क्लब में बने रह पाना मुश्किल ही होगा | यह समझ लेने के बाद मुकेश अरनेजा ने तेजी से रंग बदला और क्लब के लोगों की खुशामद में जुट गए | क्लब के अध्यक्ष सहित दूसरे लोगों को उन्होंने समझाने की कोशिश की है कि वह ललित खन्ना की उम्मीदवारी के खिलाफ कैसे हो सकते हैं ? कि वह तो बस अपनी राजनीतिक मजबूरियों के कारण कभी किसी को तो कभी किसी को समर्थन का झांसा देते रहते हैं; कि क्लब के लोगों को दूसरे लोग बतायें कि वह 'इसका' या 'उसका' समर्थन कर रहे हैं तो विश्वास न करें; आदि-इत्यादि | मुकेश अरनेजा ने क्लब के पदाधिकारियों की खुशामद की तथा उनके हाथ-पैर जोड़े तो क्लब के पदाधिकारियों ने उन्हें दो-टूक चेतावनी दी कि उन्हें इससे मतलब नहीं है कि वह किसके साथ क्या धोखा कर रहे हैं, लेकिन इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि उन्होंने यदि ललित खन्ना के साथ धोखा करने की कोशिश की तो फिर अपने लिए दूसरा क्लब देख लें |
मुकेश अरनेजा ने अपने क्लब के पदाधिकारियों की खुशामद करके अभी तो अपने को क्लब से निष्कासित होने से बचा लिया है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि उन्होंने अपने क्लब के पदाधिकारियों से ललित खन्ना के साथ धोखा न करने का जो वायदा किया है, वह सच्चा वायदा है या वह उनकी धोखाधड़ी का एक हथकंडा भर है |

Sunday, August 5, 2012

नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में मचे घमासान ने सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत दुर्गा दास अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए मुसीबत पैदा की

