गाजियाबाद | अपने क्लब के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह के आयोजन के
जरिये आलोक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में ऊँची
छलांग लगाई है और कल तक जो लोग उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे
थे, उन्हें भी उनकी उम्मीदवारी का नोटिस लेने पर मजबूर किया है |
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में उम्मीदवार के क्लब का
अधिष्ठापन समारोह उम्मीदवार के शक्ति-प्रदर्शन का एक जरिया हो गया है |
हालाँकि यह शक्ति-प्रदर्शन चुनावी नतीजे पर कोई निर्णायक असर नहीं डालता है
- पिछले रोटरी वर्ष का ही उदाहरण देखें : संजय खन्ना के क्लब का अधिष्ठापन
समारोह महज खानापूरी की तरह हुआ था, जबकि रवि चौधरी ने अपने क्लब का
अधिष्ठापन समारोह जोर-शोर से किया था | रवि चौधरी को लेकिन उसका कोई लाभ
नहीं मिला था | इसके बावजूद उम्मीदवार के क्लब के अधिष्ठापन समारोह पर
लोगों की नजर होती है - उससे चुनावी नतीजे पर निर्णायक असर भले ही न पड़ता
हो, लेकिन वह 'हवा' बनाने का काम तो करता ही है | यही कारण रहा कि जेके गौड़
के क्लब का अधिष्ठापन समारोह जिस भव्यता और भारी भीड़ के साथ संपन्न हुआ
था, उसके बाद जेके गौड़ की उम्मीदवारी का वजन काफी बढ़ गया | क्लब के
अधिष्ठापन समारोह के जरिये जेके गौड़ द्धारा अपनी उम्मीदवारी के दावे को
मजबूत बनाने/दिखाने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति में
दिलचस्पी रखने वाले लोगों की निगाह आलोक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन
समारोह पर थी |
आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के संदर्भ में उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह की महत्ता इसलिए भी थी, क्योंकि इससे पहले तक उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा था - कोई भी क्या, वह खुद भी अपनी उम्मीदवारी के प्रति गंभीर नज़र नहीं आ रहे थे | कई कई दिनों तक वह लोगों को कहीं दिखाई ही नहीं दे रहे थे | एक उम्मीदवार के रूप में उनका कभी गर्म तो कभी नर्म रवैया लोगों को उनकी उम्मीदवारी के प्रति असमंजस में डाले हुए था | अपनी उम्मीदवारी को लेकर आलोक गुप्ता खुद बहुत संजीदा नहीं दिख रहे थे, और इसीलिए उनकी उम्मीदवारी को किसी गिनती में नहीं लिया जा रहा था | इसी कारण से उनके क्लब का अधिष्ठापन कार्यक्रम उनकी उम्मीदवारी को बनाये रखने के संदर्भ में उनके लिए आख़िरी मौका था | आख़िरी मौका इसलिए भी था क्योंकि उन्होंने देख/जान लिया था कि जेके गौड़ अपने क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम को लेकर दिन-रात एक किए हुए हैं | आलोक गुप्ता के क्लब के एक पदाधिकारी ने ही इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि जेके गौड़ के क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम की तैयारियों को देख/जान कर ही उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह को 'अच्छे तरीके' से करने की जरूरत को समझा गया था | जेके गौड़ से कमजोर न दिखने की होड़ में ही आलोक गुप्ता ने समारोह स्थल के रूप में कंट्री इन पर जोर दिया | आमंत्रितों की संख्या के मामले में हालाँकि आलोक गुप्ता ने जेके गौड़ से पहले ही 'हार' मान ली थी और अपने सलाहकारों को बता दिया था कि वह ज्यादा लोगों को नहीं बुलाएँगे | इस बाबत उन्होंने एक अच्छा सा तर्क भी दिया कि वह कोई लंगर नहीं लगा रहे हैं | आलोक गुप्ता ने ज्यादा से ज्यादा क्लब-अध्यक्षों की उपस्थिति को संभव बनाने पर जोर दिया | जो लोग दोनों समारोहों में उपस्थित रहे, उन सभी का कहना रहा कि क्लब-अध्यक्षों की उपस्थिति के मामले में भी आलोक गुप्ता को जेके गौड़ से पीछे ही रहना पड़ा | आलोक गुप्ता के यहाँ जितने क्लब-अध्यक्ष उपस्थित हुए, जेके गौड़ के यहाँ उससे अधिक क्लब-अध्यक्ष उपस्थित थे |
