Wednesday, October 21, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में कुरुक्षेत्र में छप रही डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी की क्वालिटी को लेकर जितेंद्र ढींगरा का अपेक्षित सहयोग न मिलने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज के खफा होने के चक्कर में सारी तैयारी पूरी हो जाने के बावजूद डायरेक्टरी का आना लटक गया है 

पानीपत । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी की छपाई की क्वालिटी तथा कीमत को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज और निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा के बीच एक बार फिर 'शीतयुद्ध' जैसे हालात बन गए हैं, जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी का प्रकाशन लटक गया है । रमेश बजाज को प्रिंटर की तरफ से तैयार डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के जो कुछेक सैम्पल मिले, रमेश बजाज उनसे संतुष्ट नहीं दिखे और इसलिए उन्होंने प्रिंटर को डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी का काम आगे बढ़ाने से रोक दिया है । रमेश बजाज की शिकायत है कि प्रिंटर ने उन्हें जिस क्वालिटी का भरोसा दिया था, तैयार सैम्पल में वह क्वालिटी नहीं है - इसलिए प्रिंटर या तो वह उस क्वालिटी का काम दे जिसका उसने भरोसा दिया था, और या रेट कम करे । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी कुरुक्षेत्र में छप रही है, और प्रिंटर के साथ रमेश बजाज का तालमेल जितेंद्र ढींगरा ने करवाया था । इस नाते, रमेश बजाज चाहते हैं कि प्रिंटर से उनकी जो माँग है उसे जितेंद्र ढींगरा पूरा करवाएँ । जितेंद्र ढींगरा लेकिन इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहते हैं । जितेंद्र ढींगरा के नजदीकियों का कहना है कि रमेश बजाज नाहक ही बात का बतंगड़ बना रहे हैं, और ऐसा करके वह वास्तव में प्रिंटर को तय हुई रकम से कम रकम देना चाहते हैं । उधर रमेश बजाज की तरफ से शिकायत सुनी जा रही है कि जितेंद्र ढींगरा उनकी बातों व समस्या पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहे हैं और इस तरह वह प्रिंटर का पक्ष ले रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि रमेश बजाज ने कुरुक्षेत्र के प्रिंटर से डायरेक्टरी छपवाने का फैसला इस 'भरोसे' के साथ किया था कि उन्हें पिछले वर्ष जैसी डायरेक्टरी करीब आधी कीमत में मिल जायेगी । यह बात कहने/सुनने में अच्छी लगती है, लेकिन व्यावहारिक रूप में ऐसा होता नहीं है । पिछले वर्ष जितेंद्र ढींगरा ने दिल्ली के एक नामी प्रिंटर से डायरेक्टरी छपवाई थी । वह प्रिंटर नामी है ही इसलिए क्योंकि उसके पास बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर है, और अनुभवी लोगों की टीम है । प्रिंटिंग का काम ऊपर ऊपर से एक जैसा ही लगता है, लेकिन छोटी छोटी बातों से उसमें बड़ा बड़ा फर्क पड़ जाता है, और वह दिखता भी है । लोगों का कहना है कि रमेश बजाज को कॉमनसेंस से इतना तो समझना ही चाहिए था कि दिल्ली के एक नामी प्रिंटर के काम में और कुरुक्षेत्र के प्रिंटर के काम में कुछ अंतर तो होगा ही, तथा तब तो और भी जबकि कुरुक्षेत्र वाला प्रिंटर करीब आधी कीमत पर डायरेक्टरी छाप रहा है । लोगों को यह रमेश बजाज का 'भोलापन' ही लग रहा है कि उन्होंने इस दावे पर सहज ही विश्वास कर लिया कि उन्हें आधी कीमत में पिछले वर्ष जैसी ही डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी छप कर सचमुच मिल जायेगी ।  
रमेश बजाज को डर दरअसल यह है कि लोगों को जब उनकी डायरेक्टरी पिछले वर्ष की डायरेक्टरी से 'हल्की' लगेगी, तो यह आरोप लगेंगे कि डायरेक्टरी में उन्होंने पैसे बचा लिए हैं । डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने में जबरदस्तियाँ करने को लेकर उनकी पहले से ही बदनामी है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच यह चर्चा पहले से ही है कि डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने में जितेंद्र ढींगरा ने तो कभी किसी पर कोई दबाव नहीं बनाया था, जबकि रमेश बजाज ने विज्ञापन जुटाने को ही अपना उद्देश्य बना लिया है । ऐसे में, जब लोगों को रमेश बजाज की डायरेक्टरी मिलेगी और वह 'हल्की' लगेगी, तो यह बात तो उठेगी ही कि जितेंद्र ढींगरा ने विज्ञापनों के लिए जबरदस्ती किए बिना जब एक अच्छी डायरेक्टरी छाप ली - तो खूब खूब विज्ञापनों को जुटाने के बावजूद रमेश बजाज के लिए उनके जैसी डायरेक्टरी छापना क्यों संभव नहीं हुआ ? इन्हीं बातों से बचने के लिए रमेश बजाज प्रिंटर पर दबाव बना रहे हैं कि वह डायरेक्टरी की क्वालिटी को ठीक करे; उनकी कोशिश यह भी है कि प्रिंटर यदि क्वालिटी ठीक नहीं कर पाता है तो वह कुछ पैसे ही कम करवा लें । इस मामले में लेकिन जितेंद्र ढींगरा का अपेक्षित सहयोग न मिलने से रमेश बजाज कुछ खफा खफा से हैं; और इस चक्कर में सारी तैयारी के बावजूद डायरेक्टरी का आना लटक गया है ।