नई दिल्ली | इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन दुर्गा दास अग्रवाल को अपनी ही टीम के प्रमुख पदाधिकारियों से जो चुनौती मिली है, उसके चलते नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का कामकाज तो ठप्प हो ही गया है, दुर्गा दास अग्रवाल की सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी का अभियान भी मुसीबत में फँस गया है | इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में ऐसा ड्रामा पहले शायद ही कभी हुआ होगा | उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन दुर्गा दास अग्रवाल पर काउंसिल के पैसों के दुरूपयोग का आरोप लगाते हुए काउंसिल के ट्रेजरार दीन दयाल अग्रवाल ने कुछेक भुगतान करने से इंकार कर दिया | दुर्गा दास अग्रवाल ने दीन दयाल अग्रवाल से मिली इस चुनौती से निपटने के लिए लेकिन जो फार्मूला अपनाया, वह उन्हें उल्टा पड़ गया | दुर्गा दास अग्रवाल ने ट्रेजरार के अधिकार वाइस चेयरमैन गोपाल केडिया को भी यह सोच कर दे दिए कि दीन दयाल अग्रवाल जो भुगतान करने से इंकार करेंगे, वह भुगतान गोपाल केडिया से करवा लेंगे | काउंसिल के ट्रेजरार दीन दयाल अग्रवाल को तो दुर्गा दास अग्रवाल का यह फार्मूला नागवार गुजरा ही, काउंसिल के सचिव प्रमोद कुमार माहेश्वरी ने भी चेयरमैन के रूप में दुर्गा दास अग्रवाल द्धारा लिए गए इस फैसले का विरोध किया | प्रमोद कुमार माहेश्वरी और दीन दयाल अग्रवाल ने दुर्गा दास अग्रवाल के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया | अदालत तक बात पहुँचने की जानकारी मिलते ही दुर्गा दास अग्रवाल दबाव में आ गए और उन्होंने गोपाल केडिया को ट्रेजरार के दिए अधिकार वापस ले लिए | दुर्गा दास अग्रवाल ने ऐसा करके मामले को और बढ़ने व गंभीर रूप लेने से तो बचा लिया, लेकिन तब तक प्रमोद कुमार माहेश्वरी और दीन दयाल अग्रवाल लोगों के बीच उन्हें कठघरे में खड़े करने में कामयाब हो चुके थे | प्रमोद कुमार माहेश्वरी और दीन दयाल अग्रवाल का आरोप रहा कि दुर्गा दास अग्रवाल काउंसिल के पैसों का मनमाना दुरूपयोग कर रहे हैं और सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के लिए अभियान चलाने में रीजनल काउंसिल के पैसों का इस्तेमाल कर रहे हैं | इनका आरोप रहा कि खर्चों के हिसाब-किताब के बारे में काउंसिल के दूसरे पदाधिकारियों से पूछना/बताना तो दूर, खर्चों के बारे में की गई पूछताछों व आपत्तियों का भी जबाव देना उन्होंने जरूरी नहीं समझा | इन्होंने आरोप लगाया कि दुर्गा दास अग्रवाल द्धारा किए जा रहे अनाप-शनाप खर्चों को नियंत्रित करने के लिए ट्रेजरार के रूप में दीन दयाल अग्रवाल ने कुछेक भुगतान रोक दिए तो दुर्गा दास अग्रवाल ने गैरकानूनी तरीके से गोपाल केडिया को भी ट्रेजरार के अधिकार दे दिए, ताकि वह काउंसिल के पैसे का मनमाना इस्तेमाल करते रह सकें | दुर्गा दास अग्रवाल ने इस तरह के आरोपों को बेबुनियाद बताया और दावा किया कि दीन दयाल अग्रवाल और प्रमोद कुमार माहेश्वरी ने अपनी मनमानी और दादागिरी चलाने के लिए अपने पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह करने से इंकार किया और एक तरह से काउंसिल को बंधक बनाने की कोशिश की है | दुर्गा दास अग्रवाल के नजदीकियों ने इस सारे झमेले के लिए सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को जिम्मेदार ठहराया | उन्होंने आरोप लगाया कि प्रमोद माहेश्वरी और दीन दयाल अग्रवाल दरअसल सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के हाथों की कठपुतली बन गए हैं और उनके ही इशारों पर रीजनल काउंसिल की गतिविधियों को बाधित कर रहे हैं | दुर्गा दास अग्रवाल के नजदीकियों का कहना रहा कि चूँकि दुर्गा दास अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार हो गए हैं, जो कि सेंट्रल काउंसिल के मौजूदा सदस्यों को पसंद नहीं आ रहा है - और इसीलिए उन्होंने दीन दयाल अग्रवाल और प्रमोद कुमार माहेश्वरी के जरिये दुर्गा दास अग्रवाल के लिए मुसीबतें खड़ी करवा दीं | दुर्गा दास अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि दुर्गा दास अग्रवाल के लिए मुसीबतें खड़ी करवाने वाले लोगों ने लेकिन यह नहीं सोचा कि वह जो कर रहे हैं, उसके चलते रीजनल काउंसिल का मजाक बन गया है | रीजनल काउंसिल का जो मजाक बना है, उसके लिए कई लोग दुर्गा दास अग्रवाल की महत्वाकांक्षा को भी जिम्मेदार ठहराते हैं | आरोप है कि रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने के लिए दुर्गा दास अग्रवाल ने सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों का समर्थन जुटाने हेतु उनके साथ कई तरह के समझौते किए - लेकिन चेयरमैन बनते ही वह समझौतों की बातों से मुकर गए और अपनी मनमानी करने लगे | आरोपों में जिन समझौतों का जिक्र सुनने में आया है उनमें प्रमुख बात यही थी कि दुर्गा दास अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार नहीं बनेंगे और चेयरमैन के रूप में जो काम करेंगे सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों के साथ सलाह मशविरा कर करेंगे | दुर्गा दास अग्रवाल ने लेकिन चेयरमैन बनते ही सबसे पहला काम यह किया कि सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की और उसके बाद - उन पर गंभीर आरोप यह रहा कि रीजनल काउंसिल के कार्यक्रमों को उन्होंने अपने चुनाव अभियान की तरह संयोजित करना शुरू किया | कुछेक लोगों का मानना और कहना है कि दीन दयाल अग्रवाल और प्रमोद कुमार माहेश्वरी इसलिए दुर्गा दास अग्रवाल के खिलाफ नहीं हुए कि इन्होंने सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों के साथ किन्हीं कथित समझौतों का उल्लंघन किया, बल्कि इसलिए खिलाफ हुए क्योंकि इन्होंने पाया कि दुर्गा दास अग्रवाल ने काउंसिल में अपना गुट बना लिया और इन्हें पूरी तरह इग्नोर कर रहे हैं | इन्हीं कुछेक लोगों का मानना और कहना है कि दुर्गा दास अग्रवाल चाहते तो खटपट शुरू होते और सामने आते ही हालात को संभाल सकते थे, पर उन्हें शायद उम्मीद नहीं होगी कि मामला इतना बढ़ जायेगा | गोपाल केडिया को ट्रेजरार के अधिकार देकर तो उन्होंने ब्लंडर कर दिया | दुर्गा दास अग्रवाल के इस कदम से दीन दयाल अग्रवाल और प्रमोद कुमार माहेश्वरी के आरोपों को खासा बल मिला - जिस कारण दुर्गा दास अग्रवाल के लिए हालात प्रतिकूल बने | दुर्गा दास अग्रवाल ने इस बात को तुरंत समझ भी लिया - यही कारण है कि उन्होंने गोपाल केडिया को ट्रेजरार के दिए अधिकार वापस लेने में भी देर नहीं लगाई | लेकिन तब तक उनके बारे में नकारात्मक माहौल बन चुका था | दुर्गा दास अग्रवाल के नजदीकियों तक का मानना और कहना है कि जो हुआ है उससे दुर्गा दास अग्रवाल की ही फजीहत हुई है और सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत की गई उनकी उम्मीदवारी पर ग्रहण लग गया है | दुर्गा दास अग्रवाल की फजीहत में सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों का कोई हाथ हो या न हो, किंतु उसमें उन्हें फायदा होता हुआ जरूर दिख रहा है | सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों के अलावा, सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार प्रस्तुत करने वाले आरके गौड़ ने भी राहत महसूस की होगी | दरअसल सेंट्रल काउंसिल के लिए होने वाले चुनाव में आरके गौड़ को सबसे नजदीकी चुनौती दुर्गा दास अग्रवाल से ही मिलने का खतरा पैदा हो गया था | दोनों के समर्थन आधार की एक समान भौगोलिक स्थिति के कारण ही नहीं, दोस्तों की लगभग एक-सी सूची के कारण भी आरके गौड़ को दुर्गा दास अग्रवाल की उम्मीदवारी से सीधी चुनौती मिलने की आशंका व्यक्त की जा रही थी | लेकिन नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में मचे घमासान में दुर्गा दास अग्रवाल की जैसी जो फजीहत हुई है, उसके चलते आरके गौड़ को राहत मिलने की उम्मीद बनी है |