लोगों की उपस्थिति के मामले में जेके गौड़ से पीछे रहने के बावजूद, आलोक गुप्ता अपने कार्यक्रम के जरिये डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के बीच अपनी धाक ज़माने में कामयाब रहे | उनकी इस कामयाबी ने उनकी उम्मीदवारी को चुनावी मैदान के बीचोंबीच ला दिया है - जो इससे पहले तक मैदान के किनारे-किनारे पर थी | इस कामयाबी को बनाये रखने और इसे बढ़ाने की जो चुनौती आलोक गुप्ता के सामने है - उनसे निपटने की उनकी सीमा भी लेकिन उनके इस धमाकेदार आयोजन में ही सामने आई | उनके आयोजन और आयोजन की व्यवस्था की जोरशोर से तारीफ करने वाले लोगों ने आलोक गुप्ता की मुकेश अरनेजा की तारीफ में पढ़े गए कसीदे की लेकिन आलोचना भी की है | आलोक गुप्ता ने मुकेश अरनेजा को लेकर जो भारी-भारी शब्द कहे, उनके उन शब्दों ने आयोजन में शामिल गवर्नर किस्म के लोगों को तो एक तरह से चिढ़ाने का ही काम किया है और कई लोगों का साफ कहना रहा कि मुकेश अरनेजा के प्रति यह 'भक्ति' ही आलोक गुप्ता को भारी पड़ेगी | आलोक गुप्ता से हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में मुकेश अरनेजा की बदनामी को देखते/पहचानते हुए आलोक गुप्ता को यह समझना और तय करना ही होगा कि उन्हें मुकेश अरनेजा के साथ कितना और कहाँ 'दिखना' है | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति में मुकेश अरनेजा का सहयोग/समर्थन उनके काम आ सकता है, लेकिन केवल मुकेश अरनेजा के भरोसे रहना उनके लिए आत्मघाती होगा | पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव में रवि चौधरी को कई लोगों ने समझाया था कि अपना चुनाव बचाना है तो मुकेश अरनेजा और असित मित्तल से बचो, रवि चौधरी ने लेकिन किसी की नहीं सुनी और चुनावी हार का शिकार हुए | इस बार भी सुना जा रहा था कि मुकेश अरनेजा ने रवि चौधरी को अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया है - रवि चौधरी ने अपनी कुछ सक्रियता प्रदर्शित भी की थी; लेकिन जब उन्होंने देखा/पाया कि एक मुकेश अरनेजा के अलावा और कोई उनके समर्थन में नहीं आ रहा है तो उन्होंने घर बैठने में ही अपनी भलाई देखी | इस बार रवि चौधरी पिछले वर्ष वाली गलती नहीं दोहराना चाहते हैं और इसीलिए अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते दिख रहे हैं | रवि चौधरी के अनुभव से आलोक गुप्ता ने लेकिन लगता है कि कोई सबक नहीं लिया है | सबक नहीं लिया, इसका नतीजा यह हुआ है कि अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह के शानदार आयोजन से उन्होंने जो चमक पैदा की, उस चमक को मुकेश अरनेजा की तारीफ करके लेकिन उन्होंने खुद ही धुंधला भी बना दिया |
आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के संदर्भ में उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह की महत्ता इसलिए भी थी, क्योंकि इससे पहले तक उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा था - कोई भी क्या, वह खुद भी अपनी उम्मीदवारी के प्रति गंभीर नज़र नहीं आ रहे थे | कई कई दिनों तक वह लोगों को कहीं दिखाई ही नहीं दे रहे थे | एक उम्मीदवार के रूप में उनका कभी गर्म तो कभी नर्म रवैया लोगों को उनकी उम्मीदवारी के प्रति असमंजस में डाले हुए था | अपनी उम्मीदवारी को लेकर आलोक गुप्ता खुद बहुत संजीदा नहीं दिख रहे थे, और इसीलिए उनकी उम्मीदवारी को किसी गिनती में नहीं लिया जा रहा था | इसी कारण से उनके क्लब का अधिष्ठापन कार्यक्रम उनकी उम्मीदवारी को बनाये रखने के संदर्भ में उनके लिए आख़िरी मौका था | आख़िरी मौका इसलिए भी था क्योंकि उन्होंने देख/जान लिया था कि जेके गौड़ अपने क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम को लेकर दिन-रात एक किए हुए हैं | आलोक गुप्ता के क्लब के एक पदाधिकारी ने ही इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि जेके गौड़ के क्लब के अधिष्ठापन कार्यक्रम की तैयारियों को देख/जान कर ही उनके क्लब के अधिष्ठापन समारोह को 'अच्छे तरीके' से करने की जरूरत को समझा गया था | जेके गौड़ से कमजोर न दिखने की होड़ में ही आलोक गुप्ता ने समारोह स्थल के रूप में कंट्री इन पर जोर दिया | आमंत्रितों की संख्या के मामले में हालाँकि आलोक गुप्ता ने जेके गौड़ से पहले ही 'हार' मान ली थी और अपने सलाहकारों को बता दिया था कि वह ज्यादा लोगों को नहीं बुलाएँगे | इस बाबत उन्होंने एक अच्छा सा तर्क भी दिया कि वह कोई लंगर नहीं लगा रहे हैं | आलोक गुप्ता ने ज्यादा से ज्यादा क्लब-अध्यक्षों की उपस्थिति को संभव बनाने पर जोर दिया | जो लोग दोनों समारोहों में उपस्थित रहे, उन सभी का कहना रहा कि क्लब-अध्यक्षों की उपस्थिति के मामले में भी आलोक गुप्ता को जेके गौड़ से पीछे ही रहना पड़ा | आलोक गुप्ता के यहाँ जितने क्लब-अध्यक्ष उपस्थित हुए, जेके गौड़ के यहाँ उससे अधिक क्लब-अध्यक्ष उपस्थित थे |
लोगों की उपस्थिति के मामले में जेके गौड़ से पीछे रहने के बावजूद, आलोक गुप्ता अपने कार्यक्रम के जरिये डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के बीच अपनी धाक ज़माने में कामयाब रहे | उनकी इस कामयाबी ने उनकी उम्मीदवारी को चुनावी मैदान के बीचोंबीच ला दिया है - जो इससे पहले तक मैदान के किनारे-किनारे पर थी | इस कामयाबी को बनाये रखने और इसे बढ़ाने की जो चुनौती आलोक गुप्ता के सामने है - उनसे निपटने की उनकी सीमा भी लेकिन उनके इस धमाकेदार आयोजन में ही सामने आई | उनके आयोजन और आयोजन की व्यवस्था की जोरशोर से तारीफ करने वाले लोगों ने आलोक गुप्ता की मुकेश अरनेजा की तारीफ में पढ़े गए कसीदे की लेकिन आलोचना भी की है | आलोक गुप्ता ने मुकेश अरनेजा को लेकर जो भारी-भारी शब्द कहे, उनके उन शब्दों ने आयोजन में शामिल गवर्नर किस्म के लोगों को तो एक तरह से चिढ़ाने का ही काम किया है और कई लोगों का साफ कहना रहा कि मुकेश अरनेजा के प्रति यह 'भक्ति' ही आलोक गुप्ता को भारी पड़ेगी | आलोक गुप्ता से हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में मुकेश अरनेजा की बदनामी को देखते/पहचानते हुए आलोक गुप्ता को यह समझना और तय करना ही होगा कि उन्हें मुकेश अरनेजा के साथ कितना और कहाँ 'दिखना' है | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति में मुकेश अरनेजा का सहयोग/समर्थन उनके काम आ सकता है, लेकिन केवल मुकेश अरनेजा के भरोसे रहना उनके लिए आत्मघाती होगा | पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव में रवि चौधरी को कई लोगों ने समझाया था कि अपना चुनाव बचाना है तो मुकेश अरनेजा और असित मित्तल से बचो, रवि चौधरी ने लेकिन किसी की नहीं सुनी और चुनावी हार का शिकार हुए | इस बार भी सुना जा रहा था कि मुकेश अरनेजा ने रवि चौधरी को अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया है - रवि चौधरी ने अपनी कुछ सक्रियता प्रदर्शित भी की थी; लेकिन जब उन्होंने देखा/पाया कि एक मुकेश अरनेजा के अलावा और कोई उनके समर्थन में नहीं आ रहा है तो उन्होंने घर बैठने में ही अपनी भलाई देखी | इस बार रवि चौधरी पिछले वर्ष वाली गलती नहीं दोहराना चाहते हैं और इसीलिए अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते दिख रहे हैं | रवि चौधरी के अनुभव से आलोक गुप्ता ने लेकिन लगता है कि कोई सबक नहीं लिया है | सबक नहीं लिया, इसका नतीजा यह हुआ है कि अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह के शानदार आयोजन से उन्होंने जो चमक पैदा की, उस चमक को मुकेश अरनेजा की तारीफ करके लेकिन उन्होंने खुद ही धुंधला भी बना दिया |